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ब्लॉग संख्या :-595
विषय विरोध
विधा काव्य
14 दिसम्बर,2019 शनिवार
कभी विरोध न हो भाई में
यह होता है रक्त का रिश्ता।
खेले कूदे मिल हम बचपन
हैं सभी के एक ही पिता
नित विरोध हो गलत काम
अत्याचार सहना पाप है।
जो घुसते नित चोरी छिपके
वे जहरीले निर्दयी सांप है।
विरोध करें मिलकर सारे
जिसमें खावे छेद करे नित।
सदा मुखोटा झूंठ पहनकर
घूम रहे जग में अपरिमित।
दुष्कृत्य विरोध करे तब
मारी जाती सबला नारी।
भरी सभा पांडव सम्मुख
खींची जाती तन की सारी।
यह भरतों की भूमि भारत
मर्यादित संयम से जीते हैं।
कुकृत्य निंदनीय असहनीय
सब मिलकर विरोध करते हैं।
स्वरचित ,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
14 दिसम्बर,2019 शनिवार
कभी विरोध न हो भाई में
यह होता है रक्त का रिश्ता।
खेले कूदे मिल हम बचपन
हैं सभी के एक ही पिता
नित विरोध हो गलत काम
अत्याचार सहना पाप है।
जो घुसते नित चोरी छिपके
वे जहरीले निर्दयी सांप है।
विरोध करें मिलकर सारे
जिसमें खावे छेद करे नित।
सदा मुखोटा झूंठ पहनकर
घूम रहे जग में अपरिमित।
दुष्कृत्य विरोध करे तब
मारी जाती सबला नारी।
भरी सभा पांडव सम्मुख
खींची जाती तन की सारी।
यह भरतों की भूमि भारत
मर्यादित संयम से जीते हैं।
कुकृत्य निंदनीय असहनीय
सब मिलकर विरोध करते हैं।
स्वरचित ,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
14/12/2019
विरोध
******
नत मस्तक था वो
बह रह थे
अश्क आँखों से
हिचकियाँ बंध गयी
हाथ जोड़ता था
तो कभी उसके
आँचल में मुहं
छुपाता था
पूरा दम्भ भरा
पुरुष होने का
लेकिन आज हार
गया स्त्री के
मौन-----
विरोध से ।।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
विरोध
******
नत मस्तक था वो
बह रह थे
अश्क आँखों से
हिचकियाँ बंध गयी
हाथ जोड़ता था
तो कभी उसके
आँचल में मुहं
छुपाता था
पूरा दम्भ भरा
पुरुष होने का
लेकिन आज हार
गया स्त्री के
मौन-----
विरोध से ।।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
शीर्षक -- विरोध
जब जब कोई हटकर हुआ खड़ा
तब तब विरोध से सामना पड़ा ।।
देखा कतार में जब अपना ही
हुआ हक्का-बक्का होश उड़ा ।।
आसां न लीक से हटकर चलना
होय दमदार कमजोर रहे डरा ।।
उँचाई पर उड़ना चील से पुछो
विरोध हवा का सहकर ही बड़ा ।।
निर्वात में उड़ने का प्रश्न ही न
दे इम्तिहां चील चील उभरा ।।
विरोध जोश जगाय मंजिल मिलाय
घबाराना न गर लक्ष्य सच से मढ़ा ।।
मायने सब विपरीत रहे 'शिवम'
विरोधाभास कब तक रहा अड़ा ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 14/12/2019
जब जब कोई हटकर हुआ खड़ा
तब तब विरोध से सामना पड़ा ।।
देखा कतार में जब अपना ही
हुआ हक्का-बक्का होश उड़ा ।।
आसां न लीक से हटकर चलना
होय दमदार कमजोर रहे डरा ।।
उँचाई पर उड़ना चील से पुछो
विरोध हवा का सहकर ही बड़ा ।।
निर्वात में उड़ने का प्रश्न ही न
दे इम्तिहां चील चील उभरा ।।
विरोध जोश जगाय मंजिल मिलाय
घबाराना न गर लक्ष्य सच से मढ़ा ।।
मायने सब विपरीत रहे 'शिवम'
विरोधाभास कब तक रहा अड़ा ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 14/12/2019
विषय, विरोध .
14,12,2019 .
शनिवार .
