Monday, July 15

"रात/रजनी "15जुलाई 2019

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ब्लॉग संख्या :-448

"मदारी का तमाशा"

ये भोर सी तम्मन्ना

ये रात सी हताशा
ये चाँद सा एक जीवन
और किरणों सी जिज्ञासा,
जीवन जैसे दिखा रहा
मदारी का तमाशा ।

कुछ मंजिलों की ख्वाहिस
कुछ चाहतों का आना-जाना
रास्तों में तेरे जिंदगी
मिला कुछ अपना, कुछ बेगाना,
ढूंढे अजनबी राहों को
बने हर रोज मन ये सयाना
आदतों को बदल-बदल
छेड़े बेहूदा तराना,
आस तो घटती नहीं
साँस जब तक थमती नहीं
जो मिल चुका अभी तलक
कभी 'शुक्रिया' कहती नहीं,

रह -रह के उठती है टीस
जी लूँ और,और कुछ ज्यादा
जीवन बिता जाये
ज्यूँ मदारी का तमाशा।

पूछना चाहूं, पूछ न पाता
जीवन लगता है
मरने का ही एक वादा,
इस डगर से उस डगर तक
जिज्ञासा, बस जिज्ञासा,
जब-जब दरकती 
शरीर की दीवारें
ठंडा पड़ता जीवन का शोर
और मंद पड़ती निगाहें,

शायद पास आती मौत का
ये गहन सन्नाटा
जीवन बीता जाये
ज्यूँ मदारी का तमाशा।

श्रीलाल जोशी "श्री"
तेजरासर, बीकानेर।
(मैसूर)


भावों के मोती
शीर्षक-रात/ रजनी
आज की रात

जाने हुई क्या बात
निंदिया मुझसे रूठ गई है।
सारी कोशिशें मनाने की,
प्यारी बातें बहलाने की
मेरी व्यर्थ हो गई है।
सन्नाटे में गूंजती
कुछ बातें अतीत की
कांटे दिल पर चुभो रही है।
कौई आकर समझाए 
मेरी निंदिया रानी को
क्यूं कर रही मनमानी
क्यूं इसतरह जिद पे अड़ी है।
इस तरह न रूठे मुझसे
मेरी बैचेनी को समझे
आकर मेरे पहलू में बैठे
माफ कर दे गर कोई भूल हुई है।

स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर


विषय-रात्रि/रजनी
दिनांक-१५-७-१९

क्या तुम्हें पता है?
वो कौन थे आये #रातों में छुपते हुये
चेहरे पर नकाब लपेटे हुये
बस्ती की बस्तियाँ जला गये
खून की नदियाँ बहा गये
क्या………………?

वो कौन थे जो शांति की चिता जला गये
सांम्प्रदायिकता को फैला गये
हंसते बच्चों को मौत की नींद सुला गये
सुहागन की मांग में चिता की राख लगा गये 
क्यों विदीर्ण कर गये धरती का सीना
क्यों नहीं इसकी कोई "सीमा"
क्या………?

ये बहता खून किसका है
कौन सा हिन्दु , मुस्लिम ईसाई और सिख का है
दूर से आती चीत्कारों का धर्म क्या है
इन उजङे तन मन का मर्म क्या है
क्या………………?

क्यों इंसा, इंसा से लङ गया
क्यों भाई भाई की गर्दन पर चढ़ गया 
क्यों प्यार द्वेष में ढल गया
क्यों पवित्र खून जातियों मे बदल गया 
क्या तुम्हें पता है ? 

स्वरचित ✍️ 
-सीमा आचार्य(म.प्र.)

विषय .. रात/रजनी
***************************

चुडियो को तोड के ,सिन्दूर माथा पोछ के।
वो सूर्ख मेहदी छोड के, आया तिरंगा ओढ के॥
पग के महावर लाल थें, बेसुध से वो बेजान थे,
सब कस्में- वादें तोड कें, आया वो दुनिया छोड के।
**
वो क्या करे निःशब्द थी, मन धूप मे अचलस्त थी।
इस घर का एक ही सूर्य था, ये सोच के वो पस्त थी।
कुछ ना कहाँ वो सास से, कुछ ससूर से भी ना कही,
कमरें मे जाकर सज रही, वो पिय की याद मे मस्त थी।
**
फिर सूर्ख जोडा पहने कर, श्रृँगार सोलह कर लिया।
बन्दूक जो प्रिय ने दिया, उसको ही साजन मान लिया।
लिपटी रही वो रात भर, रोती रही पिय याद कर,
अब ना मिलेगे प्रिय कभी, रोई वो अन- जल त्याग कर।
**
यह वीर वधू की दास्ताँ, लिखने को मुझमे शब्द ना।
कैसे मै बाँधू शब्दों में, यह दर्द या इक है व्यथा।
विराम ये शब्दों का है, मन शेर के जख्मो का है,
क्यो होता है ये जंग सब, रोको इसे ना ये कथा।

स्वरचित ... शेर सिंह सर्राफ.

