Wednesday, July 10

"अकेला " 10जुलाई 2019

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ब्लॉग संख्या :-443

🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳
हम अकेले है सही है।
हर पथ केन्द्र तक पहुंचैगे।
क्या पता जिसको साथ लिऐ।
साथ जाऐ या दायबायं हो जाऐ।
हम हमेशा अकेला चले मंजिल पहुंचे।
उपबास रहे नभ तरू तल सोय।
निर्भय रहे दुर्गम पथ दर्शन किऐ।
नही तनिक डर न चिंता वापिस आने की।
हमेशा अकेला चला हर शिखर तक पहुंचा।
गिरनार दुर्गम पर्वत ।
आरावली के घनघोर पथपर।
वन वृक्ष लता बहोत हर्षाते।
सदैव जो अकेला चला।
निश्चिय ही वह सफल.रहा।
🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳
स्वरचित
राजेन्द्र कुमार अमरा

विधा लघु कविता
10 जुलाई 2019,बुधवार

एक अकेला दिनकर उदित 
अवनी को आलोकित करता।
नव प्रभात देता वह सबको
दुनियां के हर दुःख को हरता।

भीड़ में चलना भीड़ में चरना
यह पशुओं की होती आदत।
संत अकेला वन में जप कर
ध्यान ज्ञान नित पावे महारत।

शिशु बन हम सब आये हैं
परम पिता है एक अकेला।
आना जाना जीवन प्रक्रिया
सजा रखा जीवन का मेला ।

सब स्वार्थ में हम सब अंधे
लूट लूट कर तू क्यों खावे?
परोपकार मय जीवन जीओ
तन धन कोई साथ न जावे।

स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

विषय-अकेला
विधा-हाइकु
💐💐💐💐💐💐
आया अकेला

जाएगा भी अकेला

चल अकेला 👌
💐💐💐💐💐💐
राह में राही

पथिक अलबेला

चल अकेला 👍
💐💐💐💐💐💐
पथ वीरान

बटोही अलबेला

चल अकेला💐
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू अकेला
यह एक अकेला दिल
और लाखों किल-किल* ।

घर में भी बाहर भी
इंसा जीता तिल-तिल ।

भूला अब इंसा जीवन
में रहना हिल-मिल ।

भीड़ में भी एकाकीपन
कब अपराधी जाए मिल ।

दिन दहाड़े लुटे 'शिवम'
हो घर या हो मिल ।

रिश्ते नाते दूर हैं अब
पैसों से है घुल मिल ।

बिन पैसे कोई न पूछे 
कोई कितना हो काबिल ।

किल-किल*-झगड़े

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 10/07/2019

10/7/2019
बिषय ,,अकेला,,

पृथ्वी पर प्राणी अकेला ही आया
अकेला ही जाएगा
न कुछ साथ लाया न ले जाएगा
पाप पुण्य साक्षी किया सो पाएगा
किए सत्कर्मों से दुनियां में नाम कमाएगा 
अनेक बिधाओं लबालब इस जहां का मेला
आगे कदम बढ़ाते जाओ समझो न अकेला
ऐसा कुछ कर दिखाऐं
बन जाए इतिहास
सारा चमन महक जाए
जो कर्मोँ में हो मिठास
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार

विषय-अकेला

पथ पर चला पंथी अकेला 

लेकर संग रश्मियो का मेला.....

