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ब्लॉग संख्या :-694
दिनांक- २६/०३/२०२०
विषय- मन पसन्द विषय लेखन
विधा-ग़ज़ल
========================
विश्व का माहौल कुछ तक्लीफ़ की मंज़िल में है।
अब बसर कैसे बचेगा आज जो दाख़िल में है।।
रोग फैला है जहाँ की कुछ ख़बर हमको नहीं,
बल्कि बन्दोबस्त से कुछ बहतरी हासिल में है।।
जीत कोरोना पै हासिल तुम तभी कर पाओगे,
घर में होकर कैद काटो ये घड़ी मुश्किल में है।।
वाइरस से ज़िन्दगी बच जायगी घर में रहो,
बात सुन लीजे लगाकर कान जो कुछ दिल में है।।
जल ही जाने दो नशेमन मिट ही जाने दो मुझे,
लग रहा है आज यह कुछ ज़िन्दगी मुहमिल में है।।
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'अ़क्स' दौनेरिया
विषय- मन पसन्द विषय लेखन
विधा-ग़ज़ल
========================
विश्व का माहौल कुछ तक्लीफ़ की मंज़िल में है।
अब बसर कैसे बचेगा आज जो दाख़िल में है।।
रोग फैला है जहाँ की कुछ ख़बर हमको नहीं,
बल्कि बन्दोबस्त से कुछ बहतरी हासिल में है।।
जीत कोरोना पै हासिल तुम तभी कर पाओगे,
घर में होकर कैद काटो ये घड़ी मुश्किल में है।।
वाइरस से ज़िन्दगी बच जायगी घर में रहो,
बात सुन लीजे लगाकर कान जो कुछ दिल में है।।
जल ही जाने दो नशेमन मिट ही जाने दो मुझे,
लग रहा है आज यह कुछ ज़िन्दगी मुहमिल में है।।
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'अ़क्स' दौनेरिया
विषय मन पसंद लेखन
विधा काव्य
26 मार्च 2020,गुरुवार
जीवन चक्र चलता रहता
निर्मल निर्झर बहता रहता।
काल चक्र सदा यह कहता
रे मानव तू क्यों नहीं हँसता?
माना जीवन बड़ा परिवर्तन
मौसम चक्र बदलता रहता।
शुभ लाभ हानि सुख दुःख
मन चँचल रहता बदलता ।
समायोजन नित जो करता
वह नित आगे चलता रहता।
जीवन अति संघर्ष है मित्रों
रे मानव बढ़ ,तू क्यों रुकता?
अग्नि में तपकर ही कंचन
ललनाओं का बने गल हार।
छीनी हतोड़ी चोट सहन कर
बने पत्थर जग पालनहार।
जग कालिमा आज व्याप्त है
काली बदरी गगन में छा रही।
शीघ्र आकर वसुधा बरसूँगी
तुरंत हरियाली मैं अब लारही।
सुख दुःख आता जाता रहता
आकर समय कान में कहता।
क्यों घबराता वीर धीर मानव?
तू चलता जब सुमन बरसता।
स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
26 मार्च 2020,गुरुवार
जीवन चक्र चलता रहता
निर्मल निर्झर बहता रहता।
काल चक्र सदा यह कहता
रे मानव तू क्यों नहीं हँसता?
माना जीवन बड़ा परिवर्तन
मौसम चक्र बदलता रहता।
शुभ लाभ हानि सुख दुःख
मन चँचल रहता बदलता ।
समायोजन नित जो करता
वह नित आगे चलता रहता।
जीवन अति संघर्ष है मित्रों
रे मानव बढ़ ,तू क्यों रुकता?
अग्नि में तपकर ही कंचन
ललनाओं का बने गल हार।
छीनी हतोड़ी चोट सहन कर
बने पत्थर जग पालनहार।
जग कालिमा आज व्याप्त है
काली बदरी गगन में छा रही।
शीघ्र आकर वसुधा बरसूँगी
तुरंत हरियाली मैं अब लारही।
सुख दुःख आता जाता रहता
आकर समय कान में कहता।
क्यों घबराता वीर धीर मानव?
तू चलता जब सुमन बरसता।
स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विषय - मन पसंद लेखन
दिनांक - 26/03/2020
पिछले आयोजन जिसमे शीर्षक "वक़्त " था, तब में अपनी रचना प्रकाशित नहीं कर पाया था। अत: आज मनपसंद विषय लेखन में मैं अपनी " वक़्त " पर लिखी रचना प्रकाशित कर रहा हूँ।
वक़्त बदलते देर नहीं लगती, इससे आज सब वाकिफ हो गए
जो जीते थे कल तक खुशी से, वो आज घर में घुट घुटकर जीने को मजबूर हो गए।
वक़्त का खेल कुछ ऐसा ही है जनाब, जो अपना न ही पराया देखता हैं
कल तक जो साथ खड़े रहते थे परायो के भी, आज वक़्त ने उन्हें अपनो से भी दुर खड़ा कर दिखाया हैं ।
इटली, अमेरिका जैसे देश जो दूसरों को चिकित्सा सुविधा मुहैया करवाते हैं
आज इस कोरोना के आगे ये बड़े बड़े देश भी घबराते हैं।
जो जाना चाहते थे विदेशों में रहने, वक़्त ने देखो क्या मोड़ लाया हैं
लौट कर आ रहे हैं अपने वतन, और कह रहे हैं विदेशों में तो सिर्फ मोह माया हैं ।
पिंजरे में कैद थे पहले पक्षी और घूम रहे थे इंसान,
वक़्त ने देखो क्या रुख मोडा है इंसान हो गया कैद घरों में पक्षियों के लिए खुला है पुरा आसमान ।
प्रकृति ने भी देख लिए रंग हम सभी इंसानो के, जो बरबाद कर रहे हैं प्रकृति को दिन और रात
प्रकृति भी बदल देगी वक़्त अपना अगर, ख़त्म हो जाएगी मनुष्य योनि प्रकृति की होगी फिर एक नयी शुरुआत ।
मेरी स्वरचित रचना।
- प्रतिक सिंघल
दिनांक - 26/03/2020
पिछले आयोजन जिसमे शीर्षक "वक़्त " था, तब में अपनी रचना प्रकाशित नहीं कर पाया था। अत: आज मनपसंद विषय लेखन में मैं अपनी " वक़्त " पर लिखी रचना प्रकाशित कर रहा हूँ।
वक़्त बदलते देर नहीं लगती, इससे आज सब वाकिफ हो गए
जो जीते थे कल तक खुशी से, वो आज घर में घुट घुटकर जीने को मजबूर हो गए।
वक़्त का खेल कुछ ऐसा ही है जनाब, जो अपना न ही पराया देखता हैं
