संगीता जोशी कुकरेती







"लेखिका  परिचय" 

01)नाम:- संगीता कुकरेती
02)जन्मतिथि:- 24/03/1979
03)जन्मस्थान:- देहरादून उत्तराखण्ड 04)शिक्षा:- बी. एस. सी; बी. एड; एम. ए. (अंग्रेजी साहित्य); एम. लिब;
05)सृजन की विधाएँ:- लघु कविताएं,हाइकु ,पिरामिड ;
06)प्रकाशित कृतियाँ:-"भारत की कहानी" और "प्रकृति की सुन्दरता"(1999 में) दून की झाँकियां नामक अखबार में प्रकाशित हुई |
2019में *वर्तमान अंकुर साहित्य*(नोएडा, दिल्ली )के अखबार में कुछ रचनाएं प्रकाशित हुई जैसे:-मानवता; भूख; मेरा शहर; लौ; होली का त्यौहार ; शहीदों को समर्पित ; इत्यादि |
कोई भी सम्मान:- भावों के मोती साहित्य समूह द्वारा कई बार सम्मानित किया गया |
संप्रति(पेशा/व्यवसाय):-ट्यूशन सेंटर (घर पर)



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नमन मंच🙏
दिनांक 13/4/2019
शीर्षक- मर्यादा /रामनवमी
विधा- भजन
आप सभी को रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ 🌹🌻🌹
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जय राम श्री राम जय जय राम...(2)

माँ कौशल्या हुई सौभाग्यशाली,
दशरथ की सोई किस्मत जागी,
अवधपुरी में आई है बहार,
जन्मे हैं राम हुआ बड़ा उपकार |
जय राम........ (2)

भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न के तुम भ्राता,
माँ सीता के तुम हो प्राण,
तुम्हारी महिमा है अपरम्पार,
करूँ तुम्हें बारम्बार प्रणाम |
जय राम......... (2)

पिता दशरथ का तुमने वचन निभाया,
मर्यादा पुरुषोत्तम जग ने बनाया,
वन में काटे चौदह साल,
वहाँ किया असुर संहार |
जय राम....... (2)

हनुमान को परम भक्त बनाया,
बालि और विभिषण को राज दिलाया,
सबरी, अहिल्या का किया उद्धार,
जग में तुम्हारी होती जय जयकार |
जय राम...... (2)

स्वरचित *संगीता कुकरेती*

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मंच को नमन🙏
दिनांक- 12/4/2019
शीर्षक- "सुख/दु:ख"
विधा- कविता
**************
सुख-दु:ख गहरे साथी है,
बारी-बारी से जीवन में आते है,
अभिन्न अंग कहलाते हैं,
अपनी अहमियत बताते हैं |

जब सुख जीवन में आता है,
इंसान खुशियाँ मनाता है,
जब दु:ख जीवन में आता है,
कितना वो सहम जाता है |
दु:ख बिना सुख का एहसास नहीं,
फिर भी दु:ख में लगे कमी ही कमी,
आसमां को छूने की ख़ातिर,
कभी न भूलो तुम अपनी जमीं |
मन हो स्वच्छ, दिमाग दुरूस्त,
ऐसे तुम इंसान बनना,
खुद काँटों में चलना पड़े गर,
दूसरों के लिए फूल ही चुनना |
दूसरों के दु:ख को जो समझे,
उससे बड़ा कोई ओर नहीं,
अपनी खुशियाँ दूसरों संग बाँटे,
सुख इससे बड़ा कोई ओर नहीं |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*

शीर्षक-"मृत्यु"
विधा- कविता
************
झूठ, फरेब से बच गये अगर, 
मृत्यु से नहीं बच पाओगे, 
जन्म धरती पर हो गया तो, 
हे मनु! मृत्युलोक भी जाओगे |

यहाँ काम कोई भी टाल लोगे,
मृत्यु को तुम न टाल पाओगे,
अटल सत्य है ये जीवन का,
कैसे इसे तुम झुठलाओगे?

कर्म जो अच्छे करोगे तो ,
स्वर्ग की सीढ़ी चढ़ जाओगे, 
बुरे कर्म गर होंगें तुम्हारे, 
नरक में सताये जाओगे |

जीते जी सब अच्छा कर लो, 
मृत्यु का नहीं कोई भरोसा, 
कब सहसा आ जायेगी?
और तमन्ना यूँ ही रह जायेगी |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*


विधा- कविता
****************
मान, अपमान की परवाह नहीं, 
हम तो चुनते हैं अपनी राह सही, 
जबरदस्ती माँग कर मान मिलें, 
इससे बड़ा कोई अपमान नहीं |

अपमान के घावों को हमने देखा, 
मान के भावों को भी समझा है, 
कौन हमें क्या देगा?मान या धोखा, 
समझते हैं, इतने भी नादान नहीं |

