ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें |
ब्लॉग संख्या :-289
कागज कलम और दवात
लेकर हो उद्गार भावों का
लिखता रहूँ सदा यहाँ
मैं लेख उम्दा भावों का
कोरे कागज सा जीवन
भर दूं भावों के राग
कर्म कलम लेकर में
लिख दूं जीवन के राग
कलम बने सम्मान मेरा
ऐसा है मन का भाव
शब्दों के सागर बनाकर
चला दूं कागज की नाव
सरस्वती का वास इसमें
सदा नमन करूँ इनको
हो भाव ऐसे मन में
कभी ना दूर करूँ इनको
जैसे अमर सूरज चंदा
है अमर कागज कलम
हर शब्द अमर हो जाए
हो आधार कागज कलम
स्याह रंग दवात का
हरता हर अंधकार
लेकर संग कागज़ का
हर शब्द करे साकार
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
लेकर हो उद्गार भावों का
लिखता रहूँ सदा यहाँ
मैं लेख उम्दा भावों का
कोरे कागज सा जीवन
भर दूं भावों के राग
कर्म कलम लेकर में
लिख दूं जीवन के राग
कलम बने सम्मान मेरा
ऐसा है मन का भाव
शब्दों के सागर बनाकर
चला दूं कागज की नाव
सरस्वती का वास इसमें
सदा नमन करूँ इनको
हो भाव ऐसे मन में
कभी ना दूर करूँ इनको
जैसे अमर सूरज चंदा
है अमर कागज कलम
हर शब्द अमर हो जाए
हो आधार कागज कलम
स्याह रंग दवात का
हरता हर अंधकार
लेकर संग कागज़ का
हर शब्द करे साकार
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
शीर्षक- "कागज"
विधा- कविता
**************
कागज-कागज जोड़कर,
मैंने, बना दी एक डायरी,
कुछ कवितायें लिखी उस पर,
और कुछ लिख डाली शायरी |
भाव मन में उभरते ऐसे,
काली बदरा बरसे जैसे,
कवयित्रि तब मैं बन जाऊँ,
कागज में सब लिख जाऊँ |
कोरा कागज कितना हल्का,
भाव लिखूँ फिर वो भरता,
लेखन के विभिन्न प्रकार,
मिला कागज को सुन्दर आकार |
वक्त बदलती इस दुनियां में,
टेक्नोलॉजी का हुआ आगाज़,
लैपटॉप, टैबलेट, मोबाइल आये,
कागज तेरा न बदला अंदाज |
टैक्नोलॉजी कितनी भी बढ़ जाये,
छपाई तो कागज में ही आये,
तेरे वजूद से नहीं होगा खिलवाड़,
तेरे बिना शिक्षा का न कोई आधार |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
विधा- कविता
**************
कागज-कागज जोड़कर,
मैंने, बना दी एक डायरी,
कुछ कवितायें लिखी उस पर,
और कुछ लिख डाली शायरी |
भाव मन में उभरते ऐसे,
काली बदरा बरसे जैसे,
कवयित्रि तब मैं बन जाऊँ,
कागज में सब लिख जाऊँ |
कोरा कागज कितना हल्का,
भाव लिखूँ फिर वो भरता,
लेखन के विभिन्न प्रकार,
मिला कागज को सुन्दर आकार |
वक्त बदलती इस दुनियां में,
टेक्नोलॉजी का हुआ आगाज़,
लैपटॉप, टैबलेट, मोबाइल आये,
कागज तेरा न बदला अंदाज |
टैक्नोलॉजी कितनी भी बढ़ जाये,
छपाई तो कागज में ही आये,
तेरे वजूद से नहीं होगा खिलवाड़,
तेरे बिना शिक्षा का न कोई आधार |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
विधा .. लघु कविता
**********************
🍁
कागज के पन्नो पर लिख के,
नाम तेरा मिटकाता हूँ।
मन को अपने मार के तुझसे,
प्यार किए मै जाता हूँ।
🍁
मेरी किस्मत मे ना तू है,
यादों का अब करना क्या।
जा तू खुश रह प्यार तेरा अब,
मेरा ना तो करना क्या।
🍁
मै भी जी लूगाँ तेरे बिन,
तुम खुश रहना मेरे बिन।
मेरी कविता तुझको अर्पित,
जीवन मेरा तेरे बिन।
🍁
हृदय अश्रु की धारा बहता,
शेर हृदय रोता हर पल।
कागज पे जो नाम है तेरा,
छिपा है मन के हर तल पर।
🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
**********************
🍁
कागज के पन्नो पर लिख के,
नाम तेरा मिटकाता हूँ।
मन को अपने मार के तुझसे,
प्यार किए मै जाता हूँ।
🍁
मेरी किस्मत मे ना तू है,
यादों का अब करना क्या।
जा तू खुश रह प्यार तेरा अब,
मेरा ना तो करना क्या।
🍁
मै भी जी लूगाँ तेरे बिन,
तुम खुश रहना मेरे बिन।
मेरी कविता तुझको अर्पित,
जीवन मेरा तेरे बिन।
🍁
हृदय अश्रु की धारा बहता,
शेर हृदय रोता हर पल।
कागज पे जो नाम है तेरा,
छिपा है मन के हर तल पर।
🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
भावों के मोती बनें , नयना नीर बहाय
कागज पर जब जब लिखें , वह कविता कहलाय
मनवा हर इंसान का , कोरा कागज होय
ढाई आखर प्रेम के , मरम न जाने कोय
प्रेम पगी पाती लिखी कागज कलम उठाय
प्रिय को खत हमने लिखा , प्रेमपत्र कहलाय
भोज पत्र पर लिख दिया इस जीवन का सार
मोर पंख था लेखनी , रच डाला संसार
कागज की नैया चली ,करने सागर पार
तूफानों में जा घिरी , झंझावात अपार
राम नाम मन पर लिखे , मन कागज बन जाय
अन्तर्मन में प्रभु बसे , भवसागर तर जाय
सरिता गर्ग
स्व रचित
कागज पर जब जब लिखें , वह कविता कहलाय
मनवा हर इंसान का , कोरा कागज होय
ढाई आखर प्रेम के , मरम न जाने कोय
प्रेम पगी पाती लिखी कागज कलम उठाय
प्रिय को खत हमने लिखा , प्रेमपत्र कहलाय
भोज पत्र पर लिख दिया इस जीवन का सार
मोर पंख था लेखनी , रच डाला संसार
कागज की नैया चली ,करने सागर पार
तूफानों में जा घिरी , झंझावात अपार
राम नाम मन पर लिखे , मन कागज बन जाय
अन्तर्मन में प्रभु बसे , भवसागर तर जाय
सरिता गर्ग
स्व रचित
कागज की किस्मत कलम ने बनाई
कलम को स्याही की जरूरत कहाई ।।
अकेला भला कहाँ कौन कुछ कहाये
सीखिये सीखें सीख हर जगह समाई ।।
कागज की कश्ती नही पार हो पाई
खेलने की महज यह शय कहलाई ।।
रंग मिला कागज को कीमत बढ़ी
उपहार के ऊपर जगह तब बनाई ।।
कलम के बिन कागज नही कुछ
कागज के बिन कलम नही कुछ ।।
वाकई ''शिवम" है अधूरी हर शय
ये राज है गहरा जानिये सचमुच ।।
कागज कभी न करता है अहम
चाहिये उसको सदा ही कलम ।।
कलम को दवात की जरूरत रहे
तीनों का अनूठा कहलाये संगम ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 04/02/2019
कलम को स्याही की जरूरत कहाई ।।
अकेला भला कहाँ कौन कुछ कहाये
सीखिये सीखें सीख हर जगह समाई ।।
कागज की कश्ती नही पार हो पाई
खेलने की महज यह शय कहलाई ।।
रंग मिला कागज को कीमत बढ़ी
उपहार के ऊपर जगह तब बनाई ।।
कलम के बिन कागज नही कुछ
कागज के बिन कलम नही कुछ ।।
वाकई ''शिवम" है अधूरी हर शय
ये राज है गहरा जानिये सचमुच ।।
कागज कभी न करता है अहम
चाहिये उसको सदा ही कलम ।।
कलम को दवात की जरूरत रहे
तीनों का अनूठा कहलाये संगम ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 04/02/2019
प्रस्तुति : प्रथम
