Friday, December 13

"कीमत /दाम"12दिसम्सबर 2019

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ब्लॉग संख्या :-593
II कीमत /दाम II नमन भावों के मोती....

विधा: लघु कथा...


उसकी आँखें दीवार पे टिकी थी...कोशिश कर रही थी दीवार के पार देखने की... जो उसके...उसकी पत्नी और बच्चों में खड़ी हो गयी थी... बड़ी मेहनत से घर बनाया था उसने...पंछी जैसे घौंसला बनाता है.... हर इच्छा पूरी की थी उसने अपने बच्चों की पत्नी की... पर न जाने फिर भी क्या हुआ कि सब उसे छोड़ कर चले गए.... घर में एक परिंदा भी रखा हुआ था... जो अभी तक था उसके साथ.... पिंजरे में...पर पिंजरे को न उसने कभी ताला लगाया न बंद किया था... आजादी थी सब को... इतने में पिंजरे का पंछी फड़फड़ाया....उसकी आँखें दीवार से हट कर पिंजरे पर लग गईं....पिंजरे से पंछी ने उसे देखा... गर्दन घुमाई... फुर्र हो निकल गया.... उसकी आँखें खुली स्थिर पिंजरे पर टिकी थीं....पंछी उड़ चुका था... आखिर आजाद पंछी की तरह उड़ना कौन नहीं चाहता...कीमत चाहे कुछ भी हो!

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
१२.१२.२०१९


II कीमत / दाम II नमन भावों के मोती....

विधा: हाइकु


१.
भाव अतुल्य
कीमत पहचान
श्रोता नगण्य

२.
प्रभु दर्शन
मिलन की कीमत
अहं अर्पण

३.
प्रेम कीमत
विरह असीमित
आस जीवित

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
१२.१२.२०१९
दिनांक -12 दिसंबर 2019
दिन -गुरुवार

विषय -कीमत

221 2122 221 2122

ग़ज़ल

ग़म ज़िंदगी में हरदम शामिल बग़ैर क़ीमत,
ख़ुशियां कहाँ हुई हैं हासिल बग़ैर क़ीमत ।

बचपन गँवा के हमने सीखीं सलाहियत कुछ,
कब हो सका है कोई क़ाबिल बग़ैर क़ीमत ।

पहले वज़ूद अपना पानी किया है मिटकर,
लहरों को कब मिला है साहिल बग़ैर क़ीमत ।

जन्नत की जुस्तजू में मरना पड़ेगा पहले,
ये ख़्वाब कब मुकम्मल ग़ाफ़िल बग़ैर क़ीमत ।

जज़्बा जुनून जुर्रत मेहनत महर महारत,
हैं 'आरज़ू' कहाँ ये क़ामिल बग़ैर क़ीमत ।

-अंजुमन आरज़ू 

विषय कीमत,दाम
विधा काव्य

12 दिसम्बर 2019,गुरुवार

स्नेह समर्पण दया करुणा
भाव भक्ति की कीमत होती।
कुछ पाने के लिये हमें नित
कीमत सदा चुकानी पड़ती।

आत्म सम्मान अति आवश्यक
अनुशासन शिक्षा अति कीमत।
परोपकार डग पर चलता जो
बढ़ती सदा जीवन में कीमत।

कीमत उसकी होती जग में
जो कीमत को नित पहिचाने।
समय कीमती होता जीवन में
हर मानव इसको कँहा जाने?

मानव जीवन अति बहुमूल्य
सुर मुनि संत सदा से तरसे।
काम करोगे दाम मिले नित
सुख शांति जीवन प्रिय बरसे।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

12 /12 /2019
बिषय ,कीमत ,दाम

दिन व दिन बढ़ती बाजारों की कीमत
इंसानों के आचरण व्यवहारों की कीमत
आसमां को छूती सदाचारों की कीमत
रिश्ते नाते रिश्तेदारों की कीमत
परेशान है तो वह आदमी आम
नेताओं आफीसरों के बढ़े हुए दाम
प्यार की बोली जब हो आपसे काम
फिर तो इंसान गधे को भी करें सलाम
जब तक स्वार्थ तब तक मुकाम
स्वार्थ सिद्ध होने पर दूध की मख्खी का काम
उनकी पूछ नहीं जो हैं बेकाम
बड़े बड़े महारथी हो गए बेनाम
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
दिनांक :- 12/12/019
विषय : - कीमत।

