Thursday, February 21

" कला"20फरवरी 2019

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             ब्लॉग संख्या :-305
जिंदगी जीना कला है
और जीवन साधना है
जिंदगी सोना नहीं है
जिंदगी बस जागना है
गायन वादन नृत्य कला है
सरल सहजता सत्य शिव है
मनोरंजन जग सुख रंजन
मुस्कुराहट आनंद नींव है
समर विजय भी एक कला है
रिपु को घर मे घुसकर मारे
जब कायर की मौत हो निश्चित
गीदड़ सदा शहर में भागे
कला चमक दमकता हीरा
संघर्षों से सदा निरखता
कर्मशील नित आगे बढ़ते 
सुख शांति रस वह् चखता
कला राम है कला कृष्ण है
सर्व कला धारक माँ शारदे
सुखदा वरदा रसदा लय दा
हर विपदा को क्षण में हर दे।
स्व0 रचित ,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

विधा:- पद्य 
🌺🦋🌻🦋🌻🦋🌺

मन अंतस की गहन गुफ़ा में ,
काव्य पुष्प जब खिलने लगते । 
सर्वज्ञ की अनंत कृपा के ,
संकेत सभी तब मिलने लगते । 

कलाकार की दुनिया अपनी , 
इहलोक में नहीं वह रहता ।
हृदय सिंधु में लहरें उठती ,
स्रोत कलाओं का है बहता ।

जितने लोग कलाएँ उतनी ,
अद्वितीय है कला संसार ।
एक कला है जीवन जीना , 
अभिरुचियों का वृहद भण्डार ।

काव्य सृजन में कवि का कौशल ,
भर देता रस छंद अलंकार ।
भावों को रंगों से उकेर ,
है कला दिखाता चित्रकार ।

हर प्रतिभा में कला छुपी है 
रत्नाकर के अंतस मोती ।
जैसे चकमक पत्थर अंदर ,
रहस्यमयी अग्नि है होती ।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )


कला आनी चाहिये गम में हंसने हंसाने की
आँसू मिलते कला आनी चाहिये छुपाने की ।।

खुशी के भी आँसू कहाँ बताना कहाँ नही
नब्ज पहचानना आनी चाहिये जमाने की ।।

न सत्य पर चल कर गुजारा न असत्य पर
कुछ ताकत होना चाहिये शत्रु को डराने की ।।

जीना एक कला सीखते सीखते आती है
गुलाब में यूँ न आई आदत मुस्कुराने की ।।

यूँ तो कलायें बहुत हैं इंसान में फिर भी
लौ होनी चाहिये एक में निपुणता लाने की ।।

कलाकार से पूछिये 'शिवम' लौ या जुनून
खबर नही होती कभी उसे खाना खाने की ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"


Meena Sharma
सौदंर्य बोध जो छुपा हुआ , उसे कला ही उजागर करती है ,

जीवन के अनमोल पलों को ,यह ही परिभाषित करती है |

निष्प्राण पडे एक पत्थर को , जीवंत यही तो करती है , 

बने पाषाण हृदय के मानव को ,मोम यही तो करती है |
मानव मन की संवेदनाओं को , ये ही उकसाया करती है,

उभरते मन के भावों को , यह कागज पै उकेरा करती है |

दुनियाँ से मिले आघातों को ,जीवन में निखारा करती है, 

सीने में दबा करके गम को, हरदम मुसकाया करती है |
खाली बिखरे पन्नों को,शब्दों के मोती से सजाया करती है ,
अज्ञानता के अंधेरों को , ज्ञान के उजालों में बदला करती है |

यह कला ही अपने जीवन को , उत्साही बनाया करती है 

देती है प्रेरणा हम सब को , जीवन में खुशियों की बर्षा करती है |


स्वरचित ,मीना शर्मा, मध्यप्रदेश ,


चित्र कला कहीं केश कलाऐं।
दिखती कुछ नैसर्गिक कलाऐं।
कितनी सुंन्दर ये मूर्ति बनाता,
इस कलाकार की बहुत कलाऐं।

अपने मनमंदिर में छिपी हुई हैं,
ढूंढें मिल जाऐंगी बहुत कलाऐं।
चित्रकार चित्रांकित कर दे जब
मंत्रमुग्ध करती जीवंत कलाऐं।

मन से प्रस्फुटित होती हैं कुछ,
मनोभावनाऐं प्रगटित होती हैं।
सच्चा कलाकार वही है जिससे
ये कलाकृति विकसित होती हैं।

स्वरचितःःः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.



