Sunday, July 7

"सहारा " 06जुलाई 2019

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ब्लॉग संख्या :-439

नमन-भावो के मोती
दिनांक-06/07/2019
विषय-सहारा


सहारा में करके सफर देख लेना...

कभी इस तरफ़ इक नज़र देख लेना 
बनाकर मुझे हमसफ़र देख लेना 

कि चलने से पहले पता रास्ता हो 
हो कोई निशां या ख़बर देख लेना 

सदाक़त की राहें न आसान इतनी
डगर है बड़ी पुरख़तर देख लेना 

लगेगा पता तिश्नगी का तभी तो 
के सहरा में कर के सफ़र देख लेना 

अकेले में जब याद मुझको करोगे 
मुहब्बत का मेरी असर देख लेना 

मिलेगी यहां प्यार की पालकी इक
हमारी कभी रहगुज़र देख लेना 

यहां के मकां पे मुहब्बत लिखा है 
कभी मेरे दिल का नगर देख लेना 

वहां छांव ठन्डी , समर भी लगे हों 
कि रुकने से पहले शजर देख लेना 

करे आज प्रकाश ये इल्तिजा है 
हमें भी नज़र इक मगर देख लेना 

स्वरचित
मौलिक रचना

सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज

दिनांक- 06/07/19
विषय - सहारा 

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°

समझते स्वयं को बड़ा खिलाडी,
विडंबना ये हैं सब से बड़े अनाड़ी ।

जन्म के लिये बनी माँ सहारा।
पनपने को बनता पिता सहारा।

उठाया कदम भाई-बहन के सहारे।
पाई शिक्षा गुरू माँ-पिता के सहारे।।

कक्षा में बने सह पाठी सहारा।
जीवन को रोजी-रोटी का सहारा।।

सुख चले जीवन-साथी के सहारे।
नाम चले बच्चों के सहारे।।

बुढापे को लाठी का सहारा।
अर्थी को काँधे का सहारा।

नष्ट होने को बनी आग सहारा।
अलविदा हुऐ बना पानी सहारा।।

स्वरचित
मीनू "रागिनी "

06/07/19

विधा कविता
06 जुलाई 2019,शनिवार

देती आलम्बन निज उदर
नो माह तक पौषण करती।
सबसे बड़ा सहारा जननी
जो जीवन भर पीड़ा हरती।

संस्कार संस्कारित करते
मात पिता अपने बालक में।
कोई कमी नहीं छोड़ते मिल
लाड प्यार सुख के साधन में।

विद्यालय में गुरुदेव सहारा
शिक्षा से साकारित करते।
सहपाठी का मिंले सहारा
आगे कदम सदा ही बढ़ते।

यौवन आता शादी होती
सदा भार्या का मिंले सहारा।
सुख दुःख में साथी बनकर
करती है परिवार उजियारा।

धरा नीर नभ गगन अनल का
सदा प्रकृति का मिंले सहारा।
परमपिता परमेश्वर महाशक्ति
सत्य सनातन जगत आधारा।

स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

सादर मंच को समर्पित --

🌺🌴 गीत 🌴🌺
****************************
🌹 सहारा 🌹
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻

पिता के हाथ से बढ़ कर
सहारा कौन दुनिया में ।
हमें सार्थक बनाने में 
सहारा कौन दुनिया में ।।

खिला कर गोद में अपनी , 
दुलारा प्यार से धीरे ,
पकड़ कर हाथ की उँगली, 
चलाया डगर पर तीरे ।
शाम को रोज लाकर दी ,
माँग जो भी करी हमने ,
घोड़ा बन पीठ बिठा कर ,
हँसाया खूब ही तुमने ।।

हमारा ध्यान रखने को ,
सहारा कौन दुनिया में ।
पिता के हाथ से बढ़ कर ,
सहारा कौन दुनिया में ।।

जगा कर प्रातः ही हमको ,
पढ़ाया नित्य प्रति तुमने ,
कमी कोई नहीं छोड़ी ,
पढ़ाई में कभी तुमने ।

हमारे शिखर छूने में ,
पिता सा कौन दुनिया में ।
पिता के हाथ से बढ़ कर,
सहारा कौन दुनिया में ।।

हमारा फर्ज भी इतना ,
दुखी न रहें पिता हमसे ,
हमारे कृत्य हों ऐसे ,
मान कम हो नहीं उनसे ।
अपने परिवार की रक्षा ,
पिता का फर्ज ही तो है ,
निभायें धर्म हम भी तो ,
हमारे पूज्यवर जो हैं ।।

