ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें
ब्लॉग संख्या :-583
"भावों के मोती"
दिनाँक-2/12/2019
उद्देश्य/मकसद
*************
जीवन साँझ
मन चिर शांत
वो बैठी आँगन
कुछ अनमनी
कुछ अलसायी
कुछ सुलगती
कुछ अपनो के
लिए सिसकती ।
जीवन धूप मंद
पड़ती,देह का
अब हर अंग दे
रहा जबाब सा
कुछ चटकता सा
दर्द में भटकता सा।
पतझड़ के सूखे
पत्तों से उड़ते
सूने -सूने दिन
अमावस सी
काली रातें ।
जुगनुओं सी
रहरह कर
चमकती यादें
कौंधती सी
होंठो पर उसके
तिर जाती
मुस्कान सी ।
वृद्ध होती काया
की परछाई को
छोटा होते देखती
सी
क्या जीवन ऐसे
ही बीत जाएगा
निरुद्देश्य
खुद से सवाल
पूछती सी।
न मैं ऐसे न जी
पाऊंगी
जीवन व्यर्थ न
गवाऊंगी
उठी हुंकार भरती
न हैं जिनकी माएँ
उन पर अब अपना
स्नेह लुटाऊंगी ।
क्या हुआ जो
यौवन ढल गया
शक्ति बल कम
पड़ गया
किया जिस तरह
अपनो के लिए
पूर्ण कर्तव्य
अपना कर्तव्य
समाज़ को
देकर चुकाउंगी ।
यही मकसद लेकर
जीवन बिताउंगी
बची खुची जिंदगी
की धूप दूसरों
पर लुटाउंगी ।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
दिनाँक-2/12/2019
उद्देश्य/मकसद
*************
जीवन साँझ
मन चिर शांत
वो बैठी आँगन
कुछ अनमनी
कुछ अलसायी
कुछ सुलगती
कुछ अपनो के
लिए सिसकती ।
जीवन धूप मंद
पड़ती,देह का
अब हर अंग दे
रहा जबाब सा
कुछ चटकता सा
दर्द में भटकता सा।
पतझड़ के सूखे
पत्तों से उड़ते
सूने -सूने दिन
अमावस सी
काली रातें ।
जुगनुओं सी
रहरह कर
चमकती यादें
कौंधती सी
होंठो पर उसके
तिर जाती
मुस्कान सी ।
वृद्ध होती काया
की परछाई को
छोटा होते देखती
सी
क्या जीवन ऐसे
ही बीत जाएगा
निरुद्देश्य
खुद से सवाल
पूछती सी।
न मैं ऐसे न जी
पाऊंगी
जीवन व्यर्थ न
गवाऊंगी
उठी हुंकार भरती
न हैं जिनकी माएँ
उन पर अब अपना
स्नेह लुटाऊंगी ।
क्या हुआ जो
यौवन ढल गया
शक्ति बल कम
पड़ गया
किया जिस तरह
अपनो के लिए
पूर्ण कर्तव्य
अपना कर्तव्य
समाज़ को
देकर चुकाउंगी ।
यही मकसद लेकर
जीवन बिताउंगी
बची खुची जिंदगी
की धूप दूसरों
पर लुटाउंगी ।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
दिनांक-2/12/2019
विषय-मक्सद
नृप राज जनक के सत्संग में मुनि अष्टावक्र ने किया हंस बार।
दीखे नहीं यहां कोई जौहरी बैठे हैं सब चर्मकार।
तन बगुला से भूरे ऊपर भीतर कौआ से काले मन,
मुंह में राम बगल में खंजर कपट हंसी हंस करते बार।
मुखड़ा देख के करते टीका फिर फिर अपने नि परसै खीर,
कौन कहां पर बैठा अपना पांति में देखते नजर पसार।
ईमान दार महनत कश भूंखा दुखी पड़ौसी का करैं न ख्याल,
चोर लफंगे गुंडे लुच्चे बेईमानों का करैं सत्कार।
कहैं तो कहैं व्यथा अब किससे बैठे यहां अंधे बहरे हैं,
सिर्फ बता सकते हैं चर्म चख पहुंच गर चर्म बजार।
स्वारथ जहां दीखता इनका रोते भर आंसू घड़ियाल,
*मक्सद*जाय निकल जब इनका करते हैं फिर व्यंग प्रहार।
अष्टावक्र लख काया मेरी मुझ पर हंसने बाले ओ,
तनक झांक कर देखो मन में तो सत्य प्रभू झूंठा संसार।
कवि महावीर सिकरवार
आगरा (उ.प्र.)
विषय-मक्सद
नृप राज जनक के सत्संग में मुनि अष्टावक्र ने किया हंस बार।
दीखे नहीं यहां कोई जौहरी बैठे हैं सब चर्मकार।
तन बगुला से भूरे ऊपर भीतर कौआ से काले मन,
मुंह में राम बगल में खंजर कपट हंसी हंस करते बार।
मुखड़ा देख के करते टीका फिर फिर अपने नि परसै खीर,
कौन कहां पर बैठा अपना पांति में देखते नजर पसार।
ईमान दार महनत कश भूंखा दुखी पड़ौसी का करैं न ख्याल,
चोर लफंगे गुंडे लुच्चे बेईमानों का करैं सत्कार।
कहैं तो कहैं व्यथा अब किससे बैठे यहां अंधे बहरे हैं,
सिर्फ बता सकते हैं चर्म चख पहुंच गर चर्म बजार।
स्वारथ जहां दीखता इनका रोते भर आंसू घड़ियाल,
*मक्सद*जाय निकल जब इनका करते हैं फिर व्यंग प्रहार।
अष्टावक्र लख काया मेरी मुझ पर हंसने बाले ओ,
तनक झांक कर देखो मन में तो सत्य प्रभू झूंठा संसार।
कवि महावीर सिकरवार
आगरा (उ.प्र.)
