(1)
निष्फल चोट
"माँ" सुरक्षा कवच
आँचल ओट
(2)
भागी सहम
"माँ" ने लगाया टीका
बुरी नज़र
(3)
घर की धुरी
रिश्तों के केन्द्रों पे "माँ"
जूझती पूरी
(4)
बे- मौसम भी
"माँ"वात्सल्य झरना
बहे निर्झर
(5)
श्रम सहेली
रिश्तों के धागे बुने
"माँ" की अंगुली
(6)
प्रतीक शक्ति
कर्तव्य की राह,"माँ"
ममत्व मूर्ति
" माँ/ दुर्गा "
आओ सखी आरती उतारे आज
घर घर माँ दुर्गा है आई
उलुक ध्वनी और है शंख नाद
आओ सखी आरती उतारे आज
शक्ति से भरी है धरा
हवा भी है हरश्रृंगार से महका
आओ सखी आरती उतारे आज
डगर डगर खिले हैं फूल काश
तालाब भी हैं कमल से भरा
आओ सखी आरती उतारे आज
ढोल नगाड़े भी बजने लगे
दशों दिशायें करते जयगान
आओ सखी आरती उतारे आज
देवताओं ने किये शक्ति का आह्वान
स्वर्ग से धरा पर आई "दुर्गा माँ "
आओ सखी आरती उतारे आज
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
विधा -गीत
आधार छंद-दोहा
"वंदना"
मात भवानी ज्ञान दे,दूर भगा अँधियार।
कृपा करो माँ शारदे,विनती बारम्बार।।
षुष्प धूप कर में लिए,
मन में ले सद्भाव।
तेरे दर पर मैं खड़ा,
भर दें सारे घाव।
करता तेरी आरती, मन्नत कर स्वीकार।
कृपा करो माँ शारदे, विनती बारम्बार।।
ध्यान करो हम पर जरा,
हम बालक नादान।
हम पीतल की धातु है,
तुम हो कनक समान।
तू वाणी का मूल माँ,तू ही वाणी सार।
कृपा करो माँ शारदे, विनती बारम्बार।।
कंठ सदा मधुरिम रहें,
ऐसा दो वरदान।
वाणी सुन मेरी सभी,
मुझको दे सम्मान।
आन विराजो कंठ में,दूर करो सब खार।
कृपा करो माँ शारदे, विनती बारम्बार।।
सदा सत्य बोलूँ यहाँ,
सर पे रख माँ हाथ।
भटक गये जो राह से,
दूँ मैं उनका साथ।
हिम्मत दे माँ रागिनी,करूँ कर्म उपकार।
कृपा करो माँ शारदे, विनती बारम्बार।।
स्वरचित
रामप्रसाद मीना 'लिल्हारे'
चिखला बालाघाट (म.प्र.)
🌷
नमस्तुते देवी उत्कर्षिणी भवविमोचनी।
महिषासुर मर्दनी सत्यानंद स्वरूपणी ।
🌷
वन्दनीय देवमाता सती साध्वी सदागति।
पिनाकधारिणी मातंगी महातपा चामुंडा।
🌷
बुद्धि भवानी भव्या भवप्रीता अनेकवर्णा।
सिंहवाहिनी शूलधारिणी कमलमंजरीरंजिनी।
🌷
जयति-जयति मां दुर्गा आर्या दुर्गतिनाशिनी।
शेर हृदय मे सदा बसे है मातंगी सर्वमंत्रमयी।
🌷
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
बिगड़ी बनाने वाली
दुखों को मिटाने वाली
माँ शेरा वालिये
तुझको प्रणाम
🌷🌷🌷🌷
जग को रचाने वाली
जग को चलाने वाली
माँ शेरा वालिये
तुझको प्रणाम
🌷🌷🌷🌷
विपदायें तूँ टारती
काज तूँ सँवारती
माँ शेरा वालिये
तुझको प्रणाम
🌷🌷🌷🌷
''शिवम्" सहारा दे
डूबे जो किनारा दे
माँ शेरा वालिये
तुझको प्रणाम
🌷🌷🌷🌷
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 10/10/2018
माँ दुर्गा की भक्ति हैं अप्रम पार
जो भी जाता हैं श्रद्धा भक्ति से माँ के द्वार
खुशियाँ मिलती हैं उसे बेशुमार
माँ की भक्ति ही हैं जीवन में मोक्ष और मुक्ति का द्वार .
