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जब हमको देना पड़ जाये
रिश्तों का साबूत
जब हृदय को लगे सताने
सम्बंधो का भूत
खुद से डर के
आहे भर के
मत सहना अन्याय ।
तुमको ही है करना न्याय ।1
जब झूठ और सच के मन्थन में
न निकले कुछ निर्णय
दो रहो पर मन फ़स जाये
कुछ बोल न पाये हृदय
मत डर ऐसें
दुनिया पैसे
लालच के अध्याय ।
तुमको ही है करना न्याय । 2
जब तेरी गलती बन जाये
चर्चाओ की जाल
झूठी मूठी प्रसंशा के
जब हो पुल तैयार
रुको वहा पर
सोचो उन पर
दुःख के है पर्याय ।।
तुमको ही है करना न्याय ।3
जब करो दोस्ती, प्यार करो
या साथ करो तुम आगे
अजमाना मत इन रिस्तो को
ये है कच्चे धागे
होगी मुश्किल
मत तोड़ो दिल
बन्द करो व्यवशाय ।।
तुमको ही है करना न्याय ।4
जब आँखों को लगे गलत कुछ
और हृदय न माने
उस रिश्ते से दूर रहो तुम
जाने या अनजाने
आहत न हो
कोई हृदय
अपनपन भी टूट न जाय ।
तुमको ही है करना न्याय।5
मौलिक
रकमिश सुल्तानपुरी
🌻🌻🌻🌻🌻
ये रिश्ते बड़े अनमोल होते हैं,
ये दिलों में प्यार के बीज बोतें हैं,
खुशी या गम में साथ होते हैं ,
नफ़रत को प्यार में बदलते हैं |
ये रिश्ते यूँही गहरे नहीं होते,
बचा लेते हैं इन्हें वो लोग,
जो पूरा समर्पण देते हैं,
ये रिश्ते बड़े अनमोल होते हैं |
पहला रिश्ता परिवार से होता है,
जिसमें पापा की सीख,माँ का लाड ,
भाई-बहिन का साथ होता है ,
ये रिश्ता सबसे खास होता है |
जीवन का कारवाँ आगे बढ़ता है,
रिश्तों को नया आयाम मिलता है,
हर रिश्ते को संजोये रखना चाहिए,
ये ही जीवन का आधार होते हैं |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
सृष्टि का सुंदर विधान
हर वस्तु में संज्ञा विद्यमान
पारस्परिकता का सहगान
हर रिश्ते का मिलता भान।
जन्मदाता माता पिता महान
पोषित संस्कार खिलता ज़हान
ज्ञान के मंदिर का आँगन
अज्ञानता तम हर लेता ज्ञान
गुरु की महिमा का होता गुणगान
शिष्य उसको सदैव देता सम्मान
हमजोली जब जाते मित्र बन
सुखद हर्षित होता तन मन
सुख दुःख जीवन कसौटी पहचान
दुख को बाँटे सच्चा मित्र महान ।
परिणय सूत्र वैवाहिक बंधन
दो अजनबी पति पत्नी जाते बन
साकार होता उनका प्रणय निवेदन
वंश अभिवृद्धि फल नामित संतान ।
जग का नियामक उच्चतम ज्ञान
दास्य भाव से करो उसका ध्यान
करबद्ध होकर सब करो निवेदन
रिश्तों की मर्यादा का गूँजे जयगान
स्वरचित
संतोष कुमारी
रिश्ते तो बन ही जाते
जब हम धरती पर आते ।।
माँ और पिता का रिश्ता
और रिश्ते कई कहलाते ।।
माँ को शिशु स्वयं बुलाये
माँ कहना न सिखलाये ।।
जब हमने आँखें खोलीं
रिश्तों से स्वयं घिरे पाये ।।
बड़े हुये कुछ और बने
कुछ स्वभाव ने भी बुने ।।
कुछ नैंनों की भाषा जानी
और नैंनों ने भी चुने ।।
रिश्तों को प्यार दो प्यारे हैं