विषय मकसद,उद्देश्य
विधा काव्य
02 दिसम्बर,2019सोमवार
जीवन खाना पीना नहीं है
जीवन का उद्देश्य अद्भुत।
पेट सभी भरते जीवन मे
परोपकार मय मात सपूत।
खुद का जीना क्या जीना है
परहित जीना, होता जीना।
स्व स्वार्थ जीवन जीने से
अच्छा होता जग में मरना।
प्रगति का मकसद जीवन
लक्ष्य प्राप्ति होता जीवन।
चहुर्मुखी विकास सदा हो
खिलता रहे जीवन उपवन।
जीवन जीना खेल नहीं है
संघर्षो से और निखरता।
नेक श्रेष्ठ मानस है जिसका
पर पीड़ा जीवन नित हरता।
जिसने जीवन दिया सभी को
उस प्रभु की नित भक्ति करलो।
मकसद सबका एक हो पावन
दीन दुःखी को हृदय में भरलो।
जननी जन्मभूमि गरीयसी प्रिय
स्नेह सुधा रस दिया सभी को।
आन बान नित शान बढाओ
मकसद पूर्ण होता तब ही तो।
स्वरचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
02 दिसम्बर,2019सोमवार
जीवन खाना पीना नहीं है
जीवन का उद्देश्य अद्भुत।
पेट सभी भरते जीवन मे
परोपकार मय मात सपूत।
खुद का जीना क्या जीना है
परहित जीना, होता जीना।
स्व स्वार्थ जीवन जीने से
अच्छा होता जग में मरना।
प्रगति का मकसद जीवन
लक्ष्य प्राप्ति होता जीवन।
चहुर्मुखी विकास सदा हो
खिलता रहे जीवन उपवन।
जीवन जीना खेल नहीं है
संघर्षो से और निखरता।
नेक श्रेष्ठ मानस है जिसका
पर पीड़ा जीवन नित हरता।
जिसने जीवन दिया सभी को
उस प्रभु की नित भक्ति करलो।
मकसद सबका एक हो पावन
दीन दुःखी को हृदय में भरलो।
जननी जन्मभूमि गरीयसी प्रिय
स्नेह सुधा रस दिया सभी को।
आन बान नित शान बढाओ
मकसद पूर्ण होता तब ही तो।
स्वरचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विषय_ मकसद/ उद्देश्य |
पहले थे मानव जो चलते सटिक उद्देश्य लिऐ |
होता था उत्थान परिवार समाज देश का |
शनै शैन युग बदला सोच बदल गई |
स्वयं स्व के लिऐ जीना भी क्या जीना |
फैल रही असामाजिकता भाव विषैले |
हे मानव कुछ तो मकसद होगा |
नहो अगर तो तय करो मन से |
मानव हो ,हो मकसद सुदंर तो बदलदो तस्वीर समाज की |
पनपने न दे दानवो को जो,
कर रहे समाज को शर्मसार|
जब जहरीले सर्फ फन फैलाये
तो सज्जन क्यों न कुचले फन |
छोडदो ये सोच हमे मारेगे |
अकेले नही हो साथ सब |
आओ हम भारत वासीतय करे
मकसद हो सुदंर संस्कार व संस्कृति
चले सत्य पंथ पर सब आयेदानव
नडरे न पीछे हटे उनको मार गिराये |
तभी बनेगा स्वच्छ ,स्वस्थ भारत |
पहले थे मानव जो चलते सटिक उद्देश्य लिऐ |
होता था उत्थान परिवार समाज देश का |
शनै शैन युग बदला सोच बदल गई |
स्वयं स्व के लिऐ जीना भी क्या जीना |
फैल रही असामाजिकता भाव विषैले |
हे मानव कुछ तो मकसद होगा |
नहो अगर तो तय करो मन से |
मानव हो ,हो मकसद सुदंर तो बदलदो तस्वीर समाज की |
पनपने न दे दानवो को जो,
कर रहे समाज को शर्मसार|
जब जहरीले सर्फ फन फैलाये
तो सज्जन क्यों न कुचले फन |
छोडदो ये सोच हमे मारेगे |
अकेले नही हो साथ सब |
आओ हम भारत वासीतय करे
मकसद हो सुदंर संस्कार व संस्कृति
चले सत्य पंथ पर सब आयेदानव
नडरे न पीछे हटे उनको मार गिराये |
तभी बनेगा स्वच्छ ,स्वस्थ भारत |
दिनांक- 2/12/2019
शीर्षक-"मकसद/उद्देश्य
विधा- छंदमुक्त कविता
*****************
जिंदगी में जीने का मक़सद होना चाहिए,
रोते हुओंं को हँसाने का हुनर होना चाहिए |
जिंदगी है हम सबकी बेशकीमती,
इसको खुशहाल बनाने का मक़सद होना चाहिए |
जाने अनजाने में दु:ख दिया गर किसी को,
अब उसे हँसाने का मक़सद होना चाहिए |
बिन मक़सद के जीना जीवन को बनाये खिलौना,
मंजिल को गर हो पाना तो हौंसला बुलंद होना चाहिए |
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
शीर्षक-"मकसद/उद्देश्य
विधा- छंदमुक्त कविता
*****************
जिंदगी में जीने का मक़सद होना चाहिए,
रोते हुओंं को हँसाने का हुनर होना चाहिए |
जिंदगी है हम सबकी बेशकीमती,
इसको खुशहाल बनाने का मक़सद होना चाहिए |
जाने अनजाने में दु:ख दिया गर किसी को,
अब उसे हँसाने का मक़सद होना चाहिए |
बिन मक़सद के जीना जीवन को बनाये खिलौना,
मंजिल को गर हो पाना तो हौंसला बुलंद होना चाहिए |
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
2 /12/2019
बिषय, उद्देश्य,, मकसद
मकसद नहीं धर्म या भावना को ठेस पहुंचाना
सत्यता को सामने जरूर लाना
विद्वषियों ने मन में बरवादी की ठानी
जो हमारे सिर आँखों पर वही करें मनमानी
बलात्कार लूटपाट का उनका पेशा
नारियों को बर्बाद करने का संदेशा
अन्य समुदाय की महिलाओं के साथ नहीं हुआ दुराचार
फिर क्यों हमारे ही साथ हो रहा दुर्व्यवहार
आखिर आतताइयों का उद्देश्य क्या है
न इनका धर्म ईमान न खुदा है
मेरी लेखनी कटु पर सत्य आधार
कब तक सहोगे दुर्व्यवहार अत्याचार
सुषमा ब्यौहार,, स्वरचित,,
बिषय, उद्देश्य,, मकसद
मकसद नहीं धर्म या भावना को ठेस पहुंचाना
सत्यता को सामने जरूर लाना
विद्वषियों ने मन में बरवादी की ठानी
जो हमारे सिर आँखों पर वही करें मनमानी
बलात्कार लूटपाट का उनका पेशा
नारियों को बर्बाद करने का संदेशा
अन्य समुदाय की महिलाओं के साथ नहीं हुआ दुराचार
फिर क्यों हमारे ही साथ हो रहा दुर्व्यवहार
आखिर आतताइयों का उद्देश्य क्या है
न इनका धर्म ईमान न खुदा है
मेरी लेखनी कटु पर सत्य आधार
कब तक सहोगे दुर्व्यवहार अत्याचार
सुषमा ब्यौहार,, स्वरचित,,
भावॉ के मोती
°°°°°°°°°°°°°°
* तिथि- 02 दिसम्बर 2019
* विषय - मकसद / उद्देश्य
* विधा - बंधन मुक्त मुक्तक
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
राष्ट्र के सपने पूरे करना -
यह उद्देश्य हमारा है ,
हौंसलों के आगे देखो -
विश्व ने हमें निहारा है |
कदम नव पथ पे बढ़ेंगे -
कोई ताकत रोक सके ना ,
आओ मिलकर चले साथ हम -
समय ने हमे पुकारा है |
स्वयं रचित ,मौलिक सर्व अधिकार सुरक्षित
* प्रहलाद मराठा
* चित्तौडग़ढ़ (राजस्थान )
°°°°°°°°°°°°°°
* तिथि- 02 दिसम्बर 2019
* विषय - मकसद / उद्देश्य
* विधा - बंधन मुक्त मुक्तक
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
राष्ट्र के सपने पूरे करना -
यह उद्देश्य हमारा है ,
हौंसलों के आगे देखो -
विश्व ने हमें निहारा है |
कदम नव पथ पे बढ़ेंगे -
कोई ताकत रोक सके ना ,
आओ मिलकर चले साथ हम -
समय ने हमे पुकारा है |
स्वयं रचित ,मौलिक सर्व अधिकार सुरक्षित
* प्रहलाद मराठा
* चित्तौडग़ढ़ (राजस्थान )
दिनांक-02/12/2029
विषय- उद्देश्य
उद्देश्य की विजय..........
