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ब्लॉग संख्या :-696
विषय मन पसन्द विषय लेखन
विधा काव्य
28 मार्च 2020,शनिवार।
विश्व मध्य में मचा सन्नाटा
सारा ही जग जूझ रहा है।
हमसे क्या अपराध हुआ ?
हर जन प्रभु पूछ रहा है।
देवालय विद्यालय बंद है
बंद है खिड़की दरवाजे।
शादी उत्सव सब बंद हैं
कंही न बजते गाजे बाजे।
सड़कों पर छाया सन्नाटा
सारे वाहन अभी बंद हैं।
रसद सामग्री कम हो रही
आशा की किरणें चंद हैं।
नहीं सुना था नहीं देखा था
वैसा सभी हम देख रहे हैं।
दिनभर घर में कैदी बनकर
हम विपदा से जूझ रहे हैं।
हर सिर पर मौत नाच रही
भयभीत सब दुनिया सारी।
कभी कल्पना की नहीं थी
ऐसी भी होती है महामारी।
नये संकट के बादल फटते
मृत्युदर यह रोज बढ़ रही।
कभी इतिहास में पढ़ा नहीं
वह घटनाएं आज घट रही।
त्राहि त्राहि मची हुई जग में
संकटहार कोई नहीं दिखता।
हम नतमस्तक चरण प्रभुजी
बिना आपके पत्ता न हिलता।
स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
28 मार्च 2020,शनिवार।
विश्व मध्य में मचा सन्नाटा
सारा ही जग जूझ रहा है।
हमसे क्या अपराध हुआ ?
हर जन प्रभु पूछ रहा है।
देवालय विद्यालय बंद है
बंद है खिड़की दरवाजे।
शादी उत्सव सब बंद हैं
कंही न बजते गाजे बाजे।
सड़कों पर छाया सन्नाटा
सारे वाहन अभी बंद हैं।
रसद सामग्री कम हो रही
आशा की किरणें चंद हैं।
नहीं सुना था नहीं देखा था
वैसा सभी हम देख रहे हैं।
दिनभर घर में कैदी बनकर
हम विपदा से जूझ रहे हैं।
हर सिर पर मौत नाच रही
भयभीत सब दुनिया सारी।
कभी कल्पना की नहीं थी
ऐसी भी होती है महामारी।
नये संकट के बादल फटते
मृत्युदर यह रोज बढ़ रही।
कभी इतिहास में पढ़ा नहीं
वह घटनाएं आज घट रही।
त्राहि त्राहि मची हुई जग में
संकटहार कोई नहीं दिखता।
हम नतमस्तक चरण प्रभुजी
बिना आपके पत्ता न हिलता।
स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
🌷सुनो - बटोही🌷
🌻🌻🌻🌻🌻🌻
???????????
जल बचाओ
जल है तो कल है
इससे
जीव जगत के
बचे रहने की
फूल वारंटी है........🌹
पेड़ लगाओ
पेड़ होंगे तो
जंगल होंगे
जंगल होंगे तो
मंगल ही मंगल होगा
अस्तु,जंगल बचाओ
इसके बचे होने से
धरती के बचे होने की
सौ फीसदी ग्यारंटी है...........🌹
🌷🌷🌷🌷🌷🌷
★★★★★★★★★★★★★¶★¶★★★
💐💐श्रीराम साहू💐💐 अकेला,बसना💐,36,गढ़
🌻🌻🌻🌻🌻🌻
???????????
जल बचाओ
जल है तो कल है
इससे
जीव जगत के
बचे रहने की
फूल वारंटी है........🌹
पेड़ लगाओ
पेड़ होंगे तो
जंगल होंगे
जंगल होंगे तो
मंगल ही मंगल होगा
अस्तु,जंगल बचाओ
इसके बचे होने से
धरती के बचे होने की
सौ फीसदी ग्यारंटी है...........🌹
🌷🌷🌷🌷🌷🌷
★★★★★★★★★★★★★¶★¶★★★
💐💐श्रीराम साहू💐💐 अकेला,बसना💐,36,गढ़
दूसरी प्रस्तुति
🍁🍁🍁🍁🍁🍁
🍁🌳🎖️🌲🌹🏵️
जिन्हें पता है
ख़ुशी क्या होती है
जिन्हें मालुम है
आनन्द का राज
वो ढूंढ़ ही लेते हैं
हर हाल में आनन्द
और ख़ुशी के तमाम
उत्स/सूत्र/उपाय
वे अतीत को भूलकर
व भविष्य से बेफिक्र हो
वर्तमान में जीने के
अभ्यासी होते हैं,जो
लॉक डाऊन
जैसे हालातों में भी
अपना गुजर-बसर
कर लेते हैं ख़ुशी-ख़ुशी
लेकिन वो क्या करें जी,
जिनका न तो
भूत- भविष्य-वर्तमान ही
सुरक्षित है
जो रोज कमाते,
रोज खाते हैं
नित कुँआ खोदते
नित जल पीते हैं।
इस भीषण लॉक डाऊन में,
घर पर तो रहना मुमकिन नहीं...?
क्या आनन्द व खुशियाँ
उधार भी मिलती हैं...??
💐🌻🌷🏆🍁🏵️
🍁🍁🍁🍁🍁🍁
🍁🌳🎖️🌲🌹🏵️
जिन्हें पता है
ख़ुशी क्या होती है
जिन्हें मालुम है
आनन्द का राज
वो ढूंढ़ ही लेते हैं
हर हाल में आनन्द
और ख़ुशी के तमाम
उत्स/सूत्र/उपाय
वे अतीत को भूलकर
व भविष्य से बेफिक्र हो
वर्तमान में जीने के
अभ्यासी होते हैं,जो
लॉक डाऊन
जैसे हालातों में भी
अपना गुजर-बसर
कर लेते हैं ख़ुशी-ख़ुशी
लेकिन वो क्या करें जी,
जिनका न तो
भूत- भविष्य-वर्तमान ही
सुरक्षित है
जो रोज कमाते,
रोज खाते हैं
नित कुँआ खोदते
नित जल पीते हैं।
इस भीषण लॉक डाऊन में,
घर पर तो रहना मुमकिन नहीं...?
क्या आनन्द व खुशियाँ
उधार भी मिलती हैं...??
💐🌻🌷🏆🍁🏵️
नमन मंच : भावों के मोती
शीर्षक - ।। खबर समाचार ।।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
ऐ चाँद ! मुझे उनका पता दे
या मेरी खबर उन्हे बता दे ।।
तेरा हमशक्ल है तूने देखा है
मेरे हाल की उन्हे इत्तला दे ।।
कब से तड़फ रहा हूँ दीदार को
क्या उनकी रज़ा वो रज़ा बता दे ।।
अफ़सुर्दगी का आलम क्या कहूँ
रातों में नींद नही वो नींद ला दे ।।
किस्मत रूठी उन्हे खोकर'शिवम'
किस्मत की खातिर वो मुस्कुरा दे ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 28/03/2020
शीर्षक - ।। खबर समाचार ।।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
ऐ चाँद ! मुझे उनका पता दे
या मेरी खबर उन्हे बता दे ।।
तेरा हमशक्ल है तूने देखा है
मेरे हाल की उन्हे इत्तला दे ।।
कब से तड़फ रहा हूँ दीदार को
क्या उनकी रज़ा वो रज़ा बता दे ।।
अफ़सुर्दगी का आलम क्या कहूँ
रातों में नींद नही वो नींद ला दे ।।
किस्मत रूठी उन्हे खोकर'शिवम'
किस्मत की खातिर वो मुस्कुरा दे ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 28/03/2020
।। मेरा पथ ।।
मेरा पथ उस बवण्डर में जा चुका है
जिसमें तुम गुम-सुम सी बैठी हो,
उस अंधियारे मुख के बाहर रुखसत है
जिसको तुम कल्पना का नाम देती हो।
बता दो, उन सुनसान राहों से गुजरे कैसे
जिस पथ पर हमने-तुमने स्वप्न संजोये हो,
नादान उन स्वप्न को फिर से संजोने में
क्यूँ तुम मेरा इम्तिहान ले रही हो।
बेशक हमने ही कोई गलती की है
इस वजह राह मुश्किल कर चली हो
पर उन हँसी पलो को यूँ न ले जाओ
जिसमें तुम्हारी रूह बसी हो।
पूरी तरह बदलने के बाद भी
क्यूँ मुझसे बात नही करती हो
हरदिन हरपल यादों में आकर
न जाने कितने सितम ढाती हो।
तुम्हे देखने के इंतज़ार मे ही
रात-रातभर आँख नही आती है
सदियों से बंद आँखों में आती हो
कभी हकीकत में भी आया करो
एक दिन आँख खुलने पर तुम्हें पाऊ
बरसात में बातें कर तुम्हे रिझाऊ
तुम्हारी गोद मे सर रखकर
बस! तुम्हें ही तकता जाऊ।
इश्क़ सफर में मिलने की
आखरी ख्वाहिश है हमारी
इस जन्म में भले ही न मिली
अगले जन्म में तुम्हे ही पाऊ
बंद पड़ी जीवन की घड़ी को
मिलन के बहाने शुरू करो
एक ना एक दिन जरूर आना
मुझे जगाना, मुझे सताना।
भाविक भावी
मेरा पथ उस बवण्डर में जा चुका है
जिसमें तुम गुम-सुम सी बैठी हो,
उस अंधियारे मुख के बाहर रुखसत है
जिसको तुम कल्पना का नाम देती हो।
बता दो, उन सुनसान राहों से गुजरे कैसे
जिस पथ पर हमने-तुमने स्वप्न संजोये हो,
नादान उन स्वप्न को फिर से संजोने में
क्यूँ तुम मेरा इम्तिहान ले रही हो।
बेशक हमने ही कोई गलती की है
इस वजह राह मुश्किल कर चली हो
पर उन हँसी पलो को यूँ न ले जाओ
जिसमें तुम्हारी रूह बसी हो।
पूरी तरह बदलने के बाद भी
क्यूँ मुझसे बात नही करती हो
हरदिन हरपल यादों में आकर
न जाने कितने सितम ढाती हो।
तुम्हे देखने के इंतज़ार मे ही
रात-रातभर आँख नही आती है
सदियों से बंद आँखों में आती हो
कभी हकीकत में भी आया करो
एक दिन आँख खुलने पर तुम्हें पाऊ
बरसात में बातें कर तुम्हे रिझाऊ
तुम्हारी गोद मे सर रखकर
बस! तुम्हें ही तकता जाऊ।
इश्क़ सफर में मिलने की
आखरी ख्वाहिश है हमारी
इस जन्म में भले ही न मिली
अगले जन्म में तुम्हे ही पाऊ
बंद पड़ी जीवन की घड़ी को
मिलन के बहाने शुरू करो
एक ना एक दिन जरूर आना
मुझे जगाना, मुझे सताना।
भाविक भावी
दिनांक-२८/३/२०२०
दिन -शनिवार
विधा -स्वतंत्र
कविता
अब मुझे बचपन की याद नहीं आती.
वो खेलकूद के दिन, वो रजाई में लिपटी रातें.
स्कूल से घर के रास्ते में, वो घण्टों की बातें.
न जाने क्यूँ पर मुझे वापस नहीं बुलाती.
अब मुझे बचपन की याद नहीं आती....
दूर चौराहे वाली पान की दूकान.
उसके बाजू लगती, कुल्फी वाले की मचान .
कायम है,मेरी यादों में, स्वाद अभी भी बाकी.
फिर भी,अब मुझे बचपन की याद नहीं आती.
याद है वो, छोटा सा शहर, उंगलियों पर.
कौन गली कहाँ निकलेगी, किस चौराहे पर.
अब वो गलियाँ वापस नहीं बुलाती.
क्योंकि, अब मुझे बचपन की याद नहीं आती.
जिम्मेदारियों , और उलझनों ने जकड़ रखा है.
