Tuesday, February 19

"अंत "19फरवरी 2019

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें |
             ब्लॉग संख्या :-304


"अंत"
(1)

चलो,
अंत करते है
नागफनी से फैले
बैर-भाव,तिलमिलाते
अमर्यादित कर्मों का।
क्यों न 
इस पर बो दे
मधुबन गुलाब का।

(2)
प्रेम
अद्भुत अनुभूति
चाँदनी सा ,
जो छन छन आता।
काश!मावस न आती
न इसका अंत होता
ये,
बढ़ता, बढ़ता और
बस बढ़ता।।

वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित,मौलिक


विधा -दोहा
""""""""""""""""""""""(01")""""""""""""""""""""
करतूतें आतंक की,घायल हुआ वसंत ।
मैया खर्पर धारिणी,वेगि कराबहु अंत ।।
(02)
कछु -कछु नमक हराम जे,कबहुँ न नीकौ जान।
चप्पा-चप्पा मिटि रहै,तबहिं गनौंगो शान ।।
(03)
नीच न छाँड़ै नीचता.व्याल न छाँडै़ दंश ।
ये दोऊ दुःख देत हैं, जामें जितनों अंश ।।
(04)
अरि पै दया न कीजिए,सदा रहौ मुख मोड़ि ।
दाव चढ़ै यदि पकड़ में,देउ पसुलियाँ तोड़ि ।।
स्वरचित-राम सेवक दौनेरिया"अ़क्स"

अंतिम सत्य
"""""""""""""""
(148)

संत हो या हो कंत,,है सभी
अनन्त यात्रा के पथिक
चल देते है अनजान राहों पर
सांसों की लय छोड़कर
और,,,बे ताल कर जाते है
बचे अपने शेष साज को
बिखरे तारों की तरंगित ध्वनि
बेसूरी बजने लगती है...
लौटकर कभी नहीं आता पथिक
ना संदेश, ना स्वप्न में
एहसासों के बवंडर
दस्तक देते है
मन मस्तिष्क पर...अंत में
बेचैनी मंडराने लगती है
दरोदीवारों से टकराती,लहराती
आँखों में तस्वीरें चक्रव्यूह रचती है
विदाई कहें या जुदाई
दर्द की टीस उठती है
रह-रह कर...अंत में
सांसारिक भाषा गढ़ ली है
जीवन ने समझौते की
और उसे नाम दे दिया है
मृत्यु का..अंत में
जो शाश्वत है,,अंतिम सत्य है...।।

✍🏻 गोविन्द सिंह चौहान
स्वरचित/19-2-91

जन्म हुआ तो अंत भी होगा
सद कर्मी जग कभी न मरते
जो कायराना हमले करते हैं
कुकर्मी जग कभी नहीं बचते
जुल्म सितम ढहाने वालों
दानवता का अंत ही होता
अविवेक निर्णय करता जो
हर पल वह् जीवन में रोता
कुकर्मो का एक तंत्र है
वह् स्वतंत्र न मात्र अंत है
कुपथ पर ओ चलने वालों
यह भारत का लोकतन्त्र है
पन्ने खोलो इतिहासों के
जंग कभी तुमने जीता है
भिक्षावर्ती ये नर भक्षी
गीदड़ तू रीता का रीता है
रिपुमर्दन कैसे करते हैं
सिंहो के हम रद गिनते हैं
सीना ताने जब उठते हम
रिपुदल फिर धरती गिरते हैं
खुली चुनौती हम देते हैं
कायराना हमला नहीं करते
पीठ ऊपर वार करे जो
वे तो बस जीवन में मरते 
छिप जाओ जहरीले नागों
एक एक को हम खोजेंगे
अंत तुम्हारा पक्का समझो
कायर मस्तक अब फोड़ेंगे।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।