------------''''--------------
1
लिखालिखी नहीं
देखादेखी कहा
कभी कागज छुआ नहीं
जो चखा वही कहा
2
छोटे छोटे शब्दों से
कागज को ग्रंथ बना दिया
कोई वेद
कोई गीता बना दिया
अदभूतों में अदभूत
कागज को अनूठा बना दिया
@ शंकर कुमार शाको
स्वरचित
------------''''--------------
1
लिखालिखी नहीं
देखादेखी कहा
कभी कागज छुआ नहीं
जो चखा वही कहा
2
छोटे छोटे शब्दों से
कागज को ग्रंथ बना दिया
कोई वेद
कोई गीता बना दिया
अदभूतों में अदभूत
कागज को अनूठा बना दिया
@ शंकर कुमार शाको
स्वरचित
क्या लिखूं तेरे बारे में कागज
जितना लिखूं उतना है कम कागज
बचपन बीता नाव बना पानी में
बहाते तुझे कागज
तो कभी हवाई जहाज बना उडते
सपनों में कागज
पढते लिखते जवान हुआ
मैं ऐ कागज
प्रेम पत्रों का आवागमन किया
फिर तूने कागज
शादी में निमंत्रण का
आधार बना तू कागज
पैसा कमाने में सहयोगी
बना तू कागज
बाईबल कुरान गीता
रामायण लिखी गई
तूझे पर कागज
छोटे बड़े समझौते
प्यार मुहब्बत
सब का गवाह बनता है
तू कागज
कितनी है विडम्बना
जब हो जीवन का अंत
मृत्यु की पहचान बनता है
ऐ कागज
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव
भोपाल
जितना लिखूं उतना है कम कागज
बचपन बीता नाव बना पानी में
बहाते तुझे कागज
तो कभी हवाई जहाज बना उडते
सपनों में कागज
पढते लिखते जवान हुआ
मैं ऐ कागज
प्रेम पत्रों का आवागमन किया
फिर तूने कागज
शादी में निमंत्रण का
आधार बना तू कागज
पैसा कमाने में सहयोगी
बना तू कागज
बाईबल कुरान गीता
रामायण लिखी गई
तूझे पर कागज
छोटे बड़े समझौते
प्यार मुहब्बत
सब का गवाह बनता है
तू कागज
कितनी है विडम्बना
जब हो जीवन का अंत
मृत्यु की पहचान बनता है
ऐ कागज
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव
भोपाल
कागज की कस्ती डूबे मन के भावों का अब है सहारा
तैरते खयालों को सम्भालने तू अब नजर नहीं आता
वो भीगी लटों से गिरी थीं जो तेरे चेहरे पर बूदें तुम्हारा
वो ओजस वो खिलता गुलाब अब कहीं नजर नहीं आता
वो शहर और वो गलियारों मे मिलना हँसना हँसाना
मैं रूठी हूँ कब से , मनाने ओ संगदिल अब नहीं आता
दामन पकड कर हिलाना और वो तेरा नजरे चुराना
रहबर से मिल मचल दिल का जाना नजर नहीं आता
गिरते हैं अश्कों के मोती चेहरा बना दिल बिछौना
तकने को राहे वो संगदिल रहगुजर नजर नहीं आता
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
तैरते खयालों को सम्भालने तू अब नजर नहीं आता
वो भीगी लटों से गिरी थीं जो तेरे चेहरे पर बूदें तुम्हारा
वो ओजस वो खिलता गुलाब अब कहीं नजर नहीं आता
वो शहर और वो गलियारों मे मिलना हँसना हँसाना
मैं रूठी हूँ कब से , मनाने ओ संगदिल अब नहीं आता
दामन पकड कर हिलाना और वो तेरा नजरे चुराना
रहबर से मिल मचल दिल का जाना नजर नहीं आता
गिरते हैं अश्कों के मोती चेहरा बना दिल बिछौना
तकने को राहे वो संगदिल रहगुजर नजर नहीं आता
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
भर जाता है दिल का हर छोर ,
जब दिल के हर भाव को ..
कागज के हृदय पर उतार देती हूं
साझा हो लेती हूं ,
अपने एक और हृदय से
जो मेरे मन की पीड़ा को
अपने अंदर रख लेता है,
जब मन अंदर से भरता है
ये अपनी बाहें फैलाता है,
मेरे भावो के मोती को
अपने हृदय सीपी से ढक लेता है,
मैं अपने अश्रु ..
जो मन के भीतर रखती थी
उस पीड़ा से अपने मन को भरती थी
आज वही पीड़ा मेरी ,
भाव बनकर उभरती है..
मेरे कागज के हृदय पटल पर वो
मेरी अपनी कविता बनती है...🌹🌹🌹
स्वरचित
💐 सरिता यादव
जब दिल के हर भाव को ..
कागज के हृदय पर उतार देती हूं
साझा हो लेती हूं ,
अपने एक और हृदय से
जो मेरे मन की पीड़ा को
अपने अंदर रख लेता है,
जब मन अंदर से भरता है
ये अपनी बाहें फैलाता है,
मेरे भावो के मोती को
अपने हृदय सीपी से ढक लेता है,
मैं अपने अश्रु ..
जो मन के भीतर रखती थी
उस पीड़ा से अपने मन को भरती थी
आज वही पीड़ा मेरी ,
भाव बनकर उभरती है..
मेरे कागज के हृदय पटल पर वो
मेरी अपनी कविता बनती है...🌹🌹🌹
स्वरचित
💐 सरिता यादव
कागज पर हाइकु गीत मेरे,
वासंती आज,
पाहुनॠतुराज,
सारी वसुधा,
कागज पत्र पर,
वासंती लिखे,
नवछंद उकेरे,
कैसी खुशबु,
मौसम महकते,
मधुर रस,
ऋतु मधुमय है,
सिंदूरी शाम,
धीरे धीरे ढलती,
प्रेम के दीप,
जीवन में जलते,
चांद निर्मल,
पवन हौले-हौले,
डोलता रहा,
चतुर शिल्पी लिखे,
लघु जीवन,
में,जीवन के गीत,
जीवन गीत,
जीवन का संगीत,
जिसको गाना,
जीवन में आ, जाए,
धन्य है वह,
इस वसुधा पर,
जीवन गीत गाए।।
स्वरचित हाइकु गीत,
देवेन्द्र नारायण दास बसना छ,ग,।।
वासंती आज,
पाहुनॠतुराज,
सारी वसुधा,
कागज पत्र पर,
वासंती लिखे,
नवछंद उकेरे,
कैसी खुशबु,
मौसम महकते,
मधुर रस,
ऋतु मधुमय है,
सिंदूरी शाम,
धीरे धीरे ढलती,
प्रेम के दीप,
जीवन में जलते,
चांद निर्मल,
पवन हौले-हौले,
डोलता रहा,
चतुर शिल्पी लिखे,
लघु जीवन,
में,जीवन के गीत,
जीवन गीत,
जीवन का संगीत,
जिसको गाना,
जीवन में आ, जाए,
धन्य है वह,
इस वसुधा पर,
जीवन गीत गाए।।
स्वरचित हाइकु गीत,
देवेन्द्र नारायण दास बसना छ,ग,।।
जैसे किया हो फैसला, सिक्का उछाल कर।
आखों में उसने देखा था यूं, आखें डालकर।
दीवाने तो हम जैसे मिलेगें , हरेक मोड़पर।
तुम चलना जरा बाहोश दुपट्टा सम्हाल कर।
वो जो आ गये आगोश में तो सुकून आ गया।
फिर जो हुए रुखसत के बैचेनी बहाल कर।
बस इश्क को समझोगे तो तुम भी उसी रोज।
रख देगा जिन्दगी का, जब जीना मुहाल कर।
कुछ नये हैं उनके पैतरे हथियार है कुछ नये।
नश्तर चला दिया बेदर्द ने लफ्जों में डालकर।
लिखता है हरेक रात वो एक कशमकश नई।
कागज पे रख दिया है, कलेजा निकाल कर।
विपिन सोहल
आखों में उसने देखा था यूं, आखें डालकर।
दीवाने तो हम जैसे मिलेगें , हरेक मोड़पर।
तुम चलना जरा बाहोश दुपट्टा सम्हाल कर।
वो जो आ गये आगोश में तो सुकून आ गया।
फिर जो हुए रुखसत के बैचेनी बहाल कर।
बस इश्क को समझोगे तो तुम भी उसी रोज।
रख देगा जिन्दगी का, जब जीना मुहाल कर।
कुछ नये हैं उनके पैतरे हथियार है कुछ नये।
नश्तर चला दिया बेदर्द ने लफ्जों में डालकर।
लिखता है हरेक रात वो एक कशमकश नई।
कागज पे रख दिया है, कलेजा निकाल कर।
विपिन सोहल
विधा :: हाइकु
१.
