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ब्लॉग संख्या :-463
भावों के मोती दिनांक 31/7/19
जिद / हठ
विधा हाइकु
1
बच्चों को प्यार
उन्हें बिगाड़े हठ
समझे सब
2
यह बुढ़ापा
है जिद्दी स्वभाव
सुनो उनकी
3
हठ हमेशा
देती है नुकसान
बचो इससे
4
करें जो जिद
पसंद नहीं वह
बदले मन
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
जिद / हठ
विधा हाइकु
1
बच्चों को प्यार
उन्हें बिगाड़े हठ
समझे सब
2
यह बुढ़ापा
है जिद्दी स्वभाव
सुनो उनकी
3
हठ हमेशा
देती है नुकसान
बचो इससे
4
करें जो जिद
पसंद नहीं वह
बदले मन
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
नमन-भावो के मोती
दिनांक-31/०7/2019
विषय-हठ
होठों की हठ, अधरों का कंपन
रात्रि स्तब्ध पड़ी हुई है
मेघ व्योम मे घन घन।
मकरंदो की मधुर तृप्ति से
भ्रमर घूमते वन उपवन।
हठ तेरा कैसा स्पंदन.......
चर्तु दिशाएं ठिठुर रही है
बदन कापंता कैसी ठिठुरन
हठ तेरा कैसा स्पंदन.........
सुर्ख होंठे, दर्द अश्कों की
ख्वाब बिखरता छन छन
हठ तेरा कैसा स्पंदन......
स्मृतियों की बाहों में
यामिनी व्याकुल खड़ी सी
मौन रहा मेरा आलिंगन
हठ है तेरा कैसा स्पंदन......
जर्जर ठूँठ रहा मधुमास
बिखर गया पतझड़ का बंधन
हठ तेरा कैसा स्पंदन.........
व्यथित धरा जब तीव्र तपन
मेघ बरसते मौन मगन
हठ तेरा कैसा स्पंदन......
धवल चांदनी स्वर्णिम किरणें
राहु केतु का चाँद ग्रसन
हठ तेरा कैसा स्पंदन.....
हर्ष किरन अंबर चमके
दृग बिंदु धरा पे छलके
प्रस्फुटित हो मन गुलशन
हठ तेरा कैसा स्पंदन......
अधूरी मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
बूंदो के मोती से संवरता तेरा यौवन
दिनांक-31/०7/2019
विषय-हठ
होठों की हठ, अधरों का कंपन
रात्रि स्तब्ध पड़ी हुई है
मेघ व्योम मे घन घन।
मकरंदो की मधुर तृप्ति से
भ्रमर घूमते वन उपवन।
हठ तेरा कैसा स्पंदन.......
चर्तु दिशाएं ठिठुर रही है
बदन कापंता कैसी ठिठुरन
हठ तेरा कैसा स्पंदन.........
सुर्ख होंठे, दर्द अश्कों की
ख्वाब बिखरता छन छन
हठ तेरा कैसा स्पंदन......
स्मृतियों की बाहों में
यामिनी व्याकुल खड़ी सी
मौन रहा मेरा आलिंगन
हठ है तेरा कैसा स्पंदन......
जर्जर ठूँठ रहा मधुमास
बिखर गया पतझड़ का बंधन
हठ तेरा कैसा स्पंदन.........
व्यथित धरा जब तीव्र तपन
मेघ बरसते मौन मगन
हठ तेरा कैसा स्पंदन......
धवल चांदनी स्वर्णिम किरणें
राहु केतु का चाँद ग्रसन
हठ तेरा कैसा स्पंदन.....
हर्ष किरन अंबर चमके
दृग बिंदु धरा पे छलके
प्रस्फुटित हो मन गुलशन
हठ तेरा कैसा स्पंदन......
अधूरी मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
बूंदो के मोती से संवरता तेरा यौवन
31/7/2019/
बिषय,, जिद, हठ
इस मासूम दिल की जिद
किसी से मिलने की ठानी
बहुत कठिन जमाने की रीत
न भाए किसी की प्रीत
व्यर्थ की हठ कर करता
क्यों नादानी
चहुंओर मर्यादाओं के घेरे
शर्म हया के लगे हैं फेरे
ऐसे नहीं मिलें सावरिया
क्यों इतनी है अकुलानी
प्रियतम से मिलने को ब्याकुल
चैन नहीं मन में इक पल
आतुर मनुवा धैर्य रखे न
कर न बैठे नादानी
दुनिया की दीवारें तोड़ूं
नाता मन मंदिर से जोड़ूं
जी भर के निहारूं उनको
कब आऐगी वो घड़ी सुहानी
बीता जाता सारा सावन
किस बिधि मिलेंगे मुझको साजन
लिपट लिपट के करुं आलिंगन
सुध बुध रही भुलानी
सावन जैसे नैना वरषे
एक झलक देखने को तरषे
ब्यथित हृदय में टीस चुभ रही
पागल में बिरहानी
मैं उनके चरणों की दासी
जन्म जन्म दर्शन की प्यासी
मनमोहन वो बांकेबिहारी
मैं उनकी दीवानी
स्वरिचत,, सुषमा, ब्यौहार
बिषय,, जिद, हठ
इस मासूम दिल की जिद
किसी से मिलने की ठानी
बहुत कठिन जमाने की रीत
न भाए किसी की प्रीत
व्यर्थ की हठ कर करता
क्यों नादानी
चहुंओर मर्यादाओं के घेरे
शर्म हया के लगे हैं फेरे
ऐसे नहीं मिलें सावरिया
क्यों इतनी है अकुलानी
प्रियतम से मिलने को ब्याकुल
चैन नहीं मन में इक पल
आतुर मनुवा धैर्य रखे न
कर न बैठे नादानी
दुनिया की दीवारें तोड़ूं
नाता मन मंदिर से जोड़ूं
जी भर के निहारूं उनको
कब आऐगी वो घड़ी सुहानी
बीता जाता सारा सावन
किस बिधि मिलेंगे मुझको साजन
लिपट लिपट के करुं आलिंगन
सुध बुध रही भुलानी
सावन जैसे नैना वरषे
एक झलक देखने को तरषे
ब्यथित हृदय में टीस चुभ रही