विधा कविता
दिनांक 15/07/19
******************

रात को जो जलता चराग
दिन को मद्धिम हो जाता है।

दिन को रोशन होता भानु
शाम को धुंधला जाता है।

चाहे उड़े कितना ऊँचा
पंछी, संध्या घर आता है।

कितनी ख्याति पा ले मानव
शांति तो घर पर पाता है।

आधुनिक हो चाहे यौवन
बुढ़ापा लौट धर्म आता है।

खो जाये मन चाहे जग में
ईश्वर से तेरा नाता है।

स्वरचित
मीनू "रागिनी "
15/07/19

विधा--ग़ज़ल

नींद मुझसे कुछ शिकवा करने लगी
जब से वह इस दिल में उतरने लगी ।।

रात का आलम क्या बतायें तुमको
हर सांस उसके लिये आह भरने लगी ।।

काश वो होती तो कुछ बातें करते
धड़कन आप ही आप बढ़ने लगी ।।

रातें अब दिन से सुहानी लगनें लगीं 
निगाह चाँद से उसे तुलना करने लगी ।।

तुम होतीं तो कैसा होता बार बार
यह आवाज़ दिल में उभरने लगी ।।

एक पल की जुदाई सही न जाए
रात 'शिवम' जागकर गुजरने लगी ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 15/07/2019

विधा- ग़ज़ल
15/7/2019
रदीफ- देखिए
बह्र- 212 212 212 212

आरज़ू की मुसलसल कड़ी देखिए,
वस्ल की ये सुहानी घड़ी देखिए।

शबनमी रात है खूबसूरत फिज़ा ,
चाहतों की मुकम्मल लड़ी देखिए।

वक्त ठहरा हुआ इश्क है मखमली,
शब खनकती सितारों जड़ी देखिए।

दिल समुंदर बना उल्फतें मिल गईं,
जाफ़रानी वफ़ा की झड़ी देखिए।

लफ्ज़ करते इशारे तुम्हारी तरफ़ ।
ख़ुशनुमा है ग़ज़ल ये बड़ी देखिए ।

शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

विधा लघुकविता
15 जुलाई 2019,सोमवार

कभी पूर्णिमा कभी अमावस
नित नित रजनी रूप बदलती।
परिवर्तन जग अटल सत्य है
कथा कालचक्र रजनी कहती ।

रंगबिरंगे रंग भरता शशि
ज्योत्स्ना नभ में फैलाता।
झिलमिल चाँद सितारे मिल
जगति के मन को बहलाता।

कभी उजाला कभी अंधेरा
रजनी के सम जीवन होता।
कर्मवीर नित आगे बढ़ता 
कर्महीन जीवन भर रोता।

नित विश्राम देती है रजनी
सुखद नींद सुलाती सबको।
रात नहीं तो फिर कुछ नहीं
चिर शांति देती वह हमको।

स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

बिषय,, रात,, रजनी
आज न जाने क्यों नींद नहीं आई
रात करवट बदल लेती रही अंगड़ाई
अतीत के साए में ठहर गया मन
सामने आ गया फिर वही बचपन
बड़ा ही बेफिक्र निश्चिंतता का जीवन
हँसी ठहाकों से गूंजता घर आंगन
प्रत्येक बात पर रुठकर बैठ जाना
मनमाने ढंग से अपनी बात मनवाना
किस्से कहानी वो गप्पें लड़ाना
वो रजनी में मनमोहक चांदनी का
लुत्फ उठाना
वो वेपरवाह आल्हादित लड़कपन
काश एक बार पुन:लौट आए वो बचपन
खेलूं मैं फिर से खो खो कबड्डी गुड्डा गुड़ियों का खेल
गर फिर से हो जाए मस्तियों से तालमेल
अब तो हर घड़ी जहर के घूंट पीना है
अच्छे दिन बीत गए ए भी कोई जीना है
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार


15/7/2019::सोमवार
विषय--रात/रजनी

विधा--गीतिका

2122 2122 2122
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
सुन कन्हइया आज क्यों रूठा हुआ है
कब मेरा वादा कभी .....झूठा हुआ है

कैसे निकलूँ आज घर से ..लेके गागर
देख जमना तट पे तो ....पहरा हुआ है

पग धरूँ जो धीरे से बजती है... पायल
घुँघरुओं का शोर भी .....फैला हुआ है

दिन में निकलूँ देखती ....सारी नगरिया
आज परदा भी मेरा .......झीना हुआ है

रात निकलूँ तो कन्हइया..... डर लगे है
तब अँधेरा हरतरफ .......पसरा हुआ है
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली

विधाःः काव्यःः

जब रात आई घनघोर अंधेरा,
जरूर कभी उजाला आऐगा।
हृदयपटल पर हम सबके ही,
नहीं कालिख काला छाऐगा।

हम करें शुद्ध कामनाऐं मन मे।
लाऐं प्रेम प्यारभावनाऐं मन में।
यहाँ घूमें चाहे जितने रजनीचर,
कुछ नहीं बिगाड़ पाऐं जीवन में।

समयानुसार रजनी तो आऐगी।
सब जनता अपनी सो आऐगी।
सच रजनीचर को रजनी प्यारी,
अंधकार में दुनिया खो जाऐगी।

अधिकांश कुकर्म रात में होते हैं।
क्या दानव दैत्य रात में सोते हैं।
बना योजना काली करतूतों की,
ये सुखद समय घात में खोते हैं।

स्वरचितः ः
इंजी.शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.