जगत जननी सबकी पालनहार हैं दुर्गा माँ
निर्मल पावन भक्ति का धाम हैं दुर्गा माँ
सच्ची निच्छल भक्ति का आधार हैं दुर्गा माँ
आदिशक्ति का अवतार हैं दुर्गा माँ .
सबकी विनती सुनती हैं माँ
सबके ह्रदय में बसती हैं माँ
राजा और रंक में कोई भेद नहीं करती हैं माँ
प्रेम से जो पुकारे उसके घर आँगन में अपने चरण रखती हैं माँ .
मैया मेरी शेरोंवाली
भक्ति और शान हैं मेरी माँ की जग से निराली
गौरी,काली,जगदम्बे,अम्बे हैं मैया मेरी
सबसे प्यारी ममतामयी मैया मेरी .
सबकी मनोकामा करती हैं पूर्ण मैया मेरी
सबकी दिल की पीड़ा हर लेती हैं मैया मेरी
सबको देती हैं अपने ममता के आँचल में सहारा
माँ के कदमों में अर्पण मेरा जीवन सारा .
माँ की पूजा का आया ये महापर्व
माँ के नौ रूपों के कर लो दर्शन
भक्ति भाव से माँ की ज्योत जला लो
माँ दुर्गा की शुभ नवरात्रि का हैं ये महापर्व .
स्वरचित:- रीता बिष्ट
हे अम्बिके जगदम्बिके, करुणामयी माँ अम्बिके...
आशीष दो ज्योतिर्मयी, माँ अम्बिके जगदम्बिके....
जगमग करे सारा जहां, आलोकित हो तेरे प्यार में....
हो स्वार्थ रहित हमारा मन, तेरे प्यार में तेरे प्यार में...
सबके काम से सबके नाम से, चमके भारत संसार में....
सबके काम से सबके नाम से, चमके भारत संसार में....
हे अम्बिके जगदम्बिके, करुणामयी माँ अम्बिके...
ना हो कोई भूखा न प्यासा, सब आँखों में ज्योति रहे...
तेरे दिव्य प्रकाश से माँ मेरी, हर घर सदा रौशन रहे....
तुम उर में ज्योति स्वरूप बन, विचरण करो माँ अम्बिके.....
तुम उर में ज्योति स्वरूप बन, विचरण करो माँ अम्बिके.....
हे अम्बिके जगदम्बिके, करुणामयी माँ अम्बिके...
हो हाथ सर पे उनके तेरा, माँ बाप से जो विहीन हैं...
विषय माँ /दुर्गा :-
माँ दुर्गा आईं हैं द्वारे
सज गये द्वारे बंदनवारे ,
मंगल कलश धरे हैं न्यारे
बो दये खप्पर फोड़ ज्वारे ।
गोबरअंगना दये लिपाय
रंग भर चौकें दये पुराय
चंदन पटरी दईं डराय
रेशमी आसन दयेबिछाय ।
मैय्या मोरे अंगना आईयो
दीपअखण्ड जलाईयो
जगमग माँ का है दरबार
दुर्गे माँ का जै जयकार ।
खाली झोली मैय्या भरदे
सबकी नैय्या पार तू करदे
सब पर तैरा है अधिकार
यहसृष्टि तेरा ही विस्तार ।
स्वरचित :-उषासक्सेना
रहे साथ उनके तू सदा, मेरी याचना माँ भगवती...
रहे साथ उनके तू सदा, मेरी याचना माँ भगवती...
हे अम्बिके जगदम्बिके, करुणामयी माँ अम्बिके...