इनसे जीवन में उजियारे हैं ।।
रिश्तों ने ''शिवम" स्नेह दिया
त्याग भी इनका स्वीकारे हैं ।।
आज रिश्ते बिखर रहे हैं
बहशीपन निकर रहे हैं ।।
मानव बने समाज बनाया
अब पशुता को बढ़ रहे हैं ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
कुछ जन्म से कुछ किस्मत से नसीब होते है,
कुछ बन जाते हैं राह चलते - चलते,
अपने-अपने नसीब होते हैं।
रिश्ते महकाएं जिन्दगी फूलों सी,
रिश्ते कांटों सी चुभन भी देते हैं,
रंग भरते हैं जिन्दगी में रिश्ते,
बदरंग भी जिन्दगी को बना देते हैं।
कुछ के जाने से जान जाती है,
कुछ दिल के करीब होते हैं,
रिश्ते कितने अजीज होते हैं,
रिश्ते कितने अजीब होते हैं।
रिश्तों से मिलता नाम जिन्दगी को,
रिश्ते बेनाम भी होते हैं,
जीने का मकसद बने रिश्ते,
जिन्दगी से बेदखल करें रिश्ते ।
खुशियों का पैगाम हैं ये रिश्ते,
खून के आंसू भी रूलाते हैं,
बदजुबानी से टूटते रिश्ते,
स्वार्थ से झुलस जाते हैं।
बोझ बनते जा रहे रिश्ते,
दम तोड़ रहे हैं रिश्ते,
घुट रहा इंसानियत का दम,
हैवानियत से भरे रिश्ते।
लोग कितने अजीब होते हैं,
जो समझ न सकें रिश्ते,
रिश्ते हरदिल अजीज होते हैं,
रिश्ते कितने अजीब होते हैं।
(अभिलाषा चौहान)
स्वरचित
झूठे-सच्चे ख्वाब सजाना छोड़ दिया।
अरमानों के बाग लगाना छोड़ दिया।
जब से इन हाथों में आया मोबाइल है।
सब लोगों ने आवाज़ लगाना छोड़ दिया।
इतनी सीलन है रिश्तों में आज कहूं।
माचिस ने भी आग जलाना छोड़ दिया।
भूख बनीं दुश्मन क्या पेट नहीं भरता।
जबसे अपने घर का खाना छोड़ दिया।
पूछा जो दिया क्यों जवाब हाथ पैरों ने।
तुमने जो सुबह घूमने जाना छोड़ दिया।
जबसे हमको दी दाद तुम्हारी आंखों ने।
हमने भी महफिल में गाना छोड़ दिया।
रुसवा ना हो जाओ तुम दुनिया में सोहल।
बस नाम तेरा होंठों पर लाना छोड़ दिया।
विपिन सोहल
सस्ते रिश्ते (एक सच)
आलू दस रूपये किलो....आलू दस रूपये किलो....आ जाओ भाइयों.....आ जाओ.. आवाज ने हमारा ध्यान आकर्षित किया और मेरा दोस्त बोला चल खरीद लेते है | आगे चलकर क्या देखते है कि वह सब्जी वाला अपनी रेहड़ी पर छोटे-छोटे आलू बेच रहा था | मैंने अपने दोस्त से कहा नहीं यार ये किसी काम के नही है... लेकिन मेरा दोस्त कहने लगा महंगाई बढ़ गयी है भाई 30 वाले 10 में दे रहा है तो इसमें क्या दिक्कत है...मैंने कहा चल लेले भाई , लेकिन महंगाई नहीं बढ़ी है| मेरे दोस्त ने पूछा वो कैसे......? जब से पैसा महंगा हुआ है रिश्ते बहुत सस्ते हो गये है | एक टूटता है तो दूसरा जोड़ लिया जाता है | मेरा दोस्त सब्जी वाले को पैसे देकर वहां से बिना सब्जी लिए निकल गया मेरी ओर देखते हुये कि ये इसने क्या कह दिया (आप फ़िक्र मत करो सब्जी मैं लाया था)..