पथ में चमके जुगनू 

केश मे स्वर्ण के फूल।

दीपक देता राहों में

क्यों आज एक शूल।

मन ये चंचल

कंधों पे लपेटे दुकूल।

निःस्वास मुझे छू जाती

सारगर्भित पथ पग के धूल।

पथ पर चला पंथी अकेला

लेकर संग रश्मियों का मेला।।

मिल गया उसे गौड़ गंतव्य

करुण क्रंदन की कथा कहें।।

बिरह मिलन की प्रथा रहे

मौन रहा क्यों स्तब्ध।।

व्यथित मन की रागनी

अग्नि कण उन्मादिनी।।

प्यास ज्वार ज्वाला बहे

मन शून्य प्रहरी

चितवन हुआ मेरा तम

भृकुटी अंगारा बहे।।

स्वरचित
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज

अकेला,
अपने ही बंधनों में 
बंधा रहा हूँ मैं,

दीवारें, 
मेरे भीतर की
मुझे रोक लेती है अक्सर
मुझे बंधन तोड़ लेने से,
इक दर्द, इक डर
मेरे मन के इर्द-गिर्द
फिरता रहता-घिरता रहता
बुलबुले सा उठता रहता,
मैं तोड़ नहीं सकता बंधन
फांद नहीं सकता
परंपराओं की दीवार
रिश्तों की दीवार।
जीवन के अंधेरों में
कभी रौशनी भी होती है
कोई सूरज दिखाई देता है
मन की खिड़कियों से
फिर मैं खोजता हूँ
कुछ अपने वाले रिश्ते
अपने वाले लोग,
बड़ी बेरुखी सी मिलती है
मेरी नजरों को,
मेरे बंधनों को तोड़ने
वही बुलबुले उठते हैं
फिर मिट जाते हैं
और मैं रह जाता हूँ
इस जीवन के आसरे में
नितांत अकेला
बस अकेला।

श्रीलाल जोशी "श्री"
तेजरासर, बीकानेर

शीर्षक- अकेला
कौन कहता है कि हम अकेले हैं।

वृक्ष है, हवाएं है, पत्तों की सदाएं हैं।
तुम्हारी यादों के हसीन मेले हैं।
चिड़ियों की सुरमयी चहचहाटें,
नदियों की सुमधुर गुनगुनाहटें
खुशबूओं के पुलकित रेले हैं।
तुम्हारे वैगेर, इनके साथ खेले हैं।
हम नहीं उदास,हम नहीं अकेले हैं।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर


शीर्षक अकेला
विधा कविता 

दिनांक 10/07/19
$$$$$$$$$$$$$$

उदास मन क्यूँ हरदम राह किसी की तकता।
वृद्ध तन अकेला ही वृद्धावस्था में मोत को पढ़ता।

सैनिक अकेला ही देश प्रेम में दुश्मन से लड़ता।
वीर शहीद भी अकेले ही शहादत फाँसी चढता।

करता दिवस आसमाँ में चमकता सूरज अकेला।
काली रात उजियारी कर रहा चाँद भी अकेला।

कोई न होगा संगी साथी होगा अंत अकेला।
सुनलो जग की राहों पर जीतता सत्य अकेला।

स्वरचित 
मीनू "रागिनी "
10/07/19


शीर्षक-"अकेला"
िधा- कविता 
************
अकेला चल पड़ा जिन राहों में, 
साहस और हौंसले की बाहों में, 
नील गगन की इस छत्रछाया में, 
धरती के इस हरे-भरे बिछौने में, 
नहीं रखता हूँ चाह और मन में |

कदम ये मेरे अब नहीं रुकेंगे, 
हौंसलें मेरे बुलंदी को छू लेंगे, 
अकेलापन नहीं मुझे अखरता,
प्रभु भजन में ही मन मेरा लगता, 
अकेला आया मैं अकेले ही चलता |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*


दिनांक - 10/07/2019विषय - अकेला

💐💐💐💐💐💐
अकेला

दुनिया संग चलती रही पर,
मन अकेला ही रहा।
सबने खुशियाँ बाँट ली मन,
गम अकेला ही सहा।

मेरी खुशमिजाजी पर,
दुनिया होती दंग रही, 
थी वर्फ जो दिल में जमी,
उसका कोई रंग नहीं।

कहने को अपने सभी,
राह के हमराह हैं,
हासिए पर वक्त के सिर्फ,
मेरे हिस्से आह है।

दिख जाती है इक हँसी,
दिखता नहीं है गम हजार।
नफरतें मुस्कुरा रहा है,
और सिसक रहा है प्यार।

स्व रचित
डॉ उषा किरण
पूर्वी चंपारण, बिहार


10/07/2019
"अकेला"

################
तू अकेला नहीं हो बंदे
जग की तुम छोड़ो बातें
भाव अगर हो तेरे सच्चे
ईश्वर हरपल साथ हैं तेरे।

तू अकेला नहीं हो बंदे
छलिया सा रुप सभीके
सरलता को समझा किसने
खोना न विश्वास मनसे।

तू अकेला नहीं हो बंदे
झूठ की है हजार बातें
मजे ले सब तमाशा देखे
मुड़कर पीछे तू क्यों देखे।