भूल जाए जो लक्ष्य कभी
वह सारा जीवन भटकता है
हो गर्म हवा का डर जिसको
जो मखमल में ही पलता हो
उसे अंगारों से भय कैसा
जो कांटो पर ही सोता हो
कर्म पथ है ,एकल विकल्प
जब संघर्षों की इच्छा हो प्रबल
संघर्षों की ज्वाला में जलकर
तू कंचन पथिक बन जाएगा
शूलों से घबराना कैसा
तेरा कीर्तिमान यश जग गाएगा...
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज
विषय- उद्देश्य
उद्देश्य की विजय..........
भूल जाए जो लक्ष्य कभी
वह सारा जीवन भटकता है
हो गर्म हवा का डर जिसको
जो मखमल में ही पलता हो
उसे अंगारों से भय कैसा
जो कांटो पर ही सोता हो
कर्म पथ है ,एकल विकल्प
जब संघर्षों की इच्छा हो प्रबल
संघर्षों की ज्वाला में जलकर
तू कंचन पथिक बन जाएगा
शूलों से घबराना कैसा
तेरा कीर्तिमान यश जग गाएगा...
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज
मसमस्त मोतीयो को प्रणाम्!!
विषय -मकसद
स्वरचित-वंदना पालीवालमकसद---
मकसद हमारा बस ऐक यही,
कर जाऊ कुछ ऐसा,,,,,,,
ना कोई बेटी छली जाऐ,
ना बहू को पिटा जाऐ
घर के बुजूर्ग ना आश्रम जाऐ,
दादादादी बच्चों संग झूमे
स्वपन सलोना थाहमने सोचा,,,
पर पाया बिखरा सब ऐक जगह
मकसद उनका केवल पाना था
देना तो कभी सिखा नही
हम भी हिम्मत तब हारे जब ,
जाग गये गिता अंजली।
मकसद फिर भी आज यही
सब घर हो खुशहाली ,
मिलकर रहे खरे खोटे भी,
बच्चे नाचे दे दे ताली।
विषय -मकसद
स्वरचित-वंदना पालीवालमकसद---
मकसद हमारा बस ऐक यही,
कर जाऊ कुछ ऐसा,,,,,,,
ना कोई बेटी छली जाऐ,
ना बहू को पिटा जाऐ
घर के बुजूर्ग ना आश्रम जाऐ,
दादादादी बच्चों संग झूमे
स्वपन सलोना थाहमने सोचा,,,
पर पाया बिखरा सब ऐक जगह
मकसद उनका केवल पाना था
देना तो कभी सिखा नही
हम भी हिम्मत तब हारे जब ,
जाग गये गिता अंजली।
मकसद फिर भी आज यही
सब घर हो खुशहाली ,
मिलकर रहे खरे खोटे भी,
बच्चे नाचे दे दे ताली।
जिन्दगी का मकसद अब सब भूल गये
पैसा कमाना इक लक्ष्य इसमें सब झूल गये ।।
जिसे भी देखो उसे इक तरफा भागे
चहुँमुखी विकास क्या इससे सब दूर भये ।।
वक्त नही किसी को ऐसी बातों का
अपने से अपनों की मुलाकातों का ।।
पैसे से सब कुछ खरीदा नही गया
कौन सुने साज मन वीणा के साजों का ।।
रूह परमात्म का अंश परमात्म चाहे
दो पल प्रभु स्मरण प्रभु का साथ चाहे ।।
हजार साल को कौन यहाँ जीने आया
कितने फर्ज़ से इंसा अब आजाद चाहे ।।
हठधर्मिता कितने पापों को जोड़ती है
इंसा को इंसा काबिल न छोड़ती है ।।
हठ जैसा ही आज बना तानाबाना
इंसानियत की हदें जो सब तोड़ती है ।।
'शिवम' सुझाया सब गया पढ़ न पाए
अपने मकसद में आगे बढ़ न पाए ।।
मुक्ति को मिला था ये नर तन प्यारा
मुक्ति का पथ जीवन में गढ़ न पाए ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 02/11/2019
पैसा कमाना इक लक्ष्य इसमें सब झूल गये ।।
जिसे भी देखो उसे इक तरफा भागे
चहुँमुखी विकास क्या इससे सब दूर भये ।।
वक्त नही किसी को ऐसी बातों का
अपने से अपनों की मुलाकातों का ।।
पैसे से सब कुछ खरीदा नही गया
कौन सुने साज मन वीणा के साजों का ।।
रूह परमात्म का अंश परमात्म चाहे
दो पल प्रभु स्मरण प्रभु का साथ चाहे ।।
हजार साल को कौन यहाँ जीने आया
कितने फर्ज़ से इंसा अब आजाद चाहे ।।
हठधर्मिता कितने पापों को जोड़ती है
इंसा को इंसा काबिल न छोड़ती है ।।
हठ जैसा ही आज बना तानाबाना
इंसानियत की हदें जो सब तोड़ती है ।।
'शिवम' सुझाया सब गया पढ़ न पाए
अपने मकसद में आगे बढ़ न पाए ।।
मुक्ति को मिला था ये नर तन प्यारा
मुक्ति का पथ जीवन में गढ़ न पाए ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 02/11/2019
शीर्षक- मकसद
है मकसद यही और चाहत यही
दीन-दुखियों के काम आएं हम।
देकर सहारा,उठाएं गिरे हुओं को
भटकों को सही राह दिखाएं हम।
देख बाधाओं को इन राहों में आते
