Monday, October 15

"प्रीत "15अक्टूबर 2018




किसी खेत में ना उपजती
ना ही बाज़ार में बिकती
तन -मन में जिसने धूनि रमाई
उसने प्रीत की राह अपनाई

परवश होकर कदापि ना होती
ख़ुद ही उपजे ख़ुद ही खोती
इसकी ना कोई जात -पात
धर्म -सम्प्रदाय से ना मेल -मिलाप

मुरली की तान और राधा की मुसकान
सुदामा का नाज़ कहो कान्हा परम धाम
त्याग -जप का ही प्रीत दूजा नाम
आत्मिक मिलन के स्पंदन का परिणाम

प्रीत पुनीता ,प्रीत शुचिता की भाषा
राधा मीरा की वो निष्काम अभिलाषा
इस प्रीत अनन्या का नही कोई नाम
केवल कोरी प्रीत दूज़ा नहीं कोई काम

प्रीत के रंग जब -जब खिलते
अन्य रंग बस बेरंग दिखते
हृदय में जब प्रीत समाए
मन झूमे ,गावे और मुसकाए
इस प्रीत का ना कोई मोल तोल
दिखावेपन का ना कहीं कोई झोल
मैं चाहूँ तुम चाह बन जाओ
मैं गाऊँ साज़ तुम बन जाओ

मैं तड़फूँ तुम आह बन जाओं
मैं सवरूँ तुम श्रृंगार बन जाओ
मैं दिल धड़कन तुम बन जाओ
शब्द मेरे तुम अर्थ बन जाओ ।
स्वरचित
संतोष कुमारी




विधा-कविता 
***************
ये प्रीत भी बड़ी अजीब है 
कब कहाँ कौन भा जाये
किससे यूँ ही प्रीत लग जाये
बन जाती कोई कहानी सी
कृष्ण-प्रीत दिवानी हुई मीरा
पी गई विष का वो प्याला
फिर भी राधा दिल की रानी हुई |
चातक को है बादल की प्रीत 
दिल को है धड़कन की प्रीत 
छाया को दर्पण की प्रीत 
भक्तों को हरि दर्शन की प्रीत 
ये प्रीत का नाता तो है पुराना 
कहता है यही सारा जमाना ||

स्वरचित *संगीता कुकरेती*



चलिए जी एक राग प्रीत के गाएं
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चलिए जी आज एक राग प्रीत के गाएं,
आकर चुपके से दिल में उतर जाए।-2

अपनी हसरतों में वो मुझको बसाए,
जिंदगी प्यार से भरा और मिले वफाएं।-2
उसके एहसास से मन गुदगुदाए।
आकर चुपके से दिल में उतर जाए।
चलिए जी आज एक राग प्रीत के गाएं,
आकर चुपके से दिल में उतर जाए।

नाचे मयूर मन सावन बरसात से,
तन-मन सराबोर है बासंती सौगात से।-2
मस्त फाग ताल पर हम गुनगुनाए।
आकर चुपके से दिल में उतर जाए।
चलिए जी आज एक राग प्रीत के गाएं,
आकर चुपके से दिल में उतर जाए।

खेलूं मैं पिया के संग खेल प्रीत के कोई,
गाऊं पिया के संग मस्त मगन हो खोई।-2


मिलन एहसास से तन-मन शर्माए।
आकर चुपके से दिल में उतर जाए।
चलिए जी आज एक राग प्रीत के गाएं,
आकर चुपके से दिल में उतर जाए।

चलिए जी आज एक राग प्रीत के गाएं,
आकर चुपके से दिल में उतर जाए।-2

--रेणु रंजन
(स्वरचित )

जिसने किया,
वहीरोया है,
प्रीत की,

यही निशानी है।
राधा हो,
या मीरा हो,
सबको पीर,
उठानी है।।

प्रेम की विद्या,
प्रेमी जाने,
जिसका कोई,
ना शानी हो।
होठों पर रहे,
दर्द हमेशा,
और आंखों,
में पानी हो।।

कविरा बोले,
जग बौराना,
ठगनी माया,
रानी है।
मोह के सारे,
तोड़ दे बंधन,
दुनिया आनी,
जानी है।।

