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ब्लॉग संख्या :-454
कारवाँ गुज़र गया
स्वप्न झरे फूल से,
मीत चुभे शूल से,
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से,
और हम खड़ेखड़े बहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!
नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई,
पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई,
पातपात झर गये कि शाख़शाख़ जल गई,
चाह तो निकल सकी न, पर उमर निकल गई,
गीत अश्क बन गए,
छंद हो दफन गए,
साथ के सभी दिऐ धुआँधुआँ पहन गये,
और हम झुकेझुके,
मोड़ पर रुकेरुके
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।
क्या शबाब था कि फूलफूल प्यार कर उठा,
क्या सुरूप था कि देख आइना सिहर उठा,
इस तरफ ज़मीन उठी तो आसमान उधर उठा,
थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा,
एक दिन मगर यहाँ,
ऐसी कुछ हवा चली,
लुट गयी कलीकली कि घुट गयी गलीगली,
और हम लुटेलुटे,
वक्त से पिटेपिटे,
साँस की शराब का खुमार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।
हाथ थे मिले कि जुल्फ चाँद की सँवार दूँ,
होठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूँ,
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ,
और साँस यूँ कि स्वर्ग भूमी पर उतार दूँ,
हो सका न कुछ मगर,
शाम बन गई सहर,
वह उठी लहर कि दह गये किले बिखरबिखर,
और हम डरेडरे,
नीर नयन में भरे,
ओढ़कर कफ़न, पड़े मज़ार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!
माँग भर चली कि एक, जब नई नई किरन,
ढोलकें धुमुक उठीं, ठुमक उठे चरनचरन,
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन, चली दुल्हन,
गाँव सब उमड़ पड़ा, बहक उठे नयननयन,
पर तभी ज़हर भरी,
गाज एक वह गिरी,
पुँछ गया सिंदूर तारतार हुई चूनरी,
और हम अजानसे,
दूर के मकान से,
पालकी लिये हुए कहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।
। नीरज।
स्वप्न झरे फूल से,
मीत चुभे शूल से,
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से,
और हम खड़ेखड़े बहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!
नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई,
पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई,
पातपात झर गये कि शाख़शाख़ जल गई,
चाह तो निकल सकी न, पर उमर निकल गई,
गीत अश्क बन गए,
छंद हो दफन गए,
साथ के सभी दिऐ धुआँधुआँ पहन गये,
और हम झुकेझुके,
मोड़ पर रुकेरुके
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।
क्या शबाब था कि फूलफूल प्यार कर उठा,
क्या सुरूप था कि देख आइना सिहर उठा,
इस तरफ ज़मीन उठी तो आसमान उधर उठा,
थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा,
एक दिन मगर यहाँ,
ऐसी कुछ हवा चली,
लुट गयी कलीकली कि घुट गयी गलीगली,
और हम लुटेलुटे,
वक्त से पिटेपिटे,
साँस की शराब का खुमार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।
हाथ थे मिले कि जुल्फ चाँद की सँवार दूँ,
होठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूँ,
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ,
और साँस यूँ कि स्वर्ग भूमी पर उतार दूँ,
हो सका न कुछ मगर,
शाम बन गई सहर,
वह उठी लहर कि दह गये किले बिखरबिखर,
और हम डरेडरे,
नीर नयन में भरे,
ओढ़कर कफ़न, पड़े मज़ार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!
माँग भर चली कि एक, जब नई नई किरन,
ढोलकें धुमुक उठीं, ठुमक उठे चरनचरन,
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन, चली दुल्हन,
गाँव सब उमड़ पड़ा, बहक उठे नयननयन,
पर तभी ज़हर भरी,
गाज एक वह गिरी,
पुँछ गया सिंदूर तारतार हुई चूनरी,
और हम अजानसे,
दूर के मकान से,
पालकी लिये हुए कहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।
। नीरज।
नमन भावों के मोती समूह
विषय कवि नीरज(स्वतंत्र)
दिनांक 21/7/19
************************
जो दिल में समाता है वो ही क्यूँ दिल दुखाता है।
जी न लगे जिसके बिना वो ही दूर क्यूँ जाता है।
भरोसा जिस पर अनन्त वो ही हमें छल जाता है।
ऊफ्फ!आखिर क्यूँ कोई मुझे खुशी न दे पाता है।
क्या मेरे जीवन का केवल गम से ही नाता है।
हे प्रभु! रोक दे अब साँस दर्द सहा नहीं जाता है।
स्वरचित
मीनू "रागिनी"
21/7/19
विषय कवि नीरज(स्वतंत्र)
दिनांक 21/7/19
************************
जो दिल में समाता है वो ही क्यूँ दिल दुखाता है।
जी न लगे जिसके बिना वो ही दूर क्यूँ जाता है।
भरोसा जिस पर अनन्त वो ही हमें छल जाता है।
ऊफ्फ!आखिर क्यूँ कोई मुझे खुशी न दे पाता है।
क्या मेरे जीवन का केवल गम से ही नाता है।
हे प्रभु! रोक दे अब साँस दर्द सहा नहीं जाता है।
स्वरचित
मीनू "रागिनी"
21/7/19
महाकवि स्व0 श्री गोपाल दास नीरज जी को भावभीनी श्रद्धांजलि एवं भावपूर्ण स्मरण नमन सहित।
कभी वो गुल, कभी तुमको गुलाब कहता था,
हरेक सवाल का जो तुमको जवाब कहता था।
ठिठुर- ठिठुर के वो मर रहा है कई सर्द रातों से,
जो कभी धधकती हुई तुम को आग कहता था।
जाने क्यों अब ये बिन पीये, होश में नहीं रहता।
वही सूफी है जो कभी तुमको शराब कहता था।
कुछ न मांगा तुमसे कभी, न कुछ दिया तुमने।
फिर हिसाब कैसा वो कैसी किताब कहता था।
लो अब न सुन सकेगा वो आवाज़ कभी कोई।
दिल की सरगम का जो तुमको राग कहता था।
विपिन सोहल. स्वरचित
कभी वो गुल, कभी तुमको गुलाब कहता था,
हरेक सवाल का जो तुमको जवाब कहता था।
ठिठुर- ठिठुर के वो मर रहा है कई सर्द रातों से,
जो कभी धधकती हुई तुम को आग कहता था।
जाने क्यों अब ये बिन पीये, होश में नहीं रहता।
वही सूफी है जो कभी तुमको शराब कहता था।
कुछ न मांगा तुमसे कभी, न कुछ दिया तुमने।
फिर हिसाब कैसा वो कैसी किताब कहता था।
लो अब न सुन सकेगा वो आवाज़ कभी कोई।
दिल की सरगम का जो तुमको राग कहता था।
विपिन सोहल. स्वरचित
नमन मंच- भावों के मोती
दिनांक-21.07.2019
आज का शीर्षक-"आ.गोपाल दास 'नीरज 'जी पर विशेष "
*आ जायगी ज़मीन पै छत आसमान की*
-नीरज
---------------------------------------------------
बह्र-मफ़ऊलु फ़ाइलातु मुफ़ाईलु फ़ाइलुन्
मात्राभार- 221 2121 1221 212
विधा- 🌹ग़ज़ल🌹
==========================
इतनी अमान रखना मेरी दासतान की ।
मिन्नतकशी न करनी पड़े इस जहान की।।
🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺
ताज़ीस्त काइनात की ज़िन्दादिली रखी,
छोड़ी नहीं मुराद मैंने आनबान की ।।
🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺
बोना न नख़्लेख़ार मुहब्बत में यार! तुम,
मेरे लिए रहे न मुशीबत ज़मान की ।।
🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺
मैंने रखा है हाथ हमेशा कि साफ़ यूँ ,
बिगड़े न कोई बात मेरे खानदान की ।।
🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺
पूछे है आज शौक मुझे बात- बात पर,
तुमने कभी रखी है तमन्ना उड़ान की ।।
=========================
"अ़क्स " दौनेरिया
दिनांक-21.07.2019
आज का शीर्षक-"आ.गोपाल दास 'नीरज 'जी पर विशेष "