धैर्य धरें, किंचित ना घबराएं हम।
बेबश खड़े, अश्रुओं में जड़े और
बेसहारों का सहारा बन जाएं हम।
हर घर नहीं तो कुछ घर में ही सही
नव जागरण, नवचेतना लाएं हम।
ज्ञान का प्रकाश बांटें जन-जन को
अंधेरा अंधविश्वास का हटाएं हम।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
है मकसद यही और चाहत यही
दीन-दुखियों के काम आएं हम।
देकर सहारा,उठाएं गिरे हुओं को
भटकों को सही राह दिखाएं हम।
देख बाधाओं को इन राहों में आते
धैर्य धरें, किंचित ना घबराएं हम।
बेबश खड़े, अश्रुओं में जड़े और
बेसहारों का सहारा बन जाएं हम।
हर घर नहीं तो कुछ घर में ही सही
नव जागरण, नवचेतना लाएं हम।
ज्ञान का प्रकाश बांटें जन-जन को
अंधेरा अंधविश्वास का हटाएं हम।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
जिंदगी के सफर में जीना सीख रही हूँ
वक्त के साथ कदम बढ़ाती जा रही हूँ
भीड़ में मिले अपने कभी
उन अपनों को अपना बनाने का मकसद ढूंढ रही हूँ .
ये जिंदगी अधूरी हैं तुम बिन
ये खुशियां ये खुशियों के महल बेगाने हैं तुम बिन
मेरी ख़ुशी और खुशियों का ज़रिया हो तुम
मेरे जीने का मकसद हो तुम .
बड़े बेगाने हुए हम रिश्तों के बाजार में
मकसद भी हमारा टूट कर बिखर गया हमारा
हार कर भी आगे बढ़ते गये
हार कर भी जीने का मकसद ढूंढते रहे हम .
अभी तो जीने का मकसद हमने जाना हैं
खुद के जख्मों पर मरहम लगाना सीखा हैं
कभी तो खुशियों से सामना होगा हमारा
ये जीने का मकसद दिल में थामा हैं .
स्वरचित :- रीता बिष्ट
वक्त के साथ कदम बढ़ाती जा रही हूँ
भीड़ में मिले अपने कभी
उन अपनों को अपना बनाने का मकसद ढूंढ रही हूँ .
ये जिंदगी अधूरी हैं तुम बिन
ये खुशियां ये खुशियों के महल बेगाने हैं तुम बिन
मेरी ख़ुशी और खुशियों का ज़रिया हो तुम
मेरे जीने का मकसद हो तुम .
बड़े बेगाने हुए हम रिश्तों के बाजार में
मकसद भी हमारा टूट कर बिखर गया हमारा
हार कर भी आगे बढ़ते गये
हार कर भी जीने का मकसद ढूंढते रहे हम .
अभी तो जीने का मकसद हमने जाना हैं
खुद के जख्मों पर मरहम लगाना सीखा हैं
कभी तो खुशियों से सामना होगा हमारा
ये जीने का मकसद दिल में थामा हैं .
स्वरचित :- रीता बिष्ट
02/12/2019
"उद्देश्य/मकसद"
हाइकु
1
छात्र जीवन
उद्देश्य ज्ञानार्जन
कठिन तप
2
मनु जीवन
कर्म के अनुरुप
उद्देश्य पूर्ण
3
सेना कर्तव्य
सुरक्षा मकसद
सीमा तैनात
4
धर्म ईमान
उद्देश्य परमार्थ
सच्चा इंसान
सेदोका
1
छात्र जीवन
अग्निपथ तपके
उद्देश्य न भटके
अडिग खड़ा
सफलता को चूमा
सितारे सा चमका।
2
सच्चा इंसान
उद्देश्य परमार्थ
भावना हो नि:स्वार्थ
ईमान धर्म
कर्म से पहचान
जग में गुणगान।
वर्ण पिरामिड
है
सेना
तत्पर
हिंद शान
कर्तव्य प्राण
सीमा पे तैनात
सुरक्षा मकसद।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
"उद्देश्य/मकसद"
हाइकु
1
छात्र जीवन
उद्देश्य ज्ञानार्जन
कठिन तप
2
मनु जीवन
कर्म के अनुरुप
उद्देश्य पूर्ण
3
सेना कर्तव्य
सुरक्षा मकसद
सीमा तैनात
4
धर्म ईमान
उद्देश्य परमार्थ
सच्चा इंसान
सेदोका
1
छात्र जीवन
अग्निपथ तपके
उद्देश्य न भटके
अडिग खड़ा
सफलता को चूमा
सितारे सा चमका।
2
सच्चा इंसान
उद्देश्य परमार्थ
भावना हो नि:स्वार्थ
ईमान धर्म
कर्म से पहचान
जग में गुणगान।
वर्ण पिरामिड
है
सेना
तत्पर
हिंद शान
कर्तव्य प्राण
सीमा पे तैनात
सुरक्षा मकसद।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
2/12/2019
विषय-उद्देश्य/मकसद
कभी मैं सोचती हूं
इस जहाँ में हम आखिर क्यों आये हैं..?
क्या खाने-पीने,, हँसने-रोने
या फिर
पिछले कर्मों को धोने ??
किस उद्देश्य की खातिर हम यहाँ आए हैं..?
पाप रहित निज जीवन में
अनगिन दुःख हम भोग चुके हैं
पापियों को सुखी देख
हम न्याय की आशा छोड़ चुके हैं
कहने को तो जो हैं अपने
वो ही सबसे अधिक पराए हैं.!