हमको नव युग की ये देन हुई, आदत विरोध की प्रवीण हुई ।
हमने हक विरोध को मान लिया है , आदत ऊंगलियाँ उठाने की सबल हुई है ।
भेद सही गलत का हमें नहीं पता है , पर बुद्धिजीवी बनने की बीमारी हुई है ।
जो तकलीफें सब की एक सी ही हैं , उन पर भी न मानसिकता एक हुई है ।
कुरीतियों पर मौन जो रहते हैं , उन्हें विकास पर टोकने से प्रीत हुई है ।
जरूरत भ्रष्टाचार को मिटाने की है, पर लोकप्रियता इसकी दिन रैन हुई है ।
बलात्कार और गर्भपात क्यों होते हैं, जरूरत इस बाबत चिंतन की हुई है ।
अगर विरोध हमें करना ही है , तो हम कहें संस्कृति क्यों हमारी मलीन हुई है ,
क्यों जाति पांति की बातें होतीं हैं, क्यों आरक्षण की नीति हुई है ।
क्यों बातें दहेज की होती हैं, क्यों बेटियाँ समाज पर बोझ हुईं हैं ।
बहुत कुछ हमारे चारों तरफ ऐसा है, जिसने नींदें हमारीं छीनीं हुईं ।
हमें विरोध उन्हीं का करना है , जो आदतें हमारे लिए घातक हुईं ।
स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश
14,12,2019 .
शनिवार .
हमको नव युग की ये देन हुई, आदत विरोध की प्रवीण हुई ।
हमने हक विरोध को मान लिया है , आदत ऊंगलियाँ उठाने की सबल हुई है ।
भेद सही गलत का हमें नहीं पता है , पर बुद्धिजीवी बनने की बीमारी हुई है ।
जो तकलीफें सब की एक सी ही हैं , उन पर भी न मानसिकता एक हुई है ।
कुरीतियों पर मौन जो रहते हैं , उन्हें विकास पर टोकने से प्रीत हुई है ।
जरूरत भ्रष्टाचार को मिटाने की है, पर लोकप्रियता इसकी दिन रैन हुई है ।
बलात्कार और गर्भपात क्यों होते हैं, जरूरत इस बाबत चिंतन की हुई है ।
अगर विरोध हमें करना ही है , तो हम कहें संस्कृति क्यों हमारी मलीन हुई है ,
क्यों जाति पांति की बातें होतीं हैं, क्यों आरक्षण की नीति हुई है ।
क्यों बातें दहेज की होती हैं, क्यों बेटियाँ समाज पर बोझ हुईं हैं ।
बहुत कुछ हमारे चारों तरफ ऐसा है, जिसने नींदें हमारीं छीनीं हुईं ।
हमें विरोध उन्हीं का करना है , जो आदतें हमारे लिए घातक हुईं ।
स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश
14 /12/2019
बिषय, बिरोध,,
भाई ,भाई में बिरोध. भाई भाई में बैर
अपने नहीं सुहाते अच्छे. लगते हैं गैर
प्रेम स्त्रोत सूख गए टूटने लगा भाईचारा
बेईमानी लालच खा गया आपस का बटवारा
मर्यादा खत्म हुई खत्म हुए संस्कार
आयु.नहीं आय से होने लगा अब ब्यवहार
नहीं समझते यहां कौन छोटा बड़ा
जो है दौलत वाला उसी का झंडा गड़ा
मानवता के मूल्य औंधे मुंह गिर गए
जिसके कारण जीवन खपाया वही आज मुकर गए
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
बिषय, बिरोध,,
भाई ,भाई में बिरोध. भाई भाई में बैर
अपने नहीं सुहाते अच्छे. लगते हैं गैर
प्रेम स्त्रोत सूख गए टूटने लगा भाईचारा
बेईमानी लालच खा गया आपस का बटवारा
मर्यादा खत्म हुई खत्म हुए संस्कार
आयु.नहीं आय से होने लगा अब ब्यवहार
नहीं समझते यहां कौन छोटा बड़ा
जो है दौलत वाला उसी का झंडा गड़ा
मानवता के मूल्य औंधे मुंह गिर गए
जिसके कारण जीवन खपाया वही आज मुकर गए
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
दिनांक- 14/12/2019
विषय-विरोध
विरोध के गुंजित स्वर
हौसला था जिनके दिलों में
जोश जिनकी रगो में था।
सर झुका है उनके सदके
फर्ज जिनके दर पे था।
रक्त धमनियों में उबल रहा
जज्बा जिनके सर पे था।
खड़े थे बारूदो के विध्वंस पे
रूतबा उनका कम न था।
धधक रही थी सीने में ज्वाला
प्रलय उनका प्रचंड था।
अंगार बना था हार उनका
रोष उनका अनंत था।
खंडहर थे दर्द के रास्ते
साहस उनका भुजंग था।
कसक भरी थी अधरों में
लहजा उनका नम ही था
मुद्दतों से मौत ने तरसाया
मृत्यु की आरजू कम न था।
शत्रु दृश्य हो या अदृश्य हो
मौत एहसास का,उनका अंतरंग था।
नफरतों का जुल्म था
शूलो का संग अनंत था।
खड़ी थी बारुदो की आभा
फिर भी प्रदीप्त मन ज्वलंत था।।
