ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें
ब्लॉग संख्या :-602
विषय निःस्वार्थ
विधा काव्य
21 दिसम्बर 2019,शनिवार
दुनियां के बनाने वाले प्रभु
निस्वार्थमयी तुम परमार्थ।
भीर पड़े प्रिय तेरे भक्तों पर
होता खड़ा तू सदा सहायक।
निस्वार्थ सीमा पर सैनिक
मातृभूमि नित सेवा करता।
चले गोलियां सदा दना दन
वह भारत की विपदा हरता।
मात पिता गुरुजन मिलके
निःस्वार्थ संस्कारित करते।
सद्प्रेरणा देते प्रिय बालक
तभी चरण प्रगति पथ बढते।
जीवन में वही सच्चा मित्र है
निःस्वार्थ विपदा नित हरता।
तन मन धन से करे सहायता
वह जीवन में कभी न डरता।
शस्यश्यामल है भारत माता
निःस्वार्थ जन सेवा करती है।
काल सुकाल सब स्थिति में
प्रिय तनय के उदर भरती है।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
21 दिसम्बर 2019,शनिवार
दुनियां के बनाने वाले प्रभु
निस्वार्थमयी तुम परमार्थ।
भीर पड़े प्रिय तेरे भक्तों पर
होता खड़ा तू सदा सहायक।
निस्वार्थ सीमा पर सैनिक
मातृभूमि नित सेवा करता।
चले गोलियां सदा दना दन
वह भारत की विपदा हरता।
मात पिता गुरुजन मिलके
निःस्वार्थ संस्कारित करते।
सद्प्रेरणा देते प्रिय बालक
तभी चरण प्रगति पथ बढते।
जीवन में वही सच्चा मित्र है
निःस्वार्थ विपदा नित हरता।
तन मन धन से करे सहायता
वह जीवन में कभी न डरता।
शस्यश्यामल है भारत माता
निःस्वार्थ जन सेवा करती है।
काल सुकाल सब स्थिति में
प्रिय तनय के उदर भरती है।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
दिनांक- 21/12/2019
विषय- नि:स्वार्थविधा- छंदमुक्त कविता
******************
स्वार्थ के चक्रव्यूह में फंसा, क्यों तू मेरे यार ?
नि:स्वार्थ भाव मन में जगा, बांट बस तू प्यार |
नीले अम्बर को देख जरा, देख उसका प्यार,
एक समान है छत्रछाया, नि:स्वार्थ करता बरसात |
अब धरा को देख ले तू, देख इसका त्याग,
पाप-पुण्य होते इसमें, सबका कर रही कल्याण |
वो मोमबत्ती जली जो, अंत तक,
फना खुद को कर गई, बांट गई प्रकाश |
नि:स्वार्थ बहती वो नदी, रोकती अपनी प्यास,
प्राणियों को जल पिलाकर,बनी जीवन की आस |
अब जरा हवा से मिल तु, देख उसका प्रवाह,
प्राणदायिनी है हम सबकी, बता क्या उसका स्वार्थ?
हे मनु! तु भी जगा, नि:स्वार्थ भाव आज,
बदले में क्या तुझे मिलेगा? ऐसी मत रख आस |
स्वरचित- संगीता कुकरेती
विषय- नि:स्वार्थविधा- छंदमुक्त कविता
******************
स्वार्थ के चक्रव्यूह में फंसा, क्यों तू मेरे यार ?
नि:स्वार्थ भाव मन में जगा, बांट बस तू प्यार |
नीले अम्बर को देख जरा, देख उसका प्यार,
एक समान है छत्रछाया, नि:स्वार्थ करता बरसात |
अब धरा को देख ले तू, देख इसका त्याग,
पाप-पुण्य होते इसमें, सबका कर रही कल्याण |
वो मोमबत्ती जली जो, अंत तक,
फना खुद को कर गई, बांट गई प्रकाश |
नि:स्वार्थ बहती वो नदी, रोकती अपनी प्यास,
प्राणियों को जल पिलाकर,बनी जीवन की आस |
अब जरा हवा से मिल तु, देख उसका प्रवाह,
प्राणदायिनी है हम सबकी, बता क्या उसका स्वार्थ?