कागजी नाव
शब्द हैं पतवार
'राठौड़' द्वार
२.
कागजी नाव
भावनाएं लहर
शब्द आकार
३.
'भावों के मोती'
दिल से दिल तक
कागज़ कोरा
4.
सन्देश भेजा
कोरे कागज़ पर
'प्रीतम' लिख
५.
कृष्णा पुकार
छोड़ कागज़ शब्द
भाव स्वीकार
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
०४.०२.२०१९
१.
कागजी नाव
शब्द हैं पतवार
'राठौड़' द्वार
२.
कागजी नाव
भावनाएं लहर
शब्द आकार
३.
'भावों के मोती'
दिल से दिल तक
कागज़ कोरा
4.
सन्देश भेजा
कोरे कागज़ पर
'प्रीतम' लिख
५.
कृष्णा पुकार
छोड़ कागज़ शब्द
भाव स्वीकार
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
०४.०२.२०१९
🌼🌼🌼
हाइकू
1
पानी में चले
कागज की ये कश्ती
बच्चों की ख़ुशी
2
कागज पर
लिखे हैं मनोभाव
जाने संसार
3
खेल खिलौना
जहाज कागज का
उड़े हवा में
4
कागज पर
लिखी जो मैंने पाती
उन्हें सुहाती
5
कागज दिल
उभरे मनोभाव
भावों के मोती
💐💐💐💐💐💐💐
स्वरचित,
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
हाइकू
1
पानी में चले
कागज की ये कश्ती
बच्चों की ख़ुशी
2
कागज पर
लिखे हैं मनोभाव
जाने संसार
3
खेल खिलौना
जहाज कागज का
उड़े हवा में
4
कागज पर
लिखी जो मैंने पाती
उन्हें सुहाती
5
कागज दिल
उभरे मनोभाव
भावों के मोती
💐💐💐💐💐💐💐
स्वरचित,
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
-------------------------
कागज के टुकड़ों के लिए
दो इंसानों में बहस छिड़ी
मोहब्बत का मोल नहीं
दौलत ही इस दुनियाँ में बड़ी
सुनकर उनकी बकवास
लोगों को आ रहा था मज़ा
बढ़ रहा थी भीड़ बड़ी
निकल नहीं रहा नतीजा
एक बुजुर्ग ने आकर बोला
क्यों करते हो झमेला
तुम मोहब्बत बांटो
और तुम पैसा बांटो
जिसके पास जमा हो
इंसानों की भीड़
वहीं आदमी इस दुनियाँ में
सबसे ज्यादा अमीर
सुन कर बुजुर्ग की बातें
लगे दोनों किस्मत आजमाने
कागज के नोटों को जिसने बांटा
उसके पास लगा इंसानों का मेला
मोहब्बत बांटने वाला इंसान
रह गया बिल्कुल अकेला
कागज के टुकड़ों की है
लोगों यह दुनियाँ दीवानी
प्यार, अपनेपन की भाषा
कहाँ किसको समझ है आनी
कागज के टुकड़े को लिए
चारों और है जंग छिड़ती
राजनीति हो या आम जिंदगी
इंसानियत ही जाए डूबती
***अनुराधा चौहान***मेरी स्वरचित रचना
कागज के टुकड़ों के लिए
दो इंसानों में बहस छिड़ी
मोहब्बत का मोल नहीं
दौलत ही इस दुनियाँ में बड़ी
सुनकर उनकी बकवास
लोगों को आ रहा था मज़ा
बढ़ रहा थी भीड़ बड़ी
निकल नहीं रहा नतीजा
एक बुजुर्ग ने आकर बोला
क्यों करते हो झमेला
तुम मोहब्बत बांटो
और तुम पैसा बांटो
जिसके पास जमा हो
इंसानों की भीड़
वहीं आदमी इस दुनियाँ में
सबसे ज्यादा अमीर
सुन कर बुजुर्ग की बातें
लगे दोनों किस्मत आजमाने
कागज के नोटों को जिसने बांटा
उसके पास लगा इंसानों का मेला
मोहब्बत बांटने वाला इंसान
रह गया बिल्कुल अकेला
कागज के टुकड़ों की है
लोगों यह दुनियाँ दीवानी
प्यार, अपनेपन की भाषा
कहाँ किसको समझ है आनी
कागज के टुकड़े को लिए
चारों और है जंग छिड़ती
राजनीति हो या आम जिंदगी
इंसानियत ही जाए डूबती
***अनुराधा चौहान***मेरी स्वरचित रचना
कोरा कागज कहां रहा ये,
मेरा दिल गंदला है भगवन।
ऐसा कर दें इसे अखिलेश्वर
जिससे बन जाऐ ये पावन।
भजन श्रीराम के लिख पाऊँ।
उनके यश कीरत गुण गाऊँ।
प्रभु हृदय प्रकाशित कर दें मेरा,
कोरा कागज भले रह जाऊँ।
गीत मीत के भजन लिखूं मैं।
प्रेमप्रीति कर मनन लिखूं मै।
कागज अगर साफ स्वच्छ हो,
इसपर शुभ स्वजन लिखूं मै।
मन ये कोरा कागज बन जाऐ ।
सुखद साहित्य सृजन हो पाऐ।
नित चित्रबिचित्र उकेरूं इसपर ,
ये खुशियां सारे जगत को लाऐ।
नहीं वैर भाव के गीत लिखूं मै।
रागद्वेष नहीं सदप्रीत लिखूं मै।
जब भी रहे उर कोरा कागज,
प्रभु सृजन करूं संगीत रचूं मै।
स्वरचितःःः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
मेरा दिल गंदला है भगवन।
ऐसा कर दें इसे अखिलेश्वर
जिससे बन जाऐ ये पावन।
भजन श्रीराम के लिख पाऊँ।
उनके यश कीरत गुण गाऊँ।
प्रभु हृदय प्रकाशित कर दें मेरा,
कोरा कागज भले रह जाऊँ।
गीत मीत के भजन लिखूं मैं।
प्रेमप्रीति कर मनन लिखूं मै।
कागज अगर साफ स्वच्छ हो,
इसपर शुभ स्वजन लिखूं मै।
मन ये कोरा कागज बन जाऐ ।
सुखद साहित्य सृजन हो पाऐ।
नित चित्रबिचित्र उकेरूं इसपर ,
ये खुशियां सारे जगत को लाऐ।
नहीं वैर भाव के गीत लिखूं मै।
रागद्वेष नहीं सदप्रीत लिखूं मै।
जब भी रहे उर कोरा कागज,
प्रभु सृजन करूं संगीत रचूं मै।
स्वरचितःःः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
कोरा कागज मानव मुझको कहता।
पर उनका सुख दुःख मैं ही सहता।
जब चाहे कलम मुझपे चलाकर-
हाथों में मसल कूड़ेदान में धरता।
मुझसे ही सुंदर नाव बनाएं।
बच्चों संग पानी में बहाएं।
फिर खुशी से ताली बजाकर-
बच्चों संग बचपन जी जाएं।
प्रेम पत्र भी मुझे बनाया ।
कई रंगों से मुझे सजाया।
दूर दूर तक मुझे है जाना-
संदेश वाहक मैं कहाया।
स्वरचित कुसुम त्रिवेदी दाहोद
पर उनका सुख दुःख मैं ही सहता।
जब चाहे कलम मुझपे चलाकर-
हाथों में मसल कूड़ेदान में धरता।
मुझसे ही सुंदर नाव बनाएं।
बच्चों संग पानी में बहाएं।
फिर खुशी से ताली बजाकर-
बच्चों संग बचपन जी जाएं।
प्रेम पत्र भी मुझे बनाया ।
कई रंगों से मुझे सजाया।
दूर दूर तक मुझे है जाना-
संदेश वाहक मैं कहाया।
स्वरचित कुसुम त्रिवेदी दाहोद
अब चाह नहीं मुझको,
स्वर्णिम आभूषण की
चाह नहीं मूँगा रत्न