कल तक जो साथ खड़े रहते थे परायो के भी, आज वक़्त ने उन्हें अपनो से भी दुर खड़ा कर दिखाया हैं ।
इटली, अमेरिका जैसे देश जो दूसरों को चिकित्सा सुविधा मुहैया करवाते हैं
आज इस कोरोना के आगे ये बड़े बड़े देश भी घबराते हैं।
जो जाना चाहते थे विदेशों में रहने, वक़्त ने देखो क्या मोड़ लाया हैं
लौट कर आ रहे हैं अपने वतन, और कह रहे हैं विदेशों में तो सिर्फ मोह माया हैं ।
पिंजरे में कैद थे पहले पक्षी और घूम रहे थे इंसान,
वक़्त ने देखो क्या रुख मोडा है इंसान हो गया कैद घरों में पक्षियों के लिए खुला है पुरा आसमान ।
प्रकृति ने भी देख लिए रंग हम सभी इंसानो के, जो बरबाद कर रहे हैं प्रकृति को दिन और रात
प्रकृति भी बदल देगी वक़्त अपना अगर, ख़त्म हो जाएगी मनुष्य योनि प्रकृति की होगी फिर एक नयी शुरुआत ।
मेरी स्वरचित रचना।
- प्रतिक सिंघल
विषय-मनपसंद
वो ख्वाबो की
बेहतरीन दीवानगी थी।
रात भी,नींद भी,
एक कहानी थी।
दिल मे आहटों की
आहट जो थी।
हवा के झोको की
प्यारी सी दस्तक थी।
तुम आये तो नही
कही चुपके चुपके
नींद में जगने से
पलके भारी थी।
यू तो रोज का था।
तुम्हारा सताना।
प्रेम की कहानियों का
याद दिलाना।
शरारत की सारी
हदे पार करना।
अलसाई सी राते
महकते से ख्वाब
सितम के झमेले
लगते अलवेले
अजीब सी दीवानगी
रात सुहानी
लिखते कहानी
कल्पनाओं की दुनिया
थी कलम की यारी
नही सोने देती
चाहे पलके हो भारी
स्वरचित
मीना तिवारी
वो ख्वाबो की
बेहतरीन दीवानगी थी।
रात भी,नींद भी,
एक कहानी थी।
दिल मे आहटों की
आहट जो थी।
हवा के झोको की
प्यारी सी दस्तक थी।
तुम आये तो नही
कही चुपके चुपके
नींद में जगने से
पलके भारी थी।
यू तो रोज का था।
तुम्हारा सताना।
प्रेम की कहानियों का
याद दिलाना।
शरारत की सारी
हदे पार करना।
अलसाई सी राते
महकते से ख्वाब
सितम के झमेले
लगते अलवेले
अजीब सी दीवानगी
रात सुहानी
लिखते कहानी
कल्पनाओं की दुनिया
थी कलम की यारी
नही सोने देती
चाहे पलके हो भारी
स्वरचित
मीना तिवारी
दिनांक- 26/03/2020
शीर्षक ''मंजिल"
मंजिल मिलकर ही रहेगी मन में जोश जगाये जा
आत्म बल को तूँ अपने दिन प्रति दिन बढ़ाये जा ।।
आत्म विश्वास न कम हो पाये ऐसे काम रचाये जा
परमपिता की परम शक्ति से मन मंदिर मँहकाये जा ।।
मेहनत रंग लाती इक दिन मेहनत के गुण गाये जा
मंजिल खुद चलकर आती काबलियत नित लाये जा ।।
छोटे छोटे अवसर जो हैं उन्हे बखूबी भुनाये जा
मँहक उठेगा कोना कोना मन मंदिर बनाये जा ।।
आत्म संयम औ आत्म चिन्तन से जग को रिझाये जा
खुद सफल बन 'शिवम' सफलता का पाठ पढ़ाये जा ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
शीर्षक ''मंजिल"
मंजिल मिलकर ही रहेगी मन में जोश जगाये जा
आत्म बल को तूँ अपने दिन प्रति दिन बढ़ाये जा ।।
आत्म विश्वास न कम हो पाये ऐसे काम रचाये जा
परमपिता की परम शक्ति से मन मंदिर मँहकाये जा ।।
मेहनत रंग लाती इक दिन मेहनत के गुण गाये जा
मंजिल खुद चलकर आती काबलियत नित लाये जा ।।
छोटे छोटे अवसर जो हैं उन्हे बखूबी भुनाये जा
मँहक उठेगा कोना कोना मन मंदिर बनाये जा ।।
आत्म संयम औ आत्म चिन्तन से जग को रिझाये जा
खुद सफल बन 'शिवम' सफलता का पाठ पढ़ाये जा ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
दिनांक-26/03/2020
विषय-हमसफर
|||हमसफर देख लेना||
कभी इस तरफ़ इक नज़र देख लेना
बनाकर मुझे हमसफ़र देख लेना
कि चलने से पहले पता रास्ता हो
हो कोई निशां या ख़बर देख लेना
सदाक़त की राहें न आसान इतनी
डगर है बड़ी पुरख़तर देख लेना
लगेगा पता तिश्नगी का तभी तो
के सहरा में कर के सफ़र देख लेना
अकेले में जब याद मुझको करोगे
मुहब्बत का मेरी असर देख लेना
मिलेगी यहां प्यार की पालकी इक
हमारी कभी रहगुज़र देख लेना
यहां के मकां पे मुहब्बत लिखा है
कभी मेरे दिल का नगर देख लेना
वहां छांव ठन्डी , समर भी लगे हों
कि रुकने से पहले शजर देख लेना
( समर = फल )
करे आज "सत्य" ये इल्तिजा है
हमें भी नज़र इक मगर देख लेना
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
विषय-हमसफर
|||हमसफर देख लेना||
कभी इस तरफ़ इक नज़र देख लेना
बनाकर मुझे हमसफ़र देख लेना
कि चलने से पहले पता रास्ता हो
हो कोई निशां या ख़बर देख लेना
सदाक़त की राहें न आसान इतनी
डगर है बड़ी पुरख़तर देख लेना
लगेगा पता तिश्नगी का तभी तो
के सहरा में कर के सफ़र देख लेना
अकेले में जब याद मुझको करोगे
मुहब्बत का मेरी असर देख लेना
मिलेगी यहां प्यार की पालकी इक
हमारी कभी रहगुज़र देख लेना
यहां के मकां पे मुहब्बत लिखा है
कभी मेरे दिल का नगर देख लेना
वहां छांव ठन्डी , समर भी लगे हों
कि रुकने से पहले शजर देख लेना
( समर = फल )
करे आज "सत्य" ये इल्तिजा है
हमें भी नज़र इक मगर देख लेना
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
"ये विनाशकारी कौन है"
कपाट बंद है,
सृष्टि मौन है
दरवाजों के पीछे
छुप गया है आदमी,
ये विनाशकारी कौन है?