हे मनु! तु भी जगा, नि:स्वार्थ भाव आज,
बदले में क्या तुझे मिलेगा? ऐसी मत रख आस |
स्वरचित- संगीता कुकरेती
शीर्षक -- निस्वार्थ प्रेम
प्रथम प्रस्तुति
निस्वार्थ प्रेम जो जाना है
वो ईश्वर को पहचाना है ।।
ईश्वर तो भोलेपन में है
अब इंसा हुआ सयाना है ।।
क्या किसी से माँगोगे यहाँ
सब नश्वर और बेगाना है ।।
आखिर तो एक दिन सभी कुछ
जिसका है उसे लौटाना है ।।
फूल काँटे मिलन जुदाई
उसके उसमें मन रमाना है ।।
'शिवम' प्रेम की परिभाषा को
यूँ ही न यहाँ बखाना है ।।
निस्वार्थ प्रेम जो न होता
बनता कहाँ यह तराना है ।।
निस्वार्थ प्रेम कुछ सिखा गया
यह उसी का तानाबाना है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 21/12/2019ो
प्रथम प्रस्तुति
निस्वार्थ प्रेम जो जाना है
वो ईश्वर को पहचाना है ।।
ईश्वर तो भोलेपन में है
अब इंसा हुआ सयाना है ।।
क्या किसी से माँगोगे यहाँ
सब नश्वर और बेगाना है ।।
आखिर तो एक दिन सभी कुछ
जिसका है उसे लौटाना है ।।
फूल काँटे मिलन जुदाई
उसके उसमें मन रमाना है ।।
'शिवम' प्रेम की परिभाषा को
यूँ ही न यहाँ बखाना है ।।
निस्वार्थ प्रेम जो न होता
बनता कहाँ यह तराना है ।।
निस्वार्थ प्रेम कुछ सिखा गया
यह उसी का तानाबाना है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 21/12/2019ो
21 /12/2019
बिषय ,निःस्वार्थ,,
काश आज निःस्वार्थ जमाना हो जाए
फिर तो समस्त जग का मौसम सुहाना हो जाए
परहित के लिए उठेंगे जो हाथ
ईश्वर भी सदैव देगा उनका साथ
दिलों में परस्पर मीठा तराना हो जाए
न हो किसी से किसी विद्वेष की भावना
सुख सम्पन्नता की करें सब कामना
मन के मैलों का गर धुलाना हो जाए
एक साथ भोजन करें आपस में भाई भाई
छटे कपट छल की जो बदरी छाई
संयुक्त परिवारों का फिर घराना हो जाए
जाति पाति का भद न हो
आपस में भाईचारा
हरएक हृदय में बहे गंग जमुन जल सी धारा
सहयोग समरस की भावना में
दिल इक दूजे का दीवाना हो जाए
स्वरचित,, सुषमा, ब्यौहार
बिषय ,निःस्वार्थ,,
काश आज निःस्वार्थ जमाना हो जाए
फिर तो समस्त जग का मौसम सुहाना हो जाए
परहित के लिए उठेंगे जो हाथ
ईश्वर भी सदैव देगा उनका साथ
दिलों में परस्पर मीठा तराना हो जाए
न हो किसी से किसी विद्वेष की भावना
सुख सम्पन्नता की करें सब कामना
मन के मैलों का गर धुलाना हो जाए
एक साथ भोजन करें आपस में भाई भाई
छटे कपट छल की जो बदरी छाई
संयुक्त परिवारों का फिर घराना हो जाए
जाति पाति का भद न हो
आपस में भाईचारा
हरएक हृदय में बहे गंग जमुन जल सी धारा
सहयोग समरस की भावना में
दिल इक दूजे का दीवाना हो जाए
स्वरचित,, सुषमा, ब्यौहार
दिनांक .. 21/12/2019
विषय .. निस्वार्थ
**********************
ले लो भइया आजादी , हम दे के रहेगे आजादी।
पीठ पे लो या बम्म पे ले लो, फ्री मे मिलेगी आजादी।
आज अगर जो नही लिया तो, फिर ना मिलेगी आजादी।
मोदी के सपनों का भारत, बाँट रहा है आजादी।
**
मुल्ला काजी आओ ले लो, तुम्हे मिलेगी आजादी।
गैर नमाजी दूर रहो तुम, पा ना सकोगे आजादी।
गम से ले लो आजादी, आओ लूट लो पूरी आजादी।
खुली सडक पर माँगो तो, दौडा कर देगे आजादी।
**
निस्वार्थ भाव की सेवा है लो, आकर के तुम आजादी।
क्यो डर के माँगते हो आओ, खुल के मिलेगी आजादी।
है डरा नही है शेर तुम्हे, कहता है आ ले लो आजादी।
निस्वार्थ भाव से बाँटते है, लो दुख से अपने आजादी।
शेर सिंह सर्राफ
विषय .. निस्वार्थ
**********************
ले लो भइया आजादी , हम दे के रहेगे आजादी।
पीठ पे लो या बम्म पे ले लो, फ्री मे मिलेगी आजादी।
आज अगर जो नही लिया तो, फिर ना मिलेगी आजादी।
