Monday, April 27

"लेखक परिचय"23.अप्रैल2020

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ब्लॉग संख्या :-716



दिनांक-२३-४-२०२०
आयोजन- लेखक परिचय काव्यरूप ‌में

आदरणीय मंच को निवेदित
विधा- दोहा छंद


'राम' कहे मुझको सभी, चिखला मेरा ग्राम।
पेशे से मैं वृंद हूँ, शिक्षा देना काम।।
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किरनापुर तहसील है, जिल्हा बालाघाट।
राज्य मध्यप्रदेश लिखूँ, सोयाबीन सम्राट।।
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'सरस्वती' मम मात है, पिता 'फदाली' लाल।
समा गये पहले बहुत, यमक काल के गाल।।
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बेटी मेरी 'मैथिली', 'मीना' पत्नी नाम।
घर का संचालन करे, करे सिलाई काम।।
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हिंदी मुझको प्रिय बहुत,कुछ इंग्लिश का ज्ञान।
चकाचौंध से दूर मैं, हूँ सादा इंसान।।
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स्वरचित
रामप्रसाद मीना'लिल्हारे'
चिखला बालाघाट (म.प्र.)
विषय - लेखक परिचय
( आत्म परिचय )


कुछ दर्द ही थे
झकझोर गये ।
मन में कविता
के भोर भये ।

अब सोता हूँ
या जगता हूँ ।
इक कलम पास
में रखता हूँ ।

करके बी एस सी
मैं आया हूँ ।
डा0 का खवाब
मैं भुलाया हूँ ।

फिर भाषा में
जोर लगाया हूँ ।
मैं तीन वर्ष
गँवाया हूँ ।

रसिया में रच
बस आया हूँ ।
भटकती रूह
कहलाया हूँ ।

अब क्या करना
है नही पता ।
ढूँढ़ू खुद की
मैं सदा खता ।

ग़ालिब के शहर
में बसता हूँ ।
कवितायें रोज
मैं रचता हूँ ।

पान कृषि में
मै पला बढ़ा ।
महाराजपुर
है मिरी धरा ।

छतरपुर है
जिला हमारा ।
मध्यप्रदेश
का हूँ दुलारा ।

आइए अब
कुछ बात करें ।
कुछ रसों को
भी ज्ञात करें ।

श्रृंगार की
कविता भाती है ।
कलम विरह के
गीत गाती है ।

विचारात्मक
लेखन मेरा ।
जोश जुनून
का करूँ सबेरा ।

बैठूँ जहाँ मैं
डार के डेरा ।
उस पहलू पर
करूँ उजेरा ।

सत्य की खोज
सदा है जारी ।
हर भाषा से
प्रीत हमारी ।

दो बेटों का
बाप कहाता ।
संगीत मुझे
सदा सुहाता ।

बेटे दोनों
नेक हमारे ।
पत्नी घर के
काज सँवारे ।

इंजीनियर है
शिवम हमारा ।
अनुपम है
पढ़ाई का मारा ।

ये था मेरा
परिचय थोड़ा ।
टूटे शब्दों में
है जोड़ा ।

भूलों को न
धरना ध्यान ।
करूँ 'शिवम'
खुद का कल्यान ।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 23/04/2020

०००००००००००००
24 - 04 - 2020

लेखक परिचय
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

मानवता का सेवक हूँ मैं,
इतनी सी पहचान है।
निष्काम भाव से कर्म करूँ,
तनिक नहीं अभिमान है।।

किया हजारोंं को है शिक्षित,
फीस कभी नहीं लेता।
शिक्षा सामग्री है जो सारी,
नि:शुल्क है सब देता।।

राष्ट्र निर्माण की राह यही है,
आओ सभी अपनाएँ।
क्षमता नापो निष्काम भाव,
जो हो कर दिखलाएँ।।

