नारी तुम मात्र सम्मान हो
सम्पूर्ण धरा का अभिमान हो
सीना चीरते है बहते अश्क
दायित्वों का तुम प्रतिमान हो।
आहे!निकल जाती है तब
मन भी अपवित्र करता है तब
तुम्ही इस धरा का सार हो
कोई ये बात समझता है कब।
नख शिख वर्णन में तौली जाती
अश्कों के तेरी कोई परिभाषा न होती
श्रृंगार रस की खान हो तुम
ज्यों शीतल नदी जलधार होती।
मीनाक्षी कमल
सम्पूर्ण धरा का अभिमान हो
सीना चीरते है बहते अश्क
दायित्वों का तुम प्रतिमान हो।
आहे!निकल जाती है तब
मन भी अपवित्र करता है तब
तुम्ही इस धरा का सार हो
कोई ये बात समझता है कब।
नख शिख वर्णन में तौली जाती
अश्कों के तेरी कोई परिभाषा न होती
श्रृंगार रस की खान हो तुम
ज्यों शीतल नदी जलधार होती।
मीनाक्षी कमल
💐भावों के मोती💐
6-6 2018
नारी
मैं,सृष्टि की संरचना
अद्भुत सामंजस्य बैठाए
अर्धनारीश्वरी रचना।।😊
मैं,ही तपस्या ,ध्यान
सृष्टि की कर्ता, धर्ता
चलायमान।।😊
मैं,कंचन काया
बंदिशें तोड़ती समाज की
सुगठित छाया।।😊
मैं,स्वयं इठलाती सबला
तांके पे रख पुरुष मानसिकता
नही अब अबला।।😊
मैं,पिता का स्वाभिमान
देती नई पहचान
स्वयं पर अभिमान।।😊
मैं,निःस्वार्थ भाव
विश्वासपूर्ण कार्यरत
कृतार्थ नारी।।😊
मैं,स्नेह गगरी
अथाह ज्वालाएं समेटे
नयनो से झलकी।।😊
********************
वीणा शर्मा
नारी
🔏🔏🔏🔏
नारी! तुम पुरुष की शक्ति हो,
तुम प्रेममय एक भक्ति हो,
तुम सौन्दर्य भरी अभिव्यक्ति हो
तुम अनुपम अनुरक्ति हो।
नारी से ही तो नर है,
वरना सब तितरबितर है,
तुमसे ही मुखर उसका स्वर है,
तुम्हारे साथ ही वो प्रखर है।
नारी तुम अद्भुत अद्भुत
तुम देती हो प्रीत की रुत
तुम हो अलबेली बहार
तुमसे महकता है संसार।
नारी को न विसार
नारी श्रष्टि का श्रंगार।।
नारी से ही नर हैं
नारी से हँसता संसार ।।
देवी रूप जान नारी को
रख हृदय में सुविचार ।।
भव सागर से तर जायेगा
उन्नति के खुलेंगे द्वार ।।
नारी कोमल नारी लज्जा
नारी से कर सद व्यवहार ।।
बना सकती गिरा सकती
शुभ स्वप्न कर साकार ।।
सच्चाई ही सदा रही
फरेबी रूप निकार ।।
सच्चे मन से पूजेगा तो
मिलेगा प्रभु का प्यार ।।
श्रष्टि की अप्रितम कृति
''शिवम्" सुख का सार ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
Rakesh Pandey
'स्त्री'''''__
कई बार,
बार-बार।।
आलम्ब से गिरी हूँ मैं,,..
कभी तत्काल,
कभी कुछ क्षण ठहरी हूँ मैं,,,,😢
आह री विडम्बना !!!
अपनी नारित्व पर ,
अभिमान करूँ,
या भोग्या का ,
अपमान सहूं।।
जब कोई? ????
पिता तुल्य पुरुष नेत्रों में,
वासना की उन्माद लिए,
दृष्टि डालता है मुझपर,,,
तो लज्जित हो जाती हूँ मैं,,..
....
जब भातृ तुल्य पुरुष,,
झाँकने की चेस्टा करता है,,
मेरे वस्त्रों के अंदर ।।।
तब मेरी स्त्रीत्व तार-तार,,
हो जाती है...