मोदी के सपनों का भारत, बाँट रहा है आजादी।
**
मुल्ला काजी आओ ले लो, तुम्हे मिलेगी आजादी।
गैर नमाजी दूर रहो तुम, पा ना सकोगे आजादी।
गम से ले लो आजादी, आओ लूट लो पूरी आजादी।
खुली सडक पर माँगो तो, दौडा कर देगे आजादी।
**
निस्वार्थ भाव की सेवा है लो, आकर के तुम आजादी।
क्यो डर के माँगते हो आओ, खुल के मिलेगी आजादी।
है डरा नही है शेर तुम्हे, कहता है आ ले लो आजादी।
निस्वार्थ भाव से बाँटते है, लो दुख से अपने आजादी।
शेर सिंह सर्राफ
विषय-निस्वार्थ
विधा - 'छंद मुक्त
दिनांकः 21/12/2019
शनिवार
मत स्वार्थ में डूबो तुम,परहित सारे कर्म करो ।
सूरज रौशन जग करें, समझो तुम ये धर्म करो ।।
पवन चले निस्वार्थ सदा,हमको जीवित रखने को ।
बादल जल बरसाते ये,हमको ही सदा जल देने को ।।
पेड़ हमें ये फल देते,जो निस्वार्थ ही होते ।
गर्मी में शीतल छाॅव दें,भला सभी का करते ।।
ये जीवन है कुछ देने को,कभी लेने की मत साचो तुम ।
सदा निस्वार्थ सेवा करो,अपना स्वार्थ न सोचो तुम ।।
न कुछ लेकर आये हम,क्या लेकर हम जायेंगे ।
जो लिया यहाँ से ही लिया,यहाँ पर ही देकर जायेंगे ।।
मत स्वार्थ में अंधे बनो,कभी दौलत साथ नहीं जाये ।
दीन दुखी की मदद करो,नेकी ही साथ सदा जाये ।।
तेरा-मेरा छोडकर,सबको तुम अपनाओ ।
यहाँ कोई पराया नहीं है,सबका तुम साथ निभाओ ।।
दया, करूणा प्रेम करो,निस्वार्थ सदा कर्म करो ।
यही धर्म का मर्म है,सदा स्वार्थ से दूर रहो ।।
स्वरचित एवं स्वप्रमाणित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर 'निर्भय,
विधा - 'छंद मुक्त
दिनांकः 21/12/2019
शनिवार
मत स्वार्थ में डूबो तुम,परहित सारे कर्म करो ।
सूरज रौशन जग करें, समझो तुम ये धर्म करो ।।
पवन चले निस्वार्थ सदा,हमको जीवित रखने को ।
बादल जल बरसाते ये,हमको ही सदा जल देने को ।।
पेड़ हमें ये फल देते,जो निस्वार्थ ही होते ।
गर्मी में शीतल छाॅव दें,भला सभी का करते ।।
ये जीवन है कुछ देने को,कभी लेने की मत साचो तुम ।
सदा निस्वार्थ सेवा करो,अपना स्वार्थ न सोचो तुम ।।
न कुछ लेकर आये हम,क्या लेकर हम जायेंगे ।
जो लिया यहाँ से ही लिया,यहाँ पर ही देकर जायेंगे ।।
मत स्वार्थ में अंधे बनो,कभी दौलत साथ नहीं जाये ।
दीन दुखी की मदद करो,नेकी ही साथ सदा जाये ।।
तेरा-मेरा छोडकर,सबको तुम अपनाओ ।
यहाँ कोई पराया नहीं है,सबका तुम साथ निभाओ ।।
दया, करूणा प्रेम करो,निस्वार्थ सदा कर्म करो ।
यही धर्म का मर्म है,सदा स्वार्थ से दूर रहो ।।
स्वरचित एवं स्वप्रमाणित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर 'निर्भय,
21/12/2019
"निस्वार्थ"
छंदमुक्त
################
निस्वार्थ प्रेम माँ के हृदय में
आँखो से ममता छलके....
आँचल की छाँव में प्रेम ही पले..
इसकी कामना भगवान भी करे...।
निस्वार्थ भाव का दिव्य प्रेम
श्रद्धा,विश्वास का रुप दिखे
अहंकार भाव जरा न साथ रहे
राधा-कृष्ण का प्रेम कहे।
निस्वार्थ भाव की देश भक्ती
देशवासियों के मन में पले..
शीत,ग्रीष्म में भी फौजी हैं डटे
देश रक्षा को वीर तैनात रहे।
निस्वार्थ भाव के कर्म खिले
जन हित की सिर्फ बात रहे
दया भाव सभी के मन में रहे
परोपकार ही निहित रहे...।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
"निस्वार्थ"
छंदमुक्त
################
निस्वार्थ प्रेम माँ के हृदय में
आँखो से ममता छलके....
आँचल की छाँव में प्रेम ही पले..
इसकी कामना भगवान भी करे...।
निस्वार्थ भाव का दिव्य प्रेम
श्रद्धा,विश्वास का रुप दिखे
अहंकार भाव जरा न साथ रहे
राधा-कृष्ण का प्रेम कहे।
निस्वार्थ भाव की देश भक्ती
देशवासियों के मन में पले..