याद है आज भी
वह मंजर
जो नासूर बन
ह्रदय में जिंदा है
कटवा कर पंख अपना
जीने को बेबस यह परिंदा है।

देखा था मैंने
अपनों का नरसंहार
लूटीं गई थी माँ- बहनों की स्मिता
बच्चों के सामने बार- बार।

कीमत क्या होती है मुल्क की
मैंने तब यह जाना था
जब न जमीं अपनी
न आसमां अपना था
धर्म के नाम पर न जाने यह
कैसा बटवारा था।

मारे गए मेरे सारे अपने
हम किस्मत वाले थे
जब लौटे स्वदेश अपने
यहाँ भी लगते सब पराये थे,

अपने ही घर में बन शरणार्थी
सालों से घूँट रहे थे
कदर हमें भी है इस देश की
बार - बार यह गुहार लगा रहे थे
पर मिलती थी रूसवाई सभी से
क्योंकि हम शरणार्थी थे।

मिला जो आज सम्मान मुझे
सारे जख्म भर गए
मवाद बन जो बह रहे थे
लगता है अब सूख गए।

स्वरचित : - मुन्नी कामत।

12/12/2019
विषय-कीमत

~~~~~~~~~~

प्रभु की मूर्तियों के मोलभाव होते हैं
मगर ईश चरणों मे चढ़े फूलो की कोई कीमत नहीं..!

दर्पण मोल बिकते हैं बाजारों में
मगर इंसां के अश्रुकण की कोई कीमत नहीं..!

रजत-कंचन के दाम हैं अनमोल
मगर टूटे सपनों की कोई कीमत नहीं..!

ज्ञान भी भरे बाजार बिकता रहा
मगर भावनाओं की कोई कीमत नहीं..!

अमीरों के महल,कीमती सामान
बिक जाते हैं
मगर निर्धन के खून पसीने से उगाए धान्य की कोई कीमत नहीं ..!!

**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
Damyanti Damyanti

विषय_कीमत/ दाम |
जल जंगल की कीमत किसने जानी
घट रहे पल पल कैसे जीयेगा जीव

ये है तो जीवन हे ,इन बिन सब सूना |
मानव जन्म एक तोहफा ईश प्रदत यह बेशकीमती हीरा,चमक इसकी जानो |
बिन सेवा सदगुण सदाचरण हे यह बेकार |
कुर्सी पद के लिऐ मची हे खरीद फरोक्त की बबाल
जिसने कीमत अधिक बस उसीने पाई |
सब वस्तुओ भान छू रहे आसमा
क्या कीमत अदा करे आमजन |
नैतिक सामाजिक मूल्यों की कीमते गिर रही |
मानव बना शैतान हर क्षेत्र मे हो रहा घमासान तहलका मच रहा |
कीमत भक्ति की घट गई बन सब व्यापार देखो इनके नजारे ठाकुर की कीमत लगा रहे |
आज तो बस झलक कीमत की देख रहे हो
अभी तो पूर फिल्म बाकी हे भाई |
जो सज्जन सदकर्मी हे कीमत नही उनकी |
बेईमानी की कीमत करौडो लग गई |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा

2/12/2019
"दाम/कीमत"

1
सुख,आनंद
दाम देके ना मिले
जीवन खिले
2
बेदाम लुटा
प्राकृतिक संपद
स्वार्थी मानव
3
हार ही जीत
प्रेम बेशकीमती
दुनिया रीत
4
परोपकार
अनमोल धन
कीमत गौण
5
कीमती रोटी
समझता गरीब
मिला नसीब
6
कृषक कर्म
बेशकीमती धन
बलिष्ठ तन
7
होठों के द्वार
कीमती है मुस्कान
सौंदर्य शान
8
मानव जान
समय की कीमत
लौटा न कल
9
लज्जा निलाम
हवस के कारण
लहू बेदाम

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।
विषय- कीमत
दिनांक १२-१२-२०१९