विषय - रात /रजनी/ निशा

" हाइकु "

सूनी मुंडेरें 
ये शाम की तन्हाई
उदास रात ।
सूरज डूबा
क्षितिज सुरमई 
रात गहरी । 
नई पुरानी
सुना एक कहानी 
रात सुहानी। 
ओस बरसी
सारी रात तरसी
भीगा आंचल। 

दूर हो तुम
मदहोश रजनी
यादें मचली । 
फिजा श्यामल 
लहराया आंचल
रात महकी ।
शमाऐं जली
फिर यादें मचली 
सूनी रजनी ।
चांद निकला
समा हुवा रौशन
रात रंगीन ।
रात खमोश
तारे हैं झिलमिल
फ़िजा उदास।
ढली रजनी
आयी नही सजनी
छाई मायुसी । 

स्वरचित 

कुसुम कोठारी ।

वार - सोमवार 
शब्द - रात / रजनी / निशा
- - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - 
काली हो घनघोर निशा |
लाती है पर भोर निशा ||

दृण इरादे रखकर चल ,
दे चाहे झकझोर निशा |

दीप जलाएं खुशियों के ,
लगा भले दे जोर निशा |

हार अगर ....मानोगे तो ,
करती है कमजोर निशा |

भर लेती है .....बाँहों में ,
नहीं मचाती शोर निशा |

एल एन कोष्टी गुना म प्र 
स्वरचित एवं मौलिक

शीर्षकःरात/रजनी
*
रस-पेशल कीर्ति-सरस्वति का ,
संयोग विरल जगतीतल में।
रूखी सिकता की हँसी वन्दिनी,
रहती जिसके करतल में।।

बीतेगी रजनी बीतेगी,
प्रातर्वरदान मिलेगा ही।
पतझारों से जो खेल चुका,
उसको मधुमास मिलेगा ही।।
-डा.'शितिकंठ'


15/7/2019
विषय-रात /रजनी
🌜🌚🌜🌚🌜

जैसे जैसे रात
गहराती है
वैसे वैसे मेरी कलम
अकुलाती है

तब मैं रजनी से
काली स्याही चुरा लेती हूँ
पन्नों में चित्रकारी करने के लिए

तारों से टपके लफ़्ज़ों को
मैं अंजुरी में भर लेती हूँ

भावों की कलम से
दिल की बातें
कागज़ पर उकेर देती हूँ

फिर नींद से 
बोझिल आँखों को
बंद कर निशा की गोद में
सिर रख कर सो जाती हूँ

नई स्फूर्ति ऊर्जा लेकर
पुनः नव निर्माण करने के लिए

-वंदना सोलंकी©️स्वरचित


दिनांक- 15/7/2019
शीर्षक- "रात/रजनी"
विधा- कविता
***************
चाँद ने बिखेरी चाँदनी, 
रात जो आधी हो गई है, 
बातें करते-करते देखो,
प्रियतमा मेरी सो गई है |

कितना सलोना रूप तुम्हारा, 
नजर है कि हटती नहीं, 
रात ये अँधियारी है और, 
चाँदनी तुम्हें तकती रही |

स्वरचित *संगीता कुकरेती* 

स्वरचित-

16/7/19
रात/रजनी 
हाइकु 
----------
1)
दिन संगीन 
तड़पता गरीब 
रात रंगीन ।।
2)
आया बूढ़ापा 
शाम हुई हो अब
रोशन रात ।।
3)
रातों में ख्व़ाब 
हकीकत से पाला
हुआ उजाला ।।
4)
प्रित-संसार 
दुलहन के मुराद 
सुहागरात ।।
5)
गर्दिशि तारा
रात हो गई दिन 
रंक को मारा ।।
6)
अंधेरी रात 
झील में ठहरी है 
चांद बारात ।।
7)
श्यामा सुंदरी 
नग जड़े चुनरी 
सर में छाई ।।
8)
चन्दा सूरज
रात दिन निहारें 
धरा सुन्दरी
----------------------
क्षीरोद्र कुमार पुरोहित 
बसना,महासमुंद,छ,ग,

विषय-रात/रजनी
विधा- हाइकु
💐💐💐💐💐💐
घोर निशा में
निकला है बारात
तारे ले साथ👌
💐💐💐💐💐💐
गहन निशा
जुगनू चमकते
राह बताते👍
💐💐💐💐💐💐
सूरज डूबा
जी भरकर पीया
रात का प्याला💐
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू अकेला

शीर्षक- रात/रजनी
विधा - मुक्तक
==================
(01)
रात बीती रश्मि आओ, मैं तुम्हारा मान रख लूँ ।
धूम कलरव में जमाओ, मैं तुम्हारा मान रख लूँ ।।
मार कर झोंके हवा के ,तुहिन भींगी वल्लरी पर,
सुप्त कलियों को जगाओ, मैं तुम्हारा मान रख लूँ ।।
=====================
(02)
दूरियाँ तुझ से बनाकर ख़ुद को तड़पाता रहा ।
याद में तेरी महब मुझको सिकूँ आता रहा ।।
यूँ किया मज़्बूर तेरे शौक़ ने मुझको सनम ! ,
रात भर सपने में तेरी ज़ुल्फ़ सुलझाता रहा ।।
=======-==----=---====-=====
"अ़क्स " दौनेरिया

