Tuesday, July 30

"सिलवट /सिकुडन *"29जुलाई2019

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ब्लॉग संख्या :-461

नमन मंच भावों के मोती
29/7/2019/
बिषय,, सिलबट ,सिकुड़न

मुख से निकले बोल फिर नहीं लौट के आऐं
पत्ता टूटा डाल से धरती पर गिर जाऐं
ऐसी ही.रिश्तों की डोर खीचे से टूट जाए
चाहे जितने करो जतन गांठ रहै पड़ जाए
जैसे कपड़ों की सिलवट दूर से ही दिख जाए
चाहे कितना छिपाए मनमुटाव दिख जाए
अपने चेहरे की सिकुड़न देती सब बतलाय
भावभंगिमा में ही संबंध सब दिख जाय
व्यक्तित्व हमारा बता देता आचार विचार
वाणी से ही समझ आता हमारा व्यवहार
संयम धैर्य और है मर्यादाओं का खेल
त्याग सहयोग सहिष्णुता का तालमेल
वरना खींचतान में जिंदगी निकल जाएगी
रिश्तों की सिलबट दूर से ही नजर आएगी
दिल में लिए मलाल जहां से गुजर जाऐंगे
गर दिलों की सिकुड़न को दूर न कर पाऐंगे
स्वरिचत,, सुषमा ब्यौहार,


शीर्षक-- सिलवट/सिकुड़न 
प्रथम प्रस्तुति


दामन में उनकी यादें हैं
यादों की रौशनाई है ।।

शरीर में सिलवट बेशक
पर इश्क की रानाई है ।।

फूल जो कभी न मुरझाया
ताउम्र ज़ीस्त मँहकाई है ।।

सलवटें शरीर में आतीं हैं
ये रूह की मेल मिलाई है ।।

मुहब्बत की कदर की है 
करूँगा यही एक दवाई है ।।

शरीर तो ख़ाक में मिलता
रूह सदा अमर कहायी है ।।

उस पर क्या सलवटें आऐं ?
नही 'शिवम' सबने बतायी है ।।

वो प्यार न किया न करेंगे
जिसमें कहाए रूसवाई है ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 29/07/2019

नमन मंच
दिनांक .. 29/7/2019
विषय .. सिलवट / सिकुडन

**********************

बिस्तर की सिलवटों मे तेरे, 
रात की कहानी है।
आँखो की लालिमा कहें,
जगी रात भर जवानी है॥
**
मुझको बता ना हे सखी,
क्या अनकही कहानी है।
क्या रातभर सोई नही,
क्यो तू बनी दिवानी है॥
**
क्यो केशु है खुले- खुले,
क्यो बिखरी लब की लाली है।
क्या बात है सच तू बताया,
क्यो तुझमे ये खुमारी है॥
**
क्या साँवरे आये थे कल,
क्या रात कल सुहानी थी।
क्या शेर के नयनो उतरी,
प्यार की खुमारी थी॥
**
बोलो ना मुझसे हे सखी,
क्यो शब्दों से सकुचायी हो।
है सूर्य आँगन मे खडा अरू,
अब भी तुम अलसायी हो॥

स्वरचित ...शेर सिंह सर्राफ


सिलवटे

किससे शिकायत ,,

करें हम ।
बुध्दिजिवी होने का,
ढोंग पाल रखा हमने ।
बार बार देखते हम,
अपने ही कपडो को,
कहीं सिलवटे तो,
नहीं पडी ।
मुस्कराते मन में ।
दिखाते रोब,
अपने सहकर्मी पर ।
पर नही लड़ पाते,
गांव के मवाली संग ।
वह अाकर,
चला जाता धमकाकर ।
हम सुनते,
नौकरी मजबूरी संग ।
अपने कपडो की,
सिलवटे सम्हालते हुए ।
मजबुरी जो हैं ।
किससे ,
शिकायत करें ?
@प्रदीप सहारे


