Tuesday, December 3

" रश्मि, किरण"03दिसम्बर 2019

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ब्लॉग संख्या :-584
भावों के मोती
विषय-रश्मि/किरण

______________
ढल गई रात अंधेरी
भोर ने ली अंगड़ाई
कोमल धूप का स्पर्श पा
धरती देखो खिलखिलाई
चहक उठे शाखों पे पंछी
प्रकृति भी लगी झूमने
चली पवन अम्बर को चूमने
शर्माया अम्बर हो लाल
अंशुमाली ने पहनाया
प्रकृति को सुनहरा सुंदर
रश्मियों का गले हार
खिली गुनगुनी धूप सुहानी
कलियों को स्पर्श किया
मुस्काती कलियों ने
फूल बन धूप से प्रेम किया
भोर की किरणों ने
धरती का श्रृंगार किया
वृक्षों की शाखाएं पर
चहकती चिड़ियों का शोर
जागो उठो हो गई भोर
अंशुमाली ले आया सबेरा
***अनुराधा चौहान*** स्वरचित

रश्मि/किरण

🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺
(1)
दे
रश्मि
जीवन
खिले तन
ऊर्जा वर्षण
प्राण संचरण
आशा का प्रस्फुटन

(2)
यूँ
धरा
आँगन
आशा आई
निराशा गई
भोर अँगड़ाई
किरण मुस्कुराई
🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺
सेदोका (5/7/7/5/7/7)

उतरी रश्मि
रवि का हाथ थामे
भोर के प्रांगण में
महकी धरा
प्राणों में भरा ओज
खिल उठा सरोज

स्वरचित
ऋतुराज दवे,राजसमंद(राज.)

शीर्षक-- किरण / रश्मि

इक किरण आस की जगी है

जिस पर ये निगाह टिकी है ।।
जी लूँगा उसके सहारे
अभी घुप्प अँधेरी बढ़ी है ।।

वहाँ रश्मियों का डेरा है
यहाँ घुप्प अँधेरा घेरा है ।।
वो चाँद मुस्कुरा रहा है
ये मुस्कुराहट सबेरा है ।।

चाँद मुझे पहचाना है
ये उसी का तराना है ।।
तारे तो बना ही लेगा
दोस्ताना निभाना है ।।

अगर अँधेरे छाये हैं
तो क्यों 'शिवम' घबराये हैं ।।
चाँद तारों से दोस्ताने
अँधेरों ने कराये हैं ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 03/11/2019

03/12/2019
"रश्मि/किरण"

1
है
ऊर्जा
सुरक्षा
विकिरण
सूर्य किरण
धरती जीवन
सहायक सृजन।
2
तू
चल
सुपथ
कर्म तप
ईमान संग
हौसला बुलंद
लेके आशा किरण।।

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।।
विषय, रश्मि, किरण
मंगलवार,

3,12,2019,

पहली सूर्य किरण जगमगाई नभ में,
आशा का संचार हुआ।

हँसकर पंछी बोले सुप्रभात,
नील गगन गुलनार हुआ ।

फैलीं घंटे की ध्वनियाँ मंदिर से,
आगमन घर में पेपर का हुआ।

कर्मपथ पर चल पड़े राही ,
ज्ञान दीप शिक्षण संस्थानों में जला ।

आशा की किरण झिलमिलाई हर मन में,
नई सुबह का सूत्रपात हुआ।

स्वरचित, मधु शुक्ला .
सतना, मध्यप्रदेश.

तिथि -3/12/2019/मंगलवार
विषय _*रश्मि/ किरण*

विधा॒॒॒ _छंदमुक्त

ऊषा किरण
भोर हुई दल्हन
आऐ मकरंद महक
पुलकित हुआ मन।
हमारा यही दर्शन
किरण आकर्षण
क्यों न हों प्रफुल्लित
अंग अंग रोमांचित हो
रश्मि प्रेम प्रदर्शन।
विस्मित विश्व
बढता विश्वास
ईश चमत्कार
प्यार दुलार
दुल्हन श्रंगार
करें किरण मनुहार
पधारो कभी तो
जल्दी बहुत जल्दी
हमारे घर द्वार।
चाहते तुम्हें सब
और तुम्हारा प्रेमोदगार
प्रेम उपहार
मिले कहीं ज्ञान रश्मि
चमके हमारा भाल
सजनिया कभी तो बनेंगी
हमारी मीत
हगी यहां किसी
सोऐ हुऐ अस्तित्व की जीत।
संसार में छटा निखरेगी
जब अपनी रवि
सुखद किरण बिखरेगी
एक सौम्य मुस्कान लिऐ
हृदय से खिलखिलाऐगी।
हमारी सोई
कुछ खोई सी
जिंदगी मुस्कुराऐंगी
तभी सही हमारे घर
रौशनी किरण आऐगी।