यही निवेदन सबसे मेरा,
राष्ट्र धर्म सब अपनाएँ।
सबके हित में अपना हित है,
अब नारा यही लगाएँ।।
~~~~~~~~~
मुरारि पचलंगिया


मै शेरसिंह सर्राफ.....
******************


इक परिचय मेरा भी सुन लो,
शब्द मेरे है साफ।
लिखता हूँ खुद से खुद को मै,
शेर सिंह सर्राफ।
...
बचपन बीता यौवन भी अब,
मै हूँ चालीस पार।
लेखन मे डूबा रहता मन,
इससे ही मुझको प्यार।
....
पाँच जुलाई का दिन था वो,
सावन की बरसात।
पृथ्वी पर जब गिरे शेरसिंह,
रिमझिम थी बरसात।
.....
गोरखपुर के पास जिला है,
देवरिया निज धाम।
कभी कटोरा चीनी का था,
आज मगर बेनाम।
.....
माता है दमयंती देवी, पिता
महेशेन्द्र सिंह सर्राफ।
चार भगनी अरू तीन बँन्धू मे,
मै सबसे छोटा सर्राफ ।
....
एम ए ,बी एड, एल एल बी संग,
शिक्षा विशारद का हार ।
काम मेरा बर्तन आभूषण ,
मै हूँ एक सोनार।
....
निज निकेतन प्रिय- प्रवास है,
प्रिया है भार्या नाम।
दो पुत्रो की यह माता है,
यशवन्त ,राजवीर सिंह नाम।
....
ये है मेरा पूरा परिचय,
जो है बिल्कुल साफ।
यू पी का इक कलमकार मै,
शेरसिंह सर्राफ ।
....
********************
स्वरचित एंव मौलिक
शेर सिंह सर्राफ
नई बाजार देवरिया, उ0 प्र0
मेरा परिचय

श्री रघुनाथ प्रिय पितामह
पंचोली परिवार सुहाना।
श्री कन्हैया देवलाल भ्राता
बने परस्पर स्वयं सहारा। 1

अठारह जुलाई सन बावन
जन्म हुआ राजस्थान में।
छोटा गाँव गोलाना मेरा
बचपन बीता इस स्थान में। 2

तात हमारे श्रद्धेय देवलाल
भँवर आँचल माँ का पाया।
बजरंग रामभरोसी बहिना
सदा मिला स्नेह का साया। 3

प्रिय सहोदर सत्यनारायण
भार्या शशिकला सुन्दर है।
बड़ा हरीश छोटा रवि सुत
पुत्र स्नेह अति अद्भुत है। 4

सरिता जया प्रिय पुत्र वधुएँ
स्नेह पिता सा अनवरत देती।
हँसीखुशी और दुःखक्लेश में
वे मिलकर भागीदारी लेती। 5

जय जयेश युवराज भावेश
पौत्र पौत्री आलोक दिव्या है।
कुलदीपक अति प्रकाशमय
चँचल चपल शशि प्रिया है। 6

ली उपाधि हिंदी स्नातकोत्तर
शिक्षा का नित मान बढाया।
शिक्षण कार्य किया जीवन में
जीवन काव्य सृजन सजाया। 7

वह जीवन भी क्या जीवन है
जिसमें नहीं मुसीबतें आती।
भूतकाल से ली नयी प्रेरणा
माँ शारदे नव भाग्य जगाती। 8

जो कुछ पाया श्रम से पाया
ईश्वर सद्बुद्धि है परिणाम।
गोविंद शीश झुकाता सबको
बोलो मिलकर जय श्री राम। 9

स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।


दिनांक :- 23 अप्रैल 2020
वार :- गुरुवार
विषय :- परिचय
विधा :- पद (छंदबद्ध कविता)

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परिचय

महेंद्रगढ़ हरियाणा में एक गाँव मालड़ा जान मेरी ।
यादव कुल का प्यारा बेटा नफे सिंह पहचान मेरी ।।
पर दादा जीराम के बेटे , श्रीचंद नींव परिवार की ।
दादी धर्मा जड़ नीचे तक, हरी बेल पुरानी प्यार की ।।

विजय लक्ष्मी प्यारी माता जो संस्कारों का सागर है।
बलबीर पिता जो समाजसेवा में चौबीस घंटे हाजर है।।
चाचा लाला , बासर के संग , चाची मुन्नी और राजेश ।
दो बुआ अंगूरी और बाला ,गीता बहन गयी प्रदेश ।।

भरत,लक्ष्मण,शत्रुघ्न से रामबीर,रामकिशन और रमन ।
संस्कारों संग प्यार महकता,खिलता हरा-भरा उपवन ।।
रोहित,मोहित,खुशित,विनयऔर खुश्मिता बिटिया रानी।
जब होते सब साथ इकट्ठे ,भरे शाँति दिन भर पानी ।।

ममता ,धौली ,पत्नी शिल्लू , बहनों की तरह साथ रहे ।
संयुक्त परिवार प्यार का सूचक मातपिता सर हाथ रहे।।
हरफनमौला बन जीने की खटक पुरानी दिल में रखता ।
जोश,योग, प्रेरणा,भक्ति रोनक हर महफिल में रखता ।।

माता-पिता,गुरुजनों की सेवा और प्रकृति से प्यार करूँ।
जोश जवानों में भरकर मैं हिंद हित हेतु तैयार करूँ।।
स्नातकोत्तर हिंदी से और सैन्य कोर्स आठ साथ में ।
सरहद और साहित्य सेवा ,कलम संग हथियार हाथ में।।

नफे सिंह योगी मालड़ा ©

*अपना परिचय गीत में*
विधा॒॒॒ _गीत

रघुवंशी मैं रघुकुल वंशज
शंम्भूसिंह है मेरा नाम।
रघुकुल दीपक मेरे देवा
बोलूं सदा जयजय श्रीराम।

पौत्र स्वश्री प्रतापसिंह का मै
थे स्वश्री अजीतसिंह जी तात।
छोडे दोनों भाई मुझको।
स्वर्ग सिधारीं सुंंन्दर मात।
करूं हमेशा इन्हें प्रणाम।
बोलूं सदा जयजय श्रीराम

जन्मस्थली ग्राम मगराना
गुना जिले में जिसका नाम।
सोलह जून बावन में जन्मा
कक्षा तीन तक पाई शिक्षा
बनाया शिवपुरी जिला धाम।
वहीं हुऐ सारे शुभकाम।
बोलूं सदा जय जय

विज्ञान स्नातक किया शिवपुरी
फिर पॉलिटेक्निक अशोकनगर।
बना शिक्षक कहीं अभियंता,
कडा संघर्ष भी किया मगर।
मैं नहीं हुआ कभी बदनाम।
बोलूं जय जयजय श्रीराम।

कैंसर रोगी भले आज मै,
अपना ईश करे कल्याण।
यही भावना रखता हूं मै,
जैसे जीवित रखें भगवान।
प्रभु सबके हैं सीताराम।
बोलूं सदा जय जय श्रीराम

सिचाई विभाग से सेवानिवृत्त
गुना आराम से रहता हूं।
काव्य सृजन में रुचि अडसठ से
रोज यही काम मैं करता हूं
लिखता रहता सीताराम।
बोलूं सदा जयजय श्रीराम।

हुई रचनाएं प्रकाशित मेरी
काव्य स्पंदन, काव्य संग्रह,
भावों की बरसात में।
साझा संकलन आदीप्ता कुछ आने वाली उड़ान में।
एकल संग्रह 'शब्द पारिजात'
निकट भविष्य में आने वाला
अब सबके संज्ञान में।
यही विनय मैं ईश से करता
बनते रहते सबके काम।
जय-जय सीताराम।
बोलूं सदा जयजय श्रीराम।

स्वरचित
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश


स्व परिचय विधा- हाइकु में

है जन्म स्थान
ब्यावर,राजस्थान
नानी के धाम

है कर्मभूमि
प्रताप का मेवाड़
राजसमंद

भाई रोहित
माँ उषा,पिता श्याम
मेरे हैं हाथ

घर की लक्ष्मी
जीवन साथी बिंदु
प्रेम की सिंधु

छोटा संसार
सहज और सौम्य
बेटे सौगात

एम ए हिंदी
स्नातक प्राणी शास्त्र
गुरु विज्ञान

शैक्षिक यात्रा
हमेशा ही प्रथम
शिक्षा में मन

काम को मान
साहित्य और शिक्षा
मिला सम्मान

साइंस के संग
साहित्य औ संगीत
कला से प्रीत

संक्षिप्त विधा
गागर में सागर
हाइकु चुना

बिंब पे ध्यान
फेसबुक से बना
हाइकुकार

सृजन धर्म
सकारात्मक सोच
जीवन मंत्र

भावों के मोती
हिंदी को मिले मान
जलाई ज्योति

कर्म ही पूजा
जीवन का उद्देश्य