और माणिक्य की।
बस चंद टुकड़े कागज के
और एक कलम थमा देना।
कुछ अहसास और,
अंदाज है दिल में।
कुछ अल्फाजों को
कह नहीं पाऊँगी।
कागज पर इन्हें
उतार दूँगी।
शब्दों को नए द्वार दूँगी।
भावनाओं से
जीवन सँवार दूँगी।।
यह कागज का टुकड़ा
होगा आपकी नजर में
मेरे लिये तो यह
खुशियों जहान है।
यही मेरी जमीं और
यही मेरा आसमान है।।
रचनाकार
जयंती सिंह
स्वर्णिम आभूषण की
चाह नहीं मूँगा रत्न
और माणिक्य की।
बस चंद टुकड़े कागज के
और एक कलम थमा देना।
कुछ अहसास और,
अंदाज है दिल में।
कुछ अल्फाजों को
कह नहीं पाऊँगी।
कागज पर इन्हें
उतार दूँगी।
शब्दों को नए द्वार दूँगी।
भावनाओं से
जीवन सँवार दूँगी।।
यह कागज का टुकड़ा
होगा आपकी नजर में
मेरे लिये तो यह
खुशियों जहान है।
यही मेरी जमीं और
यही मेरा आसमान है।।
रचनाकार
जयंती सिंह
विषय - कागज
विधा - हाईकू
1) कलम हल
कागज की जमीन
शब्द फसल
2)कागज लफ्ज
अश्कों से सींची खुशी
ग़ज़ल बनी ।
3) कागज कोरा
कलम दवात भी
शब्द बिखरे ।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
तनुजा दत्ता (स्वरचित )
विधा - हाईकू
1) कलम हल
कागज की जमीन
शब्द फसल
2)कागज लफ्ज
अश्कों से सींची खुशी
ग़ज़ल बनी ।
3) कागज कोरा
कलम दवात भी
शब्द बिखरे ।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
तनुजा दत्ता (स्वरचित )
कागज पर जिंदा है मेरा देश।
वादों का बन्दा है मेरा देश ।
कश्मीर से अंतरीप हम एक हैं ,
पर क्या इरादे एकदम नेक हैं।
बातों का रन्दा है मेरा देश ।---
इस दुकान पर है ब्लेक का झंडा,
वह दुकान बनी चोरी का अड्डा।
नयनयुक्त अंधा है मेरा देश ।----
सुबह चुनाव और शाम चुनाव है,
प्रजातन्त्र लगता मात्र चुनाव है।
वोट और चंदा है मेरा देश।---
कागज पर खूब विकास होता है ,
कागज पर लाभ पूरा मिलता है।
कागज कारिंदा है मेरा देश ।
कागज पर जिंदा है मेरा देश ।
******स्वरचित*********
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र.)451551
वादों का बन्दा है मेरा देश ।
कश्मीर से अंतरीप हम एक हैं ,
पर क्या इरादे एकदम नेक हैं।
बातों का रन्दा है मेरा देश ।---
इस दुकान पर है ब्लेक का झंडा,
वह दुकान बनी चोरी का अड्डा।
नयनयुक्त अंधा है मेरा देश ।----
सुबह चुनाव और शाम चुनाव है,
प्रजातन्त्र लगता मात्र चुनाव है।
वोट और चंदा है मेरा देश।---
कागज पर खूब विकास होता है ,
कागज पर लाभ पूरा मिलता है।
कागज कारिंदा है मेरा देश ।
कागज पर जिंदा है मेरा देश ।
******स्वरचित*********
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र.)451551
आओ मुझको नाम दिलाओ,
चाहे बच्चों से नाँव बनवाओ ।
लिखकर थोडा़ प्यार जताओ,
रूठे को लिख तुम मनाओ ।
रिश्ता नाजूक डोर पंतग सा,
मनमौजी यह मस्त मतंग सा ।
सड़क समझ कलमें दौडा लो ,
श्लोक ग्रन्थ, नगमें लिखवा दो।
कहानियाँ लिख मन बहलाओ,
शेयर शायरी तुम सुनो सुनाओ ।
लेखनी अक्षर से मोती बनाओ,
गाँव-गाँव अक्षरधाम चलाओ।
वक्षस्थल देश - मानचित्र बनाओ,
घास -बाँस, कागज बनाओ।
कागज - फूल फौलाद बनाओ,
संविधान धारा से प्यार लूटाओ ।
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश शर्मा 'निश्छल',
चाहे बच्चों से नाँव बनवाओ ।
लिखकर थोडा़ प्यार जताओ,
रूठे को लिख तुम मनाओ ।
रिश्ता नाजूक डोर पंतग सा,
मनमौजी यह मस्त मतंग सा ।
सड़क समझ कलमें दौडा लो ,
श्लोक ग्रन्थ, नगमें लिखवा दो।
कहानियाँ लिख मन बहलाओ,
शेयर शायरी तुम सुनो सुनाओ ।
लेखनी अक्षर से मोती बनाओ,
गाँव-गाँव अक्षरधाम चलाओ।
वक्षस्थल देश - मानचित्र बनाओ,
घास -बाँस, कागज बनाओ।
कागज - फूल फौलाद बनाओ,
संविधान धारा से प्यार लूटाओ ।
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश शर्मा 'निश्छल',
जब भी कभी मुझे तनहाई मिले तब
मेरी #कविता तुम मेरा साथ देना
जब हालात हो किसी जज्बात का
मैं फैसला न कर पाऊं दिलेहाल का
तुम #कागज से अपना रिश्ता जोड़ लेना
मेरी #कविता तुम मेरा साथ देना
गम और संघर्ष से घेर लिये जाऊंगी
दुनिया के बीच से जब ठुकरा दिये जाऊंगी
तब मुझे संभलने का मौका दिला देना
मेरी #कविता तुम मेरा साथ देना
जब जिंदगी में खुशी और होंटों पे हंसी न हो
सारा जहां मुस्कुराये मेरी आंखों में नमीं ही हो
उस वक्त मुझको मुस्कुराना सिखा देना
मेरी #कविता तुम मेरा साथ देना
कोई गम न होगा जिंदगी ने मेरे कोई तोहफा न दिया
मेरी कविता तुम मेरी जिंदगी की अनमोल सौगात बनना
मेरी #कविता तुम मेरा साथ देना
मेरी #कविता तुम मेरा साथ देना
---------------------------------------------
#दीपमाला_पाण्डेय
रायपुर छ.ग.
मेरी #कविता तुम मेरा साथ देना
जब हालात हो किसी जज्बात का
मैं फैसला न कर पाऊं दिलेहाल का
तुम #कागज से अपना रिश्ता जोड़ लेना
मेरी #कविता तुम मेरा साथ देना
गम और संघर्ष से घेर लिये जाऊंगी
दुनिया के बीच से जब ठुकरा दिये जाऊंगी
तब मुझे संभलने का मौका दिला देना
मेरी #कविता तुम मेरा साथ देना
जब जिंदगी में खुशी और होंटों पे हंसी न हो
सारा जहां मुस्कुराये मेरी आंखों में नमीं ही हो
उस वक्त मुझको मुस्कुराना सिखा देना
मेरी #कविता तुम मेरा साथ देना
कोई गम न होगा जिंदगी ने मेरे कोई तोहफा न दिया
मेरी कविता तुम मेरी जिंदगी की अनमोल सौगात बनना
मेरी #कविता तुम मेरा साथ देना
मेरी #कविता तुम मेरा साथ देना
---------------------------------------------
#दीपमाला_पाण्डेय
रायपुर छ.ग.