राकेश,,,,स्वरचित


🍁
हर इक कण पे नाम लिखा है,
अपने उस भगवान का।
परम पुज्य श्रीराम प्रभु अरू,
सिया लखन हनुमान का॥
🍁
मर्यादा पुरूषोत्तम है वो,
प्रीत रीत संसार मे।
इक वामा को ही स्वीकार,
बहुवामा संसार मे॥
🍁
एक अनोखी प्रीत समायी,
राधा- कृष्ण के साथ मे।
अदभुद प्रीत है सिया- राम की,
विरह मिलन अरू त्याग मे ॥
🍁
शेर हृदय संक्षिप्त मरूस्थल,
करे क्या वर्णन प्रीत की।
भारत की मिट्टी मे जन्मा,
हर इक जीव के मीत की ॥
🍁

स्वरचित .. Sher singh sarra
f



****
भूमि उर्वरा में अन्तस की,
प्रेमभाव अंकुरण सहज शुचि,
प्रिय के प्रति उल्लास प्रस्फुटित,
डोर अटूट प्रीत की चारु।

ब्रह्म स्वयं प्रतिरूप प्रेम का,
प्रीत लगन दृढ़ निष्ठा प्रिय में,
अस्तिव विलुप्त होती निजता,
अद्वैत रूप हो जाता द्विय का।

प्रेम दिव्य तरु उर उपवन का,
मूल प्रीत सुदृढतम तरु चारु,
अदभुत शुचित अनन्त अनश्वर,
प्रीत अप्रतिम प्रिय उपहार।

नील व्योम संग धरा प्रीत श्रुत,
मीरा कान्हा सी प्रीत अपार,
बूँद स्वाँति हित सदा तरसता,
प्रीतबद्ध चातक का प्यार।

रीत प्रीत की तनिक कठिनतर,
मिलन विरह वेदना समाहित,
किन्तु सुखान्त सुनिश्चित चारु,
दिव्य पुलक आत्मिक संचार।
--स्वरचित--
(अरुण)


प्रीत की रीत है बहुत पुरानी।
जैसे मीरा की कान्हा से प्रीत पुरानी।
मीरा ने प्रीत में जग को छोड़ा।
कृष्ण से उसने नाता जोड़ा।
प्रीत की.........
प्रीत में मीरा ने जहर था पिया।
बन गया अमृत,जहर जो पिया।
प्रीत का असर ऐसा हो गया।
विष जो दिया,वो अमृत बन गया।
सदा रहा है जग में प्रीत।
सदा अमर रहेगा प्रीत।
इसमें ना कोई राजा ना रंक।
प्रीत जब होवे किसी के भी संग।
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी



पहले प्यार का माला जपना, मुझको नही सुहाता है ।
जीवन का हम सफर बना जो , वो ही प्यार लुभाता है ।।

-1-
चंचल मन ये हर कलियों मे , बनके भ्रमर करे अठखेली ।
नजर मिली बोले मुस्काये समझे प्यार हुआ हमजोली ।।
करे जवानी ये नादानी, दिल धोखा खा जाता है ।
जीवन का हमसफर बना जो , वो ही प्यार सुहाता है ।।

-2-
बातो के गुलछर्रो मे सब, ख्वाबों की पतवार चलाते ।
फँसें ग्रहस्थी मे जिस दिन से,आपस मे तकरार मचाते ।।
त्याग समर्पण के दर्पण से , भटक प्यार का पथ जाता है ।
जीवन का हमसफर बना जो , वो ही प्यार लुभाता है ।।

-3-
जीवन नही प्यार है केवल, जाने कितने फर्ज निभाने ।
नही किसी को भी दुख पहुँचे, बस इतना सीखा और जाने ।।
जिस पथ पर न चला निडर बन, गुम सा वो दिखलाता है ।
जीवन का हमसफर बना जो, वो ही प्यार लुभाता है ।।

राकेश तिवारी " राही "
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सच्ची प्रीत लगाले बन्दे

छूट जायेंगे खोटे धन्धे ।।
सच्ची प्रीत में सार समाया
सन्त बन गये जो थे दरिन्दे ।।

प्रेम प्रीत में वो है शक्ति
करने लगेगा ईश्वर भक्ति ।।
सब में उसकी प्रतिमूर्ति 
भव से तरने की सुन्दर युक्ति ।।

