Sunday, December 22

"स्वतन्त्र लेखन "22दिसम्सबर 2019

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ब्लॉग संख्या :-603
22/12/2019
स्वतंत्र लेखन......

(1)
हाय ! प्रीतम की जुदाई
शीत ऋतु हमको न भाई।

दिन काम में मतवारी
सूरत भी ना सँवारी
रतिया हुई हरजाई
शीत ऋतु हमको न भाई।

तड़प रही है साँवरी
रात वो हुई बावरी
कि मन ही मन घबराई
शीत ऋतु हमको न भाई।

मन अब योगी बन रहा
देख कर चँदा हँस रहा
चँदनिया है इतराई ..
शीत ऋतु हमको न भाई।

हाय ! प्रीतम की ज़ुदाई
शीत ऋतु हमको न भाई।।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।



विषय मनपसंद लेखन
विधा काव्य

22 दिसम्बर 2019,रविवार

प्रथम प्रस्तुति

कलियुग में द्वापर आया है
कौरव घेर रहे पांडव को।
आगजनी करते हैं दिनभर
प्रभु मौन देखे तांडव को।

शकुनी मामा नयी चालों से
घेर रहा नित अभिमन्यु को।
दुःशासन निर्वसन कर रहा
अपमानित कर रहा तनु को।

गांडीव धारी है वीर अकेला
हर चाल को विपरीत करता।
लक्ष्य उसका देश विकास है
नव निर्माण काम है उसका।

सत्य असत्य समर चले नित
शिखण्डियों का तांडव भारी।
भारतमाता स्वयम कराहती
लगे आज वह अति लाचारी।

कायर कौरव करे कुकर्म को
बहकावे में जनता आती।
असत्य को विजय मिले कब
सत्य रोशनी सबको भाती।

जब भी हानि हुई धर्म को
सदा अधर्म रहा नित रीता।
कुरुक्षेत्र में रथ से उठकर
कौन्तेय मित्र सुनाते गीता।

सो गल्ती गणना के बाद ही
फिर तो सुदर्शन ही चलता ।
सत्य विजय होती आई नित
पदम् कदम मंजिल बढ़ता ।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।


दिंनाक .. 22/12/2019
********************

🍁
यादें तो चिर यौवना है, 
इस पर ना झुर्री आती है।
मन अरू मस्तिक मे विचर रही, 
सपनो मे भी आ जाती है॥
🍁
अच्छी हो तो मनभाती है,
कुछ यादें बहुत रूलाती है।
मन के भावों अरू जीवन पे,
कुछ अमिट छाप रह जाती है॥
🍁
यादों को याद भले रखना,
यादों को सीख बना लेना।
पर मन पे हाबी हो जाए,
ऐसी यादों को भुला देना॥
🍁
पर बात नही आसा होती,
हर यादें भूल नही पाती।
जीवन के पथ पर बार-बार,
यादें रह-रह कर आ जाती॥
🍁
यह शेर की जो रचना होती,
सब यादें अरू स्मृतिया है।
कुछ खट्टी है कुछ मीठी है,
कुछ तेरी है कुछ मेरी है॥
🍁
ये यादों का साझा तुमसे,
जो शेर के मन मे संचित है।
उदगार मेरी यादों का है,
वो पढे जो इससे वंचित है।
🍁

स्वरचित ... शेर सिंह सर्राफ

😔।। देश की दुर्दशा ।।😔उग्र हुआ मानव स्वभाव
शैतानियत का साया है ।
बिना सोचे और समझे 
हिंसक रूप दिखलाया है ।

हिंसा नही है कोई हल 
हानियाँ खुद उठाया है ।
हिंसा करके दुनिया में
कौन नही पछताया है ।

मतलब परस्ती वालों ने 
नादानों को उकसाया है ।
किस्सा नही है ये आज का
इतिहास ये बतलाया है ।

उग्र रूप अच्छा है पर 
सीमा पर जो बताया है ।
घर में लड़ना शौर्य नही 
कायरता कहलाया है ।

सच क्या और झूठ क्या 
पता भी नही लगाया है ।
भीड़ में बस हो हो करना 
कितनों को न सुहाया है ।