पिता आशीष से बढ़ कर ,
कृपामय कौन दुनिया में ।
पिता के हाथ से बढ़ कर ,
सहारा कौन दुनिया में ।।

🍑🌲🌷🍓🌱🌺

🍓🌴***.....रवीन्द्र वर्मा आगरा 

बिषय,,"सहारा"
जाने कितनी ठोकरें खाते हैं लोग
कभी गिरते कभी संभल जाते हैं लोग
स्वार्थ सिद्ध हो तो दौड़े आऐंगे
वरना किनारे से निकल जाते हैं लोग 
नहीं बनते बेसहारों का सहारा
चाहे कितना भी घनिष्ठ हो हमारा
मतलब निकलते ही बदल जाते हैं लोग
अभी तक थीं बहुत नजदीकियां वक्त आने पर कर लीं दूरियां
पहचानने से भी मुंह छिपाते हैं लोग
खत्म हो गई तमाम इंसानियत
पूरी तरह छा गई हैवानियत 
गिरे हुए को कुचल जाते हैं लोग
काश जरुरतमंद के काम आए ए तन
तभी सफल ,धन्य हो जीवन
फिर अपनों के लिए क्यों बदल जाते हैं लोग
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार

न हम है मोम के पत्थर ,सहारा तो मिलेगा ही ।
चलो हम दोस्ती कर ले किनारा तो मिलेगा ही ।

न तुम मिलते,न बस पाता हमारी आँख में चेहरा ।
बसा कर रूह में देखो नज़ारा तो मिलेगा ही ।

मिले न मंज़िले बेशक़ बढ़ें या फ़ासले इक दिन ।
हँसी के साथ दो पल गम, प्यारा तो मिलेगा ही ।

भले अंजान हो मुझसे दिलो से पूछ तुम लेना ।
वफ़ाएं, बेकसी, चाहत, कि सारा तो मिलेगा ही ।

करेगी बेवफाई ये भरोसा उम्र का मत कर ।
यहा हर शख़्स इस गम का मारा तो मिलेगा ही ।

बड़ा आराम आयेगा कभी जब मुस्करा दोगे ।
न रब ख़ुद छीन पायेगा हमारा तो मिलेगा ही ।

लगा दिल देख ले 'रकमिश' बड़ी है आरजू इसमे । 
बसेगी आँख में जन्नत इशारा तो मिलेगा ही । 

रकमिश सुल्तानपुरी

दर्द जब हद से गुजरता है तब
बनता कोई न कोई सहारा है ।।

रात घिरते घिरते घिर जाती है
तब निकलता सुवह का तारा है ।।

किसको किसने कहाँ संभाला
चाँद चकोर का रिश्ता न्यारा है ।।

डूबते को तिनके का सहारा है
हमें तो उनका गम भी प्यारा है ।।

नही होता जो गम मर जाते हम
दूसरा न कोई चारा था न चारा है ।।

उम्मीद का सहारा बड़ा सहारा है
उम्मीद पर हमने जीवन गुजारा है ।।

देर तक भँवर में फँसे रहे हैं जो
उनका कुछ अदभुत नजारा है ।।

सहारा स्वतः उत्पन्न होता ''शिवम"
उस सहारे पर क्यों न नजर डारा है ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 06/07/2019


दिनांक .. 6/7/2019
विषय .. सहारा

***********************

सहारा किसका ढूँढ रहा है कि जब,
श्रीनाथ है नाव खेवईया।
रख उन पर विश्वास भवों से,
वो ही पार लगईया॥
सहारा किसका....
***
कर्म रथी बन धर्म पे ही चल,
मन में नाथ को अपने रख कर।
गर विश्वास प्रबल होगा तक,
वो ही है पार लगईया॥
सहारा किसका.....
***
विष में अमृत भर देता वो,
जनम मरण को तर देता वो।
मीरा का भगवान वही है,
वो ही नाग नथईया॥
सहारा किसका.....
***
वो ही श्रीहरि वो ही राघव,
वो ही कृष्ण कन्हैया।
शबरी की बेरी में वही है,
वो ही रास रचईया॥
सहारा किसका.....
***
शेर के अन्तर्मन में वो है,
इस जग के कण-कण में वो है।
क्यों मूरख बन भटक रहा है,
जब वो राह दिखईया॥
सहारा किसका....
***
स्वरचित एवं मौलिक
शेर सिंह सर्राफ 
देवरिया उ0प्र0

