Wednesday, October 24

"कुमकुम "20अक्टूबर 2018



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शुभ हो, मंगल हो या 
हो पूजा,भजन,कीर्तन
कुमकुम का टीका माथे
पर जब सजता तो सब
मंगल मंगल सा लगता |
रंग इसका लाल होता
सौभाग्य का प्रतीक होता
सुहाग की निशानी होता
कुमकुम स्त्री का भाग्य बनता |
कुमकुम की बिंदिया 
सुहागिन के माथे को सजाती
सकारात्मक ऊर्जा को दर्शाती
माँग में भर,पति की उम्र बढ़ाती |
अक्षत संग कुमकुम का मेल
कितना सुन्दर बन जाता
राखी पहनाये भाई को बहना
कुमकुम,अक्षत का लगाये टीका |
कलाई पर फिर राखी बाँधे
उसके विजय और सम्मान
की बहना करती कामना |
कुमकुम का जीवन में है
बड़ा ही महत्व, तभी तो
मेरी अम्बे माँ को खूब भाये 
कुमकुम का टीका खुशियाँ लाये |

स्वरचित *संगीता कुकरेती *


दिंनाक .. 20/10/2018
विषय .. कुमकुम 

विधा .. लघु कविता
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फिर आना माँ रस्ता मै,
देखूँगा बारह माह।
कुमकुम रोली चुनरी संग,
सजेगा फिर दरबार॥
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आज विसर्जन तेरा है पर,
यह इकरीति का नाम।
सब पर कृपा बनाए रखना,
आना अगले साल॥
🌹
पाप पुण्य सब तेरी महिमा,
तेरा आशीर्वाद ।
शेर हृदय करबद्ध खडा माँ,
आना बारम्बार॥
🌹

स्वरचित .. Sher Singh Sarraf



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माथे पर कुमकुम
कर सोलह श्रृंगार
सुहागिनों का आया
करवाचौथ का त्यौहार

हाथों में मेहंदी लगाएं
कलाईयों में चूड़ियां
पैरों में पायल छनकाती
गाती सभी मंगलगीत

हो सुहाग अमर
सब करें यही प्रार्थना
व्रत यह निर्जला
खोलें देख चाँद को

चाह चाँद दर्शन की
खूब सताता चांद भी
धरती पर चांद से मुखड़े
देख शर्माता वो भी

आंखें देखें आसमां
लो चाँद नजर आया
आओ सखियों मिलकर
अर्घ्य दें हम चाँद को
***अनुराधा चौहान***मेरी स्वरचित कविता

ुमकुम,पायल,मेहँदी ,कंगन, 
बिछिया-बिंदी बिनअपूर्ण सुहागन****
कुमकुम के शुभ शगुन अनेक 
शुभ- शगुन महावर तिलक छापा
सुरभित सुंदर सुखद सुमन सा 
हल्दी कर्पूर से निर्मित कुमकुम****
भांति भांति के रूप रोली 
मां वैष्णो देवी इंदौरी अंबाजी कुमकुम
भाँति -भाँति महत्व कुमकुम**** 
तरह तरह - रंगत का है ये
स्त्री शक्ति का प्रतीक है ये
एकाग्रता हेतु सजती बिंदिया 
श्री हरि निवास मस्तक
तभी माथे लगता तिलक कुमकुम****
आज्ञा चक्र जागृत होकर 
दिव्या प्रकाश अनुभूत होकर
बढ़ाता है सुंदरता कुमकुम****
स्त्री को स्त्रीत्व समझाता 
सोलह श्रृंगार- प्रमुख सिंन्दूर 
करवा चौथ प्रमुख है कुमकुम
शाश्वत सत्य अजर अमर
महत्ता कुमकुम*** 
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स्वरचित आशा पालीवाल पुरोहित

कुमकुम रोली ये हल्दी चंदन।
माता के श्री चरणों में वंन्दन।
श्रद्धा सुमन अर्पित हैं तुमको,
आपश्री का माँ अभिनंन्दन।

सोलह श्रंगार करें जब ललना,
कुमकुम माथे की शोभा बनती।
सजती मस्तक बिंदी कुमकुम,
सच्ची सुहागन वामा दिखती।

मेंहदी चूडी कलाई का गहना।
गले हार हो कलाई में कंगना।
पांवों में भले पैजनिया बाजे,
पर सर्वोत्तम है कुमकुम गहना।

सधवा का प्रतीक है कुमकुम
सधवा का सनाद है छमछम।
सज्जित दिखे सिंदूर मांग में,
दिव्यांश है ये बिंदी कुमकुम।

करते विनय ईश्वर से हमसब
सजी रहे कुमकुम की बिंदिया।
सदा सुहागिन रहें नारी शक्ति,
प्रभु करें छमछम ये पैजनिया।

स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.