बड़े बड़े कब लड़े यहाँ 
छोटों ने खून बहाया है ।
अच्छे काम में दिल न दौड़ा 
बुरे में जोश जगाया है ।

कहें जीनियस हुआ जमाना
ये असत्य समझ आया है ।
देश की दुर्दशा पर 'शिवम' 
आज फिर नीर बहाया है ।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 22/12/2019



दिनांक..................22/12/2019
दिन......................रविवार
★★★
★★★★★★★★★★★★★★★★
" दिव्य प्रेम पावन आँचल में ,
भरकर तुम फिर आ जाओ । "
गीत छंद विधान --- ताटंक छंद ,
यति --- (16,14 )
पदांत --- (222)
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
महकी सुगंध पुष्प बाग में,
कृष्ण भ्रमर गीत सुनाओ।
दिव्य प्रेम पावन आँचल में ,
भरकर तुम फिर आ जाओ।
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
ऊषा की लाली आभा से,
खिला ताल पर पंकज जब।
भोर देख खग लगा चहकने,
चमक रही ओंस तृणो पर।
विनती है ईश प्रभाकर से,
आभा सब पर फैलाओ।
दिव्य प्रेम पावन आँचल में ,
भरकर तुम फिर आ जाओ।
★★★★★★★
मिटा तिमिर सुंदर प्रभात से,
हुआ भोर पावन जग में।
मंदिर गुंजा शंख नाद से,
कलरव करती खग नभ में।
सुंदर सा छबि देख मुदित मन,
श्याम धरा पर आ जाओ।
दिव्य प्रेम पावन आँचल में ,
भरकर तुम फिर आ जाओ।
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा छ.ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा


बिषय,, स्वतंत्र लेखन
देश के हालात पे दिल जार जार हो गया

दंगा फसाद.ही.इनका आधार हो गया
जिस का खाते उसी को लूटते
व्यर्थ की भावनाओं के मंसूबे फूटते
भारत का नमक खाकर करते गद्दारी
जो नहीं उनका उनसे बफादारी
मुठ्ठी भर आतताइयों ने बिगाड़ी आन बान शान
इन पापियों की वजह से सुलग रहा हिंदुस्तान
इन्हें वापस भेज दें पाकिस्तान
वहीं पता चलेगी इनकी क्या पहचान
स्वरचित,, सुषमा, ब्यौहार

Damyanti Damyanti

विषय_ मन प़सद लेखन |
माँ धरा रोरही |
अश्रु अविरिल झर रहे 

ग ई ब्रह्म के निकट |
ब्रह्म ने पूछा प्रिये 
येअश्रु बिंदु क्यो|
बताओ जरा हुआ क्या |
हे देव जानकर भीपूछरहे क्यों |
देह तार तार हो रही |
कैसे सज्जन जीऐ 
शैतान के रहते यंहा |
पुनः द्वापर दर्शन |
पांडव हार रहे 
आओ माधव अबतो |
दखो अब सहना मुश्किल |
अर्जुन को को पुनः सुनाओ 
गीता के संदेश करो फिर से 
भारत भू पर मानव धर्म स्थापना |
नारी के बहते अविरील अश्रु
ये दंगे फसाद आखिर कब तक |
मै तो प्रभु कर रही तेरा इंतजार |
|स्वरचित_ दमयंती मिश्रा



छंदमुक्त कविता 

नव वर्ष 

हे नव वर्ष 
तुम्हारा 
स्वागत है
तुम 
सरस मधुर
बन कर आओ
मानवता 
भाईचारे का
लाओ संदेशा 
सुखी समृद्ध हो
हर नागरिक
है यही कामना 
हमारी
प्रतिष्ठा बड़े 
विश्व में 
भारत की
करते यही प्रार्थना 
ईश से 