शीर्षक- सहारा
सिर्फ ऊपरवाले का ही है सहारा
नहीं और कोई दुनिया में हमारा।

जब भी घिर जाती हूं अंधेरे में
हर लेता वो मन का अँधियारा।

उनके कदमों में जन्नत मिलती है
सिमट जाता,जीवन का दर्द सारा।

दौड़ कर आ गये गिरधर गोपाल
जब-जब भी दिल से उन्हें पुकारा ।
स्वरचित
निलम अग्रवाल, खड़कपुर

विषय-सहारा
वार-शनिवार
*************************
एक आस जगी मन मे मेरे,
जब तेरा सहारा मिल ही गया!
डूबती हुई नैया को जैसे,
सागर का किनारा मिल ही गया!

बुझता मैं चिराग ना बन जाऊं,
महफ़िल में तेरे, मेरे हम दम,
कहीं आँधिया आती राहों पर,
आगोश तुम्हारा मिल ही गया!

मरते हुए तन को साँसे मिली,
जब हाथ रखा मेरे सर पर,
तब नींद से जागा यारों मैं,
नवजीवन सारा मिल ही गया!

था जीवन मेरा पतझड़ सा,
तुमने आकर मधुमास किया!
सारी उम्मीदें जाग जाग गई,
सावन का इशारा मिल गया !

रहूँ संग -संग मैं उम्र तलक,
छूटे ना साथ तेरा- मेरा,
एक दूजे में चल खो जायें,
कुछ ऐसा नजारा मिल ही गया!!

रचनाकार-राजेन्द्र मेश्राम"नील"

विधा -कविता
बेसहारों को सहारा दे
वह इंसान नही मिलते ,
अपने हितों की टोकरी
सिर पर उठाये फिरते ।
बेबस हैं जो लाचार भी
कह नही सकते बात भी
कौन उनकी सुनेगा अब
बेजुबां. हुये हैं जब सभी ।
काश!कोई उनकी सुनता
चिंतन कर राहों को चुनता
मंजिल उनको मिल जाती
जीवन सफल बना जाती ।
स्वरचित :-उषासक्सेना

विषय-सहारा
🌹🌹🌹🌹🌹🌹

क्यों गुमसुम उदास बैठे हो
क्या अपनों ने कर लिया है किनारा..?

क्यों हार कर मायूस हुए हो
क्या छूट गया है कोई प्रिय प्यारा..?

ये जीवन डगमग यूँ ही डोले
समझ से पार होता है भव सारा..!

उस सत्ता पर कर भरोसा
वही तो होता है सबका अंतिम सहारा..!

हौसला बनाए रख स्वयं पर
वो देता है कोई न कोई इशारा..!

वो कभी गिरने नहीं देगा 
वही तो है खेवनहार हमारा..!

बुद्धि, विवेक समझदारी,होशियारी से
बढ़ते चलो लेके आत्मविश्वास का सहारा

**वंदना सोलंकी©️स्वरचित

विषय - सहारा

तुम्हारे प्यार का हमको, सहारा मिल गया होता
बिना पतवार सागर पार , हमने कर लिया होता
तेरी चाहत के पंखों पर ,हम हो जाते सवार
बहुत हिम्मत से ऊँचा, ये फलक भी छू लिया होता

जब भी तुम साथ रहते हो ,सहारा मिल ही जाता है
तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में , हिम्मत बढ़ाता है
तेरी ताकत मेरी हिम्मत ,जमाना जीत लेती है
जमाना भी हमारे प्यार पर तब मुस्कुराता है 

सरिता गर्ग


शनिवार
6,7,2019.

प्रभु साथ तेरा रहे, मेरा सहारा है यही,
अब जीवन में हमको और क्या चाहिए ।

रखें भक्तों पे भगवन आप कृपा दृष्टि,
इसके सिवा हमको और क्या चाहिए ।

दूर अंधेरा रहे हमसे अज्ञान का,

उजाला मिले प्रभु हमे ज्ञान का।

दूर नफरत के घेरे हमसे रहें,

मोहब्बत के सिवा हमें और क्या
चाहिए ।........... 

साथ नहीं चाहिए लोभ लालच का,

धन रहे पास अपने संतोष का,

हे ईश आत्मबल बना हमेशा रहे,

ईमान के सिवा हमें और क्या चाहिए ।........ 