स्वरचितःः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
जय श्रीराम रामजी

*रश्मि /किरण* छंदमुक्त
3/12/2019/मंगलवार

दिनांक-03/12/2019
विषय- रश्मि/ किरणें


दमक उठी निशा चाँदनी के आने से......

फैल रही है नई ताजगी
नये रश्मियों के आने से।
बहने लगी मस्त बयारे
नील गगन के तराने से।
घूम रही हैं निशा की परियां
मंद हवा के तराने मे।

प्यारी सी मुस्कान है लेने लगी
किरणे महताब के स्रोतों से।
मोती जैसा चमक रहा
चाँद के अग्रभाग का प्यारा प्याला।
फिर जग में फैल रहा
स्वेद रंग का उजाला।
शून्य गगन में कोलाहल कर
आगे बढ़ता चकोरो का दल।
निशा के स्वागत को
सहसा महक उठा है हंसो का दल।

ये मदमस्त नजारा लगता है
निशा के अभ्योदय का।
तब धरा से नाता जुड़ता
स्वर्णिम सतरंगी डोरो का।
खेलने लगी निशा की किरणें
जल की चंचल लहरों से।
धरती सजने लगी
इंद्रधनुष के सतरंगी रंगों से।
इसे देखकर चमक उठे
हंसो के दल प्यारे।
सतरंगी सूर्य स्यंदन चमक रहे
नदियों के किनारे।
एक नन्ही कली भी
बाट देख रही है मेघो की।
मन उद्वेलित होता मधुरस
चंचल रातों के यादों की।

स्वर्णिम किरणें खेलने लगती
मस्त पहाड़ों पे।
और कोयल कूकने लगती भोर के के आने से।

स्वरचित .....
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज

दिनांक - 3/12/019
विषय - रश्मि, किरण


तेरा आगमन लाडो
आशा की किरण बन आई है,
किलकारियाँ तेरी हमें
बार - बार गुदगुदीयी है।

तुम सूर्य की प्रथम रश्मि बन
इस धरा पर हो आई
चिरने हर अंधकार को
अलौकिक प्रकाश हो लाई।

पर घबरा क्यों रही हो बेटी
इस धुमिल परछाई से
छट जाएगी अब यह भी देखना
एकता की आंधी से।

करे यह भ्रमित कितना भी
तुम अडिग रहना
शक्ति न अपना करना खण्डित
तुम निर्भय, निडर रहना।

हाँ बढ़ रहा हैवानियत यहाँ
अब ये झुण्डों में करता वार है
बनना होगा तुम्हें माँ दुर्गा-काली
जो दानवों का किया संहार है।

नोच लेना उस नजर को
जिसने तुम्हें निहारा था
उखाड़ देना उस हाथ को
जो तेरे अस्मिता तक पहूँचा था।

अब न्याय हम माँएं स्वयं करेंगे
दफनाएंगे ऐसे कपुत को जो
शूल बन समाज में चुभेंगे।

ना जले फिर कोई बेटी
ऐसी कलंकित गर्भ को कुचलेंगे
जब- जब पनपेगा ऐसा बबूल
अंकुरित होते ही मसलेंगे।

