Sunday, February 17

"स्वतंत्र लेखन "17फरवरी 2019

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             ब्लॉग संख्या :-302



लघुकथा विधा

भारत के बहादुर सैनिक 

" रेल अबाध गति से जा रही थी । मै दोस्त की बारात में भोपाल से पुणे जा रहा था। अहमदनगर से कुछ सेना के जवान सवार हुए , सभी बड़े मस्त मौला थे। हँसी मजाक का दौर चल रहा था अब मैं अपने को नहीं रोक सका और ऊपर वाली बर्थ से नीचे आ कर उनके साथ बैठ गया । जब मैने दोस्त की शादी कि जिक्र किया तब उनमें से एक रामशंकर ने कहा :
" ये दूरियां वाली शादी हमारे यहाँ नहीं होती हमारे यहाँ तो छत पर चढ़ कर बहूरिया को आवाज दो तो वो घर आ जाती है । " बस एक गांव दो घर " और सभी जोर से हँस दिये ।
उनमें से एक जवान दीनानाथ अभी भी गंभीर था । संभवतः उसकी आँखो की पौरो में आंसू थे ।
मुझसे नहीं रहा गया । मैने कहा :
" भाईसाहब आप इतने उदास और गंभीर क्यो है ? "
वह बोले : 
" कभी कभी कुदरत के खेल बड़े निराले होते है एक बार हम जम्मू डिविजन में तैनात थे मेरे साथ जगदीश भी
था । देवरिया का वह रहने वाला था । उसकी शादी पक्की हो गयी थी और छुट्टी भी मिल गयी थी । वह बहुत खुश था उसी रात उसकी माँ का फोन आया था । वह बोली थी :
" बेटा बस एक इच्छा है तूझे दूल्हा बने हुए देखना है , दुल्हन तो दो घर छोड़ कर है बैचारी मेरा काम निपटाने आ जाती है बहुत प्यारी है बहू छमिया ।"

तभी बाहर फायरिंग की आवाज आने लगी पूरी यूनिट को एलर्ट कर पोजीशन लेने को कहा गया ।
मैं और जगदीश केम्प के बाहर आए बाहर अंधेरा था सिर्फ गोलियों की रोशनी जुगनुओं की तरह चमक रहीं थी और आवाजें आ रही थी । यह आतंकी हमला था । वह अंदर केम्प में घुसना चाह रहे थे करीब पांच थे वह ।
गेट पर पोजीशन लिए मैं और जगदीश अपने आदमियों को कवर दे रहे थे तभी एक ग्रेनेट आ कर गेट से टकराया और जगदीश घायल हो गया फिर भी उसने हिम्मत नही हारी और हम सब ने मिल कर उन पाँचों को मार
गिराया । आपरेशन सफल रहा । जगदीश को अस्पताल ले जाया गया लेकिन वह शहीदों में अपना नाम लिखवा चुका था ।

मैं उसके पार्थिव शरीर के साथ गांव आया । मजाल थी जो उस माँ की आँखो में एक भी आँसू आया । 
छमिया जरूर एक कौने में गुमसुम खड़ी थी ।
माँ , छमिया का हाथ पकड़ कर आगे आई और बोली :
" बेटी , मेरे बेटे जगदीश से तू जुड़ी थी अब मैं मुझे उससे मुक्त करती हूँ तूझे देश को सैनिक देना है इसलिए तूझे ब्याह तो करना ही है । " 
जगदीश की माँ और छमिया ने जगदीश को मुखाग्नि दी ।
छमिया ने जगदीश को सलूट किया और मेरे सीने से लग कर रोने लगी । जगदीश की माँ भी आ गयी और अपने दिल का गुबार निकल जाने के बाद सभी की सहमति से छमिया का ब्याह मेरे साथ कर दिया ।"
अब मैं गाँव ही जा रहा हूँ और वहां जगदीश की माँ , छमिया और हमारा बेटा जीत इन्तजार कर रहा है । बड़ा बहादुर है और हमारे देश का एक और सैनिक । "

स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव 
भोपाल
चेहरे उदास , दिल नाशाद , आँखों में नमी सी रहती है
हर लमहा,हर सूँ यहाँ न जाने कयूँ कुछ कमी सी रहती है ।

कहीं दरख़्तों की शाखाओं पर ऊँघती तनहाई,तो कहीं
पोशीदा , दिलों में यादों की चहलक़दमी सी रहती है ।

सफ़ीने तो डूबे हैं ,बादफ़ा साहिल पर आकर, मगर 
बेतरतीब लहरों में नागहा ग़हमाग़हमी सी रहती है।