*आ जायगी ज़मीन पै छत आसमान की*
-नीरज
---------------------------------------------------
बह्र-मफ़ऊलु फ़ाइलातु मुफ़ाईलु फ़ाइलुन्
मात्राभार- 221 2121 1221 212
विधा- 🌹ग़ज़ल🌹
==========================
इतनी अमान रखना मेरी दासतान की ।
मिन्नतकशी न करनी पड़े इस जहान की।।
🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺
ताज़ीस्त काइनात की ज़िन्दादिली रखी,
छोड़ी नहीं मुराद मैंने आनबान की ।।
🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺
बोना न नख़्लेख़ार मुहब्बत में यार! तुम,
मेरे लिए रहे न मुशीबत ज़मान की ।।
🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺
मैंने रखा है हाथ हमेशा कि साफ़ यूँ ,
बिगड़े न कोई बात मेरे खानदान की ।।
🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺
पूछे है आज शौक मुझे बात- बात पर,
तुमने कभी रखी है तमन्ना उड़ान की ।।
=========================
"अ़क्स " दौनेरिया
नमन मंच भावों मोती
गोपाल दास जी नीरज
विधा कविता
21 जुलाई 2019,रविवार
कवि समेलन मंच विजेता
थे गीतों के प्रिय सम्राट ।
अद्भुत व्येक्तित्व धनी वह
भाव भंगिमा अति विराट।
शब्द शब्द मोती बिखरते
दुःख जगति का प्रिय हरते।
तुम पिपासु जन के मन में
स्नेह सुधा मानस में भरते।
हर सत्य वेंग्य भर कहना
काव्य कारवाँ सदा चला।
स्रोता झूम झूम कर नाचे
किया गोपाला सदा भला।
नीरज नाम अमर रहे नित
गीत खुशी यथार्थ सुनाए।
युगों युगों तक गीत आपके
भावी पीढ़ी मिलकर गाएँ।
स्नेह सुधामय पान कराया
कभी रोये तो कभी हँसाया।
जीवन मस्ती भर के जीना
पंक जन्म ले हमें सिखाया।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
गोपाल दास जी नीरज
विधा कविता
21 जुलाई 2019,रविवार
कवि समेलन मंच विजेता
थे गीतों के प्रिय सम्राट ।
अद्भुत व्येक्तित्व धनी वह
भाव भंगिमा अति विराट।
शब्द शब्द मोती बिखरते
दुःख जगति का प्रिय हरते।
तुम पिपासु जन के मन में
स्नेह सुधा मानस में भरते।
हर सत्य वेंग्य भर कहना
काव्य कारवाँ सदा चला।
स्रोता झूम झूम कर नाचे
किया गोपाला सदा भला।
नीरज नाम अमर रहे नित
गीत खुशी यथार्थ सुनाए।
युगों युगों तक गीत आपके
भावी पीढ़ी मिलकर गाएँ।
स्नेह सुधामय पान कराया
कभी रोये तो कभी हँसाया।
जीवन मस्ती भर के जीना
पंक जन्म ले हमें सिखाया।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
भावों के मोती
21/7/2019
विषय-कवि नीरज (स्वतंत्र लेखन)
रदीफ़-आसान रहेगा
काफिया-विधान रहेगा
💐💐💐💐💐💐
जितना लक्ष्य पर ध्यान होगा
मंज़िल पाना आसान रहेगा
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
विचारों की गठरी न लाद सिर पर
जितना हल्का होगा आराम रहेगा
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
बदले में प्यार कैसे मिलेगा
जब दिल में नफरत का पैगाम रहेगा
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
कर्म सिद्धान्त सरल सहज है बंधु
जैसा बीज होगा वैसा ही फल रहेगा
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
बस इतना से तो फ़लसफ़ा है
यही कुदरत का विधान रहेगा
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
✍🏻वंदना सोलंकी©️स्वरचित
21/7/2019
विषय-कवि नीरज (स्वतंत्र लेखन)
रदीफ़-आसान रहेगा
काफिया-विधान रहेगा
💐💐💐💐💐💐
जितना लक्ष्य पर ध्यान होगा
मंज़िल पाना आसान रहेगा
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
विचारों की गठरी न लाद सिर पर
जितना हल्का होगा आराम रहेगा
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
बदले में प्यार कैसे मिलेगा
जब दिल में नफरत का पैगाम रहेगा
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
कर्म सिद्धान्त सरल सहज है बंधु
जैसा बीज होगा वैसा ही फल रहेगा
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
बस इतना से तो फ़लसफ़ा है
यही कुदरत का विधान रहेगा
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
✍🏻वंदना सोलंकी©️स्वरचित
नमन कवि नीरज जी को , आज उनकी पाती पढकर मुझे भी प्रिय को पाती लिखने की प्रेरणा जागी प्रस्तुत है सादर
लिखता हूँ मैं प्यार की एक पाती
पर कलम उठाते आँख भर आती ।।
ऐ-हवाओ जरा पहुँचा देना उन तक
जहाँ रहता हो वह मेरा प्यारा साथी ।।
वो बचपन का साथी जो बिछुड़ गया
अश्क इन गमगीन आँखों में छोड़ गया ।।
सजाया था ख्वाबों का जो चमन मैंने
वक्त उसका खूबसूरत गुलाब तोड़ गया ।।
इन्तज़ार है उस सुवह का उस दीदार का
खुद समझ लेगी वो हाल मेरे किरदार का ।।
जहीन है हसीन है क्या नही है वो 'शिवम'
वही उनवान है मेरी शायरी के संसार का ।।
रीता रीता रहे सदा यह दिल सिसकता
जब से उसे देखा दिल को कोई न जँचता ।।
कुछ न कुछ तो है यह रूहों का रिश्ता
बिन लब्ज़ बोले दिल में कोई यूँ न बसता ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 21/07/2019
लिखता हूँ मैं प्यार की एक पाती
पर कलम उठाते आँख भर आती ।।
ऐ-हवाओ जरा पहुँचा देना उन तक
जहाँ रहता हो वह मेरा प्यारा साथी ।।
वो बचपन का साथी जो बिछुड़ गया
अश्क इन गमगीन आँखों में छोड़ गया ।।
सजाया था ख्वाबों का जो चमन मैंने
वक्त उसका खूबसूरत गुलाब तोड़ गया ।।
इन्तज़ार है उस सुवह का उस दीदार का
खुद समझ लेगी वो हाल मेरे किरदार का ।।
जहीन है हसीन है क्या नही है वो 'शिवम'
वही उनवान है मेरी शायरी के संसार का ।।
रीता रीता रहे सदा यह दिल सिसकता
जब से उसे देखा दिल को कोई न जँचता ।।
कुछ न कुछ तो है यह रूहों का रिश्ता
बिन लब्ज़ बोले दिल में कोई यूँ न बसता ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 21/07/2019
नमन मंच भावों के मोती
आदरणीय नीरज जी का शेर
#हारे_हुए_परिंदे_जरा_उड़_के_देख_तू,
#आ_जाएगी_ज़मीन_पे_छत_आसमान_की।
#मेरी प्रस्तुति-
बह्र-221 2121 1221 212
मिलता नहीं करार कहीं भी जहान में,
लगते रहे कयास इसी इम्तिहान में।
तूफान से निकाल हमें ले गए कहांँ,
जलवा फरोज़ आज क़मर आसमान में।
गिरती रहीं फसीलें हुए आप रूबरू,
दिलशाद हैं तमाम नज़ारे उड़ान में।
मिलने लगे जवाब हमें फिर सवाल के,
आबाद अब हजार गुलिस्तां निशान में।
दिखती हमें बहार ख़िज़ां के अलम मिटे,
चाहत मिली हसीन मुकद्दस बयान में।
जगते रहे नसीब फिज़ा हो गई जवां,
शाखें हसीन आज खुदाया ज़हान में।
तर्ज-लग जा गले.....
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
21/7/2019
आदरणीय नीरज जी का शेर
#हारे_हुए_परिंदे_जरा_उड़_के_देख_तू,
#आ_जाएगी_ज़मीन_पे_छत_आसमान_की।
#मेरी प्रस्तुति-
बह्र-221 2121 1221 212
मिलता नहीं करार कहीं भी जहान में,
लगते रहे कयास इसी इम्तिहान में।
तूफान से निकाल हमें ले गए कहांँ,
जलवा फरोज़ आज क़मर आसमान में।
गिरती रहीं फसीलें हुए आप रूबरू,
दिलशाद हैं तमाम नज़ारे उड़ान में।
मिलने लगे जवाब हमें फिर सवाल के,
आबाद अब हजार गुलिस्तां निशान में।
दिखती हमें बहार ख़िज़ां के अलम मिटे,
चाहत मिली हसीन मुकद्दस बयान में।
जगते रहे नसीब फिज़ा हो गई जवां,
शाखें हसीन आज खुदाया ज़हान में।
तर्ज-लग जा गले.....
