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ब्लॉग संख्या :-445
12/7/2019
"संवाद"
1)
हो
श्रेष्ठ
संवाद
प्रेम खाद
त्याग उन्माद
रिश्तों में बहार
घरौंदा बेमिसाल।।
2)
ये
प्रेम
संवाद
राधे कृष्ण
मधुर संगीत
दो दिलों की जीत
ज्यों हरियाली तीज।।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित
"संवाद"
1)
हो
श्रेष्ठ
संवाद
प्रेम खाद
त्याग उन्माद
रिश्तों में बहार
घरौंदा बेमिसाल।।
2)
ये
प्रेम
संवाद
राधे कृष्ण
मधुर संगीत
दो दिलों की जीत
ज्यों हरियाली तीज।।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित
शीर्षक: संवाद
****संवाद
तुमसे जाने कितना हैं,
अकेले वक़्त का जीवन
जितना है,दृढ़ताओ से
भरा संवाद तुम्हारा हैं
जीवन ज़िन्दगी का
एक स्थान तुम्हारा हैं,
चारों और फ़ैला एहसास
तुम्हारे संवाद से भरा हैं
दृश्य तुम्हारा दूरियों से दूरी तय
तुम्हारी तुमसे जीवन का सारा
संवाद हमारा है।।
विधा लघुकविता
12 जुलाई 2019,शुक्रवार
सोच समझकर परमेश्वर ने
मानव को संवाद शक्ति दी।
जिसने इसकी कीमत समझी
उसने जीवन में प्रगति की।
संवादों के बल संसद नित
विधि निर्माण सदन में होता।
चहुर्मुखी विकास देश हित
नव बीज जन हित में बोता।
मातपिता गुरुजन संवाद
संस्कारित जीवन करते।
खून पसीना सदा बहाकर
जीवन में रंगों को भरते।
समस्या का समाधान संवाद
सुखमय जीवन का आधार।
सोचो समझो बोलो फिर तुम
हर स्वप्न मिल करो साकार।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
12 जुलाई 2019,शुक्रवार
सोच समझकर परमेश्वर ने
मानव को संवाद शक्ति दी।
जिसने इसकी कीमत समझी
उसने जीवन में प्रगति की।
संवादों के बल संसद नित
विधि निर्माण सदन में होता।
चहुर्मुखी विकास देश हित
नव बीज जन हित में बोता।
मातपिता गुरुजन संवाद
संस्कारित जीवन करते।
खून पसीना सदा बहाकर
जीवन में रंगों को भरते।
समस्या का समाधान संवाद
सुखमय जीवन का आधार।
सोचो समझो बोलो फिर तुम
हर स्वप्न मिल करो साकार।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
प्रथम प्रस्तुति
संवाद से ही विवाद सुलझता है
संवाद से ही विवाद उलझता है ।।
शब्दों की सार्थकता औ स्वभाव
का लचीलापन महत्व रखता है ।।
लक्षमण और परसुराम का संवाद
बार बार बिगड़ता और फँसता है ।।
लक्षमण के जोशीले और चुटीले
स्वभाव से ऋषि का तेवर चढ़ता है ।।
वहीं राम के विनम्रशील स्वभाव
से ये झगड़ा बनते बनते टलता है ।।
शब्द वही उनका तालमेल प्रस्तुति
वक्ता का हाव- भाव रंग भरता है ।।
चेहरे की सादगी और वाणी के
मिठास से संवाद 'शिवम'सजता है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 12/07/2019
संवाद से ही विवाद सुलझता है
संवाद से ही विवाद उलझता है ।।
शब्दों की सार्थकता औ स्वभाव
का लचीलापन महत्व रखता है ।।
लक्षमण और परसुराम का संवाद
बार बार बिगड़ता और फँसता है ।।
लक्षमण के जोशीले और चुटीले
स्वभाव से ऋषि का तेवर चढ़ता है ।।
वहीं राम के विनम्रशील स्वभाव
से ये झगड़ा बनते बनते टलता है ।।
शब्द वही उनका तालमेल प्रस्तुति
वक्ता का हाव- भाव रंग भरता है ।।
चेहरे की सादगी और वाणी के
मिठास से संवाद 'शिवम'सजता है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 12/07/2019
बिषय, संवाद,,
रिश्तों में कटुता आ जाती
गर कड़बे हों संवाद
स्वयं को सच्चा सावित
करने में बढ़ता जाता और
बिवाद
चतुराई से टाल देते मृदुभाषी
.विद्वता सिद्ध करने की कोशिश में
अड़ जाती ठकुरासी
अल्पभाषी सदैव वाणी में
माधुर्य रस घोलते
शब्दावली में सरसता
तौल तौलकर बोलते
ब्यर्थ संभाषण छोड़
करें परस्पर हास परिहास
गिले शिकवे छोड़ बोलों
में रहे मिठास
हृदय पटल पर अंकित हों
ऐसा हो अपना वार्तालाप
जहाँ बोल का मोल नहीं
नाहक फिर क्यों आलाप
भाषा में संयमता हो तो
निखर जाता जीवन का सार
संवाद से ही समझ में आता
व्यक्ति का आचार विचार
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
रिश्तों में कटुता आ जाती
गर कड़बे हों संवाद
स्वयं को सच्चा सावित
करने में बढ़ता जाता और
बिवाद
चतुराई से टाल देते मृदुभाषी
.विद्वता सिद्ध करने की कोशिश में
अड़ जाती ठकुरासी
अल्पभाषी सदैव वाणी में
माधुर्य रस घोलते
शब्दावली में सरसता
तौल तौलकर बोलते
ब्यर्थ संभाषण छोड़
करें परस्पर हास परिहास
गिले शिकवे छोड़ बोलों
में रहे मिठास
हृदय पटल पर अंकित हों
ऐसा हो अपना वार्तालाप
जहाँ बोल का मोल नहीं
नाहक फिर क्यों आलाप
भाषा में संयमता हो तो
निखर जाता जीवन का सार
संवाद से ही समझ में आता
व्यक्ति का आचार विचार
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
दिनांक- 12/7/2019
शीर्षक- "संवाद"
****************
माँ और बेटे के बीच का संवाद
************************
बेटा (रेलवे कर्मचारी) - माँ मेरा तबादला दूसरे शहर में हो गया है |
माँ-ओह! अब क्या, कैसे?
बेटा- माँ जाना पड़ेगा, नौकरी है न, आप, बाबू जी और रश्मि(पत्नी) भी संग चलो |
माँ- नहीं बेटा मैं और तेरे बाबू जी यहीं रहेगें, तू बहु को साथ ले जा |
बेटा- माँ ऐसे कैसे आप दोनों का ख्याल कौन रखेगा ?
माँ- तेरे बाबू जी और मैं एक दूसरे का ध्यान रखेगें, तु दिल छोटा मत कर, और छुट्टी में तो तू आता ही रहेगा न |
बेटा-हाँ माँ जरूर |
माँ- (आशीर्वाद देते हुए)- बेटा अपना और बहु का ध्यान रखना |
स्वरचित "संगीता कुकरेती"
शीर्षक- "संवाद"
****************
माँ और बेटे के बीच का संवाद
************************
बेटा (रेलवे कर्मचारी) - माँ मेरा तबादला दूसरे शहर में हो गया है |
माँ-ओह! अब क्या, कैसे?
बेटा- माँ जाना पड़ेगा, नौकरी है न, आप, बाबू जी और रश्मि(पत्नी) भी संग चलो |
माँ- नहीं बेटा मैं और तेरे बाबू जी यहीं रहेगें, तू बहु को साथ ले जा |
बेटा- माँ ऐसे कैसे आप दोनों का ख्याल कौन रखेगा ?
माँ- तेरे बाबू जी और मैं एक दूसरे का ध्यान रखेगें, तु दिल छोटा मत कर, और छुट्टी में तो तू आता ही रहेगा न |
बेटा-हाँ माँ जरूर |
माँ- (आशीर्वाद देते हुए)- बेटा अपना और बहु का ध्यान रखना |
स्वरचित "संगीता कुकरेती"
विषय-संवाद
संवाद की ललक में
आँखें विमुग्ध हो गई
मस्तिष्क की खिड़कियां
स्वतः बंद हो गई।।
सजल नेत्र की अश्रु जलधारा मे
महलों की रौनक क्षुब्ध हो गई।।
देखा है मैंने झोपड़ियों को उजड़ते
जहां पर गरीब व बालपन थे कभी ठहरते।।
इनसे तो संवाद करो.....
तुम्हें देना होगा हिसाब
लूट खसोट की आँच में।।
धरा के गर्भ में फट रहा है लावा
उबाल खाता आग में।।
आदिवासियों का उफनता ज्वार
तत्पर हैं धनुष बाण लेकर तैयार।।
इनसे तो संवाद करो..।।।
हुकूमते ही नक्सल बनाती है...........
हुकुमते ही चंबल बनाती हैं............।।
विश्वग्राम के जन्नत
भारत के कुल ग्राम को देखो
इनसे तो संवाद करो....
यहीं धुआं मैं खोज रहा था
बारूदी गंधो की खुशबू
ठहरो -ठहरो भर लूं इन नथनों में
बारूदी छर्रो की खुशबू।।
छत्तीसगढ़ का बच्चा-बच्चा
क्यों बिछाता सुरंगों का बिछौना
नक्सलवाद के गोद में पलता
माओवाद का पकड़ लेता नचौना
गतिमान विकास की पहुंच से दूर पड़ा
कुल ग्राम का यह पालना.................
स्वरचित....
सर्वाधिकार सुरक्षित@#$
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
संवाद की ललक में
आँखें विमुग्ध हो गई
मस्तिष्क की खिड़कियां
स्वतः बंद हो गई।।
सजल नेत्र की अश्रु जलधारा मे
महलों की रौनक क्षुब्ध हो गई।।
देखा है मैंने झोपड़ियों को उजड़ते
जहां पर गरीब व बालपन थे कभी ठहरते।।
इनसे तो संवाद करो.....
तुम्हें देना होगा हिसाब
लूट खसोट की आँच में।।
धरा के गर्भ में फट रहा है लावा
उबाल खाता आग में।।
आदिवासियों का उफनता ज्वार
तत्पर हैं धनुष बाण लेकर तैयार।।
इनसे तो संवाद करो..।।।
हुकूमते ही नक्सल बनाती है...........
हुकुमते ही चंबल बनाती हैं............।।
विश्वग्राम के जन्नत
भारत के कुल ग्राम को देखो
इनसे तो संवाद करो....
यहीं धुआं मैं खोज रहा था
बारूदी गंधो की खुशबू
ठहरो -ठहरो भर लूं इन नथनों में
बारूदी छर्रो की खुशबू।।
छत्तीसगढ़ का बच्चा-बच्चा
क्यों बिछाता सुरंगों का बिछौना
नक्सलवाद के गोद में पलता
माओवाद का पकड़ लेता नचौना
गतिमान विकास की पहुंच से दूर पड़ा
कुल ग्राम का यह पालना.................
स्वरचित....