"कुमकुम " शीर्षकांतर्गत मेरा प्रयास ---

लौटा दे सबको वेदों की ओर
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आयी लेकर माता द्वार तेरे 
फूल, अच्छत, कुमकुम भर थाल,
पूजने को माता चरण तेरे
मेरा तन-मन हो रहा बहुत बेहाल।

भक्तों की भीड़ खड़ी दरबार तेरे 
लेकर मन में अनेक लालसाएं,
पूर्ण करती हैं तू सबकी मुरादें
मुझे भी है तेरे दर्शन की अभिलाषाएं।

फिर धरा पर आ माँ अवतरित हो,
पाप-अत्याचार है अति पर आज,
पापियों के बोझ से बोझिल धरती को
मुक्त कर मानवता का कर दे आगाज।

नारी की इज्जत हो रही तार-तार 
जन-मानस में आधुनिकता की होर,
भूल रहे सब आज वैदिक परंपरा 
फिर से लौटा दे सबको वेदों की ओर।

---रेणु रंजन 
(स्वरचित )
20/10/2018

विषय - कुमकुम 

विजयी भ्राता 
कुमकुम अक्षत 
भगिनी नेह 

हिंदु नारीत्व 
कुमकुम बिछिया 
जीवन धुरी 

लोभी मानव 
कुमकुम अंगार 
रोता दांपत्य 

सौभाग्य वधू 
कुमकुम सिंदूर 
चमके भाल 

तीज, करवा 
कुमकुम सुहाग 
सुखद साथ 
(स्वरचित ) सुलोचना सिंह 
भिलाई (दुर्ग )

विषय- कुमकुम

वह जब मुस्कराए
संग आइना मुस्कराए
काजल पूरित नयन कमाल 
माथे सज़ा कुमकुम धमाल
बना श्रृंगार दृश्य अभिराम
प्रिय की प्रिया अपने
मन बसिया को रिझाए
उसके वजूद को दर्शाता
कुमकम भाग्य विधाता
सुहागिन शृंगार बन पाता
इष्ट आराध्य देवी देवता
पूजा का सज़ता थाल
शृंगार संग पूजन विधान
अक्षत चंदन कुमकुम बखान
सोहे कुमकुम जब इष्ट भाल
हाय! वह अभागी ,वह औरत
आज उसका भाल ना सजेगा
वैध्वय उसका कुमकुम हरेगा
यह कैसी परम्परा !

यह कैसी सोच !
शृंगार कुमकुम ना बनेगा ???
कुंठा,नैराशय,अवसाद विकराल
कुमकुम उसका या लोकमत गराल?
सच सच तुम ही बतलाना
कुमकुम उसे सिखलाना

तुम शृंगार ?तुम पूजा विधान। ?
अर्थ अनजान ?सुहाग अभिमान ??
बतला दे अपनी पहचान
केवल सुहाग प्रतीक निशान ...
आराध्य पूजित कोई भाल
कुमकुम लाल कुमकुम लाल...?

स्वरचित

संतोष कुमारी

माँग की सौभाग्य रेखा,
कहती है रोज मुझसे,
मैं सजी जबतक तेरे सर,
सौभाग्य है तेरा अमर,
तो क्या हुआ सजती नही,
मैं बड़े दुकानों में,
तो क्या हुआ की मूल्य मेरा,
है बहुत ज्यादा नही,
पर जब सजी सर पर सजी,
क्या भला ये कम मोल है,
हर सुहागन के लिये,
रंग ये अनमोल है,
छिन गया ये अधिकार जिनसे,
पूछिये उनसे जरा,
इस अमर सौभाग्य से,
है बड़ी अमरत्व क्या---
एक चुटकी सिन्दूर से बढ़कर ,
है जगत में तत्व क्या,
मांग हो सूनी अगर ,
श्रृंगार का क्या मोल है,
जो सज गयी माथे पर,
तो ये बड़ी अनमोल है---

