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ब्लॉग संख्या :-438
बिषय ,,संस्कार,,
आदमी नहीं बोलता संस्कार बोलते हैं
वाणी की तराजू ईमान तोलते हैं
संयम धैर्य का होता है आंकलन
स्वाभमानी ब्यक्तित्व का यही धन
शिक्षित भले संस्कार नहीं है
वहाँ इंसानियत का आधार नहीं है
रहन सहन आचरण बोलते हैं
कर्म ही हमारे आसपास डोलते हैं
झूठे मुखौटों से कुछ हासिल नहीं होता
आवरण हट जाए कोई काबिल नहीं होता
क्यों न स्वयं को सुसंस्कार के सांचे में ढालें
मृदुलता विनम्रता से जीवन सजा लें
हम सुधरेंगे जग सुधरेगा का यही नारा
सदमार्ग पर चलेगा नौनिहाल हमारा
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
आदमी नहीं बोलता संस्कार बोलते हैं
वाणी की तराजू ईमान तोलते हैं
संयम धैर्य का होता है आंकलन
स्वाभमानी ब्यक्तित्व का यही धन
शिक्षित भले संस्कार नहीं है
वहाँ इंसानियत का आधार नहीं है
रहन सहन आचरण बोलते हैं
कर्म ही हमारे आसपास डोलते हैं
झूठे मुखौटों से कुछ हासिल नहीं होता
आवरण हट जाए कोई काबिल नहीं होता
क्यों न स्वयं को सुसंस्कार के सांचे में ढालें
मृदुलता विनम्रता से जीवन सजा लें
हम सुधरेंगे जग सुधरेगा का यही नारा
सदमार्ग पर चलेगा नौनिहाल हमारा
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
विषय संस्कार
विधा लघु कविता
जीवन का आधार कर्म है
संस्कारहीन सब कर्म व्यर्थ है
सत्कर्म जीव का प्रथम धर्म है
संस्कार ही जीव अर्थ है
संस्कार हर रिश्ते का मर्म है
मनुजता का उत्तम धर्म है
यह अच्छी सोंच का कर्म है
यह ही सर्वोत्तम श्रम है
मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
विधा लघु कविता
जीवन का आधार कर्म है
संस्कारहीन सब कर्म व्यर्थ है
सत्कर्म जीव का प्रथम धर्म है
संस्कार ही जीव अर्थ है
संस्कार हर रिश्ते का मर्म है
मनुजता का उत्तम धर्म है
यह अच्छी सोंच का कर्म है
यह ही सर्वोत्तम श्रम है
मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
विधा, हायकु .
शुक्रवार .
5,7,2019 .
संस्कार मोती
पिरोते माता-पिता
मन के धागे ।
अभिभावक
प्रतिबिंब संस्कार
मन दर्पण ।
लड़कपन
पल्लवित संस्कार
सुख आधार ।
दीक्षित होते
व्यवहार संस्कार
सज्जन साथ ।
बना विधान
सोलह संस्कार का
जीवन मृत्यु ।
संस्कार ज्ञान
गृह वातावरण
उपजे बीज ।
अवहेलना
हो रही आजकल
रोते संस्कार ।
जंगली पौधे
विकसित कैक्टस
संस्कार हीन ।
संस्कार भोग
सामाजिक जीवन
शांति सौहार्द ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश
शुक्रवार .
5,7,2019 .
संस्कार मोती
पिरोते माता-पिता
मन के धागे ।
अभिभावक
प्रतिबिंब संस्कार
मन दर्पण ।
लड़कपन
पल्लवित संस्कार
सुख आधार ।
दीक्षित होते
व्यवहार संस्कार
सज्जन साथ ।
बना विधान
सोलह संस्कार का
जीवन मृत्यु ।
संस्कार ज्ञान
गृह वातावरण
उपजे बीज ।
अवहेलना
हो रही आजकल
रोते संस्कार ।
जंगली पौधे
विकसित कैक्टस
संस्कार हीन ।
संस्कार भोग
सामाजिक जीवन
शांति सौहार्द ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश
विषय- संस्कार
सादर मंच को समर्पित -
🐚🌷🍑 गीतका 🌷🐚🍑
*****************************
🌺🍀🌻 संस्कार 🌻🍀🌺
*****************************
🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒
ध्यान मुद्रा तप बढ़ाते साधना ।
योग पावन जप सुहाते याचना ।।
बुद्ध की सीखें सदा ही सत्य हैं ,
शान्त कर मन को बताते प्रार्थना ।
सत्य वाणी धर्म धारें जीव यदि ,
प्रेम पथ साधक सजाते वन्दना ।
काम , क्रोध व लोभ गढ़ते पाप को ,
छल -कपट अवगुण मिटाते पावना ।
शील , शिष्टाचार , शुचिता श्रेष्ठ गुण ,
धर्म पथ चलना सुझाते पालना ।
आत्मशोधन से बढ़ें इस त्याग पथ ,
सत वचन संस्कार उगाते भावना ।
आज भी है परम आवश्यक क्रिया ,
ध्यान , निर्मल मन बचाते वासना ।।
🌺🍀🌻🌷🌴🌸🌹
🌲🌲*.... रवीन्द्र वर्मा आगरा
सादर मंच को समर्पित -
🐚🌷🍑 गीतका 🌷🐚🍑
*****************************
🌺🍀🌻 संस्कार 🌻🍀🌺