शीत,ग्रीष्म में भी फौजी हैं डटे
देश रक्षा को वीर तैनात रहे।
निस्वार्थ भाव के कर्म खिले
जन हित की सिर्फ बात रहे
दया भाव सभी के मन में रहे
परोपकार ही निहित रहे...।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
दिनांक 21-12 -2019नि:स्वार्थ भाव से काम कर,तो तू यश को पाएगा।
आ गया स्वार्थ,तो पाया सम्मान भी खो जाएगा।।
दोस्त का हमदर्द बनकर,जो उसका दर्द बटाएगा।
जख्मों पर हकीकत में,वो ही मरहम लगाएगा।।
मतलबी दुनिया,जीवन चरितार्थ ना हो पाएगा।
करता रह नि:स्वार्थ कार्य,तू सफलता पाएगा।।
प्रभु घर देर अंधेर नहीं,तू सार्थक कर पाएगा ।
आँखों के अंधों को,आईना तू ही दिखाएगा।।
नि:स्वार्थ भाव रख,तू जग में अमर हो जाएगा।
बाकी स्वार्थ में डूबा ,दर दर ठोकर खाएगा।।
सब कुछ पाकर स्वार्थी जन, सम्मान न पायेगा।
एक झूठ छुपाने में,जीवन उसका गुजर जाएगा।।
कहती वीणा नि:स्वार्थ रह,जग नहीं बिसराएगा।
अपने श्रेष्ठ भावों से वो,जग में अमरता पाएगा।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
आ गया स्वार्थ,तो पाया सम्मान भी खो जाएगा।।
दोस्त का हमदर्द बनकर,जो उसका दर्द बटाएगा।
जख्मों पर हकीकत में,वो ही मरहम लगाएगा।।
मतलबी दुनिया,जीवन चरितार्थ ना हो पाएगा।
करता रह नि:स्वार्थ कार्य,तू सफलता पाएगा।।
प्रभु घर देर अंधेर नहीं,तू सार्थक कर पाएगा ।
आँखों के अंधों को,आईना तू ही दिखाएगा।।
नि:स्वार्थ भाव रख,तू जग में अमर हो जाएगा।
बाकी स्वार्थ में डूबा ,दर दर ठोकर खाएगा।।
सब कुछ पाकर स्वार्थी जन, सम्मान न पायेगा।
एक झूठ छुपाने में,जीवन उसका गुजर जाएगा।।
कहती वीणा नि:स्वार्थ रह,जग नहीं बिसराएगा।
अपने श्रेष्ठ भावों से वो,जग में अमरता पाएगा।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
विषय_ निःस्वार्थ
रहो निःस्वार्थ भाव से |
करो प्रेम व्यवहार |
हो निच्छल रहे विश्वास |
दीन दुखी वृद्धों की सेवा |
न हो उसमे तनिक स्वार्थ |
होगा स्वार्थ वह मात्र दिखावा |
कोई हो गर्व से भरा कैसे करे निःस्वार्थ सेवा |
देश हित जो मर मिटते हसते
उनकी निःस्वार्थ भावो नमन |
जो है हमारे पास तो बाटकरजीलो |
उनको हंसाओ खुशी मिले अपार |
यही नीति वैदिक युग की अब क्यू भूले
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा
रहो निःस्वार्थ भाव से |
करो प्रेम व्यवहार |
हो निच्छल रहे विश्वास |
दीन दुखी वृद्धों की सेवा |
न हो उसमे तनिक स्वार्थ |
होगा स्वार्थ वह मात्र दिखावा |
कोई हो गर्व से भरा कैसे करे निःस्वार्थ सेवा |
देश हित जो मर मिटते हसते
उनकी निःस्वार्थ भावो नमन |
जो है हमारे पास तो बाटकरजीलो |
उनको हंसाओ खुशी मिले अपार |
यही नीति वैदिक युग की अब क्यू भूले
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा
विषय-निस्वार्थ
विधा - 'छंद मुक्त
दिनांकः 21/12/2019
शनिवार
मत स्वार्थ में डूबो तुम,परहित सारे कर्म करो ।
सूरज रौशन जग करें, समझो तुम ये धर्म करो ।।
पवन चले निस्वार्थ सदा,हमको जीवित रखने को ।
बादल जल बरसाते ये,हमको ही सदा जल देने को ।।
पेड़ हमें ये फल देते,जो निस्वार्थ ही होते ।
गर्मी में शीतल छाॅव दें,भला सभी का करते ।।
ये जीवन है कुछ देने को,कभी लेने की मत सोचो तुम ।
सदा निस्वार्थ सेवा करो,अपना स्वार्थ न सोचो तुम ।।
न कुछ लेकर आये हम,क्या लेकर हम जायेंगे ।
जो लिया यहाँ से ही लिया,यहाँ पर ही देकर जायेंगे ।।
मत स्वार्थ में अंधे बनो,कभी दौलत साथ नहीं जाये ।
दीन दुखी की मदद करो,नेकी ही साथ सदा जाये ।।
तेरा-मेरा छोडकर,सबको तुम अपनाओ ।
यहाँ कोई पराया नहीं है,सबका तुम साथ निभाओ ।।
दया, करूणा प्रेम करो,निस्वार्थ सदा कर्म करो ।
यही धर्म का मर्म है,सदा स्वार्थ से दूर रहो ।।
स्वरचित एवं स्वप्रमाणित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर 'निर्भय,
विधा - 'छंद मुक्त
दिनांकः 21/12/2019
शनिवार
मत स्वार्थ में डूबो तुम,परहित सारे कर्म करो ।
सूरज रौशन जग करें, समझो तुम ये धर्म करो ।।
पवन चले निस्वार्थ सदा,हमको जीवित रखने को ।
बादल जल बरसाते ये,हमको ही सदा जल देने को ।।