स्वरचित : - मुन्नी कामत


दिनांक 03/12/2019
विधा: पिरामिड

विषय:किरण/रश्मि

है
रश्मि
प्रबल
उज्जवल
चली निर्मल
मलिन बादल
आज हुई धूमिल ।

दे
मोद
शरद
सूर्य रश्मि
पोषण तन
औषधि प्रकृति
बगिया पुलकित

वो
सूर्य
किरण
ऊर्जावान
हो प्रकीर्णन
भेद मधुबन
आलिंगन अवनी ।

स्वरचित

नीलम श्रीवास्तव

3 /12/ 2019
बिषय, भोर की किरण ने डाल दिया डेरा

सुनहरी रश्मि से दूर हुआ अंधेरा
ओस की बूंदें मोती सी चमकती
आंगन में चिड़ियां चहक चहक फुदकती
कानों में रस घोलती कोयलिया काली
मधुर स्वर गाती बैठ अमुवा की डाली
सुबह की बेला गाँवों में सुहावनी
चहुँ दिश छिटक रही धूप मन भावनी
बछड़ों को देख गाय जब रंभाती
दूध पिलाने को आतुर हमको समझाती
कर कलेवा कृषक चले खेतन की ओर
किरणों को देख देख उल्लासित मन मोर
स्वरचित,, सुषमा, ब्यौहार
विषय-किरण/रश्मि
विधा विधा-मुक्तक

दिनांकः 3/12/2019
मंगलवार

(1)
तुम आज किरण बन आई हो,धरती रौशन हो जायेगी ।
चमक उठेंगे सब घर आॅगन,चारों ओर रौशनी छायेगी ।।
तुम चिंता न करो इस धुंध की,छंट जायेगी यह तो अभी ।
बस अब कुछ समय की बात है,ये यहाँ वहाँ छुप जायेगी ।।

(2)
तुझे अपनी शक्ति पता नहीं,अब तू क्या क्या कर सकती है
जब टूट पडो इन दुष्टों पर,कहाँ इनकी शक्ति चलती है ।।
शैतानों को सबक सिखाने तुम अब यहाँ धरा पर आई हो।
फिर डरना यहाँ किस बात से,खुद मौत सदा घबराई है ।।

(3)
जब तुम दुर्गा तुम चंडी हो,यहाँ कभी किसी से कम नहीं ।
क्या नपुसंक तुम से भिड़ेंगे,इनकी इतनी औकात नहीं ।।
तू अभी पल में कुचल दे ,इन सभी को पानी पिला दे ।
ये उठकर तुम को जवाब दें,कभी इनमें इतना दम नहीं ।।

(4)
जागो पहचानों अपना बल,तुम दुष्टों को सबक सिखा दो।
यहाँ अबला कोमल मत रहो,अपनी नारी शक्ति दिखादो ।।
यहाँ तुम ही आशा किरण हो,यहाँ न्याय तम्हें ही करना ।
तमाशबीन सभी बने हुये,कुछ इनको भी बात बताओ ।।

स्वरचित एवं स्वप्रमाणित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर' निर्भय,


शीर्षक- किरण

आशा की एक किरण ही काफी है
निराशा के गहन अन्धकार के लिए।

राह नई दिखलाती है, यही किरण।
मन का दीप जलाती है, यही किरण।
जीना हमें सिखलाती है, यही किरण।

ठोकर खाके गिरते हैं,सम्हल जाते हैं।
वक्त की मार खाकर भी मुस्कुराते हैं।
गैरों से भी प्यार करना सीख जाते हैं।

हमें अपनों से मिलाती है, यही किरण।
रूठों को फिर से मनाती हैं,यही किरण।
मंजिल तक पहुंचाती है, यही कीरण।

स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर

3/12/2019
विषय-रश्मि

"""""""""""""""""""""""

ढलते सूरज की रश्मियां
लहरों में डूब
दिवस से विदा ले रही हैं
साँझ की लालिमा
निशा को बुलावा दे रही है

धरा के प्रांगण में उदित भास्कर को
दिनभर की थकन से विश्रांति पाने की अदम्य इच्छा हो रही है

रक्तिम वदन लिए रवि-रश्मि अरुण रथ पर सवार हो
सिंधु में विलीन होने को आतुर
दिख रही हैं

अलसाई सी सुबह पुनः
अंगड़ाई लेकर उठती है
सूरज की रेशमी रश्मियाँ
अनमनी सी धरा पर उतर रहीं हैं

प्रकृति तटस्थ हो कर
बस अपना दायित्व निभा रही है
जीवन दायिनी प्रकृति
निःशब्द निज कार्य कर रही है।।