(1)
जीवन तो है
कागज का सा पन्ना
अच्छा लिखना
(2)
कागजी फूल
सुरभि से रहित
लगें माकूल
(3)
उड़ी पतंग
महीन कागज की
होके मलंग
(4)
कागजी नाव
दुष्ट जल संकट
है ठहराव
(5)
कागजी प्यार
पुस्तकें बहुमूल्य
हैं सच्ची यार
#स्वरचित
डा. अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
जीवन तो है
कागज का सा पन्ना
अच्छा लिखना
(2)
कागजी फूल
सुरभि से रहित
लगें माकूल
(3)
उड़ी पतंग
महीन कागज की
होके मलंग
(4)
कागजी नाव
दुष्ट जल संकट
है ठहराव
(5)
कागजी प्यार
पुस्तकें बहुमूल्य
हैं सच्ची यार
#स्वरचित
डा. अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
कोरे कागज सा था मन कोरा , जब रिश्ता रिश्तों से था जोड़ा |
रंग प्रेम के रंग गया मन भोला , अपना पराया मन में जोड़ा |
रहा याद नहीं क्यों जग में आया , मोह माया में ही रहा भरमाया |
कोरे कागज सा बच्चा भी होता , जो लिख दो इबारत वही सीखता |
जो संस्कार का पेज वह पढता , जीबन कागज पर वही तो उतारता |
दिल कोरा कागज जब तक होता ,तस्वीरें सपनों की बनाता रहता |
साकार जीवन का हो गया सपना , पतंग कागज की बनकर उडता |
भावों के धनी को कागज प्यारा , अपने भावों को दिल से उकेरा |
खूब साहित्य को समृध्द बनाया , दर्पण समाज के लिऐ बनाया |
कुछ लोगों ने दायित्व भुलाया , साहित्य सागर को मैला कर डाला |
कर लिया बुराई से समझौता , और गले से दौलत को लगाया |
जिसने कागज के उपयोग को समझा , जीवन में नहीं खाया थोखा |
कागल की जीवन बडी उपयोगिता , इस पर लिखा प्रमाण बन जाता |
जो ध्यान पूर्वक कागज को पढता ,जीवन में उसको मिले सफलता |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
रंग प्रेम के रंग गया मन भोला , अपना पराया मन में जोड़ा |
रहा याद नहीं क्यों जग में आया , मोह माया में ही रहा भरमाया |
कोरे कागज सा बच्चा भी होता , जो लिख दो इबारत वही सीखता |
जो संस्कार का पेज वह पढता , जीबन कागज पर वही तो उतारता |
दिल कोरा कागज जब तक होता ,तस्वीरें सपनों की बनाता रहता |
साकार जीवन का हो गया सपना , पतंग कागज की बनकर उडता |
भावों के धनी को कागज प्यारा , अपने भावों को दिल से उकेरा |
खूब साहित्य को समृध्द बनाया , दर्पण समाज के लिऐ बनाया |
कुछ लोगों ने दायित्व भुलाया , साहित्य सागर को मैला कर डाला |
कर लिया बुराई से समझौता , और गले से दौलत को लगाया |
जिसने कागज के उपयोग को समझा , जीवन में नहीं खाया थोखा |
कागल की जीवन बडी उपयोगिता , इस पर लिखा प्रमाण बन जाता |
जो ध्यान पूर्वक कागज को पढता ,जीवन में उसको मिले सफलता |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
हाइकु(3)
1
"बुल" "बियर"
चढ़ते औ गिरते
कागजी अंक
2
शेयर अंक
नामी-दामी कंपनी
कागजी बिके
3
पंजीकरण
है कागजी प्रक्रिया
जन्म व मृत्यु
4
कागज कश्ती
बरसाती नालों पे
बच्चों की मस्ती
5
प्रीत का रंग
कागज पे बिखरा
फूल सा खिला
6
हवा का झोंका
कागजों सा था रिश्ता
लेकर उड़ा
7
कागज फूल
सुगंध की हो चाह
मिले ना राह
8
शब्दों के फूल
कोरे कागज खिले
काव्य महके
9
प्रेम संदेशा
कोरे कागज पर
लिखके भेजा
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
1
"बुल" "बियर"
चढ़ते औ गिरते
कागजी अंक
2
शेयर अंक
नामी-दामी कंपनी
कागजी बिके
3
पंजीकरण
है कागजी प्रक्रिया
जन्म व मृत्यु
4
कागज कश्ती
बरसाती नालों पे
बच्चों की मस्ती
5
प्रीत का रंग
कागज पे बिखरा
फूल सा खिला
6
हवा का झोंका
कागजों सा था रिश्ता
लेकर उड़ा
7
कागज फूल
सुगंध की हो चाह
मिले ना राह
8
शब्दों के फूल
कोरे कागज खिले
काव्य महके
9
प्रेम संदेशा
कोरे कागज पर
लिखके भेजा
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
आज का कार्य - विषय - #कागज
विधा - ग़ज़ल
वज्न - 2212 - 2212 - 2212 - 22
रदीफ़ - तेरी
दिन - सोमवार
दिनांक - 04-02-2019
********************************
लाने लगी हैं रंग अब, रानाइयां तेरी।।
ले कर रहेंगी जान भी, अंगड़ाइयां तेरी।।
जाऊँ कहीं भी अक्स, तेरा ही जहन में है,
अब साथ ही चलने लगीं, परछाइयां तेरी।।
अब जिंदगी में प्यार का, शामिल करो हर पल,
वरना बढ़ेगीं रात दिन, दुश्वारियां तेरी।।
#कागज़ पे स्याही इश्क की, बन दास्तां फैली,
होने लगी है कू ब कू, रुसवाइयां तेरी।।
माना कि तुम्हें रास हैं, रोशन सी उम्मीदें,
मुश्किल बहुत ही लायेंगी, तन्हाइयां तेरी।।
#पूर्णतः_मौलिक एवं_स्वरचित
विनीत मोहन औदिच्य
सागर, मध्य प्रदेश
विधा - ग़ज़ल
वज्न - 2212 - 2212 - 2212 - 22
रदीफ़ - तेरी
दिन - सोमवार
दिनांक - 04-02-2019
********************************
लाने लगी हैं रंग अब, रानाइयां तेरी।।
ले कर रहेंगी जान भी, अंगड़ाइयां तेरी।।
जाऊँ कहीं भी अक्स, तेरा ही जहन में है,
अब साथ ही चलने लगीं, परछाइयां तेरी।।
अब जिंदगी में प्यार का, शामिल करो हर पल,
वरना बढ़ेगीं रात दिन, दुश्वारियां तेरी।।
#कागज़ पे स्याही इश्क की, बन दास्तां फैली,
होने लगी है कू ब कू, रुसवाइयां तेरी।।
माना कि तुम्हें रास हैं, रोशन सी उम्मीदें,
मुश्किल बहुत ही लायेंगी, तन्हाइयां तेरी।।
#पूर्णतः_मौलिक एवं_स्वरचित
विनीत मोहन औदिच्य
सागर, मध्य प्रदेश
जिन्दगी एक खुली किताब है
कागज का पुलिन्दा
अनगिन पन्नों को
ऐसा लगता है जैसे
गूँथ दिया गया हो एक साथ
कुछ कोरे पृष्ठ, कुछ रंगीन भी
खुशियों से भरी कहानी, कुछ गमगीन भी
लिखे पन्ने,अधपन्ने
पूरे और अधूरे
एक पूरा हाशिया छोड़कर
कहीं कहीं हाशिये पर भी
कुछ लिखा हुआ सा
फक रोशनी में एक धुँआ सा
गौर पृष्ठपर एकाध काली जगह
हाशिये पर,अब भी खाली जगह
उन खाली जगहों पर
कुछ लिखने की कोशिश
अर्थ का अभाव,बहु बंदिश
कुछ शब्द जुट गए
कुछ अक्षर ही टूट गए
उभरे कुछ भाव जो
मन में ही घुट गए
उन हाशिये पर ही
लिखने की कोशिश
कहीं पूरे पन्ने की सुंदरता
को तो नहीं लील गया?
कैसे कहूँ?
अब तो वे पन्ने भी न बचे
हवा का एक तेज झोंका आया
एक दिन
और पीपल के पुराने पत्तों की तरह
यह किताब भी उड़ने लगा
फरफराकर
पिंजरे में बंद परिंदे की तरह
या कत्ल के करीब पहुँचे
उस बेबस मुरगे की तरह
रेलमपेल करती हवा
आई और गई
मैंने देखा था उस दिन
सबसे पहले
जिन्दगी की किताब को
साबूत पड़े थे
कुछ पन्नों को छोड़कर
ये वही पन्ने थे
जिनमें मोती पिरोये गए थे
ये मोती शब्दों के थे
एक मोती और भी पिरोये गये
ये अश्कों के थे
विछोह में निकल पड़े अनजान
सामने पड़ा किताब,साबूत
या,जिन्दगी को ढोती ताबूत
मैंने सच कहा है
मेरी जिंदगी एक खुली किताब है
कोरे कागज है सिर्फ
नया लिख पाने के काबिल?