पेड़ हमें ये फल देते,जो निस्वार्थ ही होते ।
गर्मी में शीतल छाॅव दें,भला सभी का करते ।।
ये जीवन है कुछ देने को,कभी लेने की मत सोचो तुम ।
सदा निस्वार्थ सेवा करो,अपना स्वार्थ न सोचो तुम ।।
न कुछ लेकर आये हम,क्या लेकर हम जायेंगे ।
जो लिया यहाँ से ही लिया,यहाँ पर ही देकर जायेंगे ।।
मत स्वार्थ में अंधे बनो,कभी दौलत साथ नहीं जाये ।
दीन दुखी की मदद करो,नेकी ही साथ सदा जाये ।।
तेरा-मेरा छोडकर,सबको तुम अपनाओ ।
यहाँ कोई पराया नहीं है,सबका तुम साथ निभाओ ।।
दया, करूणा प्रेम करो,निस्वार्थ सदा कर्म करो ।
यही धर्म का मर्म है,सदा स्वार्थ से दूर रहो ।।
स्वरचित एवं स्वप्रमाणित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर 'निर्भय,
विषय- नि:स्वार्थ
दिनांक 21-12 -2019
नि:स्वार्थ भाव से काम कर,तो तू यश को पाएगा।
आ गया स्वार्थ,तो पाया सम्मान भी खो जाएगा।।
दोस्त का हमदर्द बनकर,जो उसका दर्द बटाएगा।
जख्मों पर हकीकत में,वो ही मरहम लगाएगा।।
मतलबी दुनिया,जीवन चरितार्थ ना हो पाएगा।
करता रह नि:स्वार्थ कार्य,तू सफलता पाएगा।।
प्रभु घर देर अंधेर नहीं,तू सार्थक कर पाएगा ।
आँखों के अंधों को,आईना तू ही दिखाएगा।।
नि:स्वार्थ भाव रख,तू जग में अमर हो जाएगा।
बाकी स्वार्थ में डूबा ,दर दर ठोकर खाएगा।।
सब कुछ पाकर स्वार्थी जन, सम्मान न पायेगा।
एक झूठ छुपाने में,जीवन उसका गुजर जाएगा।।
कहती वीणा नि:स्वार्थ रह,जग नहीं बिसराएगा।
अपने श्रेष्ठ भावों से वो,जग में अमरता पाएगा।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक 21-12 -2019
नि:स्वार्थ भाव से काम कर,तो तू यश को पाएगा।
आ गया स्वार्थ,तो पाया सम्मान भी खो जाएगा।।
दोस्त का हमदर्द बनकर,जो उसका दर्द बटाएगा।
जख्मों पर हकीकत में,वो ही मरहम लगाएगा।।
मतलबी दुनिया,जीवन चरितार्थ ना हो पाएगा।
करता रह नि:स्वार्थ कार्य,तू सफलता पाएगा।।
प्रभु घर देर अंधेर नहीं,तू सार्थक कर पाएगा ।
आँखों के अंधों को,आईना तू ही दिखाएगा।।
नि:स्वार्थ भाव रख,तू जग में अमर हो जाएगा।
बाकी स्वार्थ में डूबा ,दर दर ठोकर खाएगा।।
सब कुछ पाकर स्वार्थी जन, सम्मान न पायेगा।
एक झूठ छुपाने में,जीवन उसका गुजर जाएगा।।
कहती वीणा नि:स्वार्थ रह,जग नहीं बिसराएगा।
अपने श्रेष्ठ भावों से वो,जग में अमरता पाएगा।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
21-12-2019
विषय-नि:स्वार्थ
मातृ दिवस पर माँ की नि:स्वार्थ - ममता का गुणगान करती,,,हार्दिक उदगार सहित हाइकु शैली में कविता,,,,,,,
, ,माँ की ममता
1), ************
माँ की ममता
अवर्णनीय नेह
नि:स्वार्थ प्रेम /
2 )--------------------------
, माँ की ममता
ज्यों शीतल झरतीं
निर्झर बूँदें /
3)-----------------------------
माँ की ममता
कोई आदि ना अंता
नि;स्वार्थ सत्ता /
4)-----------------------------
माँ की ममता
छाँव बरगद की
कल्पतरु सी /
5 )----------------------------
माँ की ममता
बहे प्रेम सरिता
पुण्य सलिला /
6)--------------------------------
माँ की ममता
अधरों में अमृत
तुम हो माता ।
7)------------------------------
माँ। की ममता
अंतहीन भावना
सृष्टि रचिता /
************************
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित (गाजियाबाद)
विषय-नि:स्वार्थ
मातृ दिवस पर माँ की नि:स्वार्थ - ममता का गुणगान करती,,,हार्दिक उदगार सहित हाइकु शैली में कविता,,,,,,,
, ,माँ की ममता
1), ************
माँ की ममता
अवर्णनीय नेह
नि:स्वार्थ प्रेम /
2 )--------------------------
, माँ की ममता
ज्यों शीतल झरतीं
निर्झर बूँदें /
3)-----------------------------
माँ की ममता
कोई आदि ना अंता
नि;स्वार्थ सत्ता /
4)-----------------------------
माँ की ममता
छाँव बरगद की
कल्पतरु सी /
5 )----------------------------
माँ की ममता
बहे प्रेम सरिता
पुण्य सलिला /
6)--------------------------------
माँ की ममता
अधरों में अमृत
तुम हो माता ।
7)------------------------------
माँ। की ममता
अंतहीन भावना
सृष्टि रचिता /