सर्वाधिकार सुरक्षित@#$
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
"संवाद"
हाइकु(2प्रस्तुति)
**************
तीव्र संवाद
गृहस्थी उजाड़ती
मौन है द्वार।।
संवाद गुम
हृदय में दुबकी
प्रीत बहार।।
कौड़ी न दाम
संवाद विनिमय
मधु प्रणाली।
कटु संवाद
हृदय को बींधते
विष से तीर।।
चंचल नैन
बोले दिल की बात
बिन संवाद।।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित
हाइकु(2प्रस्तुति)
**************
तीव्र संवाद
गृहस्थी उजाड़ती
मौन है द्वार।।
संवाद गुम
हृदय में दुबकी
प्रीत बहार।।
कौड़ी न दाम
संवाद विनिमय
मधु प्रणाली।
कटु संवाद
हृदय को बींधते
विष से तीर।।
चंचल नैन
बोले दिल की बात
बिन संवाद।।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित
दिनांक 12/07/19
=================
समझ लेते हैं वो मुझ को,
होता संवाद नहीं कोई।
वो मुझ में हैं कितने मैं कितनी
उन में अंदाज नहीं कोई।
दुनियाँ हैं वो मेरे दिल की
रिश्ता उनसे मेरा नहीं कोई।
खुली किताब सा मेरा दिल
पढ लेते हैं वो और नहीं कोई।
वो मेरे कान्हा मैं राधा उनकी
बस दुनियाँ में अब नहीं कोई।
स्वरचित
मीनू "रागिनी"
12/07/19
=================
समझ लेते हैं वो मुझ को,
होता संवाद नहीं कोई।
वो मुझ में हैं कितने मैं कितनी
उन में अंदाज नहीं कोई।
दुनियाँ हैं वो मेरे दिल की
रिश्ता उनसे मेरा नहीं कोई।
खुली किताब सा मेरा दिल
पढ लेते हैं वो और नहीं कोई।
वो मेरे कान्हा मैं राधा उनकी
बस दुनियाँ में अब नहीं कोई।
स्वरचित
मीनू "रागिनी"
12/07/19
आओ मिल जुल संवाद करें हम।
अब नहीं समय बरवाद करें हम।
ये खींचातानी अच्छी नहीं लगती,
क्यों ये बेस्वाद मुंहवाद करें हम।
समयानुसार चलें हम मिलकर।
सुखदसार रहें हम मिलजुलकर।
कुछ मन सागर गहराई में उतरें,
पर्वत राई बना देंगे हम मिलकर।
इस जीवन को कुछ सरस बनाऐं।
मिल जन को कुछ दरस दिखाऐं।
प्रकृति संवाद शीश झुकाऐ करती,
क्यों नहीं हम कुछ मधुरस पिलाऐं।
वक्त किसी को कभी नहीं ठहरता।
हमें हमेशा यह कभी नहीं सिहरता।
संवादहीन यहां नहीं रहें कभी हम,
सचमुच ये हमें कभी नहीं सिमरता।
स्वरचित ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
अब नहीं समय बरवाद करें हम।
ये खींचातानी अच्छी नहीं लगती,
क्यों ये बेस्वाद मुंहवाद करें हम।
समयानुसार चलें हम मिलकर।
सुखदसार रहें हम मिलजुलकर।
कुछ मन सागर गहराई में उतरें,
पर्वत राई बना देंगे हम मिलकर।
इस जीवन को कुछ सरस बनाऐं।
मिल जन को कुछ दरस दिखाऐं।
प्रकृति संवाद शीश झुकाऐ करती,
क्यों नहीं हम कुछ मधुरस पिलाऐं।
वक्त किसी को कभी नहीं ठहरता।
हमें हमेशा यह कभी नहीं सिहरता।
संवादहीन यहां नहीं रहें कभी हम,
सचमुच ये हमें कभी नहीं सिमरता।
स्वरचित ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
Sher Singh Sarraf नमन मंच
दिनांक .. 12/7/2019
विषय .. संवाद
**********************
सरहदों को दिल पें अपने, कोई ना जगह दे,
हो सके तो आओ ना, संवाद हम कुछ कर ले।
**
एक ही थी ये जँमी जो बाँट दी किसी ने,
जड से मुझको काट करके, गाड दी जँमी पे।
**
दूरियों को पाट के आ दिल से दिल मिला ले,
हो सके तो आओ ना दोनो गले लगा ले।
**
नफरतों का दौर ये सियासतीनी चाल है,
मुल्क मेरा एक था तो कैसा इन्कलाब है।
**
गंगा जल व सिन्धु जल को एक मे मिला दे,
हो सके तो आओ फिर सरहदें मिटा दें।
**
हिंगलाज था मेरा तो ढाका मेरा देश था,
तू भी सोच आगरे का क्या हँसीन दौर था।
**
शेर के हृदय की बातें आओ आजमां ले,
हो सके तो मुल्क तीनो एक में मिला दे।
स्वरचित एवं मौलिक
शेर सिंह सर्राफ
दिनांक .. 12/7/2019
विषय .. संवाद
**********************
सरहदों को दिल पें अपने, कोई ना जगह दे,
हो सके तो आओ ना, संवाद हम कुछ कर ले।
**
एक ही थी ये जँमी जो बाँट दी किसी ने,
जड से मुझको काट करके, गाड दी जँमी पे।
**
दूरियों को पाट के आ दिल से दिल मिला ले,
हो सके तो आओ ना दोनो गले लगा ले।
**
नफरतों का दौर ये सियासतीनी चाल है,
मुल्क मेरा एक था तो कैसा इन्कलाब है।
**
गंगा जल व सिन्धु जल को एक मे मिला दे,
हो सके तो आओ फिर सरहदें मिटा दें।
**
हिंगलाज था मेरा तो ढाका मेरा देश था,
तू भी सोच आगरे का क्या हँसीन दौर था।
**
शेर के हृदय की बातें आओ आजमां ले,
हो सके तो मुल्क तीनो एक में मिला दे।
स्वरचित एवं मौलिक
शेर सिंह सर्राफ
12/07/2019
विषय:-"संवाद "
खुले फिर मन की गांठे
वक़्त का दान करें
सुख- दुःख को साझा कर
हृदय के घाव भरें
आओ संवाद करें....
प्रकृति की गोद में बैठ
फूलों से बात करें
मौन निमंत्रण स्वीकार कभी
मन को शांत करें
आओ संवाद करें......
शंकाओं के बादल छाये
रिश्तों के मौसम समझ न आये
भूल कर कटुता और दूरी
फिर शुरुआत करें
आओ संवाद करें.....
अहम् कभी न आड़े आये
बचपन को फिर से जिलायें
भेदभाव को ताक में रखकर
जीवन से प्यार करें
आओ संवाद करें.....
स्वरचित और मौलिक
ऋतुराज दवे
विषय:-"संवाद "
खुले फिर मन की गांठे
वक़्त का दान करें
सुख- दुःख को साझा कर
हृदय के घाव भरें
आओ संवाद करें....
प्रकृति की गोद में बैठ
फूलों से बात करें
मौन निमंत्रण स्वीकार कभी
मन को शांत करें
आओ संवाद करें......
शंकाओं के बादल छाये
रिश्तों के मौसम समझ न आये
भूल कर कटुता और दूरी
फिर शुरुआत करें
आओ संवाद करें.....
अहम् कभी न आड़े आये
बचपन को फिर से जिलायें
भेदभाव को ताक में रखकर
जीवन से प्यार करें
आओ संवाद करें.....
स्वरचित और मौलिक
ऋतुराज दवे
बिषय- संवाद
संवाद भी जरूरी है
रिश्तों को जिंदा रखने के लिए
खामोशियां गलतफहमियां
पैदा कर सकती हैं।
हर किसी में नहीं होता हूनर
इशारों को समझने का,
इसलिए कभी-कभी
जुबान को भी तकलीफ
दिया कीजिए।
हाँ मगर जहां खामोशी से
चल सकता है काम
वहां मुंह पर लगाम कसा कीजिए।
स्वरचित
निलम अग्रवाल, खड़कपुर
संवाद भी जरूरी है
रिश्तों को जिंदा रखने के लिए
खामोशियां गलतफहमियां
पैदा कर सकती हैं।
हर किसी में नहीं होता हूनर
इशारों को समझने का,
इसलिए कभी-कभी
जुबान को भी तकलीफ
दिया कीजिए।
हाँ मगर जहां खामोशी से
चल सकता है काम
वहां मुंह पर लगाम कसा कीजिए।
स्वरचित
निलम अग्रवाल, खड़कपुर
लिख दिया मस्तक पटल पे, वाद का प्रतिवाद होगा।
बन्द दरवाजे के पीछे, अब ना कुछ संवाद होगा।
जो भी कहना है मुझे कह लो, मगर ये याद रखना।
शेर के शब्दों मे भी है, घात का प्रतिघात होगा।
...
रूग्ण जीवन अब नही है, मास मे मधुमास होगा।
सुन लो सत्ता के भीखारी, सुख का अब सम्राज्य होगा।
कौन कहता है दुखो का, अंत होता ही नही है।
शेर की कविता पढो, दुख कल था जो ना आज होगा।
....
बात बढनी है अगर तो, बात बढकर ही रहेगी।
तुम जो बोलोगे अगर तो, बात सुननी ही पडेगी।
यादें सारी याद करके , याद करना शेर को गर।
मन की कुण्ठा खत्म होगी, बात सुन्दर तब रहेगी।
......
भाव अपने लिख रहा हूँ, शब्द कुछ तेरा रहेगा।
पढ के सब समझेगे मन के, भाव अच्छा तब रहेगा।
शेर को लिखने का मन है, शब्द कुछ भी लिख रहा हूँ।
तुम लिखो कुछ शब्द सुन्दर, बात अच्छा तब रहेगा।
.....
है यहाँ शिशुपाल तो जयचन्द भी है कम नही।
माँ भारती के गोद मे, गद्दार ज्यादा कम नही।
मान मर्दन जो करे तो काट देना सिर अभी।
मान अरू सम्मान कम हो,देश का फिर हम नही।
......
स्वरचित एंव मौलिक
शेर सिंह सर्राफ
नयी बाजार देवरिया, उ0 प्र0
बन्द दरवाजे के पीछे, अब ना कुछ संवाद होगा।
जो भी कहना है मुझे कह लो, मगर ये याद रखना।
शेर के शब्दों मे भी है, घात का प्रतिघात होगा।
...
रूग्ण जीवन अब नही है, मास मे मधुमास होगा।
सुन लो सत्ता के भीखारी, सुख का अब सम्राज्य होगा।
कौन कहता है दुखो का, अंत होता ही नही है।
शेर की कविता पढो, दुख कल था जो ना आज होगा।
....
बात बढनी है अगर तो, बात बढकर ही रहेगी।
तुम जो बोलोगे अगर तो, बात सुननी ही पडेगी।
यादें सारी याद करके , याद करना शेर को गर।
मन की कुण्ठा खत्म होगी, बात सुन्दर तब रहेगी।
......
भाव अपने लिख रहा हूँ, शब्द कुछ तेरा रहेगा।
पढ के सब समझेगे मन के, भाव अच्छा तब रहेगा।
शेर को लिखने का मन है, शब्द कुछ भी लिख रहा हूँ।
तुम लिखो कुछ शब्द सुन्दर, बात अच्छा तब रहेगा।
.....
है यहाँ शिशुपाल तो जयचन्द भी है कम नही।
माँ भारती के गोद मे, गद्दार ज्यादा कम नही।
मान मर्दन जो करे तो काट देना सिर अभी।
मान अरू सम्मान कम हो,देश का फिर हम नही।
......
स्वरचित एंव मौलिक
शेर सिंह सर्राफ
नयी बाजार देवरिया, उ0 प्र0
विषय-संवाद
.................