तेरे जाने के बाद,तेरी कीमत समझ आई ।
जीते जी वो तेरी,कभी कदर नहीं कर पाई।।

मौत खाई पारकर,तूने उसकी जान बचाई।
वो नादान कुदरत करिश्मा समझ, मुस्काई।।

लगी ठोकर,कीमत उसे तेरी समझ आई।
तब तक दूर तुमने,एक नई दुनिया बसाई।।

देखो उसने नादानी,सजा क्या खूब पाई ।
तुझ से दूर रह,कीमत उसने बड़ी चुकाई।।

भूलकर भी उसने,गलती कभी ना दोहराई ।
तेरी याद में उसने,अपनी जिंदगी बिताई।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक : 12.12.2019
वार : गुरुवार

प्रदत्त विषय : " कीमत / दाम "
विधा : काव्य / गीत

गीत

" दुनिया इक बाज़ार है " !!

सभी काम के दाम खरे हैं ,
दुनिया इक बाज़ार है !
एक हाथ दे , दूजा लेता ,
यह भी कारोबार है !!

नयी नयी नित चीज खरीदें ,
घटती बढ़ती माँग है !
अर्थ यहाँ पर हावी रहता ,
रोज भरे यह स्वांग है !
भीड़ कहीं , मेले जुड़ते हैं ,
मचती रोज गुहार है !!

स्वेद कणों से बदन भींगता ,
यहाँ परिश्रम बिकता है !
दीन हीन कमजोर रहा है ,
सच्चाई पर टिकता है !
देह सजे है , हया बिके है ,
मजबूरी की मार है !!

दाम चाम के , दाम काम के ,
मिले न मरकर दाम हैं !
भटके कस्तूरी मृग पीछे ,
कटती उम्र तमाम है !
जीवन भर हम दाम तौलते ,
यह भी इक व्यापार है !!

स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )

नमन "भावों के मोती"
विषय :- "कीमत /दाम"
दिनांक :- 12/12/2019.

विधा :- "देहा"

1.
भौतिकता, बाज़ार में, बिकती ऊँचे दाम।
नैतिकता की रह गई, कीमत एक छदाम।
2.
सस्ते दाम न बिक सका, कौन खरीदे नेह।
द्वेष, कपट, छल, काम घर, कंचन बरसे मेह।
3
जल जीवन आधार है, इसकी कीमत जान।
जीवन जलबिन जगत में,कुछ पल का महमान।
4.
नारी पूजन योग्य है, काली, कुचित कुरूप।
नारी की कीमत समझ, नारी छाया धूप।
5.
दया धर्म जग से मिटा, नैतिकता नाकाम।
मानवता की रह गई, कीमत एक छदाम।
****************0****************

नमन भावों के मोती .
विषय, कीमत, दाम.
12,12,2019.

गुरुवार.

मँहगाई आसमान को छूने लगी है,
गरीबों की थाली सिकुड़ने लगी है ।

कीमत राशन की बढ़ती जा रही है,
प्याज भी हाथ से फिसलती जा रही है ।

कीमत मेहनत की कम मिल रही है,
लागत गृहस्थी में अधिक हो रही है ।

कीमत शिक्षा की चुकाना मुमकिन नहीं है ,
आज आम आदमी बेदम हुआ जा रहा है।

कीमत इंसानियत की जरूर गिर रही है,
अस्मिता बेटियों की सरेराह मिट रही है।

सस्ता ईमान महँगी मक्कारी हो गई है,
कीमत अब जुंवा की नहीं रह गई है ।

कीमत माँ बाप की घट गई आजकल है ,
मँहगाई रिश्तों पे असर कर रही है ।

क्या अपनी कीमत बढ़ाना लगता सही है,
बढ़े कीमत आदमियत की ये सदी कह रही है।

स्वरचित, मधु शुक्ला .
सतना, मध्यप्रदेश 

12/12/2019
#दाम

होंठो पर लिए मंद मुस्कान
देखो दूर खड़ा कोचवान
सरपट घोड़ा बिन लगाम
