Tuesday, December 31

"स्वतन्त्र लेखन "29दिसम्सबर 2019

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ब्लॉग संख्या :-610
विषय स्वतन्त्र लेखन
विधा काव्य

29 दिसम्बर 2019,रविवार

जो भगीरथ शिव तपस्या कर गङ्गा लाया ।
जिसने गङ्गा की धारा मेंअमृत कण पाया ।
उस गङ्गा को खड़ा दुःशासन पीने को आतुर।
सारा भारत देख ऐसा मन ही मन व्याकुल।
आज उसी भारत माता का चीर हरण करते।
मोती माणक लूट लूट कर अपना घर भरते।
रोते और बिल्लाते बालक की भूख नहीं जाने
भूख प्यास दुःख गर्जन, आज सभी अंजाने।
शिक्षित वर्ग दुःखी ज्यादा हैं वे रखते हैं डिग्री।
रोजगार मिलते नही हैं होती नहीं है ये बिक्री।
ओ भगीरथ तू मुल्क में गङ्गा क्यो लाया रे?
गङ्गा को तो लूट लूट कर पंडो ने पाया रे।
डंडे के बल झण्डे उड़ते पंडो की कोठी पर।
दया धर्म की बात करेंगें जन रोते रोटी पर।
गौतम गांधी नेहरू सुभाष नाम ये गिनवाते।
पूर्वजो के नाम स्मरण उल्लू ग्राहक बनाते।
फिर क्या पिंड दान करा कर प्रसाद देते।
दान दक्षिणा अंटी में रख मन ही हँसते
ऐसी गङ्गा है भगीरथ गङ्गा पर साम्राज्य।
पूत सपूत पंडों को रोते ऐसा रामराज्य।
साफ़ करो चक्षु के अश्रु मत देखो पंडो को।
शुद्ध कर्म पर अड़े रहो, देखो तुम झंडों को।
गौतम का संदेश यही है बढ़ते जाओ आगे।
देख तुम्हारे कर्म , विश्व के सारे मानव जागे।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।


29/12/2019
स्वतंत्र लेखन...


जख़्मों को सहला कर देखो।
दर्द जरा मुस्का कर देखो।।

ईश्क नहीं ये आसां कोई।
जानेजां तु निभा कर देखो।।

ईश्क न छुपता है छुपाने से।
जानेमन आज़मा कर देखो।।

दुश्मन होते लाखों ईश्क के।
लोगों को तु बता कर देखो।।

ईश्क न रोक सका है कोई।
नदियों को ठहरा कर देखो।।

दिल में तेरे किसका घर है।
"बॉबी" को तु बता कर देखो।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।

दिनांक-29/12/19
विषय-स्वतंत्र लेखन

गीत
गंगा जमनी भाषा में-
=========================
2122 2122 2122 212
गुल खिला आनन्द आया दृष्टि बलिहारी हुई ।
अन्दलीबों की चहक से वेदना तारी हुई ।।
(01)
कर्म का फल क्या पता था वह मुझे कलपायगा ।
जो मुझे अवधान देगा ज़ीस्त में ढल जायगा ।।
पुष्प पर गुंजार करने क्यूँ मधुप ज़िद पर अड़े ?
पान को मकरंद के हित फूल पर आकर खड़े ।।
क्या कहूँ मैं उन सठों को ऐन मक्कारी हुई ।।
(02)
नेह के हित बल रहा है दीप मेरा शाम से ।
बाँध रखली है कमर कशकर सदा इक़दाम से ।।
दे दिया जिनको निमन्त्रण प्यार वह करते नहीं ।
है बहुत मुश्किल मुझे रुख चाह का सरते नहीं ।।
कौन सा है यत्न मुझ पर हाय लाचारी हुई ।।
(03)
सर्वथा सम्बल लिए चलना मुझे दिन रात है ।
प्रेम हो निष्फल अगर तो प्राण पर आघात है ।।
छाँह तारों की मुझे देगी शरण विश्वास है ।
कर लिया पुख़्ता इरादा प्यार का मधुमास है ।।
चल रहा लेकर मनोबल यह कि ख़ुद्दारी हुई ।।
=========================
'अ़क्स ' दौनेरिया
"भावों के मोती"
29/12/2019

स्वतंत्र लेखन
अनुभव
*********
(मेरे मन की बात
आप सब के साथ)

प्रकृति का नियम है बदलाव जिस तरह रात के बाद दिन ,दिन के बाद रात आना तय है,मौसम के चक्र बदलना है ऋतुयें आनी और जानी है,उसी तरह समय के अनुसार हमारे जीवन में भी हर रिश्ते का चक्र होता है,जो कभी न कभी टूटता ही है।
एक औरत और आदमी शादी करके घर बसाते हैं फिर घूमकर कुछ वर्षी बाद फिर वे दो ही रह जाते हैं ,बच्चे अपना नया कुनबा बनाते हैं भाई और बहन अलग हो जाते हैं इस तरह हर रिश्ता चाहे वो परिवार हो,दोस्ती का या कोई भी हो उसका चक्र खत्म होता ही है यही संसार का नियम है,अगर बदलाव प्रकृति का नियम है तो दुख संताप क्यों, किसी के प्रति द्वेष क्यों वह एक चक्र था खत्म हो गया,उस जगह उस बन्धन और उस इंसान के साथ जो प्यार ,स्नेह के क्षणों को साथ बिताया उन अहसासों को जिया उन्हें हम अपने दिल में समेट लें तो शायद जिंदगी को नई ऊर्जा मिल जाएगी,ये सच्चाई है किसी ने आपके साथ कितना भी अच्छा किया हो कोई फर्क नही पड़ता उसका प्यार स्नेह आप पल भर में भूल जाते हो अगर मन मे कड़वाहट आ जाये तो उसे नहीं खत्म किया जा सकता,जब वो कड़वाहट रहना ही है तो क्यों न इस कड़वाहट में उन बीते हुए पलों को जिनमें प्यार स्नेह की उस मिठास को घोलकर ,उन अहसासों को अपने में समेट कर स्वंय में खुश रहा जाए,अगर आप स्वयं में प्रसन्न हैं ,तो दुनिया तो प्रसन्न दिखना ही है।।।।
अंजना सक्सेना
इंदौर
दिन :- रविवार
दिनांक 29/12/2019