स्वरचित
सुखचैन मेहरा
पर तोड़ते भी कम नही।
रोकते तो बहुत हैं
पर राहों को मोड़ते भी कम नहीं।
रिश्ते मधुरता से भरे हुए
पर कटुता में भी कम नहीं।
ये सहेजता तो बहुत है
पर बिखेरते भी कम नहीं।
रिश्ते ह॔साते तो बहुत है
पर रुलाते भी कम नहीं ।
टूटते तो बहुत है
पर भूलते कभी नहीं ।
स्वरचित
सुषमा गुप्ता
सब रिश्ते नाते टूट रहे।
अपने अपनों से रूठ रहे।
जाने किसकी लगी नजर,
अब अपने बंन्धू छूट रहे।
यहाँ सबकी अपनी मर्जी है।
अपनी अपनी खुद गर्जी है।
मानवीयता भूल गये हम,
देखी बस वेशर्मी ही वेशर्मी।
हम रिश्ते नाते खूब बनाऐं।
इनमें अपनापन भी लाऐं।
रिश्तों में मकरंद घोलकर,
घुलकर इनमें ही मिल जाऐं।
यहाँ सबकी अपनी ही मर्जी है।
क्यों अपनी अपनी हठधर्मी है।
वैरभाव दुराग्रह फैले दिखते हैं,
जाने क्यों वेरहमी ही वेरहमी है।
आओ आज हम विश्वास जगाऐं।
सबको अपना कर हम अजमाऐं।
तोडें कटुता की गांठे हम मिलकर,
प्रभुजी प्रेमपुष्प अंकुरित करवाऐं।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
आजकल हाँ!...आजकल रिश्ते बदल रहे है।
कुछ पराये अपने वअपने पराये हो रहे है।
आजकल की भाग-दौड़ वाली जिंदगी में,
रिश्ते, रिश्तों के मान को तलाश रहे है।
आजकल जी हाँ!........आजकल
चाहत सभी की प्यार पाने की,
पर चाहत नही रिश्ता निभाने की।
चाहत सभी की पाने को मान पर,
देते समय मन हो जाता संकुचित।
आजकल हाँ जी!.........आजकल,
रिश्ते टूट रहे है, बिखर रहे है।
अपने अस्तित्व के लिए गाँहे-बँगाहे,
इधर-उधर ताक - झाँक रहे है।
परायों से रिश्ता बना रहे है,
और अपनों को ठुकरा रहे है।
जरूरत है बस!......आजकल,
एक प्यार भरी समझदारी की
त्याग उस अहम,अभिमान की।
आजकल व्यस्त भरी जिंदगी है सबकी,
जरूरत है सहज, सुलभ बनने की
प्यार से रिश्तों की डोरी थामे रखने की।
देखो फिर चमत्कार, पाओगे स्नेह अपार।
आजकल सबको प्यार की तो भूख है।
यारों, स्नेह का व्यपार खूब चलाओ,
सारे जग से रिश्ता तुम अपना बनाओ।
आजकल हाँ दोस्तों!.....आजकल।,
प्यार का लेनदेन जो सीख जाएगा,
यारों!...वो तो जीते जी अमर हो जाएगा।
........ जीते जी अमर हो जाएगा।
स्वरचित
सारिका विजयवर्गीय"वीणा"
अहं बहम
रिश्तों में दरकन
ग्रंथीलापन
***
मुनाफा रिश्ते
बने प्रेमी फ़रिश्ते
हैं मिष्ट नाश्ते
***
भूलो अतीत
संवारते भविष्य
रिश्ते प्रतीत
***
रंजना सिन्हा सैराहा..