उन पृष्ठों की जिक्र न करो
उनमें क्या था?
मुझे भी नहीं पता
वो तो हवा के साथ उड़ गए
मगर जायेंगे कहाँ?
कहीं तो विरमे होंगे
सच कहते हो
मैंने भी देखा
एक डाली से अटॅककर वे पन्ने
मेरे लिखे पृष्ठ,रुक गए
टूटे पतंग को लूटने सी लालसा लिये
मैं दौड़ा था
मुझसे पहले ही मगर
वे पन्ने चुन लिए गए
देखा,एक जिल्दसाज था
उसने कहा,ये मेरे है
सचमुच खूब फब रहे थे
वे मेरे,माफ करना
उस जिल्दसाज के पन्ने
अपने कसीदा कढ़े
जगमगाते नए आवरण में
तसल्ली देता हूँ खुद को आज
नाम तो लिखा है जिल्दसाज
पर लिखे तो पृष्ठ मैने ही है
अक्षर अक्षर,शब्द शब्द-सब मेरे है
कॉमा और पूर्णविराम भी
भूल बस इतनी कि
कहीं किसी पृष्ठ पर
लिखा अपना नाम नहीं
न कोई चिन्ह,न हस्ताक्षर
साक्ष्यहीन स्वामित्व फिर क्यूँकर?
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
कागज का पुलिन्दा
अनगिन पन्नों को
ऐसा लगता है जैसे
गूँथ दिया गया हो एक साथ
कुछ कोरे पृष्ठ, कुछ रंगीन भी
खुशियों से भरी कहानी, कुछ गमगीन भी
लिखे पन्ने,अधपन्ने
पूरे और अधूरे
एक पूरा हाशिया छोड़कर
कहीं कहीं हाशिये पर भी
कुछ लिखा हुआ सा
फक रोशनी में एक धुँआ सा
गौर पृष्ठपर एकाध काली जगह
हाशिये पर,अब भी खाली जगह
उन खाली जगहों पर
कुछ लिखने की कोशिश
अर्थ का अभाव,बहु बंदिश
कुछ शब्द जुट गए
कुछ अक्षर ही टूट गए
उभरे कुछ भाव जो
मन में ही घुट गए
उन हाशिये पर ही
लिखने की कोशिश
कहीं पूरे पन्ने की सुंदरता
को तो नहीं लील गया?
कैसे कहूँ?
अब तो वे पन्ने भी न बचे
हवा का एक तेज झोंका आया
एक दिन
और पीपल के पुराने पत्तों की तरह
यह किताब भी उड़ने लगा
फरफराकर
पिंजरे में बंद परिंदे की तरह
या कत्ल के करीब पहुँचे
उस बेबस मुरगे की तरह
रेलमपेल करती हवा
आई और गई
मैंने देखा था उस दिन
सबसे पहले
जिन्दगी की किताब को
साबूत पड़े थे
कुछ पन्नों को छोड़कर
ये वही पन्ने थे
जिनमें मोती पिरोये गए थे
ये मोती शब्दों के थे
एक मोती और भी पिरोये गये
ये अश्कों के थे
विछोह में निकल पड़े अनजान
सामने पड़ा किताब,साबूत
या,जिन्दगी को ढोती ताबूत
मैंने सच कहा है
मेरी जिंदगी एक खुली किताब है
कोरे कागज है सिर्फ
नया लिख पाने के काबिल?
उन पृष्ठों की जिक्र न करो
उनमें क्या था?
मुझे भी नहीं पता
वो तो हवा के साथ उड़ गए
मगर जायेंगे कहाँ?
कहीं तो विरमे होंगे
सच कहते हो
मैंने भी देखा
एक डाली से अटॅककर वे पन्ने
मेरे लिखे पृष्ठ,रुक गए
टूटे पतंग को लूटने सी लालसा लिये
मैं दौड़ा था
मुझसे पहले ही मगर
वे पन्ने चुन लिए गए
देखा,एक जिल्दसाज था
उसने कहा,ये मेरे है
सचमुच खूब फब रहे थे
वे मेरे,माफ करना
उस जिल्दसाज के पन्ने
अपने कसीदा कढ़े
जगमगाते नए आवरण में
तसल्ली देता हूँ खुद को आज
नाम तो लिखा है जिल्दसाज
पर लिखे तो पृष्ठ मैने ही है
अक्षर अक्षर,शब्द शब्द-सब मेरे है
कॉमा और पूर्णविराम भी
भूल बस इतनी कि
कहीं किसी पृष्ठ पर
लिखा अपना नाम नहीं
न कोई चिन्ह,न हस्ताक्षर
साक्ष्यहीन स्वामित्व फिर क्यूँकर?
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
विधा=हाइकु
=========
(1) बादल कृति
कागज आसमानी
खूब उकेरी
(2)श्वेत कागज़
लगा सिंदूरी रंग
महका अंग
(3) मोती से शब्द
कागज़ अभिलाषा
लिखिए सदा
(4)उम्र की स्याही
जिंदगी के कागज़
कर्मों से रंगे
(5)यादों की पूंजी
दीमाग के कागज़
रखे सम्हाल
===रचनाकार ===
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
=========
(1) बादल कृति
कागज आसमानी
खूब उकेरी
(2)श्वेत कागज़
लगा सिंदूरी रंग
महका अंग
(3) मोती से शब्द
कागज़ अभिलाषा
लिखिए सदा
(4)उम्र की स्याही
जिंदगी के कागज़
कर्मों से रंगे
(5)यादों की पूंजी
दीमाग के कागज़
रखे सम्हाल
===रचनाकार ===
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
विधा - हाइकु
दिल कागज
मोहब्बत की स्याही
प्रेम कहानी
वो बचपन
कागज की किश्तियां
बीते रे दिन
कवि जवान
कलम तलवार
कागज ढाल
डूबा आदमी
कागजी नोटों पर
खोया ईमान
भावों के मोती
लिखें कागज पर
बने कविता
शब्दों के फूल
कागज उपवन
लेखक माली
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)
दिल कागज
मोहब्बत की स्याही
प्रेम कहानी
वो बचपन
कागज की किश्तियां
बीते रे दिन
कवि जवान
कलम तलवार
कागज ढाल
डूबा आदमी
कागजी नोटों पर
खोया ईमान
भावों के मोती
लिखें कागज पर
बने कविता
शब्दों के फूल
कागज उपवन
लेखक माली
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)
बरसों से बंद पड़ी...
किताब की धूल को झाड़ा ही था.....
बहुत से पन्ने बिखर गए...
कुछ कटे फटे से पन्ने.....
लहरा गए......
यूं ही.....
कुछ तो आपस में चिपके हुए हैं...
शायद अलग नहीं होना चाहते थे…
सीलन सी है...
अंदर ही अंदर हर्फ़ सिसके हों जैसे...
घूप नहीं लगी कभी शायद...
या...
बिछड़ने का डर.....
कुछ ऐसे झर गए...
पपड़ी हाथ लगते झरे जैसे...
कुछ ऐसे भी कागज़ के पन्ने...
पीले से...जंग से लगे...
सोचा कुछ तो संभाल लूँ...
शायद...
हल्का सा कुरेदा ही था...कि...
आर-पार छेद बन गए...
कितना असंभव है वक़्त को...
वापिस लाना...
फिर एक तेज़ हवा का झोंका....
आता है गुज़र जाता है....
ले उड़ता है सब...
झरे हुए टुकड़े भी....
और....
सब कुछ.....
रह जाती है तो सिर्फ....
जिल्द हाथ में....
खाली जिल्द...
ज़िद्दी है...
वक़्त लगेगा इसे...
झरने में.....
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
०४.०२.२०१९
किताब की धूल को झाड़ा ही था.....
बहुत से पन्ने बिखर गए...
कुछ कटे फटे से पन्ने.....
लहरा गए......
यूं ही.....
कुछ तो आपस में चिपके हुए हैं...
शायद अलग नहीं होना चाहते थे…
सीलन सी है...
अंदर ही अंदर हर्फ़ सिसके हों जैसे...
घूप नहीं लगी कभी शायद...
या...
बिछड़ने का डर.....
कुछ ऐसे झर गए...
पपड़ी हाथ लगते झरे जैसे...