विषय :- स्वतंत्र लेखन

सांझ के आँगन में
लिपटी धरा से अरूणिमा..
गोधूलि बेला ये..
बदल रही भाव भंगिमा..
सुहानी हो शाम ये..
खोल रही दरवाजा..
पंछियों का कलरव..
भर रहा असीम ऊर्जा
पत्थर-पत्थर गा रहा..
राग मल्हार यहाँ..
सागर का ज्वार देखो..
उठकर गिर रहा..
गगन होने लगा स्याह अब..
चाँद भी सजने को है..
बारात सितारों की..
आँगन अब उतरने को है..
मीठे स्वप्नों की डोली बैठ..
निंदिया अब आने को है..
शबनमी लहरी भी अब..
दूब पर खिलने को है
भूलो सारे रंजो गम..
छोड़ो तनाव सारे..
फिर सवेरा होने को है..
फिर सवेरा आने को है..

स्वरचित :- राठौड़ मुकेश

29/12/2019
बीता हुआ साल

🌺🌺🌺🌺🌺
इस साल की गलतियों को माफ करना।
अगले साल के लिए दिल साफ रखना।

क्यूंकि जैसी हूं वैसी ही रहूंगी 20में।
ना कुछ बदला है,नाहीं बदलेगा 20में।

दिन-रात ऐसे हीं होते रहेंगे 20में।
चांद सितारे रहेंगे सूरज भी उगेगा 20में।

ठंडी गर्मी आयेगी और आयेगा वसंत।
हर मौसम आता जाता रहेगा यूंहीं 20में।

सुबह हाय हैलो कहने आयेंगे सब यूंहीं20में।
मैं भी कुछ बकवास यूंहीं करूंगी 20में।

बेसिर पैर की कविता लिखती रहूंगी यूंहीं।
तुम सबको बोर करती रहूंगी यूंहीं।

दोस्ती ‌का है एक यही उसूल।
दोस्तों की हर बात दोस्तों को कुबूल।

कभी ग़म कभी खुशियों का है यहां मेला।
पर दोस्ती में कभी कोई नहीं रहता अकेला।

खुशियों में भी साथ रहते हैं मिलकर।
गम में भी साथ देने को रहते हैं तत्पर।

दिन- रात का पता नहीं चलता है।
जब दोस्तों का साथ मिल जाता है।

हंसते गुनगुनाते बीता यह साल।
दुआ है इसी तरह बीते नया साल।

सभी मित्रों को आनेवाले नये साल की अग्रिम शुभकामनाएं।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी

😄?? भूलने की आदत बुरी या अच्छी ??😄

सब
को याद करने की आदत
मुझे है भूलने की आदत ।।

क्या करे कोई जब हो गम ही गम
व्यर्थ जाय चार भाषाओं का मरम ।।

सारा बोझ जो रखेंगे
तो हम भला क्या दिखेगे ।।

समझ न पाय हम ये चक्कर
किस्मत के रहे ये टक्कर ।।

ख़ैर कलम को रहे पकड़े
कलम ने ही हरे अब दुखड़े ।।

दिमाग पर रहे डाले जोर
उसी ने ही किया अब शोर ।।

होती दुखों की जब मरोड़
संग ताउम्र कलम का जोड़ ।।

बनती है मस्त केमिस्ट्री
जो अब लिख रही है हिस्ट्री ।।

लोग पूछते हैं स्पेस्लिटी
कहूँ सब भाषा घिसीपिटी ।।

ऊपर से दुखों की ये लड़ी
ऐसी ही बनाया मैं कढ़ी ।।

मज़ा आएगा 'शिवम' चखिए
हर स्वाद मिलेगा परखिए ।।

कवि यूँ ही न बने कोई
बने जिन्दगी आटे की लोई ।।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 29/12/2019

29 /12/2019
बिषय,, स्वतंत्र लेखन

शीत लहर का जोर है भारी
रजाई स्वेटर भी है हारी
चल रही हैं सर्द हवाएं
तन मन में चुभ चुभ जाएं
जाड़े में आई यौवनाई
मद्धम हुई रवि की तरुणाई
जाने बाले वर्ष की सौगात
ठिठुरन देदी दिन और रात
कुछ राहत लाए नव सबेरा
हर घड़ी रहे सूरज का डेरा
जाने वाले को अलबिदा
आनेवाले को नमस्कार
नई भोर की किरण दे खुशियों की बौछार
स्वरचित,, सुषमा, ब्यौहार

🌹भावों के मोती🌹

प्
रथम प्रयास🙏🙏😊

माधवमालती छंद मुक्तक आधारित

2122 2122 2122 2122
प्रेम में दो नैन को राधा कहो कैसे लुभाया ।
श्याम ने कैसे तुम्हारी चाह को राधा भुलाया ।
जो व्यथा को झेलती हो नीर से धोये सकारे ।
श्याम भी देखो तुम्हारी प्रीति में संसार हारे ।

है यहाँ राधा बुलाती छोड़ साँसें प्राण त्यागे ।
दो दृगों में छवि तिहारी ढूंढने को नयन भागे ।
देख लो राधा तिहारी चरण रज को अब निहारे ।
हो चुकी हूँ मृणमृदा सी साँस अब मोहन पुकारे ।

स्वरचित🌹

नीलम शर्मा # नीलू

विषय : स्वतंत्र लेखन
विधा: मुक्त

दिनांक 29/12/2019

शीर्षक : माँ
माँ तुम महान हो,
जग का आधार हो।
वेद तुम ,पुराण तुम,
गीता और कुरान हो।
काशी तुम,काबा तुम,
तुम तीर्थ समान हो।
मूरत तुम, सूरत तुम,
तुम मन्दिर समान हो।
पूजा तुम, नमाज़ तुम,
तुम प्रार्थना अरदास हो।
लक्ष्मी तुम,सरस्वती तुम,
तुम नवदुर्गा समान हो।
गंगा तुम, यमुना तुम,
अमृतवाणी समान हो।
प्रेम तुम,स्नेह तुम
प्रेरणा बलिदान हो।
दिव्य तुम, तेज तुम
तुम गृह प्रकाशवान हो।
ममता तुम,समता तुम,
तुम हृदय विशाल हो।
गीत तुम,संंगीत तुम,
तुम सरगम समान हो।
रीति तुम,नीति‌ तुम,
तुम संस्कार की खान हो।
'रिखब'' का नमन तुम्हें,
तुम स्वर्ग से महान हो।