स्वरचित मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,

"सहारा"
################
हमारे दरमियाँ अब जो फासला है।
बसी हुई मन में गलत धारणा है।।

मिला था सहारा किस्मत से ही तो।
वहीं से मिला अब तोहफा वेदना है।।

मिला था जब कभी घाव इस जीवन से।
सहारा तेरा ही बनता रहा दवा है।।

सहारा देकर वो चला जो गया।
लगता अंदर अब खोखला है।।

बुझा के चले जो गए नेह का दीया।
दीया वो अभी तक मेरे मन में जला है।।

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।।


5जुलाई19
विषय सहारा
विधा हाइकु

1
बूढ़े माँ बाप
दिया प्यार सहारा
वे बेसहारा
2
डूबती नाव
पतवार सहारा
मिला किनारा
3
हवा का झोंका
उड़ाया आशियाना
नहीं सहारा
4
मृत्यु वरण
जिन्दगी का संघर्ष
प्रभु सहारा
5
गुरु सहारा
जीवन का किनारा
ज्ञान सागर
6
जीव जीवन
वात्सल्य के अधीन
माता सहारा
7
घर से भागे
अदालत सहारा
प्रेम विवाह
8
प्रिय जुदाई 
बहुत दुखदायी
टूटा सहारा
9
अटकी आशा
कानून का सहारा
निराश व्यक्ति

मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली

विषय सहारा
विधा कविता
दिनांक 6,7,2019
दिन शनिवार

सहारा
🍁🍁🍁🍁

ज़रा सा भी लग जाये सहारा
तो मिलता सुलभता से किनारा
पर सहारा यूँ ही मिलता कहाँ है
इसी बात पर तो बिकता ये ज़हाँ है।

सहारों के अधिकतर मोल भाव होते
बिना लाभ के न कोई पडा़व होते
यह करम भूमि अलग ही है साहब
यहाँ कभी दोस्ती तो कभी खिंचाव होते।

कहने को सुन्दर शब्द परमार्थ है
पर सहारे की पृष्ठभूमि तो स्वार्थ है
मोह माया से दूर रहने के लिये पाण्डाल सजा
सब जानते हैं इसमें किसका हितार्थ है।

डूबते को तिनके का सहारा
पर तिनके को भी अपना भविष्य प्यारा
अब हर बात के संदर्भ अलग हैं
तिनका भी अब है अलग ही न्यारा।

स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त

विधा- कविता
*************
मेरी मझधार फंसी नैया, 
हरि तुम्हारा है सहारा, 
पतवार बनकर तुम प्रभु, 
लगा दो जरा किनारा |

जीवन रूपी समंदर में, 
लहरे उठी बड़ी भारी, 
गिरने न देना हमें प्रभु, 
दे देना तुम सहारा |

सर्वत्र ज्ञाता हो प्रभु, 
मन की बात को जानो, 
क्या कुछ हमारे दिल में, 
भली-भाँति तुम पहचानों |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*

नमन "भावों के मोती"🙏
06/07/2018
ंद हाइकु 
विषय-"सहारा"
(1)
प्रेम सहारे
घृणा से लड़कर
जीती दुनिया
(2)
अमरबेल
सहारे का जीवन
दुर्बल तन 
(3)
स्नेह सहारा
माँ-बाप वटवृक्ष
आशीष छाया
(4)
बिसरे जख्म 
आशाओं के सहारे
जागते स्वप्न
(5)
आस्था को मान 
विश्वास का सहारा
शिला में प्राण

ऋतुराज दवे

Damyanti Damyanti 
 विषय ,,सहारा ।
सहारा न.रहा क्योंकि हमदम न रहा ।
फिर क्यू ढूढ मानवीय सहारा ।

एक सुदंरतम सहारा मिला मुझे ।
साथ हे हरक्षण ,नशिकवा न शिकायत ।
कष्ट हरता वही बस चाहता हे मन,अतंरमन पवित्र रखु ।
यही तो चाहत मेरी भी ,मिला सहारा तेरा ।
क्यू भटकू संसारिक गंदगी में ।
बस हाथ न छैड देना मझधार मे ।
गर भटक भी जाऊँ तो.निकाल लेना ।
है मात पिता सियाराम जी यही विनय ।
स्वरचित दमयन्ती मिश्रा ।
गरोठ ,मध्यप्रदेश .