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
विषय-विरोध
विरोध के गुंजित स्वर
हौसला था जिनके दिलों में
जोश जिनकी रगो में था।
सर झुका है उनके सदके
फर्ज जिनके दर पे था।
रक्त धमनियों में उबल रहा
जज्बा जिनके सर पे था।
खड़े थे बारूदो के विध्वंस पे
रूतबा उनका कम न था।
धधक रही थी सीने में ज्वाला
प्रलय उनका प्रचंड था।
अंगार बना था हार उनका
रोष उनका अनंत था।
खंडहर थे दर्द के रास्ते
साहस उनका भुजंग था।
कसक भरी थी अधरों में
लहजा उनका नम ही था
मुद्दतों से मौत ने तरसाया
मृत्यु की आरजू कम न था।
शत्रु दृश्य हो या अदृश्य हो
मौत एहसास का,उनका अंतरंग था।
नफरतों का जुल्म था
शूलो का संग अनंत था।
खड़ी थी बारुदो की आभा
फिर भी प्रदीप्त मन ज्वलंत था।।
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
विषय-विरोध
विधा-छंद मुक्त सृजन
दिनांकः 14/12/2019
शनिवार
विरोध सदा वहां करें,
जहाँ मानव का अहित हो ।
स्वार्थ,प्रतिष्ठा के लिए,
कभी कहीं विरोध न हो ।।
हो जहाँ जातिवाद में भेदभाव,
हम उसका सदा विरोध करें ।
राजनीति और छुआ-छूत,
के लिए न विरोध कभी करें ।।
सबके अपनी रीति रिवाज हैं,
कभी धर्म के लिए विरोध न हो ।
यहाॅ राम रहीम हैं दोनों एक ,
किसी धर्म का विरोध न हो ।।
जहाँ असत्य और अन्याय हो,
हम सब उनका सदा विरोध करें ।
हो जब सत्य न्याय से छल कपट ,
हम मिलकर सभी विरोध करें ।।
यदि निर्धन,निर्बल का शोषण हो,
उसका हम सभी विरोध करें ।
हो जहां बेईमानी और मक्कारी,
वहां सारे मिल हम विरोध करें ।।
हो जहां दुराचार और व्यभिचार,
वहाॅ पुरजोर सभी विरोध करें ।
मिलावट खोर,जमाखोर की,
पोल खोलकर विरोध करें ।।
धन लिप्सा और निज लालच में,
कभी भी कोई विरोध नहीं करें ।
जहाँ मानवता हो शर्म सार,
हम सब डटकर वहां विरोध करें ।।
स्वरचित एवं स्वप्रमाणित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर ' निर्भय,
विधा-छंद मुक्त सृजन
दिनांकः 14/12/2019
शनिवार
विरोध सदा वहां करें,
जहाँ मानव का अहित हो ।
स्वार्थ,प्रतिष्ठा के लिए,
कभी कहीं विरोध न हो ।।
हो जहाँ जातिवाद में भेदभाव,
हम उसका सदा विरोध करें ।
राजनीति और छुआ-छूत,
के लिए न विरोध कभी करें ।।
सबके अपनी रीति रिवाज हैं,
कभी धर्म के लिए विरोध न हो ।
यहाॅ राम रहीम हैं दोनों एक ,
किसी धर्म का विरोध न हो ।।
जहाँ असत्य और अन्याय हो,
हम सब उनका सदा विरोध करें ।
हो जब सत्य न्याय से छल कपट ,
हम मिलकर सभी विरोध करें ।।
यदि निर्धन,निर्बल का शोषण हो,
उसका हम सभी विरोध करें ।
हो जहां बेईमानी और मक्कारी,
वहां सारे मिल हम विरोध करें ।।
हो जहां दुराचार और व्यभिचार,
वहाॅ पुरजोर सभी विरोध करें ।
मिलावट खोर,जमाखोर की,
पोल खोलकर विरोध करें ।।
धन लिप्सा और निज लालच में,
कभी भी कोई विरोध नहीं करें ।
जहाँ मानवता हो शर्म सार,
हम सब डटकर वहां विरोध करें ।।
स्वरचित एवं स्वप्रमाणित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर ' निर्भय,
14/12/2019
विषय-विरोध
विधा-पिरामिड
---------------------
1)
ना
तुम
हो राम
न मैं सीता
नहीं मंजूर
वनवास मुझे
करूं विरोध आज
2)
क्यों
नहीं
विरोध
यशोधरा
कर पाई थी
बने तथागत
उपेक्षित पत्नियां
3)
हाँ
करो
विरोध
अन्याय का
मिलजुल के
बदल दो धारा
पिछड़ी प्रथाओं की ।।
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
विषय-विरोध
विधा-पिरामिड
---------------------
1)
ना
तुम
हो राम
न मैं सीता
नहीं मंजूर
वनवास मुझे
करूं विरोध आज
2)
क्यों
नहीं
विरोध
यशोधरा
कर पाई थी
बने तथागत
उपेक्षित पत्नियां
3)
हाँ
करो
विरोध
अन्याय का
मिलजुल के
बदल दो धारा
पिछड़ी प्रथाओं की ।।
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
दिनांक : 14.12.2019
वार : शनिवार
प्रदत्त विषय : आक्रोश
विधा : काव्य / गीत
गीत
सुर में सुर को सदा मिलायें ,
यह न कोई ज़रूरी है !
