Saturday, December 21

"जीवन शैली"20दिसम्सबर 2019

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ब्लॉग संख्या :-601
20/12/2019
"जीवन शैली"
1
)
जीवन शैली हो सरल,ईश्वर में हो ध्यान।
सत्कर्मों की राह पर,चलकर मिलता मान।।
2)
जीवन शैली प्रेम की,सदा लीजिए थाम।
झोली भर-भर बाँटना, कुसमित होंगे राम।।
3)
ध्यान,योग से तुम करो,जीवन मे बदलाव
शैली ये अनुपम सदा,तन-मन पुष्पित भाव।।
4)
चल चित्रों में रम गए,भूले दिन अरु रात।
जीवन शैली भूल कर,हित की भूले बात।।

स्वरचित
वीणा शर्मा वशिष्ठ

विषय जीवन शैली
विधा काव्य

20 दिसम्बर,2019 शुक्रवार

जीवनशैली जीवन आधार है
महापुरुषों से नित हम सीखें।
नकारात्मक सोच कभी न हो
रह जावेंगे जीवन नित रीते।

भाव भक्तिमय जीवनशैली
मनमंदिर में प्रभु की पूजन।
निश दिन परमपिता भक्ति
घृत दीप से करें हम अर्चन।

स्वस्थ तन हो स्वस्थ मन हो
सदा स्वच्छता रहे सदन में।
जीवनशैली सदा सुखमय हो
मंजिल मिले कदम कदम पे।

खुद का जीना क्या जीना है
परहित डग चरण बढाओ।
जीवनशैली परोपकार मयी
सबको अपना मित्र बनाओ।

जिस भूमि पर जन्म लिया है
उस माटी को चन्दन मानो।
जीवनशैली सदा समर्पितमय
पर्यावरण जग स्वच्छ बनाओ।

जीवनशैली हितकर प्रेरक हो
स्वाभिमान की चरित्र धनी हो।
जीवन स्वप्न सलौना सुंदर है
करुणा की कभी न कमी हो।
शीर्षक -- जीवन शैली
प्रथम प्रस्तुति


बदल गयी जीवन शैली
कहीं झटपट कहीं खटपट
अब न वो पनिहारीं पनघट
बचपन न पहले सा नटखट

हर जगह है भागमभाग
लगता ज्यों लगी हो आग
कहीं शांति का नाम नही
किसी को किसी से काम नही

कैसी ये जीवन शैली
लगे ज्यों कश्मीर वैली
इंसान इंसान से डरे
रिश्ते नहि हैं हरे भरे

जीने में कोई रस नही
किसी का किसी पर बस नही
हर जगह अब टकरार है
पति पत्नियों में रार है

क्या होगा कुछ नही पता
किसकी कहें 'शिवम' खता
भूल गये जीवन आदर्श
झूठे चेहरे झूठे हर्ष

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 20/12/2019

विषय, जीवन शैली
दिनांक, 20,12,2019.

शुक्रवार,

जीवन शैली आपकी कराये व्यक्तित की पहचान,
जो पाया खोया आपने सब जीवन शैली के निशान।
नियमित सतत साधना करे नहीं स्वार्थ का काम,
जीवन शैली उसकी सदा मन को दे आराम।
शौक श्रृंगार अधिक है और खाने पर ध्यान ,
काम जिसे करना नहीं हो उसका कैसे कल्याण।
अव्यवस्थित दिनचर्या रहे सदा हैरान परेशान,
उन्नति वह कैसे कर सके बने वो कैसे महान।
ईश्वर की हमको ये देन है हमे मिली है जो मानव देह,
हम साफ सुथरा रखें इस गेह को हरि से कर लें नेह ।

स्वरचित, मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .

20/12/2019
बिषय,, जीवन शैली

वर्तमान में प्रत्येक मनुष्य की
जीवनशैली में परिवर्तन हो गया
भागमभाग की जिंदगी में पूर्ण रुपेण खो गया
खड़ी हैं बिशालतम अट्टिकाऐं
लेकिन हर शौक होटल में मनाऐं
बिन मंडप के सूना आंगन
बाहर गूंजती शहनाई रो रहा भवन
औपचारिकता के हुए रिश्ते नाते
संस्कृति को भुलाते ही जाते
हाय हलो के बस ब्यवहार
प्रेम स्त्रोत्र का सूख गया आधार
दो मिनट फुरसत के नहीं पल
समय हाथ से जा रहा निकल
हम समाजिक प्राणी अकेले कैसे रह पाऐंगे
अंत समय रोऐंगे पछताऐंगे
स्वरचित,, सुषमा, ब्यौहार
भावों के मोती
विषय--जीवन शैली

