Friday, April 3

" मनपसंद विषय लेखन"03अप्रैल2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें 
ब्लॉग संख्या :-700
स्वतंत्र लेखन
3/4/2020
*
************
क्षणिकाएं
1
प्रेम का
अलबेला सिलसिला
झिंझोड़ता,सहलाता है
तेरे जाने के बाद भी
धुंधली यादों को।

2
जरूरी है
नारी मन का कभी
पत्थर हो जाना
देखा है
पत्थर में नारी को
पूजा जाते हुए।

3
अपने पापों की
गठरी उठा कर जो चले आते हैं
कुकर्म धोने,
देखते नही की
गंगा ने पाप की गठरी
स्वीकार नही की है
गंगा मैली कहाँ हुई।

स्वरचित,वीणा शर्मा वशिष्ठ
विषय - मनपसंद

गरजते हैं बादल
दिल होता है धक-धक !
बलायें कोई भी
न दें वहाँ दस्तक!

सुना है कोरोना
पहुँचा घर घर तक!
सहम जाऊँ जब जब
न्यूज सुनूँ आज तक!

महबूब की खातिर
दुआयें हैं रब तक!
वो हैं यहाँ जब तक
ये सांसें तब तक!

'शिवम' वो सनम की
आँखों की इकटक!
आज भी रूलाती
आखिरी वह झलक!

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 03/04/2020

द्वितीय प्रस्तुति

जब से चलने लगी दुनिया दिमाग से।
लोग हो गये हैं कुछ आजाद से ।
रिश्ते सब लगते हैं बेबुनियाद से।
अब नही मिलते लोग आदाब से ।

दिखावे का लगता है जहां ।
सच्चाई ईमान अब कहाँ ।
नजर पलटी हाल यहाँ से वहाँ।
जो सीधे हैं वो बैठे जहाँ के तहाँ।

दिमाग बालों ने बनाये मकां ।
उनके हुये व्यवसाय दुकां ।
दिल की दुनिया बिकी दो टकां ।
सूखे चेहरे वो सूखा हरेक समां

क्यों न दिल बनाना छोड़े दाता।
क्यों न उसे ये समझ में आता ।
दिल छोड़ दिमाग में ध्यान लगाता।
आज 'शिवम' दिल वाला न रो पाता ।

हरि शंकर चाैरसिया 'शिवम'
स्वरचित 03/04/2020
विधा काव्य
03 अप्रैल 2020,शुक्रवार

है ईश्वर अति महान तू
तेरी करनी कोई न जाने
कब क्या हो जावे जग में
नर तुच्छ कुछ न पहिचाने?

कब रंक राजा बन जाये
कब भूप तरसे रोटी को
तेरे खेल निराले भगवन
तू पीर दे कोटि कोटि को।

तेरे हाथों की कठपुतली
क्या नाच नचावे दिनभर?
जन्म मृत्यु तेरे अधीन हैं
हँस न पावें हम खुलकर।

विश्व मंच का है निर्देशक
जीवन मात्र एक दिखावा।
सब स्वतंत्रता हाथ तुम्हारे
लगे जीवन सिर्फ छलावा।

कर्म कर्तव्य करने पर भी
मानव तो बस बोना लगता।
खून पसीना करके भी नित
फल की चिंता तुमसे करता।

कब प्रलय डमरू बज जाये
काल सुकाल है तेरे हाथों में।
मानव दिन भर जीभ हिलावे
समय व्यर्थ करे वह बातों में।

मन्दिर मस्जिद गिरिजा सूने
सूना है जग कोना कोना।
कोटि करो से दीप जलाओ
शीघ्र भस्म हो जग कोरोना।

स्वरचित
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
दिनांक-०३/०४/२०२०

विषय-मौन

मौन एक कथा है....... या एक व्यथा है

मन के कोरे कागज पे

चली लेखनी विचारों की।

मन से ही क्यों पूछ रहे हो

कौन गली है हम बंजारों की।

मन ने छोड़ा जब साथ हमारा

तुमने थामा जब हाथ हमारा

अब चाह नहीं है उपहारों की।

तुम बिन अब अच्छा लगता नहीं

खाली तस्वीर दीवारों की।

मौन एक कथा है बस........