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
21/7/2019
नमन, आदरणीय नीरज जी को।
यादें बड़ी अनमोल होती हैं,वो जब ज़हन में आती हैं तो व्यक्ति फिर से अपनें बचपन, अपनी जवानी में घूम आता है l
दयानन्द एंग्लों वैदिक महाविद्यालय(डीएवी कॉलेज) कानपुर, जहां से मैनें १९७९-८४ में ग्रेजुएसन,पोस्ट ग्रेजुएसन व एक वर्ष लॉ की पढाई की, जहां हमें वो कमरा भी देखनें को मिलता था जहां अटल जी की यादें भी जुड़ी है, जहां मेरे पृणेता, गुरू, गोपालदास जी नीरज जी की भी यादें जुडी हुई है lअटलजी ने यहां अपनी पढाई पूरी की और शायद वहीं से उनका राष्ट्रप्रेम परवान भी चढा होगा क्योंकि वो जगह क्रान्तिकारियों की कर्म भूमि थी l क्रान्तिकारी पत्रकार गणेशशंकर विद्यार्थी,चन्द्रशेखर आजाद की कर्म भूमि वही जगह है, पास में गंगा नदी व उस पार उन्नाव शहर यानि क्रांतिकारियों का स्वर्ग l हम सुनते थे कि वहीं पास में फीलखाना में एक काफी बडी बिल्डिग थी जहां से एक सुरंग बनाई गई थी जो गंगा नदी के पास निकलती थी और उसी बिल्डिग से क्रांन्तकारी अपनी योजनाएं क्रियान्वित करते थे l वहां मेरी भूआ जी का परिवार लगभग ३० साल रहा, वास्तव में बडी भूलभूलैया बिल्डिंग थी अब है या नहीं l पता नही, पास मे ही जुग्गीलाल कमलापत सिघानिया ( जे. के. ग्रुप) की गद्दी थी ( कमला टावर) l
मै बात यादों की कर रहा था व साथ में डीएवी कॉलेज की याद की जहां नीरज जी ने अपनी सफलता का सफर शुऱू किया, हम सुनते थे कि नीरज जी जब यहां कार्य करते थे उन दिनों में ही कानपुर के लोग उनके गीतों के कायल हो चुके थे l
यही बात मेरे भी ज़हन में थी कि नीरज जी के गीतों में क्या है जो मेरे से पहले की पीढी इतनी दीवानी है और जब उनकी " नीरज की पाती" मैनें पढी तो पता चला कि कितना रस है उनके गीतों में l उन्हीं गीतों में से एक गीत जो मुझे बहुत ही पसंद है यहां प्रस्तुत कर रहां हूं, पढिये क्या शब्द है, भाव है ,कशिश है,वियोग है, जबाब नहीं ! ये गीत उन्होने फिल्म" नई उमर की नई फसल " के लिये भी दिया l
"कांरवां गुज़र गया गुबार देखते रहे"
स्वप्न झरे फूल से
मीत चुभे शूल से,
लुट गये सिंगार सभी
बाग के बबूल से
और हम खड़े-खड़े
बहार देखते रहे,
कांरवां गुज़र गया
गुबार देखते रहे l
नींद भी खुली न थी
कि हाय धूप ढल गई
पांव जब तलक उठे
कि जिन्दगी फिसल गई,
पात-पात झर गये
कि शाख-शाख जल गई
चाह तो निकल सकी न
पर उमर निकल गई,
साथ के सभी दीये
धुंआं पहन-पहन गए
और हम झुके-झुके
मोड़ पर रूके-रूके
उम्र के चढाव का
उतार देखते रहे,
कांरवां गुज़र गया
गुबार देखते रहे l
क्या शबाब था कि
फूल-फूल प्यार कर उठा
क्या जमाल था कि
देख आईना मचल उठा,
इस तरफ जमीन और
आसमां उधर उठा
थाम कर ज़िगर उठा कि
जो मिला नज़र उठा,
एक दिन मगर यहां
ऐसी कुछ हवा चली
लुट गई कली-कली
कि घुट गई गली-गली
और हम लुटे-लुटे
वक्त से पिटे-पिटे
सांस की शराब का
खुमार देखते रहे,
कांरवां गुज़र गया
गुबार देखते रहे l
हाथ जो मिले कि
जुल्फ चांद की संवार दूं
होठ जो खुले कि
हर बहार को पुकार लूं,
दर्द था दिया गया कि
हर दुखी को प्यार दूं
और सांस यूं कि
स्वर्ग भूमि पर उतार दूं,
हो सका न कुछ मगर
शाम बन गई स़हर
वह उठी लहर कि
ढह गये किले बिखर-बिखर
और हम डरे-डरे
नीर नैन में भरे
ओढकर कफ़न पड़े
मज़ार देखते रहे,
कांरवां गुज़र गया
गुबार देखते रहे l
मांग भर चली कि एक
जब नई-नई किरन
ढोलकें ढुमक उठी
ठुमक उठे चरन-चरन,
शोर मच उठा कि
लो चली दुल्हन-चली दुल्हन
गांव सब उमड़ पड़ा
बह उठे नयन-नयन,
पर तभी ज़हर भरी
ग़ाज एक वह गिरी
पुँछ गया सिंदूर तार-तार
और हम अजान से
पास के मकान से
पालकी लिये हुए
कहार देखते रहे,
कांरवां गुज़र गया
गुबार देखते रहे l
________ नीरज
द्वारा श्रीलाल जोशी "श्री "
(तेजरासर) मैसूरु
९४८२८८८२१५
यादें बड़ी अनमोल होती हैं,वो जब ज़हन में आती हैं तो व्यक्ति फिर से अपनें बचपन, अपनी जवानी में घूम आता है l
दयानन्द एंग्लों वैदिक महाविद्यालय(डीएवी कॉलेज) कानपुर, जहां से मैनें १९७९-८४ में ग्रेजुएसन,पोस्ट ग्रेजुएसन व एक वर्ष लॉ की पढाई की, जहां हमें वो कमरा भी देखनें को मिलता था जहां अटल जी की यादें भी जुड़ी है, जहां मेरे पृणेता, गुरू, गोपालदास जी नीरज जी की भी यादें जुडी हुई है lअटलजी ने यहां अपनी पढाई पूरी की और शायद वहीं से उनका राष्ट्रप्रेम परवान भी चढा होगा क्योंकि वो जगह क्रान्तिकारियों की कर्म भूमि थी l क्रान्तिकारी पत्रकार गणेशशंकर विद्यार्थी,चन्द्रशेखर आजाद की कर्म भूमि वही जगह है, पास में गंगा नदी व उस पार उन्नाव शहर यानि क्रांतिकारियों का स्वर्ग l हम सुनते थे कि वहीं पास में फीलखाना में एक काफी बडी बिल्डिग थी जहां से एक सुरंग बनाई गई थी जो गंगा नदी के पास निकलती थी और उसी बिल्डिग से क्रांन्तकारी अपनी योजनाएं क्रियान्वित करते थे l वहां मेरी भूआ जी का परिवार लगभग ३० साल रहा, वास्तव में बडी भूलभूलैया बिल्डिंग थी अब है या नहीं l पता नही, पास मे ही जुग्गीलाल कमलापत सिघानिया ( जे. के. ग्रुप) की गद्दी थी ( कमला टावर) l
मै बात यादों की कर रहा था व साथ में डीएवी कॉलेज की याद की जहां नीरज जी ने अपनी सफलता का सफर शुऱू किया, हम सुनते थे कि नीरज जी जब यहां कार्य करते थे उन दिनों में ही कानपुर के लोग उनके गीतों के कायल हो चुके थे l
यही बात मेरे भी ज़हन में थी कि नीरज जी के गीतों में क्या है जो मेरे से पहले की पीढी इतनी दीवानी है और जब उनकी " नीरज की पाती" मैनें पढी तो पता चला कि कितना रस है उनके गीतों में l उन्हीं गीतों में से एक गीत जो मुझे बहुत ही पसंद है यहां प्रस्तुत कर रहां हूं, पढिये क्या शब्द है, भाव है ,कशिश है,वियोग है, जबाब नहीं ! ये गीत उन्होने फिल्म" नई उमर की नई फसल " के लिये भी दिया l
"कांरवां गुज़र गया गुबार देखते रहे"
स्वप्न झरे फूल से
मीत चुभे शूल से,
लुट गये सिंगार सभी
बाग के बबूल से
और हम खड़े-खड़े
बहार देखते रहे,
कांरवां गुज़र गया
गुबार देखते रहे l
नींद भी खुली न थी
कि हाय धूप ढल गई
पांव जब तलक उठे
कि जिन्दगी फिसल गई,
पात-पात झर गये
कि शाख-शाख जल गई
चाह तो निकल सकी न
पर उमर निकल गई,
साथ के सभी दीये
धुंआं पहन-पहन गए
और हम झुके-झुके
मोड़ पर रूके-रूके
उम्र के चढाव का
उतार देखते रहे,
कांरवां गुज़र गया
गुबार देखते रहे l
क्या शबाब था कि
फूल-फूल प्यार कर उठा
क्या जमाल था कि
देख आईना मचल उठा,
इस तरफ जमीन और
आसमां उधर उठा
थाम कर ज़िगर उठा कि
जो मिला नज़र उठा,
एक दिन मगर यहां
ऐसी कुछ हवा चली
लुट गई कली-कली
कि घुट गई गली-गली
और हम लुटे-लुटे
वक्त से पिटे-पिटे
सांस की शराब का
खुमार देखते रहे,
कांरवां गुज़र गया
गुबार देखते रहे l
हाथ जो मिले कि
जुल्फ चांद की संवार दूं
होठ जो खुले कि
हर बहार को पुकार लूं,
दर्द था दिया गया कि
हर दुखी को प्यार दूं
और सांस यूं कि
स्वर्ग भूमि पर उतार दूं,
हो सका न कुछ मगर
शाम बन गई स़हर
वह उठी लहर कि
ढह गये किले बिखर-बिखर
और हम डरे-डरे
नीर नैन में भरे
ओढकर कफ़न पड़े
मज़ार देखते रहे,
कांरवां गुज़र गया
गुबार देखते रहे l
मांग भर चली कि एक
जब नई-नई किरन
ढोलकें ढुमक उठी
ठुमक उठे चरन-चरन,
शोर मच उठा कि
लो चली दुल्हन-चली दुल्हन
गांव सब उमड़ पड़ा
बह उठे नयन-नयन,
पर तभी ज़हर भरी
ग़ाज एक वह गिरी
पुँछ गया सिंदूर तार-तार
और हम अजान से
पास के मकान से
पालकी लिये हुए
कहार देखते रहे,
कांरवां गुज़र गया
गुबार देखते रहे l
________ नीरज
द्वारा श्रीलाल जोशी "श्री "
(तेजरासर) मैसूरु
९४८२८८८२१५
नमन-भावो के मोती
दिनांक21/07/2019
गोपालदास नीरज जी के सम्मान में...
हम सबके लिए सबसे बड़ी बात यह है कि हम लोगों ने महान साहित्यकार कवि गोपाल दास नीरज के युग में जन्म लिया है चंद लाइने उनके सम्मान में समर्पित है...........
जब कभी टूटेंगे भाखड़ा के तटबंध
जब कभी रुठेंगे तलवंडी नानक के छंद।
सृजन करने उतरेंगे नीरज के मुक्त कंठ।
आजादी के दुल्हन का प्रथम चुंबन कौन करेगा......?
मांग सिंदूरी रक्त के घनीभूत बूँदों से कौन भरेगा......?
कफन सेज पर चिर निद्रा मे शयन कौन करेगा.......?
नीर नयन में नीरज के अश्रुपूरित कौन भरेगा..........?
नीरज का काव्य कारवां बरखानो में,तूफानों मे
नील गगन मे सदैव मदमस्त रहेगा......................
इकबाल बुलंदी नीरज का अनंत रहेगा................
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
दिनांक21/07/2019
गोपालदास नीरज जी के सम्मान में...