यदि भाग्य ही सब कुछ है
तो कर्मों का कोई खेल नहीं
कर्म फल तब क्यों मिले
जब भाग्य कर्म का मेल नहीं
ये भी एक पहेली है कि फिर
हम हाथों में भाग्य रेखाएं क्यों लेकर आए हैं...?
इस जहाँ में हम आखिर किस उद्देश्य हेतु आए हैं..?
*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
विषय-उद्देश्य/मकसद
कभी मैं सोचती हूं
इस जहाँ में हम आखिर क्यों आये हैं..?
क्या खाने-पीने,, हँसने-रोने
या फिर
पिछले कर्मों को धोने ??
किस उद्देश्य की खातिर हम यहाँ आए हैं..?
पाप रहित निज जीवन में
अनगिन दुःख हम भोग चुके हैं
पापियों को सुखी देख
हम न्याय की आशा छोड़ चुके हैं
कहने को तो जो हैं अपने
वो ही सबसे अधिक पराए हैं.!
यदि भाग्य ही सब कुछ है
तो कर्मों का कोई खेल नहीं
कर्म फल तब क्यों मिले
जब भाग्य कर्म का मेल नहीं
ये भी एक पहेली है कि फिर
हम हाथों में भाग्य रेखाएं क्यों लेकर आए हैं...?
इस जहाँ में हम आखिर किस उद्देश्य हेतु आए हैं..?
*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
विषय- मकसद
दिनांक २-१२-१९जिंदगी को कुछ लोग,मकसद से जिया करते हैं।
बिन मकसद जीने वाले,भीड़ हिस्सा बना करते हैं।।
अनमोल जिंदगी,कुछ लोग ही सार्थक करते हैं ।
मकसद से जी जिंदगी,उदाहरण बना करते हैं।।
लीक से हटकर चलने वाले, इतिहास रचा करते हैं।
उद्देश्य पूर्ण जिंदगी,कुछ बिरले ही जिया करते हैं।।
राह कठिनाइयों को,हौसला रख वो हल करते हैं।
प्रेरणादायक ग्रंथ, सबक ले वो लिखा करते हैं।।
अरमानों को हकीकत में,बदलने का हुनर रखते हैं।
मकसद को पाने के लिए,अथक परिश्रम करते हैं।।
कर्तव्य पथ पर अडिग रह,ख्वाब सजाया करते हैं।
मकसद पूरा करने में,किसी का अहित नहीं करते हैं।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक २-१२-१९जिंदगी को कुछ लोग,मकसद से जिया करते हैं।
बिन मकसद जीने वाले,भीड़ हिस्सा बना करते हैं।।
अनमोल जिंदगी,कुछ लोग ही सार्थक करते हैं ।
मकसद से जी जिंदगी,उदाहरण बना करते हैं।।
लीक से हटकर चलने वाले, इतिहास रचा करते हैं।
उद्देश्य पूर्ण जिंदगी,कुछ बिरले ही जिया करते हैं।।
राह कठिनाइयों को,हौसला रख वो हल करते हैं।
प्रेरणादायक ग्रंथ, सबक ले वो लिखा करते हैं।।
अरमानों को हकीकत में,बदलने का हुनर रखते हैं।
मकसद को पाने के लिए,अथक परिश्रम करते हैं।।
कर्तव्य पथ पर अडिग रह,ख्वाब सजाया करते हैं।
मकसद पूरा करने में,किसी का अहित नहीं करते हैं।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
विषय -*उद्देश्य/मकसद*
विधा॒॒॒ _काव्य
उद्देश्य हमारा अर्थ प्रधान है।
हम सबका नहीं एक प्रधान है।
लेकिन एक बडी बात है अपनी
पाना स्वप्रतिष्ठा बडी शान है।
उद्देश्य हमारा ज्ञानार्जन नहीं।
चुनाव जीतना भगवत अर्चन है।
सारी दुनिया में हम छा जाऐं
यह सही राजनीति का नर्तन है।
मकसद अपनाभौतिकता पाना।
न कहीं हमें मानवता दिखलाना।
सभी संपदाऐं धनदौलत आऐ
मात्र यहां चुनाव जीत के आना।
ठाकुर सा भले बन जाऐं लेकिन
उद्देश्य हमारा आरक्षण पाना है।
नहीं जात पात से हमें है मतलब
बनें हरामखोर कुर्सी पाना है।
एक और उद्देश्य हमारा यारो,
किसी तिकडम से जेएनयू पहुचें।
मुफ्त में सब सुविधाएं जुटाकर
कभी राष्ट्रविरोधी के पद पहुचें।
स्वरचितः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्यप्रदेश
विधा॒॒॒ _काव्य
उद्देश्य हमारा अर्थ प्रधान है।
हम सबका नहीं एक प्रधान है।
लेकिन एक बडी बात है अपनी
पाना स्वप्रतिष्ठा बडी शान है।
उद्देश्य हमारा ज्ञानार्जन नहीं।
चुनाव जीतना भगवत अर्चन है।
सारी दुनिया में हम छा जाऐं
यह सही राजनीति का नर्तन है।
मकसद अपनाभौतिकता पाना।
न कहीं हमें मानवता दिखलाना।
सभी संपदाऐं धनदौलत आऐ
मात्र यहां चुनाव जीत के आना।
ठाकुर सा भले बन जाऐं लेकिन
उद्देश्य हमारा आरक्षण पाना है।
नहीं जात पात से हमें है मतलब
बनें हरामखोर कुर्सी पाना है।
एक और उद्देश्य हमारा यारो,
किसी तिकडम से जेएनयू पहुचें।
मुफ्त में सब सुविधाएं जुटाकर
कभी राष्ट्रविरोधी के पद पहुचें।
स्वरचितः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्यप्रदेश
मिली है जिंदगी तो जीना ही होगा
रोते हुए बंदों को भी हँसाना होगा
जले अरमान खुद के तो क्या हुआ
दूसरो के अरमानों को सजाना होगा
वक्त अपना वेवफा हुआ तो क्या हुआ
बुझे वक्त के चिरागों को जलाना होगा
जिंदगी जिंदादिली का नाम है मेरे यारो
खुद के लिये न औरोंके लिए जीना होगा
अपना चमन उजड़ गया तो क्या हुआ