मान, अपमान के चक्कर में पड़, 
मत खोना जी अपना स्वाभिमान,
ये तो आपकी निष्ठा,आपका काम,
तय करेगा किसके हैं आप हकदार |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*



दिल में बहुत भावनायें होती हैं, 
कुछ अच्छी व बुरी भी होती हैं, 
सभी के लिए अच्छी भावना हो, 
हमेशा प्रयास मेरा ये रहता है |

अपनी तो ये लेखनी साथी है, 
मैं हूँ दिया तो ये बाती है ,
मन के भावों को बखूबी, 
लिखना ये जानती है |

लेखनी जब उत्साहित होती है, 
तो जग में क्रान्ति भी ले आती है ,
कुछ भावनाएँ है मेरी दिल से, 
कह रही हूँ आज आप सभी से |

*भावों के मोती* मंच ,
ऊँचाई के शिखर को छुये,
स्वच्छ भारत अभियान का, 
सुन्दर स्वप्न सच हो जाये |

पावनी गंगा मैया का जल, 
कभी मैला न हो पाये, 
बेटियाँ खूब पढे-लिखे, 
साथ ही सुरक्षित भी हो जायें |

देश में भाईचारा खूब फैले,
भ्रष्टाचार दूर हो जाये, 
धर्मों का सम्मान होवे, 
शान्ति देश में बन जाये |

भावनायें साकार हों प्रभु, 
तार भावना के तुमसे जुड जायें, 
काँटो भरे उन पथों पर,
फूल सुन्दर से खिल जायें |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*

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नमन मंच🙏
दिनांक- 10/04/2019
शीर्षक-"जेब"
विधा- कविता
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मैंने एक पेंट सिलवाई,
दो-तीन जेब उसमें लगवाई,
तनख्वाह वाले दिन हँसी आई,
सेलरी एक ही जेब में समाई,
ऊपर से ये ज़ालिम महंगाई,
मेरी तो जेब भी शरमाई |
सेलरी लेकर जब घर पहुँचे,
बीवी ने समान की लिस्ट थमाई,
सहम गये देखकर लम्बी लिस्ट,
जेब में न थी इतनी कमाई,
दर्जी तूने इतनी जेब क्यों लगाई?
मार डालेगी हमें ये महंगाई |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
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मंच को नमन 🙏
दिनांक- 8/4/2019
शीर्षक- "मान/अपमान"
विधा- कविता
****************
मान, अपमान की परवाह नहीं,
हम तो चुनते हैं अपनी राह सही,
जबरदस्ती माँग कर मान मिलें,
इससे बड़ा कोई अपमान नहीं |
अपमान के घावों को हमने देखा,
मान के भावों को भी समझा है,
कौन हमें क्या देगा?मान या धोखा,
समझते हैं, इतने भी नादान नहीं |
मान, अपमान के चक्कर में पड़,
मत खोना जी अपना स्वाभिमान,
ये तो आपकी निष्ठा,आपका काम,
तय करेगा किसके हैं आप हकदार |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
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नमन मंच 🙏😊
दिनांक-4/4/2019
शीर्षक-"साथ/साथी"
विधा- कविता
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डगर बहुत हैं कठिन जीवन की,
जीवन साथी जानो तुम मेरे मन की,
तुम बिन एक कदम न चला जाये,
तेरा हर एक फैसला मुझे भाये |
जीवन की डोर यूँ जुड़ी है तुमसे,
जानते हो तुम हमें, ज्यादा हमसे,
साथ तुम्हारा ही है ताकत हमारी,
साथी हो तुम मेरे खुशनसीबी हमारी |
जीवन गाड़ी के दो पहिये हम हैं यारा,
मैं नदी हूँ तुम हो जीवन जल धारा,
बस यूँ ही प्यार तुम बरसाते रहना,
साथी तुम हो सबसे अमूल्य गहना |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*

