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ब्लॉग संख्या :-441
नमन-माँ वीणापाणि को
दिनांक-08/07/2019
विषय - दुर्भाग्य
दुर्भाग्य का नायक....
यह कैसी अनजानी आहट आई.............
व्यथित हृदय मंद मंद अकुलाई...............
एक अजीब सा खालीपन
स्याह अंधेरा था एकाकीपन
उथला- पुथला सा था मेरा मन
ढूंढता एहसासों का सन्नाटा पन
दोनों रहते थे संग संग
एक तो था खालीपन एक तो था एकाकीपन
यह कैसा परिचय......... दुर्भाग्य के
एक अपरिचित शख्स से
प्रखर हो रहे मेरे शब्द
उमड़े जज्बातों के अश्क से
यह प्रतिबिंब है, या एक छलवा
प्रश्न अनेको मन में उठते
है कैसा ए तेरा जलवा
एक सन्नाटा जीवन में आया.......... दुर्भाग्य का...
हृदय की जर्जर तारों से खेलें
मन की अनसुनी चाहत से वो
भावनाओं के कोरे धागों को छेड़ें
शून्य संज्ञा हीन मन के भावों को
असंतृप्त अकुलाहट को झंझोरे
फिर भी हारे मन की चाह को
असंख्य बार कोमल धागों में पिरोरे
एक एकांत जीवन में आया............ दुर्भाग्य का..।।
एक प्रतीक्षा को मैं आलिंगन लगाया
सुन ए मेरे अशांत मन
चिर प्रतीक्षित के मीत
कोई कहता है प्रतीक्षा तो
स्वयं में है एक प्रीत
युगों से मेरे मन प्रतीक्षारत
तुम अब प्रतीक्षा के युग ले लो
जगा हूं मैं मलयलीन अलको से
नींद के पलकों को मुझको दे दो
तंद्रा भंग हुई अब मेरी
व्यस्त लम्हों की मजार पे
कशिश भरी रह गई दिल में
गुमनाम रंजिशो के द्वार पे
स्वरचित....
सर्वाधिकार सुरक्षित
@#$
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
दिनांक-08/07/2019
विषय - दुर्भाग्य
दुर्भाग्य का नायक....
यह कैसी अनजानी आहट आई.............
व्यथित हृदय मंद मंद अकुलाई...............
एक अजीब सा खालीपन
स्याह अंधेरा था एकाकीपन
उथला- पुथला सा था मेरा मन
ढूंढता एहसासों का सन्नाटा पन
दोनों रहते थे संग संग
एक तो था खालीपन एक तो था एकाकीपन
यह कैसा परिचय......... दुर्भाग्य के
एक अपरिचित शख्स से
प्रखर हो रहे मेरे शब्द
उमड़े जज्बातों के अश्क से
यह प्रतिबिंब है, या एक छलवा
प्रश्न अनेको मन में उठते
है कैसा ए तेरा जलवा
एक सन्नाटा जीवन में आया.......... दुर्भाग्य का...
हृदय की जर्जर तारों से खेलें
मन की अनसुनी चाहत से वो
भावनाओं के कोरे धागों को छेड़ें
शून्य संज्ञा हीन मन के भावों को
असंतृप्त अकुलाहट को झंझोरे
फिर भी हारे मन की चाह को
असंख्य बार कोमल धागों में पिरोरे
एक एकांत जीवन में आया............ दुर्भाग्य का..।।
एक प्रतीक्षा को मैं आलिंगन लगाया
सुन ए मेरे अशांत मन
चिर प्रतीक्षित के मीत
कोई कहता है प्रतीक्षा तो
स्वयं में है एक प्रीत
युगों से मेरे मन प्रतीक्षारत
तुम अब प्रतीक्षा के युग ले लो
जगा हूं मैं मलयलीन अलको से
नींद के पलकों को मुझको दे दो
तंद्रा भंग हुई अब मेरी
व्यस्त लम्हों की मजार पे
कशिश भरी रह गई दिल में
गुमनाम रंजिशो के द्वार पे
स्वरचित....
सर्वाधिकार सुरक्षित
@#$
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
विषय ... दुर्भाग्य/ सौभाग्य
***********************
बैठ सुहाग के सेज पे सजनी, बीतें पल को याद करें।
छोड दिया जो मन का साथी, प्यार पुराना याद करें॥
....
बादल की जो रही बिजुरिया, बिन बादल बरसात हुई।
नेह तोड बचपन का साथी, दूजे के घर ब्याह चली॥
.....
लम्बी सी घुँघट को ओढे, सिमटी सी संकुचायी होके।
वाट निहारे अपने पिय की, यादों को वो अपने तंज के॥
......
दुर्भाग्य नही सौभाग्य दिखे अब, पाँव महावर बन करके।
हाथो में मेंहदी की सूर्खी , देख रही वो रो करके॥
......
इतने मे सिन्दूर पधारें, भाग्य विधाता बन करके।
निकल पडी यादों को तंज कर, वो अपने इस जीवन में॥
......
भारत की नारी का जीवन, अदभुद अजब कहानी है।
शेर के मन के भाव को समझो, जीवन रस की वाणी है॥
.....
वचन याद कर सातों वो, यादों को अपने त्याग दिया।
पिय के अंग समा करके, इक नये सृजन को मान दिया॥
.....
रही प्रेमिका पत्नी का, सौभाग्य यहाँ ना मिल पाया।
राधा को कृष्ण का प्रेम मिला, सिन्दूर कहाँ पर मिल पाया॥
.....
स्वरचित एंव मौलिक
शेर सिंह सर्राफ
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बैठ सुहाग के सेज पे सजनी, बीतें पल को याद करें।
छोड दिया जो मन का साथी, प्यार पुराना याद करें॥
....
बादल की जो रही बिजुरिया, बिन बादल बरसात हुई।
नेह तोड बचपन का साथी, दूजे के घर ब्याह चली॥
.....
लम्बी सी घुँघट को ओढे, सिमटी सी संकुचायी होके।
वाट निहारे अपने पिय की, यादों को वो अपने तंज के॥
......
दुर्भाग्य नही सौभाग्य दिखे अब, पाँव महावर बन करके।
हाथो में मेंहदी की सूर्खी , देख रही वो रो करके॥
......
इतने मे सिन्दूर पधारें, भाग्य विधाता बन करके।
निकल पडी यादों को तंज कर, वो अपने इस जीवन में॥
......
भारत की नारी का जीवन, अदभुद अजब कहानी है।
शेर के मन के भाव को समझो, जीवन रस की वाणी है॥
.....
वचन याद कर सातों वो, यादों को अपने त्याग दिया।
पिय के अंग समा करके, इक नये सृजन को मान दिया॥
.....
रही प्रेमिका पत्नी का, सौभाग्य यहाँ ना मिल पाया।
राधा को कृष्ण का प्रेम मिला, सिन्दूर कहाँ पर मिल पाया॥
.....