कुछ ऐसे भी कागज़ के पन्ने...
पीले से...जंग से लगे...
सोचा कुछ तो संभाल लूँ...
शायद...
हल्का सा कुरेदा ही था...कि...
आर-पार छेद बन गए...
कितना असंभव है वक़्त को...
वापिस लाना...
फिर एक तेज़ हवा का झोंका....
आता है गुज़र जाता है....
ले उड़ता है सब...
झरे हुए टुकड़े भी....
और....
सब कुछ.....
रह जाती है तो सिर्फ....
जिल्द हाथ में....
खाली जिल्द...
ज़िद्दी है...
वक़्त लगेगा इसे...
झरने में.....
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
०४.०२.२०१९
चंद हाइकु
विषय:-"काग़ज़"
(1)
कलम मित्र
कागज़ पे उकेरे
भावों के चित्र
(2)
बारिश-नदी
बचपन की याद
कागज़ जुडी
(3)
दे पहचान
कागज़ का सम्मान
रत्न प्रमाण
(4)
वादों पे धूल
राजनीति के बाग
कागज़ी फूल
(5)
काग़ज़ संग
कलम ने तराशी
हीरा प्रतिभा
(6)
कागज मंच
भावों की भर स्याही
नाचे कलम
स्वरचित
ऋतुराज दवे
विषय:-"काग़ज़"
(1)
कलम मित्र
कागज़ पे उकेरे
भावों के चित्र
(2)
बारिश-नदी
बचपन की याद
कागज़ जुडी
(3)
दे पहचान
कागज़ का सम्मान
रत्न प्रमाण
(4)
वादों पे धूल
राजनीति के बाग
कागज़ी फूल
(5)
काग़ज़ संग
कलम ने तराशी
हीरा प्रतिभा
(6)
कागज मंच
भावों की भर स्याही
नाचे कलम
स्वरचित
ऋतुराज दवे
कोरे थे जन्म से
जिंदगी से लिखते गये
भरकर जब खत्म हुये
कुछ बन गये मर्यादा की सीख
तुलसी की रामचरितमानस बनकर
कुछ जीवन की परिभाषा
कृष्ण की गीता बनकर
कुछ बाइबिल कुछ बने कुरान
पर सब पर लिखा गया बस ज्ञान
दिल के अहसास लेकर मिले कभी यह
कभी बने फरमानों के दास
जन्मपत्रिका बन लिखा भविष्य
कभी बने जीवनसाथी के निमंत्रण कार्ड
यह हर अहसासों के साथी व्यक्त किये हर भाव
अंकित इन पर वो कहानियाँ भी हुई
जुबान से जो ना कही गई
कलम स्याही के साथी ह्द्दय के विचार
प्रस्तुति शब्दों की मौन पर गुंजरित भाव
नहीं सिर्फ कह सकते इनको कागज
सुरक्षित है इनमें अपनी संस्कृति और इतिहास
-----नीता कुमार
जिंदगी से लिखते गये
भरकर जब खत्म हुये
कुछ बन गये मर्यादा की सीख
तुलसी की रामचरितमानस बनकर
कुछ जीवन की परिभाषा
कृष्ण की गीता बनकर
कुछ बाइबिल कुछ बने कुरान
पर सब पर लिखा गया बस ज्ञान
दिल के अहसास लेकर मिले कभी यह
कभी बने फरमानों के दास
जन्मपत्रिका बन लिखा भविष्य
कभी बने जीवनसाथी के निमंत्रण कार्ड
यह हर अहसासों के साथी व्यक्त किये हर भाव
अंकित इन पर वो कहानियाँ भी हुई
जुबान से जो ना कही गई
कलम स्याही के साथी ह्द्दय के विचार
प्रस्तुति शब्दों की मौन पर गुंजरित भाव
नहीं सिर्फ कह सकते इनको कागज
सुरक्षित है इनमें अपनी संस्कृति और इतिहास
-----नीता कुमार
मासूम था बचपन,
दिल कोरा कागज!
सरकी उम्र धूप सम,
वक्त ने लिखी इबारत,
बनने लगी जिंदगी की किताब,
हर पन्ने पर लिखा जाने
लगा हिसाब,
सुख की धूप कागज पर
निखरी,
दुख की स्याही कागज पर
बिखरी।
जवानी ने देखे सपने सुहाने,
दिल की किताब पर लिखे
अफसाने।
हर ठोकर का बना बही-खाता,
हर कदम हमें था आजमाता।
बनते-बनते किताब बन गई,
हर पन्ने पर नई कहानी
गढ़ गई।
कोरे कागज पर कई
रंग बिखरे,
भावों के रूप उजले और
निखरे।
बुढ़ापे में अनुभव ने
अपना रौब जमाया,
कागज के हर पुर्जे
पर वही नजर आया।
कभी हंसाती है कभी रूलाती है,
जिंदगी हर रोज एक कहानी
लिख जाती है
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
दिल कोरा कागज!
सरकी उम्र धूप सम,
वक्त ने लिखी इबारत,
बनने लगी जिंदगी की किताब,
हर पन्ने पर लिखा जाने
लगा हिसाब,
सुख की धूप कागज पर
निखरी,
दुख की स्याही कागज पर
बिखरी।
जवानी ने देखे सपने सुहाने,
दिल की किताब पर लिखे
अफसाने।
हर ठोकर का बना बही-खाता,
हर कदम हमें था आजमाता।
बनते-बनते किताब बन गई,
हर पन्ने पर नई कहानी
गढ़ गई।
कोरे कागज पर कई
रंग बिखरे,
भावों के रूप उजले और
निखरे।
बुढ़ापे में अनुभव ने
अपना रौब जमाया,
कागज के हर पुर्जे
पर वही नजर आया।
कभी हंसाती है कभी रूलाती है,
जिंदगी हर रोज एक कहानी
लिख जाती है
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
मानव पर होता है अचरझ
अनुपम खोज इसकी कागज़
कभी पत्तों में हम लिखते थे
मुश्किल से सुरक्षित रखते थे।
कागज़ में भी बहुत सुधार हुआ
इतिहास संजोना भी साकार हुआ
इससे अधिक और क्या कहें
कागज़ स्याही का विस्तृत परिवार हुआ।
कम्प्यूटर फोटोस्टेट टाइपिंग लेख
उन्नति की बनातीं सुन्दर रेख
हस्तलिखित तो हो सकता त्रुटिपूर्ण
इनसे नहीं होता कुछ भी पर मटियामेट।
कागज़! आज की शैली का मुख्य आधार है
कागज़ !में सिमटा अखिल संसार है
कागज़! में मुद्रायें मुस्कान भरतीं
कागज़! में लिपटा हर व्यापार है।
कागज़! कवि के भावों को स्थान देता
कागज़! प्रेम भावों को उत्थान देता
कागज़! प्रियतमा सौन्दर्य को सम्मान देता
कागज़!जीवन में कई वरदान देता।
अनुपम खोज इसकी कागज़
कभी पत्तों में हम लिखते थे
मुश्किल से सुरक्षित रखते थे।
कागज़ में भी बहुत सुधार हुआ
इतिहास संजोना भी साकार हुआ
इससे अधिक और क्या कहें
कागज़ स्याही का विस्तृत परिवार हुआ।
कम्प्यूटर फोटोस्टेट टाइपिंग लेख
उन्नति की बनातीं सुन्दर रेख
हस्तलिखित तो हो सकता त्रुटिपूर्ण
इनसे नहीं होता कुछ भी पर मटियामेट।
कागज़! आज की शैली का मुख्य आधार है
कागज़ !में सिमटा अखिल संसार है
कागज़! में मुद्रायें मुस्कान भरतीं
कागज़! में लिपटा हर व्यापार है।
कागज़! कवि के भावों को स्थान देता
कागज़! प्रेम भावों को उत्थान देता
कागज़! प्रियतमा सौन्दर्य को सम्मान देता
कागज़!जीवन में कई वरदान देता।
जिंदगी की इस धूप छाँव में
मन के भावों को कलम की स्याही से
कागज के पन्नों पर लिखती रही मैं
वो शब्द नहीं थे केवल मेरे मन के जज्बात थे .
कोरे कागज पर लिखी थी कुछ दिल की बातें
जिनमें थी कुछ बचपन की यादें
कागज पर लिखी हर बात लफ्जों से दोहराया हैं
जिनमें मेरी यादों का साया हैं .