वृक्ष दे्वता,
कला दुख सहने,
हमें सीखाते,

झंझावातों में
खड़े होने की कृला,
वृक्ष सिखाये,२।
३। झरना से ही
गिर कर उठने,
की,कृला सीखी।।३
जीवन में ही,
हंसने की कला को,
फूलों से सीखा।।४।
दुख सहना,
यह कला सीखा है,
वसुंधरा से।।५।
दिवाकर से,
जग हंसाने कला,
हमने सीखी।
प्यार में हम,
पिघलने की कला,
मोम से सीखी,,
आंसू पीने की,
यह कला सीखी है,
जग में नारी।।७।
दुख सहना,
दुख मे तपने की,
कला, पेड़ों से,।।८।।
स्वरचित हाइकु देवेन्द्र नारायण दास बसना छ,ग,


आत्म कला यह
शत कला 
शिव कला दस, 
व्यक्ति का कौशल 
अपना जीवन 
अपना ढंग 
भीति , चित्र, मंत्र, 
पूजा, अर्चन, यंत्र ।
स्थापत्य -शिल्प, लेखन, 
वाद्य, गेय और नृत्य 
कलाएँ जीवन में , 
खान-पान , दिनचर्या , 
सिलाई-कढा़ई तो बुनाई, 
पाक, वाक चातुर्य
हर कला का प्रयोजन 
मानव सुख -शांति 
कौशल अपनी कला । एक सबसे घृणित, 
दुखांत, युद्ध -कला ! 
चन्द्र प्रकाश शर्मा 
'निश्छल',


जीने की कला को जानने में 
हमने सारी जिंदगी बिता दी 
क्या जिंदगी के नये अनुभव से 

फिर मिल पायेगी हमे जिंदगी .

किसी के सहारे जिंदगी जीना बेकार हैं 
किसी से आस करना बेजार हैं 
दौलत से नहीं कला और कलाकार से प्रेम करो 
दौलत तो एक छलावा हैं कला और कलाकार ही अमिट हैं .

दिल की दुनियां से जुडी हूँ 
दिल को पाक साफ़ रखती हूँ 
फिर चाहे जिंदगी कितनी ही दर्दनाक क्यों ना हो 
हर दर्द को सहकर जिंदगी की कला सीखती हूँ .

दो कदम चलकर थक जाती हूँ 
फिर भी नई उम्मीद से आगे कदम बढ़ाती हूँ 
जीने की एक नई कला सबके दिल में जगाती हूँ 
मंजिल की चाह में फिर से कलाकार बनकर उभरती हूँ .

कलाकार हूँ शब्दों से कलाकृति बनाती हूँ 
जिनको सच्चे दिल और भावों से सजाती हूँ 
जिसमें किसी को मेरी कला और भाव नजर आते हैं 
किसी को बेकारी और नीरसता .

बिना किसी की परवाह किये 
हर भाव से अपनी कला को सजाती हूँ 
मन के कलाकार को हर पल जीना सिखाती हूँ 
जिंदगी को हर कदम एक नई कला और कलाकार से मिलाती हूँ .
स्वरचित:- रीता बिष्ट


कला है उपहार ईश का..
निज अंतस को निखारती..
कला कर्मण्यता का आधार..
कला समग्र प्रतिभा उभारती..

कला तव मस्तिष्क का..
निरंतर करती विकास..
कला आधार ज्ञान की..
नापती कल्पना आकाश..

कला प्रकृति की मनोहर..
खग विहग गाते अति सुंदर..
झरने की झरण कला..
कला है सरिता की सर सर..