स्वरचित एंव मौलिक
शेर सिंह सर्राफ
विषय- दुर्भाग्य/ सौभाग्य
विधा- गद्य लेखन ( संस्मरण)
जो आपके भाग्य में लिख दिया गया, उसे आप नहीं मिटा सकते ऐसा मुझे कभी नहीं पढ़ाया गया।
प्रारब्ध या भाग्य सौभाग्य -दुर्भाग्य ऐसी अवधारणाओं से मैं नितांत अपरिचित रही।
रिश्तों को सच्चाई से निभाना और कभी भी रबड़ बैंड की तरह किसी बात को ना बढ़ाना। ऐसी नसीहत देकर मेरे पिताजी ने मुझे विदा किया।
श्वसुर गृह में सारे साधन उपलब्ध थे। सभी थे एकमात्र श्वसुर को छोड़कर। इस बात का मेरे पिताजी एवं मुझे दोनों को ही बहुत खेद था।
कैसी भी विपरीत परिस्थिति हो उसका डटकर कैसे सामना करना है कि वह चुनौतियां आपके सामने ठहर ना पाए मैं बखूबी जानती थी।
जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए पर कर्म प्रधान सोच होने के कारण हम उनसे उबर गए।
किसी भी स्त्री के जीवन में एक फादर फिगर का होना ऐसा ही है जैसे आंगन में नीम का पेड़।
व्यक्ति स्वयं अपना भाग्य निर्माता है चाहे बना ले या बिगाड़ ले।
जो लोग चापलूसों से घिरे रहते हैं,
सच्ची प्रशंसा एवं चाटुकारिता में भेद नहीं कर पाते। थोड़ा सा भौतिक सुख पाते ही फूले नहीं समाते, उन्हें सावधान रहने की आवश्यकता होती है।
2 वर्ष पूर्व जब पिताजी का निधन हुआ उसके बाद मेरे जीवन में एक रिक्तता आ गई।
लेकिन व्यक्ति स्वयं अपना भाग्य निर्माता है उनकी ऐसी सीख मैं कभी नहीं भूल पाती।
समूह के वरिष्ठ गुणी जनों में मुझे वही फादर फिगर नजर आती है और मेरी रचना पर जब तक उनकी प्रतिक्रिया ना आ जाए मुझे तसल्ली नहीं होती।
तो रहिए नीम के छत्र के नीचे और दुर्भाग्य को पहुंचा दीजिए उसके ठिकाने।
शालिनी अग्रवाल
विधा- गद्य लेखन ( संस्मरण)
जो आपके भाग्य में लिख दिया गया, उसे आप नहीं मिटा सकते ऐसा मुझे कभी नहीं पढ़ाया गया।
प्रारब्ध या भाग्य सौभाग्य -दुर्भाग्य ऐसी अवधारणाओं से मैं नितांत अपरिचित रही।
रिश्तों को सच्चाई से निभाना और कभी भी रबड़ बैंड की तरह किसी बात को ना बढ़ाना। ऐसी नसीहत देकर मेरे पिताजी ने मुझे विदा किया।
श्वसुर गृह में सारे साधन उपलब्ध थे। सभी थे एकमात्र श्वसुर को छोड़कर। इस बात का मेरे पिताजी एवं मुझे दोनों को ही बहुत खेद था।
कैसी भी विपरीत परिस्थिति हो उसका डटकर कैसे सामना करना है कि वह चुनौतियां आपके सामने ठहर ना पाए मैं बखूबी जानती थी।
जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए पर कर्म प्रधान सोच होने के कारण हम उनसे उबर गए।
किसी भी स्त्री के जीवन में एक फादर फिगर का होना ऐसा ही है जैसे आंगन में नीम का पेड़।
व्यक्ति स्वयं अपना भाग्य निर्माता है चाहे बना ले या बिगाड़ ले।
जो लोग चापलूसों से घिरे रहते हैं,
सच्ची प्रशंसा एवं चाटुकारिता में भेद नहीं कर पाते। थोड़ा सा भौतिक सुख पाते ही फूले नहीं समाते, उन्हें सावधान रहने की आवश्यकता होती है।
2 वर्ष पूर्व जब पिताजी का निधन हुआ उसके बाद मेरे जीवन में एक रिक्तता आ गई।
लेकिन व्यक्ति स्वयं अपना भाग्य निर्माता है उनकी ऐसी सीख मैं कभी नहीं भूल पाती।
समूह के वरिष्ठ गुणी जनों में मुझे वही फादर फिगर नजर आती है और मेरी रचना पर जब तक उनकी प्रतिक्रिया ना आ जाए मुझे तसल्ली नहीं होती।
तो रहिए नीम के छत्र के नीचे और दुर्भाग्य को पहुंचा दीजिए उसके ठिकाने।
शालिनी अग्रवाल
विधा लघु कविता
08 जुलाई 2019, सोमवार
कर्म प्रधान जीवन में होते
जैसा करते वैसा ही भरते।
सौभाग्यशाली वे नर होते
कभी नहीं जीवन में मरते।
चलते हैं जो सत्य के पथ
चाहे कंटक पाँव में आते।
नित सौभाग्यशाली रहते
शिष्य पद श्री शीश झुकाते।
सौभाग्य दुर्भाग्य कुछ नहीं
सब कर्मो पर है आधारित।
रत्ना डाकू बना वाल्मीकि
यह सब संस्कार आचारित।
सौभाग्य दुर्भाग्य जीवन
ऊपर से न बनकर आते।
जैसा कर्म करें जीवन में
वैसा ही तो हम फल पाते।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
08 जुलाई 2019, सोमवार
कर्म प्रधान जीवन में होते
जैसा करते वैसा ही भरते।
सौभाग्यशाली वे नर होते
कभी नहीं जीवन में मरते।
चलते हैं जो सत्य के पथ
चाहे कंटक पाँव में आते।
नित सौभाग्यशाली रहते
शिष्य पद श्री शीश झुकाते।
सौभाग्य दुर्भाग्य कुछ नहीं
सब कर्मो पर है आधारित।
रत्ना डाकू बना वाल्मीकि
यह सब संस्कार आचारित।
सौभाग्य दुर्भाग्य जीवन
ऊपर से न बनकर आते।
जैसा कर्म करें जीवन में
वैसा ही तो हम फल पाते।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
दिनांक- 08/07/19
विषय - दुर्भाग्य
🍃🌺☘🥀🍀🌷🌱🌼
एक तितली चमन में,
उड़ रही थी गगन में।
झूमती थी हर कली,
पागल मस्त पवन में।।
मदहोश थी हर कली,
नाजों से थी वो पली।
तन खुलती कली का,
चूम रही थी तितली।।
भोर का बीता प्रहर,
जल रही थी दोपहर।
सूरज भी दिखा रहा,
था अपना क्रूर कहर।।
व्याकुल हुई तितली,
मुरझाने लगी कली।
चमन की यह दुविधा,
देख रहे थे सभी।।
कैसा दुर्भाग्य चमन का,
बिखरा बदन कली का।
मृत पड़ी थी धरा पर,
शांत मन था तितली का।।
स्व रचित
मीनू "रागिनी "
विषय - दुर्भाग्य
🍃🌺☘🥀🍀🌷🌱🌼
एक तितली चमन में,
उड़ रही थी गगन में।
झूमती थी हर कली,
पागल मस्त पवन में।।
मदहोश थी हर कली,
नाजों से थी वो पली।
तन खुलती कली का,
चूम रही थी तितली।।
भोर का बीता प्रहर,
जल रही थी दोपहर।
सूरज भी दिखा रहा,
था अपना क्रूर कहर।।
व्याकुल हुई तितली,
मुरझाने लगी कली।
चमन की यह दुविधा,
देख रहे थे सभी।।
कैसा दुर्भाग्य चमन का,
बिखरा बदन कली का।
मृत पड़ी थी धरा पर,
शांत मन था तितली का।।
स्व रचित
मीनू "रागिनी "
आज का विषय, सौभाग्य, दुर्भाग्य
दिन, सोमवार
दिनांक, 8,7,2019.
जीवन दर्शन कितना है विशाल,
नहीं लगता है इसमें पूर्ण विराम ।
चलता है अनुभव का सिलसिला,
मिलती कभी खुशी तो कभी गम ।
आभास खुशी का सौभाग्य बनाता ,
दुःख का अनुभव दुर्भाग्य बनता ।
कभी छवि देखी न निज कर्मों की,
किस्मत की कीमत को ही आंका ।
जग में कुछ योग रहा तकदीरों का,
कुछ योगदान था कर्मठ हाथों का ।
हमेशा सौभाग्य हमारे साथ ही रहा,
यूँ ही फूल खिला रहा जज्वातों का ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश.
दिन, सोमवार
दिनांक, 8,7,2019.
जीवन दर्शन कितना है विशाल,
नहीं लगता है इसमें पूर्ण विराम ।
चलता है अनुभव का सिलसिला,
मिलती कभी खुशी तो कभी गम ।
आभास खुशी का सौभाग्य बनाता ,
दुःख का अनुभव दुर्भाग्य बनता ।
कभी छवि देखी न निज कर्मों की,
किस्मत की कीमत को ही आंका ।
जग में कुछ योग रहा तकदीरों का,
कुछ योगदान था कर्मठ हाथों का ।
हमेशा सौभाग्य हमारे साथ ही रहा,
यूँ ही फूल खिला रहा जज्वातों का ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश.