या फिर मैं बड़ी हो गयी, ये सोच लिया है.
शायद इसलिए उन दोस्तों की याद नहीं आती.
अब समझी क्यों , बचपन की याद नहीं आती.
तनुजा दत्ता
दिन -शनिवार
विधा -स्वतंत्र
कविता
अब मुझे बचपन की याद नहीं आती.
वो खेलकूद के दिन, वो रजाई में लिपटी रातें.
स्कूल से घर के रास्ते में, वो घण्टों की बातें.
न जाने क्यूँ पर मुझे वापस नहीं बुलाती.
अब मुझे बचपन की याद नहीं आती....
दूर चौराहे वाली पान की दूकान.
उसके बाजू लगती, कुल्फी वाले की मचान .
कायम है,मेरी यादों में, स्वाद अभी भी बाकी.
फिर भी,अब मुझे बचपन की याद नहीं आती.
याद है वो, छोटा सा शहर, उंगलियों पर.
कौन गली कहाँ निकलेगी, किस चौराहे पर.
अब वो गलियाँ वापस नहीं बुलाती.
क्योंकि, अब मुझे बचपन की याद नहीं आती.
जिम्मेदारियों , और उलझनों ने जकड़ रखा है.
या फिर मैं बड़ी हो गयी, ये सोच लिया है.
शायद इसलिए उन दोस्तों की याद नहीं आती.
अब समझी क्यों , बचपन की याद नहीं आती.
तनुजा दत्ता
मुझको लगता है......?🤔
मुझको लगता है,ये तृतीय विश्व युद्ध आगाज है।
चीन ने वायरस भेज, कर दी इसकी शुरुआत है।
मौत तांडव हो रहा,नहीं आ रहा कोई भी पास है।
यह कैसी बीमारी,अपना अपनों से डरा आज है।
जैविक हथियार बना, प्रयोग संपूर्ण विश्व किया,
जीवों का बहाना कर, कर दिया अपना काम है।
बरसों से खाया,उनका असर आज नजर आया।
गुमराह हमें कर,कहीं कर रहा वो अपना काम है।
पूरी दुनिया में फैला,देखो बहुत भारी विनाश है।
यही एक आज,बहुत गंभीर विचारणीय बात है।
पूर्व अनुमान है, विश्व युद्ध करेगा मानवता नाश,
कोरोना का भयावह रूप,इसका ही तो सबूत है।
कोरोना वायरस बनाया,पूरी दुनिया में फैलाया,
मुझको लगता, यह तृतीय विश्वयुद्ध आगाज है।
पर आप डरना नहीं, मोदी जी हमारे साथ है।
जनहित तत्काल निर्णय ले,देश को बचाया है।
सतयुग में लक्ष्मण रेखा ,लक्ष्मण जी ने खींची,
कलयुग मोदी जी भी खींच रेखा,देश बचाया है।
मोदी जी है सब संभव,बस इतना याद रखना।
कोरोना क्या इसका बाप,मोदी डर भागना है।
कहती वीणा,सब थाली बजा उत्सव मनाया है।
उसी मोदी को तारणहार बन,देश को तराना है
वीणा वैष्णव
कांकरोली
मुझको लगता है,ये तृतीय विश्व युद्ध आगाज है।
चीन ने वायरस भेज, कर दी इसकी शुरुआत है।
मौत तांडव हो रहा,नहीं आ रहा कोई भी पास है।
यह कैसी बीमारी,अपना अपनों से डरा आज है।
जैविक हथियार बना, प्रयोग संपूर्ण विश्व किया,
जीवों का बहाना कर, कर दिया अपना काम है।
बरसों से खाया,उनका असर आज नजर आया।
गुमराह हमें कर,कहीं कर रहा वो अपना काम है।
पूरी दुनिया में फैला,देखो बहुत भारी विनाश है।
यही एक आज,बहुत गंभीर विचारणीय बात है।
पूर्व अनुमान है, विश्व युद्ध करेगा मानवता नाश,
कोरोना का भयावह रूप,इसका ही तो सबूत है।
कोरोना वायरस बनाया,पूरी दुनिया में फैलाया,
मुझको लगता, यह तृतीय विश्वयुद्ध आगाज है।
पर आप डरना नहीं, मोदी जी हमारे साथ है।
जनहित तत्काल निर्णय ले,देश को बचाया है।
सतयुग में लक्ष्मण रेखा ,लक्ष्मण जी ने खींची,
कलयुग मोदी जी भी खींच रेखा,देश बचाया है।
मोदी जी है सब संभव,बस इतना याद रखना।
कोरोना क्या इसका बाप,मोदी डर भागना है।
कहती वीणा,सब थाली बजा उत्सव मनाया है।
उसी मोदी को तारणहार बन,देश को तराना है
वीणा वैष्णव
कांकरोली
करोना को कोई रोको ना
***************************
इस करोना को कोई तो रोको ना
हाथ धोकर क्यों पीछे पड़ा है,बोलो ना
ये कैसी दहशत कोई तो समझाओ ना !
इसे देश विदेश घूमने की आज़ादी की
न वीसा ,न अइसोलेशन की पाबंदी
और हम अपने ही घर में बने हैं क़ैदी ।
यूँ डर कर कोई कब तक जीए,सोचो ना।
इसका क्या बिगाड़ा है हमने
आ गया ये जो साँप सा डँसने
सर्दी खाँसी से भी सब लगे हैं डरने
सब कहते हैं ,किसी से हाथ मिलाओ “ना “।
बच्चों की तो समझो खुल गई लाटरी
न पढ़ाई न परीक्षा ,दिन रात धमाचौकड़ी
साँझ सकारे किचन में माँ ,किससे कहती
“सब लॉक डाउन,किचन भी लॉक आउट करोना “।
डॉक्टरस भी है सब परेशान
सरकार,नेता ,बाबू सब हैरान
देखो तो करोना वायरस की शान
पलक झपकते लगा गया सबके जी को रोना !
कल तक हमारी संस्कृति को तुच्छ जानते थे
हगिंग और हेनडशेकिंग को ही बड़ा मानते थे
हाथ जोड़कर नमस्ते कहने पर जो तब हँसते थे
वो हाथ छुड़ाकर आज कह रहे हैं “नमस्ते करो ना !”
गोविंद से नाता तोड़ा,कोविद ने रिश्ता जोड़ा
आँखों में समन्दर,हाथ धोने को पानी थोड़ा
चाँद को छूने वाले हाथों को कैसा मरोड़ा !
ज़िंदगी का चमन उजाड़ गया ये ‘वायरस’ घिनौना!
करो ये नहीं वो नहीं,मिलो किसी से नहीं
ज़िंदगी को कर्फ़्यू ,मौत सड़कों पर पसरी
करोना ले उड़ी होंठों से हँसी,दिलों से ख़ुशी
ज़िंदगी बदरंग और नीरस कर गया ये ज़ालिम करोना !
बहुत दूर निकल आए थे अपने घर से
अपने परिवार से,अपने रिश्ते नातों से
चलो परिचय कराएँ खुद का खुद से ।
सबकी ख़ुशहाली के लिए लक्ष्मण रेखा पार करो ना
चलो सब एकजुट होकर इस पर वार करें
मन में दृढ़ संकल्प से इसकी हार करें
ये आगे बढ़ने न पाए ऐसा मोर्चा तैयार करें
फिर से गूँजे हँसी की गूँज,करोना को पड़ जाए रोना ।
स्वरचित,सर्वाधिकार सुरक्षित(c)भार्गवी रविन्द्र......बेंगलोर
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इस करोना को कोई तो रोको ना
हाथ धोकर क्यों पीछे पड़ा है,बोलो ना
ये कैसी दहशत कोई तो समझाओ ना !
इसे देश विदेश घूमने की आज़ादी की
न वीसा ,न अइसोलेशन की पाबंदी
और हम अपने ही घर में बने हैं क़ैदी ।
यूँ डर कर कोई कब तक जीए,सोचो ना।
इसका क्या बिगाड़ा है हमने
आ गया ये जो साँप सा डँसने
सर्दी खाँसी से भी सब लगे हैं डरने
सब कहते हैं ,किसी से हाथ मिलाओ “ना “।
बच्चों की तो समझो खुल गई लाटरी
न पढ़ाई न परीक्षा ,दिन रात धमाचौकड़ी
साँझ सकारे किचन में माँ ,किससे कहती
“सब लॉक डाउन,किचन भी लॉक आउट करोना “।
डॉक्टरस भी है सब परेशान
सरकार,नेता ,बाबू सब हैरान
देखो तो करोना वायरस की शान
पलक झपकते लगा गया सबके जी को रोना !
कल तक हमारी संस्कृति को तुच्छ जानते थे
हगिंग और हेनडशेकिंग को ही बड़ा मानते थे
हाथ जोड़कर नमस्ते कहने पर जो तब हँसते थे
वो हाथ छुड़ाकर आज कह रहे हैं “नमस्ते करो ना !”
गोविंद से नाता तोड़ा,कोविद ने रिश्ता जोड़ा
आँखों में समन्दर,हाथ धोने को पानी थोड़ा
चाँद को छूने वाले हाथों को कैसा मरोड़ा !
ज़िंदगी का चमन उजाड़ गया ये ‘वायरस’ घिनौना!
करो ये नहीं वो नहीं,मिलो किसी से नहीं
ज़िंदगी को कर्फ़्यू ,मौत सड़कों पर पसरी
करोना ले उड़ी होंठों से हँसी,दिलों से ख़ुशी
ज़िंदगी बदरंग और नीरस कर गया ये ज़ालिम करोना !
बहुत दूर निकल आए थे अपने घर से
अपने परिवार से,अपने रिश्ते नातों से
चलो परिचय कराएँ खुद का खुद से ।
सबकी ख़ुशहाली के लिए लक्ष्मण रेखा पार करो ना
चलो सब एकजुट होकर इस पर वार करें
मन में दृढ़ संकल्प से इसकी हार करें
ये आगे बढ़ने न पाए ऐसा मोर्चा तैयार करें
फिर से गूँजे हँसी की गूँज,करोना को पड़ जाए रोना ।
स्वरचित,सर्वाधिकार सुरक्षित(c)भार्गवी रविन्द्र......बेंगलोर
दिनांक-28/03/2020
विषय- स्वतंत्र लेखन
कल्पना का क्या करूं मैं श्रृंगार
लेखनी ,अथाह वेदना का शिकार।
जिंदगी है घबराई ,मौत से करार
यह है मेरे अपने स्वतंत्र विचार।।
विचार हैं राजनीतिक दल के दलाल
वक्त की मजबूरियां होती है मलाल।
अश्क-ए- गम पी के सिसकते काल
हर बदन निचड़ रहा रक्त लाल।।
रौद डाला गुलिस्ता का अमन
दर्द से सिसकता है ये चमन।
किस घड़ी उठ जाएगी मैयत मेरी
वेदना करती मुझ पे प्रबल प्रहार।।
स्वरचित
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
विषय- स्वतंत्र लेखन
कल्पना का क्या करूं मैं श्रृंगार
लेखनी ,अथाह वेदना का शिकार।
जिंदगी है घबराई ,मौत से करार
यह है मेरे अपने स्वतंत्र विचार।।
विचार हैं राजनीतिक दल के दलाल
वक्त की मजबूरियां होती है मलाल।
अश्क-ए- गम पी के सिसकते काल
हर बदन निचड़ रहा रक्त लाल।।
रौद डाला गुलिस्ता का अमन
दर्द से सिसकता है ये चमन।
किस घड़ी उठ जाएगी मैयत मेरी
वेदना करती मुझ पे प्रबल प्रहार।।
स्वरचित
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
विषय -फुरसत के वक्त
कविता
******************
सुनसान सब गली मोहल्ले
सुनसान चौराहे सब
सूना सूना घर आँगन अब
विरान पड़े गलियारे सब
इंसान का इंसान से अब
दूर रहना मजबूरी है
दिल को रखना करीब सदा
रिश्तो की क्या मजबूरी है?