कई बार,
बार-बार,,,,,
प्रतीकों से संकेतो से,
अपमानित होती हूँ मैं,,,
आखिर मेरे शील को,
मेरे मर्यादा को,
मेरे अस्तित्व को,
सरंक्षण देगा कौन,,,
मेरे इस प्रस्न पर
सब क्यों है मौन,,,,,,,.,😢😢
....राकेश पाण्डेय
"नारी"
(1)
प्रेम बसता
नारी सम्मान जहां
सुख टिकता
(2)
रस्सी पे चाल
पीहर -ससुराल
नारी कमाल
(3)
अभिन्न मित्र
मुस्कान और श्रम
नारी के इत्र
(4)
शर्म है धन
नारी हृदय बसा
कोमल मन
(5)
मेहंदी नारी
परिवार की चक्की
पिस के रची
(6)
भक्ति से देख
नारी रूप अनेक
शक्ति के भेद
ऋतुराज दवे
नारी
🌹🌹🌹
आकाश ह्रदय शक्ति में धरा
ईश्वर ने नारी रूप गढ़ा
आहा! शीतल वाणी रसना
सुमन सम कोमल ललना
केश राशि जलधर घना
भवें तीक्ष्ण पंकज नयना
रक्ताभ मधुरं अधरा
मुखमंडल सम चंद्रप्रभा
अंतर में नव अंकुरण
भाग्य श्री चंचला चरण
तम में प्रथम सूर्य किरण
साक्षात् कल्पित अवतरण ।
सपना सक्सेना
स्वरचित
नारी……
ईश्वर की सुंदरतम रचना मैं प्रकृति की किलकारी
बढ़कर छू लूं आसमान को मैं नवीन युग की नारी
खुले गगन को देख देख आशाएं लें अंगड़ाई ऐसे
दूर गगन तक उड़ना चाहूं मैं स्वच्छंद परिन्दों जैसे
मैं सूरज की किरणों जैसे चारों और बिखरना चाहूं
सांझ ढले प्रियतम की बाहों में मैं पुनः सिमटना चाहूं
जल धरती आकाश तीन लोकों में है फहराया परचम
किया प्रमाणित मैंने खुद को मैं हूं नहीं पुरुष से अब कम
समीर (अनिल)
मेरठ (उत्तर प्रदेश)
(स्वरचित)
भा6/6/2018 ( बुधवार )शीर्षकः नारी ः
विधाःकविताःःः
नारी तुम सबकी श्रद्धा हो।
नारी हम सबकी शुद्धा हो।
नारी कब कमजोर हुई तुम
नारी सचमुच की योद्धा हो।
नारी ममता की मूरत है।
नारी समता की सूरत है।
नारी नहीं कोई ऐसी वैसी,
नारी नहीं कोई भी गैरत है।
नारी त्याग और बलिदान।
नारी करती सदा कल्याण।
नारी को जिस रूप मे देखें,
नारी तो सब गुणों की खान।
नारी अपना शक्ति पुँज है।
नारी सुंन्दर शांति कुंज है।
नारी की महिमा सब न्यारी,
नारी नहीं कोई लुंजपुंज है।
नारी ने नारायण बुलाऐ।
नारी ने श्री कृष्ण दौडाऐ।
नारी से मोहित होकर ही,
नारी शरण देव ऋषि आऐ।
नारी एक भक्ति और पूजा है।
नारी एक शक्ति और पूजा है।
नारी मे ही ये सब सृष्टि समाई,
नारी समान नहींकोई दूजा है।
स्वरचितः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
नारी - शमशान है सब गर नहीं हो तुम....
शिव में प्राण शक्ति हो तुम...
राम की मर्यादा हो तुम ....
ह्रदय में धारण जो सब करे.....
ऐसी निश्छल धरा हो तुम....
विरह प्रेम परकाष्टा हो तुम....
सृष्टि का आधार भी हो तुम...
चर अचर में प्रेम रूप का...
राधा कृष्ण आधार हो तुम....
माँ यशोधा का लाड प्यार तुम...
झांसी बाई देश सम्मान हो तुम...
तुम हो तो प्राण संचार जगत में....
शिव भी शव हैं गर नहीं हो तुम....