************************
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित (गाजियाबाद)
21/12/19
विषय निस्वार्थ
गर मन मे निस्वार्थ
भाव भरा होता
तो जीवन का अपना
अलग ही भाव होता
सुख शांति होती
हर घर आबाद होता
बुजुर्गों के मन मे
न अवसाद होता
हर रोज होली
दीप सृंगार होता
मिटता अंधेरा
उजालो का ब्यापार होता
न होती कोई रंज
न मलाल ही होता
हर इंसान को
इंसान का खयाल होता
न होते बुरे कर्म
न दुराचार ही होता
सद्भावनाओं का
सबको खयाल होता
न होते दंगे फसाद
न जातिवाद होता
धर्म के नाम का
न बकवास ही होता
न जलता शहर
न लहूलुहान होता
प्रेम का अपना ही
एक भावार्थ होता
विषय निस्वार्थ
गर मन मे निस्वार्थ
भाव भरा होता
तो जीवन का अपना
अलग ही भाव होता
सुख शांति होती
हर घर आबाद होता
बुजुर्गों के मन मे
न अवसाद होता
हर रोज होली
दीप सृंगार होता
मिटता अंधेरा
उजालो का ब्यापार होता
न होती कोई रंज
न मलाल ही होता
हर इंसान को
इंसान का खयाल होता
न होते बुरे कर्म
न दुराचार ही होता
सद्भावनाओं का
सबको खयाल होता
न होते दंगे फसाद
न जातिवाद होता
धर्म के नाम का
न बकवास ही होता
न जलता शहर
न लहूलुहान होता
प्रेम का अपना ही
एक भावार्थ होता
विषय, निःस्वार्थ
दिनांक, 21,12,2019,
शनिवार
निःस्वार्थ भाव सर्वोपरि है,
जननी इसकी मां होती है।
जनक पिता है निस्वार्थता का,
जो पालन पोषण करता है।
रिश्तों में मधुरता तभी तक है,
जब तक स्वार्थ न आता है।
निःस्वार्थ प्रेम बिन हर रिश्ता,
कांटों की सेज ही लगता है ।
आम लगाने वाला ही तो,
स्वाद आम का लेता है ।
पेड़ बबूल का क्या कभी भी,
मीठे फल दे सकता है।
निःस्वार्थ भाव ही दुनियाँ में,
पोषित मानवता को करता है,
आपसी सहयोग और सहायता ,
इंसा इसी भाव से करता है ।
माना कि बोझ बहुत अधिक है,
हम सबके ही कंधो पर ।
लेकिन फिर भी गिरे हुए को,
राहगीर नहीं छोड़ सकेगा राहों पर ।
निःस्वार्थ भाव के चलते ही तो,
संसार चक्र ये चलता है ।
जब विकास पाप का होता है,
तब ही तो विनाश सृष्टि का होता है।
स्वरचित, मधु शुक्ला .
सतना, मध्यप्रदेश .
स्वरचित
मीना तिवारी
दिनांक, 21,12,2019,
शनिवार
निःस्वार्थ भाव सर्वोपरि है,
जननी इसकी मां होती है।
जनक पिता है निस्वार्थता का,
जो पालन पोषण करता है।
रिश्तों में मधुरता तभी तक है,
जब तक स्वार्थ न आता है।
निःस्वार्थ प्रेम बिन हर रिश्ता,
कांटों की सेज ही लगता है ।
आम लगाने वाला ही तो,
स्वाद आम का लेता है ।
पेड़ बबूल का क्या कभी भी,
मीठे फल दे सकता है।
निःस्वार्थ भाव ही दुनियाँ में,
पोषित मानवता को करता है,
आपसी सहयोग और सहायता ,
इंसा इसी भाव से करता है ।
माना कि बोझ बहुत अधिक है,
हम सबके ही कंधो पर ।
लेकिन फिर भी गिरे हुए को,
राहगीर नहीं छोड़ सकेगा राहों पर ।
निःस्वार्थ भाव के चलते ही तो,
संसार चक्र ये चलता है ।
जब विकास पाप का होता है,
तब ही तो विनाश सृष्टि का होता है।
स्वरचित, मधु शुक्ला .
सतना, मध्यप्रदेश .
स्वरचित
मीना तिवारी
21/12/2019
विषय-निःस्वार्थ
क्या अनोखी बात करते हो
"नि:स्वार्थ"?किस चिड़िया का नाम है?
बार बार इस नाम का चर्चा क्यों करते हो?
अच्छा !!ये एक भाव का नाम है तो
क्या तुम इस भाव को मन में धरते हो?
जाति वाद के नाम पर होते दंगे फसाद पर तुम धर्म के नाम पर एक दूजे से लड़ते हो।
बड़े बुजुर्गों का कभी सम्मान किया ना
खुद स्वार्थ में लिप्त होकर उन्हें स्वार्थी कहते हो!!
करते रहते हो बुरे कर्म सदा बेखौफ होकर
बुराइयों के तुम्हीं तो पैरोकार लगते हो।।
यदि निस्वार्थी होकर रहो तुम धरती पर निस्वार्थ भाव के काव्य तुम दिलों में रच सकते हो।।
*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
विषय-निःस्वार्थ
क्या अनोखी बात करते हो
"नि:स्वार्थ"?किस चिड़िया का नाम है?
बार बार इस नाम का चर्चा क्यों करते हो?
अच्छा !!ये एक भाव का नाम है तो
क्या तुम इस भाव को मन में धरते हो?
जाति वाद के नाम पर होते दंगे फसाद पर तुम धर्म के नाम पर एक दूजे से लड़ते हो।
बड़े बुजुर्गों का कभी सम्मान किया ना
खुद स्वार्थ में लिप्त होकर उन्हें स्वार्थी कहते हो!!