शीर्षक- सौभाग्य/दुर्भाग्य
प्रथम प्रस्तुति
सौभाग्य कहाँ से खुलता है
ये इंसा को पता न चलता है ।।
कर्मरत जो रहता निश दिन
एक दिन शुभ फल मिलता है ।।
राह बदलता है जो हरदम
एक दिन आँखें मलता है ।।
एक जगह टिक जाओ तो
सुख का सूरज निकलता है ।।
फूल काँटों में भी हंसता
सुगंध संचित वो करता है ।।
दुर्भाग्य कहा जिन शूलों को
सौभाग्य वहीं से पनपता है ।।
एक सिक्के के दो पहलू
संगम ''शिवम" चलता है ।।
जाने क्यों समरसता इंसा
के दिमाग में न पलता है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 08/07/2019
प्रथम प्रस्तुति
सौभाग्य कहाँ से खुलता है
ये इंसा को पता न चलता है ।।
कर्मरत जो रहता निश दिन
एक दिन शुभ फल मिलता है ।।
राह बदलता है जो हरदम
एक दिन आँखें मलता है ।।
एक जगह टिक जाओ तो
सुख का सूरज निकलता है ।।
फूल काँटों में भी हंसता
सुगंध संचित वो करता है ।।
दुर्भाग्य कहा जिन शूलों को
सौभाग्य वहीं से पनपता है ।।
एक सिक्के के दो पहलू
संगम ''शिवम" चलता है ।।
जाने क्यों समरसता इंसा
के दिमाग में न पलता है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 08/07/2019
विषय- सौभाग्य /दुर्भाग्य
सादर मंच को समर्पित --
🌺☀ मुक्तक ☀🌺
************************
💧 सौभाग्य / दुर्भाग्य 💧
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
कर्म सदा सौभाग्य बनाते
सत पथ चलते धीरे-धीरे ।
जो जुटते साहस से कर्मठ
मंजिल गढ़ते नीरे-क्षीरे ।
भीरु किनारे खड़े देखते
पथ की दुर्गमता से डर कर --
बन जाता दुर्भाग्य उन्ही का
जो हैं रहते तीरे-तीरे ।।
सादर मंच को समर्पित --
🌺☀ मुक्तक ☀🌺
************************
💧 सौभाग्य / दुर्भाग्य 💧
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
कर्म सदा सौभाग्य बनाते
सत पथ चलते धीरे-धीरे ।
जो जुटते साहस से कर्मठ
मंजिल गढ़ते नीरे-क्षीरे ।
भीरु किनारे खड़े देखते
पथ की दुर्गमता से डर कर --
बन जाता दुर्भाग्य उन्ही का
जो हैं रहते तीरे-तीरे ।।
शीर्षक-सौभाग्य
विधा-मुक्तक
===============
तुम उजालों में मिली थीं,यह मेरा सौभाग्य था ।
लखकर तुम्हें आँखें खिली थीं,यह मेरा सौभाग्य था ।।
यह प्रेम का जल श्रोत अविरल बस यूँ ही बहता रहे ,
अनवरत रुचियाँ झली थीं,यह मेरा सौभाग्य था ।।
🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹
दुर्भाग्य
टेर तुम सुनते नहीं अब मैं कहूँ दुर्भाग्य अपना ।
द्रोह जो तुमसे किया कब? मैं कहूँ दुर्भाग्य अपना ।।
सम्पूर्ण जीवन सोंपकर एहसास तुमने कुछ न पाया,
खोलते हो जो नहीं लब मैं कहूँ दुर्भाग्य अपना ।।
======================
"अ़क्स " दौनेरिया
विधा-मुक्तक
===============
तुम उजालों में मिली थीं,यह मेरा सौभाग्य था ।
लखकर तुम्हें आँखें खिली थीं,यह मेरा सौभाग्य था ।।
यह प्रेम का जल श्रोत अविरल बस यूँ ही बहता रहे ,
अनवरत रुचियाँ झली थीं,यह मेरा सौभाग्य था ।।
🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹
दुर्भाग्य
टेर तुम सुनते नहीं अब मैं कहूँ दुर्भाग्य अपना ।
द्रोह जो तुमसे किया कब? मैं कहूँ दुर्भाग्य अपना ।।
सम्पूर्ण जीवन सोंपकर एहसास तुमने कुछ न पाया,
खोलते हो जो नहीं लब मैं कहूँ दुर्भाग्य अपना ।।
======================
"अ़क्स " दौनेरिया
सौभाग्य
पिरामिड
ये
गृह
सौभाग्य
नववधू
खिले सुमन
मुदित आँगन
मुख्य द्वार पूजन।
जो
हुए
शहीद
मातृभूमि
रक्षार्थ यज्ञ
बन गए हवि
सौभाग्य प्रतीक ।
स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'
पिरामिड
ये
गृह
सौभाग्य
नववधू
खिले सुमन
मुदित आँगन
मुख्य द्वार पूजन।
जो
हुए
शहीद
मातृभूमि
रक्षार्थ यज्ञ
बन गए हवि
सौभाग्य प्रतीक ।
स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'
सौभाग्य/ दुर्भाग्य
सौभाग्य और दुर्भाग्य
हैं एक दूसरे पूरक
दुर्भाग्य के बिन नहीं है
सौभाग्य का मूल्य
सोच है अपनी
सौभाग्य दुर्भाग्य की
मेहनत और ईमानदारी
बदल देता है
भाग्य इन्सान का
मत कहो किसी
विधवा को दुर्भाग्यशाली
वह भी बनी थी
कभी सौभाग्यशाली
लक्ष्मी और दरिद्री भी
हैं दो बहनें
जब स्वागत करेंगे
लक्ष्मी का
स्वत: भाग जाएगी
दरिद्री
दूर करो
गृहक्लेश को
रहो सुख शांति से
लो आशीर्वाद
बुजुर्गो का
तब होगा वह घर
सौभाग्यशाली
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
सौभाग्य और दुर्भाग्य
हैं एक दूसरे पूरक
दुर्भाग्य के बिन नहीं है
सौभाग्य का मूल्य
सोच है अपनी
सौभाग्य दुर्भाग्य की
मेहनत और ईमानदारी
बदल देता है
भाग्य इन्सान का
मत कहो किसी
विधवा को दुर्भाग्यशाली
वह भी बनी थी
कभी सौभाग्यशाली
लक्ष्मी और दरिद्री भी
हैं दो बहनें
जब स्वागत करेंगे
लक्ष्मी का
स्वत: भाग जाएगी
दरिद्री
दूर करो
गृहक्लेश को
रहो सुख शांति से
लो आशीर्वाद
बुजुर्गो का
तब होगा वह घर
सौभाग्यशाली
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
#दिनांक:८,७,२०१९*
#विषय: सौभाग्य,दुर्भाग्य*
#विधा: काव्य लेखन*
#रचनाकार: दुर्गा सिलगीवाला सोनी*
"""***"सौभाग्य दुर्भाग्य"***"""
ऋषि मुनियों की इस तपो भूमि में,
जन्म लेना ही हमारा सौभाग्य है,
किन्तु अनेक जाति पंथ में बंटना,
स्व संप्रदाय के लिए ही दुर्भाग्य है,
कुत्सित नहीं हृदय और निज बुद्धि,
हम वसुधैव कुटुंब के समर्थक हैं,
इस धर्म धरा के हम हैं उपासक,
विश्व बंधुत्व सदाशयता प्रवर्तक है,
तम और अज्ञान के घने अन्धकार में,
हम सत्य अहिंसा के प्रकाश पुंज है,
विश्व कल्याण भी है उद्देश्य हमारा,
मानस की माल में पिरोए हम गुंज हैं,
यह धर्मधरा जीव मात्र की संरक्षक,
असुर दैत्यों की सदा से संहारक है,
सद्भाव परस्पर रहे प्राणी मात्र में,
अहिल्या शिवरी की भी उद्धारक है,
#विषय: सौभाग्य,दुर्भाग्य*
#विधा: काव्य लेखन*
#रचनाकार: दुर्गा सिलगीवाला सोनी*
"""***"सौभाग्य दुर्भाग्य"***"""
ऋषि मुनियों की इस तपो भूमि में,
जन्म लेना ही हमारा सौभाग्य है,
किन्तु अनेक जाति पंथ में बंटना,
स्व संप्रदाय के लिए ही दुर्भाग्य है,
कुत्सित नहीं हृदय और निज बुद्धि,
हम वसुधैव कुटुंब के समर्थक हैं,
इस धर्म धरा के हम हैं उपासक,
विश्व बंधुत्व सदाशयता प्रवर्तक है,
तम और अज्ञान के घने अन्धकार में,
हम सत्य अहिंसा के प्रकाश पुंज है,
विश्व कल्याण भी है उद्देश्य हमारा,
मानस की माल में पिरोए हम गुंज हैं,
यह धर्मधरा जीव मात्र की संरक्षक,
असुर दैत्यों की सदा से संहारक है,
सद्भाव परस्पर रहे प्राणी मात्र में,
अहिल्या शिवरी की भी उद्धारक है,
"सौभाग्य/दुर्भाग्य"
################
किस्मत का ये निराला सब खेल देखना,
सौभाग्य व दुर्भाग्य का मेल देखना,