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
कुण्डलिया
-------------

बारिश बिन सब सून है,
सूख गये सब खेत ।
धरती बंजर बन गई,
देखो उड़ती रेत ।।
देखो उड़ती रेत,
कृषक रोता बेचारा ।
नदी बहुत है दूर,
बस बारिश है सहारा ।।
बारिश कर दो देव,
करता तुमसे गुजारिश ।
त्राहि त्राहि सब ओर,
पुकारें बारिश बारिश ।।
~~~~~~~~~
मुरारि पचलंगिया

#रचनाकार:दुर्गा सिलगीवाला सोनी,

"""***"""सहारा"""***"""

उलझनों में होती कश्ती हमारी
दूर हमसे हर किनारा होता,
नैया भी डूबती भंवर में हमारी,
हमें जो तुम्हारा सहारा ना होता,

गर खुदा इस जमीं में तुम्हे,
आसमां से नीचे उतारा ना होता,
ना कटता सफर इस जिंदगी का
इस जहां में हमारा गुज़ारा ना होता,

यहां हम अजनवी ही होते,
जो तुमने हमें पुकारा ना होता,
ना मौसम भी ये बहारों का होता,
पतझ़ड में अपना गुजारा ना होता,

ना हम ही कदम अपने बढ़ाते,
मिला जो तुम्हारा इशारा ना होता,
ना होता कोई हमसफर जिंदगी का,
साथ भी किसी का गवारा ना होता

6 /7 / 19 
(हाइकु )



सत्कर्म पूंजी 
जीवन का सहारा 
दूजा ना कोई 



निरोगी काया 
बने स्वयं सहारा 
अमूल्य निधि 



टूटा है तारा 
सरहद के पार 
कौन सहारा 



आशा के मोती 
दुर्बल का सहारा 
मन की ज्योति 



खोया मयंक 
जुगनू का सहारा 
निशा के साथ 



अध्यात्म ज्ञान 
संस्कार का सहारा 
कहे विज्ञान 



स्वार्थ के रिश्ते 
दिखावटी सहारा 
ओर ना छोर 



बड़ी घातक 
सहारा की उम्मीद 
आत्म प्रपंचा 



डूबती नैया 
प्रभु तेरा सहारा 
आओ खेवैया 

(स्वरचित )सुलोचना सिंह 
भिलाई (दुर्ग )

नमन 
6/7/19
सहारा 
हाइकु
■■■■■
1)
अंधक मुनि 
श्रवण का सहारा
धर्म हमारा 
2)
नर व नारि
आपस का सहारा
जगत प्यारा।।
3)
मुश्किल घड़ी 
हौंसला है सहारा
मंजिल खड़ी ।।
4)
वक्त में रोटी 
मेहनत सहारा
खाते रहना ।।
5)
प्रकृति प्यारी 
सबका है सहारा
भूल न जाना ।।
6)
गान्धी की जीत 
अहिंसा के सहारे 
हिंसक हारे ।।
■■■■■■
क्षीरोद्र कुमार पुरोहित

06जुलाई19शनिवार
विषय-सहारा
विधा-हाइकु
💐💐💐💐💐💐
नभ से गिरा

खजूर पे अटका

राम सहारा💐
💐💐💐💐💐💐
आपसी रिश्ते

विश्वास के सहारे

लम्बी टिकते🎂
💐💐💐💐💐💐
आत्म विश्वास

भरोसा के सहारे

जीत लो जंग👍
💐💐💐💐💐💐
जमीन छोड़

आसमान में उड़ें

दर्प सहारे👌
💐💐💐💐💐💐
झूठ सहारे

पार लगा ली नैया

किसकी कृपा🎂
💐💐💐💐💐💐
प्रभु खिवैया

डूबती गई नैया

सच सहारे☺️
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू "अकेला "

विषय - सहारा

मोहब्बत खुदा से बेइंतहा कीजिए
सजदे में सिर अपना झुकाया कीजिए
तोड़कर बंधन सभी संकीर्णताओं के
इंसानियत के बंधन में बँधा कीजिए ।
बेसहारा लोगों की पहचान कीजिए 
सहारा उनका ही फिर बना कीजिए
रहमत उस खुदा की स्वीकारों तुम
ज़रूरतमंदों का सहारा बना कीजिए ।
उन टूटे सपनो की आह सुना कीजिए
उनके सपने भी साकार किया कीजिए
पोंछकर तुम उनकी आँखों के आँसू
नव ऊर्जा देकर सहारा बना कीजिए ।

✍🏻संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
मौलिक एवं स्वरचित

दिनाँक -06/07/2019
शीर्षक-सहारा
विधा-हाइकु 

1.
डूबते वक्त
तिनके का सहारा
मिला किनारा
2.
बनो सहारा
तन मन धन से