या एक व्यथा है बस..........

द्रवित हृदय के उद्गारो की।

कभी अपने मन से पूछो ?

रहते हो दौलत की इमारत में

खुद को समझो खुद से

आत्मा की अदालत में।

एक ज्वाला है तन में

एक ज्वाला है मन में

एक ज्वाला है वतन में

एक ज्वाला है जहन में

कैसे हो ज्वाला का दहन

एक भड़की है आग

इस व्याग्र मन में

क्यू एकांत चाहे मेरा मन

मन की चाहत ,मन की भाषा

समझ ना पाए अब तक कोई

गजब है एक ऐसी जिज्ञासा

स्वरचित

सत्य प्रकाश सिंह
मन पसंद विषय लेखन
सादर मंच को समर्पित -

🌴 गीतिका बातें 🌴
**************************
🌺🌻 बातें 🌻🌺
छंद- वाचिक जतरगा
मापनी- 12 , 122 , 12 , 122
समांत- आर , पदांत- बातें



कहाँ गयी बेशुमार बातें ।
नयी पुरानी उधार बातें ।।

कभी दिलों को मिला गयी थीं ,
चली गयीं दिल बहार बातें ।

जिन्हें नहीं था पता किसी का ,
यकीन करती करार बातें ।

जहाँ किनारे कभी न मिलते ,
वहाँ पहुँचती फरार बातें ।

हजार बाहें पसार बैठे ,
वही सुनाते अपार बातें ।

न हो कभी भी गमे जुदाई ,
सदा मिलाती उदार बातें ।

नहीं ठिकाना कभी किसी का ,
जमीं टपकती फुहार बातें ।।

🍊💧🍀🍋



🌴🌺🌻**... रवीन्द्र वर्मा आगरा


भावों के मोती ।
बिषय -मन्जर ।


आओ देखे दर्द जिन्दगी के कितने ।
कहर चला है तूफानी आपदा बनके ॥
कौन हो इसका शिकार देखना है ।
किस जिन्दगी पर हो अत्याचार देखना है ॥
अब पवन चला है इक दिल जला बनके ।

कुदरती बिभचार रूपी है इये कुँआ ।
बेदर्द हालात का है फैलता हुआ धुंआ ॥
मौत का आया है इक काफिला बनके ॥
कैसी तबाही मच रही संसार मे है ।
बेवशी का आलम जहां गुलजार में है ।
जलाने आ गया है जो जख्म ज्वाला बनके ।


मदनगोपाल शाक्य ।पान्चाली ।
कम्पिल ,फर्रूखाबाद ।उ .प्र ॥

विषय-मनपसंद लेखन।
स्वरचित।

मन के मीत

तन के श्रृंगार

मेरे यार ,तेरा प्यार

मधुर बंधन है।।
*****
प्रियतम का साथ

तेरी बाहों का हार

मधु -मधुर एहसास

मेरी धड़कन में

तेरा ही स्पंदन है ।

मन के मीत
तन के श्रृंगार
मेरे यार, तेरा प्यार
मधुर बंधन है।।
*****
तेरी एक नजर पर

बारी है सारी उमर

तेरी हर छुअन से

हारी हूं मैं मगर

समर्पण तन -मन का

तुझको ही अर्पण है ।।

मन के मीत,
तन के श्रृंगार
मेरे यार तेरा प्यार
मधुर बंधन है।।
******

गंध तेरे तन की

संदल पवन सी,

वानी तेरी मादक

अमृत-सुधा सी ,

महकाय कलियां

मेरे मन उपवन की

मेरा खुद तुम्हें ही समर्पण है।।

मन के मीत
तन के श्रृंगार
मेरे यार तेरा प्यार
मधुर बंधन है।।
*****

प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
दिनांक- 03/04/2020

उम्मीद"

उम्मीदों का लिए दिया........
चल पड़ा पथिक पथ की ओर।
चंद्र धवल की चंचल किरणें,
बढ़ रही थी धरा की ओर।

सहसा छा गया घनघोर अंधेरा
बादलों ने नभ को घेरा......
पथ पर छाया अंधेरा
चल पड़ा पंथी अकेला।