कागज पर लिखी हर बात मेरे
दिल का हाल सुनाती हैं गहराई से
कुछ ख़ास मेरे मन के ख्वाब सुनाती हैं
जब भी कोरे कागज पर पड़ते शब्द राग गाती हैं .
मासूम बचपन अल्हड़ युवाअवस्था ने
मुझे कागज कलम स्याही से बांधें रखा हैं
इन सबने मुझे रिश्तों से जोड़े रखा हैं
इन सबने ने ही मुझे जिंदगी की डोर से बांधे रखा हैं .
स्वरचित:- रीता बिष्ट
मन के भावों को कलम की स्याही से
कागज के पन्नों पर लिखती रही मैं
वो शब्द नहीं थे केवल मेरे मन के जज्बात थे .
कोरे कागज पर लिखी थी कुछ दिल की बातें
जिनमें थी कुछ बचपन की यादें
कागज पर लिखी हर बात लफ्जों से दोहराया हैं
जिनमें मेरी यादों का साया हैं .
कागज पर लिखी हर बात मेरे
दिल का हाल सुनाती हैं गहराई से
कुछ ख़ास मेरे मन के ख्वाब सुनाती हैं
जब भी कोरे कागज पर पड़ते शब्द राग गाती हैं .
मासूम बचपन अल्हड़ युवाअवस्था ने
मुझे कागज कलम स्याही से बांधें रखा हैं
इन सबने मुझे रिश्तों से जोड़े रखा हैं
इन सबने ने ही मुझे जिंदगी की डोर से बांधे रखा हैं .
स्वरचित:- रीता बिष्ट
सबको प्यार
रहता हाथों हाथ
कागज मुद्रा |
आया बुढापा
कागज ही सहारा
जीना आसान |
लेखनी हाथ
कागज पर भाव
प्रेरणा बने |
मोहित मन
सपने सुनहरे
कागज रंगे
कोरा कागज
कल्पना चित्रकार
होती साकार |
घर संसार
तलाक के कागज
विश्वासघात |
यादें पुरानी
कागज के खिलौने
नाव पतंग |
दबे कागज
भ्रष्टाचार फाइल
गरीब लोग |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
रहता हाथों हाथ
कागज मुद्रा |
आया बुढापा
कागज ही सहारा
जीना आसान |
लेखनी हाथ
कागज पर भाव
प्रेरणा बने |
मोहित मन
सपने सुनहरे
कागज रंगे
कोरा कागज
कल्पना चित्रकार
होती साकार |
घर संसार
तलाक के कागज
विश्वासघात |
यादें पुरानी
कागज के खिलौने
नाव पतंग |
दबे कागज
भ्रष्टाचार फाइल
गरीब लोग |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
संभाले हुए
कागज के टुकड़े-
प्रेम की पाती
बच्चे सीखते
अक्षर उकेरते -
कोरा कागज
कागज खत
अब नही आते हैं-
संचार क्रान्ति
विपुल ज्ञान
कागज पर लिखा-
पुस्तक ग्रन्थ
बिना कागज
मिलती नही शिक्षा-
जीवन ज्ञान
मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
कागज के टुकड़े-
प्रेम की पाती
बच्चे सीखते
अक्षर उकेरते -
कोरा कागज
कागज खत
अब नही आते हैं-
संचार क्रान्ति
विपुल ज्ञान
कागज पर लिखा-
पुस्तक ग्रन्थ
बिना कागज
मिलती नही शिक्षा-
जीवन ज्ञान
मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
आज हृदय के काग़ज़ पर
मनोभावों की लेखनी चलेगी
क्या लिखेगी , कैसे लिखेगी ?
आज ये मेरी ना सुनेगी !!
ज़िंदगी की किताब को
ख़ूब पढा है इसने
रिश्ते नातों को परखा इसने
अपनों को पराए
परायों को अपने
होता देखा जिसने
ज़िंदगी की अजीबियत
क़रीब से देखी इसने
कभी रहनुमा कभी ख़ुशनुमा
पलो को संयम से
बनते बिगड़ते देखा इसने
ए मेरी लेखनी आज मैं
तेरा आह्वान करती हूँ
काग़ज़ के कोरेपन को
तेरे सुपुर्द करती हूँ
ना घबराना
ना शर्माना
बस लेखनी और काग़ज़ की
मर्यादा को संतुलित रखना।
संतोष कुमारी ‘ संप्रीति,
स्वरचित
मनोभावों की लेखनी चलेगी
क्या लिखेगी , कैसे लिखेगी ?
आज ये मेरी ना सुनेगी !!
ज़िंदगी की किताब को
ख़ूब पढा है इसने
रिश्ते नातों को परखा इसने
अपनों को पराए
परायों को अपने
होता देखा जिसने
ज़िंदगी की अजीबियत
क़रीब से देखी इसने
कभी रहनुमा कभी ख़ुशनुमा
पलो को संयम से
बनते बिगड़ते देखा इसने
ए मेरी लेखनी आज मैं
तेरा आह्वान करती हूँ
काग़ज़ के कोरेपन को
तेरे सुपुर्द करती हूँ
ना घबराना
ना शर्माना
बस लेखनी और काग़ज़ की
मर्यादा को संतुलित रखना।
संतोष कुमारी ‘ संप्रीति,
स्वरचित
गोदे गोदना
कोरे बदन पर
कागज़ बना
इस कदर उलझे हैं जिंदगी के इम्तेहानो से
कागज़ की कश्ती है और सामना तूफ़ानों से
जाना था कहां और कहां चल पड़े
आंसू आंखों से चुपचाप निकल पड़े
मेरे दर्द के तपिश की इंतेहा इतनी है
जो लिखें कागज़ पे तो वो भी जल पड़े
बस कुछ पल नहीं, पहरो पहर लिखना चाहता हूं
सिंदूरी रंग से सजा जिंदगी भर लिखना चाहता हूं
कागज़, कलम, दवात सब किस काम के हैं मेरे
मैं होंठों से तेरे बदन पे ग़ज़ल लिखना चाहता हूं
कोरे बदन पर
कागज़ बना
इस कदर उलझे हैं जिंदगी के इम्तेहानो से
कागज़ की कश्ती है और सामना तूफ़ानों से
जाना था कहां और कहां चल पड़े
आंसू आंखों से चुपचाप निकल पड़े
मेरे दर्द के तपिश की इंतेहा इतनी है
जो लिखें कागज़ पे तो वो भी जल पड़े
बस कुछ पल नहीं, पहरो पहर लिखना चाहता हूं
सिंदूरी रंग से सजा जिंदगी भर लिखना चाहता हूं
कागज़, कलम, दवात सब किस काम के हैं मेरे
मैं होंठों से तेरे बदन पे ग़ज़ल लिखना चाहता हूं
कागज पर लिख दी है कुछ अनकही बातें
कुछ जिन्हें सुन, जमाना लगा देता हजारों तोहमतें
बिना कुछ जाने बिना कुछ समझे
न समझा पाते कि इसमें कितना गहरा अहसास है
एक दूसरे पे मर मिटने का कितना प्रयास है
न कुछ पाने की चाहत है ,न कुछ खोने का गम है
छुपाते रहे कागजों पर अपने रंजो गम
अपनों से अपने को समेटते रहे हम
अब तो आदत सी पद गई है कि कुछ भी कहना हो कागज से कहो ,कागज पर लिखो ।
क्योंकि कागज ही है मीत ,कागज ही है गीत ।
कागज पर ही विरह ,कागज पर ही संजोग ।
कागज तुमने ही निभाए संजोग।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
कुछ जिन्हें सुन, जमाना लगा देता हजारों तोहमतें
बिना कुछ जाने बिना कुछ समझे
न समझा पाते कि इसमें कितना गहरा अहसास है
एक दूसरे पे मर मिटने का कितना प्रयास है
न कुछ पाने की चाहत है ,न कुछ खोने का गम है
छुपाते रहे कागजों पर अपने रंजो गम
अपनों से अपने को समेटते रहे हम
अब तो आदत सी पद गई है कि कुछ भी कहना हो कागज से कहो ,कागज पर लिखो ।
क्योंकि कागज ही है मीत ,कागज ही है गीत ।
कागज पर ही विरह ,कागज पर ही संजोग ।
कागज तुमने ही निभाए संजोग।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
No comments:
Post a Comment