भविष्य के सपनों की छांया
पल-पल बदल रही है,
रात की कालिमा मानों
चांदनी को निगल रही है,
विनाश की काली चादर
फैली है इंसानी राहों में,
कहां तक बचसकेगी मानवता
रास्ते गौण हैं।
जयद्रथ बन छुप गया है
आदमी कर्मों का पाप लिए,
दशरथ संभल नहीं पा रहे
एक श्रवण का श्राप लिए,
तरकश में तीर नहीं बचे
सारथी का लड़ना बाकी है,
महाभारत या महाविनाश
कुछ तो होना बाकी है,
कांटों की शैया पर लेटे-लेटे
धर्म-अधर्म पर सोच रहा
कोई तो अभागा "द्रोण" है।
कपाट बंद है
सृष्टि मौन है
दरवाजों के पीछे
छुप गया है आदमी,
ये विनाशकारी कौन है?
श्रीलाल जोशी "श्री"
तेजरासर, बीकानेर
(मैसूर)
कपाट बंद है,
सृष्टि मौन है
दरवाजों के पीछे
छुप गया है आदमी,
ये विनाशकारी कौन है?
भविष्य के सपनों की छांया
पल-पल बदल रही है,
रात की कालिमा मानों
चांदनी को निगल रही है,
विनाश की काली चादर
फैली है इंसानी राहों में,
कहां तक बचसकेगी मानवता
रास्ते गौण हैं।
जयद्रथ बन छुप गया है
आदमी कर्मों का पाप लिए,
दशरथ संभल नहीं पा रहे
एक श्रवण का श्राप लिए,
तरकश में तीर नहीं बचे
सारथी का लड़ना बाकी है,
महाभारत या महाविनाश
कुछ तो होना बाकी है,
कांटों की शैया पर लेटे-लेटे
धर्म-अधर्म पर सोच रहा
कोई तो अभागा "द्रोण" है।
कपाट बंद है
सृष्टि मौन है
दरवाजों के पीछे
छुप गया है आदमी,
ये विनाशकारी कौन है?
श्रीलाल जोशी "श्री"
तेजरासर, बीकानेर
(मैसूर)
🏵🌻 गीतिका 🌻🌺
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🌺 सादगी/ निश्छलता 🌺
छंद - लावणी
मात्रा =30 ( 16 ,14 यति ,अन्त में2 गुरु )
🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈
जो जीवन को सरल बनाते ,
हर हालत खुश होते हैं ।
सुख-दुख में वे सम ही रहते ,
नींद चैन की सोते हैं ।।
धन-दौलत से तृष्णा त्यागें ,
मोहपाश से दूर रहें ,
है संतोष परम धन उनका ,
दुख में कभी न रोते हैं ।
काम क्रोध मद लोभ से परे ,
निश्छलता से रहते जो ,
मन-मन्दिर में खुद को तोलें ,
मीठे बचन पिरोते हैं ।
ऊँच-नीच का भेद न मानें ,
मानवता को अपनायें ,
दीन-दुखी को गले लगा कर ,
समरस भाव विलोते हैं ।
अन्तर मन को पावन रखते ,
सब से मिल कर खुश होते ,
जीना उनका सार्थक जग में ,
परमानन्द सँजोते हैं ।।
**************************
🌺 सादगी/ निश्छलता 🌺
छंद - लावणी
मात्रा =30 ( 16 ,14 यति ,अन्त में2 गुरु )
🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈
जो जीवन को सरल बनाते ,
हर हालत खुश होते हैं ।
सुख-दुख में वे सम ही रहते ,
नींद चैन की सोते हैं ।।
धन-दौलत से तृष्णा त्यागें ,
मोहपाश से दूर रहें ,
है संतोष परम धन उनका ,
दुख में कभी न रोते हैं ।
काम क्रोध मद लोभ से परे ,
निश्छलता से रहते जो ,
मन-मन्दिर में खुद को तोलें ,
मीठे बचन पिरोते हैं ।
ऊँच-नीच का भेद न मानें ,
मानवता को अपनायें ,
दीन-दुखी को गले लगा कर ,
समरस भाव विलोते हैं ।
अन्तर मन को पावन रखते ,
सब से मिल कर खुश होते ,
जीना उनका सार्थक जग में ,
परमानन्द सँजोते हैं ।।
मनपसंद विषय लेखन
विधा - भक्ति गीत
कोरोना के क़हर से
मुक्ति हेतु
माँ की आराधना
आओ अम्बे माँ
आओ अम्बे माँ, महारानी अम्बे माँ
जग जननी अम्बे माँ,
जनकल्याणी अम्बे माँ।।
राह तके तेरी जग सारा
कब आओगी दोगी सहारा
मन चंचल कहीं चैन न पावे
दर्शन को व्याकुल घबरावे
जग तारिणी अम्बे माँ,भव
तारिणी अम्बे माँ
जग जननी अम्बे माँ, जन कल्याणी अम्बे माँ।।
संकट भीषण है भारी, बीमारी
प्रलयंकारी
जन जीवन त्रस्त परेशाँ,फैली ऐसी महामारी
अमृत छलकाओ माँ,अब सुख
बरसाओ माँ
जग जननी अम्बे माँ, जन कल्याणी अम्बे माँ।।
नौ दिन,नौ रूप तुम्हारे,सजते हैं नव-नव , प्यारे
मन मोह लिया करते हैं,दु:ख चिन्ता सब रहते हैं
दु:ख हरिणी अम्बे माँ,सुख करिणी अम्बे माँ
जग जननी अम्बे माँ, जन कल्याणी अम्बे माँ।।
दर्शन की कृपा कर दो, आँचल सबका भर दो
भक्ति का दान दे कर,शक्ति मन में भर दो