आज-
एकल समय में
सोचता हूँ-कुछ लिखूं
कुछ ही लिख पाता हूँ कि,
हर वक्त लेखनी पर
बड़ा भारी धर्म संकट आता है
हाथों में फंसी लेखनी
कोरे कागज पर
फिसलती असहाय स्याही
कुछ फीके ,कुछ गाड़े से
अधलिखे पन्नों पर
उछरती
और
उछरती रही।
पर-
लेखन का हाथों से
कागज का स्याही से
मन का मुझसे
यह रिस्ता जोड़ने पर
बड़ा भारी धर्मसंकट आता है।
यहीं-
अपने धर्म सागर पर
इर्द-गिर्द बने घाटों पर
कुछ ढूंढना चाहता हूँ कि,
हर वक्त मेरी कल्पनाओं पर
बड़ा भारी धर्मसंकट आता है।
अभिशप्त वर्ण विषमता
घाटों पे नहाती अबला
कुछ कर्म से ,कुछ धर्म से
कंचन पानी में घुलता
छुआ-छूत का मीठा जहर
फैला और फैलता चला गया।
अब-
घाटों का जल से
वर्णों का वर्ग से
जात का धर्म से
यह रिस्ता जोड़ने पर
बड़ा भारी धर्म संकट आता है।
(मेरे कविता संग्रह "अनुगूँज " की कविता - 'धर्म संकट ' से
रिश्तों की बगियां में
एक रिश्ता हमारा हो
जीवन के हर पड़ाव पर
साथ सिर्फ तुम्हारा हो
विश्वास के धागों से बंधा
अनमोल ये परिणय बंधन
समय की धुरी पर चलता
जीवन का सास्वत बंधन
मैंने सौंप दिया तुमको
सब अपना घर आँगन
प्रेम भाव से सींच दो
बना दो इसको मधुबन
हर कली तुमसे महके
फूल खिले हर मुस्कान से
गर हो कोई असहमति
सब सुलझा लें हम प्यार से
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
रिश्ते ः हाइकु ः
1)
घनत्व बडा
उपवन उजडा
रिश्ता लूटा
2)
स्वार्थपरता
हुआ सदवहार
गलते रिश्ते
3)
रिश्ता टूटा
अखिलेश्वर छूटा
परायापन
4)
मेरा श्मशान
बारात धूमधाम
रिश्ता महान
5)
लक्ष्मी अभाव
मिलती संकीर्णता
रिश्ते दुराव
स्वरचितः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेयमगराना गुना म.प्र.
~~~~~~~~
छल कपट
अविश्वास के भाव
रिसते रिश्ते
स्नेह विश्वास
रिश्ते हो मजबूत
प्रेम अपार
एक सम्बल
रिश्ते व रिश्तेदार
सुखद पल
स्वरचित:शैलेन्द्र दुबे
विषय- रिश्ते
🌳🌳🌳
रिश्तों से लदा हुआ
एक वृक्ष था खड़ा
प्रेम की धूप से था
दिन पर दिन फल रहा
अपनत्व के भाव से
हर कोई था सींच रहा
रिश्तों से लदा हुआ
एक वृक्ष था खड़ा
बह चली अचानक
नफरत की आंधियां
आंधियों के जोर से
हर रिश्ता उड़ चला
वृक्ष था हरा भरा
ठूंठ बनकर रह गया
मतलब के मौसम में
रिश्ते सभी बिखर गए
शाख से जुदा हो कर
वो न जानें किधर गए
प्रेम की धूप भी अब
बदले की आग बन गई
अपनत्व का भाव भी
अब जुदा होने लगा
वृक्ष था हरा भरा
ठूंठ बनकर रह गया
***अनुराधा चौहान***मेरी स्वरचित कविता
सारे आत्मिक भाव
अब निर्बल हो गए
देखो सभी रिश्ते
अब डिजिटल हो गए।
हाथ मिलाना, गले लगाना
मिलकर,मन के मैल मिटाना
होते थे सब रूबरू
आज सभी मोबाइल हो गए
देखो सभी रिश्ते
अब डिजिटल हो गए ।
नमस्कार,प्रणाम नहीं
हेलो,हाय लगता सही
सब बातें ऑनलाइन कहें
मन सभी के चंचल हो गए
देखो सभी रिश्ते
अब डिजिटल हो गए।
ना संदेशा, ना चिट्ठी
ना कड़वी बातें,न मिटठ्ठी
कलम पट्टी डेडलाइन हुई
इमोजी में कैद हरपल हो गए
देखो सभी रिश्ते
अब डिजिटल हो गए।
मां मम्मी, पिता डैडी
पुरुष मेल ,स्त्री लेडी
भाई ब्रो ,दोस्त गाइस
मामा, चाचा अंकल हो गए
देखो सभी रिश्ते
अब डिजिटल हो गए।
वाट्सअप, फेसबुक पर
रिश्ते कर रहे है सफर
वार्तालाप सिमटी ट्विटर पर
भाव सभी फंबल हो गए
देखो सभी रिश्ते
अब डिजिटल हो गए।
स्वरचित
रामप्रसाद लिल्हारे'मीना'
चिखला बालाघाट (में.प्र.)
