मनीष श्रीवास्तव



लेखक परिचय

1.नाम- मनीष कुमार श्रीवास्तव 2.जन्म तिथि -24जुलाई 3.जन्म स्थान- रायबरेली यूपी 4.शिक्षा- मास्टर ऑफ फिजिक्स 5.सृजन की विधाएँ - निबंध,लघु कथाएँ,कविता, हाइकु, तांका, पिरामिड आदि 6प्रकाशित कृतियाँ - 'अन्यान्जलि' साँझा काव्य संग्रह 7.प्राप्त सम्मान 1.'दैनिक वर्तमान अंकुर' द्वारा 'काव्य गौरव सम्मान' 2.'दैनिक वर्तमान अंकुर'द्वारा 'देवल आशीष सम्मान' 8.संप्रति अध्यापन 9.सम्पर्क सूत्र ग्राम भिटारी पोस्ट आलमपुर जनपद रायबरेली यूपी 10.mail id manish24bhitari@gmail.com


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विषय अपराध/गुनाह

1
झूठा दिखावा-
गुनाह की दुनिया
धवल वस्त्र
2
विधर्मी लोग
गुनाह दलदल-
कौन उबारे
3
छल प्रपंच
अपराध प्रबल-
ठगे से लोग
4

गुनाह बड़ा
कानून की उपेक्षा-
सविंधान में
5
सच रूठता-
होता बड़ा गुनाह
झूठ बोलना
6
आत्मा झंकृत-
करता प्रायश्चित
गुनाह भूल

मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
 

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26जून2019
विषय इन्द्रधनुष
विधा हाइकु

बादलों बीच
इन्द्रधनुष रेख
बूंदें संरेख

इन्द्रधनुष
वैज्ञानिक घटना
बारिश संग

सतरंगी है
इन्द्रधनुष रंग
मेघ बारिस

घनप्रिया है
इन्द्रधनुष संग
वर्षा जीवन

मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली


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नमन् भावों के मोती
23जून2109
विषय सत्य की खोज
विधा स्वतन्त्र रचना

मैं चला 
अधीर होकर
सत्य खोजने
पथ में
मिले अनेक लोग
मैंने पूंछा
चहकंकर हंस पड़े
बोले पागल हो क्या
मैनें पूंछा क्यों
बोले
लगते पढ़े लिखे हो
मैं बोला
हाँ
क्या तुम भी पढ़े हो
बोले
हाँ बहुत पढ़ा लिखा हूँ
मैंने फिर प्रश्न दोहराया
वे बोले
यार ये तो बहुत सरल है
जाओ
गीता पढ़ो
वेद पढ़ो
रामायण पढ़ो
या अन्य नैतिक शिक्षा की किताबें पढ़ो
सत्य जान जाओगे
मैं बोला
व्यवहार में सीखना चाहता हूँ
वे फिर हंस पड़े
बोले जमाना गया
सत्य अब किताबों के अंदर रहता है
बाहर असत्य का कब्जा है
सत्य बाहर आया तो
Icu में चला जायेगा
फिर मर जायेगा
किताबों में रहने दो
कम से कम कोमा में ही सही जिन्दा तो रहेगा
मैं भी निरुत्तर हो गया
सच ही तो
कोमा में रहेगा तो कम से कम कोई देवदूत फिर कभी आयेगा
सत्य का कोमा से बाहर लाएगा
सत्य फिर आयेगा
जीवन खिलखिलायेगा
इसी इंतजार में
आगे बढ़ा
मैं चला
गम्भीर होकर

मनीष श्री
स्वरचित

रायबरेली
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नमन् भावों के मोती
18जून2019
विषय पदक
विधा कविता

स्वेद बहाकर ये संसार
आज यहाँ तक आ पहुँचा
निर्वस्त्र घुमन्तू ये मानव
ब्रान्डेड कपड़ों में जा पहुँचा
कदम ताल करते करते
पाँव बढ़ाकर चाँद पर पहुँचा
ढ़िबरी में पढ़कर ये विश्व
सौर ऊर्जा तक पहुँचा
नंगे पांव घूमने वाला 
आज अंतरिक्ष जा पहुँचा
तोते से चिट्ठियां भेजने वाला
इंटरनेट तकआ पहुँचा
विश्व विकास का ये ढांचा
बिना पदक के आ पहुँचा
कठिन श्रम का विकल्प नहीं
आप पदक खुद घर पहुँचा
स्वेद बहाकर ये संसार
आज यहाँ तक आ पहुँचा