(शमशान है सब गर नहीं हो तुम)
II स्वरचित - चन्दर मोहन शर्मा II
एक आकृति
कुछ पहचानी सी
परंतु अस्पष्ट
काया दुर्बल
नेत्र सजल
केश एक भटके राही के समान अनिर्णित अवस्था में
उलझे उलझे से
भाव-भंगिमाएं परेशान
फिर भी हल्की सी मुस्कान
यही तो है नारी की पहचान
मानव की कल्पना
मात्र कल्पना
यथार्थ से दूर
रात्रि के स्याह अंधेरे में
उस परछाई के समान जो दिखती नहीं
परंतु उपस्थिति अनिवार्य
हाय री नारी
क्या यही है तेरा सम्मान
समर्पण की आस
समानता का ह्रास
लुप्त अहसास
जीवन परिहास
अत्याचार से अलंकृत सहनशीलता विद्यमान
चंद्रमा की शीतल चांदनी के समान
यही तो है नारी की पहचान
फूलन देवी से रूप कंवर यातनाओं के एक अवशेष मात्र उग्रता में भी
अत्याचार की छवि
और सती करवाने में भी दुराचारिता का अंश
बुराई से अच्छाई तक मात्र अमावस्या का कालापन
देवी की आराधना
शक्ति का इष्ट
मात्र आडंबर
नारी को बहलाने
एक तरफ पूजा
दूसरी तरफ हत्या
सबला को अबला बनाने का प्रयास
इतना तो शास्वत है
कोई अनभिज्ञ नहीं
नारी अबला नहीं सबला है
फिर भी नारी की
कोमल भावनाओं से खिलवाड़ और
बात-बात पर तिरस्कार यही तो है
नारी का श्रृंगार
बाल्यावस्था युवावस्था वृद्धावस्था
एक दुर्गम यात्रा के तीन महत्वपूर्ण पड़ाव
और कभी समाप्त ना होने वाला सहमापन
नारी एक आशावादी सर्वव्यापी सर्वशक्तिमान
क्या यही है नारी की पहचान
जी हां यही है नारी की पहचान
स्वरचित : मिलन जैन
आज के विषय "नारी" पर मेरी ये रचना " औरत" आप सभी की नजर औरत
कैसे?औरत का घर के हर, कोने कोने में बसता है जीव।
ख्वाबों की शालो को जीवन भर, उधेङता बुनता है जीव।
एक कन्या से यौवना के सफर में, जब बदलता है जीव।
खुशियों को गिरवी रख, रिश्तों की किश्तें चुकाता है जीव।
बच्चों के छोटे होते कपङों के ढेर में, यादों का अक्स लिये,
चौखट के पायदान या दरी के पैबंद में भी बसता है जीव।
फटी हुई चद्दरों की गद्दियां बनाकर,सुई से टांके टुमके दिये।
कतरा कतरा तिनकों को जोङने में, जुङता, बनता है जीव।
देखो, औरत का घर के कोने कोने में कैसें बसता है जीव?
अपने हिस्से के हाशिये को खाली रख, औरो को रंग दिये,
ताउम्र कई किरदारों में कैद, भूमिकाऐं निभाता है जीव।
चौखट से अहाते तक दुआओं, अभिलाषाओं की गठरी लिये
तुलसी के क्यारे में विश्वास का दीपक जलाता है जीव।
देखो, औरत का घर के कोने कोने में कैसें बसता है जीव?
सूरज को हथेली पर, चांद को पानी के थाल में लिये,
नागफनी पर भी संभावनाओं के, फूल खिलाता है जीव।
जला कर लाल मिर्ची को, बुरी नजर से बचाने के लिये,
आशंकाओं के बवंडर पर काला टीका लगाता है ये जीव।
देखो, औरत का घर के कोने कोने में कैसें बसता है जीव?
ख्वाबों की शालो को जीवन भर उधेङता बुनता है जीव।
-------- डा. निशा माथुर
"नारी"
नारी की कहानी आज सुनों तुम,
नारी की ही जबानी,
कहीं बने वो अबला,
और कहीं बने भवानी।
*****************
कूट-कूट कर है भरी,
इसमें सहनशीलता,
चुप रहना है संस्कार,
ना समझो इसे कायरता।
*******************
घर की परेशानियाँ सहते,
प्यार के बदले देती प्यार,
कर अपनी इच्छाओं का त्याग,
सबसे आगे रखे अपना परिवार।
************************
घर चलाते हुए भी,
उड़ाए आज वायुयान,
दिखा कौशल खेल जगत में,
बनी आज देश का अभिमान।
स्वरचित-रेखा रविदत्त
"नारी'
श्रृष्टि की सर्वोत्तम उपहार हूँ मैं।
नारी हूँ मैं,नही लाचार हूँ मैं।
त्याग, बलिदान की रूप थी मैं।
अब है मुझे अपने अधिकारो का ज्ञान।
परदे तब रखी जाती थी मैं।
अब अंतरिक्ष में मैं भरू उड़ान।
कोमल नारी मैं तब कही जाती
पहाड़ों पर परचम लहराऊँ मैं आज।
ठहरो।अभी तो बहुत कुछ कहना है मुझे।
नारी हैं तो तू हैं।वरना कहाँ कल तू है?