पागल में बिरहानी
मैं उनके चरणों की दासी
जन्म जन्म दर्शन की प्यासी
मनमोहन वो बांकेबिहारी
मैं उनकी दीवानी
स्वरिचत,, सुषमा, ब्यौहार
विषय हठ, जिद्द
विधा काव्य
31 जुलाई 2019,
बाल हठ राज त्रिया हठ
जो सोचते पूरा करवाते।
इनकी जिद्द के आगे तो
जगवासी नित हार मानते।
जब संत हठ कर लेता
प्रभु स्वयं समक्ष होते हैं।
निर्मल मन भावभक्ति से
पा सुदामा कृष्ण रोते हैं।
हठ कर लेता है जब मानव
सोम मंगल बृहस्पति जाता।
छिपे हुये गुप्त रहस्यों को
धरती पर अंतरिक्ष से लाता।
हठ वश जाता सागर तल
बहुमूल्य रत्नों को लाता ।
जंगल में मंगल कर देता
गीत खुशी के हँसकर गाता
असंभव संभव कर देता
दृढ़ इच्छा शक्ति हठ से ।
स्वप्न सदा साकार करता
स्वविवेक बुद्धि के बल से।
हठ सकारात्मक साधना
मनोवांछित फल नित पाओ।
शुद्ध कर्म पर अड़े रहो बस
सुख सुमन जीवन बरसाओ।
शिष्य हठी जब बन जाता
कर्मठ सजग हो आगे बढ़ता।
अविराम अनवरत चलकर
नव नित मीठे फल को चखता।
स्व0 रचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
31 जुलाई 2019,
बाल हठ राज त्रिया हठ
जो सोचते पूरा करवाते।
इनकी जिद्द के आगे तो
जगवासी नित हार मानते।
जब संत हठ कर लेता
प्रभु स्वयं समक्ष होते हैं।
निर्मल मन भावभक्ति से
पा सुदामा कृष्ण रोते हैं।
हठ कर लेता है जब मानव
सोम मंगल बृहस्पति जाता।
छिपे हुये गुप्त रहस्यों को
धरती पर अंतरिक्ष से लाता।
हठ वश जाता सागर तल
बहुमूल्य रत्नों को लाता ।
जंगल में मंगल कर देता
गीत खुशी के हँसकर गाता
असंभव संभव कर देता
दृढ़ इच्छा शक्ति हठ से ।
स्वप्न सदा साकार करता
स्वविवेक बुद्धि के बल से।
हठ सकारात्मक साधना
मनोवांछित फल नित पाओ।
शुद्ध कर्म पर अड़े रहो बस
सुख सुमन जीवन बरसाओ।
शिष्य हठी जब बन जाता
कर्मठ सजग हो आगे बढ़ता।
अविराम अनवरत चलकर
नव नित मीठे फल को चखता।
स्व0 रचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
प्रथम प्रस्तुति
जिद करना तूँ छोड़ दे ऐ-गमे-दिल
लौटकर न आय वो लम्हे महफिल ।।
रब को तो मनाना हमको आ गया
कसक है मना न पाए वो संगदिल ।।
यह यारी सबसे न्यारी जानेगा जग
सूरज उसे जान सूरजमुखी सा खिल ।।
धड़कनों की वीणा के जो तार झंकृत
उसी तर्ज़ पर लिखता जा गीत ग़ज़ल ।।
जिद तो जिद होती जिद को जाना जग
ध्रुव की जिद अमर जिद में होता बल ।।
होने को कोई नही यहाँ किसी का
प्रेम ही है जो 'शिवम' सबका संबल ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 31/07/2019
जिद करना तूँ छोड़ दे ऐ-गमे-दिल
लौटकर न आय वो लम्हे महफिल ।।
रब को तो मनाना हमको आ गया
कसक है मना न पाए वो संगदिल ।।
यह यारी सबसे न्यारी जानेगा जग
सूरज उसे जान सूरजमुखी सा खिल ।।
धड़कनों की वीणा के जो तार झंकृत
उसी तर्ज़ पर लिखता जा गीत ग़ज़ल ।।
जिद तो जिद होती जिद को जाना जग
ध्रुव की जिद अमर जिद में होता बल ।।
होने को कोई नही यहाँ किसी का
प्रेम ही है जो 'शिवम' सबका संबल ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 31/07/2019
विषय .. जिद/ हठ
**********************
इक दिन जिद करके श्रराीधा, बोली हे श्रीश्याम ।
सुन लो हे प्रिय रास रचईया, बन जाओ तुम राम।
**
मै सीता बन तुम्हे निहारू, तुम भी बस मुझको ही देखो।
क्यो छलते हो सखिया मेरी, मुझमें ही तुम सब देखो।
**
हठ कर बैठी राधा प्यारी, वृषभान की राजदुलारी।
अन्न-जल सब त्याग दिया अरू, जिद कर बैठी थी सुकुमारी॥
**
तब बोले हे सखी श्याम फिर, जग मे प्रीत की छाया है।
उसमें ही रम जाओ तुम, बाकी सबकुछ ही माया है॥
**
खुद के मन को बाँध भी लूँ पर, दूजे पर अधिकार नही।
प्रेम तो अन्तर्मन उपजें, उसपे कुछ बन्धन ही नही॥
जब-जब कोई श्याम कहेगा, राधा पहले आयेगा।
प्रेम से जो देखेगा मुझको, तुमसा रूप वो पाएगा॥
इस जग मे इक पुरूष श्याम मैं, बाकी सब कुछ नारी है।
हठ मत कर हे राधे प्यारी, शेर की अबकी बारी है॥
शेर सिंह सर्राफ
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इक दिन जिद करके श्रराीधा, बोली हे श्रीश्याम ।
सुन लो हे प्रिय रास रचईया, बन जाओ तुम राम।
**
मै सीता बन तुम्हे निहारू, तुम भी बस मुझको ही देखो।
क्यो छलते हो सखिया मेरी, मुझमें ही तुम सब देखो।
**
हठ कर बैठी राधा प्यारी, वृषभान की राजदुलारी।