यह जग तेरा परिवार माँ, हर फूल इसका खिला रहे....
तेरी ज्योति से प्रजवलित हो, दीपों की माला सजी रहे...
नहीं बचे कहीं अँधिआरा माँ, तेरे नयनों से माँ नैनादेवी....
नहीं बचे कहीं अँधिआरा माँ, तेरे नयनों से माँ नैनादेवी....
हे अम्बिके जगदम्बिके, करुणामयी माँ अम्बिके...
करून बिनती मैं कर जोड़ माँ, चरणों में नतमस्तक हो....
हर घर में उजियारा रहे, मन अंतर सुन्दर सचिआरा हो...
करो राख द्वेष दम्भ माँ, हर मन से माँ ज्वालामयी.....
करो राख द्वेष दम्भ माँ, हर मन से माँ ज्वालामयी.....
हे अम्बिके जगदम्बिके, करुणामयी माँ अम्बिके...
हो दिन शुरू तेरे नाम से, माँ रात हो तेरे ध्यान में....
हर पल घडी हर सांस में, जीवन चले तेरे नाम में...
तेरा “चन्दर” दीपक बन जले, प्रकाश दो ज्योतिर्मयी....
तेरा “चन्दर” दीपक बन जले, प्रकाश दो ज्योतिर्मयी....
हे अम्बिके जगदम्बिके, करुणामयी माँ अम्बिके...
आशीष दो ज्योतिर्मयी, माँ अम्बिके जगदम्बिके....
हे अम्बिके जगदम्बिके, करुणामयी माँ अम्बिके...
हे अम्बिके जगदम्बिके, करुणामयी माँ अम्बिके...
II स्वरचित - सी.एम्. शर्मा II
१०.१०.२०१८
तूही सबकी भाग्य विधाता।
तूही तो है सब कुछ प्रदाता।
कोई तुझे शैलपुत्री कहता,
कहीं कहाती बृह्मचारिणी।
कभी बन जाती रणचंडी तो,
कहीं कहाती माँ कात्यायनी।
दुर्गा मैया तू शक्ति माता।
कुषमांडा तू है स्कंदमाता।
दया त्याग ममता की मूरत,
तू ही महिषमर्दिनी माता।
आदिशक्ति तू शांति स्वरूपा,
तू ही शील समता की मूरत।
सिद्धिदात्री तू मात भवानी,
माँ तूने बदली संसारी सूरत।
हे माता तू नवदुर्गा काली।
तुझको कहते खप्परवाली।
पितृसत्ता को माँ ने बदला,
है मातृशक्ति तू माता काली।
स्वरचितःःः
इंजी. शंम्भूसिह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
नारी का अवतार है दुर्गा,
सृष्टि की सृजनहार दुर्गा।
दानव दल पर भारी है ये,
सबकी पालनहार है दुर्गा।।
दुर्गा दुर्गति शमनी माँ
हमको दे दो माँ वरदान।
जीवन सफल हमारा होवै,
कर दो माँ जग का कल्याण।।
पावन इन नवरात्रों में,
करते माँ तेरा अराधन।
मनवांछित फल वो पाते,
सर्वस्व जो करते माँ अर्पण।।
रचनाकार
जयंती सिंह
लो आ गये नवरात्रे माँ,
तेरी खबर भी आ गई
शेर पर सवार होकर
सोलह सिंगार करके तु
नौ दिन के लिए धरती पर आ गई.....
आ गये......
स्वागत है माँ तेरा
भवन सजाऊँ तेरा
पुष्पों का हार पहनाऊँ
रोली का तिलक लगाऊँ
तेरी मोहनी मूरत पे माँ
मैं वारी -वारी जाऊँ
देख के तेरी छवि संगत भी आ गई...
आ गये.......
माँ तेरी जोत जलाऊँ
आरती मैं तेरी उतारूँ
ढ़ोल मंजीरा बजाऊँ
तेरा जगराता कराऊँ
लाल चुनर में तु तो मन को भा गई..