____________________
कैसी है यह जीवनशैली,
मिलावट से होती विषैली।
हर तरफ है धूल और धुआँ,
खेले हैं जिंदगी संग जुआ।

भागदौड़ औ शोर-शराबा,
बीत रहा है जीवन आधा।
रिश्तेदारी बोझ लग रही,
अपनों की बातें खटक रही।

सब चले उस राह पे ऐसे,
सही बताएं किसको कैसे।
अपने में ही खोए रहते,
सच से सदा भागते रहते।

इंटरनेट जाल में उलझे,
हँसी मज़ाक सभी हैं भूले।
विकास की जब होड़ मची हो,
तब सही ग़लत समझ किसे हो।

काट रहे हम जंगल सारे,
छुपे फिर प्रदूषण के मारे।
हवाओं में भी जहर घुलता,
पानी भी अब दूषित मिलता।

बदलना है ढंग जीने का,
घटता है पानी पीने का।
पर्यावरण को है बचाना,
जीवन शैली उत्तम बनाना।
***अनुराधा चौहान***स्वरचित

दिनांक -20/12/2019
विषय- जीवन शैली

विधा - छंदमुक्त कविता

बदल रहे सभी आचार-विचार
और प्रकृति के रंग ,
रहन -सहन भी लगा बदलने
नई जीवन शैली के संग ।

ब्रह्ममुहूर्त का महत्व भुलाया
मनमर्ज़ी से निद्रा तज़ते हैं ,
आधी रात तक आँखों के सपने
चलभाषों पर सबके सजते हैं ।

प्रकृति का भरपूर ख़ज़ाना
अपनी जागीर समझते हैं ,
प्रतिदान में कुछ ना देते
असंतुलन को ही जन्माते हैं ।

खेत -खलिहानों में फ़सलें
खाद रासायनिक उपजाते हैं ,
पौष्टिकता का मर्म घटाकर
बीमारियाँ अनेक पनपाते हैं ।

जीवन की इस भाग-दौड़ में
अंधी दौड़ में दौड़े जाते हैं ,
चलते-फिरते भोजन खा लेते
स्वास्थ्य भी दाँव पर लगाते हैं ।

सादा भोजन बीमार -सा लगता
चटपटे मसाले बहुत लुभाते हैं ,
घर की मुर्ग़ी दाल बराबर समझें
ऑनलाइन भोजन मँगवाते हैं ।

महँगाई ने ऐसी कमर तोड़ दी
फल-सब्जियों को ललचाते हैं,
जेब गरीब की मज़बूर हो गई
लाला सेठ फिर भी खा लेते हैं ।

स्वार्थ लिप्सा में डूबे है मानव
बस अपनी नैया पार लगाते हैं ,
‘परहित सरिस धर्म नहिं भाई ‘
उक्ति का अट्हास उड़ाते हैं ।

नैतिकता की सीख भुलाकर
पूर्वज़ों का मान घटाते हैं ,
देश की आन,बान,शान को
अभिव्यक्ति आज़ादी पे लुटाते हैं ।

मात्र अक्षर ज्ञान से गर्वित होकर
खुद को शिक्षित बतलाते हैं ,
जीवन जीने की सही कला को
ताउम्र कहाँ सीख पाते हैं !!!!

संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित एवं मौलिक
जीवन शैली

हो जीवन शैली
सरल मधुर
जीवन हो अपना
मधुरम् मधुरम्
बने सहायक
जीवन में सब के
फैले रिश्तों में
मधुरस मधुरस

होती हर एक की
अपनी जीवन शैली
सैनिक मुस्तैदी से
रहता सीमा पर
करता नहीं परवाह
ठंड, गर्मी की है

चलाते दिन रात
रेल बस हवाई जहाज
करते देखभाल
मरीजों की दिन राथ
है उनकी जीवन शैली
सेवा मानव की

है गर्व हमें
इन इन्सानों पर
ढालते जीवन शैली
जरूरत के अनुरूप
अपनाये यही
जीवन शैली
हम भी तुम भी
संग जीवनसाथी अपने

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

विषय-जीवन शैली
विधा-छंद मुक्त

दिनांकः: 20/12/2019
शुक्रवार

पौष्टिक भोजन सदा करें,
अधिक मीठे न हों स्वाद ।
हो प्रतिरोधक जो रोगों के,
करें तन,मन को आबाद ।।