भावों के मोती
विषय- रात/रजनी/निशा
___________________
आई रजनी सुन सजनी क्या सोचे चुप होके
मेघा छाए घिर-घिर आए 
तड़ित चमके शोर मचाए
पुरवा झूमे चले लहराए
मदहोश बड़ा यह सुंदर शमा 
झूम उठा है सारा जहाँ
बूँदें टपकी टिप-टिप टुप-टुप
क्यों बैठी हो इतनी गुप-चुप
कहे शमा आ झूम ज़रा
बारिश में चलें आ भीग ज़रा
आई रजनी सुन सजनी क्या सोचे चुप होके
मन के मयूर जग जाने दे
रिमझिम के तराने गाने दे
रात सुहानी चुप-चुप ढले
आ चल चलें कहीं दूर चलें
सोच रहे क्या व्याकुल नैना
यादों में किसकी भीगे रैना
आई रजनी सुन सजनी क्या सोचे चुप होके
गरज रही सावन की बदली
याद दिला रही क्या पीहर की
दादुर,पपीहे के बोलों को सुन
सुन बूँदों की रुनझुन-रुनझुन
बदली से छुप-छुपकर झाँक रहा
चँदा भी तुझे निहार रहा
छोड़ दें पीछे बातें बीती
आ बैठें करें कुछ बातें मीठी
आई रजनी सुन सजनी क्या सोचे चुप होके
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित

साथियों को दास का नमस्कार,
गजल,
मिलन के सपने संजोने दो फागुन में,
मन में मिसरी घुलने दो फागुन में।।1।।
सब दिन पीड़ा में ही प्रीत पली है,
प्राण कुमुद को खिलने दो फागुन में।।2।।
मन के सारे भेद अब कह ही डालों,
अब नयनों को सोने न दो फागुन में।।3।।
रजनी मधु गागर को लिये आज खड़ी,
रातों को हसी बनने दो फागुन में।।4।।
पिपासा के हर धड़कन में ढूंढा है,
मन पंछी को जरा चहकने दो फागुन में।।5।।
दिल की धड़कन भी कुछ कहती होगी,
गीत अधरों पर मचलने दो फागुन में।।6।।
बीज मनोहर बोते है जीवन में,
रीते घट को भरने दो फागुन में।।7।।
स्वरचित देवेन्द्रनारायण दासबसना छ,ग,।।।
शुभमध्यान्ह साथियों।।

भावों के मोती
15 07 19
विषय - रजनी, रात, निशा
द्वितीय प्रस्तुति

सूरज नीचे उतरा आहिस्ता
देखो संध्या इठलाके आयी
रूप सुनहरा फैला मोहक
शरमा के फिर मुख छुपाया 
रजनी ने नीलांंचल खोला
निशि गंधा भी महक चला
भीनी भीनी सौरभ छायी
राघेन्दू गगन भाल चमका
धवल आभा से चमके तारे
निशा चुनरी पर जा बिखरे
रात सिर्फ़ अंधकार नही है
एक सुंदर विश्राम भी है 
तन,मन का औ जीवन का
एक नया सौपान भी है ।

स्वरचित 
कुसुम कोठारी।

रजनी
मादक नयनों में भरे प्रतीक्षा
धैर्य, धधक की पूर्ण परीक्षा
अकुलाया पल, बीता दिनमान
साँझ सनेही का है प्रतिदान
श्याम वसन रंग आई रजनी
शोख कजरों में खिली सजनी
सरस शशि शोभित नील थाल
बिंदुली विभूषित ज्यों हो भाल
बेल बूटे बहुल चूनर चटकारे
जगमग नभ है लिए सितारे
प्रीति प्रतीति मधु आँखें मुँदें
ओस के कण मृदु रस की बूंदें
कोलाहल के तज कटुक याम
सुखकर स्वपन-लोक ललाम
शिथिल, श्रांति सिंचित सिंगार
सौरभसिक्त नव-जीवन संचार
-©नवल किशोर सिंह
15-07-2019
स्वरचित

15/07/2019
"रात/रजनी"
1
माता की चौकी
रात्रि का जागरण
श्रद्धा व भक्ति
2
लाठी ले हाथ
बूढ़ा पहरेदार
रात न सोया
3
रात विदाई
रवि रथ पे आई
उषा मुस्काई
4
दिवस बीता
रजनी शरमाई
क्षितिज पार
5
नदी के तीर
चाँद संग रजनी
छुप्पा छुपाई

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।।

15/07/2019
"रात/रजनी/"
################
नित्य अराधना"माँ शारदे को नमन"
दिवस बीता"भावो के मोती"संग,काव्य रचना
शाम का इंतजार,साझा हो विचार
"शुभ रात्रि"कहना अभी बाकी है।

शंख ध्वनि,मंगल आरति
दिनभर दर्शन देते प्रभुजी
घंटा ध्वनि, संध्या आरति
रात्रि भोग अभी बाकी है।