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🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒
ध्यान मुद्रा तप बढ़ाते साधना ।
योग पावन जप सुहाते याचना ।।
बुद्ध की सीखें सदा ही सत्य हैं ,
शान्त कर मन को बताते प्रार्थना ।
सत्य वाणी धर्म धारें जीव यदि ,
प्रेम पथ साधक सजाते वन्दना ।
काम , क्रोध व लोभ गढ़ते पाप को ,
छल -कपट अवगुण मिटाते पावना ।
शील , शिष्टाचार , शुचिता श्रेष्ठ गुण ,
धर्म पथ चलना सुझाते पालना ।
आत्मशोधन से बढ़ें इस त्याग पथ ,
सत वचन संस्कार उगाते भावना ।
आज भी है परम आवश्यक क्रिया ,
ध्यान , निर्मल मन बचाते वासना ।।
🌺🍀🌻🌷🌴🌸🌹
🌲🌲*.... रवीन्द्र वर्मा आगरा
शीर्षक- संस्कार
******************
रचना
संस्कार होते जीवन का सार।
ये तो हैं ब्रह्माण्ड का आधार।।
संस्कार बनाते जीवन प्रभास।
लेकिन होते केवल आभास।।
माँ - पिता देते अमूल्य संस्कार।
पाते उनसे अनुशासन व प्यार।।
मंदिर से मिलते धार्मिक संस्कार।
किताबों से होता ज्ञान भंडार।।
संस्कार होते प्रेरणा के स्त्रोत।
नदिया सा बहता गुणों का स्त्रोत।।
संस्कार से जीवन में मधुरता।
होती वातावरण में समरसता।।
संस्कार बनाता सुगम संसार।
पावन होता मन, घर व द्वार।।
प्रभाव इसका न एक जनम तक।
असर दिखाता जन्म-जन्म तक।।
स्वरचित
मीनू "रागिनी "
05/07/19
प्रभास- चमकदार।
******************
रचना
संस्कार होते जीवन का सार।
ये तो हैं ब्रह्माण्ड का आधार।।
संस्कार बनाते जीवन प्रभास।
लेकिन होते केवल आभास।।
माँ - पिता देते अमूल्य संस्कार।
पाते उनसे अनुशासन व प्यार।।
मंदिर से मिलते धार्मिक संस्कार।
किताबों से होता ज्ञान भंडार।।
संस्कार होते प्रेरणा के स्त्रोत।
नदिया सा बहता गुणों का स्त्रोत।।
संस्कार से जीवन में मधुरता।
होती वातावरण में समरसता।।
संस्कार बनाता सुगम संसार।
पावन होता मन, घर व द्वार।।
प्रभाव इसका न एक जनम तक।
असर दिखाता जन्म-जन्म तक।।
स्वरचित
मीनू "रागिनी "
05/07/19
प्रभास- चमकदार।
गुरूजनों व मित्रों को नमन 🙏🙏
दिनांक- 5/6/2019
शीर्षक- संस्कार
विधा- हाइकु
************
(1)
हुई दुनियां
मोबाइल दिवानी
लुप्त संस्कार
(2)
रखती लाज
मायका-ससुराल
संस्कारी बहु
(3)
भटका इंसा
बना तमाशबीन
खोये संस्कार
(4)
सच का साथ
होते ईमानदार
अच्छे संस्कार
(5)
मधुर वाणी
हो सहनशीलता
अच्छे संस्कार
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
दिनांक- 5/6/2019
शीर्षक- संस्कार
विधा- हाइकु
************
(1)
हुई दुनियां
मोबाइल दिवानी
लुप्त संस्कार
(2)
रखती लाज
मायका-ससुराल
संस्कारी बहु
(3)
भटका इंसा
बना तमाशबीन
खोये संस्कार
(4)
सच का साथ
होते ईमानदार
अच्छे संस्कार
(5)
मधुर वाणी
हो सहनशीलता
अच्छे संस्कार
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
बिषय- संस्कार
श्रृंगार करो संस्कार से
प्यार करो सादगी से
कुछ कमी हम सबमें है
अपना लो सबको ख़ुशी से।
बाँटकर प्रेम और अपनापन
जीत लो सबका मन
अंधेरे दिल के दूर होंगे
प्यार ही की रोशनी से।
आगे हमें जब बढ़ना है
बाधाओं से नहीं डरना है
कभी तो मिलेगी मंजिल
सिखो ये सीख नदी से।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
श्रृंगार करो संस्कार से
प्यार करो सादगी से
कुछ कमी हम सबमें है
अपना लो सबको ख़ुशी से।
बाँटकर प्रेम और अपनापन
जीत लो सबका मन
अंधेरे दिल के दूर होंगे
प्यार ही की रोशनी से।
आगे हमें जब बढ़ना है
बाधाओं से नहीं डरना है
कभी तो मिलेगी मंजिल
सिखो ये सीख नदी से।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
आज का विषय - संस्कार
**कहाँ खो गए संस्कार**
ना बुजुर्गों का आदर रहा
ना बड़ो का मान -सम्मान
ना माँ - बाप की सेवा रही
ना बच्चों को लाड़ - प्यार
कहाँ खो गए संस्कार
गुरु , अब गुरु ना रहे
भटका शिष्य भी पथ से
भ्रष्टाचार का बोलबाला
ना नेता रहे ईमानदार
कहाँ खो गए संस्कार
ना रहा घूंघट का रिवाज
ना लंबी बलखाती चोटी
फैशन के चक्कर मे फंस
संस्कृति हो गई दागदार
कहाँ खो गए संस्कार
नशे की गिरफ्त में युवा
क्लब डिस्को जाने में शान