बहुत दिन हुए
हमें रूबरू हुए
तुम अपने में मस्त रहे
हम खुद में खोए रहे
कंप्यूटर इंटरनेट ही
अब तुम्हारी दुनियाँ है
सीरियल,किताबों, गपशप में
हमने खुद को बिजी किया है
एक ही छत के नीचे
रहते हुए भी हम
अपने में खोए रहे
कब से हमारे संवाद न हुए
अब तो लड़ना भी
हम भूल गए
कभी मौन हुए
निःशब्द हुए
वार्तालाप से विमुख हुए
मौन में ही शायद
हम स्वयं को खोजते रहे
कितने हसीन पल खोते रहे
बेबजह की दलीलों से
बचने को मैंने हाथ जोड़ें थे
कहना तो बहुत कुछ था
पर तुम्हारे लिए मेरे पास
शब्द बहुत थोड़े थे
और तुम्हारे पास तो
शब्दों के हथौड़े थे
तुमने तो जैसे ज़हर बुझे तीर
मेरे लिए ही रख छोड़े थे
बचाव का रास्ता
ही सरल लगा था मुझे
इसीलिए संवाद हीनता
सुरक्षा कवच लगी थी मुझे
@वंदना सोलंकी©️स्वरचित
.................
बहुत दिन हुए
हमें रूबरू हुए
तुम अपने में मस्त रहे
हम खुद में खोए रहे
कंप्यूटर इंटरनेट ही
अब तुम्हारी दुनियाँ है
सीरियल,किताबों, गपशप में
हमने खुद को बिजी किया है
एक ही छत के नीचे
रहते हुए भी हम
अपने में खोए रहे
कब से हमारे संवाद न हुए
अब तो लड़ना भी
हम भूल गए
कभी मौन हुए
निःशब्द हुए
वार्तालाप से विमुख हुए
मौन में ही शायद
हम स्वयं को खोजते रहे
कितने हसीन पल खोते रहे
बेबजह की दलीलों से
बचने को मैंने हाथ जोड़ें थे
कहना तो बहुत कुछ था
पर तुम्हारे लिए मेरे पास
शब्द बहुत थोड़े थे
और तुम्हारे पास तो
शब्दों के हथौड़े थे
तुमने तो जैसे ज़हर बुझे तीर
मेरे लिए ही रख छोड़े थे
बचाव का रास्ता
ही सरल लगा था मुझे
इसीलिए संवाद हीनता
सुरक्षा कवच लगी थी मुझे
@वंदना सोलंकी©️स्वरचित
"संवाद"
छंदमुक्त (गीता आधारित)
################
कुरुक्षेत्र का मैदान था...
अधिकार की लड़ाई थी...
श्री कृष्ण बने सारथी..
अर्जुन रथ पर सवार थे... शंखनाद.....बजी रणभेरी..
अर्जुन के समक्ष कौरव सेना..
देख अर्जुन हुआ हताश...
स्वजन के प्रति प्रेम....
रथ से उतरकर...
श्रीकृष्ण के समझ...
घुटने टेक...
तीर-कमान..समर्पित कर..
युद्ध ना करने का फैसला लिया..
"अहो वत महत् पाप; कर्तू; व्यवसित्तप वयम्।
यद् राज्यसुखलोभनं हस्तं स्वजनमूद्यता:।।"
यहीं श्री कृष्ण ने...
अर्जुन को संवाद रुपी....
धर्म-कर्म..आत्मा-परमात्मा..
का ज्ञान दिया...
ये संवाद "श्रीमद्भागवत गीता" का विश्व प्रसिद्ध पौराणिक ग्रंथ में है।🙏
----------"पूर्णिमा साह"
पश्चिम बंगाल।।
छंदमुक्त (गीता आधारित)
################
कुरुक्षेत्र का मैदान था...
अधिकार की लड़ाई थी...
श्री कृष्ण बने सारथी..
अर्जुन रथ पर सवार थे... शंखनाद.....बजी रणभेरी..
अर्जुन के समक्ष कौरव सेना..
देख अर्जुन हुआ हताश...
स्वजन के प्रति प्रेम....
रथ से उतरकर...
श्रीकृष्ण के समझ...
घुटने टेक...
तीर-कमान..समर्पित कर..
युद्ध ना करने का फैसला लिया..
"अहो वत महत् पाप; कर्तू; व्यवसित्तप वयम्।
यद् राज्यसुखलोभनं हस्तं स्वजनमूद्यता:।।"
यहीं श्री कृष्ण ने...
अर्जुन को संवाद रुपी....
धर्म-कर्म..आत्मा-परमात्मा..
का ज्ञान दिया...
ये संवाद "श्रीमद्भागवत गीता" का विश्व प्रसिद्ध पौराणिक ग्रंथ में है।🙏
----------"पूर्णिमा साह"
पश्चिम बंगाल।।
"संवाद"
1
प्रेम के भाव
परस्पर संवाद
मिटा विवाद
2
स्वार्थ से भरा
विवादित संवाद
मौन ही भला
3
चाँद के संग
सितारों का संवाद
रात आबाद
4
प्रेम संवाद
दिल की फरियाद
नयन द्वार
5
जग हितार्थ
"श्री-अर्जुन"संवाद
"गीता"का ज्ञान
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।।
1
प्रेम के भाव
परस्पर संवाद
मिटा विवाद
2
स्वार्थ से भरा
विवादित संवाद
मौन ही भला
3
चाँद के संग
सितारों का संवाद
रात आबाद
4
प्रेम संवाद
दिल की फरियाद
नयन द्वार
5
जग हितार्थ
"श्री-अर्जुन"संवाद
"गीता"का ज्ञान
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।।
विषय .. संवाद
****************
बिखर रहे भावों में थोडा,
हम संवाद मिला ले।
आँखो से ही शुरू करे पर,
दिल के भाव मिला ले॥
**
सामने आकर शुरू करे,
पर पहले हाथ मिला ले।
धीरे-धीरे बैठ के दोनो,
दिल के गर्द हटा ले॥
**
जीने का है मर्ज यही जब,
माधुर्य बनाए हर मन से।
कुछ भी हो जाए पर मित्रो,
संवाद नही मिटने पाये॥
**
जो ना मिलता उसको तुम,
मैसेज से याद दिला देना।
शेर की कविता है उसपर,
यह भेज के उसे जता देना॥
स्वरचित ... शेरसिंह सर्राफ
****************
बिखर रहे भावों में थोडा,
हम संवाद मिला ले।
आँखो से ही शुरू करे पर,
दिल के भाव मिला ले॥
**
सामने आकर शुरू करे,
पर पहले हाथ मिला ले।
धीरे-धीरे बैठ के दोनो,
दिल के गर्द हटा ले॥
**
जीने का है मर्ज यही जब,
माधुर्य बनाए हर मन से।
कुछ भी हो जाए पर मित्रो,
संवाद नही मिटने पाये॥
**
जो ना मिलता उसको तुम,
मैसेज से याद दिला देना।
शेर की कविता है उसपर,
यह भेज के उसे जता देना॥
स्वरचित ... शेरसिंह सर्राफ
संवाद
दिन भर के संवाद को रचना के माध्यम से दिखाया है
***
दिन भर की प्रतीक्षा के बाद
पति और बच्चों से
प्रतिदिन का एक ही संवाद
#1
कोई खास बात बताओ
कोई अच्छी खबर सुनाओ
कैसा रहा आज का दिन
जरा मुझे विस्तार से बताओ ।
***
अपने छात्रों से संवाद किया
उन्हें पढ़ने की विधि बताई.
#2
यदि तुमने योजना नहीं बनाई
लिख कर करी नहीं पढ़ाई
दिन रात किताब लिए बैठे रहो
वो तुम्हारे किसी काम न आई ।
***
लोगों के कहने पर ,
एक अकेला क्या करेगा
कोई नहीं सुधरेगा
#3
छात्रों को नैतिकता का पाठ पढ़ाया
स्वयं सुधरो,समाज देश सुधरेगा ,बताया
लोग कहे लिखने और कहने से क्या होगा ?
एक ने भी अनुसरण किया तो सिखाना सार्थक होगा ।
****
जीवन की आपाधापी में रिश्तों के बीच मधुरता के लिए संवाद
#4
उम्मीद किसी से मत करना
सब झगडों की फसाद यही
अपना कर्म करते जाओ
जो जैसा करेगा ,वो भरेगा यहीं ।
****
स्वयं से संवाद
#5
कार्य हैं सबके अलग अलग,
पर इंसान में कोई भेद नही
सब खाते मेहनत की कमाई
काम कोई छोटा बडा नहीं
जितना दिया प्रभु ने मुझको
धन्यवाद प्रतिदिन देते उनको ।
***
स्वरचित
अनिता सुधीर
दिन भर के संवाद को रचना के माध्यम से दिखाया है
***
दिन भर की प्रतीक्षा के बाद
पति और बच्चों से
प्रतिदिन का एक ही संवाद
#1
कोई खास बात बताओ
कोई अच्छी खबर सुनाओ
कैसा रहा आज का दिन
जरा मुझे विस्तार से बताओ ।
***
अपने छात्रों से संवाद किया
उन्हें पढ़ने की विधि बताई.
#2
यदि तुमने योजना नहीं बनाई
लिख कर करी नहीं पढ़ाई
दिन रात किताब लिए बैठे रहो
वो तुम्हारे किसी काम न आई ।
***
लोगों के कहने पर ,
एक अकेला क्या करेगा
कोई नहीं सुधरेगा
#3
छात्रों को नैतिकता का पाठ पढ़ाया
स्वयं सुधरो,समाज देश सुधरेगा ,बताया
लोग कहे लिखने और कहने से क्या होगा ?
एक ने भी अनुसरण किया तो सिखाना सार्थक होगा ।
****
जीवन की आपाधापी में रिश्तों के बीच मधुरता के लिए संवाद
#4
उम्मीद किसी से मत करना
सब झगडों की फसाद यही
अपना कर्म करते जाओ
जो जैसा करेगा ,वो भरेगा यहीं ।
****
स्वयं से संवाद
#5
कार्य हैं सबके अलग अलग,
पर इंसान में कोई भेद नही
सब खाते मेहनत की कमाई
काम कोई छोटा बडा नहीं
जितना दिया प्रभु ने मुझको
धन्यवाद प्रतिदिन देते उनको ।
***
स्वरचित
अनिता सुधीर
भावों के मोती
विषय-संवाद
___________________
संवाद से कहीं ज्यादा
जहरीला होता है मौन
मन में छुपी कड़वाहट
समझ पाया क्या कौन
गिले-शिकवे दूर हो जाते
संवाद जो दरमियान हो जाते
गलतफहमियों की दीवारें
ख़ामोशियाँ भला कैसे मिटाएँ
मेल-मिलाप प्रेम-संवाद से
रिश्तों की अहमियत बढ़ती
प्यार, तकरार, इकरार से ही
संबंधों की सुंदरता बढ़ती
मन में द्वेष जो रखते छुपाकर
मन ही मन सदा कष्ट हैं पाते
समझ नहीं पाते सच्चाई को
संवाद से जो रहते कतराते
अच्छा-बुरा जो भी है मन में
कहदो कभी न पालो मन में
साफ कहना खुश रहना सीखो
कड़वाहट से बचना सीखो
मन में कपट मुँह पर मीठा
इंसान ने यह गुर इंसान से सीखा
करते रहते भ्रम की दीवारें खड़ी
जब-तक चोट नहीं लगती तगड़ी
समय निकालो बैठो पास
कर लो मन की कुछ बातें ख़ास
अच्छा-बुरा जो भी हो मन में
मैल निकाल दो जो है अंतर्मन में
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित ✍
विषय-संवाद
___________________
संवाद से कहीं ज्यादा
जहरीला होता है मौन
मन में छुपी कड़वाहट
समझ पाया क्या कौन
गिले-शिकवे दूर हो जाते
संवाद जो दरमियान हो जाते
गलतफहमियों की दीवारें
ख़ामोशियाँ भला कैसे मिटाएँ
मेल-मिलाप प्रेम-संवाद से
रिश्तों की अहमियत बढ़ती
प्यार, तकरार, इकरार से ही
संबंधों की सुंदरता बढ़ती
मन में द्वेष जो रखते छुपाकर
मन ही मन सदा कष्ट हैं पाते
समझ नहीं पाते सच्चाई को
संवाद से जो रहते कतराते
अच्छा-बुरा जो भी है मन में
कहदो कभी न पालो मन में
साफ कहना खुश रहना सीखो
कड़वाहट से बचना सीखो
मन में कपट मुँह पर मीठा
इंसान ने यह गुर इंसान से सीखा
करते रहते भ्रम की दीवारें खड़ी
जब-तक चोट नहीं लगती तगड़ी
समय निकालो बैठो पास
कर लो मन की कुछ बातें ख़ास
अच्छा-बुरा जो भी हो मन में
मैल निकाल दो जो है अंतर्मन में
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित ✍
12/07/2019
द्वितीय प्रस्तुति..
