Thursday, July 18

संयुक्त 17जुलाई 2019

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ब्लॉग संख्या :-450
17 जुलाई 2019,बुधवार

अखंडित संयुक्त भारत
मातृभूमि की शान है।
सारे जँहा में सबसे सुंदर
मनमोहक हिंदुस्तान है।

गङ्गा यमुना संयुक्त नदियां
सुधा नीर नित हमें पिलाती।
संयुक्त कृषकों का परिश्रम
नित उदर की भूख मिटाती।

महा शक्ति संगठन में होती
जब संयुक्त परिवार होता।
विपदाएँ मिट जाती मन की
हर जन सुख की नींद सोता।

संयुक्त राष्ट्र शांति प्रतीक है
हर मुल्क की करे सुरक्षा।
वसुधैव कुटुंब भावना रख
यह संस्था करती नित रक्षा।

सबका एक परमपिता है
सब संयुक्त उसकी संताने।
मानवता बस एक धर्म हो
क्यों बुनते नित ताने बाने?

स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

7/07/2019
"संयुक्त"
1
सौहार्द, प्यार
संयुक्त परिवार
सुख अपार
2
एक मुखिया
परिवार संयुक्त
भावना युक्त
3
प्रेम बंधन
संयुक्त परिवार
कार्य बंटन
4
मन की तृप्ति
संयुक्त में है शक्ति
मिलती शांति
5
प्रेम सद्भाव
संयुक्त परिवार
सर्वसम्मान

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।।

शीर्षक-- संयुक्त
प्रथम प्रस्तुति


एकल परिवार और एकल विचारधारा 
मानवता पर है यह एक प्रहार करारा ।।

कैसे बदलेगी कब बदलेगी यह सोच
आज दिखता नही इसका कोई चारा ।।

परिणाम भी अब गलत आ रहे इसके 
पर कोई आदी कोई मजबूरी का मारा ।।

संयुक्त परिवार नही दिखते अब कहीं 
नई पीढ़ी को नही शायद अब ये गंवारा ।।

शादी हुए चार दिन नही होते हैं और 
शुरू हो जाते विवाद होता है बँटवारा ।।

दादा दादी रहें तड़फते औ बच्चों को
नसीब कहलाता पलनाघर का द्वारा ।।

यायावर कहाता था कभी यह मानव 
आज धर रहा 'शिवम' ये रूप दुबारा ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 17/07/2019

17/7/2019
"संयुक्त"
*
***********

संयुक्त घर मे रिक्त मन
जाने-पहचाने पर अनजाने मन
वॉल पेपर में छिपी सीलन से
ऊपरी रँगीनियों में मुस्काते मन।
संयुक्त मन न जाने कहाँ खो गए हैं।

ढूंढो तो कम है संयुक्त परिवार
फिर भी मचा गजब हाहाकार
वृक्ष जड़े मजबूत नही रही क्यों
जड़ों की खुदाई पर करो विचार।
संयुक्त मन न जाने कहाँ खो गए हैं।

रसोई में चमकदार बर्तन है भरे
सजावट में इनकी बड़े ही नखरे
सजे-सँवारे धूल झाँकते सालों साल
न जाने इनमें पकवान कब होंगें हरे।
संयुक्त मन न जाने कहाँ खो गए हैं।

एक हाथ से बजती नहीं है ताली
साथ रह कर भी क्यों मन है खाली
फासलों ने इस कद्र चुप्पी साध रखी है
मानों,मौन व्रत रख मुख पर लगी हो ताली।
संयुक्त मन न जाने कहाँ खो गया है।

वीणा शर्मा वशिष्ठ(स्वरचित)

विधा- कविता
*************
चलो प्रियवर एक घर बनाये, 
विश्वास की रखें उसमें बुनियाद, 
बडे-बुजुर्गों का हो आशीर्वाद, 
बसता हो जहाँ बस प्यार ही प्यार |

रिश्तों की डोर जहाँ हो मजबूत, 
देना पड़े न वहाँ कोई सबूत, 
दिल के दिल से जुड़े हों तार, 
कभी न हो जहाँ विश्वासघात |