आ गये नवरात्रे माँ
तेरी खबर भी आ गई |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
बोलो मैया की जय-जयकार
सबके दुःख मिटाने वाली
दुर्गा है यह यही है काली
अंत भी इनसे आरंभ भी इनसे
यही है प्रकृति यही प्रलय भी
सौंदर्यवान करुणा की मूरत
नव रूपों की छटा अनुपम
असुर सदा तुमसे भय खाते
मां असुरों ने आज फिर घेरा
चारों ओर अंधकार घनेरा
अंधियारे को फिर से हटाने
मां आ जाओ फिर पाप मिटाने
रक्तबीज फिर जिंदा घूमते
बेटियों का जीना दूभर करते
जागो मां छोड़कर साधना
धरती का संताप हरो मां
फिर से तुम उद्धार करो मां
बोलो मिल कर सब जय जय मां
***अनुराधा चौहान***मेरी स्वरचित कविता
उनको राह दिखा दे माँ
ज्ञानी है या वो अज्ञानी
वो तो तू ही जाने माँ ll
🐾
जो,नौ दिन पूजे कन्या को
कह तेरा अवतार माँ
जन्म देने से ,वो ही डरते
ये कैसा तेरा सत्कार माँ ?
भटक रहे है जो सत के पथ से
उनको राह दिखा दे माँ
ज्ञानी है या वो अज्ञानी
वो तो तू ही जाने माँ ll
🐾
पैर पूजकर कन्याओं के
समझे जीवन का उद्दार हुआ
वो ही नोंचे उनके तन को
ये कैसा व्यवहार माँ ?
भटक रहे है जो सत के पथ से
उनको राह दिखा दे माँ
ज्ञानी है या वो अज्ञानी
वो तो तू ही जाने माँ ll
🐾
तेरी पूजा जो, मन से करते
कहकर तुझे,जग जननी माँ
उनकी जननी, दर दर भटके
ये कैसा अत्याचार माँ?
भटक रहे है जो सत के पथ से
उनको राह दिखा दो माँ
ज्ञानी है या वो अज्ञानी
वो तो तू ही जाने माँ ll
🐾
जो लक्ष्मी की पूजा करते ,
बनने को धनवान माँ
घर में बैठी लक्ष्मी रोती
कैसा ये दुर्व्यवहार माँ
भटक रहे है जो सत के पथ से
उनको राह दिखा दो माँ
ज्ञानी है या वो है अज्ञानी
वो तो तू ही जाने माँ ll
"समझ न पाऊँ मैं तो मैया
ये कैसी भक्ति करते माँ ?"
भटक रहे है जो सत के पथ से
उनको राह दिखा दो माँ
ज्ञानी है या वो अज्ञानी
वो तो तू ही जाने माँ ll
स्वरचित
गीता लकवाल
विधा भजन
दुर्गा माँ का सजा दरबार,
आ जाओ अब नर और नार,
धूप दीप भी संग में लाओ,
मन से प्रकट करो आभार l
नौ दुर्गे की महिमा अपार,
कर देगी वो बेडा पार,
ध्वजा नारियल इन्हे चढ़ाओ,
करलो पूजा बारम्बार l
भक्ति में है शक्ति अपार,
सारा जग करे पुकार l
लाल चुनरिया इन्हे चढ़ाओ,
करलो इनका रूप श्रृंगार l
कुसुम पंत उत्साही
स्वरचित
देहरा दून उत्तराखंड
माँ तुम हो ईशवर की सर्वोत्तम कृति
सबसे सुंदर ,सबसे अनमोल कृति
मुझे जन्म देने के लिय सही ,तुमनेअसहनीय पीडा,
पर मेरे मुख से माँ सुनते ही,भूल गई तुम अपनी पीडा.
ममत्व की भावना से तुम रहती परिपूर्ण
हँस कर माफ़ करती सारी भूल,
माँ हर बाधा से बचाती,बेसुमार प्यार लुटाती,
माँ,माँ माँ
हाँ माँ सिर्फ माँ ही ईशवर की सर्वोत्तम कृति कहलाती.........