विषय:-"संवाद "
सहनशीलता खत्म हुई
उपजे वाद विवाद
अपनी ढपली अपना राग
यूँ टूट गया संवाद....
भावों को तुम चख न पाए
शब्दों को भी खूब चबाये
सिर्फ परोसी अपनी बात
यूँ टूट गया संवाद....
दीवारें ही अब करती बात
घर का चौक भी है चुपचाप
वक़्त की कमी सभी के पास
यूँ टूट गया संवाद...
मैं और बस मेरा परिवार
बुजुर्ग भी बन गये है भार
अनुभव दामन छूटा हाथ
यूँ टूट गया संवाद....
न तुम झुको ना हम झुके
अहम् के ताले हैं जड़े
बने न बिगड़ी बात
यूँ टूट गया संवाद....
स्वरचित और मौलिक
ऋतुराज दवे
द्वितीय प्रस्तुति..
विषय:-"संवाद "
सहनशीलता खत्म हुई
उपजे वाद विवाद
अपनी ढपली अपना राग
यूँ टूट गया संवाद....
भावों को तुम चख न पाए
शब्दों को भी खूब चबाये
सिर्फ परोसी अपनी बात
यूँ टूट गया संवाद....
दीवारें ही अब करती बात
घर का चौक भी है चुपचाप
वक़्त की कमी सभी के पास
यूँ टूट गया संवाद...
मैं और बस मेरा परिवार
बुजुर्ग भी बन गये है भार
अनुभव दामन छूटा हाथ
यूँ टूट गया संवाद....
न तुम झुको ना हम झुके
अहम् के ताले हैं जड़े
बने न बिगड़ी बात
यूँ टूट गया संवाद....
स्वरचित और मौलिक
ऋतुराज दवे
दिन, शुक्रवार
दिनांक, 12,7,2019,
वाणीं में हो मधुरता, संवाद का सुख मिलता ।
पराये भी बनें अपने, अपनों का दुख हो हल्का ।
संवाद की रिश्तों में, दूरी होती नहीं है अच्छी ,
फिर दीवार बीच में, आ जाती हैं शंका की ।
मरहम है ये सबसे अच्छा, अच्छी है ये दवाई ,
दिल के सभी जख्मों की , जिसने दवा कराई ।
चाहें माता पिता हों, या फिर हों बहिन भाई ,
संवाद ही ने तो जग में , हृदय में प्रीत लाई ।
हमेशा चलती रहे घर की, अच्छी तरह से गाड़ी,
आपस में हम करें नहीं , कोई संवाद में कोताही ।
संवाद के ही दम पर , चलती है ये दुनियाँदारी ।
सहयोग विचार विनिमय में, शिक्षा में है सुखदाई ,
संवाद ने ही कितनी ही, सभ्यता संस्कृति मिलाईं ।
जो संवाद सकारात्मक हो, तब ही जचता है भाई ,
चुगली और बकबक से, तो करनी पड़ी है दूरी ,
ये आदत बहुत ही बुरी है, जिह्वा की है बदनामी
संसार में हम जो आये , मिल कर रहे हर प्राणी ,
संवाद से ही मिल सकी है , हमें नित नई कहानी ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
दिनांक, 12,7,2019,
वाणीं में हो मधुरता, संवाद का सुख मिलता ।
पराये भी बनें अपने, अपनों का दुख हो हल्का ।
संवाद की रिश्तों में, दूरी होती नहीं है अच्छी ,
फिर दीवार बीच में, आ जाती हैं शंका की ।
मरहम है ये सबसे अच्छा, अच्छी है ये दवाई ,
दिल के सभी जख्मों की , जिसने दवा कराई ।
चाहें माता पिता हों, या फिर हों बहिन भाई ,
संवाद ही ने तो जग में , हृदय में प्रीत लाई ।
हमेशा चलती रहे घर की, अच्छी तरह से गाड़ी,
आपस में हम करें नहीं , कोई संवाद में कोताही ।
संवाद के ही दम पर , चलती है ये दुनियाँदारी ।
सहयोग विचार विनिमय में, शिक्षा में है सुखदाई ,
संवाद ने ही कितनी ही, सभ्यता संस्कृति मिलाईं ।
जो संवाद सकारात्मक हो, तब ही जचता है भाई ,
चुगली और बकबक से, तो करनी पड़ी है दूरी ,
ये आदत बहुत ही बुरी है, जिह्वा की है बदनामी
संसार में हम जो आये , मिल कर रहे हर प्राणी ,
संवाद से ही मिल सकी है , हमें नित नई कहानी ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
विधा कविता
दिनांक 12.7.2019
दिन शुक्रवार
सँवाद
🍁🍁🍁
थम जाते खुशी के नाद
डालते डेरा अवसाद
निरर्थक वाद और प्रतिवाद
कुछ नहीं हैं केवल फ़साद
सब बर्बाद पर छाता विषाद
समाप्त होते सुन्दर सँवाद।
सँवाद में हो सुन्दर हल
सँवाद में हो मधुमय पल
सँवाद में हो सब शीतल
स्नेहिल धारा करे छल छल।
बहार चले सँवादों की
सुन्दर सुन्दर इरादों की
रौशनी फैले वादों की
चादर हो उज्जवल यादों की।
ये जो व्यर्थ उमड़ता है उन्माद
डालता सब ओर विषैली खा़द
इसका हो सब ओर प्रतिवाद
दण्डात्मक शैली लिये हों ये संवाद।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
दिनांक 12.7.2019
दिन शुक्रवार
सँवाद
🍁🍁🍁
थम जाते खुशी के नाद
डालते डेरा अवसाद
निरर्थक वाद और प्रतिवाद
कुछ नहीं हैं केवल फ़साद
सब बर्बाद पर छाता विषाद
समाप्त होते सुन्दर सँवाद।
सँवाद में हो सुन्दर हल
सँवाद में हो मधुमय पल
सँवाद में हो सब शीतल
स्नेहिल धारा करे छल छल।
बहार चले सँवादों की
सुन्दर सुन्दर इरादों की
रौशनी फैले वादों की
चादर हो उज्जवल यादों की।
ये जो व्यर्थ उमड़ता है उन्माद
डालता सब ओर विषैली खा़द
इसका हो सब ओर प्रतिवाद
दण्डात्मक शैली लिये हों ये संवाद।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
विषय सवांद
विधा हाइकु
हुआ सवांद
शब्दरहित भाव
नेत्र माध्यम
गिरी गरिमा
स्तरहीन सवांद
निजी स्वार्थ में
समस्या हल
आपसी सवांद से
लोकतंत्र में
दूर कटुता
आपस में सवांद
अच्छे विचार
व्यर्थ सवांद
आतंकवाद नास
कड़ा निर्णय
वात्सल्य भाव
मौन ही अभिव्यक्ति
माँ से सवांद
मिला सन्देश
धड़कन सवांद
प्रिय मिलन
मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
विधा हाइकु
हुआ सवांद
शब्दरहित भाव
नेत्र माध्यम
गिरी गरिमा
स्तरहीन सवांद
निजी स्वार्थ में
समस्या हल
आपसी सवांद से
लोकतंत्र में
दूर कटुता
आपस में सवांद
अच्छे विचार
व्यर्थ सवांद
आतंकवाद नास
कड़ा निर्णय
वात्सल्य भाव
मौन ही अभिव्यक्ति
माँ से सवांद
मिला सन्देश
धड़कन सवांद
प्रिय मिलन
मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
द्वितीय प्रस्तुति
विषय-संवाद
...................
आज के समय की
है गहन समस्या
असंवेदनशीलता,
स्वार्थपरिता
खोखले रिश्ते
सिर्फ छलावा
बस दिखावा
माधुर्य की कमी
शर्मोहया की न दिखती नमी
भाई भाई का दुश्मन
हर रिश्ते में बस अनबन
माता पिता अर्थ व्यवस्था में व्यस्त
घर और बच्चे नौकर को सुपुर्द
गहन अंधकार सी चुप्पी छाई
सब रिश्तों में तल्खी आई
क्या है इसको सही करने का उपाय
ज्ञानी जन जरा दीजिए बताय
सबसे कारगर इसका एक उपाय
संवाद,प्यार ,विश्वास की डोर
आ जाएगी खुशहाली चहुँ ओर।।
@वंदना सोलंकी
स्वरचित
विषय-संवाद
...................
आज के समय की
है गहन समस्या
असंवेदनशीलता,
स्वार्थपरिता
खोखले रिश्ते
सिर्फ छलावा
बस दिखावा
माधुर्य की कमी
शर्मोहया की न दिखती नमी
भाई भाई का दुश्मन
हर रिश्ते में बस अनबन
माता पिता अर्थ व्यवस्था में व्यस्त
घर और बच्चे नौकर को सुपुर्द
गहन अंधकार सी चुप्पी छाई
सब रिश्तों में तल्खी आई
क्या है इसको सही करने का उपाय
ज्ञानी जन जरा दीजिए बताय
सबसे कारगर इसका एक उपाय
संवाद,प्यार ,विश्वास की डोर
आ जाएगी खुशहाली चहुँ ओर।।
@वंदना सोलंकी
स्वरचित
शीर्षक - संवाद
1-
अनूठा स्वाद,
रिश्तों में घुली खाद,
शुभ संवाद ।
2-
दूरियाँ मिटें,
टूटती सरहदें,
भले संवाद ।
3-
प्रेम के क्षण,
नयन सम्भाषण,
मौन संवाद ।
-- नीता अग्रवाल
#स्वरचित
1-
अनूठा स्वाद,
रिश्तों में घुली खाद,
शुभ संवाद ।
2-
दूरियाँ मिटें,
टूटती सरहदें,
भले संवाद ।
3-
प्रेम के क्षण,
नयन सम्भाषण,
मौन संवाद ।
-- नीता अग्रवाल
#स्वरचित
"संवाद"
कविता(3)
################
अपने जब छूट जाए..
मन का प्रेम टूट जाए...
संवाद हो जाए परेशान..
फिर कौन सुने संवाद..।
दूर-दूर तक फैली वीरानी..
मन हो जाए अभिमानी..
उत्तर ही हो जब खामोश..
फिर कहाँ से मिले संवाद।
याद कर लम्हे पुराने..
तन्हाइयों में दिन गुजारे..
मन को शांति मिले कहाँ..
रास्ता एक ही नजर आए.।
ईश्वर संग करें संवाद।
मन को मिले आराम।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।।
कविता(3)
################
अपने जब छूट जाए..
मन का प्रेम टूट जाए...
संवाद हो जाए परेशान..
फिर कौन सुने संवाद..।
दूर-दूर तक फैली वीरानी..
मन हो जाए अभिमानी..
उत्तर ही हो जब खामोश..
फिर कहाँ से मिले संवाद।
याद कर लम्हे पुराने..
तन्हाइयों में दिन गुजारे..
मन को शांति मिले कहाँ..
