Thursday, February 28

" विजयपथ "27फरवरी 2019

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             ब्लॉग संख्या :-312
आग धधकती इंतकाम की
हिय में सदा जज्बात उमड़ते
संकल्पों पर नित रहते दृढ़
ऐसे वीर विजय पथ वे बढ़ते
साहस धैर्य कभी न खोते
वे जीवन मे कभी न रोते
विजयपथ गौरव पथ आगे
कातिल पथ पर कांटे बोते
चिड़िया की बस आँख देखते
कौन्तेय से सम तीर चलाते
आगे बढ़ते कभी न रूकते
दानव को नित रण रुलाते
विजय पथ बढ़ना गौरवता है
वीर सिपाही शौर्यता होती है
रिपुमर्दन कर वापस सुरक्षित
नापाकी रिपु आँखे मलती है
सहनशक्ति की सीमा होती
पानी जब सिर के ऊपर हो
तबाह ठिकाने तब होते हैं
वतन हमारा सर्व प्रिय हो
भरतों का मिश्रित भारत है
शेर पकड़ कर दन्त गिनते
शौर्य पराक्रम अदम्य साहस
देख देख रिपु खुद गिरते
कर तिरंगा हम बढ़ते हैं
गङ्गा की सौगंध हमें है
विजय पथ सदा अडिग हैं
आज चुनौती खुली तुम्हे है।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

1 विजयपथ
लक्ष्य हुआ तैयार
चौकन्ना पाक।

2 सुखी संसार
पारस्परिक स्नेह
विजय पथ।

3 प्रेम की पूंजी
विजय पथ धारी
है शक्ती नारी ।

4 है परिश्रम
सफलता की कुंजी
विजय पथ।

5 उद्वीप्त मन 
विजयपथ हुआ
बुजुर्गो की दुआं ।

स्वरचित एंव मौलिक
ज्योति जैन "अनु"

विजय पथ पर अग्रसर , 
सदैव तुम बने रहो |
माँ भारती के लाल वीर ,
बने चिरंजीव तुम रहो |

मिले दुश्मनों को हार ,
सदा शौर्यवीर तुम रहो |
भारत के ललाट पर ,
तुम मुकुट बन के रहो |

आन बान शान का , 
सूर्य तुम बनकर रहो |
अपने प्रखर ओज से , 
दुश्मनों को दहते रहो |

बरसात खुशियों की बनो , 
खुशियों को बाँटते रहो |
तुम देश की धड़कन बनो , 
इसकी जान बनकर रहो |

आज धधकती आग से , 
मुक्ति हृदय को मिली |
हमारे शहीदों को ये , 
श्रध्दाजंलि सही मिली |

नसीहत ये दुश्मन को ,
बिल्कुल अब सही मिली |
जय हिन्द जय वीर को , 
गूँज एक नयी मिली |

स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश 
पुष्प नही काँटो की डगर है,
कंटक शिला जीवन दुष्कर है।
पथिक नही वो यौवन प्यासा,
मातृभूमि जीवन पुष्कर है।
🍁
रक्त माँगती है धरती तो,
तुम पर जीवन अर्पण है।
शौर्य सुधा वसुधा का पावन,
मंगल और सुमंगल है ।
🍁
वो बोल रहा है निर्भय हो
की राष्ट्र नही झुकने दूँगा।
सौभाग्य श्री ले आऊँगा,
सम्मान नही मिटने दूँगा।
🍁
आया है राष्ट्र ध्वँजा लेकर,
तुम विजयीपथ का राही हो।
है नमन शेर का है तुमको,
तुम भारत गौरव के माही हो।


🍁स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
विजय पथ पर निकल पड़े हैं
वो लेकर सीने में आग
दुश्मन भी दहल गया
देख अपना यह अंजाम
पुलवामा के हादसे में
वीरों को हमसे छीना था
घुस कर उनके घर में मारा
दुश्मन का छलनी छीना था
एक के बदले दस-दस मारे
गिन-गिन कर लिया हिसाब
यह भारत के वीर जवान हैं
कभी भी नहीं मानते हार
यह तो सिर्फ छोटी सी झलक थी
पूरी पिक्चर अभी बाकी है
संभल जाओ आतंक के मसीहा 
वरना समूल नाश हो जाएगा
जो घाव दिया है तुमने हमको
वही हाल तुम्हारा हो जाएगा
विजय पथ पर निकले हैं अब
पीछे मुड़कर ना देखेंगे
वीरों की शहादत पर सेना की
यह तो सिर्फ श्रद्धांजली थी
बदला तो अब शुरू होगा
हर दर्द का गिनकर हिसाब होगा
जल उठी है हर सीने में अब
यह आग है केवल क्रांति की

