Saturday, October 13

"धुन"13अक्टूबर 2018




कान्हा तेरी मुरली का
ये कैसा जादू ??
चाहकर भी कर न पाएं 
हम खुद पर क़ाबू।।

तेरी मुरली की मधुर धुन
करे मुझे गुमसुम।
पहले मैं जाऊं.. पहले मैं..
छिड़े गोपियों में जंग।।

भाता है तेरा नटखटी भाव
बतियाने को करे मन।
सब कुछ किया वश में मेरा 
तन मन और धन।।

या तो बन्द कर मुरली वादन,
या बनो आँखो के उद्दीपन।
जन्माष्टमी के इस पावन पर
हर लो सब के व्याकुल मन।।

स्वरचित
सुखचैन मेहरा


🍁
आओ मिल कर दोनो, मुस्काया जाए।
बिन माचिस को कुछ को, जलाया जाए॥
🍁
आग नही ये चाहत होगी,
औरों मे सुलगेगी ।
जाने कितने सुप्त हृदय मे,
प्रीत के दीप जलेगी॥
......
आओ दीपो को मिल, जलाया जाए।
मन के अधियारो को, फिर मिटाया जाए॥
🍁
आँखो में मादकता भर ले,
अधरो से झलकाये ।
कोई कुछ भी कह ना पाए,
ऐसी बात बनाए॥
......
आओ ऐसा धुन, बनाया जाए।
जिसकी सरगम पे सबको, नचाया जाए॥
🍁
शायद कुछ टूटे से दिल मे,
चाहत भर दे हम दोनो।
शर्म के तटबंधो को तोड कर,
कुछ दिल जोडे हम दोनो॥
.......
आओ थोडा प्यार, जताया जाए।
बिन बातों के बात, बढाया जाए॥
🍁
बिन बातो के मुस्काने से,
चाहत को गति मिलती।
शूल भरे से इस जीवन मे,
पुष्प अनेको खिलते है॥
........
आओ बँगिया को, सजाया जाए।
इस प्रेम गली को, महकाया जाए॥
🍁
........
स्वरचित .. Sher singh sarraf


विषय -धुन 
सफलता का गुंबद गर खड़ा करना हो, 
कीर्तिमान नया कोई गढ़ना हो ,
अपनी ही धुन मे रहो मगन 
चाहे काॅटो भरा हो चमन ।
कामना के मुहाने पर बैठ कुछ ना होगा 
धुन की बाॅहें पकड़ 
नित आगे ही आगे बढ़ना होगा ।
ख्वाब नुकीले भले ऑखो की कोर छीलें, 

अरमान रखना सदा गीले ।
जिन चमकीले पत्थरों से लगी चोट 
उन्हे रख लेना बटोर ,
मुस्कराहटों की ओट 
इन्हीं पत्थरों से बनेगा धुन का सुनहरा महल 
यही सोच प्यारे मित्र 
उदासी के दिनों में तू बहल ।

(स्वरचित )सुलोचना सिंह 
भिलाई (दुर्ग )
छत्तीसगढ



दिल के तारों को छेड़ने वाले 

प्यार से मुझको हेरने वाले ।।

तेरे ही यह जल्वे बिखरे हैं 
देखले अब ओ देखने वाले ।।

इन गीतों की धुन सुनता जा
दे रही है ये उसी के हवाले ।।

हर धुन में तूँ ही है समायी 
जो बोले न वो अब कह डाले ।।

कशिश न कम हुई अब तलक
वर्षों ये जीनत रहे सम्हाले ।।

वीणा की तान दिल का अरमान
कहे मुझे यूँ फिर साज सजाले ।।

तूँ न मिलती धुन कहाँ मिलती 
रूह कहे ''शिवम"दिल में बिठाले ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"



संगीत शास्त्र की सूक्ष्म दृष्टि मेंं, 
स्वरारोह अवरोह की लयमय,
स्थिति विशेष सुमधुर शुचि धुन 
दुख में भी हर्षित करती मन।

तारत्व ताल के मिश्रण से,
अदभुत सुर की श्रंखला एक,
श्रवण मुग्ध कर देता उर मन
हो व्यथा भूल श्रोता मोहित।