पर की सेवा

ऋतुराज दवे,राजसमंद

गुरुवार 23 अप्रैल 2020
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परिचय
गोविंद व्यास रेलमगरा
व्याख्याता राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय लापस्या, राजसमंद






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मैं अबोध
दुनियादारी से
मेरा आज ही
जन्म हुआ।
हूं मैं कौन
कहाँ से आया
कौन नगर
है लक्ष्य हुआ।

कहां आ गया
कौन डगर यह
कौन मुझे
सच बतलाए।
क्या करना
नितांत जरूरी
कौन मुझे
यह समझाए।।

कौन खड़े
बाहें फेलाए
कौन है सुख दुख
साथ खड़े।
कौन नित्य
पीड़ा के हेतु
क्यों है जान के
पीछे पड़े।।

मित्र शत्रुता
भाव यहां क्यों
क्यों व्यापार
ने घेरा है।
हानि लाभ
हर एक को सताये।
क्यों तम का राज
घनेरा है।।

आश निराश का
पहरा हरदम
मानो अंधा
कूप यहां ।
गैर जरूरी
इंतजार क्यों
चाहे रंक
और भूप यहां।।

क्यों है जीवन
सबको प्यारा
क्यों मृत्यु
दुखदाई है।
क्यों आनंद नहीं
हर शह में
क्यों हरपल
रुसवाई है।।

क्यों फिरकों में
बंटा हुआ जग
वैमनस्यता
छाई है।
क्यों पसरा है
तेरा-मेरा
क्यों छाई
अधमाई है।।

क्यूँ है देश
जमीं के टुकड़े
किसने यह
हदें बनाई है।
क्यूँ विस्तार की
होड़ लगी है।
क्यूँ यह छिड़ी
लड़ाई है।।

क्यूँ प्रतियोगी
आपस में भिड़ते
हर प्रपंच
अजमाईश है।
क्यूँ मुर्दों के
ढेर चल रही
आका की
समझाइश है।

क्यूँ विकृत
जीवन जीते हैं
पहन मुखौटे
लोग खड़े।
अविश्वास
आधार बन चुका
मानवता के
बीज सड़ें।।

अभी नया हूँ
कोमल भी हूँ
न ही विकृति
आई है।
सरल सहज
स्वभाव है मेरा
नई चादर
ओढ़ाई है।।

चौराहे पर
खड़ा हुआ हूं
कुछ तो मेरा
ध्यान धरो।
सही लक्ष्य
और दिशा दिखाओ
मेरा पथ
आसान करो।।

दिनांक 23।4।2020 दिन गुरुवार
विषय परिचय

मातु शारदे दो मुझे,किञ्चित विद्या ज्ञान।
अपना परिचय लिख सकूँ, हूँ मैं तो नादान।।
फूलचंद्र मम नाम है, विश्वकर्मा है गौत्र।
पिता रामकेवल मेरे,झींगुर राम का पौत्र।।
प्रभावती की गोद में, जन्म हुआ शिशु रूप।
ग्यारह मई चौसठ सुघड़,तिथि अनुपम अनुरूप।।
गुवांव बेलवारी ग्राम में,प्रकृति सुरम्य ललाम।
अम्बेडकर नगर जनपद,उत्तर प्रदेश प्रिय धाम।।
मामाश्री राम अजोर के यहाँ, दसऊपुर है वास।
जन्म से बी ए तलक, बीता यौवन खास।।
एम ए हिंदी में किया, अकबरपुर आसीन।
बी एन के बी कॉलेज, विद्या युक्त प्रबीन।।
बी एड डिग्री वहीं से,किया अध्यापन कार्य।
विद्यामंदिर हकीमपुर, पद स्थापित प्राचार्य।।
उन्नीस सौ पंचानवे,केन्द्रीय विद्यालय माँहि।
शिक्षक बन सेवा निरत,बालक वृन्द अघाहि।।
एक पुत्री दो पुत्र से, महक उठा घर बार ।
पत्नी शारदा की कृपा, होती वृध्दि अपार।।
एक पुत्र अंकुर सरिस, दूजा है उत्कर्ष।
पुत्री रश्मि लता सम, बढ़े गेह में हर्ष।।
कवि न होऊँ नहिं चतुर नर,कुछ तुकबंदी होय।
स्वान्तःसुखाय रचना करूँ, अरु मंतव्य न कोय।।

फूलचंद्र विश्वकर्मा

आदेशानुसार मैं अपने जीवन को शब्दों में ढालकर प्रस्तुत कर रहा हूँ।

सादर
💘💘

देख चुका हूँ अब तक मैं तिहत्तर बसन्त
नाम रखा घर वालों ने सुमित्रा नन्दन पन्त
हृदय की है प्रबल इच्छा जब भी आये अन्त
एक झलक दे देना करके कृपा अनन्त।

बिजली पुत्र हुआ मैं रहा अदना सा अभियन्ता
मेरे सारे काम करता रहा स्वयम् ही नियन्ता
थोडी़ चिन्ता में ही मैं सामान्य हो जाता हूँ
शान्ति के सुनहरे पृष्ठ पर मैं मान्य हो जाता हूँ।

उन्नीस वर्ष निजी क्षेत्र में कर ली नौकरी
फिर उठाली अपने व्यवसाय के लिये खाली टोकरी
इस टोकरी में ईश्वर ने स्वाभिमानी सफलता डाली
कभी न क्षीण होने दी मेरे चेहरे की लाली।

आर्थिक स्थिति ठीक रही सारे निपटे काम
मेरे साथ बने रहे सदा ही प्रभु राम
दो हजा़र एक में मेरा उजडा़ मन का गाँव
एक दुर्घटना हुई और कट गया दाँया पाँव।

तुम्हीं ने दिया दर्द तुम्हीं दवा देना
हे प्रभु जीवन में और न तपती हवा देना
जयपुरी फुट लगा मैं फिर खडा़ हो गया
मृत्यु को चुनौति देकर और बडा़ हो गया।

नहीं चाहिये ऐश्वर्य कभी रोटी मिले स्वाभिमान की
हे प्रभु निगलनी न पडे़ घूँट कभी अपमान की
बस ईश्वर ने सदा शान्ति की ही चादर ओढा़ई
इसलिये बेइमानी और लालच में कभी न आँखें ललचाई।

जीवन के उत्तरार्ध में माँ सरस्वती ने आँखें खोली
फिर धीरे धीरे मेरी कलम कोरे पृष्ठों में आकर बोली
माँ सरस्वती के आँचल में अब सो जाता हूँ
और कविता की दुनियाँ में दूर कहीं खो जाता हूँ।

दो नन्हीं पोतियाँ मेरी जन्मघुट्टी पिलाती रहतीं हैं
तुतुलाती बोली में मुझसे बतियाती रहतीं हैं
दवाई नन्हें हाथों से मुझे सदा खिलाती हैं
आधी पीडा़यें तो इनकी खुशी से दूर हो जाती हैं।

भावों के मोती और दो सुनहरे साज
अनमोल वीणा और अदभुत ऋतुराज
इनसे प्रेरित होकर मैं इस ग्रुप में आया
इन्होंने समय समय पर अपने स्नेह से सहलाया।

आप सब ने अपना सुन्दर सुन्दर लिखा वृतान्त
माँ सरस्वती !मत होने देना अपने बच्चों को कभी क्लान्त
आप सबकी लेखनी में है अद्भुत सम्मोहन
इस तरह ही जगमगाते रहें आपके शब्दों में मोहन।

सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
छोटे गाँव के आंगन में,
घर के अंधेरे कोने में ।
१९६९ सात फरवरी ,
जला एक दीप,
कहते उसे तबसे"प्रदीप"

बचपन बिता गाँव की,
गलियारों में,पेड़ की छाँव में ।
ओढ़ थी शिक्षा की,
लेकर अायी नागपुर शहर ।
पुरी हुई एम कॉम,एमबीए तक।
फिर की शिक्षा से दूरी ।

शिक्षा से हुई दूरी,
हुई शुरु,
नौकरी एक मजबुरी ।
कुछ अाते रुपये हाथ,
तो शुरु हुई शादी की बात ।
बनी बात तो,
"संजीवनी" ने दी साथ ।
दो से चार ,चार हुए आठ ।
जीवन की बनी हैं साटगाठ ।

नौकरी के भटकाव में,
नहीं ठहरा एक शहर,गाँव ।
नागपुर,सुरत,अंजार,जामनगर,
मुंबई,रायपुर फिर मुंबई,
नही ठहरा भटकाव ।

समाज भाव की ,
छोटी छोटी बात ।
आँखों से टीपता गया ।
छोटे छोटे शब्द में,
कुछ कुछ लिखता गया।
दर्द कुछ अपना,समाज का ।
कुछ प्रकृति का ।
कहने लगे कविता ।
कुछ पत्र पत्रिकाओं मिला साथ ।
नवभारत,वर्तमान अंकुर,तरुण मित्र,
काव्यकलष यहां बनी बात ।