जीवन में आना-जाना लगा ही रहता,
आने से पहले आ रहे संयोग देखना।
दुर्भाग्य से पड़े कभी भाग्य पे ताले,
सौभाग्य छुपा कहाँ है ये कौन जाने,
हमको तो है कर्म करते ही जाना,
खेल पासे का है ईश्वर के हवाले।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।
################
किस्मत का ये निराला सब खेल देखना,
सौभाग्य व दुर्भाग्य का मेल देखना,
जीवन में आना-जाना लगा ही रहता,
आने से पहले आ रहे संयोग देखना।
दुर्भाग्य से पड़े कभी भाग्य पे ताले,
सौभाग्य छुपा कहाँ है ये कौन जाने,
हमको तो है कर्म करते ही जाना,
खेल पासे का है ईश्वर के हवाले।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।
विधा-कविता
भारत भू पर जन्म मिला
ये ईश्वर की सौगात है।
उस पर मानव तन पाया,
धन्य धन्य सौभाग्य है।।
इस पावन वसुंधरा को
देवता भी ललचाते है।
इस भूमि पर जन्म लेने
स्वयं विधाता आते हैं।
शत शत सौभाग्य हमारा
इस पुण्य भूमि में जन्म मिला।
ईश्वर की अनुकंपा से,
स्वर्ग सा यहाँ आनंद मिला।।
यहीं राम और यहीं कृष्ण
पावन माटी में खेले हैं।
नानक बुध्द महावीर भी
तप अग्नि में तपते हैं।।
कण कण में शिव शंकर है
अमृत गंगा की धारा है।
सारी दुनिया में सबसे न्यारा
हिंदोस्थान हमारा है।।
रचनाकार
जयंती सिंह
भारत भू पर जन्म मिला
ये ईश्वर की सौगात है।
उस पर मानव तन पाया,
धन्य धन्य सौभाग्य है।।
इस पावन वसुंधरा को
देवता भी ललचाते है।
इस भूमि पर जन्म लेने
स्वयं विधाता आते हैं।
शत शत सौभाग्य हमारा
इस पुण्य भूमि में जन्म मिला।
ईश्वर की अनुकंपा से,
स्वर्ग सा यहाँ आनंद मिला।।
यहीं राम और यहीं कृष्ण
पावन माटी में खेले हैं।
नानक बुध्द महावीर भी
तप अग्नि में तपते हैं।।
कण कण में शिव शंकर है
अमृत गंगा की धारा है।
सारी दुनिया में सबसे न्यारा
हिंदोस्थान हमारा है।।
रचनाकार
जयंती सिंह
विधाःः काव्यःः
सौभाग्य, दुर्भाग्य कुछ नहीं होता है,
ये तो केवल अपने मन का मंथन है।
निराशाऐं घेर लेती हैं जब अंतरतम,
तब हुई उठापटक मन का मंचन है।
सद्ग्रंथ गीता सदुपदेश यही देते हैं,
कर्मप्रधान अनवरत करते जाऐं हम।
नहीं कभी लक्ष्य से अपना मुंह मोडें,
सदावहार विजय वरण करते जाऐं।
क्यों असफलताऐं दुर्भाग्य से जोडें,
हमको बिल्कुल नहीं बात सुहाती।
हार जीत जीवन में चलती रहती है,
जीत गये सौभाग्य यही बात कहाती।
कर्मठ व्यक्ति भाग्य को नहीं रोते हैं।
करें कठोर परिश्रम चैन से सोते हैं।
सदा सौभाग्य निर्धारित अपना करते,
पर निज उद्देश्य कभी नहीं ये खोते हैं।
स्वरचितःः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
सौभाग्य, दुर्भाग्य कुछ नहीं होता है,
ये तो केवल अपने मन का मंथन है।
निराशाऐं घेर लेती हैं जब अंतरतम,
तब हुई उठापटक मन का मंचन है।
सद्ग्रंथ गीता सदुपदेश यही देते हैं,
कर्मप्रधान अनवरत करते जाऐं हम।
नहीं कभी लक्ष्य से अपना मुंह मोडें,
सदावहार विजय वरण करते जाऐं।
क्यों असफलताऐं दुर्भाग्य से जोडें,
हमको बिल्कुल नहीं बात सुहाती।
हार जीत जीवन में चलती रहती है,
जीत गये सौभाग्य यही बात कहाती।
कर्मठ व्यक्ति भाग्य को नहीं रोते हैं।
करें कठोर परिश्रम चैन से सोते हैं।
सदा सौभाग्य निर्धारित अपना करते,
पर निज उद्देश्य कभी नहीं ये खोते हैं।
स्वरचितःः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
8/7/2019/
बिषय ,,सौभाग्य,, दुर्भाग्य
बिधाता के हाथों में है सबका भाग्य
पूर्वाद्ध धर्म कर्मानुसार सौभाग्य दुर्भाग्य
समस्त ब्रम्हांड के रचयिता की संरचना
इनके ही इशारों पर हर घटना
होनी को अनहोनी ,,अनहोनी को होनी
फसल सब वही काटें जिसकी जैसी बोनी
नियमानुसार नियति का खेल
चलाने वाला एक ही सांसारिक तालमेल
सत्कर्मों से भर देगा सौभाग्य का पिटारा
वरना दुर्भाग्यबश फिरे मारा मारा
वर्तमान को संवार लें भविष्य संवर जाएगा
दुर्भाग्य भी सौभाग्य में परिवर्तित हो जाएगा
स्वयचित,, सुषमा ब्यौहार
बिषय ,,सौभाग्य,, दुर्भाग्य
बिधाता के हाथों में है सबका भाग्य
पूर्वाद्ध धर्म कर्मानुसार सौभाग्य दुर्भाग्य
समस्त ब्रम्हांड के रचयिता की संरचना
इनके ही इशारों पर हर घटना
होनी को अनहोनी ,,अनहोनी को होनी
फसल सब वही काटें जिसकी जैसी बोनी
नियमानुसार नियति का खेल
चलाने वाला एक ही सांसारिक तालमेल
सत्कर्मों से भर देगा सौभाग्य का पिटारा
वरना दुर्भाग्यबश फिरे मारा मारा
वर्तमान को संवार लें भविष्य संवर जाएगा
दुर्भाग्य भी सौभाग्य में परिवर्तित हो जाएगा
स्वयचित,, सुषमा ब्यौहार
विषय - "दुर्भाग्य /सौभाग।
"हे दुर्भागी कितना भागेगा
भाग्य से अपने,
तेरे आगे आगे चलता है
तेरा दुर्भाग्य"।
अरे¡ ठहर क्यों गया?
तूं आशा न छोड़
कर्म गति मोड़
आज नही कल
सारे प्रारब्ध होंगे पुरे
आगे होगी एक सुहानी डगर
माना तूं किस्मत लिख नही सकता
पर सत्कर्मो से सौभाग्य रच सकता है।
कल किया आज भोग रहा
तो कल का भोग आज तैयार कर
विवेक से सद्ज्ञान से।
तूं बढ़ निरन्तर बस भाव हो उज्जवल
हर हाल जीवन होगा निष्कंटक।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
"हे दुर्भागी कितना भागेगा
भाग्य से अपने,
तेरे आगे आगे चलता है
तेरा दुर्भाग्य"।
अरे¡ ठहर क्यों गया?
तूं आशा न छोड़
कर्म गति मोड़
आज नही कल
सारे प्रारब्ध होंगे पुरे
आगे होगी एक सुहानी डगर
माना तूं किस्मत लिख नही सकता
पर सत्कर्मो से सौभाग्य रच सकता है।
कल किया आज भोग रहा
तो कल का भोग आज तैयार कर
विवेक से सद्ज्ञान से।
तूं बढ़ निरन्तर बस भाव हो उज्जवल
हर हाल जीवन होगा निष्कंटक।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
विषय - सौभाग्य/दुर्भाग्य
____🙂_________😈__
सौभाग्य
से आती हैं
बेटियाँ घर के आँगन में
खुशियाँ वहीं हैं बसती
बेटियाँ जहाँ हैं चहकती
दुर्भाग्य
है यह उनका
जो कदर न इनकी जाने
बेटों के मोह में फंसे
बंद करते किस्मत के दरवाजे
सौभाग्य
बसे उस घर में
बहुएँ मुस्कुराए जिस घर में
भगवान का होता बास
जहाँ नारी का है सम्मान
दुर्भाग्य
पाँव पसारे
जहाँ लालच भरा हो मन में
दहेज की लालसा में
बेटी सुलगती हो घर में
सौभाग्य
अगर पाना है
सोच को बदल दे
न फर्क कर संतान में
स्त्री को महत्व दे
दुर्भाग्य
मिटे जीवन में
माँ-बाप की कर सेवा
भगवान यह धरती के
आर्शीवाद से मिले मेवा
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित
____🙂_________😈__
सौभाग्य
से आती हैं
बेटियाँ घर के आँगन में
खुशियाँ वहीं हैं बसती
बेटियाँ जहाँ हैं चहकती
दुर्भाग्य
है यह उनका
जो कदर न इनकी जाने
बेटों के मोह में फंसे
बंद करते किस्मत के दरवाजे
सौभाग्य
बसे उस घर में