उम्मीद की किरण लेकर ,
बढ़ता जा रहा पथ पर ।
आंखों में एक नई चमक ,
कर्म -पथ पर बढ़ चला निरंतर।

स्मृति पटल की स्मृतियों में,
बस थोड़ा सा विराम लगा ।
दिवाकर की किरणों से ,
एक नया विश्वास जगा ।

सहसा किरणें उदित हुई ,
घनघोर अंधेरा भाग गया ।
जा छिपा क्षितिज के कोने में ,
धरा का सार बतला गया।

उम्मीद की हर एक किरण ,
मन में विश्वास जगाती है ।
चाहत की हर एक तस्वीर ,
नया आयाम बनाती है।।

स्वरचित ,मौलिक रचना
रंजना सिंह
प्रयागराज
दिनांक 03/04/2020
दिन- शुक्रवार
आयोजन- मनपसंद विषय लेखन
विधा कविता
शीर्षक-खुशी ढूंढ लेते हैं
*************************************
चलो अपनों संग जी भर जी लेते हैं
लॉकडाउन में भी खुशी ढूंढ लेते हैं
जिंदगी के सारे गम मिलकर दूर कर लेते हैं
लॉकडाउन में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।
भाग-दौड़ भरी इस जिंदगी में
सुकून के पल कहां मिलते हैं यारों
आज मिले हैं जो पल इन्हें जी भर जी लेते हैं
लॉकडाउन में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।
फुरसत में अक्सर याद आते थे
बचपन के वो सुहाने दिन
चलो आज एक बार फिर
बचपन को जी लेते हैं
लॉकडाउन में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।
ख्वाहिशें जो कभी रह गई थी अधूरी
आज पूरी उन्हें कर लेते हैं
लॉकडाउन में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।
अक्सर रहती थी उनको मुझसे शिकायत
मेरे हिस्से का समय तुम कहां हमें देते हो
चलो शिकायत उनकी ये भी दूर कर देते हैं
लॉकडाउन में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।
अरसा हुए आगोस में उनकी खोए हुए मुझको
चलो आज फिर उन्हें बाहों में भर लेते हैं
लॉकडाउन में भी खुशी ढूंढ लेते हैं।
*************************************
स्वरचित-सुनील कुमार
जिला- बहराइच,उत्तर प्रदेश।

दिन- शुक्रवार
आयोजन- मनपसंद विषय लेखन विधा- कविता
शीर्षक-पलायन
************************************
विपदा कैसी ये आन पड़ी है
पलायन को जनता अड़ी है
माना संकट की यह घड़ी है
पर पलायन इसका हल नही है
हो जहां अभी तुम वहीं ठहरो
थोड़ा दु:ख- संकट भी सह लो
परीक्षा की तुम्हारे ये घड़ी है
खुशियां तुम्हारे पीछे खड़ी हैं
सोचो थोड़ा तुम भी सोचो
अपने बढ़ते कदमों को रोको
गांव को अभी न वापस लौटो
नहीं तो जीती जंग हार जाओगे
गलती पर अपनी पछताओगे
समय बहुत कम है जल्दी चेतो
इस विपदा का तुम भी हल सोचो
चूक तुम्हारी कहीं पड़ न जाए भारी
गम में बदल न जाएं खुशियां सारी
ईश्वर का है तुमको वास्ता
पलायन का अपने बदलो रास्ता
खुशियां सबकी हैं तुम्हारे हाथ
पलायन की न करना अभी बात।
************************************
प्रस्तुति-सुनील कुमार
जिला- बहराइच,उत्तर प्रदेश।
विषय:- मनपसंद रचना

तुम हमारे हो हमने,
यही मान कर|
ज़िन्दगी हार दी है,
तुम्हारे लिए|

हर मनोकामना है,
तुम्हीं पर ख़तम|
सारे सपने हमारे,
तुम्हारे लिए|

कहने को तो ये दिल,
है हमारा मगर|
ये धड़कता है ,
केवल तुम्हारे लिए|

तुम भी क्या सोचते,
हो वही जो कि मैं|
सोचता रहता,
हर पल तुम्हारे लिए|

क्या है जायज़ नाजायज़,
इसे भूल कर|
अपनी पलकें उठाओ,
हमारे लिए|

प्यार के खातिर,
ही तो बनी |
ज़िन्दगी है,
हमारे तुम्हारे लिए|

मैं प्रमाणित करता हूँ
कि यह मेरी मौलिक रचना है|
विजय श्रीवास्तव
मालवीय रोड
गांधी नगर
बस्ती