बाकी सोशल मिडीया का हैं साथ ।

नौकरी की फुरसत से,
जब भी कुछ पल मिलते ।
शब्दों के उपवन में,
हम झूला झूलतते ।

प्रदीप सहारे



दिनांक - 23/04/2020
विषय - लेखक परिचय
विधा - कविता

हरियाणा का रहने वाला हूँ, परिचय मेरा बतलाता हूँ,
ना प्रसिद्धि ना ख्याति प्राप्त, लेखनी में हाथ चलाता हूँ,

बीस जनवरी बियासी का दिन, जब जन्म मैंने पाया,
मात-पिता और गुरुजनों की, रहती हरदम छत्रछाया,

एम ए हिंदी और अर्थशास्त्र की, करी मैंने पढ़ाई,
बी एड के बाद कर जे बी टी, अध्यापक की नौकरी पाई,

तहसील डबवाली जिला सिरसा, रिसालियाखेड़ा मेरा ग्राम है,
बस यही है छोटा सा परिचय और बलबीर मेरा नाम है।

स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा "वागीश"
सिरसा (हरियाणा)
नमन भावों के मोती
दि- 23..04.2020
िषय:- परिचय काव्यात्मक रूप में
विधा - #गीत (#सरसी छंद आधारित)
मेरी प्रस्तुति सादर निवेदित....
===========================
नाम प्रमोद हमारा है जी,रहें कहानी ग्राम |
पेशे से हम शिक्षक हैं जी,लिखें सरस उपनाम ||

जन्म तिथी उन्नीस सितंबर,सन उन्यासी साल |
मध्यम वर्गीय परिवार है,शांत सुखद खुशहाल ||
पूज्य पिता श्री जुगल हमारे,माँ सावित्री नाम |
नाम प्रमोद हमारा है जी,रहें कहानी ग्राम ||

एक भाई व एक बहिन है,राह चलें हम नेक |
रंजीता पत्नि है हमारी,बेटा बेटी एक ||
मात पिता से संस्कार शुभ,हमको मिले तमाम |
नाम प्रमोद हमारा है जी,रहें कहानी ग्राम ||

साँस्कृतिक गतिविधि में बचपन,से ही रहा लगाव |
मात शारदे की करुणा का,देखा अमित प्रभाव ||
जुड़े फेसबुक से लेखन में,पाये सुखद मुकाम |
नाम प्रमोद हमारा है जी,रहें कहानी ग्राम ||

देश समाज हितैषी हो नित,इस जीवन की राह |
सृजन सार्थक करें हमेशा,यही हमारी चाह ||
कर्तव्यों के प्रति समर्पित हो,तन मन अविराम |
नाम प्रमोद हमारा है जी,रहें कहानी ग्राम ||

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#प्रमोद_गोल्हानी_सरस
कहानी - सिवनी म.प्र.

*आज का आयोजन*
■दिन:-गुरुवार
दिनांक👉२३-०४-२०२०
#परिचय_काव्यात्मक_रूप_में
★विधा👉दोहा छंद
🌼🌼👇रचना👇🌼🌼

विश्ववंद्य है जगत में , अपना भारत देश।
उसी देश में 'अनिल' का , उत्तर नाम प्रदेश।।०१।।

भारत में विख्यात है , उत्तर नाम प्रदेश।
शाहजहाँपुर है जिला , भव्य - दिव्य परिवेश।।०२।।

उसकी ही तहसील है , मित्र पुवायाँ नाम।
सखे उसी में है सुखद , मम ककरौआ ग्राम।।०३।।

पूर्व-दक्षिणी छोर पर , है कल्याण निकेत।
वही गेह है 'अनिल' का , सुखकारक समवेत।।०४।।

गृहस्वामी जिसके रहे , श्री ठाकुर प्रसाद।
गायत्री गृहस्वामिनी , भव्य - दिव्य संवाद।।०५।।

उन्निस सौ अड़सठ सखे , और नबम्बर माह।
शुभ दिनांक वह तीस था , करक चतुर्थी वाह।।०६।।

यही हमारा जन्मदिन , मनता है प्रतिवर्ष।
देते हैं हेरम्ब नित , नवल - धवल उत्कर्ष।।०७।।

वही जनक-जननी हुए , देकर मानव देह।
कदम-कदम पर 'अनिल' पर , सतत लुटाया नेह।।०८।।

ऊषा मेरी अग्रजा , अग्रज श्री संतोष।
अचल-अखिल-अरविंद से , अनुज रहे परितोष।।०९।।

है मेरी सहधर्मिणी , प्रिया अर्चना नाम।
कर देती है सहज ही , मेरे सारे काम।।१०।।

दो सुकुमारी बेटियाँ , दो प्यारे सुकुमार।
अनिल-अर्चना संग में , सहज नेह व्यवहार।।११।।

श्रेष्ठ ब्राह्मण कुल मिला , धर्म - प्राण परिवार।
बहु-सुरम्य वातावरण , जीवन - मूल्य प्रसार।।।१२।।

प्रति पल समझाते रहे , हमको जीवन सार।
परहित करना सर्वदा , यही सृष्टि - आधार।।१३।।

आयुर्वेदिक ज्ञान दे , अंतस किया निहाल।
उससे ही है चल रही , अपनी रोटी दाल।।१४।।

चले गए गोलोक को , करके दिव्य चरित्र।
उनकी पावन सीख से जीवन किया पवित्र।।१५।।

देते हैं गौलोक से ,शुभाशीष अविराम।
जननि-जनक श्रीचरण में , मेरे कोटि प्रणाम।।१६।।

बना रहे परिवार का , सहज नेह अवलंब।
बस इतनी ही याचना , पूर्ण करें हेरंब।।१७।।

केवल इतनी कामना , मेरी सीताराम।
जीवन आए सर्वदा , मानवता के काम।।१८।।

इष्ट-मित्र करते रहें , इसी तरह अनुराग।
देह-गेह में नेह का , रहे सरसता फाग।।१९।।

बनी रहे यह सहजता , बना रहे यह प्यार।
भावों के मोती नमन, करता अनिल कुमार।।२०।।

बुद्धि-विधाता का मिले , शुभाशीष अविराम।
वीणावादिनि की दया , बरसे आठो याम।।२१।।

 रचनाकार:-
अनिल कुमार शुक्ल 'अनिल'
दुर्गाप्रसाद , बीसलपुर
पीलीभीत , उत्तर -प्रदेश

नमन -भावों के मोती
** स्वयं का परिचय **

रामगोपाल नाम है,पत्नि देवी सरोज ।
फूलों से मारे मुझे,मिले चाय के डोज ।।

रहा समाज शास्त्र विषय,एम ए किया पास ।
कोषालय की नौकरी ,मै सरकारी दास ।।

सेवा निवृत हो चुके,कृषक बने अब मित्र ।
यारो अब अनुभव हुआ ,कठिन कृषि के चित्र ।।

बेटा जब्बलपुर रहे ,बिटिया दुर्ग निवास ।
कहने को तो दो रहे, कोई नहिं अब पास ।।

मात-पिता हैं स्वर्ग में, नयनों में तस्वीर
व्यथित हृदय होता कभी,कौन धराये धीर ।।

सीधा सा मैं आदमी ,सीधे से जज़्वात ।
नफ़रत करता झूठ से, करता सीधी बात ।।

गाडरवारा में रहूं,ओशो का है धाम ।
आशुतोष का यह नगर ,राणा है उपनाम ।।

भावों के मोती बहे ,पूरे अब दो साल ।
नव उमंग उत्साह से ,भरे नये सुर ताल ।।

स्वरचित
रामगोपाल श्रीवास ' प्रयास '
गाडरवारा म प्रदेश ।

लेखक परिचय

कर्मठ जीवन
रहा मेरा
मुश्किलों से
न घबराया
बना सहारा
परिवार का सदा
सादा जीवन
पाया सदा

अट्ठारह दिसम्बर
उन्नीस सो छप्पन
को आया
धरा पर
रायसेन है
जन्मस्थली मेरी
नाम "संतोष"
रखा
"शांति" "शंकर"
ने मेरा
पाया
अशोक रेखा
शोभा भाई बहन
का साथ मैंने
पुलिस के कर्मठ
योध्दा थे
पिता मेरे

आये भोपाल
बस गये
यहीं हम
एम काम तक
पायी शिक्षा
लेखन संग
जोड़ लिया मैंने
उन्नीस सौ चौंसठ
से लेखन जारी

बैंक सेवा में
बिताया जीवन
बनी संगनी
"नूतन"
"अवनि" है
अनमोल रतन

"महादेवी "
"दुष्यंत"
"बालकवि"
"रज्जन"
का पाया साथ
लेखन का किया
विस्तार

बैंकिग, हास्य
सामाजिक क्षेत्र
कविता लेख
कहानी व्यंग्य
समीक्षा
ने पाया
राष्ट्रीय पत्र
पत्रिकाओ
पुस्तकों में
स्थान

मंच संचालन
गोष्ठी
आकाशवाणी