हम सबके लिए सबसे बड़ी बात यह है कि हम लोगों ने महान साहित्यकार कवि गोपाल दास नीरज के युग में जन्म लिया है चंद लाइने उनके सम्मान में समर्पित है...........
जब कभी टूटेंगे भाखड़ा के तटबंध
जब कभी रुठेंगे तलवंडी नानक के छंद।
सृजन करने उतरेंगे नीरज के मुक्त कंठ।
आजादी के दुल्हन का प्रथम चुंबन कौन करेगा......?
मांग सिंदूरी रक्त के घनीभूत बूँदों से कौन भरेगा......?
कफन सेज पर चिर निद्रा मे शयन कौन करेगा.......?
नीर नयन में नीरज के अश्रुपूरित कौन भरेगा..........?
नीरज का काव्य कारवां बरखानो में,तूफानों मे
नील गगन मे सदैव मदमस्त रहेगा......................
इकबाल बुलंदी नीरज का अनंत रहेगा................
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
"नमन भावों के मोती"
21 /07 /19 --रविवार
आज का शीर्षक
"गोपाल दास नीरज जी विशेष"
=======================
परम आदरणीय श्रद्धेय स्व० "नीरज" जी की प्रसिद्द ग़ज़ल के मत्ले पर एक ग़ज़ल का साहस(बेबह्र)
मत्ला -"जितना कम सामान रहेगा,
उतना सफ़र आसान रहेगा।"
''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
जितना कम... . सामान रहेगा,
उतना सफर.. . . आसान रहेगा।
अपने घर को,. लौट भी चल तू,
कब तक यूँ. . . मेहमान रहेगा।
सुख के सपने. .. भूल जा बन्दे,
दिल में अग़र .. .अरमान रहेगा।
राजनीति ग़र.... .. यही रही तो,
मुल्क ये बन के....मसान रहेगा।
झुक सकता है ख़ुदा भी,.. प्यारे,
दिल में अग़र ..... ईमान रहेगा।
चाह, चाहतों की,.. .. . छूटी तो,
बनकर तू ..... सुल्तान रहेगा।
पत्थर है, या,.... . . है वो इंसां,
आंसू ही .... ... पहचान रहेगा।
सूरज, कितने भी रखना,.. पर,
जुगनू से भी ... ... काम रहेगा।
====================
"दिनेश प्रताप सिंह चौहान"
(स्वरचित)
एटा --यूपी
21 /07 /19 --रविवार
आज का शीर्षक
"गोपाल दास नीरज जी विशेष"
=======================
परम आदरणीय श्रद्धेय स्व० "नीरज" जी की प्रसिद्द ग़ज़ल के मत्ले पर एक ग़ज़ल का साहस(बेबह्र)
मत्ला -"जितना कम सामान रहेगा,
उतना सफ़र आसान रहेगा।"
''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
जितना कम... . सामान रहेगा,
उतना सफर.. . . आसान रहेगा।
अपने घर को,. लौट भी चल तू,
कब तक यूँ. . . मेहमान रहेगा।
सुख के सपने. .. भूल जा बन्दे,
दिल में अग़र .. .अरमान रहेगा।
राजनीति ग़र.... .. यही रही तो,
मुल्क ये बन के....मसान रहेगा।
झुक सकता है ख़ुदा भी,.. प्यारे,
दिल में अग़र ..... ईमान रहेगा।
चाह, चाहतों की,.. .. . छूटी तो,
बनकर तू ..... सुल्तान रहेगा।
पत्थर है, या,.... . . है वो इंसां,
आंसू ही .... ... पहचान रहेगा।
सूरज, कितने भी रखना,.. पर,
जुगनू से भी ... ... काम रहेगा।
====================
"दिनेश प्रताप सिंह चौहान"
(स्वरचित)
एटा --यूपी
नमन मंच। नमस्कार गुरुजनों, मित्रों।
गोपालदास जी नीरज के सम्मान में--
कवियों में कवि एक थे,
मीठी भी थी जिनकी वाणी।
बारम्बार प्रणाम करुं उनको,
वे थे बड़े स्वाभिमानी।
रोता छोड़ गये जगत को,
चले गए दुनियां से।
देकर गये संदेश हमें वे,
कभी ना हटना अपने पथ से।
कवि जगत की शान थे वे,
कविवर बड़े महान थे वे।
याद करेगी दुनियां उनको,
जबतक नभ में चांद, सितारे।
शीश नवायेंगे हम उनको,
वे थे हमारे पूज्यवर प्यारे।
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
गोपालदास जी नीरज के सम्मान में--
कवियों में कवि एक थे,
मीठी भी थी जिनकी वाणी।
बारम्बार प्रणाम करुं उनको,
वे थे बड़े स्वाभिमानी।
रोता छोड़ गये जगत को,
चले गए दुनियां से।
देकर गये संदेश हमें वे,
कभी ना हटना अपने पथ से।
कवि जगत की शान थे वे,
कविवर बड़े महान थे वे।
याद करेगी दुनियां उनको,
जबतक नभ में चांद, सितारे।
शीश नवायेंगे हम उनको,
वे थे हमारे पूज्यवर प्यारे।
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
नीरज जी ने दिनकर जी को अपनी एक रचना समर्पित की थी।नाम था **गीतकार का जन्म**
जब गीतकार जन्मा धरती बन गई गोद
हो उठा पवन चंचल झूलना झुलाने को
भौरों ने दिशि दिशि गूँज बजाई शहनाई
आई सुहागिनी कोयल सोहर गाने को।
शबनम ने स्नान कराया मोती के जल से
पहनाये आकर वस्त्र बसन्त बहारों ने
निशि ने आँजा काजल ऊषा ने रचे होठ
पठवाये खील खिलौने चाँद सितारों ने।
मैंने इससे प्रेरित होकर अपनी शैली में एक कविता लिखी
**इंजीनियर का जन्म** यह मैंने फेस बुक में भी लोड करी।
नीरज जी को विनम्र श्रद्धाँजली
जब गीतकार जन्मा धरती बन गई गोद
हो उठा पवन चंचल झूलना झुलाने को
भौरों ने दिशि दिशि गूँज बजाई शहनाई
आई सुहागिनी कोयल सोहर गाने को।
शबनम ने स्नान कराया मोती के जल से
पहनाये आकर वस्त्र बसन्त बहारों ने
निशि ने आँजा काजल ऊषा ने रचे होठ
पठवाये खील खिलौने चाँद सितारों ने।
मैंने इससे प्रेरित होकर अपनी शैली में एक कविता लिखी
**इंजीनियर का जन्म** यह मैंने फेस बुक में भी लोड करी।
नीरज जी को विनम्र श्रद्धाँजली
दिनांक -21/7/2019
दिन- रविवार
💕 शीर्षक -अकेलापन 💕
अकेलेपन से मैंने आज दोस्ती कर ली,
ना कोई प्यार ना रिश्तेदार,
जिसे देखो वो मतलब का यार,
कोई धन चाहे,
कोई तन चाहे,
हर कोई अपनी चाहत लिए
बैठा है,
फरेब और बेईमानी लिए बैठा है,
विश्वास देके विश्वास तोड़ता है,
स्वार्थ में ही नेह जोड़ता है
ऐसे रिश्ते से मैंने रुखसती कर ली,
अकेलेपन से मैंने दोस्ती कर ली,
तन्हाई मुझे रुलाती नही,
बेबसी अब सताती नही
अब मेरा उसका साथ हो चला है
खूबसूरत ये एहसास हो चला है,
ये तोड़ता नही दिल दोस्तों की तरह
ना ही छलता है छलिया की तरह,
ये मेरे साथ रोता मुस्कुराता है
जो चाहूँ हूँ वही सपने दिखाता है,
जब सबने मुझे लूटा,तोडा तड़पाया
तब इसने मेरा हौसला बढ़ाया,
तब से मैंने इसलिए,
इसकी चाहत,इसकी ही
सरपरस्ती कर ली
अकेलेपन से मैंने दोस्ती कर ली
💕🙏🏻स्वरचित- हेमा जोशी
दिन- रविवार
💕 शीर्षक -अकेलापन 💕
अकेलेपन से मैंने आज दोस्ती कर ली,
ना कोई प्यार ना रिश्तेदार,
जिसे देखो वो मतलब का यार,
कोई धन चाहे,
कोई तन चाहे,
हर कोई अपनी चाहत लिए
बैठा है,
फरेब और बेईमानी लिए बैठा है,
विश्वास देके विश्वास तोड़ता है,
स्वार्थ में ही नेह जोड़ता है
ऐसे रिश्ते से मैंने रुखसती कर ली,
अकेलेपन से मैंने दोस्ती कर ली,
तन्हाई मुझे रुलाती नही,
बेबसी अब सताती नही
अब मेरा उसका साथ हो चला है
खूबसूरत ये एहसास हो चला है,
ये तोड़ता नही दिल दोस्तों की तरह
ना ही छलता है छलिया की तरह,
ये मेरे साथ रोता मुस्कुराता है
जो चाहूँ हूँ वही सपने दिखाता है,
जब सबने मुझे लूटा,तोडा तड़पाया
तब इसने मेरा हौसला बढ़ाया,
तब से मैंने इसलिए,
इसकी चाहत,इसकी ही
सरपरस्ती कर ली
अकेलेपन से मैंने दोस्ती कर ली
💕🙏🏻स्वरचित- हेमा जोशी
नमन मंच
दिनांक ... 21/7/2019
विषय.. स्वर्गीय गीतकार गोपाल दास ''नीरज''
की प्रथम पुण्यतिथि पे शेर की शब्द श्रद्धाजंलि
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
कुछ कालजयी से लोग हुए,
जो जाते नही कभी जग से।
वो युगों-युगों तक जिन्दा है,
अपने वचनों और कर्मो से॥
....