रौजाना हम योग करें,
तन,मन रहें निरोग ।
जो घिरे सदा विकारों से,
उनको घेरे सब रोग ।।

घी,तेल से बनी हुई,
चीजें सदा रखें दूर ।
ह्रदय रोग और मोटापा,
हो जीना दूभर,मजबूर।।

हरी सब्जियां और फल,
यहाॅ करते जो उपयोग ।
रहें सदा निरोगी वे ,
हो तन,मन सुख के योग ।।

हो संतुलन सब चीजों में,
जीवन का यही विधान है ।
हो संयमित आचार,विचार,
हर समस्या का यही निदान है ।।

हाथ धोंयें खाने से पूर्व,
ढको खाने की चीजों को ।
सेव,लहसुन नियमित खायें,
अजर रखें जवानी को ।।

दूध सदा मजबूत करें,
दांत,हड्डियों दोनों को ।
नित टहलो,व्यायाम करों,
स्वस्थ रखें ये सबको ।।

जल्दी सोये रात को,
ब्रह्म मुहुर्त में जंगे सदा ।
पानी पीये गर्म हम,
ठंडे जल से नहाये सदा ।।

जीवन शैली हो ऐसी,
जो रखें हमें निरोग ।
खान पान,रहन सहन सही,
हो व्यायाम के संग योग ।।

वृक्ष बचायें कटने से,
पौधे नये अवश्य लगायें ।
विष न घोलें जल, वायु में ,
ऐसे पर्यावरण हम बचायें ।।

स्वरचित एवं स्वप्रमाणित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर' निर्भय,

20/12/19
जीवन शैली

**

जीवन शैली में हुये .......बड़े बड़े बदलाव ।
बने आधुनिक अब सभी,कारण समयाभाव।।

सुबह शाम की दौड़ है......,करे नहीं व्यायाम ।
रोग व्याधि से ग्रसित अब,दें औषधि का दाम।।