कला साहित्य सृजन है..
कलम बनती आधार है..
कला है सुर,लय व ताल..
कला भावों का उद्गार है..

कला समंदर अथाह है..
बन जा हंस मोती चुनकर..
पारस तक मिल जाता..
चल परिश्रम के पथ पर..

स्वरचित :- मुकेश राठौड़


🌹 भावों के मोती🌹
20/2/
2019
"कला"
हाइकु
1
कौशल कला
जीवन हरा भरा
दुख भी खिला।।
2)
कला विचित्र
कलाकार के हाथों
जीवंत चित्र।।
3)
अद्भुत कला
जोकर सीने दर्द
फिर भी हँसा।।

वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित मौलिक


जीवन एक कला
इंसान है कलाकार
विविध रंगों में रंगा है
यह सारा संसार
पारखी यहाँ हैं सब
विविध कलाओं के
कोई पाले हैं दिल में बैर
चेहरे से प्यार बरसता
चालाकियों को इनके
कोई नहीं समझता
कहीं सुख भरपूर है
फिर सबको मजबूरी दिखाते
करनी न पड़े मदद किसी की
खुद को परेशान दिखाते
कहीं पर हाथ तंग है
पर दिल में प्रीत उमंग है
मुश्किल में काम आते
सबसे मेल-जोल बढ़ाते
यही कला है अच्छी
जीवन में बिल्कुल सच्ची
जो इस कला का पारखी
वही है सच्चा सारथी
सही राह पर वही चलते
सुख-दुख में साथ रहते
***अनुराधा चौहान***© स्वरचित


विषय कला
रचयिता पूनम गोयल

देखा जाए , तो
हर कार्य है कला ।
कठिन हो , या फिर सहज ,
कोई भी कार्य
नहीं है बला ।।
पूर्ण श्रद्धाभाव से करें ,
तो कार्य सहज लगता है ।
एवं पूर्ण हो जाने पर ,
असीम आनन्द का
अनुभव होता है ।।
इसके विपरीत ,
यदि किया जाए आधे-अधूरे मन से ।
तो जाती हैं बिगड़ , बनती बातें ,
और रूठ जाते हैं अपने ।।
लीजिए एक छोटा-सा उदाहरण ।
है जो हमारे
रसोईघर के अंदर ।।
भोजन बनाना , परोसना व
स्वयं खाना ।
यदि किए जाएँ
कलात्मक ढंग से ।
तो मिलता है नज़राना😘
वरना पड़ता है
भुगतना हर्ज़ाना😩
करते हैं हम सब ,
सुबह से साँझ तक ,
हज़ारों काम ।
यदि भूल जाएँ
कलाकारी ,
तो हो जाता है
काम-तमाम ।।
नहीं तो , हर काम के मिलते हैं ,
ढेरों ईनाम ।।
इसलिए सर्वोपरि है ,
यह कला का गुण होना ।
इसी से सम्भव है जगत् में ,
प्रसिद्ध हो जाना

Purnima Sah
1
कला,विज्ञान
सिक्के के दो पहलू
परिपूरक
2
इंद्र धनुष
आकाश सतरंगी
कला प्रकृति
3
माटी पुतला
ईश्वर कलाकार
जग में खेला
4
ईश प्रदत्त
"मकबूल "की कला
दक्ष थे हस्त
5
मेघों के संग
कलात्मक आकृति
बनके मिटा
6
कला,संस्कृति
हमारी धरोहर
है संजीवनी
7
लेखन कला
अंतर्मन भावना
शब्दों से खिला

स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल


जीने की भी
एक कला होती है
बहादुर जीते है
बहादुरी के साथ
देश के लिए
होते है शहीद
न्योछावर कर देते है
सब कुछ अपना

कला ,
बचपन जीने की
होती है मजेदार
अपने में मगन
छूने की कामना
है गगन

रहता है बुढापे में
आसरा भगवान का
नाती पूतो के साथ
जीने की
कला होती है निराली

सीखो
हँसी खुशी जीना
जीवन को बनाओ
सतरंगी
ईमानदारी लगन
मेहनत से जियो
देश समाज के
विकास में
योगदान देने की
सीखो कला
मेरे दोस्त

