मर्यादा का पाठ पढ़ाने आये थे श्री राम ।
मर्यादा का पर्याय बने जग में श्री राम ।
मर्यादाओं को जानो रहेगा ऊँचा नाम ।
मर्यादा से जिन्दा जग में समाज का नाम ।
नमन करो अग्रजों को जो ये सतत चलाये ।
जो बनीं मर्यादायें उनको सतत निभाये ।
मर्यादाओं को तोड़ने वाले दंड ही पाये ।
एक न एक दिन वो किये पर पछताये ।
मर्यादाओं में छुपा है जग का कल्यान ।
मर्यादाओं का रखना ''शिवम" सदा मान।
मर्यादायें ही बनातीं हैं इंसान की शान ।
हर तरक्की मर्यादाओं में करलो गुणगान ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 18/10/2018
राम मर्यादा
सात्विक आचरण
लोभ तर्पण
२.
मर्यादित 'मैं'
समाज प्रवर्तक
युग पुरुष
३.
लोक कल्याण
मर्यादा पुरुषोत्तम
राम महान
४.
संस्कृति गान
मर्यादा अभिमान
'आर्य' महान
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
१८.१०.२०१८
मर्यादा की सुचिता से वंचित
मानवता का परिवेश आज
आ जाओ राम इस धरा पर
कितने रावण बन गये आज
सीता फिर भी सुरक्षित थी
असुर रावण के दरबार में
आज बेटियां नहीं सुरक्षित
अपने घर में ना बाजार में
है जरूरत उसी मर्यादा की
अब नहीं दिखती संस्कारों में
अब तो हो जाते है कभी भी
बलात्कार मंदिर और मजारों में
करती व्यथित व्याकुल मन
छपती खबरें अखबारों में
कैसे लाएं मर्यादित संस्कार
आम जन के विचारों में
आन पड़ी जरूरत अवतार की
रख लो लाज फिर एक बार
सुन लो विनती "मुकेश" की
करता नम्र निवेदन बारंबार
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
मर्यादा की कैसी हैं ये पहेली
कभी तो हैं साथ कभी अकेली
मर्यादा में बधंकर ही जीवन का कल्याण
मर्यादा में रहकर ही सफल हैं इन्सान .
पानी मर्यादा छोड़े तो सृष्टि का विनाश
वाणी मर्यादा छोड़े तो रिश्तों का नाश
स्त्री मर्यादा लोक लाज छोड़े तो कुल का विनाश
मर्यादा के अनुसार ही चलते हैं जीवन के पहिये .
मर्यादा को जीवन का आधार
बिन मर्यादा सब बेकार
मर्यादा से ही सुखमय हैं संसार
राम ने जीता मर्यादा में समस्त संसार .
मर्यादा हैं थोड़ी कठिन राह
पर जीवन में सफलता वही दिखाती हैं
अन्धकार में रोशनी की किरण जगाती हैं
मर्यादा से जीवन की नैया लगती हैं पार .
स्वरचित:- रीता बिष्ट
श्री राम नाम मर्यादा पुरूषोत्तम
जय जय जय हे श्री राम।
मर्यादा और आदर्शों की प्रतिमूर्ति,
जय जय जय हे श्री राम।
श्री राम आपकी रामायण ही
सभी मर्यादाओं से भरी पडी।
जनमन भावन रामायण यह,
शुभ कामनाओं से अटी पडी।
सभी पात्रो में मर्यादाऐं समाईं
नहीं कोई इनमें मिले अधूरा।
मातपिता ससुराली मर्यादाऐं
जो ज्ञान इन पात्रो से मिले पूरा।
रामायण पारायण हम करलें।
मर्यादाऐं झोली मे हम भर लें।
रामायण श्रीराम के आदर्शों से,
नवजीवन कुसुमित हम करलें।
हैं श्रीराम मर्यादाओं के द्योतक।
हैं श्रीराम आदर्शों के परिपोषक।
युग पुरूष हैं पुरूषोत्तम श्री राम,
नहीं रहे कभीे श्रीप्रजा के शोषक।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
मर्यादा/विधा कविता स्वरचित
हर युग का पुरुष
राम जग में ,