देर रात तक जागते ,उठे नहीं जो भोर ।
उत्तम भोजन न करें ,ये कैसा है दौर।।

संस्कार का ह्रास है ,हुई सभ्यता भार।
भूल गये संकल्प वो ,जो जीवन आधार ।।।

नीति नियम से थामिये,संस्कार की डोर।
देश भक्ति संकल्प हो,कीर्ति पताका छोर ।।

लुप्त हुई संवेदना ,रखते घृणित विकार
संस्कार की नींव से ,मिटे दिलों के रार ।।

स्वरचित
अनिता सुधीर
20/12/2019
विषय-जीवनशैली

~~~~~~~~~~~~
सुखी संतुलित जीवन ही
निरोगी काया का आधार है
बिना स्वस्थ जीवन के
आत्मिक,भौतिक प्रगति निराधार है
असंयमित जीवन शैली आज
सभी अपनाए चले जाते हैं
जब चाहे,बिना भूख के
गुणहीन भोजन खाते हैं
रात्रि जागरण,दिवा शयन
मोबाइल टीवी का बहु प्रचलन
सादा जीवन उच्च विचारों से
अनायास दूर हुए जाते हैं
प्रकृति से रहते हैं बहुत दूर
दिखावे की ज़िंदगी जियें भरपूर
असंतुलित दिनचर्या में ढलकर
तन मन से बीमार हुए जाते हैं
ईश्वर प्रदत्त इस जीवन को
बोझ न समझो मंदिर सम तन को
आओ हमसब मिल कर
सहज,सरल जीवन शैली अपनाएं
स्वयं पथप्रदर्शक बन कर
नई पीढ़ी को भी उचित सीख सिखलाएं।।

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित

Damyanti Damyanti
विषय_ जीवन शैली |
हो जीवन नियम ऐसे ,बने निरोकी काया आधार |

युग परिवर्तन के संग बदले भाव शैली |
भूले सब नियम जीने के चले भौतिकता की ओर |
धन लिप्सा ऐसी बडी निज जीवन धूमिल |
ब्रह्म मोहर्त जानते नही न जाने संतुलित आहार |
देर से सोना,उठना हे जीवन आधार |
भूले रिश्ते नाते ,सुदंर भाव सदगुण |
हो गई तिरोहित वह सुदंर जीवन शैली |
सुख था सकुन था सुखद परिवार देश जन्नत |
प्रदुषित जल वायु अन्न सब्जी लील रही जीवन को |
भोजन हुआ डब्बा बंद या होटल आबाद |
नरही वह सुखद जीवन शैली , न संतुलित आहार |
जीवन ऐसे जी रहे,हे मृत प्रायः |
जैसा खाते आहार बुद्धी भाव भी बिगडे |
जो बोया हमने आज वही जीवन शैली बन चाट रहे |
संयमित मन भाव नियम बरबाद हुऐ |
साथ इसके हैवानियत आबाद हुई |
अब भी समय हे जागो उठो अपनावौ वो सुदंर जीवन शैली |
|स्वरचित_ दमयंती मिश्रा

20/12/2019
"जीवन शैली"

################
जीवन शैली हमारी बदल गई
मोबाइल हमें जब से मिल गई
दिन- भर उसी में रमी रही
पड़ोसी से भी दूर हो गई।

जीवन शैली ही बदल लिया
अंतर्जाल से नाता बना लिया
चार पंक्ति लिखना दुश्कर था
मोबाइल से श्री गणेश किया।

जीवन शैली ही बदल गई
रसोई में सब्जी पकती रही
मैं मोबाइल में ही खोई रही
जलने तक का न होश रहा।

जीवन शैली अपना बदल लिया
सैर सपाटा भी कम कर दिया
पति से मान,अभिमान छोड़ दिया
फरमाइशों को अनसुना कर दिया।

जीवन शैली मैंनें बदल लिया
कच्चा पक्का ही परोस दिया
चावल भी कभी गला दिया
पकवान को भी भुला दिया।

जीवन शैली ही बदल लिया
पति का बकबक अनसुना किया
एक कान से सुना औ दूजे से निकाल दिया
मोबाइल से नाता बना लिया।

ताने,उलाहनें सुन -सुन कान पके।
जीवन शैली यही जँच रहे हमें।।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।

दिनांक : 20.12.2019
वार : शुक्रवार

आज का विषय : जीवन शैली
विधा : काव्य / गीत

गीत

बदल गई है जीवन शैली
बदले से उदगार हैं !
आज भले हम उन्नत हैं पर ,
पिछड़े से व्यवहार हैं !!

अपनों से हम दूर हुए हैं ,
मस्ती में ही चूर हैं !
ऊंचाई पर क्या चढ़ बैठे ,
इसका हमें गुरुर है !
अपनी ही दुनिया में खोये ,
यही लगे संसार है !!

रिश्तों में फैलाव नहीं बस ,
पास नहीं समभाव है !
शहरों के संग पैर पसारे ,
भूल गये वे ठाँव है !
छूट गये यादों के डेरे ,
उठे न मन झनकार है !!

बूढ़ी आँखें बाट निहारे ,
इससे हम अनजान हैं !
काट रहे हैं कैसे जीवन ,
इसका ना संज्ञान है !
अपने संकटमोचक के हम ,
भूले वे उपकार हैं !!

भूल रहे संस्कार , सभ्यता ,
रुख पश्चिम की ओर है !
सेवा औ संतोष न चाहें ,
सुख का पकड़ें छोर हैं !
नगदीकरण खुशी का चाहें ,
रखते नहीं उधार हैं !!

स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )

दिनांक २०/१२/२०१९
शीर्षक_जीवन शैली


बदल कर अपना जीवन शैली
बहुत पछताये आज।
सूर्योदय से पहले उठना
आये न अब रास।

जल्दी सोते गाँव के लोग
