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ब्लॉग संख्या :-701
विषय - व्यापार
प्रथम प्रस्तुति
डर लगता है व्यापार से
जुड़ नहीं जाएँ विकार से।।
नकली को असली बताना
चूना लगाना प्यार से ।।
उसूलों की तिलांजलि देना
कभी मंदी की मार से ।।
क्या क्या न करना पड़ता है
प्रतिद्वंदिता में हार से ।।
सिद्धान्तवादी रोते दिखे
ठिया उठाए बाजार से ।।
अब नही वो व्यापार 'शिवम'
हर महकमे शर्मसार से ।।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 04/04/2020
प्रथम प्रस्तुति
डर लगता है व्यापार से
जुड़ नहीं जाएँ विकार से।।
नकली को असली बताना
चूना लगाना प्यार से ।।
उसूलों की तिलांजलि देना
कभी मंदी की मार से ।।
क्या क्या न करना पड़ता है
प्रतिद्वंदिता में हार से ।।
सिद्धान्तवादी रोते दिखे
ठिया उठाए बाजार से ।।
अब नही वो व्यापार 'शिवम'
हर महकमे शर्मसार से ।।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 04/04/2020
नमन मंच
विषय- व्यापार
द्वितीय प्रस्तुति
🤣🙃🤪😜
व्यापार किया न घाटे का
खबर रखा वो आटे का ।।
डाड़ी मारना सीख गया
सबक मिला फिर चाँटे का ।।
शोर्ट-कट यहाँ हजार हैं
डगमगाते मन हमार हैं ।।
व्यापार में हजार इम्तिहाँ
आपके क्या विचार हैं ?
साधन ठीक तो साध्य ठीक
अराधन ठीक आराध्य ठीक ।।
जिसमें व्यक्तित्व निखरता है
वो ही बहतर वो ही सटीक ।।
बाप को बेटा कसम दिलाए
झूठ बोलना स्वयं सिखाए ।।
धंधे में ये सब चलता है
ऐसे धंधे 'शिवम' न भाए ।।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 04/04/2020
विषय- व्यापार
द्वितीय प्रस्तुति
🤣🙃🤪😜
व्यापार किया न घाटे का
खबर रखा वो आटे का ।।
डाड़ी मारना सीख गया
सबक मिला फिर चाँटे का ।।
शोर्ट-कट यहाँ हजार हैं
डगमगाते मन हमार हैं ।।
व्यापार में हजार इम्तिहाँ
आपके क्या विचार हैं ?
साधन ठीक तो साध्य ठीक
अराधन ठीक आराध्य ठीक ।।
जिसमें व्यक्तित्व निखरता है
वो ही बहतर वो ही सटीक ।।
बाप को बेटा कसम दिलाए
झूठ बोलना स्वयं सिखाए ।।
धंधे में ये सब चलता है
ऐसे धंधे 'शिवम' न भाए ।।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 04/04/2020
4/3/20
विषय-व्यापार
बाजार सज गया है।
ब्यापार बन गया है।
इंसान बिक रहा है।
भगवान बिक रहा है।
ईमान नही दिखता है।
इंसान नही दिखता है।
रिस्ते नही दिखते है।
चहु ओर है लुटेरे है।
मजहब भी यहाँ बिकता है।
औऱ रब भी यहाँ बिकता है।
नापाक है इरादे है।
झूठे है सारे वादे है।
आती है शरम इनको है।
आश्रम मेंजाके छोड़ो है।
औकात रही धन की है।
मानवता घटी मन की है।
स्वरचित
मीना तिवारी
विषय-व्यापार
बाजार सज गया है।
ब्यापार बन गया है।
इंसान बिक रहा है।
भगवान बिक रहा है।
ईमान नही दिखता है।
इंसान नही दिखता है।
रिस्ते नही दिखते है।
चहु ओर है लुटेरे है।
मजहब भी यहाँ बिकता है।
औऱ रब भी यहाँ बिकता है।
नापाक है इरादे है।
झूठे है सारे वादे है।
आती है शरम इनको है।
आश्रम मेंजाके छोड़ो है।
औकात रही धन की है।
मानवता घटी मन की है।
स्वरचित
मीना तिवारी
फैला भ्रस्टाचार
न कोई आचार विचार
न कोई सदाचार
निर्बलों पर सबल
जीवन बनाते नरक
घोटालो का राज्य
कागजो का झमेला
किसने कितना झेला
बहुरूपिया बनकर
करते है तहस नहस
सत्ता के वफादार
फैलाते है भ्रस्टाचार
जिसने जितना खाया
आचार
उतना लिप्त हुआ वो
ब्यभिचार ब्यापार
परिवेश अनेक प्रकार
स्वभाव प्रेमोपकार
अच्छाई हुई संध्यावाद
स्वरचित
न कोई आचार विचार
न कोई सदाचार
निर्बलों पर सबल
जीवन बनाते नरक
घोटालो का राज्य
कागजो का झमेला
किसने कितना झेला
बहुरूपिया बनकर
करते है तहस नहस
सत्ता के वफादार
फैलाते है भ्रस्टाचार
जिसने जितना खाया
आचार
उतना लिप्त हुआ वो
ब्यभिचार ब्यापार
परिवेश अनेक प्रकार
स्वभाव प्रेमोपकार
अच्छाई हुई संध्यावाद
स्वरचित
विषय व्यापार
विधा काव्य
04 अप्रैल 2020,शनिवार
रंग बिरंगी भौतिक दुनियां
सब व्यापारी बने हैं जग में।
लाभ हानि प्रपंच में फसकर
स्नेह दया न मिलती मन में।
लाभ कमाने को सब आतुर
मानव जाने कँहा खो गया?