इच्छाएं सबकी अनन्त हैं ,
होती कभी न पूरी है !!
महती इच्छाएं गुरुर बन ,
देती रहती त्रास हैं !
अपमानित हो चाहे कोई ,
होता ना आभास है !
ऊंचाई की मंजिल चढ़ते ,
बढ़ती मन की दूरी है !!
हुए सबल जो सोच न पाते ,
शोषण भी इक पाप है !
चले कुचक्र दमन गर का तो ,
छोड़े गहरी छाप है !
शिखर चढ़ें , फिर गिरते हैं पर ,
चाहत में मगरूरी है !!
है विरोध भी बड़ा ज़रूरी ,
वरन मिले ना न्याय है !
सहनशक्ति भी दम तोड़े जब ,
विरोध एक उपाय है !
सच्चाई जब साथ चले है ,
हम पा जाएँ कस्तूरी हैं !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )
वार : शनिवार
प्रदत्त विषय : आक्रोश
विधा : काव्य / गीत
गीत
सुर में सुर को सदा मिलायें ,
यह न कोई ज़रूरी है !
इच्छाएं सबकी अनन्त हैं ,
होती कभी न पूरी है !!
महती इच्छाएं गुरुर बन ,
देती रहती त्रास हैं !
अपमानित हो चाहे कोई ,
होता ना आभास है !
ऊंचाई की मंजिल चढ़ते ,
बढ़ती मन की दूरी है !!
हुए सबल जो सोच न पाते ,
शोषण भी इक पाप है !
चले कुचक्र दमन गर का तो ,
छोड़े गहरी छाप है !
शिखर चढ़ें , फिर गिरते हैं पर ,
चाहत में मगरूरी है !!
है विरोध भी बड़ा ज़रूरी ,
वरन मिले ना न्याय है !
सहनशक्ति भी दम तोड़े जब ,
विरोध एक उपाय है !
सच्चाई जब साथ चले है ,
हम पा जाएँ कस्तूरी हैं !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )
कैसा समय हे आया |
रहते थे जहां मिलजुलकर |
आज हे विरोध पल पल |
भाई बहन ,भाई भाई पति पत्नि
सबमे विरोध के स्वर उच्च हुऐ |
करिऐ विरोध गलत नीतियों का |
हो विरोध कुरीतियो का
हे नही न्याय संगत समाज देश हित मे |
करो विरोध आतंक,दुराचार भ्रष्टाचार का डरौ नही |
अगर हो रहा हो गलत आँखो के आगे |
बडकर करो विरोध उस बंदे का
साम दाम दंड भेद नीती से |
संसद हो या विधान सभाऐ
हो रहो गलती का समर्थन
देश हित करो विरोध उनका |
स्वर वाणी हो संयत न हो हाथा पाई|
हे गोरव शाली मंदिर गरिमा देश के |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा
रहते थे जहां मिलजुलकर |
आज हे विरोध पल पल |
भाई बहन ,भाई भाई पति पत्नि
सबमे विरोध के स्वर उच्च हुऐ |
करिऐ विरोध गलत नीतियों का |
हो विरोध कुरीतियो का
हे नही न्याय संगत समाज देश हित मे |
करो विरोध आतंक,दुराचार भ्रष्टाचार का डरौ नही |
अगर हो रहा हो गलत आँखो के आगे |
बडकर करो विरोध उस बंदे का
साम दाम दंड भेद नीती से |
संसद हो या विधान सभाऐ
हो रहो गलती का समर्थन
देश हित करो विरोध उनका |
स्वर वाणी हो संयत न हो हाथा पाई|
हे गोरव शाली मंदिर गरिमा देश के |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा
विषय-* विरोध *
विधा॒॒॒ _काव्य
मात्र विरोध नहीं अपना धंधा।
नहीं कहीं से यह अपना फंदा।
विरोध हम दुराचार का करते
नहीं किसी से हो अपना पंगा।
शुभ धर्म कर्म का दें प्रोत्साहन।
गरीब अनाथ को बांटे राशन।
करते विरोध व्यसनी लोगों का
बहुत सख्ती करे इन पर प्रशासन।
कुछ सिर्फ विरोध विरोध को करते।
नित कुछ झूठे आंदोलन करते।
नेताओं का मुख्य काम यही है
जब चाहें विरोध प्रदर्शन करते।
क्यों न विरोध देशद्रोही करते।
हम विरोध अपनों का ही करते।
चुप्पी कितने बुद्धिजीवी साधें,
सच समर्थन आतंकी का करते।
स्वरचित
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
विधा॒॒॒ _काव्य
मात्र विरोध नहीं अपना धंधा।
नहीं कहीं से यह अपना फंदा।
विरोध हम दुराचार का करते
नहीं किसी से हो अपना पंगा।
शुभ धर्म कर्म का दें प्रोत्साहन।
गरीब अनाथ को बांटे राशन।
करते विरोध व्यसनी लोगों का
बहुत सख्ती करे इन पर प्रशासन।
कुछ सिर्फ विरोध विरोध को करते।
नित कुछ झूठे आंदोलन करते।
नेताओं का मुख्य काम यही है
जब चाहें विरोध प्रदर्शन करते।
क्यों न विरोध देशद्रोही करते।
हम विरोध अपनों का ही करते।
चुप्पी कितने बुद्धिजीवी साधें,
सच समर्थन आतंकी का करते।
स्वरचित
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
विषय :- "विरोध"
दिनांक :- 14/12/19.