सेमिनार में
लिया भरपूर भाग

अब चाहिए
आशीर्वाद
आशीष आपका
बस ऐसा ही है
एक तुच्छ
परिचय मेरा

संतोष श्रीवास्तव भोपाल
शीर्षकस्वपरिचय
🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳
राजेन्द्र कुमार अमरगढ से
नाम पिता श्री ओमप्रकाश
माताश्री भगवती देवी
प्रपौत्र श्री रामस्वरूप
ग्राम अमरगढ जन्मस्थली
पूर्वदिशि वेदवंती प्रवाह
अग्नेयकोण दुर्ग ध्वजारोहण
वायुप्रवाह का सदैव भान
शिक्षादीक्षा बारहवीं तक
रुचि भारतीयतत्व पर कार्य
संस्कृति संस्कार परंपरा पर
प्रेरित करना ऋषिमुनि पथ पर चलना
वृक्ष बचाना वृक्ष लगाना
२०० प्रजाति बीज संवारना
शाकवाटिका औषधि वाटिका
नवग्रह वाटिका नक्षत्र वाटिका
फलपुष्प वाटिका क्षुप लता तरू
सभी लगाना सभी बचाना
ज्योतिष शोधकार्य करना
आतंकवाद और ज्योतिष
दुष्कर्म और ज्योतिष
ऐतिहासिक भौगोलिक धार्मिक
सामाजिक समुद्रीय पठारी
वनक्षेत्रीय दुर्गम निर्जन
सभी यात्रा करना ध्येय
यात्रा करलो बन्धु
फिर युवा अवस्था कहाँ
युवा अवस्था घट रही
फिर दुर्गम यात्रा कहाँ
🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳
राजेन्द्र कुमार अमरा

भावों के मोती
दिनांक-23-04-2020
आत्म परिचय
विधा- काव्य

बाईस अप्रैल सत्तासी को जन्मा
पुष्पा माँ की आंखों का दीप
पिता जगदीश ने ढोल बजाए
जब जन्मा उनका संदीप
मैं नमन करूँ उन चरणों को
जो मेरे भाग्य विधाता हैं
आशीष मिले उनका हरदम
प्रकाशित हो उनका संदीप|

जन्म भूमि मिहींपुरवा है
शिक्षा पायी अलग -अलग
मिहींपुरवा, बलरामपुर,
सिद्धार्थनगर सब अलग-अलग
सोचा न था कभी बनेगी
सिद्धार्थ भूमि मेरी कर्मभूमि
शिक्षा की अलख जलाने निकला
शिक्षक बन वह संदीप|

करूँ कर्म निस्वार्थ भाव से
हरदम यही सोच रही
करूँ सृजन साहित्य में ऐसा
हो प्रकाशित इक छोटा दीप
मिले आशीष गुरूओं का
प्रभु की कृपा बनी रहे
राष्ट्र सेवा में जीवन अर्पण कर
जगमगाए सदा संदीप|

स्वरचित
संदीप कुमार मेहरोत्रा
गोलवा घाट लखनऊ रोड
बहराइच (उत्तर प्रदेश)


दिनाँक-23-4-2020
बिषय-लेखक परिचय
विधा- कविता

मैं सोना नहीं,सोने सा बिकता नहीं
इसी लिये अनमोल हूँ।
मुझे शेर न समझना यारो
मैं एक इंसान हूँ।
समय आने पर
शेरों की भाषा बोलता हूँ,
शेर की तरह दहाड़ता हूँ।

औरों के शब्द नहीं चुराता
स्वयं रचता हूँ।
मैं डॉक्टर हूँ
लिटरल नहीं,मेडिकल हूँ।
तभी तो समय की नब्ज पहचानता हूँ
आप भी पहचानिये-मैं कौन हूँ?

स्वर्ण सी शक्ल वाला
और
सिंह की तरह बोलने वाला
बेशक,मैं सोने का शेर हूँ
मैं स्वर्ण सिंह हूँ
डॉ.स्वर्ण सिंह रघुवंशी हूँ।
आत्म परिचय
सत्य प्रकाश सिंह
केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
प्रयागराज उत्तर प्रदेश
वी.ए. इलाहाबाद विश्वविद्यालय इलाहाबाद।
एम.ए. राजनीति शास्त्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय इलाहाबाद प्रथम श्रेणी।
वी.एड. बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झांसी उत्तर प्रदेश
भार्या- डॉ अंजना सिंह
ईश्वर शरण बालिका इंटर कॉलेज प्रयागराज

नाम है मेरा सत्य प्रकाश
भूमि साहित्य का उजास।
यह कैसा मेरा परिचय
भावों के मोती शख्स से।
प्रखर हो रहे मेरे शब्द
उमड़ते जज्बातों के अश्क से।
एक गुरु का पुत्र हूं
शिक्षा की तीन पीढ़ियों का सूत्र हूँ।
नाम पिता का स्व - मोतीलाल
समा गये क्रूर काल के गाल।
मां निर्मला सिंह सरिता की धार
सेवानिवृत्त शिक्षिका करुणा की अंबार।
पत्नी है शिक्षिका डॉ अंजना
शिक्षा में अलंकारों की व्यंजना।
पुत्र हैं रुद्रांश सिंह चार वर्ष
हे हम दंपत्ति के उत्पल उत्कर्ष
भगवान भोले के प्रसाद
घर में ही खेलते कूदते
जिंदगी है उनकी भागम - भाग।

कल्पना का श्रृंगार है क्या करूं
नाद वीणा की मैं बजा दू।
निष्काम भाव से कर्म करूं
भाव के मोती का भाल सजा दूं।।

स्वयमेव...
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज

दिनांक 22 अप्रेल 2020
विषय परिचय




तीर गोमती
धाम द्वारिकाधीश
नगरी कांकरोली मे
पला बढ़ा मे
रहता हूँ अपनी मस्ती मे
शब्दों रंगों की बस्ती मे
कोशिश करता हूँ
कुछ नया करूँ नित
कल्पनाओं को शब्दों मे
कुछ चित्रित करूँ नित
अच्छा लगता मिलना झूलना
सबके मन की बातें सुनना
घूमना फिरना मस्त रहना
मेहनत से नही घबराता
सबकी मदद को हाथ बढ़ाता
पसंद मुझे पेड़ों की हरियाली
फूलों की खुशबू मतवाली
प्रकृति की गोद मे रमता मन
कभी कभी पर एकांत पसंद
अच्छा लगता पढ़ना लिखना
गीत कविता कहानी लिखना
बच्चों को पढ़ाने मे आनंद मिले
मेरी दुनिया जैसे वहीं मिले
सुख के साये दुख पलता है
खुशी के पीछे गम रहता है
मेरी मुस्कान के साथ संघर्ष
संघर्ष मे भी ढूँढता हूँ हर्ष
बस इतनी से मेरी कहानी है
छोटी सी मेरी ज़िंदगानी है

कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
स्वयं का परिचय

माता पिता चरणों में "जया" ने
रखा श्रावण मास में कदम
"राजसमन्द"के छोटे से गांव में
मिला मुझे सानिध्य

गांव से ही शिक्षा पूरी की
सपने थे बहुत बड़े मेरे
बचपन से ही कुछ करने
की अभिलाषा मेरे मन में थी

माता पिता का अटूट प्रेम और
साथ मिला मुझे हमेशा
आगे बढ़ते रहने को मुझे
प्रेरित करने वो हमेशा

उनके सपनों पर हमेशा
खरी उतरने की कोशिश करती
अंग्रेजी और राजनीति विज्ञान में
पूर्ण की मैने अपनी पूरी शिक्षा

कड़ी मेहनत की दिन रात
पर असफलता आईं हाथ
सपने जैसे टूट रहे थे
होंसला भी बिखर चुका था

शादी की उम्र हो चली थी
मां पापा की लाड़ली की
जल्दी से एक अच्छा रिश्ता देखकर
दिलीप कुमार संग मेरा हुआ विवाह

शादी के बाद ज़िन्दगी पूरी बदल गई
नया घर और नया रिश्ता था
नए रिश्तों से मेलजोल करना था
अपनी जिम्मदारियों को निभाना था

जिम्मेदारियों को मैने अपनी पूरी निभाया
पर सपनों में मेरे दिन रात जगाया
मन में शायद एक विश्वास था
माता पिता के सपनों को पूरा करने का

एक दिन जैसे ईश्वर की
असीम कृपा मुझ पर हुई
खोई हुई प्रतिभा का मुझे आभास हुआ
लिखती थी मैं मुझे ज्ञान हुआ

ईश्वर का नाम लेकर मैने
कलम डायरी हाथ में ली
सपनों को जैसे मेरे नए पंख लग गए