29/7/2019
विषय-सिकुड़न/सिलवट
*
***************
यूँ ही नहीं पड़ जाती हैं
माथे पर सिलवटें
पूरी ज़िंदगी की
कहानी लिखी है इनमें
इनमें है परिवार की
जिम्मेदारियां हैं
रोजमर्रा के जीवन की
दुश्वारियां हैं
बच्चों की परवरिश,
उनका उज्ज्वल भविष्य
शादी ब्याह के कर्तव्य
माता पिता परिवार का
का दायित्व...
दफ्तर में प्रायः प्रतिदिन 
देखने को मिलती है बॉस की
टेढ़ी भावभंगिमा 
रोज तार तार होती है
निज गरिमा
असन्तुष्टता की भद्दी सी सिकुड़न
छूत की बीमारी सी ये
न चाहते हुए भी
हमारे भाल पर आकर जम जाती हैं 
ये अनचाही सलवटें
उम्र के साथ गहरी होती जाती हैं
और बना देती हैं व्यक्ति को 
वक़्त से पहले 
क्रोधी ,चिड़चिड़ा और बूढ़ा...!!

✍🏻वंदना सोलंकी©️स्वरचित


भावों के मोती
शीर्षक- सिलवट


रिश्तों की चादर पर
पड़ी हुई है सिलवट।
प्रेम से जरा सहलाकर
कर दो ठिक झटपट।

रिश्तों कीे खिंचातानी
है बड़ी ये डोर पुरानी
टूट जाएगी तनाव से
होगी फिर बड़ी परेशानी।

धैर्य,संयम के साथ रहना है
सहनशील बहुत बनना है
फूल अगर तुम्हें चाहिए तो
कांटों का दर्द भी सहना है।

स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर


नमन भावों के मोती।
नमस्कार गुरुजनों, मित्रों।

सबके दिलों में पड़ गई है आज सिलवटें,
रिश्तों में रही नहीं वो बात।

पहले जो मिला करते थे हंसकर,
उन्होंने दिखा दिया अपनी औकात।

मिलते तो हैं,पर दिलों में हैं दूरियां,
दीख जाता है साफ,साफ।

पहलेवाली बात नहीं है लोगों में,
सबकी अपनी डफ़ली,अपना राग।

वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित


विषय- सिकुड़न / सिलवट 
सादर मंच को समर्पित -


🌻 मुक्तक 🌻
****************************
🌹 सिलवट/ सिकुड़न 🌹
समान्त- चुपके-चुपके , अपदांत
🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀

सिकुड़नें चेहरे की कह जाती हैं 
सब कुछ चुपके-चुपके ।

पीड़ा अन्तर्मन की उभरे बोले
तन मन चुपके-चुपके ।

माथे की सिलवटें बतातीं द्वंद्व 
चल रहा मन के अन्दर --

कितने भाव छिपायें फिर भी 
दिखती हल-चल चुपके-चुपके ।।

🌹🌻🌴🌺

🌷🍊**.... रवीन्द्र वर्मा आगरा

दिनांक : - 29/7/019
विषय : - सिकुड़न / सिलवटें


मखमली गद्दों पर
सिकुड़ा चादर कहता है
चैन की नींद, पैसों से नहीं
मन के संतोष से कमाया जाता है। 

ये मन का असंतोष देखो
तुझे कहाँ लाकर खड़ा किया
रिस्ते के सुंदर हार को
काँटों से सजा दिया। 

दायरा किया कम तूने अपनों का
दिल भी तेरा अब विशाल न रहा
वह भी शायद सिकुड़ गया
दिखावे में रहा लिप्त तूँ
और हर रिश्ते में 
सिलवटें पड़ती गयी। 

स्वरचित : - मुन्नी कामत।

वार. : सोमवार 
विषय. : छंद कविता 
शब्द. : सिकुड़न/ सिलवटें

चल झूठी !
एहसास को दर्द की पैमाना बताती हो
और तुम प्यास को मयखाना बताती हो

सोच कर रात भर मुझे बदलती रही करवटें ।
जेहन में मेरी यादों की बनती रही सिलवटें ।।

और तुम प्यास को मयखाना बताती हो
एहसास को दर्द की पैमाना बताती हो

बारिशों की सैलाब में सिकुड़ कर बह गए जज्बात ।
धुल गए , मिट गए , गुम गए हर मुलाकात ।।