मत मारो कोख मे मुझे।
आने दो गोद मे मुझे।
नारी समाज का दर्पण है।
मत टूटने दो मुझे।
सुकुन से जी लेने दो मुझे।
स्वरचित -आरती श्रीवास्तव।
नारी
**********
हे नारी!हो तू हिंद की नारी
शक्ति हो, अपनी शक्ति की पहचान कर
आगे बढ़,उदाहरण बन देश का नाम कर
हे नारी!हो तू हिंद की नारी
ना थाम झूठ का दामन सच की चूनरी पहन
बड़ो का सम्मान कर उनका भी मान रख
ना दमन हो ना दमन कर
हे नारी! हो तू हिंद की नारी
तेज की अपनी पहचान कर
घर घर में प्रेम का संचार कर
हे नारी! हो तू हिंद की नारी
************************
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
-------
ना जाने तू किस सांचे में ढ़ली हो
कभी मोम सा पिघलकर
स्वर्ण पथ बुनती हो
कभी दीप सा जलकर
तिमिर दूर करती हो
स्वाभिमानी तू हे नारी!
ना जाने तू किस सांचे में ढ़ली हो ।
जग जननी तू
शक्ति,प्रेम की प्रवाह हो
हे देवी! तू
संयमता, शालीनता,विन्रमता
सहनशीलता,भद्रता,
मर्यादा की धार हो
नारीत्व आवरण हैं तेरे
ममता,करूणा,दया
त्याग,बलिदान,प्रेम की
तू प्रतिमूर्ति हो
आभा,प्रभा,तेज
होकर तुझसे प्रदीप्त
जग को प्रकाशित करते हैं
पाकर तेरी अनमोल ज्योति
निर्जीव भी सजीव हो जाते हैं
देखकर तेरा रूप यौवन
चमन, अमन ममकरन्द-सा मुस्कुराते हैं
हैं आप किसकी रचना
यह सोचकर धरा भी सकुचाती है
कलाकार हो, कवि हो, ज्ञानी हो, ऋषि हो, राजा हो या रंक
बनाकर तेरी प्रतिमा अपने-अपने हृदय में
सब तेरी इबादत दिन- रात करते हैं
प्रकृति की तू अनमोल धरोहर
पवित्रता,अमृता,पीयूष, सुधा हैं जिनकी मिठास
जग करता हैं उनकी पान का अमृतपान
मधुर रस की मूर्ति
सृष्टि के नाभी हे नारी!
आँगन से आसमां तक विचरती हो
घर से सरहद तक सुगंध बिखेरती हो
ना जाने तू किस सांचे में ढ़ली हो
हे देवी!
माँ का रूप सबसे सुंदर
रूप तेरा
तेरे उज्ज्वल क्षीर का रसपान कर
होते पुरूष यशस्वी,पराक्रमी और शौर्यवान यहां
फिर भी ना जाने क्यों
जग छीनता है अधिकार तेरा?
पूजते हैं जिसे नर,ईश्वर
वंदन करते हैं जिनके नर,ईश्वर
ब्राह्रमांड-सा विशाल ह्रदय है जिनका
जिनके पद-तल में झुकता जग
जिनकी चरणों को चुमता है जग
ऐसे नमन पादुकावाली नारी को
हे देवी! हे नारी!
क्यों कोख में ही आज
मार दिया जाता है?
क्या देखा नहीं जग
कल्पना चावला, सुनिता विलियम्स का उड़ान ?
फिर जग क्यों नारी को
जन्म लेने से पहले आज मार देता है ?
अगर बची हो जिनकी मर्यादा
उनकी मर्यादा को घर में ही लहूलुहान क्यों कर दिया जाता है?
हे नारी!
ना जाने तू किस सांचे में ढ़ली हो
@शाको
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