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।

बिषयःःः #अकेला#
विधाःः अतुकांत काव्यःः


प्रभु आपने मुझे यहां
अकेला भेजा था
मगर सबसे पहले मैने अपने
मात पिता ,भाई बहन जैसे
पारिवारिक जन,गुरूदेव
मित्र मंडली को जोडा।
यद्यपि मैंने बाद में इनसे नाता तोडा
और अपनी इच्छानुसार
वैरभाव, रागद्वेष,घृणा, लोभ मोह और
बिशेषकर आतंकी गतिविधियों से
नाता जोडा।
बताऐं मै अकेला कब रहा
मेरे साथ अब अच्छा खासा
बुराईयों का रेला है
कौन कहता है कि आज
"अजेय" अकेला है।
ये सच है कि मै 
आया था अकेला और
अकेला ही जाऊंगा
निश्चित मानिए किसी को भी
अपने साथ नहीं ले जाऊंगा
सिर्फ़ और सिर्फ़
बुराइयों की गठरी साथ ले जाऊंगा
क्यों कि मेरे साथ
आजतक कोई अच्छाई जुडी ही नहीं
फिर इसे कैसे साथ ले जाऊंगा
खाली हाथ अकेला आया था
अकेला ही जाऊंगा।

स्वरचित ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.


आदरणीय जनों को नमन
🌹🙏🌹
🙏🌹🙏🌹
दिनांक-१०/७/२०१९
विषय-अकेला

साथी तू चलना
न पथ में अटकना
मंजिल है दूर
न राह भटकना

तुझे मैं उठाने
तुझे मैं जगाने
कंटक सी राहों में
आंचल बिछाने
मैं जलती रहूँगी
अकेले अकेले

कभी गिर न जाना
कहीं डर न जाना
चंदा की रातों में
सपने सजाना......।

#अकेला है तू.......
ये न ख्वाबों में लाना
तू चाहे गर मुझको
बाती बनाना....

तेरे पथ को सदा ही
मैं रोशन करूँगी...।
मैं जलती रहूँगी
अकेले-अकेले।।

***स्वरचित
सीमा आचार्य(म.प्र.)

विषय। अकेला
***
तीन पंक्तियों में कहानी
****

यहाँ अकेले का दो अर्थ है ,
अंतिम पंक्ति मे अकेले का अर्थ है जब आप ध्यान की अवस्था में होते हैं ,अपने अन्तर्मन में देखते है जहां पर पक्षियों का कलरव है ,लहरों का शोर है ,औरओम का हुँकार है तो यह अकेलापन भी मेले जैसा लगता है।
***

जब तलक जिंदगी को समझा नहीं 
मेले में भी रहा करते अकेले अकेले ..

जब समझी तो अकेले मे भी हैं मेले ..

स्वरचित
अनिता सुधीर

10/07/2019
"अकेला"

1
चल अकेला
सच्चाई की राह पे
ईश सहारा
2
जन्मा अकेला
छोड़कर है जाना
रिश्ता व नाता
3
सच्चा सहारा
अकेला न छोड़ता
वक्त,बेवक्त
4
राह अकेला
ढूँढता साथ सच्चा
मन का कोना
5
काग-डरावा
खेत का चौकीदार
खड़ा अकेला

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।


दिनांक :10 जुलाई 2019
विषय: अकेला 

विधा: हाइकु

1
अकेला आता
भरा संसार पाता
जीवन जीता
2
मृत्यु वरण
त्याग जीवन मोह
अकेला जाता
3
चंचल मन
अकेला विचरता
स्वयं गायब
4
दुनिया बड़ी
मनुष्य है अकेला
विपदा खड़ी
5
अकेला चल
सबसे घुल मिल
निःस्वार्थ रह
6
प्रीति निभाई
जीव जीवनदायी
अकेली माई
7
अकेला दिल
ले गयी दिलवाली
हुआ कंगाल
8
रोये शहर
जब हादसे हुए
अकेले खड़े
9
जीवन आला
संघर्ष में अकेला
प्यार का प्याला

मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली

दिनांक :- 10/07/2019
शीर्षक :- अकेला

अकेला हूँ...कहकर.. 
सब अकेला छोड़ गए...
इस भरी दुनिया में..
सब मुझसे मुंह मोड़ गए..
दौलत की अंधी दौड़ ने..
लील लिया सब अपनो को...
नादान से इस दिल के..
तोड़ दिये सब सपनों को..
खेल गया कोई...
मतलबी प्रपंचों से..
बांध गये मुझको..
वादों के सिकंजों से..
अकेला हूँ..
सब कहते है..
नहीं दिखते उनको..गम..
जो साथ मेरे रहते है..
यही गम ताउम्र साथ निभाएंगे...
कर ली है दोस्ती इनसे पक्की..
अंतिम सफर तक छोड़ आएंगे..