ये शब्द सुमन मेरे अर्पित,
गोपाल दास कवि नीरज को।
ये शेर का वन्दन अभिनन्दन,
कवियो में श्रेष्ठ निरंजन को॥
.....
जिस गीतकार ने तम देखा,
अभाव का निर्जन वन देखा।
पर डिगा नही पथ कर्मो से,
उत्कर्ष का चरम शिखर देखा॥
.....
यह पुण्य तिथि का प्रथम वर्ष,
जब साथ नही है वो जग में।
भावों के मोती झलक रहे,
है शेर के इस अन्तर्मन में॥
.....
अब नमन तुम्हे हे चन्द्र बिन्दू,
गीतो के सागर क्षीर सिन्धु।
ये शब्द कुसुम स्वीकार करो,
मन शेर का विचलित सा है किन्तु॥
....
स्वरचित एंव मौलिक
शेर सिंह सर्राफ
दिनांक ... 21/7/2019
विषय.. स्वर्गीय गीतकार गोपाल दास ''नीरज''
की प्रथम पुण्यतिथि पे शेर की शब्द श्रद्धाजंलि
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
कुछ कालजयी से लोग हुए,
जो जाते नही कभी जग से।
वो युगों-युगों तक जिन्दा है,
अपने वचनों और कर्मो से॥
....
ये शब्द सुमन मेरे अर्पित,
गोपाल दास कवि नीरज को।
ये शेर का वन्दन अभिनन्दन,
कवियो में श्रेष्ठ निरंजन को॥
.....
जिस गीतकार ने तम देखा,
अभाव का निर्जन वन देखा।
पर डिगा नही पथ कर्मो से,
उत्कर्ष का चरम शिखर देखा॥
.....
यह पुण्य तिथि का प्रथम वर्ष,
जब साथ नही है वो जग में।
भावों के मोती झलक रहे,
है शेर के इस अन्तर्मन में॥
.....
अब नमन तुम्हे हे चन्द्र बिन्दू,
गीतो के सागर क्षीर सिन्धु।
ये शब्द कुसुम स्वीकार करो,
मन शेर का विचलित सा है किन्तु॥
....
स्वरचित एंव मौलिक
शेर सिंह सर्राफ
नमन मंच भावों के मोती
21-07-2019
कवि नीरज के लिए कुछ पंक्ति ....
श्रद्धा सुमन के .....
*है.... कारवां साथ साथ *
===================
काव्याकाश के एक चमकते....
सितारे का हो गया अवसान--आज
जो था कोमल कमल समान
और सच्चा था कृष्णा समान
तभी तो कहलाता था... गोपाला
जब भी निकलता था वह......
काव्याकाश के क्षितिज पर.. तब
भी चलता था -कारवां साथ साथ
और
आज जब अस्त हुआ,,, तब भी चला
कारवां साथ साथ.... रह गये पीछे...गुबार
शशि कांत श्रीवास्तव
स्वरचित मौलिक रचना
#सर्वाधिकार सुरक्षित
21-07-2019
कवि नीरज के लिए कुछ पंक्ति ....
श्रद्धा सुमन के .....
*है.... कारवां साथ साथ *
===================
काव्याकाश के एक चमकते....
सितारे का हो गया अवसान--आज
जो था कोमल कमल समान
और सच्चा था कृष्णा समान
तभी तो कहलाता था... गोपाला
जब भी निकलता था वह......
काव्याकाश के क्षितिज पर.. तब
भी चलता था -कारवां साथ साथ
और
आज जब अस्त हुआ,,, तब भी चला
कारवां साथ साथ.... रह गये पीछे...गुबार
शशि कांत श्रीवास्तव
स्वरचित मौलिक रचना
#सर्वाधिकार सुरक्षित
नीरज जी को उनके बरसी पर नमन और श्रृद्धा सुमन।
नीरज जी मेरे पसंदीदा कवि रहे हैं ,मैंने दो-तीन बार उनके स्टेज प्रोग्राम देखें हैं ।
वे जब स्टेज पर माईक पकड़ते थे तालियों से पुरा सभागार गूंज उठता था ।
उनकी रचनाओं में जो गेयता है वो आसारण है उनकी काफी कविताओं को हम अपने अंदाज में गुनगुना सकते हैं ,एक बार मैंने उन्हें कारवां गुज़र गया कि फ़रमाइश भिजवाई तो उन्होंने बेबाक कहा "कारवां गुज़र गया "
"चित्रपट पर जिस अंदाज से पेश किया गया है मैं वैसा कभी नहीं गाता मैं इसे अपने अंदाज में पेश करूंगा"
फिर उन्होंने "कारवां गुज़र गया" सुनाया पुरा सभागार मंत्र- मुग्ध था ,और अंत में तालियों की गड़गड़ाहट से पुरा सभागृह कितनी देर तक गूंजता रहा। उनकी आवाज और कविता पाठ में जो खनक थी बहुत कम कवियों के पास वो माधुर्य और सरसता होती है ।
उनकी कविताओं में प्रेम समर्पण और प्रेम निवेदन तो था ही साथ ही सामायिक हर विषय पर गहरा चिंतन था ।यथार्थ सदा उनकी कलम की नोक पर होता था ।वे बेधड़क कोई भी सत्य कहने से नहीं हिचकते थे ।
बिंदास और बेबाक कवि रस माधुर्य और काव्यात्मता में उत्कृष्ट।
स्वलेखन
कुसुम कोठारी।
उनका एक प्रिय गीत जो मुझे भी बहुत अच्छा लगता है ।
"मैं पीड़ा का राजकुँवर हूँ"
गोपालदास नीरज।
मैं पीड़ा का राजकुँवर हूँ तुम शहज़ादी रूप नगर की
हो भी गया प्यार हम में तो बोलो मिलन कहाँ पर होगा ?
मीलों जहाँ न पता खुशी का
मैं उस आँगन का इकलौता,
तुम उस घर की कली जहाँ नित
होंठ करें गीतों का न्योता,
मेरी उमर अमावस काली और तुम्हारी पूनम गोरी
मिल भी गई राशि अपनी तो बोलो लगन कहाँ पर होगा ?
मैं पीड़ा का…
मेरा कुर्ता सिला दुखों ने
बदनामी ने काज निकाले
तुम जो आँचल ओढ़े उसमें
नभ ने सब तारे जड़ डाले
मैं केवल पानी ही पानी तुम केवल मदिरा ही मदिरा
मिट भी गया भेद तन का तो मन का हवन कहाँ पर होगा ?
मैं पीड़ा का…
मैं जन्मा इसलिए कि थोड़ी
उम्र आँसुओं की बढ़ जाए
तुम आई इस हेतु कि मेंहदी
रोज़ नए कंगन जड़वाए,
तुम उदयाचल, मैं अस्ताचल तुम सुखान्तकी, मैं दुखान्तकी
जुड़ भी गए अंक अपने तो रस-अवतरण कहाँ पर होगा ?
मैं पीड़ा का…
इतना दानी नहीं समय जो
हर गमले में फूल खिला दे,
इतनी भावुक नहीं ज़िन्दगी
हर ख़त का उत्तर भिजवा दे,
मिलना अपना सरल नहीं है फिर भी यह सोचा करता हूँ
जब न आदमी प्यार करेगा जाने भुवन कहाँ पर होगा ?
मैं पीड़ा का…
नीरज जी मेरे पसंदीदा कवि रहे हैं ,मैंने दो-तीन बार उनके स्टेज प्रोग्राम देखें हैं ।
वे जब स्टेज पर माईक पकड़ते थे तालियों से पुरा सभागार गूंज उठता था ।
उनकी रचनाओं में जो गेयता है वो आसारण है उनकी काफी कविताओं को हम अपने अंदाज में गुनगुना सकते हैं ,एक बार मैंने उन्हें कारवां गुज़र गया कि फ़रमाइश भिजवाई तो उन्होंने बेबाक कहा "कारवां गुज़र गया "
"चित्रपट पर जिस अंदाज से पेश किया गया है मैं वैसा कभी नहीं गाता मैं इसे अपने अंदाज में पेश करूंगा"
फिर उन्होंने "कारवां गुज़र गया" सुनाया पुरा सभागार मंत्र- मुग्ध था ,और अंत में तालियों की गड़गड़ाहट से पुरा सभागृह कितनी देर तक गूंजता रहा। उनकी आवाज और कविता पाठ में जो खनक थी बहुत कम कवियों के पास वो माधुर्य और सरसता होती है ।
उनकी कविताओं में प्रेम समर्पण और प्रेम निवेदन तो था ही साथ ही सामायिक हर विषय पर गहरा चिंतन था ।यथार्थ सदा उनकी कलम की नोक पर होता था ।वे बेधड़क कोई भी सत्य कहने से नहीं हिचकते थे ।
बिंदास और बेबाक कवि रस माधुर्य और काव्यात्मता में उत्कृष्ट।
स्वलेखन
कुसुम कोठारी।
उनका एक प्रिय गीत जो मुझे भी बहुत अच्छा लगता है ।
"मैं पीड़ा का राजकुँवर हूँ"
गोपालदास नीरज।
मैं पीड़ा का राजकुँवर हूँ तुम शहज़ादी रूप नगर की
हो भी गया प्यार हम में तो बोलो मिलन कहाँ पर होगा ?
मीलों जहाँ न पता खुशी का
मैं उस आँगन का इकलौता,
तुम उस घर की कली जहाँ नित
होंठ करें गीतों का न्योता,
मेरी उमर अमावस काली और तुम्हारी पूनम गोरी
मिल भी गई राशि अपनी तो बोलो लगन कहाँ पर होगा ?