मिलने -बिछुड़ने में अब वो पहली सी गर्मजोशी नहीं रही 
दिल पे हरदम बर्फ़ की इक परत ज़मीं सी रहती है ।

ये दिल भी कया शै है , हर आहट पर चौंक उठता है 
ज़िंदगी अपने आप से भी सहमी - सहमी सी रहती है ।

शाम के साये सी मीलों फ़ैलती तनहाई ,लगता है
दर्द का सैलाब समेटे बारिश कहीं थमी सी रहती है ।

हयात -ए -सफ़र में मिले यूँ तो अपने भी ,बेगाने भी 
कोई रिश्ता मुक़्क़मल नहीं,एक नाकामी सी रहती है ।

बेआशना होकर मिले हैं अकसर अपने आप से हम 
हर आइने पे माज़ी के यादों की गर्द ज़मीं सी रहती है ।

वो हमनवाई,वो एहसास ए सुकून का आलम कहाँ
दिलों के दरमियाँ बेसबब एक ग़लतफ़हमी रहती है ।

स्वरचित (c) भार्गवी रविन्द्र ....
नाशाद - नाख़ुश , हर सूँ - हर ओर , दरख़्त -पेड़ , पोशीदा -छुपा हुआ
सफ़ीना -कश्ती ; बादफ़ा -अकसर, कई बार ; नागाह -व्यर्थ , साहिल -किनारा
शै -चीज़ , सैलाब -बाढ़ , हयात ए सफ़र -ज़िंदगी का सफर ,मुककमल -पूरा
बेआशना - अपरिचित , माज़ी - अतीत , गर्द -धूल , सुकून - चैन ,बेसबब - बेवजह
गीतिका – छंद वीर आल्हा। १६, १५ मात्रा
समान्त – आम 
पदांत – अपदान्त 
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गीतिका
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भारत माॅ के अमर शहीदों,,,,,,,,,भारत वासी करें प्रणाम 
किया समर्पण जीवन सारा,और किया सुख त्याग अनाम /
~~~~~
धन्य सैनिकों तुम बलिदानी,,,,,,,,वसुंधरा के वीर जवान 
देशभक्त रणवीर सदा तुम;,,;,,कर दुश्मन का काम तमाम /
~~~~~
कितनी माँ के लाल छिन गए,,,,,माँ बहनों का लुटा सुहाग,
नमन धरा के वीर सपूतों,,,,,,,,,,;, ,,,वंदनीय तुम्हारा नाम /
~~~~~~
काश्मीर है सदा हमारा ,,,,,,,,,,,,देवी मातु का प्रतिष्ठान, 
पाक यदि नापाक करे तो,,,,,,,,,दुश्मन भोगेगा परिणाम /
~~~~~~
लक्ष्मी बाई थी महरानी ,,,, ,,,देश पे किया प्राण कुर्बान ,
सत्य न्याय पर लड़ने वाले,.,. अवतारी श्री कृष्ण ललाम /
~~~~~
धन्य मातु हैं धन्य पिता श्री, ,,,,जिनके जन्मे वीर महान, 
स्वदेश समर्पित रणबाॅकुरे ,,,,,त्यागा प्राण'भगत,सुखराम //
~~~~~
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ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
आज का शीर्षक-स्वतंत्र विषय लेखन
विधा-मुक्तक
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(01)
शाख़सारों की जो कोंपल के कतरने वाले ।
क्यूँ न मर जाऐं वो खुशियों से मुकरने वाले ।
ऐब आदत में उतर आते हैं जिनके यारो !
वो नहीं होते हैं इन्सान सुधरने वाले ।।

(02)
एक दिन तेरी जफ़ा के बाब खोले जाएंगे।
खामोश रहने को कहोगे और बोले जाएंगे।
आज है तुमसे तअ़ल्लुक दूरियाँ बन जाएंगीं,
ज़ुल्म करके प्यार में गर ज़हर घोले जाएंगे ।।
स्वरचित-"अ़क्स "दौनेरिया

रोते अब भावों के मोती
चूड़ी टूटी बिंदिया छूटी
हृदय विदारण भू भारती
शीघ्र मिले संजीवन बूंटी
मौन हिमालय आज खड़ा है
गङ्गा सागर आज शांत है
कहर बरसा जो वीरों पर
पूरा भारत अब आक्रांत है
नाग घूमते फ़न फैलाकर
यह रावण के सिर जैसे हैं
मारो काटो फिर भी नव फ़न
बार बार जग में आते हैं
आतंकी नापाक देश को
मानचित्र मिटाना ही होगा
बम मिसाइल और शस्त्रों से
सर्वनाश जगति से होगा
आर पार जंग अब होगा
पानी सिर से अति ऊपर है
फड़क रही है वीर भुजायें
महाभारत अब भू ऊपर है
घर मे घुसकर नन्हे पिल्ले
जब शेरों पर वार करे
मार्ग नहीं बचता है भू पर
दर्दनाक सह मौत मरे
जयति जय हो अमर शहीदों
अमर रहेगी दिव्य शहादत
ईंट का बदला पत्थर होगा
तब उतरेगी मुल्क हरारत।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम्
कोटा,राजस्थान।
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रचना -देश प्रेम 
देश अपना प्यारा मिलकर इसे सजायेंगे। 
वंदना भारत माँ की गुण सदा ही गायेंगे।। 