भोर हुई, हल ले निकला किसान
दिनभर करे खेतों में काम
घर की राह, गोधूलि बेला
रात विश्राम अभी बाकी है।

शीतल पवन,सुबह योग व्यायाम,
कर्मों में व्यस्त, दिनभर न चैन
सांसारिक खरीददारी,शाम जो आई,
रात्रि वार्तालाप, अभी बाकी है।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।


विषय--रात/रजनी
विधा ---मुक्तक
1.
सारा जग अब जान गया ,तेरी मेरी उसकी बात।
जीवन का रस पान किया है,बीती है यों अपनी रात।
तिसरा कौन बीच में आया,भूल रहे हम सीधा दाँव --
अच्छा भला साथ था अपना,
बिखर गए अब रात-प्रभात।
2.
भू का अक्ष है कक्ष नहीं ,वो भी कल्पित भ्रात।
घूमे कल्पित अक्ष भू , करने को दिन रात।
इक तारा खुद सूर्य है,अस्ते , रजनी जाल--
सूर्य परिक्रमा करके,रात-दिखे ग्रह पात।

*******स्वरचित*****
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551

विषय :रजनी /रात 
विधा:कविता

धीरे-धीरे विदा हो रही सन्ध्या 
करबद्ध कर रजनी का स्वागत
नवोढ़ा बधू सा कर श्रृंगार
रजनी ने लिया नया अवतार
नीले अम्बर का विस्तृत वितान
बना हुआ अब रजनी परिधान 
तारों से सजी सजीली रात
झिलमिल चमक रहे ज्यों गात
पूनम का चाँद चांदनी रात
पुलकित तन प्रफुल्लित गात
चांदनी रात में प्यारा चाँद
प्यार भरा यह सुंदर चाँद
धवल चांदनी की आभामय रात
प्रकृतिक सुषमा सौंदर्य उद्दात्त
घनघोर अमावस काली रात
सयंम सहज सुनहरी बात
शान्त चित्त नीरव रजनी
नींद नयन जीवन सजनी
अथक परिश्रम कर दिन भर
विश्राम जीव पाता रजनी भर
उषा का स्वागत कर निश्चल
प्रस्थान रात करती हो बिह्वल

मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली

दिनांक- १५/७ २०१९
प्रदत्त विषय- रात/रजनी
विधा- ३ हाइकु व एक सेदोका

हाइकु-
१)-
दीप प्रदीप्त
प्रकाश की सौगात
अँधेरी रात
२)-
श्यामल रैन
छुप गए सितारे
चाँद बेचैन
३)-
चली सजनी
सितारों वाली चुन्नी
ओढ़ रजनी
*
सेदोका-

खिली चाँदनी
आज चाँद बारात
खुशियों की सौगात
चली सजनी
ओढ़ तारों की चुन्नी
दुलहन रजनी
*
'स्वरचित'
-मेधा आर्या.

विषय-- रात/रजनी
द्वितीय प्रस्तुति
ग़ज़ल का प्रयास

गिन गिन तारे हम रात बितायें 
रार करें वो हरेक स्वप्न सतायें ।।

बीते वो लम्हे भला कैसे बुलायें 
रह जायें गुमसुम मायूस कहायें ।।

वादे थे वह खुद के ही खुद से
बीते पहर वो बरबस आ जाऐं ।।

ये दिल अकेला दुनिया का मेला
आज भी यह दिल अकेला पाऐं ।।

जैसे तैसे दिन गुजरें शामें संभलें
रात का आलम'शिवम'कैसे सुनायें ।।

कितने जलाये कितने बुझाये वो
ख्वाबों के चिराग आज तड़फायें ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 15/07/2019

Damyanti Damyanti 
न हो रात तो जीवित रहे कैसे ।
हर जीव देव दानव चाहते विश्रांति ।
चंद्र की चंद्रिका से बरसेशीतल अमृत।
पान कर होते स्वच्छ स्वच्छ चित ।
मिलती उर्जा कलांत शरीरमन को ।
जीव जंतु पशच पक्षी सभी निंद्रति पाते सकुन ।
आकाश अंतरिक्ष मे चमकते चांद सितारे ।
कवि हृदय मै पनपते कई गीत संगीत व भक्तिकी रचनाऐ ।
रजनीकांत हे चांद इसकी चादंनी मे मिलन चकवा चकवि का न होरात कब तक विरह व्यथा सहे ।
दिन है रात भी जरूरी ।
घटते बडते पूर्ण चंद्र की छबि निराली ।
होता ज्ञानविज्ञान का वर्धन ।
रजनी बिन सूना संसार ।
दमयन्ती मिश्रा ।

15-07-19
हायकू

रात आँगन
बिखरे हुए सिक्के
एक चाँदी का।

द्वार निहारे
पथिक नही आये
निशा आ गयी।

सिंदूरी रास्ते
सूर्य कलश लुढ़का
आयी रजनी ।

निर्झर जल
रजनी अठखेली
चाँद दीपक।

चातक पूछे
निशा से बार बार
चातकी पता।

आयी रजनी
पहन काली साड़ी 
टँके चंदोबे ।

सेदोका का प्रयास....
खुली खिड़की
चाँद उतर आया
पेड़ो के सहारे से
भीगी चाँदनी
नटखट सितारे
निशा के घर आये।

