Sunday, December 8

" विवाह /परिणय"05दिसम्बर 2019

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ब्लॉग संख्या :-586
05/12/2019
🌹"विवाह/परिणय"🌹
1

शुभ विवाह
दो दिलों का मिलन...
सात जनम
2
विवाह बंध
तन,मन,धन का..
पूर्ण अर्पण
3
शुभ उत्सव..
पुत्र,पुत्री विवाह..
घर आँगन
4
सात फेरों से
वैवाहिक संबंध
पूर्ण जीवन
5
ईश का लिखा..
जन्म,मृत्यु, विवाह
कभी न रुका
6
मंगल सूत्र...
नारी का है सौभाग्य
विवाह चिन्ह
7
विवाह बंध
जन्म-जन्मांतर का..
प्रीत मिलन

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
"भावों के मोती"
5/12/2019

विवाह/परिणय
*************
विवाह अनमोल बंधन
निभाना हो जैसे
एक अनुबन्ध ।

होता जीवन के एक
सत्र का अंत तो
नये सत्र का प्रारंभ ।

अपने अपनों को छोड़
साथ कुछ और अपनों
को शामिल कर जीवन
का जोड़ ।

है संगम जिसमें बसे
प्यार की सुगंध
नेह भरे दिल का
दिल से हो सम्बन्ध ।

दो दिल जो थे कभी
दो धागों के दो छोर
दोनों में होता अब
प्यारा सा गठबन्धन ।

एक इबारत
प्रेम गीत महक सन्दल सी , कभी
मुस्कुराती तो कभी
गुनगुनाते -गुनगुनाते
रुलाती ।

थाम हाथ एक दूजे का
साथ -साथ ज्यूँ नदिया
जीवन धारा में नाव
बहती जाती ।

अटूट विश्वास की डोर
से बंध दाम्पत्य जीवन
एक -दूजे को न बिखरने
व समेट रखने की
सन्धि ।।।

स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर

आत्म मिलन,
दो दिलों का बंधन,
विवाह फेरे।


विवाह एक,
सामाजिक बंधन,
हिन्दू संस्कृति।।२।।

विवाह फेरे,
वैदिक संस्कृति का,
धर्म विधा न।।

नर औनारी,
गृहस्थ जीवन का,
प्रवेश द्वार।३।।

विवाह एक,
मर्यादित जीवन,
जीवन कला।।४।।

स्वरचित देवेन्द्र नारायण दास बसनाछ ग साधना कुटीर

विषय, विवाह / परिणय
गुरुवार

5,12,2019.

जीवन को पूर्ण बनाये विवाह,
खुशियों के दीप जलाये विवाह।

मिलन दो परिवारों का कराये विवाह,
हम सब को सामंजस्य सिखलाये विवाह।

ज्यों-ज्यों दानव लालच का पुष्ट हुआ ,
पुलिंदा शिकायतों का ले आया विवाह ।

बहू बेटी के मायने जब से अलग हुए ,
अत्याचार के अखाड़े बन गए विवाह ।

जहाँ समर्पण संग सुखद एहसास रहे,
वहाँ पर आज अहं का लावा दहक रहा ।

भारतीय संस्कृति की स्मृतियों में आज,
खोखले चना सा बज रहा विवाह ।

हो न देर संभल जायें हम अच्छा है,
अपने संस्कारों को बचायें तो अच्छा है।

नर नारी दोनों ही सृष्टि के कारक हैं,
हम भेदभाव को नकारें तो अच्छा है ।

स्वरचित, मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .

तिथि-5/12/2019/गुरुवार
विषय _*परिणय/विवाह*

विधा॒॒॒ _काव्य

विवाह संस्कार दो दिलों का बंधन।
परिणय संस्कार एक पावन बंधन।
हिंदू संस्कृति का सर्वोच्च पर्व सम
दो परिवारों का परस्पर अभिनंदन

पता नहीं कौन बनाऐं अद्भुत रीति
अपरिचित घर में बेटी का पहुंचना।
सुंदर संस्कारों की सुखद परिणति
हमारी संस्कृति है विकट विवेचना।

दूसरे घरों को आबाद करती बेटियां।
मनहूस घर खुशहाल बनाती बेटियां।
छोड अपने माता पिता का घर देखो
कैसे विव्हल ससुराल जाती बेटियां।

गृहस्थी दो पहियों की परियोजना।
यह भारतीय संस्कृति की व्यंजना।
आज इसका महत्व नहीं समझ रहे
इसे चलाना भी चमत्कारी उपासना।