स्वरचित
शिल्पी पचौरी
*** *** ****
!
भक्त की अरदास ये बारम्बार !
आ-माँ-आ, तू, आ मेरे द्वार !!
तुम असुर विनाशिनी
तुम कर्मफलदायिनी
तुम नवरूप स्वारिणी
आकर हमरा कर दो बेड़ा पार !
आ-माँ-आ, तू, आ मेरे द्वार !!
!
शेर की सवारी शस्त्र हाथ लेकें
भुजाओं में शक्ति अपार लेकें
सुख समृद्धि अपने साथ लेकें
तुम भक्तो की सुन के पुकार !
आ-माँ-आ, तू, आ मेरे द्वार !!
!
हे जगजननी, हे रणचण्डी,
शक्तिशाली, कष्टहारिणी
जग विहारिणि, स्नेहदायिनी
माँ दुर्गा तुम दर्शन दो एक बार
मै तेरी आरती उतारूँ बारम्बार !
आ-माँ-आ, तू, आ मेरे द्वार !!
!
भक्त की अरदास ये बारम्बार !
आ-माँ-आ, तू, आ मेरे द्वार !!
!
!
!
स्वरचित : डी के निवातिया
आओ आओ भवानी आओ
सबकी थोड़ी सी बुद्धि दे जाओ
सबके मन से स्वार्थ की धूल हटाओ
सबमे परमार्थ का अलख जगाओ
आओ आओ भवानी आओ.......
सबको मर्यादा का पाठ पढ़ाओ
सबको माँ बेटी बहन पत्नी
की इज्जत करना सिखाओ
सभी बहनों के डर को भगाओ
आओ आओ भवानी आओ........
भ्रष्टाचार के दानव को दूर भगाओ
गरीबी के महिषासुर को मार गिराओ
दहेज के रक्तविज को मार गिराओ
आओ आओ भवानी आओ .......
बुजुर्गो के दुख दूर भगाओ
बुजुर्गो के मन को खुशियों से भर जाओ
सभी को बुजुर्गों का सम्मान सिखाओ
आओ आओ भवानी आओ
सबकी बुद्धि जगा जाओ.....…...
गरिमा
डिंडोरी
"माँ-दुर्गा"
माँ दुर्गे नमन करूँ मैं तुम्हें बारम्बार
रंग रगोंली से घर सजाये
तुम आओगी हमारे घर -बार
लाल रंग के चूनर मँगाओ
लाल फूलों की माला
इंतजार कर रहे हैं हम सब
आओ जल्दी धरा पर आज
नमन करूँ मैं बारम्बार
सब पापों को नाशने वाली
कर दो हम सब का उद्घार
आदि शक्ति तुम हो म ईया
तुम हो जग तारिनी माँ
नही चाहे तुम्हें मेवा मिश्री
न चाहे मिष्ठान्न
जो भी प्यार से भोग लगा दे
माँ,तुम तुरन्त करती स्वीकार
जब बढ़ जाये धरा का भार
तुम लेती सब संभाल म ईया
पापियों का पाप बढ़ गया हैं म ईया
अब कर दो उसका नाश
जग की सारी कन्याओं मे तुम्हीं हो
समझें न सकल जहान
जो समझ जाये इसे
तुम बनती उसका तारणहार
भैरव भैया की प्यारी बहना
भक्तों के घर आओ आज
माँ दुर्गा मैं शरण में आई
कर दो मेरा उद्घार
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव
मेरे अंधकार भरे जीवन को.।
प्रचंड उजाले से उजलाओ माँ
कपटी, अवगुणी मन मेरे में।
सद्गुण का दीप जलाओ माँ।।
तेरे अबोध, अज्ञानी बालक को।
ज़रा ज्ञान का पाठ पढ़ाओ माँ।।
तेरे दीदार को तरस रहे नैन।
नैनो के भाग जगाओ माँ।।
गौरा, शक्ति रूप तेरे माँ दुर्गा।
किसी एक रूप में आओ माँ।।
अब करूणा रस बहाओ माँ।
आओ ना माँ, अब आओ ना।