स्व स्वार्थ में सभी घूम रहे
सच्चा स्नेही हृदय रो रहा।
प्यार आज व्यापार बन रहा
बोली लगे आज दहेज की।
बिक जाती रात सुहाग की
चिंता किसे दुल्हन सेज की?
मुख मुखौटा है चेहरे पर
दानव मानव भेद नहीं है।
साधू और शैतान कौन है?
ऐसा यंत्र भी बना नहीं है।
सुधा स्नेह जगति की शांति
प्यार कभी व्यापार न बनता।
प्रेम रतन धन सबसे बढ़कर
विमल नेह विपदा को हरता।
स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
04 अप्रैल 2020,शनिवार
रंग बिरंगी भौतिक दुनियां
सब व्यापारी बने हैं जग में।
लाभ हानि प्रपंच में फसकर
स्नेह दया न मिलती मन में।
लाभ कमाने को सब आतुर
मानव जाने कँहा खो गया?
स्व स्वार्थ में सभी घूम रहे
सच्चा स्नेही हृदय रो रहा।
प्यार आज व्यापार बन रहा
बोली लगे आज दहेज की।
बिक जाती रात सुहाग की
चिंता किसे दुल्हन सेज की?
मुख मुखौटा है चेहरे पर
दानव मानव भेद नहीं है।
साधू और शैतान कौन है?
ऐसा यंत्र भी बना नहीं है।
सुधा स्नेह जगति की शांति
प्यार कभी व्यापार न बनता।
प्रेम रतन धन सबसे बढ़कर
विमल नेह विपदा को हरता।
स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
है मुहब्बत तो इजहार कर तू।
न डर कश्ती को पार कर तू।
डुबा कर चाशनी मे रखना।
न जुबां को तलवार कर तू।
मै निगाहों से समझ गया हूँ।
अब लबों से न इन्कार कर तू।
अब हूँ मै तेरे रहमो करम पर।
और ज्यादा न लाचार कर तू।
कुछ तो सीख ले गुस्ताख अब।
वही खताएं न हर बार कर तू।
वो पल भर मैं पिघल जाएगा।
जरा अदब से दीदार कर तू।
बच्चों की परवरिश पहले कर।
फिर चाहे जश्नें - बहार कर तू।
जो अपना बना ले गैरों को भी।
इश्क मुहब्बत का व्यापार कर तू।
जरूर रंग लाएगी मेहनत तेरी।
बस वक्त का इंतजार कर तू।
हर मंजिल होगी तेरे कदमों में।
इक हटना न पीछे हार कर तू।
ख्याल रख मौसमे खराब का।
हंस कर न मुझे बीमार कर तू।
जंंग लग जाएगा खाली पड़े पडे।
इससे बेहतर कि बेगार कर तू।
मेरा हिस्सा भी तू ले ले भाई।
घर के आंगन में न दीवार कर तू।
मै जानता हूँ कि नफरत है तुझे।
यूं रिश्तों को न तार - तार कर तू।
मै भूल जाऊं न शराफत कहीं।
इस कदर भी न शर्मसार कर तू।
हार जाएगा बाजी मुहब्बत की।
इतनी शर्तो पर न प्यार कर तू ।
मैं आ गया हूँ आजिज "सोहल"।
हां मुझको परेशां न कर यार तू।
विपिन सोहल
न डर कश्ती को पार कर तू।
डुबा कर चाशनी मे रखना।
न जुबां को तलवार कर तू।
मै निगाहों से समझ गया हूँ।
अब लबों से न इन्कार कर तू।
अब हूँ मै तेरे रहमो करम पर।
और ज्यादा न लाचार कर तू।
कुछ तो सीख ले गुस्ताख अब।
वही खताएं न हर बार कर तू।
वो पल भर मैं पिघल जाएगा।
जरा अदब से दीदार कर तू।
बच्चों की परवरिश पहले कर।
फिर चाहे जश्नें - बहार कर तू।
जो अपना बना ले गैरों को भी।
इश्क मुहब्बत का व्यापार कर तू।
जरूर रंग लाएगी मेहनत तेरी।
बस वक्त का इंतजार कर तू।
हर मंजिल होगी तेरे कदमों में।
इक हटना न पीछे हार कर तू।
ख्याल रख मौसमे खराब का।
हंस कर न मुझे बीमार कर तू।
जंंग लग जाएगा खाली पड़े पडे।
इससे बेहतर कि बेगार कर तू।
मेरा हिस्सा भी तू ले ले भाई।
घर के आंगन में न दीवार कर तू।
मै जानता हूँ कि नफरत है तुझे।
यूं रिश्तों को न तार - तार कर तू।
मै भूल जाऊं न शराफत कहीं।
इस कदर भी न शर्मसार कर तू।
हार जाएगा बाजी मुहब्बत की।
इतनी शर्तो पर न प्यार कर तू ।
मैं आ गया हूँ आजिज "सोहल"।
हां मुझको परेशां न कर यार तू।
विपिन सोहल
4/4/2020
बिषय, व्यापार
वर्तमान में रिश्ते भी व्यापार हो.गए हैं
स्वार्थ के सभी कृत्य साकार हो गए हैं
पैसे की तराजू में तुलना रहा है आदमी
केवल स्वयं के लिए मिल रहा है आदमी
मुंह देख देख करते हैं पहचान
वरना भाव बढ़ा बन जाते हैं अनजान
हर वस्तुओं में मिलावट साफ नजर आती है