स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'

विषम:-रात,रजनी
विधा:-छंद मुक्त कविता
🌹🌺🌹🌺🌹🌺🌹

रात की अदा को चूमने जो आएं
रवि की आभा शवनम पिघलाएं

शोखियों मे ऐसे गोरी लहराएं
अपनी अदा पर खुद शरमाएं

घूँघट में गोरी जो चले बलखाएं,
उसे देख मौसम ने भी गशखाएं,

डाली में अटकी चूनर लहराएं
नाज उठाने को फूल इतराएं

खुशबू चमन को जब सहलाएँ
हर डाली पर फूल बलखाएं

स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
5/07/19
सोमवार 
दोहे 

रात्रि- आगमन हो रहा , चमक उठा है व्योम। 
घर-घर दीपक जल रहा , पुलकित होते रोम।।

मधुमय रजनी दे रही , सबको यह संदेश। 
खुशियाँ जग में बांटकर, स्वस्थ रखें परिवेश ।।

रात और दिन हैं यहाँ ,सुख -दुख के प्रतिरूप।
जीवन की गति के लिए, बदलें सदा स्वरूप।। 

दिनभर श्रम के बाद में, आवश्यक विश्राम। 
इसीलिए करते सभी, रजनी में आराम।।

स्वरचित 
डॉ ललिता सेंगर

विधा..... पद्द कविता 
विषय.. मयंक संग यामिनी 

यामिनी दुल्हन सी इतराती है , 
संध्या सखी को रुलाती है, 
मयंक दूल्हा अश्व पर आया, 
तारो सजी ओढ़नी लाया ll

सजी धजी है धरा ये सारी, 
प्रकृति ने भी करली तैयारी, 
चम चम चमके चमक चांदनी, 
नच नच तोड़ी पैजनिया सारी l

ओस की बूंदे अश्रु निशा के, 
खुशियों की वृष्टि हो उसके, 
अब दुल्हन निशा अकुलाई, 
विदा करने को भोर जो आयी l

गमन करेगी पी के घर को, 
चुन लिया है अपने वर को, 
ओढ़ ओढ़नी अनुपम तारा मंडल की, 
चली सजाने चाँद के घर को ll

प्रणय बंधन में बंधकर आज, 
पिया ह्रदय में करेगी राज, 
मेघा घूंघट मुख पर डाले, 
मिलन अनोखा होगा आज ll
कुसुम पंत उत्साही 
स्वरचित 
देहरादून

विषय। रात
24 मात्रा 
14,10 पर यति ,अंत गुरु लघु
***

जीवन की रात अंधेरी, खुशियां हुई दूर।
आपाधापी लगी रही ,हम हुये मजबूर ।।

जिंदगी भर करता रहा ,सुकून की तलाश।
लम्हा लम्हा बीत रहा,होते अब निराश ।।

मंदिर मस्जिद भटके हैं ,आया न कुछ रास।
थक कर सब छोड़ दिया फिर,पाया अपने पास।।

चादर में पैर पसारे , खरचे करे न्यून ।
गरीब को देकर देखा ,रोटियां दो जून ।।

बूढ़ों सँग समय बिताया ,सेवा है जुनून।
बच्चों की किलकारी में ,मिलता है सुकून।।

बीते वक़्त की याद में,खोये दिल का चैन।
भविष्य का पता नहीं क्यों ,मन करे बैचैन।।

उम्मीद हम क्योंकर करें ,करती ये हताश।
वर्तमान में खुश रह कर,पूरी करें तलाश ।।

भानु प्रातः का उदित हुआ ,बीती जाय रात।
है सुकून जब जीवन में,खुशियों की बरात ।।

स्वरचित
अनिता सुधीर

दिनांक १५/७/२०१९
शीर्षक-रजनी/रात"
अंधकार ने लिया बसेरा
सूर्यदेव ने जब किया किनारा
हो गया दिवस का अवसान
चाँद तारे से सज गई रात।

रात ने भर दी खुमारी
सोने की अब आई बारी
उमस भरी वह बरसात की रात
कैसे कटे ये मावस की रात।

दिन भर किया जो लेखा जोखा
निर्मल मन से अब तू सो जा,
जितना भी हो रात डरावनी
सुबह सुहानी फिर है आनी।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
दिनांक :- 15/07/2019
शीर्षक :- रात/रजनी...

चाँद सितारे समेटे दामन में...
उतरी स्वच्छ रजनी आँगन में...
कराती शीतलता का आभास...
लेकल शबनमी सागर आँचल में...
निंदिया की सहेली सी बनकर..
आई अलसाई सी अंगड़ाई लेकर...
उतर आती है वो जब आँगन में...
सपनों की सुरीली शहनाई लेकर...
माता के स्पर्श की थाप लेकर..
मधुर लोरियों के गान लेकर..
उतर आती है वो जब आँगन में..
खुशियों की हसीं सौगात लेकर...

