Monday, December 16

"छल बल"16दिसम्सबर 2019

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ब्लॉग संख्या :-597
विषय छल बल
सोमवार १६ दिसंबर २०१९

जय सरस्वती मैया

### गीत ###
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बल से दुनियादारी होती बल से ही गद्दारी है ,
बल की इन दीवारों में भी छल की पहरेदारी है।
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बल के आगे कहीं कभी भी कोई टिक कब पाया है ,
बल को धूल चटाने के लिए छल का जाल बिछाया है।
बल ने अपना देखो काला भीषण रूप बनाया है ,
बल से अबलाओं की होती छलनी हरपल काया है।
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बल की गाथा गाता हूं मैं मेरी भी लाचारी है ,
बल की इन दीवारों में भी छल की पहरेदारी है।
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बल के आगे कांपा करता था अकबर भी मतवाला ,
राणा के हाथों में देखा करता था जब वो भाला।
पानी है तो बल की शोभा महाराणा से तुम सीखो ,
गद्दारों का सीना चीरो बिल में छुपकर मत चीखो।
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बल की गाथा जानो लोगो बल की जननी नारी है ,
बल की इन दीवारों में भी छल की पहरेदारी है।
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स्वरचित
संदीप कुमार विश्नोई
दुतारांवाली अबोहर पंजाब

शीर्षक -- छल-बल
विधा--गीत


छल-बल करो नही गिरधारी ।
मोरी उमर अभी है वारी ।
तोरे नैना लगें कटारी ।
मोरी छीन्हे नींद मुरारी ।

जब जब तूँ पनघट पर आवे ।
जियरा जो विचलित हो जावे ।
जाने कछु न मोहे सुहावे ।
कहाँ कहुँ मोहे लाज आवे ।

बैरन रतियाँ लगवें भारी ।
ओ नटखट ओ वनवारी ।
कैसी बाँकी छवि तुम्हारी ।
'शिवम' छीन गयी नींद हमारी ।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 16/12/2019
16/12/2019
बिषय, छल ,बल,

कौरवों ने किया पांडवों से छल
दुश्शासन में था हजार हाथियों का बल
लेकिन कन्हा उनके साथ था
उनके शीश कृष्ण का बृहद हाथ था
मोहन के सहारे छोड़ी थी नैया
बन गए प्रभु आप ही खिवैया
वस्त्र चुराते थे यमुना तीर
वही बढ़ा रहे द्रौपदी का चीर
जिसने भी पकड़ा है गिरधर का हाथ
गोविंद रहे हैं सदा उनके साथ
वर्तमान में इंसान को है छलकपट ही सहारा
ईमान धर्म से कर लिया किनारा
भाई ही को देते हैं धोखा
सूरत देखने न छोड़ते झरोखा
छलछिद्र व्यवहार से होती सुबह से शाम
झूठ दंभ बिन चैन न आराम
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
विषय- छल-बल
दिनांक १६-१२-२०१९
छल बल जीत ना पाया,किया उसने तकरार है।
एक बात मैं समझ ना पाई,क्या यही संसार है।।

भाई भाई बीच जंग,बनी देखो घर में दीवार है।
खून रिश्ते समझे नहीं,माँ बाप कितने लाचार हैं।।

धन दौलत चाह डूबे,चढ़ा सर उनके खुमार है।
संस्कारों को भुला दिया,बिखर रहे परिवार हैं।।

अस्तित्व तुम्हारा मिट जाएगा,यह नहीं प्यार है।
छल बल त्याग प्रेम अपना,यही संसार सार है।।

कर्मानुसार फल देगा,प्रभु को तेरा इंतजार है।
नहीं रहना सदा धरा,क्यों करता अत्याचार है।।

कहती वीणा संभल,जग में सब समझदार है।
छल बल छोड़ प्यार रह,यही तो परिवार है।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली
16.12.2019
सोमवार

आज का शीर्षक
“ छल-बल “

छल-बल

सावधान हो सबल सिपाही,छल-बल का प्रतिकार करो
दुश्मन देश का घुस ना पाए,खुल कर अब संहार करो।।

ना हो ग़र स्वीकार किसी को,शांति वार्ता तुम छोड़ो
सबक सिखाओ अब दुश्मन को,तुम भी अत्याचार करो।।