जब समय बहुत था तब तो
तनिक नही समझ आया
काल्पनिक दुनिया में डूबे
अपनों के लियें नही साया
सबक आज सिखलाता है
एक दूजे को समय मिला
सारे शिकवे गिले दूर हो
अब न कहना वक्त ना मिला
बच्चों के अरमानो तक का
तुमने सौदा कर डाला है
उनकी ख़ुशी के बदले ही
कितनी दौलत कमा डाला है
एक पल को मोहताज सभी
तुम्हें वक्त बड़ा दुसवार लगा था
महीनो हप्तो में ही केवल
मुश्किल से एक रविवार मिलाथा
बूढी माँ के आँखों से ही
एक पल में ओझल होते थे
और पिता के पास बैठते ही
सहसा गूगल में खोते थे
अब तो समय बहुत है आया
सबको एक दूसरे से है मिलाया
अपने रिश्तो को पहचानो अब
मुराझाए सारे रिश्तो को
जम कर खुशियां बरसाओ अब
छबिराम यादव छबि
लोटाढ मेजा प्रयागराज
कविता
******************
सुनसान सब गली मोहल्ले
सुनसान चौराहे सब
सूना सूना घर आँगन अब
विरान पड़े गलियारे सब
इंसान का इंसान से अब
दूर रहना मजबूरी है
दिल को रखना करीब सदा
रिश्तो की क्या मजबूरी है?
जब समय बहुत था तब तो
तनिक नही समझ आया
काल्पनिक दुनिया में डूबे
अपनों के लियें नही साया
सबक आज सिखलाता है
एक दूजे को समय मिला
सारे शिकवे गिले दूर हो
अब न कहना वक्त ना मिला
बच्चों के अरमानो तक का
तुमने सौदा कर डाला है
उनकी ख़ुशी के बदले ही
कितनी दौलत कमा डाला है
एक पल को मोहताज सभी
तुम्हें वक्त बड़ा दुसवार लगा था
महीनो हप्तो में ही केवल
मुश्किल से एक रविवार मिलाथा
बूढी माँ के आँखों से ही
एक पल में ओझल होते थे
और पिता के पास बैठते ही
सहसा गूगल में खोते थे
अब तो समय बहुत है आया
सबको एक दूसरे से है मिलाया
अपने रिश्तो को पहचानो अब
मुराझाए सारे रिश्तो को
जम कर खुशियां बरसाओ अब
छबिराम यादव छबि
लोटाढ मेजा प्रयागराज
दिनांक-28 /03/2020
मन पसन्द विषय लेखन के तहत-
विधा- ग़ज़ल
मापनी-1222 1222 1222 1222
क़ाफ़िया- बरकात (आत स्वर)
रदीफ़- लिख देना।
========================
खुशी की बात बन जाए उसे बरकात लिख देना।
नहीं मिलती खुशी की रौशनी ज़ुलमात लिख देना।।
********************************
महरबानी अगर तुम कर सको तो मुझ को बहतर है,
गुज़ारिश है सनम हक़ में मेरे बरसात लिख देना।।
*********************************
जिसे मैं ढूँढ़ता फिरता ज़रूरी काम है उससे,
नहीं पाया कहीं मैंने कुठाराघात लिख देना।।
*********************************
गया है ख़त उन्हें देने को कासिद आ रहा होगा,
अगर लौटा नहीं तो बद मेरे हालात लिख देना।।
*********************************
मुहब्बत टूट जाए तो मुहब्बत मत उसे कहना,
बिना पर नफ़रतों की फिर उसे आघात लिख देना।।
===========================
'अ़क्स' दौनेरिया
मन पसन्द विषय लेखन के तहत-
विधा- ग़ज़ल
मापनी-1222 1222 1222 1222
क़ाफ़िया- बरकात (आत स्वर)
रदीफ़- लिख देना।
========================
खुशी की बात बन जाए उसे बरकात लिख देना।
नहीं मिलती खुशी की रौशनी ज़ुलमात लिख देना।।
********************************
महरबानी अगर तुम कर सको तो मुझ को बहतर है,
गुज़ारिश है सनम हक़ में मेरे बरसात लिख देना।।
*********************************
जिसे मैं ढूँढ़ता फिरता ज़रूरी काम है उससे,
नहीं पाया कहीं मैंने कुठाराघात लिख देना।।
*********************************
गया है ख़त उन्हें देने को कासिद आ रहा होगा,
अगर लौटा नहीं तो बद मेरे हालात लिख देना।।
*********************************
मुहब्बत टूट जाए तो मुहब्बत मत उसे कहना,
बिना पर नफ़रतों की फिर उसे आघात लिख देना।।
===========================
'अ़क्स' दौनेरिया
दिनांक- 28/3/2020
विषय- मनपसंद लेखन
विधा- गीत
शीर्षक- "फूल और भौंरा"
********************
मैं फूलों सी नाजुक हूँ, 14
तुम भ्रमर से मचलते हो,
यह फूलों की बगिया है,
फिर भी गुलाब चुनते हो |
मैं फूलों सी.............
ये कांटों की सैय्या,है
मुझे इसी में रहना है,
गुन-गुन कर जब तुम आते,
वही राग तो सुनना है।
मैं फूलों सी........
फूलो का अलि से रिश्ता,
देखो कितना गहरा है,
भौरे की प्रीत बिना तो,
जीवन फूल अधूरा है |
मैं फूलों सी नाजुक हूँ,
तुम भ्रमर से मचलते हो |
स्वरचित- संगीता कुकरेती
विषय- मनपसंद लेखन
विधा- गीत
शीर्षक- "फूल और भौंरा"
********************
मैं फूलों सी नाजुक हूँ, 14
तुम भ्रमर से मचलते हो,
यह फूलों की बगिया है,
फिर भी गुलाब चुनते हो |
मैं फूलों सी.............
ये कांटों की सैय्या,है
मुझे इसी में रहना है,
गुन-गुन कर जब तुम आते,
वही राग तो सुनना है।
मैं फूलों सी........
फूलो का अलि से रिश्ता,
देखो कितना गहरा है,
भौरे की प्रीत बिना तो,
जीवन फूल अधूरा है |
मैं फूलों सी नाजुक हूँ,
तुम भ्रमर से मचलते हो |
स्वरचित- संगीता कुकरेती
विषय : माँ
........... 🙏🏼 माँ 🙏🏼 ......
गहरे घाव पर दवाई की राहत है माँ ।
अटके साँसो में प्राणों की चाहत है माँ ।।
हर संकट में शक्ति का अहसास है माँ ।
नहीं है जन्नत की जरूरत जब पास है माँ।।
झुकी हुई पलकों में रुकी हुई नमी है माँ ।
खुले आसमां तले हरी-भरी जमीं है माँ ।।
मरुस्थल की गर्मी में ठंडा नीर है माँ ।
पसीने के तन पर शीतल समीर है माँ ।।
दिये में जलती बाती का तेल है माँ ।
ममता के आँचल में प्रेम का खेल है माँ ।।
ठोकर ,कांटों से निकली हर चीख है माँ ।
तेरी उँगली ही मेरे लिए सीख है माँ ।।
शाम की आरती , ईश्वर का प्रसाद है माँ ।
कोई टाल न सके ,वह आशीर्वाद है माँ ।।
घोसलों से झाँकते बच्चों की आश है माँ ।
हारे हुए दिल में जीत का विश्वास है माँ ।।
माथे पर काला काजल का टीका है माँ ।
गरीब के हाथ में चांदी का सिक्का है माँ ।।
बिलखती भूख में रोटी का निवाला है माँ ।
मंदिर ,मस्जिद ,चर्च और शिवाला है माँ ।।
नन्हें बच्चों के होठों की पुकार है माँ ।
घायल सिपाही की जोशीली हुंँकार है माँ ।।
उजड़े उपवन में कली की उम्मीद है माँ ।
दीपावली, क्रिसमिस, बैशाखी , ईद है माँ ।।
साफ पारदर्शी दर्पण जैसा दिल है माँ ।
घुटने बल चलते बच्चे की मंजिल है माँ ।।
कोमल होठों की पहली पुकार है माँ ।
खुशहाली सफलता का छुपा राज है माँ ।।
तेरी गोदी में खुशियों का गोदाम है माँ ।
तेरे कमल चरणों में चारों धाम हैं माँ ।।
तेरी मुस्कां से धरती महकती है माँ ।
तेरे दुखड़ो से दुनिया दहकती है माँ ।।
तेरे स्वागत में सरिता भी रुक जाए माँ ।
तेरी पलकों में सूरज भी छुप जाए माँ।।
सोये गालों पर प्रेम की पप्पी है माँ ।
थकी हर पीठ पे हिम्मत की थप्पी है माँ।।
उगते सूरज की किरणों की लाली है माँ।
सजी आरती के दीपों की थाली है माँ।।
तेरी पलकों में पलता सवेरा है माँ ।
तेरे चरणों में रब का बसेरा है माँ ।।
अगर तूम साथ हो तो सब कुछ है माँ ।
बिन तुम्हारे ये जीवन मेरा तुच्छ है माँ ।।
मुझे सुख,शोहरत,सुविधा न माया चाहिए।
तेरी ममता की सिर पर माँ छाया चाहिए।
नफे सिंह योगी मालड़ा
स्वरचित कविता
मौलिक
........... 🙏🏼 माँ 🙏🏼 ......