.....स्वरचित....राकेश,


करले सोलह श्रंगार तु
पर बिन कुमकुम अधूरे 
कुमकुम से है सुहाग
करले तु अरमान पूरे

पायल बिछिया पग सुहाये
माथे को कुमकुम सजाये
कंगना चुड़ी हाथ में खनके
सुहाग से जीवन महकाये

पूजन अधूरा बिना कुमकुम
व्रत त्योहार की शोभा कुमकुम
नारी जीवन महके इससे
संस्कृति का महत्व कुमकुम

स्वरचित :-मुकेश राठौड़



संस्कार से सजी धजी ,

ये भारत भूमि हमारी है ।

दाम्पत्य जीवन क्या होता ,
नारी की अहमियत न्यारी है ।

सजाके कुमकुम माथे पर , 
जिम्मेदारी स्वीकारी है ।

नारी से ही हर घर की ,
मंहकती फुलवारी है ।

अपना सुख दुख कभी न देखे ,
पति पर हरदम वारी है ।

कुमकुम है नारी की शान ,
सुहागन इसकी अधिकारी है ।

धन्य ''शिवम" वो घर समाज 
जहाँ स्त्री संस्कारी है ।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 20/10/2018
"कुमकुम "

नारी का अभिमान कुमकुम 
इसके बिना अधूरा है श्रृंगार 

माथे पर चमके कुमकुम 
सुहाग की है पहचान 

जब भी मैं दर्पण देखूं पिया
कुमकुम में झलके तेरा नाम

बीच सफर छोड़ ना जाना
रखना प्रिये कुमकुम का मान

सात फेरों का धर्म निभाना

स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल


कुमकुम , सिंदूर , कंगन पहने ,
खड़ी है एक अलबेली नार ।
छोड़ बाबुल का अंगना ,
चली पिया के द्वार ,
करके वो सोलह श्रृंगार ।।
बाबुल से बिछुड़ने का ,
दुख बहुत है मन में ।
कि जिसकी गोद में बीता बचपन ,
और बीते अनेकों पल दुख-सुख के ।।
फिर आया एक राजकुमार ,
सफेद घोड़े पर सवार होकर ।
और विदा कर ले चला ,
राजकुमारी को , दुल्हा बनकर 
माथे कुमकुम सजाए रखना

अंतिम यात्रा तक दमके कुमकुम 
यह मन्नत मैं प्रभु से माँगूं हर बार

स्वरचित लघु कविता
विषय कुमकुम
रचयिता पूनम गोयल

मैं माथे की कुमकुम
सुहाग की प्रतिक हूँ मैं
मुझसे सजी नारी
खूब लगती प्यारी

सुहागन की हूँ मैं मान
मेरा है जग मे सम्मान
सजना सजे सजनी के संग
कुमकुम सजे बिदिंया के संग

कुमकुम नही है सिर्फ 
श्रृंगार नारी का
यह तो एहसास है
होने का खास

माथे पर कुमकुम
नैनो मे काजल
हाथो मे सजी मेहंदी
चुड़ी से भरी कल ईया

चल सखी सजना 
आये है,
तेरे दवा्र ,लेकर तेरी बरात
स्वरचित-आरती श्रीवास्तव

कुमकुम 
तेरे माथे का कुमकुम यूँ ही चमकता रहे, 
चाँद सी बिंदिया यूँ ही दमकती रहे, 
तेरी बिंदिया है तो मै हूँ, 
तेरी बिंदी की चमक यूँ ही अमर रहे ll

तेरी सांसो में हमेशा बसा रहूं, 
तेरा दीपक बनकर जलता रहूं, 
तू गर मेरे साथ है प्रिया, 
मै यूँ ही तेरासाथ निभाता रहूँl
कुसुम पंत "उत्साही "
स्वरचित 
देहरादून 
उत्तराखंड