करते रहते हो बुरे कर्म सदा बेखौफ होकर
बुराइयों के तुम्हीं तो पैरोकार लगते हो।।
यदि निस्वार्थी होकर रहो तुम धरती पर निस्वार्थ भाव के काव्य तुम दिलों में रच सकते हो।।
*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
दिनाँक:21/12/2019
विषय:निःस्वार्थ
निःस्वार्थ कर्म सच्चा होता है
जीवन का सत्य मर्म होता है
निःस्वार्थ प्रेम अमर होता है
जीवन सृष्टि मर्म होता है
निःस्वार्थ भाव सम्बल होता है
मानवता का जीवन होता है
समरसता का प्रेरक होता है
जीवन का परम धर्म होता है
मनीष कुमार श्रीवास्तव
स्वरचित
विषय:निःस्वार्थ
निःस्वार्थ कर्म सच्चा होता है
जीवन का सत्य मर्म होता है
निःस्वार्थ प्रेम अमर होता है
जीवन सृष्टि मर्म होता है
निःस्वार्थ भाव सम्बल होता है
मानवता का जीवन होता है
समरसता का प्रेरक होता है
जीवन का परम धर्म होता है
मनीष कुमार श्रीवास्तव
स्वरचित
दिनांक 21/12/2019
विधा:प्रार्थना
विषय: नि:स्वार्थ
जय माँ तुम जगत जननी
करती हम सब का कल्याण ।
हम सब मे भर दो अपना अंश
कर सके हम सब भी जग कल्याण ।
चारो ओर फैला आक्रोश
हम सब छोटे छोटे मोह में
कर देते अपनो को रूष्ट।
आप के आँचल मे रह कर
निस्वार्थ भाव से करू काम।
मेरा जीवन हो कर्म विशेष
मेरी शिक्षा हो तभी पूर्ण
जो बदल सके लोगों की सोच ।
कुछ योगदान मेरा भी हो
जब नये भारत का हो विकास।
मै सरल भाव सरल इंसान
रहूँ ऐसी ही जीवन भर।
मेरी माँ मेरा निस्वार्थ प्रेम
बहता रहे सदा अपनो मे।
मेरा दिन हो तभी पूर्ण
गर चेहरों पर खुशियाँ ला दूँ ।
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
विधा:प्रार्थना
विषय: नि:स्वार्थ
जय माँ तुम जगत जननी
करती हम सब का कल्याण ।
हम सब मे भर दो अपना अंश
कर सके हम सब भी जग कल्याण ।
चारो ओर फैला आक्रोश
हम सब छोटे छोटे मोह में
कर देते अपनो को रूष्ट।
आप के आँचल मे रह कर
निस्वार्थ भाव से करू काम।
मेरा जीवन हो कर्म विशेष
मेरी शिक्षा हो तभी पूर्ण
जो बदल सके लोगों की सोच ।
कुछ योगदान मेरा भी हो
जब नये भारत का हो विकास।
मै सरल भाव सरल इंसान
रहूँ ऐसी ही जीवन भर।
मेरी माँ मेरा निस्वार्थ प्रेम
बहता रहे सदा अपनो मे।
मेरा दिन हो तभी पूर्ण
गर चेहरों पर खुशियाँ ला दूँ ।
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
दिनांक-21/12/2019
विधा-हाइकु(5/7/5)
विषय :-"निःस्वार्थ"
(1)
निःस्वार्थ सेवा
वृक्षों की तरह ही
माँ-पा को देखा
(2)
बदलें जग
निःस्वार्थ पथ चलें
सेवा के पग
(3)
निःस्वार्थ मन
स्वार्थ जग सागर
दुर्लभ रत्न
(4)
असल धर्म
मानवता की पूजा
निःस्वार्थ कर्म
(5)
जीने का अर्थ
निःस्वार्थ जीवन में
है परमार्थ
स्वरचित
ऋतुराज दवे, राजसमंद
विधा-हाइकु(5/7/5)
विषय :-"निःस्वार्थ"
(1)
निःस्वार्थ सेवा
वृक्षों की तरह ही
माँ-पा को देखा
(2)
बदलें जग
निःस्वार्थ पथ चलें
सेवा के पग
(3)
निःस्वार्थ मन
स्वार्थ जग सागर
दुर्लभ रत्न
(4)
असल धर्म
मानवता की पूजा
निःस्वार्थ कर्म
(5)
जीने का अर्थ
निःस्वार्थ जीवन में
है परमार्थ
स्वरचित
ऋतुराज दवे, राजसमंद
दिनांक २१/१२/२०१९
शीर्षक-निस्वार्थ सेवा।
निरुत्साह नही करे निस्वार्थ सेवा
निष्फल नही जाये निस्वार्थ सेवा
प्रकृति भी हमें यही सिखाती
करे सदा हम निस्वार्थ सेवा।
अकारण न जाये जीवन हमारा
करे प्रयास ,आये सदा दूसरों के काम
यथाशक्ति करें मदद दूसरों की
मनु धर्म भी कहता यही।
यश अपयश का न करे परवाह
तन मन धन से करे निस्वार्थ सेवा
करेंगे हम यदि निस्वार्थ सेवा
ईश करेंगे सदा भला।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
शीर्षक-निस्वार्थ सेवा।