गहरे घाव पर दवाई की राहत है माँ ।
अटके साँसो में प्राणों की चाहत है माँ ।।
हर संकट में शक्ति का अहसास है माँ ।
नहीं है जन्नत की जरूरत जब पास है माँ।।
झुकी हुई पलकों में रुकी हुई नमी है माँ ।
खुले आसमां तले हरी-भरी जमीं है माँ ।।
मरुस्थल की गर्मी में ठंडा नीर है माँ ।
पसीने के तन पर शीतल समीर है माँ ।।
दिये में जलती बाती का तेल है माँ ।
ममता के आँचल में प्रेम का खेल है माँ ।।
ठोकर ,कांटों से निकली हर चीख है माँ ।
तेरी उँगली ही मेरे लिए सीख है माँ ।।
शाम की आरती , ईश्वर का प्रसाद है माँ ।
कोई टाल न सके ,वह आशीर्वाद है माँ ।।
घोसलों से झाँकते बच्चों की आश है माँ ।
हारे हुए दिल में जीत का विश्वास है माँ ।।
माथे पर काला काजल का टीका है माँ ।
गरीब के हाथ में चांदी का सिक्का है माँ ।।
बिलखती भूख में रोटी का निवाला है माँ ।
मंदिर ,मस्जिद ,चर्च और शिवाला है माँ ।।
नन्हें बच्चों के होठों की पुकार है माँ ।
घायल सिपाही की जोशीली हुंँकार है माँ ।।
उजड़े उपवन में कली की उम्मीद है माँ ।
दीपावली, क्रिसमिस, बैशाखी , ईद है माँ ।।
साफ पारदर्शी दर्पण जैसा दिल है माँ ।
घुटने बल चलते बच्चे की मंजिल है माँ ।।
कोमल होठों की पहली पुकार है माँ ।
खुशहाली सफलता का छुपा राज है माँ ।।
तेरी गोदी में खुशियों का गोदाम है माँ ।
तेरे कमल चरणों में चारों धाम हैं माँ ।।
तेरी मुस्कां से धरती महकती है माँ ।
तेरे दुखड़ो से दुनिया दहकती है माँ ।।
तेरे स्वागत में सरिता भी रुक जाए माँ ।
तेरी पलकों में सूरज भी छुप जाए माँ।।
सोये गालों पर प्रेम की पप्पी है माँ ।
थकी हर पीठ पे हिम्मत की थप्पी है माँ।।
उगते सूरज की किरणों की लाली है माँ।
सजी आरती के दीपों की थाली है माँ।।
तेरी पलकों में पलता सवेरा है माँ ।
तेरे चरणों में रब का बसेरा है माँ ।।
अगर तूम साथ हो तो सब कुछ है माँ ।
बिन तुम्हारे ये जीवन मेरा तुच्छ है माँ ।।
मुझे सुख,शोहरत,सुविधा न माया चाहिए।
तेरी ममता की सिर पर माँ छाया चाहिए।
नफे सिंह योगी मालड़ा
स्वरचित कविता
मौलिक
दिनांक - 28/03/2020
दिन - शनिवार
शीर्षक - " बचपन लौट आया "
4G, एंड्राइड मोबाइल के जमाने में भी टीवी पर रामायण का इंतजार कर रहें
आरम्भ होते ही रामायण का प्रसारण पुरा परिवार टीवी के आगे मानो जम से रहें
पुरी तरह एकाग्र होकर खो रहें हैं सभी लोग रामायण में
रामायण के प्रति इतनी एकाग्रता को देखकर मुझे एक ख़्याल आया
लगता हैं वो हमारा बचपन आज फिर लौट आया ।
परिवार के सभी सदस्य आज घर पर एक साथ हैं
मिलजुल कर घर काम में बटा रहे सब हाथ हैं
दिनभर घर की साफ सफाई और सजावट में जुटे है आज सभी लोग
इन सभी लोगों को एक साथ देखकर मुझे एक ख़्याल आया
लगता हैं वो हमारा बचपन आज फिर लौट आया।
दिन में एक साथ बैठकर लूडो, साँपसिढ़ी तो कभी कैरम खेल रहें
बच्चे चित्रकारी और रचनात्मकता में अपना समय व्यतित कर रहें
पुराने सामान से कर नया अविष्कार बड़े लोगों के चेहरो पर भी मुस्कराहट आई
इनके चेहरो पर मुस्कराहट देखकर मुझे एक ख़्याल आया
लगता हैं वो हमारा बचपन आज फिर लौट आया।
माँ - पिता, भाई - बहन, दादा - दादी सभी एक साथ बैठकर खाना खा रहें
रातो को बैठ सभी लोग अंताक्षरी में गीत गुनगुना रहें
कभी कहानी, कभी चुटकुले तो कभी पहलियों की महफ़िल जमा रहें रातो को
इन खुशनुमा रातो को देखकर मुझे एक ख़्याल आया
बिताये दिनभर जो खुशी के पल इससे मुझे एक ख़्याल आया
लगता हैं वो हमारा बचपन आज फिर लौट आया।
- प्रतिक सिंघल
दिन - शनिवार
शीर्षक - " बचपन लौट आया "
4G, एंड्राइड मोबाइल के जमाने में भी टीवी पर रामायण का इंतजार कर रहें
आरम्भ होते ही रामायण का प्रसारण पुरा परिवार टीवी के आगे मानो जम से रहें
पुरी तरह एकाग्र होकर खो रहें हैं सभी लोग रामायण में
रामायण के प्रति इतनी एकाग्रता को देखकर मुझे एक ख़्याल आया
लगता हैं वो हमारा बचपन आज फिर लौट आया ।
परिवार के सभी सदस्य आज घर पर एक साथ हैं
मिलजुल कर घर काम में बटा रहे सब हाथ हैं
दिनभर घर की साफ सफाई और सजावट में जुटे है आज सभी लोग
इन सभी लोगों को एक साथ देखकर मुझे एक ख़्याल आया
लगता हैं वो हमारा बचपन आज फिर लौट आया।
दिन में एक साथ बैठकर लूडो, साँपसिढ़ी तो कभी कैरम खेल रहें
बच्चे चित्रकारी और रचनात्मकता में अपना समय व्यतित कर रहें
पुराने सामान से कर नया अविष्कार बड़े लोगों के चेहरो पर भी मुस्कराहट आई
इनके चेहरो पर मुस्कराहट देखकर मुझे एक ख़्याल आया
लगता हैं वो हमारा बचपन आज फिर लौट आया।
माँ - पिता, भाई - बहन, दादा - दादी सभी एक साथ बैठकर खाना खा रहें
रातो को बैठ सभी लोग अंताक्षरी में गीत गुनगुना रहें
कभी कहानी, कभी चुटकुले तो कभी पहलियों की महफ़िल जमा रहें रातो को
इन खुशनुमा रातो को देखकर मुझे एक ख़्याल आया
बिताये दिनभर जो खुशी के पल इससे मुझे एक ख़्याल आया
लगता हैं वो हमारा बचपन आज फिर लौट आया।
- प्रतिक सिंघल
मन पसंद विषय लेखन
सादर मंच को समर्पित -
🌹🌻 गीतिका 🌻🌹
****************************
🌹न रिश्ते मिटेंगे 🌹
मापनी-122 , 122 , 122 , 122
समान्त -आर , पदांत - होगी
☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️
न रिश्ते मिटेंगे , न हित मार होगी ।
रहें प्यार से घर , न तकरार होगी ।।
रखें अहं को दूर यदि हम सभी तो ,
न अलगाव होगा , न हद पार होगी ।
जहाँ शर्म रहती सदा आँख पानी ,
न परिवार टूटे , न दीवार होगी ।
सदा पूर्ण सम्मान दें यदि घरों में ,
न कोई लड़ेगा , न नित रार होगी ।
कभी भी न संवेदना शून्य हम हों ,
चलें एक होकर न फिर हार होगी ।।
🍓🌻☀️🌹🌴🌺
🌲🌷🍊**...रवीन्द्र वर्मा आगरा
सादर मंच को समर्पित -
🌹🌻 गीतिका 🌻🌹
****************************
🌹न रिश्ते मिटेंगे 🌹
मापनी-122 , 122 , 122 , 122
समान्त -आर , पदांत - होगी
☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️
न रिश्ते मिटेंगे , न हित मार होगी ।
रहें प्यार से घर , न तकरार होगी ।।
रखें अहं को दूर यदि हम सभी तो ,
न अलगाव होगा , न हद पार होगी ।
जहाँ शर्म रहती सदा आँख पानी ,
न परिवार टूटे , न दीवार होगी ।
सदा पूर्ण सम्मान दें यदि घरों में ,
न कोई लड़ेगा , न नित रार होगी ।
कभी भी न संवेदना शून्य हम हों ,
चलें एक होकर न फिर हार होगी ।।
🍓🌻☀️🌹🌴🌺
🌲🌷🍊**...रवीन्द्र वर्मा आगरा
शीर्षक-
"पुलिस के डंडे"
दूर तलक वीराना सा अब नजर आता है।
सारी दुनिया को रोग कोरोना सताता है।
रख एक मीटर की दूरी तू दूसरों से ।
जैन हर कहीं सबको बताता है।
चाँद सा चेहरा छुपा ले कुछ दिन के लिए।
तू रूमाल मुख से क्यों हटाता है ?
छोड़ दे गली - सड़कों की आवारागर्दी।
तू हठ क्यों अब अपना दिखाता है ?
जान बचा तू अपनी संकट की घड़ी में।
तेरा ये कदम सबको ही बचाता है।
तू पालन कर देश लॉकडाउन का।
क्यों डंडे अब पुलिस के खाता है ?
✍️अनुज
राकेशकुमार जैनबंधु
रिसालिया खेड़ा,सिरसा
हरियाणा
"पुलिस के डंडे"
दूर तलक वीराना सा अब नजर आता है।
सारी दुनिया को रोग कोरोना सताता है।
रख एक मीटर की दूरी तू दूसरों से ।
जैन हर कहीं सबको बताता है।
चाँद सा चेहरा छुपा ले कुछ दिन के लिए।
तू रूमाल मुख से क्यों हटाता है ?
छोड़ दे गली - सड़कों की आवारागर्दी।
तू हठ क्यों अब अपना दिखाता है ?
जान बचा तू अपनी संकट की घड़ी में।
तेरा ये कदम सबको ही बचाता है।
तू पालन कर देश लॉकडाउन का।
क्यों डंडे अब पुलिस के खाता है ?
✍️अनुज
राकेशकुमार जैनबंधु
रिसालिया खेड़ा,सिरसा
हरियाणा
दिनांक 28 मार्च 2020
विषय स्वतंत्र
रोजी रोटी की तलाश मे
अपने भविष्य की तलाश मे
जो छोड आए घर बार खेत
मां का प्यार, पिता का आंगन
गांव, गांव की गलियां, दोस्त
सब जुट गए शहर बनाने मे
घर, मकान, दुकान, होटल, मॉल
सडके, कारखाने, फैक्ट्री, ऑफिस
सभाभवन, थाने, अस्पताल, स्कूल
जाने क्या क्या नही बनाए
अपना खून पसीना बहाया
बस थोडी सी आमदनी के लिए
दो जून की रोटी के लिए
सुकुन की नींद लेने के लिए
लेकिन यह शहर वह नही दे पाया
दी बदले मे बस गरीबी,भूख,जिल्लत
शहर मे गन्ने की तरह निचोडा
और थोथा समझ छोड दिया
तिल तिल मरने के लिए
हां कब नही छोडा कहो
बाढ, भूकम्प, अतिवृष्टि में
दंगे, फसाद, लडाई झगडे में
या किसी फैली महामारी मे
भूखा ही सोया रहा मजदूर
खून के आंसू रोया मजदूर
हर बार की तरह
पलायन तो मजदूर का ही
सिर पर गठरी लादे
बीवी बच्चो के साथ
लौटता फिर खाली हाथ
अपने गांव की तरफ
टूटे जज्बातों के साथ
बिखरते सपनों के साथ
मीलों तक पैदल चलते
हां मजदूर ही है वो
जो शहर को शहर बनाते हैं
और बदले मे कुछ न पाते हैं
कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
विषय स्वतंत्र
रोजी रोटी की तलाश मे
अपने भविष्य की तलाश मे
जो छोड आए घर बार खेत
मां का प्यार, पिता का आंगन
गांव, गांव की गलियां, दोस्त
सब जुट गए शहर बनाने मे
घर, मकान, दुकान, होटल, मॉल
सडके, कारखाने, फैक्ट्री, ऑफिस
सभाभवन, थाने, अस्पताल, स्कूल
जाने क्या क्या नही बनाए
अपना खून पसीना बहाया
बस थोडी सी आमदनी के लिए
दो जून की रोटी के लिए
सुकुन की नींद लेने के लिए