इस तड़पन को बिछड़ जाना बताती हो
और तुम प्यास को पैमाना बताती हो

चल झूठी !
एहसास हो दर्द की पैमाना बताती हो ।

स्वरचित एवं मौलिक 
मनोज शाह मानस 
सुदर्शन पार्क मोती नगर 
नई दिल्ली


भावों के मोती दिनांक 29/7/19
सिलवट / सिकुड़न


छंदमुक्त कविता 

ज्यों ज्यों
बढने लगी
रिश्तों में 
सिकुड़न 
होते गये दूर 
हम 
अपनों से 

सिकुड़न 
जब दूर
होने लगी 
चादर में 
अदालत तलक 
जाने लगे 
हम दो

देख कर 
सिलवट 
बिस्तर की
होता है 
सुकुन 
सोयी थी 
वह भरपूर
रातभर

सिकुड़न 
सिलवट की
है कहनी 
अजीब
बता देती है 
पूरा हाल 
जीवन और 
जीवनसाथी की

रखो दूर 
सिकुड़न को
रिश्तों से दूर
रहें आपस में 
सिकुड़न 
सिलवटों 
को समेटे हुए

स्वलिखित 
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल


 नमन मंच
दिनाँक-29/7/2019
विषय-सलवटे ,सिकुड़न

विधा-छंदमुक्त

बहुत कुछ बयाँ,
करने लगती हैं माथे की सिलवटें
जिंदगी की दास्तां को
सुना देती हैं ये माथे की सलवटें
कभी अभाव में
कभी तनाव में,
कभी कभी तो भावों 
के प्रवाह में
पलक झपकते ही
आ जाती है ये ,
माथे पर सलवटें।
अनकही मजबूरियाँ
अपनो से बढ़ती दूरियाँ
अनजानी दुश्वारियाँ
जीवन की आपाधापी से
बढ़ती हुई जिम्मेदारियां
कुंठित, संकुचित
रूठे ,टूटे जज्बातों को
दिखाने लगती हैं 
ये माथे की सलवटें
बहुत कुछ बयाँ
करती हैं ये माथे की सलवटें।।

रचनाकार
जयंती सिंह


भावों के मोती 
29/07/19
विषय-सिलवट, सिकुड़न

तपता हुवा चांद उतर आया 
विरहन की आंखों में,
चांदनी जला रही है तन-मन, 
झरोखे में उतर-उतर ,
कैसी तपिश है ये,
अंतर तक दहक गया
जेठ की तपती दोपहरी जैसे,
सन्नाटे उतर आये मन में 
यादों के गर्म थपेड़े,
मन झुलसाए
मुरझाये फूलों सा,
रूप कुम्हलाय
नैनो का नीर गालों की
गर्मी में समा कर सूख जाए,
ज्यों धरा के तपते गात पर
तन्वंगी होता नदीयों का पानी,
लताओं जैसे निस्तेज
घुंघराले उलझे केश,
मलीन चीर की "सिलवटें" ऐसे जैसे 
धरती का सूख कर "सिकुडना",
प्यासे पंछियों सा भटकता मन
उड़ता तृषा शांति की तलाश में ।

स्वरचित

कुसुम कोठारी ।


भावों के मोती
सादर प्रणाम 
विषय=सिकुड़न/सिलवट 
विधा=हाइकु 
==========
(1)इंद्र के माथे 
सलवटें है पड़ी 
काटे क्यूँ पेड़ 

(2)रिश्तों में आई
अनेक सलवटें 
व्यस्त जीवन 

(3)तन चादर
सिलवटें से भरी
उम्र बताएं 

(4)करेगी दूर 
रिश्तों की सिलवट 
स्नेह की स्त्री (प्रेस)

(5)हो रही आज
रिश्तों में सिकुड़न
पनपा स्वार्थ 

मुकेश भद्रावले 
हरदा मध्यप्रदेश 

सादर नमन मंच
सिलवटें
जिंदगी की करवटों की निशानी लिए
ये सिकुड़ी सी सिलवटें है पेशानी लिए