तोड़ न पाये कोई एकता की जंजीरों को। 
सेवा में भारत माता के कर्त्वयों को निभायेंगे।। 

मिटा देंगे राग द्वेष मन के सारे भेद अब। 
मिलकर मानवता का दीप हम जलायेंगे।। 

वंदन माँ भारती का हमने गुणगान किया। 
रक्षा को इसकी हम वीर सपूत बन जायेंगे।। 

बढ़े तिरंगे का मान हो रक्षा संविधान की। 
इसके सम्मान से ही मान हम भी पायेंगे।। 

देश भारत बन जाये जग में विश्व गुरू सदा। 
आओ एकता की झलक हम जग को दिखायेंगे।।

नई सोच नई उमंग का मन में संचार हो। 
प्रेम भाव की नदियाँ मन में सदा बहायेंगे ।।
.........भुवन बिष्ट 
रानीखेत (अल्मोड़ा)
उत्तराखंड


माँ ने जब भी कोई लाल खोया होगा
चीख मारकर बालक कोई , रोया होगा
चूड़ी तोड़ सुहागन ने सर्वस्व लुटाया होगा
बूढा बाप फिर किसी रात ना सोया होगा

आँख सामने गुजरे होंगे कितने मंजर
तड़प तड़प कर रोया होगा तभी समंदर
दर्द के कितने तूफां उठते होंगे मन में
बेटे ने जब कफ़न तिरंगा पहना होगा

बादलों ने गरज गरज दी होगी सलामी
बिजलियों ने चमक दागी होगी दुनाली 
दुश्मन को ललकार कहा होगा नभ ने
नहीं बचेगा , बता कौन अब तेरा माली

सरिता गर्ग
स्व रचित

सुनों शहीदों।
तेरी कुर्बानी जाया नहीं होने देंगे।
जबतक जां में जां है।
तबतक लड़ेंगे।
बेटों के बदले पाकिस्तानसे
बेटे लेंगे।
भाई के बदले उनसे भाई छीनेंगे।
पति के बदले पति छीनके।
उन्हें बेवा करेंगे।
उनकी औकात उन्हें दिखला के रहेंगे।
बहुत दे दी कुर्बानी।
अब कुर्बानी लेंगे।
एक के बदले इक्कीस को।
हम शहीद करेंगे।
समझो ना हम कायर हैं।
हम सहनशील हैं।
पर सहने की सीमा अब पार कर गई।
हम युद्ध करेंगे।
एक,एक को घर में घुसकर।
हम मारेंगे।
शिव के जैसा तांडव कर।
हम तेरा संहार करेंगे।
जय हो शहीद,अमर रहे वीर बलिदानी।
वो थे माँ के सपूत।
देश रखेगा याद उनकी कुर्बानी।।
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
भाग्य सदा जागे है,
सुख भोगी,

होते हैं सुर गण,
भोगी,विलासी, कामी,
उनका होता,
सहज पतन,
दुख से तपकर,
मनु जी जीवन,
कंचन सा,
निखरता है,
देवों के जीवन से,
मानव का साधक जीवन,
ऊं चा होता है,
सुख दुख का,
संतुलित भोग ही
उच्च शिखर,
चारित्रिक होता,
ऐसी विजय,
उन्हें मिलती,
जिनमें अदभुत धीरज होता,
यह जीवन कला,
भाग्य सदा के जागे,
वसुधा के आंगन में,
हम सपने देख,
हर पल सजाते,
जीवन गीत,
हम गाते गाते 
सूरज की तरह,
ढलते ढलते,
हम ढल जाते हैं।।।
स्वरचित देवेन्द्र नारायण दास बसना छ,ग,।।।


शीर्षक ''बलिदान"