पुण्य वर दायिनी अम्बे माँ,हृदय निवासिनी अम्बे माँ
जग जननी अम्बे माँ, जन कल्याणी अम्बे माँ ।।
स्वरचित
विधा - भक्ति गीत
कोरोना के क़हर से
मुक्ति हेतु
माँ की आराधना
आओ अम्बे माँ
आओ अम्बे माँ, महारानी अम्बे माँ
जग जननी अम्बे माँ,
जनकल्याणी अम्बे माँ।।
राह तके तेरी जग सारा
कब आओगी दोगी सहारा
मन चंचल कहीं चैन न पावे
दर्शन को व्याकुल घबरावे
जग तारिणी अम्बे माँ,भव
तारिणी अम्बे माँ
जग जननी अम्बे माँ, जन कल्याणी अम्बे माँ।।
संकट भीषण है भारी, बीमारी
प्रलयंकारी
जन जीवन त्रस्त परेशाँ,फैली ऐसी महामारी
अमृत छलकाओ माँ,अब सुख
बरसाओ माँ
जग जननी अम्बे माँ, जन कल्याणी अम्बे माँ।।
नौ दिन,नौ रूप तुम्हारे,सजते हैं नव-नव , प्यारे
मन मोह लिया करते हैं,दु:ख चिन्ता सब रहते हैं
दु:ख हरिणी अम्बे माँ,सुख करिणी अम्बे माँ
जग जननी अम्बे माँ, जन कल्याणी अम्बे माँ।।
दर्शन की कृपा कर दो, आँचल सबका भर दो
भक्ति का दान दे कर,शक्ति मन में भर दो
पुण्य वर दायिनी अम्बे माँ,हृदय निवासिनी अम्बे माँ
जग जननी अम्बे माँ, जन कल्याणी अम्बे माँ ।।
स्वरचित
००००००००००००
26 - 03 - 2020
----------
विधा - गीत
--------------
कृपा करो माँ दो वरदान ।
करते हम तेरे गुणगान ।।
......
दुख में तपता यह संसार ।
कष्ट हरो कर दो उद्धार ।।
हम सब तेरी ही संतान ।
कृपा करो माँ दो वरदान ।।
......
शक्ति स्वरूपा तुम हो मात।
तुमसे सम्भव शुभ्र प्रभात।।
तुम बिन यह जग है सुनसान।
कृपा करो माँ दो वरदान।।
......
सब आये माँ तेरे द्वार ।
थोड़ा अब कर दो उपकार।।
सबको दो समयोचित ज्ञान।
कृपा करो माँ दो वरदान।।
~~~~~~~~~
26 - 03 - 2020
----------
विधा - गीत
--------------
कृपा करो माँ दो वरदान ।
करते हम तेरे गुणगान ।।
......
दुख में तपता यह संसार ।
कष्ट हरो कर दो उद्धार ।।
हम सब तेरी ही संतान ।
कृपा करो माँ दो वरदान ।।
......
शक्ति स्वरूपा तुम हो मात।
तुमसे सम्भव शुभ्र प्रभात।।
तुम बिन यह जग है सुनसान।
कृपा करो माँ दो वरदान।।
......
सब आये माँ तेरे द्वार ।
थोड़ा अब कर दो उपकार।।
सबको दो समयोचित ज्ञान।
कृपा करो माँ दो वरदान।।
~~~~~~~~~
26-03-2020
# कोरोना#
(सार छंद)
तजकर सदाचार जब मानुष,
विकृत पंथ अपनाये।
लेकर तब संदेशा विभु का,
काल धरा पर आये।।
अहम वहम का बिंद नजर पर,
समझ कहाँ जन पाते?
चिड़ियाँ के चुग जाने पर ही,
मलकर कर पछताते।।
ऐसा ही क्रूर कहर बनकर,
आया कटु कोरोना।
जन-मन है आहत धरती पर,
करता धरता टोना।।
होगा क्या ऐसे अब प्यारे,
बिलख विकल रोने से।
मिट जाएगी क्या भीषण रुज?
दस दिन कर धोने से।।
कर धोना उपचार अगर है,
कहते हैं विज्ञानी।
तो फिर आत्मसात सत्व करें,
गुण ऋषियों की वाणी।।
रोग-शोक से मुक्त रहेंगे,
अंतस भी खिल जाए।
मानव मूल मर्म जो जाने,
विधि भी वश में आए।।
- ©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
# कोरोना#
(सार छंद)
तजकर सदाचार जब मानुष,
विकृत पंथ अपनाये।
लेकर तब संदेशा विभु का,
काल धरा पर आये।।
अहम वहम का बिंद नजर पर,
समझ कहाँ जन पाते?
चिड़ियाँ के चुग जाने पर ही,
मलकर कर पछताते।।
ऐसा ही क्रूर कहर बनकर,
आया कटु कोरोना।
जन-मन है आहत धरती पर,
करता धरता टोना।।
होगा क्या ऐसे अब प्यारे,
बिलख विकल रोने से।
मिट जाएगी क्या भीषण रुज?
दस दिन कर धोने से।।
कर धोना उपचार अगर है,
कहते हैं विज्ञानी।
तो फिर आत्मसात सत्व करें,
गुण ऋषियों की वाणी।।
रोग-शोक से मुक्त रहेंगे,
अंतस भी खिल जाए।
मानव मूल मर्म जो जाने,
विधि भी वश में आए।।
- ©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
विषय-मनपसंद लेखन ।
शीर्षक-है जग की तू मां।
स्वरचित ।
दुर्गा स्वरूपिणी, लक्ष्मी रूपिणी ।
है जग की तू मां,है जग की तू मां।।
शक्ति स्वरूपिणी, सरस्वती रूपिणी ।
है जग की तू मां, है जग की तू मां।।
नव दिन अर्पण करते तुझको,
नव दिन अर्पण करते तुझको,
हर रूप में ध्याते तुझको ,
नव- नव रूपिणी मां ।।
दुर्गा स्वरूपिणी ...........