संयुक्त होकर हम सब रहें, 
खुशियों संग गम भी बँटे, 
मिलजुलकर एकसाथ रहें, 
हंसकर सबसे बात करें |

परिवार जब संयुक्त होंगें, 
भय से हम सब मुक्त होगें, 
एकता में होती शक्ति अपार, 
कर न सके दुश्मन फिर वार |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*

कुछ यादें कुछ बातें
बातों बातों में मुलाकाते
तेरी मेरी बात की यहीं
तो ख़्वाहिश सी तम्मना
संयुक्त भिन्नताएँ औऱ विवश
कहाँ डगमग करें सितम
ख़ामोशी से पल इक विभोर,
संकटो से भरे तबादले
ग़ुमनाम सी सितारों के बीच
पड़ी बेज़ान दुनिया सारी...!!!
✍️✍️
@हार्दिक महाजन


दिन, बुधवार
दिनांक, 1 7,7,2019

जो बात है संयुक्त में, एकल में हो सकती नहीं ,
मेल ही में है जिंदगी, तन्हा ये कट सकती नहीं ।
घर हो या फिर हो संस्था, रंग मिलकर ही जमा ।
खजूर का वृक्ष कभी, किसी को छाया दे सकता नहीं ।
भ्रम हो गया है कुछ हमें , परम शक्ति हैं हमीं ,
कभी सफर जिंदगी का अकेले कट सकता नहीं।

एक संयुक्त भाव राष्ट्र है , होता समाज भी संयुक्त ही ,
यहाँ बिखर कर कभी कोई आजाद रह सकता नहीं ।
है जो भी बीच फांसले प्यार से मिट सकेंगे सभी ,
है कौनसा विवाद जो मिलकर सुलझ सकता नहीं ।
बनाबटी दुनियाँ कभी ठहर सकी न देर तक , 
संसार में निस्वार्थ सेवा प्रेम कभी भी मिट सकता नहीं ।

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,

विषय-सँयुक्त
विधा--छंद मुक्त

कितनी खूबसूरत थीं
वो रिवाजों की बेड़ियाँ
जब होते थे #सँयुक्त परिवार
हर रीति रिवाज,
हर त्योहार
मनाने को 
होते थे एकत्र
सभी एक आँगन में
और बरसती थी रसधार
कुछ पल को ही सही
हँसते खिलखिलाते थे
सभी साथ
दिखती थीं नजदीकियाँ
घूँघट की ओट से
भाभी की चुहल
मज़ाक के दौर में
देवर की पहल
अब कहाँ दिखती हैं
वो शैतानियाँ
दालान में खाँसते
बाबू की की आवाज़
या दरवाज़े पर जेठ जी की पुकार
होतीं थीं अंदर आने की 
निशानियाँ
रात का भोजन 
इक्कठे करने का निर्देश
या बच्चों का ढेर तक
न खेलने का आदेश
कर देते पारित
घर के बुजुर्ग
हर घर की यही होती थीं
कहानियाँ
आज के एकल परिवार में
कहाँ मिलती हैं 
ऐसी प्यार भरी 
रिवाजों की बेड़ियाँ
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली

विषय;संयुक्त

संयुक्त हो जो एक और एक ..
ग्यारह की आवाज देते हैं ..
एक अकेला कैसे रहे ?
दुःख दर्द वक्त के कैसे सहे?
साथ मिले, मित्र परिवार का !
पीड़ा में मुस्कान पलती है..
जाने कितनी विपदायें
हवा के साथ उड़ती है ...
उस खुशी कि कहो कीमत क्या?
जिसका कोई साझेदार न हो?
हँसते हँसते ही रों पड़े
इन आँसुओ का मोल क्या?
जाने कहाँ, वो ज़माने गए?
'स्व'हावी हुआ है अब 'हम' पर
स्वतंत्र हस्ती की चाह में,
समझौते, धीर सब लोप हैं ...
सुख सुविधा हो या भावनाये ,
सभी बाजार में बिकती है...
जो दे ,दे मोल इन सब का
आभासी दुनिया में जीता है..
पांच सितारा हुए अब अस्पताल भी ,
कहां रिश्तो की खोज होती है ?
इलेक्ट्रिक दाह गृह है बने..
चार कंधे किसे अब लगते है ?
जीना मरना ,अखबार की खबर ,
क्षण -भर को अफसोस, खैर
और दुनिया चलती है
और दुनिया चलती है....