मनीष श्री
रायबरेली
स्वरचित
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नमन् भावों के मोती
दिनांक-14/06/19
विषय -डाली शाखा
विधा-हाइकु

झूलते बच्चे
पेड़ की डाली पर
आम बहार

डाल पे झूला
झूलती महिलाएं
कजरी गाती

यौवन भार
झुक गयी डालियाँ
खिली कलियां

काटता डाल
पर्यावरण नाश
मनुष्य काल

पेड़ डालियाँ
पक्षियों का घोंसला
जीव निर्माण

सूखी डालियाँ
वन्य जीव उदास
संकट क्षण

मनीष श्री
रायबरेली
स्वरचित
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नमन् भाव के मोती 
दिनांक 12 जून 2019 
विषय चक्रव्यूह 
विधा कविता

मनुष्य जन्म पग-पग भ्रम धारा
कर्म से बिंधा हुआ धर्म हारा

चक्रव्यूह सम जीवन विषम हुआ
आज भी चक्रव्यूह है रचा हुआ

भ्रष्टाचार वैमनस्यता से घिरा हुआ
कदम कदम पर मनुष्य डरा हुआ

मनुष्यता का कत्ल हो रहा जघन्य
छल से मरते आज भी अभिमन्यु

धर्म खड़ा है आज सिसककर 
धर्मराज भी रो रहे फफककर

दुष्कर्म,मृत्यु से पीड़ित शोषित समाज
चक्रव्यूह सम डस रहा अन्याय आज

हे माधव,चक्रधारी!
कुछ आज भी करो प्रलयंकारी!

चक्रव्यूह में कोई अभिमन्यु अब न फंसे
सफल ,सुखद जीवन संग ये दुनिया बसे
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नमन् भावों के मोती
11जून2019
विषय घर
विधा कविता

नीला अम्बर धरा निराली
दुनिया लगती बड़ी सुहानी
अपने घर की बात है आली
घर ही मेरी  दुनिया अपनी
छोटा सा  घर  प्यार भरा
फूल पत्तियों से हरा भरा
दरवाजे पर नीम का विरवा
बहती शीतल मन्द हवा
चीं चीं गौरैया आंगन में आती
बिखरे दाने चुन चुन खाती
घर में रहती चहल पहल
घुल मिल करते सभी टहल
मम्मी पापा का लाड़ प्यार
मिल जुल होते सब त्यौहार
लाड़ली बहना करती भाग दौड़
भाइयों से करती रहती होड़
नोक झोंक दिन भर हम करते
खेल कूद भी करते रहते
साधारण सा मेरा घर प्यारा
बसता उसमें संसार हमारा
प्यार और ममता की धारा
जीवन सुरम्य संसार हमारा

मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली 
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मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
नमन् भावों के मोती
दिनांक 22जून2019
विषय गवाह/ सबूत
विधा हाइकु
1
गलत काम
जिन्दगी परेशान
मन 'गवाह'
2
'सबूतों 'पर
आदलत निर्णय
सही-गलत
3
आज' गवाह'
पैसों पर बिकते
सत्य निःशब्द
4
झूठ हारता
इतिहास' गवाह'
वक्त किताब
5
जन्म मरण
भगवान के हाथ
वक्त 'गवाह'

मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली


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नमन भावों केमोती
12/4/19
विषय सुख दुःख

विधा पिरामिड

ये
सुख
सम्मान
मेहमान
जीव अज्ञान
प्रसन्न जीवन
मेहनत लगन

ये
दुःख
मनुष्य
विपरीत
जीवन नृत्य
ईश्वर अमृत 
परिवर्तन सत्य

मनीष श्री
रायबरेली
स्वरचित

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विषय उपकार
विधा हाइकु
1
पाप व पुण्य
उपकार तराजू-
धर्म आधार
2
साधु जीवन
उपकार ही लक्ष्य-
मानव हित
3
वृक्ष करते
जीवन उपकार-
परम सत्य