गुजरते लम्हों का राज दफन है इनमें
परत-दर-परत कोई एक कहानी लिए

मेरे सब्र के इम्तहान का ये कब्रगाह है 
ये लकीरें मेरे फिक्र की कारिस्तानी लिए

क़िस्मत की किरच के धार क्या कहने
खुरचकर चले रूह पे कोई कमानी लिए

इन खुरचनों में नवल मंजिल की तलाश है 
और ये कमबख़्त रास्ते है चौमुहानी लिए
-©नवल किशोर सिंह
29-07-2019
स्वरचित


नमन मंच 🙏
विषय- "सिकुड़न /सिलवट"
दिनांक- 29/7/2019
विधा- कविता
**************
आज अचानक किसी पुराने दोस्त से मुलाकात हो गई ,
पुरानी यादों की जैसे बरसात हो गई, 
पर ये क्या समय कब, कैसे बीत गया, 
उनके चेहरे पर तो सिलवटों की जगह खास हो गई |

घर आकर हमने भी अपना चेहरा शीशे में देखा,
किस्मत शायद उनके साथ खेल रही थी खेला, 
वो तो सिलवटों और सिकुड़न में घिर चुके थे, 
क्योंकि उनका अपना ही दे रहा था उन्हें धोखा |

गमें जिंदगी का वो छुपा नही पा रहे थे, 
माथे की सिलवटें,चेहरे की सिकुड़न को 
ढ़क नही पा रहे थे, 
ये सिलवटें व सिकुड़न बढ़ती उम्र की नहीं थी, 
ये तो उनपे आई विपदा और परेशानियों से बनी थी |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*



तिथिःः29/7/2019/सोमवार
बिषयःःसिकुडन/सिलवट

विधाःः काव्यःः

सिकुडन कहीं भले आ जाऐ,
मन में सिकुडन नहीं आने दें।
गलत विचार न पनपें अंन्दर,
अंतर्मन में उलझन न आने दें।

निर्मल होए अंतर्मन अपना,
नहीं वैरभाव की सिलवट हो।
रहें प्रेमभाव से मिलजुलकर,
नहीं रागद्वेष और खटपट हो।

अंतरतम में सभी झांक लें।
क्षणभंगुरता सभी भांप लें।
अंतर्मन में उजियारा पहुंचे,
सिलवट क्यों मन आंक लें।

अंतर्द्वंद यदि मनमंदिर में तो,
मनकी सिकुडन जा न पाऐ।
रखें पवित्रता अगर हृदय में,
नहीं अंतर्मन सिलवट आऐ।

स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
गुना म.प्र.


नमन मंच
दिनांक-२९/७/२०१९
शीर्षक-सिकुड़न/सिलवट
सिलवटें उसके चेहरे के
खोलते हैं कई राज
जींदगी को जीने में
करते हैं वे कितने जद्दोजहद
सुबह से शाम तक
कतरा कतरा खून का
करते हैं इस्तमाल
परिवार को चलाने में
जुते वे कोल्हू के बैल की तरह
नही उन्हें चाह
हो दोमंजिला मकान
बस हो एक राममरईया
जिनमें रह सके वे परिवार के साथ
नही चाह छप्पन भोग का
बस मिले दो जून की रोटी
खाये वह परिवार के साथ
हमारे देश के नौजवानों की तरह
हमारे कृषक भी देशहित में
मेहनत करते हैं दिन रात।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।

नमन भावों के मोती
आज का विषय. सिकुड़न, सिलवटें 
दिनांक, 29, 7,2019.