पिछले साल तो
हमने सहें हैं 
दर्द अनेक
कभी बाढ़ तो
कभी अलगाव 

जगमग हों 
दिशा चहुंओर
भारत की
आर्थिक जगत में 
भरे भारत हुंकार 

हे नव वर्ष 
तुम्हारा 
स्वागत है
अभिवादन है
अभिनन्दन है

स्वलिखित 



भावों के मोती समूह 
22-12-2019

विषय -स्वतंत्र लेखन
********************
*दंगा-फसाद*
२१२२ २१२२ मापनी पर,,,,
१)
देश का ही,,, खा रहे हैं
सत्य को, झुठला रहे हैं/
**
चंद पैसों के लिए, सब,
मौत बनकर,, छा रहे हैं 
***
देश के ग़द्दार मिल सब
देश को ,,,,,भरमा रहे हैं/
***
हैं अमन के ख़ास दुश्मन,
सब यहाँ,, भड़का रहे हैं/
***
बेहया----- बेशर्म -नेता,
साज़िशें ,,,,,,,फैला रहे हैं/
***
राष्ट का अपमान करके,
ज़िंदगी ,,,,,शरमा रहे हैं /
***
हैं विरोधी,,, देश के सब,
बन ,,,,,,,दरिंदे आ रहे हैं /
***
पोल खुल,जाती तभी सब
जेल,,,,,,, नेता जा रहे हैं/
***
है,,, ,,,वतन प्यारा हमारा,
क्यों? अमन बिगड़ा रहे हैं?
***
मार डालो !,,,,शूट कर दो,
देशद्रोही,,,,,,,,छा रहे हैं //
***
*******************
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार 
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित ( गाजियाबाद)


मन पसंद विषय लेखन 
तिथि 22/12/2019/रविवार

विषय-*चाहत*
विधा -मुक्तक 
बह्न, 1212,1122,1212,22(22)

कभी समय दो हम तुम्हें मांगते तुमसे।
रहो सदा तुम बस यही चाहते तुमसे।
साथी सचमुच ही यार आपको माना,
कभी समझोगे जज्बात चाहते तुमसे।

नहीं लिखा है नसीब में मानो ऐसा।
अभी नहीं भूले क्या तुम जानो ऐसा।
स्वस्थ सुखी रहो यही कामना करते
अब अगले जनम मिलेंगे मानो ऐसा।

स्वरचितःः 
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय 
मगराना गुना मध्य प्रदेश 

22/12/19
Mathmatics day 


स्वतंत्र दिवस

वृत्त परिधि पर अनगिनत बिंदु
सबकी दिशायें अलग अलग
जीवन परिधि पर 
ऐसे ही अनगिनत लोग
सूक्ष्म कण मानिंद
विचार और राह 
सब अलग अलग।
ना लेना एक ना देना दो
फिर क्यों जंग छिड़ी हुई
मैं सही तुम गलत।
कोई दो बिंदु गर 
प्रेम केंद मे रख, जुड़े तो
व्यास बन बड़े हो जाये
केंद्रित जो न हुए प्रेम से
कॉर्ड बन छोटे हो जायेगे(chord)
एक और एक मिल 
क्यों बनते हो शून्य 
जिंदगी है जोड़ ,गुना 
एक और एक मिल
बन जाओ ग्यारह ।

स्वरचित
अनिता सुधीर

22/12/2019
आईना

अक्स दूसरों की दिखाने का हुनर
कितने सलीके से आजमाये हुए है
वो आईना भी एक सफ़ेदपोश है
स्याह पहलू में अपने छुपाये हुए है 

निकल परदे से जो कभी झाँको 
तो उसकी जात नजर आ जाएगी
भरी कमीनगी है जिनके दिल में
होंठ तो उनके भी मुस्कुराये हुए हैं 
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित



ए -ज़िन्दगी से सबक सीखते हैं 
लफ़्ज़ों से ज़िन्दगी की मँहक सीखते हैं।।

दिल में जला के हिम्मते-ईमान का दिया 
अरमान की हल्की सी खनक सीखते हैं।। 

कोशिश किया तो पा गए, क्या कुछ नहीं मिला 
संघर्ष से मीठी सी धमक सीखते हैं।।

तिनका नहीं है डूबता, सागर में डूब कर 
इक ऐसे ही सहारे की ,ललक सीखते हैं।।

जब से मिले हैं प्यार की गहराइयों से हम 
उस आसमाँ से नीली चमक सीखते हैं ।।

ख़ुद हँस लिए ‘ उदार’ औरों को हँसा लिया 
हँसने -हँसाने का ही, सबक सीखते हैं ।।

स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘22/12/2019
नमन मंच भावों के मोती, गुरूजनों, मित्रों।