उसी तरह नातों में बनावट नजर आती है
जैसे कि समयानुसार व्यापारी सामग्रियों का संग्रहण करते हैं
उसी तरह ओहदे धनवानों पर रिश्ते अधिग्रहण करते हैं
जिस तरह कालाबाजारी कर भाव बढ़ा देते हैं
उसी अपने भी अपनों से दूरी बना लेते है
जिस तरह बाप बड़ा न भैया
सबसे बड़ा रुपैया
स्वरचित सुषमा ब्यौहार
बिषय, व्यापार
वर्तमान में रिश्ते भी व्यापार हो.गए हैं
स्वार्थ के सभी कृत्य साकार हो गए हैं
पैसे की तराजू में तुलना रहा है आदमी
केवल स्वयं के लिए मिल रहा है आदमी
मुंह देख देख करते हैं पहचान
वरना भाव बढ़ा बन जाते हैं अनजान
हर वस्तुओं में मिलावट साफ नजर आती है
उसी तरह नातों में बनावट नजर आती है
जैसे कि समयानुसार व्यापारी सामग्रियों का संग्रहण करते हैं
उसी तरह ओहदे धनवानों पर रिश्ते अधिग्रहण करते हैं
जिस तरह कालाबाजारी कर भाव बढ़ा देते हैं
उसी अपने भी अपनों से दूरी बना लेते है
जिस तरह बाप बड़ा न भैया
सबसे बड़ा रुपैया
स्वरचित सुषमा ब्यौहार
दिनांक-04/04/2020
विषय- व्यापार
नागफनी की गलियों में
होता फूलों का व्यापार।
धर्म बने अफीम की गोली
यह धरती से कैसा प्यार।।
एक दूजे की प्रीति पराई
गोदी में नदियों का कलरव।
स्वर्णिम किरणे अधरों पर
चमन में कांटो का होता बिहार।।
यह कैसा व्यापार......
आज तो उनका नाम ही नहीं
जो सींच गये लहू से वतन।
मजारे उन कमीनों की जगमगा रही
जो बेच गये शहीदों के कफन।।
यह कैसा व्यापार........
डरी -डरी सहमी है निगाहें
स्याह नभ में सजती बारात।
अमन में चुभन है कांटों से
हर शय में दिनमान का निखार।।
हे धर्म के ठेकेदार .....................
यह कैसा व्यापार...
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज
विषय- व्यापार
नागफनी की गलियों में
होता फूलों का व्यापार।
धर्म बने अफीम की गोली
यह धरती से कैसा प्यार।।
एक दूजे की प्रीति पराई
गोदी में नदियों का कलरव।
स्वर्णिम किरणे अधरों पर
चमन में कांटो का होता बिहार।।
यह कैसा व्यापार......
आज तो उनका नाम ही नहीं
जो सींच गये लहू से वतन।
मजारे उन कमीनों की जगमगा रही
जो बेच गये शहीदों के कफन।।
यह कैसा व्यापार........
डरी -डरी सहमी है निगाहें
स्याह नभ में सजती बारात।
अमन में चुभन है कांटों से
हर शय में दिनमान का निखार।।
हे धर्म के ठेकेदार .....................
यह कैसा व्यापार...
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज
4/4/2020/शनिवार
*व्यापार*काव्य
आज व्यापार बढ रहा है।
पर खरीददार घट रहा है।
हर चीज हुई बिकाऊ यहां,
फिर भी आदमी मर रहा है।
सम्मान खरीद सकते यहां।
ईमान रोज बिकता यहां।
बताऐं क्या कुछ मिलता नहीं,
आदमी प्रतिदिन बिकता यहां।
व्यापारी फूला फला है।
व्यापार करना भी कला है।
कब कितनी करना मिलावट,
जाने तभी होता भला है।
सदैव भ्रष्टाचार मिलेगा।
ये खुला व्यापार मिलेगा।
बहुत सरकारें गिर रही हैं।
मंत्री संतरी सभी कुछ मिलेगा।
आदमी तक सस्ता हुआ है।
फटेहाल खस्ता हुआ है।
अभिभावक बच्चे परेशां,
सही मंहगा बस्ता हुआ है।
विवाह में व्यापार हो रहा।
दूल्हा करोड़ों में बिक रहा।
खरीदें भगवान कहीं मिले,
व्यापार गंदा नहीं मिल रहा।
स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
*व्यापार*काव्य
आज व्यापार बढ रहा है।
पर खरीददार घट रहा है।
हर चीज हुई बिकाऊ यहां,
फिर भी आदमी मर रहा है।
सम्मान खरीद सकते यहां।
ईमान रोज बिकता यहां।
बताऐं क्या कुछ मिलता नहीं,
आदमी प्रतिदिन बिकता यहां।
व्यापारी फूला फला है।
व्यापार करना भी कला है।
कब कितनी करना मिलावट,
जाने तभी होता भला है।
सदैव भ्रष्टाचार मिलेगा।
ये खुला व्यापार मिलेगा।
बहुत सरकारें गिर रही हैं।
मंत्री संतरी सभी कुछ मिलेगा।
आदमी तक सस्ता हुआ है।