खोए हुवे अरमान फिर जग गए

अब तो बस मां सरस्वती के
चरणों में रहना है
अपनी कलम से मुझे
बहुत कुछ लिखना है

जया नाम का अर्थ तो
जीत हासिल करना है
यकीन है मुझे बड़ों के आशीर्वाद से
मुझे एक दिन अपना मुकाम मिल ही जाएगा

कहती हूं मैं सभी को इसलिए
सपने सच करने की चाहत हो
खुद पर पूर्ण विश्वास हो
तो एक सपने जरूर सच होते है

मां सरस्वती की कृपा मुझ पर
बस ऐसे ही सदैव बनी रहे
मेरी कलम से हमेशा मै
अच्छी कविताएं लिखती रहूं।
जया वैष्णव
जोधपुर, राजस्थान
दिनांक 23-04-2020
"स्वयं परिचय"


बस्ती मण्डल का जिला, बस्ती जिसका नाम।
उसी जिले में समसपुर, गाँव एक है धाम।। 1

रहते सज्जन लोग हैं, रीति, नीति विश्वास।
सेवा आगन्तुक सहज, करते तन्मय पास।। 2

दस फरवरी सन छिहत्तर, जन्म हुआ इस गाँव।
मात-पिता का मिल गया, मुझको शीतल छाँव।। 3

लाड-प्यार सबकुछ मिला, मिला बहुत संघर्ष।
मात-पिता, भाई-बहिन, किये सदा उत्कर्ष।। 4

भूल नहीं सकता कभी, भाई का सहयोग।
आज खड़ा हूँ जिस जगह, अद्वितीय उनका योग।। 5

दिये ज्ञान गुरुजन यही, सदा करो सत कर्म।
होता है सबसे सहज, मानव का यह धर्म।। 6

अर्जित करता ही रहा, डिग्री करके आस।
लेकिन बढ़ती ही गयी, विद्या की यह प्यास।। 7

प्रधानाध्यापक बनकर, सेवारत हूँ आज।
तत्पर रहता हूँ सदा, करने को निज काज।। 8

प्रिय कविता लेखन रहा, दोहा, चौपाई छंद।
मिलता है इससे मुझे, अतिशय ही आनंद।। 9

विनती वीणापाणि से, घर-घर हो प्रकाश।
मिले ज्ञान सबको यहाँ, यश धरती आकाश।। 10

डाॅ. राजेन्द्र सिंह "राही"
मेरा परिचय
माता :- स्व ० :-ऊषा देवी,
पिता :-स्व०:- राम आसरे लाल

इन महान विभूतियों का,
मैं इकलौता लाल|
महात्मा कबीर की निर्वाण स्थली,
"मगहर" मेरा जन्म स्थान|
जन्म तिथि 25-10-1952
शिक्षा:-विज्ञान स्नातक ,विधि स्नातक,
सेवा निवृत्त राज्य कर्मचारी,
अधिवक्ता|
ये है मेरी पहचान|
धर्म पत्नी:-लीला श्रीवास्तव
दिनांक:-22-2-78 को,
जीवन में आईं|
माँ ने बचपन में मुझको,
महा पुरूषों की,
कहानियाँ सुनाई|
वही सीख माँ की
काव्य जगत में लाई|
कविता, कहानी, नाटक
खू़ब लिखीं, अभिनय की,
कविता गाईं|
स्थानीय, राष्ट्रीय,
कविसम्मेलनों में,
आकाशवाणी, दूरदर्शन ,
पर अवसर मिला तो ,
काव्य पाठ किया|
भारतीय जन नाट्य संघ( इप्टा) ,
की सदस्यता ग्रहण किया|
इप्टा बस्ती मंच से ढेरों,
नाट्य मंचन किया|
नाटक लिखा निर्देशन भी किया,
अभिनय बारम्बार किया|
उल्लेखनीय प्रस्तुति:----
प्रादेशिक सम्मेलन (इप्टा) द्वार
आयोजित राय बरेली के
फ़ीरोज़ गांधी, प्रेक्षागृह में
मुंशी प्रेम चन्द की कहानी
कफन का नाट्य रुपांतरण
व अभिनय किया|
उमानाथ बली प्रेक्षागृह, लखनऊ
में इप्टा के प्लैटिनम जुबली
समारोह में नाटक पंच परमेश्वर
का नाट्य रुपांतरण व अभिनय
किया|
अभिनय यात्रा----जारी है|
प्रकाशित:-काव्य संकलन:- घर की निधियां,
एक नई रीत बने, एक नई राह बनेऔर
एक गीत जन्म लेता|
शीध्र प्रकाश्य उपन्यास :-समय की शिला पर|
ढेरों कविताएँ एवं कहानियाँ, नाट्य संग्रह
अप्रकाशित
वर्तमान में.:- प्रबुद्ध , सशक्त, एवं समृद्ध
मंच भावों के मोती से जुड़े हैं|
विजय श्रीवास्तव
म. न. 744
मालवीय रोड
गांधी नगर
जिला-बस्ती
उ०प्र०
लेखक परिचय


"मैंने नहीं गाए अभिनन्दन"

मैं एक छोटा सा रचनाकार, शब्दों की माला बुनता हूँ।
अपने शब्दों के माध्यम से,मैं राज दिलों पर करता हूँ।।
अपने इन शब्दों के द्वारा, सूरज को दीप दिखाता हूँ।
फिर मान मिले या वध हो मेरा ,तनिक नहीं घबराता हूँ।।

तमसा तट पर जन्म लिया, शिक्षा ली राजस्थान में।
आराध्य राम की भक्ति की, कभी झुका न शीश बाजार में।।
मैं जन्मा ऐसे घर में हूँ, शिक्षा जिसका आभूषण है।
इस शिक्षा के बल पर ही मैने ,पाया मान हृदय में है।।

यह कलम उठी जब भी मेरी, कभी सत्य मार्ग से डिगी नहीं।
बाधाएं कितनी भी आई, कायर के माफिक बिकी नहीं।।
बहुतेरे मिले हैं प्रलोभन ,कर्तव्य मार्ग से हटा नहीं।
सरयू गंगा का पानी पी, कभी सत्य मार्ग से भगा नहीं।।

मैंने देखा है नयनों से ,पगचम्पी करने वालों को।
इस पगचम्पी के बल पर ही ,सुशोभित होने वालों को।।
मेरी नजरों के आगे ही ,कई कौवे बुलबुल बन बैठे।
मैंने नहीं ढोई पाग कोई, इसलिए दिनकर से बन बैठे।।

माना कटु आज लिखा मैंने ,लेकिन किंचित है झूठ नहीं।
दरबारों में गाने वालों को, माना इसकी कद्र नहीं।।
मैंने नहीं गाए अभिनन्दन , न हीं शब्दों को बेचा है।
मैंने अपने शब्दों में ही ,भारत का गौरव देखा है।।
(अशोक राय वत्स) ©® स्वरचित
रैनी, मऊ, उत्तरप्रदेश

23/04/2020
विषय:निज परिचय

विधा: डेस्क हाइकु

जन्म दिवस
दो अगस्त का दिन
ऋतु सरस

माँ मेरी 'दुर्गा'
पापा राम प्रकाश
मेरा आकाश

मनीष बांह
सत्येंद्र व शिवेंद्र
अग्रज भाई

राखी का धागा
'सरिता' लाड़ली है
निज बहना

रायबरेली
आचार्य द्विवेदी की
पावन धरा

रायबरेली
पवित्र व महान
मम् जन्म स्थान

शिक्षा का स्तर
भौतिकी में मॉस्टर
साहित्यकार

गुरु का कर्म
वर्तमान का मर्म
जीवन धर्म

इलाहाबाद सा
विश्वविद्यालय है
शिक्षा मन्दिर

नवल रूप
चिंतन व लेखन
साहित्य सेवा

मनीष श्री
स्वरचित




है पुण्यभूमि यह वैशाली ।
लिए गतकाल गौरवशाली।
गणतंत्र को मिला प्राण यहाँ
मेरा भी जन्मस्थान यहाँ।

वायुसेना का पूर्व सेनानी।
मैं मूढ़मति अति अज्ञानी।।
बी ई, एम ए, एम बी ए।
कुछ पाठ महज पढ़ लिए।।

अब तो दक्षिण का वासी हूँ।
मसि-मति-मुखरित अभिलाषी हूँ।।
विज्ञजन से जो सीखता हूँ।
यदा-कदा मैं भी लिखता हूँ।।

एक पूत अरु बिटिया प्यारी।
एकल मैं संग एक नारी।।
बातें कछुक अनायास कही।
परिचय इतना, इतिहास यही।।
-©नवल किशोर सिंह







शीर्षक-परिचय
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

मैं कवि या लेखन तो नहीं बना हूँ अभी
मगर हाथ कलम उठा लेता हूँ जब कभी
लिख देता हूँ मन में उमड़ते भावों को
मुझे भी कुछ सिखलाते रहना आप सभी।

मात पिता ने बचपन में नाम रखा मेरा अशोक
पढ़ने पढ़ाने का मुझे हरदम रहता बड़ा शौक़