पूजा ,पाठ ,उपवास मिथ्या
गाय तुलसी किये दरकिनार
कहाँ खो गए संस्कार
सरे आम लूट रही आबरू
भ्रूणहत्या को मिला बढ़ावा
झूठ से सच हार रहा
इंसानियत हुई शर्मसार
कहाँ खो गए संस्कार
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा(हरियाणा)
**कहाँ खो गए संस्कार**
ना बुजुर्गों का आदर रहा
ना बड़ो का मान -सम्मान
ना माँ - बाप की सेवा रही
ना बच्चों को लाड़ - प्यार
कहाँ खो गए संस्कार
गुरु , अब गुरु ना रहे
भटका शिष्य भी पथ से
भ्रष्टाचार का बोलबाला
ना नेता रहे ईमानदार
कहाँ खो गए संस्कार
ना रहा घूंघट का रिवाज
ना लंबी बलखाती चोटी
फैशन के चक्कर मे फंस
संस्कृति हो गई दागदार
कहाँ खो गए संस्कार
नशे की गिरफ्त में युवा
क्लब डिस्को जाने में शान
पूजा ,पाठ ,उपवास मिथ्या
गाय तुलसी किये दरकिनार
कहाँ खो गए संस्कार
सरे आम लूट रही आबरू
भ्रूणहत्या को मिला बढ़ावा
झूठ से सच हार रहा
इंसानियत हुई शर्मसार
कहाँ खो गए संस्कार
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा(हरियाणा)
विषय-संस्कार
🌿🌺🌹🌺🌹🌺🌹🌿
एक माँ अपने बच्चों में
संस्कार के बीज बोती है
निस्वार्थ प्रेम वश संतान
के प्रति पूर्ण समर्पित होती है
निज संतान बुद्धिमान
शीलवान अच्छी इंसान बने
विनम्र,संस्कारी मर्यादित हो
उसकी यही कोशिश होती है
वृद्धावस्था की साँझ तले
जब वो अग्रसर होती है
तब प्रायः उसी संतान द्वारा
उपेक्षित ही वो होती है
कहाँ गए वो संस्कार,गुण
जो माँ ने तुममें डाले थे
क्या यही दिन देखने को
तुम्हें नव मास उदर में ढोती है?
**वंदना सोलंकी©️स्वरचित
🌿🌺🌹🌺🌹🌺🌹🌿
एक माँ अपने बच्चों में
संस्कार के बीज बोती है
निस्वार्थ प्रेम वश संतान
के प्रति पूर्ण समर्पित होती है
निज संतान बुद्धिमान
शीलवान अच्छी इंसान बने
विनम्र,संस्कारी मर्यादित हो
उसकी यही कोशिश होती है
वृद्धावस्था की साँझ तले
जब वो अग्रसर होती है
तब प्रायः उसी संतान द्वारा
उपेक्षित ही वो होती है
कहाँ गए वो संस्कार,गुण
जो माँ ने तुममें डाले थे
क्या यही दिन देखने को
तुम्हें नव मास उदर में ढोती है?
**वंदना सोलंकी©️स्वरचित
विधाःः काव्यःःमुक्तक ः
माँ हमें कुछ तो संस्कार दे।
माँ तू सुखदा शुभ वहार दे।
सब होंय सुसंस्कारित माते,
माँ अनुपम हमें उपहार दे।
मातपिता की सेवा कर लें।
आशीषों की मेवा धर लें।
परोपकार सत्संग करें हम,
सुसंस्कार की जेवा भर लें।
हृदयांचल से भजन कर लें।
शुद्ध भावना सृजन कर लें।
रागद्वेष कुछ रहे न उर में,
प्रेम प्यार मन रंजन कर लें।
रहें सदा हम स्वाभिमान से।
रहें दूर हम इस अभिमान से।
संस्कार कभी भूलें न अपने,
रहें परस्पर मान सम्मान से।
स्वरचितःः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
माँ हमें कुछ तो संस्कार दे।
माँ तू सुखदा शुभ वहार दे।
सब होंय सुसंस्कारित माते,
माँ अनुपम हमें उपहार दे।
मातपिता की सेवा कर लें।
आशीषों की मेवा धर लें।
परोपकार सत्संग करें हम,
सुसंस्कार की जेवा भर लें।
हृदयांचल से भजन कर लें।
शुद्ध भावना सृजन कर लें।
रागद्वेष कुछ रहे न उर में,
प्रेम प्यार मन रंजन कर लें।
रहें सदा हम स्वाभिमान से।
रहें दूर हम इस अभिमान से।
संस्कार कभी भूलें न अपने,
रहें परस्पर मान सम्मान से।
स्वरचितःः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
नमन समस्त मंच🙏
विषय- संस्कार05/07/2019
विधा -हाइकु
बुजुर्ग मान
वृद्ध आश्रम शान
खोते संस्कार
नवीन पीढ़ी
शान ओर शौकत
भूली संस्कार
बुजुर्ग हाथ
आशीर्वचन साथ
संस्कार मान
प्रथम पाठ
आदर्श परिवार
संस्कार साथ
स्वरचित- आशा पालीवाल पुरोहित राजसमंद
विषय- संस्कार05/07/2019
विधा -हाइकु
बुजुर्ग मान
वृद्ध आश्रम शान
खोते संस्कार
नवीन पीढ़ी
शान ओर शौकत
भूली संस्कार
बुजुर्ग हाथ
आशीर्वचन साथ
संस्कार मान
प्रथम पाठ
आदर्श परिवार
संस्कार साथ
स्वरचित- आशा पालीवाल पुरोहित राजसमंद
विषय .. संस्कार
********************
सजाया मिनट- मिनट पर ख्वाब, पिया जब घर आएगे।
करूगी ना मै उनसे बात, सजन जब घर आएगे॥
.....