विधा "दोहा"
1.
किसको अपनाएं कहो, किसका करें विरोध।
दोनों आतुर हैं खड़े, लेने को प्रतिशोध।
2.
भाई का करना नहीं, खुलकर कभी विरोध।
पग-पग पर भाई बिना, जीवन में गतिरोध।
3.
सुनी सुनाई बात पर, कभी न करना क्रोध।
करना पड़े विरोध भी, करो सो दफा शोध।
4.
जन-सेवा के काम में, बनो न तुम गतिरोध।
मानवता विपरीत जो, खुलकर करो विरोध।
5.
नेक काम करने चलो, अनगिन हैं अवरोध।
करो भलाई दीन की, सहकर लाख विरोध।
दिनांक :- 14/12/19.
विधा "दोहा"
1.
किसको अपनाएं कहो, किसका करें विरोध।
दोनों आतुर हैं खड़े, लेने को प्रतिशोध।
2.
भाई का करना नहीं, खुलकर कभी विरोध।
पग-पग पर भाई बिना, जीवन में गतिरोध।
3.
सुनी सुनाई बात पर, कभी न करना क्रोध।
करना पड़े विरोध भी, करो सो दफा शोध।
4.
जन-सेवा के काम में, बनो न तुम गतिरोध।
मानवता विपरीत जो, खुलकर करो विरोध।
5.
नेक काम करने चलो, अनगिन हैं अवरोध।
करो भलाई दीन की, सहकर लाख विरोध।
सच कहना हिमाकत हो।
जो कहने की इजाजत हो।
इंतखाब वही होता है।
बचती ना ज़मानत हो।
परदे की ज़रूरत क्या।
जो आंखों में शराफत हो।
वो अब जिक्र नहीं करते।
बेहतर ना ज़लालत हो।
है इश्क का ही मारा।
गर लहजे़ में बगावत हो।
डूबे हो खतावारी में।
तो फिर कैसे जियारत हो।
ये सोच के लौटा 'सोहल'।
जाने किसकी अमानत हो।
विपिन सोहल
जो कहने की इजाजत हो।
इंतखाब वही होता है।
बचती ना ज़मानत हो।
परदे की ज़रूरत क्या।
जो आंखों में शराफत हो।
वो अब जिक्र नहीं करते।
बेहतर ना ज़लालत हो।
है इश्क का ही मारा।
गर लहजे़ में बगावत हो।
डूबे हो खतावारी में।
तो फिर कैसे जियारत हो।
ये सोच के लौटा 'सोहल'।
जाने किसकी अमानत हो।
विपिन सोहल
14/12/2019
"विरोध"
################
कलिकाल में असत्य नें मचाया है बवाल।
सत्य के विरोध में खड़े हो रहे हैं
सवाल।
सत्य अब विरोध न झेल पा रहा।
असत्य के हाथों मज़बूर हो रहा।
विरोधी नारों से कान सनसना रहे हैं।
विरोधियों की संख्या देख दहशत में जी रहे हैं।
सत्य बेचारा ईमान औ धर्म को न छोड़ पा रहा है।
असत्य के विरोध से टूटता जा रहा है।
असत्य के विरोध से सत्य ज़ख्मी हुआ जा रहा है।
कदम भी अब लड़खड़ा रहा है।
विरोधियों के बीच अकेला खड़ा इंसाफ माँग रहा है।
अब किसी करिश्में का इंतजार कर रहा है।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
"विरोध"
################
कलिकाल में असत्य नें मचाया है बवाल।
सत्य के विरोध में खड़े हो रहे हैं
सवाल।
सत्य अब विरोध न झेल पा रहा।
असत्य के हाथों मज़बूर हो रहा।
विरोधी नारों से कान सनसना रहे हैं।
विरोधियों की संख्या देख दहशत में जी रहे हैं।
सत्य बेचारा ईमान औ धर्म को न छोड़ पा रहा है।
असत्य के विरोध से टूटता जा रहा है।