सखि, ऐसे भाग रहे दाम

डपटते हैं, कुछ लोग डाँटते है
खुद से वो रस्सी काटते है
घोड़े को किए फखत बदनाम
सखि, ऐसे भाग रहे दाम

बहला, हरे घास के वादों में
संभला था अपने इरादों में
सानी में मगर भूसी तमाम
सखि, ऐसे भाग रहे दाम

घोड़े को रोड़े औ बदहाली है
सेठों की महज खुशहाली है
पौ बारह किए भरे गोदाम
सखि, ऐसे भाग रहे दाम
-©नवल किशोर सिंह
12-12-2019
स्वरचित

12/12/19

जब खुद करने लगा मैं कमाई।
माँ बाप की कीमत समझ आई।

घिसे जूतों की जबदेखी सिलाई।
ब्रांडेड जूतों की कीमत समझ आई।

फटे कपडो की पुनः देखी तुरपाई।
अपनी कमीज की कीमत समझ आई।

टूटी साइकिल ही जीवन भर भाई।
अपनी बाइक की कीमत समझ आई।

खुद चले बसों में धक्के खाकर।
हवाई जहाज की कीमत समझ आई।

सादा भोजन ही मुझको भाएभाई।
हमे हमेशा जवानी की कीमत याद दिलाई।

आज जब बच्चों की देखी पढ़ाई।
सच पापा की असली कीमत याद आई।

स्वरचित
मीना तिवारी

भावों के मोती"
12/12/2019

कीमत/दाम
**********
हुई मुखरित आज मैं
तुमसे
कर बैठी न जाने कैसा
सवाल तुमसे।
बहते रहते हो जो तुम
अनवरत अविरल से
कहाँ से लाये इतनी
सरलता इतनी तरलता
तुम स्वयं में
मैं क्यूँ आज भी बंधी हूँ
कैसे खुली इतनी मन की
गांठे तुमसे
चाह कर भी खोल न पाऊँ
करूँ कितनी भी कोशिश
इन बन्धनों में और उलझती
जाऊँ
ज्यूँ हर सांस जीवन वैसा ही
हर सांस सांस बन्धन
जो तोड़ू बन्धन तो सांस छूटे
सांस छूटे तो जीवन
छूटती सांस समझाए कीमत
जीवन की
कोई दाम न दे पाए
इसकी कीमत
सांस सांस बंधन, बंधन बंधन
जीवन
न कोई दाम न कोई इससे कीमती
समझे इंसान जब
निकल जाए समय मुट्ठी से ।।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर

12/12/19
कीमत

**
कीमत का अंदाज नहीं ..

राजनीति की काली कोठर
अफवाहों का बाजार गर्म
आग लगाते नाम धर्म के!
प्राणों की आहुति से
मिली आजादी का
अब बचा लिहाज नहीं
क्या कीमत का अंदाज नहीं !

जीवनदायिनी प्रकृति से
मिल रही जब मुफ्त हवा
अनर्थ क्यों करते जा रहे
वृक्ष काटते जा रहे
बिकने लगेगी मोल जब
तब करना एतराज़ नहीं
कीमत का अंदाज नहीं ..

कितनी रातें जग कर काटीं
गीले में खुद सो कर वो
सूखे में हमें सुलाती रही
कष्टों में जो
हरदम साथ निभाती रही
बूढ़े हाथों की झुर्री में
लिखी संघर्षों की गाथा!
माँ को कभी करना नाराज नहीं
ममता की कीमत का अंदाज नहीं ...

कड़ी धूप में श्रम करें
राष्ट्र निर्माण में अनमोल
योगदान करें
दो रोटी को क्यों तरसें ये
इनके स्वेद कणों के
सम्मान का क्या रिवाज नहीं
क्या समाज में
इनकी कीमत का अंदाज नहीं ..

मिली हमें अनुपम सौगातें
इन पर हमको नाज बड़ा
चुका नहीं सकते इनकी कीमत
करते रहें सुकाज यहाँ!
हाथ पे हाथ धरे बैठे
आती तुमको क्या लाज नहीं ..
मिला है हमको ये जीवन