दरवाजे के पीछे छुप कर, राह मै उनका देखूँगी।
जब आते वो दिखे मुझे मै, घर के अन्दर हो लूँगी॥
.....
लम्बी सी घुँघट को काढे, पाँव पिया के धो लूँगी।
देश का रक्षक है बेदर्दी, कैसे मै कुछ बोलूँगी॥
.....
संस्कार माँ बाप का है तो, गोरी ने है मान रखा।
आज भी भारत जिन्दा है, जो संस्कार का मान रखा॥
......
स्वरचित एंव मौलिक
शेर सिंह सर्राफ
********************
सजाया मिनट- मिनट पर ख्वाब, पिया जब घर आएगे।
करूगी ना मै उनसे बात, सजन जब घर आएगे॥
.....
दरवाजे के पीछे छुप कर, राह मै उनका देखूँगी।
जब आते वो दिखे मुझे मै, घर के अन्दर हो लूँगी॥
.....
लम्बी सी घुँघट को काढे, पाँव पिया के धो लूँगी।
देश का रक्षक है बेदर्दी, कैसे मै कुछ बोलूँगी॥
.....
संस्कार माँ बाप का है तो, गोरी ने है मान रखा।
आज भी भारत जिन्दा है, जो संस्कार का मान रखा॥
......
स्वरचित एंव मौलिक
शेर सिंह सर्राफ
संस्कार बिना,
जीवन का चरित्र,
श्रेष्ठ नही होता।।1।।
सँस्कार सीढ़ी,
चरित्र निर्माण की
श्रेष्ठ जीवन।।2.।।
3/संस्कार सदा,
मानव जीवन की,
श्रेष्ठ संपति।।
4/संस्कार करे,
जीवन का निर्माण
देव चरित्र।।
स्वरचित देवेन्द्रनारायण दासबसना छ,ग,।
जीवन का चरित्र,
श्रेष्ठ नही होता।।1।।
सँस्कार सीढ़ी,
चरित्र निर्माण की
श्रेष्ठ जीवन।।2.।।
3/संस्कार सदा,
मानव जीवन की,
श्रेष्ठ संपति।।
4/संस्कार करे,
जीवन का निर्माण
देव चरित्र।।
स्वरचित देवेन्द्रनारायण दासबसना छ,ग,।
05/2019
"संस्कार"
1
संस्कार प्रीति
प्रेम की अनुभूति
अंतस तृप्ति
2
स्वपरिचय
दर्पण व्यवहार
दृश्य संस्कार
3
युग बदला
संस्कार है उधाव
शांति अभाव
4
पूजा संस्कार
घर का प्रचलन
आस्था फलन
5
बेटी निभाती
दो कुल परंपरा
शिक्षा संस्कार
6
गृह मर्यादा
शिक्षा संस्कारिकता
दृश्य संतान
7
संस्कार बीज
मर्यादा अंकुरण
प्रेम सींचन
8
बहु व बेटी
संस्कार का गहना
निर्वाह लाज
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।
"संस्कार"
1
संस्कार प्रीति
प्रेम की अनुभूति
अंतस तृप्ति
2
स्वपरिचय
दर्पण व्यवहार
दृश्य संस्कार
3
युग बदला
संस्कार है उधाव
शांति अभाव
4
पूजा संस्कार
घर का प्रचलन
आस्था फलन
5
बेटी निभाती
दो कुल परंपरा
शिक्षा संस्कार
6
गृह मर्यादा
शिक्षा संस्कारिकता
दृश्य संतान
7
संस्कार बीज
मर्यादा अंकुरण
प्रेम सींचन
8
बहु व बेटी
संस्कार का गहना
निर्वाह लाज
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।
दिनांक--5-7-19
विधा---दोहे
1.
हुआ ' हितैषी' जगत में,संस्कारों का लोप।
इसीलिए बढ़ते सदा,दुष्कर्मी औ कोप।।
2
बनें संस्कारवान खुद, जीवित बनें किताब।
बच्चे जिसको पढ़ सकें,पाएं जीवन आब ।।
3.
गिरे पसीना भूमि पर,रज से सतत जुड़ाव।
श्रम की इस पतवार से,बढ़े संस्कार नाव।।
4.
संस्कारी गृहिणी सदा,दे पावन संस्कार।
बच्चों का जीवन सजे,स्तुत्य बने किरदार।।
******स्वरचित*******
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र.)451551
विधा---दोहे
1.
हुआ ' हितैषी' जगत में,संस्कारों का लोप।
इसीलिए बढ़ते सदा,दुष्कर्मी औ कोप।।
2
बनें संस्कारवान खुद, जीवित बनें किताब।
बच्चे जिसको पढ़ सकें,पाएं जीवन आब ।।
3.