नीलम तोलानी
स्वरचित

सादर प्रणाम 
विषय =संयुक्त 
विधा=हाइकु 
👊👊👊👊
भावप्रधान 
बन जाते हैं शब्द
संयुक्त वर्ण 

होता है बल
रहे संयुक्त दल
प्यारी है गल

आज या कल
रचगें इतिहास 
संयुक्त हम

देख संयुक्त 
दुश्मन डाले फूट
कहुँ ना झूठ

अकेला चना 
कर देता है मना
फूटे संयुक्त 

मुकेश भद्रावले 
हरदा मध्यप्रदेश 
17/07/2019

#रचनाकार:दुर्गा सिलगीवाला सोनी:

*"*"* संयुक्त परिवार*"*"*

आज भी कायम है वहीं मर्यादा,
आज भी पाते हैं रिश्ते सम्मान,
खुदगर्जी का कोई स्थान ही नहीं,
संयुक्त परिवार हैं भारत की शान,

परिवार अनेकों हैं भारत वर्ष में,
उदाहरण हैं वो अदब लिहाज के,
बुजुर्ग ही करते जहां अहम फैसले
गौरव हैं वो भारतीय समाज के,

मूक समर्थन हैं इसमें एक दूजे का,
गुप्त आचार संहिता करती है काम,
नेतृत्व जो करता है परिवार का,
आदेश से ही होते सभी इंतजाम,

हिस्से में सभी के समान जिम्मेदारी,
विशेषज्ञों को मिलता उचित सम्मान,
कमजोर भी यहां असंतुष्ट ना रहे,
मुखिया भी यहां होता मुख के समान,

संयुक्त परिवार के लाभ अधिक है,
हानि के होते हैं कुछ कम अवसर,
ताकत भी इसमें मुट्ठी के जैसी,
अंगुलियां जानती हैं सहयोग परस्पर,



दिनांक : - 17/7/019
विषय : - संयुक्त


" संयुक्त परिवार "

वटवृक्ष सा शीतल छाँव
हर शाखा का मिलता जिसमें प्यार
ऐसी है हमारी संस्कृति
जहाँ बसते संयुक्त परिवार। 

एकता का प्रतीक यह
खुशियों का संसार
वैर नहीं जहाँ किसी को किसी से
एक - दूजे को सींचता
बढ़ता यह परिवार। 

प्रेम के सूत में पिरोते
रिश्तों के अनमोल मोती
जो चमकते हैं एक समान
संस्कारीत होते नव पौध यहाँ
करते बुजुर्गों का आदर सम्मान। 

पर अब यह परिवार
कुछ सिकुड़ने लगा है
आधुनिक परिवेश में
ढ़हने लगा है। 

क्षीण होती मानवता
इसे जर्जर किया है
अपनों के लोभ, अहंग, अविश्वास 
ने इसे विकलांग किया है। 

उसीका दंश हम झेल रहे हैं
छोड़ माता -पिता को 
कैसी गृहस्थी बसा रहे हैं? 
जहाँ नहीं है कोई अपना
सिर्फ मतलबी रिश्ता निभा रहे हैं
फिर एक दिन..... 
आकर अवसाद में
कोरे कागज पर संयुक्त परिवार बना रहे हैं.........