अन्न-जल सब त्याग दिया अरू, जिद कर बैठी थी सुकुमारी॥
**
तब बोले हे सखी श्याम फिर, जग मे प्रीत की छाया है।
उसमें ही रम जाओ तुम, बाकी सबकुछ ही माया है॥
**
खुद के मन को बाँध भी लूँ पर, दूजे पर अधिकार नही।
प्रेम तो अन्तर्मन उपजें, उसपे कुछ बन्धन ही नही॥
जब-जब कोई श्याम कहेगा, राधा पहले आयेगा।
प्रेम से जो देखेगा मुझको, तुमसा रूप वो पाएगा॥
इस जग मे इक पुरूष श्याम मैं, बाकी सब कुछ नारी है।
हठ मत कर हे राधे प्यारी, शेर की अबकी बारी है॥
शेर सिंह सर्राफ
भावों के मोती
बिषय- हठ
हठ भूषण है नारी का
और बालकों का सखा।
इसके वैगेर न चले काम
दोनों में से किसी का।।
कैकेई की जीद से ही
राम को मिला वनवास।
राक्षसों का संहार हुआ
मिटा मुनियों का त्रास।।
जीद प्रहलाद ने की तो
नरसिंह अवतार हुआ।
हिरण्यकश्यप के जुल्म से
लोगों का उद्धार हुआ।।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
बिषय- हठ
हठ भूषण है नारी का
और बालकों का सखा।
इसके वैगेर न चले काम
दोनों में से किसी का।।
कैकेई की जीद से ही
राम को मिला वनवास।
राक्षसों का संहार हुआ
मिटा मुनियों का त्रास।।
जीद प्रहलाद ने की तो
नरसिंह अवतार हुआ।
हिरण्यकश्यप के जुल्म से
लोगों का उद्धार हुआ।।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
31/7/2019
विषय-हठ/ज़िद
🌒🌓🌔🌙🌛
बाल कृष्ण हठ करता मैया से
चंद्र खिलौना लाने की
चाँद ज़िद करता माता से
सुंदर वसन पहनाने की
तारों की हठ है कि
वो आसमाँ में चाँद के
बाराती बन कर आएंगे
चटक चाँदनी को
दुल्हन सा सजायेंगे
अमावस की निशा कहती है
आज चाँद की हठ नहीं चलेगी
न ही सितारे नज़र आएंगे
न रोशनी बिखरेगी
सबकी मनमानी चल रही है यहां
बेचारे रवि का भी हाल सुनो ज़रा
वो बेचारा किससे हठ करे
जो समीप आए उसके
वो उच्च ताप से जल मरे
किसी की ज़िद होती बेमानी
किसी की चल जाती है मनमानी
कैकेयी के हठ में दशरथ ने त्यागे प्राण
वनवास चुना राम ने पिता का रखा मान
स्वर्ण मृग पाने की हठ
देवी सीता की थी बेमानी
समझाया था राम ने
मगर हठी सीता ने बात न मानी
सुकारज हेतु ज़िद
सदैव होती है लाभकारी
उससे उलट वृथा हठ
सदा ही होता है दुखकारी ।।
✍️वंदना सोलंकी©️स्वरचित
विषय-हठ/ज़िद
🌒🌓🌔🌙🌛
बाल कृष्ण हठ करता मैया से
चंद्र खिलौना लाने की
चाँद ज़िद करता माता से
सुंदर वसन पहनाने की
तारों की हठ है कि
वो आसमाँ में चाँद के
बाराती बन कर आएंगे
चटक चाँदनी को
दुल्हन सा सजायेंगे
अमावस की निशा कहती है
आज चाँद की हठ नहीं चलेगी
न ही सितारे नज़र आएंगे
न रोशनी बिखरेगी
सबकी मनमानी चल रही है यहां
बेचारे रवि का भी हाल सुनो ज़रा
वो बेचारा किससे हठ करे
जो समीप आए उसके
वो उच्च ताप से जल मरे
किसी की ज़िद होती बेमानी
किसी की चल जाती है मनमानी
कैकेयी के हठ में दशरथ ने त्यागे प्राण
वनवास चुना राम ने पिता का रखा मान
स्वर्ण मृग पाने की हठ
देवी सीता की थी बेमानी
समझाया था राम ने
मगर हठी सीता ने बात न मानी
सुकारज हेतु ज़िद
सदैव होती है लाभकारी
उससे उलट वृथा हठ
सदा ही होता है दुखकारी ।।
✍️वंदना सोलंकी©️स्वरचित
विषय-हठ ,जिद
हे मानव
आत्म ज्ञानी बन
आत्म केन्द्रित नही
पर अस्तित्व को जान
अनेकांत का विशाल
मार्ग पहचान
"जियो और जीने दो"
"मै ही सत्य हूं "ये "हठ "है
"हठ- योग" से मानवता का
विध्वंस निश्चित है
समता और संयम
दो सुंदर हथियार है
पास हमारे विवेक से
बस उपयोग करें
जीवन को सार्थक बनाएं
पर हितार्थी बनें
फिर भव परभव
हर जगह आनंद ही आनंद।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
हे मानव
आत्म ज्ञानी बन
आत्म केन्द्रित नही
पर अस्तित्व को जान
अनेकांत का विशाल
मार्ग पहचान
"जियो और जीने दो"
"मै ही सत्य हूं "ये "हठ "है
"हठ- योग" से मानवता का
विध्वंस निश्चित है
समता और संयम
दो सुंदर हथियार है
पास हमारे विवेक से
बस उपयोग करें
जीवन को सार्थक बनाएं
पर हितार्थी बनें
फिर भव परभव
हर जगह आनंद ही आनंद।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
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दिल फिर जिद पर
आ गया
सांवरे के संग
नैना लगा गया
कुछ न अब
भावे मन को
बस श्याम श्याम
रट लगा रहा
धड़कनों के तार
रास धुन बजा रहे
रोम रोम
कदम थिरका रहे
बावरी मैं
लोकलाज बिसरा गई
बाँध घूंघरु