कष्ट मिटा दे तन के हमरे ,
कष्ट मिटा दे तन के हमरे ,
मन से द्वेष मिटा,
है जग की तू मां,है जग की तू मां।
दुर्गा स्वरूपिणी.....
दुःखी रहे ना जग में कोई,
दुःखी रहे ना जग में कोई,
दुष्टों का नाम मिटा ,
है जग की तू मां है ,है जग की तू मां।
दुर्गा स्वरूपिणी....
तेरी कृपा बरसती रहती ,
तेरी कृपा बरसती रहती ,
बस तृष्णा दूर हटा,
है जग की तू मां,है जग की तू मां।
दुर्गास्वरूपिणी ......
लेखनी को तू वर दे मेरे ,
लेखनी को तू वर दे मेरे ,
सच्चे भाव जगा,
है जग की तू मां, है जग की तू मां।
दुर्गा स्वरूपिणी ,लक्ष्मी रूपिणी,
है जग की तू मां, है जग की तू मां।।
शक्ति स्वरूपिणी,सरस्वतीरूपिणी,
है जग की तू मां है, जग की तू मां।
****
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
शीर्षक-है जग की तू मां।
स्वरचित ।
दुर्गा स्वरूपिणी, लक्ष्मी रूपिणी ।
है जग की तू मां,है जग की तू मां।।
शक्ति स्वरूपिणी, सरस्वती रूपिणी ।
है जग की तू मां, है जग की तू मां।।
नव दिन अर्पण करते तुझको,
नव दिन अर्पण करते तुझको,
हर रूप में ध्याते तुझको ,
नव- नव रूपिणी मां ।।
दुर्गा स्वरूपिणी ...........
कष्ट मिटा दे तन के हमरे ,
कष्ट मिटा दे तन के हमरे ,
मन से द्वेष मिटा,
है जग की तू मां,है जग की तू मां।
दुर्गा स्वरूपिणी.....
दुःखी रहे ना जग में कोई,
दुःखी रहे ना जग में कोई,
दुष्टों का नाम मिटा ,
है जग की तू मां है ,है जग की तू मां।
दुर्गा स्वरूपिणी....
तेरी कृपा बरसती रहती ,
तेरी कृपा बरसती रहती ,
बस तृष्णा दूर हटा,
है जग की तू मां,है जग की तू मां।
दुर्गास्वरूपिणी ......
लेखनी को तू वर दे मेरे ,
लेखनी को तू वर दे मेरे ,
सच्चे भाव जगा,
है जग की तू मां, है जग की तू मां।
दुर्गा स्वरूपिणी ,लक्ष्मी रूपिणी,
है जग की तू मां, है जग की तू मां।।
शक्ति स्वरूपिणी,सरस्वतीरूपिणी,
है जग की तू मां है, जग की तू मां।
****
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
विषय -मनपसंद लेखन
दिनांक 26/03/2020
सभी चिकित्सक सभी नर्स
दिन -रात लगे सतकर्मों में ।
स्वयं की परवाह न करके ,
तत्पर, मानव धर्म निभाने में।
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे......
और गिरजाघर बनवाए थे।
ईश्वर की प्रतिमा लाकर के,
इसमें हम उनको बठाए थे।
ईश्वर भेष बदल करके
हमारे बीच में आए हैं ।
चिकित्सक नर्स पुलिसकर्मी
हर चेहरे में ईश्वर नजर आए हैं।
हम लड़ रहे लड़ाई मनुष्यता की
यही नियत प्रकृति की है।
सबका जीवन सबका पोषण,
यही हमारी संस्कृति है।।
स्वरचित,मौलिक रचना
रंजना सिंह
दिनांक 26/03/2020
सभी चिकित्सक सभी नर्स
दिन -रात लगे सतकर्मों में ।
स्वयं की परवाह न करके ,
तत्पर, मानव धर्म निभाने में।
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे......
और गिरजाघर बनवाए थे।
ईश्वर की प्रतिमा लाकर के,
इसमें हम उनको बठाए थे।
ईश्वर भेष बदल करके
हमारे बीच में आए हैं ।
चिकित्सक नर्स पुलिसकर्मी
हर चेहरे में ईश्वर नजर आए हैं।
हम लड़ रहे लड़ाई मनुष्यता की
यही नियत प्रकृति की है।
सबका जीवन सबका पोषण,
यही हमारी संस्कृति है।।
स्वरचित,मौलिक रचना
रंजना सिंह
प्रयागराजबिषय-
लॉक डउनलाक डाउन अकेला नही है
साथ लाया है कई उपहार,
परिवार जुड रहा हौ ,
बडे बुजुर्ग अपने अनुभव
सुनारहे है माता पिता बच्चों
को खिला रहे है किचन मे
चहल पहल है बैठक मे
सब साथ बैठकर गप्पे
लडा रहे है मां बच्चो को
जगा रही हैं हाथो से अपने
खाना खिला रही है,
दुर्भाव, दूरविचारेां ,दुश चरित्र
अखाध्य,अपेय पदार्थ मौन है
प्रदूषण सोगया है हवायें साफ है
ंघरो और घरवालो की कीमत
नजर आरही है दुनियाँ बदल गयी
विकराल करोना को देखकर
सायद संभल गयी,है
बिषय, स्वतंत्र लेखन
आज हमने मैयाजी को फूलों से सजाया है और मंदिर में बुलाया है
जगमग ज्योति में मंदिर चमकता है
लाल ध्वजा फहराई सोने का घंटा चढ़ाया है
झिलमिल ज्योति में माँ की सूरतिया दमकती है
लाल चुनरिया को हमने गोटा से सजाया है
मधुर मधुर मुस्कान पर जाऊँ वारी वारी
जूड़े के गजरे ने माँ का मंदिर महकाया है
मैया जब चलती है तो पैजनियां छलकती है
राई नौन से नजरिया मैया की उतारी है
और मंदिर में बुलाया है