पढ़ा लेता हूँ नन्हें -नन्हें ननिहालों को मैं
सदज्ञान का बिखरा कर प्यारा सा आलोक।

मात पिता ने जन्म दिया मुझे दिखाया ये संसार
पालपोश कर बड़ा किया पिता मेरे पालनहार
भाई बहन संग खेल कर पाया सच्चा प्यार
पाकर शिक्षा गुरुजनों से आई जीवन बहार।

देशां में देश हरियाणा,जित दूध दही का खाना
जिला झज्जर गाँव मुबारिकपुर का मेरा रहना
समाज में रहकर सीख लिये जीवन के संस्कार
पाने को इज्ज़त मैंने ,चरित्र को बनाया गहना।

मैं कभी नहीं हिचकता गरीब को रोटी देने से
जगमग करना चाहता हूँ उनको ज्ञान ज्योति से
कुछ सीखने को बैठा हूँ विद्वानों की टोली में
तहेदिल से जुड़ा हुआ हूँ भावों के मोती से।
************
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा








 आत्म परिचय काव्य रूप:- डॉ कन्हैया लाल गुप्त "किशन "


नाम डॉ कन्हैया लाल गुप्त 'किशन', मन में राष्ट्र एवं हिन्दी सेवा का मिशन.
आत्मज स्व.फूलचन्द्र आर्य माता कमलावती देवी जिनके लालन पालन से बना परास्नातकी.
जन्मस्थान भाटपाररानी, जनपद देवरिया, उत्तर प्रदेश, जीवन सीधा-सादा उच्च जीवन का उद्देश्य.
मीरा से परिणय हुआ, ज्योति, श्रुति के बाद अतुल है आया, माता-पिता छोड़ चले सुरधाम,अब साहित्य सेवा के साथ बहुत से है काम.
वणिक कार्य छोड़ शिक्षण बना प्रधान, कई जनपदों में किया शिक्षण का विस्तार, सीमांत प्रदेश बिहार में शिक्षक का करता हूँ काम.
दो विषयों में परास्नातकी, हिन्दी में रहा 'दिनकर' पर शोधार्थी, आज भी रत हूँ सेवा में माँ भारती.

डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन

उत्क्रमित उच्च विद्यालय सह इण्टर कालेज ताली सिवान बिहार 841239









नाम : बृज व्यास
शहर : शाजापुर ( मध्यप्रदेश )
शिक्षा : एम.काम . एल एल बी .


गीत

शब्दचित्र हम भले खींच दें ,
रंग न , भरना जाने !!

सहज , सरल भाषा है अपनी ,
ज्ञान रखें हैं थोड़ा !
इसीलिये पीछे रह जाता ,
हरदम अपना घोड़ा !
प्रतिस्पर्धा के योग्य नहीं हैं ,
अपना कहा बखाने !!

मन के भाव उकेरा करते ,
कहाँ अलंकृत रचना !
गहराई ना अलंकार हैं ,
नहीं जानते मथना !
जो बोलें वह लिख डाले हैं ,
हो ना पाए सयाने !!

परिचय अपना इतना जानो ,
बीच आपके बैठे !
भूले से कोई नाम पुकारे ,
मन ही मन में ऐंठे !
बोल नहीं वो ढल पाये हैं ,
बन जाए जो तराने !!

बृज व्यास




दिन - गुरुवार
आयोजन - परिचय काव्यात्मक रूप में
विधा - कविता
---------------------------------------------

अनिरुद्ध - वीणापाणी की मैं ज्येष्ठ संतान।
रिपुदमन झा नाम मेरा धनबाद है जन्मस्थान।।

मैं पिनाकधारी तो नहीं पर नाम "पिनाकी" पाया।
सबने मेरा मान किया और सबने ही दुलराया।।

नीलमणि और नीलांबर हैं मेरे बहन और भाई।
कन्या सुघड़ शैलबाला है मित्रों मेरी लुगाई।।

पेशे से हूं फोटोग्राफर मैं लम्हों को संजोता हूं।
लोगों की खुशियां समेट कर यादों में पिरोता हूं।।

जीवन के कुछ हिस्से मेरे साहित्य को समर्पित।
भावों के कुछ शब्द गूंथकर करता हूं मैं अर्पित।।

जीवन सागर की लहरों में मैं हिचकोले खाऊँ।
झंझावातों से हूँ घिरा मैं फिर भी मैं मुस्काऊँ।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित






विषय - लेखक परिचय
विधा - सरसी छन्द
============

जिला - महोबा यू.पी. अन्दर,
कबरई कस्बा खास I
जन्मभूमि है यही हमारी,
भूधर नीचे वास ll
'रामदास' श्री पिता हमारे,
'प्यारी-सिया' हैं मात l
मिली 'माधुरी' जीवन साथी,
ईश्वर की सौगात ll

'कीर्ति कुमारी' और 'गीतिका',
दो तनया अनमोल I
सारा गम मम छू हो जाता,
जब दें पापा बोल ll
सदा रहे 'सन्तोष' मुझे प्रभु,
जैसा मेरा नाम l
किन्तु लिखूँ साहित्य में अपना,
'माधव' जी उपनाम ll

एम.ए. बी.एड. शिक्षा मेरी,
शिक्षण मेरा कर्म I
कविकुल जाति मानिये सब ही,
मानव मानो धर्म ll
नशा सृजन का रहे हमेशा,
व्यसन नहीं कुछ और l
कुण्डलिया, दोहा, चौपाई,
गीत, छन्द में गौर II

#स्वरचित
#सन्तोष कुमार प्रजापति 'माधव'
#कबरई जिला - महोबा (उ.प्र.)



द्विवार्षिक आयोजन
(द्वितीय दिवस)
लेखक परिचय
*************************************
नीलकमल सम मैं, सुनील है मेरा नाम
उत्तर प्रदेश बहराइच जिला है मेरा धाम।
माता-पिता की अपने मैं छोटी संतान
गांव फुटहा कुआं है मेरा जन्म स्थान।
जन्मस्थली- कर्मस्थली मेरी एक समान
छोटा सा अपना है संयुक्त परिवार।
पठन-पाठन में रुचि मेरी शिक्षण मेरा काम
विज्ञान में परास्नातक शिक्षा मेरी
शिक्षण विधा का भी है थोड़ा ज्ञान।
मां सरस्वती की कृपा से पुस्तकें लिखी हैं चार
साहित्यिक मंचों से भी मिला है स्नेह अपार।
अब तो भावों के मोती भी है अपना परिवार
मंच के मनीषियों से मिलता अपनत्व अपार।

स्वरचित- सुनील कुमार
जिला-बहराइच,उत्तर प्रदेश।




दि.23/4/29.
विषयः परिचय

*
पूछ रहे हो मेरा परिचय , अपना परिचय दूँ कैसे?
विश्व-ज्योति का लघु कण हूँ,मैं तमस् चीरता रवि जैसे।
हिम - आतप - वर्षा में पनपा , अदना सा तृण हूँ केवल।
राघवेन्द्र के अवध-प्रान्त का,एक धूलि-कण हूँ अविकल।।
× × × ×
सवैयाः
1.
अवरेखा गया न कहीं कुछ भी,उस नेह कसौटी कसा गया हूँ।
हँसी चंदनी चाँदनी देख मुझे,सकुचा- शरमा सहसा गया हूँ।
पथ रोका अँधेरों के अंधड़ों ने,तो उजेरों के गाँव बसा गया हूँ।
छली यामिनी से न ग्रसा गया मैं,भली दामिनी से ही डसा गया हूँ।।
2.
अरे !आँधियों से सदा खेला किया,मलयानिलों को दुलराया नहीं।
कुछ कौंधती रोशनियों ने कहा,चकाचौंध हुईं रुक पाया नहीं।
कन रेनु का भी सिर माथे धरा,धन-देहली शीश झुकाया नहीं।
रहा बौना,न किन्तु खिलौना बना,फिसला,सँभला घबराया नहीं।।
3.
इसमें कुछ श्रेय नहीं अपना,सब श्रेय उसी मुसकान को है।
जिसने स्वर देके सँवार दिया,सब श्रेय उसी स्वरमान को है।
अधराधर दान किया जिसने,सब श्रेय उसी वर दान को है।
रसकोष लुटाये सदा जिसने,सब श्रेय उसी रसखान को है।।
-डा.'शितिकंठ'(सम्प्रति इतना ही..)






लेखक परिचय
२३-०४-२०२०गुरुवार
🌻🌻🌻🌻🌻🌻
भावुकता मेरी माँ का नाम,
पिता का नाम विद्रोही।