क्या इसके कीमत का अंदाज नहीं ...

स्वरचित
अनिता सुधीर
विषय-कीमत/दाम
विधा-छंद मुक्त

दिनांकः 12/12/2019
गुरूवार

कीमत उसकी होती है,
श्रेष्ठ चीज जो होती ।
बेकार जो चीज है,
उसकी कीमत नहीं होती ।।

जिसमें होते गुण सारे,
उसको ही भाव मिलता ।
कौन पूछे गुणहीन को,
उसको भाव नहीं मिलता ।।

माॅग जब बाजार में,
जिसकी जितनी होती ।
वह वस्तु ही सदा यहाँ,
ऊॅचे भाव में बिकती ।।

हो बाजार में बहुतायत,
उसकी कीमत घट जाती ।
सोना,हीरा,चाॅदी भी,
कौड़ियों में बिक जाती ।।

इंसान की कीमत तो,
तब यहाँ पर होती ।
श्रेष्ठ और गुणवान हो,
उसकी ही कीमत होती ।।

यदि अवगुण हो हीरे में,
काॅच समान कीमत होती ।
यदि अवगुण हो मानव में,
दुर्गति उसकी यहाॅ होती ।।

स्वरचित एवं स्वप्रमाणित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर' निर्भय,

2/12/2019
शीर्षक - दाम/कीमत


1-
बिना दाम के,
समीर, अग्नि, जल,
ये अनमोल ।

2-
न कोई दाम,
रिश्तों को दे दो नाम,
खिले जिंदगी ।

3-
बढ़ते दाम,
निर्धन परेशान,
छिना निवाला ।

4-
राष्ट्र कीमत
प्राणों से अनमोल,
फौजी तत्पर ।

5-
ममता माँ की,
लुटाती है सर्वस्व,
बिना दाम की ।

-- नीता अग्रवाल
#स्वरचित

विषय- दाम / कीमत
विधा-मुक्त

दिनांक -12 /12 /19

देह की कीमत पर
समाज की गंदगी समेटती है
सफेदपोश धनवानों की
अंकशायिनी बनती है

समाज सेविका का कभी
कभी नारी कल्याण का
पदक सीने पर टांकती है
महफिल में सजी संवरी मगर
परिचय की मोहताज है वो

कभी कोख में बीज पनप जाये ,बेचारी डर डर कर रहती है
हिम्मत गर दिखा दे कोई तो
जीते जी दफ़न कर दी जाती है

ना जाने कितनी अबलाएं
यूं ही देह की कीमत चुकाती हैं
अधूरे सपनों को पूरा करने या
परिवार की जरुरत की खातिर कुर्बानी का बकरा बनती हैं।

डा. नीलम

दिनांक_१२/१२/२०१९
शीर्षक-कीमत


आकाश न करें अपनी प्रशंशा
देखो उसकी कीमत
हर मंहगी चीज की तुलना
उससे करें हम निरंतर।

जिस ऊँचाई को छुआ उसने
बिना किये अभिमान
थोड़ा पद पाकर हम
करें क्यों अभिमान?

अभिमानी का होता सिर नीचा
कीमत चुकाये भारी
रावण ने चुकाई कीमत
खोकर प्रतिष्ठा सारी।

हर एक को चुकाना पड़ता
अपने कर्मो का फल
इसे रखे याद सदा
तभी सफल हो जीवन।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
कीमत/दाम

घटती जा रही है
कीमत इन्सान की
पैसा होता जा रहा है
बाप इन्सान का
बढते जा रहे है
बे-ईमान इन्सान
समाज में
दरिन्दों की फौज है और
इन्सानियत आज मजबूर है

होते थे घर खपरैल के
बैठते थे चौपाल में
होती थी बात में दम
दाम नहीँ लगाते थे
बात की

माँ बाप मजबूर हैं
स्वार्थी बच्चे साथ हैं
है कीमत तब तक ही
जब तलक मतलब साथ है

बढ़ गयी है कीमत
भगवान की
लेता मंहगे टिकिट
इन्सान जब
देते दर्शन भगवान तब

हो कीमत
इन्सानियत की