स्वरचित सुषमा ब्यौहार
*परी/अप्सरा*
काव्य
उतर आई परी धरा पर,
धवल वस्त्र ये पहने है।
लगे अप्सरा जैसे कोई,
शुभकामनाऐं कहने है।
सुन्दर मूरत है सुहावनी,
छटाऐं निराली छाई है।
रक्तिम रश्मियां सहेली,
अपने साथ में लाई है।
वसन श्वेत सज्जित कहीं,
आकाश मार्ग से आई।
मधु मुस्कान बिखेरती,
पैगाम खुशी का लाई।
रंग-बिरंगे फूल बिखेरे,
पलक पांवड़े बिछाए हुऐ।
कंचन काया दमक रही,
आई सोलह श्रृंगार किऐ।
मंद सुगंध वयार महकती,
आई विशेष उपहार लिऐ।
मोहक सूरत है लुभावनी।
लगे चाल ज्यूं गजगामिनी।
गगन गंभीर रूपरानी से,
मधुवन आई मधुयामिनी।
स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
*परी/अप्सरा*काव्य
26/3/2020/गुरुवार
विधा कविता
दिनाँक 26.3.2020
दिन गुरुवार
जी हाँ मैं बेटी हूँ
ःःःःःःःःःःःःः
जी हाँ! मैं बेटी हूँ,
थोड़ा सुस्ताने के लिये हीे लेटी हूँ,
बेटी से परदादी तक का सफर ,तय किया करती हूँ,
हरेक को जीने की, खुराक दिया करती हूँ,
मैं घर आँगन ही नहीं,भविष्य भी बुहारा करती हूँ,
अपने आश्रितों को सदा ही, सँवारा करती हूँ,
होश आते आते तो मैं,सबके काम आती हूँ,
कभी पानी पिलाती हूँ, कभी रोटी खिलाती हूँ,
नन्हें नन्हों को तो लोरी , गाकर सुलाती हूँ,
उनके होठों पर, भोली मुस्कान लाती हूँ।
कभी झिड़की सुनती हूँ,कभी बातें सुनती हूँँ,
सबके लिये पर फूल चुनती हूँ, माला बुनती हूँ,
और सबकी आवश्यकताओं के बाद ही, मेरा पृष्ठ खुलता है,
इसी पृष्ठ भूमि में, मेरा भविष्य भी धुलता है।
इस लम्बी यात्रा में,कई अनुभव मिलते हैं,
कुछ दर्द बढ़ाते हैं,.कुछ घाव सिलते हैं,
नकारात्मक लोग भी होते हैं ,
वो जब देखो तब ही, रोते हैं।
पर मैं हताश नहीं हूँ, उखड़ती हुई श्वास नहीं हूँ,
बुझा हुआ भी कोई, आत्मविश्वास नहीं हूँ,
मुझमें धरा का वँश है, मुझमें धरा का अँश है
सम्मान के मेरे बिना ,हर सम्बोधन ही अभ्रंश है।
मेरी प्रक्रति तो, सँवारना है
अपने स्नेह से, सबको ही निखारना है,
जी हाँ! मैं बेटी हूँ,बेटी हूँ,बेटी हूँ,
थोड़ा सुस्ताने के लिय हीे, लेटी हूँ।
कृष्णम् शरणम् गच्छामि
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
विषय , मन पसंद (शक्ति स्वरूपा)
देखो शक्ति स्वरूपा माँ जगदम्बा आशीष देने हमें आई है।
आओ ध्यान धरें माँ के चरणों में, माँ ममता लुटाने आईं है।
हो चाहे कोरोना या अन्य वायरस, हस्ती उसकी मिट जायेगी।
माँ दुर्गा भवानी जब भस्म करेगी, राख पड़ी रह जायेगी।
देवी माँ आईं हैं दुख हरने , हमको सुख देकर ही जायेगी।
बस मन में भरोसा कायम रखना , सतत साधना करते रहना।
निराश नहीं कभी माँ करने वाली , झोली हमारी भर जायेगी।
जय जय जय हे मात भवानी, करिए कृपा हम पर जग जननी।
हम शत शत नमन आपको करते, हरिए व्यथा हे जग कल्याणीं।
स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश
दिलों में मेरा निवास है
पर आज मैं
टिक नहीं पाता
एक जगह
डर लगा रहता है
न जाने किस घड़ी
घर बदलना पड़ जाए
जमाना पहले का अच्छा था
मां-बाप,भाई-बहनों,पति-पत्नी
हर रिश्ते में टिका रहता था
यहाँ तक की प्रेमी -प्रेमिका
जो नयनों की भाषा में
करते थे प्यार
मैं जिंदगी भर
रह लेता था उनके मन में
आज डरता हूँ
हर इंसान से
एक पल में
निकाल देता है दिल से
आज तो ठीक से मैं
सो भी नहीं पाता
रात हो दिन हो
कोई भी, कभी भी
किसी पर भी गुर्राता है
पति -पत्नी लड़ते हैं
भाई-भाई खून के
प्यासे हो जाते हैं
रिश्तों को छलते हैं
मात-पिता हाथ मलते हैं
सच्चाई रूठ गई
तब मेरा कहाँ ठिकाना है
सब लड़ें-झगड़ें कितना भी
बनना मुझे निशाना है
आज विनती सब से करता हूँ
मुझे आबाद रहने दो
दिलों में जगह दो
महसूस करो जब मैं
रहता हूँ तुम्हारे दिल में
कितना खुश रहते हो
सुख की नींद सोते हो
प्यार करो मानव जाति से
परिंदों से,प्रकृति से
जड़ और चेतन से
अपनी मातृभूमि से
और खुद से
सरिता गर्ग.
.
विषय मनपसंद
पुरानी गलियाँ यहाँ बडे बाजार हो गए
इंसानियत के रिश्ते तार तार हो गए. . .
कोई नहीं रिश्ता अब इस जहान में
रुपये पैसो के आगे सब बेकार हो गए . .
बिकता है सामान यहाँ इंसान मजबूर है
वक्त के आगे मानो सब लाचार हो गए . .
पूजी गई कन्या माता के अवतार में
पुण्य धरा पे कितने दुराचार हो गए . .