घूंघट सरका गई
मन लागा
रास रचैया से
दिल फिर
जिद पर आ गया।
डा. नीलम
दिल फिर जिद पर
आ गया
सांवरे के संग
नैना लगा गया
कुछ न अब
भावे मन को
बस श्याम श्याम
रट लगा रहा
धड़कनों के तार
रास धुन बजा रहे
रोम रोम
कदम थिरका रहे
बावरी मैं
लोकलाज बिसरा गई
बाँध घूंघरु
घूंघट सरका गई
मन लागा
रास रचैया से
दिल फिर
जिद पर आ गया।
डा. नीलम
#दिनांक:३१"७"२०१९:
#विषय:जिद: हठ:
#विधा:काव्य:
#रचनाकार:दुर्गा सिलगीवाला सोनी:
""***""जिद::: हठ""***""
जो जिद पर आ जाएं राष्ट्र चिंतक,
फिर उलटफेर के आते हैं परिणाम,
नैतिकता पाती है कानूनी ताकत,
हठ से भी होते हैं न्यायिक इंतजाम,
पुरुष प्रधान समाज ने खींची थी,
मां बहन बेटियों पर जुल्मों की लकीर,
समाज ही असभ्य बन गया था हमारा,
हम भी बन गए थे लकीर के फ़कीर,
अब भी है चलन में राज पुरुषों का,
अब भी महिलाएं हैं पुरुषों से त्रस्त,
फिर है जरूरत लक्ष्मी और दुर्गा की,
जो उठा सके दुराचारियों पर शस्त्र,
संस्कृति सनातन में तब से अब तक,
कोई शब्द ना तलाक का ईजाद हुआ,
जोड़ते हैं संस्कार मनीषी तोड़ते नहीं,
प्रचलन भी तलाक या हलाक का नहीं
#विषय:जिद: हठ:
#विधा:काव्य:
#रचनाकार:दुर्गा सिलगीवाला सोनी:
""***""जिद::: हठ""***""
जो जिद पर आ जाएं राष्ट्र चिंतक,
फिर उलटफेर के आते हैं परिणाम,
नैतिकता पाती है कानूनी ताकत,
हठ से भी होते हैं न्यायिक इंतजाम,
पुरुष प्रधान समाज ने खींची थी,
मां बहन बेटियों पर जुल्मों की लकीर,
समाज ही असभ्य बन गया था हमारा,
हम भी बन गए थे लकीर के फ़कीर,
अब भी है चलन में राज पुरुषों का,
अब भी महिलाएं हैं पुरुषों से त्रस्त,
फिर है जरूरत लक्ष्मी और दुर्गा की,
जो उठा सके दुराचारियों पर शस्त्र,
संस्कृति सनातन में तब से अब तक,
कोई शब्द ना तलाक का ईजाद हुआ,
जोड़ते हैं संस्कार मनीषी तोड़ते नहीं,
प्रचलन भी तलाक या हलाक का नहीं
नमन "भावो के मोती"
31/07/2019
"जिद/हठ"
################
कभी बेखौफ जिया मैं करती थी,
खिलखिलाकर हँसा मैं करती थी
बड़ी मुश्किलों से टकराकर भी
कभी रुकना ना तो जानती थी।
जाने ये क्या हुआ है मुझे,
कौन यूं बदल रहा है मुझे,
बदल गई नैनों की भाषा,
मेरा साया कहता है मुझे।
किसी की बातों में मैं खो गई,
अपना मन भी अब मैं हार गई,
किसी के "जिद" के आगे हारी,
मैं तो इस "मैं" को ही भूल गई।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।
31/07/2019
"जिद/हठ"
################
कभी बेखौफ जिया मैं करती थी,
खिलखिलाकर हँसा मैं करती थी
बड़ी मुश्किलों से टकराकर भी
कभी रुकना ना तो जानती थी।
जाने ये क्या हुआ है मुझे,
कौन यूं बदल रहा है मुझे,
बदल गई नैनों की भाषा,
मेरा साया कहता है मुझे।
किसी की बातों में मैं खो गई,
अपना मन भी अब मैं हार गई,
किसी के "जिद" के आगे हारी,
मैं तो इस "मैं" को ही भूल गई।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।
विधाःः काव्यःः
कभी माखन कभी मिश्री खाये,
कैसा जिद्दी हो गया तू कन्हैया।
चुपके छिपके माटी खा लेता,
बडा नटखट है कृष्ण कन्हैया।
चांद खिलौना ये कभी मांगता।
कभी आसमान के तारे चाहता।
हठ करे तोड कर लाऊं तारे मै,
नित नवनूतन फरमाइश करता।
बालहठ हमें विस्मित कर देती।
कुछ अजीब सी हमको लगती।
कभी गन्ना के टुकड़े करवा कर,
जिद इनकी फिर गन्ना बनवाती।
हठ करने में हमें सब बच्चे बूढे,
एक समान ही लगते हैं भैया।
श्याम सलोना सुंदर लगता पर,
इसकी जिद से परेशान है मैया।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम रामजी
1भा#.जिद /हठ #काव्यःः
31/7/2019/बुधवार
कभी माखन कभी मिश्री खाये,
कैसा जिद्दी हो गया तू कन्हैया।
चुपके छिपके माटी खा लेता,
बडा नटखट है कृष्ण कन्हैया।
चांद खिलौना ये कभी मांगता।
कभी आसमान के तारे चाहता।
हठ करे तोड कर लाऊं तारे मै,
नित नवनूतन फरमाइश करता।
बालहठ हमें विस्मित कर देती।
कुछ अजीब सी हमको लगती।
कभी गन्ना के टुकड़े करवा कर,
जिद इनकी फिर गन्ना बनवाती।
हठ करने में हमें सब बच्चे बूढे,
एक समान ही लगते हैं भैया।
श्याम सलोना सुंदर लगता पर,
इसकी जिद से परेशान है मैया।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम रामजी
1भा#.जिद /हठ #काव्यःः
31/7/2019/बुधवार
शीर्षक -हठ/ जिद
दिनांक -31-7-19
विधा --दोहे
1.