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"जब दिमाग घूमा"
लघु कथा
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कल की ही बात है, मैं अपनी बालिका के साथ बाजार चली गई, चश्मा आँखों पर लगा के, धूप तेज थी तो रंगीन चश्मा आँखों पर और नजर का सिर पर चढा दिया😎 कुछ देर बाजार में खरीदारी की, फिर घर आते हुए भी धूप का मिजाज तेज ही था फिर से चश्मे उसी स्थिति में थे दिमाग में गरमी हो गई थी, घर पहुँचते ही रंगीन चश्मा तो निकाल दिया पर....
नजर वाला चश्मा सिर पर ही रह गया | *भावों के मोती* से अधिक देर दूर नहीं रह सकती तो ऑनलाइन होकर समूह में उपस्थित हुई पर ये क्या बिना चश्मे के थोड़ी दिक्कत होने लगी, फिर क्या चश्मे की ढूँढ, खोज होने लगी ,पूरे घर में उथल-पुथल हो गई, पर चश्मा न मिला, मेरा तो दिमाग घूम गया, चेहरा उतर गया इतने में पति देव घर पहुँचे स्थिति से अवगत हुए और मेरा चेहरा देखने लगे और मुस्कराये ,उनकी मुस्कान पर मेरा दिमाग और घूम गया पर ये क्या, वो मेरे करीब आये सिर से मेरा चश्मा मेरी आँखों पर लगाकर बोले, मेरी चश्मिश अब कैसा लग रहा है???? हम दोनों खूब हँसे, बस "अंत भला तो सब भला |"😊😊😊
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
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नमन मंच🙏
मित्रों व गुरूजनों को सादर प्रणाम 🙏🙂
दिनांक- 18/3/2019
शीर्षक-"चयन"
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जिन्दगी न मिलेगी दोबारा,
ये मानता है संसार सारा,
जिन्दगी के इस सफर में,
दो राहें कदम कदम पर मिलेंगीं,
सोच समझ के चयन करना यारा,
क्योंकि जिन्दगी न मिलेगी दोबारा |
ये जीवन तो नसीबों से मिलता है,
चयन हमारे हाथों से खिलता है,
ना और हाँ पर टिका है जमाना,
कभी सच तो कभी लगेगा फसाना,
चयन सच्चाई का करना यारा,
क्योंकि जिन्दगी न मिलेगी दोबारा |
घमंड के पंख तुम मत फैलाना ,
जमीं पर पाँव जमाकर चलना,
आत्मविश्वास का शरबत पीना,
जीवन को खुशी से जीना,
शब्दों का चयन हो करारा,
क्योंकि जिन्दगी न मिलेगी दोबारा |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
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नमन मंच 🙏😊
दिनांक- 16/3/2019
शीर्षक-"अंकुर"
विधा- कविता
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दिल की जमीं पर तुम,
कब प्रेम के बीज बो गये,
एहसास की खाद भी डाली,
फिर अचानक लापता हो गये |
तुम्हारे विरह की तपन में,
मैं रोज ही जलती रही, और
आंसुओं से बीज को सींचती रही,
आज अंकुर उसमें फूट गया |
इस बेरहम दुनियां में आज,
नन्हें पौधे ने कदम रख लिया,
मालूम है, मुश्किलें आएगीं बहुत,
मैंने अपना जिगर मजबूत कर लिया |
तुम तो भूल गये मुझे लापता होकर,
पर तुम्हें मैं कैसे भूल पाऊँगी?
पौधा, वृक्ष भी बनेगा एक दिन,
कैसे उसे मैं छुपा पाऊँगी ?
दुनियां के उन तमाम सवालों का,
जवाब भी मुझे अकेले देना पड़ेगा,
माँ हूँ न कोख मुझे ही मिली है ,
हिसाब भी मुझे ही देना पड़ेगा |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
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नमन मंच🙏
सुप्रभात मित्रों 😊
दिनांक- 15/3/2019
शीर्षक-"जादू/जादूगर"
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"प्रकृति का जादू"
सबसे बड़ा जादू तो प्रकृति ने दिखाया है,
मैंने तो एक नन्हा बीज था बोया,
पौधा उसे प्रकृति ने बनाया है ,
अहा! कितनी सुन्दर माया है |
जब वह बीज मिट्टी में सोया था,
सूरज ने तब उसे जगाया था,
बरखा की बूँदों ने फुंवार बनकर,
फिर जल उस पर बरसाया था |
धीरे-धीरे पौधा और बड़ा,
प्रकृति का जादू खूब चला,
आज वो बड़ा सा पेड़ बना,
फल, फूलों से लदा हुआ |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*

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नमन मंच 🙏
मित्रों व गुरूजनों को सादर प्रणाम
🙏😊🙏😊🌹🌺😊🙏🙏
दिनांक- 14/3/2019
शीर्षक-"करवट"
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तुम जज़्बात न समझे हमारे,
चमक खोने लगे प्यार के सितारें,
तुम भी मौसम की तरह होने लगे,
कुछ महीनों में करवट बदले लगे |
जब खाली वक्त होता था तुम्हारा,
तब हमारे सिवा कोई न था तुम्हारा,
व्यस्तता अब तुम बहुत दिखाने लगे,
शायद किसी ओर के सपने सजाने लगे |
करवटें बदलते रातें हम बिताने लगे,
तुम खामोशी से हमसे किनारा करने लगे,
कभी तो वक्त हमारे लिए भी करवट लेगा,
तुम्हारी बेवफाई का वक्त ही जवाब देगा |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
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दिनांक- 13/3/19
शीर्षक-"वस्त्र/चीर/कपड़ा/वसन
विधा- हाइकु
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(1)
चीरहरण
द्रौपदी असहाय
पांडव मूक