दुःख दर्द में
3.
ऊँची उड़ान
विज्ञान है सहारा
जोश हमारा
4.
दिव्यांग व्यक्ति
बैसाखी है सहारा
मन न हारा
*********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा

"शीर्षक-सहारा"
असहाय बन क्यों सोच रहा तू
ढूंढ़ रहा तू क्यों सहारा
रखो बस विश्वास अपने पर
जीत लो जग सारा।

आरोह,अवरोह तो आये जीवन में
भूल ना जाये लक्ष्य तू अपना
आस्तिक बन कर रहो सदा
सफलता कदम चूमे तुम्हारा।

विश्वबनधू जब साथ तुम्हारे
ढूंढ़ रहा क्यों दूजा सहारा
इस धरा पर कोई नही है
जिसका नही है प्रभु का सहारा।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।

सहारा

बड़ा बेबस शब्द है
सहारा
बूढ़े माता पिता 
ढूंढते फिरते 
अपनों से सहारा

बच्चों को दे
सहारा 
पैरों पर 
जब कर 
दिया खड़ा 
सहारा देने 
वाले को
कर दिया 
बेसहारा

इतना भी 
न करो 
सहारे को
मोहताज 
बदनाम
इतना दोस्तों 
कि विश्वास 
उठ जाए
सहारे से

स्वलिखित 
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

विषय.. सहारा

सहारा समझा था जिसको 
उसी ने तोड़ा है दिल को।
भरोसा था हमें जिसपर
वही गद्दार निकला है।
भरोसा उठ गया उससे
कभी पूजा जिसे हमने।
कैसे बताएं हाले दिल
किस कदर व्यथित यह आज है।
सहारा समझा था जिसको
वही खुद बेसहारा है।
है यह अरदास मेरी इस जमाने से
सहारा बन के तुम कभी
किसी को बेसहारा न करें।
(अशोक राय वत्स)© स्वरचित

दिन - रविवार
विषय - सहारा
विधा - कविता

मिले जो तेरा सहारा,
लगे जग सबसे न्यारा।
शरण प्रभु की मिल जाये,
बन जाऊं मैं एक तारा।।

आये है दर पे तुम्हारे,
इस जग से हम हारे।
करो कृपा प्रभु हम पर,
हम है बस तेरे सहारे।
हूँ मैं विपदा का मारा
मिले जो तेरा सहारा,
लगे जग सबसे न्यारा।

तुम सबके दुःख हरते,
झोली खुशियों से भरते।
हमारे भी दुःख दूर करो,
आया हूँ गिरते पड़ते।
मैं खुद से ही हूँ हारा,
मिले जो तेरा सहारा
लगे जग सबसे न्यारा।।

स्वरचित - सरला सिंहमार शवि

विषय सहारा
विधा लघुकथा

बच्चे बड़े हो बाहर अपने कामों में व्यस्त और रमेश को कार्यालय के कार्यों से अक्सर बाहर रहना पड़ता था । ऐसे मे कविता अकेलेपन और खालीपन से परेशान अवसाद से घिरती जा रही थी ।
पास मे ही एक अनाथालय था ,उस दिन कविता अपनी एक दोस्त के साथ वहाँ कुछ मिठाई वितरण के लिए गयी ।पंद्रह बीस बच्चों के रहने ,खाने पीने और शिक्षा का उचित प्रबंध था।इसके बावजूद उन बच्चों की निस्तेज आंखे उसे अंदर तक बेन्ध गईं ।
उसी पल उसने निश्चय किया कि मै अपना अकेलापन इन बच्चों के साथ बाँट लूँ तो इन बच्चों
को #सहारा मिल जायेगा और इनका समुचित विकास मेरी देख रेख और प्यार में हो सकेगा । शायद निश्छल हंसी इनके चेहरे पर दोबारा आ जाये।
बच्चों को सहारा देने उसके कदम व्यवस्थापक के कमरे के ओर चल पड़े थे।
ये कविता व बच्चों दोनो के लिए आवश्यक था और शायद बहुत सी "कविताओं " के लिए भी जो अपना समय समाज के वंचित वर्ग को दे कर उनका सहारा बन सकती हैं ।

स्वरचित
अनिता सुधीर


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"अंदाज"05मई2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें   ब्लॉग संख्या :-727 Hari S...