स्वरचितःः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
जय श्री राम रामजी

2भा *परिणय/विवाह*/काव्य
5/12/2019/गुरुवार

शीर्षक-- विवाह / परिणय

गाँव में रामदीन का बेटा
तीस साल के बाद भी बैठा ।।
क्या करे वो रोजगार नही
मँहगाई ने उसे लपेटा ।।

मँहगाई अब ये डस रही
कितनों कि दुनिया न बस रही ।।
कोई कसूर नही उसका
फिर भी दुनिया ये हँस रही ।।

होता अगर लफंगा वो
करता घर से दंगा वो ।।
ले जाता कोई भगा के
किया नही कोई पंगा वो ।।

बेकसूर आज मर रहे
बुरे हाल से गुजर रहे ।।
परिणय सूत्र में क्या बँधें
विवाह से 'शिवम' डर रहे ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 05/12/2019

Damyanti Damyanti 
विषय_विवाह/परिणय|
है सोलह संस्कारों मे एक संस्कार |
एक सामाजिक सुन्दर बंधन विवाह|

मात्र दो दिलो का ही नही दो परिवारो का मिलन |
अनजान दो तन एक आत्मा का मिलन |
थी सोच भाव सुदंर विवाह के |
बदलते परिवेश मे बदली सोच |
अब बंधते अधिकांक्ष परियण सूत्र मे |
अपनी मर्जी से न्यायालय मे |
सफलतम होते थे ,आज सफल वही होते विवाह |
बधंते अग्नि के समक्ष परिणय बंधन मे |
धन लिप्सा ने ली करवट ,मांगे दहेज |
कैसी ये सोच टटते परिवार बडती कटुता |
जब सचाई से होता मिलन दो दिलो का |
बनता सुखद सुन्दर परिवार विवाह से |
हंसते मुसकराते सभी जन फलतो पफूलते परिवार |
एक सुखद एहसास हे ये बधंन |
पवित्र बंधन स्नेह ,ममत्व डोर से बधांबधंन |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा

मन मंच भावों के मोती
5/12/2019
बिषय,, विवाह/परिणय

विवाहोत्सव का मौसम कहीं परिणय कहीं सगाई
कहीं रश्मअदायगी तो कहीं अश्रुपूरित बिदाई
कहीं खुशियां कहीं माहौल है गमगीन
कहीं खुशियों के नगाड़े कहीं अलविदा संगीन
किसी के गृह लक्ष्मी आई किसी का हुआ सूना आंगन
हृदय के टुकड़े को सौंप भीग रहे अश्रु नयन
बिधाता की रचना है अनोखा ए बंधन
बाबुल की देहरी से निकल कर समर्पित तन मन धन
अत्यंत पवित्र नाता जिसको कहते विवाह
एक दूसरे के हो करते जीवन भर निर्वाह
परिणय की शुभ बेला में याद रखें वचन वो सात
सुखमय आनंदित जिंदगी पर कभी न होगा कुठाराघात
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार

दिनांक - 05 - 12 - 19
विषय - विवाह / परिणय

===========================

लो चाँद सितारों की बारात खड़ी दर पर |
हर ओर उजाला है सज रात गयी दर पर ||

बन देव गए हैं वो -
मन आज शिवालय है ,
क्या और कहूँ मैं अब -
तन आज शिवालय है ,

फूलों कि लगी होने बरसात अभी दर पर |
लो चाँद सितारों की बारात खड़ी दर पर ||

है धूम नगाड़ों की -
बज ढोल रहे कितने ,
सब झूम रहे जी भर -
हँस बोल रहे कितने ,

दिन बीत गये लाखों तब बात बनी दर पर |
लो चाँद सितारों की बारात खड़ी दर पर ||

नव राह मिलेगी अब -
संबंध .......नये होंगे ,
सब छूट ..रहा है पर -
अनुबंध ....नये होंगे ,

लग आज रहा रब की सौगात मिली दर पर |
लो चाँद सितारों की बारात खड़ी दर पर ||

एल एन कोष्टी गुना म प्र
स्वरचित एवं मौलिक

दिनांक-05/12/2029
विषय-परिणय..