स्वरचित : - मुन्नी कामत।

17/07/19
बुधवार 
छंदमुक्त कविता 

आज का मानव मर्यादाओं के सभी बंधन तोड़ रहा है,
त्याग, प्रेम व विश्वास जैसे जीवन-मूल्यों से मुँह मोड़ रहा है। 
टूट रहे हैं रिश्तों के तार
और बिखरते जा रहे हैं संयुक्त परिवार 
बच्चों का भोला बचपन तो जैसे कहीं खो गया है 
युवाओं का उमड़ने वाला जोश जैसे अब सो गया है 
वृद्धों का बुढ़ापा भी आज अभिशप्त हो रहा है 
न सुनायी देती हैं कानों में रस घोलने वाली किलकारियां 
न दिखाई देती हैं बुराई को जला देने वाली चिंगारियां 
न कानों में गूँजते हैं दादा-दादी के खट्टे-मीठे किस्से व कहानियां 
क्योंकि बन्द हो गये हैं सभी घरों के दरवाजे 
और बन्द हो गए हैं समाज के रिश्ते-नाते 
आज किसी को अपने सुख-दुःख व्यक्त करने की फुर्सत नहीं है 
समाज के चरमराते ढाँचे की सबसे बड़ी कमी यहीं है 
काश हर व्यक्ति दूसरे के प्रति संवेदन का भाव रख पाता 
तो भ्रष्ट आचरण का निकृष्टतम रूप सामने न आता 
आज धनोपार्जन ही प्रगति का प्रतिमान बन गया है 
इसीलिए सच्चरित्रता ने समाज से किनारा कर लिया है 
जिस दिन मानव धनार्जन का सच्चा पथ अपनाएगा 
उस दिन समाज का सुदृढ़ ढाँचा खुद-ब-खुद खड़ा हो जाएगा 
तब दिखाई देगी सद्विचारों की महिमा 
और महसूस होगी संबंधों की गरिमा 
तब जुड़ने लगेंगे बिखरते परिवार 
और हर आँगन में बहने लगेगी 
किलकारियों,उमंगों और कहानियों की रसधार। 

स्वरचित 
डॉ ललिता सेंगर

विषय-संयुक्त
छंदमुक्त कविता
🌻🌻🌻🌻🌻
सहनशीलता अब कहाँ रही
तुमने मेरी न सुनी
मैंने तुम्हारी न सुनी
छोटी छोटी बात पर
हो जाती है कहा सुनी

एक गलतफहमी से
संयुक्त परिवार टूट जाते हैं
मजबूती से जुड़े 
रिश्ते भी बिखर जाते हैं

जब मिल जुल कर रहते थे
तब कितनी खुशहाली थी
दिल दिल से जुड़े थे
ऐसी तो न बदहाली थी

मन मिलते नहीं
उच्च स्वर संयुक्त हो जाते हैं
एक दूसरे पर दोषारोपण कर
हम स्वयं मुक्त हो जाते हैं

ये कैसी जंग है
जिसने अपनों के बीच
लक्ष्मण रेखा दी है खींच?

जिसने रोप दी है
दिलों के आँगन में 
अहम की जहरीली दूब
जब थे संयुक्त परिवार 
घिरा रहता था घर द्वार
खिलखिलाहट से
भरा रहता था जो पहले खूब

बुजुर्ग मात-पिता के दिल टूटे
अपने-अपने से ही रहे रूठे
दंपति की आपस में न बनें
बच्चे रहते सहमे अनमने
एकल परिवार हुआ है
फिर भी कोई खुश न हुआ है

जैसा तुमने चाहा था
वही तो हो रहा है
संयुक्त परिवार से नाता
धीरे धीरे अब खत्म ही जो रहा है
फिर अब क्यों है 
आपस में तना तनी..?

-वंदना सोलंकी©️स्वरचित

शीर्षक ,,संयुक्त
बड़ा सुखदाई संयुक्त परिवार में रहना
सुख दुख सब मिलजुलकर सहना
पहाड़ सी विपत्ति राई सी निकल जाती
कितनी ही कठनाई हो किसी एक पर आंच न आती
संयुक्त परिवारों में रहते मर्यादा सम्मान
परस्पर सहयोग एक दूसरे का ध्यान
दादा दादी की छाया में मिलते संस्कार
निज बड़ों से रहन सहन आचार विचार
वर्तमान में एकल परिवार पाए जाते
हम हमारे दो में सिमट कर रह जाते
बच्चों में रह गई माता पिता की पहचान
वाकी सदस्यों से रहते हैं अनजान
अक्ल के तेज न्यूनतम संस्कार
सीमित होकर रह गया आचार विचार व्यवहार 
सुरचित
,सुषमा ब्यौहार

हम संयम से रहते अखिलेश्वर,
संयुक्त परिवार हमारा रहता।
अगर साथ विवेक मनमंदिर में,
कोई घरवार दुखी नहीं रहता।