आरम्भ अंत
सुनिश्चित प्रारब्ध
ईश्वर इच्छा

अंत निश्चित
जीवन नश्वरता
शाश्वत सत्य 

आवागमन
जीवन समापन
जन्म मरण 

अनन्त यात्रा
परमात्मा विलीन
महाप्रयाण

जीवन मृत्यु
ईश्वरीय विधान
देहावसान

सरिता गर्ग

स्व रचित

मेरी मुहब्बत का न हो कभी अंत
चलती रहे ये यूँ ही जीवन पर्यंत ।।
मुहब्बत में ही जीने का मजा है
ज्ञान तो सब कहें , है ये अनन्त ।।

पढ़ाई करके सोचा परीक्षायें खतम
मगर न जाना था जिन्दगी का मरम ।।
यहाँ परीक्षा ही परीक्षा हर मोड़ पर
कोई न अंत है जिन्दगी लगी सितम ।।

नही है कोई ज्ञान का ओर छोर 
नही है कोई बृह्ममांड का ओर छोर ।।
वर्तमान की खुशी पहचानिये 'शिवम'
यूँ तो आते ही रहेंगे सांझ और भोर ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 19/02/2019


***-------***
तिरंगा तड़प उठा
वीरों के तन से लिपट
क्यों अक्सर जवान
ताबूत में जाते सिमट
कब तक माताएं
अपने सपूतों को खोएंगी
बहनें रक्षाबंधन पर
अपने भाईयों को रोएंगी
पिता लगाकर तिरंगा
सीने से छुप-छुप रोएंगे
कब तक दुश्मन के हाथों
देश के सपूत शहीद होंगे
कब होगा अंत आतंक का
अंत मजहबी झगड़ों का
है आस तिरंगे को
एक दिन ऐसा भी आएगा
न होगा खून-खराबा कहीं
न होगी शहादत वीरों
हर मंगलसूत्र आबाद होगा
सिंदूर से सजेंगी माँग
हर राखी चहकेगी 
बेटियां बाबुल की छांव तले
साजन के घर विदा होगी
जिस दिन अमन-चैन का
आलम में डूबा हिन्दुस्तान होगा
सबसे ज्यादा खुश तिरंगा 
अपनी शान में होगा 
***अनुराधा चौहान***© स्वरचित 


**********************
🍁

अंत नही है भावों का,
प्रारम्भ अभी होना है।
जीवन का सम्पूर्ण सफर,
तुम संग, जीना मरना है।
🍁
होगा तब उत्कर्ष मेरा,
संग साथ रहोगी जो तुम।
अतं मेरा उस दिन होगा,
जब साथ नही होगी तुम।
🍁
क्या कहना है क्या सुनना है,
समय बतायेगा अब।
घना कोहरा छंट कर के ही,
सूर्य उदित हो जाएगा अब।
🍁
अंत से सब डरते है पर ये,
सत्य नही टल पाएगा।
जीवन जिसने लिया शेर सा,
अंत से टकरा जाएगा।
🍁

स्वरचित .. Sher Singh Sarraf


जीव लालसा 
संसार चराचर 
अंत नहीं है 
विचरण करते 
मिटना एक दिन |

उद्देश्य यही 
करें काम तमाम 
जिंदा न बचे 
हो दुश्मन का अंत 
हो उसका पतन |

नमन करें 
शहादत उनकी 
क्रोध का जन्म 
प्रतिज्ञा भारत की 
दुश्मनों का हो अंत |

भारत माता 
करना है श्रृंगार 
मैला ऑचल 
अंत छुपे रुस्तम 
गद्दारों का दमन |

एहसास है 
अत्याचार फैला है 
चिंता नहीं है
सुरक्षित हम हैं 
कहाँ पर अंत है |

जागना होगा 
भविष्य बुला रहा 
अपना देश 
मानवता का अंत 
अस्तित्व बचाना है |

स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,


विधा-हाइकु

1.

अंत निश्चित
जीवन सुनिश्चित
फिर चिंता क्यों

2.

अंतिम हद
तोड़ दी आतंक ने
पुलवामा में
3.
सब्र का अंत
पुलवामा में हुआ
बदला लेंगे
4.
अब करेंगे
हरगिज करेंगे
खात्मा पाक का

5.