फटेहाल खस्ता हुआ है।
अभिभावक बच्चे परेशां,
सही मंहगा बस्ता हुआ है।
विवाह में व्यापार हो रहा।
दूल्हा करोड़ों में बिक रहा।
खरीदें भगवान कहीं मिले,
व्यापार गंदा नहीं मिल रहा।
स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
विषय-- व्यापार
विधा- मुक्त
दिनांक--04 / 04 / 2020
जीवन की बिसात पर
साँसों का व्यापार है
हर धर्म यहाँ कर्जदार है
हर कर्म फर्जदार है
रीतियों के बाजार गरम हैं
नीतियां बेबस खड़ी
रुपया नीचे गिर रहा
सिक्का उछलने से रहा
भावनाएं वजीर बन भाव खा रहीं
प्यादे बन संस्कार भटक रहे
नैतिकता केऊँट-घोड़े, चलते
टेड़ी चाल हैं
रुह ए बेगम बेकरार है
बादशाह ए दिल बेईमान है
इश्क़ की बाजी लगा कर
कर रहा व्यापार है।
डा.नीलम
विधा- मुक्त
दिनांक--04 / 04 / 2020
जीवन की बिसात पर
साँसों का व्यापार है
हर धर्म यहाँ कर्जदार है
हर कर्म फर्जदार है
रीतियों के बाजार गरम हैं
नीतियां बेबस खड़ी
रुपया नीचे गिर रहा
सिक्का उछलने से रहा
भावनाएं वजीर बन भाव खा रहीं
प्यादे बन संस्कार भटक रहे
नैतिकता केऊँट-घोड़े, चलते
टेड़ी चाल हैं
रुह ए बेगम बेकरार है
बादशाह ए दिल बेईमान है
इश्क़ की बाजी लगा कर
कर रहा व्यापार है।
डा.नीलम
विषय =व्यापार
विधा=हाइकु
दिनांक =4/04/20/20
बंद व्यापार
बिगड़े है हालात
कोरोना मार
करे व्यापार
फैलाकर कोरोना
चीन सामान
हैं अंधकार
कर रहें व्यापार
धर्म की आड़
दोस्ती का हाथ
सफलता अपार
यही व्यापार
देश विदेश
व्यापार हो अपार
नैया हो पार
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
विधा=हाइकु
दिनांक =4/04/20/20
बंद व्यापार
बिगड़े है हालात
कोरोना मार
करे व्यापार
फैलाकर कोरोना
चीन सामान
हैं अंधकार
कर रहें व्यापार
धर्म की आड़
दोस्ती का हाथ
सफलता अपार
यही व्यापार
देश विदेश
व्यापार हो अपार
नैया हो पार
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
शीर्षक -व्यापार
दिनांक -04/04/2020
उतार-चढ़ाव ,व्यापार के अभिन्न
अंग हैं ।
जीवन के कई ,विविध रंग हैं।
मिला जुला ,सबका समन्वित
ढंग है।
चल पड़ा है, दौर मंदी का देश पर छाया
संकट है ।
इंसान सब हो गए ,कैद घरों में व्यापार हो गया मंदा है।
हिचकोले खा रही, वक्त की
रफ्तार है ।
लाभ -हानि को समेटे, व्यापार हुआ
बंद है।
यह मंदी का दौर, देश को कहां ले
जाएगा ।
जीवन सुरक्षित है, तो सब पूरा हो
जाएगा।।
स्वरचित ,मौलिक रचना
रंजना सिंह
प्रयागराज
दिनांक -04/04/2020
उतार-चढ़ाव ,व्यापार के अभिन्न
अंग हैं ।
जीवन के कई ,विविध रंग हैं।
मिला जुला ,सबका समन्वित
ढंग है।
चल पड़ा है, दौर मंदी का देश पर छाया
संकट है ।
इंसान सब हो गए ,कैद घरों में व्यापार हो गया मंदा है।
हिचकोले खा रही, वक्त की
रफ्तार है ।
लाभ -हानि को समेटे, व्यापार हुआ
बंद है।
यह मंदी का दौर, देश को कहां ले
जाएगा ।
जीवन सुरक्षित है, तो सब पूरा हो
जाएगा।।
स्वरचित ,मौलिक रचना
रंजना सिंह
प्रयागराज
दिनांक 4 अप्रैल 2020
विषय व्यापार
दुनिया की उठक पटक मे ,हालात समझना पडता है
बहुत कठिन व्यापार है, सोच समझ करना पड़ता है
कभी नजर मौसम पर जाए, कभी नजर बाजार पर
सबकी मांग मुताबिक व्यापार को ढलना पडता है
चुनौतियां कितनी ही सारी है , राहे ये आसान कहां
रिस्क लेकर के कई बार हमे आगे बढना पडता है
प्रेम से बोल दो मीठे बोल, उधार ले जाते माल कभी
धन उगाही को, हाथ जोड निवेदन करना पड़ता है
इतने पर भी कहां पर संतोष रख पाता है व्यापारी
प्रशासन के नए नियमों पर, धीरज रखना पडता है
खर्च कई, आमदनी एक, बंटवारा कई फिर हिस्सो मे
बिल, किस्तें , किराया वगैरह सब ही भरना पडता है
क्या कहे इस बारे में, जो करता है वो जाने अच्छे से
कितनी तंग गलियों से होकर यहां गुजरना पडता है