असत्य के विरोध से सत्य ज़ख्मी हुआ जा रहा है।
कदम भी अब लड़खड़ा रहा है।
विरोधियों के बीच अकेला खड़ा इंसाफ माँग रहा है।
अब किसी करिश्में का इंतजार कर रहा है।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
विषय--विरोध
______गीत_________
अभी नहीं तो कभी नहीं,
चलो झुका लें आसमान को।
डर कर कहीं रुक न जाना,
बढ़ा हौसले की उडान को।
भरकर मन में जोश नया,
हर मुश्किल से टकरा जाना।
पत्थर का चीर के सीना,
एक नई डगर बनाना है।
अब डरना नहीं न झुकना
कुछ कर दिखा दे जमाने को।
अभी नहीं तो कभी नहीं,
चलो झुका लें आसमान को
विरोध होता रहता है,
हर नये काम के आगाज का।
पग-पग पर पथ हैं रोके,
जिसने सच का दामन थामा।
अब रोके ना बाधाएं,
हमें मोड़ देंगे उस पथ को।
अभी नहीं तो कभी नहीं,
चलो झुका लें आसमान को
जीवन पथ टेढ़ा-मेढ़ा,
आसान नहीं है कुछ पाना।
मेहनत के दम पर हमें,
यह सोच बदलते जाना है।
आशाओं के दीप जला,
दूर भगा दें अँधियारो को।
अभी नहीं तो कभी नहीं,
चलो झुका लें आसमान को।
***अनुराधा चौहान*** स्वरचित
______गीत_________
अभी नहीं तो कभी नहीं,
चलो झुका लें आसमान को।
डर कर कहीं रुक न जाना,
बढ़ा हौसले की उडान को।
भरकर मन में जोश नया,
हर मुश्किल से टकरा जाना।
पत्थर का चीर के सीना,
एक नई डगर बनाना है।
अब डरना नहीं न झुकना
कुछ कर दिखा दे जमाने को।
अभी नहीं तो कभी नहीं,
चलो झुका लें आसमान को
विरोध होता रहता है,
हर नये काम के आगाज का।
पग-पग पर पथ हैं रोके,
जिसने सच का दामन थामा।
अब रोके ना बाधाएं,
हमें मोड़ देंगे उस पथ को।
अभी नहीं तो कभी नहीं,
चलो झुका लें आसमान को
जीवन पथ टेढ़ा-मेढ़ा,
आसान नहीं है कुछ पाना।
मेहनत के दम पर हमें,
यह सोच बदलते जाना है।
आशाओं के दीप जला,
दूर भगा दें अँधियारो को।
अभी नहीं तो कभी नहीं,
चलो झुका लें आसमान को।
***अनुराधा चौहान*** स्वरचित
विधा कविता
दिनाँक 15.12.2019
दिन शनिवार
विरोध
💘💘💘💘
विरोध के लिये, हो गया विरोध
रस्ते रस्ते फिर जमे,बेकार ही अवरोध
शान्ति अशान्ति के, आरोप भी लगे
आसमाँ तक गूँजा बस, क्रोध ही क्रोध।
कहीं कुछ जला, कहीं कुछ जला
किसका हुआ ,आखि़र भला
भीड़ में वो बेचारा, यूँ ही रहा
उसकी रोटी का हिस्सा, फिर टला।
माइक दहाड़ गये, बुरी तरह चिंघाड़ गये
आरोपों के लच्छों में ,जिसको मन चाहा उखाड़ गये
समस्यायें किसने, कितनी सुलझायी हैं
एक से पूछो तो कहता,दूसरे ने उलझाई हैं।
हर ज़गह बस, प्रदूषण ही प्रदूषण है
लूट रहा हर बात में, कीमति आभूषण है
भाषा की शैली गयी,यह भी प्रदूषित हो गई
बाकी प्रदूषणों की बात तो,वैसे ही चर्चित हो गई।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
दिनांक-१४/१२/२०१९
शीर्षक-"विरोध"
मन मसोस कर क्यों रहे?