4
अनोखा प्यार
प्रकृति उपकार-
जीव सुरक्षा

मनीष श्री
रायबरेली

स्वरचित

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मौके की तलाश में
उम्र भर चलता रहा
जाड़ा,बारिस,तेज धूप में
राहें निरखता रहा
बचपन में खेल में
अवसर तलासता रहा
पढ़ने लिखने की उम्र में
मौके मैं खोता रहा
प्यार की नैया में
गोते लगाता रहा
रोजगारढूँढने में
अवसर गंवाता रहा
एक नए आसरा में
यूं ही भटकता रहा
जीवन की राहों में
कुछ मौकों को भुनाता रहा
दुनिया के रंगमंच में
अक्सर खुश होता रहा
ईश्वर की इस सृष्टि में
खुद को खुसनसीब समझता रहा
पर आज भी मानवता की तलाश में
मन मेरा भटकता रहा
मौके की तलाश में
उम्र भर चलता रहा

मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली

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विधा हाइकु

युवा चिंतन
करता उदघोष
विश्व विजय

युवा सामर्थ्य
परिवर्तन सार
देश विकास

युवा मस्तिष्क
संकल्प का आधार
सम्पूर्ण सिद्धि

भाव विभोर
युवा की धड़कन
राष्ट्र सुरक्षा

जीवन सृष्टि
आलिंगन में युवा
आबद्ध प्यार 

@स्वरचित
मनीष श्री
रायबरेली
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विधा हाइकु

खबरें छायी
समाचारपत्र में-
प्रात:समय

चेहरा खुश
नवोन्मेषी खबरें-
चाय का प्याला

रोज सुबह
खबरें प्रसारित-
आकाशवाणी

खबरें आती
समाचार चैनल-
प्रत्येक घर

खबरें लाते
संचार उपग्रह-
विज्ञान यन्त्र

स्वरचित
@मनीष श्री
रायबरेली
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हाइकु
विषय किनारे

बहते अश्रु
नयनों के किनारे
वीर शहीद

नदी किनारे
हिरण विचरते
बीच जंगल

पथ किनारे
छायादार वृक्ष हैं
नीरव शान्ति

सरिता तट
सुंदर किनारे हैं
नौका विहार

किनारे खड़े
प्रतीक्षा में नयन
पिया मिलन

बीच भवंर
पतवार सहारा
देती किनारा

मनीष श्री

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9 मार्च 2019
विधा-हाइकु 

विषय- धन/ दौलत /पैसा

दौलत ढेर
गगनचुम्बी मॉल
बीच शहर

आज का दौर
मोहब्बत से ज्यादा
पैसों का प्यार

पैसे लुटाते
पानी की तरह से
अमीर लोग

मुंह फेरते
चन्द पैसों के लिए
मुसीबत में

झोली फैलाए
भिखारी मांगता है
चन्द रुपये

जीवन बने
सरल व सहज
धन भण्डार

पैसों की कमी
दूर इच्छित शिक्षा
सपने खोए

मेहनत से
मिले धन खजाना
कर्म का फल

मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
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1
उमड़ी भीड़
जलाभिषेक हेतु
शिवालयों में
2
बेल पत्र से
शिवलिंग शोभित
भांग धतूरा
3
पुष्प अर्पित
शिव जी के ऊपर
घंटा टंकार
4
पावन पर्व
महाशिवरात्रि का
फाल्गुन माह
5
जयकारा है
बम बम भोले का
भक्ति दर्शन
6
नाग गले में
त्रिपुण्ड सिर पर
त्रिनेत्रधारी
7
नंदी के संग
गणपति विराजें
मन्दिर शोभा
8
शिव के हाथों
त्रिशूल व डमरू
रौद्र रूप में
9
माँ गौरी संग
महादेव विराजें
अनादि शक्ति