झनक उठी झांझर तन मन में
सुनकर प्रणय की शहनाई
अंबर में गूंज उठी चंद्रमा की तनहाई।
मेरा मस्तक सहला कर मुझसे बोली पुरवाई।।
सुनकर प्रणय की शहनाई मेरी आंखें भर आई।
अंबर बीच ठहर चंद्रमा लगा मुझे समझाने।।
उसी क्षण टूटा नभ से एक तारा तब मेरी तबीयत घबराई।
मंदिम मंदिम व्यथित रागिनी आगोशों के उन्मादो ने मुझे ललचाई।।
खलबली मची है एकांत निशा में
सुनकर प्रणय की शहनाई
चंद बूंदे छलक उठे मोतियों के
चंद्र नयन के मस्तक थर्राई।।

स्वरचित
मौलिक रचना

विषय - विवाह
गुरुवार 5-12-2019


रीति सदा परिणय पवित्र सूत्र की ,
नारियों का सबसे बड़ा बंधन है l

प्रमुख संस्कार निभाता हर कोई ,
लोकरीति सबकी ह्रदयस्पन्दन हैं l

कोशिशे निभाने की वर-वधू पर ,
सम्पूर्ण दारोमदार का संबंध हैं l

कुल की रीति, मर्यादा का मान ,
परिणय सूत्र की धड़कन हैं l

दो दिलों की प्रीत निभाने पर ही ,
परिवार की नींव का उदगम हैं l

बच्चोंरूपी पुष्प ज़ब हैँ खिलते ,
महकता जीवन का आँगन हैं l

माता- पिता का रूप सहजरूप ,
जीवन का सुन्दर ही संचालन हैं l

डॉ पूनम सिंह
स्वरचित
लख़नऊ उ0 प्र0

सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज

दिनांक 05/12/2019
विषय:विवाह/परिणय

विधा: दोहावली

विवाह का अनुबंध है,पति पत्नी के बीच ।
दोनों मिल करके रहे,अपनी बगिया सीच ।।

शरमाई सी यूँ खडी, जयमाला की रात ।
तीस बरस अब हो रहे,लगती कल की बात ।।

जीवन के हर मोड़ पर, मिला सभी का साथ।
साथ साथ बढते रहे, ले हाथो मे हाँथ ।।

वचनो का सम्मान कर,दिल मे लिया उतार।
मधुर साथ चलता रहे,ज्यो वीणा के तार।।

परिणय का बंधन सुखद,देता सबको मीत।
ताल मेल से निभ सके ,बने सुखद संगीत।।

स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव

विषय-विवाह/परिणय
विधा-दोहे

दिनांकः 5/12/2019
गुरूवार

यहाॅ रजा मंदी हुई,फिर क्यों हुए तलाक ।
पूरा दहेज़ हो नहीं,करते उसे हलाक ।।

बंधन उत्तम ये रहे,लडका लड़की एक ।
होता विवाह वह सफल,रहे भावना नेक ।।

पार देहरी बेटी जब करें,पिछले घर को छोड।
जीवन फिर कैसा भला,नहीं देखती मोड।।

सात वचन यदि याद हों,नहीं कोई दहेज़ ।
सबका जीवन हो सुखी,क्या सुख में परहेज ।।

तन मन धन अर्पित करें,देता बेटी संग।
फिर क्यों दहेज़ के लिए,करते उसको तंग ।।

ये मिलते परिवार दो ,बंधन का आधार ।
सबका जीवन हो सुखद,है यही संस्कार ।।

वे रिश्ते निभते नहीं,हों जो प्रेम विवाह ।
कोई साक्षी हो नहीं,कैसे करें निबाह ।।

लिंग अनुपात बढ रहा,बाधा होती एक ।
तंगी दहेज़ संग में,बाधा कई अनेक ।।

दिल का टुकड़ा कर विदा,करते पिछली याद ।
वे बेटी को सीख दें ,मत करना फरियाद ।।

जब करते बेटी विदा,नैनों बहते नीर ।
जब वह हो जाती जुदा,माँ बाप हों अधीर ।।

स्वरचित एवं स्वप्रमाणित डॉ एन एल शर्मा जयपुर 'निर्भय

5/12/2019
"विवाह"
ाइकु

1
खड़ी मुश्किलें
अंतरजातीय प्रेम
विवाह स्वप्न।।
2
प्रेम विवाह
दो दिलों का मिलन
ज्यों नभ धरा।।
3
कैसा विवाह
धन ,तन चूसते
लालची पिस्सू।।
4
भिखारी वर
शादी के मंडप पे
धन की माँग।।
5
फूल सी कन्या
परिणय विच्छेद
पल में झड़ी।।