लेकिन यह शहर वह नही दे पाया
दी बदले मे बस गरीबी,भूख,जिल्लत
शहर मे गन्ने की तरह निचोडा
और थोथा समझ छोड दिया
तिल तिल मरने के लिए
हां कब नही छोडा कहो
बाढ, भूकम्प, अतिवृष्टि में
दंगे, फसाद, लडाई झगडे में
या किसी फैली महामारी मे
भूखा ही सोया रहा मजदूर
खून के आंसू रोया मजदूर
हर बार की तरह
पलायन तो मजदूर का ही
सिर पर गठरी लादे
बीवी बच्चो के साथ
लौटता फिर खाली हाथ
अपने गांव की तरफ
टूटे जज्बातों के साथ
बिखरते सपनों के साथ
मीलों तक पैदल चलते
हां मजदूर ही है वो
जो शहर को शहर बनाते हैं
और बदले मे कुछ न पाते हैं
कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
राजस्थानी कविता
🙏नी लेणो चीन रों माल🙏
😀😀😀😀😀
यें मीचड़ी आंख्यां का
चीनी वता-वता फांकरियां,
'कोरोना' ने फैलां न, दुनिया
री आंख्या में धूळों नाकरियां।
वणी 'वूहान' में बीमारी
फैलावां रो नाटक कीदो,
खुद तो वचग्यो,और परसाद
पूरी दुनिया में वांट दीदो।
'वूहान' सूं तो चीन में
कोरोना पूरो ई नी फैल्यो,
अणी गुप-चुप तरिकाउं
हंगळी दुनिया में परों मेल्यो।
हुणो अणी ड्रेगन गुनाह
कई कम थोड़ी कीदो,
पूरी दुनिया री नाक में
हुता-बैठा दम परो कीदो।
इटली,फ्रांस, इंग्लैंड और
अमेरिका ने लिदा लपेटां में,
छोटा-मोटा सब देशां ने
किदा 'कोरोना' रां चपेटां में।
दूजू तो अणी रां तीरे
सब नकली माल है,
वायरस असली भेज्यो
या होची-हमजी चाल है।
अमेरिका,इंग्लैंड,भारत जस्या
देश कटकट्यां खाईरियां,
यो वातां ऊ नी मानेलां
अणीरे पाको इलाज छाईरियां।
सब देशां ने मिल-मिलान
चीन ने जवाब देणो छावे,
अणी री मीचड़ी आख्यां
जदी पूरी खुल जावे।
'रामगोपाल'केवे खा लेवां
आपणा घर में रोटी-दाल,
पण नी लेवां अणी कपटी
चीन रों नकली माल।
-रामगोपाल आचार्य
पीपली आचार्यान
🙏नी लेणो चीन रों माल🙏
😀😀😀😀😀
यें मीचड़ी आंख्यां का
चीनी वता-वता फांकरियां,
'कोरोना' ने फैलां न, दुनिया
री आंख्या में धूळों नाकरियां।
वणी 'वूहान' में बीमारी
फैलावां रो नाटक कीदो,
खुद तो वचग्यो,और परसाद
पूरी दुनिया में वांट दीदो।
'वूहान' सूं तो चीन में
कोरोना पूरो ई नी फैल्यो,
अणी गुप-चुप तरिकाउं
हंगळी दुनिया में परों मेल्यो।
हुणो अणी ड्रेगन गुनाह
कई कम थोड़ी कीदो,
पूरी दुनिया री नाक में
हुता-बैठा दम परो कीदो।
इटली,फ्रांस, इंग्लैंड और
अमेरिका ने लिदा लपेटां में,
छोटा-मोटा सब देशां ने
किदा 'कोरोना' रां चपेटां में।
दूजू तो अणी रां तीरे
सब नकली माल है,
वायरस असली भेज्यो
या होची-हमजी चाल है।
अमेरिका,इंग्लैंड,भारत जस्या
देश कटकट्यां खाईरियां,
यो वातां ऊ नी मानेलां
अणीरे पाको इलाज छाईरियां।
सब देशां ने मिल-मिलान
चीन ने जवाब देणो छावे,
अणी री मीचड़ी आख्यां
जदी पूरी खुल जावे।
'रामगोपाल'केवे खा लेवां
आपणा घर में रोटी-दाल,
पण नी लेवां अणी कपटी
चीन रों नकली माल।
-रामगोपाल आचार्य
पीपली आचार्यान
भावों के मोती।
विषय-मनपसंद लेखन ।
विषय- लाॅक डाउन में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।
स्वरचित।
बन्द कमरे में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।
लाॅक डाउन में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।।
आशा उम्मीद से भरा मेरा अन्तर्मन।
हम निराशा में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।।
घर में हैं सुरक्षित अपनों के बीच।
इस तसल्ली में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।।
मुस्कुरा,खिलखिला रहे रिश्ते जी रहे।
दूर दुनिया से भी खुशी ढूंढ लेते हैं।।
नवरात्रि मां को ध्याने के पावन दिन।
मां आराधना में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।।
लाॅक डाउन है तो क्या?कृपा बरसती।
हम मां भक्ति में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।
हम तम में भी उजाले ढूंढ लेते हैं।।
ख्वाबों,सपनों में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।।
****
प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
28/03 /2020
विषय-मनपसंद लेखन ।
विषय- लाॅक डाउन में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।
स्वरचित।
बन्द कमरे में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।
लाॅक डाउन में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।।
आशा उम्मीद से भरा मेरा अन्तर्मन।
हम निराशा में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।।
घर में हैं सुरक्षित अपनों के बीच।
इस तसल्ली में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।।
मुस्कुरा,खिलखिला रहे रिश्ते जी रहे।
दूर दुनिया से भी खुशी ढूंढ लेते हैं।।
नवरात्रि मां को ध्याने के पावन दिन।
मां आराधना में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।।
लाॅक डाउन है तो क्या?कृपा बरसती।
हम मां भक्ति में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।
हम तम में भी उजाले ढूंढ लेते हैं।।
ख्वाबों,सपनों में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।।
****
प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
28/03 /2020
दिनांकः- 28-3- 2020
वारः- शनिवार
विधाः- छन्द मुक्त
शीर्षकः- पड रहा है कोरोना को रोना ( हास्य-व्यंग्य )
जब से हुई है शादी घुट घुट कर मैं जी रहा हूँ।
आजादी खतम हुई गुलाम बन कर रह गया हूँ।।
खाया है मैने जबसे शादी का मीठा सा लड्डू।
हो गया मुंह कड़वा रह गया हूँ बन कर टट्टू।।
शादी के बाद सजनी प्यार असीम था जताया।
अक्ल ठीक करने को मेरी फिर बेलन घुमाया।।
पूछतीं बट रही थी अक्ल कहाँ गया था चला।
भगवान से ले आता तब मुझसे से नही कुटता।।
गया नहीं कहीं बस तुम्हारे लगाता था चक्कर।
अक्ल तभी लाता जाता जब तुम से बच कर।।
जाया करते सज धज कर हम अपनी क्लीनिक।
लाते कमा कर धन हो जाती बढ़िया पिकनिक।।
फैला है मगर जब से देश में महा दुष्ट कोरोना।
पड़ रहा है हम सभी को तो कोरोना ही कोरोना।।
कोरोना के कारण लग गया देश में लाक आउट।
रहने के कारण घर में पोज़ीशन हो गई है टाइट।।
घर पर हमको सजनी ने अब झाड़ू दी है पकडाई।
घर की अपने हमसे करा रहीं हैं कस कर सफाई।।
रह जाती अगर कहीं गन्दगी होती है खूब कुटाई।
पड़ रहे माजने मुझको बरतन आती नहीं है बाई।।
समझा रही मुझे इक्कीस दिन नहीं बाहर जाना।
न ही किसी से गले मिलना न ही हाथ मिलाना।।
हाथों को अपने तुम्हें बीस सेकेन्ड तक है धोना।
अपने मुख तथा चेहरे को भी नहीं है तुम्हे छूना।
मानोगे अगर तुम अपनी रानी का इतना कहना।
बिगाड़ नहीं पायेगा तुम्हारा कुछ भी दुष्ट कोरोना।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी
स्वरचित
वारः- शनिवार
विधाः- छन्द मुक्त
शीर्षकः- पड रहा है कोरोना को रोना ( हास्य-व्यंग्य )
जब से हुई है शादी घुट घुट कर मैं जी रहा हूँ।
आजादी खतम हुई गुलाम बन कर रह गया हूँ।।
खाया है मैने जबसे शादी का मीठा सा लड्डू।
हो गया मुंह कड़वा रह गया हूँ बन कर टट्टू।।
शादी के बाद सजनी प्यार असीम था जताया।
अक्ल ठीक करने को मेरी फिर बेलन घुमाया।।
पूछतीं बट रही थी अक्ल कहाँ गया था चला।
भगवान से ले आता तब मुझसे से नही कुटता।।
गया नहीं कहीं बस तुम्हारे लगाता था चक्कर।
अक्ल तभी लाता जाता जब तुम से बच कर।।
जाया करते सज धज कर हम अपनी क्लीनिक।
लाते कमा कर धन हो जाती बढ़िया पिकनिक।।
फैला है मगर जब से देश में महा दुष्ट कोरोना।
पड़ रहा है हम सभी को तो कोरोना ही कोरोना।।
कोरोना के कारण लग गया देश में लाक आउट।
रहने के कारण घर में पोज़ीशन हो गई है टाइट।।
घर पर हमको सजनी ने अब झाड़ू दी है पकडाई।
घर की अपने हमसे करा रहीं हैं कस कर सफाई।।
रह जाती अगर कहीं गन्दगी होती है खूब कुटाई।
पड़ रहे माजने मुझको बरतन आती नहीं है बाई।।
समझा रही मुझे इक्कीस दिन नहीं बाहर जाना।
न ही किसी से गले मिलना न ही हाथ मिलाना।।
हाथों को अपने तुम्हें बीस सेकेन्ड तक है धोना।
अपने मुख तथा चेहरे को भी नहीं है तुम्हे छूना।
मानोगे अगर तुम अपनी रानी का इतना कहना।
बिगाड़ नहीं पायेगा तुम्हारा कुछ भी दुष्ट कोरोना।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी
स्वरचित
विषय : मनपसंद विषय लेखन
विधा : हाईकू
तिथि : 28.3.2020
विषय : कोरोना संकट
-----------------------
कोरोना नाश
मानवता विकास
प्रकृति हास।
तीव्र है धार
है प्रकृति उदास
कोरोना वार।
अकेलापन
कोरोना रहा तन
साहस धन।
डॉक्टर दुआ
कोरोना रोगी छुआ
बचाव हुआ।
सफ़ल भक्ति
उच्च जीवनी शक्ति
कोरो-ना भीति।
जीवन योग
दो कर्फ्यू सहयोग
कोरोना लोप।
कोरोना जाल
शैतान की कुचाल
स्थिति संभाल!
निभाना हमें
कठिन है समय
होगा विलय।
-रीता ग्रोवर
-स्वरचित
विधा : हाईकू
तिथि : 28.3.2020
विषय : कोरोना संकट
-----------------------
कोरोना नाश
मानवता विकास
प्रकृति हास।
तीव्र है धार
है प्रकृति उदास
कोरोना वार।
अकेलापन
कोरोना रहा तन
साहस धन।
डॉक्टर दुआ
कोरोना रोगी छुआ
बचाव हुआ।
सफ़ल भक्ति
उच्च जीवनी शक्ति
कोरो-ना भीति।
जीवन योग
दो कर्फ्यू सहयोग
कोरोना लोप।
कोरोना जाल
शैतान की कुचाल
स्थिति संभाल!