बहुएँ मुस्कुराए जिस घर में
भगवान का होता बास
जहाँ नारी का है सम्मान
दुर्भाग्य
पाँव पसारे
जहाँ लालच भरा हो मन में
दहेज की लालसा में
बेटी सुलगती हो घर में
सौभाग्य
अगर पाना है
सोच को बदल दे
न फर्क कर संतान में
स्त्री को महत्व दे
दुर्भाग्य
मिटे जीवन में
माँ-बाप की कर सेवा
भगवान यह धरती के
आर्शीवाद से मिले मेवा
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित
कविता
विषय :-"सौभाग्य"
ऋषियों की भूमि,
जहाँ गाय माता सम,
भारत में मिला जन्म,
नहीं सौभाग्य से कम l
गीता का सन्देश,
भाव वसुधैव कुटुंबकम,
भिन्नता में एकता,
नहीं सौभाग्य से कम l
वीरों की हो खेती जहाँ,
राष्ट्रप्रेम प्रथम,
तिरंगे का कफ़न,
नहीं सौभाग्य से कम l
पत्थर को भी मान मिले,
नदियों को अर्पण,
इस मिट्टी का तिलक भी,
नहीं सौभाग्य से कम l
संस्कारों की पूजा
और संस्कृति है धन,
मिली जो सौगातें यहाँ ,
नहीं सौभाग्य से कम l
स्वरचित
ऋतुराज दवे
विषय :-"सौभाग्य"
ऋषियों की भूमि,
जहाँ गाय माता सम,
भारत में मिला जन्म,
नहीं सौभाग्य से कम l
गीता का सन्देश,
भाव वसुधैव कुटुंबकम,
भिन्नता में एकता,
नहीं सौभाग्य से कम l
वीरों की हो खेती जहाँ,
राष्ट्रप्रेम प्रथम,
तिरंगे का कफ़न,
नहीं सौभाग्य से कम l
पत्थर को भी मान मिले,
नदियों को अर्पण,
इस मिट्टी का तिलक भी,
नहीं सौभाग्य से कम l
संस्कारों की पूजा
और संस्कृति है धन,
मिली जो सौगातें यहाँ ,
नहीं सौभाग्य से कम l
स्वरचित
ऋतुराज दवे
8/07/2019
"सौभाग्य/दुर्भाग्य"
1
चरण स्पर्श
सौभाग्यवती भव
मिला आशीष
2
नारी सौभाग्य
चूड़ी,बिंदी, सिंदूर
रंगत लाल
3
माँ का आँचल
सौभाग्य संग नाता
दुर्भाग्य भागा
4
घर की लक्ष्मी
आगमन सौभाग्य
बिटिया जन्मी
5
दुर्भाग्य डेरा
गर्दिश में सितारा
इंसान हारा
6
खोला किवाड़
द्वारे पर सौभाग्य
ईश जो साथ
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।
"सौभाग्य/दुर्भाग्य"
1
चरण स्पर्श
सौभाग्यवती भव
मिला आशीष
2
नारी सौभाग्य
चूड़ी,बिंदी, सिंदूर
रंगत लाल
3
माँ का आँचल
सौभाग्य संग नाता
दुर्भाग्य भागा
4
घर की लक्ष्मी
आगमन सौभाग्य
बिटिया जन्मी
5
दुर्भाग्य डेरा
गर्दिश में सितारा
इंसान हारा
6
खोला किवाड़
द्वारे पर सौभाग्य
ईश जो साथ
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।
आज का विषय - सौभाग्य/ दुर्भाग्य
विधा -छंदमुक्त
श्रम,सतकर्म सौभाग्य जगाते,
दुर्भाग्य सदा हमें दहलाता l
कर्मों की गति कहकर मानव
कितना स्वयं को है बहलाता l
सौभाग्य, दुर्भाग्य मनुज के,
विधाता की ही रचना है l
तकदीरों का खेल यहाँ पर,
हम सब का अपना अपना है l
भाग्य लेख जो लिखा हुआ,
कौन उसे मिटा सकता है l
कहते हैं प्रारब्ध लकीरों में,
वक़्त भी न हिला सकता है l
सौभाग्य दुर्भाग्य जीवन में,
बनते व बिगड़ते रहते हैं l
सुख दुख का मिश्रण जीवन,
हर भाव को हम सब सहते हैं l
अच्छा समय ही सौभाग्य है,
वक़्त बुरा बनता दुर्भाग्य l
अच्छा समय ख़ुशी दोनों ही,
मिल बनते फिर अहोभाग्य l
कभी बेबस से हो जाते हम,
नसीब में संध्या क्या है भोर l
कहाँ तिलक था श्री राम का,
कहाँ चल पड़े वन की ओर l
सौभाग्य दुर्भाग्य से जुड़ी,
रूढ़िवादिताएं भी होती हैं l
पुरुषार्थ, अकर्मण्यता से ही
हम सबकी तकदीरें होती है l
कर्म प्रधान इस जगत में कर्म,
सौभाग्य दुर्भाग्य सदा जगातेl
गहरे समुद्र में उतरे बिन तो,
नहीं कभी हम मोती पाते l
कुसुम लता पुन्डोरा
नई दिल्ली
विधा -छंदमुक्त
श्रम,सतकर्म सौभाग्य जगाते,
दुर्भाग्य सदा हमें दहलाता l
कर्मों की गति कहकर मानव
कितना स्वयं को है बहलाता l
सौभाग्य, दुर्भाग्य मनुज के,
विधाता की ही रचना है l
तकदीरों का खेल यहाँ पर,
हम सब का अपना अपना है l
भाग्य लेख जो लिखा हुआ,
कौन उसे मिटा सकता है l
कहते हैं प्रारब्ध लकीरों में,
वक़्त भी न हिला सकता है l
सौभाग्य दुर्भाग्य जीवन में,
बनते व बिगड़ते रहते हैं l
सुख दुख का मिश्रण जीवन,
हर भाव को हम सब सहते हैं l
अच्छा समय ही सौभाग्य है,
वक़्त बुरा बनता दुर्भाग्य l
अच्छा समय ख़ुशी दोनों ही,
मिल बनते फिर अहोभाग्य l
कभी बेबस से हो जाते हम,
नसीब में संध्या क्या है भोर l
कहाँ तिलक था श्री राम का,
कहाँ चल पड़े वन की ओर l
सौभाग्य दुर्भाग्य से जुड़ी,
रूढ़िवादिताएं भी होती हैं l
पुरुषार्थ, अकर्मण्यता से ही
हम सबकी तकदीरें होती है l
कर्म प्रधान इस जगत में कर्म,
सौभाग्य दुर्भाग्य सदा जगातेl
गहरे समुद्र में उतरे बिन तो,
नहीं कभी हम मोती पाते l
कुसुम लता पुन्डोरा
नई दिल्ली
विषय .. सौभाग्य / दुर्भाग्य
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
मेरे शब्दों की दुनिया में, आओं कभी।
स्वर में कविता मेरी, गुनगुनाओ कभी॥
बात दिल की सभी को बता दो अभी।
मेरे शब्दों की दुनिया में........
ये जो रचना मेरी देगी जीवन तभी।
लय में सुर ताल रिद्धम में बाँधो कभी॥
अपने भावों को इसमें मिलाओ कभी।
मेरे शब्दों की दुनिया में........
रस तंरगो की अनुपम ये बौछार है।
मेरी कविता के शब्दों में वो प्राण है॥
सुर में मनभाव सबके जगाओ कभी।
मेरे शब्दों की दुनिया में......
शेर लिखता रहा भावना प्यार की।
कल्पना मे बसी जो थी दिल मे कभी॥
बनके सौभाग्य दुर्भाग्य मिटाओ सभी।
मेरे शब्दों की दुनिया में....
गीत होगा अमर मेरा तू जो पढे।
मान सम्मान तुम संग मेरा भी बढे॥
ऐसी झंकार लय मे मिलाओ कभी।
मेरे शब्दों की दुनिया में.......
वाणी में तेरे बैठी है माँ शारदे।
पढ के कविता मेरी तू इसे तार दे॥
शेर के प्यास को तुम बुझाओ कभी।
मेरे शब्दों की दुनिया मे.....
स्वरचित एंव मौलिक
शेर सिंह सर्राफ
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
मेरे शब्दों की दुनिया में, आओं कभी।
स्वर में कविता मेरी, गुनगुनाओ कभी॥
बात दिल की सभी को बता दो अभी।
मेरे शब्दों की दुनिया में........
ये जो रचना मेरी देगी जीवन तभी।
लय में सुर ताल रिद्धम में बाँधो कभी॥
अपने भावों को इसमें मिलाओ कभी।
मेरे शब्दों की दुनिया में........
रस तंरगो की अनुपम ये बौछार है।
मेरी कविता के शब्दों में वो प्राण है॥
सुर में मनभाव सबके जगाओ कभी।
मेरे शब्दों की दुनिया में......
शेर लिखता रहा भावना प्यार की।
कल्पना मे बसी जो थी दिल मे कभी॥
बनके सौभाग्य दुर्भाग्य मिटाओ सभी।
मेरे शब्दों की दुनिया में....
गीत होगा अमर मेरा तू जो पढे।
मान सम्मान तुम संग मेरा भी बढे॥
ऐसी झंकार लय मे मिलाओ कभी।
मेरे शब्दों की दुनिया में.......
वाणी में तेरे बैठी है माँ शारदे।
पढ के कविता मेरी तू इसे तार दे॥
शेर के प्यास को तुम बुझाओ कभी।
मेरे शब्दों की दुनिया मे.....