मन के सागर में तूफान मचलता है,

बेकल होता है दिल व्यथा से सिकुड़ता है ।

पड़ गईं सिलवटें जो अंर्त में मिटाता है , 

भावों को किनारे लाकर शब्दों से छलकाता है ।

रिश्तों की चादर लाख संम्हालो कुछ तो सिकुड़ता है ,

अहं भाव के वशीभूत हो जरूर रिश्ता पिसता है ।

माथे की सिलवटें चिंतन का बड़ा खजाना है,

मर्यादा की दीवारों में जिसने खुद को बाँधा है ।

सिलवटें मिटें जो दिल कीं घर सुंदर होना है।

जीवन की बेहतरी हेतु हमको ये करना है ।

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,

29/07/2019
"सिलवट/सिकुड़न"
################
सिलवटें कहती साजन की मुलाकातें,
रातों को ये करती है मुझसे बातें,
देश की रक्षा के लिए गए मेरे वीर,
सीनें में धधकती वो अधूरी रातें।

उनकी यादों में मैं तो खोई रहती,
सिलवटों में सिकुड़ कर शर्माती रहती,
गालों के भी रंग हो जाते सिंदूरी,
आने के इंतजार में जागी रहती।

सुबह पलकें मेरी अलसाई रहती,
माँ तिरछी नजरों से निहारती रहती,
समझ लेती कैसे गुजरी मेरी रात,
कैसे कहूँ सिलवटों संग बातें करती।

इंतजार के बाद दिन वो आए थे,
उनके तन-वदन लहू से जो नहाए थे,
साथ जिनके आए देख मुझे सर झुका लिए,
तिरंगे में लिपटकर वो घर को आए थे।

सिलवटों में छोड़ गए वो अपनी यादें,
रातों को होती अब भी मेरी बातें,
अब हर वक्त वीर तो मेरे साथ हैं,
कोई न जानें हमारी ये मुलाकातें।।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।


#विषय:सिकुड़न सिलवट"
#विधा_काव्य"
#रचनाकार:दुर्गा सिलगीवाला सोनी"

""*****"" रिश्ते ""*****""

सभी अपनों को रखिए पकड़ के,
रिश्तों को भी आप रखिए जकड़ के,
जो खुद ही आप रहते हैं अकड़ के,
फिर बुढ़ापा भी गुजारिए सिकुड़ के,

भेदभाव और कपट इर्ष्या और द्वेष,
अपनेपन के भावों को भी दूषित करें,
सिकुड़ते ही जाते हम सभी अपनों से,
औरों से भी स्वयं को ही हम दूर करें,

दिल को रखिए सदा दिमाग से आगे,
ना रहेगा रिश्तों के बिगड़ने का डर,
मान सम्मान सदा ही बड़ों का कीजिए,
उजड़ने से बचा रहेगा आपका घर,

वैमनस्यता का कारण जर जोरू जमीन,
परोपकार ने ही जन्में सौहार्द सद्भाव,
पूर्वाग्रहों ने रचे महाभारत जैसे ग्रन्थ,
सदाशयता उपजे समरसता के प्रभाव,


विषय-- सिकुड़न /सिलवटें
विधा---मुक्त 
दिनांक :--29 /07 /19
-------------------------------
रात भर चाँद मुझसे
मैं चाँद से उलझती रही 
सिकुड़न मनों की 
चाँदनी की चादर की
सिलवटों में बदल गई

कई ख्वाब थे जो 
चाँद की गवाही के
मोहताज थे
चाँद ही गवाही से मुकर गया 

चाँद जब भी उतर आया था
चुपके से मेरी मुंडेर पर
मैं उतार लाती थी उसे 
अपने मन के आँगन में 

चाँदनी भी झट से अपनी
स्वेत शीतल चादर बिछा
धवला मुस्कान बिखेर
शामिल हो जाती थी हमारी बातों में 

तब एक एक ख्वाब निकाल कर
हँसते हुए टांगती थी
सहन के कोने लगे गुलमोहर के पेड़ की शाखों पर

टूटता था जब भी कोई तारा
झट से माँग लेती थी कोई 
विश 
और आमीन की धीमी सी
भनक सुनाई देती थी

पर बदलती मानवीय वृत्ति- सा
चाँद भी बदल गया
मेरे सारे ख्वाबों का साक्षी
होने से मुकर गया

गुलमोहर का पेड़ भी 
मेरे साथ दगा कर गया 
अब तो उलझनें बढ़ने लगीं हैं 
चाँद से शिकायतें ठनने लगी हैं। 