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित

दिनांक-3.12.19
शीर्षक-किरण/रश्मि

विधा --दोहा

1.
सूर्य रश्मि में है भरा, ऊष्मा और प्रकाश ।
किरण किरण में तेज है ,भरे सतत उल्लास।।
2.
सूर्य किरण से चंद्र भी, पाता शुभ्र प्रकाश ।
श्वेत चांदनी बिखरती, पूनम दिन हो खास ।।
3.
दीप रश्मि से ये धरा,दीवाली मुस्काय।
घर घर में उजियार हो, रोशन पथ हो जाय ।।
4.
सूर्य,चंद्र जब द्वय न हों,देता शुक्र प्रकाश ।
तारा,उपग्रह,ग्रह की, रश्मियों की उजास ।।

******स्वरचित ******
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र.)451551

"भावों के मोती"
3/12/2019

विषय-
रश्मि/किरण
*************
जब मैं तुम्हें सोचती हुँ न
मन मे लफ़्ज़ों के जखीरे
चलते हैं, उनमे से कुछ
सुनहरे तो कुछ सफेद
तुम से दूध से धुले, मन
स्पर्श करते हुए तुम तक
पहुँच जाते हैं ।

एक हाथ बढ़ता है इन
लफ़्ज़ों को स्पर्श कर
जैसे मुझे छू रहा हो
मैं भी तुम्हें स्पर्श करना
चाहती हूँ तुम फिर अदृश्य
हो जाते हो ।

मैं फिर चल पड़ती हूँ
उस जखीरे के साथ
तुम रश्मि पुंज बन
बिखर जाते हो मुझ
पर मैं भर जाती हूँ
तुम्हारी सुनहरी हल्की
गर्माहट भरी किरणों से ।

उन किरणों से ले नई
ऊष्मा मैं समेटती हूँ
खुद को नया सा महसूस
करती हूँ ।

तुम्हारे साथ लफ़्ज़ों के
ज़खीरे से निकाल कुछ
शब्दों से लिखती हूं
अपने अहसासों
को ।

,कुछ पता नही
बस एक अहसास है
मेरे ईश्वर मुझमें
तुम्हारे होने या तुम्हारे
स्पर्श का जो मेरे इंसा
होने का सबूत है ।।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर

नमन मंच
शीर्षक-- किरण / रश्मि


दस्तक किरणों ने जब से दी है
आशियाने में हँसी खुशी है ।।
देखूँ निशा की दिशा को
किस ओर को वो राह मुड़ी है ।।

सोचूँ मैं वो सतह बन जाऊँ
किरणों को परावर्त कराऊँ ।।
पर जुगनुओं की न कदर यहाँ
रोशनी भी इतनी कर पाऊँ ।।

दिये की रश्मियों में हँसा हूँ
साल न दो साल वर्षों गसा हूँ ।।
जाना हूँ वो अँधेरे 'शिवम'
जुगनू का भी भक्त बना हूँ ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 03/11/2019

किरण

नयी उम्मीदें
नयी ऊर्जा
ले कर आई
नव प्रभात
किरण

सूर्य देव का
है उपहार
किरणें
फैला चहुंओर
उजियारा
हैं विटामिन डी
से भरपूर
किरणें
उठाये लाभ
हर इन्सान

करो नमन
ईश देव को
बड़े बुजुर्गों को
लो आशीर्वाद
रहो खुश
करो उन्नति
जीवन में

करो
मान सम्मान
किरणों का
ये हैं अदभुत
उपहार
ईश्वर का

चले
किरण संग
जीवन में
बनाये
सुखमय
जीवन अपना

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

03/12/19
रश्मि/किरण


फाल्स सीलिंग का जमाना है
रोशनदान अब बेगाना है ।
इससे परे अब दूर का
आसमान नहीं दिखता ।
सुनहरी सूर्य किरणों को
आने का रस्ता नहीं मिलता।
रोशनदान बन रहे कम
घौसले भी हो रहे कम ।
चिड़ियों का मधुर संगीत
अब सुनाई नहीं पड़ता ,
तिनका तिनका जोड़ने का
संघर्ष दिखाई नही पड़ता ।
नीची छतों में कैद हो गए
मन के झरोखे बंद हो गए ।
मन यायावर भटकता
इन्हीं बंद कमरों और दीवारों में
धूल जमी है बरसों से
रिश्तों मे सीलन अरसे से ।
सामाजिक परिदृश्य त्रास से
धुंधलाता जा रहा
रिश्तों की धरातल पर
स्वार्थ का कोहरा छा रहा
संबंधों की कम हो रही उष्णता
अविश्वास द्वेष की बढ़ रही आद्रता
संवाद अब हो रहे नगण्य
सब अपनी दुनिया में मगन ।
दूर से देखने पर सब धुंधला है
संवाद से दृश्यता बढ़ती जायेगी।
बातचीत की किरणों को रस्ता दो
जीवन को नया आयाम देने
मन का रोशनदान खुला रखो ।