बढ़ती जिद्द दबंग की,सबक सिखाना चाह ।
इसी तरह महिला फँसी, बलात्कार की दाह।।
2.
गेंग रेप फँसी अबला,पीड़ित, दलित गरीब।
हठ भुजबल,दर्शाय से,निर्बल चढ़ी सलीब ।।
3.
पुरुष बनन की हठ बढ़ी,तभी बढा संघर्ष।
नेह घटा,गुस्सा बढा, गिरी अर्श से फर्श।।
******स्वरचित*******
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551
दिनांक -31-7-19
विधा --दोहे
1.
बढ़ती जिद्द दबंग की,सबक सिखाना चाह ।
इसी तरह महिला फँसी, बलात्कार की दाह।।
2.
गेंग रेप फँसी अबला,पीड़ित, दलित गरीब।
हठ भुजबल,दर्शाय से,निर्बल चढ़ी सलीब ।।
3.
पुरुष बनन की हठ बढ़ी,तभी बढा संघर्ष।
नेह घटा,गुस्सा बढा, गिरी अर्श से फर्श।।
******स्वरचित*******
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551
सादर नमन मंच
31-07-2019
हठ
शीतल रात, मंद, मृदुल समीर
झनक मनक मन खनक अधीर
हृदय उमंग भादो का बेंग
सरक सरक कभी रेंग रेंग
कर से टटोल, खोल करपाश
बड़ी आस, प्रिया की तलाश
कोशिश निःशब्द, किए पुरजोर
कांता क्यों विलग उस ओर ?
हिय हुलस हिलोर चौधरी।
चित चंचल चितचोर चौधरी।
अनुनय, विनय, मान-मनुहार
प्रिय वंदन, चंदन, हरसिंगार
कांता कठोर ,पिघला न मोम
संशयी अब हुआ रोम रोम
भीत हृदय, बीत रही रजनी
उचट, हठ, क्यों रूठी सजनी?
कोमल काया, देखो कैसे तनी
ऊँघते, जगते, औंधी, अनमनी
रात पिघल कर भोर चौधरी।
चित चंचल चितचोर चौधरी।
साहस बटोर, कुछ खाँस खराश
बोले मृदुवाणी, पुनि पुनि प्रयास
पर, एक बार जो भृकुटि तानी
सहस्रचंडीके ,कलिका-भवानी
कुपित पेशानी, अवरुद्ध वाणी
अब कौन जतन करे अज्ञानी।
चले न अब कोई जोर चौधरी।।
चित चंचल चितचोर चौधरी।।
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
31-07-2019
हठ
शीतल रात, मंद, मृदुल समीर
झनक मनक मन खनक अधीर
हृदय उमंग भादो का बेंग
सरक सरक कभी रेंग रेंग
कर से टटोल, खोल करपाश
बड़ी आस, प्रिया की तलाश
कोशिश निःशब्द, किए पुरजोर
कांता क्यों विलग उस ओर ?
हिय हुलस हिलोर चौधरी।
चित चंचल चितचोर चौधरी।
अनुनय, विनय, मान-मनुहार
प्रिय वंदन, चंदन, हरसिंगार
कांता कठोर ,पिघला न मोम
संशयी अब हुआ रोम रोम
भीत हृदय, बीत रही रजनी
उचट, हठ, क्यों रूठी सजनी?