मनीष श्री
स्वरचित

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हाइकु

गुरु देता है
शिष्यों को ज्ञान शिक्षा
भाग्य निर्माण

वर्तन धोते 
होटलों पर बच्चे
भाग्य का खेल

अपने दम
जीवन का निर्माण
भाग्य व कर्म

गरीब व्यक्ति
सड़क पर सोते
भाग्य की मार

धोखा प्यार में
जीवन मंझधार
भाग्य निर्बल 

माता पिता हैं
बच्चों के भगवान
भाग्य विधाता

मनीष श्रीवास्तव
स्वरचित
रायबरेली



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चोट लगती
जब हम गिरते
आँखों में नीर

मन डरता
दिल चोट खाता
प्रीति की डोर

चोट की पीड़ा
हमें नहीं डराती
फौजी जवान

नीयति खोट
गहरी होती चोट
उदास मन

देश की रक्षा
सीमा पर जवान
सह प्रहार

जिस्मानी चोट
जल्दी भर जाती
शरीर कष्ट

दिल की चोट
घाव देती ताउम्र
प्यार की राह

मनीष श्रीवास्तव
स्वरचित
रायबरेली

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विधा हाइकु
1
दीवारें सजी
मधुबनी पेंटिंग्स
हस्त की कला
2
ताज महल
सुंदर इमारत
वास्तु की कला
3
जल रंगों से
प्राकृतिक चित्रण
चित्र की कला
4
फिल्में बनतीं
मनोरंजन करतीं
सिनेमा कला
5
कठिन कार्य
साहस से होते
जीवन कला
6
व्यक्ति लिखता
मोती जैसे अक्षर
लेखन कला

मनीष श्री
स्वरचित

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आज हृदय विदीर्ण हो रहा
मानवता का ह्रास हो रहा
प्रजा का जीवन उजड़ रहा
कट्टरता का उदघोष हो रहा

आतंक का दानव फ़ैल रहा
फ़न काढ़े फ़ुफ़कार रहा
बित्ता सा आतंकी हुंकार रहा
इत्ते बड़े लोकतंत्र को डरा रहा

देश हमारा बिलख रहा
मानवता का दुश्मन अट्टहास कर रहा
सब्र का बांध टूट रहा
सावधान हो जा अब तू हिन्दुस्तान ललकार रहा

गौतम गांधी का देश हमारा
मानवता की रक्षा करना धर्म हमारा
दुश्मन को प्रतिउत्तर देना कर्तव्य हमारा
गीता का कर्म उपदेश है जीवन का मन्त्र हमारा

मन्त्र तन्त्र का केवल पुजारी हमको जो तू समझ रहा
अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित है देश हमारा
हिन्दुस्तान का कण कण यही पुकार रहा
आतंकवाद का सम्पूर्ण विनाश ही 
ध्येय रहा

मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली

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विधा-हाइकु

मिट्टी खेत की
जिन्दगी किसान की
ग्राम्य जीवन

माथे लगाता
प्रत्येक नागरिक
मिट्टी तिलक

मिट्टी निर्मित
हर एक शरीर
पंचतत्व से

लोग बनाते
मिट्टी के मृदभाण्ड
जरूरी वस्तु

मिट्टी की ईंटें
घर को बनाती हैं
निवास स्थान

मिट्टी में मिलें
बहुमूल्य खनिज
विपुल धन

जीवन निधि
वसुंधरा की मिट्टी
जन्म-मरण

चिप बनते
मिट्टी की सिलिका से
संचार क्रान्ति

मनीष श्रीवास्तव
स्वरचित

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विधा- लघु कविता

हम कहाँ जा रहे हैं
दाग को ही अपना जीवन बना रहे हैं
पुरानी सभ्यता की थाती भूल जा रहे हैं
आधुनिकता केरंग में नैतिकता को छोड़ जारहे हैं
विभिन्न दाग़ों के साथ हम जी रहे हैं
अस्वच्छता का दाग आज भी धो रहे हैं
भ्रष्टाचार का दाग हम मिटा नही पा रहे हैं
सब के दामन में दाग ही दाग दिख रहे हैं
सत्कर्म की बातें अब अतीत बन रहीं हैं
दुष्कर्म की घटनाएं अब आम बन रहीं हैं
फिजाएं अब जहरीली हो रहीं हैं
प्रदूषण के दाग से दुनिया कराह रही है
झूठ की हर तरफ बाजार सज रही है
सत्य की बातें किताबों में आंसू बहा रही हैं
चित्त व विचारों में शुद्धता अब अपनी सांसें गिन रहीं हैं
हर तरफ बस दाग़ों की बस्ती दिख रही हैं
आज फिर से जरूरत नैतिकता की दिख रही है
समाज में सत्य,विश्वास,निष्ठा व शुद्धता की जरूरत दिख रही है
हम कहाँ जा रहें हैं
दाग को ही अपना जीवन बना रहे हैं

मनीष श्रीवास्तव
स्वरचित
रायबरेली

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विधा:हाइकु
1
घर की खुशी
दहलीज पर माँ-
जीवन धन्य
2
माँ का आँचल
घर की दहलीज-
पूरा संसार
3
हम निकले
दहलीज को छोड़ -
शहर मार्ग
4
हम उलझे
दहलीज को भूल-
जीवन चक्र
5
दहलीज है
कच्चे घर की याद-
पापा की गोद

मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली

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विषय:प्रश्न/सवाल
1
जनता पूंछे
सवाल अनुत्तर-
राष्ट्र उत्थान
2
गम्भीर प्रश्न
लोकसभा निस्तारे-
संसद सभा
3
शिशु पूंछते
अनबूझ सवाल -
बालक हठ
4
गणित प्रश्न
उलझाते दिमाग
छात्र जीवन
5
यक्ष सवाल
हर मोड़ पर हैं-
जीवन राह

मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
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3 फरवरी 2019

  विधा: लघु कविता 
 विषय:सुबह का  प्रहर
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उठ सुबह हुई
तज अलसाई
सूरज की रोशनी आई
पूरब में लाली छाई
चहुँ ओर प्रकृति मुस्काई
जीवन ने ली अंगड़ाई
फूलों ने सुगंध फैलाई
चिड़ियों की आवाज भी आई
बच्चों ने भी दौड़ लगाई
सेहत की जो सही दवाई
उठ सुबह हुई
तज अलसाई

मनीष कुमार श्रीवास्तव स्वरचित रायबरेली
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 1
कण कण में
व्यापक भगवान-
जीव विश्वास
2
रज कण में
व्याप्त है सिलिकॉन-
ज्ञान-विज्ञान
3
बालू के कण
चमकते बिखरें-
नदी का तट
4
द्रव्य निर्माण
कणों से ही है होता-
सम्पूर्ण सृष्टि
5
कण सिद्धान्त
प्रकाश भौतिकी का-
मूल आधार

मनीष श्रीवास्तव
स्वरचित 
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विधा:हाइकु

कर्ण प्रिय है
धुन सरगम की-
सुर-साधना

सुरों की देवी
सरगम संगीत-
वीणा वादिनी

मन्द समीर
सरगम सजाती-
बसन्त ऋतु

जीवन दृष्टि
सरगम ही होती-
सम्पूर्ण सृष्टि

मनीष श्रीवास्तव
स्वरचित

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विषय:अतिथि
विधा:पिरामिड

है
तिथि
अज्ञात
खुशी गात
द्वार अतिथि
मन है मुदित
गृह है आह्लादित

ये
रीति
प्रीति की
अतिथि की
व्यवहार की
प्रेम सत्कार की
हमारी संस्कृति की

मनीष श्रीवास्तव
स्वरचित
रायबरेली

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नमन् भावों केमोती
10जून19
विषय कोयल
विधा लघु कविता

कोयल चिड़िया अति बढ़िया
सुर सामाग्री अदभुत चिड़िया

कोयल कूजें अमवा की डलिया
मीठी    लोरी   बगिया -  बगिया

काली-काली  कोयल चिड़िया
सुंदर  रंग    में  लगती बढ़िया

श्याम वर्ण की प्यारी चिड़िया
मनमोहक लगती   कोयलिया

मनीष श्री
स्वरचित

रायबरेली


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