उजड़े घरों को तुम्हे फिर से बसाना होगा
ये जिंदगी शायद फिर मिले की न मिले
जीने का मकसद तुम्हे अपना बनाना होगा
आए हो दुनिया मे कुछ कर लो यारो
एक न एक दिन सबको जाना होगा
स्वरचित
मीना तिवारी
रोते हुए बंदों को भी हँसाना होगा
जले अरमान खुद के तो क्या हुआ
दूसरो के अरमानों को सजाना होगा
वक्त अपना वेवफा हुआ तो क्या हुआ
बुझे वक्त के चिरागों को जलाना होगा
जिंदगी जिंदादिली का नाम है मेरे यारो
खुद के लिये न औरोंके लिए जीना होगा
अपना चमन उजड़ गया तो क्या हुआ
उजड़े घरों को तुम्हे फिर से बसाना होगा
ये जिंदगी शायद फिर मिले की न मिले
जीने का मकसद तुम्हे अपना बनाना होगा
आए हो दुनिया मे कुछ कर लो यारो
एक न एक दिन सबको जाना होगा
स्वरचित
मीना तिवारी
02/12/19
विषय उद्देश्य /मक़सद
आधार छँद - रजनी ,
विधान -23 मात्रा ( मापनियुक्त मात्रिक )
मापनी - 2122 ×3+2
इस जमाने में हवा ऐसी चली है अब ,
होश खोते जा रहे इन आंधियों में सब।
भेड़िये अब घूमते चारों तरफ ऐसे,
बाण शब्दों के चला हम बैठते कैसे।
क्यों बिना मक़सद जिये हम जा रहे ऐसे
साँस लेना जिंदगी सोची कहाँ वैसे
मौत के पहले यहाँ कुछ कर्म कर पाती
मौत भी शायद ठिठक कुछ देर रुक जाती
नोच पाये अब नहीं कोई कभी मुनिया ,
प्रेम उपवन अब सजे खिलती रहे बगिया,
अब यही उद्देश्य ,जीने का हमारा हो,
हो खुशी जग में न कोई बेसहारा हो।
अनिता सुधीर
विषय उद्देश्य /मक़सद
आधार छँद - रजनी ,
विधान -23 मात्रा ( मापनियुक्त मात्रिक )
मापनी - 2122 ×3+2
इस जमाने में हवा ऐसी चली है अब ,
होश खोते जा रहे इन आंधियों में सब।
भेड़िये अब घूमते चारों तरफ ऐसे,
बाण शब्दों के चला हम बैठते कैसे।
क्यों बिना मक़सद जिये हम जा रहे ऐसे
साँस लेना जिंदगी सोची कहाँ वैसे
मौत के पहले यहाँ कुछ कर्म कर पाती
मौत भी शायद ठिठक कुछ देर रुक जाती
नोच पाये अब नहीं कोई कभी मुनिया ,
प्रेम उपवन अब सजे खिलती रहे बगिया,
अब यही उद्देश्य ,जीने का हमारा हो,
हो खुशी जग में न कोई बेसहारा हो।
अनिता सुधीर
आज का विषय मकसद
विधा छन्द मुकत(हास्य- व्यंग्य
हूँ आदमी मैं ईमानदार, करता नहीं हूँ मनमानी ।
मकसद है मेरा करनी नही किंचित भी बेईमानी।।
किसी वस्तु को जब भी,घर में है लाया जाता ।
सब भागीदारों में उसे बराबर बाँट दिया जाता ।।
कम मूल्य की वस्तुओं को तो,लेता हूँ मैं छाँट ।
शेष कीमती वस्तुएं,सबको को देता हूँ मैं बाँट ।।
पैत्रिक सम्पत्ति के बटवारे में, मैंने यही किया ।
कीमती उनको दीं,कम सस्ती को मैंने लिया ।।
सजीव मूल्यवान चीजें, भागीदारों को बाँट दीं ।
निर्जीव अचल सम्पत्ति, मैंने स्वयं ही रख ली ।।
अमूल्य माता दिया एक को, दूजे को दी बहन ।
घर अचल तथा निर्जीव सम्पत्ति,की मैनें सहन ।।
कुछ को तो मैंने भागीदारों के पास छोड़ दिया ।
परिवार के ऋण को, मैंने बिल्कुल नहीं छुआ ।।
फल घर में अपने, जब कोई था लाया जाता ।
गूदा मैं खाता, गुठली छिलके था उनको देता ।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
विधा छन्द मुकत(हास्य- व्यंग्य
हूँ आदमी मैं ईमानदार, करता नहीं हूँ मनमानी ।
मकसद है मेरा करनी नही किंचित भी बेईमानी।।
किसी वस्तु को जब भी,घर में है लाया जाता ।
सब भागीदारों में उसे बराबर बाँट दिया जाता ।।
कम मूल्य की वस्तुओं को तो,लेता हूँ मैं छाँट ।
शेष कीमती वस्तुएं,सबको को देता हूँ मैं बाँट ।।
पैत्रिक सम्पत्ति के बटवारे में, मैंने यही किया ।
कीमती उनको दीं,कम सस्ती को मैंने लिया ।।
सजीव मूल्यवान चीजें, भागीदारों को बाँट दीं ।
निर्जीव अचल सम्पत्ति, मैंने स्वयं ही रख ली ।।
अमूल्य माता दिया एक को, दूजे को दी बहन ।
घर अचल तथा निर्जीव सम्पत्ति,की मैनें सहन ।।
कुछ को तो मैंने भागीदारों के पास छोड़ दिया ।
परिवार के ऋण को, मैंने बिल्कुल नहीं छुआ ।।
फल घर में अपने, जब कोई था लाया जाता ।
गूदा मैं खाता, गुठली छिलके था उनको देता ।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
सबक जिन्दगी का सिखाती है रोटियाँ।
फर्जो अलम की राहें दिखाती है रोटियाँ।
भूखा हो अगर तो जानवर से कम नहीं।
आदमी को ये इन्सान बनाती है रोटियाँ।
जलती हुई रूह को है मिलता बडा सुकूं।
जब आग पेट की ये बुझाती है रोटियाँ।
बढे है स्वाद हो जो मुहब्बत की मिलावट।
घर - घर की दास्तान ये सुनाती है रोटियाँ।
ऊंची उठी मिनारों का कुछ नहीं मतलब।
खेतों में अगर नहीं लहलहाती है रोटियाँ।
निकला हूँ साथ लेके मै मंजिल तलाशने।
फिर शाम ढले घर मुझे बुलाती है रोटियाँ।