कर्म भाव की दृष्टि मेंं धुन,
उत्साह अतीव निष्ठा अटूट,
उत्प्रेरित अति होता मानव,
दृष्टि लक्ष्य पर हो प्रतिपल।

धुन पथगामी मनुज सफल,
प्रगति शिखर पाना निश्चित,
जीवन की समृद्धि स्त्रोत धुन
बालक हो या वृद्ध अतीव।

मंत्रमुग्ध धुन के प्रभाववश,
कालजयी होते नर श्रेष्ठ,
परिणाम कर्म के चमत्कारमय,
प्रायः होते सदा सुनिश्चित।
--स्वरचित--
(अरुण)



 गीत तुम संगीत तुम तुम ही गन्धर्व गान हो।
प्राण मन संकल्प तुम तुम ही प्रज्ञा ज्ञान हो।


तुम ही धुन बांसुरी की ताल का तुम थाप हो।
आलाप सा आरम्भ हो संगत सा अवसान हो।

गीत का मुखड़ा कभी और कभी हो अन्तरा।
राग हो वीणा का तुम सुर का तुम उपमान हो।

एक सरस बन्दिश हो तुम ताल की हो गमक।
नाद स्वर राग तुम तुम ही लय और तान हो। 

विपिन सोहल


गीत और संगीत तुम्हीं हो।
तुम्हीं बाँसुरी की धुन हो।

नाच उठता मन ये मेरा।
छेड़ते जब तुम ये धुन हो।

मैं हूँ राधा तूँ है कान्हा।
संयोग से मिले हम हैं।

छेड़ते रहो तुम धुन वंशी की।
नाच उठता मेरा मन है।।
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी


विधा-भक्ति गीत
**************
कान्हा की मुरली की धुन बजने लगी
मन में उमंगे खूब सजने लगी
कान्हा ने छेड़ी है ऐसी तान कि
मैं तो बावरी हो मगन होने लगी 
मुरली की धुन में है कुछ तो ऐसी बात
जो सब को मदहोशी छाने लगी
कान्हा की मुरली.............. 

जब राधा रानी ने सुनी ये धुन
कान्हा संग सपने लगीं वो तो बुन
गोपियों को भी खूब मधुर लगे ये धुन
एक दूजे से बोली सखी तु भी सुन
कान्हा की मुरली............ 

ग्वालों संग गैया चराने जायें श्याम
मुरली वहाँ खूब बजावें घनश्याम 
कामधेनु को धुन खूब भाये श्याम
मोर नाचे और पपीहा करे गुणगान 
कान्हा की मुरली............... ||

स्वरचित *संगीता कुकरेती*


कोई धुन बनाऊं
या गीत कोई गाऊं
पर सुकून के पल
कहां से लाऊं
कोई कविता लिखूं
या कोई गजल
मन बैचेन रहे हरपल
रहूं धरती पर
देखूं आसमान
पर शांति के पल
नहीं आसपास
दिखावे के दंभ में
डूबा संसार
अपनों के लिए दिलों से
गुम होता प्यार
मोबाइल से ही चलते
अब सारे रिश्ते
हकीकत में किसी को
किसी की खबर कहां
जब से फसा मोबाइल में मन
लगा जीवन में दीमक बन
सिमट रहें हैं सबके मन
कैसे कोई धुन बने सरगम
***अनुराधा चौहान***मेरी स्वरचित कविता




शुभ चिंतन मनन करूँ जगदंबे,

धुन सदभाव सुखद में लगी रहे।
भान रहे क्षणभंगुर जीवन अपना,
ये लगन सदैव सुधर्म में लगी रहे।

है शास्वत वोध वोध गाथाओं में,
धुन हो अभिमान विजयी बनने की।
है कर्म प्रधान विश्वास करें गीता पर,
तो धुन हो कालजयी बनने की।

हो धुन संयम सचरित्र पर चलने की।
धुन हो अपने सिद्धांतोंपर चलने की।
नियत लक्ष्य निर्धारित कर लूं अपना,
फिर ये धुन लगे लक्ष्य भेद करने की।

मां शक्तिपुंज संचित करूँ हृदय में
ये ऊर्जा कभी कहीं व्यर्थ न जाऐ।
यदि लगे धुन माता के श्रीचरणों में,
तो आशीष मिले माँ समर्थ बनाऐ।

स्वरचितः ः
इंजी.शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.