रिखब चन्द राँका 'कल्पेश'
@स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित
जयपुर राजस्थान

दैनिक कार्य स्वपसंद मनपसंद अंदाज अपना अपना
तिथि्ःः29/12/2019/रविवार


विषय -*स्वधर्म-कर्म*
विधाःः काव्यः ः

परोपकार हो कर्म हमारा।
मानवता हो धर्म हमारा।
नहीं संप्रदाय हो सपनों में,
ये निस्वार्थ हो कर्म हमारा।

वैरभाव नहीं रखें किसी से।
प्रेमभाव यहाँ रखें सभी से।
वैमनस्य सपनों भी न आए
क्यों मर्म छिपाऐं रखें जमीं से।

स्वदेश हमारा गौरवशाली।
भाग्यवान हम वैभवशाली।
राष्ट्र निर्माण के सपने देखें,
हो हमारा कर्म प्रभावशाली।

आओ हम सब राष्ट्र बनाऐँ।
रामराज हम फिर से लाऐं।
हैं धर्म वीर हम महा धुरंधर,
सपनों भी हम सौहार्द जगाऐं।

स्वरचित ः
इंंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जयजय श्रीराम रामजी
*स्वधर्म-कर्म*
29/12/2019/रविवार

दिनांक:29.12.19
वार:रविवार

विषय:स्वतंत्र लेखन
*नया साल*
***********
साल अब बीत गया,
सुख-दुख साथ गया,
नया साल आने को है,
स्वागत तो कीजिये ।

साल भर जो भी किया,
पाप-पुण्य मोल लिया,
शांत मन बैठ अब,
मूल्यांकन कीजिये ।

दुखे न किसी का दिल,
रहे सब साथ मिल,
कड़वे वाणी छोड़के,
मीठे बोल बोलिये ।

नारी का सम्मान करें,
बुजुर्गो का मान करें,
नये साल पर अब,
प्रण सब लीजिये ।
 विनय कुमार, न्यू बंगाईगांव, असम


विषय स्वतंत्र लेखन
दिनांक - २९/१२/१९

बौनी उड़ान
पद, प्रतिष्ठा पाकर आसमान में उड़ते हैं
अपने नीचे वालों को फिर कुछ ना समझते हैं
चंद दिनों में ही पैसे पर अपना रंग बदलते हैं
पुराने भाई,बहनों,रिश्तेदारों को
दुश्मन वह फिर समझते हैं
संपत्ति,ऐश्वर्य पाकर वह अपने आप में अकड़ते हैं
सच है यह की धन-संपत्ति पल भर में बिखरते हैं
दुख,सुख में परिवार साथ निभाते हैं पर कौन समझाएं
इन्हें अकड़ में अपनी सब कुछ खो देते हैं
समय नहीं मिलता उन्हें अपनों के लिए
फिर संग सबका छूट जाता है धीरे-धीरे
अकेले ही वह इंसान रह जाता है सच है
यह..दिन है तो, कभी रात भी आएगी
वक्त का तकाजा है जनाब हर पल
एक सा नहीं होता है,उड़ रहे थे जाकर
आसमान में ऊंचाई पर अकेले एक तेज
झोंका हवा का आया नीचे उड़ गए बिखर गए
फिर सूखे पत्तों की तरह,अकेले रह गयें
खुद को संभाल न पाए पैसे वाले हो कर
भी बौने ही रह जाते हैं हां कुछ लोग
सफलता के पायदान पर चढ़कर भी
नीचे गिर जाते हैं हां फिर से कुछ लोग
दिन है, रात है,सुबह है,तो रात भी होगी
खुशी है तो गम भी होगी इस संदेश को भी
क्यों नहीं समझ पाते हैं अक्सर लोग
पैसे वाले हो कर भी बौने ही रह जाते हैं
ऊंची उड़ान सोच कर बौनी उड़ान में रह जाते हैं
सब कुछ खोकर वह एक दिन अकेले पड़ जाते हैं

निक्की शर्मा रश्मि
मुम्बई
शीर्षक .. आने वाला साल
**********************


साल पुराना बीत रहा है, बस कुछ पल के बाद।
आने वाले साल का करो, दिल से इस्तकबाल।
खट्टी- मीठी यादों का था 2019 का यह साल।
मधुकर रस झलकायेगी अब आने वाला साल।
**
विश्व पटल के जन मानस पर उत्तीर्ण बीता साल।
ईश्वर की महिमा से सुन्दर बीते 2020 का साल।
खेतों मे हरियाली फैले , देश का हो विकास।
सीमा रहे सुरक्षित अपनी, भारत का हो नाम।
**
हिन्दू मुस्लिम साथ रहे, न हो कोई तकरार।
दुष्टों और निशाचर का हो, भारत मे संघार।
मानव मानव एक रहे न, हो कोई भेद भाव।
औरत बच्चे रहे सुरक्षित, निश्छल हो मनभाव।
**
प्राणी मात्र की भूख मिटे, अन्याय का हो प्रतिकार।
भारत अपने पुनः पुरातन, गौरव को करे स्वीकार।
आंग्ल विदेशी वर्ष में भी हो सर्व धर्म संम्भाव।
शेर की कविता पढो साथ में, बोलो जय श्री राम।
**