सच्ची मुहिम
आतंक के खिलाफ
सभी चलाओ

******

स्वरचित

अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)


घूंघट पी के,
जीते मरते हम यहां,

हम रोज जीते है,
बुन रही है मकड़ी,
वेदना के जाल,
दर्द को ओढ़ते,
सोते बिछा ते,
जी रहे अब तक 
धैर्य को ढाल बनाकर,
कांटों पर हंसते,
जीवन पुष्प,
जीवन बना कसौटी,
कैसे धोये,
चादर मैली,
अंत समय में,
लाख जतन कर,
उजली हुई न चादर,
किसकी माया,
जग में व्यापी,
जो डूबे हैं,
जानबूझकर,
माया के दलदल में,
वसुधा पर,
मानुष हुए दैत्य,
जीने के लिए,
आखिर क्या चाहिए,
एक आधा कौर,
सारे पुण्य,
तुझे अर्पण प्रभु,
पाप लिये जा रहा हूं,
पार उतरनी,
देने को कुछ नहीं है,
खाली हाथ आया,
खाली हाथ जा रहा,
प्रभु,
अंत समय,
केवल,
दया चाहिए।।

देवेन्द्र नारायण दास बसना छ,ग,।।


विधा=हाइकु 
🌹🌹🌹
(1)देह का अंत
आत्मा का सफर 
है अविरल
🌹🌹🌹
(2)अंत समय
छोड़ के उड़ जाती
रही जो साथ
🌹🌹🌹
(3)धार्मिक संत
अवतरित हुवे
अधर्म अंत
🌹🌹🌹
(4)होता अल्पायु 
कर देते है संत
बुराई अंत 
🌹🌹🌹
(5)फौज ने लिया
करने का संकल्प 
आतंक अंत
🌹🌹🌹
(6)करे संकल्प- 
खराब आदतों का 
करेंगे अंत
🌹🌹🌹
===रचनाकार ===
मुकेश भद्रावले 
हरदा मध्यप्रदेश 


अनंत है अंत
अंत का अंत नहीं है
चलती रहती है 
सृष्टि 
बस बदल जाती है
दृष्टि 

अपने , अपनों को
चले जाते हैं 
यादें छोड़ कर
जब है जिन्दगी 
जीता है इन्सान 

जीवन और अंत है 
ईश्वर के हाथ
जब रहे 
खुश रहे
साथ साथ

जीवन का अंत 
यादों की शुरूआत 
अनंत यादें 
कभी न खत्म 
होने वाला अंत

स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव 
भोपाल

तुम तो पतझर में बसंत हो गये।
जन्मे भारत में अरिहंत हो गये।
किसने कहा तुम्हारा अंत हुआ है,
वीर अजर अमर भगवंत हो गये।

ये ऋणी हमेंशा के लिए कर गये।
जीवन अपना समर्पण कर गये।
है अंतहीन नहीं अस्तित्व तुम्हारा,
वैसे तुम सर्वस्व समर्पित कर गये।

वीर तुम्हारा वलिदान नहीं भूलेंगे।
हम भारतवासी तुम्हें नहीं भूलेंगे।
अंतस मे अंकित हो छवि तुम्हारी,
शहीदो जीवन पर्यंन्त नहीं भूलेंगे।

देशद्रोही का हम सर्वनाश करेंगे।
अंत निश्चित जोभी विनाश करेंगे।
ठान लिया दुष्ट जन्नत में पहुंचाना,
इनका अब हम पूर्णविनाश करेंगे।

स्वरचितःःः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.



विधा- हाइकु, पिरामिड
१)-
पले सोहार्द
वैमनस्यता अन्त
प्राण निश्चिन्त

२)-
पिरामिड-
है
नहीं
पर्याप्त
ये जीवन
अन्तिम सत्य
सफर का अन्त
गतिमान अनन्त
सदैव सतत
काल प्रवीण
नया नित्य
अमृत
जीव
'मैं'
#,, _ 
मेधा.
"स्वरचित"
-मेधा नरायण.