अपनी धुन ही है अपनी

वरना दुनिया क्या अपनी

जिसको देखो तन्हाई
जिसने पाली है जितनी
अपनी धुन ही है अपनी
वरना दुनिया क्या अपनी....

मेरी धुन में है तू शामिल
वरना मुझको क्या हासिल..
मेरी ही तू बस है अपनी
वरना दुनिया क्या अपनी.. 

कोई भी रूत आए जाए
हमको क्या तू आ जाए....
इस पगली धुन में है तू अपनी
वरना दुनिया क्या अपनी....

मेरे सफ़र का है तू हमसफ़र 
मेरे हाल की है तुझको फ़िकर
दूर तलक तू है अपनी
वरना दुनिया क्या अपनी
.......
.. राकेश चतुर्वेदी 'राज'


मुझे एक शराबी बना दिया..... 
विषय धुन 
तेरी प्रेम की सुन धुन पिया, 
मेरा धक् धक् धड़के दिल जिया l
मै तो होगयी तेरी बावरी, 
मैंने काहे तुझको दिल दिया l

तूने प्रेम का दीपक जला दिया, 
मै बन गयी तेरी बाती पिया l
भर प्रेम का तू घृत इसमें, 
करेंगे मिल तम दूर पिया l

तू मेरी देह बन पिया, 
मै बन जॉँऊ तेरा मन पिया l
बनकर के तू.. साँस मेरी, 
देदे मुझे अमरत्व पिया l

जीवन की इस बगिया को पिया, 
कुसुम महक ने हरा किया l
तू भोंरा बनके जान मेरी, 
प्रेम का रस तो चखले पिया l

तू वंशी बन जा मेरी पिया, 
मै धुन बनकर इतराऊं पिया l
मिलकर के हम दोनों फिर, 
गायें प्रीत का गीत पिया l
कुसुम पंत 'उत्साही '
स्वरचित 
देहरादून 
उत्तराखंड



धुन मधुर बंशी की सुन
हो गई मैं बावरिया 
अब तो दरश दिखला दो
मेरे कृष्ण कन्हैया

दौड़ी आऊँ पास तेरे मैं
लेकर संग गुजरिया 
तेरी धुन पर नाचूं 
मैं तो बीच बजरिया 

अरे वो कान्हा भूल न जाना 
बन गई मैं तो प्रेम दीवानी 
ऐसे ना जा छोड़ के मुझको
ले चल बना के अपनी रानी 

माखनचोर नंदकिशोर
मुझे ले चल संग मधुवन
जहाँ बंशी की धुन पर
अठखेलियां करते उपवन

पशु पंछी और तितलियां
करते स्वछंद विचरण
सुन मधुर धुन बंशी की
प्रकृति ओढ़े सुंदर आवरण

स्वरचित:-मुकेश राठौड़


"धुन "
मुरली की धुन कान्हा ने छेड़ी
सुन राधा हुई मतवारी 
सुध बुध खोई दौड़ी आई
संग संग सारी सखियाँ आई
बोली राधा!तू कैसी बावरी
तेरी पाजेब कहाँ गुम हुई
राधा बोली मैं तो हुई दीवानी 
श्याम ने जब वंशी बजाई
होश ही ना रही म्हारी

कान्हा की दीवानी थी राधा प्यारी
वृंदावन की गलियों में रास रचाई
गोपियां भी मुरली की धुन की थी 
दीवानी

कान्हा गये परदेश राधा अकुलाई
विरह व्यथा सही ना जाई
पथ निहारते आँखें भी पथराई
मन से कभी मुरली की धुन ना भुलाई

संदेशा भेजा श्याम ना आये 
सम्भल ना पाई राधा रानी
दौड़ी गई श्यामा प्यारी
बोली सुना दे कान्हा
मुरली की वही धुन 
श्याम ने वंशी बजाई 
चरणों में तन मन 
न्योछावर कर गई 
!राधा प्यारी!