कोई तो आता है जो करता हिसाब चुकता 
जलियाँवाला जला कभी पर पाप न छुपता ।।

जनरल डायर को ऊधम ने वहीं जाकर मारा
कितने बेकसूर निहत्थों का था वह हत्यारा ।।

मत करो ये पाप कर्म इंसान हो इंसान बनो 
खुदा सब देख रहा हैवान की न संतान बनो ।।

सैनिकों का मरना मानवता पर कलंक है
कैसे कहें मानव जो बेवजह मारें डंक है ।।

सारी प्रथ्वी खुदा की , रिश्ता भाई का लगता 
जो मजहब लड़ना सिखाये मजहब न दिखता ।।

तरस खाओ उन माँओं पर जिनके लाल मरते
कितनी गोद उजड़ती कितने सिन्दूर बिखरते ।।

अमन चैन अपनाओ अमन की करो कदर 
अच्छा नही होता ''शिवम" हर रोज गदर ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"

स्वरचित 17/02/2019
विषय - स्वतंत्र लेखन
🌳वृक्ष की व्यथा🌳
खड़ा निष्प्राण-सा
बिल्कुल अकेला
नहीं लगता अब
मेरे पास कोई मेला
गर्व था कभी बहुत 
हरी-भरी काया पर
विशाल घना घेरा
ठंडा शीतल बसेरा
बैठते पथिक जब
मेरी ठंडी छांव में
एक दंभ महसूस
करता में अपनी शान 
सूरज की किरणों को
रोक लेता में पुरजोर
बारिश के वेग का 
नहीं चलता था मुझ पर जोर
पक्षियों का मैं था बसेरा
उनके कलरव से गूंजता सबेरा
जब चलती तेज हवाएं
मेरी शाखाओं को हिलाती
पत्तियों से टकराकर
मधुर संगीत-सा सुनाती
अब खड़ा ठूंठ बनकर
मिटने वाला है मेरा वजूद
यादें अतीत की सताती
हवाएं भी नहीं सहलाती
भूले से भी नहीं बैठते पंछी
सिर्फ जरूरतमंद पास आते
तोड़ डालियां चूल्हे जलाते
सबको मेरे गिरने का इंतजार
सूखा वृक्ष हूंँ मैं बिल्कुल बेकार
***अनुराधा चौहान***© स्वरचित

कब तक गाओगे गाथाऐं ,
इस पापी पाकिस्तान की।
छोड क्यों नहीं देते गद्धारो,
यह धरती हिंन्दुस्तान की।

खाते पीते सब भारत में तुम।
लेते शिक्षा दीक्षा कहां से तुम।
दिया देश ने सबकुछ तुमको,
क्या नहीं दबे उपकारों में तुम,
मेरे हिंदुस्तान की।
क्यों छोड़ नहीं देते तुम............

वीर जवान रोज शहादत दे रहे।
रणभेरी वह रोज बजा रहे
अपना शोणित बहा बहा कर,
हम सबका जीवन बचा रहे।
बोलें मिल हम जय जय हिंदुस्तान की
क्यों छोड़ नहीं देते............

लालच मोह माया से नहीं।
मोह इन्हें काया से नहीं।
लोभ लालसा तजी इन्होंने
फिर बोलें जय देश महान की।
क्यों छोड नहीं देते............

सदा प्यार स्वदेश से करते
जय जय कार देश की करते
करें शहादत देश की खातिर
कभी अभिमान नहीं ये करते
नहीं चाहत सम्मान की।
क्यों छोड़ नहीं देते............

जान हथेली पर लेकर चलते हैं।
मृत्यु वरन सरहद पर करते हैं
धीर वीर गंभीर हमेशा रहकर,
ये सावधान सीमा पर रहते हैं।
इच्छा मातृभूमि पै वलिदान की।
क्यों छोड नहीं देते तुम....................
कब तक गाओगे गाथाऐं तुम,
इस पापी पाकिस्तान की।
क्यों छोड़ नहीं देते तुम,
यह धरती हिंदुस्तान की।...........

स्वरचितःःः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.

है विश्वास तुम पर..
सदा से है नाज तुम पर..
माँ भारती के दुश्मनों को 
धूल तुम चटाओगे..
उठेगी आँख जो फिर कोई..
वो आँख निकाल लाओगे..
एक सौ तीस करोड़ दुआ है संग तुम्हारे..
विजयी होकर आओगे..
कर दो हमला उसी की भाषा में..
जो भाषा समझता है दुश्मन..
हो घर के बाहर बैठा..
या हो घर के अंदर का दुश्मन..
आग लगा दो सभी को...
जो उठाए उंगली भी माँ भारती पर..
मिला दो खाक में सभी को..
जो रखे नापाक कदम माँ भारती पर..