‘जैसे को तैसा’ दे कर ही,
युद्ध टलेगा लगता है
विभीषिका-अंजाम देख कर
तुम भी अब प्रतिकार करो।।

आपस का मन भेद मिटा कर,अब मत भेद मिटा डालो
विश्व एक परिवार बने,सब मिलजुल इतना प्यार करो।

मन’उदार’कर डालो इतना,
सभी समा जाएँ दिल में
स्वच्छ हृदय से सब अपनाओ,मत छल-बल, व्यापार करो।।

स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा’ उदार ‘
तिथि -16/12/2019/सोमवार
विषय_* छल बल*

विधा॒॒॒ _काव्य

छल बल नहीं करूं किसी से
प्रभु नहीं कभी मदमस्त रहूं।
हो प्रेमालय हृदय उपवन,
प्रभुजी शिवं सत्यम मस्त रहूं।

बोल बाला नित छल बल का
परेशान है प्रजा हमारी।
सत्य छला जाता है अपना
जनता फिरे दुखी बिचारी।

झूठों पर विश्वास करें हम
क्यों सत्य शुभम् कभी न मानें।
शील विवेक नगण्य हुआ सा
झूठ सांच अब न पहचानें।

डाल एक मानवता चोला।
लुट रहे सब मानव भोला।
रहा विश्व में नाम हमारा
क्या पता किसने बिष घोला।

चलो मिल सौहार्द बढाऐं।
छलनीति को दूर भगाऐं।
दंड पेलते छल बल से जो
सुमानवता नूर बताऐं।

स्वरचितःः
16/12/2019
"छल-बल"

घनाक्षरी

राम के दरबार में,छल-बल नाकाम है।
मनुज के सुकर्म से,प्रसिद्धि औ नाम है।

अहं का आवरण ये,छल नहीं सुकाम है।
पशु सम आचरण ,अंत बदनाम है।

छल-बल है कुटिल ,मन का ये विकार है।
धर्म का न होता ज्ञान,गिरा ये संस्कार है।

गीदड़ों की चाल छल,सिर्फ फैलाता जाल है।
मन का यह विकार, खुद ही बेहाल है।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
दिनांक 16-12-19
विषय - छल बल

विधा - छंदमुक्त

तुम छल बल से क्या जीतोगे,
ईमान अभी मेरा ज़िंदा है l
अस्तित्व मिटाने चला मनुज तू,
अंतस आहत शर्मिंदा है l

निस्तेज मुझे करने को तुमने,
छल बल दंभ अवलंब लिया l
अमानवीय कृत्य करने में भी,
नहीं तनिक विलम्ब किया l

प्रहार छल बल से करके तूने,
पौरुष पैमाना छलकाया l
निश्छलता पर मेरी प्रश्न उठा,
खुद को ताकतवर बतलाया l

साये दरख़्त के जब चुभने लगे,
समझो अपनों ने ही घात किया l
प्रपंच वंचना विश्वासघात से ,
धूमिल पावन ज़ज़्बात किया l

छल कपट से ही कौरवों के,
विवशता में पांडव लाचार हुए l
छल बल नहीं बड़ा था बुद्धि से,
बस समय गति के शिकार हुए l

छल वंचना से कुछ लोग सदा,
शोषण कर प्रसिद्धि पाते l
कुम्हार की माटी सा अस्तित्व है,
रौंदने वाले भी इक दिन रौंदे जाते l

नहीं टिका छल दीर्घ काल तक,
इतिहास पुराण गवाही देते l
पाषाण पंक में फेंका गर तो,
दलदल हम अपने सर लेते l