स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल



शनिवार १३!९!२०१८!
यह मोहक संबंध हमारा,
आपस में दीवाने दो,
एक दूसरे पर मरते हैं,
आपस मेंपरवाने दो।।१।।
तन की आंखों में ज़र्रों रहते,
मन की आंखों में रहते,
एक दूसरे में खो जाते,
अपनी धुन पर रहते।।२।।
तुमने मुझको झकझोरा है,
स्वामीसंबोधन देकर,
सक्षम किया तुम्हीने केवल,
अपना अनुबंधन देकर।।२।।
चार दिनों की नहीं चांदनी,
नहीं रात इस जीवन में,
मस्ती की मोहिनी बतियाना,
अपने मन दीपों में जलती।।
स्वरचित देवेन्द्र नारायण दास बसना।।


🌷🌷🌷धुन🌷🌷🌷

मेरे देश के प्यारे वीर जवान, 

देश पर करें जान कुर्बान। 

वे होते अपनी धुन के पक्के, 

न बैठे कभी वे थक कर के। 

चाहे सीने पर गोली चलती हो, 

या मौत ही सिर पर टहलती हो। 

वे रहते हैं अपनी धुन में सदा, 

रही मौत से यारी है उनकी सदा। 

लिया देश की रक्षा का जो प्रण, 

उस पर वारा है पूरा जीवन। 

चाहे पत्थर कोई भी बरसाए, 

चाहे कोई आपदा आ जाए। 

हर हाल में साथ खड़े रहते, 

वे हैं अपनी धुन के पक्के । 

बस एक बात सदा मन में, 

जब तक हैं प्राण इस तन में, 

मेरे देश पर आंच न आएगी, 

ये मौत मुझे न छू पाएगी, 

रहते हैं सदा इसी धुन में, 

मां भारती बसी उनके मन में। 

अभिलाषा चौहान 

स्वरचित



मोहे धुन तेरी ही लगी कान्हा 
अब चैन कही भी आये ना 

मीरा मैं तेरी प्रेम दीवानी 
दर्श बिन रहा जाये ना 

तेरी ही धुन में दुनिया भूली 
अब मन कही भी लागे ना 

फिरूँ जोगन बन गली-गली 
ये धुन दुनिया समझ पाए ना 

भक्ति में तेरी मेरे कान्हा 
ये जग बैरी बन जाए ना 

है साथ तू साँसो की तरह 
विष पी के भी प्राण जाए ना 

डॉक्टर प्रियंका अजित कुमार 
स्वरचित




अपनी धुन ही है अपनी

वरना दुनिया क्या अपनी

जिसको देखो तन्हाई
जिसने पाली है जितनी
अपनी धुन ही है अपनी
वरना दुनिया क्या अपनी....

मेरी धुन में है तू शामिल
वरना मुझको क्या हासिल..
मेरी ही तू बस है अपनी
वरना दुनिया क्या अपनी.. 

कोई भी रूत आए जाए
हमको क्या तू आ जाए....
इस पगली धुन में है तू अपनी
वरना दुनिया क्या अपनी....

मेरे सफ़र का है तू हमसफ़र 
मेरे हाल की है तुझको फ़िकर
दूर तलक तू है अपनी
वरना दुनिया क्या अपनी
.......
.. राकेश चतुर्वेदी 'राज'
मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित



तेरी भक्ति की धुन लगी है मुझे
प्रभु तेरी भक्ति की धुन
ओ मेरे बाँके बिहारी
सुन लो मेरी पुकार।

न करूँ मैं आडम्बर कोई
बस भक्ति करूँ दिन -रात
माखन मिश्री की भोग नही है
बस है भक्ति-भाव 

कैसे करूँ मैं तेरी पूजा
ताकि तुम करो मेरे हृदय में वास
धुन लगी है भक्ति की मेरी
सुन लो प्रभु मेरी पुकार।