स्वरचित :- मुकेश राठौड़

ओ तिमिर चाहे छा जाओ,
मेरी हस्ती पर।
यह वादा है मेरा तुमसे,
मेरे हौसलों की लौ,
भोर चहुँओर कर देगी।।
चाहे घने हो अंधियारे तुम्हारे,
रास्तों की ठौर ना हो,
धूप मेरे अस्तित्व की,
स्याह कमरों में झरोखे बना देगी ।
मंद मंद जब बहती है शीतल पवन,
उत्साह नित नवीन चुनौती से,
जूझने का देती है।
मुझे ग्रीष्म की आग लगाती चिंगारियां,
सोने नहीं देती।
पसीना बहा, और मेहनत को कहती है।।

नीलम तोलानी 
स्वरचित

विधा - मनहरण घनाक्षरी
================

पाक तू नापाक हुआ ,
अब बेनकाब हुआ ,
भर गया पाप घट ,
फूटना ही चाहिये I

आओ बैल मुझे मार ,
किया चरितार्थ यार ,
पापियों का सरताज ,
कूटना ही चाहिये I

विश्व में फैला अशान्ति ,
मरने की रची क्रान्ति ,
नीचता से तेरी यम ,
रूठना ही चाहिये I

घूमता कटोरा लिये ,
काली करतूत किये ,
मुँह में हो लात,हाथ
टूटना ही चाहिये I

#स्वरचित
#सन्तोष कुमार प्रजापति "माधव"

#कबरई जिला - महोबा ( उ. प्र. 


ओ मेरे वतन!
शत बार नमन!
जग में न्यारे
दिल से प्यारे 
गिरि,नदियां
झरने सारे
शुभ्र नीर
गिरते धारे
स्वच्छ पुण्य
दिखते सारे
रे तेरे सुहाने
जमीं गगन
ओ मेरे वतन!
शत बार नमन!

भोर जगे
मनवा बहके
रवि किरणें ले
प्राची दहके
वृंतों पर भी
पंछी चहके
वन-बागों में
सुरभि बहके
कीट-पतंगे
रहें मगन
ओ मेरे वतन!
शत बार नमन!

हैं कई धर्म
पर एक मर्म
सद् भाव प्रेम से
जुड़े कर्म
आपस में कोई
बैर नहीं
दुश्मन आए 
तो खैर नहीं
नर-नारी मिलकर
करें जतन
अर्पित कर दें
इसपर तन मन
ओ मेरे वतन!
शत बार नमन!

____
#स्वरचित कविता 
डा.अंजु लता सिंह 
नई दिल्ली

लहू के रंग से रंगा है
इसबार वसंत
दुःखों का नहीं है अंत
अश्रु जल से भीग रहा
माँ का आँचल.....।

हे री!पुरवाई........
कैसे लेगी तू अँगडाई,
घर-घर मातम जो छाई

मुँह छुपा के रो रहा
देखो आज आकाश
जल रहा मन में आग

आह!पलाश....
धूमिल पड़ा है तू..
क्यों नहीं दहक रहा
तेरा बाग....
कैसा होगा अबकी फाग

कुछ तो कहो ..ओ !मेघ,
वेदना से तड़प रहा तू
कहाँ गुम हो गया तेरा गर्जन
ना घबरा,अब होगा सिंहनाद
शत्रुओं का होगा विनाश।।


स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
🍁

क्यो रूको हो अभी तक वही पे प्रिये।
रस्ता लम्बा अौर मंजिल बहुत दूर है।
सोचने से भला किसको क्या है मिला,
साथ चलते तो मंजिल नही दूर है।
🍁

बात मन मे तुम्हारे जो है बोल दो।
बन्द दरवाजे मन के सभी खोल दो।
मन मे पीडा बढेगी तुम्हारे अगर,
मन दुखेगा मेरा तुम हृदय खोल दो।
🍁

मान अभिमान मे सच के पहचान मे ।
जिन्दगी बँध गयी झूठ के शान मे ।
वक्त लौटा नही जो गुजर जाता है,
क्यो खडे हो पकड टूटती शाख से ।
🍁 

जिन्दगी जंग है मन मे ही द्वंद है।
क्या सही क्या गलत ये मेरा प्रश्न है।
शेर की भावना शब्दों मे गढ दिया,
बात कहनी थी जो वो यही कह दिया।
🍁

तुम भी बोलो नही तो चलो साथ मे।
जिन्दगी ना ही रूकती सुनो ध्यान से।
अब चलो भी प्रिये बात तुम मान लो,
रस्ता लम्बा और मंजिल बहुत है। 
🍁

Sher singh sarraf
"विदाई वीरों की"

नम है आँखें...
हृदय सुलग रहे है..
भाव बदले के..
बस दिल में उठ रहे है...
जल रही चिताएं..
उन वीर जवानों की..
हो रही विदाई..
अलबेले मस्तानों की..
जल उठी चिताएं..
नववधूओं के सपनों की..
बूढ़े कंधे ढो रहे है..
देह अपने अरमानों की..
हो रही विदाई..
अलबेले मस्तानों की..
तिरंगा बन रहा छांव..
उन सरहद के दीवानों की..
कूक उठी कोयलिया भी..
वासंती आसमानों मे..
रजकण सी फैल गई...
चूनर भारती की फिजाओं मे..