प्रचंड उजाले से उजलाओ माँ
सद्गुण का दीप जलाओ माँ
ज़रा ज्ञान का पाठ पढ़ाओ माँ
नैनो के भाग जगाओ माँ
किसी एक रूप में आओ माँ
आओ ना माँ, अब आओ ना।।
-:स्वरचित:-
सुखचैन मेहरा
जयदुर्गा शिवमनरंजनि जगमाता।
हे कल्याणकारिणी गणेशजननी ,
महिषासुरमर्दिनी असुरमर्दिनी माँ।
जग की जननी जय सिंहवाहिनी,
शक्तिरुपिणी शक्ति हो शिव की ।
माता सबका करना कल्याण माँ,
दुष्टदलन करने वाली जगजननी।
अब दुष्ट बहुत जग में हैं बढ़ चले,
रक्तबीज से भी बड़े आततायी जो।
कितने राक्षस मारे थेे माँ तुमने तो,
अब क्यों देर लगा रही जगजननी।
देखो नाम तेरा ले लेकर कितने ही,
जग के भाव को लूट रहे है माता।
खुद की झोली में लूटलूटकर पापी,
कर रहे खोखला जग को हैं कुछ ।
कुछ उनको सबक सिखा दे माता,
नारी का करते जो अपमान निरन्तर।
दुर्गामाता जयजगकल्याणी जननी ,
आजाओ ले कोई अवतार ही जग में।
डॉ.सरला सिंह
करूं हे माता तेरा वंदन,
नित प्रति करूं तेरा आराधन।
आदि शक्ति जगत कल्याणी,
महिमा तेरी न जाए बखानी।
दुष्ट संहारक पतित उद्धारक,
सदा चमकती बन कर तारक।
ममता की तू मूरत है मां,
मन में बसी तेरी सूरत है मां।
मैं अज्ञानी बालक तेरा,
क्षमा करो अपराध मेरा।
शक्ति स्वरूपा मात भवानी,
कैसे सेवा करे अज्ञानी।
अंतरतम अंधकार से घिरा है,
मोह-माया का पर्दा पड़ा है।
दे सद्बुद्धि कुछ बन जाऊं,
मात मैं तेरा बालक कहाऊं।
कर कल्याण जगत का मैं भी,
तेरी आंखों का तारा बन जाऊं ।
बस इतना उपकार करो मां,
दुखियों का उद्धार करो मां ।
जगत में पाप बढ़ें हैं भारी,
आओ मां करके सिंह सवारी।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं
सृष्टि स्वरूपा, लक्ष्मी कभी सरस्वती, अन्नपूर्णा
अनेकानेक रूप धारणी माँ ।
बच्चों पर संकट आता देख
पल मे दुर्गा, काली , चामुंडा
बन जाती दयानिधि प्यारी माँ ।
खुद संघर्षों की धुप मे तपती
सुख की छाँव हमे ओढाती माँ ।
स्वंय छूप कर रोती सिसकती
हमे देख मुस्काती माँ ।
रोटी की सोंधी सोंधी महक
पायल की मधुर झनक से
घर को स्वर्ग बनाती माँ ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
जय माँ भवानी शेरावाली
लेकर आया दर पर तेरे
आज फिर मैं खाली झोली
हर दुख मेरे भर दो झोली
नवरात्र में तुझे मनाऊं
नित नित ध्यान धराऊं
धूप दीप थाल सजाऊं
दुर्गा दुर्गतिनाशिनी देवी
हरण करो सब दूर्गति मेरी
करूँ कर्म नित परोपकार
कर प्रकाशित सद्गति मेरी
स्वरचित :-मुकेश राठौड़
(जय माता दी)
माँ दुर्गा का नाम सुमरले
वक्त नहीं फिर आयेगा
जीवन का कुछ नहीं भरोसा
पल में क्या हो जायेगा
बचपन बीता नादानी में