स्वरचित एंव मौलिक
शेर सिंह सर्राफ
दिनांक: 8 जुलाई 2019
विधा: हाइकु
1
मानव तन
सर्वोत्तम रचना
सौभाग्य मेरा
2
खुशियां द्वार
जन्म उछाह संग
लायी सौभाग्य
3
शुभ विवाह
सौभाग्यशाली दिन
मंगलगान
4
माँ का आँचल
हर जीव सौभाग्य
वात्सल्य गोद
5
पिता की छाया
सौभाग्यशाली बच्चे
जीव आधार
6
शिष्य सौभाग्य
गुरू का आशीर्वाद
जीवन भाग्य
7
संकट क्षण
अपना भी पराया
दुर्भाग्य साया
8
भ्रष्ट दिमाग
बुद्धि दुरुपयोग
शुरू दुर्भाग्य
मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
विधा: हाइकु
1
मानव तन
सर्वोत्तम रचना
सौभाग्य मेरा
2
खुशियां द्वार
जन्म उछाह संग
लायी सौभाग्य
3
शुभ विवाह
सौभाग्यशाली दिन
मंगलगान
4
माँ का आँचल
हर जीव सौभाग्य
वात्सल्य गोद
5
पिता की छाया
सौभाग्यशाली बच्चे
जीव आधार
6
शिष्य सौभाग्य
गुरू का आशीर्वाद
जीवन भाग्य
7
संकट क्षण
अपना भी पराया
दुर्भाग्य साया
8
भ्रष्ट दिमाग
बुद्धि दुरुपयोग
शुरू दुर्भाग्य
मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
आज विषय सौभाग्य,
मानव जीवन मिला,
सौभाग्य की बात,
परस्पर प्रेम हो,
एक दूसरे के,
सुख दुख के ,
हम सहभागी बने,
वसुधा पर,
प्रभु ने हमे भेजाहै।
आपसमे
उत्कर्ष जीवनकी,
आधार शिला है,,
आपस की एकता,
सामुदायिक जीवन मे
उत्कर्ष, उत्थान का मंत्रहै।
अगुलियों की सहकारिता से,
हम भोजन करतेहै,
शरीर की सहकारिता से,
भोजन की पाचन क्रिया
ठीक से होताहै।
और स्वस्थजीवन ,हमजीतेहै।
इसीलिये मै पारिवारिक जीवन,
मानव जीवन मे
आपसी सहकारिता ही सुखद जीवनमे,आपसी एकता
हमारे जीवन के सौभाग्य को निखारता है।
आपसी सहिष्णुता ही
विष्णु लोक का आनंदी जीवन देने का महामंत्र है।
कौमी चिगांरी सुलगा कर,
रामराज्य नही आयेगा।
मानवप्रेम हीराष्ट मे,
सौभाग्य का उजाला लायेगा।।
स्वरचित देवेन्द्रनारायण दासबसना छ,ग,।।
मानव जीवन मिला,
सौभाग्य की बात,
परस्पर प्रेम हो,
एक दूसरे के,
सुख दुख के ,
हम सहभागी बने,
वसुधा पर,
प्रभु ने हमे भेजाहै।
आपसमे
उत्कर्ष जीवनकी,
आधार शिला है,,
आपस की एकता,
सामुदायिक जीवन मे
उत्कर्ष, उत्थान का मंत्रहै।
अगुलियों की सहकारिता से,
हम भोजन करतेहै,
शरीर की सहकारिता से,
भोजन की पाचन क्रिया
ठीक से होताहै।
और स्वस्थजीवन ,हमजीतेहै।
इसीलिये मै पारिवारिक जीवन,
मानव जीवन मे
आपसी सहकारिता ही सुखद जीवनमे,आपसी एकता
हमारे जीवन के सौभाग्य को निखारता है।
आपसी सहिष्णुता ही
विष्णु लोक का आनंदी जीवन देने का महामंत्र है।
कौमी चिगांरी सुलगा कर,
रामराज्य नही आयेगा।
मानवप्रेम हीराष्ट मे,
सौभाग्य का उजाला लायेगा।।
स्वरचित देवेन्द्रनारायण दासबसना छ,ग,।।
शीर्षक-- सौभाग्य/दुर्भाग्य
द्वितीय प्रस्तुति
कर्मों से सौभाग्य सँवरता
कर्मों से दुर्भाग्य पनपता ।।
कर्म पर सदा करना गौर
कर्मों से जीवन मँहकता ।।
माना कुछ लेकर के आए
ज्यादा दिन वह न चलता ।।
अच्छी हो या बुरी पोटली
वक्त उसको खाली करता ।।
वक्त को सँभाला करना
वक्त हर तस्वीर बदलता ।।
दुर्भाग्य क्यों बुलाओ 'शिवम'
नरतन ये मुश्किल से मिलता ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्
स्वरचित 08/07/2019
द्वितीय प्रस्तुति
कर्मों से सौभाग्य सँवरता
कर्मों से दुर्भाग्य पनपता ।।
कर्म पर सदा करना गौर
कर्मों से जीवन मँहकता ।।
माना कुछ लेकर के आए
ज्यादा दिन वह न चलता ।।
अच्छी हो या बुरी पोटली
वक्त उसको खाली करता ।।
वक्त को सँभाला करना
वक्त हर तस्वीर बदलता ।।
दुर्भाग्य क्यों बुलाओ 'शिवम'
नरतन ये मुश्किल से मिलता ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्
स्वरचित 08/07/2019
दिनांक ८/८/२०१९
"शीर्षक-सौभाग्य/दुर्भाग्य
उठो जागो,खोलो द्वार
आज सौभाग्य आये द्वार
निर्मल मन से जो तूने किया प्रयास
सौभाग्य जागे आज फिर एक बार।
किया अराधना जो सच्चे मन से
वहीं फलित हुआ है आज
बीत गई निशा, हुआ प्रभात।
माँ कमला आई आज।
दीन दुखियों को तूने जो दिया सहारा
ईश आदेश को तूने माना
समर्पित किया जो तूने तन मन
हुआ सृजन नवजीवन का।
राग द्वेष का घटा जब भागे
दुर्भाग्य सौभाग्य बन द्वार पधारे
उठो जागो खोलो द्वार
माँ कमला आई आज।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
"शीर्षक-सौभाग्य/दुर्भाग्य
उठो जागो,खोलो द्वार
आज सौभाग्य आये द्वार
निर्मल मन से जो तूने किया प्रयास
सौभाग्य जागे आज फिर एक बार।
किया अराधना जो सच्चे मन से
वहीं फलित हुआ है आज
बीत गई निशा, हुआ प्रभात।
माँ कमला आई आज।
दीन दुखियों को तूने जो दिया सहारा
ईश आदेश को तूने माना
समर्पित किया जो तूने तन मन
हुआ सृजन नवजीवन का।
राग द्वेष का घटा जब भागे
दुर्भाग्य सौभाग्य बन द्वार पधारे
उठो जागो खोलो द्वार
माँ कमला आई आज।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
08/07/19
सोमवार
कविता
यही एक दुर्भाग्य कि कोयल बाहर से तो काली है,
पर उसकी मृदु कूक सभी को लगती अति मतवाली है।
सावन में काले बादल जब घुमड़- घुमड़कर आते हैं,
रिमझिम-रिमझिम बूँदों से वे अमृत - जल बरसाते हैं।
तभी दूर वृक्षों की डालें मुखरित होने लगती हैं,
कोयल की मीठी वाणी तब गुंजित होने लगती है।
कानों में रस घोल सभी का मन आह्लादित करती है,
कोयल अपने दिव्य स्वरों से मंत्र-मुग्ध कर देती है।
वही हमें शिक्षा देती है रूप असुंदर हो चाहे ,
पर अंतर के गुण की महिमा सदा श्रेष्ठ ही रहती है।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
सोमवार
कविता
यही एक दुर्भाग्य कि कोयल बाहर से तो काली है,
पर उसकी मृदु कूक सभी को लगती अति मतवाली है।
सावन में काले बादल जब घुमड़- घुमड़कर आते हैं,
रिमझिम-रिमझिम बूँदों से वे अमृत - जल बरसाते हैं।
तभी दूर वृक्षों की डालें मुखरित होने लगती हैं,
कोयल की मीठी वाणी तब गुंजित होने लगती है।
कानों में रस घोल सभी का मन आह्लादित करती है,
कोयल अपने दिव्य स्वरों से मंत्र-मुग्ध कर देती है।
वही हमें शिक्षा देती है रूप असुंदर हो चाहे ,
पर अंतर के गुण की महिमा सदा श्रेष्ठ ही रहती है।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
हाय किस्मत तेरे पहलू मे बंधा क्या है।
जिये जाता हूँ बेखबर तो मजा क्या है।
हरेक शख्स ने पूछा मेरे महबूब का नाम।
जिसने बनायी है दुनिया वो भला क्या है।
होके चाहत में दफन देखा नहीं कुछ भी़।
क्या थी बहारे चमन और फज़ा क्या है।
तुम झुकाए खड़े हो क्यों अपने सर को।
माफ तो कर दूँ तुम्हें मगर खता क्या है।
जब उठाता हूं सर तो कर देते हैं कलम।
अब वही जाने जालिम की रज़ा क्या है।
विपिन सोहल
जिये जाता हूँ बेखबर तो मजा क्या है।
हरेक शख्स ने पूछा मेरे महबूब का नाम।
जिसने बनायी है दुनिया वो भला क्या है।
होके चाहत में दफन देखा नहीं कुछ भी़।
क्या थी बहारे चमन और फज़ा क्या है।
तुम झुकाए खड़े हो क्यों अपने सर को।
माफ तो कर दूँ तुम्हें मगर खता क्या है।
जब उठाता हूं सर तो कर देते हैं कलम।
अब वही जाने जालिम की रज़ा क्या है।
विपिन सोहल
*सौभाग्य/दुर्भाग्य*
दिनांक- 8/7/2019
****************
माथे पर लाल बिंदिया,
माँग भरा ये सिंदूर,
हाथों सजी हरी-हरी चूडियाँ,
अंग सजी ये लाल साड़ी और
पैरों की ये बिछिया, पैंजनियां,
नारी ऐसा मनमोहक श्रृंगार किया,
ईश्वर ने सौभाग्य तुझे दिया |
वाह री किस्मत!क्या खेल खेला?
अभी तो मेंहदी ने रंग भी न छोड़ा,
प्रीत की समां अभी-अभी जली थी,
नजर ये नव युगल को किसकी लगी थी?