वीणा शर्मा वशिष्ठ, स्वरचित

विषय:-विवाह
विधा :- कुण्डलिया छंद


☘️
मर्यादित जीवन बने , होता जब विवाह ।
संस्कारों के योग से , बनते गुणी अथाह ।।
बनते गुणी अथाह , बने हैं पर उपकारी ।
सीख देत परिवार , बनो सब के हितकारी ।
देती सुख संतान , रहें ख़ुशियाँ आच्छादित ।
विवाह का संयोग , करे जीवन मर्यादित ।।
☘️
करते नहीं विवाह जो ,रखते अलग विचार ।
अनदेखी कर फब्तियाँ , सह लें सभी प्रहार ।।
सह लें सभी प्रहार , लक्ष्य ऊँचा वे रखते ।
स्वर कोकिला कलाम , अमर फल शाश्वत चखते ।
बिन निर्धारित लक्ष्य , लोग केवल हैं मरते ।
अविवाहित जो लोग , कर्म अद्भुत ही करते ।।
☘️
सच्चे वे योद्धा बनें , बंधन बँधे विवाह ।
हवन कुंड परिवार में , करते निज को स्वाह ।।
करते निज को स्वाह , होम इच्छाएँ करते ।
देख सुखी परिवार , सुखी अनुभव हैं करते ।
मिलते सब आनंद , भरें कलाकारी बच्चे ।
रहते घर में जूझ , विवाहित योद्धा सच्चे ।।

✍️
स्वरचित:-
ऊषा सेठी
सिरसा

भावों के मोती
शीर्षक- परिणय
परिणय सूत्र जब बांधा तुमसे

कहां होश था दुनियादारी का।
तन-मन-धन कर दिया अर्पन
वादा निभाया वफादारी का।।

न सोचा एक पल के लिए भी
वक्त कभी भी बदल सकता है।
फूलों भरी इन जीवन राहों में
कभी कांटा भी चुभ सकता है।
मुस्कुराती हुई इन आँखों में
कोई अश्क भी भर सकता है।।

खैर, खाकर ठोकर जमाने की
अब समझदारी मुझे आ गई है।
खुद की जिम्मेदारी उठाने की,
अब हिम्मत भी मुझमें आ गई है।।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर

दिनांक ५--१२--१९
विषय---विवाह/परिणय

विधा---हाइकु
-----------------------------

बाल विवाह
नष्ट जीवन पथ
रखें समझ

है नहीं बेड़ी
एक पावन रिश्ता
विवाह रीत

रीत जग की
सृजन समाज का
विवाह पथ

रानी कोष्टी गुना म प्र
स्वरचित एवं मौलिक

तिथि _5/12/2019/ गुरुवार
विषय -*परिणय /विवाह*

विधा॒॒॒ _ हाइकु
1)
हाथ में हाथ
विवाह संस्कार
जनम फेरे
2)
सातों जनम
परिणय बंधन
गृहस्थाश्रम
3)
लाल चूनरी
बजे ढोल नगाढे
विवाह रश्म
4)
सूना आंगन
मातपिता लाडली
बेटी विवाह
5)
चली बहनी
ससुराल सयानी
प्रिय विवाह
6)
मान सम्मान
परिणय महान
अपना दान
7)
जय विजय
अज्ञात परिणय
प्रेम विलय
8)
कन्या परायी
दुल्हन पिया भायी
विवाह लायी
9)
जलाऐं नहीं
विशेष उपहार
विवाह पर्व
10)
गृहस्थी सजी
परिणति वाटिका
कृष्ण राधिका

स्वरचितः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
जय जय श्री राम रामजी

*परिणय /विवाह *हाइकु
5/12/2019/गुरुवार

विषय-विवाह
वंदना पालीवाल-स्वरचित
विवाह ऐक संस्कार है
फिर भी किस्मत का कमाल है
ऐक दूसरे को समझने वाला साथी मिले,तो जीवन सार्थक।
,,,,ना समझे तो भाई और भी सार्थक,क्योकि ,,,,,,,,,,,,,,,,,,
गम मे बेठने से अच्छा ,
स्वयं मे उर्जा भरो,आगे बढो।
संसार मे सब परिवर्तनशील है,
हम किसी को ना बदले,बस,,,,
स्वयं बदल जाऐ,,,,।
होसलों तथा सच्चाई पर चलकर
सब पा सकते है,,,,,।
बस हिम्मत ना हारो,,,,
बस हिम्मत ना हारो।
जयहिंदी जय भारत

दिनांक : 05.12.2019
वार : गुरुवार

आज का शीर्षक : विवाह / परिणय
विधा : स्वतंत्र

गीत

परिणय की बेला है ,
डगर लगे अनजानी !
अपनों का मेला है ,
खुशियाँ आनी जानी !!

थामा हाथ किसी का ,
संग संग रहना है !
समय बहेगा जैसे ,
वैसे ही बहना है !
मौसम , मस्त बहारें ,
करती हैं मनमानी !!