स्वरचित ... शेर सिंह सर्राफ

वज़्न -2122 1122 1122 22

ग़ज़ल

दिल ये उम्मीद सजाए तो ग़ज़ल होती है,
हौसला टूट न पाए तो ग़ज़ल होती है ।

मुझसे मिलने जो तू आए तो ग़ज़ल होती है,
और फिर लौट न पाए तो ग़ज़ल होती है ।

ख़ून के रिश्तों से बढ़कर कोई दिल का रिश्ता,
उम्र भर साथ निभाए तो ग़ज़ल होती है ।

सर्द रातें कभी फुटपाथ पे गुजरीं तो फिर,
गुनगुनी धूप जो आए तो ग़ज़ल होती है ।

तेज़ हो धूप, सुलगती हो ज़मी, बेकल जाँ,
अब्र फ़िर झूम के छाए तो ग़ज़ल होती है ।

राह के ख़ार भी मंज़िल की लगन में चुनकर,
फूल राही जो खिलाए तो ग़ज़ल होती है ।

पोछ कर अश्क़ लड़े ग़म से वो तन्हा और फिर,
लव पे मुस्कान सजाए तो ग़ज़ल होती है ।

'आरज़ू' ख़्वाब खुली आँख के पूरे करने
रात भर नींद न आए तो ग़ज़ल होती है ।

-अंजुमन आरज़ू ©


वेलकम न्यू ईयर
वेलकम न्यू ईयर, वेलकम न्यू ईयर मनाना है।


आप आओं बीते वर्ष की बड़ी गर्दिशें मिटाना है।
जख्म है हरा भरा, मरहम प्यार का लगाना है।
बहुत सारे काम बाकी रह गए उन्हें इस वर्ष निपटाना है।

प्रेमिका रूठी है, उन्हें प्यार, इजहार, मनुहार से मनाना है।

बुजुर्गों को इज्जत, छोटों को प्यार जतलाना है।

वेलकम न्यू ईयर, वेलकम न्यू ईयर मनाना है।

मित्रों से दिल भर बात ना हो पायी, इसका भी कसर इस साल मिटाना है।
अब न रहे कोई शिकवा- शिकायत, इस तरह से रिश्ता निभाना है।

वेलकम न्यू ईयर, वेलकम न्यू ईयर मनाना है।
प्रकृति की भी बेरूखी इस वर्ष मिटाएगी, प्रकृति के आँगन में नये पौधे लगाएंगे।
प्रकृति के आँचल को हरा भरा बनाएंगे।
नदियों में इस वर्ष प्यार का नीर होगा।
पर्वतों पे बादलों का स्नेह का निर्झर होगा।
अब न कोई रीता और न बेघर होगा।

वेलकम न्यू ईयर, वेलकम न्यू ईयर मनाना है।
समाज से भेदभाव, कुरीतियों को मिटाना है।
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई आपस में भाईचारा है।
जो तोड़ने आये इस बंधन को वो पापी ही नहीं हत्यारा है।
इस वर्ष ऐसी राजनीति को देश से हटाना है।

वेलकम न्यू ईयर, वेलकम न्यू ईयर मनाना है।
गरीबी, मँहगाई, हत्या, आतंकवाद, भ्रष्टाचार मिटाना है।
देश से ऐसे कानून बनाना है कि हमारी चिडियाँ उडान भर सके।
फिर से न देश पर ये प्रियंका रेड्डी, निर्भया का कलंक लग सके।
हर बेरोजगार को रोजगार अब दिलाना है।
हर घर में ज्ञान की ज्योति ये जलाना है।

वेलकम न्यू ईयर, वेलकम न्यू ईयर मनाना है।
गरीबों, मजलूमों को अधिकार ये दिलाना है।
रोटी कपड़ा मकान ही नहीं शिक्षा, सुरक्षा का अधिकार दिलाना है।
धर्म जाति पर रोटी सेकने वालों को सबक ये सिखाना है।
ये देश उनके बाप की जागीर नहीं ये बात उन्हें समझाना है।

वेलकम न्यू ईयर, वेलकम न्यू ईयर मनाना है।
Damyanti Damyanti

विधा_ काव्य

कविता.....
टीस जब मन मे हो
आहों की, कराहों की
तब कलम से शब्द निकले
तब जन्मती है कविता!

जब घुटन हो सीने में
दर्द भी बढ़ने लगे
और किसी को कह
ना पाये,
तब जन्मती है कविता!

मन मे हो उल्लास बहुत
खुशी छलकती हो जेहन में
तब शब्दों का श्रृंगार कर
जन्मती है कविता!

यादें जब दस्तक देती हो
और हम एकाकी हो ,
मन मे हिलोरें हो
हाथ मे कलम हो
तब जन्मती है कविता!

ऐसे कई अनगिनत पलों
में,शब्द बुनते है सुंदर जाल
नव सृजन होता है शब्दो का
तब जन्मती है कविता!
स्वरचित, दमयंती मिश्रा

भावों के मोती
विषय- स्वतंत्र लेखन

विधा--कुण्डलियाँ छंद
________________________

*बिंदी*
पायल बिंदी है सजी,चली नवेली नार।
आँखों में सपने सजा,ढूँढें राजकुमार।
ढूँढें राजकुमार, मिला न राम के जैसा।
जो भी पकड़े साथ,लगे वो रावण ऐसा।
कहती अनु सुन बात,नहीं कर मन तू घायल।
अपनों के चल साथ,तभी बजती है पायल।

*डोली*
डोली बैठी नववधू,चली आज ससुराल।
आँखों में कजरा सजा,बेंदा चमके भाल।
बेंदा चमके भाल,कमर में गुच्छा पेटी।
सर पे चूनर लाल,सजी दुलहन सी बेटी।
कहती अनु यह देख,कभी थी चंचल भोली।
चलदी साजन द्वार,सँवरकर बैठी डोली।

*आँचल*
छोटी सी गुड़िया चली,आँगन वाड़ी आज,
आँचल में माँ के छुपी,करती थी वो राज।
करती थी वो राज,लली छोटी सी गुड़िया।
पढ़ने जाती आज,कभी थी नटखट पुड़िया।
कहती अनु सुन आज,नहीं है बेटी खोटी।
देगी दुख में साथ,अभी है कितनी छोटी।

*कजरा*
कजरा डाले गूजरी,देखो सजती आज।
आँखों में उसके छुपा,कोई गहरा राज।
कोई गहरा राज,बता दे तू सुकुमारी।
खोले परदे आज,नहीं कोमल बेचारी।
कहती अनु सुन बात,सजा बालों में गजरा।
करती दिल पे राज,लगा आँखों में कजरा।

*चूड़ी*
चटकी चूड़ी देख के,झुमका भूला साज।
माथे की बेंदी मिटी,बिछुआ रोया आज।
बिछुआ रोया आज,नहीं अब सजन मिलेंगे।
भूली पायल गीत,किसे अब मीत कहेंगे।
कहती अनु यह देख,अधर में साँसे अटकी।
साजन हुए शहीद,विरह में चूड़ी चटकी।