कोमल काया, देखो कैसे तनी
ऊँघते, जगते, औंधी, अनमनी
रात पिघल कर भोर चौधरी।
चित चंचल चितचोर चौधरी।
साहस बटोर, कुछ खाँस खराश
बोले मृदुवाणी, पुनि पुनि प्रयास
पर, एक बार जो भृकुटि तानी
सहस्रचंडीके ,कलिका-भवानी
कुपित पेशानी, अवरुद्ध वाणी
अब कौन जतन करे अज्ञानी।
चले न अब कोई जोर चौधरी।।
चित चंचल चितचोर चौधरी।।
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
नमन भावों के मोती
विषय -हठ/जिद
31/07/19
बुधवार
कविता
जिद्दी ही जीवन में अपना लक्ष्य प्राप्त कर पाते हैं ,
केवल बातें करने वाले कहकर ही रह जाते हैं |
जिद न होती तो भारत को आज़ादी न मिल पाती ,
अत्याचारी अंग्रेजों की जड़ें कभी न हिल पाती|
जिद के बल पर गाँधी जी ने सत्याग्रह आरम्भ किया ,
सत्य-अहिंसा से आज़ादी पाने का संकल्प किया |
मातृभूमि की सेवा की जिद ने ऐसा परिणाम दिया ,
अगणित देशभक्त वीरों ने प्राणों का बलिदान किया |
जब भी कोई विकट समस्या जग को आहत करती है ,
तब जिद्दी लोगों की करनी से ही राहत मिलती है |
काश आज की युवा पीढ़ी अपनी जिद पर अड़ जाए ,
तो समाज में कोई समस्या या फ़साद न रह पाए |
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
विषय -हठ/जिद
31/07/19
बुधवार
कविता
जिद्दी ही जीवन में अपना लक्ष्य प्राप्त कर पाते हैं ,
केवल बातें करने वाले कहकर ही रह जाते हैं |
जिद न होती तो भारत को आज़ादी न मिल पाती ,
अत्याचारी अंग्रेजों की जड़ें कभी न हिल पाती|
जिद के बल पर गाँधी जी ने सत्याग्रह आरम्भ किया ,
सत्य-अहिंसा से आज़ादी पाने का संकल्प किया |
मातृभूमि की सेवा की जिद ने ऐसा परिणाम दिया ,
अगणित देशभक्त वीरों ने प्राणों का बलिदान किया |
जब भी कोई विकट समस्या जग को आहत करती है ,
तब जिद्दी लोगों की करनी से ही राहत मिलती है |
काश आज की युवा पीढ़ी अपनी जिद पर अड़ जाए ,
तो समाज में कोई समस्या या फ़साद न रह पाए |
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
आओ मिल कर जिद्द करे"
# जिद्द
# अमित नीलम
जिद्द करो सदमार्ग पर अडिग रहने की
जिद्द करो संस्कार कभी न छोड़ने की
जिद्द करो अहंकार न आने देने की
जिद्द करो क्रोध व द्वेष न हावी होने की
जिद्द करो दायित्वों को सदा निभाने की
जिद्द करो हौसलो की ऊची उडान की
जिद्द करो स्वयं के सामाजिक सम्मान की
जिद्द करो जीवन को यथार्थ बनाने की।
स्वरचित-नीलम श्रीवास्तव सपरिवार
# जिद्द
# अमित नीलम
जिद्द करो सदमार्ग पर अडिग रहने की
जिद्द करो संस्कार कभी न छोड़ने की
जिद्द करो अहंकार न आने देने की
जिद्द करो क्रोध व द्वेष न हावी होने की
जिद्द करो दायित्वों को सदा निभाने की
जिद्द करो हौसलो की ऊची उडान की
जिद्द करो स्वयं के सामाजिक सम्मान की
जिद्द करो जीवन को यथार्थ बनाने की।
स्वरचित-नीलम श्रीवास्तव सपरिवार
"शीर्षक-जिद्द हठ
माँ की जिद्द
संतान को न भाये,
अंश है मेरा,
करो मत तू हठ
निभाओ साथ।
मत जाओ विदेश।
मानो तू बात
चकाचौंध के आगे
माँ को है त्यागें
हारी माँ की ममता
संतान न माने
परदेश को भागे
माँ की ममता
है पुनः पुनः जागे
फिर है जिद्द
परदेश घुमा दो
कभी नही आये वो,
माँ को घुमाने,
फिर क्यों करें जिद्द,
जिद्द तो जिद्द
कभी होगी ये पूरी
कभी अधूरी
हो हर जिद्द पूरी
तो क्यों झमेला
ना कोई अकेला
ना जिंदगी झमेला।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
माँ की जिद्द
संतान को न भाये,
अंश है मेरा,
करो मत तू हठ
निभाओ साथ।
मत जाओ विदेश।
मानो तू बात
चकाचौंध के आगे
माँ को है त्यागें
हारी माँ की ममता
संतान न माने
परदेश को भागे
माँ की ममता
है पुनः पुनः जागे
फिर है जिद्द
परदेश घुमा दो
कभी नही आये वो,
माँ को घुमाने,
फिर क्यों करें जिद्द,
जिद्द तो जिद्द
कभी होगी ये पूरी
कभी अधूरी
हो हर जिद्द पूरी
तो क्यों झमेला
ना कोई अकेला
ना जिंदगी झमेला।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
"जिद/हठ"
दुर्मिल सवैया
################
बरखा बिजुरी चमके दहके
हमरी जियरा बहुते मचले
बिछुआ कँगना हमसे कहते
कहँवा रहते तहरी सजना
बहुते तरसे हमरी रतिया
अब तो कह दो कहिया अइबो
हठ ना करबो कहना मनबो
हम हार गईनि जिते सजना।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