आँखों में सपने हैं ,
नींद रही अकुलाई !
उम्मीदें जागी सी ,
देती रहें दुहाई !
शानों पर सर रखकर ,
वारूँगी सब ठानी !!

अब तक जो बांधे थे ,
कस बंध पड़े ढीले !
ऊँचे से लगते हैं ,
आशाओं के टीले !
रोज लिखेगें अब हम ,
फिर से नई कहानी !!

पाना है कुछ पाया ,
लक्ष्य अभी है बाकी !
नयनों में बसती है ,
एक अनोखी झांकी !
बच जायें नज़रों से ,
ऐसी छतरी तानी !!

झिलमिल झिलमिल सपने ,
नींद रही अकुलाई !
उम्मीदें जागी सी ,
देती रहें दुहाई !
करवट ले ना पायी ,
वे सब याद पुरानी !!

पीछे छूटे अपने ,
रिश्ते नये सुहाने !
अधरों पर सजते हैं ,
मधुरिम नये तराने !
आस , उमंगें थिरके ,
सब जानी पहचानी !!

स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )

5/12/19
विषय-विवाह/परिणय

विधा-व्यंग्य
==============

एक बार एक प्रेम विवाह पर
मच गया बड़ा बवाल
पिता माना पर माँ न मानी
माँ बेटे में हो गई खींचा तानी
लड़की बोली ,सासू माँ
प्यार से मान जाओ मेरी बात
वर्ना मैं लेके आ जाऊंगी
खुद अपनी बारात
प्यार से कहती हूं
मान जाइए माँजी
सुना तो आपने होगा ही
'मियां बीबी राजी तो
क्या करेंगी आप माँजी'
सासू माँ ने उसकी बात
हँसी हँसी में ही टाली
ऐसी तेज न मंजूर लड़की
बहू चाहिए संस्कारों वाली
आखिर होने वाली बहू
खुद ही लेके आ गयी बारात
इस अनोखे विवाह की
चर्चा हुई दिन और रात
खुश है आज सास बहू से
बहू की लेती रोज बलैया
ऊपर वाले ने बनाई जोड़ी
हम कौन होते हैं भैया.
आखिर
बदल गया है उसका नज़रिया ।।

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
नमन मंच
5/12/19


मिलकर दो रत्न
हो गए एक वदन
बंधे एक बंधन में
हो गए है मगन

जीते थे दो जगह
आज हुए एक जगह
खिल उठे है सुमन
प्रसन्न मुदित है मन

हर्ष है मिला मिलन
भीगे भीगे है नयन
छूट रहा है जो अगन
पूरे हो गए है प्रण

साक्षी है सभी देवगन
है सम्मलित जन गन
देते आशीर्वाद हो मगन
भीगे माता पिता के नयन

स्वरचित
मीना तिवारी
विषय- विवाह
दिनांक ५-१२-२०१९
विवाह एक बंधन,मन आत्मा मिलन होता है।
अलग-अलग लेकिन,सात जन्म बंधन बंधता है।।

जब स्वप्न सलोना पूरा हो,अधर मुस्कान लाता है।
हर्षित होता हर घर आंगन,जब विवाह होता है।।

प्रेम डोर जो मन से बंधते,तो ही सुकून देता है।
मन रखने करता विवाह,कभी न खुश होता है।।

हर बिटिया का एक स्वप्न,पिया पसंद होता है।
जबरदस्ती ना करना संग,जीवन लंबा होता है।।

मन से किया कार्य, सदा ही आनंदित करता है।
मान सम्मान दें एक दूजे को,हर कदम रखता है।

विवाह रस्म निभा,बड़े बुजुर्ग आशीर्वाद लेता है।
खुशहाल जीवन शुरु,प्रभु आशीष वो करता है।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली
विषय..........परिणय/विवाह
विधा ..........दोहा

"★★★★★★★★★★★★★★★★★★
परिणय इक अनुबंध है ,
प्रीति दिलो का मेल।
मर्यादा इसका रखो ,
मत कर बिछोह खेल।।
★★★★★
परिणय धागा प्रेम का,
करो सदा सम्मान।
प्रीत मिलन की आस्था,
वर वधु लेवे भान।।
★★★★★
पावन सुत्र विवाह का,
सम्मुख रहे समाज।
जीवन भर निर्वाह कर,
कर सब सहमति काज।।
★★★★★
प्रीत डोर परिणय बना,
सींच प्रेम बरसात।
जीवन सुखमय हो सदा,
मत करना अवसाद।।
★★★★★★★★★★★★★★★★★★
स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा. छ.ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा

नमन भावों के मोती दिनांक :-5-12-19 विषय:-विवाह **************** विवाह *******
एक खूबसूरत सा एहसास
एक प्यारा सा बंधन है विवाह
कुछ पक्के से कुछ कच्चे से
वादे पूरे करने की खुशी और
न पूरा कर पाने की तकरार है विवाह
एक अजनबी सा अनदेखा सा
प्यारा सा ख्वाब है विवाह
दो अनजान लोगों का
जिन्दगी की नई डगर पर
नई चहल कदमी है विवाह
चाहत ही जिसकी
बना जाए पागल दिवाना
जीवन का वो तराना है विवाह
दो दिलों की अनगिनत
स्वर लहरियों का
अथाह सागर है विवाह
थोड़ा सा प्रेम ,
थोड़ा सा समर्पण और
हो मन एक दर्पण
एक दूजे के प्रति समर्पण
तो बन जाता है विवाह
हर लम्हा खास
***************
प्रीति राठी ,स्वरचित

विवाह / परिणय II नमन भावों के मोती....

विधा : हाइकु

१.
मन विवाह
भू न ही स्वर्ग चाह
प्रेम प्रवाह

२.
आत्म विवाह
सहस्त्रार सगन
प्रभु वरण

३.
स्वार्थ सम्बन्ध
विवाह अनुबंध
प्रेम कबंध

सगन = शिव

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
०५.१२.२०१९

विवाह/ परिणय

आती जब
परिणय की घड़ी
झूम उठता
मन मयूर
गूंज उठती
ढोल शहनाई
सज जाता घर
तोरण कलश

विवाह है
पवित्र बंधन
करें सम्मान
बेटी का
रखे मान
आये जब
बन कर बहू

समझ हो आपसी
पति पत्नी में
अहं घमंड की
न हो जगह
समर्पण ही है
विवाह संस्कार

गूंजे जब
किलकारी
अंगना
हो जाये
जीवन
जीवन्त

करों मान
बुजुर्गों का
पाये आशीष
उनका
रहेँ सबसे
मिल कर घर में
पाये सम्मान
समाज में

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

दिन :- गुरुवार
दिनांक :- 05/12/2019

शीर्षक :- विवाह/परिणय

शाश्वत प्रेम का ये बंधन..
है दिलों का ये गठबंधन..
प्रणय प्रीति विश्वास सँग..
महकाता यह नेह उपवन..
अजब अलौकिक मेल है..
रिश्तों की है अमरबेल ये..
समर्पण सँँग समर्थन का..
है अद्भुत,अनूठा ये संगम..
सींचती धार एहसास की..
शाश्वत प्रेम का ये बंधन..
है परिणय ये वादों का..
है सफर मीठी यादों का..
जैसे बसंत की हो बहार..
हर तरफ हो बस प्यार..

स्वरचित :- राठौड़ मुकेश
दिनांक-05/12/2019
विधा-हाइकु (5/7/5)
िषय :-"विवाह"

(1)
प्रेम निर्वाह
सुख-दुःख के साथी
सच्चा विवाह
(2)
वचन सात
परिणय संस्कार
जीवन साथ
(3)
जोड़े विवाह
अंजाने परिवार
रिश्ते सौगात
(4)
दिखावा रोग
शहर में विवाह
छप्पन भोग
(5)
पीड़ा,कराह
विश्वास छूटते ही
डूबा विवाह
(6)
लबों पे हँसी
बिटिया का विवाह
आँखों में नमी
(7)
टिका न प्यार
टूट रहे विवाह
घृणा के वार
(8)
माँ-बाप बना
विवाह ने सिखाई
जिम्मेदारियां
(9)
अग्नि समक्ष
विवाह गठबंध
वादों के फेरे

स्वरचित
ऋतुराज दवे
पीछे रह गया हैं वो बाबा का आंगन
छूट गया वो प्यारा बचपन
जब हुआ मेरा विवाह बंधन

निभाये मैंने विवाह के सात वचन .

बाबा के आँगन की चिड़िया थी
माँ की दिल की प्यारी थी
अब कहीं और हो गया हैं बसेरा
कभी सांझ तो कभी हैं जिंदगी में अब सवेरा .

माँ के आंगन फूल थी
अब सजाने चली हूँ नया उपवन
थी मैं पराया धन
विवाह के बाद चली सजाने नव आँगन .