स्वरचित :- मुकेश राठौड़

****
दोहे
***
ओढ़ तिरंगा आ रहे ,भारत माँ के लाल।
देख देख इस दृश्य को,हुये सभी बेहाल ।।

आयी विपदा की घड़ी,अब कुछ कहा न जाय।
आँखे नम हैं देश की ,विलाप सहा न जाय ।। ।

घात लगाकर कर गए, आतंकी आघात।
हिम्मत थी तो सामने, आकर करते बात।

ऋणी तुम्हारे हम हुए, तुम पर है अभिमान।
व्यर्थ न होगा साथियों, ये अनमिट बलिदान।।

कोटि कोटि नमन उनको,जिनके तुम हो लाल ।
बुझा न पायें आँधिया, जलती हुई मशाल।।
***

स्वरचित
अनिता सुधीर श्रीवास्तवल


क -एक पल स्तबध होता है
जब वीरों के साथ अनुचित 
घटित होता है 
विचारो का स्राव स्फूटित होता है 
अश्रुओ का सैलाव उमडता है 
जब यकायक कोई वीर
विदा लेता है इस दूनिया से 
बिखर जाता है घरोंदा उसका 
युद्ध के बाद छायी हुई 
शांति सा प्रतीत होता है 
जिसमे शोर का नामो निशान 
नही होता
एक -एक पल ....
वीर जब छुट्टी से वापिस 
देश की सीमा पर जाते है 
वापिस घर आएगे या नही 
वीरो को अनुमान नही होता
एक-एक पल.....
वीरों जैसा होना 
आसान नहीं होता ,
वीरों की सुरक्षा का 
आखिर क्यों पुख्ता 
इंतजाम नहीं होता 
एक -एक पल .....
स्वतंत्र लेखन


संस्कारों से सजी सरज़मीं खून से नहा रही
बहन
ों की माँगें माँ की गोदें उजड़ती जा रही ।।

कितने कायराने हमले आये दिन हो रहे हैं
हमारी चुप्पी आतंकियों के हौंसले बढा़ रही ।।

क्या तरक्की की हमने आज आतंकी सेना 
हमारे नाक के तले विजय दुंदुभी बजा रही ।।

क्या हम अक्षम 'शिवम' इनका दमन करने में 
यह बात कई सवाल हमारे सामने ला रही ।।

अब वक्त नही सोने का कुचलना होगा जज्बा
क्यों न हमारे हुक्मरानों को बात समझ आ रही ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 17/02/2019

ना कोई शायरी और 
ना कोई नज्म लिखेंगे।
डूबा है दिल दर्द में मेरा ,
माँ आज तेरा सम्मान लिखेंगे।।

हर फौजी के दिल मे 
वंदे मातरम का जोश लिखेंगे।
आज हम कश्मीर लिखेंगे।।

कब तक बर्बरता सहेंगे हम 
कब तक सैनिकों के सर की भेंट करेंगे।
छलनी कर दुश्मन की छाती को,

नया एक इतिहास लिखेंगे।
आज हम कश्मीर लिखेंगे।।

रोती माँ ,बहनो की छाती को
दुश्मन के लहू से लाल करेंगे।
आज फिर धरती को 
तेरी हम आबाद करेंगे।।

फहरायेगे आज तिरंगा कश्मीर में।
उस पर वन्देमातरम का जोश लिखेंगे।
आज हम सिर्फ और
सिर्फ कश्मीर लिखेंगे।

जय माँ भारती जय हिंद
वीर शहीदों को नमन

संध्या चतुर्वेदी
अहमदाबाद, गुजरात


कितनी दिख रहीं हैं उसकी ऑखे लाल लाल ,
माता भारती कर रही जोर जोर से हाहाकार |
उसने खोये हैं अपने कितने ही लाड़ले लाल ,
लाशों को वो देख देख करने लगी है चीत्कार |

जागो हे सोई संवेदना अब तो तू जाग जाग ,
चलो घर दुश्मन का कर डालो राख राख |
सुनो अभी छुपे घर के भेदी को काट काट ,
बढकर उसके लुढकादो तुम सब ठाट बाट |

जागो ऐ कलम और जाग जाओ सब कलम कार ,
तुम कर डालो रक्त में सबके अग्नि का संचार |
भारत के करोड़ो हाथ उठें अब सब एक साथ ,
धरती गगन में गूँज उठे जोर से जय जयकार |