दुनिया रमी है अपनी धुन में
मुझे है भक्ति की धुन सवार
छेड़ दो ऐसी धुन वंशी की
जिससे राधा दौड़ी आये

जो गूंजे वृन्दावन के गलियारों में
वही धुन बजाओ आज तुम कन्हैया
सुन लो मेरी पुकार मोहन 
कन्हैया सुन लो मेरी पुकार।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।



जिसमें लग जाती है धुन
बढ़ जाते हैं उसमें गुन
जो नहीं यह जगा पाता
उसमें लग जाते हैं घुन। 

जीवन में आनन्द देती धुन
संगीत में जैसे देती धुन 
जिनमें नहीं होती सच्ची धुन
वो तड़पन में सिर को रहते धुन। 

धुन यह कहती लगालो धूनी
सफलता मिलेगी दूनी दूनी
वरना कितना सूत कातोगे
जब हाथ लगेगी केवल पूनी। 

धुन बिना नहीं कुछ होता
किस्मत का पक्ष भी रोता
आसमाॅ की दूरी दुर्लभ रहती
हर अवसर भी हाथ खोता। 

स्वरचित


"धुन"
प्रेम धुन लागी साजन,
चाहे तुझे मेरा मन,
तुझे नैनों में बसाकर,
प्रीत तुझसे लगाकर,
बावरी मै हो गई,
लागे है दुनियाँ नई,
प्रेम धुन तू सुना दे,
कोई तो हल बता दे,
हृदय की प्यास बुझा दे,
नैनों में सपने सजा दे,
मुझे तू अंग लगा ले,
मुझे तू अपना बना ले,
तू दीपक मैं तेरी बाती,
बना ले जीवन साथी।

स्वरचित-रेखा रविदत्त



अपनी ही #धुन में खोया हुआ
देख रहा अपनी ही धारा को
कितना बदल गया हूं मैं
युगों युगों से इंसान की सोच से
फितरत उसकी खतम होती नारी
के अपमान से ।।

द्रौपदी की लाज राज सभा में नीलाम हुयी
सीता ने अग्नी दिव्य के पथ से 
पवित्रता की आन रखी
गौतमी भी शिला होकर अहिल्या बनी
पुत्र ने ही माँ रेणुका का सर काटा दे दी उसकी आहुति ।।

पढ़ लिखकर भी नारी सम्मान से वंचित रही
कलियाँ भी ख़िलनेसे पहले मसली गयी
कोठे पे बिठाया स्वार्थ सिद्ध हेतु
निर्भया जैसे कांड अभी भी है जारी ।।

मैं समय हु ,मुझ में इतना बदलाव?
घृणा होती अपने आप से
स्वार्थ सिद्ध हेतू देश को भी बेच देंगे
गद्दी के लिए हथकंडों की शैय्या पर राजनीति सो रही ।।

स्वरचित तथा मौलिक
डॉ. नीलीमा तिग्गा



एक धुन है ज़िन्दगी भी
लय ओर ताल से चलती है
तो अच्छी लगती हैं
बिगड़ जाए तो
बिन संगीत का गीत हैं ज़िन्दगी
ज़िन्दगी तो लिखी जा चुकी हैं
पहले से ही बहुत कुछ 
इसको बदलने की 
कोशिश ना करो
तुम बस संगीत दो
गुनगुनाती हैं ज़िन्दगी भी
स्वरचित:-
मनोज नन्दवाना



जीवन संगीत है ये 
सुर तुम सजा लो
लिख डालो गीत कोई
आज गुनगुना लो
धुन कोई बना लो जी
आओ मुस्कुरा लो...

कल जाने क्या होगा
किसको खबर है ये
आज इन राहों में 
मीत तुम बना लो
धुन कोई बना लो जी
आओ मुस्कुरा लो...

रूठा है तुमसे जो 
साथी तुम्हारा तो
जाकर उसे तुम 
गले से लगा लो
धुन कोई बना लो जी
आओ मुस्कुरा लो...

स्वरचित 'पथिक रचना'

No comments:

Post a Comment

"अंदाज"05मई2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें   ब्लॉग संख्या :-727 Hari S...