रास्ता एक ही नजर आए.।
ईश्वर संग करें संवाद।
मन को मिले आराम।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।।
"संवाद "
मन के भावों में वक्त के साथ ,
संवाद गति होनी चाहिए,
वक़्त का भरोसा नहीं, न जाने कब ?
ये काग़ज़ का पुतला छोड़ दे सांसें,
सुख- दुःख के भावों में, प्रेमरस के संवाद भरे,
कभी हृदय के आघातों से घाव भरें,
कभी मन को प्रफुल्लित करें,
ये आपसी संवाद गति हमेशा चलती रहें,
कभी मौन,नि:शब्द, मनभावों से,
संवाद थम जाता है, अक्सर ,लेकिन कलम से,
शब्द अंकुर कांग़ज में उग फिर भी जाते हैं,
संवाद स्थल को फूलों की महक महकाये,
बातचीत का सिलसिला भी,अक्सर बढ़ जाता है,
समय के साथ अनुभव भी जुड़ जाते हैं,
आपसी वैर वैमनस्य मिटा के, हम सब सभ्य संवाद करें,
स्वरचित:- सुनीता पंवार
मन के भावों में वक्त के साथ ,
संवाद गति होनी चाहिए,
वक़्त का भरोसा नहीं, न जाने कब ?
ये काग़ज़ का पुतला छोड़ दे सांसें,
सुख- दुःख के भावों में, प्रेमरस के संवाद भरे,
कभी हृदय के आघातों से घाव भरें,
कभी मन को प्रफुल्लित करें,
ये आपसी संवाद गति हमेशा चलती रहें,
कभी मौन,नि:शब्द, मनभावों से,
संवाद थम जाता है, अक्सर ,लेकिन कलम से,
शब्द अंकुर कांग़ज में उग फिर भी जाते हैं,
संवाद स्थल को फूलों की महक महकाये,
बातचीत का सिलसिला भी,अक्सर बढ़ जाता है,
समय के साथ अनुभव भी जुड़ जाते हैं,
आपसी वैर वैमनस्य मिटा के, हम सब सभ्य संवाद करें,
स्वरचित:- सुनीता पंवार
नमन मंच
दिनांक-१२/७/२०१९
शीर्षक-संवाद-लघुकथा
अरे ओ पिंकी"सुना है कि तेरे पड़ोस में एक नई फैमली रहने आई है, कैसा है वह परिवार? रिंकी ने घर में घुसते ही पिंकी से सवाल किया।
पिंकी रिंकी को देख खुश होते हुए बोली"मैं तुम्हें स्वंय इस नई फैमली के बिषय में बताना चाहती थी।पूरे सोसायटी में इस नई फैमली का बहुत चर्चा है।सास बहू और ननद का भरा पूरा परिवार है, परन्तु इतने शांति प्रिय परिवार पहली बार आया है,वरना इसके पहले जो उस घर में परिवार था,आये दिन सास बहू की झगड़े की आवाज पूरे सोसायटी में चर्चा का विषय था। परन्तु इस नई फैमली के आये हुए एक माह से ज्यादा हो गया, परन्तु एक आवाज बाहर नहीं आता है, बहुत ही मृदु भाषी वह शांति प्रिय है वो लोग, जरूर ही इस बार पूजा में नम्बर वन फैमली का मेडल उनको जायेगा।
उसकी बातें सुनकर घर पोंछा लगाते हुए कमली ने एक रहस्य उद्घघाटन किया,"नहीं बीबी जी ऐसी बात नही है शायद आपको पता नहीं,उस घर में पूरे फैमली में इतना अधिक झगड़ा है कि कोई किसी से कोई संवाद ही नही करता, ऐसा सुनते ही रिंकी सोच में पड़ गई, संवाद नही होना परिवार में कितना गलत बात है,और उसे याद आया बरसों पहले की वह घटना उसके पड़ोस में रहने वाली अस्सी बर्षिय महिला का गला का आवाज सिर्फ इसलिए चला गया कि उसके घर में बेटा बहू या पोती पोता कोई उससे कोई संवाद नहीं करता।और वह यह सोचते हुए अपने घर की तरफ चल दी,कि सदैव अपने घर का माहौल अच्छा रखेंगी और परिवार में हमेशा सुन्दर संवाद कायम रखेगी।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
दिनांक-१२/७/२०१९
शीर्षक-संवाद-लघुकथा
अरे ओ पिंकी"सुना है कि तेरे पड़ोस में एक नई फैमली रहने आई है, कैसा है वह परिवार? रिंकी ने घर में घुसते ही पिंकी से सवाल किया।
पिंकी रिंकी को देख खुश होते हुए बोली"मैं तुम्हें स्वंय इस नई फैमली के बिषय में बताना चाहती थी।पूरे सोसायटी में इस नई फैमली का बहुत चर्चा है।सास बहू और ननद का भरा पूरा परिवार है, परन्तु इतने शांति प्रिय परिवार पहली बार आया है,वरना इसके पहले जो उस घर में परिवार था,आये दिन सास बहू की झगड़े की आवाज पूरे सोसायटी में चर्चा का विषय था। परन्तु इस नई फैमली के आये हुए एक माह से ज्यादा हो गया, परन्तु एक आवाज बाहर नहीं आता है, बहुत ही मृदु भाषी वह शांति प्रिय है वो लोग, जरूर ही इस बार पूजा में नम्बर वन फैमली का मेडल उनको जायेगा।
उसकी बातें सुनकर घर पोंछा लगाते हुए कमली ने एक रहस्य उद्घघाटन किया,"नहीं बीबी जी ऐसी बात नही है शायद आपको पता नहीं,उस घर में पूरे फैमली में इतना अधिक झगड़ा है कि कोई किसी से कोई संवाद ही नही करता, ऐसा सुनते ही रिंकी सोच में पड़ गई, संवाद नही होना परिवार में कितना गलत बात है,और उसे याद आया बरसों पहले की वह घटना उसके पड़ोस में रहने वाली अस्सी बर्षिय महिला का गला का आवाज सिर्फ इसलिए चला गया कि उसके घर में बेटा बहू या पोती पोता कोई उससे कोई संवाद नहीं करता।और वह यह सोचते हुए अपने घर की तरफ चल दी,कि सदैव अपने घर का माहौल अच्छा रखेंगी और परिवार में हमेशा सुन्दर संवाद कायम रखेगी।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
विषय - संवाद
- - - - - - - - - - - - -
बहिन का भाई से संवाद ---------
एक बहिन अपनी माँ से शिकायत करती है , कि देखो न माँ जव तक भैया की शादी नहीं हुई थी , तब तक मेरी हर बात मानते थे , और आज दखो सावन पास आने वाला है , और हम से एक बार भी नही पूछा कि ख़ुशी तुम्हें कुछ खरीदना है ? अब भैया की शादी जो हो गई है ! के अब क्यों पूछेंगे माँ कहती है , बेटी से अरे ऐसा नहीं सोचते ! क्योंकि तेरा भाई लाखों में एक है |
माँ ऐसा कहती है , भैया को खुशी की पसंद न पसंद पहले से पता थी , इसलिए उन्होंने सोचा कि क्यो न हम भैया- भाभी मिलकर उसे उसकी सारी चीजें पसंद की ला दी ये सब देखकर खुशी की आंखें नम हो गई और दोनों के गले लग कर कहती भाभी आप ने मेरे लिए
इतना कुछ खरीदा।
रानी कोष्टी
- - - - - - - - - - - - -
बहिन का भाई से संवाद ---------
एक बहिन अपनी माँ से शिकायत करती है , कि देखो न माँ जव तक भैया की शादी नहीं हुई थी , तब तक मेरी हर बात मानते थे , और आज दखो सावन पास आने वाला है , और हम से एक बार भी नही पूछा कि ख़ुशी तुम्हें कुछ खरीदना है ? अब भैया की शादी जो हो गई है ! के अब क्यों पूछेंगे माँ कहती है , बेटी से अरे ऐसा नहीं सोचते ! क्योंकि तेरा भाई लाखों में एक है |
माँ ऐसा कहती है , भैया को खुशी की पसंद न पसंद पहले से पता थी , इसलिए उन्होंने सोचा कि क्यो न हम भैया- भाभी मिलकर उसे उसकी सारी चीजें पसंद की ला दी ये सब देखकर खुशी की आंखें नम हो गई और दोनों के गले लग कर कहती भाभी आप ने मेरे लिए
इतना कुछ खरीदा।
रानी कोष्टी
संवाद
तन में ताप प्रखर है
या, अंतस में आँच जली है
दृगकोणों से ये उर्मियाँ
क्यूँकर फिर आज मचली है
अस्फुट अधरों का कंपन
या, मन-वीणा का नाद है
हर्ष का उत्कर्ष प्रिय यह
या, कोई गहन अवसाद है
मुख मौन मुखर होकर
निर्निमेष नयन-निनाद है
पलायन के पृष्ठ तले जैसे
पटाक्षेपमय प्रीत संवाद है
-©नवल किशोर सिंह
12-07-2019
स्वरचित
तन में ताप प्रखर है
या, अंतस में आँच जली है
दृगकोणों से ये उर्मियाँ
क्यूँकर फिर आज मचली है
अस्फुट अधरों का कंपन
या, मन-वीणा का नाद है
हर्ष का उत्कर्ष प्रिय यह
या, कोई गहन अवसाद है
मुख मौन मुखर होकर
निर्निमेष नयन-निनाद है
पलायन के पृष्ठ तले जैसे
पटाक्षेपमय प्रीत संवाद है
-©नवल किशोर सिंह
12-07-2019
स्वरचित
12/7/2019(तीसरी प्रस्तुति)
*छंदमुक्त
मौन नहीं स्वीकार्य है
संवाद को हम मान दे
घट रही है दूरियां
संवाद से उसे पाट दे।
होकर निश्छल भावपूर्ण
संवाद को हम मान दे
बुझ चुकी जो लौ की बाती
क्यों न फिर प्रकाश दें।
उदण्ड है मन की नदी ये
संवाद को हम मान दे
शब्द उत्तम भाव लेकर
शांत -शीतल धार दें।
नैन नम है खोखले मन
संवाद को हम मान दे
हो रही विचलित जो आहें
मिष्ठी बोल से संवार दे।
हो रहा क्यों जन वैरागी
संवाद को हम मान दे
आपसी रिश्तों में मधुरिम
नव उमंग सुर ताल दें।।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित
*छंदमुक्त
मौन नहीं स्वीकार्य है
संवाद को हम मान दे
घट रही है दूरियां
संवाद से उसे पाट दे।
होकर निश्छल भावपूर्ण
संवाद को हम मान दे
बुझ चुकी जो लौ की बाती
क्यों न फिर प्रकाश दें।
उदण्ड है मन की नदी ये
संवाद को हम मान दे
शब्द उत्तम भाव लेकर
शांत -शीतल धार दें।
नैन नम है खोखले मन
संवाद को हम मान दे
हो रही विचलित जो आहें
मिष्ठी बोल से संवार दे।
हो रहा क्यों जन वैरागी
संवाद को हम मान दे
आपसी रिश्तों में मधुरिम
नव उमंग सुर ताल दें।।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित
विषय-संवाद
संवाद जीवनाधार,
इनसे सुंदर बने संसार।
दूर हो मन की भ्रांति,
खुल जाती है मन की ग्रंथि।
संवाद से हो भावों का उद्गार,
मन के विचारों का प्रसार।
संवाद जोड़ें दिलों के तार,
जीवन में करें ये रस का संचार।
संवाद से खिलें रिश्तों के फूल,
धुल जाए रिश्तों पर जमी धूल।
मधुर संवाद करें प्रेम प्रसार,
कटु संवाद से रिश्ते जाएं हार।
संवाद हैं अनिवार्य जीवन के लिए,
इनसे जल उठते भावनाओं के दिए।
संवाद में अनिवार्य है शिष्टता,
मत करो कभी किसी से
अशिष्टता।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
संवाद जीवनाधार,
इनसे सुंदर बने संसार।
दूर हो मन की भ्रांति,
खुल जाती है मन की ग्रंथि।
संवाद से हो भावों का उद्गार,
मन के विचारों का प्रसार।
संवाद जोड़ें दिलों के तार,
जीवन में करें ये रस का संचार।
संवाद से खिलें रिश्तों के फूल,
धुल जाए रिश्तों पर जमी धूल।
मधुर संवाद करें प्रेम प्रसार,
कटु संवाद से रिश्ते जाएं हार।
संवाद हैं अनिवार्य जीवन के लिए,
इनसे जल उठते भावनाओं के दिए।
संवाद में अनिवार्य है शिष्टता,
मत करो कभी किसी से
अशिष्टता।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
संवाद
टिकी है
संवादों पर
दुनियाँ
सच्चे
संवाद देती हैं
खुशियाँ
बने रहे
परिवार में
आपसी संवाद
होंगे आपस में
दूर मतभेद ,
बढ़ेगा प्यार
माता पिता
रखें संवाद
बच्चों से
होंगे नहीं
वे कभी
गुमराह
मतभेद
हो भले
नहीं हों
मनभेद
कभी
सिलसिला
संवादों का
टूटे न
स्वलिखित लेखक
संतोष श्रीवास्तव भोपाल
टिकी है
संवादों पर
दुनियाँ
सच्चे
संवाद देती हैं
खुशियाँ
बने रहे
परिवार में
आपसी संवाद
होंगे आपस में
दूर मतभेद ,
बढ़ेगा प्यार
माता पिता
रखें संवाद
बच्चों से
होंगे नहीं
वे कभी
गुमराह
मतभेद
हो भले
नहीं हों
मनभेद
कभी
सिलसिला
संवादों का
टूटे न
स्वलिखित लेखक
संतोष श्रीवास्तव भोपाल
तीय प्रस्तुति
रोशनदान के माध्यम से रिश्तों और संवादहीनता को दर्शाया है..