छोटा हो या बडा व्यापार, किसी के घर की रोजी रोटी
जो बंद रहे दो चार दिन, तकलीफो से लड़ना पडता है
कामना यही है मालिक मेरे, सब तो बरकत देना तुम
अपनो के खातिर किसी को बाहर निकलना पडता है
कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
विषय व्यापार
दुनिया की उठक पटक मे ,हालात समझना पडता है
बहुत कठिन व्यापार है, सोच समझ करना पड़ता है
कभी नजर मौसम पर जाए, कभी नजर बाजार पर
सबकी मांग मुताबिक व्यापार को ढलना पडता है
चुनौतियां कितनी ही सारी है , राहे ये आसान कहां
रिस्क लेकर के कई बार हमे आगे बढना पडता है
प्रेम से बोल दो मीठे बोल, उधार ले जाते माल कभी
धन उगाही को, हाथ जोड निवेदन करना पड़ता है
इतने पर भी कहां पर संतोष रख पाता है व्यापारी
प्रशासन के नए नियमों पर, धीरज रखना पडता है
खर्च कई, आमदनी एक, बंटवारा कई फिर हिस्सो मे
बिल, किस्तें , किराया वगैरह सब ही भरना पडता है
क्या कहे इस बारे में, जो करता है वो जाने अच्छे से
कितनी तंग गलियों से होकर यहां गुजरना पडता है
छोटा हो या बडा व्यापार, किसी के घर की रोजी रोटी
जो बंद रहे दो चार दिन, तकलीफो से लड़ना पडता है
कामना यही है मालिक मेरे, सब तो बरकत देना तुम
अपनो के खातिर किसी को बाहर निकलना पडता है
कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
दिनांक:-4-4-2020
शीर्षक:-व्यापार
प्यार के नाम पर व्यापार,
भी हो सकता है|
मगर व्यापार कभी प्यार
नहीं हो सकता|
लाभ और हानि का,
या खेला है|
कभी किसी का व्यवहार,
नहीं हो सकता|
क्रूर व्यापार का व्यवहार,
सदा होता है|
कोई इन्सानियतन नहीं, इसमें होती|
फ़कत सिक्कों का ,
खेल होता है|
इसमें इन्सानियत
नहीं होती |
अनाड़ी इसमें डूब ,
जाते हैं|
खिलाड़ी खुल के ,
ऐश करते हैं|
कभी फर्श से ,
अर्श पे जाते हैं|
कभी फिर फ़र्श ,
पर आ जाते हैं|
रिश्तों के रूप बदलने,
न पायें|
रिश्ते व्यापार न,
बनने पाये |
स्वार्थपरता का रोग,
न लगने पाये|
ज़िन्दगी ख़ुद कभी,
बाजार न बनने पाये|
प्रमाणित किया कि यह
मेरी मौलिक रचना है|
विजय श्रीवास्तव
बस्ती
शीर्षक:-व्यापार
प्यार के नाम पर व्यापार,
भी हो सकता है|
मगर व्यापार कभी प्यार
नहीं हो सकता|
लाभ और हानि का,
या खेला है|
कभी किसी का व्यवहार,
नहीं हो सकता|
क्रूर व्यापार का व्यवहार,
सदा होता है|
कोई इन्सानियतन नहीं, इसमें होती|
फ़कत सिक्कों का ,
खेल होता है|
इसमें इन्सानियत
नहीं होती |
अनाड़ी इसमें डूब ,
जाते हैं|
खिलाड़ी खुल के ,
ऐश करते हैं|
कभी फर्श से ,
अर्श पे जाते हैं|
कभी फिर फ़र्श ,
पर आ जाते हैं|
रिश्तों के रूप बदलने,
न पायें|
रिश्ते व्यापार न,
बनने पाये |
स्वार्थपरता का रोग,
न लगने पाये|
ज़िन्दगी ख़ुद कभी,
बाजार न बनने पाये|
प्रमाणित किया कि यह
मेरी मौलिक रचना है|
विजय श्रीवास्तव
बस्ती
तिथि-4/4/2020
विषय-व्यापार
आज है व्यापार का युग
हर तरफ व्यापार है।
आज के सारे नाते रिश्ते व्यापार
प्यार मुहब्बत व्यापार।
स्वार्थ की भावना ने हर
ली है अपनेपन की कशिश।
सब कुछ तौला जाता आज
लाभ-हानि के तराजू पर।
है मिलावट हर ओर हर रिश्ते में
प्यार की सुगंध नहीं अब रिश्ते में!
अनिता निधि
जमशेदपुर
विषय-व्यापार
आज है व्यापार का युग
हर तरफ व्यापार है।
आज के सारे नाते रिश्ते व्यापार
प्यार मुहब्बत व्यापार।
स्वार्थ की भावना ने हर
ली है अपनेपन की कशिश।
सब कुछ तौला जाता आज
लाभ-हानि के तराजू पर।
है मिलावट हर ओर हर रिश्ते में
प्यार की सुगंध नहीं अब रिश्ते में!
अनिता निधि
जमशेदपुर
विषय : व्यापार
विधा : कविता
तिथि : 4.4.2020
व्यापार
--------
किस किस चीज़ का आज, हो रहा व्यापार-
रिश्ते, मैत्री, पद-प्रतिष्ठा, धर्म व कौमार्य
बोली लगाओ और सब कुछ पाओ-
बिन मोल, बिक रहे हैं संस्कार!