गिरे पसीना भूमि पर,रज से सतत जुड़ाव।
श्रम की इस पतवार से,बढ़े संस्कार नाव।।
4.
संस्कारी गृहिणी सदा,दे पावन संस्कार।
बच्चों का जीवन सजे,स्तुत्य बने किरदार।।
******स्वरचित*******
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र.)451551
आज का विषयः- संस्कार
हर व्यक्ति को देता उसका परिवार।
जो होते हैं उसके परिवार के संस्कार।।
माता को श्रेय है ढ़ालने का संस्कार ।
उन्हीं से पाता है वह अपने संस्कार।।
मिलते माता की कृपा से जो संस्कार।
होते वही मानव के जीवन का आधार।।
समस्त जीवन घूमता उनके चारो ओर।
अपनी माता का भूलना नहीं उपकार ।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
हर व्यक्ति को देता उसका परिवार।
जो होते हैं उसके परिवार के संस्कार।।
माता को श्रेय है ढ़ालने का संस्कार ।
उन्हीं से पाता है वह अपने संस्कार।।
मिलते माता की कृपा से जो संस्कार।
होते वही मानव के जीवन का आधार।।
समस्त जीवन घूमता उनके चारो ओर।
अपनी माता का भूलना नहीं उपकार ।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
भावों के मोती
विषय-संस्कार
____________________
युग बदला रीत बदली
इस दुनिया में प्रीत बदली
संस्कारों की झोली खाली
बंद अलमारी किताबों वाली
रीति-रिवाज दकियानूसी
होते संस्कार अब मशीनी
इंग्लिश बनी दिल की रानी
संबंधों की महत्ता भुला दी
चाचा,मामी शब्द पुराने लगते
अंकल,आंटी में सिमटे रिश्ते
बच्चे भी बेबी,पति-पत्नी भी बेबी
रिश्तों का यह गणित बड़ा हेवी
नमस्कार की जगह हाय,बाय,टाटा
हिंदी संस्कारों पर लगा चांटा
बातचीत के बोल सिमट गए
टुकड़ों में सब शब्द सिमट गए
मोहब्बत भी चार दिन वाली
नहीं बनी तो तलाक की बारी
पाश्चात्य संस्कृति का बढ़ता महत्व
भारतीय संस्कारों का करता दहन
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित
विषय-संस्कार
____________________
युग बदला रीत बदली
इस दुनिया में प्रीत बदली
संस्कारों की झोली खाली
बंद अलमारी किताबों वाली
रीति-रिवाज दकियानूसी
होते संस्कार अब मशीनी
इंग्लिश बनी दिल की रानी
संबंधों की महत्ता भुला दी
चाचा,मामी शब्द पुराने लगते
अंकल,आंटी में सिमटे रिश्ते
बच्चे भी बेबी,पति-पत्नी भी बेबी
रिश्तों का यह गणित बड़ा हेवी
नमस्कार की जगह हाय,बाय,टाटा
हिंदी संस्कारों पर लगा चांटा
बातचीत के बोल सिमट गए
टुकड़ों में सब शब्द सिमट गए
मोहब्बत भी चार दिन वाली
नहीं बनी तो तलाक की बारी
पाश्चात्य संस्कृति का बढ़ता महत्व
भारतीय संस्कारों का करता दहन
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित
5/7/19
--------------
संस्कार
हाइकु
-----------------
1)
संस्कार सांचा
मानवता गढता
मानव ढाँचा।।
2)
संस्कारहीन
बिन शक्कर खीर
भाव विहीन ।।
3)
पाश्चात्य धुन
संस्कार लगा घुन
संस्कृति सुन्न ।।
----------------------
क्षीरोद्र कुमार पुरोहित
--------------
संस्कार
हाइकु
-----------------
1)
संस्कार सांचा
मानवता गढता
मानव ढाँचा।।
2)
संस्कारहीन
बिन शक्कर खीर
भाव विहीन ।।
3)
पाश्चात्य धुन
संस्कार लगा घुन
संस्कृति सुन्न ।।
----------------------
क्षीरोद्र कुमार पुरोहित
"शीर्षक-संस्कार"
धर्य हमारा घट रहा
संस्कार हमारा छूट रहा
यह नही मिलता बाजारों में
माँ बाप से आये संतानों में।
ये दिलाये हमें जग मे मान
इससे बनती हमारी पहचान
बच्चे जब होते घर से दूर
संस्कार बचाये हर अवगुण।
जितना भी हो बनाव श्रृंगार
संस्कार बिना सब बेकार
धर्म भी यही,धन भी यही
इसके बिना नही जीवन सही।
जब थे संस्कार ताकतवर
वृद्धाश्रम का न नामों निशान
धन दौलत को वसियत लिखिए
पहले संस्कार बच्चों में दीजिए।
स्वरचित-आरती -श्रीवास्तव
धर्य हमारा घट रहा
संस्कार हमारा छूट रहा
यह नही मिलता बाजारों में
माँ बाप से आये संतानों में।
ये दिलाये हमें जग मे मान
इससे बनती हमारी पहचान
बच्चे जब होते घर से दूर
संस्कार बचाये हर अवगुण।
जितना भी हो बनाव श्रृंगार
संस्कार बिना सब बेकार
धर्म भी यही,धन भी यही
इसके बिना नही जीवन सही।
जब थे संस्कार ताकतवर
वृद्धाश्रम का न नामों निशान
धन दौलत को वसियत लिखिए
पहले संस्कार बच्चों में दीजिए।
स्वरचित-आरती -श्रीवास्तव
हाइकु (5/7/5)
विषय:-"संस्कार"
संस्कार
(1)
हाथों में रेत
"संस्कार" बाड़ टूटी
उजड़ा खेत
(2)
"संस्कार" बीज
खाद व पानी जैसा
फल भी वैसा
(3)
घर"संस्कार"
समर्पण निवास
सेवा है द्वार
(4)
वक्त बदला
"संस्कार" जले होली
स्वप्न झुलसा
(5)
ऐब का नशा
"संस्कारो"से लुढ़के
घर दुर्दशा
(6)
कैसा मंजर?