**
फाल्स सीलिंग का जमाना है
रोशनदान अब बेगाना है ।
रोशनदान बन रहे कम
घौसले भी हो रहे कम ।
चिड़ियों का मधुर संगीत
अब सुनाई नहीं पड़ता ,
तिनका तिनका जोड़ने का
संघर्ष दिखाई नही पड़ता ।
रोशनदान से परे का
आसमान नहीं दिखता ।
नीची छतों में कैद हो गए
मन के झरोखे बंद हो गए ।
मन यायावर भटकता
इन्हीं बंद कमरों और दीवारों में
धूल जमी है बरसों से
रिश्तों मे सीलन अरसे से ।
सामाजिक परिदृश्य त्रास से
धुंधलाता जा रहा
रिश्तों की धरातल पर
स्वार्थ का कोहरा छा रहा
संबंधों की कम हो रही उष्णता
अविश्वास द्वेष की बढ़ रही आद्रता
संवाद अब हो रहे नगण्य
सब अपनी बनाई दुनिया में मगन ।
दूर से देखने पर सब धुंधला है
संवाद से दृश्यता बढ़ती जायेगी।
बातचीत की किरणों को रस्ता दो
जीवन को नया आयाम देने
मन का रोशनदान खुला रखो ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
रोशनदान के माध्यम से रिश्तों और संवादहीनता को दर्शाया है..
**
फाल्स सीलिंग का जमाना है
रोशनदान अब बेगाना है ।
रोशनदान बन रहे कम
घौसले भी हो रहे कम ।
चिड़ियों का मधुर संगीत
अब सुनाई नहीं पड़ता ,
तिनका तिनका जोड़ने का
संघर्ष दिखाई नही पड़ता ।
रोशनदान से परे का
आसमान नहीं दिखता ।
नीची छतों में कैद हो गए
मन के झरोखे बंद हो गए ।
मन यायावर भटकता
इन्हीं बंद कमरों और दीवारों में
धूल जमी है बरसों से
रिश्तों मे सीलन अरसे से ।
सामाजिक परिदृश्य त्रास से
धुंधलाता जा रहा
रिश्तों की धरातल पर
स्वार्थ का कोहरा छा रहा
संबंधों की कम हो रही उष्णता
अविश्वास द्वेष की बढ़ रही आद्रता
संवाद अब हो रहे नगण्य
सब अपनी बनाई दुनिया में मगन ।
दूर से देखने पर सब धुंधला है
संवाद से दृश्यता बढ़ती जायेगी।
बातचीत की किरणों को रस्ता दो
जीवन को नया आयाम देने
मन का रोशनदान खुला रखो ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
: शुक्रवार
दिनांक : 12.07.2019
आज का शीर्षक :
संवाद
विधा : काव्य
गीत
पल पल हमको मौन काटता ,
बढ़ती जाये दूरी है !
जुड़ना है तन , मन अपनों से ,
फिर संवाद जरूरी है !!
रिश्ते हैं संवाद से बनते ,
और बिगड़ते देखे हैं !
रोज कहानी सच्ची झूँठी ,
बस संवाद ही गढ़ते हैं !
नेह के धागे से सहेजना ,
रिश्तों की मजबूरी है !!
मन में ईर्ष्या डाह पले है ,
होते हैं टकराव यहाँ !
बिन संवाद गाँठ पड़ जाये ,
होते हैं भटकाव यहाँ !
अगर सफलता हमें चाहिये ,
बिन संवाद अधूरी है !!
अपनापन संवाद से पाते ,
पल पल बढ़ता नेह सदा !
रूप भी रंग तब मदमाता ,
पलती है तब रोज अदा !
बिन संवाद नहीं उपलब्धि ,
मिलती कहाँ सबूरी है !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )
दिनांक : 12.07.2019
आज का शीर्षक :
संवाद
विधा : काव्य
गीत
पल पल हमको मौन काटता ,
बढ़ती जाये दूरी है !
जुड़ना है तन , मन अपनों से ,
फिर संवाद जरूरी है !!
रिश्ते हैं संवाद से बनते ,
और बिगड़ते देखे हैं !
रोज कहानी सच्ची झूँठी ,
बस संवाद ही गढ़ते हैं !
नेह के धागे से सहेजना ,
रिश्तों की मजबूरी है !!
मन में ईर्ष्या डाह पले है ,
होते हैं टकराव यहाँ !
बिन संवाद गाँठ पड़ जाये ,
होते हैं भटकाव यहाँ !
अगर सफलता हमें चाहिये ,
बिन संवाद अधूरी है !!
अपनापन संवाद से पाते ,
पल पल बढ़ता नेह सदा !
रूप भी रंग तब मदमाता ,
पलती है तब रोज अदा !
बिन संवाद नहीं उपलब्धि ,
मिलती कहाँ सबूरी है !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )
द्वितीय प्रस्तुति
संवाद वो चंचल शोख़ आँखों का
आखिर हम तुम्हे कैसे बतलायें ।।
कितना कुछ कहें और लिखें
पर कुछ न कुछ रह ही जाऐं ।।
ये आँखें कितनी बातें करती हैं
शायर से पूछो वो नज़्म सुनायें ।।
आँखों का संवाद बड़ा पेचीदा
कितने न इसमें उलझे हुए पाऐं ।।
आज तक उन आँखों का संवाद
न लिखे कहने को शायर कहायें ।।
कैसे कैसे संवाद माँ और अबोध
शिशु का संवाद हमें क्या दर्शायें ।।
चीटिंयाँ भी एक पथ में चले और
आपस में बतियायें कतार बनायें ।।
कोयल कुहू कुहू करके जाने किसे
बुलाये कहीं कोई नजर न आयें ।।
चिड़ियाँ बच्चों की भूख समझें बोलें
अपनी चोंच से उन्हे भोजन करायें ।।
शाम को घरोंदों में लौटकर चीं चीं
करतीं आपस में बतियायें या गायें ।।
ये संवाद ही है ''शिवम" जो सृष्टि
के हर एक सजीवों में कहलायें ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 12/07/2019
संवाद वो चंचल शोख़ आँखों का
आखिर हम तुम्हे कैसे बतलायें ।।
कितना कुछ कहें और लिखें
पर कुछ न कुछ रह ही जाऐं ।।
ये आँखें कितनी बातें करती हैं
शायर से पूछो वो नज़्म सुनायें ।।
आँखों का संवाद बड़ा पेचीदा
कितने न इसमें उलझे हुए पाऐं ।।
आज तक उन आँखों का संवाद
न लिखे कहने को शायर कहायें ।।
कैसे कैसे संवाद माँ और अबोध
शिशु का संवाद हमें क्या दर्शायें ।।
चीटिंयाँ भी एक पथ में चले और
आपस में बतियायें कतार बनायें ।।
कोयल कुहू कुहू करके जाने किसे
बुलाये कहीं कोई नजर न आयें ।।
चिड़ियाँ बच्चों की भूख समझें बोलें
अपनी चोंच से उन्हे भोजन करायें ।।
शाम को घरोंदों में लौटकर चीं चीं
करतीं आपस में बतियायें या गायें ।।
ये संवाद ही है ''शिवम" जो सृष्टि
के हर एक सजीवों में कहलायें ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 12/07/2019
दिनांक 12-07-19
शीर्षक -संवाद
विधा -छंदमुक्त
संवाद बिना जीवन सूना,
संवाद संबंधों का आधार l
स्वस्थ संवाद करें सदा हम,
संवादों से ही चलता संसार l
मनुष्य और पशु पक्षी में,
अंतर भेद पाटे संवाद l
मृदु संवाद सदा सबसे हो,
कभी न हो व्यर्थ विवादl
संवाद ही रिश्तों की है नींव,
बिन संवाद जीवन खामोश l
संवेदना अप्रकट रह जाती,
रहता नहीं रिश्तों में जोश l
मौन तो नित मृत्यु तुल्य है,
संवाद मनुज का अस्तित्व l
मौन सदा ही नीरस बोझिल,
संवाद ही सवाक व्यक्तित्व l
मन की प्रसन्नता है संवाद,
आदान प्रदान है वाणी का l
बिन संवाद हृदय उद्वेलित,
अस्तित्व नहीं है प्राणी का l
ईश्वर प्रदत्त वाणी हमारी,
नित कुछ तुम संवाद करो l
मौन को न तुम अपनाना,
जीवन में मत प्रमाद भरो l
संवाद हो सरस मधुर रसीले,
वशीकरण से ओत प्रोत l
बौद्धिक संवाद ही जग में
प्रेरणा का होते हैं स्रोत l
सुख दुख के भावों को हम,
संवादों से समझाते हैं
स्तर जैसा हो संवादों का
हमारा परिचय कराते हैं l
मृदु संवादों के बल पर ही,
रिश्तों को हम प्रगाढ़ बनाएँ l
सिसकते मौन पड़े रिश्तों को,
दरिया सम अगाध बनाएँ l
कुसुम लता पुन्डोरा
आर के पुरम नई दिल्ली
शीर्षक -संवाद
विधा -छंदमुक्त
संवाद बिना जीवन सूना,
संवाद संबंधों का आधार l
स्वस्थ संवाद करें सदा हम,
संवादों से ही चलता संसार l
मनुष्य और पशु पक्षी में,
अंतर भेद पाटे संवाद l
मृदु संवाद सदा सबसे हो,
कभी न हो व्यर्थ विवादl
संवाद ही रिश्तों की है नींव,
बिन संवाद जीवन खामोश l
संवेदना अप्रकट रह जाती,
रहता नहीं रिश्तों में जोश l
मौन तो नित मृत्यु तुल्य है,
संवाद मनुज का अस्तित्व l
मौन सदा ही नीरस बोझिल,
संवाद ही सवाक व्यक्तित्व l
मन की प्रसन्नता है संवाद,
आदान प्रदान है वाणी का l
बिन संवाद हृदय उद्वेलित,
अस्तित्व नहीं है प्राणी का l
ईश्वर प्रदत्त वाणी हमारी,
नित कुछ तुम संवाद करो l
मौन को न तुम अपनाना,
जीवन में मत प्रमाद भरो l
संवाद हो सरस मधुर रसीले,
वशीकरण से ओत प्रोत l
बौद्धिक संवाद ही जग में
प्रेरणा का होते हैं स्रोत l
सुख दुख के भावों को हम,
संवादों से समझाते हैं
स्तर जैसा हो संवादों का
हमारा परिचय कराते हैं l
मृदु संवादों के बल पर ही,
रिश्तों को हम प्रगाढ़ बनाएँ l
सिसकते मौन पड़े रिश्तों को,
दरिया सम अगाध बनाएँ l
कुसुम लता पुन्डोरा
आर के पुरम नई दिल्ली
दिनांक 12,7,2019
पिरामिड (संवाद)
है
मन
चाहता
परिवार
अपनापन
सुखद संवाद
रिश्तों का एहसास ।
हैं
मौन
कितने
आजकल
दोस्त हमारे
संवाद हीनता
अविश्वास का दंश ।
है
आज
पड़ोसी
सुखी दुखी
गली मोहल्ला
संवाद संकोच
हम हुए अकेले ।
हैं
स्त्रियाँ
हमेशा
बदनाम
शीघ्र संवाद
रिश्तों की जंजीर
आपसी सहयोग ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
पिरामिड (संवाद)
है
मन