स्वार्थ और पैसा,कलयुग में बस यही आधार
न नैतिकता, न संस्कृति, न ही अंतर- पुकार
सारे कमल मुर्झा गए, हा!कीचड़ की बलिहार
कलयुग में संस्कारों का, कुल हुआ बहिष्कार।
मिष्टी पानी पिला पिला, जड़ पर चले कटार
आवा का आवा बिगड़ चुका, हो रही मारा-मार
संस्कारों को ताक पर रख,फल रहे काले व्यापार-
काली मति,काली सोच,कलयुग का कैसे होगा उद्धार?
-रीता ग्रोवर
-स्वरचित
विधा : कविता
तिथि : 4.4.2020
व्यापार
--------
किस किस चीज़ का आज, हो रहा व्यापार-
रिश्ते, मैत्री, पद-प्रतिष्ठा, धर्म व कौमार्य
बोली लगाओ और सब कुछ पाओ-
बिन मोल, बिक रहे हैं संस्कार!
स्वार्थ और पैसा,कलयुग में बस यही आधार
न नैतिकता, न संस्कृति, न ही अंतर- पुकार
सारे कमल मुर्झा गए, हा!कीचड़ की बलिहार
कलयुग में संस्कारों का, कुल हुआ बहिष्कार।
मिष्टी पानी पिला पिला, जड़ पर चले कटार
आवा का आवा बिगड़ चुका, हो रही मारा-मार
संस्कारों को ताक पर रख,फल रहे काले व्यापार-
काली मति,काली सोच,कलयुग का कैसे होगा उद्धार?
-रीता ग्रोवर
-स्वरचित
दिनांक-4-4-2020
विषय-व्यापार
विधा-कुंडलियां
पूरा बस मुझको मिले,
ऐसे तुच्छ विचार।
प्रेम प्यार उनके लिए,
होता है व्यापार।
होता है व्यापार,
स्वयं की सदा सोचते।
निज स्वारथ में लिप्त,
रंक की खाल नोचते।
धरे हाथ पर हाथ,
छोड़ते काम अधूरा।
सदा जमाएं धौंस,
चाहिए उनको पूरा।।
*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
विषय-व्यापार
विधा-कुंडलियां
पूरा बस मुझको मिले,
ऐसे तुच्छ विचार।
प्रेम प्यार उनके लिए,
होता है व्यापार।
होता है व्यापार,
स्वयं की सदा सोचते।
निज स्वारथ में लिप्त,
रंक की खाल नोचते।
धरे हाथ पर हाथ,
छोड़ते काम अधूरा।
सदा जमाएं धौंस,
चाहिए उनको पूरा।।
*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
विषय-व्यापार।स्वरचित।
क्या कहें कलयुग में क्या से क्या हो गया।
रिश्तों को निभाना अब व्यापार हो गया।।
गरीब है घर में कोई,सौदा घाटे का हो गया।
अमीर है तो फिर सोच में मालामाल हो गया।
पैसा,पद अब भेदभाव का आधार हो गया।।
रिश्तों को निभाना अब व्यापार हो गया...
ऊंचे पद पर बैठा सिर आंखों पर रहता।
करता खेत मजूरी जो आर्डर पाता रहता।
प्यार मोहब्बत बस जुबां का काम रह गया।।
रिश्तो को निभाना अब व्यापार हो गया....
बच्चों में भी डालें ऐसे ही बेहूदा संस्कार।
कि मात पिता को देते जब तक वहदुत्कार।
संस्कृति का तो देखो सत्यानाश हो गया।।
रिश्तों को निभाना अब व्यापार हो गया...
****
प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
रिश्तों को निभाना अब व्यापार हो गया।।
गरीब है घर में कोई,सौदा घाटे का हो गया।
अमीर है तो फिर सोच में मालामाल हो गया।
पैसा,पद अब भेदभाव का आधार हो गया।।
रिश्तों को निभाना अब व्यापार हो गया...
ऊंचे पद पर बैठा सिर आंखों पर रहता।
करता खेत मजूरी जो आर्डर पाता रहता।
प्यार मोहब्बत बस जुबां का काम रह गया।।
रिश्तो को निभाना अब व्यापार हो गया....
बच्चों में भी डालें ऐसे ही बेहूदा संस्कार।
कि मात पिता को देते जब तक वहदुत्कार।
संस्कृति का तो देखो सत्यानाश हो गया।।
रिश्तों को निभाना अब व्यापार हो गया...