विषय मनपसंद
विद्या काव्य

दिनांक 30/32020

हास्य काव्य

करुणावतार

करुणावतार कोरोना
कलियुग का करूणावतार
अवतरित हुआ चीन की धरा पर
ऊंची ऊंची ,महल अट्ठालिकाएं
देख प्रभु का मन हर्षाया
सर्वप्रथम उन्होंने अपना चरण वहीं जमाया ,
ना कोई पूजा ,ना कोई भोग
आरती भजन तो कोसो दूर
अपने अपने अहं के मद मे सब थे चूर
करुणानिधि ने चक्र चलाया
देखते-देखते भारी तबाही मचाया ।
हाय हेलो ,गुड मॉर्निंग इवनिंग भूल गये सब,
सबको नमस्कार करना‌ सिखाया
एक फीट की दूरी पर रहना ,
मांसभक्षी को शाकाहारी बनाया
कच्चा मांस भक्षण करनेवाले
राक्षस को रोटी चावल खिलाया
हाथ धोना ,पैर धोना और हाथ जोड़ कर
नमस्ते करना सिखाया ।
तब प्रभु ने इटली स्पेन , लंदन, अमेरिका
हर जगह नजर घुमाया
अधर्म को चरम सीमा पर पाया।
भारत में जब हुआ प्रभु का आगत
मंत्री संतरी राजा प्रजा
सबने घंटी,ताली घंटा शंखनाद किया
करुणावतार कोरोना प्रभु का जय जय जयकारकिया ।
२१की छुट्टी ले लेकर
प्रभु की सेवा में बैठे सब
मंदिर ,मस्जिद,गुरूद्वारे बंद कर
जाति,धर्म सब भेद भूलकर
सबने की करूणावतार की सेवा
हुए प्रसन्न प्रभु ,बोले सुखी रहो
मैं कलियुग का हूं करूणावतार कोरोना ,
मुझसे तुम डरो ना
धर्म का पालन करो
सेवा भाव रखो
शाकाहारी बनो
घर का खाना खाओ
सादा जीवन उच्च विचार।
करोना बाबा की जय जय कार।
वायु प्रदुषण मुक्त हो गये तुम
विदेशी हौवा से फ्री हो गये तुम !
एक स्वर में सब बोल पड़े
अपना देश महान है
अपने देश में भगवान है।।
भारत देश सनातन है।
यहां की यहां संस्कृति न्यारी है।
प्रभु की बातें सब सुन रहे थे
हाथ जोड़कर खड़े थे।
प्रभु की लीला अपरम्पार
जय जय हे करूणावतार
जय जय जय हे करूणावतार ।।

माधुरी मिश्र
साहित्यकार क
दमा जमशेदपुर झारखंड

3/4/2020
बिषय, स्वतंत्र लेखन

अपने बिशाल हृदय में छोटी सी जगह दे देना
बदले में चाहे सर्वस्व मेरा ले लेना
तेरे ही कारण जमाने को है भुलाया
तेरे ही कारण हुआ जग पराया
सब हुए पराए तू पराया न होना
ए दुनिया सारी बस एक सपना
झूठे सभी हैं नाते कोई नहीं है अपना
गर हो सके तो मुझको तुम ही अपना लेना
दर दर भटक रही हूँ जाऊँ तो कहाँ जाऊँ
मन सुमन अर्पित कर तुझे आवाज लगाऊँ
हे मेरे नयनार कैसे तुझे रिझाऊं
राह नहीं सूझती तुम ही राह दिखा देना
स्वार्थ के नातों से लगता नहीं है मन
तेरे बगैर मेरा सूना पड़ा आंगन
सांसों की डोर जब तक तब तक मुझे संभालो
क्या सोच रहे भगवन चरणों से मुझे लगा लो
थामा है हाथ मेरा देखो.न छुड़ा लेना
स्वरचित सुषमा ब्यौहार
दिनांक 3.4.2020
विषय कोरोना
रचयिता पूनम गोयल