"संस्कार"जमीं सूखी
खेत बंजर
(7)
"संस्कार" बोले
शब्द जिह्वा पे चढ़
मन को खोले
(8)
पीढ़ियों चले
"संस्कार" बीज सम
खून में फले
(9)
वक़्त न साथ
"सँस्कारों "का रोपण
चुनौती आज
स्वरचित
ऋतुराज दवे
विषय:-"संस्कार"
संस्कार
(1)
हाथों में रेत
"संस्कार" बाड़ टूटी
उजड़ा खेत
(2)
"संस्कार" बीज
खाद व पानी जैसा
फल भी वैसा
(3)
घर"संस्कार"
समर्पण निवास
सेवा है द्वार
(4)
वक्त बदला
"संस्कार" जले होली
स्वप्न झुलसा
(5)
ऐब का नशा
"संस्कारो"से लुढ़के
घर दुर्दशा
(6)
कैसा मंजर?
"संस्कार"जमीं सूखी
खेत बंजर
(7)
"संस्कार" बोले
शब्द जिह्वा पे चढ़
मन को खोले
(8)
पीढ़ियों चले
"संस्कार" बीज सम
खून में फले
(9)
वक़्त न साथ
"सँस्कारों "का रोपण
चुनौती आज
स्वरचित
ऋतुराज दवे
#विषय----*संस्कार*
दिनांक----05/07/19
नित प्रातः माता-पिता के शीष नवाये, #संस्कार*ऐसा हो,
बडे -बुजुर्गों का सदा सम्मान करें ,सदाचार ऐसा हो ।
माता की दूध का ,पिता के पसीने का मोल जो समझे,
पूत वो ,सपूत वो ,कर्तव्यनिष्ठ हो , शिष्टाचार ऐसा हो ।
प्रेम-स्नेह, प्रीत-रीत,प्यार-दुलार,मान-मर्यादा की गंगा बहे,
विश्वास की डोर से बंधे रहें हरदम ,परिवार ऐसा हो।
बरगद के छाँव जैसे बुजुर्गों का आश्रय हो हाथ सिर पर,
आँगन की तुलसी जैसे पवित्र मन हो ,नवाचार ऐसा हो
दीपोत्सव की जगमग , होली के रंग ,ईद की सेवँई हो,
दीप से दीप मिले,मन से मिले मन ,त्यौहार ऐसा हो।
रंगोली से सजा अंगना हो, सजे फूल दीप पूजा की थाल ,
मंगल आरती ,मत्रोच्चार से गूँजे, सुन्दर घर-द्वार ऐसाहो।
आपस में भाई चारा रहे कायम, चाहे हो हिन्दु-मुस्लिम,
चाहे सिख-इसाई, सपना है सजीला, "धरा" संसार ऐसा हो।
---#स्वरचित
#धनेश्वरीदेवांगन"#धरा"
#रायगढ़(#छत्तीसगढ़)
दिनांक----05/07/19
नित प्रातः माता-पिता के शीष नवाये, #संस्कार*ऐसा हो,
बडे -बुजुर्गों का सदा सम्मान करें ,सदाचार ऐसा हो ।
माता की दूध का ,पिता के पसीने का मोल जो समझे,
पूत वो ,सपूत वो ,कर्तव्यनिष्ठ हो , शिष्टाचार ऐसा हो ।
प्रेम-स्नेह, प्रीत-रीत,प्यार-दुलार,मान-मर्यादा की गंगा बहे,
विश्वास की डोर से बंधे रहें हरदम ,परिवार ऐसा हो।
बरगद के छाँव जैसे बुजुर्गों का आश्रय हो हाथ सिर पर,
आँगन की तुलसी जैसे पवित्र मन हो ,नवाचार ऐसा हो
दीपोत्सव की जगमग , होली के रंग ,ईद की सेवँई हो,
दीप से दीप मिले,मन से मिले मन ,त्यौहार ऐसा हो।
रंगोली से सजा अंगना हो, सजे फूल दीप पूजा की थाल ,
मंगल आरती ,मत्रोच्चार से गूँजे, सुन्दर घर-द्वार ऐसाहो।
आपस में भाई चारा रहे कायम, चाहे हो हिन्दु-मुस्लिम,
चाहे सिख-इसाई, सपना है सजीला, "धरा" संसार ऐसा हो।
---#स्वरचित
#धनेश्वरीदेवांगन"#धरा"
#रायगढ़(#छत्तीसगढ़)
#विषय:संस्कार,,
#रचनाकार:दुर्गा सिलगीवाला सोनी,,
"""***""" संस्कार """***"""
कभी रोके रुका है ना रुकेगा,
यह जन्म मरण का सिलसिला,
ईश्वर की कुदरत का हिस्सा है,
मुफलिसी मिली या ऐश्वर्य मिला,
किन्तु संवेदना और दया रहम,
हम अपने संस्कारों से पाते हैं,
सुख दुख की हर अनुभूति पर,
सहृदयता जरूर ही दिखलाते हैं,
मानव हैं हम समभाव समर्थक,
पीड़ित मन से हम भी द्रवित हैं,
मासूमों की तकलीफ़ देखकर,
विधि का विधान भी व्यथित है,
अभिशाप भले ही है दुख दरिद्रता,
कई जन्मों का मिला यह संताप है,
वरदान भी यह तब बन सकता है,
भाग्य का मिले जो इसको साथ है,
#रचनाकार:दुर्गा सिलगीवाला सोनी,,
"""***""" संस्कार """***"""
कभी रोके रुका है ना रुकेगा,
यह जन्म मरण का सिलसिला,
ईश्वर की कुदरत का हिस्सा है,
मुफलिसी मिली या ऐश्वर्य मिला,
किन्तु संवेदना और दया रहम,