स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव
भोपाल



विषय-कला

हैं
कला
सुंदर
मीठी वाणी
बनते रिश्ते
घुलती मिठास
संवरता जीवन।

है
कला
उत्तम
चित्रकारी
शिल्प स्थापत्य
गायन-वादन
साहित्य सृजनता।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित



अन्तःकरण की प्रस्तुति कला
अभिव्यक्ति की शक्ति है.कला
माध्यम व्यक्त करने के अनेक
संगीत साहित्य और चित्रकला
समाज को जागृत करती है.कला
संवेदनाएं चित्रित करती है कला
विद्यमान प्रत्येक मे कोई कला
कला से समाज,समाज से कला
समाज के शिल्पकार,ये कलासाधक
अपनी विधा से सजाते अपनी कला ।

स्वरचित
अनिता सुधीर श्रीवास्तव



कला कौशल
नही है कौतूहल
साधना हल।।

कला जीवन
सजाओ उपवन
हो धनार्जन।।

कला कुशल
साधना अविरल
मिलें विरल।।

कला सँवारे
जीवन में उजाले
साधक प्यारे।।
भावुक



विधा हाइकु
1
दीवारें सजी
मधुबनी पेंटिंग्स
हस्त की कला
2
ताज महल
सुंदर इमारत
वास्तु की कला
3
जल रंगों से
प्राकृतिक चित्रण
चित्र की कला
4
फिल्में बनतीं
मनोरंजन करतीं
सिनेमा कला
5
कठिन कार्य
साहस से होते
जीवन कला
6
व्यक्ति लिखता
मोती जैसे अक्षर
लेखन कला

मनीष श्री
स्वरचित




हास्य की कला
मधुरिम जीवन
उमंग संग

2

सृष्टि संहार
ईश्वरीय संसार
मानव प्राण

3

त्याग तपस्या
प्रभु की निकटता
साधना कला

4

अद्भुत कला
विचलित गगन
संभाले धरा

5 काव्य की कला
उर आनंद भरा
बहते अश्रु

6
कला स्वामिनी
मात शारदे साथ
वीणा झंकार

(स्वरचित )सुलोचना
सिंह 
भिलाई (दुर्ग )


1.
मुँह बोलते
मन के उदगार
चित्रकला में
2.
रेत के घर
बनाता कलाकार
कला मिट्टी की
3.
रेत के घर
कला बचपन की
आज भी याद
4.
बादलों बीच
अठखेली करती
ये चंद्र कला
5.
अक्षर ज्ञान
सदगुरु पढाते
कला विज्ञान
6.
खुश रहना
पत्नी को समझाना
एक कला है
7.
शांत रहना
मूर्ख को समझाना
एक कला है
8.
कद्र कला की
शिल्पकार करता
रूप देकर
9.
स्वाद बढ़ाते
माहिर हलवाई
पाक कला में
10.
होनी चाहिए
कोई न कोई कला
सबके पास
11.
कला विचित्र
बनाता कलाकार
पानी पे चित्र

अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा



दिखा के कला
जादूगर अपना
भरता पेट

जग में सारे
भिन्न भिन्न दिखाते
कला नज़ारें

जरूरी बला
वार्तालाप की कला
सभी के लिए

भूखा भी करे
पेट भरने वास्ते
कर्म की कला

सीखा जबसे
हुआ नहीं उदास
कर्म की कला

लक्ष्मी के सिक्के
कलात्मक हो कर्म
धनी बनाते

===रचनाकार ===
मुकेश भद्रावले

हरदा मध्यप्रदेश
20/02/2018



विधा- हाइकु

हाइकु -
१)-
विभिन्न कार्य
कुशल सम्पादन
कला दर्पण

२)-
कार्य प्रणाली
सुनियोजित शैली
कला सहेलीं

३)-
प्रति गढ़न
जीवन का सार
कला संसार
#,,, मेधा
"स्वरचित"
-मेधा नरायण.


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