करना सीखे विरोध,
हर काम की अति बुरी
विरोध करना भी जरूरी।
क्यों रहे इस आस में
होंगे मसला हल
कोई मसला सुलझे नही
टूटे मन की जोत।
हर एक का समर्थन
करे भला हम क्यों?
अपना भी जमीर है
इसे बचाये हम।
जन विरोधी का
करें ना कोई काम
जनहित में न हो जो
करें विरोध हम।
विरोध में न करे कोई तोड़ फोड़
मौन रह कर करें विरोध
इसका न कोई तोड़
गलत काम का करे विरोध रोज।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव
शीर्षक-"विरोध"
मन मसोस कर क्यों रहे?
करना सीखे विरोध,
हर काम की अति बुरी
विरोध करना भी जरूरी।
क्यों रहे इस आस में
होंगे मसला हल
कोई मसला सुलझे नही
टूटे मन की जोत।
हर एक का समर्थन
करे भला हम क्यों?
अपना भी जमीर है
इसे बचाये हम।
जन विरोधी का
करें ना कोई काम
जनहित में न हो जो
करें विरोध हम।
विरोध में न करे कोई तोड़ फोड़
मौन रह कर करें विरोध
इसका न कोई तोड़
गलत काम का करे विरोध रोज।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव
विरोध
करो विरोध
हर उस
बात का
जो नहीँ है
पसंद
चलो मत
गलत राह पर
सिद्धान्तविहिन
अनुकरण
गिरा देता
चरित्र से
हो सही तरीका
विरोध का
लाओ अपनी
बात में दम
जो करते
ऊलजलूल विरोध
नहीँ रहता
समाज में
उनका मान
माता पिता
दिखाते सही राह
मत करो
उनका विरोध
होते जो उदंड
जीवन में
भटकते रहते
उम्र भर
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
करो विरोध
हर उस
बात का
जो नहीँ है
पसंद
चलो मत
गलत राह पर
सिद्धान्तविहिन
अनुकरण
गिरा देता
चरित्र से
हो सही तरीका
विरोध का
लाओ अपनी
बात में दम
जो करते
ऊलजलूल विरोध
नहीँ रहता
समाज में
उनका मान
माता पिता
दिखाते सही राह
मत करो
उनका विरोध
होते जो उदंड
जीवन में
भटकते रहते
उम्र भर
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
विषय - विरोध
दिनांक- 14 /12/1999
है विरोध खुद से यही -
करना विरोध ही नही
नफरतो के राज में
गुस्ताखियाँ अब प्यार की .....
वो बोलिया अहंकार की -
ज्योति है अंधकार की .....
है विरोध खुद से यही -
करना विरोध ही नही
मतलबी जीवन में अब -
एक आश है एहसास की
वो बाजिया बिन बात की
मौत है इंसाफ की ......
है विरोध खुद से यही -
करना विरोध ही नही
-रश्मि मलिक (हकीकत मलिका)
दिनांक- 14 /12/1999
है विरोध खुद से यही -
करना विरोध ही नही
नफरतो के राज में
गुस्ताखियाँ अब प्यार की .....
वो बोलिया अहंकार की -
ज्योति है अंधकार की .....
है विरोध खुद से यही -
करना विरोध ही नही
मतलबी जीवन में अब -
एक आश है एहसास की
वो बाजिया बिन बात की
मौत है इंसाफ की ......
है विरोध खुद से यही -
करना विरोध ही नही
-रश्मि मलिक (हकीकत मलिका)
विषय -विरोध
दिनांक १४-१२-२०१९
स्वार्थ के कारण ही,सदा विरोध होते हैं।
जहां नहीं स्वार्थ,वहां सब प्रेम से रहते हैं।।
जो लीक से हटकर, श्रेष्ठ कार्य करते हैं ।
विरोध का सामना ,वो जग में करते हैं।।
विरोध डर से,जो कदम पीछे करते हैं।
गर्दन झुका,कायरों की तरह वो जीते हैं ।।
विरोध बदलने का हुनर, बिरले रखते हैं।
अपना नाम अमर, वह जग में करते हैं ।।
देश विकास में,वही जन हाथ बढ़ाते हैं।
विरोध सह आगे बढे,वो इतिहास रचते हैं।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक १४-१२-२०१९
स्वार्थ के कारण ही,सदा विरोध होते हैं।
जहां नहीं स्वार्थ,वहां सब प्रेम से रहते हैं।।
जो लीक से हटकर, श्रेष्ठ कार्य करते हैं ।
विरोध का सामना ,वो जग में करते हैं।।
विरोध डर से,जो कदम पीछे करते हैं।