मैं पीड़ा का…
मेरा कुर्ता सिला दुखों ने
बदनामी ने काज निकाले
तुम जो आँचल ओढ़े उसमें
नभ ने सब तारे जड़ डाले
मैं केवल पानी ही पानी तुम केवल मदिरा ही मदिरा
मिट भी गया भेद तन का तो मन का हवन कहाँ पर होगा ?
मैं पीड़ा का…
मैं जन्मा इसलिए कि थोड़ी
उम्र आँसुओं की बढ़ जाए
तुम आई इस हेतु कि मेंहदी
रोज़ नए कंगन जड़वाए,
तुम उदयाचल, मैं अस्ताचल तुम सुखान्तकी, मैं दुखान्तकी
जुड़ भी गए अंक अपने तो रस-अवतरण कहाँ पर होगा ?
मैं पीड़ा का…
इतना दानी नहीं समय जो
हर गमले में फूल खिला दे,
इतनी भावुक नहीं ज़िन्दगी
हर ख़त का उत्तर भिजवा दे,
मिलना अपना सरल नहीं है फिर भी यह सोचा करता हूँ
जब न आदमी प्यार करेगा जाने भुवन कहाँ पर होगा ?
मैं पीड़ा का…
नमन "भावो के मोती"
21/07/2019
"गोपाल दास नीरज" जी के चरणों में शत-शत नमन🙏
-----------------------------------
बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ।
आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ।।
-----------------------------------
2122 2122 2122 2
जाने क्यूं सौ बार मैं तकरार करती हूँ।
रात दिन मैं यूँ ही दिल बीमार करती हूँ।।
बस तुझी से मैं तो आँखें चार करती हूँ।
चाँद पे तेरा ही मैं दीदार करती हूँ।।
ख़्वाब देखें है तेरे इन जागती आँखों से।
और हमेशा जीना मैं दुश्वार करती हूँ।।
सादगी को देखा जबसे आँखों ने मेरी।
शान ओ शौकत का मैं इंकार करती हूँ।।
लाखों इंसा भी देखें हैं दूनिया में पर।
सच कहूँ मैं तो सिर्फ तुझी से प्यार करती हूँ।।
जिंदगी में जो मिला है साथ ये तेरा।
रब का मैं आभार स्वीकार करती हूँ।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।
21/07/2019
"गोपाल दास नीरज" जी के चरणों में शत-शत नमन🙏
-----------------------------------
बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ।
आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ।।
-----------------------------------
2122 2122 2122 2
जाने क्यूं सौ बार मैं तकरार करती हूँ।
रात दिन मैं यूँ ही दिल बीमार करती हूँ।।
बस तुझी से मैं तो आँखें चार करती हूँ।
चाँद पे तेरा ही मैं दीदार करती हूँ।।
ख़्वाब देखें है तेरे इन जागती आँखों से।
और हमेशा जीना मैं दुश्वार करती हूँ।।
सादगी को देखा जबसे आँखों ने मेरी।
शान ओ शौकत का मैं इंकार करती हूँ।।
लाखों इंसा भी देखें हैं दूनिया में पर।
सच कहूँ मैं तो सिर्फ तुझी से प्यार करती हूँ।।
जिंदगी में जो मिला है साथ ये तेरा।
रब का मैं आभार स्वीकार करती हूँ।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।
प्रसिद्ध कवि श्री गोपालदास जी नीरज जी को उनके जन्मदिवस पर शत् शत् नमन 🙏
श्री गोपालदास जी की लिखी हुई मेरी पसंदीदा गीत जो मुझे बेहद पसंद है,में यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ।
स्वप्न झरे फूल से
मीत चुभे शूल से
लुट गए सिंगार सभी बाग के बबूल से
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे
कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे
नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई
पांव जब तलक उठें कि जिंदगी फिसल गई
पात-पात झर गए कि शाख-शाख जल गई
चाह तो निकल सकी न, पर उमर निकल गई
गीत अश्क बन गए
छंद हो दफन गए
साथ के सभी दिए धुआं-धुआं पहन गए,
और हम झुके-झुके
मोड़ पर रुके-रुके
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे
कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे
हाथ थे मिले कि जुल्फ चांद की संवार दूं
होठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूं
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूं
और सांस यों कि स्वर्ग भूमि पर उतार दूं
हो सका न कुछ मगर
शाम बन गई सहर,
वह उठी लहर कि ढह गये किले बिखर-बिखर
और हम डरे-डरे नीर नैन में भरे
ओढ़कर कफन पड़े मजार देखते रहे
कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे🏵आदरणीय कवि श्री गोपालदास नीरज 🏵
श्री गोपालदास जी की लिखी हुई मेरी पसंदीदा गीत जो मुझे बेहद पसंद है,में यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ।
स्वप्न झरे फूल से
मीत चुभे शूल से
लुट गए सिंगार सभी बाग के बबूल से
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे
कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे
नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई
पांव जब तलक उठें कि जिंदगी फिसल गई
पात-पात झर गए कि शाख-शाख जल गई
चाह तो निकल सकी न, पर उमर निकल गई
गीत अश्क बन गए
छंद हो दफन गए
साथ के सभी दिए धुआं-धुआं पहन गए,
और हम झुके-झुके
मोड़ पर रुके-रुके
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे
कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे
हाथ थे मिले कि जुल्फ चांद की संवार दूं
होठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूं
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूं
और सांस यों कि स्वर्ग भूमि पर उतार दूं
हो सका न कुछ मगर
शाम बन गई सहर,
वह उठी लहर कि ढह गये किले बिखर-बिखर
और हम डरे-डरे नीर नैन में भरे
ओढ़कर कफन पड़े मजार देखते रहे
कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे🏵आदरणीय कवि श्री गोपालदास नीरज 🏵
भावों के मोती,
#दिनांक"२१*७*२०१९,
#विषय"गोपाल दास नीरज,
#विधा, काव्य,
#रचनाकार,दुर्गा सिलगीवाला सोनी,
***गीतों के सरताज***
ओ गीतों के सरताज,
तुम बिन सूना सूना है हर साज़,
थके थके से हैं ढोल मंजीरे,
रुंधी रुंधी तानसेन की आवाज,
तेरे मुक्त सृजन से गीत बने थे,
गजलों से सजी तेरी रूबाइयां,
महफिलें अब सूनी सूनी हैं,
अब खलने सी लगीं हैं तन्हाइयां,
तान अब कैसी छेड़ी जाय,
देते साज अतीत की दुहाइयां,
रूठ गए हैं मृदंग और तबले,
रोने सी लगीं हैं शहनाइयां,
नज़्मों में रौनक तुमसे ही थी,
गुम सी गई है गहराइयां,
बिन तेरे महफ़िल सजती नहीं,
डसती हैं यादों की परछाइयां,
#दिनांक"२१*७*२०१९,
#विषय"गोपाल दास नीरज,
#विधा, काव्य,
#रचनाकार,दुर्गा सिलगीवाला सोनी,
***गीतों के सरताज***
ओ गीतों के सरताज,
तुम बिन सूना सूना है हर साज़,
थके थके से हैं ढोल मंजीरे,
रुंधी रुंधी तानसेन की आवाज,
तेरे मुक्त सृजन से गीत बने थे,
गजलों से सजी तेरी रूबाइयां,
महफिलें अब सूनी सूनी हैं,
अब खलने सी लगीं हैं तन्हाइयां,
तान अब कैसी छेड़ी जाय,
देते साज अतीत की दुहाइयां,
रूठ गए हैं मृदंग और तबले,
रोने सी लगीं हैं शहनाइयां,
नज़्मों में रौनक तुमसे ही थी,
गुम सी गई है गहराइयां,
बिन तेरे महफ़िल सजती नहीं,
डसती हैं यादों की परछाइयां,
नमन मंच
द्वितीय प्रस्तुति
आज कवि नीरज जी की पुण्य तिथि पर उन्हे याद किया पढ़ा पढ़कर कुछ संदेश मिला । शायर कोई भी हो कवि नीरज जी या हसरत जयपुरी या कोई अन्य ..कोई प्रेमिका का आना आकर दिल को झकझोर जाना सुनिश्चित है
प्रस्तुत है कुछ पंक्तियों में ये भाव
जब कोई शायर जन्मता
तो कोई प्रेमिका जन्मती ।।
बिन प्रेमिका कोई कविता
न कोई शायरी जन्मती ।।
दो दिल साथ मिलाने की
रब की कोशिश बलवती ।।
जग ये जाने क्यों जाने न
जग को बात ये न पचती ।।
कौन मंजिल किसकी कहाँ
पर अपनी बुनियाद रखती ।।
'शिवम' शायरों के किस्से ये
मेरे भी दिल में कोई हँसती ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 21/07/2019