शहादत वीर जवानों की बने दुश्मनों को काल ,
काँप उठे धरती जमीं बैरी की हो जाये लाल |
खूब नाचे माँ भारती फिर पहन करके मुण्डमाल ,
हमारी हिन्द की धरा का चमक उठेगा भाल |

स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,


'जल रहा था चांद'
-----------------------
जल रहा था चांद,
थी चांदनी दहक रही।
प्रकृति थी मौन,
वेदना तड़प रही।
खून में उबाल था,
बाजुएं फड़क रहीं।
हरकतें नापाक थीं,
आवाजें उठ रही।
खून का बदला खून,
पुकार ये मच रही।
माहौल था गमगीन,
आंखें थीं बरस रहीं।
खो दिए थे लाल,
माताएं तड़प रहीं।
शहीदों की पत्नियां,
सिंहनी ही गरज रहीं।
‌बलिदान न हो व्यर्थ,
मेरे सुहाग का।
क्यों हो न अंत,
अब आतंकवाद का।
देखना और सोचना,
अब बहुत हो चुका।
फैसले का वक्त ,
अब निकट आ चुका।
रक्त की बहीं बूंद,
अब न व्यर्थ जाएंगी।
भारतवासियों को,
कम मत आंकना।
अपनी पर आ गए,
बहुत कुछ कर जाएंगे।
जो तुम न सोच सको,
ऐसा करके दिखाएंगे।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित

कविता 
हर कदम पर धोखा दिया देश के गद्धारों ने , 
हरदम हमें चौंका दिया हर वेश में 
हत्यारों ने ।
विफलता अपनी दासी सफलता इनके साथ थी, 
दुर्बलता अपनी प्यासी संबलता इनके साथ थी।
दिल्ली का ताज सौंपा गया कभी मुगल मेहमानों को , 
पीठ में माँ के छूरा घोंपा सहलाया था अरमानों को ।
मिरजाफर से देश द्रोही इस अंचल पर मौजूद हैं , 
लाल सिंह से खलते हमको पर इसके बावजूद हैं ।
वतन जब मझधार में था पीडा़ थी भारी घाव में , 
पतवार भी ये छिनते पत्थर भी रखते नांव में ।
स्वर्ण चिडि़या निशाना बनी इनके ही मचान से , 
अंग्रेज भी आये सत्ता में इनके ही मकान से।
गरीबों का खून पीने वाले ये ही दानदाता हैं, 
फसलों का को आग लगाने वाले ये ही अन्नदाता हैं।
निहत्थों पर वार करते परचम को भी जलाते थे , 
दुश्मन जो उत्तर -पश्चिम उनसे गले मिल जाते हैं , 
कभी आड़ ले खालिस्तान की ये अपना जाल फैलाते थे ।
जम्मू-कश्मीर हम सबका हैं कैसे इन्हें दिला देगें , 
टुकडे़ नहीं ये रोटी के जो हम इन्हें खिला देंगे ।
मुल्क यह आजाद पर ये आशा के गुलाम हैं , 
देशभक्ति का मन नहीं पर चाहते ये सलाम हैं ।
दुष्टों को देश में रखना यह कहाँ का न्याय हैं ? 
आतंकियों को देश निकाला दें यह भी क्या अन्याय हैं ? 
पर आज भी क्या बात हम धोखें में सिरफिरों के , 
'निश्छल' धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में नर्तन भी हैं शमशिरों के ।
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश शर्मा 
'निश्छल',


" मानवता तार तार"

मानवता हो गई तार तार,
फिर भी ना आई उसको लाज।
मिलकर लेलो संकल्प नया,
कर देंगे उसको तार तार।
सौगन्ध हमें है मिट्टी की,
हर हाल में बदला लेंगे हम।
जिसने घाटी को नर्क किया,
घर में घुस कर मारेंगे हम।
मारा जिसने धोखे से है,
हम उसको मजा चखाएंगे।
उस कायर पाकिस्तान को हम,
नक्शे से आज मिटाएंगे।
हमने है जिसको मान दिया,
उसने ही हमको दर्द दिया।
ना भूलेंगे इस धोखे को,
अब हमने है संकल्प लिया।
वह कायर है वह अधमी है,
है उसका कोई धर्म नहीं।
जो छिप कज हमले करता हो,
ऐसे गीदड़ का कोई मोल नहीं।
माना हमसे ही निकला है,
हमने ही उसको पाला है।
पर आज सपोले का फन ,
एड़ी से हमें कुचलना है।
दिल्ली से मेरा आग्रह है,
चौबीस घंटे की मोहलत दे।
सौगन्ध शहीदों की हमको,
बस हमको मन की करने दे।
इतला कर दो लाहौर को अब,
जय हिन्द की सेना आती है।
उनकी गद्दारी का सबक उन्हें,
उनकी भाषा में सिखलाती है।
इस कायर दंभी हलकट को अब।
दुनिया से अभी मिटाती है।।
(अशोक राय वत्स) स्वरचित
जयपुर