और जवानी दीवानी में
देख बुढ़ापा रोयेगी तु
खत्म हो गई जिंदगानी
समय का घोड़ा दौड़ रहा है
लौट के फिर ना आयेगा
दुर्गा माँ का नाम सुमरले
वक्त नहीं फिर आयेगा
मात पिता भाई सुत नारी
इन पर ना अभिमान करो
कोई किसी का नहीं है जग में
यह सच्ची पहचान करो
आयी है तू जग में अकेली
और अकेली जायेगी
माँ दुर्गा का नाम सुमरले
वक्त नही फिर आयेगा
जीवन पर अभिमान करो ना
माटी मे मिल जायेगा
मन मौजी पंछी ना जाने
पगले कब उड़ जायेगा
जग मे काम करो नेकी का
अंत काम जो आयेगा
माँ दुर्गा का नाम सुमरले
वक्त नही फिर आयेगा
अभी समय है कुछ नही बिगड़ा
दुर्गा माँ का ध्यान करो
छोड़ के झूठे झगड़े जग के
मैय्या का सम्मान करो
सच्चा ह्रै दरबार मैय्या का
जो जो माँगे सो फल पायेगा
माँ दुर्गा का नाम सुमरले
मुक्ति तू पा जायेगा
🙏 स्वरचित हेमा जोशी
है तू आधार
सुखो का तू भंडार
माँ तेरे द्वार
२
माँ का आँचल
सुख की है गठरी
बंधी खुशियाँ
३
माँ के चरण
कन्या का रूप लिए
खड़ी है द्वारे
४
लाल चुनरी
करे माँ का श्रृंगार
उम्मीदें भरी
५
माँ के भजन
गुंजे सारा भवन
हर्षाए मन
स्वरचित-रेखा रविदत्त
हाइकु ""माँ""
मेरे सदन
विराजो शैलपुत्री
करूँ वंदन
सजी रंगोली
आई तुम्हारी डोली
पधारो माता
माता की चौकी
सुमन समर्पण
भोग-अर्पण
"पथिक रचना"
चौपाई छन्द
आये सुखद सुभग नवराता।
मंगलमयी मनावहुँ माता।
बन्दहुँ काल रूप चामुण्डा।
खड़ग खपर कर शूल प्रचण्डा।
धरो रूप दानव दल मारन।
जन रंजन महि भार उतारन।
जग जननी नव रूप अनूपा।
सुमिरत जन उवरहिं भव कूपा।
हरहु पाप संताप मिटावहु।
मम मन मन्दिर आतुर आवहु।
मात कृपा सेवक पर कीजे।
जानि अबोध गोद मोहि लीजे।
सृजति हरति पालति संसारहि।
विविधि रूप निज जन हित धारहि।
करहि कलित लीला नाना विधि।
हरहि अधर्म मातु मंगल निधि।
धरहुँ शीश पद तव बहु बारा।
मात करहु दुख सागर पारा।
करहु कृपा संतत कल्यानी।
जन पर होहु प्रसन्न भवानी।
दोहा छन्द
शैल पुत्रि ब्रह्मचारिणी, चन्द्र घन्ट कुष्माण्ड।
नमो स्कन्द कात्यायनी, व्याप रही ब्रह्माण्ड।।
कालरात्रि गौरीमहा, सिद्धीदात्रि स्वरूप।
पुनि पुनि बन्दहुँ सिद्धि प्रद, मैया के नव रूप।।
रामसेवक सिंह गुर्जर
बाह आगरा
********
1
माँ का दुलार
गोदी में भरे स्वप्न
चैन की साँस।
************
2
मन तरंग
माता इंद्रधनुष
भरती रंग।।
***********
3
स्नेहमयी माँ
जीवन दिव्य ज्योति
जगमगाती।।
************
4
माँ की लोरी
मीठी आती निंदिया
स्वप्न से भरी।।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
🙏
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