***अनुराधा चौहान***© स्वरचित
लघु कविता
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
हे !वीर पुत्र,
तुमसे है देश का अभिमान
रखी तूने आज फिर से
भारत माँ की लाज।

हे!वीर पुत्र,
तुमसे है तिरंगे की शान
शत्रुओं के आगे खड़े सीना तान
सरहद पर रहते तैनात।

हे!वीर पुत्र,
घर में घुसकर मारके आये
शत्रुओं को धूल चटाके आये
डर से तेरे दुश्मन भागे।

हे!वीर पुत्र,
आतंकी का करके काम तमाम
शौर्य तिलक लगाके आये
विजय पताका फहराके आये।

हे!वीर पुत्र,
कैसे करुँ तेरी गुणगान
अखंड दीप प्रज्वलित करुँ
रखूँ "विजयपथ"का मान।।

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।

बढ़ता रहा वो विजयपथ पर बेपरवाह...
भीषण गर्म रण हो,या हो बर्फ की मार...
बेपनाह मोहब्बत उसकी थी मातृभूमि से
करता रहा वो दुश्मनों पर वार दर वार
सहा बरसाती मौसम और थपेड़े लू के..
अडिग खड़ा रहा सदा वो बिना झूके..
पथ विजय का इतना नहीं आसान..
लेकर चलना होता है हथेली पर जान..
कितने ही कांटे हो बिछे रहों में..
थामे रखा सदा तिरंगा बांहों मे..
आँच न आने दी कभी माँ भारती पर..
वार दी अंतिम सांस तक माँ भारती पर..
नमन करूँ ऐसी हुतात्माओं को..
नमन करूँ उन वीरों की माताओं को..

स्वरचित :- मुकेश राठौड़

ज़िन्दगी की राह में हों असंख्य अड़चने |
दुःख के पहाड़ हों या की दर्द हों घने |
तू नहीं निराश हो मन में बस विश्वास हो 
कर शपथ हर डगर पग बढ़ा तने - तने |

ना थके ना रुके ना मुड़े विपत्ति में |
एक पत्र छाँह भी माँग ना विपत्ति में |
पत्थरों को काट कर रास्ता बनाएजा-
सामने ही लक्ष्य है जीत हर विपत्ति में |

धीर - वीर बन के तू दुश्मनों पे वार कर |
दहशतें जड़ से मिटा आतंकियों को मार कर |
पांच्यजन्य फिर बजा गूँज जाये विजय पथ -
प्रज्ज्वलित हो ज्ञान ज्योति शक्ति का विस्तार कर |

जुगनुओं की पंक्ति सा चीर अंधकार को |
आंधियों के वेग सा रोक हर प्रहार को |
लक्ष्य को तू साध ले हर डगर हो विजय पथ -
तू महान जय जवान तेज कर कटार को |
©मंजूषा श्रीवास्तव 'मृदुल'
लखनऊ ,उत्तर प्रदेश

विधा :-वीर छंद / आल्हा छंद 

भारत के वीर सेनानियो ,बहिनें देती हैं आशीष
फ़ौजी की विधवा को देना , थाल में रख शत्रु का शीष ।।

तीन सौ शत्रु अभी मरे हैं , बाक़ी रहते कई अनन्य ।
रक्त रंजित धरा हो ऐसे , लहू बरसाय ज्यों पर्जन्य ।।

देना मृत्यु शत्रु को ऐसी ,काँपे धरती अरु आकाश ।
वंदेमातरम् हो गूँजता , फेंको मिराज के जब पाश ।।

विजय पथ पर बनके धनुर्धर , कठिनाइयों से टकराना ।
महा प्रयोजन जब हो पूरा , तब ही लौट के घर आना ।।

अहिंसा को हम व्रत मानते , कायर सोच नही हमारी ।
भड़के आग जब प्रतिशोध की , लगती क्रोध में चिंगारी ।।

हम शेरों के नख फ़ौलादी , डालते फाड़ सियारों को ।
दुश्मन जब है घात लगाता , बख्शें नहीं ग़द्दारों को ।।

जयकारों से गूँजी घाटी ,सुनती गूँज गलियारों में ।
उमड़ रहा साहस का दरिया , युवाओं की ललकारों में ।।

करती़ शोण पान दानव का , दुर्गा रूप में नारी है ।
अपनी पर जब वह आ जाती , पड़ती शत्रु पर भारी है ।।