मीरा की सच्ची थी प्रीत
सिखा गई वो जग को रीत ।।
जहर का न हुआ कहर 
सच्ची प्रीत की हुई जीत ।।

प्रकृति भी हमें सिखाये 
दिनकर नित मिलने आये ।।
यही परम्परा सदियों से
धरती ''शिवम" मुस्कुराये ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 15/10/2018




प्रीत! बसन्त का आगमन
प्रीत! सौहार्द का आचमन
प्रीत! कोयल का मधुर गान
प्रीत! बादल का धरा स्नान। 

प्रीत! शब्दों का सुन्दर संयोजन
प्रीत! अलंकृत सुन्दर सम्बोधन 
प्रीत! मधुर भावों का स्पन्दन 
प्रीत! मानव मस्तक पर चन्दन। 

प्रीत! अर्पित भावों की अभिलाषा 
प्रीत! सुसंस्कृत सुन्दर मनोभाषा
प्रीत! संवेदन की भोली परिभाषा 
प्रीत! प्रकृति की ही चिर आशा।

प्रीत! विलक्षण आत्मीय प्रवाह
प्रीत! रोम रोम से उठती चाह
प्रीत! अन्तरतम से उठती वाह
प्रीत! निहाल करती मस्त निगाह। 

स्वरचित 

सुमित्रा नन्दन पन्त 

जयपुर




ऐसी प्रीत थी देश से
कर गये नाम अमर देश का
हो गये अमर मर कर भी
था वो लाल भारत देश का

थी प्रीत विज्ञान से
बने एक वैज्ञानिक महान
रहे हमेशा देश में
विश्व में बढ़ाया देश का मान

अपने हुनर अपनी शिक्षा का
नहीं किया कभी अभिमान
बच्चों संग बच्चे बन जाते
रहते हमेशा सादे इंसान

मिला साथ अटल इरादों का
किया पोखरण का अनुसंधान
सर्वोच्च पद आसीन होकर
बढ़ाया देश का मान

आज है अवतरण दिवस
थे वो माता पिता महान
जिन्होंने दिया देश को
कर्मवीर अब्दुल कलाम महान

नमन करूँ ऐसी शख्सियत को
जिसका तन मन समर्पित देश को

स्वरचित :-मुकेश राठौड़



"प्रीत "
दिले में है बेकरारी
जिया में अगन लगायी
पर प्रीत ना समझ पायी

विवाह के बंधन में बंध गयी
अपना बचपना भी भुलायी
पर प्रीत ना समझ पायी 

अनजान नगरी में आयी
आँगन में खुशियाँ ही बोई
पर प्रीत ना समझ पायी

भूलकर सारी मजबूरी 
अपनों के सपनों को सजायी
पर प्रीत ना समझ पायी 

सांसारिक रिश्तों को निभाई
स्वयं को भी भुलायी
पर प्रीत ना समझ पायी 

जग के रीत में खोई 
दर्द में भी मुस्काई
पर प्रीत ना समझ पायी 

स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल


प्रीत के रंग में रंग गई हूँ 
पिया के संग प्रीत के नवगीत गाने लगी हूँ 
प्रीत के कई हैं रंग 

जीवन में प्रीत जगाता हैं नवउमंग.

प्रीत से जुडी हूँ तुम संग पिया 
तुम्हारी साँसों की डोर से जुड़ा हैं जिया 
हार में भी जीत हैं प्रीत 
बेइंतहा निशब्द हैं प्रीत.

सागर से भी गहरा हैं मन का प्रीत 
आसमां से ऊंचा हैं प्रीत 
प्रीत के गीत गुनगुनाती हूँ 
प्रीत के समुन्द्र के डूब जाती हूँ .

मैं यौवन की बलखाती नदिया 
तुम अटखेलिया खेलते प्रीत के लहर 
तुम मुरली बजाते गोकुल के नटखट कान्हा 
मैं तुम्हारे प्रीत में खोई चचंल राधिका प्यारी .