बाबा मेरी हर याद को दिल से लगाना
भैया मेरी राखी के बंधन को निभाना
मैया मेरी मेरी वियोग में आँसू ना बहाना
विवाह के बाद भी प्रभु मेरे मायके को खुशीओं से सजाये रखना .
स्वरचित :- रीता बिष्ट

विषय - विवाह/परिणय
05/12/19

गुरुवार
रोला छंद

जगमग पूरा भवन , सजा कोना- कोना है।
आज तो बेटी का , शुभ गठबंधन होना है।।
शहनाई की गूँज , बनाती मंगल - बेला ।
लगा हुआ है खूब , अतिथियों का तो रेला।।
शोभित बंदनवार , विवाह मण्डप में सुन्दर।
गाएँ मंगल गीत , सभी सखियाँ हिलमिल कर।।
छाया है उत्साह , सभी परिजन पुलकित हैं।
देने को आशीष , हृदय सबके हर्षित हैं।।
ले बाजा बारात , सुमुख वर द्वार पधारे।
कर मस्तक पर तिलक, मात ने पैसे वारे ।।
कर सोलह श्रृंगार, वधू आयी मण्डप में ।
लेकर फेरे सात , बंधी वह गठबंधन में।।
भर आँखों में अश्रु , चढ़ी डोली में बेटी ।
वार -फेर के लिए , ससुर ने खोली पेटी।।
मात -पिता का हृदय, हो रहा कितना भारी।
घर - आँगन से दूर , हो रही बिटिया प्यारी।।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
दिनांक-05/12/2019
विषय :- विवाह, परिणय
जिन्दगी के ये पल बस यूँ ही गुज़र जाते है
लेकर सात फेरे शादी के बंधन में बंध जाते है

शादी के बंधन में बंधकर लेते है सात वचन
सात वचनों को हम जिन्दगी भर निभाते है

प्यारा सा रिश्ता हमारा वो प्यारा सा सफर
प्यारा सा नया परिवार भी अपने हो जाते है

कभी प्यार कभी तकरार जिन्दगी का खेल है
जीवन साथी का साथ मिले तो ग़म भूल जाते है

खट्टी-मीठी जिन्दगी बहुत सुहानी लगती है
ससुराल अपना सा लगे मायका भूल जाते है

एक-दूजे का साथ देकर मिलकर करते काम
बुरे वक्त की मार में एक-दूजे को समझाते है

"पवन"चले पुरवैया, फैलाये खुशबू "सुमन"
हवा,पुष्प एक हो जीवन में घुलमिल जाते है

यूँ ही प्यार बनाए रखना हम दोनों में ए-खु़दा,
अनगिनत ग़मों के बीच तुम ही याद आते है

कैसा सफ़र ज़िन्दगी का हम है और बस तुम
सबकुछ समर्पण कर हम समर्पित हो जाते है।

सुमन अग्रवाल सागरिका
आगरा

आज के कार्यक्रम के तहत दिए हुए विषय
विषय ___परिणय /शादी पर हमरी सस्नेह चंद पंक्तियाँ----

****

हाथो में ले हाथ चले हम कितना सफर सुहाना है।
#परिणय पावन पर्व मुबारक पथ पर बढ़ते जाना है।
*****
सुरभित जीवन की बगिया हो नव ऊर्जा संचार मिले!
फूलों की खुशबू से महके एक दूजे का प्यार मिले।
साथ तुम्हारे जो गुजरे पावन #परिणय के सुखद साल!
पड़े न दुःख की परछाईं भी नित नित नया बहार मिले!!
*****
हर्षित पुलकित हो ये जीवन ख़ुशियों का संसार हुआ!
नयनों से नयना टकराई रसमय जीवन सार हुआ!.
जीवन पथ पर चले परस्पर हाथों में पतवार लिए!.
मिला सहारा इक दूजे का झंकृत मन का तार हुआ
****
खिला रहे ये प्रेम का तरुवर मन से मन का तार मिले!
प्रतिपल चले निरंतर जीवन सुखद सदा व्यवहार मिले!
एक दूजे की ख़ातिर चाहत कभी न कम हो जीवन में!
आशाओं के धरा छितिज़ पर सब सपने साकार मिले!!
*****
कहते ये #शादी का रिश्ता, ऊपर से बन कर आता है।
नेह प्रेम #परिणय का बंधन,, ईश्वर इसे बनाता है!!
अहम वहम का जगह नहीं विश्वाश नेह का रीत यहाँ
रहे भावना सदा समर्पण सफ़र ये चलता जाता है।
****
उन्नत पथ पर बढ़ते जाना नयनों में इक आस रहे!.
ख़ुशियों का हो सदा बसेरा दुःख का कभी न बास रहे
आगे का भी सफ़र सुहाना मौसम हो नित प्यार भरा ,
पुष्पित फलित प्रेम तरुवर हो सदा हृदय उल्लास रहे!!
****
तिमिर सघन घनघोर घटा न ताप कभी छू पाए!
जीवन की राहों में कंटक शूल कभी न आये!
पड़े न दुःख की परछाईं हों नित नित नई बहारे!
ख़ुशियों के बादल छायें नित बरसे प्रेम फुहारें!!
***
पावन #परिणय की शुभ बेला ख़ुशियाँ ले कर आई !
आज सभी पावन हृदय से देते यही बधाई
अमर रहे सौभाग्य तुम्हारा जब तक चँदा तारा।
प्रेम की अविरल धार बहे ज्यूँ गंग जमुन की धारा!!