कोई कहे मकसद तो कोई कहे है ख्वाब।
मुझे हरेक नजर मे नज़र अाती है रोटियाँ।
विपिन सोहल. स्वरचित
फर्जो अलम की राहें दिखाती है रोटियाँ।
भूखा हो अगर तो जानवर से कम नहीं।
आदमी को ये इन्सान बनाती है रोटियाँ।
जलती हुई रूह को है मिलता बडा सुकूं।
जब आग पेट की ये बुझाती है रोटियाँ।
बढे है स्वाद हो जो मुहब्बत की मिलावट।
घर - घर की दास्तान ये सुनाती है रोटियाँ।
ऊंची उठी मिनारों का कुछ नहीं मतलब।
खेतों में अगर नहीं लहलहाती है रोटियाँ।
निकला हूँ साथ लेके मै मंजिल तलाशने।
फिर शाम ढले घर मुझे बुलाती है रोटियाँ।
कोई कहे मकसद तो कोई कहे है ख्वाब।
मुझे हरेक नजर मे नज़र अाती है रोटियाँ।
विपिन सोहल. स्वरचित
विषय-मकसद/उद्देश्य
विधा-मुक्तक
दिनांकः 2/12/2019
सोमवार
हम मकसद समझें जीवन का,हमको सदा वो याद हो।
हो मकसद मंजिल पाने का,फिर सदा सतत प्रयास हो।
विघ्न बाधा जो आये कभी,हो पार जब हिम्मत रखों ।
नहीं रूकना थकना राह में,सदा सतर्क संघर्ष हो।।
हो सबसे ही ऊॅचा मकसद,सत्य न्याय का पथ हो।
अब कीर्ति मान बने जग में,धैर्य लगन सनिष्ठा हो ।।
कठोर परिश्रम करने वाले जीवन मकसद पाते हैं ।
जीविकोपार्जन सब करते,पर हासिल उनको क्या हो।।
परहित जीना ही जीवन है,क्या स्वार्थ भी जीवन है ।
हमारा चहुँ मुखी विकास हो,उस जीवन में खुशियाँ हैं ।।
हो सबमें करूणा दया प्रेम,जीवन सार्थक है तभी ।
जननी मातृभूमि की सेवाअब किये बिन निर्थक है ।।
मकसद तो तब ही होता है,जब घर देश कल्याण हो।
उत्थान करें देश परिवार,जग में मानव का हित हो ।।
चलें सत्य न्याय पथ पर सदा,मानवता पर हों कायम ।
हमारे धर्म की रक्षा करें यह स्वच्छ स्वस्थ्य समाज हो।।
सब धर्मों का सम्मान करें,मत दिल किसी का दुखाओ ।
अब दीन दुखी की सेवा में,जीवन पूर्ण कर जाओ ।।
धर्म आदर्श ईमान नहीं,क्या ईश्वर को मानते ।
वे क्या जीवन मकसद समझें,मानवता अब समझाओ।।
स्वरचित एवं स्वप्रमाणित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर 'निर्भय,
विधा-मुक्तक
दिनांकः 2/12/2019
सोमवार
हम मकसद समझें जीवन का,हमको सदा वो याद हो।
हो मकसद मंजिल पाने का,फिर सदा सतत प्रयास हो।
विघ्न बाधा जो आये कभी,हो पार जब हिम्मत रखों ।
नहीं रूकना थकना राह में,सदा सतर्क संघर्ष हो।।
हो सबसे ही ऊॅचा मकसद,सत्य न्याय का पथ हो।
अब कीर्ति मान बने जग में,धैर्य लगन सनिष्ठा हो ।।
कठोर परिश्रम करने वाले जीवन मकसद पाते हैं ।
जीविकोपार्जन सब करते,पर हासिल उनको क्या हो।।
परहित जीना ही जीवन है,क्या स्वार्थ भी जीवन है ।
हमारा चहुँ मुखी विकास हो,उस जीवन में खुशियाँ हैं ।।
हो सबमें करूणा दया प्रेम,जीवन सार्थक है तभी ।
जननी मातृभूमि की सेवाअब किये बिन निर्थक है ।।
मकसद तो तब ही होता है,जब घर देश कल्याण हो।
उत्थान करें देश परिवार,जग में मानव का हित हो ।।
चलें सत्य न्याय पथ पर सदा,मानवता पर हों कायम ।
हमारे धर्म की रक्षा करें यह स्वच्छ स्वस्थ्य समाज हो।।
सब धर्मों का सम्मान करें,मत दिल किसी का दुखाओ ।
अब दीन दुखी की सेवा में,जीवन पूर्ण कर जाओ ।।
धर्म आदर्श ईमान नहीं,क्या ईश्वर को मानते ।
वे क्या जीवन मकसद समझें,मानवता अब समझाओ।।
स्वरचित एवं स्वप्रमाणित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर 'निर्भय,
दिनांक : 02.12.2019
वार : सोमवार
आज का विषय : मकसद / उद्देश्य
विधा : काव्य
गीत
जीवन के मकसद बहुतेरे ,
खुशियाँ मिले न दाम है !
दिन ढलते हैं भाग दौड़ में ,
ढलती जाये शाम है !!
उन्नत जीवन सभी चाहते ,
भरते रोज उड़ान हैं !
ऊँचे ऊँचे लक्ष्य चुने हैं ,
ऊँचे बंधे मचान हैं !
समय परीक्षा रोज ले रहा ,
बदले से परिणाम हैं !!
गुब्बारे ज्यों तैर हवा में ,
खींचे मन की डोर है !
बड़ी अनूठी भटकन है पर ,
मिल भी जाते ठौर हैं !
होती चर्चा भले बुरे की ,
सिर्फ आँकते काम है !!
नेकी सिर आँखों पर सजती ,
बद पर पिटता ढोल है !
सेवा सहज , अकारथ हो तो ,
सच में यह अनमोल है !
नहीं दौड़ना सरपट हमको ,
गिरना नहीं धड़ाम है !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )
वार : सोमवार
आज का विषय : मकसद / उद्देश्य
विधा : काव्य
गीत
जीवन के मकसद बहुतेरे ,
खुशियाँ मिले न दाम है !
दिन ढलते हैं भाग दौड़ में ,
ढलती जाये शाम है !!
उन्नत जीवन सभी चाहते ,
भरते रोज उड़ान हैं !
ऊँचे ऊँचे लक्ष्य चुने हैं ,
ऊँचे बंधे मचान हैं !
समय परीक्षा रोज ले रहा ,
बदले से परिणाम हैं !!
गुब्बारे ज्यों तैर हवा में ,
खींचे मन की डोर है !