हम अपने संस्कारों से पाते हैं,
सुख दुख की हर अनुभूति पर,
सहृदयता जरूर ही दिखलाते हैं,
मानव हैं हम समभाव समर्थक,
पीड़ित मन से हम भी द्रवित हैं,
मासूमों की तकलीफ़ देखकर,
विधि का विधान भी व्यथित है,
अभिशाप भले ही है दुख दरिद्रता,
कई जन्मों का मिला यह संताप है,
वरदान भी यह तब बन सकता है,
भाग्य का मिले जो इसको साथ है,
बिषयःः #संस्कार#
विधाःः मुक्तकः
जीवन दर्शन न जानें नहीं मानते मर्म।
सभी दिखावा हम करें नहीं जानते धर्म।
संस्कार सब बता रहे, रखें स्वजन का मान,
क्यों हम सब अलसा रहे नहीं जानते कर्म।
सभी बिचारे हम यहाँ, नहीं बिसारे लोग।
करते निशदिन याद कुछ किऐ सहारे भोग।
हुऐ संस्कार हीन हम ना अपनापन ज्ञान,
कोई शायद तब मिले, होंय करारे जोग।
स्वरचितःः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
2भा#संस्कार #मुक्तकःःः
5/7/2019/शुक्रवार
विधाःः मुक्तकः
जीवन दर्शन न जानें नहीं मानते मर्म।
सभी दिखावा हम करें नहीं जानते धर्म।
संस्कार सब बता रहे, रखें स्वजन का मान,
क्यों हम सब अलसा रहे नहीं जानते कर्म।
सभी बिचारे हम यहाँ, नहीं बिसारे लोग।
करते निशदिन याद कुछ किऐ सहारे भोग।
हुऐ संस्कार हीन हम ना अपनापन ज्ञान,
कोई शायद तब मिले, होंय करारे जोग।
स्वरचितःः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
2भा#संस्कार #मुक्तकःःः
5/7/2019/शुक्रवार
विषय - संस्कार
संस्कार अब किताबों की बातें
अपने वजूद के लिये
रावण लडता रहा
और स्वयं नारायण भी
अस्तित्व न मिटा पाये उसका
बस काया गंवाई रावण ने
अपने सिद्धांत बो गया
फलीभूत होते होते
सदियों से गहराते गये
वजह क्या? न सोचा कभी
बस तन का रावण जलता रहा
मनोवृत्ति में पोषित
होते रहे दशानन
राम पुरुषोत्तम के सद्गुण
स्थापित कर गये जग में
साथ ही रावण भी कहीं गहरे
अपने तमोगुण के बीज बो चला
और अब देखो जिधर
राम बस संस्कारों की
बातो, पुस्तकों और ग्रंथों में
या फिर बच्चों को
पुरुषोत्तम बनाने का
असफल प्रयास भर है,
और रावणों की खेती
हर और लहरा रही है।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
संस्कार अब किताबों की बातें
अपने वजूद के लिये
रावण लडता रहा
और स्वयं नारायण भी
अस्तित्व न मिटा पाये उसका
बस काया गंवाई रावण ने
अपने सिद्धांत बो गया
फलीभूत होते होते
सदियों से गहराते गये
वजह क्या? न सोचा कभी
बस तन का रावण जलता रहा
मनोवृत्ति में पोषित
होते रहे दशानन
राम पुरुषोत्तम के सद्गुण
स्थापित कर गये जग में
साथ ही रावण भी कहीं गहरे
अपने तमोगुण के बीज बो चला
और अब देखो जिधर
राम बस संस्कारों की
बातो, पुस्तकों और ग्रंथों में
या फिर बच्चों को
पुरुषोत्तम बनाने का
असफल प्रयास भर है,
और रावणों की खेती
हर और लहरा रही है।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
शुक्रवार
कविता
संस्कार मानव चरित्र को पूर्ण बनाते ,
जीवन में संतुलन और समरसता लाते।
जन्म-मरण दोनों से इनका रहता नाता-
इनको अपनाकर सब जग में यश हैं पाते।
जन्म मनुज का जब इस धरती पर होता है,
संस्कार उस क्षण से संपादित होता है।
कदम-कदम पर जीवन की बहती धारा में,
उचित संस्कारों का सुन्दर रंग बहता है।
ये समाज में रिश्तों को मजबूती देते,
उत्सव के रूपों में घर खुशियों से भरते।
जो जीवन में संस्कार को व्यर्थ बताते,
उनके लिए सफलता के पथ खुल न पाते।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
कविता
संस्कार मानव चरित्र को पूर्ण बनाते ,
जीवन में संतुलन और समरसता लाते।
जन्म-मरण दोनों से इनका रहता नाता-
इनको अपनाकर सब जग में यश हैं पाते।
जन्म मनुज का जब इस धरती पर होता है,