हर युग की नारी
सीता है ।
मर्यादा पुरुषोत्तम
श्री राम हुये
करुणा की जननी
माँ सीता है ।
🍁
मार दिया कन्या को जिसने,
वामा के ही कोख मे।
घर-घर कन्या ढूँढ रहा वो,
नवदुर्गा के भोज मे॥
🍁
टूट गई सब मर्यादा ,
क्यो लाज न आई सोच को।
अस्मित लूट लिया कन्या का,
क्या मतलब इस भोज का॥
🍁
मन मे भाव अगर देवी का,
मतलब फिर ना ढोग का।
शेर कहे मर्यादा रखो,
भक्ति हृदय के सोच का॥
🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
मर्यादा की सुचिता से वंचित
मानवता का परिवेश आज
आ जाओ राम इस धरा पर
कितने रावण बन गये आज
सीता फिर भी सुरक्षित थी
असुर रावण के दरबार में
आज बेटियां नहीं सुरक्षित
अपने घर में ना बाजार में
है जरूरत उसी मर्यादा की
अब नहीं दिखती संस्कारों में
अब तो हो जाते है कभी भी
बलात्कार मंदिर और मजारों में
करती व्यथित व्याकुल मन
छपती खबरें अखबारों में
कैसे लाएं मर्यादित संस्कार
आम जन के विचारों में
आन पड़ी जरूरत अवतार की
रख लो लाज फिर एक बार
सुन लो विनती "मुकेश" की
करता नम्र निवेदन बारंबार
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
तभी परुषों में उत्तम उनको माना
क्यों फिर राम की सीख भूल गए
मर्यादा का पाठ औरतों पर मढ़ गए
जो लांघे अपनी मर्यादा वो गलत है
उसको नहीं मिलता उचित सम्मान है
ये किसने तय किया मापदंड
जो स्त्री को देता बेकार के दंड
अब पुरुषों को मर्यादा का पाठ पढ़ाओ
हर स्त्री को सशक्त बनाओ
कलयुग का तब तिमिर मिटेगा
हर रावण का जब दहन होगा
चलो अपने बेटों को फिर राम बनायें
उन्हें हर स्त्री का सम्मान करना सिखायें
स्वरचित
स्वपनिल वैश्य "स्वप्न"
अहमदाबाद
मर्यादा को जानते हैं
सूर्य चाँद ग्रह और नक्षत्र
जिससे संतुलित है ब्रह्मांड
मर्यादा में रहे शिष्य का आचरण
दिखे शिष्टता और अनुशाशन
रहे मर्यादा मेंआहार और विहार
सुन्दर और स्वास्थ्य शरीर पाता
जीव मर्यादा का उल्लंघन कर
उच्श्रृखल जीवन ही पाया
जिससे आता दुःख और
विपत्तियों का साया
बड़े बुजुर्गों का कहना है
मर्यादा भारतीय संस्कृति का
" गहना है"
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
परिभाषा भी उसकी बदलने लगी
बदलाव के इस भयानक दौर में
मर्यादा ही जीर्ण होने लगी ।
आधुनिकता के छद्म नाम का
ले लिया है उसने सहारा
अपनी पुरातन संस्कृति व सदाचार को
विस्मृत करके उसने दुत्कारा।
कन्या का घर में जब जन्म था होता
लक्ष्मी रूप में सम्मान था तब होता
पैदाईश पर ही उसकी अब तो
शोक ग्रहण है लगने लगा
लिंग परीक्षण तकनीक से जब
जीवन ही उसका मरने लगा।
जिस पिता की छत्र छाया में
खेला करती थी वह
जिस भाई की कलाई को
राखी बाँधा करती थी वह
उन ख़ूनी रिश्तों ने भी अब तो
क्यों अपनी मर्यादा भुलाई ?
अस्मत को लूटने में उसकी
तनिक भी झिझक क्यों नही आई ?
इतना ही घटित नही होता
यौन शोषण का तांडव जारी है
कहीं छिड़काव तेज़ाब का तो
कहीं दहेज प्रथा चलती आरी है ।
अब तो हर पग-क्षेत्र में उसे
अंधकार नज़र आने लगा
उसके अस्तित्व की गरिमा से
खिलवाड़ सर्वत्र क्यों होने लगा ?