"अकेला"जिनका कुलदीपक
बस मेरा परिचय यही।।
लव-कुश जैसे पुत्र रत्न,
दोनों मेरी आँखें व हाथ
जीवन संगिनी मेरी अति-
प्रिय,नाम है सीता देवी।
व्यंग्य लेखन मेरा अभीष्ठ
बाल कविता भी है यथेष्ट।
**** **** ****
है जन्म स्थान
बनसूला बसना
छत्तीसगढ़

तुक्तक कथा
क्षणिका लघुकथा
लेखन विधा

व्यंग्य परक
मुक्तक सेनेरयु
लेखन शैली

पेशा शिक्षक
अधिक से अधिक
बांटना ज्ञान

कम कहना
समझाना अधिक
लक्ष्य है मेरा





नाम- विपिन सोहल
जन्मतिथि - 06/07 /1976
जन्मस्थान - सहारनपुर
शिक्षा - M.A. ,M.Ed. UGC - NET
सम्प्रति- प्रा वि में शिक्षक
सृजन की विधाएँ - कविता गजल गीत
प्रकाशित रचनाएँ - कुछ कविता गजल आदि पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित । कोई संग्रह (किताब) नहीं।
प्राप्त सम्मान - फेसबुक पर दैनिक प्रतियोगिताओं में दैनिक, साप्ताहिक, एवं विशेष सम्मान।
ईमेल - vipinsohal@rediffmail.com



तन्हाई सा अकेला मै इन्तज़ार जैसा
जिन्दगी के मेले में, खोए प्यार जैसा

अनकहा इकरार , झूठा कोई इन्कार
बेचैन धडकनों में , मै हूँ करार जैसा

क्या मेरी जिन्दगी में मुकाम है तुम्हारा
उजडे हुए चमन की, गुजरी बहार जैसा

ऐसा नशा है मुझपर ए नाजनीं तुम्हारा
मैकश पे हो चढा के, पीकर खुमार जैसा

अजीब सा है रिश्ता क्या नाम दूँ इसे मैं
ना ना की जिद तुम्हारी, मेरे इसरार जैसा

विपिन सोहल




दिनांक :- 23/04/2020
विषय :- परिचय


एक परिचय मेरा भी,
नाम में कुछ खास नहीं।
छोटा सा है परिचय मेरा,
तारिफों की आस नहीं।

कंश्ट्रक्शन का काम मेरा,
ऊंची ऊंची इमारत बनाऊं।
सुखी रहे परिवार हमेशा,
बस इतना ही वेतन कमाऊं।

नंद बाबा सा लाड़ प्यार,
पिता श्री गोकुल से मिला।
ममता रुपी माँ कमला से,
यशोदा सा आँचल मिला।

विद्यालय तक शिक्षा ली,
कॉलेज का द्वार ना देखा।
तंगहाली की भेंट चढ़ते,
भाई बहन का बचपन देखा।

मेरी ही हो शिक्षा हर पूरी,
भाई ने अपनाई मजदूरी।
मेरे सपने सबने सजाए,
कर दी मेरी हर आस पूरी।

जैसे तैसे आईटीआई किया,
फिर मैने साक्षात्कार दिया।
सत्रह वर्ष की छोटी उमर में,
वेतन का पहला उपहार दिया।

सबके मिले जुले परिश्रम से,
आज सुखी परिवार हुआ।
किराए की खोली से निकलकर,
निजी एक घर संसार हुआ।

हुआ आगमन जीवन में संगीत का,
नाम है "मनीषा" जीवन मीत का।
तीन मई दो हजार बारह को बंधा,
बंधन इनसे जन्मों की प्रीत का।

राह पकड़ी अब साहित्य की,
लिखने की एक उमंग लिए।
लिख जाऊं अब ऐसा कुछ,
कि सबको एक सम्मान मिले।

स्वरचित :- राठौड़ मुकेश


आप सबके अवलोकनार्थ एक प्रयास इस छोटे से कलमकार को भी 🙏🙏
भावना मिट गयी ...अर्थ बिकता रहा
ब्द मिलते रहे गीत लिखता रहा
इस तरह दर्द कागज से लिपटा रहा
हादसों में गुजारी है सारी उमर
फिर भी कट न सका जिन्दगी का सफर
भावना मिट गयी अर्थ बिकता रहा
शब्द मिलते रहे गीत लिखता रहा
साजिशें करते करते मेरे हमसफ़र
लूट लेते हैं दिल बनके वो रहगुजर
आह भरते रहे दर्द होता रहा
शब्द मिलते रहे गीत लिखता रहा
ख्वाहिशें जिन्दगी भर खतम न हुई
मर गये जो मुहब्बत तो कम न हुई
अश्क गिरते रहे गम उठाता रहा
शब्द मिलते रहे गीत लिखता रहा
मैंने मिलकर खुदा से दुआ मांग ली
कितनी हैरत है तुमसे वफा मांग ली
जख्म मिलता रहा कष्ट होता रहा
स्वरचित-अभिषेक मिश्र
भास्कर कवि शायर
(केशव पण्डित)









दिनांक : 23-04-2020
वार : वीरवार

विषय : स्वपरिचय
एक प्रयास :-

उन्नीस सौ तिरसठ के मास नवंबर तिथि आठ को
वाराणसी में सम्पन्न परिवार के
कायस्थ कुल में मेरा जन्म हुआ
था मैं अपने दादा जी का लाड़ला
अल सुबह से ले कर देर रात्रि तक
रखते थे सदा साथ अपने ,
बड़े प्यार से नाम हमारा रखा उन्होंने *शशि*
माँ थी हमारी कमल रूप में "सरोज"
वहीं पिता हमारे सदा चमकते रहने वाले "तारा" थे ...,
होता क्या है साहित्य ज्ञान नहीं था मुझे
वो माँ का ही आशीष ही है जो
जाते जाते दे गई मुझे ,
आज जहाँ पर खड़ा हूँ मै
वो मेरी माँ ही आशीष है ..||

शशि कांत श्रीवास्तव
डेराबस्सी मोहाली ,पंजाब



23 अप्रैल 2020

लेखक परिचय
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21 नवंबर 1944 को
शहर और जिला बाराबंकी
उत्तर प्रदेश में श्रीवास्तव (कायस्थ) परिवार में जन्म भाई बहिनों में सबसे छोटा
माँ पिता जी का लाडला बेटा
प्रारंभ से ही कुशाग्र आज्ञाकारी और संस्कारी
अभियांत्रिकी(मैकेनिकल) की पढ़ाई और फिर विभिन्न आयुध निर्माणियों में करीब 41 साल सेवा के बाद नवंबर 2004 में सेवा निवृति..

अभियांत्रिकी(Engineering)के साथ साथ हिंदी साहित्य कविता और लेखन में विशेष रुचि रही..निर्माणियों में हिंदी पखवारा की प्रतियोगिताओं में भाग लेना..सम्प्रति सेवानिवृति के बाद पूर्ण रूप से लेखन में सक्रिय ...जापानी हाइकु,sadoka, चारु चिन्मय चोका.. आदि विधाओं से जुड़ा ..अब भी पर्याप्त सक्रिय हूँ ईश्वर चाहेंगे तो ऐसे ही चलता रहेगा जब तक शरीर में शक्ति और प्राण का संचार रहेगा..

सभी लोग जो इस ग्रुप से जुड़े हैं ..उनसे मैं स्नेह भाव रखता हूँ और अपनी हार्दिक शुभकामनायें और असीम आशीर्वाद देता हूँ

अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव
आयु : 75 वर्ष

आयोजन-परिचय (काव्य)
मम परिचय-


मेरा-गांव

उत्तर व पश्चिम में दस कोस मथुरा है,
आठ कोस पश्चिम में भरत पुर पूरा है।
किरावली तहसील थाना अछनेरा सात कोस फतेहपुर सीकरी मशहूरा है।
उत्तर में तीन कोस पश्थिमाई व रैनुका, सूरकुटी जमुना जहां जन्मे
कवि सूरा हैं।
विश्व में विख्यात ताज महल जिला आगरा के पांच कोस पछां में मेरा गांव "मंगूरा" है।

मेरा नाम-

करूं बार पै मैं बार नगद नहीं उधार,
ऐसे तरकश का चुनिंदा मैं तीर हूं।
मैं गायक हूं जबानी कवित्त रचना कार
भागवत प्रवक्ता मैं एक राहगीर हूं।
मेरे पास धन घोड़ा हाथी बंगला कार ना,
करता रहता नित कलम लकीर हूं।
गोत्र सिकरवार सूर्य वंश क्षत्रिय जाति,
नाम से मैं जाना जाता कवि *महावीर*हूं।


















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