****
प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
विषय निर्दिष्ट
विधा कविता
दिनाँक 4.3.2020
दिन शनिवार
व्यापार
💘💘💘
पूरी मानसिकता ही बीमार हो गई
अब तो हर चीज़ ही व्यापार हो गई
जीवन की रस्मों के सौदे हो गये
दिन पर दिन दिखावे भौंडे हो गये।
इलेक्ट्रोनिकि ने और भी बदहाल कर दिया
कई बेचारों को कँगाल कर दिया
कईयों ने पेंशनर्स की पेंशन तक हड़प ली
अधिक ब्याज के सपने दिखा फटेहाल कर दिया।
नकली पनीर समारोहों में आ गया
नकली मावा मिठाईयों में छा गया
फलों का सेवन स्वास्थ के नाम किया उसने
और बेटा खूब पैस्टीसाइड खा गया।
व्यापारी सौदा व्यापारी की नाक होता था
इसमें ग़लत विचार नापाक होता था
अब तो लोग पैसे तक खा जाते हैं
और ऐसे लोग सफेदपोश कहलाते हैं।
अख़बार आज रहते हैं इनसे भरे
अब कौन है ऐसा जो किससे भी डरे
व्यापार में अब अनाचार आ गया
जो इसका हर किला ही ढा गया।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
विधा कविता
दिनाँक 4.3.2020
दिन शनिवार
व्यापार
💘💘💘
पूरी मानसिकता ही बीमार हो गई
अब तो हर चीज़ ही व्यापार हो गई
जीवन की रस्मों के सौदे हो गये
दिन पर दिन दिखावे भौंडे हो गये।
इलेक्ट्रोनिकि ने और भी बदहाल कर दिया
कई बेचारों को कँगाल कर दिया
कईयों ने पेंशनर्स की पेंशन तक हड़प ली
अधिक ब्याज के सपने दिखा फटेहाल कर दिया।
नकली पनीर समारोहों में आ गया
नकली मावा मिठाईयों में छा गया
फलों का सेवन स्वास्थ के नाम किया उसने
और बेटा खूब पैस्टीसाइड खा गया।
व्यापारी सौदा व्यापारी की नाक होता था
इसमें ग़लत विचार नापाक होता था
अब तो लोग पैसे तक खा जाते हैं
और ऐसे लोग सफेदपोश कहलाते हैं।
अख़बार आज रहते हैं इनसे भरे
अब कौन है ऐसा जो किससे भी डरे
व्यापार में अब अनाचार आ गया
जो इसका हर किला ही ढा गया।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
शनिवार/04अप्रैल/2020
विषय- व्यापार
विधा - कविता
मुहब्बत कोई व्यापार नहीं है।
दो दिलों का कारोबार यहीं है।।
जब दिल से दिल मिलते हैं।
तब चमन के फूल भी खिलते हैं। ।
वक़्त वक़्त की बात है,
अब तुम मेरे साथ नहीं।
पर दिल के कोने कोने में,
महक रहा सौग़ात तेरी !!
आँखे खुली बिस्तर पर लेटे
याद में तरी करवटें बदल के
जब रूठ जाता है मन थक के
तुम्हीं मनाने आते हो .....!!
स्वरचित मौलिक रचना
रत्ना वर्मा
धनबाद- झारखंड
विषय- व्यापार
विधा - कविता
मुहब्बत कोई व्यापार नहीं है।
दो दिलों का कारोबार यहीं है।।
जब दिल से दिल मिलते हैं।
तब चमन के फूल भी खिलते हैं। ।
वक़्त वक़्त की बात है,
अब तुम मेरे साथ नहीं।
पर दिल के कोने कोने में,
महक रहा सौग़ात तेरी !!
आँखे खुली बिस्तर पर लेटे
याद में तरी करवटें बदल के
जब रूठ जाता है मन थक के
तुम्हीं मनाने आते हो .....!!
स्वरचित मौलिक रचना
रत्ना वर्मा
धनबाद- झारखंड
विषय - व्यापार
04/04/20
शनिवार
गज़ल
साज़िशों में खो रहा रिश्तों का सच्चा सार है,
है बनावट जिंदगी में, संकुचित व्यवहार है।
स्वार्थ के इस दौर में क्यों ढूँढता है चैन तू,
आज दुश्मन है जमाना , जिंदगी दुश्वार है।
दूसरों की सिसकियों को अनसुनी करते हैं सब,
स्वयं के गम और खुशी से ही सभी को प्यार है।
खून के रिश्ते सभी अपनी महत्ता खो रहे ,
आज अपना ही उजाड़े अपनों का संसार है।
वैभवों में खो गई सच्ची खुशी परिवार की,
आज रिश्तों का यहाँ बस हो रहा व्यापार है।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
04/04/20
शनिवार
गज़ल
साज़िशों में खो रहा रिश्तों का सच्चा सार है,
है बनावट जिंदगी में, संकुचित व्यवहार है।
स्वार्थ के इस दौर में क्यों ढूँढता है चैन तू,
आज दुश्मन है जमाना , जिंदगी दुश्वार है।
दूसरों की सिसकियों को अनसुनी करते हैं सब,
स्वयं के गम और खुशी से ही सभी को प्यार है।
खून के रिश्ते सभी अपनी महत्ता खो रहे ,
आज अपना ही उजाड़े अपनों का संसार है।
वैभवों में खो गई सच्ची खुशी परिवार की,
आज रिश्तों का यहाँ बस हो रहा व्यापार है।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
दिनांक-४/४/२०२०
शीर्षक-व्यापार
नीतिपूर्ण कीजिए उत्तम कर्म व्यवहार
इस दुनिया में यही है सर्वश्रेष्ठ व्यापार।
व्यापार में श्रम का है बड़ा महत्व
श्रम के बिना जीवन में
मिले ना कोई अलम्ब
पहले धन संचय करें
फिर हो व्यापार
वैसे ही सत्कर्म का
करें आप व्यापार
जितना लगाते धन
बढ़ते जाते आप
वैसे ही उत्तम कर्म
महिमा रचे अपार
ये जीवन है कर्म व्यपार
जैसा कर्म करेंगे
वैसा आयेगा पास
सफल व्यापारी बनना
है हमारा लक्ष्य
धर्म साहस सत्कर्म से
सफल हो जाये हम।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
शीर्षक-व्यापार
नीतिपूर्ण कीजिए उत्तम कर्म व्यवहार
इस दुनिया में यही है सर्वश्रेष्ठ व्यापार।
व्यापार में श्रम का है बड़ा महत्व
श्रम के बिना जीवन में
मिले ना कोई अलम्ब
पहले धन संचय करें
फिर हो व्यापार
वैसे ही सत्कर्म का
करें आप व्यापार
जितना लगाते धन
बढ़ते जाते आप
वैसे ही उत्तम कर्म
महिमा रचे अपार
ये जीवन है कर्म व्यपार
जैसा कर्म करेंगे
वैसा आयेगा पास
सफल व्यापारी बनना
है हमारा लक्ष्य
धर्म साहस सत्कर्म से
सफल हो जाये हम।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
आज समस्त विश्व का व्यापार, हो गया है लाचार, कोरोना का है प्रसार.