डा. नीलम

नमन-भावो के मोती
दिनांक-29/07/2019
विषय-सिलवट

बिस्तर सिलवटें की महक गमगीन

लिबासों की सिकुड़न इतनी है क्यों भयभीत

तन व्याकुल, मन इतना क्यों अधीर

स्वर्णिम किरणें थिरक रही

अधरों पर मुस्कान का डेरा

पास बहुओं के आलिंगन का फेरा।।

सिलवटें सिकुड़ गई सैलाब के सफर में

मधुरिमा मौन है क्यों इतना अर्ध रात्रि के शून्य प्रहर में।

गोरे गोरे अंगों पर सिहरन होता दर्द का

रंग सजाता पीत वसन अनजाने मर्द का।

सिलवटें ही है प्रीत का बंधन

मन उद्वेलित, हृदय करता क्यों करुण क्रंदन।।

बिन घूंघट के चले सुहागन

आग उगले बैरी सावन

मंजरीयो में वह स्राव नहीं

पहले जैसा भाव नहीं

मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज

दिनांक:29/07/2019
विषय :सिलवटें/सिकुड़न
विधा :हाइकु
1
रजाई ओढ़े
सिकुड़ कर सोये
पूस की रात
2
खो रहे प्यार
सिकुड़ रहे रिश्ते
पाश्चात्य रीति
3
वक्त की बात
माथे पे सिलवटें
जीवन थाह
4
लाचार व्यक्ति
छिपी हुई गरीबी
सिलवटों में
5
जरा अवस्था
सिकुड़ रहीं खालें
कातर आँखें

स्वरचित
मनीष श्री
रायबरेली


भावों के मोती
विषय सिकुड़न/सिलवट
===============
सिलवटें ही सिलवटें हैं
ज़िंदगी की चादर पर
कितना भी झाड़ों,फटको
बिछाकर सीधा करो
कहीं न कहीं से कोई 
समस्या आ बैठती
निचोड़ती,सिकोड़ती
ज़िंदगी को झिंझोड़ती है
फिर सलवटों से भरकर
अस्त-व्यस्त ज़िंदगी फिर
ग़म को परे झटकती
आँसुओं में भीगती 
फिर आस में सूखती
फीके पड़ते रंगों से
अपना दर्द दिखाती
जिम्मेदारी के बोझ तले 
दबती और सिकुड़ती
घिस-घिस के महीन हो
मुश्किलों से लड़कर
अंततः झर से झर जाती
फिर सीधी-सपाट होकर पड़ी
बिना किसी हलचल
बिना कोई झंझटट के
सारी परेशानियों से मुक्ति पा जाती
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित


नमन मंच को 
29/7/2019
शीर्षक.. सिलवटे 
हाइकु 
1
भावो की इस्त्री 
सिलवटे रिश्तो की 
इन्हे खोलिये 
2
वृक्ष लगाए 
धरती सिलवटे 
खोलती वर्षा 
3
बिगड़े रिश्ते 
ईर्ष्या है सिलवटे 
प्रेम की इस्त्री 
4
सूर्य बिफरा 
सिकुड़ती है धरा 
कहीं न हरा 
5
वृक्ष काटते 
धरा में सिलवटे 
क्रोधित मेघा 
6
शरीर वस्त्र 
कर्मो की सिकुड़न 
ईश्वर देते 

कुसुम पंत उत्साही 
स्वरचित
देहरादून


शीर्षक-- सिलवट/सिकुड़न
द्वितीय प्रस्तुति

कपड़े सलीके से पहना करो 
सिलवट बहुत कुछ बयां करती ।।

दुनिया की नजर बड़ी जालिम 
बचाना ये नजर पढ़ा करती ।।

दिखे सफेद पैरहन में भी दाग 
पर यहाँ उम्र कुछ कहा करती ।।

गरीबी अमीरी में फर्क कराये
दुनिया यह यूँ ही चला करती ।।

विस्तर सिलवटें गजब ढायीं 
सास बहू रोज लड़ा करती ।।

सिलवट कम न फितरत में 
नजर औरों पर टिका करती ।।

इंसानियत चंद सिक्कों में
'शिवम' यहाँ बिका करती ।।

बड़ी साफ छवि रखना होती 
एक सिलवट भी खता करती ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित29/07/2019

नमन "भावों के मोती"🙏
29/07/2019
िषय:-"सिलवटें " 

जीवन का बिछौना 
लेते ही रहे करवटें 
माथे की चादर पर 
उभरती रही सिलवटें.....