तुम संगीत के सात प्रीत भरे सुर 
मैं संगीत के प्रीत में डूबी लय और ताल 
मैं साँस तुम साँस की ज़रूरत 
तुम प्रेम के सच्चे प्रीत मैं तुम्हारी प्रीती .
स्वरचित :- रीता बिष्ट


प्रीत है हमारी पहचान
ये सब हम मानते आज
हम है उस देश के वासी
जहाँ प्रीत हैं घट घट के वासी

इसने जीती है दुनिया सारी
जो हम करें अपने देश से प्रीत
जीवन सफल हो जाये मीत
प्रीत हमारी पहचान है
यह मानव मे गुण खास है

तुलसीदास को थी ,रत्नावली 
से अत्यधिक प्रीति
साँप को रस्सी समझ पहुँच बैठे
आधी रात को फान कर भीति

लज्जित हो रत्नावली ने 
खूब सुनाई खरी खोटी
"ऐसी ओछी प्रीति"
प्रीत करिए श्री राम से हुजूर,

हट जायेगी बाधा, मिट जाये हृदय शूल,
चोट लगी जब मर्म स्थल पर
खुल गए ज्ञान चक्षुः
जाग गये भक्ति की शक्ति
रच डाले ग्रथं अनेक

रज तम हम त्याग कर
करें प्रभु से प्रीति
होगी जो श्री राम की कृपा
हट जाये भव भीति।
स्वरचित-आरती श्रीवास्तव।



विधाःःः काव्य ः
शक्तिस्वरूपा प्रीत की रूपा रखें हाथ तलवार

त्रिशूल तलवार हाथ ले करती असुर संहार।
तुम देवी भगवती माँ तुम हो जगत की जननी,
श्रद्धा विद्या शक्तिपुंज क्यों रहती बीच पहार।

माँ काली हे खप्परवाली मोक्षदायिनी माते।
चंडमुंण्ड संहारक चामुंडा हे वरदायिनी माते।
प्रेमप्रीत पुण्य रीति संस्कार मिलें माँ तुमसे,
मधुकैटभ दैत्य मारे तुम हे सुखदायिनी माते।

क्रोधीकुपित हो दुष्टों पर प्यार हमें तुम करतीं।
प्रीत लुटाती भक्तों पर दुलार हमें तुम करतीं।
बावन शक्तिपीठ माता केअनेक रूपों में रहती
अष्टभुजा माँ प्रीत भेंटउपहार हमें तुम करती।

स्वरचितः ः
इंजी ःशंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय

मगराना गुना म.प्र.



विषय - प्रीत

प्रीत की रीत बड़ी पुरानी,

मीरा कृष्ण प्रीत जग जानी।

जग न समझे प्रीत की वाणी, 

रही मीरा इससे अंजानी । 

जाने कितनी ऐसी कहानी, 

प्रीत में डूबी जग से बेगानी। 

प्रीत समर्पण पूरा मांगे, 

कुछ न भाता प्रीत के आगे। 

लोक लाज मर्यादा जग की, 

प्रीत के आगे पानी भरती । 

प्रीत दीवानी मीरा होई, 

राधा कृष्ण के प्रेम में खोई। 

सच्ची प्रीत की डगर कठिन है, 

कांटे राह बिछे अनगिन है। 

प्रीत का जग बैरी बन जाए,

प्रीत का भाव न जग को भाए। 

विष का प्याला पीना पड़े है, 

प्रीत तभी परवान चढ़े है। 

प्रीत न देखे अपना-पराया, 

प्रीत में प्रीतम ही मन भाया। 

अभिलाषा चौहान 

स्वरचित




मेरी अश्कों के मोती बहते हैं बार-बार
तुझसे लगा कर प्रीत मेरा हो रहा बुरा हाल
पुकारता है दिल तुझे 
एक बार तो आकर मिल मुझे
देख जनाजा अपने प्यार का
टूट कर बिखरे सपनों का
झूठे वादे ओर इकरार का
बिखरती हुईं साँसों को
अब भी है तेरा इंतजार
मचल रही है रूह जिस्म से
साथ छोड़ जाने को बेकरार
बेबसी के बादल गहराने लगे
आकर एक बार मुझे तू लगाले गले
जिस्म से रूह अब होती जुदा
आ बता दे मुझे हुई क्या खता
तू मिला न गिला है मुझे जिंदगी से
दूर होती हूँ अब मैं तेरी जिंदगी से
अश्क भी सूखते जिस्म भी छूटता
अब तुझ से यह नाता यहीं टूटता
प्रीत मेरी थी मेरे साथ ही मिट जाएगी
जान जाने पर तुझे याद मेरी आएगी
***अनुराधा चौहान*** मेरी स्वरचित रचना