चौपट है व्यापार, व्यापार का पहिया है अवरुद्ध, व्यापारी गण क्रुद्ध.
महामारी ने पाव पसारा है, मानवता पर संकट भारी है.
लोभ, लिप्सा, साम्राज्यवाद ने दानवता जगायी है, सहस्त्र फणों की लोलुपता ने यह महामारी फैलायी है.
अर्थ की भूख ने आज ऐसा दिन दिखलाया है, मर रहे लोग, तड़प रहे हैं लोग, चीत्कार
संसार भर में समाया है.
मानव की ये लिप्सा आज इतनी बढ़ जाएगी, मानव-मानव का ग्रास बनेगा, सारी धरती थर्रायेगी.
अभी तो कलियुग का यह प्रथम चरण है, मानवता को लीलने का ये अजब ढंग है,
शर्मशार है ये मानवता बेशर्म है ये मानव,
धिक्कार है इनका जीवन, चीत्कारे जन,
हाय व्यापार, हाय व्यापार, हाय व्यापार,
ये चीत्कार, ये चीत्कार, नर संहार!!!!!.
स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ
डॉ कन्हैयालाल गुप्त 'किशन'
उत्क्रमित उच्च विद्यालय सह इण्टर कालेज ताली, सिवान, बिहार 841239
चौपट है व्यापार, व्यापार का पहिया है अवरुद्ध, व्यापारी गण क्रुद्ध.
महामारी ने पाव पसारा है, मानवता पर संकट भारी है.
लोभ, लिप्सा, साम्राज्यवाद ने दानवता जगायी है, सहस्त्र फणों की लोलुपता ने यह महामारी फैलायी है.
अर्थ की भूख ने आज ऐसा दिन दिखलाया है, मर रहे लोग, तड़प रहे हैं लोग, चीत्कार
संसार भर में समाया है.
मानव की ये लिप्सा आज इतनी बढ़ जाएगी, मानव-मानव का ग्रास बनेगा, सारी धरती थर्रायेगी.
अभी तो कलियुग का यह प्रथम चरण है, मानवता को लीलने का ये अजब ढंग है,
शर्मशार है ये मानवता बेशर्म है ये मानव,
धिक्कार है इनका जीवन, चीत्कारे जन,
हाय व्यापार, हाय व्यापार, हाय व्यापार,
ये चीत्कार, ये चीत्कार, नर संहार!!!!!.
स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ
डॉ कन्हैयालाल गुप्त 'किशन'
उत्क्रमित उच्च विद्यालय सह इण्टर कालेज ताली, सिवान, बिहार 841239
विधा: काव्य
तुम जब से गए हो....
मेरी आंखें दीप की तरह...
जलती हैं....
अश्क टप टप...
दामन पर गिरते हैं....
तन भी मन के साथ...
जलने लगता है....
फिर बाढ़ आती है...
बहा ले जाती है सब...
विभीषिका से मैं...
बिखर जाता हूँ....
इश्क़ किया तुमसे....
सौदेबाजी नहीं की...
दिल के बदले...
दिल नहीं माँगा...
वैसे भी इश्क़ में...
माँगा कहाँ जाता है...
मिल जाता है....
जिसका जो नसीब !
जोड़ता हूँ फिर अपने को....
पल पल तिनका तिनका....
फिर एक बवंडर आता है....
तेरी यादों का...
उड़ा ले जाता है मुझे....
तिनका तिनका....
मैं फिर ...
बिखर जाता हूँ...
बिखरने और जुड़ने का...
रिश्ता...
मैं बरसों से...
यूं ही शिद्दत से...
निभाता आ रहा हूँ...
हाँ, इश्क़ किया मैंने...
तिजारत नहीं...
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
०४.०४.२०२०
तुम जब से गए हो....
मेरी आंखें दीप की तरह...
जलती हैं....
अश्क टप टप...
दामन पर गिरते हैं....
तन भी मन के साथ...
जलने लगता है....
फिर बाढ़ आती है...
बहा ले जाती है सब...
विभीषिका से मैं...
बिखर जाता हूँ....
इश्क़ किया तुमसे....
सौदेबाजी नहीं की...
दिल के बदले...
दिल नहीं माँगा...
वैसे भी इश्क़ में...
माँगा कहाँ जाता है...
मिल जाता है....
जिसका जो नसीब !
जोड़ता हूँ फिर अपने को....
पल पल तिनका तिनका....
फिर एक बवंडर आता है....
तेरी यादों का...
उड़ा ले जाता है मुझे....
तिनका तिनका....
मैं फिर ...
बिखर जाता हूँ...
बिखरने और जुड़ने का...
रिश्ता...
मैं बरसों से...
यूं ही शिद्दत से...
निभाता आ रहा हूँ...
हाँ, इश्क़ किया मैंने...
तिजारत नहीं...
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
०४.०४.२०२०
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