न जानें , कैसा था वह क्षण ,
जो लेकर आया ,
कोरोना अपने संग ।
फिर थम-सा गया जीवन ,
बिल्कुल ठहर गया जीवन ।।
त्राहि-त्राहि मच गयी
सम्पूर्ण विश्व में ,
क्योंकि सुरसा-समान
फैल गयी यह महामारी ,
समस्त विश्व में ।।
छूआछात के कारण
यह प्रभावित कर रही ,
जन-जन को ,
एवं भयभीत कर रही यह ,
प्रत्येक जन को ।।
बारम्बार किया मानव ने ,
प्रकृति के साथ व्यभिचार ।
धरती का अपमान करके ,
निरंतर कर रहा था गगन-विहार ।।
लज्जित होने के बजाय ,
अपने दुष्कर्मों पर ।
फहराई उसने विजय-पताका ,
जिससे हुआ आहत हृदय ,
हमारी धरती माँ का ।।
तत्पश्चात् ली समय ने करवट ,
और यकायक रोक दिया ,
द्रुतगति से चल रहे मानव को ।
और समझा दिया मूकभाषा में ,
अपनी महत्ता को ।।
आज प्रत्येक मानव
को है प्रतीक्षा ,
फिर से कार्यरत
होने की ।
एवं अपने प्रयासों से ,
पृथ्वी को गतिमान
करने की ।।
परन्तु उससे पहले
उसे अवश्य संभलना होगा ।
तथा पूर्णतया सुधारने का ,
भीष्म -प्रण करना होगा ।।
है तभी सम्भव
कि शायद प्रकृति माँ ,
सुख का संचार करें ।
एवं पुन: इस धरती को ,
यथावत गतिमान करे ।।

विषय-मनपसंद लेखन
विधा-नवगीत

"मेरे मनमीत"

पूरक पंक्ति 16-7
अंतरा-16-9

पीर जलाये आज विरह फिर,
बनती रीत
छलिया सजना मुझसे बोले
कैसी प्रीत

याद करो वो बीती बातें
वो बैरन राते
नैन में नैन डाले करते
थे सिर्फ बातें
समा गई है अब रिश्तों में
निष्प्रभ सी शीत
पीर जलाये आज विरह फिर,
बनती रीत

बहुत हुआ अब आ भी जाओ
हम राह ताकें
क्षण क्षण उठ के बाहर जाएं
कभी हम झाँके
मैं हारी सजना तुम जीते
मेरे मनमीत
पीर जलाये आज विरह फिर,
बनती रीत।।

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
3/4/2020

अधूरी ख्वाहिशें
******

धवल चंद्र चमका नभ पटल पर फैली है शुभ्र-शीतल चांदनी
धरा से अंबर तक
बही सुवासित मन्द-मन्द बयार
मेरी खिड़की से झांकता ये रुपहला चांद!
चाँदनी से नहाई है ये सर्द रात
पेड़ों की फुनगी पर अठखेलियाँ करता हुआ चाँद
मचलती-छलकती हुई ये चाँदनी
और पसर गई है मेरे कमरे के बिस्तर पर आकर।
आज है मन में उठते गिरते भावनाओं के ज्वार,
है सब कुछ स्वप्न सा बुनती प्रियतम दरस की आस
विरहन को जलाती यह चाँदनी अंगारों सी,
मन में है गहन उदासी सी
हर तरफ खामोशी और है तन्हाई का आलम
रात की निरवता घेर लेती है मुझे
कसकर अपनी बाहों में
और तब दम तोड़ देती है
मेरी कई कई अधूरी ख्वाहिशें!