मानवता की
भाईचारे की
होगी भलाई तब ही
समाज की

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
विषय- कीमत/ दाम
हर चीज इस दुनिया के बाजार में

बेची और खरीदी जा सकती है।
बस कीमत अदा करने की
हैसीयत होनी चाहिए।
जज्बातों की नहीं कोई कीमत यहां
यह तो है दिलों की अनमोल दास्तां
कदर इसकी करने के लिए बस
सीने में एक दिल सलोना चाहिए।
बेटी की शादी अगर करनी हो तो
बाप की जेब रूपए से भरी हो
दामाद को खरीदने की हिम्मत होनी चाहिए।
गरीब मां-बाप की देख मजबूरी
अमीरों को इसतरह फायदा उठाना चाहिए।
दाम देकर निसंतान दम्पत्तियों को
बच्चा उनसे खरीद लाना चाहिए।
बुड्ढ़े बाप का निर्थन,बेबश लड़की से
या फिर ब्याह रचाना चाहिए।

स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
12-12-2019
विषय:- क़ीमत / दाम
वि
धा :-कुण्डलिया छंद

(१)
पहला पग ही हो गलत , पड़े चुकाना दाम ।
उम्र निकल जाती समझ ा् , मिले नहीं आराम ।।
मिले नहीं आराम , चैन मन का छिन जाता ।
लो कितना पछताय , समय वापिस ना आता ।
दिल में होते घाव , सदा रहता वह दहला ।
उम्र चुकाती दाम , गलत पग जो हो पहला ।।

(२)
क़ीमत ऊँची प्रेम की , तन मन देता दाम ।
रात दिवस आँसू बहें , चित्त नहीं विश्राम ।।
चित्त नहीं विश्राम , प्रेम में डूबा रहता ।
रहे प्रेम की प्यास , नीर अँखियाँ से बहता ।
ये वस्तु अति अमोल , पाय विरला ही नेमत ।
मिल जाय बिन दाम , नहीं होती है क़ीमत ।।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा
12 दिसम्बर 2019

कीमत !
सिर्फ पैसा नहीं
मान है
सम्मान भी
प्यार की कीमत
न समझा जमाना
आज तक
मान की कीमत हम खुद
नही जानते
देश ,अपना देश
बहुत जरूरी जिसका
सम्मान
पर
एक देश द्रोही नहीं जानता
देश प्रेम को
एक नेता अपना
पद तौलता धन से
स्वार्थ से।

आज की नई
पीढी
ममता का मूल्य
नहीं जानती
तभी तो
रच गये, भर गये
बृद्धा आश्रम
एक औरत?
नहीं जानती
औलाद की कीमत
फेंकती नव कोपलों
को नाले, सडक पर
नारी अस्मत का दाम
बलात्कार कर फेक
देता एक पुरुष
लोग कहते
जिंदगी अनमोल है
पर
रोज कत्ल होते
सांस के लिये पेड़
कीमती है
प्रति पल चोरी से कट रहे
लोक मत है
ईमान कीमती है
पर रोज
खरीदा जाता
राजनीति के बाजार में
सस्ती है तो भगवान की मूरत
हर दाम मे मिलती है
पर बिश्वास
अनमोल है
और जवान
अरे ! कोई कीमत नहीं
तो क्या कहे
अपनी अपनी नजर है
अपनी अपनी जरूरत
तो बैठी है कीमत

कीमत अभाव है
जो भरता नहीं
एक नासूर मन का
भरता ही नहीं
एक बात है
सबसे कीमती है भूख
हा भूख
सब पर भारी है
क्या करे शैल
किसकी कीमत बताये ?
*******सरला सिंह शैल कृति
मौलिक

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"अंदाज"05मई2020

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