रचना सीखें चक्र व्यूह की , जब शिशु गर्भ में होता है । 
प्राणों को न्योछावर कर के , वीर सेनानी होता है ।।

विजय पथ पर अग्रसर रहना , शत्रु को मार गिराने को । 
महायुद्ध निर्णायक होगा , विश्व में ध्वज फहराने को ।।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी 
सिरसा 125055 ( हरियाणा )


भावों के मोती
२७/२/२०१९

विषय-विजयपथ

विजय पथ नहीं सरल,
पीना पड़ता है गरल।
वीर-रत्न न देखते,
पथ में फूल हैं या शूल।

निकल पड़ते वीर वे,
बाधाओं‌ को चीरते।
मौत की भी क्या बिसात,
जो लक्ष्मण रेखा खींच दे।

काल भी है हारता ,
देख उनकी शूरता।
दांत में ऊंगली दबा
शत्रु देखे वीरता।

शौर्य का ये रथ जो,
विजय-पथ पर बढ़ा।
देख कर तूफान ये,
शत्रु मैदान छोड़ता।

हारना सीखा नहीं,
न छोड़ते मैदान हैं।
परमवीर, देश की,
सेना के जवान हैं।

जल-थल-नभ में,
धाक उनकी जम रही।
विजय-यात्रा देख उनकी,
शत्रु की सांस थम रही।

वीरों ने विजय-पथ पर,
पहला कदम बढ़ा दिया।
शत्रु के घर में घुसे,
आतंक का किला ढहा दिया।

रूकेगी न‌ थमेगी न,
वीरों की यह यात्रा अब।
लिखी जाती रहेगी 
विजय-पथ पर विजय गाथा अब।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित ,मौलिक

विजय का रथ चला है
दुश्मन का घर जला है ।।
उसके गुनाहों का उसे
माकूल जबाव मिला है ।।

छुपा बैठा था हुआ हलाकान
दरिंदों का मिटा नामोनिशान ।।
तबाही का तांडव रच दिया
सेना का बढ़ा देखो सम्मान ।।

भारत में वीरों की न कमीं है
पाक की तो नापाक जमीं है ।।
नसीहत उसके जिह्न में न आये
अब किया होगा 'शिवम'यकीं हैं ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"

विजय की कामना लेकर
विजय रथ पर चढ़ो वीरों
कंटकाकीर्ण है ये पथ
मगर बलवीर तुम वीरों
नही आंधी कोई तूफान
तुमको रोक पायेगा
तुम खुद तूफान हो
तूफान तुमको क्या डरायेगा
विजय पथ पर बिछे काँटे
बनेंगे फूल तुम देखो
तुम्हारे हौंसले ही
दाँत दुश्मन के तोडेंगे
पुकारे ये धरा तुमको
तुम्हारा ये लहू मांगे
बिछा कर लाश दुश्मन की
बढ़ो मंजिल पे तुम आगे
तिरंगा गाड़ सीने पे
उड़ा दो नींद दुश्मन की
नहीं पानी भी वो माँगे
करो हालत कुछ तुम ऐसी
दलों तुम मूंग छाती पे
न ले वो सांस एक पल भी
छुपे पाताल में जाकर
वहां से ढूंढ तुम लाओ
कुचल कर नाग के फन को
विजय का गान तुम गाओ

सरिता गर्ग

स्व रचित

नभ के मस्तानों की टोली लगी उड़ाने भरने |
पुलवामा के जांबाज़ों के गम को हल्का करने |
थाम तिरंगा हाथों में हौले से बम बरसाया
ध्वस्त ठिकाने करके आये मन की पीड़ा हरने |

पी ओ के को लांघ चले साँपो के बिल को रौंदा |
जैशे मोहम्मद घबराया जब धधका आज घरौंदा |
आतंकी हरकतें छोड़ ऐ पाक होश में आजा -
ओ इमरान दांत खट्टे करदेगा एक करौंदा |

बहुत मोहलते दी भारत ने पर तू बाज न आया |
बेगुनाह का खून बहाना सदा तुझे है भाया |
सत्य अहिंसा के पोषक हम पर लाचार नहीं है-
तेरे आतंकी खेमे को हमने आज जलाया |

ओ सेना के सेना नायक शत शत नमन तुम्हे है |
वायु यान मिराज उड़ा जब शत शत गर्व हमें है |
पुलवामा के छल का बदला तुमने आज लिया जब -
जन जन में है हर्ष अनोखा शत शत दीप जलें हैं |