रूप सुहावन है मनभावन
तुम में वह सौन्दर्य समाया
है चंद्र वदन, चक्षु हैं प्याले
हृदय किन्तु पत्थर का पाया
प्रीत तुम्हारी समझ न पाया
प्रिये तुमने है खूब सताया

बहक थी तुममे एक नशे सी
लहर थी मन में ऊँची-गहरी
माँगा तुमको तुमसे ही था
मिले कहाँ, था प्रेम पराया
प्रीत तुम्हारी समझ न पाया
प्रिये तुमने है खूब सताया

अमर प्रेम की बातें ओझल
प्रेम तुम्हारा जैसे इक छल
उस मन में कैसे रह पाता
जिसमे स्वार्थ रहे भरमाया
प्रीत तुम्हारी समझ न पाया
प्रिये तुमने है खूब सताया

कहने को है खिला सबेरा
मन मे विचरित घना अंधेरा
हँसी सुसज्जित है चेहरे पर
एक आँसू भी ठहर न पाया
प्रीत तुम्हारी समझ न पाया
प्रिये तुमने है खूब सताया"

स्वरचित-राकेश ललित



विधा-हाइकु

साजन प्रीत
है हृदय उमंग
साजे सपने

प्रीत की ड़ोर
मजबूत बंधन
साजन संग

प्रीत पराई
जीवन अंधकार
नयन अश्रु

स्वरचित-रेखा रविदत्त



दिवस.. सोमवार 
1
प्रीत चकोर 
ताके चाँद की ओर 
भाव विभोर 
2
पूनम रात 
चकोर ताके चाँद 
प्रीत के साथ 
3
चकोर प्रीत 
चाँद है मनमीत 
बहाये नीर 
4
प्रियसी प्रीत 
पिया मनभावन 
सूना सावन 
5
पिया की आस 
तोड़ दिया विश्वास
सौतन साथ 
कुसुम पंत उत्साही 
देहरादून 

उत्तराखंड



सबके मन में बसती है
खुशबू की तरह
छुप कर रहती है दिल में 
धड़कन की तरह
इस निराकार अनंत को
जताए किस तरह
कोई बोली नहीं प्रीत की
बताए किस तरह
प्रीत से बना है संसार भी
बस महसूस करो
है जहाँ प्रीत...आबाद है
गुलिस्ताँ जिस तरह

स्वरचित -
मनोज नन्दवाना




प्रीत

प्रीत एक प्यारा सा मधुर एहसास
प्रीत किसी से महका दे सांस सांस
मुसकान अधर पर पुलकित मन प्राण।
प्रीत सहसा ही जगा दे मानव भाव 

प्रीत को पाकर मीरा खो गई
हर पीड़ा को हंस कर सह गई।
सुख दुःख के अंतर को खो दे
प्रीत रंग की ऐसी होली।

स्वरचित 
सुषमागुप्ता




परत दर परत 
चांदनी कट रही है
देखो सुंदर निशा का
आगमन हो रहा है 
नयन से नयन का
मिलन हो रहा है 
लो दो दिलों का
मिलन हो रहा है
निर्मल व्योम में
बिजली चमक रही है 
प्रीत पर वर्षा की
फुहार हो रही है 
नयनों में है 
अलसाए सपने
प्रीत पूर्ण अभी 
शयन हो रहा है 
झरोखे से झांकती
पहली किरण 
सूर्योदय प्रीत 
पूर्ण हो रहा है
पहर पहर दिन 
ढल रहा है
संध्या का छत पर
बिगुल बज रहा है
ठंडी ठंडी बयार चल रही है 
सुहाने प्रहर में 
नव प्रीत का
सृजन हो रहा है

स्वरचि -आशा पालीवाल पुरोहित, राजसमंद



❤️प्रीत❤️

बँधी श्याम की प्रीत में

वृंदावन की भोली राधा

मुरलीवाले मोहन तूने

मीरा को भी सुर में साधा

देखें राह कदम्ब के नीचे

नन्द गाँव की गोपी सारी

रास रचा लें कान्हा के संग

तकतीं अपनी अपनी बारी

स्वरचित 'पथिक रचना'

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