संस्कार उस क्षण से संपादित होता है।
कदम-कदम पर जीवन की बहती धारा में,
उचित संस्कारों का सुन्दर रंग बहता है।
ये समाज में रिश्तों को मजबूती देते,
उत्सव के रूपों में घर खुशियों से भरते।
जो जीवन में संस्कार को व्यर्थ बताते,
उनके लिए सफलता के पथ खुल न पाते।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
1
जीने का ढंग
जीवन सबरंग
संस्कार-संग
2
संस्कार-धन
अनमोल संपत्ति
हस्तांतरण
3
विलुप्त प्यार
भोगवादी संस्कार
वृद्धाश्रम माँ
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
जीने का ढंग
जीवन सबरंग
संस्कार-संग
2
संस्कार-धन
अनमोल संपत्ति
हस्तांतरण
3
विलुप्त प्यार
भोगवादी संस्कार
वृद्धाश्रम माँ
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
संस्कार
संस्कार सिखाते
माता पिता
निखरता व्यक्तित्व
बच्चों का
बेटी के संस्कार
होते दर्पण
दो घरों के
होतीं बेटियाँ
लाड़ली
मायके - ससुराल में
जाओ घर किसी के
दिखते संस्कार
दरवाजे से ही
नम्रता, व्यवहार
स्वागत है
इसकी पहचान
भारतीय
संस्कृति और
संस्कारों की
दुनियाँ है कायल
राम रहीम
नानक ईसा
है सब पूज्य यहाँ
ऐसे दे संस्कार
बच्चों को
गलत काम
वो करे नहीं
मेहनत
ईमानदारी से
जिंदगी
कांटे सारी
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
संस्कार सिखाते
माता पिता
निखरता व्यक्तित्व
बच्चों का
बेटी के संस्कार
होते दर्पण
दो घरों के
होतीं बेटियाँ
लाड़ली
मायके - ससुराल में
जाओ घर किसी के
दिखते संस्कार
दरवाजे से ही
नम्रता, व्यवहार
स्वागत है
इसकी पहचान
भारतीय
संस्कृति और
संस्कारों की
दुनियाँ है कायल
राम रहीम
नानक ईसा
है सब पूज्य यहाँ
ऐसे दे संस्कार
बच्चों को
गलत काम
वो करे नहीं
मेहनत
ईमानदारी से
जिंदगी
कांटे सारी
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
दिन शुक्रवार
सँस्कार
🍁🍁🍁🍁
सँस्कार!मानवता का है अभिषेक
सँस्कार !अच्छी बातों का समावेश
सँस्कार! रोकते व्यर्थ के आवेश
सँस्कार! देते हैं सम्मान विशेष।
अलग ही होती सँस्कारित भाषा
यह बतलाती स्वयम् की परिभाषा
नपे तुले और सुन्दर सम्बोधन
शालीन असहमति और अनुमोदन।
सँस्कार चेहरे पर झलकते
कभी आँखों से छलकते
मौन भी और सँवाद भी
यह रहती प्रशँसनीय याद भी।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
सँस्कार
🍁🍁🍁🍁
सँस्कार!मानवता का है अभिषेक
सँस्कार !अच्छी बातों का समावेश
सँस्कार! रोकते व्यर्थ के आवेश
सँस्कार! देते हैं सम्मान विशेष।
अलग ही होती सँस्कारित भाषा
यह बतलाती स्वयम् की परिभाषा
नपे तुले और सुन्दर सम्बोधन
शालीन असहमति और अनुमोदन।
सँस्कार चेहरे पर झलकते
कभी आँखों से छलकते
मौन भी और सँवाद भी
यह रहती प्रशँसनीय याद भी।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
विधा: पिरामिड
१.
खो
गया
चरित्र
सदाचार
इंसानियत
बिके कौड़ी भाव
मनु संस्कार धन
२.
है
नींव
संस्कार
परिवार
ठोस आधार
समाज सुधार
राष्ट्र प्रगति द्वार
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
१.
खो
गया
चरित्र
सदाचार
इंसानियत
बिके कौड़ी भाव
मनु संस्कार धन
२.
है
नींव
संस्कार
परिवार
ठोस आधार
समाज सुधार
राष्ट्र प्रगति द्वार
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
संस्कारी बनो
जीवन है संग्राम
विजयी भव।।
संस्कारवान
हर मोड़ विजय
ढूंढे न मिलें।।
संस्कारयुक्त
रहता भय मुक्त
सफल व्यक्ति।।
भावुक
जीवन है संग्राम
विजयी भव।।
संस्कारवान
हर मोड़ विजय
ढूंढे न मिलें।।
संस्कारयुक्त
रहता भय मुक्त
सफल व्यक्ति।।
भावुक
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