मैं शहरी बना हूं आज
देर रात तक चैटिंग करता
सुबह देर तक सोता।

दाल रोटी को त्याग कर
फास्ट फूड खाता आज
बदल कर अपना जीवन शैली
बहुत पछताया आज।

दूसरों की नकल कर
करे न जीवन शैली का चुनाव
उम्र,पद और स्थान के अनुसार
हो जीवन शैली में सुधार।

जीवन शैली हो ऐसा
जो स्वस्थ रखें हमेशा
यही सोचकर सुधार लिया
अपना जीवन शैली पहले जैसा।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।

20-12-2019
विषय:- जीवन शैली
वि
धा :-दोहा

कल क़िसने देखा यहाँ , करो आज ही काम ।
कौन यहाँ है जानता , कब होये विश्राम ।।१।।

बाल्यकाल से भक्ति का , दीप जगे मन द्वार ।
सत्कर्मों के तेल से , सदा रहे उजियार ।।२।।

अनुशासन शैली बने ,करता जीव विकास ।
स्वस्थ रहे तन मन सदा ,कभी न होये ह्रास ।।३।।

भोग करे जब त्याग से , रहता जीव निरोग ।
करे योग पालन सदा , दूर भागते रोग ।।४।।

यथायोग्य आदर करें , दे सबको सम्मान ।
सुनियोजित परिवार हों , करे देश उत्थान ।।५।।

जीवन शैली हो सरल , होता नहीं विषाद ।
सहज सरस मुस्कान मुख , देती है आह्लाद ।।६।।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा

दिनांक 20/12/2019
विषय जीवनशैली


निकले सूरज कब किसे पता
नींद खुली जब धूप सिर चढी
सरपट भागे,देर हुई जब बहुत
जीवनशैली सबने कैसी ये गढी

कैसा स्नान कैसा सूर्यनमस्कार
भूले पूजा,भूले सारे हम संस्कार
माता पिता की याद न रही सब
बना डाले कैसे आचार विचार
लोकमर्यादा को ताक मे रखा
जाने कैसी नई किताब है पढी
सरपट भागे, देर हुई जब बहुत
जीवनशैली सबने कैसी ये गढी

वेश बदल गए भेष बदल गए
हवा कैसी चली केश बदल गए
संस्कृति किताबो मे सिमटी बस
गांव शहर क्या,देश बदल गए
लाज शरम सब गई कहां पर
बेहयाई ही सब आँखो मे बढी
सरपट भागे देर हुई जब बहुत
जीवनशैली सबने कैसी ये गढी

छोटे बडो का मान नही अब
मनमानी ही करते देखो जब
बात सुनने को तैयार नही ये
अपनी धून मे ही जाते हैं सब
बडे बूढो का मोह नही कहीं
अपनी बस्ती कही ओर बनी
सरपट भागे देर हुई बहुत जब
जीवनशैली सबने कैसी ये गढी

बस अपनी दुनिया मे खोए सब
किसी को किसी की चाह नही
सब लगे अपने काम के ख़ातिर
यहां अपनो की भी परवाह नही
अपनो की बात सुनी कब जाने
नई पढाई ये जाने कहां पर पढी
सरपट भागे देर हुई जब बहुत
जीवनशैली सबने कैसी ये गढी

कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद

20/12/2019
विषय जीवनशैली


बस ऐसी जीवन शैली हो ।।
मन की चादर न मैली हो ।

प्रीत का राग बजे प्रतिपल ,
मिले नहीं घृणा को संबल ,
हरियाले हो बाग हर पल ,
आशाओंके हों खिले कमल ,
बस ऐसी जीवन शैली हो ।
मन की चादर ना मैली हो ।।

मिट जाए सारी तल्ख़ियां ,
फूलती फलती हों डालियां ,
कलियों की न हों रुस्वाइंया,
मिट जाएं यह तनहाइयां ,
बस ऐसी जीवनशैली हो ।।
मन की चादर न मैली हो ।

जीवन में चलता मेला हो ,
नहीं कोई कहीं अकेला हो ,
दुख दर्दों का नहीं झमेला हो ,
मन बस मस्त अलबेला हो ,
बस ऐसी जीवन शैली हो ।
मन की चादर न मैली हो ।।

मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित

जीवन शैली
आज के मानव की जीवन शैली काफी बदल गयी है।
अब वह ब्रह्म मुहुर्त में नहीं उठता, सूर्योदय से पूर्व वह स्नान- ध्यान भी नहीं करता।

गोधूलि के उपरांत वह सोने का उपक्रम भी नहीं करता।
वह तो जागता है देर रात्रि तक, मध्य रात्रि तक, सोता है सूर्योदय के उपरांत तक।
उसके खान- पान, उठने- बैठने के तौर तरीके भी बदल गया है।
हम आदी हो गये हैं इस आपाधापी भरे जीवन के तौर- तरीकों के।
और दुष्प्रचारित करते हैं कि हम एडवांस हो गये हैं।
सहजता-सरलता तो जीवन से गदहे की सींग की तरह लुप्त हो गयी है।
आज का मानव अपनी इन्ही विसंगतियों का संत्रास झेल रहा है।
यह उत्कर्ष का दौर नहीं, अपकर्ष का दौर है।
स्वामी दयानन्द का वह आहवान बरबस ही प्रेरणा देता है कि ''वेदों की ओर लौटों।''
स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ
डॉ कन्हैया लाल गुप्त'शिक्षक'
उत्क्रमित उच्च विद्यालय ताली, सिवान, बिहार

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