स्वरचित :- मुकेश राठौड़


विषय:-अकेला
विधा:-इन्द्रबज्रा छंद
🌹🍁🌹🍁🌹🍁🌹

इन्द्रबज्रा छंद
221 221 121 22
चाहो न चाहो हम साथ देंगे ,
आओ अकेले तुमसे कहेंगे ,
ये बात चाहो सबको बतादो ,
चाहे फसाना सबको जतादो ।

ये फासले जो बढ भी गये तो ,
रास्ते हमारे कट भी गये जो ,
वादा हमारा मन से रहेंगे ,
बातें सभी की हम भी सहेंगे ।

स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू

हाइकु - अकेला
10/07/2019


1-
दीप अकेला, 
करे दूर अंधेरा, 
शक्ति से भरा । 
2-
दुनिया मेला, 
हर कोई अकेला, 
माया झमेला । 
3-
किताबें मीत, 
मिटे अकेलापन, 
नव सृजन । 

-- नीता अग्रवाल
#स्वरचित

10/07/19
बुधवार 
कविता 

अहं भाव सबको अपनों से दूर हटाता जाता है ,
एक अकेला व्यक्ति स्वयं को सर्वशक्तिमय पाता है।

बुद्धि हृदय पर हावी होकर उससे छल करवाती है ,
प्रेम,अहिंसा ,त्याग,सत्य की सृदृढ़ नींव हिल जाती है।

मिथ्या,छल और छद्म उसे सद्भाव दिखाई देते हैं ,
मानवता के मधुर - मन्त्र , कटु -वचन सुनाई देते हैं।

अपनी कूटनीति से वह हर मार्ग बनाता चलता है ,
समझ नहीं पाता वह ,यह पथ मात्र विफलता देता है।

है इतिहास प्रमाण अहं से सबने मुँह की खायी है ,
रावण , कंस सुयोधन सबने अपनी साख गंवायी है।

मानवता की मधुर लहर तो हृदय - मार्ग से चलती है ,
इसी प्रेममय -पथ पर चलकर सबको सद्गति मिलती है।

स्वरचित 
डॉ ललिता सेंगर


भावों के मोती
विषय-अकेला

______________
झड़ी लगी है सावन की
बहे नयनों से नीर नदी
कहाँ बसे हो जाकर परदेशी
मिलने की लगन लगी है

चपला करे पल-पल गर्जन
धरती लहराए धानी चूनर
दादुर,पपीहे कर उठे शोर
बागों में झूमकर नाचें मोर

निर्झर झर-झर राग सुनाते
धरती झूम-झूमकर नाचे
सावन के पड़ने लगे हैं झूले
रह-रहकर भीगी यादें झूले

विरह में तड़पे मन अकेला 
अंबर में घटाओं का मेला
बैरन निंदिया आँखों से दूर
सावन बरसे होके मजबूर

बीती जाए घड़ी यह सुहानी
रिमझिम बरसे बरखा रानी
चली हौले से पवन पुरवाई
सावन में यादों की बदली छाई
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित


विषय:-"कौन रहा अकेला?" 

कौन रहा अकेला?
कुछ तो ...
भीड बन गये हैं,
भागकर कोसों दूर,
स्वयं के अजनबी बन गयें हैं,
है.. कृत्य शरीर ,
पर नियंत्रण् में,
आैर सत्य अति कटु है,
शायद अस्तित्व की तलाश में,
मुखौटे ही मुखौटे चढें हैं।
क्या बूंद का कोई मूल्य नहीं,
क्यों खोते हैं भीड़ सागर में,
सागर...
बंध नहीं सकते,
बेकाबू रूक नहीं सकते,
होने पर दिशाहीन,भ्रमित,
विनाश टल नहीं सकते,
एक बूंद एक नियंत्रण् हैं,
परिधि के अस्तित्व में,
लिए खोज जीवन भर की,
सुप्त है.....
व्यक्तित्व में।

स्वरचित 
ऋतुराज दवे


आज का विषय, अकेला
दिन, बुधवार

दिनांक, 10,7, 2019,

कहते हैं सब ये लोग सयाने, 
नहीं अकेले दिन हैं बिताने । 
कुछ अपने और कुछ बेगाने , 
रिश्ते इन सब से हैं निभाने ।

वक्त बेवक्त काम यही तोआने ,
वही आदमी जो पर दुख जाने ।
पीर पराई जो खुद ही पहचाने ,
बैर भाव नहीं जो मन में माने ।