द्वितीय प्रस्तुति
आज कवि नीरज जी की पुण्य तिथि पर उन्हे याद किया पढ़ा पढ़कर कुछ संदेश मिला । शायर कोई भी हो कवि नीरज जी या हसरत जयपुरी या कोई अन्य ..कोई प्रेमिका का आना आकर दिल को झकझोर जाना सुनिश्चित है
प्रस्तुत है कुछ पंक्तियों में ये भाव
जब कोई शायर जन्मता
तो कोई प्रेमिका जन्मती ।।
बिन प्रेमिका कोई कविता
न कोई शायरी जन्मती ।।
दो दिल साथ मिलाने की
रब की कोशिश बलवती ।।
जग ये जाने क्यों जाने न
जग को बात ये न पचती ।।
कौन मंजिल किसकी कहाँ
पर अपनी बुनियाद रखती ।।
'शिवम' शायरों के किस्से ये
मेरे भी दिल में कोई हँसती ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 21/07/2019
नमन मंच
श्रद्धेय नीरज जी को कोटिस नमन
दिनांक २१/७/२०१९
काव्य जगत के शिरोमणि
शत शत नमन करूँ मैं आज
संघर्ष,विभावरी,बदरा बरस गये,
ये सब अमर कृति है आपकी।
चाहत के आहो को सुन्दर गीतों में
पिरोने की अद्भुत कला निराली
एकांत में सुनने को जी चाहे
ऐसी सारी कृति आपकी।
"हर पल को छक कर जिओ
न जाने कौन सा अंतिम पल हो"
मूलमंत्र हमें दिया आपने
नश्वर जगत में शाश्वत गीत आपकी।
"किसी की आँख खुल गई
किसी को नींद आ गई"
जीवन मृत्यु पर सुन्दर पंक्तियां
लिखने वाले क्यों चले गये हमें रोता छोड़ कर।
क्यों चले गये हमें रोता छोड़ कर।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
श्रद्धेय नीरज जी को कोटिस नमन
दिनांक २१/७/२०१९
काव्य जगत के शिरोमणि
शत शत नमन करूँ मैं आज
संघर्ष,विभावरी,बदरा बरस गये,
ये सब अमर कृति है आपकी।
चाहत के आहो को सुन्दर गीतों में
पिरोने की अद्भुत कला निराली
एकांत में सुनने को जी चाहे
ऐसी सारी कृति आपकी।
"हर पल को छक कर जिओ
न जाने कौन सा अंतिम पल हो"
मूलमंत्र हमें दिया आपने
नश्वर जगत में शाश्वत गीत आपकी।
"किसी की आँख खुल गई
किसी को नींद आ गई"
जीवन मृत्यु पर सुन्दर पंक्तियां
लिखने वाले क्यों चले गये हमें रोता छोड़ कर।
क्यों चले गये हमें रोता छोड़ कर।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
नमन मंच २१/०७/२०१९
स्व० गोपालदास नीरज जी को विनम्र श्रद्धांजलि
है नमन समर्पित नीरज को ,
हिन्दी काव्य के सूरज को।
आई है जो शून्यता जाने से,
आकर भर दो उसे अपने नगमों से।
बहती थी काव्य सरिता जिसमें,
था प्यार छुपा हर नगमें में
जब शान्त हुआ वह काव्य पुरोधा,
छा गई स्तब्धता कवियों में।
लिख कर चन्द शब्दों के द्वारा
है अर्पित श्रद्धा सुमन मेरे।
ईश्वर चरणों में जगह मिले,
बस इतनी सी है चाह मेरी।
(अशोक राय वत्स) © स्वरचित
जयपुर
स्व० गोपालदास नीरज जी को विनम्र श्रद्धांजलि
है नमन समर्पित नीरज को ,
हिन्दी काव्य के सूरज को।
आई है जो शून्यता जाने से,
आकर भर दो उसे अपने नगमों से।
बहती थी काव्य सरिता जिसमें,
था प्यार छुपा हर नगमें में
जब शान्त हुआ वह काव्य पुरोधा,
छा गई स्तब्धता कवियों में।
लिख कर चन्द शब्दों के द्वारा
है अर्पित श्रद्धा सुमन मेरे।
ईश्वर चरणों में जगह मिले,
बस इतनी सी है चाह मेरी।
(अशोक राय वत्स) © स्वरचित
जयपुर
21 जुलाई 2019
गीत शिरोमणि स्वर्गीय गोपालदास नीरज जी को समर्पित
🙏 🌸 *श्रद्धा सुमन* 🌸
धन्य हुई है हिंदी भाषा, तुम सा गीत रचयिता पाकर ।
श्रद्धा सुमन करें हम अर्पित, तुमको गीत तुम्हारे गाकर ॥
गीत तुम्हारे गूंज रहे हैं, हिंदी प्रेमी रसिकों के मन ।
यश से तुम जीवित हो अब भी, गये नहीं हो तुम तो जाकर ॥
श्रद्धा सुमन करें हम अर्पित, तुमको गीत तुम्हारे गाकर ॥
तुम कवियों के राजा नीरज; बंधा दिया गीतों से धीरज ।
शब्द शब्द में भाव गहन है, भरते हो गागर में सागर ॥
श्रद्धा सुमन करें हम अर्पित, तुमको गीत तुम्हारे गाकर ॥
-अंजुमन 'आरज़ू'©✍
गीत शिरोमणि स्वर्गीय गोपालदास नीरज जी को समर्पित
🙏 🌸 *श्रद्धा सुमन* 🌸
धन्य हुई है हिंदी भाषा, तुम सा गीत रचयिता पाकर ।
श्रद्धा सुमन करें हम अर्पित, तुमको गीत तुम्हारे गाकर ॥
गीत तुम्हारे गूंज रहे हैं, हिंदी प्रेमी रसिकों के मन ।
यश से तुम जीवित हो अब भी, गये नहीं हो तुम तो जाकर ॥
श्रद्धा सुमन करें हम अर्पित, तुमको गीत तुम्हारे गाकर ॥
तुम कवियों के राजा नीरज; बंधा दिया गीतों से धीरज ।
शब्द शब्द में भाव गहन है, भरते हो गागर में सागर ॥
श्रद्धा सुमन करें हम अर्पित, तुमको गीत तुम्हारे गाकर ॥
-अंजुमन 'आरज़ू'©✍
रविवार
21, 7, 2019,
नीरज जी की एक रचना, पर आधारित रचना,
"है बहुत अंधियार अब सूरज निकलना चाहिए ,
जिस तरह भी हो अब ये मौसम बदलना चाहिए ।"
रंगमंच है जिंदगी हमको समझना चाहिए ,
हमें डूबकर किरदार को पेश करना चाहिए ।
सिलसिला मिलकर फिर बिछड़ जाने का चलता रहा ,
दिल की बातों को छुपाकर के न रखना चाहिए ।
चार दिन की है मिली मोहलत हमें संसार में ,
व्यर्थ के अवसाद में ये दिन न कटना चाहिए ।
आदमी को मालिक ने भेजा इबादत के लिए ,
जिंदगी में हमें पराया गम समझना चाहिए ।
साहित्य को समृद्ध बना दिया जिन्होंने यहाँ ,
सम्मान में शीश श्रध्दा से तो झुकना चाहिए ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
नीरज जी की एक रचना, पर आधारित रचना,
"है बहुत अंधियार अब सूरज निकलना चाहिए ,
जिस तरह भी हो अब ये मौसम बदलना चाहिए ।"
रंगमंच है जिंदगी हमको समझना चाहिए ,
हमें डूबकर किरदार को पेश करना चाहिए ।
सिलसिला मिलकर फिर बिछड़ जाने का चलता रहा ,
दिल की बातों को छुपाकर के न रखना चाहिए ।
चार दिन की है मिली मोहलत हमें संसार में ,
व्यर्थ के अवसाद में ये दिन न कटना चाहिए ।
आदमी को मालिक ने भेजा इबादत के लिए ,
जिंदगी में हमें पराया गम समझना चाहिए ।
साहित्य को समृद्ध बना दिया जिन्होंने यहाँ ,
सम्मान में शीश श्रध्दा से तो झुकना चाहिए ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
गीतों के राज कुमार पद्म भूषण स्व० गोपाल दास नीरज जी को मेरी ओर से विनम्र श्रद्धांजली।
**
सांसों की ड़ोर के,
आखिरी मोड़ तक,
सजाए जो भी नग्में,
पहुँचे दिलों की तरह तक,
कारवाँ गीतों का तेरा,
सफर लंबा तय करेगा,
कह गया तू अलविदा,
जगह तेरी कौन भरेगा,
नग्में बेमिशाल देकर,
नैनों का सितारा बन गया,
हर भावों की अभिव्यक्ति की,
जिंदा तू मिशाल बन गया,
एक नीरज बगिया में महका,
ओर दूजा दुनियाँ में नाम कर गया,
तेरे गीत गूँजेगें वहाँ,
प्रेम का जहाँ इजहार होगा,
बहेंगें आँसू जब आँखों से,
तेरे ही नग्मों का साथ होगा,
हो रूखसत दुनियाँ से तू,
आँखों में आँसू छोड़ गया,
मिलने का जो सपना था,
सपना मेरा वो तोड़ गया।
**
स्वरचित-रेखा रविदत्त
21/7/19
रविवार
**
सांसों की ड़ोर के,
आखिरी मोड़ तक,
सजाए जो भी नग्में,
पहुँचे दिलों की तरह तक,
कारवाँ गीतों का तेरा,
सफर लंबा तय करेगा,
कह गया तू अलविदा,
जगह तेरी कौन भरेगा,
नग्में बेमिशाल देकर,
नैनों का सितारा बन गया,
हर भावों की अभिव्यक्ति की,
जिंदा तू मिशाल बन गया,
एक नीरज बगिया में महका,
ओर दूजा दुनियाँ में नाम कर गया,
तेरे गीत गूँजेगें वहाँ,
प्रेम का जहाँ इजहार होगा,
बहेंगें आँसू जब आँखों से,
तेरे ही नग्मों का साथ होगा,
हो रूखसत दुनियाँ से तू,
आँखों में आँसू छोड़ गया,
मिलने का जो सपना था,
सपना मेरा वो तोड़ गया।
**
स्वरचित-रेखा रविदत्त
21/7/19
रविवार
सादर नमन
स्व० गोपाल दास नीरज जी श्रद्धांजली स्वरूप मेरी भेंट
***
सुरों की दुनियाँ के नायक,
तुझे मैं प्रणाम करूँ,
मन के भावों को लेकर ,
गीत ये भेंट करूँ,
तेरे लफ्जों के मेल ने,