स्वरचित :- मुकेश राठौड़

:भावों के मोती:
#दिनांक: १५"७"२०१९:
#विषय:रात रजनी:
#विधा:काव्य:
#रचनाकार:दुर्गा सिलगीवाला सोनी:

**""*** भीगी रात ***""**

थिरक उठी बादल में बिजली,
उठे मेघ भी साथ,
भड़क उठी तन मन में ज्वाला,
छुआ जो तेरा हाथ,

मन ही मन में मुस्काए सजनी,
जब्त ना हुवे जज़्बात,
साजन अब रैना ना बीते तन्हा,
झूम झूम बरसे बरसात,

चुनरी भीगी और अंगिया भीगे,
अब कैसे कटेगी रात,
साथ नहीं तुम नागन ये रतिया,
डर मन में है अज्ञात,

नींदों में देखूं तेरी मोहनी मूरत,
हाथों में मेरे तेरा हाथ,
कहने को अब कुछ रही नहीं,
पिया मिलन की बात,

थिरक उठी बादल में बिजली,
उठे मेघ भी साथ,
भड़क उठी तन मन में ज्वाला,
छुआ जो तेरा हाथ,

१५/७/२०१९
विषय-रजनी/रात

जब दिनकर ने मुंह फेरा,
तब रजनी ने डाला डेरा।

साथ में आई निंदिया रानी,
सुख निद्रा में सोए प्राणी।

गगन पर चंदा चम-चम चमके,
धरती पर जुगनू थे दमके।

धरा चांदनी में थी नहाई,
चलती शीतल पवन पुरवाई।

थपकी दे दे सबको सुलाती,
निंदिया सुंदर सपने दिखाती।

शांत धरा तपस्विनी जैसे,
गगन निहारे उसको ऐसे।

रजनी सुखदाई बनके आई,
आकर सबकी थकन मिटाई।

स्नेह से उसने सबको सुलाया,
तनाव-द्वंद्व सब दूर भगाया।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक

भावों के मोती दिनांक 15/7/19
रात

होती नहीं रात 
हमेशा के लिए
रात होती है 
रात भर के लिए
रात और दिन का 
है नाता 
एक दूसरे का

होता नहीं 
समय
हर किसी का
खराब
वक्त 
रहता है बदल

हिम्मत नहीं 
हारना है 
चाहे हो
रात का
अंधकार 
कितना भी
गहरा

स्वलिखित 
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल


द्वितीय प्रस्तुति

लंबी बैरिन काली रतिया
पल पल अब तड़पाये रे ।
हर आहत पर मोरा जिया
धड़क धड़क जाए रे ।
नागिन बन डसती लंबी रतिया
तुम बिन रहा न जाये रे ।
भर के सितारे आँचल में 
रात अब कुम्हलायी रे 
चन्दा भी अब जा रहा
रैना बीती जाये रे ।
बाट देखत देखत तोरी
सावन बीता जाये रे 
तोसे मिलन की आस मे 
तन की तपन बढ़े है रे ।
अब तो आजा मेरे प्रीतम
मन की अगन बुझा दे रे ।

अनिता सुधीर

रात
🍁🍁🍁🍁

रात ऐय्याशों की रंगीन होती
रात दीनों की ग़मगी़न होती
रात बीमार की बैचेन होती
पीडा़मयी यह देन होती।

रतजगा भी रस्म है विवाह की
दो जनों के बीच कस्म है यह ब्याह की
इस रात में भी बडे़ मजे़ आते हैं
सब अपनी मस्ती में खो जाते हैं।

परीक्षा की रात नींदों को उडा़ती
चिन्तायें आकर फिर मुँह चिढा़ती
घबराहट छा जाती है मन में
सारी खुशियाँ यह सडा़ती

लघु कविता

देखो रात घिरने को आई
लेकिन अबतक न आया भाई
पता करो है गया कहाँ वो,
क्यों उसको अब तक याद न आई।

मैं राह तकूं कब तक यों उसकी
सांसें रूकी पड़ी हैं सबकी।
कोई तो उससे यह पूछे,
क्या बात हमझ में आई उसके।।
(अशोक राय वत्स)© स्वरचित
जयपुर

आज का विषय, रात, रजनी
दिन, सोमवार
दिनांक, 15,7,2019,

कहीं पर गम कहीं पर खुशी ले आती है रात ,
कहीं रोशन होती जिंदगी कहीं खाली पेट की बात ।
चाँद सितारों के संग जग जाते सोये हुए जज्वात ,
मायावी दुनियाँ देती है अजब गजब सौगात ।
अंधेरों के सताये करते हैं सुबह का इंतजार ,
थके हुए मेहनतकश को रहता है रात का इंतजार । 
रात ही तो ले कर आती है स्वप्न सुनहरे,
दिन तो सपनों को मिटाया करता है ।
जो रात न हो तो जीना हो सकता मुश्किल ,
रात से सबको जीने का सहारा होता है।
दिन भर के थके मादे मानव तन को ,
विश्राम रूपी टानिक मिल जाता है।

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,

दिनाँक-15/07/2019
शीर्षक-रात ,रजनी
विधा -हाइकु

1.
अंधेरी रात
टिमटिमाते तारे
लगते प्यारे
2.
छिपा सूरज
मुस्कराई रजनी
छाया अंधेरा
3.
बीती रजनी
छट गया अंधेरा
हुआ सवेरा
4.
शीतल रात
ठिठुरता चंद्रमा
तारों के साथ
5.
पूनम रात
धवल हुई धरा
खिली चाँदनी
6..
चंद्र किरणें
करती अठखेली
जल थल में
*************
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा

विधा-हाईकु
विषय-रात

रात नागिन
जुदाई का जहर
ड़सती यादें

चाँदनी रात
सितारों की बारात
पिया मिलन

अँधेरी रात
सुनसान गलियाँ
कुक्कर राज
***
स्वरचित-रेखा रविदत्त
15/7/19
सोमवार


हाइकु - रात/रैना/विभावरी/रजनी

1-
ये विभावरी,
मधुर स्वप्न भरी,
नगरी न्यारी ।

2-
तारों से सजी,
रैना जुल्फ घनेरी,
चाँद बिंदिया ।

3-
रैना थपकी, 
मैया सुनाए लोरी, 
कान्हा झपकी ।

4-
घनी रजनी, 
सूर्य करे आराम, 
झरोखा चांद । 

-- नीता अग्रवाल
#स्वरचित

" रात"
ये तन्हा रात ,
दबे जज्बात,
तू अंजान,
अधूरी बात,
मैं तेरी दिवानी,
है अधूरी कहानी,
मन को महकाती,
ये रात की रानी,
आँखों में ले पानी,
राह तके तेरी दिवानी,
दिल को तड़पाती हैं,
बातें तेरी वो रूहानी,
चैन चुराएँ आँखें मस्तानी,
कैसे रहूँ मैं अंजानी,
चाँद चकोर का हुआ मिलन,
रात भी देखो हुई दिवानी।
***
स्वरचित-रेखा रविदत्त
15/7/19
सोमवार

दि. - 15.07.19
िषय - #रात

2122 2122 2122 2122 
*********************************
रात की तन्हाईयों में गीत गाने मैं चला हूँ |
इन अँधेरे रास्तों को आजमाने मैं चला हूँ ||

हाँ उजालों ने दिये हैं ज़ख्म इस दिल को हमेशा,
उन उजालों को ही शायद यूँ भुलाने मैं चला हूँ |

दर्द के मंजर कभी भी दूर मुझसे रह न पाए,
सोच कर कुछ दर्द को अपना बनाने मैं चला हूँ |

क्या कहेगा कौन इसकी छोड़कर अब फिक्र सारी,
ख़्वाहिशों के साथ अपना घर बसाने मैं चला हूँ |

रात की गहराई सुन आ तू मिरी पहचान कर ले,
अब तिरे आगोश में खुद को समाने मैं चला हूँ |

**************************************
#स्वरचित 
प्रमोद गोल्हानी सरस 
कहानी सिवनी म.प्र.

ओस गिरती रही रात भर
लगता है रात रोती रही रात भर
धरती का दामन भीग गया पूरा
और भोर सोती रही रात भर

अपना वजूद मैं हरसू छोड़ आया हूं
फूल की मानिंद खूश्बू छोड़ आया हूं
रात अंधेरों से परेशान थी बहुत सोचकर
उसकी चौखट पर जूगनू छोड़ आया हूं


नमन भावों के मोती 
दिनांक -15/7/2019
विषय-रात/रजनी
रात/ रजनी प्यारी सजनी 
तुम मत जाना रूठ 
तुम बिन चैन नहीं ,न ही दिन का कोई वजूद ।
तुम्ही तो छिपाए हो अपने आँचल में अनगिनत सपने,
जीवन में यही तो फूंकते हैं प्राण ,बनते हैं गहने ।
रात दिन की है विश्राम स्थली,
जीवन को देती है प्रबल संबली ।
रात नहीं तो दिन का कोई वजूद नहीं ,
चाँद तारों का कोई स्वरुप नहीं ।
रात है तो चाँद है , चाँद है तो जाने कितने उपमेय -उपमान हैं ।
रात है तो ये सुंदर धरा रूपवान है ।
प्रियतम -प्रियतमा का ये सुंदर जहान है ।
जीवन में भी दिन -रात का सुंदर विधान है ,
जीवन को एक सीख देती रात महान है ।
जिसमें रात सुंदर परी की तरह विद्यमान है ।
तो रात तुम रोज सजधज कर आना ,
अपने साथ प्यारी -प्यारी निदिया व सपने हजार लाना ।
स्वरचित 
मोहिनी पांडेय


नमन मंच
विषय-- रात 
विधा---मुक्त 
------------------------
धीरे धीरे धीरे 
मंद -मंद मंथर गति से
नखत अलंकार उठा
चुनर पे टांक सितारे
नीलाकाश पर उतर आई

सजने लगी महफिल सितारों की
चाँदनी की मदिरा छलकाता
चाँद भी गगन में आ गया

गहराती काली रात में 
चाँदनी के किनारे 
कुछ स्वप्न टहलने लगे
कुछ यादों के झूमर बन कर
रात की जुल्फ में सजने लगे 

रात भी रात भर शर्माती रही
बादलों की ओट लेकर बदन अपना छुपाती रही
चाँद फिर शरारत पर उतर आया 
खोल कर घूँघट बदली का झाँक -झाँक आया। 

डा. नीलम

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