सिकुडती गई जिंदगी छुईमुई की तरह
एक आँगन में कितने परिवार हो गए . .
एक था तेरा मेरा भगवान कहो या खुदा
निराकार उसके यहाँ कितने आकार हो गए . .
कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
दिनांक 26 मार्च 2020
विषय मनपसंद
* जिजीविषा *
कैद पिंजरे मे पंछी आकाश मे उडान की सोचता
कुछ दिन घर मे रहा मनु बाहर जहान की सोचता
कितना कुछ किया सब वक्त फिर भी कटता नही
दौडता था दिन भर जब तब था आराम की सोचता
कठिन है माना खुद को बेडियों मे बंद कर के रखना
लंबे सफर के बाद मुसाफिर फिर आराम की सोचता
एक हवा कुछ यूं चली सारे जगत को बीमार कर गई
हारा थका इंसान सब ओर फिर भगवान की सोचता
लहरो से लडते जाना मांझी हार कभी स्वीकार नही
दूर सही मंजिल मगर राही अंतिम निशान की सोचता
कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
मनपसंद लेखन
महामारी कोरोना आया है
राष्ट्रीय जन चेतना जगाना है
जन जन जब तक नही जागेगा
कोरोना रोग कैसे भागेगा?
एक एक जन से है अपिल
घर पर रह कर,रहे सुरक्षित
घर है आपका, कोई जेल नही,
घर के अंदर रहना कठिन नही।
सारे पिछले काम कर डाले
भूले बिसरे को फोन कर डाले
प्यार से निहारे घर के दीवार
उत्तम समय निकाले परिवार के साथ।
हर एक में जगाये चेतना भारी
स्वच्छता का नियम निभाना समझदारी
देश का संकट भगाना हमारी जिम्मेदारी
भागेगा कोरोना, विश्वास रखें भारी।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव
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वृक्ष और नारी दोनों
प्रकृति के है अनुपम उपहार
दोनों के होने से
सृष्टि पर बहती रसधार।
एक की शीतल ठाँव
दूजे ममता की छाँव
दोनों के व्यवहार से
प्रकृति रहती संतुलित।
पर आदम के क्रूर हाथों ने
छीन लिया उसका धन अतुलित
आदम की जोर आजमाईश ने
एक की हर ली हरियाली।
समाज के कठोर व्यवहार ने
नोंचा उसकी मधुर मुस्कान की लाली
आज हुआ है ठूंठ, है उदास
सूख गई है उसकी छाँव
हो गया है सब कुछ सूना।
पुकारता अपनी खामोश निगाहों से
कोई तो आये जो थामे अपनी बाहों से!
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अनिता निधि
दिन- गुरुवार
शीर्षक- मां अंबे हम भक्त तुम्हारे विधा- गीत
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मां अंबे हम भक्त तुम्हारे बेआस- बेसहारे
लो हम तो आ गए हैं मां अब शरण में तुम्हारे
मां अंबे हम भक्त तुम्हारे-2
मुफलिस गरीब हम हैं औकात क्या हमारी
आन पड़ी हैं हम पर आज विपदा भारी
मझधार में हम फंसे हैं मिलते नहीं किनारे
तेरे सिवा मैया हमको अब कौन उबारे
मां अंबे हम भक्त तुम्हारे-2
तेरी दया से चलती हैं ये दुनिया सारी
तुम ही तो हो एक दाता सारा जग है भिखारी
हम पर भी दया कर दो बन जाए बिगड़ी हमारी
मां अंबे हम भक्त तुम्हारे बेआस बेसहारे-2
लो हम तो आ गए मां अब शरण में तुम्हारे
मां अंबे हम भक्त तुम्हारे-2
दर से तेरे न लौटा खाली कोई सवाली
हम पर भी दया कर दो मां पहाड़ावाली
विनती मेरी भी सुन लो बस इतनी अरज हमारी
दर पर तेरे खड़े हैं ले के जोली खाली
झोली मेरी भी भर दो हे मां शेरोवाली।
स्वरचित सुनील कुमार
जिला- बहराइच उत्तर प्रदेश
लठ लेकर बैठी भुआ , मामु बन हवलदार।।
सूजी लेने जा रहा , सुजी न लाना यार ।
मुश्किल होवे बैठना , गहरी मारे मार।।
ख़ाकर लठ सरकार के,चढ़ जाएगा बुख़ार।
लॉक डाउन अपना के , रहना घर पर यार।।
घर बैठो आराम से , मोदी का संदेश।
कोरोना के कहर से , तभी बचेगा देश ।।
इक्कीस दिवस घर रहो , कहे रोज़ सरकार।
नवरात्रि पर भजन करो,रह "ऐश" निराहार।।
©️ऐश...26/03/20(स्वरचित)✍🏻
अश्वनी कुमार चावला,अनूपगढ़,श्रीगंगानगर
🙏🏻😷बचाव ही उपचार है😷🙏🏻
विधा : हाईकू
तिथि : 26. 3. 2020
कोरोना गमन
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कोरोना दोष
सर्वम उड़ा होश
प्रकृति रोष!
दृढ़ निश्चय
कोरोना पराजय
दुआ अजेय।
संयुक्त दुआ
हो कोरोना गमन
स्वस्थ चमन।
कैद या छुट्टी
कोरोना पिलाई घुट्टी
आज़ादी मुट्टी।
अनेक तन
कर दुआ सघन
हो एक मन।
बन निडर
असंभव संभव
प्रतिज्ञा वर।
-रीता ग्रोवर
-स्वरचित
विषय:मनपसंद रचना (मेरी मनःस्थिति)
विधा :काव्य
वर्किंग महिलाओं का हमेशा से बुरा हाल है
दफ्तर के दस काम और घर के बेहिसाब काम है ।
घर मे कामवालियो को देख थोड़ी खुशी आ जाती थी
करोना को न भाया हमारा थोड़ा भी आराम ।
वर्किग..
आ धमका पूरे देश मे दहशत है फैलाई
बाहर से आने वालो ने अपनी जिम्मेदारी न निभाई
अब सब को घर मे रहना है करके स्वच्छ सफाई
जन्ता कर्फयू की महत्ता देश को समझ आई।
वर्किंग ...