दिल कायल सबका कर दिया,
वाह वाह सब करते थे,
जो भी नग्मा सुना दिया,
दुखों के काँटों से ,
भरी तेरी राह थी,
उम्मीदों के हौंसलों से,
कुछ करने की चाह थी,
कलम जब भी तेरी चली,
सच्चाई को बयाँ किया,
हर दुखों का तूने,
हँसकर सामना किया,
सुनकर तेरे नग्मों को,
जीनें का हौंसला मिला,
पद्म भूषण से नवाजा तुझे,
संगीत का हमे सरताज मिला।
***
स्वरचित-रेखा रविदत्त
21/7/19
रविवार
स्व० गोपाल दास नीरज जी श्रद्धांजली स्वरूप मेरी भेंट
***
सुरों की दुनियाँ के नायक,
तुझे मैं प्रणाम करूँ,
मन के भावों को लेकर ,
गीत ये भेंट करूँ,
तेरे लफ्जों के मेल ने,
दिल कायल सबका कर दिया,
वाह वाह सब करते थे,
जो भी नग्मा सुना दिया,
दुखों के काँटों से ,
भरी तेरी राह थी,
उम्मीदों के हौंसलों से,
कुछ करने की चाह थी,
कलम जब भी तेरी चली,
सच्चाई को बयाँ किया,
हर दुखों का तूने,
हँसकर सामना किया,
सुनकर तेरे नग्मों को,
जीनें का हौंसला मिला,
पद्म भूषण से नवाजा तुझे,
संगीत का हमे सरताज मिला।
***
स्वरचित-रेखा रविदत्त
21/7/19
रविवार
विनम्र श्रद्धांजलि के साथ
"नीरज" जी की कविता
छिप छिप अश्रु बहाने वालों
मोती व्यर्थ लुटाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से
जीवन नही मरा करता है।
खोता कुछ भी नहीं यहां पर
केवल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतार चांदनी
पहने सुबह धूप की धोती।
वस्त्र बदलकर आने वालों
चाल बदलकर जाने वालों
चंद खिलौनों के खोने से
बचपन नहीं मरा करता है।
"नीरज" जी की कविता
छिप छिप अश्रु बहाने वालों
मोती व्यर्थ लुटाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से
जीवन नही मरा करता है।
खोता कुछ भी नहीं यहां पर
केवल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतार चांदनी
पहने सुबह धूप की धोती।
वस्त्र बदलकर आने वालों
चाल बदलकर जाने वालों
चंद खिलौनों के खोने से
बचपन नहीं मरा करता है।
विधाःः काव्यःः
नीरजजी की बात करूँ क्या
कलाकार थे महान विचारक।
साहित्यकार तुम बडे कवि थे,
गीत गजल के थे महानायक।
लिखा नीरज ने हर पहलू पर ,
थे प्रत्येक विधा में ये पारंगत।
मंच आप बिन सूना लगता है,
लगातार होता ही रहा स्वागत।
आप ऊर्दू हिंदी के सदज्ञाता थे,
बहुत गीत लिखे अनेकों गजलें।
जीवन के हर पहलू में लिक्खा
काटी नित साहित्यिक फसलें।
हम पीढी दर पीढी याद करेंगे।
शत शत नमन आपका वंदन।
बडी सुखद थीं घडियां वो जब,
किसी अवसर करते अभिनंदन।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
नीरजजी की बात करूँ क्या
कलाकार थे महान विचारक।
साहित्यकार तुम बडे कवि थे,
गीत गजल के थे महानायक।
लिखा नीरज ने हर पहलू पर ,
थे प्रत्येक विधा में ये पारंगत।
मंच आप बिन सूना लगता है,
लगातार होता ही रहा स्वागत।
आप ऊर्दू हिंदी के सदज्ञाता थे,
बहुत गीत लिखे अनेकों गजलें।
जीवन के हर पहलू में लिक्खा
काटी नित साहित्यिक फसलें।
हम पीढी दर पीढी याद करेंगे।
शत शत नमन आपका वंदन।
बडी सुखद थीं घडियां वो जब,
किसी अवसर करते अभिनंदन।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
21 जुलाई 2019
" गोपाल दास सक्सेना "नीरज" "
सूरज को जैसे दिया दिखाएँ ऐसी कुछ बात मैं करता हूँ
हाँ महान कवि और शायर" नीरज " के बारे में कुछ लिखने का प्रयास करता हूँ
अपने समय के उच्चतम स्थान पर सुशोभित थे नीरज जी
हर महफ़िल और मुशायरे की जान थे अपने नीरज जी
उनकी महफिलों में लोगों के हुज़ूम दौड़े चले आते थे
उनकी कविताओं शायरी में वो सब डूब डूब जाते थे
उनका नाम किसी मुशायरे महफ़िल की सफलता की गारेंटी थी
उस जमाने मे इतना नाम और शोहरत किसी और ने न बटोरी थी
आज भी सब बड़ी इज़्ज़त और सम्मान से उन्हें याद करते हैं
आइये हम सब भी उनकी पावन पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं
(स्वरचित)
अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव
" गोपाल दास सक्सेना "नीरज" "
सूरज को जैसे दिया दिखाएँ ऐसी कुछ बात मैं करता हूँ
हाँ महान कवि और शायर" नीरज " के बारे में कुछ लिखने का प्रयास करता हूँ
अपने समय के उच्चतम स्थान पर सुशोभित थे नीरज जी
हर महफ़िल और मुशायरे की जान थे अपने नीरज जी
उनकी महफिलों में लोगों के हुज़ूम दौड़े चले आते थे
उनकी कविताओं शायरी में वो सब डूब डूब जाते थे
उनका नाम किसी मुशायरे महफ़िल की सफलता की गारेंटी थी
उस जमाने मे इतना नाम और शोहरत किसी और ने न बटोरी थी
आज भी सब बड़ी इज़्ज़त और सम्मान से उन्हें याद करते हैं
आइये हम सब भी उनकी पावन पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं
(स्वरचित)
अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव
नमन् भावों के मोती
21 जुलाई19
नीरज जी को समर्पित
🙏💐💐💐💐🙏
गीतों का प्यारा राजकुमार
हिन्दी को अनुपम उपहार
शब्दों की माला का श्रृंगार
गहन भाव का संस्कार
काव्य जगत का लाड़ दुलार
जीवन का सुंदर व्यवहार
नीरज का हिन्दी संसार
नीरज सम नीरज प्यार
सुंदर भाव काव्य गढ़कर
कविता में नया रंग भरकर
साहित्य मोतियां चुन चुनकर
अभिनव सृजन विभूषित कर
सुखद भाव के सरिता नीर
कूच कर गये छोड़ शरीर
स्तब्ध साहित्य जगत अधीर
स्वर्णिम काव्य के वीर धीर
21 जुलाई19
नीरज जी को समर्पित
🙏💐💐💐💐🙏
गीतों का प्यारा राजकुमार
हिन्दी को अनुपम उपहार
शब्दों की माला का श्रृंगार
गहन भाव का संस्कार
काव्य जगत का लाड़ दुलार
जीवन का सुंदर व्यवहार
नीरज का हिन्दी संसार
नीरज सम नीरज प्यार
सुंदर भाव काव्य गढ़कर
कविता में नया रंग भरकर
साहित्य मोतियां चुन चुनकर
अभिनव सृजन विभूषित कर
सुखद भाव के सरिता नीर
कूच कर गये छोड़ शरीर
स्तब्ध साहित्य जगत अधीर
स्वर्णिम काव्य के वीर धीर
नमन मंच भावों के मोती
तिथि 21/07/19
विषय गोपालदास नीरज जी विशेष
***
महान हिंदी साहित्यकार के रचना की एक पंक्ति ले कर उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि
पंक्ति
"कुछ सपनों के मरने से जीवन नहीं मरा करता "
19/0719
**
कुछ सपनों के मरने से जीवन नहीं मरा करता
शूलों के मध्य रहने से पुष्प नहीं डरा करता ।
बाधाएं हो राहों में ,फौलादी पार लगाते हैं
समय आने का वो इंतजार नहीं करा करता ।
अपनी राह स्वयं बनाते ,चट्टानों से वो टकराते हैं,
कुछ ख्वाब पलकों से कभी नहीं झरा करता ।
धूप जलाने लगी ,वो दरख्तों को काटा किये
दूजे के जीवन को ये कभी नहीं हरा करता ।
कविताओं से "नीरज" जी जन मानस में रचे बसे
कुछ लोगों के जाने से व्यक्तित्व सदा रहा करता।
स्वरचित
अनिता सुधीर
तिथि 21/07/19
विषय गोपालदास नीरज जी विशेष
***
महान हिंदी साहित्यकार के रचना की एक पंक्ति ले कर उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि
पंक्ति
"कुछ सपनों के मरने से जीवन नहीं मरा करता "
19/0719
**
कुछ सपनों के मरने से जीवन नहीं मरा करता
शूलों के मध्य रहने से पुष्प नहीं डरा करता ।
बाधाएं हो राहों में ,फौलादी पार लगाते हैं
समय आने का वो इंतजार नहीं करा करता ।
अपनी राह स्वयं बनाते ,चट्टानों से वो टकराते हैं,
कुछ ख्वाब पलकों से कभी नहीं झरा करता ।
धूप जलाने लगी ,वो दरख्तों को काटा किये
दूजे के जीवन को ये कभी नहीं हरा करता ।
कविताओं से "नीरज" जी जन मानस में रचे बसे
कुछ लोगों के जाने से व्यक्तित्व सदा रहा करता।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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