*******

अनिता निधि
जमशेदपुर
दिनांक-३/४/२०२०
मनपसंद लेखन

कह मुकरी।

१)
मन को वह मुझे बहुत भाये
बिन उसके चैन न आये
उसके साथ को मन लुभाइल
ऐ सखि साजन?,ना सखि मोबाइल।

२)
शाम सबेरे मुझे पुकारे
रह रह कर सिटी मारे
आये जो चैन उसे छूकर
ऐ सखि साजन?ना सखि कूकर।

सुधार अपेक्षित
आरती श्रीवास्तव।

3/4/20
मन पसन्द लेख



हर दर्द खत्म हो जाता है।
हर चाह चली तब जाती है।

हर अक्स धुंधला से दिखता है।
न रहता कोई पक्ष विपक्ष।

जो होता नही खुद के समक्ष।
बस चाह उसी की होती है।

जब अंत समय आ जाता है।
गर्मी बदन से चली जाती है।
तन ठंडा ठंडा हो जाता है।

पीड़ाएँ भी न समाती है।
सासे भी डगमग होती है।

दर्द उठता करता है सीने में।
आँखों मे अंधेरा सा छ। जाता है।

भूली बिसरी यादे आती।
आँखों से आशू बहते है।

जब अंतिम पल आ जाता है
मन मे न रहती आस कोई।
गिनने को कोई स्वास कोई।

आँखों मे काल मंडराया।
लगता है कोई लेने आया।


तन मुक्त हुआ जन जीवन से।
जब अंतिम पल आ जाता है।


*अफवाह*
**********
अफवाह यहाँ फैलती,
जैसे फैले आग ।
यह गलती मत कीजिए,
नहीं लीजिए भाग ।।

नहीं लीजिए भाग,
रात कटेगी जेल में।
गुनहगार का दाग,
लग जायेगा खेल में।।

पहले कर लो जाँच,
फिर भेजो चाहे जहाँ ।
इतना रखना ध्यान,
फैले न अफवाह यहाँ ।।
 *विनय कुमार 'बुद्ध'*,
न्यू बंगाईगांव (असम),

विधा : कविता
तिथि : 3.4.2020

अहम् विलय, आस्था अपराजेय

अहम् विलय, आस्था अपराजेय।

मैं ही ऊंचा, हर दूजा छोटा
आस्था से तूं सदा रहा रूठा
स्वयं को माना सदा अनूठा
नम्रता से क्यों करे न सुलह?

अहम् विलय, आस्था अपराजेय।

शैतान को क्यों सिर पे चड़ाया
सद्बुद्धि को क्यों धूल चटाया
जनमों जनम भरे गा बकाया
अंतरात्मा से क्यों करता कलह?

अहम् विलय, आस्था अपराजेय।

कुछ सत्कर्मों का खाता भर लेता
ऊपर वाले से तो ,कुछ डर लेता
भविष्य पर भी निगाह धर लेता
कैसे रोके गा जब आए गी प्रलय?

अहम् विलय, आस्था अपराजेय।

अहम कभी न बनाता है महान
अहम् तो बस खोखली पहचान-
ऊंची दुकान और फ़ीका पकवान
मधुर-स्वभाव- मन सच्चा आलय!

अहम् विलय, आस्था अपराजेय।

-रीता ग्रोवर
-स्वरचित
दिनांक 3 अप्रैल 2020
विषय मनपसंद


उदास मन कैसे उल्लास लिखे
गम ए दिल कैसे परिहास लिखे .....

मान कर चले जग अपना सारा
चोट मिली कैसे विश्वास लिखे .....

पाषाण मूरत बनी अपनो से ही
अपनों मे वह कैसे आस लिखे .....

वन कानन भटका तन मन सब
अंधेरा घना कैसे उजास लिखे ....

बदल दिया शब्दों ने रास्ता यहां
कलम फिर कैसे अहसास लिखे .....

तूफान तुम भी क्या करोगे अब
इन वीरानों मे कैसे विनाश लिखे ....

कहता रहा मुस्कराते रहो सदा
दिल वही यहां कैसे हताश लिखे .....

लुटाई दौलत सब अपने हाथों ही
जाए कहां और कैसे तलाश लिखे ....

सब्र कर मन वक्त टल जाएगा
जीवन बहुत, कैसे निराश लिखे ....