दुर्मिल सवैया
################
बरखा बिजुरी चमके दहके
हमरी जियरा बहुते मचले
बिछुआ कँगना हमसे कहते
कहँवा रहते तहरी सजना
बहुते तरसे हमरी रतिया
अब तो कह दो कहिया अइबो
हठ ना करबो कहना मनबो
हम हार गईनि जिते सजना।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
नमन् भावों के मोती
दिनांक:31जुलाई19
विषय:जिद/हठ
विधा हाइकु
कर्म में डटे
जिद पर हैं अड़े
लक्ष्य भी बड़े
करते जिद
विचलित न होते
बढ़ाते पग
श्रमिक हठ
समान मजदूरी
खून पसीना
चाँद खिलौना
कठिन बाल हठ
माँ से रूठना
पंचाग्नि तप
प्रचण्ड हठयोग
योग साधना
दिनांक:31जुलाई19
विषय:जिद/हठ
विधा हाइकु
कर्म में डटे
जिद पर हैं अड़े
लक्ष्य भी बड़े
करते जिद
विचलित न होते
बढ़ाते पग
श्रमिक हठ
समान मजदूरी
खून पसीना
चाँद खिलौना
कठिन बाल हठ
माँ से रूठना
पंचाग्नि तप
प्रचण्ड हठयोग
योग साधना
सादर मंच को समर्पित -
🌹 वर्ण पिरामिड 🌹
🌲
🌻🌻🌻
🌸🌸🌸🌸🌸🌸
🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴
🌹🍀🌹 वर्ण पिरामिड 🌹🍀🌹 ************************************
🍑🍑 🌱🍒 हठ / जिद 🍒🌱🍑🍑
****************************************
🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒
🌹🌱 ( 1 )
हो
हठ
लगन
तीव्र धुन
लक्ष्य मगन
साहस गमन
सफलता वरन
🍑🍀🌻🍑
🍎🌲( 2 )
जो
हठ
बढ़त
सत्य पथ
दृढ़ शपथ
जीवन उठत
प्रगति उमड़त
🍑🌻🍀🍑
🌹🌻🍎 **** ..... रवीन्द्र वर्मा , आगरा
🌹 वर्ण पिरामिड 🌹
🌲
🌻🌻🌻
🌸🌸🌸🌸🌸🌸
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🌹🍀🌹 वर्ण पिरामिड 🌹🍀🌹 ************************************
🍑🍑 🌱🍒 हठ / जिद 🍒🌱🍑🍑
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🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒
🌹🌱 ( 1 )
हो
हठ
लगन
तीव्र धुन
लक्ष्य मगन
साहस गमन
सफलता वरन
🍑🍀🌻🍑
🍎🌲( 2 )
जो
हठ
बढ़त
सत्य पथ
दृढ़ शपथ
जीवन उठत
प्रगति उमड़त
🍑🌻🍀🍑
🌹🌻🍎 **** ..... रवीन्द्र वर्मा , आगरा
हसरतों को गले से लगाते रहे।
पी गये अश्क और मुस्कुराते रहे।
महफिलें दर्द से मेरे अंजान थी।
लोग हंसते रहे और हम गाते रहे।
अजब जायका था उनकी कसम।
हम निभाते रहे और वो खाते रहे।
वो सब झूठ था मगर प्यारा लगा।
मै सुनता रहा और वो सुनाते रहे।
रंग जीत का उनकी आंखों में हों।
हम यही सोचकर मात खाते रहे।
मेरा हौसला आजमाने की जिद।
मै डरता नहीं और वो डराते रहे।
जाम होठों पे लाके छलका दिया।
यूं मेरे सब्र को वो आजमाते रहे।
जिनकी मिलती न थी हमसे नज़र।
आईना अब मुझे वो दिखाते रहे।
लौट तो आता मगर किस तरह।
मै गया वक्त था जिसे वो बुलाते रहे।
बुलन्दी को वक्त चाहिए 'सोहल'।
वो हथेली पर सरसों जमाते रहे।
विपिन सोहल
पी गये अश्क और मुस्कुराते रहे।
महफिलें दर्द से मेरे अंजान थी।
लोग हंसते रहे और हम गाते रहे।
अजब जायका था उनकी कसम।
हम निभाते रहे और वो खाते रहे।
वो सब झूठ था मगर प्यारा लगा।
मै सुनता रहा और वो सुनाते रहे।
रंग जीत का उनकी आंखों में हों।
हम यही सोचकर मात खाते रहे।
मेरा हौसला आजमाने की जिद।
मै डरता नहीं और वो डराते रहे।
जाम होठों पे लाके छलका दिया।
यूं मेरे सब्र को वो आजमाते रहे।
जिनकी मिलती न थी हमसे नज़र।
आईना अब मुझे वो दिखाते रहे।
लौट तो आता मगर किस तरह।
मै गया वक्त था जिसे वो बुलाते रहे।
बुलन्दी को वक्त चाहिए 'सोहल'।
वो हथेली पर सरसों जमाते रहे।
विपिन सोहल
नमन भावों के मोती
आज का विषय, हठ, जिद
बुधवार
31,7,2019.
जग में जिद मानव की सबसे बड़ी शक्ति कहलाती है ,
यहाँ पर मंजिल इंसान को इससे ही मिल पाती है ।
दुनियाँ में जब जब मानव ने जिद करके कुछ सोचा है ,
किसी तरह की मुश्किल का नाम नहीं रह सकता है ।
हों अगर फौलादी इरादे कुछ भी फतह हो सकता है ,
एवरेस्ट की चोटी और चाँद को भी छू सकता है ।
बड़े बड़े अविष्कारों का जन्म मानव हठ से ही होता है,
दुनियाँ को विकसित करने में योगदान जिद का ही है ।
तीन तलाक की घातक बीमारी को हठ ने दी चुनौती है,
निरंतर चले प्रयासों से मुस्लिम बहनों को मिली आजादी है।
जन हित में सोची समझी जिद सदा सुखदाई होती है ,
जिद के बलबूते पर ही तो गंगा धरती पर आती है ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
आज का विषय, हठ, जिद
बुधवार
31,7,2019.