चाहता
परिवार
अपनापन
सुखद संवाद
रिश्तों का एहसास ।
हैं
मौन
कितने
आजकल
दोस्त हमारे
संवाद हीनता
अविश्वास का दंश ।
है
आज
पड़ोसी
सुखी दुखी
गली मोहल्ला
संवाद संकोच
हम हुए अकेले ।
हैं
स्त्रियाँ
हमेशा
बदनाम
शीघ्र संवाद
रिश्तों की जंजीर
आपसी सहयोग ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
विधा- हाइकु
1)
आया बजट
गुमसुम संवाद
बिगड़ा काज
2)
मन उदास
प्रियतमा है मौन
गुम संवाद
3)
किया गुनाह
कटघरे में खड़ा
घेरें संवाद
4)
ये बँटवारा
करे रिश्ते खराब
गंदा संवाद
5)
सत्संग जाओ
शुद्ध होगें विचार
अच्छा संवाद
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
1)
आया बजट
गुमसुम संवाद
बिगड़ा काज
2)
मन उदास
प्रियतमा है मौन
गुम संवाद
3)
किया गुनाह
कटघरे में खड़ा
घेरें संवाद
4)
ये बँटवारा
करे रिश्ते खराब
गंदा संवाद
5)
सत्संग जाओ
शुद्ध होगें विचार
अच्छा संवाद
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
विषय संवाद
जिंदगी बन मोम गलती जा रही
कतरा'कतरा है पिघलती जा रही
हैं समेटे खुद ही अपने दायरे
मूक होकर हर विवादों से परे
फिर भी पल पल मुझको छलती जा रही
कतरा'कतरा ये पिघलती जा रही
खत्म होते जा रहे संवाद जब
प्रेम रिश्तों में बना अपवाद तब
धीरे' धीरे से सिसकती जा रही
कतरा'कतरा ये पिघलती जा रही
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
जिंदगी बन मोम गलती जा रही
कतरा'कतरा है पिघलती जा रही
हैं समेटे खुद ही अपने दायरे
मूक होकर हर विवादों से परे
फिर भी पल पल मुझको छलती जा रही
कतरा'कतरा ये पिघलती जा रही
खत्म होते जा रहे संवाद जब
प्रेम रिश्तों में बना अपवाद तब
धीरे' धीरे से सिसकती जा रही
कतरा'कतरा ये पिघलती जा रही
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
दिनांक :- 12/07/2019
शीर्षक :- संवाद..
टूट रहे हैं घर...
संवाद है लचर..
वीरान हो रहे सदन..
आपसी तालमेल नदारद..
षड्यंत्र की है महारत..
होती रहती महाभारत..
संदेह की लटकती तलवार...
परिवार पर करती वार पर वार..
टूट रहे प्रत्यक्ष संवाद...
बढ़ रहे अप्रत्यक्ष विवाद..
संवाद हो रहा यंत्रों (मोबाईल)से..
व्यवहार निभ रहे तंत्रों से..
समय की है तंगी आई..
सूखी आँखों में नमी लाई..
स्वार्थ की धूल...
लूट रही सुख चैन...
मतलबी संवाद...
बढ़ रहे दिन रैन..
संवाद हो गर संयमित...
रहे संबंध सुरक्षित..
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
शीर्षक :- संवाद..
टूट रहे हैं घर...
संवाद है लचर..
वीरान हो रहे सदन..
आपसी तालमेल नदारद..
षड्यंत्र की है महारत..
होती रहती महाभारत..
संदेह की लटकती तलवार...
परिवार पर करती वार पर वार..
टूट रहे प्रत्यक्ष संवाद...
बढ़ रहे अप्रत्यक्ष विवाद..
संवाद हो रहा यंत्रों (मोबाईल)से..
व्यवहार निभ रहे तंत्रों से..
समय की है तंगी आई..
सूखी आँखों में नमी लाई..
स्वार्थ की धूल...
लूट रही सुख चैन...
मतलबी संवाद...
बढ़ रहे दिन रैन..
संवाद हो गर संयमित...
रहे संबंध सुरक्षित..
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
दिनांक : 12/07/2019
विधा : ग़ज़ल
संवाद
फासले ना होते जिंदगी में इस कदर ,
मिट जाते गिले गर संवाद जो होता ।
इश्क रुसवा ना होता यूं दर बदर ,
मन में दृढ़ गर विश्वास जो होता ।
दूरियां दिलों की तो मिट ही जाती,
अपनेपन का गर अहसास जो होता ।
बड़ी दूर तक राह तेरी देखते रहे हम ,
मुड़ के तुमने भी देखा इक बार जो होता ।
सुलझ ही जानी थी हर गाँठ मन की ,
संग जिंदगी बिताने का गर चाव जो होता ।
चाहत तो इश्क में दोनों तरफ थी पर ,
किया गैरों ने जो पैदा गर विवाद ना होता ।
साथ चलना थे तेरे मुझे यूं ही सारी उम्र ,
हर कदम पर मिला तेरा साथ जो होता ।
मंजिले इश्क की इतनी भी दूर ना थी ,
हाथों में मेरे तेरा अगर हाथ जो होता ।
यह रिश्ते ना यूं कभी दम तोड़ देते ,
थोड़ा हम में अगर बदलाव जो होता ।
कुछ तुम कहती कुछ मैं भी सुनता,
मन की कुंठाओं का हिसाब जो होता ।
अब सोचते हैं काश हम दोनों में भी ,
किसी भी तरह का वार्तालाप तो होता ।
-----------------------
जय हिंद
स्वरचित : राम किशोर , पंजाब ।
विधा : ग़ज़ल
संवाद
फासले ना होते जिंदगी में इस कदर ,
मिट जाते गिले गर संवाद जो होता ।
इश्क रुसवा ना होता यूं दर बदर ,
मन में दृढ़ गर विश्वास जो होता ।
दूरियां दिलों की तो मिट ही जाती,
अपनेपन का गर अहसास जो होता ।
बड़ी दूर तक राह तेरी देखते रहे हम ,
मुड़ के तुमने भी देखा इक बार जो होता ।
सुलझ ही जानी थी हर गाँठ मन की ,
संग जिंदगी बिताने का गर चाव जो होता ।
चाहत तो इश्क में दोनों तरफ थी पर ,
किया गैरों ने जो पैदा गर विवाद ना होता ।
साथ चलना थे तेरे मुझे यूं ही सारी उम्र ,
हर कदम पर मिला तेरा साथ जो होता ।
मंजिले इश्क की इतनी भी दूर ना थी ,
हाथों में मेरे तेरा अगर हाथ जो होता ।
यह रिश्ते ना यूं कभी दम तोड़ देते ,
थोड़ा हम में अगर बदलाव जो होता ।
कुछ तुम कहती कुछ मैं भी सुनता,
मन की कुंठाओं का हिसाब जो होता ।
अब सोचते हैं काश हम दोनों में भी ,
किसी भी तरह का वार्तालाप तो होता ।
-----------------------
जय हिंद
स्वरचित : राम किशोर , पंजाब ।
विषय - संवाद
1
ह्रदय गली
संवाद की पोटली
प्रेम में पगी
2
वेद पुराण
ऋषियों के संवाद
धर्म का ज्ञान
3
संवाद जाल
उलझा मन भोला
फँसी चिरैया
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
1
ह्रदय गली
संवाद की पोटली
प्रेम में पगी
2
वेद पुराण
ऋषियों के संवाद
धर्म का ज्ञान
3
संवाद जाल
उलझा मन भोला
फँसी चिरैया
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
आंखों के संवाद
आंखें बेजुबान "संवाद" बोलती है
कभी रस कभी जहर घोलती है
बिन तराजु ये तो मन तोलती है
कभी छुपाती कभी राज खोलती है।
इन आंखों के कितने अफसाने हैं
इनआंखों के जाने कितने दीवानें है
इन आंखों में जाने कितने बहाने हैं
इन आंखों के चर्चे सदियों पुराने हैं ।
आंखें कभी जिंदगी का सुरूर है
आंखें कभी लिये कितना गुरूर है
आंखें ओढे ख्वाबों का फितूर है
आंखे कभी झुकी कभी मगरूर है।
इन आंखों के"संवाद" चुभते तीर हैं
आंखें समेटे न जाने कितनी पीर है
इन आंखों में झूठ, कभी ताबीर है
ये आंखे कभी आम कभी मीर है ।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
आंखें बेजुबान "संवाद" बोलती है
कभी रस कभी जहर घोलती है
बिन तराजु ये तो मन तोलती है
कभी छुपाती कभी राज खोलती है।
इन आंखों के कितने अफसाने हैं
इनआंखों के जाने कितने दीवानें है
इन आंखों में जाने कितने बहाने हैं
इन आंखों के चर्चे सदियों पुराने हैं ।
आंखें कभी जिंदगी का सुरूर है
आंखें कभी लिये कितना गुरूर है
आंखें ओढे ख्वाबों का फितूर है
आंखे कभी झुकी कभी मगरूर है।
इन आंखों के"संवाद" चुभते तीर हैं
आंखें समेटे न जाने कितनी पीर है
इन आंखों में झूठ, कभी ताबीर है
ये आंखे कभी आम कभी मीर है ।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
#दिनांक:१२"७"२०१९:
#विषय:संवाद:
#विधा:काव्य:
#रचनाकार: दुर्गा सिलगीवाला सोनी:
***"""*** संवाद ***"""***
तर्क कितने अब तक गढे गए,
क्यों फैली है हिंसा हुवे फसाद
रचे गए अनेकों छल के प्रपंच,
क्यों ना सुलझा मन्दिर विवाद,
सुलह के मार्ग खुलते संवाद से,
कट्टरता से बढ़ते हैं और विवाद,
झूठ फरेब का हुआ क्यों प्रलाप
ना तो हमें सुकून ना तुम आबाद,
सियासत ने कितना उलझाया,
सिर्फ वोट बैंक को रक्खा याद,
खुदगर्जी की कीमत खुद भोगे,
अल्पमतेन हुवे छवि भी बर्बाद,
न्यायालय में विचाराधीन है मुद्दा,
नहीं माना गया है इसे निर्विवाद,
एक मौका न्यायाधीश ने भी दिया,
पुनः स्थापित हो आपसी संवाद,
शांति के पक्षधर स्वयं श्रीराम थे,
विध्वंसक बाबर को रखिए याद,
हिन्दू आक्रांता ना हुआ विश्व में,
इस समझ से कीजिए पुनः संवाद
#विषय:संवाद:
#विधा:काव्य:
#रचनाकार: दुर्गा सिलगीवाला सोनी:
***"""*** संवाद ***"""***
तर्क कितने अब तक गढे गए,
क्यों फैली है हिंसा हुवे फसाद
रचे गए अनेकों छल के प्रपंच,
क्यों ना सुलझा मन्दिर विवाद,
सुलह के मार्ग खुलते संवाद से,