आवागमन हुआ बाधित ट्रेन बस जहाज सब थम गये
चौकन्नी हुई सरकार हम सब भी तत्पर हो गये।
हम भी आफिस न जाकर घर पर रूक गये
सुबह सै बर्तन की सफाई खाना और पोछे मे जुट गये।
वर्किंग ..
दफ्तर भी आन लाइन चल रहा था ई-मेल वाट्सऐप पे
रोज नया सोचते थे सब ताल मेल बिठाने के लिए
देर रात टीवी पर विश्व की जानकारी भी लेनी थी
बेटा व बेटी से हाल चाल भी लेना रहता है।
वर्किंग ..
सब स्वस्थ रहे घर मे रहे और घर मे हाथ बटाए यूँ
अपील यही हर महिलाओ की आज मैं करती हूँ
नया शौक है कुछ नयापन रचना मे लिख दी यूँ
मन हुआ खुद जैसी कर्मियों को रचना समर्पित कर दूँ ।
नीलम श्रीवास्तव
दिनांक 26-3-2020
देश है तो हम हैं, इसी बात पर विचार करना है।
देश में आया संकट भारी,मिल सामना करना है।
देश यदि रहा सुरक्षित ,तो हमको भी रह जाना है।
हम की भावना रख मन,विरान होने से बचाना है।
अनेकता में एकता,उदाहरण सदियों से दिया है।
आज मिला सुनहरा अवसर, इतिहास दोहराना है।
नहीं जी सकते अपनो बगैर,देश को हमें बचाना है।
देश है तो हम हैं,बस जन जन को यह समझाना है।
सरफरोशी की तमन्ना ,हर दिल में हमें जगाना है।
जरूरत पड़े हो बलिदान,जननी का मान बढ़ाना है।
भारत मेरा देश है ,कर्मों से हमें महान बनाना है।
महाराणा के वंशज हम,हार ना हमको मानना है।
घास रोटी जंगल खाई,हमे कुछ दिन घर रहना है।
थोड़ी सी रख सावधानी,कोरोना दूर भगाना है।
हम सुरक्षित देश सुरक्षित,हर चेहरा मुस्कुराना है।
देश है तो हम हैं ,बस यही सब को समझाना है।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
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दुनिया से सिमटे घर में दुबक के बैठे हैं
इसी बहाने यारों कुनबे गुलज़ार हो गए।
वक्त का तकाजा है नजीर ए हकीकत भी
गुल हो रही इंसानियत के दीदार हो गए।
इम्तिहानी लम्हों में मगरूर न हो आदम
ये दौर ए तुफां है हमसाये बीमार हो गए।
मजबूरी के आलम में संभल के रहियेगा
इम्दाद वाले हाथ मुल्क में मंसूर हो गए।
कहर न बन जाए तूफ़ान की खामोशियां
फिरके नाखुदा हकीकत से दूर हो गए।
अपनों से आज कुछ खुल के बात करें
अरसा गुजर गया है रिश्ते बेनूर हो गए।
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गोविंद व्यास रेलमगरा
#कोरोना लाॅक डाउन
ठिठुरती रजनी
दृर कहीं
जलती आग
उठती लपटें
चीखता स्वर
पहन कफ़न रहा है
एक दर्द दफन रहा है।
चहकती सुबह
महकती फ़िजा
सिसकता बालक
मजदूरी करते
दिहाड़ी करते
भूल स्व बचपन रहा है
एक दर्द दफ़न रहा है।
दहकती दोपहर
सुलगती गर्मी
पिटता-बोलता
हिलता डोलता
निर्धन कर्म करता
स्वेद से उफ़न रहा है
एक दर्द दफन रहा है।
- परमार प्रकाश
#मौलिक।
द्वितीय दुर्गा ब्रह्म तारिणी
. "जगराता"
~~~~
द्वितीय मां ब्रह्मचारणी के दरबार में
बोलिए सांचे दरबार की जै।
आइये सुनते हैं महामाई के दरबार में एक
प्यारी सी सुन्दर मां की भेट-
दाती तेरी दयालता जमाने में मशहूर है।
भरती खाली झोलियां भण्डारे से पूर है।
आते हैं तेरे दर पर भक्त मुरादौं को लेकर,
होती पूर्ण वो ही जो होती मां को मंजूर है।
भेट
जगदम्बा मां भवानी तुमको हम मनावैं।
सुन करके टेर आजा चरनौं में सर नबावैं।
ब्रह्मा मुरारी व शंकर दिन रात तुमको ध्याते।
सुर मुनि किन्नर नर नारी गुण गान तेरा गाते।
नारद भी नाम को लेकर वीणा को नित बजावैं।
ब्रह्माणी तू ही उमा है और तू ही कमला रानी।
है तू ही सीता राधा रक्मिणि भी तू ही जानी।
तू ही है आदि की भवानी इसको वेद भी बतावैं।
तूने शुम्भ निशुम्भ विदारे महसा सुर भी मारा।
तूने चण्ड मण्ड संहारे देवौं का कष्ट टारा।
तूने मधु कैटम्भ दोऊ मारे जंगी थे जो जहां में।
ले जोगिन संग चौंसठ कर खड्ग खप्पर धारी।
धरबार में मात आजा कर के सिंह की सवारी।
"महावीर" मां तुम्हारे गुण रात दिन हैं गावैं।
कवि महावीर सिकरवार
आगरा (उ.प्र.)
विधा;- कविता
जीवन जब लगने लगा
मुझको जैसे भार।
लगा सोचने कया करूं
वयर्थ लगा संसार।
तभी सामने आ गये
नाती,पोते चार।
देख उनहे मन में जगा
एक असीम सा पयार।
नये रंग में रंग उठा
मेरा सूना संसार
जाग उठा है जिंदगी
से मुझको फिर पयार।
लौट आया बचपन मेरा
ए कैसा चमत्कार।
लगा मनाने मन मेंरा
बचपन का तयोहार।
मुझे खेल में हार कर
भी मिलने लगा आनंद
और अधूरे से मेरा
पूरा हो गया छंद।
मैं प्रमाणित करता हूँ की
यज्ञ मेरी मौलिक रचना है
विजय श्री वास्तव
मालवीय रोड
गांधीनगर
बस्ती
उ०प्र०
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