*झुमका*
झुमका झूमें कान में,बेंदा चमके भाल।
पायल छनके पैर में,कहती दिल का हाल।
कहती दिल का हाल,चलो बागों में झूले।
सावन बरसे आज,सखी कजरी भी भूले।
कहती अनु यह देख,लगाए गोरी ठुमका।
इतराती है नार,सजा कानों में झुमका।
***अनुराधा चौहान***स्वरचि
मुस्कान के गढ़
💘💘💘💘💘

मेर
े पास आकर एक दिन,पूछती घबराहट
पता बता दो मुझे शीघ्र ही,कहाँ मिलेगी मुस्कराहट।

मैंने देखा बदली बदली,दिखती है इसकी चाहत
अवश्य ही कहीं हुई होगी,कोई न कोई सुगबुगाहट
फिर भी कह दिया मैंने,तुम सबकी विषैली है आहट
तुम्हारे नाम भी अजी़ब से,उकताहट ,झुँझलाहट, घबराहट।

खैर! अब जो लिखता हूँ मैं, उसको पढ़
तूझे भी मालूम होगा,मुस्कराहट के होते कैसे गढ़।

चन्द्रमा मुस्कराता है तो,चाँदनी खिलती है
फूल मुस्कराता है तो,सुगन्ध मिलती है
बादल मुस्कराता है तो,धरा मतवाली होती है
गेहूँ और सरसों की छटा,निराली होती है।

माँ मुस्कराती है तो,प्यार का सागर छलकता है
आशीषों से ढका हुआ,परिवार झलकता है
बच्चा मुस्कराता है तो,प्रकृति निहाल होती है
वह ज़गह हर खुशी से,मालामाल होती है।

लावण्य मुस्कराता है तो,शहनाई बजती है
सपनों से भरी हुई बारात बजती है
स्वागत मुस्कराता है तो,प्रेम की बोछार होती है
अनूठे उत्साह में नहाई,मनुहार होती है।

कवि मुस्कराता है तो,कविता का श्रँगार होता है
प्रकृति से यहीं सुनहरा, साक्षात्कार होता है
सँगीत मुस्कराता है तो,मिठास घुलती है
अध्यात्म के उल्लास की,सुरंग खुलती है।

तू भी केवल अब,इस राह की ओर बढ़
तुझे भी मिलेंगे अवश्य,मुस्कान के ये गढ़।

कृष्णम् शरणम् गच्छामि


दिनांकः-29-12- 019
वारः- रविवार

विधाः- छन्द मुक्त

शीर्षकः भोला कटरा सदा दूध पीता, स्याना कौआ विष्ठा खाता

कृपा से प्रभु की भोला कटरा,सदा दूध है पीता ।
स्याने कौए को, मिलती सदा खाने को ही विष्टा ।।

लगाओगे पेड़ बबूल के,खाओगे कैसे तुम आम ।
मिलेगा फल वैसा आपको, करोगे जैसा ही काम।।

बीज नफरत का बोने से, नफरत ही तुम पाओगे।
बोओगे बीज जैसा, फसल वैसी तुम ही काटोगे ।।

करते बच्चों से अपने तुम, जितना अधिक प्यार।
करता मालिक भी, बन्दों से अपने उतना दुलार।।

किसी बन्दे को मालिक के,जितना तुम सताओगे।
कहर मालिक का भी, अधिक उतना तुम पाओगे।।

मालिक के नाम अनेक, होना चाहिये तुम्हें ज्ञान।
मालिक के हर नाम पर, होना तुम्हें सदा कुर्बान।।

घर मालिक के किसी नाम का, यदि तुम तोड़ोगे ।
होंगे नाराज़ मालिक, फिर कहीं के भी नहीं रहोगे।।

मिलेगा नहीं किसी भी जहाँ में, तुम्हें कोई ठिकाना।
रहेगा नहीं कोई भी अपना, होगा जग सारा बेगाना।।

हो जायगा व्यथित हृदय तुम्हारा, मिलेगा नहीं चैन ।
जियोगे भय व चिंता के साये में, दिन हो चाहे रैन ।।

डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
व्यथित हृदय मुरादाबादी

29-12-2019
मुक्त विषय


बेचैन लहरें
हृदय अथाह, शान्त, समन्दर
कोलाहल कैद कितने अन्दर
साँय-साँय सबल-गति समीर
शोर कितना करता अधीर
मत रोको, शांतिभंग करने दो
उत्ताल तरंगोंं से लड़ने दो
देखें, द्वंद्व टिकता कितने पहर
क्या रोक पायेंगी इसे लहर?
जीवन गतिशील, कैसी शांति?
मुक्ति अभ्युक्ति, मन की भ्रान्ति।
भ्रान्ति की संक्रांति में जीने दो
लहरों का राग-रस जरा पीने दो
लहरें, तट से मिलने को आतुर
छूकर लौटते गतिहीन क्षण-भंगुर
यही तट बंध लहरों का रखवाला
तट की सीमा में रक्षित जलमाला
जिसदिन लहरें प्रबल, तट टूट गया
प्रलय अवश्यम्भावी, सब लूट गया
रोको, सब्र का बाँध न टूटने दो
तो क्या लहरों को अंदर घुटने दो?
अजब द्विविधा है, अजब पीड़ा है।
नियति ये कैसी गजब क्रीड़ा है।
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित


विषय -स्वतंत्र
दिनांक-29-12-2019
दिल दिमाग जंग,अक्सर दिल जीत जाता है।
क्योंकि प्यार दिलों दिमाग,हावी हो जाता है।।