मिट गयीं कितनी हस्तियाँ ,
बिलख रहे 
अनगिनत परिवार ।
यदि अब भी 
न पसीजा कोई
हृदय ,
तो है धिक्कार...
है धिक्कार ।।
बच्चा रोए
पिता को अपने ,
माँ बेटे का 
रुदन करे ।
बहन कहे ,
मैंनें भाई खोया ,
पत्नी पति का 
शोक करे ।।
है पूरा परिवार
शोकग्रस्त ,
अब कौन बँधाए ढाँढस ?
चला गया जाने वाला तो ,
अब कौन निभाए बन्धन ?
मेहन्दी वाले हाथों की 
टूटी चूड़ियाँ ,
नन्हें बालक 
अनाथ हो गये ।
गया वृद्ध माता-पिता का 
इकलौता बेटा ,
सारे रिश्ते पल में ,
स्वाहा हो गये ।।
बना है किस मिट्टी से ,
न जानें , एक सैनिक का सीना ।
डटकर होता है
खड़ा युद्ध में ,
करे मुश्किल
दुश्मन का भी जीना ।।
विधा-हाइकु

1.
प्रतीक बना
वतन की आबरू
तिरंगा झंडा
2.

भारत माता
दुःखी , आतंकियों से
तनावग्रस्त
3.
भारत मेरा
तन मन में बसा
देश निराला
4.
आफत बना
पुलवामा हमला
साजिस पाक
5.
नहीं घटेगी
शक्ति हिंदुस्तान की
पाक कुत्तों से

अशोक कुमार ढोरिया
स्वरचित

आतंकियों को अपने घर में पालता
जेहाद के नाम पर मानवता बाँटता
उस ग़द्दार देश को बच्चा भी जानता
नीच पाकिस्तान को कौन नही पहचानता !!
विभाजन(१९४७) के बाद भी
उसकी भूख नही मिटी
कश्मीर को लेकर
अंधभक्ति में डूबा
कभी नारों में
कभी समाचारों में
झूठा हक़ जता रहा
नाकामी से जब हारता
उग्रवाद फैलाता
संग पाकर कुछ ग़द्दारों का
कायरता से हमला करवाता
पुलवामा की घटना
वैश्विक पटल पर अंकित
अनेक देश हुए हैं व्यथित
शकुनि चालों से नापाक
धोखे से पासा फ़ेक गया
पर सुन ए नापाक पाकिस्तान!
इतना भी ख़ुश मत हो
चालीस लाल शहीद हुए है
पर सवा करोड़ तैयार खड़े हैं
जा आज तुझे ललकारा
हिंद देश का हर वीर शिवाजी
हर नारी लक्ष्मीबाई है
कुत्ते की तुम्हें मौत मारेंगे
अपने शहीदों का
बदला लेंगे बदला लेंगे

संतोष कुमारी ‘ संप्रीति’
स्वरचित



यादों को भूलाने में,
कुछ देर तो लगती है,
आँखों को सुलाने में,
कुछ देर तो लगती है,
किसी शख्स को भूला देना,
इतना आसान नही होता,
दिल को समझाने में,
कुछ देर तो लगती है,
भरी महफिल जब कोई,
अचानक याद आ जाए,
फिर आँसू छूपाने में,
कुछ देर तो लगती है,
जो शख्स जान से प्यारा हो,
अचानक दूर हो जाए,
दिल को यकीन दिलाने में,
कुछ देर तो लगती है।
*****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
17/2/19
रविवार
शहीदों के नाम एक *घनाक्षरी*
"कलाधर छंद" में,,,,,,
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गुरु लघु की आवृत्ति 15 बार ,,,चरणांत एक गुरु
8+8+8+ 7-- वर्ण-31
समांत-ईर
पदांत-सैनिकों

"वीर सैनिक"

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
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भारती पुकारती,सुनो पुकार देश-वीर,
देश को बचाइये,सुधीर- वीर सैनिकों !
शक्ति धार के,प्रचंड लक्ष्य में रहो सदैव,
जै निनाद घोष संग,हो अधीर सैनिकों!
ना झुको,डटे रहो,महान- देश के जवान,
जीत की उमंग में,बढो प्रवीर सैनिकों!
देश- अस्मिता झुकाय,घात से चलाय तीर,
मार डालिए तुरंत वक्ष-चीर,,सैनिकों!!
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🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार


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