स्वरचित मौलिक
कुसुम लता पुन्डोरा
नई दिल्ली

उसे रातों को निकलते देखा
हमने तारों को मचलते देखा


इश्क की तरबियत जरा देखो
कितने गिरतों को संभलते देखा

इसकी आतिश को महसूस करो
हमने पत्थर को पिंघलते देखा

हाय लुट गई दुनिया उसी दम
हाथ जो हाथों से निकलते देखा

मै समझ गया फानी है दुनिया
हर शाम धूप को ढलते देखा

तेरी फितरत को मै तब समझा
जब कि मौसम को बदलते देखा

कौन कब किससे वफा कर पाया
खुद अपने आप को छलते देखा

विपिन सोहल
Damyanti Damyanti 
 विषय_ छल बल |
नीति हे बुरी भाई |
चली आई युगो से

कहते हे सब |
वामन बन छला बली
राम बन बलिछला
बन कृष्ण छले गये कंस कालययवन जरासंधजैसे|
सात महारथियो ने छला
नवयुवक किशोर अभिमन्यु को |
छला गया जयद्रथं,द्रोणाचार्य से गुणी |
थे सभी अधर्मी छले गये
धर्म संस्थापना हित कृष्ण द्वारा |
कलयुग भाई सेछलेगये राणाप्रताप येथा घोर अन्याय जो मुगलो ने किया |
आज भी सब छल रहे एक दूजे को |
छल ही नही बल दोनो का प्रयोग|
हरपल हरक्षेत्र मे फैल रहो दीमकसा |
कोई रीति नीति नही इनकी |
धर्म हित नही स्वहित के लिऐ
हो रही देखो आपा धापी
हत्या बलात्कार भ्रष्टाचार आदि बहार
कुर्सी पद धन सभी पर हे हावी |स्वरचित_ दमयंती मिश्रा
विषय- छल बल
विधा-मुक्त
दिनांक -16 /12 /19

छलबल से बन गये नेता
अब कहते कर लो जो भी
पाँच वर्ष तो मेरे हुए
अब मैं तुमको कुछ नहीं देता

हम मूरख रोते रह जाते
चार साल मायूसी में काट
फिर फेंके गये टूकड़ो से खुश होकर, वादो के जाल में उलझ जाते

बनकर नेता जो दुत्कारते
चुनाव आते ही फिर विनम्र हो जाते
घर -घर जाकर अपनत्व दिखाते
चौपाये की मृत्यु पर भी बैठने आ जाते

गली, नुक्कड़, दुकान जहाँ भी
दिन और रात कभी भी
गधे को भी बाप बना सबके कदमों में झुक जाते

पाँच साल के लिए फिर
भोली जनता को बरगलाते
छल बल का फिर बुनकर जाल
बन जाते फिर नेता महान।

डा. नीलम
16/12/19

झूठ से भरा हुआ
छल बल की जंग ले
सोचती हूं बैठकर
कैसा ये संसार है
मन मे भरी उलझने
आदमी ही आदमी का
कर रहा बाजार है
नही किया फरेब उसने
जो मालिक इस संसार का है
भगवान को भी बेच रहा है
इंसान इस जहान का
आँख का पानी सूख गया
नाव में भी सुराख है
सूरते भी बिक रही है
पैसे का व्यापार है
लुट रही है बेटियां
छल बल और फरेब से
रिश्ते भी मर रहे
खामोशियो की दीवार से
सच्चाइयों से दूर है
आज का इंसान है

स्वरचित
मीना तिवारी
🌹 भावों के मोती🌹
विषय:-छल बल
विधा:-तुकांत कविता
16/12/2019

🌹💐🌹💐🌹💐🌹
छलबल का देखो असर आया मनुष्य के काम ।
रिश्ते नाते त्याग कर वह भागा चारों धाम ।

पाप अधर्म जब सर चढा मनुष्य हुआ बलवान ।
हित अहित को भूलकर बन बैठा भगवान।

सेवा भाव दिखता नहीं करता मन का काम ।
निंदनीय हर काम से अपने करता काम ।

लाज शर्म दिखती नहीं भूल बैठा पहचान ।
खूनखराबा कर रहा बन गया पाषाण ।

स्वरचित
नीलम शर्मा # नीलू

16/12/19
विषय छल बल
विधा उपमान छन्द
23 मात्रा ,13,10 अंत 22
**
पल ये कैसा आ गया ,कैसी लाचारी।
हवा चली अब लोभ की,मति हुई बेचारी।।
कमी धैर्य की हो रही ,पल में सब पाना ।
किसी तरीके से सही,इसमें सुख जाना ।।

कोई तर्कों से छले, झूठ सदा जीता ।
कोई बल प्रयोग करे,कोई विष पीता।।
भैंस सदा उसकी रही,प्रबल रही लाठी।
छल बल धोखे से रहे,उत्तम कद काठी।।

छुरी पीठ में भोंकता,भोला भाला वो।
कोई रिश्तों में छले ,मन का काला वो।
मीठी वाणी से दिये ,अपनों को धोखा ।
छल बल उत्तम मानते ,रंग लगे चोखा ।।