हाइकू-- रिश्ते
1
तुला में तोल
रिश्ते थे अनमोल
बिके बेमोल
2
माता व पिता
रिश्ता है अनमोल
चुके न मोल
3
ये कलयुग
बिकते है फ़रिश्ते
कैसे रिश्ते
4
दिल का रिश्ता
भाव से पनपता
दीप दमका
5
भावो के रिश्ते
इंसान है निभाते
होते फ़रिश्ते
कुसुम पंत 'उत्साही '
देहरादून
उत्तराखंड
किसी से रिश्ता हैं प्यार का
किसी से रिश्ता हैं दर्द का
किसी से रिश्ता हैं जज्बात का
किसी से रिश्ता हैं ह्रदय की धड़कन का .
ओस की बूँद से नाजुक हैं ये रिश्ते
दिल में मखमली अहसास से हैं ये रिश्ते
जन्मों के जुड़े ख़ास से हैं ये रिश्ते
ना भूलने वाले पक्के विश्वास से हैं ये रिश्ते .
कहीं चुटकी भर सिंदूर का हैं रिश्ता
कहीं काँच की चूड़ी जैसा हैं रिश्ता
कहीं रेशम की डोरी सा गहरा हैं रिश्ता
हर बार का एक नया रंग हैं रिश्ता .
रिश्ते दिल के दर्पण से हैं
बड़े ही अनमोल हैं रिश्ते
तोड़ो तो बिखर जाते हैं रिश्ते
सम्भालों तो जीवन में सज जाते हैं रिश्ते .
कहीं हैं सम्मान के रिश्ते
कहीं हैं खून के रिश्ते
जो सबको दिल के करीब लाये रिश्ते
सबको रिश्तों में बाँध कर दिल से जुड़ते हैं रिश्ते .
स्वरचित :- रीता बिष्ट
विधा :: पिरामिड
१.
है
रिश्ता
आनंद
मकरंद
संस्कार पंद
महके सुगंध
सुमधुर संबंध
२.
है
स्वार्थ
अनाथ
खोये साथ
सहायतार्थ
करता कृतार्थ
जो रिश्ता परमार्थ
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
*****
हृदय गहन में भाव मृदुलतम,
आधारशिला लौकिक रिश्तों के,
दशा सुधारते, दिशा प्रदर्शक
धरती प्राँगण में मनुजों के।
नियति के उपहार अमूल्य शुचि,
भावपूर्ण रिश्ते सृष्टि में,
अपनत्व भाव मर्यादा अनिवार्य,
निर्वहन हेतु शुचितम रिश्तों में।
वर्तमान परिदृश्य विश्व का,
दृश्यमान अदभुत विपरीत,
राग, द्वेष, संवेग दंभ से प्रेरित सी,
खो रही मूल्य रिश्तों का मनुप्रजाति।
मर्यादाऐं तार तार हो चुकी आज,
दिगभ्रष्ट समाज मानव का अति,
नैतिकता का मूल्य- ह्रास रिश्तों में,
चिंतनीय स्थिति प्रजाति के प्रति।
--स्वरचित--
(अरुण)
रिश्तों की मधुरता
है जीवन की मुस्कान
प्रेम और विश्वास
हैं इसके आधार
कुछ हैं जन्मों के रिश्ते
कुछ हासिल हो जाते
राह चलते चलते
कई रिश्ते बन जाते
रिश्ते कुछ कायम रहते
कुछ वहम के कारण
टूट भी जाते
कभी अपने पराये हो जाते
और कभी-कभी
बेगाने भी अपने हो जाते
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
स्वार्थ से रिक्त
रिश्ते अब कहीं
नहीं दिखते
जब तक स्वार्थ है
तब तक रिश्ता है
उसके बाद तो
बन जाते सब आगंतुक
रिश्तो की डाल गई है झुक
भाई -2तो बहुत दूर
की बात है अब
पति -पत्नि उनके बच्चे
इसी को पूरा परिवार
मानते सब
माँ -बाप का भी
स्थान नहीं
रिश्तो मे अब जान नहीं
अ पने ही घर मे
मिलता उनको मान नहीं
जल्दी ही हो जाते
वो घर से विरक्त
स्वार्थ.....