कट्टरता से बढ़ते हैं और विवाद,
झूठ फरेब का हुआ क्यों प्रलाप
ना तो हमें सुकून ना तुम आबाद,
सियासत ने कितना उलझाया,
सिर्फ वोट बैंक को रक्खा याद,
खुदगर्जी की कीमत खुद भोगे,
अल्पमतेन हुवे छवि भी बर्बाद,
न्यायालय में विचाराधीन है मुद्दा,
नहीं माना गया है इसे निर्विवाद,
एक मौका न्यायाधीश ने भी दिया,
पुनः स्थापित हो आपसी संवाद,
शांति के पक्षधर स्वयं श्रीराम थे,
विध्वंसक बाबर को रखिए याद,
हिन्दू आक्रांता ना हुआ विश्व में,
इस समझ से कीजिए पुनः संवाद
1
मधुर संवाद से दूर होते विवाद
मिट जाते भ्रम के फसाद
संवाद भरते दिल की दरारें
मिट जाता है अवसाद ।
2
संवादों का सुंदर संसार
संबंधों को देता आधार ।
3
संवादों का है टोटा
लुढ़का रिश्तों का लोटा
बह गया सारा अपनत्व अनूठा
प्रेम का चढ़ा रंग छूटा ।
4
संवादों ने जब ठानी चुप्पी
रिश्तों की फिर हो गयी छुट्टी
जिन बिन ना था चैन कहीं
हो गई उनसे अनकही कट्टी ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
मधुर संवाद से दूर होते विवाद
मिट जाते भ्रम के फसाद
संवाद भरते दिल की दरारें
मिट जाता है अवसाद ।
2
संवादों का सुंदर संसार
संबंधों को देता आधार ।
3
संवादों का है टोटा
लुढ़का रिश्तों का लोटा
बह गया सारा अपनत्व अनूठा
प्रेम का चढ़ा रंग छूटा ।
4
संवादों ने जब ठानी चुप्पी
रिश्तों की फिर हो गयी छुट्टी
जिन बिन ना था चैन कहीं
हो गई उनसे अनकही कट्टी ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
संवाद हीन
अपराध संगीन
मानव मीन।।
करो संवाद
न बढाओ विवाद
शांति का वाद्य।।
संवाद हेतु
मानव का माध्यम
भाषायी सेतु।।
क्षेष्ठ संवादी
शास्त्रार्थ पारंगत
ढूंढे न मिलें।।
यक्ष संवाद
योग्यता परीक्षण
जीता अर्जुन।।।
भावुक
अपराध संगीन
मानव मीन।।
करो संवाद
न बढाओ विवाद
शांति का वाद्य।।
संवाद हेतु
मानव का माध्यम
भाषायी सेतु।।
क्षेष्ठ संवादी
शास्त्रार्थ पारंगत
ढूंढे न मिलें।।
यक्ष संवाद
योग्यता परीक्षण
जीता अर्जुन।।।
भावुक
शीर्षकांतर्गत द्वितीय प्रस्तुति
याद है मुझे...
वो तुम्हारा मौन संवाद...
मिले थे जब हम पहली बार..
वो परदे की औट से...
नैनो से चलते संवाद बाण...
छेड़ रह थे सरगम के तार..
झंकृत हो रहा था रोम-रोम मेरा...
बढ़ा रहे थे धड़कन मेरी...
फिर वो तेरा सामने आना...
आकर यूँ मंद-मंद मुस्कुराना..
उमड़ रही थी भावनाएं संवाद को..
मुश्किल था शब्द देना संवाद को...
पर तुम्हारी वह मुस्कान..
दे रही थी स्नेह निमंत्रण..
कर लिया स्वीकार हमने..
तुम्हारा मौन आमंत्रण...
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
याद है मुझे...
वो तुम्हारा मौन संवाद...
मिले थे जब हम पहली बार..
वो परदे की औट से...
नैनो से चलते संवाद बाण...
छेड़ रह थे सरगम के तार..
झंकृत हो रहा था रोम-रोम मेरा...
बढ़ा रहे थे धड़कन मेरी...
फिर वो तेरा सामने आना...
आकर यूँ मंद-मंद मुस्कुराना..
उमड़ रही थी भावनाएं संवाद को..
मुश्किल था शब्द देना संवाद को...
पर तुम्हारी वह मुस्कान..
दे रही थी स्नेह निमंत्रण..
कर लिया स्वीकार हमने..
तुम्हारा मौन आमंत्रण...
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
विषय:- संवाद
विधा :- पद्य
पराकाष्ठा जब हो प्रेम की ,
मुखरित होते नहीं संवाद ।
प्रेम की हर परिपूर्णता की ,
आँखें करती हैं फ़रियाद ।
क्वणन क्वणन करते कर कंगन ,
रुनझुन पायल करे झनकार ।
हृदय हिलोरें उठ उठ कहती ,
प्रियतम ! पढ लो मौन उद्गार ।
घण्टों चुप्पी साधे रहते ,
गहन प्रेम सिंधु अतिरेक में ।
मौन संवाद आँखें के सुन ,
झरते नयन प्रेम अभिषेक में ।
डूब डूब कर पार लगाते , गोते खाते बीच मँझधार में ।
उफ़्फ़ तक करते मुख से नहीं ,
खोए रहते मौन अभिसार में ।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )
विधा :- पद्य
पराकाष्ठा जब हो प्रेम की ,
मुखरित होते नहीं संवाद ।
प्रेम की हर परिपूर्णता की ,
आँखें करती हैं फ़रियाद ।
क्वणन क्वणन करते कर कंगन ,
रुनझुन पायल करे झनकार ।
हृदय हिलोरें उठ उठ कहती ,
प्रियतम ! पढ लो मौन उद्गार ।
घण्टों चुप्पी साधे रहते ,
गहन प्रेम सिंधु अतिरेक में ।
मौन संवाद आँखें के सुन ,
झरते नयन प्रेम अभिषेक में ।
डूब डूब कर पार लगाते , गोते खाते बीच मँझधार में ।
उफ़्फ़ तक करते मुख से नहीं ,
खोए रहते मौन अभिसार में ।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )
विषय-संवाद
जाने कौन ओट से देखता है हमें
है तो पाक़ मगर बार बार दबोचता है हमें
हटादो पर्दा अब तैयार हो जाने दो
हुआ बहुत #संवाद अब संहार हो जाने दो ।
बता दो उन्हें उजड़े तन मन का कोई मर्म नहीं होता
इंसान नहीं वह ज़ज्बातों मे जिसके दर्द नहीं होता।
आज हम तो कल तुम्हारी बारी है
क्योंकि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता ।
स्वरचित✍️
-सीमा आचार्य-(म.प्र.)
जाने कौन ओट से देखता है हमें
है तो पाक़ मगर बार बार दबोचता है हमें
हटादो पर्दा अब तैयार हो जाने दो
हुआ बहुत #संवाद अब संहार हो जाने दो ।
बता दो उन्हें उजड़े तन मन का कोई मर्म नहीं होता
इंसान नहीं वह ज़ज्बातों मे जिसके दर्द नहीं होता।
आज हम तो कल तुम्हारी बारी है
क्योंकि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता ।
स्वरचित✍️
-सीमा आचार्य-(म.प्र.)
विषय.. संवाद
लघु कविता
संवाद यदि होता बेहतर
मन को हर्षित कर देता है।
यदि कड़वाहट होती इसमें
रिस्तों में दरार ला देती है।
संवाद बढाता मान हमारा
कारण भी पतन का बनता है।
संवाद कटु जब होता है
तब जीवन पर बन जाता है।
संवाद जुड़ा है शिक्षा से
गौरव यह हमें दिलाता है।
इस लिए रहे यह ध्यान हमें
बोलें हम सोच समझ कर ही।
यह ही सम्मान दिला देगी
यदि चूक हुई हमसे कभी
झट धोबी पाट दिखा देगी।
(अशोक राय वत्स)© स्वरचित
जयपुर
लघु कविता
संवाद यदि होता बेहतर
मन को हर्षित कर देता है।
यदि कड़वाहट होती इसमें
रिस्तों में दरार ला देती है।
संवाद बढाता मान हमारा
कारण भी पतन का बनता है।
संवाद कटु जब होता है
तब जीवन पर बन जाता है।
संवाद जुड़ा है शिक्षा से
गौरव यह हमें दिलाता है।
इस लिए रहे यह ध्यान हमें
बोलें हम सोच समझ कर ही।
यह ही सम्मान दिला देगी
यदि चूक हुई हमसे कभी
झट धोबी पाट दिखा देगी।
(अशोक राय वत्स)© स्वरचित
जयपुर
दिनांक -12/7/2019
विषय- संवाद
जीवन में संवाद जरूरी है
कुछ बातें समझाने को , कुछ उलझन सुलझाने को ,
जी हाँ संवाद जरूरी है ।
कभी अपना प्यार जताने को ,कभी रूठों को मनाने को ,
जी हाँ संवाद जरूरी है ।
रिश्तों को निभाने को , उनमें नीरसता मिटाने को,
जी हाँ संवाद जरूरी है ।
कुछ अनकही बताने को ,कुछ मन की बात सुनाने को ,
जी हां संवाद जरूरी है ।
कुछ रिश्तों को निभाने को ,जीवन में नवीनता लाने को,
जी हां संवाद जरूरी है ।
प्रियतम को रिझाने को , संबंध नए बनाने को,
जी हां संवाद जरूरी है ।
बोली- भाषा सिखाने को, हाव -भाव समझाने को,
जी हाँ संवाद जरूरी है ।
माना संवादों से कटुता होती है, कभी मर्यादा भी घटती है ,
पर संवादों से संवादों की ,मर्यादा बनाए रखने को ,
जी हाँ संवाद जरूरी है ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
विषय- संवाद
जीवन में संवाद जरूरी है
कुछ बातें समझाने को , कुछ उलझन सुलझाने को ,
जी हाँ संवाद जरूरी है ।
कभी अपना प्यार जताने को ,कभी रूठों को मनाने को ,
जी हाँ संवाद जरूरी है ।
रिश्तों को निभाने को , उनमें नीरसता मिटाने को,
जी हाँ संवाद जरूरी है ।
कुछ अनकही बताने को ,कुछ मन की बात सुनाने को ,
जी हां संवाद जरूरी है ।
कुछ रिश्तों को निभाने को ,जीवन में नवीनता लाने को,
जी हां संवाद जरूरी है ।
प्रियतम को रिझाने को , संबंध नए बनाने को,
जी हां संवाद जरूरी है ।
बोली- भाषा सिखाने को, हाव -भाव समझाने को,
जी हाँ संवाद जरूरी है ।
माना संवादों से कटुता होती है, कभी मर्यादा भी घटती है ,
पर संवादों से संवादों की ,मर्यादा बनाए रखने को ,
जी हाँ संवाद जरूरी है ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
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