स्वरचित
अनिता सुधीर
विषय -किरण
दिनांक ३-१२-२०१९
सुबह की किरण ने,जग को प्रकाशित कर दिया।
अंधियारा हरण कर,जन हृदय खुशी भर दिया।।

चिड़िया चहकी गाय रंभाई,मन उल्लास भर दिया।
गाँव का जीवन देखो,स्वर्ग एहसास करा दिया।।

सूर्य प्रत्येक किरण,कण-कण माटी महका दिया।
दिनभर सुनहरी धूप ने,धान को जीवन दिया।।

प्रकृति विहंगम दृश्य, मुझे अचंभित कर दिया।
शीत ऋतु के आगमन का, एहसास कर लिया।।

कवि कल्पना ने,मन किरण कागज उतार दिया।
सूर्य की किरणों को,ऐसे अभिव्यक्त कर दिया।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली
विषय : रश्मि/किरण
विधा: छंद मुक्त

दिनांक 03/12/2019

आकाश सिंहासन चन्दा दरबार,
रात्रि तारे कर रहे जय जयकार।
चाँदनी दूधिया रोशनी पारावार,
सोलह कलाएँ फैला रही अपार

सप्त घोड़ों के रथ पर हो सवार,
सूरज देव निकले भ्रमण संसार।
रत्न स्वर्णमय किरीट शीश धार,
किरणें रश्मियाँ फैला रहे अपार।

पर्वतों से बहते झरने अमृतधारा,
सरोवर खिले कमल पुष्प न्यारा।
हिमकण "भावों के मोती" प्यारा
किसान खेत हल जोतने निसरा।

तम मिटा धरा आया नया सवेरा,
पक्षी करते कलरव छोड़ा बसेरा।
आशा की किरणों ने डाला डेरा,
'रिखब' हस्त पुण्य दाना बिखेरा।

स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित @
रिखब चन्द राँका 'कल्पेश'
जयपुर ।

विषय :-"रश्मि /किरण"
दिनांक :- 03/12/2019.

विधा " छन्द मुक्त काव्य"
"आह्वान"
----------
कैसा है ये समय आज ये जड़ता और घनघोर तिमिर का।
अस्त व्यस्त हैचलनआज क्यूं नगर गांव काऔर शहर का।
चिंता की बदली घिर आई, गांव शहर सुनसान हुए हैं।
चंद लोग ही क्यूं भारत में, कलयुग के भगवान हुए हैं।
जगह-जगह मानवता तड़पी गांव गांव तक त्रस्त हुआ।
ऐसा लगता मानवता का, मानो सूरज अस्त हुआ।
क्यों आज युवकों के दिल से निश्चय का सूरज अस्त हुआ।
क्यों द्वेष आग से भारत का, मुस्काता 'पंकज' पस्त हुआ।
दर्शक बनकर देख रहे, हो कैसे? इन घटनाओं को।
बच्चे अनाथ माँ पुत्र हीन विधवा होती अबलाओं को।
कैसे भूले हिमआंगन में,उठी दिव्य ज्ञान' की प्रथम किरण।
उज्जवलसंस्कृति भारतकी दुनिया झुककर छूतीथी चरण।
यद्यपि समय है कठिन क्रूर और मुख विपदाओं का फैला।
कर्मवीर बन, करो 'सत्कर्म,' तुम दिव्य रोशनी दो फैला।
क्यों अपनी नीति भूल गए, जो मित्र भाव औ' समता की।
तज भेदभाव, अब करो प्रतिष्ठा, भारत मां की ममता की।
मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारे, सब के सब महान।
ना रहें मूक, बहरे अब ये, उठने दो मीठी मधुर तान।
अमृतवाणी' से तृप्त करो, ना रहे कोई जन अब प्यासा।
यह देश टिका है तुम पर ही तुम हो इसके कल की आशा।
जाति भेद, सांप्रदायिकता की, कृत्या का कर दो विनाश।
'भ्रातृ प्रेम' के दीप जलें, अब आंख ना कोई हो उदास।
आपसकी फूटबुरी जगमें, जिससे सदियों हम रहे गुलाम।
'स्वराज मणि' को पाकर बोलो, किसने पाया है विश्राम।
मेरे भारत के वीर सपूतो तथ्य हृदय में एक बिठा लो।
सामाजिक भाईचारे से, देश बचेगा इसे बचा लो।
'स्वर्ण-रश्मि' फिर प्रभाकर की खेलेंगी भारत-भू पर।
'किरणें' लहर-लहर सागर पर, चरण पखारेंगी छू कर।
दिन :- मंगलवार
दिनांक :- 03/12/2019