श्रम पसीने में नहायी 
और टकराई सौ झंझटें 
अनेक इम्तिहान दे कर 
ठहर गई सिलवटें... 

पाली गलतफहमियां 
अहम भी साथ रक्खा 
उम्र को धोखा देकर 
निकल आई सिलवटें....

रिश्तों की चाशनी में 
घुल गई कड़वाहटें 
बदल गया है स्वाद और 
बिगड़ गई सिलवटें....

यादों के संदूक को 
दिल के तहखाने में 
छुपा के यूँ रक्खा है 
पड़ न जाये सिलवटें....

छुपा है अनुभव 
दबी है कहानियाँ 
झाँक कर जो देखा 
बहुत कुछ कहती है सिलवटें....

स्वरचित एवं मौलिक 
ऋतुराज दवे,राजसमंद(राज.)



नमन मंच
विधा - हाइकू
विषय - सिलवट

काटती है क्यों,
सेज की सिलवट 
अक्सर रातों में।

करवटों का
बसा एहसास है 
सिलवटों में।

सिलवटों में 
छिपी अनन्त पीर
दिखती नहीं।

सिलवटों में
बसती हैं तुम्हारी
हमारी यादें।

सिलवटों में 
है, दम तोड़ने का,
जिक्र तिलस्मी।

सिलवटें हैं
जिन्दा करवटों से
परजीवी सी।


तिथि 29/07/19
विषय। सिलवट /सिकुड़न
विधा दोहा छन्द
***
बिस्तर पर की सिलवटें,बोले पूरी बात ।
पिया गये परदेश रे, करवट बदली रात।।

माथे पर सिलवट पड़ी,है चिंता की बात
आय व्यय के चक्र में ,उलझे सारी रात ।।

वो सिकुड़ा लेटा रहा ,कहर ढाय बरसात ।
उस निर्धन की झोपड़ी ,टपकी सारी रात ।।

गंदे हाथों ने छुआ , मैली हुई कमीज ।
सिकुड़ गयी मानसिकता,भूल बैठे तमीज ।।

बूढी माँ की झुर्रियां,जीवन का संघर्ष।
इस सिकुड़न के मोल में,संतति का उत्कर्ष।।

स्वरचित
अनिता सुधीर



विषय- सिलवटें/सिकुड़न
विधा- हाइकु
💐💐💐💐💐💐
(१)
आ जा बरखा
धरा की सलवटें
तुझे पुकारें👌
💐💐💐💐💐💐
(२)
बेरोजगार
माथे पे सिलवटें
ऊपर ताके👍
💐💐💐💐💐💐
(३)
उम्र दराज
माथे पे सिलवटें
अनुभव की💐
💐💐💐💐💐💐
(४)
दो-दो परीक्षा
सिलवटें-मस्तक
एक समय☺️
💐💐💐💐💐💐
(५)
कृषक-माथे
सिलवटें पड़ी हैं
पानी न गिरे💐
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू अकेला

नमन मंच 🙏"भावों के मोती"
चंद हाइकु
29/07/2019
"सिलवटें"
(1)
वृद्ध की सेवा
माथे पे सिलवटें
आश्रम भेजा
(2)
सूखा है बचा
दरारें, सलवटें
धरा की त्वचा
(3)
भाल पे बैठ
सिलवटें सुनाती
उम्र की दास्ताँ
(4)
आज के घर
बिखरी सिलवटें
चेहरे पर
(5)
स्नेह ख़राब
रिश्तों में सलवटें
आई दरार
स्वरचित एवँ मौलिक
ऋतुराज दवे















































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