गर्दन झुका,कायरों की तरह वो जीते हैं ।।
विरोध बदलने का हुनर, बिरले रखते हैं।
अपना नाम अमर, वह जग में करते हैं ।।
देश विकास में,वही जन हाथ बढ़ाते हैं।
विरोध सह आगे बढे,वो इतिहास रचते हैं।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
14/12/19
सैकड़ो प्रदर्शन
विरोध अवरोध
धरने घेराव
पुतलों का जलाव
जुड़ रही रैलियां
चौराहों पर सभा
चर्चाय बाजार
गर्म समाचार
मीडिया प्रवाह
हंगामे में हंगामा
घर हो या बाहर
संसद हो या न्यायालय
मसला कोई भी
मंदिर हो या मस्जिद
बलात्कार हो या दुराचार
या राजनीति समाचार
वेतन भत्तों का राज
जनहित के लिए
या जनमत हेतु
होता धन अपब्य्य
नही होते असहायों
के सहाय
बस करते है कैंडल मार्च
नारे बाजी
काली पट्टी
विरोध की घुट्टी
विरोध था उपवासों का
कुछ गिरती उठती साँसों का
डरता था शासन काल
अब पहन मुखौटा
करते विरोध
आनन फानन का
फिजूल सा जोश
स्वरचित
मीना तिवारी
सैकड़ो प्रदर्शन
विरोध अवरोध
धरने घेराव
पुतलों का जलाव
जुड़ रही रैलियां
चौराहों पर सभा
चर्चाय बाजार
गर्म समाचार
मीडिया प्रवाह
हंगामे में हंगामा
घर हो या बाहर
संसद हो या न्यायालय
मसला कोई भी
मंदिर हो या मस्जिद
बलात्कार हो या दुराचार
या राजनीति समाचार
वेतन भत्तों का राज
जनहित के लिए
या जनमत हेतु
होता धन अपब्य्य
नही होते असहायों
के सहाय
बस करते है कैंडल मार्च
नारे बाजी
काली पट्टी
विरोध की घुट्टी
विरोध था उपवासों का
कुछ गिरती उठती साँसों का
डरता था शासन काल
अब पहन मुखौटा
करते विरोध
आनन फानन का
फिजूल सा जोश
स्वरचित
मीना तिवारी
दिनांक-14/12/2019
विषय-विरोध
विधा-छंदमुक्त
जिन मूल्यों से यह जीवन चलता
उनको समर्थन मिलना चाहिए
विकास पथ में जो रोड़ा अटकाए
उसका विरोध पुरज़ोर होना चाहिए
शाश्वत मूल्यों बिन जीवन ना चलता
मूल्यहीनता का विरोध होना चाहिए
स्वयं के लाभ का नज़रिया तजकर
व्यवहार में आदर्शवाद गढ़ना चाहिए।
धर्म पर जब अधर्म हो भारी
डटकर विरोध करना चाहिए
शुद्ध आचरण और आदर्शवाद से
धर्म विजय की ही करनी चाहिए ।
हिंसा कभी भी ना अच्छी होती
उसका सर्वत्र विरोध करना चाहिए
अहिंसा के मार्ग पर चलकर हमें
सभी जीवों पर दया करनी चाहिए ।
जाति, भाषा धर्म मे भिन्नता निहित
भेदभाव का विरोध करना चाहिए
मनुष्यता की राह अपनाकर हमें
एक प्रतिमान नया गढ़ना चाहिए ।
तेरे मेरे संग सब का साथ मिले
सोच सर्वदा ऐसी रखनी चाहिए
अनमोल जीवन पाया है हम ने
अविवेक का विरोध तो होना चाहिए ।
संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित
विषय-विरोध
विधा-छंदमुक्त
जिन मूल्यों से यह जीवन चलता
उनको समर्थन मिलना चाहिए
विकास पथ में जो रोड़ा अटकाए
उसका विरोध पुरज़ोर होना चाहिए
शाश्वत मूल्यों बिन जीवन ना चलता
मूल्यहीनता का विरोध होना चाहिए
स्वयं के लाभ का नज़रिया तजकर
व्यवहार में आदर्शवाद गढ़ना चाहिए।
धर्म पर जब अधर्म हो भारी
डटकर विरोध करना चाहिए
शुद्ध आचरण और आदर्शवाद से
धर्म विजय की ही करनी चाहिए ।
हिंसा कभी भी ना अच्छी होती
उसका सर्वत्र विरोध करना चाहिए
अहिंसा के मार्ग पर चलकर हमें
सभी जीवों पर दया करनी चाहिए ।
जाति, भाषा धर्म मे भिन्नता निहित
भेदभाव का विरोध करना चाहिए
मनुष्यता की राह अपनाकर हमें
एक प्रतिमान नया गढ़ना चाहिए ।
तेरे मेरे संग सब का साथ मिले
सोच सर्वदा ऐसी रखनी चाहिए
अनमोल जीवन पाया है हम ने
अविवेक का विरोध तो होना चाहिए ।
संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित
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