जग में जिद मानव की सबसे बड़ी शक्ति कहलाती है ,
यहाँ पर मंजिल इंसान को इससे ही मिल पाती है ।
दुनियाँ में जब जब मानव ने जिद करके कुछ सोचा है ,
किसी तरह की मुश्किल का नाम नहीं रह सकता है ।
हों अगर फौलादी इरादे कुछ भी फतह हो सकता है ,
एवरेस्ट की चोटी और चाँद को भी छू सकता है ।
बड़े बड़े अविष्कारों का जन्म मानव हठ से ही होता है,
दुनियाँ को विकसित करने में योगदान जिद का ही है ।
तीन तलाक की घातक बीमारी को हठ ने दी चुनौती है,
निरंतर चले प्रयासों से मुस्लिम बहनों को मिली आजादी है।
जन हित में सोची समझी जिद सदा सुखदाई होती है ,
जिद के बलबूते पर ही तो गंगा धरती पर आती है ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
नमन मंच
शीर्षक-- हठ/जिद्द
द्वितीय प्रस्तुति
हठ करते देखा है बालक को
हठ करते देखा है नारी को ।।
पर वो हठ क्या करे जिसने
लिया सर पर जिम्मेदारी को ।।
घर ग्रहस्थी का बोझ जब से
संभाला भूला सब लाचारी को ।।
सबकी खुशी में ही अपनी खुशी
देखूँ न अपनी हारी बीमारी को ।।
दारू वालों को हठ करते देखा
गवाँ चुके अपनी रिश्तेदारी को ।।
पड़ोसी पड़ोस में रहने आया
आँसूँ बहें देखूँ गम की मारी को ।।
जिम्मेदार ही हठ करे हर रोज
देखूँ वह हालत फटी सारी को ।।
दुर्योधन हठ महाभारत की जड़
न समझा 'शिवम'कृष्ण मुरारी को ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 31/07/2019
शीर्षक-- हठ/जिद्द
द्वितीय प्रस्तुति
हठ करते देखा है बालक को
हठ करते देखा है नारी को ।।
पर वो हठ क्या करे जिसने
लिया सर पर जिम्मेदारी को ।।
घर ग्रहस्थी का बोझ जब से
संभाला भूला सब लाचारी को ।।
सबकी खुशी में ही अपनी खुशी
देखूँ न अपनी हारी बीमारी को ।।
दारू वालों को हठ करते देखा
गवाँ चुके अपनी रिश्तेदारी को ।।
पड़ोसी पड़ोस में रहने आया
आँसूँ बहें देखूँ गम की मारी को ।।
जिम्मेदार ही हठ करे हर रोज
देखूँ वह हालत फटी सारी को ।।
दुर्योधन हठ महाभारत की जड़
न समझा 'शिवम'कृष्ण मुरारी को ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 31/07/2019
#जिद/हठ#गजलःः2122,1212,22
31/7/2019/बुधवार
विधा : छंदमुक्त कविता
जिद ना करो
है सावन की वर्षा , मेरा मन है तरसा ।
चले आओ साजन , बुलाता है सावन।
जिद ना करो आओ किसी तो बहाने ,
कहीं बीत जाएं ना दिन यह सुहाने ।
कहीं -------------------------- सुहाने ।
आओ आ के भीगो इस बरसात में ,
भूला भी दो शिकवे जज्बात में ।
सुनो धड़कनों को आज करीब से
जो रहती थी खोई तेरी याद में ।
आ जा खड़ी मैं हूँ प्यार लुटाने ,
कहीं बीत जाएं ना दिन यह सुहाने ।
कहीं -------------------------- सुहाने ।
हाथों में फिर से गुलाबी फूल लाओ ,
आओ बाहों में मेरी तुम झूल जाओ ।
इश्क को हद से गुजरने दो आज तो,
कब था गलत कौन सब भूल जाओ ।
दिल ही सुने आज दिल के तराने ,
कहीं बीत जाएं ना दिन यह सुहाने ।
कहीं -------------------------- सुहाने ।
बीत ही ना जाए कहीं ऋतु यौवन की ,
सुन ले पुकार आज तो मेरे मन की ।
अपनों से होते हैं शिकवे गिले सदा ,
रिमझिम बूंदें भी कहें सावन की ।
फिर से प्यार भरे सपने सजाने ,
कहीं बीत जाएं ना दिन यह सुहाने ।
जिद ना करो आओ , किसी तो बहाने ।
॥ जय श्री राधे ॥
स्वरचित :राम किशोर , पंजाब
31/7/2019/बुधवार
विधा : छंदमुक्त कविता
जिद ना करो
है सावन की वर्षा , मेरा मन है तरसा ।
चले आओ साजन , बुलाता है सावन।
जिद ना करो आओ किसी तो बहाने ,
कहीं बीत जाएं ना दिन यह सुहाने ।
कहीं -------------------------- सुहाने ।
आओ आ के भीगो इस बरसात में ,
भूला भी दो शिकवे जज्बात में ।
सुनो धड़कनों को आज करीब से
जो रहती थी खोई तेरी याद में ।
आ जा खड़ी मैं हूँ प्यार लुटाने ,
कहीं बीत जाएं ना दिन यह सुहाने ।
कहीं -------------------------- सुहाने ।
हाथों में फिर से गुलाबी फूल लाओ ,
आओ बाहों में मेरी तुम झूल जाओ ।
इश्क को हद से गुजरने दो आज तो,
कब था गलत कौन सब भूल जाओ ।
दिल ही सुने आज दिल के तराने ,
कहीं बीत जाएं ना दिन यह सुहाने ।
कहीं -------------------------- सुहाने ।
बीत ही ना जाए कहीं ऋतु यौवन की ,
सुन ले पुकार आज तो मेरे मन की ।
अपनों से होते हैं शिकवे गिले सदा ,
रिमझिम बूंदें भी कहें सावन की ।
फिर से प्यार भरे सपने सजाने ,
कहीं बीत जाएं ना दिन यह सुहाने ।
जिद ना करो आओ , किसी तो बहाने ।
॥ जय श्री राधे ॥
स्वरचित :राम किशोर , पंजाब