स्वरचित
शिल्पी पचौरी
चंदा, सुरज और तारे
तरुवर, सरिता, सागर न्यारे
पवन ,शीतल बरखा बहार
धुंध, सुगंध उपवन मेरे ।।
गौ, श्वान, अश्व आदि
पशु, नर या मादी
पर्वत, चट्टानें, हिमशिखर
रिश्तों की बड़ी है यादी ।।
खून के रिश्ते, अपने पराये
दोस्ती, हर हाल साथ निभाये
डॉक्टर मरीज, दुकानदार और ग्राहक
नज़र घूमे तो लगते अपने ही साये ।।
बिना स्वार्थ अपनापन
मुक्त हस्त स्वाद रसीलापन
रिश्ते ये होते है प्यारे
धूप-छाँव, स्नेहील आशीर्वचन ।।
मनन करे तो समझमें आये
निर्जीव, सजीव, ग्रह सब से कुछ पाये
तू ना दे फिर भी देते जाय
अनंत, अथाः ह प्यार लुटाये ।।
स्वरचित
डॉ नीलीमा तिग्गा (नीलांबरी)
"रिश्ते"
रिश्ते है अनमोल
इन्हें पैसे से न तौल
प्रेम है इसकी पूंजी
नफरत का नही ठौर
ये रिश्ते-नाते हैं
जिंदगी के ताने-बाने
गिला-शिकवा को
हँसी मे उड़ा दे
रिश्ते की लंबी फेहरिस्त में
रिश्ते के दिये जख्म को
प्यार का मलहम लगा ले
रिश्ते हैं अनमोल
इसे निभा ले
रिश्ते तोडऩे मे न करें
जल्दबाजी
रिश्ते को निभाने में है
समझदारी।
स्वरचित-आरती -श्रीवास्तव।
'''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
टूट रही रिश्तो की अब तो,
मर्यादा लगता है ।
किसको अपना कहेगे अब तो,
हर रिश्ते पे शक होता है॥
.....
नही सुरक्षित कन्या अब तो,
जहाँ क्न्या पूजी जाती है।
उनके भी तो रिश्ते होगे,
जो कामी वहशी होते है॥
......
डर लगता अब तो हर पल,
कल की ही ये घटना है।
सात वर्ष की इक बच्ची के,
अस्मत लुटने की घटना है॥
......
जिसने भी ये पाप किया वो,
वो उसका बडा करीबी था।
शेर हृदय तो कंम्पित है,
रिश्ता तो यहाँ कलंकित है॥
......
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
सुख और दुख दोनों देते है,
ये रिश्ते भी अजीब होते है।
हर रिश्तों में अहसास है,
और अहसास में विश्वास है।।
जीवन का ताना बाना है,
हर रिश्ता सुखद सुहाना।
कभी हँसाते कभी रुलाते,
कुछ रिश्ते मन को लुभाते।।
कौन है अपना कौंन पराया,
ये मन कभी समझ न पाया।
वक्त बुरा जब आ जाता है,
साया भी साथ छोड़ जाता है।।
रचनाकार
जयंती सिंह
ये रिश्ता क्या कहलाता है
बाहर से भागी आई और शीशे से थोडा आगे निकल गयी लेकिन उसी क्षण वापिस शीशे के सामने आ बैठी | और खो गयी उसके ख्यालों में कुछ इस तरह....... पागल सा बुलाता भी कभी..सारा दिन किताब हाथ में लिए घूमता रहता है...ऊपर से वो गोल चश्मा ओर पहन लेता है मेरे दिल की धडकने बढ़ाने के लिए | एक दिन तो गिर ही गयी थी उसे देखते देखते और मजाक बन गयी थी पुरे कॉलेज का |
(इतने में पीछे की दीवार में टंगी माँ की तस्वीर शीशे में से दिख गयी|)
क्या सुन रही है माँ.....? हां माँ सच में बहुत अच्छा है वो.....नारी जात की तो बहुत इज्जत करता है | इसी कारण हमारे कॉलेज की लडकियाँ उसके आस-पास मंडराई रहतीं है | बस यही सब कुछ मुझे बहुत खराब लगता है| लेकिन जब वह उनसे दूर जा कर बैठ जाता है न तब मुझे अच्छा भी बहुत लगता है | (खुला दरवाजा देख व् सुनैना की हल्की-हल्की आवाजें सुन उसकी माँ बिना दरवाजा खटखटाये अंदर चली आई) पर अपने तो ख्याल तस्वीर से हटकर फिर कॉलेज में चले गये... अरे यार, कभी बुला भी लिया कर जर्लू...... अपने माँ-बाप की चिंता को छोड़ मेरी ओर भी ध्यान दे लिया कर कभी.. सुनैना की माँ ये सब सुन रही थी.और पूछ बैठी, ‘तूं किसे कह रही है ये सब कुछ’...? (लेकिन सुनैना उसके ख्यालों में इतनी खोई हुई थी कि उसे अपनी माँ की आवाज भी तस्वीर से आती हुई सुनाई दी....और) सुनैना कहने लगी, 'माँ वही जो मुझे हरदम हरपल अपना सा लगता है
माँ : कौन अपना सा....?