.......कमलेश जोशी
कांकरोली राजस्थान

विधा: नयी कविता

ऊषाकाल
अन्धकार को चीरकर
सूरज क्षितिज पर आया

नवल प्रात
नवल गीत संग
नवल दिन चढ़ आया

पुष्प वाटिका
सुगंध से महकी
चिड़िया बागों में चहकीं

रश्मियां छिटकीं
खुशियां बिखरीं
चेहरे की रौनक़ निखरी

आत्मा भी
मृत्यु रूपी निशा को चीरकर
नवीन जन्म लेती

नूतन काया
नव खुशियां भरकर
जीवन में डुबकी लेती

भूल भुलैया
जीवन की नैया
यूं ही चलती रहती

मनीष श्री
स्वरचित

दिनांक 3-4-2020

लकीर का फकीर न बन,कुछ हटकर चलना होगा।
अपने लिए सभी जीते,हमें अपनो हित जीना होगा।

साहस धैर्य संयम,विपदा का सामना करना होगा।
वसुधैव कुटुंबकं भावना रख, मिलकर रहना होगा।

अपने तो अपने हैं,गैरों को भी अपना बनाना होगा।
कदम से कदम मिला, हर विपदा से लड़ना होगा।

सर्वे भवंतू सुखिन:,जीवन आत्मसात करना होगा।
सुख साथ सब रहे,हमें दुख में साथ निभाना होगा।

किस्मत के भरोसे मत बैठ, कर्म नित तू करता रह,
अपने दम पर तुझे,सिकंदर एक दिन बनना होगा।

खामोशी से लिखता जा, अपने अनुभव के पन्ने तू,
सत्कर्म गठरी जब भी खुली,तेरा भी गुणगान होगा।

अहंकार त्याग तुझे,मनु जन्म सार्थक करना होगा।
प्रभु श्रेष्ठ रचना तू,तुझे सत्य मार्ग पर चलना होगा।



वीणा वैष्णव
कांकरोली
विषय-मनपसंद
03/04/2020


प्रकृति का दरबार

सजा है प्रकृति का दरबार अनोखे रंगों से !
होके हैरां मैं देखूं ये नजारे चकित उमंगों से!!

सुबह उषा ने जो गुलाल सर्वत्र बिखेरा है !
खिले कमलों को काले ,भंवरों ने घेरा है!!

सतरंगी फूलों का मधु पीने को रंग -रंगीली !
आईं है ये तितलियां ,काली ,नीली ,पीली !!

काले-धूसर बादलों के रंग छा गए आकाश में !
सप्तरंगी इंद्रधनुष झाँके बादलों के पास में!!

चंचल नदी, झरने, मोर नर्तन, हवा के झोंके !
सजाती हूं कविता में ये प्रकृति के रंग अनोखे!!

आशा शुक्ला ,,शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश)
विषय - मनपसंद लेखन
03/04/20

शुक्रवार
आज का परिदृश्य
कविता

मुखरित हैं घर के आँगन, खिड़की- दरवाजे चहक उठे,
नियति -नटी के सम्मुख बेबस लोगों के मन ठिठक उठे।
बहुत किया दोहन प्रकृति का,पाँचों तत्त्व किए दूषित,
रिश्तों की गरिमा सब भूले ,परिजन मन में खटक उठे।
छल-छद्मों से महल अनेकों वैभव के थे खड़े किए,
अगणित सुविधाओं में रहकर कदम सभी के बहक उठे।
अनाचार, अन्याय भूमि पर प्रतिदिन बढ़ता चला गया,
संस्कारों की नींव के पत्थर बेदम होकर खिसक उठे।
चारों ओर बुराई के रावण से हाहाकार मचा,
नगर- नगर में भीषण अपराधों के शोले धधक उठे।
आज उसी विकृत समाज को नियति राह पर ले आयी,
रोग भयंकर फैलाया, जिससे सबके मन कसक उठे।
घर की देहरी के अंदर परिवार प्रेम से रहते हैं,
सबके बीच पुराने किस्से, हँसी - ठहाके लहक उठे।
भूल चुके थे जो संवेदन अंतर्मन में पलता है ,
आज साथ में रहकर भावों के उपवन फिर महक उठे।
न कोई अपराध कहीं है , न ही कोई अपहरण है,
सबके ही मन सात्विक बनकर ईश- भक्ति से दमक उठे ।
काश आज आधुनिकता का वह कृत्रिम रंग उतर जाए,
और समाज में पावन संस्कृति का सूरज फिर चमक उठे।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर


No comments:

Post a Comment

"अंदाज"05मई2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें   ब्लॉग संख्या :-727 Hari S...