सत्य मार्ग पर पग बढ़े ,चलो शपथ खायें।
छल बल जीवन में नहीं ,ये कसम निभायें।।
नाश अहम का जो करे,जग में सुख पाता।
सतकर्मों से वो सदा ,झोली भर पाता ।।

स्वरचित
अनिता सुधीर
विषय, छल - बल
16,12,2018,
सोमवार

न्याय सुरक्षा के लिए ही होता है ऐसा कभी-कभी,

अत्याचारी अन्यायी को जीतना पड़ता है छल - बल से कभी-कभी ।

सतयुग, द्वापर , त्रेतायुग में भी छल-बल का उपयोग हुआ था ,

छल-बल के द्वारा ही तो पापियों का संहार संभव हुआ था ।

साम दाम और दंड भेद को ही कुशल प्रशासक अपनाता,

अमन चैन जो दुनियाँ में स्थापित करने की नीयत रखता है ।

अपनायें नहीं हम कभी भी छल-बल को बुरे कामों के लिए ,

जहाँ जरूरत हो भलाई की उपयोगी है छल-बल उसके लिए ।

स्वरचित, मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .

दिनांक १६/१२/२०१९
शीर्षक-छल-बल

छल बल से जीते नहीं
ये सुंदर जहान
स्वविवेक से काम ले
तो बने आप महान।

दुर्बल को न सताइए
बल से अपने,आप
छल से ना तोड़िए
सज्जन जन अभिमान।

छल बल से बड़ा है
बुद्धि व विवेक
इन दोनो का साथ मिले तो
मिटे सब क्लेश।

मानवमात्र को चाहिए
करें उत्तम व्यवहार
छल बल है तमोगुण
इससे न हो सरोकार।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
दिनांक:16/12/2019
विषय:छल बल
विधा:हाइकु
1
मिली विजय
छल बल ऊपर-
आज के दिन
2
छल प्रपंच-
विजय दिवस पे
खुश भारत
3
उन्नति देश
परास्त छल बल-
अवनति पे
4
टिकती नही
छल बल विजय-
सत्य अमर

मनीष कुमार श्रीवास्तव
स्वरचित
शीर्षक- छल बल
16/12/2019:: सोमवार
विधा-- गीतिका

तेरा आँचल, जैसे बादल
जहाँ सकून मिले है पल-पल

माँ की ममता ऐसी होती
जहाँ नहीं कोई भी छल-बल

आ जाता माँ की गोदी में
ज्यूँ ही बेटा होता बेकल

देख न पाये आँसू उसके
लेती छिपा प्यार से आँचल

बोल बोलती दो जब मीठे
दुख भागे फिर होकर पागल
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली

छल बल

सब विवादों से परे
क्या हम सिर्फ एक मानव नहीं
आत्मा की शुद्ध वर्तिका से जलते मन को
ना जाने क्यों
तानों बानों में उलझा कर रख दिया
करें खुद का खुद से साक्षात्कार
सभी आवरणों का कर बहिष्कार
छल बल प्रपंचों से परे ...

मन के कोमलतम भावों
मस्तिष्क की ऊर्जा के
सुंदरतम संतुलन का
अहं और द्वेष से परे
बहती प्रेम की निर्मल नदी के
मध्य द्वीप से खड़े
क्यूँ न करे
खुद का खुद से साक्षात्कार
सभी आवरणों का कर बहिष्कार
समस्त छल बल प्रपंचों से परे...

बाहर ढूंढते
भीतर पा पाते
जटिल प्रश्नों के उत्तर
शांत मन से स्वयं ही पूँछे
अंतर्मन की आवाज सुने
करें खुद से खुद का साक्षात्कार
सभी आवरणों का कर बहिष्कार
समस्त छल प्रपंचों से परे....

मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित

कुंडलीयाँ .............वेणी
★★★★★★★★★★★★★★★★★
ेणी सुंदर लग रही,
नारी का श्रृंगार।
उसकी शोभा जब बढे,
गूँथे फूलों हार।
गूँथे फूलो हार,
लगती कितनी मनोहर।
लहराये कमर पर,
बनती किसकी सहोदर।
नारी श्रृंगार कर,
लगी मूरत की मंदर।
सोलह श्रृंगार कर,
लग रही वेणी सुंदर।
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा छ.ग.


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