दिल उसका रो रहा
आत्मा अब क़राह उठी
निरादर मेरा बहुत हो चुका
मेरी घायल आत्मा सिसकार उठी।
इस जन्मदात्री पालनकर्त्री का
कुछ तो अब ख़्याल करो
लौटा दो मुझको मेरा सम्मान
मत भूलो मानवता का भान
मैं ही नर की नारायणी हूँ
मैं ही तेरा वंश बीज हूँ
उठो ,जागो ,हो जाओ तैयार सभी
संकीर्ण अपनी मानसिकता त्यागो अभी
नारी का सत्कार करो
मर्यादा का पाठ पढ़ो।
स्वरचित
संतोष कुमारी
जीवन सुखमय मान।
अचार संहिता जीवन की
इससे सदा ही जान।।
हुई जहाँ मर्यादा भंग
जीवन गर्त समान
पाप,तमोगुण,राहु सा
गिरता स्व सम्मान।।
मर्यादा की दहलीज को
लक्ष्मण रेखा मान
किया उल्लंघन जिसने भी
पाता जीवन मे व्यवधान।।
इतिहास गवाह है इसका भी
मर्यादा कभी न लांघ
परिणाम सदा ही दुष्कर होते
समझ तनिक इंसान।।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित
विधा पद्द
मर्यादा नारी की
न कम कहूं ना ज्यादा,
बस रखनी है मुझे मर्यादा l
क्यूकि बहु हूँ मै घर की,
रहना है बिलकुल सादा ll
ना माँ घर मेरा, न पति घर,
क्यूँ फिरती रहुँ मै दर बदर l
मायके में बेटी निभाए मर्यादा,
ससुराल मे बहुरानी बनकर ll
नारी हूँ मैं महान हूँ,
दो दो घरो की शान हूँ l
कोई बताये कहाँ हक मेरा,
देखो... बेघर इंसान... हूँ ll
माँ बोली.. अब घर हुआ पराया
सास घर को अपना बनाया l
पर अब बात समझ मे आयी,
सबने अपना काम चलाया ll
विनती करूं में समाज से,
नारी हूँ थोड़ा सम्मान दो
मै भी समाज का हिस्सा हूँ
क्या मैं केवल किस्सा हूँ?
कुसुम पंत उत्साही
देहरादून
उत्तराखंड
बातें मर्यादा की बड़ी बड़ी
नियत में उनके खोट भरी
राम नहीं किसी को बनना
पर सीता की चाह है रखना
आंखों में जिनके मैल भरा
वो कहां देखते पावन चेहरा
मासूम सुमनों के खिलते ही
तोड़ने आ जाती यह दुनिया
नहीं सुरक्षित नारी जीवन
कलयुग के इन हैवानों से
कितने ही युग बीत गए
बीत गईं कितनी सदियां
नारीे जीवन का अभिशाप बनी
हर युग में रावण की दुनिया
अब रावण तुम चेत जाओ
नारी शक्ति है कमजोर नहीं
रोक सके उसके कदमों को
ऐसा किसी में जोर नहीं
***अनुराधा चौहान***मेरी स्वरचित कविता
शीर्षक"मार्यादा"
यूं ही नही राम"-मार्यादा पुरुषोत्तम" कहलाये।
किये जग मे उतम काम,आचरण उतम दिखलाये
गये वन को,छोड़कर राजपाट
रखने पिता वचन को मान
प्राणों से प्यारी सीता को
किये स्वयं से अलग
राजा धर्म निभाने को
लिए कठोर निर्णय
नही बना है"मार्यादा"शब्द
सिर्फ राम को निभाने को
हमें भी मार्यादा के अंदर
रहकर करना है अपना काम
राजा रहे मार्यादित तो
प्रजा भी रहती मार्यादा मे
गर सभी रहे मार्यादा मे
तो सुन्दर बनता है समाज
गर नदियां तोड़े अपनी मार्यादा
तो भारी विनाश लाती है
मानव तोड़े मार्यादा तो
समाज विघटित हो जाता हैं
सुन्दर समाज के लिए
हमें आचरण सुन्दर रखना होगा
सुन्दर आचरण के लिए
हमें मार्यादा मे रहना होगा।
स्वरचित-आरती श्रीवास्तव।
तुम कुल के दीपक हो
मैं दो कुलों की मर्यादा।
मुक्त उच्छ्वास दीपक को
पिंजरबद्ध रहती मर्यादा।
हरपल पंख कतरे जाते
हरपग मेरे खतरे आते
नीति अनीति का मुझे बोध
फिर मेरे उड़ान पर क्यूँ रोध?
परायेपन का दंश औ ताप
चुपचाप है सहती मर्यादा।
मुझे भी उन्मुक्त उड़ने दो
है आज ये कहती मर्यादा।
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
विश्रृंखल होता समाज,
संबंध होते तार-तार।
हो रहा चीरहरण,
भारतीय संस्कृति का।
बन गए राम प्रतीक मात्र
कहां आचरण में दिखते
मर्यादा पुरुषोत्तम।
कहां है रामराज्य?