गर सुसंस्कृत संस्कार जडे हों,
अपने आंगन के कोने कोने में।
परिवार कभी टूट नहीं सकता,
बसे त्याग मनके कोने कोने में।

संयुक्त रहें हम मिलजुलकर तो,
कोई विभक्त कभी न कर पाऐ।
अलग रहे निश्चित टूटें हम सब
हैं साथ हमें विलग न कर पाऐ।

हैं संयोग वियोग हम माने जानें
मगर संयुक्त का रूप निराला।
चाहे जितने दुश्मन देश के आऐं,
सबका कर देंय देश निकाला।

स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी

1भा.#संयुक्त#काव्यःः ः
17/7/2019/बुधवार

छंदमुक्त
################
एक अकेला भला क्या करे..
संयुक्त रुप से ही निर्माण होते
अकेला मन किसके संग संवाद करे...
मन से मन मिले तो भाव हैं भरे...
ऊँगली अकेले क्या करे..
संयुक्त हो तो पंच बने..
भावो को शब्दों में पिरोना हो
ऊँगलियाँ संयुक्त होकर ही काम ये करे...
छोटी-छोटी खुशियों को भी..
संयुक्त रुप से बाँट लें..
ये छोटी खुशियाँ भी उत्सव बने...
दु:ख चाहे हजार मिले...
परिवार और मित्रों का मन जो संयुक्त हो...
पहाड़ सा दु:ख भी राई समान लगे...
बच्चे और बुजुर्ग भी...
एकल परिवार से हुए दु:खी
अकेले-अकेले हीनग्रस्त हो रहे..
मन की शांति खो रहे...
हम सबने ही परिवार बनाया.
आओ फिर से ......
संयुक्त परिवार बनाए...
मिलजुलकर सब साथ रहे..
दिल खोलकर हँसें और ..
हँसाते रहें......।।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।

(1)
संयुक्त हुआ
तन से मन जब
सभी हरषे ।
(2)
गठबंधन
जोड़ रहा सबको
संयुक्त हुआ ।
(3)
टूटे मन से
बिछुड़े जब तन
कैसी संयुक्ति ।
उषासक्सेना:/स्वरचित

शीर्षक-संयुक्त
संयुक्त मन से करें जो काम
निश्चय सुखद हो परिणाम
हर इंसान भारत की शान
हो संयुक्त बढ़ाये देश का मान।

होली दीवाली या हो ओणम
हो संयुक्त मनाये सब पर्व
अकेला इंसान सदैव परेशान
हो संयुक्त रचे इतिहास।

संयुक्त परिवार के फायदे अनेक
अनेक समस्या हो जाये कम
बड़े बुजुर्गों का मिल जाये ज्ञान
जीवन हो ज्यादा आसान।

ईष्या,लोभ जब दूर हो जाय
दया, उदारता जब हो संयुक्त
बन जाये इंसान महान।
हम सच्चे इंसान कहलाये।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।

द्वितीय प्रस्तुति

संयुक्त में होतीं हजार खुशियाँ 
संयुक्त में होते हैं हजार सहारा ।।

आग लगने पर जाता है आज 
अब फायर बिग्रेड को पुकारा ।।

मुहल्ला क्या पड़ोसी भी नही
रहा है आज के युग में हमारा ।।

पहले के वो शादी समारोह 
वो पंगत का क्या था नजारा ।।

पैसों का दिखावा दिखा कर
खुशी खरीदना वहम है सारा ।।

खुशी मिलती है सुविचारों से 
सुविचार पर खग्रास ग्रहण यारा ।।

समझिये देखिये चीटी का चलन
प्रेरणाप्रद है उसका जीवन न्यारा ।।

हम इंसान होते बेंच रहे 'शिवम'
अपनी इंसानियत का पिटारा ।।

संयुक्त शब्द अब भुला दिया है
कर रहे हैं अब गमों में गुजारा ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 17/07/2019