सरहद से पैगाम तभी क्यों आया?
सिपाही को फिर कोई न रोक पाया,
बस देश के लिये बलिदान वो हो गया,
उस नारी का सौभाग्य,दुर्भाग्य बन गया |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
दिनांक- 8/7/2019
****************
माथे पर लाल बिंदिया,
माँग भरा ये सिंदूर,
हाथों सजी हरी-हरी चूडियाँ,
अंग सजी ये लाल साड़ी और
पैरों की ये बिछिया, पैंजनियां,
नारी ऐसा मनमोहक श्रृंगार किया,
ईश्वर ने सौभाग्य तुझे दिया |
वाह री किस्मत!क्या खेल खेला?
अभी तो मेंहदी ने रंग भी न छोड़ा,
प्रीत की समां अभी-अभी जली थी,
नजर ये नव युगल को किसकी लगी थी?
सरहद से पैगाम तभी क्यों आया?
सिपाही को फिर कोई न रोक पाया,
बस देश के लिये बलिदान वो हो गया,
उस नारी का सौभाग्य,दुर्भाग्य बन गया |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
शुभ सन्ध्या
8//7/19
दुर्भाग्य/सौभाग्य
हाइकु
×××××××××××
1)
माता है मेरी
सौभाग्य से भी बड़ी
ईश है खड़ी ।।
2)
दुर्भाग्य बड़ा
भाई परम शत्रु
बनके खड़ा ।।
3)
रोती द्रोपदी
दुर्भाग्य का रोना
कृष्णा न होना ।।
4)
सैन्य शहीद
कुर्बानी पर प्रश्न
अहा!दुर्भाग्य।।
••••••••••••••
क्षीरोद्र कुमार पुरोहित
8//7/19
दुर्भाग्य/सौभाग्य
हाइकु
×××××××××××
1)
माता है मेरी
सौभाग्य से भी बड़ी
ईश है खड़ी ।।
2)
दुर्भाग्य बड़ा
भाई परम शत्रु
बनके खड़ा ।।
3)
रोती द्रोपदी
दुर्भाग्य का रोना
कृष्णा न होना ।।
4)
सैन्य शहीद
कुर्बानी पर प्रश्न
अहा!दुर्भाग्य।।
••••••••••••••
क्षीरोद्र कुमार पुरोहित
विषय-सौभाग्य/दुर्भाग्य
विधा-तांका
सौभाग्य जागे
बहे खून-पसीना
खिले किस्मत
जीवन हो सफल
परिश्रम सबल।
आलसी रोए
असफलता हाथ
जागे दुर्भाग्य
ढोता जीवनभार
पाता है तिरस्कार।
सौभाग्य शाली
हम भारतवासी
माटी चंदन
संस्कृति अनुपम
विरासत अनोखी।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
विधा-तांका
सौभाग्य जागे
बहे खून-पसीना
खिले किस्मत
जीवन हो सफल
परिश्रम सबल।
आलसी रोए
असफलता हाथ
जागे दुर्भाग्य
ढोता जीवनभार
पाता है तिरस्कार।
सौभाग्य शाली
हम भारतवासी
माटी चंदन
संस्कृति अनुपम
विरासत अनोखी।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
विधा कविता
दिनांक 8.7.2019
दिन सोमवार
सौभाग्य/दुर्भाग्य
🍁🍁🍁🍁
मैं अच्छा पढ़ सका,यह है मेरा भाग्य
पर जो न मिल सका मुझे,वो मेरा दुर्भाग्य
इंजीनियरिंग शिक्षा से सम्बन्धित रहा
और कविता का आँचल पाया,यह मेरा सौभाग्य।
शब्दों की बूँदों ने मुझको,आल्हादित किया
लेखनी थिरक उठी,उसने उन्मादित किया
फिर धारा उठी,प्यार की श्रँगार की
उसने कविता को,सुन्दर श्रँगारित किया।
शब्दों के सुन्दर मेले,कर देते दूर झमेले
नहीं लगता है यह कभी,हम यहाँ नितान्त अकेले
अविरल धारा शब्दों की,रोमांचित करती रहती
कई अवसाद हमने,कविता की बाहों मे झेले।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
दिनांक 8.7.2019
दिन सोमवार
सौभाग्य/दुर्भाग्य
🍁🍁🍁🍁
मैं अच्छा पढ़ सका,यह है मेरा भाग्य
पर जो न मिल सका मुझे,वो मेरा दुर्भाग्य
इंजीनियरिंग शिक्षा से सम्बन्धित रहा
और कविता का आँचल पाया,यह मेरा सौभाग्य।
शब्दों की बूँदों ने मुझको,आल्हादित किया
लेखनी थिरक उठी,उसने उन्मादित किया
फिर धारा उठी,प्यार की श्रँगार की
उसने कविता को,सुन्दर श्रँगारित किया।
शब्दों के सुन्दर मेले,कर देते दूर झमेले
नहीं लगता है यह कभी,हम यहाँ नितान्त अकेले
अविरल धारा शब्दों की,रोमांचित करती रहती
कई अवसाद हमने,कविता की बाहों मे झेले।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
गीता का सार
सौभाग्य या दुर्भाग्य
कर्मों का फल !!
निश्छल भाव
जगहित की सोच
जागे सौभाग्य
मिटे दुर्भाग्य
सत्य के पथ चल
सच्चे मन से !!
वक्त का चक्र
सौभाग्य या, दुर्भाग्य
रख हौसला !!
मिले सौभाग्य
उर-मन सरिता
निर्मल रखो !!
© रामेश्वर बंग
सौभाग्य या दुर्भाग्य
कर्मों का फल !!
निश्छल भाव
जगहित की सोच
जागे सौभाग्य
मिटे दुर्भाग्य
सत्य के पथ चल
सच्चे मन से !!
वक्त का चक्र
सौभाग्य या, दुर्भाग्य
रख हौसला !!
मिले सौभाग्य
उर-मन सरिता
निर्मल रखो !!
© रामेश्वर बंग
विषय सौभाग्य/ दुर्भाग्य
***
आज यमुना एक्सप्रेस वे पर हुए हादसे से मन की पीड़ा
***
दुर्भाग्यपूर्ण व्यवस्था में
जीने को मजबूर हैं...
जान हथेली पर रख कर चलते
सौभाग्यशाली वो जो बच जाया करते हैं...
यातायात नियमों का
जिन्हें भान नही
कंप्यूटर पर देते है टेस्ट
जिनको अक्षर ज्ञान नहीं
दलालों का बोलबाला है
मिल जाते लाईसेंस यहाँ
बढ़ती सड़क दुर्घटनाएं है
मौत सस्ती है यहाँ ।
कहीं रफ्तार मौत से जीत जाती
कहीं सीट बेल्ट जिंदगी को दगा दे जाती
निरीक्षण वाहनों के ढंग से होते नही
चालक ढंग से सोते नहीं
या नशे में रहते हैं
कहीं सड़कों पर गढ्डे हैं
कहीं एक्सप्रेस वे पर दौड़े हैं
नियम कानून बना क्या होगा
बनते है कानून तोड़े जाने के लिए
या धन उगाही कर क्लीन चिट के लिए
हम नागरिक जिम्मेदार इस दुर्भाग्य के लिए
मत बनो भागीदार इसके चंद रुपयों के लिए
नियमों का पालन करो व्यवस्था सुधारने के लिए ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
***
आज यमुना एक्सप्रेस वे पर हुए हादसे से मन की पीड़ा
***
दुर्भाग्यपूर्ण व्यवस्था में
जीने को मजबूर हैं...
जान हथेली पर रख कर चलते
सौभाग्यशाली वो जो बच जाया करते हैं...