निरुत्साह नही करे निस्वार्थ सेवा
निष्फल नही जाये निस्वार्थ सेवा
प्रकृति भी हमें यही सिखाती
करे सदा हम निस्वार्थ सेवा।
अकारण न जाये जीवन हमारा
करे प्रयास ,आये सदा दूसरों के काम
यथाशक्ति करें मदद दूसरों की
मनु धर्म भी कहता यही।
यश अपयश का न करे परवाह
तन मन धन से करे निस्वार्थ सेवा
करेंगे हम यदि निस्वार्थ सेवा
ईश करेंगे सदा भला।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
दिनांक-21/12/2019
विधा-हाइकु(5/7/5)
विषय :-"निःस्वार्थ"
(1)
पालनकर्ता
निस्वार्थ भू से जुड़ा
हरित वृक्ष।।
2
प्रेम की जड़े
निस्वार्थता से जुड़े
कौमुदी खिले।।
3
निस्वार्थ प्रेम
ममतामय उर
वसंत जैसा।।
स्वरचित
वीणा शर्मा वशिष्ठ
विधा-हाइकु(5/7/5)
विषय :-"निःस्वार्थ"
(1)
पालनकर्ता
निस्वार्थ भू से जुड़ा
हरित वृक्ष।।
2
प्रेम की जड़े
निस्वार्थता से जुड़े
कौमुदी खिले।।
3
निस्वार्थ प्रेम
ममतामय उर
वसंत जैसा।।
स्वरचित
वीणा शर्मा वशिष्ठ
विषय- निःस्वार्थ
विधा-मुक्त
दिनांक --21-12-19
निःस्वार्थ यहाँ अब कौन रिश्ता रह गया
हर रिश्ते में अब भूख जिस्म और पेट की हावी हो गई
प्यास जिस्म की प्रीत पर हावी हो गई
भूख पेट की बच्चों से भी मंहगी हो गई
पैसा भी तो सबसे बड़ा स्वार्थी हो गया
बूढ़े माँ-बाप से भी बेटों को पैसा प्यारा हो गया
विदा कर दिया बहना को तो रिश्ते घर से तोड़ दिये
विपदा में पड़े तो भी बुलाया नहीं जाता
शिक्षा में भी अब निःस्वार्थता नहीं रही
शिक्षक -शिष्य के बीच भी पैसा आन खड़ा है।
डा. नीलम
विधा-मुक्त
दिनांक --21-12-19
निःस्वार्थ यहाँ अब कौन रिश्ता रह गया
हर रिश्ते में अब भूख जिस्म और पेट की हावी हो गई
प्यास जिस्म की प्रीत पर हावी हो गई
भूख पेट की बच्चों से भी मंहगी हो गई
पैसा भी तो सबसे बड़ा स्वार्थी हो गया
बूढ़े माँ-बाप से भी बेटों को पैसा प्यारा हो गया
विदा कर दिया बहना को तो रिश्ते घर से तोड़ दिये
विपदा में पड़े तो भी बुलाया नहीं जाता
शिक्षा में भी अब निःस्वार्थता नहीं रही
शिक्षक -शिष्य के बीच भी पैसा आन खड़ा है।
डा. नीलम
तिथि-21/12/2019/ शनिवार
विषय -*निःस्वार्थ*
विधा -काव्य
चलो करें कुछ सेवा हम तुम,
रहे न अपना कोई स्वार्थ।
सभी खुशी हों सेवाभावी,
करते हैं जो सेवा निःस्वार्थ।
पहले अपना ही घर देखें,
सेवा मातपिता की करलें।
होए सुखी परिवार हमारा,
आशीषों से झोली भरलें।
कर उपासना परमपिता की,
नहीं कभी कोई मांग करें।
भले नहीं मांगे हम कुछ भी,
पर ईश इच्छा पूर्ण करें
निस्वार्थ परमार्थ करेंगे।
मनसे तनसे सुखी रहेंगे।
इससे परमानंद मिलेगा,
क्या जीवन में दुखी रहेंगे।
स्वरचितः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
जय श्रीराम रामजी
*निःस्वार्थ* काव्य
21/12/2019/
शनिवार
विषय -*निःस्वार्थ*
विधा -काव्य
चलो करें कुछ सेवा हम तुम,
रहे न अपना कोई स्वार्थ।
सभी खुशी हों सेवाभावी,
करते हैं जो सेवा निःस्वार्थ।
पहले अपना ही घर देखें,
सेवा मातपिता की करलें।
होए सुखी परिवार हमारा,
आशीषों से झोली भरलें।
कर उपासना परमपिता की,
नहीं कभी कोई मांग करें।
भले नहीं मांगे हम कुछ भी,
पर ईश इच्छा पूर्ण करें
निस्वार्थ परमार्थ करेंगे।
मनसे तनसे सुखी रहेंगे।
इससे परमानंद मिलेगा,
क्या जीवन में दुखी रहेंगे।
स्वरचितः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
जय श्रीराम रामजी
*निःस्वार्थ* काव्य
21/12/2019/
शनिवार
मेरी प्रेषित रचना भी शामिल करे।
ReplyDeleteअत्यंत सुंदर आदरणीय 🙏🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteधन्यवाद...
Delete