नियति का लेखा है..
हम सबने देखा है..
लिया जन्म जिसने भी..
हुआ उसका अंत है...
अंत अनंत है..
फिर चाहे वो संत है..
आत्मा अनंत है..
मुक्ति ही अंत है..
चंद सांसे है मोल की..
फिर वही अंत है..
घट घट वासी..
लख चोरासी..
योनी अनंत है..
ये तेरा वो मेरा..
करता प्राणी जीवन भर..
पर सबका होता अंत है..
धन धन करता ...
जीवन भर हर जन..
पर होता निधन अंत है..
मोहपास में जकड़ा,
रहता जीवन पर्यंत है..
जीवन के प्रारब्ध से ही..
लिखा जाता अंत है..

स्वरचित :- मुकेश राठौड़


लघु कविता
प्रेम का होता नहीं अंत
खामोश हो,बेजूबां हो
चाहे दूर हो या पास हो
दृश्य हो या अदृश्य हो
एहसास है ये अंतरंग

प्रेम का होता नहीं अंत
नफरत की हो दीवार
या जुल्म का हो संहार
शूलों के संग भी खिली अनंत

प्रेम का होता नहीं अंत
प्रदीप्त है मन में ज्वलंत
बिखरी आभा है दिक् दिगंत
एहसास है ज्यूँ लगे संत

प्रेम का होता नहीं अंत
सत्य हो यदि प्रीत की लगन
हो मीरा की भक्ति सी मगन
राधा की दीवानगी सी अगन

प्रेम का होता नहीं अंत
एहसास है ये अंतरंग

स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल


बुरे काम का बुरा नतीजा
होता रहा है सदा
और होकर रहेगा आज
आंतकवाद का अंत होगा
आंतकियों के साथ

सद्गुणो का अंत नही होता
सदा फैलाता सुविचार
अच्छे कर्मों का अंत नही होता
रह जाता नाम के साथ

पाप पुण्य का लेखा जोखा
रहे हमेशा साथ
अंत करें अपने बुरे कर्मो का
सत्कर्म ले अपनाये

"अंत भला तो सब भला"
यही है जग का सार
अंतहीन यह जीवन चक्र है
सब जाने है आज।

स्वरचित-आरती -श्रीवास्तव।


अंत समय जब आयेगा,
तब प्यारे पछतायेगा।
स्वामी बन बैठा है तू,
कुछ न लेकर जाएगा।

ये दुनिया का मेला है,
प्रभु ने खेल खेला है।
सब उसकी कठपुतली हैं,
वह जैसे चाहे नचाएगा।

आदि का अंत निश्चित है,
करले कर्म जो उचित हैं।
माया में तू क्यों भ्रमित है,
जब खाली हाथ ही जाएगा।

नश्वर है संसार ये सारा,
इस सत्य को कभी विचारा,
आंखों पर क्यों बांधे पट्टी,
जो आया सो जाएगा।

अंत शरीर का होना है,
जो पाया सो खोना है।
बांध पोटली सत्कर्मों की,
वही साथ ले जाएगा।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित, मौलिक

19/2/2019
1
आतंक अंत 
शहीद का बदला 
देश दहला 
2
फैला आतंक 
छुपे बैठे है भेदी 
सत्कर्म अंत 
3
सैनिक अंत 
आतंक है अनंत 
बने महंत 
4
करना अंत 
भारत है ज्वलंत 
छोडो अहिंसा 
5
बनो हिंसक 
छोड़ कर अहिंसा 
आतंक अंत 
कुसुम पंत उत्साही 
स्वरचित 
व्यथित ह्रदय से


खोया सा उल्लास है,
दर्द भरा है बसन्त
खुशियाँ डूबी शोक में
दुखों का नहि अंत।

रुदन, क्रोध पर क्षोभ है
चहुदिशि है फैली निराशा
अंतहीन लगता ये सब
आकर कोई संजोये आशा

अंत करोअब दुखों का
दुष्टो का करके संहार
आतंक की बगिया में होवे
अंतहीन वो चीत्कार।

अंत हो जाता जीवन का,
पर स्मृतियों का अंत नही
आँसू जब साथ निभाते है
भाता कोई बसन्त नही।

स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'