नारी की अस्मत
लुटती सरे बाजार
मासूम कलियाँ भी
होती हैवानियत का शिकार।
वृद्धाश्रम में रोते मां-बाप,
भोगते वनवास।
होता रोज रिश्तों का कत्ल,
होता हर पल आदमी का शिकार।
अमर्यादित हो रहा समाज,
पनप रहे धोखे-फरेब के वृक्ष,
उजड़ रहा विश्वास का गुलशन,
सूख रहा स्नेह - त्याग का पुष्प,
कर भंग अपनी मर्यादा
बो रहा विष की अमर बेल।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
पाठ मर्यादा का ,
नारी को ही सिखलाते,
रिश्तों की मर्यादा को,
पुरूष वर्ग कहाँ निभाते,
मर्यादा को जो लाँघ कर,
पाप को अपनाएगा,
इस समाज में ,
कैसे वो रह पाएगा,
ओढ़ मर्यादा का आवरण,
जग में सम्मान पाएगा,
बढ़ा कदम जीवन में,
आसमान को छूने जाएगा।
स्वरचित-रेखा रविदत
कहूँ एक बार फिर मै मेरा मन प्राण तुम हो।
तुम्ही आविर्भाव मेरा और अवसान तुम हो।
विचारों में विचरती कल्पना के रंगों में रंगी।
निश्चिन्तता का योग और अनुमान तुम हो।
पुष्प सी सज्जा लिए सुगन्धा हो मकरन्द सी।
उपमा अप्रतिम लावण्य की उपमान तुम हो।
वाणी से अर्पित गीतांजलि तुम हो आराधना।
साधना का मेरी उत्कर्ष हो उत्थान तुम हो।
आरती हो पूजा हो तुम अर्चना का हो सुमन।
मन के मन्दिर की हो प्रतिमा प्रतिमान तुम हो।
स्नेह की वर्षा हो तुम ही गीतिका तुम रागिनी।
मन की मर्यादा का मान हो अभिमान तुम हो।
मन की वीणा के स्पन्दन में बसा अनुराग हो।
श्रंगार हो तुम छन्द के प्रणय का गान तुम हो।
विपिन सोहल
यदी शान्त मन से सोचे तो पायेगे
कितनी ही बार जीवन मे टूटी है हमसे मर्यादा
पहली बार तब तोड़ी थी मर्यादा
जब जताई थी
पिता के अनुभव से असहमति
दूसरी बार तब टूटी थी मर्यादा
जब दिया था माँ को जवाब
क्योंकि हम इतने बड़े हो गये थे
माता पिता को जवाब दे बैठे
और बार-बार अपनी मर्यादा खो बैठे, जैसे ही बड़े हुए,
फिर इश्क के नाम पर लगाये यहाँ वहाँ चक्कर , की थी कभी लड़कियों के साथ छेड़छाड़ अपने हित के लिए कितनी बार तोड़ी थी मर्यादा, जब हम ही मर्यादा में नहीं बंध सके, तो भला अपने बच्चों को कैसे मर्यादित मैं रहना सिखायेंगे
जो दिया है बुजुर्गों को वहीं तो हम पायेंगे भला हम बच्चों को कैसे मर्यादा सिखायेंगे,
यदि रोकना है इन्हें तो वक्त अभी भी है हम सब के पास बड़े बुजुर्गों के अनुभव से सीखने और बच्चों को सिखाने का मानना ही होगा हमें उनके संस्कार उनकी मर्यादा गढ़ने को अच्छा परिवेश अच्छा देश
अमर्यादित मैं होकर ना जाने कितनी बार बड़े बुजुर्गों का कर देते हैं हम अपमान नारी का भी नहीं करते हम मान ना जाने कितने लोगों की आत्मा का कर जाते हैं कत्लेआम ना जाने कितने गरीब अपंग अनाथ वे पशुओं को धूतकारते जाते हैं
फिर भी हम खुश होते हैकि
मर्यादित जीवन हम जीते हैं
🙏स्वरचित हेमा जोशी 🙏
लेखन शुद्धि ****
मर्यादित रचना
प्रखर बुद्धि
मर्यादा अख्या****
रामायण रचना
राम व्याख्यान
आधिदैविक****
मर्यादित जीवन
लंका वाटिका
अवलंबन****
मर्यादा हनुमान
सीता जीवन
उन्नति पथ
मर्यादित जीवन
बढ़ते पद****
स्वरचित आशा पालीवाल पुरोहित राजसमंद
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