विषय- संयुक्त

संयुक्त हो जब परिवार

बचे विस्थापन की त्रासदी से

तृप्ति हो कुटुंब का प्यार

लड़ियों से सजा रहे घर द्वार।

संवाद कायम रहे मुखिया से

संकट से उबारे भगवान श्री राम

मदद करें एक दूसरे की

धन-धान्य से परिपूर्ण रहे द्वार

मौलिक रचना सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज

भावों के मोती दिनांक 17/7/19
संयुक्त 

है संयुक्त शब्द 
शक्तिशाली
रखता हमेशा 
घर को बलशाली 

संयुक्त परिवार है
सब के साथी
दुःख सुख में हैं 
एक दूसरे के साथी

पश्चिमी संस्कृति है
अकेले रहने की
न है प्यार बच्चों से
न हैं बच्चे 
माता पिता के

भारतीय संस्कारों है
विश्व में पहचान
संयुक्त परिवार 
है इसकी जान 

स्वलिखित लेखक 
संतोष श्रीवास्तव भोपाल

 भावों के मोती 
१७ ०७ १९
विषय-संयुक्त 

विधा- हाइकु

संयुक्त वास
डगर निष्कंटक 
टले संकट ।

साफ हो दृष्टि
संयुक्त हो प्रयास 
कार्य सफल ।

होगें संयुक्त 
जिंदगी के आनंद 
आओ लें प्रण ।

हृदय हर्ष 
नियोजित जीवन
संयुक्त यात्रा ।

स्वरचित

कुसुम कोठारी।

बुधवार
गद्य लेखन -

मेरा जन्म एक संयुक्त परिवार में हुआ था, जहां सब सदस्य तन और मन से जुड़े होते हैं।
घर के मुखिया की स्थिति होती है बूढ़े बरगद के समान जो छोटी-छोटी कोंपलोऔर बेलों को सहारा प्रदान करता है और संबल प्रदान करता है ताकि वे आसमान की ऊंचाइयों को छू सकें।
बड़ा बड़ा होता है और छोटा छोटा होता है ना कुछ कहने की जरूरत ना कुछ समझाने की जरूरत।
बड़ों की नसीहत, मार्गदर्शन के कारण बड़ी से बड़ी समस्याएं चुटकियों में हल हो जाती थीं।
विवाह पश्चात ससुराल में आई तो यहां कुछ बिखराव देखा।
लेकिन अपने संस्कार ही ऐसे थे कि सब को जोड़ने की भरसक कोशिश की और एक समय ऐसा आया कि सब जुड़ भी गए।
विदेशों में तो भारतीय परिवारों की मिसालें दी जाती हैं।
जब परिवार में विघटन नहीं होगा तो बाहरी लोग भी आप पर दबाव नहीं बना सकते। वास्तव में संयुक्त परिवार की आदर्शवादिता एकल परिवार में रहने वालों के लिए एक सबक होती है।

शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

विषय-संयुक्त 
विधा-आलेख
द्वितीय प्रस्तुती
भारत में संयुक्त परिवार

भारत में संयुक्त परिवार मिसाल है विश्व में,
जब रहती है तीन और चार पीढियां साथ में,
संस्कार हस्तांरित होते है स्भाविक गति में,
देखते हैं जब नौनिहाल मां पिता को घर में,
अपने मां पिता की सेवा करते सहज में ।
उनकी आज्ञा मानते ,उनका आदर करते ,तो स्वतः ही
पनपता है एक आदर्श बच्चों में, वह एक सुंदर परम्परा के बनते हैं वाहक ।
पीढ़ी दर पीढ़ी मूल्य और आदर्शो का होता संचरण।
संयुक्त परिवार में बच्चा सिखता है ,संयम, त्याग, सहिष्णुता, प्रेम सहभागिता, विश्वास और दृढ़ निश्चय ।
क्योंकि संयुक्त परिवार में असुरक्षा का भाव नहीं आता बच्चों में ,
उन्हें सदा किसी की छत्रछाया मिलती रहती है अपनों में,
बच्चे किस्से कहानियों के माध्यम से बहुत सी सुंदर आचार संहिता के बनते हैं भागीदार 
उनका बचपन सहज गति से होता है गतिमान ।
युवा जीवन को एक जंग नही त्यौहार समझ करते अपने-अपने कर्तव्यों का पालन,दोनों पीढ़ी के लिए ,क्योंकि किसी भी कार्य में जोखिम एक की नही होती ,होती है संयुक्त। 
संकट साथ-साथ झेलते हैं ,खुशियां सब के होती सांझे की। 
वयोवृद्धों के पास होता है अनुभवों का खजाना जिसे जानते हैं वे बच्चों पर लुटाना। सदा करते हैं सभी का मार्ग दर्शन ।उनका सांध्य काल बेटे बहुओं पोते पोतियों के साथ सुकून से सोपान चढ़ता है।
एक सुखद अहसास है तीन और चार पीढ़ी का एक साथ रहना।