अंत का ना कोई सार है
ना कोई विस्तार है
अंत भी यही प्रारब्ध भी यही
नर्क भी यही स्वर्ग भी यही 
मोक्ष भी यही पाप यही 
जन्म भी यही मृत्यु भी यही
आत्मा भी यही परमात्मा भी यही
देव भी यही दानव भी यही 
प्रेम भी यही नफरत भी यही 
अंत ही अनंत है अनंत ही अंत है 
प्रारब्ध है तो अंत है 
अंत है तो प्रारब्ध है 
सृष्टि में अंत कभी ना
हुआ है ना कभी होगा 
अनंत काल तक पाप भी होगा 
और पुण्य भी होगा 
अंत को अंत कहना ही बेकार है 
रावण का ना कल अंत हुआ था
ना आज हुआ है 
आज भी इंसानों के अंदर 
रावण ने फिर से जन्म लिया है 
सारी माया बेअंत है
स्वरचित, हेमा जोशी


आदि और अंत दोनों हमजोली
खेलें दोनों आँख मिचौली
एक आए दूजा छिप जाए
दूजा आए पहला छिप जाए
एक सिरा आदि कहलाता
दूजा सिरा अंत बन जाता
आदि भी सत्य अंत भी सत्य
प्रासंगिक दोनों आदि और अंत
आदि जिस का होगा
अंत उसका ही होगा
शब्द आदि अंत अर्थ
नश्वरता बनती समर्थ
काग़ज़ आदि अंत क़लम
लेखा जोखा बनता कर्म
जन्म आदि अंत मरण
जीवंतता में भ्रमण
आदि से अंत तक का सफ़र
चाहे तो गुमनाम बना लो
उसको निज पहचान बना लो
सुकर्मों से महान बना लो
अंत समय की शान बना लो
सत्कर्मों से सफल अंत बना लो
इतिहास के पन्ने रंग डालो
अमरत्व में निज अंत मिला लो

संतोष कुमारी ‘ संप्रीति’
स्वरचित


वक्त ,सांसे, दौरे जश्न, 
किस्से -कहानियां !
दिलकश जवानियां ,
टिकते नहीं कहीं सदा।
अंजाम अंत को पाते हैं ,
काल, युग, महान हस्तियां ,
पशु ,पक्षी ,पादप,
अनेकों अनेक प्रजातियां!
यह भी कहाँ कहीं ठहर पाते हैं?
हुआ आगाज तो अंत भी निश्चित।

खूबसूरत हैं अंत सारे,
जो ईश्वर के वास्ते हो।
अंत तो अंत है,
वह फिर भी ले जाएगा।
सोचो जो कभी ना होता अंत,
चौरासी लाख योनियों ठीक ,
इतनी रूहों को ईश्वर भी कैसे संभालता?
संतुलन होता डांवाडोल प्रकृति का!
रावण बने खुद खुदाओं से ,
कोन आकर संभालता?

क्षणभंगुरता में जीवन की ,
रचयिता का सौंदर्य है ,
ऐ अंत, तू बेहद खूबसूरत है।।

नीलम तोलानी
स्वरचित


जीव मरण,
अंत नहीं प्रारंभ,
सृष्टि अनंत ।

वार आतंक, 
धैर्य की पराकाष्ठा,
अब हो अंत ।

शिशिर अंत, 
आगमन बसंत, 
झूमा अनंत ।

खौफ का अंत, 
भारत अरिहन्त,
शून्य आतंक ।

-- नीता अग्रवाल 
#स्वरचित

आज एक शहीद की चिता थी और बेटी का जन्म 
अत्यंत मार्मिक ,शब्द नहीँ
***
उस नारी की व्यथा
कैसे व्यक्त करें
कलम की स्याही 
जिसे लिख न सके,
भावनाएं आहत 
शब्द अर्थहीन 
अस्तित्व विहीन 
अंत की ओर है
किस भाव से वो रही होगी
पति की चिता सजी हो
वैधव्य का दुख झेल रही हो 
प्रसव वेदना सह रही हो
मातृत्व का सुख देख रही हो 
उस नन्ही सी जान को गोद में ले
उस पत्नी के भाव कैसे लिखे 
उस माँ के भाव कैसे लिखे
एक जीवन का अंत 
एक जीवन का सृजन कैसे लिखे।