मणि बेन द्विवेदी
वाराणसी ( उत्तर प्रदेश)
05/12/19
परिणय

***
घर अँगना बजते रहें ,शहनाई से साज ।
मधुर सुरों की गूँज से,पूरे मंगल काज ।।

द्वार द्वार तोरण सजे ,बजते मंगल गीत
पावन परिणय हो सुखद,रहे दिलों में प्रीत।

मधुर सुखद बंधन रहे,मध्य प्रेम विश्वास ।
त्याग समर्पण जो रहे ,प्रतिदिन हो मधुमास।।

शहनाई के साज से ,बसा रहे संसार ।
शुचिता शुभता से मिले ,खुशियों का भंडार।।

स्वरचित
अनिता सुधीर
5/12/19
विषय-विवाह,परिणय।


परिणय

परिणय की पावन बेला से
स्नेह विश्वास की डोर बंधी
उसी डोर को थाम आपने
संग-संग कदम बढ़ाये
बढ़ते कदमों की मंजिल पर
कुछ प्रेम चिराग जलाये
चिरागों की प्रज्वलित आभा
हर क्षण खुशियाँ लाई
लब्ध मुग्ध परिणय
का बंधन हो सदा सुखदाई।

स्वरचित

कुसुम ।
*विधा-----------गीत*
*मात्रा--भार------16/12*

*दिनांक--------05-/12/19*

*ध्रुव पंक्ति------विवाह है वरदान ईश का*
*दो दिलों का मिलन है*

*विवाह है वरदान ईश का ,*
*दो दिलों का मिलन है।*
*नव जीवन की शुरुआत करे*
*रिश्तों का बंधन है*

हल्दी मेंहंदी रस्म संग ,
बँधें पवित्र डोर से।
बने अग्नि मंडप चिर साक्षी ,
छोर जुड़ता छोर से ।
सात फेरों के सातों वचन ,
अमोल पावन धन‌ है।
*विवाह है वरदान ईश का,*
*दो दिलों का मिलन है।।*

क्षण परिणय का अद्भुत है ,
होता उर आनंदित ।
संस्कृति हमारी खूब प्यारी ,
रिश्ता पुण्य पल्लवित ।
इकदूजे के हैं परछाई ,
मन‌ में खिले सुमन है ।
*विवाह है वरदान ईश का*
*दो दिलों का मिलन है।।*

ढोल शहनाई साज छेड़े ,
होती अनोखी रीत ।
बनते नवयुगल दो कुल सेतु ,
बन सदा के मनमीत ।
प्रेम -प्रीत का संगम विवाह ,
बने माथ चंदन है ।
*विवाह है वरदान ईश का ,*
*दो दिलों‌ का मिलन है।*
*नव जीवन का शुरुआत करे,*
*रिश्तों का बंधन है।*

*धनेश्वरी देवांगन धरा*
*रायगढ़, छत्तीसगढ़*

विवाह

द्वार प्रीत का जो हो बंद
विवाह बने एक अनुबंध

जो प्रीत प्रेम से भरा मीत
होता जीवन मधुरिम छंद

सप्तपदी को दे जो मान
रिश्ता बने वह नेह सुगंध

प्रिय ऐसा निभ जाए साथ
जैसे फूल भरे मकरंद

मन की बगिया फैले सुवास
ज्यूँ दीपक बाती का संग

मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित
दिनांक -5/12/2019
विषय -परिणय

परिणय है प्रणय की है परितीती
जीवन की यह पावन रीति ।
इस बंधन में बंध मधुर युगल
जीवन में पाते अनुपम बल ।
कितने श्रद्धा से भरकर ये
नवबंधन में हैं बंधते ये ।
कितनी कसमें वादे लेकर
जीवन पथ पर चल पडे़ निकल ।
नव नीड़ बना आगे बढ़कर
नव सृजन रचा बसा करके ।
यह सृष्टि आगे बढ़ती है
परिणय की रीति बढ़ती है ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय


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