दिल से सोचने वाला,पागल ही कहलाता है
सच झूठ में फर्क,वो कभी नहीं कर पाता है।।

जाती पांति की भाषा,वो नहीं समझ पाता है।
सावन अंधे को,सब ओर हरा नजर आता है।।

आंखें तब खुलती,जब वो धोखा खा जाता है।
ना घर ना घाट का,जग भी उसे बिसराता है ।।

दिल दिमाग काबू रख,बड़ों की बात मानता है।
जीवन में ठोकर,वो जन कभी नहीं खाता है ।।

दिल की सुन दिमाग से,नेतृत्व जो भी करता है।
यश खुद पाता,और जग में वह छा जाता है।।

वीणा वैष्णव
कांकरोलीस्वतंत्र लेखन
2 9,12,2019.
हाइकु
ठंड / शीत

सूर्य देवता
हर दिल का चैन
ठंड बैचैन।

शीत लहर
ठंड है बलशाली
धूप दुलारी ।

शीत ऋतु में
मकर संक्रांति में
स्वाद तिली में।

ठंड की बात
मूँगफली खा रहे
आग तापते।

गद्दा रजाई
जरूरत हमारी
ठंड बचाई ।

गर्म चाय
पराठों की बहार
ठंड बहाना ।

स्वरचित , मधु शुक्ला,
सतना, मध्यप्रदेश.
विषय-मन पसंद
विधा विधा-मुक्तक

दिनांकः 29/12/2019
रविवार

(1)
अगर बडा आपको बनना है,अब विशाल ह्रदय बनाओ ,
बढना है आगे ही सदा,अब तुम बुलंद हौसले लाओ ।
ओरों का जैसा करते हम,वही हमें मिल जाता है,
छोडकर झूठे कर्म सभी,अब नेक यहाँ बन जाओ ।।

(2)
होते है जो साथ हमारे,सब कर्म भाग्य के खेल हैं,
ये ही दूर करे हमको,फिर ये कराते मेल हैं ।
कर्म सुधारें सारे हम सब,तभी लोगों को शिक्षा दें,
अब हमें कोई कुछ भी कहे,अब हमें रखना मेल है ।।

स्वरचित एवं स्वप्रमाणित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर 'निर्भय,


स्वतंत्र विषय लेखन, कविता

"यों इजहारे दिल "

जैसे तमसा मिली ,गंगा मैया में जाके,
अहिल्या तरी , प्रभु का स्पर्श पा के।
क्यों न आ जाओ तुम भी,मेरे दिल में एक दिन,
हो ये जीवन सफल बस, तुम्हें पास पा के।

न रहेंगे अकेले, जो आ जाओगी तुम,
भुला देंगे गम सब ,जो अपनावोगी तुम।
बताएं हम क्या ,किस कदर चाहते हैं,
मिटा देंगे खुद को, जो ठुकरावोगी तुम।

सुनो बात मेरी ,न हमसा है कोई,
यों इजहारे दिल भी,करेगा न कोई।
जो समझा नहीं , मेरे जजबातों को तो,
तुम कोसोगी खुद को, और मिलेगा न कोई।

तुम कहो तो सही, दिल के अरमान अपने,
यों खफा हो रही हो,क्यों तुम आज हमसे।
बता दो खता इक,यदि तुम हमारी,
हो जाएंगे रुखशत ,दिल ये हार करके।
(अशोक राय वत्स) ©स्वरचित
रैनी, मऊ, उत्तरप्रदेश


29/12/19
वाणी

दोहा छन्द गीतिका
***
वाणी मानव को मिली,प्रभु अनुपम उपहार ।
वाणी ही जग में रही ,जीवन का आधार ।।

भरे जगत में चेतना ,वाणी सुर संगीत।
वाणी में हो दिव्यता,दिव्य जगत का सार।।

शब्द मात्र वाणी नहीं ,मिले भाव से प्राण,
अभिव्यक्ति की शक्ति से,मिटे दिलों के रार।

मीठी वाणी बोलिये, कुल की ये पहचान ।
अहंकार के बोल से ,मन पर होता वार ।।

बोयें जो!काटे वहीं ,तोल मोल के बोल।
मूल मंत्र जग में यही ,करिये सदा विचार ।

स्वरचित
अनिता सुधीर

29/12/19

अगर साथ तेरा गुरुवर न होता।
तो जीवन मे मेरे उजाला न होता।

न करता नमन तेरे चरणों मे।
न भावो से सब्दो की माला पिरोता।

अगर आपका ज्ञान मिलता न मुझको।
ये साधन समृद्धि मिलती न मुझको।

तुम्ही ने सिखाई समर्पण की बाते।
अंधेरा भगाया ज्ञान ज्योति जला के।

शब्दो की माला पिरोकर लाई।
करती अभिनंदन मैं चरणों मे आई।

स्वरचित
मीना तिवारी
29.12.2019
रविवार


मनपसंद विषय लेखन

विदाई 2019 , गत वर्ष
🍁🍁🍁🍁🍁
सफ़र ज़िन्दगी का निराला रहा
विष और अमृत का प्याला रहा
ख़ुशनुमाँ वादियाँ भी मिलीं राह में
ग़म की रातों में थोड़ा उजाला रहा ।।

नव वर्ष स्वागत
🌹🌹🌹🌹🌹
अमन चैन सुख से बीतें,
रात-दिवस हँसते-गाते
ईर्ष्या-द्वेष,घृणा और नफ़रत
मिटें सभी काली रातें
सजे सदा मुसकान अधर पर मने ईद और दीवाली
उज्ज्वल हो भारत का भावी ख़ुशहाली की हो बातें ।।

देहदान संकल्प
🌹🌹🌹
हर अंग अपना सँवर जाएगा
शून्य हो कर वो फिर शिखर जाएगा
जो दिया बुझ रहा है समय से परे
उस दिए में पुन:ज्योति भर जाएगा ।।

नए वर्ष का संकल्प
🌹🌹🌹🌹
चलो ज़िन्दगी, ज़िन्दगी से मिलाएँ
रहें ख़ुश हमेशा, ख़ुशी ले के आएँ।।

कुछ पल का जीवन खुला आसमाँ है
चलो मंज़िलों को भी, ऊँचा उठाएँ ।।

क्षितिज पर कहीं,आसमाँ झुक रहा है
झुकें,अपनी चाहत को थोड़ा झुकाएँ ।।

चलो सीख लें, फूल से हम भी हँसना
काँटों में रह कर , सदा मुस्कुराएँ।।

सफ़र ज़िन्दगी का,कठिन तो नहीं है
न घबराएँ,और ना किसी को डराएँ ।।

अगर मुश्किलें भी मिलें , राह में तो
चुनें शूल जीवन के, कलियाँ खिलाएँ ।।

‘ उदार’ ज़िन्दगी से बहुत कुछ है सीखा
चलो,फिर नया कोई सपना सजाएँ ।।

स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘उदार’

मुक्तक छंद

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

मेरी हर भावनाओं को वो बोल दे गयी
कैसे कहूँ कितने मोती अनमोल दे गयी ।।
मिरे जीवन में रंग भरने वाली वो हूर
कितनी आमद वो मुझको बेतौल दे गयी ।।

लड़खड़ाता हूँ जब जब वो सामने होती
लड़खड़ाते दामन को वो थामने होती ।।
मुलाकातों का सिलसिला तो कब का खत्म
लगे है अब भी आमने-सामने होती ।।

उसकी इक हंसी की खातिर जन्नत छोडूं
नही तोड़े जो बंधन वो बंधन तोड़ू ।।
क्या होती विरह की पीड़ा जाना हूँ मैं
'शिवम' और न दुनिया से अब सर फोड़ू ।।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 29/12/2019

नमन भावों के मोती
स्वतंत्र लेखन


अब जौहर मंजूर नहीं"

उन अबोध अबलाओं का क्रन्दन
जिन्हें सदियाँ करती रही है वन्दन।
आज ये कैसा समय आ गया
अपना पुनीत प्राचीन किधर गया।
'नार्यस्तु पूज्यन्ते' की परम्परा ना रही
नारी की मर्यादा तार-तार हो रही।
वो 'देवी' की पदवी का क्या हुआ
जो हमारे ऋषि-मनीषियों ने दी थी दुआ।
क्या ये भारत वही भारत है?
क्या ये भारत वही भारत है?
जहाँ की हर बाला एक राधा है
जहाँ की हर नारी एक सीता है।
अगर हाँ तो वो कृष्ण कहाँ खो गया।
क्या वो राम सीता को वन में छोड़ गया।
क्या यूँ ही तड़पती रहेंगी ये कलियाँ
क्या यूँ ही अपहृत होती रहेंगी ये नन्ही चिड़ियां।
ये चिड़ीमार इन नन्ही चिड़ियों का यूँ ही शिकार करते रहेंगे
ये हत्यारे कब तक निर्दोष अबलाओं का संहार करते रहेंगे।
सोचना है तो अब सोचो बाद में तो फिर पछताना है।
निकालना है तो अभी निकालो इस झंझावत से बाद में तो रुदन मचाना है।
निकल पड़ेंगी रण चण्डी बनकर चहुँ ओर
हाहाकार होगा।
कहीं काली, कहीं ज्वाला,
कहीं शेरोवाली बनकर प्रतिकार होगा।
सह लिया बहुत शोषण
शोषण के बदले अब होगा रण।
मर्दानी बनेगी वह दिन दूर नही।
अब जौहर मंजूर नही।

-cs प्रजापति
हिण्डौन सिटी
राजस्थान

स्वपसंद विधा

पढ़ाई

स्कूल के वार्षिक उत्सव में सुमन आई थी , यह वहीं स्कूल है जहाँ से पढाई शुरू करके अपनी पढाई आगे बड़ाई थी और आज शिक्षा अधिकारी बन कर यहाँ आई थी और एक चलचित्र उसकी आँखों के आगे घुम गया ।

" सुुुमन घर के बाहर बरतन माँझ रही थी, उसी रास्ते से दिनेश भी स्कूल के लिए निकलता था ।

सुमन को देख कर उसे बड़ा दुख होता , वह सोचता :
” जिस उम्र में हम स्कूल जा रहे है , यह काम कर रही है ।”

दिनेश ने यह बात स्कूल के प्राचार्य को बताई। वह बहुत सज्जन थे और बच्चों के भविष्य के लिए चिंतित रहते थे, सरकारी नियम के अनुसार उनके स्कूूूल में गरीब बच्चों के लिए सीट खाली थी ।
उन्होंने सुमन की माँ से बात की ।
सुमन पढ़ लिख कर अधिकारी बनना चाहती थी । प्राचार्य ने
सुमन को स्कूल में एडमिशन और छात्रवृत्ति का इन्तजाम करवाया जिससे वह पढाई भी करे और उसके घर की जरूरत भी पूरी हो सके । प्राचार्य

कहा :

" अब मैं अनुरोध करूँगा सुमन मेडम से वह अपने विचार व्यक्त करें ।”
सुमन की आँखो के आगे चल रहा चलचित्र बिखर गया था और उसने बिना झिझक अपनी बरतन माँझने सेे आज तक के सफर की बात सब को बताई ।
आगे उसने कहा :

” शिक्षा के लिए इच्छाशक्ति होनी चाहिए , राह खुद बनती जाती है यह वरदान है । कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए भी शिक्षा नहीं छोड़नी चाहिए , तभी हम अपने लक्ष्य तक पहुँच पायेंगे “

सुमन प्यार से बच्चों को आशीर्वाद देते हुए सबसे बहुत खुशी से मिल रही थी ।

स्वलिखित

लेखक

संतोष श्रीवास्तव भोपाल केम्प पुणे

सजल गीतिका

ज्ञान के दीप कैसे जलाते नहीं

शारदे माँ को कैसे मनाते नहीं।

हो रहा है व्यथित इस जगत में मनुज,
युगपुरुष को सभी क्यों बुलाते नहीं।

आज अर्जुन खड़े बीच कुरुक्षेत्र में
ज्ञान गीता का माधव सुनाते नहीं।

आज प्रतिशोध की भावना है प्रबल,
व्यक्ति परमार्थ जीवन लगाते नहीं।

गीत कविता कहानी हुई मुक्त अब
भाव बन्धन में अब क्यूँ समाते नहीं।

अपने' भक्तों की' रक्षा करें जो सदा
मात को शीश वो ही झुकाते नहीं।

प्रेम के भाव में लिप्त रहते सदा
कष्ट की है घड़ी पास आते नही।

स्वरचित
गीता गुप्ता मन
दिन- रविवार
तिथि-29/12/19

विषय-स्वतंत्र लेखन

"परी"
गम सारे मैं भूल जाती,
गुड़िया मेरी जब मुस्काती,
चलती जब तू ठुमक ठुमक कर
मन में मेरे कलियाँ खिलती,
मेरे घर की परी तू बनकर,
आँगन में आई नभ से उतरकर
कामयाबी के कदम जब चूमें,
करें सजदा हम सब झुककर,
तेरी हँसी में दुनियाँ सारी,
जान भी मैंनें तुझपे वारी,
साथ मेरे तू हरदम रहती,
पाकर तुझको मैं कभी ना हारी ।
***
स्वरचित -रेखा रविदत्त