सुनैना : अरे, माँ वही जो मेरे दिल का राजा बन बैठा है.....
माँ : कौन बन बैठा है..? बता तो सही....! क्या लगता है?
सुनैना : अरे माँ.. वही जो..................| (सुनैना ने अपनी माँ को देख लिया) और कोई नहीं माँ कह कर बाहर बरामदे में भाग आई (बाद में उसके बारे में सब कुछ बता दिया..)
माँ कहने लगी बता तो सही क्या लगता है वो तेरा ?
सुनैना : पता नहीं माँ यह रिश्ता क्या कहलाता है?
माँ झलाई सुनैना की बात सुनकर अभी भी मुस्करा रही थी...
स्वरचित
सुखचैन मेहरा
"रिश्ते"
कहीं प्रेम और त्याग मिल कर सींचते रिश्ते,कहीं गलतफहमियों की चोट से दरकते रिश्ते l
कहीं अपनेपन की खूशबू से महकते रिश्ते,
कहीं निजी स्वार्थ की ओट में सरकते रिश्ते l
कहीं दर्द को छुपा हँसी बिखेरते रिश्ते,
कहीं मुखौटे लगाकर दर्द को परोसते रिश्ते l
कहीं अपने खून से भी बढ़ कर निभते रिश्ते,
कहीं नासूर बन जिंदगी पर रिसते रिश्ते l
कहीं जन्मों के प्रेम बंधन दिखते रिश्ते,
कहीं मौसम की तरह बदलते रिश्ते l
ऋतुराज दवे
रिश्ते
तपती गर्मी में छाया का अहसास,
मिलता है हमको जब रिश्ते होते हैं पास,
भागमभाग की इस दुनियाँ में,
रह गए सिमट कर छोटी सी ड़िबिया में,
सूरत अपनों की भूल जाते हैं,
मोबाइल पर रिश्ते निभाते हैं,
ड़ोर रिश्तों की दो के हाथों में होती है,
मिले ढ़ील अगर अहसास भी खोती है,
वक्त ऐसा एक आता है,
भूला रिश्ता याद आता हैं,
मृगतृष्णा की चाह में,
रिश्ते छूटे सब राह में,
होकर धनवान समझे ये तकदीर है,
रिश्तों के नाम पर सब फकीर हैं।
स्वरचित-रेखा रविदत्त
सुदृढ़ सीख
लहराता समुद्र
रिश्ते की नींव ✍️
🍁🍁🍁🍁
पाश आबद्ध
आधुनिक संस्कृति
टूटते रिश्ते✍️
🍁🍁🍁🍁
रीता अहाता
दुनिया मायाजाल
रिश्तो का खाता✍️
🍁🍁🍁🍁
दूर डूंगर
मधुर सामंजस्य
खोखले रिश्ते✍️
🍁🍁🍁🍁
कितना मोल
खटखटाता मन
रिश्तो का द्वार✍️
🍁🍁🍁🍁
अस्तित्व हीन
मधुर परिवार
बाहरी रिश्ते✍️
🍁🍁🍁🍁
स्वरचित आशा पालीवाल पुरोहित राजसमंद✍️
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