यातायात नियमों का
जिन्हें भान नही
कंप्यूटर पर देते है टेस्ट
जिनको अक्षर ज्ञान नहीं
दलालों का बोलबाला है
मिल जाते लाईसेंस यहाँ
बढ़ती सड़क दुर्घटनाएं है
मौत सस्ती है यहाँ ।
कहीं रफ्तार मौत से जीत जाती
कहीं सीट बेल्ट जिंदगी को दगा दे जाती
निरीक्षण वाहनों के ढंग से होते नही
चालक ढंग से सोते नहीं
या नशे में रहते हैं
कहीं सड़कों पर गढ्डे हैं
कहीं एक्सप्रेस वे पर दौड़े हैं
नियम कानून बना क्या होगा
बनते है कानून तोड़े जाने के लिए
या धन उगाही कर क्लीन चिट के लिए
हम नागरिक जिम्मेदार इस दुर्भाग्य के लिए
मत बनो भागीदार इसके चंद रुपयों के लिए
नियमों का पालन करो व्यवस्था सुधारने के लिए ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
सौभाग्य /दुर्भाग्य
हाथ में तेरे कुछ नहीं है ,
दुख सुख का फिर आना कैसा ।
दुर्भाग्य पर रोना तो,
सौभाग्य पर इतराना कैसा।
तुम क्या जानो उसकी माया ,
कण कण में वो आप समाया ।
संग लेकर क्या आए थे ,
फिर खोना और पाना कैसा ,
दुर्भाग्य पर रोना तो,
सौभाग्य पर इतराना कैसा।
तेरे भाग्य का ही मिलेगा ,
कर्म तेरा बन फूल खिलेगा ।
गीत ख़ुशी में तुम गाते हो,
फिर दुख में मुरझाना कैसा ,
दुर्भाग्य पर रोना तो,
सौभाग्य पर इतराना कैसा।
सुख दुख जीवन का हिस्सा हैं ,
रोग शोक नित का किस्सा हैं ।
खुशियों में कहकहे लगाना,
गम में नीर बहाना कैसा,
दुर्भाग्य पर रोना तो,
सौभाग्य पर इतराना कैसा।
छोड़ भी दे कल की चिंता को ,
हर लेगा वो हर विपदा को ।
सारे जग का पालनहारा ,
मन को फिर बहकाना कैसा ,
दुर्भाग्य पर रोना तो,
सौभाग्य पर इतराना कैसा।
ख़ाली हाथ था जग में आया ,
उसकी कृपा से सबकुछ पाया।
जो देता वो ही ले सकता है ,
आशा के दीप बुझाना कैसा ,
दुर्भाग्य पर रोना तो,
सौभाग्य पर इतराना कैसा।
दुर्भाग्य पर रोना तो,
सौभाग्य पर इतराना कैसा।
जय हिंद
स्वरचित : राम किशोर , पंजाब ।
हाथ में तेरे कुछ नहीं है ,
दुख सुख का फिर आना कैसा ।
दुर्भाग्य पर रोना तो,
सौभाग्य पर इतराना कैसा।
तुम क्या जानो उसकी माया ,
कण कण में वो आप समाया ।
संग लेकर क्या आए थे ,
फिर खोना और पाना कैसा ,
दुर्भाग्य पर रोना तो,
सौभाग्य पर इतराना कैसा।
तेरे भाग्य का ही मिलेगा ,
कर्म तेरा बन फूल खिलेगा ।
गीत ख़ुशी में तुम गाते हो,
फिर दुख में मुरझाना कैसा ,
दुर्भाग्य पर रोना तो,
सौभाग्य पर इतराना कैसा।
सुख दुख जीवन का हिस्सा हैं ,
रोग शोक नित का किस्सा हैं ।
खुशियों में कहकहे लगाना,
गम में नीर बहाना कैसा,
दुर्भाग्य पर रोना तो,
सौभाग्य पर इतराना कैसा।
छोड़ भी दे कल की चिंता को ,
हर लेगा वो हर विपदा को ।
सारे जग का पालनहारा ,
मन को फिर बहकाना कैसा ,
दुर्भाग्य पर रोना तो,
सौभाग्य पर इतराना कैसा।
ख़ाली हाथ था जग में आया ,
उसकी कृपा से सबकुछ पाया।
जो देता वो ही ले सकता है ,
आशा के दीप बुझाना कैसा ,
दुर्भाग्य पर रोना तो,
सौभाग्य पर इतराना कैसा।
दुर्भाग्य पर रोना तो,
सौभाग्य पर इतराना कैसा।
जय हिंद
स्वरचित : राम किशोर , पंजाब ।
दिनाँक -08/07/2019
शीर्षक-सौभाग्य , दुर्भाग्य
विधा-हाइकु
1.
सौभाग्यशाली
सहनशील नारी
पत्नी हमारी
2.
सौभाग्यशाली
मांग भरे सिंदूर
सुहाग वास्ते
3.
बढ़ता नशा
दुर्भाग्य नहीं तो क्या
भटका युवा
4.
गरीब स्वप्न
टूट गया पल में
बना दुर्भाग्य
*********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
शीर्षक-सौभाग्य , दुर्भाग्य
विधा-हाइकु
1.
सौभाग्यशाली
सहनशील नारी
पत्नी हमारी
2.
सौभाग्यशाली
मांग भरे सिंदूर
सुहाग वास्ते
3.
बढ़ता नशा
दुर्भाग्य नहीं तो क्या
भटका युवा
4.
गरीब स्वप्न
टूट गया पल में
बना दुर्भाग्य
*********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
नमन भावों के मोती
विषय , सौभाग्य
सोमवार
8,7,2019,
सोता सौभाग्य
सौभाग्यवती रोती
हँसे गृहस्थी ।
माँगा सौभाग्य
खाली कर्मों की झोली
जीव पहेली ।
शिक्षक दाता
सौभाग्य आजमाता
विद्यार्थी पाता ।
गाता सौभाग्य
लक्ष्मी है हर घर में
मान सम्मान ।
सौभाग्य रथ
चढ़ते हैं कर्मठ
कहाँ दुर्भाग्य ।
सौभाग्य ले लो
खुशियाँ तुम बाँटो
कीमत वफा ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
विषय , सौभाग्य
सोमवार
8,7,2019,
सोता सौभाग्य
सौभाग्यवती रोती
हँसे गृहस्थी ।
माँगा सौभाग्य
खाली कर्मों की झोली
जीव पहेली ।
शिक्षक दाता
सौभाग्य आजमाता
विद्यार्थी पाता ।
गाता सौभाग्य
लक्ष्मी है हर घर में
मान सम्मान ।
सौभाग्य रथ
चढ़ते हैं कर्मठ
कहाँ दुर्भाग्य ।
सौभाग्य ले लो
खुशियाँ तुम बाँटो
कीमत वफा ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
नमन भावों के मोती
दिनांक -8/7/2019
विषय- सौभाग्य /दुर्भाग्य
मानव जीवन है पाता
सौभाग्य/दुर्भाग्य से है उसका नाता ।
जन्म लिया अच्छे कुल ,में हुआ सौभाग्य से नाता ,
हर पल प्रेम, लाड़ -प्यार ,खुशियाँ ,सब सौभाग्य से पाता ।
दूसरी तरफ़ एक अलग परिवार में है जन्मा ,
जिसका दुर्भाग्य से है नाता ।
हर दम अभावों तिरस्कारों ,उपेक्षाओं में है वह जीता ,
मानो दुर्भाग्य से है उसका रिश्ता ।
एक की झोली में दुनिया जहाँ की ख़ुशी आई है ,
दूसरे ने सूखी रोटी भी मुश्किल से पाई है ।
लोग सौभाग्य दुर्भाग्य की व्याख्या करते नहीं थकते ,
कुछ इसी चिंतन में अपनी उम्र जाया करते ।
माना जीवन में है सौभाग्य दुर्भाग्य का
नाता ,
पर मानव अपने कर्मों से भी बहुत कुछ है पाता ।
बहुतों ने अपने दुर्भाग्य के मैल को कर्मों से धो डाला ,
बहुतों ने सौभाग्य को दुर्भाग्य में बदल डाला।
तो उठो मानव अपने दुर्भाग्य पर न रोओ ,
सौभाग्य पर न इतराओ , कर्मो की मेहनत से अपना जीवन जगमगाओ ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
दिनांक -8/7/2019
विषय- सौभाग्य /दुर्भाग्य
मानव जीवन है पाता
सौभाग्य/दुर्भाग्य से है उसका नाता ।
जन्म लिया अच्छे कुल ,में हुआ सौभाग्य से नाता ,
हर पल प्रेम, लाड़ -प्यार ,खुशियाँ ,सब सौभाग्य से पाता ।
दूसरी तरफ़ एक अलग परिवार में है जन्मा ,
जिसका दुर्भाग्य से है नाता ।
हर दम अभावों तिरस्कारों ,उपेक्षाओं में है वह जीता ,
मानो दुर्भाग्य से है उसका रिश्ता ।
एक की झोली में दुनिया जहाँ की ख़ुशी आई है ,
दूसरे ने सूखी रोटी भी मुश्किल से पाई है ।
लोग सौभाग्य दुर्भाग्य की व्याख्या करते नहीं थकते ,
कुछ इसी चिंतन में अपनी उम्र जाया करते ।
माना जीवन में है सौभाग्य दुर्भाग्य का
नाता ,
पर मानव अपने कर्मों से भी बहुत कुछ है पाता ।
बहुतों ने अपने दुर्भाग्य के मैल को कर्मों से धो डाला ,
बहुतों ने सौभाग्य को दुर्भाग्य में बदल डाला।
तो उठो मानव अपने दुर्भाग्य पर न रोओ ,
सौभाग्य पर न इतराओ , कर्मो की मेहनत से अपना जीवन जगमगाओ ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
नमन मंच को
8/7/2019
सौभाग्य /दुर्भाग्य
हाइकु
1
होता सौभाग्य
घर व परिवार
सवारे पत्नी
2
कैसा दुर्भाग्य
वृद्ध आश्रम भेजा
जिन्हे पालते
3
प्यारी धरती
पुण्य से ही मिलती
सब सहती
कुसुम उत्साही
स्वरचित
8/7/2019
सौभाग्य /दुर्भाग्य
हाइकु
1
होता सौभाग्य
घर व परिवार
सवारे पत्नी
2
कैसा दुर्भाग्य
वृद्ध आश्रम भेजा
जिन्हे पालते
3
प्यारी धरती
पुण्य से ही मिलती
सब सहती
कुसुम उत्साही
स्वरचित
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