तेरी करतूतों की गठरी बहुत हो गयी भारी |
तेरे अपराधों से देखो सारी दुनिया हारी |
सौ गलती को क्षमा किया अब शेष रहा न बाकी -
सबक सिखाने निकल पड़े हम लेकर नई कटारी |

अब भी गर तू बाज न आया धधक उठेगी ज्वाला|
पानी से न बुझा पाओगे रक्त पियेगी ज्वाला |
नक्शे में फिर नहीं दिखेगा पाकिस्तान तुम्हारा -
भारत का परचम ऊँचा हो लहर-लहर लहराया |

विश्व गुरु भारत जग में मानवता को फैलाये
हो प्रशस्त भारत का हर पथ विजय ध्वजा लहराये |
भय आतंक मिटे धरती से आसमान मुस्काये-
और विजय पथ भारत का फिर नई सुबह ले आये |

©मंजूषा श्रीवास्तव"मृदुल"
लखनऊ ,उत्तर प्रदेश

समय नहीं अब रूकने का,
बढते आगे ही जाना है।
चुन चुन कर वैरी को मारें,
सारी ऐंठ भुलाना है।

सबक सिखाना आवश्यक है,
विजयश्री वर लाना है।
नहीं कपूत भारतमाता के,
हमें वीरसपूत कहलाना है।

जबाव दिया ईंट का पत्थर से
दुश्मन ये सब याद रखेगा।
विजयपथ पर बढकर भारत
हर शत्रु को बर्बाद करेगा।

सदैव शांति के रहे पुजारी,
शायद इसने कायर समझा।
इसे बता दिया बाहुवल अपना,
इसने कैसे कातर समझा।

स्वरचित ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
देख पाक तूने किसको ललकारा है,
आज सिर्फ मिराज ने तुझको संहारा है,
आँख उठाने की अब हिम्मत तो कर,
बता देना हमे जो चुन चुन कर न मारा है l

तू बुज दिली दिखाता आया है,
चोरी से हम पर हमला करवाया है,
अब देख भारत के शेरो की दहाड़,
कैसा भयंकर जवाब तूने पाया है l

ये तो अभी पहला प्रहार है,
देखिओ कैसी मिलेगी तुझे हार है,
बून्द बून्द को तरसेगा तू अब,
ये भारत की नदियों की भी गुहार है ll

देख भारतीय पवन पुत्रो ने,
विजय रथ संभाला है,
अब सोच तू क्या होगा तेरा,
हम कभी शिवजी कभी गोपाला है l
जय हिन्द
कुसुम पंत "उत्साही "
स्वरचित 

देहरादून
रणबाँकुरों आगे बढ़ो सदा
नव विजयपथ प्रशस्त करो।
संयम की परीक्षा बहुत हुई,
आतंक का सूरज अस्त करो।

श्वेत कपोत उड़ाये कितने,
शान्ति का सन्देश दिया।
रंग सफेद न भाया उसको,
पीठ पर खंजर भोंक दिया।

पुलवामा के वीर शहीदों का
,लिया बदला दीवानों ने
मारे आतंकी जाने कितने,
पवन पुत्र हनुमानों ने।

समय निशीथ सो रहा रिपुदल,
और मिराज भर रहा उड़ाने
करना है संहार आतंक का
आज देश है मन में ठाने।

हृदय घाव न भरेंगे कभी,
अर्पित पुष्पों की पुष्पांजलि
वायु सुतों ने लेकर बदला
दी है वीरों कोसच्ची श्रद्धांजलि।

आज विजयपथ पर रखा है
वीरों ने है प्रथम कदम
दुश्मन को मारा है गृह में
निकल रहा है रिपु का दम।

आगे ही बढ़ता जायेगा ,
रणवीरों का विजयरथ
शौर्य भरा इतिहास लिखेगा
गाथा विजय और विजय पथ।
स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'

विजय शंख का नाद है गूंजा
वीरों की हुंकार है गरजी
सोते शेर जगाये कितने
आह्वान है आज सभी को
उठो चलो प्रमाद को त्यागो
मां जननी अब बुला रही
वीर सपूतों अब तो जागो
आंचल मां का तार हुवा
बाजुु है अब लहुलुहान
कब मोह नींद छोड़ोगे ?
क्या मां की आहुती होगी
या फिर देना है निज प्राण
घात लगाये जो बैठे थे
वो खसोट रहे खुल्ले आम
धर्म युद्ध तो लड़ना होगा
पाप धरा का हरना होगा
आज हुवा नारायणी उदघोष
जाग तूं और जगा जन मन में जोश
विजय पथ अब बुला रहा।