शीर्षक :- रश्मि/किरण

नैराश्य को भेदती..
नवप्रभाती रश्मि..
विराम देती..
चिर चिंतन को..
खिलाती सरोज आशा के
मन सरोवर में..
बन उत्साह..
करती नव संचार..
निराश मन में..
करती शांत..
उद्वेलित मन को..
नवप्रभाती रश्मि..
रत्नमणि सी दमकती..
बूंद भी शबनमी..
पाकर सँग..
नवप्रभाती रश्मि का..
क्षण भर ही सही..
जी लेती हसीं जिंदगी..
कली-कली मुस्काती..
खिलखिलाकर..
सँग पाकर..
नवप्रभाती रश्मि का..
प्रकृति करती सहर्ष..
अभिनंदन..
नवप्रभाती रश्मि का..

स्वरचित :- राठौड़ मुकेश

**************************************
3/12/19
विषय किरणे


सूरज की किरणें बिखर गई
तम की हस्ती भी मिट गई

किरणों की लाली छाने लगी
सूरज की फैली स्वर्णिम आभा

चहु औऱ फैल गई सुगंधित हवा
खिल उठी हरियाली औऱ धरा

मन की आसाये मुदित हुई
तन की भी शिथिलता दूर हुई

ये लंबी डगर भी पास हुई
मन मीत की आस भी साथ हुई

विषय रश्मि/किरन
विधा कविता

दिनाँक 3.12.2019
दिन मंगलवार

रश्मि/किरन
💘💘💘💘💘

सुबह सुबह सूरज किरन
जब उतरती है छन छन
प्रफुल्लित कर देती है मन
स्फूरित हो जाता है तन।

और जब कोई आस किरन
दिखलाती उजला दर्पन
खुशियों के नुपुर बजते खन खन
गीतमय हो जाते बोझिल क्षण।

रश्मि का झिलमिलाना ज़रुरी है
इसके बिना जि़न्दगी अधूरी है
रश्मि जीवन की पहचान है
रश्मि प्रगति की मुस्कान है।

काल से कब कोई बचता है
प्राण किरन से मानव सजता है
किरन की होती रहे जगमग जगमग
निराशा में नहीं थकें कभी भी दृग।

स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त

दिनांक_३/१२/२०१९
शीर्षक_किरण/रश्मि


सूर्य रश्मि उतर आई धरा पर
खिले कमल सरोज
गुलाब खिल उठे बगीया में
देखो सुहानी, हो गई भोर।

चलो आराधना करें प्रभु की
भक्तों में बने सिरमौर
जोश भर लें कर्म में अपना
पराक्रम करें पुरजोर।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव

दिनांक - 3/12/2019
विषय - रश्मि/किरण

विधा -छंद मुक्त

प्राची में जब होने लगी हलचल
अरुण आभा आकर बिखर गई
सूरज ने भी अपनी आँखे खोली
दिव्य रश्मियाँ प्रस्फुटित हो गई ।

ऊँचे-ऊँचे शैल शिखर प्रकट हो गए
बर्फ की चादर शनै शनै हटने लगी
हरे -भरे तरुओं की शाखाओं पर
स्वर्णिम किरणें छटा बिखराने लगी

जनजीवन में शुरु हो गई दिनचर्या
कुछ नागरी पनघट पर जाने लगी
कृषक जा पहुँचे खेतों में अपने
फसल मंद मंद मुसकाने लगी ।

नन्हे नन्हे वे बालक नींद से जागे
स्कूल जाने की चिंता सताने लगी
माता जी ने तैयार किया नाश्ता
सूरत मैडम की याद आने लगी ।

संतोष कुमारी ‘ संप्रीति
स्वरचित एवं मौलिक


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