पर अब बदल गई है परिभाषा,
मुँह देखी ही सब बोलते भाषा ।
फैली है जीवन में घोर निराशा ,
तन्हा - तन्हा हर कोई है लगता ।

जब अवसादों का डेरा मन में ,
तन्हा कोई कैसे होगा जग में।
हमारे हो न कोई चाहे साथ में ,
रहेंगे हरदम ही तो स्वप्न साथ में ।

तन का क्या ये है माटी का डेला,
यहाँ आये अकेला जाये अकेला।
कभी नहीं रहता है मन अकेला,
इसमें हरि नाम का कर ले डेरा।

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,


नमन भावों के मोती
दिनांक - 10/7/2019
आज का विषय - अकेला


अकेले ही....

कौन साथ निभाता हैं ,
जिन्दगी भर -
मंजिल पर पहुंचना हैं 
अकेले ही ।

साथ तो चलेंगे ,
खुशी में सारे ,
दुःख - दर्द तो सहना हैं 
अकेले ही ।

भीड़ -
साहस तो बढ़ाती हैं ,
पर - 
छीन लेती हैं 
पहचान ,
भीड़ के दलदल से 
उठकर ऊपर ,
कमल सा खिलना हैं 
अकेले ही ।

निराश न होना , 
जिंदगी में कभी ,
अकेले आए हैं 
दुनियाँ में ,
फिर -
अलविदा भी कहना हैं 
अकेले ही 

स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)



दिनांक .. 10/7/2019
विषय .. अकेला

*********************

मेरे घर के आँगन में वो, खडी अकेली रहती है।
सुन्दर सी सर्वस्य सुन्दरी, मईया उनको कहती है॥
सुबह शाम को हर घर वालें, पूजा उनकी करते है।
भोग लगा कर उनका ही, सब भोजन पाया करते है॥
***
आँगन का वो मध्य भाग है, जो की सबसे प्यारा है।
तुलसी का चौरा कहती माँ, जो की बहुत पुराना है॥
धूप कपूर अरू घी का दीपक, मैया रोज जलाती है।
तुलसी के पत्तो की ही वो, सबको चाय पिलाती है॥
***
बहुत दिनो से गाँव गया ना, घर की याद सताती है।
तुलसी का चौरा संग मईया, मुझको गाँव बुलाती है॥
शहर में इतनी भीड है पर क्यो, लगता शेर अकेला है।
किससे कह दूँ मन की बातें, जीवन मे बडा झमेला है॥
***
स्वरचित एंव मौलिक
शेर सिंह सर्राफ



अकेला

नहीँ है 
अकेला 
तू इन्सान 
है साथ 
ईश्वर तेरे

हर 
अच्छे बुरे का
है लेखा 
मौला के पास
कर्म कर 
अच्छे
नहीं रहेगा
अकेला

दुनियाँ में 
हैं लोग बहुत
दे साथ 
जो वक्त पर
छोड़े नहीं 
अकेला
है वही
मित्र सच्चा 

मानों एहसान 
माता पिता का
नहीं छोड़ा 
अकेला कभी
हो गये 
सम्पन्न अब
मत छोड़ो
उन्हें अकेला

स्वलिखित 
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

दिनांक-१०/७/२०१९"
"शीर्षक-अकेला

मन अकेला चले निरंतर
कभी-पहुँचे बचपन की ओर
कभी भागे आगे की ओर
पकड़े सदा यादों की डोर।

मन कभी ना रहे अकेला
कभी निहारे ये अन्तस की ओर
कभी निहारे प्रकृति की ओर
मन मयूर झूमे अकेला।

मनु तू न हो उदास
प्रभु ने ऐसी रीत बनाई
मनु हो गर अकेला
प्रतिपल चले यादों का मेला।

इसका भी कभी आनंद उठाओ
क्यों चाहिए भीड़ हमेशा
कोई काम नही ऐसा
जो तुम न कर सको अकेला।

हो गर अकेला, कोई बात नही
कुछ क्षण बिताओ अपने संग
आत्मनिरिक्षण कर लो तुम
फिर नही होगी कोई भूल
फिर आये जब भीड़ का मेला
सहज होगा फिर जीवन तेरा।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव


#विषय:अकेला:
#विधा:काव्य लेखन:
#रचनाकार:दुर्गा सिलगीवाला सोनी:

::::::!!::::: अकेला ::::!!:::::