हाथ थर-थर कांपता हुआ।
पैर जम से गए हैं।
ये है दिसंबर की ठंडी।
सब काम ठप्प पड़ गये हैं।

चाय बनाने की हिम्मत,
मुझमें नहीं है होती।
पर पीनी है चाय गर,
तो हाथ है चलानी पड़ती।

सोचते हैं कि घर पर,
खाना नहीं पकाएं।
भूख जब लगे तो,
बाहर से हीं मंगवाएं।

या फिर चाय,कौफी से ही,
ठंड में करें गुजारा।
ठंड ने दम किया नाक में।
क्या, कैसे हाल अपना सुनायें।

वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित


विषय -स्वतंत्र सृजन 
दिनांक 22 -12- 2019 
संघर्ष बिना किसी का,जीवन कहाँ निखरता है।
भाग भरोसे जो बैठा,दुखी जीवन बिताता है।।

कोशिश करने वाला,कामयाबी को पाता है।
कठिन परिस्थितियों में,राह स्वयं बनाता है।।

जिंदगी जंग है,जीतना कहाँ आसान होता है।
जुझारू व्यक्ति ही, सब मुमकिन बनाता है।।

कुछ समय के लिए,पागल वो जग में बनता है।
संघर्ष जारी रख,वह जग में सफलता पाता है ।।

अंजाम की परवाह नहीं,आगाज वह करता है।
इस तरह संघर्ष से,जीवन उसका निखरता है।।

संघर्ष कर सिकंदर,जग विजेता बन जाता है।
देखो मरकर भी वो,नाम अमर कर जाता है।।

कह रही वीणा, संघर्ष बेकार नही जाता है ।
परिवर्तन के दौर में ,सम्मान वो ही पाता है।।

वीणा वैष्णव 
कांकरोली


विधाः- छन्दमुक्त
शीर्षकः-ऐ बन्दों, मालिक तुम्हारे हम (पहला भाग)

(सः—मालिक का निर्देश) अंतिम कड़ी

आयी है बुध्दि भारतवासियों ने, करी उन्होने अब हमसे फरियाद।
बतायेंगे उपाय भी हम उनको, पाने की उन नेताओ से निजात ।।

कर लीजिये दूर तुम सब भी, अब तो समस्त ही अपने भरम ।
बताया है गीता में हमने पाओगे फल वैसा ही, होंगे जैसे करम ।।

त्याग दो प्रत्येक चुनावों में इस बार तुम भी, सारे ही अपने खोट ।
कर लो तय केवल डालने का तुम भी,ईमानदारी से ही अब वोट ।।

करे वादा चुनावों में अगर एक बार ही नेता कोई भी तुमसे झूठा ।
देना नहीं वोट अपना किसी भी चुनाव में उसको, बैठा देना भट्टा।।

चुने हैं नेता जो तुमने अब तक,होंगे वही दगाबाज़ या बहरुपिया ।
कर दोगे खड़ी तुम स्वयं ही तो केवल,चुनावों में उनकी खटिया ।।

अपनाओगे तुम अगर बताये हुये हमारे, समस्त ही उपरोक्त काम ।
दगाबाज़ तथा बहरुपिये नेताओं का, कर दोगे तुम ही काम तमाम ।।

कहता है व्यथित हृदय, मान लीजिये आप सब मालिक का संदेशा ।
दगाबाज़ तथा बहरुपिये नेताओं , रहेगा ही नहीं कोई भी अंदेशा।।

डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित

22/12/19
मुक्त सृजन

बीत रहा यह वर्ष हमारा
कम हुआ जीवन वर्ष हमारा
बीती यादो को छोड़ चला
हमको राहों में छोड़ चला
हम खड़े अभी भी राहों में
जीवन की लंबी बाहों में
कुछ साथी मिलकर छूट गए
अपने बन कर के लूट गए
कुछ नए मिलेंगे राहों में
सुख दुख के इन लम्हो में
कुछ मुझसे खफा हो जायेगे
कुछ बाहों में खो जायेगे
कुछ अपनापन बिखरायेगे
नई उम्मीदे में सजायेंगे
हम चलदेगें नई राहों में
अंजानो में अपनापन ढूढेंगे
बिछड़े भी मिल जायेगे
कुछ गले शिकवे बतलायेंगे
हम भूली बाते बिसरायेगे
जमी धूल झटकाएँगे
फिर से सफर में खो जायेगे
अनसुलझी बातों को सुलझाएंगे
सही गलत में खो जायेगे
नव को पुराना फिर बनायेगे

स्वरचित
मीना तिवारी


स्वतंत्र सृजन
22,12,2019.

गणित -

गणित जीवन का जटिल बहुत है ,

बड़े बड़े भी यहाँ हो जाते फेल हैं ।

जोड़ घटाना कब क्या करना है ,

कोई नियम नहीं है हर नियम फेल है ।

दुनियादारी के होते कुछ अंक ऐसे हैं ,

परिभाषा सुविधा से ही इनकी होती है ।

किसी जगह पर नौ दो ग्यारह हैं ,

तो कहीं एक और एक ग्यारह हो जाते हैं ।

परिवार में जब नारी माइनस होती है,

घर के बहुत सारे जोड़ सफल हो जाते हैं ।

गुणा भाग के अवसर जब आते हैं ,

रिश्ते हमारे बनकर बराबर आ जाते हैं। 

गणित दिवस पर हमें मनन करना है,

अपने जीवन का गणित सरल करना है ।

स्वरचित, मधु शुक्ला . 
सतना, मध्यप्रदेश .


विषय - मनपसंद सृजन
विधा - पद्य
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सरस्वती वंदना
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🙏🙏🙏🙏🙏

जयति जय वीणापाणि
जयति जय हंसवाहिनी
ज्ञानदायनी मइया वर दे ,वर दे
मेरी झोली आशीषों से भर दे।

काम , क्रोध , मद , लोभ विकृति
छाया है तमस अंधकार में है सृष्टि
शीतल दायनी मइया वर दे वर दे
मेरा संकुचित हृदय विस्तृत कर दे।

जयति जय ग्रन्थ धारिणी
जयति जय ज्ञानचक्षु दायनी
श्वेतवस्त्र धारणी मइया वर दे वर दे
मेरी झोली धवल प्रकाश से भर दे।

पूजा ,अर्चना न कोई नैवेद्य ज्ञान
मैं हूँ अज्ञानी मूर्ख सुता नादान
पापहारिणी मइया वर दे वर दे
मुझे अपने चरण में शरण दे।

संगीता सहाय "अनुभूति"
स्वरचित मौलिक
रांची झारखंड

दिन :- रविवार
दिनांक :- 22/12/2019

विषय :- स्वत्रंत लेखन
विधा :- मुक्तक

(1)
जमाने धाक अपनी कुछ अंधेरे आ गए हैं,
नेताओं की शक्ल में कुछ भेड़िये आ गए हैं।
निगाहों को अपनी चोक्कस ही रखना मित्रों,
कि चमन में अमन के कुछ लूटेरे आ गए हैं।

(2)
दर्द ए इश्क पहले कभी इतना,हमने सहा ही नहीं,
सिवा तेरे किसी और को अपना, हमने कहा ही नहीं।
थे बेताब सुनने को इजहार ए इश्क तेरे ही लब से,
पर मौन ही अड़े रहे तुम तुमने कुछ कहा ही नहीं।

(3)
किसी मयकदे की छलकती जाम है,
सिगरेट के धूएँ में झूमती शरेआम है।
कहीं रगड़ी जाती चूने सँग खैनी बन,
यूँ जिंदगी बन रही नशे की गुलाम है।

स्वरचित :- राठौड़ मुकेश








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"अंदाज"05मई2020

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