निभाना हमें
कठिन है समय
होगा विलय।
-रीता ग्रोवर
-स्वरचित
😷👍🏻अजी सुनते हो👍🏻😷
क्या जरूरत है यूँ आपको बेकार बाहर जाने की।
सभी चीजें पड़ी तो है ना अपने घर पर खाने की।।
वक़्त मिला है तो अब घर पर ही रहा करो ना तुम।
मेरी भी तो चाहत रहती है तुमसे बतियाने की।।
बाई चली गयी काम छोड़ कोरोना के ख़ौफ़ से।
उम्मीद मुझे तुमसे कामकाज में हाथ बंटाने की।।
थक जाती हूँ मैं भी इतनी दौड़ भाग कर करके।
मेरी भी इच्छा होती है ना थोड़ा सा सुस्ताने की।।
काम नही करा सकते चलो कोई बात नहीं छोड़ो।
पर कोशिश ना करो बेफालतू काम बढ़ाने की।।
बाहर जाओगे तो लाओगे कोरोना को घर पर।
तो भी जरूरत पड़ेगी महंगे मास्क, दस्ताने की।।
समझा करो ना हर बात तुम्हे समझानी पड़ती है।
ये वक्त है घर बैठ कर जान और पैसा बचाने की।।
बेटा भी आया है बड़े अरसे बाद घर पर रहने को।
उसको भी सिखाओ ना हर बात अब जमाने की।।
इक्कीस दिन का किया है लोकडाउन सरकार ने।
क्या जरूरत है लक्ष्मण रेखा के पार जाने की।।
मामू बैठे है तैयार सब लट्ठ लेकर बीच बाज़ार।
करेंगे कोशिश वो भी तुम पर लट्ठ बरसाने की।।
लगी है सरकार दिन रात कोरोना को मिटाने में।
हमारी भी ज़िम्मेदारी है कोरोना को मिटाने की।।
अपने बच्चों की ख़ातिर तुम घर पर ही रहो ना।
कोरोना की हिम्मत नही होगी फ़िर घर आने की।।
थक गई अब तो मैं भी तुम्हे बार बार समझाकर।
तुम्हारी तो पुरानी आदत है "ऐश" लट्ठ खाने की।।
©️ऐश...28/08/20(स्वरचित)✍🏻
अश्वनी कुमार चावला,अनूपगढ़,श्रीगंगानगर
🙏🏻😷बचाव ही उपचार है😷🙏🏻
😷घरों में रहें,कोरोना को बाय बाय कहें
क्या जरूरत है यूँ आपको बेकार बाहर जाने की।
सभी चीजें पड़ी तो है ना अपने घर पर खाने की।।
वक़्त मिला है तो अब घर पर ही रहा करो ना तुम।
मेरी भी तो चाहत रहती है तुमसे बतियाने की।।
बाई चली गयी काम छोड़ कोरोना के ख़ौफ़ से।
उम्मीद मुझे तुमसे कामकाज में हाथ बंटाने की।।
थक जाती हूँ मैं भी इतनी दौड़ भाग कर करके।
मेरी भी इच्छा होती है ना थोड़ा सा सुस्ताने की।।
काम नही करा सकते चलो कोई बात नहीं छोड़ो।
पर कोशिश ना करो बेफालतू काम बढ़ाने की।।
बाहर जाओगे तो लाओगे कोरोना को घर पर।
तो भी जरूरत पड़ेगी महंगे मास्क, दस्ताने की।।
समझा करो ना हर बात तुम्हे समझानी पड़ती है।
ये वक्त है घर बैठ कर जान और पैसा बचाने की।।
बेटा भी आया है बड़े अरसे बाद घर पर रहने को।
उसको भी सिखाओ ना हर बात अब जमाने की।।
इक्कीस दिन का किया है लोकडाउन सरकार ने।
क्या जरूरत है लक्ष्मण रेखा के पार जाने की।।
मामू बैठे है तैयार सब लट्ठ लेकर बीच बाज़ार।
करेंगे कोशिश वो भी तुम पर लट्ठ बरसाने की।।
लगी है सरकार दिन रात कोरोना को मिटाने में।
हमारी भी ज़िम्मेदारी है कोरोना को मिटाने की।।
अपने बच्चों की ख़ातिर तुम घर पर ही रहो ना।
कोरोना की हिम्मत नही होगी फ़िर घर आने की।।
थक गई अब तो मैं भी तुम्हे बार बार समझाकर।
तुम्हारी तो पुरानी आदत है "ऐश" लट्ठ खाने की।।
©️ऐश...28/08/20(स्वरचित)✍🏻
अश्वनी कुमार चावला,अनूपगढ़,श्रीगंगानगर
🙏🏻😷बचाव ही उपचार है😷🙏🏻
😷घरों में रहें,कोरोना को बाय बाय कहें
28/3/2020
बिषय स्वतंत्र लेखन
आज सूना सूना सा मेरी माँ का दरबार
न भजन कीर्तन न कोई भीड़ भाड़
क्यों मैया भक्तों से रूठ गई हो
दूर जाकर क्यों बैठ गई हो
तुम सबकी माता हम तुम्हारे बालक
सारे जग की खिवैया तुम्हीं हो हमारी पालक
जो भी गलती क्षमा कर देना
कोरोना जैसी बीमारी किसी को भी न देना
विकराल समस्या से हम जूझ रहे हैं
भयाक्रांत हो मन से टूट रहे हैं
हमारी इस दुविधा को दूर करो माँ
कष्ट हरो कष्ट हरो कष्ट हरो माँ
वात्सल्यमयी करुणामयी जगजननी भवानी हो
आदिशक्ति दुर्गा जन जन की कल्याणी हो
अश्रु पूरित नयनों से हाथ जोड़कर कहते हैं
कहाँ चली गई हो हम मझधार में बहते हैं
मैया हमें इस ज्वलंत संकट से उबार लो
एक बार तो मैया मेरी ओर निहार लो
स्वरचित, सुषमा ब्यौहार
बिषय स्वतंत्र लेखन
आज सूना सूना सा मेरी माँ का दरबार
न भजन कीर्तन न कोई भीड़ भाड़
क्यों मैया भक्तों से रूठ गई हो
दूर जाकर क्यों बैठ गई हो
तुम सबकी माता हम तुम्हारे बालक
सारे जग की खिवैया तुम्हीं हो हमारी पालक
जो भी गलती क्षमा कर देना
कोरोना जैसी बीमारी किसी को भी न देना
विकराल समस्या से हम जूझ रहे हैं
भयाक्रांत हो मन से टूट रहे हैं
हमारी इस दुविधा को दूर करो माँ
कष्ट हरो कष्ट हरो कष्ट हरो माँ
वात्सल्यमयी करुणामयी जगजननी भवानी हो
आदिशक्ति दुर्गा जन जन की कल्याणी हो
अश्रु पूरित नयनों से हाथ जोड़कर कहते हैं
कहाँ चली गई हो हम मझधार में बहते हैं
मैया हमें इस ज्वलंत संकट से उबार लो
एक बार तो मैया मेरी ओर निहार लो
स्वरचित, सुषमा ब्यौहार
विषय-मनपसंद
उच्च भाव साहस बना,रखिये इसको धार।
संकट की इस घड़ी से,यही करेगा पार।।
मरना है जब एक दिन ,मर्त्य शील संसार।
तो साहस -जीवन जियो ,कायर को धिक्कार।
कायर को धिक्कार , बड़ी वीरों की महिमा।
बन साहस का पुंज, बचाते अपनी गरिमा।
कह आशा निज बात, नहीं सीखा है डरना।
वीर रखें निज मान ,वरण करते हैं मरना।
आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
उच्च भाव साहस बना,रखिये इसको धार।
संकट की इस घड़ी से,यही करेगा पार।।
मरना है जब एक दिन ,मर्त्य शील संसार।
तो साहस -जीवन जियो ,कायर को धिक्कार।
कायर को धिक्कार , बड़ी वीरों की महिमा।
बन साहस का पुंज, बचाते अपनी गरिमा।
कह आशा निज बात, नहीं सीखा है डरना।
वीर रखें निज मान ,वरण करते हैं मरना।
आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
दिनांक-२८/३/२०२०
मनपसंद लेखन
तांका
१)
लीला अपार
गोपियों संग रास
राधा के पीड़़
मोहन मन भाये
तेरी लीला तू ही जाने।
२)
लीला सुन्दर
कपि मुख नारद
ज्ञान उपजे
मोह भंग,समझे
प्रभु शीश नवाये।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
मनपसंद लेखन
तांका
१)
लीला अपार
गोपियों संग रास
राधा के पीड़़
मोहन मन भाये
तेरी लीला तू ही जाने।
२)
लीला सुन्दर
कपि मुख नारद
ज्ञान उपजे
मोह भंग,समझे
प्रभु शीश नवाये।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
अजन्मी बेटी का रोष
****************
अजन्मी बेटी पूछती अपनी माँ से
तू भी तो किसी की बेटी थी?
तुझे तो नानी ने जन्म दिया
और तूने,,,दुनिया के सौंदर्य का रसपान किया।
तूने खोली अपनी नन्हीं आंखे
बेटी बन आँगन गुंजायमान किया
बड़ी हुई, बन बहू ससुराल आई
घर में अपार खुशियों की बरसात लायी।
बेटे को जन्म दे, घर को वारिस दिया
तू इस जग में रह पाये पर मेरे लिये इस दुनिया को नाक़ाबिल करार दिया?
तू तो सृजन कर्ता,,,पलाण कर्ता थी
कैसे मेरे अस्तित्व का संहार किया???
**********
अनिता निधि
****************
अजन्मी बेटी पूछती अपनी माँ से
तू भी तो किसी की बेटी थी?
तुझे तो नानी ने जन्म दिया
और तूने,,,दुनिया के सौंदर्य का रसपान किया।
तूने खोली अपनी नन्हीं आंखे
बेटी बन आँगन गुंजायमान किया
बड़ी हुई, बन बहू ससुराल आई
घर में अपार खुशियों की बरसात लायी।
बेटे को जन्म दे, घर को वारिस दिया
तू इस जग में रह पाये पर मेरे लिये इस दुनिया को नाक़ाबिल करार दिया?
तू तो सृजन कर्ता,,,पलाण कर्ता थी
कैसे मेरे अस्तित्व का संहार किया???
**********
अनिता निधि
भावों के मोती ।
दिल रो रहा है मगर क्या करें हम ।
कोरोना के फैले जो दर्द सितम ।
कोइ भूखा प्यासा चले रोड पर ॥
बेबश हुए दिल जले छोड़ कर ॥
कोइ अपनों कि यादो में रोता ।
कोइ घर में पड़ा ,दुखी होता ॥
कोइ रोता है कोइ आँखे जो नम ॥
हालात गन्दे हुए इस कदर ।
भरा है दिलों में कोरोना का डर ॥
मिलना मिलाना हुआ जोकि कम
चलते चलो न ही दूरी हो कम
मदनगोपाल शाक्य ॥पान्चाली ॥
कम्पिल ।फर्रूखाबाद ॥उ .प्र ॥
दिल रो रहा है मगर क्या करें हम ।
कोरोना के फैले जो दर्द सितम ।
कोइ भूखा प्यासा चले रोड पर ॥
बेबश हुए दिल जले छोड़ कर ॥
कोइ अपनों कि यादो में रोता ।
कोइ घर में पड़ा ,दुखी होता ॥
कोइ रोता है कोइ आँखे जो नम ॥
हालात गन्दे हुए इस कदर ।
भरा है दिलों में कोरोना का डर ॥
मिलना मिलाना हुआ जोकि कम
चलते चलो न ही दूरी हो कम
मदनगोपाल शाक्य ॥पान्चाली ॥
कम्पिल ।फर्रूखाबाद ॥उ .प्र ॥
दिनांक 28/03/2020
दिन:शनिवार
विषय: स्वतंत्र (गनगौर)
विधा:हाइकु
1-
शिव पार्वती
आराध्य गनगौर
गोबर गौर।
2-
बिंदी सिंदूर
गनगौर पूजन
सौहार्द्र पर्व।
3-
पति दीर्घायु
गनगौर कामना
अखंड भाग्य ।
4-
चैत्र महीना
शुक्लपक्ष तृतीया
हो गणगौर
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
दिन:शनिवार
विषय: स्वतंत्र (गनगौर)
विधा:हाइकु
1-
शिव पार्वती
आराध्य गनगौर
गोबर गौर।
2-
बिंदी सिंदूर
गनगौर पूजन
सौहार्द्र पर्व।
3-
पति दीर्घायु
गनगौर कामना
अखंड भाग्य ।
4-
चैत्र महीना
शुक्लपक्ष तृतीया
हो गणगौर
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
विषय- स्वतंत्र लेखन
दिनांक -28/03/2020.
उत्साह".......
चलता चल........
तू चल- चल रे मानव
चलता चल..............
चाहे हो प्रतिकूल परिस्थिति ,
चाहे सम्मुख ज्वाला हो।
चाहे मरण नियत हो सम्मुख
चाहे विष का प्याला हो ।
चलता चल................
तू चल -चल रे मानव
चाहे साथ छोड़ दे अपने,
चाहे शत्रु मतवाला हो
चाहे अंत भले हो जाए ,
चाहे विजयी माला हो ।
चलता चल .............
तू चल -चल रे मानव।
अनथक पंख लगाकर,
छू ले तू नभ मंडल
उड़ता चल ...............