कुसुम कोठारी ।

विषय - विजयपथ 


विजयपथ 
अनुगामी भारत 
उन्नत भाल 



भारत के दुलारे, 
माँ भारती पर प्राण न्यौछारें 
फूल सी अंजूरी पर 
तेज धार लिए घुमते 
चूमते चलते हम 
विजयपथ के अंगारे 
भारत के दुलारे ।
हम तूफानों में 
विजय दीप जलाने वाले 
देश हित रण वेदी पर 
अपनी संतानों की 
देकर आहूति, मुस्काने वाले ।
हम घोर अंधेरे में 
विजय सूर्य उगाने वाले 
चूमते चलते विजय पथ के अंगारे 
भारत के दुलारे 
हम जीतते विश्व 
ॠतुराज की मुस्कान से ।
भेदते गद्दारों के चक्रव्यूह 
बासंती कमान से ।
दुश्मनों को भी लगाते गले 
प्रेम के संधान से ।
हम विजय वैजयंती के अधिकारी 
हमको भारत माता प्यारी ।

(स्वरचित )सुलोचना सिंह 
भिलाई (दुर्ग )
मन छोटा रखनें से होती हार,
संकल्प लेकर ही पाता उपहार ।
दृढ़ प्रतिज्ञा ही से आगे बढ़ता हैं,
खम ठोक पर्वत चोटी चढ़ता हैं।
जीवन में डर गया वो मर गया,
हुँकार से बढ़ गया कुछ कर गया ।
कंटक भरी डगर पर जो चल गया ,
सफर जिंदगी का सफल हो गया ।
दसों दिशाओं में चाहे चले मनोरथ,
सच्चा समर सीखाता हैं विजयपथ ।
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश शर्मा 'निश्छल

विधा-हाइकु
विषय-विजयपथ

(१)
शत्रु संहार
गतिमान मिराज
विजयपथ

(२)
विजयपथ
रचा महाभियान
बादल यान

(३)
मिराज वीर
शत्रु का हाहाक़ार
विजयपथ

(४)

दिमाग़ी खेल
वायुसेना जवान
विजयपथ
संतोष कुमारी ‘ संप्रीति’
स्वरचित

जय पथ पर बढ़ लाडले माता तुझे बुलाय
दुश्मन का संहार कर सकुशल वापसआय

दुश्मन की दहलीज तक आगे बढ़ता जाय
विजय पंथ का सूरमा अरि को मार गिराय

भारत माँ का लाल है कभी न मुहकी खाय
विजय पंथ पर चल पड़ा गाड़ तिरंगा आय

गरम सरद मौसम सहे बारिश उसे भिगाय
विजय पंथ रण बांकुरा , आगे बढ़ता जाय

माँ बहना पत्नी तजे ,विजय पंथ पर जाय
रोते बालक छोड़ कर , घर सूना कर जाय

सरिता गर्ग
स्व रचित

ह्रदय में जीत का जज्बा लेकर आई वीरों की सेना 
धरती गगन में गूँज उठी हैं शूरवीरों की जय घोष की 
विजयपथ पर चल पढ़े हैं देखो भारत माता के लाल 
युद्ध भूमि में करके आयेंगे कुछ कमाल .

मुख पर महाराणा प्रताप शिवाजी सा तेज हैं 
उनके हर प्रहार कुछ नवीन सा जोश हैं 
देखकर उनके अदम्य साहस को शत्रु कापें थर-थर
चल पड़े हैं लेकर जीत की पताका विजय पथ पर .

ये हिन्द के शेरों और शूरवीरों की सेना हैं 
शत्रु के खेमे में मचा हैं देखकर इनको कोलाहल 
मन में लिया हैं इन्होंने आज प्रण
या तो विजयपथ पर रखना हैं कदम या तो राष्ट्र को समर्पित करना हैं जीवन .
स्वरचित:- रीता बिष्ट
द्वितीय प्रस्तुति

पाक तेरे नापाक इरादे रूके नही 
हम तुझको माफ करते थके नही ।।
तूने जब हद तोड़ी तब दिया जबाव
सेना के विमान तुझसे हके नही ।।

शैतानी करके तूँ चैन से सोयेगा 
अरे नादान देख तूँ अब रोयेगा ।।
तूने शेर ललकारा तूँ मौत पुकारा 
देख तेरा अब सर्वनाश होयेगा ।।

विजय रथ की सैना का अब चर्चा है
तेरे पास तो खाने का भी न खर्चा है ।।
सबको साथ लेकर हम चलते 'शिवम'
सब कहे हमलावर मारने में न हर्जा है ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 27/02/0219

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