कहीं स्वागत का गान
कहीं विदाई का निशान हैं, 

कहीं सूचक सम्मान का
कहीं मस्तक की शान हैं,

कहीं दुल्हन की मांग का
सौभाग्य सूचक श्र॔गार है,

कहीं वतन के रखवालों 
का गर्व भरा सम्मान हैं,

इसका गहरा लाल रंग भी
आपसी प्रेम की पहचान हैं,

लगता है सर पर सबके
चाहे राजा हो या हो रंक,

नहीं समझता भेद किसी में
"कुमकुम"की ये पहचान है,

स्वरचित :-
मनोज नन्दवाना


(1) 
है
भाल
सजाए
कुमकुम
नारी शृंगार 
प्रिये स्नेह सार 
रूपवती साकार।

(2)
हो
पूजा 
संपूर्ण 
विधिवत्
पान-सुपारी
कुमकुम लाली
फूल अच्छत डाली।

(3)
है
सुख
सौंदर्य 
कुमकुम 
सुर्ख सजता
औरत लिलार 
अनुपम शृंगार ।

--रेणु रंजन 
कुमकुम भारतीय संस्कृति की पहचान 
सारे जग से अलग दिखलाती हैं हमारी पहचान .


कुमकुम हैं शोभा सुहागिन के सिंदूर की 
कुमकुम हैं पहचान भाई दूज के तिलक और राखी में माथे में सजी भाई टीके की .

कुमकुम हैं शुभ कार्य की 
कुमकुम हैं शुभ विवाह नामकरण संस्कार की .

कुमकुम हैं दिलों को जोड़ती पवित्रता की 
कुमकुम हैं शोभा यश विजय की .

स्वरचित :- रीता बिष्ट


"कुमकुम"
ललाट पर कुमकुम की बिंदी,
बनी सुहागन का श्रृंगार,
भरकर माँग पिया के नाम की,
बसाती है नया घर-बार,
हाथों में खनक चुड़ियों की,
दिल पिया का चुराती है,
छोड़ बाबुल का घर,
रिश्ते नये निभाती है,
कुमकुम पर लगा अक्षत,
देते शांति का दान,
लगाती है सुहागन,
बनता उसका अभिमान।

स्वरचित-रेखा रविदत्त
20/10/18
शनिवार


भरे मांग सजना सजनी की,
कुमकुम सजे भालपर बिंदिया।
कानों में बाली हाथों में चूडी,
पहने पांवों में सुंन्दर पैजनिया।

सुंन्दर दिखे कुमकुम से ललना।
सदा सुहागिन रहती है ललना।
भरी रहे जब तक मांग तुम्हारी,
बनी रहो तुम सजनी संग सजना।

पहनी रहें मुद्रिका उंगलियों में,
बनी रहें प्रियतमा प्रियतम की।
सुखी रहें तुम सदा सुसज्जित,
कुमकुम सजी जब प्रियतम की।

स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र



कुमकुम लगाके नारी,
साजन मन को लुभात।
सिंदूर लगाके लगे वो,
देवी दुर्गा माँ साक्षात।
कुमकुम बढ़ाता नारी सौंदर्य, 
वो करती जब सोलह श्रृंगार,
इठलाती, बलखाती,उतरती,
साजनजी के मन द्वार।
माँग में सजा कुमकुम,
पति की लंबी उम्र दर्शाता।
भारतीय समाज की,
अनोखी परंपरा को बतलाता।
कुमकुम है सौभाग्य की पहचान।
इससे जुड़ा हर नारी का मान।

स्वरचित-"सारिका विजयवर्गीय"वीणा

प्राची दिशा में छिटकी लालिमा 

बिखरने लगा मंगल कुमकुम 

हर्षित वसुधा पा सौभाग्य प्रतीक 

जाग्रत जीवन हर्षित तन-मन

वृक्ष भी करने लगे हैं नर्तन

पक्षी कलरव गूंज उठा है

जीवन फिर से झूम उठा है

खिलने को कलियाँ उत्सुक

सिंदूरी आभा में जलधि

सुंदरता का करता संवर्धन

सिंदूरी हुआ हिमगिरि

अति अलौकिक दिव्य दर्शन

तन-मन सिंदूरी हुआ हमारा

जब वसुधा पर बिखरा

मंगल कुमकुम सारा

जगजीवन हुआ ऊर्जावान

गऊएं भी छेड़ रही तान

खेतों में लहराती हरियाली

ग्वाले ने बांसुरी निकाली

सुनाई उसने मधुर धुन

भंवरा भी करता गुन-गुन

मंगलमय हुआ सारा जीवन

जब दिनकर का हुआ आगमन। ।

अभिलाषा चौहान

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