तू चल -चल रे मानव
उड़ता चल.............
छूट न जाए कहीं चाह सृजन की
रुक न जाए कहीं गति जीवन की
चीरता हुआ तू नभ दृग मंडल
उड़ता चल .....................
तू चल -चल रे मानव ।।
स्वरचित, मौलिक रचना
रंजना सिंह
प्रयागराज
दिनांक -28/03/2020.
उत्साह".......
चलता चल........
तू चल- चल रे मानव
चलता चल..............
चाहे हो प्रतिकूल परिस्थिति ,
चाहे सम्मुख ज्वाला हो।
चाहे मरण नियत हो सम्मुख
चाहे विष का प्याला हो ।
चलता चल................
तू चल -चल रे मानव
चाहे साथ छोड़ दे अपने,
चाहे शत्रु मतवाला हो
चाहे अंत भले हो जाए ,
चाहे विजयी माला हो ।
चलता चल .............
तू चल -चल रे मानव।
अनथक पंख लगाकर,
छू ले तू नभ मंडल
उड़ता चल ...............
तू चल -चल रे मानव
उड़ता चल.............
छूट न जाए कहीं चाह सृजन की
रुक न जाए कहीं गति जीवन की
चीरता हुआ तू नभ दृग मंडल
उड़ता चल .....................
तू चल -चल रे मानव ।।
स्वरचित, मौलिक रचना
रंजना सिंह
प्रयागराज
27/3/20
अवकाश के पलों में,
विचारो के भटकाव में,
शब्दो के संसार मे,
बैचैन उदगार है।
अल्फाजो के तारो में
शायद अवकाश है।
लफ्ज भी सिमटे से,
खामोशियो से सिले हुए,
अवकाश के काश में,
बैचेनियो के ख्वाब से,
मचा हाहाकार है।
विराम के आराम में,
कर ले अवलोकन
मन के अंतर्द्वंदों को
थोड़ा विराम दे।
मिला जो खालीपन
भर दे तू प्रकृति रंग
स्वरचित
मीना तिवारी
अवकाश के पलों में,
विचारो के भटकाव में,
शब्दो के संसार मे,
बैचैन उदगार है।
अल्फाजो के तारो में
शायद अवकाश है।
लफ्ज भी सिमटे से,
खामोशियो से सिले हुए,
अवकाश के काश में,
बैचेनियो के ख्वाब से,
मचा हाहाकार है।
विराम के आराम में,
कर ले अवलोकन
मन के अंतर्द्वंदों को
थोड़ा विराम दे।
मिला जो खालीपन
भर दे तू प्रकृति रंग
स्वरचित
मीना तिवारी
28.3.2020
शनिवार
मनपसंद विषय लेखन
विधा -क्षणिका
फ़ासला
(1)
फ़ासला
नज़दीकियाँ है ला रहा
दूर रह कर
अपनापन पनपा रहा
जंग की दूरी
बनी है इस घड़ी
इस क़हर ने
मौत को दहला दिया ।।
(2)
फ़ासले का फ़ैसला
सुखद ,सुन्दर, सुविचार है
जीवन सरल हो जाएगा
वर्तमान की ये पुकार है ।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
शनिवार
मनपसंद विषय लेखन
विधा -क्षणिका
फ़ासला
(1)
फ़ासला
नज़दीकियाँ है ला रहा
दूर रह कर
अपनापन पनपा रहा
जंग की दूरी
बनी है इस घड़ी
इस क़हर ने
मौत को दहला दिया ।।
(2)
फ़ासले का फ़ैसला
सुखद ,सुन्दर, सुविचार है
जीवन सरल हो जाएगा
वर्तमान की ये पुकार है ।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
मनपसंद लेखन
विषय-*बे-दर्द*
विधा-मुक्तक
तुम प्यार करो न करो हम करते रहेंगे।
दर्द कितना भी दो सनम सहते रहेंगे।
हमारे संग में सदा चलते रहे दर्द,
नहीं छोड़ें साथ इनका बढ़ते रहेंगे।
तुमसे मिलें जो उपहार लेते रहेंगे।
अपनों से सदा मनुहार करते रहेंगे।
बसाऐ थे कभी जिन्हें अपने दिलों में,
हुए बे-दर्द हम पतवार खेते रहेंगे।
अपने दिल की धड़कन में बसते रहेंगे।
सदैव प्रीत की अगन में जलते रहेंगे।
हम नयननीर बहाते रहें भले यूंही,
हमदम पराऐ दर्द में पलते रहेंगे।
हमारी फरियाद जबतक सुनते रहेंगे।
हम प्रेम प्यार में तबतक पगते रहेंगे।
साथिया बने रहेंगे तुम्हारे हमदर्द,
भुलाऐं अब तो दर्द में ढलते रहेंगे।
स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
विषय-*बे-दर्द*
विधा-मुक्तक
तुम प्यार करो न करो हम करते रहेंगे।
दर्द कितना भी दो सनम सहते रहेंगे।
हमारे संग में सदा चलते रहे दर्द,
नहीं छोड़ें साथ इनका बढ़ते रहेंगे।
तुमसे मिलें जो उपहार लेते रहेंगे।
अपनों से सदा मनुहार करते रहेंगे।
बसाऐ थे कभी जिन्हें अपने दिलों में,
हुए बे-दर्द हम पतवार खेते रहेंगे।
अपने दिल की धड़कन में बसते रहेंगे।
सदैव प्रीत की अगन में जलते रहेंगे।
हम नयननीर बहाते रहें भले यूंही,
हमदम पराऐ दर्द में पलते रहेंगे।
हमारी फरियाद जबतक सुनते रहेंगे।
हम प्रेम प्यार में तबतक पगते रहेंगे।
साथिया बने रहेंगे तुम्हारे हमदर्द,
भुलाऐं अब तो दर्द में ढलते रहेंगे।
स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
भावों के मोती
आयोजन- मनपसंद विषय लेखन दिनांक- 28/03/ 2020
दिन- शनिवार
शीर्षक- बेड़िया पांव की
विधा- कविता
रचनाकार- सुनील कुमार
*************************************
बेड़ियां पांव की
*************************************
सदियों से पड़ी हैं बेड़ियां पांव में
फिर भी चलती हूं मैं धूप छांव में
कभी तपती दुपहरी
तो कभी शीतल छांव में
मैं चलती हूं अक्सर
अपने वजूद की तलाश में
मैं मुक्त होना चाहती हूं
इन बेड़ियां के बंधन से
जो बात-बात पर मुझे टोकती हैं
मेरे बढ़ते कदमों को रोकती हैं
ये बेड़ियां जो रोज देती हैं
मुझे ताने-उलाहने
पर मैं कर देती हूं अक्सर नजर अंदाज़
इनके तानों को इनके उलाहनों को
क्योंकि मुझे सलीके से तोड़ना है
इन बेड़ियों का मजबूत जाल
और जाना है चौखट के उस पार
भरनी है मुझे उन्मुक्त उड़ान
पूरे करने हैं अपने सब अरमान
मैं जानती हूं ये बेड़ियां अब मुझे
आगे बढ़ने से नहीं रोक पाएंगी
मेरे हौसलों के आगे ये टूटती जाएंगी
धीरे-धीरे खो देंगी ये अपना वजूद
और एक दिन खुद ही कर देंगी
मेरे पांवों को अपने बंधन से आजाद
चौखट के उस पार जाने को
सपनों को सच कर दिखाने को।
************************************
प्रस्तुति- सुनील कुमार
जिला-बहराइच,उत्तर प्रदेश।
आयोजन- मनपसंद विषय लेखन दिनांक- 28/03/ 2020
दिन- शनिवार
शीर्षक- बेड़िया पांव की
विधा- कविता
रचनाकार- सुनील कुमार
*************************************
बेड़ियां पांव की
*************************************
सदियों से पड़ी हैं बेड़ियां पांव में
फिर भी चलती हूं मैं धूप छांव में
कभी तपती दुपहरी
तो कभी शीतल छांव में
मैं चलती हूं अक्सर
अपने वजूद की तलाश में
मैं मुक्त होना चाहती हूं
इन बेड़ियां के बंधन से
जो बात-बात पर मुझे टोकती हैं
मेरे बढ़ते कदमों को रोकती हैं
ये बेड़ियां जो रोज देती हैं
मुझे ताने-उलाहने
पर मैं कर देती हूं अक्सर नजर अंदाज़
इनके तानों को इनके उलाहनों को
क्योंकि मुझे सलीके से तोड़ना है
इन बेड़ियों का मजबूत जाल
और जाना है चौखट के उस पार
भरनी है मुझे उन्मुक्त उड़ान
पूरे करने हैं अपने सब अरमान
मैं जानती हूं ये बेड़ियां अब मुझे
आगे बढ़ने से नहीं रोक पाएंगी
मेरे हौसलों के आगे ये टूटती जाएंगी
धीरे-धीरे खो देंगी ये अपना वजूद
और एक दिन खुद ही कर देंगी
मेरे पांवों को अपने बंधन से आजाद
चौखट के उस पार जाने को
सपनों को सच कर दिखाने को।
************************************
प्रस्तुति- सुनील कुमार
जिला-बहराइच,उत्तर प्रदेश।
विषय - मनपसंद
28/03/20
शनिवार
कविता
अति सर्वत्र वर्जयेत' की उक्ति आज सार्थक लगती है,
इक्कीस दिन अवकाश के सुनकर बेचैनी मन में बढ़ती है।
न मंदिर के घण्टे बजते , न लगते प्रभु के जयकारे,
सड़कों पर फर्राटे भरती नहीं भागती अगणित कारें।
घर - परिवार साथ में है पर फिर भी खालीपन रहता है,
नहीं मुहल्ले में अब कोई तू-तू , मैं-मैं ही करता है।
बीबी भी हर पाँच मिनट में काम सामने रख जाती है,
जिनको करने में मर्दों की अच्छी शामत आ जाती है।
मजबूरी में काट रहे दिन जीवन पर भारी खतरा है,
लेकिन इस छुट्टी का होना पुरुषों को काफ़ी अखरा है।
काश सभी की सतर्कता से कोरोना भारत से जाए,
और यहाँ की खोई रौनक फिर से आकर रंग दिखाए।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
28/03/20
शनिवार
कविता
अति सर्वत्र वर्जयेत' की उक्ति आज सार्थक लगती है,
इक्कीस दिन अवकाश के सुनकर बेचैनी मन में बढ़ती है।
न मंदिर के घण्टे बजते , न लगते प्रभु के जयकारे,
सड़कों पर फर्राटे भरती नहीं भागती अगणित कारें।
घर - परिवार साथ में है पर फिर भी खालीपन रहता है,
नहीं मुहल्ले में अब कोई तू-तू , मैं-मैं ही करता है।
बीबी भी हर पाँच मिनट में काम सामने रख जाती है,
जिनको करने में मर्दों की अच्छी शामत आ जाती है।
मजबूरी में काट रहे दिन जीवन पर भारी खतरा है,
लेकिन इस छुट्टी का होना पुरुषों को काफ़ी अखरा है।
काश सभी की सतर्कता से कोरोना भारत से जाए,
और यहाँ की खोई रौनक फिर से आकर रंग दिखाए।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
28/3/2020
विधा -देवी भेट
. "जगराता"
~~~~
महामाई चतुर्थ मां कूष्माण्डा का दरबार
भेट
ये जगराता दुर्गे मां का जो इसमें आके शीश
झुकाता मां मां मां ये मां उसका ध्यान धरती
है कि ध्यान धर कल्यान करती है।
रात्रि जागरण मां का जिस जगह जहां भी
होता।
बजा के वीणा नारद घर घर में देते हैं
नौता।
नर नारी किन्नर सुर मुनि आते हैं सब खबर
को सुन।
दौड़ा आता जो खबर को पाता है पाता है
पाता।।ये जगराता0।।
जगह जागरण की को आ कर के पवन
वुहारै।
इन्द्र करे वहां जल का छिड़काव छोड़ जल
फुआरैं
अग्नि से अग्नी देव निकले खुद माता की
ज्योति जले।
जहां बैठती हैं जग माता जग माता जग
माता।।ये जगराता0।।
कथा वेद खुद मां की आके जगराते में
बांचैं।
तीनौं लोक आ कर के मां के जगराते में
नांचैं।
विष्णु बांधे पग घुंघरू शंकर बजा बजा
डमरू।
नचे ताली बजा के विधाता विधाता
विधाता।।ये जग राता0।।
करैं आरती मां की ये चन्दा सूरज
तारे।
हनूमान नच नच के बोल रहे हैं
जैकारे।
अब बजाओ सब ताली सुमिर मां शैरौं बाली
"महावीर" जागरण गाता है गाता है
गाता।।ये जगराता 0।।
कवि महावीर सिकरवार
आगरा (उ.प्र.)