स्वरचित
कुसुम कोठारी।

नमन "भावों के मोती"🌷🌷🙏🙏
विषम:-संयुक्त
विधा:-दोहे

मिलजुल कर रहते सभी, कहलाता परिवार ।
बट जाती विपदा सभी, संयुक्त हो आधार ।।

राम नाम की नाव है, करती भव से पार ।
जो बोले श्री राम है ,पाता प्रेम अपार ।।

राम नाम के मोह से, तर जाता संसार।
दु:खी जन की पीर को, तजते पालनहार ।।

अर्धांगिनी माँ सीता , राम भक्त हनुमान ।
मर्यादा सीखें सभी, पुरुषोत्तम भगवान ।।

स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू

दिनांक :- 17/07/2019
शीर्षक :- संयुक्त

स्वार्थ की दिमक...
लीलती रही रिश्तों की जड़ें..
बिखर गई दरख्त की शाखाएं..
पंछियों ने भी बदले घर द्वार..
कुछ यूँ टूट गया संयुक्त परिवार...
आपसी सामंजस्य हुआ नदारद..
होने लगी घर में महाभारत..
बुनने लगे सब चक्रव्यूह के घेरे..
खिंच गई अपनों पर तलवार..
कुछ यूँ टूट गया संयुक्त परिवार...
वहम के बवंडर कर रहे तांडव...
तोड़ रहे संबंधों सारे के तट बंध...
मौन सिसकियाँ कर रही समर्पण...
बहती रही आँखों से अश्रु धार...
कुछ यूँ टूट गया संयुक्त परिवार...

स्वरचित :- मुकेश राठौड़



दिन :- बुधवार
दिनांक :- 17/07/2019
शीर्षक :- संयुक्त
द्वितीय प्रस्तुति

होती थी रोज जहाँ मीठी नोंक झोंक...
अब नहीं होती वहाँ कोई रोक टोक..
रहती थी सदा आवाजाही अतिथियों की...
पसरती है अब वहाँ वीरानगी...
टूट गया वो संयुक्त परिवार..
सुनाते थे दादा दादी परियों की कहानियां...
बच्चों की शरारतों पर बज उठती तालियां..
गुम हुई अब वो किलकारियाँ...
बस बसती है वहाँ तन्हाइयाँ...
टूट गया वो संयुक्त परिवार..
लगते थे जहाँ त्योहारों पर अपनों के मेले...
वहाँ बसते हैं अब बेसहारा वृद्धजन अकेले...
मन में बच्चों की एक आस लिये...
आँसुओं का समंदर आँख लिये...
गूँजती है अब वहाँ सिसकियाँ..
टूट गया वो संयुक्त परिवार...

स्वरचित :- मुकेश राठौड़

शीर्षक-संयुक्त
विधा -हाइकु

1.
विलुप्त हुआ
संयुक्त परिवार
स्नेह अपार
2.
संयुक्त रूप
बहरूपिया बना
शिव पार्वती
3.
शिव पार्वती
संयुक्त अराधना
मंगलकारी
4.
संयुक्त राष्ट्र
सहयोगी सबका
विश्व संसद
*********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा

भावों के मोती
१६/७/२०१९
विषय-संयुक्त
विधा-छंदमुक्त

संयुक्त परिवार
राष्ट्र की आधारशिला
पहचान भारतीय संस्कृति की
स्नेह,समर्पण,त्याग के
अनूठे बंधन में बंधे
पीढ़ियों से चली आ रही
परंपरा के प्रतीक
समय के बहाव
पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से
होते जा रहे छिन्न- भिन्न
स्वार्थ की आग
उपभोक्ता वादी नीति
स्वच्छंदता की चाह
ने हिलादी है बुनियाद
संयुक्त परिवार की
टूटते परिवार 
बिखरते रिश्ते
लगाते प्रश्नचिह्न
संयुक्त परिवार पर
भौतिक चकाचौंध में
नहीं दिखती परिजनों की पीड़ा।
संयुक्त परिवार
बनते जा रहे इतिहास
जो थे पहचान कभी
भारत की अखंडित एकता के
हिलती बुनियाद
बढ़ा रही समाज में
उच्छृंखलता
हो रहा नैतिक पतन
खोते जा रहे पहचान हम
अपने ही हाथों अपनी???

अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक

स्वरचित लघु कविता
दिनांक 17.7.2019
दिन बुधवार
विषय संयुक्त
रचयिता पूनम गोयल

विभक्त हुआ एक
संयुक्त परिवार
एकल परिवार में ।
बिखर गया
सुनहरा संसार ,
केवल एक ही क्षण में ।।
महत्ता संयुक्त की
वही जानें
जिसने संयुक्त का स्वाद चखा ।
एकल को तो कोई यूँ ही
पल में तोड़ गया ।।
रहते थे पहले लोग
संयुक्त परिवारों में ।
दुख-सुख होते थे साँझा
उन परिवारों में ।।
पर अब , न जानें क्यों ,
एकल परिवार की
सत्ता है ।
निजहित को सर्वोपरि रखके ,
व्यक्ति हुआ स्वार्थी है ।।
होकर संयुक्त रहो ,
तो कोई न कर पाए
बाल भी बाँका ।
पर एकल की सत्ता को
हर कोई मिटा पाया ।।
सो सभी समझें
इस बात को
कि एकता में है शक्ति
पूरे परिवार की ।
संयुक्त में छुपी ऊर्जा ,
समस्त संसार की ।।

विधा कविता

सँयुक्त
🍁🍁🍁🍁

अलग ही भावों से आदमी युक्त
इसलिये रहना चाहता है वह मुक्त
इसी बात ने जब जो़र पकडा़
तो टूटने लगे परिवार सँयुक्त।

पुश्तैनी धंधे भी छूटते गये
अंदर अंदर लोग टूटते गये
भौतिकता की अंधी दौड़ में
आपसी मेलजोल छूटते गये।

जीविकोपार्जन भी तो ज़रुरी है
ऐसे में घर छोड़ना भी मज़बूरी है
मशीनी और इलेक्ट्रोनिकी युग में
घर बैठे कहाँ मिलती मज़दूरी है।

जिसको जहाँ काम मिला चल दिया
परिस्थितीवश उसने अपना पल जिया
फिर धीरे धीरे आपस की होड़ हुई
आगे आगे निकलने की अजी़ब दौड़ हुई।

स्पर्धा में उलझ गये भाई भाई
फिर कैसे रहते साथ चाची ताई
सबने चालें भी करीं अपनी प्रयुक्त
टूटते रहे धीरे धीरे परिवार सँयुक्त।

स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त

हर कला से युक्त,
जो होता हैं भयमुक्त ।
ना शर्म ना हया ।
ना दया ना माया ।
ना मोल ना भाव ।
बस लगी रहती हाव ।
आज पचास,कल सौ ।
चपरासी से बाबू ।
बाबू से अफसर .।
अफसर से मंत्री तक ।
करते हैं संयुक्त,
एक ही काम ।
भ्रष्टाचार हैं,
उसका नाम ।

विषय - संयुक्त 



प्रकृति प्रेम 
संयुक्त पंखुड़ियाँ 
बनती पुष्प 



संस्कृति रंग 
संयुक्त भावनाएँ 
घर मंदिर 



रिश्तों के मोती 
संयुक्त परिवार 
नेह की डोरी 



जल बचाव 
संयुक्त हो प्रयास 
वृक्षारोपण 



संयुक्त राष्ट्र 
भारत का उद्देश्य 
शांति संदेश 



सुंदर माला 
संयुक्त परिवार 
हंसे संस्कार 

(स्वरचित )सुलोचना सिंह 
भिलाई (दुर्ग )

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