बड़ी अनूठी भटकन है पर ,
मिल भी जाते ठौर हैं !
होती चर्चा भले बुरे की ,
सिर्फ आँकते काम है !!
नेकी सिर आँखों पर सजती ,
बद पर पिटता ढोल है !
सेवा सहज , अकारथ हो तो ,
सच में यह अनमोल है !
नहीं दौड़ना सरपट हमको ,
गिरना नहीं धड़ाम है !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )
विषय - मक़सद/उद्देश्य
02/12/19
सोमवार
गज़ल
जो मन में है उसको बताकर तो देखो,
इरादे को मकसद बनाकर तो देखो।
तुम्हीं तो संवारोगे इस राष्ट्र का कल ,
जरा जोश अपना दिखाकर तो देखो।
छिपे कितने जयचंद अपने वतन में,
उन्हें सामने सबके लाकर तो देखो।
जो छल- बल से नेता बने जा रहे है,
उन्हें कुछ सबक तुम सिखाकर तो देखो।
नहीं हैं सुरक्षित बहन- बेटियाँ अब ,
तुम उनको सुरक्षा दिलाकर तो देखो।
प्रदूषित हैं नदियाँ सभी मातृ-भू की,
प्रदूषण से उनको बचाकर तो देखो।
अगर चाहते हो तुम सपनों का भारत,
तो कर्तव्य अपना निभाकर तो देखो।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
02/12/19
सोमवार
गज़ल
जो मन में है उसको बताकर तो देखो,
इरादे को मकसद बनाकर तो देखो।
तुम्हीं तो संवारोगे इस राष्ट्र का कल ,
जरा जोश अपना दिखाकर तो देखो।
छिपे कितने जयचंद अपने वतन में,
उन्हें सामने सबके लाकर तो देखो।
जो छल- बल से नेता बने जा रहे है,
उन्हें कुछ सबक तुम सिखाकर तो देखो।
नहीं हैं सुरक्षित बहन- बेटियाँ अब ,
तुम उनको सुरक्षा दिलाकर तो देखो।
प्रदूषित हैं नदियाँ सभी मातृ-भू की,
प्रदूषण से उनको बचाकर तो देखो।
अगर चाहते हो तुम सपनों का भारत,
तो कर्तव्य अपना निभाकर तो देखो।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
दिनांक २/१२/२०१९
शीर्षक_उद्देश्य।
मात्र उपदेश देना मेरा उद्देश्य नहीं
उद्देश्य है मेरा,सबके जीवन में
आये बहार।
जिसका न कोई संगी साथी,
करे हम उनका कल्याण
भूल गये जो हँसना जीवन में,
हँस कर आगे आये।
प्रतिभा छिपा जो उनके अंदर
दुनिया के सामने लाये
ख्याति न मिले भले जग में
समाज में शान से सिर उठाये।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
शीर्षक_उद्देश्य।
मात्र उपदेश देना मेरा उद्देश्य नहीं
उद्देश्य है मेरा,सबके जीवन में
आये बहार।
जिसका न कोई संगी साथी,
करे हम उनका कल्याण
भूल गये जो हँसना जीवन में,
हँस कर आगे आये।
प्रतिभा छिपा जो उनके अंदर
दुनिया के सामने लाये
ख्याति न मिले भले जग में
समाज में शान से सिर उठाये।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
दिनांक-2/12/2019
विषय- मक़सद/उद्देश्य
विधा- छंदमुक्त
रचनाधर्मिता से जुड़ा जो सरोकार
तहेदिल उसका मै सम्मान करती हूँ
अन्याय , उत्पीड़न की करनी को
पृष्ठों पर फिर बेबाक़ लिखती हूँ ।
बनाकर समाज को आईना
खुद को मैं देखा करती हूँ
कलमकार एक नाम है मेरा
भावों की स्याही से लिखती हूँ ।
समाज के बने ठेकेदारों से
आज मैं एक प्रश्न करती हूँ
नर -नारी में कितनी समता
अधिकारों की बात करती हूँ ।
किसकी आजादी और कितनी
प्रमाण की जायज माँग करती हूँ
अकाल मौत जो मारी जाती हैं
उन बेटियों की संख्या गिनती हूँ ।
किसी अनाम,निर्भया का दर्द
ना ज़ार-ज़ार करना चाहती हूँ
समाधान मात्र एक मक़सद मेरा
इसी का आज आह्वान करती हूँ ।
संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित एवं मौलिक
विषय- मक़सद/उद्देश्य
विधा- छंदमुक्त
रचनाधर्मिता से जुड़ा जो सरोकार
तहेदिल उसका मै सम्मान करती हूँ
अन्याय , उत्पीड़न की करनी को
पृष्ठों पर फिर बेबाक़ लिखती हूँ ।
बनाकर समाज को आईना
खुद को मैं देखा करती हूँ
कलमकार एक नाम है मेरा
भावों की स्याही से लिखती हूँ ।
समाज के बने ठेकेदारों से
आज मैं एक प्रश्न करती हूँ
नर -नारी में कितनी समता
अधिकारों की बात करती हूँ ।
किसकी आजादी और कितनी
प्रमाण की जायज माँग करती हूँ
अकाल मौत जो मारी जाती हैं
उन बेटियों की संख्या गिनती हूँ ।
किसी अनाम,निर्भया का दर्द
ना ज़ार-ज़ार करना चाहती हूँ
समाधान मात्र एक मक़सद मेरा
इसी का आज आह्वान करती हूँ ।
संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित एवं मौलिक
मकसद
रखो
जिन्दगी का
मकसद
देश भक्ति
समाज के प्रति
समर्पण
और परिवार में
सद्भाव
सब की भलाई
गरीबों की मदद
अच्छी सोच
बच्चों को
ईमान लगन
मेहनत की सीख
मकसद रखो
सेवा बूढ़े
माँ बाप की
रखो लक्ष्य
उद्देश्यपूर्ण
होगें वह पूरे
करो कोशिश
ईमान से
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
रखो
जिन्दगी का
मकसद
देश भक्ति
समाज के प्रति
समर्पण
और परिवार में
सद्भाव
सब की भलाई
गरीबों की मदद
अच्छी सोच
बच्चों को
ईमान लगन
मेहनत की सीख
मकसद रखो
सेवा बूढ़े
माँ बाप की
रखो लक्ष्य
उद्देश्यपूर्ण
होगें वह पूरे
करो कोशिश
ईमान से
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
No comments:
Post a Comment