विधा -देवी भेट
. "जगराता"
~~~~
महामाई चतुर्थ मां कूष्माण्डा का दरबार
भेट
ये जगराता दुर्गे मां का जो इसमें आके शीश
झुकाता मां मां मां ये मां उसका ध्यान धरती
है कि ध्यान धर कल्यान करती है।
रात्रि जागरण मां का जिस जगह जहां भी
होता।
बजा के वीणा नारद घर घर में देते हैं
नौता।
नर नारी किन्नर सुर मुनि आते हैं सब खबर
को सुन।
दौड़ा आता जो खबर को पाता है पाता है
पाता।।ये जगराता0।।
जगह जागरण की को आ कर के पवन
वुहारै।
इन्द्र करे वहां जल का छिड़काव छोड़ जल
फुआरैं
अग्नि से अग्नी देव निकले खुद माता की
ज्योति जले।
जहां बैठती हैं जग माता जग माता जग
माता।।ये जगराता0।।
कथा वेद खुद मां की आके जगराते में
बांचैं।
तीनौं लोक आ कर के मां के जगराते में
नांचैं।
विष्णु बांधे पग घुंघरू शंकर बजा बजा
डमरू।
नचे ताली बजा के विधाता विधाता
विधाता।।ये जग राता0।।
करैं आरती मां की ये चन्दा सूरज
तारे।
हनूमान नच नच के बोल रहे हैं
जैकारे।
अब बजाओ सब ताली सुमिर मां शैरौं बाली
"महावीर" जागरण गाता है गाता है
गाता।।ये जगराता 0।।
कवि महावीर सिकरवार
आगरा (उ.प्र.)
दिनाँक-28/03/2020
विधा-छंदमुक्त रचना
उफ़ ये कैसा मंजर है,
दर्द का सैलाब है,और
आँसुओं का समंदर है l
बेबसी का आलम है,
आज इंसान लाचार है,
प्रार्थनाएं ठहरी हुई है,
और ताले में भगवान है l
सड़कों को बना कालीन,
सन्नाटा पसर गया है,
समय के हाथ में डंडा है,
काल को साथ लिए खड़ा है l
जिंदगी की जद्दोजहद में,
फिर शहर बेगाने निकले हैं ,
जो आये थे सब छोड़ के,
वो सब छोड़ के पैदल निकले हैं l
आशंकाओं के बादल छाये हैं,
हर पल बरस सा बीता जाये है,
मानवजाति की परीक्षा बड़ी,
न जाने कौन कितना तैयार हैl
प्रकृति कर रही सबसे घातक वार है,
संकल्प है मंत्र जीत का, वर्ना हार है,
आशा खिड़की से निहार रही,
उसे तो दौड़ते कर्म का इंतजार है l
स्वरचित
ऋतुराज दवे
विधा-छंदमुक्त रचना
उफ़ ये कैसा मंजर है,
दर्द का सैलाब है,और
आँसुओं का समंदर है l
बेबसी का आलम है,
आज इंसान लाचार है,
प्रार्थनाएं ठहरी हुई है,
और ताले में भगवान है l
सड़कों को बना कालीन,
सन्नाटा पसर गया है,
समय के हाथ में डंडा है,
काल को साथ लिए खड़ा है l
जिंदगी की जद्दोजहद में,
फिर शहर बेगाने निकले हैं ,
जो आये थे सब छोड़ के,
वो सब छोड़ के पैदल निकले हैं l
आशंकाओं के बादल छाये हैं,
हर पल बरस सा बीता जाये है,
मानवजाति की परीक्षा बड़ी,
न जाने कौन कितना तैयार हैl
प्रकृति कर रही सबसे घातक वार है,
संकल्प है मंत्र जीत का, वर्ना हार है,
आशा खिड़की से निहार रही,
उसे तो दौड़ते कर्म का इंतजार है l
स्वरचित
ऋतुराज दवे
एक विचार
एक ही स्थान पर रहते- रहते मन ऊब जाता है,इंसान मुरझाने लगता है। जीवन जंजीरों में जकड़ा लगता है। मन छटपटाता है ,बेबसी की श्रृंखला तोड़ने को जी चाहता है। दिमाग सुस्त होने लगता है, बस आँखें बंद कर अतीत में खोने का मन करता है। उफ, कैसी भयावह स्थिति है।
आज लॉक डाउन की स्थिति में हम सब उसी दौर से गुजर रहे हैं । आवश्यकता है सचेत रहने की,संयम की,तभी इस संकट की घड़ी का आपसी सहयोग से मुकाबला कर पायेंगे।
जो समाज के लिए कुछ करने में सक्षम हैं, अवश्य करें। तन, मन,धन से सेवा करें। बुजुर्ग और बच्चे खाली न बैठें। बच्चे नानी-दादी से कहानियां सुनें जिनसे आज की पीढ़ी वंचित रही है। बुजुर्ग बच्चों को चरित्र-निर्माण की कहानियाँ सुनायें।
ईश्वर पुनः सबको एक मौका दे रहा है।
खाली दिमाग शैतान का घर होता है, उसे कहीं न कहीं व्यस्त रखें। वर्ग पहेली भरें। इंडोर गेम्स खेलें। अच्छे अच्छे स्वादिष्ट पकवान बनायें। पुरुष
घर के कामों में मां,बहन ,पत्नी को सहयोग दें। मिलकर पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन करें। कोई वाद्य-यंत्र बजायें, गाने गायें। जिंदगी की भाग-दौड़ में जो शौक पीछे छूट गए थे,पूरे करें। सुबह-शाम कुछ देर छत पर टहलें । दूर -दूर तक सड़कों पर पसरे सन्नाटे को देखें,जो शायद आप कभी न देख पाते। करीब से पंछियों की आवाज सुनें,आपके आस-पास हरियाली है तो उससे बातें करें। नीला आसमान,पर्वत,झरने सम्पूर्ण प्रकृति कुछ कहती महसूस होगी।
यदि कण-कण में बसा परमात्मा हमारी उद्दंडता माफ कर सका तो ये दिन निश्चित रूप से हम नहीं भूल पायेंगे। हमें एक नया सबक देकर जायेंगे। जिंदगी की किताब में एक नया पृष्ठ जोड़ जायेंगे।
सरिता गर्ग
एक ही स्थान पर रहते- रहते मन ऊब जाता है,इंसान मुरझाने लगता है। जीवन जंजीरों में जकड़ा लगता है। मन छटपटाता है ,बेबसी की श्रृंखला तोड़ने को जी चाहता है। दिमाग सुस्त होने लगता है, बस आँखें बंद कर अतीत में खोने का मन करता है। उफ, कैसी भयावह स्थिति है।
आज लॉक डाउन की स्थिति में हम सब उसी दौर से गुजर रहे हैं । आवश्यकता है सचेत रहने की,संयम की,तभी इस संकट की घड़ी का आपसी सहयोग से मुकाबला कर पायेंगे।
जो समाज के लिए कुछ करने में सक्षम हैं, अवश्य करें। तन, मन,धन से सेवा करें। बुजुर्ग और बच्चे खाली न बैठें। बच्चे नानी-दादी से कहानियां सुनें जिनसे आज की पीढ़ी वंचित रही है। बुजुर्ग बच्चों को चरित्र-निर्माण की कहानियाँ सुनायें।
ईश्वर पुनः सबको एक मौका दे रहा है।
खाली दिमाग शैतान का घर होता है, उसे कहीं न कहीं व्यस्त रखें। वर्ग पहेली भरें। इंडोर गेम्स खेलें। अच्छे अच्छे स्वादिष्ट पकवान बनायें। पुरुष
घर के कामों में मां,बहन ,पत्नी को सहयोग दें। मिलकर पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन करें। कोई वाद्य-यंत्र बजायें, गाने गायें। जिंदगी की भाग-दौड़ में जो शौक पीछे छूट गए थे,पूरे करें। सुबह-शाम कुछ देर छत पर टहलें । दूर -दूर तक सड़कों पर पसरे सन्नाटे को देखें,जो शायद आप कभी न देख पाते। करीब से पंछियों की आवाज सुनें,आपके आस-पास हरियाली है तो उससे बातें करें। नीला आसमान,पर्वत,झरने सम्पूर्ण प्रकृति कुछ कहती महसूस होगी।
यदि कण-कण में बसा परमात्मा हमारी उद्दंडता माफ कर सका तो ये दिन निश्चित रूप से हम नहीं भूल पायेंगे। हमें एक नया सबक देकर जायेंगे। जिंदगी की किताब में एक नया पृष्ठ जोड़ जायेंगे।
सरिता गर्ग
विषय :-मन पसंद रचना
विधा:-गीत
दि०28-3-2020
क्या सोचा था
क्या तुम निकले,
आज हमें एहसास हुआ|
दरक गयीं घर की दीवारें,
आज मुझे आभास हुआ|
ख्वाबोंमें जो शीश महल था|
टूट के चकनाचूर हुआ|
थके पांव की पीड़ा का
आज मुझे आभास हुआ|
कितना दर्द होता है दिल में
जब विश्वास टूटता है,
घुटती हुई सांसों को हवा की कीमत का एहसास हुआ|
गिर के बुलंदी से मैने हौसलों के हस्र को जब देखा|
कुछ न बचा अब पास हमारे
आज हमें विश्वास हुआ|
दिल है जहाँ वहीं प्यार है बसता
फिर कैसे बदल जातें हैं दिल
कौन इन्हें पत्थर कर देता
इसका मुझे एहसास हुआ|
अपना ही खून पराये जैसा
अपने को जब लगने लगे
कुछ न बचा अब पास हमारे
आज मुझे विश्वास हुआ|
मैं प्रमाणित करता हूँ कि यह मेरी मौलिक रचना है|
विजय श्रीवास्तव
मालवीय रोड बस्ती
विधा:-गीत
दि०28-3-2020
क्या सोचा था
क्या तुम निकले,
आज हमें एहसास हुआ|
दरक गयीं घर की दीवारें,
आज मुझे आभास हुआ|
ख्वाबोंमें जो शीश महल था|
टूट के चकनाचूर हुआ|
थके पांव की पीड़ा का
आज मुझे आभास हुआ|
कितना दर्द होता है दिल में
जब विश्वास टूटता है,
घुटती हुई सांसों को हवा की कीमत का एहसास हुआ|
गिर के बुलंदी से मैने हौसलों के हस्र को जब देखा|
कुछ न बचा अब पास हमारे
आज हमें विश्वास हुआ|
दिल है जहाँ वहीं प्यार है बसता
फिर कैसे बदल जातें हैं दिल
कौन इन्हें पत्थर कर देता
इसका मुझे एहसास हुआ|
अपना ही खून पराये जैसा
अपने को जब लगने लगे
कुछ न बचा अब पास हमारे
आज मुझे विश्वास हुआ|
मैं प्रमाणित करता हूँ कि यह मेरी मौलिक रचना है|
विजय श्रीवास्तव
मालवीय रोड बस्ती
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