स्वरचित
अनिता सुधीर श्रीवास्तव

विषय-अंत 
1 दुखद घड़ी 
संसार से विदाई
महा प्रयाण 
2. आखिरी सांस
बहादुर सैनिक 
देश की शान
3.
धोखे से वार 
विश्वास को आघात 
प्राणी का अंत
4
संत का अंत
अच्छाई इम्तिहान 
जीवन धर्म 
5
आत्मा अमर 
नाशवान शरीर 
जीवन -मृत्यु 
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश
'निश्छल',

विषय:-"अंत" 

(1)
आभासी"अंत" 
पतझड़ विदाई 
आया वसंत 
(2)
चित्र अधूरा 
जीवन का कागज़ 
"अंत" में कोरा 
(3)
भाव पिरोता 
जीवन सूत्र देता 
कथा का "अंत" 
(4)
शहीद संत 
देश रग में जिंदा 
अमर "अंत"
(5)
है इतिहास 
आतंक उम्र छोटी 
अंत खराब 

स्वरचित 
ऋतुराज दवे


दुखों का अंत 
प्रभु प्रीत का द्वार 
मन हो संत 



बही सुगंध 
पतझड़ का अंत 
आया बसंत 


आतंक अंत 
प्रफुल्लित संसार 
शांति का जन्म 


जन्म मरण 
जीवन अंत हीन 
क्षितिज पार 


लिख दो अंत 
पाक के सीने पर 
कलम वार 

(स्वरचित )सुलोचना सिंह 
भिलाई (दुर्ग )

अंत हो अब असमय आते ताबूतों का
अंत हो असमय उजड़ती गोदों का
नहीं देखा जाता अरमानों के अंत का
नहीं देखा जाता किसी के सहारों के अंत का ।
करो अंत अब नापाक मंसूबों का 
करो अंत अब ऐसे दहसत गर्दों का।
जीवन बचाना नहीं है जिनके कामों में 
रुदन पीड़ा ही देना है जिनके कारनामों में 
जो जन्नत की चाह में ऐसे षड्यंत्र हैं रचते 
उड़ाओ उनके भी ऐसे ही परखच्चे ।
प्रमाणिका छंद मे मुक्तक,,,,
12121212
🌻🌻🌻🌻🌻🌻
*****************
सुहावना ,,,,बसंत है !
सुवासिता दिगंत है !
खिली खिली वसुंधरा,
लो'! शारदीय-अंत है!!
🌷🌿
बसंत की,, ,,,बहार है!
कली कली निखार है!
गली -गली सुगंध की,
सुवासनी ,,,, बयार है !!
🍁🌿
चलो सखी निकुंज में !
बसंत की ,,,,,,,तरंग में !
हरी-भरी,,,,,, वसुंधरा,
निहार लें ,,,,,,,उमंग में !!
🍁🌿
खिली हुई चमेलियाँ !
हरी लतांय -बेलियाँ !
हँसे, गुलाब लाल है,
जगांय रात-रानियाँ !!
🍁🌿
समीर है ,,सुवासनी !
धरा लगे,, लुभावनी!
अलिंद गूंज छा रही,
हँसे लिली सरोजनी !!
*****************
🍁🌿
गुलाब की कली खिली
सुगंध-गंध,,,,,,, फैलती
बहार छा गई,,,,,,, लगै,
प्रमोदनी-हवा,,,,,,,चली//
🍁🌿
विमोहनी-बसंतिका
बनी हुई,, मधूलिका
पराग पे ,,,अलिंद हैं,
अनंग की प्रसारिका//
*****************
🌻🌻🌻🌻🌻🌻
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार

विधा - हाइकु

नेकी कर तू
अंत भले का भला
मत दुःखी हो

मानव मृगी
इच्छा रूपी कस्तूरी
न अंत दूरी

जो जन्म पाया
लाख यत्न चलाया
अंत निश्चित

स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)

No comments:

Post a Comment

"अंदाज"05मई2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें   ब्लॉग संख्या :-727 Hari S...