रुख़ हवाओं ने,
जब बदला ।
तब हुई,
जीवन में हलचल ।
बीना हवा के,
जीवन में नहीं,
कोई भी पल ।
जब होता,
रुख शांत हवा का,
बहती पवन पुरवाई ।
शांत शीतल,
उमंत,उत्साह भरा,
होता हैं जीवन ।
जब गर्म होता,
रुख़ हवा का ।
जलती हैं काया ।
हर पल ढुंडते,
मिले कोई छाया ।
जब रुख़ हवा का,
होता शीतल,
बढती हैं,
शरीर में कंपन ।
थरथराते होंठ,
सर्द हवाओं में ।
शांत शीतल,
हवाएं होती,
जब क्रोधित ।
बदल देती,
रुख़ अपना ,
आँधी तूफान में ।
नहीं रह पाते,
सुरक्षित हम,
कच्चे पक्के मकान में ।
रुख़ जब बदलती,
हवाएं फ़िज़ाओं में,
हसीन वादियों में ।
भर लेते हम,
प्रिया को बाँहों में ।
गुनगुनाते होंठो से,
मधुर प्यारे गीत ।
जीवन बन जाता ,
प्यार भरा संगीत ।
रुख़ जब बदलता,
हवाओं का अफ़वाह में ।
बदल देती कायनात,
रुख़ अपना ।
अफ़वाह की हवाओं में ।
करती हैं,रक्तरंजीत,
गाँव,शहर गलियारे ।
बिछड़ते हैं ,
अपने प्रिय प्यारे ।
जलती हैं शांत चिताए,
अपनों के,अश्रू का,
दामन थामते हुए..
रुख़ बदलती हवाएं ...

प्रदीप सहारे

भावों के मोती
स्वतंत्र विषय

विधा-दोहा
विषय-शीतलहर

शीतलहर के कहर से,काँप रहा है देश।
चाबुक से तन पे पड़े,बदले सबके भेष।(१)

सूर्य देवता ठंड से, छुपे बादलों ओट।
शीतलहर घर में घुसे,करे चोट पर चोट।(२)

खेतों में पाला पड़ा,ठिठुरे सारे लोग।
शीतलहर के कोप से,दंड रहे हैं भोग।(३)

शीतलहर के साथ ही,मावठ आई जोर।
गर्मी डर से काँपती,ढूँढे अपना ठौर।(४)

बूढ़े थर-थर काँपते, बच्चों को आनंद।
शीतलहर चलती रहे,विद्यालय हों बंद।(५)

अभिलाषा चौहान
सादर समीक्षार्थ


दिनांक ३०/१३/२०१९
दिवस सोमवार

स्वतंत्र लेखन
आया नव वर्ष लेकर शिशिर चीर प्रभात :
🌺🍁💜🌺🍁💜🌺🍁💜🌺🍁💜
मनारही धरणी हर्ष भरा उज्ज्वलित पर्व ,
बीस-बीस के आगमन पर गारही धरणी हर्षों का आलोक छंद ।
सहस्रदलों का शब्द अंधकार खण्डित होगा,
मानव मनो को चहुंदिशि से घेर रहा जो चक्रवात ,
धरती के तृण,कणो को केशर कुंज करेगा,
नव वर्ष का प्रेम मधुरिम प्रभात :
बीस-बीस की निधियाँ भरी लौ करेगी जीवन उद्धार ।
धरणी पर विचर रहे वाणी के धूम पंखभरे नर विषाद,
मानव अलियों से भरे बृन्द- बृन्द ,
नव वर्ष में धरती गाती हर्षों का आलोक छंद।
मन भावना शब्द वाणी का लहरा रहा विषाद,
धर्म जाती के तट डुबोने को विषफनौ का उत्पात ,
एक लव्य है राष्ट्र रक्षित को प्रयत्न रत रक्षायाय ,
मानव तिरती लपटों की शब्द वाणी को रहा तान,
उपज रही बीस-बीस की ज्योतिर्स्पन्दन भरी अलंद,
ज्ञान वर्धा की वाणी से भरती विस्व पटल पर भारतीयता स्पंदन ।
हिम के कण धरा मानव को भेदरहे,
हृदय चितवन को झीनरहे विषाद कण स्पंदन,
उन्नीस के संग विषैले कणों को भेद,
बीस-बीस में होंगे उजले पथ रंगीले ।
वर्षेगे प्रेम आभा के जीवन श्रृंगार ।
नर इंद्र के मष्तिष्क अंगारक पाटल से मोती सा चमकेगा भारतीय विकास का मकरंद ।
क्षीण होगी विपक्ष की विघटन रूपी ज्वाला से उपजी विषाद।
भारत भूमि पर मर्यादा की होगी नवनीत प्रात:
बीस-बीस में सत्कर्म के अर्जित शाखाओं की पुलकित प्रात :
आया नव वर्ष लेकर अपना शिशिर चीर प्रभात ।
नापाक अलक्तारण भावना मिटेगी,
भारत भूमि पर बीस-बीस में आयेगी हर्षित भावना की अलकंद प्रभात ।।
सभी के स्वर ताल होंगे बीस इक्कीस सुखद ।
धरणी-धरा की औ-अक्ष बजायेगी लय भाव स्वर ।
जीवन गति होगी रश्मि सौ सौरभ सजग,
बीस के कण-कण अक्षर- अक्षर होंगे अजर,
प्रगति का दीपक नभ में चमकेगा,
होगा धरणी पर हर्षित गीतों का नर्तन का अमिट स्पंदन ।
सौहार्द भरे दीपों का स्नेह अमर,
विष- विषाक्त ज्वलंत ज्वाला जायेगी जर ।
होगा मधुरिम प्रेम दीपों का अक्षर क्षार अजर,
अग्नि शलभों को प्रेम क्षार कर्ता एक,
अग्नि भरी सांसौ का मिटेगा कलिष वेष,
जीणक्षीण होगा विघटन ज्वाला कारी द्व







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