मुहावरे भी पढ़े लोक उक्तियां भी सुनी,
कहावतें भी अनेकों सुन स्व मति धुनी,
पांचों अंगुली की हमने मुट्ठी भी बांधी,
समूह उडे सभी जब चली तेज आंधी,

तब अकेला चना ही भाड़ फोड़ता है,
अकेला सुभाष खुद फौज जोड़ता है,
अकेला मिल्खा ओलंपिक दौड़ता है,
संख्या और बल बस भीड़ जोड़ता है,

अकेले ही बुद्ध थे और अकेले महावीर,
अकेला अभिमन्यु था एकलौता बलवीर,
हज़ारों कौरव बीच भी ना खोता था धीर,
मचाया था हलचल वो था ऐसा रणवीर,

अकेले ही ध्रुव थे सितारों में जो चमके,
प्रहलाद का गौरव संसार में भी दमके,
अकेले भगत अकेले आजाद का जोश,
लाखों फिरंगी के जिन्होंने उड़ाए होश,


अकेला
******
अगर मेरे कहने से 
किसी का भला हो
तो हर उस का भला हो...
दीप सा जो जला हो...
मोम सा जो ढ़ला हो...
अकेला जो चला हो...
ठोकरें लगती मगर
हँसता रहा हो...
लड़खड़ाते हों कदम 
पर गा रहा हो...
गिर पड़े!गिरकर 
संभलता जा रहा हो...
धैर्य रखकर उलझनें 
सुलझा रहा हो...
अगर मेरे कहने से 
किसी का भला हो
तो हर उसका भला हो...

स्वरचित 'पथिक रचना'



# अकेला #
****************
1/ 
आया अकेला
जाएगा भी अकेला
साथी ढूंढे क्यों ,,।
2/
रख हौसला
आगे कदम बढ़ा 
चल अकेला ।
3/
चला अकेला
जीवन पथ पर 
करमवीर ।

स्वरचित - ' विमल '

दि.10/7/19
विषयःअकेला

*
दिख रहा अब हर जगह,
छल-स्वार्थ का उन्मत्त रेला।
भीड़ अतिशय घनी में भी,
आदमी बिल्कुल अकेला। 

अपनत्व का अनुभव कहाँ,
जब आदमीयत मुँह छिपाती।
स्वजन में भी , परायापन,
देखती बन आत्मघाती।।

बढ़ रहीं नित दूरियाँ,
रंगोत्सवों का व्यर्थ मेला।।
--डा़ 'शितिकंठ'

दिनांक -10/7/2019
विषय-अकेला 

जीव जगत में आया अकेला 
रिश्तों का यहाँ लग गया मेला ।
इस मेले में वह सब कुछ भूला 
माया मोह के भ्रम में झूला ।
जब -जब चिंतन किया रे भोला
पाया बिल्कुल अपने को अकेला।
जिनको सोचा था अपना,
रुपया पैसा चाँदी सोना ।
वह तो सब हुए पराए 
आई लेने जब यम की सेना ।
माया मोह के बंधन टूटे सब
जब स्वयं को जाना पड़ा अकेला ।
पुत्र- पुत्री और पत्नी 
मात पिता भाई और भगनी ।
ये हैं सब जग के नाते
ये सब यहीं रह जाते 
वहां जाना पड़ता अकेला 
छोड़-छाड़ रिश्तों का मेला ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय

विधा-हाईकु
विषय-अकेला


अकेला वीर
कलम हथियार
शब्दों से घाव

राही अकेला
जीवन है परीक्षा
हौंसलें संग

अकेला पन
ड़सता है जीवन
बन भूजंग
**
स्वरचित-रेखा रविदत्त
10/7/19
बुधवार


शीर्षक-अकेला
विधा-हाइकु 

1.
स्वप्न हमारा
लक्ष्य बिन अकेला
जीवन मेला
2.
अकेला भला
संग दुष्ट मीत से
झूठे प्रीत से
3.
छोड़ झमेला
मोह माया का मेला
चल अकेला
*********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा


विषय-- अकेला
विधा---मुक्त 

-----------------------
जीवन का मेला
पर दिल है अकेला 
भीड़ सरों की
सड़क सड़क है
पर ये मन है न
हर भीड़ में 
अकेला 
ख्वाब ओ' और खयालों 
में भी 
चाँद सितारों का रेला है
फिर भी 
रातों की तन्हाई में 
ये दिल है
अकेला। 

डा. नीलम




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"अंदाज"05मई2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें   ब्लॉग संख्या :-727 Hari S...