(2)
द्रौपदी लाज
बचायें गिरधारी
बढ़ायें चीर

(3)
पड़ोसी देश
खींचें कश्मीर चीर
है दुशासन

(4)
लाल वसन
पहने दुल्हनिया
सुन्दर नार

(5)
रोयेे कपड़ा
देख के फटेहाल
खोया अस्तित्व

(6)
वस्त्र भंडार
आकर्षित करते
मन लुभाते

स्वरचित *संगीता कुकरेती*



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दिनांक- 11/3/2019
शीर्षक-"मेघ/बादल"🌨
विधा- कविता
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मेरे दिल की जमीं ,
कब से सूखी पड़ी है,
मेघ बनकर बरसो सजन,
कब से आँखें बिछाये खड़ी हूँ |



विरह की अग्नि में,
किस कदर जल रही हूँ,
मेघ बनकर बरसो सजन,
मैं इंतजार में कब से खड़ी हूँ |

तरसते हैं नैन मेरे,
झलक तुम्हारी पाने को,
मेघ बनकर बरसो सजन,
सूख जाये न कहीं नैनों का पानी |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*



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दिनांक- 9/3/2019
शीर्षक-"धन/दौलत/पैसा"
विधा- कविता
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धन, दौलत जरूरत तक सही,
अति हो जाये तो नशा बन गई,
गलत आ जाये तो सजा बन गई,
घमंड हो जाये तो इंसानियत मर गई |




सबसे बड़ा होता है संतोष धन,
साधे रखे हरपल जो अपना मन,
स्वस्थ शरीर हो और स्वस्थ मन,
जीवन का यही है मूल मंत्र |

न कुछ साथ लाये, न कुछ साथ जायेगा,
सब कुछ दौलत से खरीदोगे,
मृत्यु को कैसे खरीद पाओगे?
धड़कन रुकी शरीर मिट्टी हो जाएगा |

खराब नहीं है धन, दौलत, पैसा,
बस ईमानदारी से कमाया हो,
सही इस्तेमाल से होगी उन्नति,
गलत ,अभिशाप बन जायेगा |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*





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दिनांक- 1/3/19
शीर्षक-"पवन/समीर"
विधा- कविता
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ऐ बहने वाली पवन तेरा शुक्रिया,
संदेशा ऐसा लाई खिल उठा जिया,




किसी के घर का वो सिपाही चिराग है,
किसी की धड़कनों में शामिल बेहिसाब है |

मासूमों के सर पर उसका भी हाथ है,
आज सभी को उसका इंतजार है |

ऐ पवन तु खुशबू तो उसकी ले आई,
आने पर उसके बँटेगी आज मिठाई |

माथे पर आज तिलक चंदन का होगा,
अभिनंदन का दिल से अभिनंदन होगा |
जय हिंद!
स्वरचित *संगीता कुकरेती*





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दिनांक- 28/2/2019
विषय-"संकल्प/प्रण"
विधा- कविता
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देश हित के लिए लेना होगा संकल्प,
दुश्मन अब बाज नहीं आ रहा,
दुष्टता अपनी वो फिर दिखा रहा,
छोड़ा नहीं उसने कोई विकल्प |



माँ भारती की संतानों,
सुनों हिंद के नौजवानों,
निर्भय होकर वार करो,
अब आर करो या पार करो |

चूहे-बिल्ली का खेल न खेलों,
दुश्मन को बिल में ही मारो,
पायलट अभिनंदन को छुडाओं,
दुश्मन के सिरों को उड़ाओ |

बंद करो अब ये राजनीति,
सब मिलकर एकजुट हो जायें,
संकल्प सबका एक ही होगा,
दुश्मन को न दें दूसरा मौका |
जय हिंद |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*



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***शहीदों को समर्पित***

आज कलम उठाऊँ, या उठा लूँ मैं तलवार,
दुश्मन को धराशायी कर दूँ, करूँ मैं ऐसा वार,
खाल उधेड़ दूँ उन धुर्तों की, अभी तक नहीं आये जो बाज,
ज्वाला ऐसी फूट रही, बिछा दूँ दुश्मनों की मैं लाश |



हे माँ भारती! तुझसे करूँ आज मैं सवाल,
क्यों तेरे बच्चों की जा रही एक-एक करके जान,
हे माँ धरती! कर दे प्रलय विनती है बारम्बार,
नहीं सुनी जाती माँ मुझसे अब रुदन भरी चित्कार |

सुनों ! देश के नौजवानों शांति की भाषा छोड़ डालों,
बंदूक हाथों में लेकर एक-एक दुश्मन को भून डालो |
कुर्सी के भूखे ये नेता, इनको भी मैदान में उतारो,
सीने पर गोली का दर्द,जरा इनको भी समझा डालो |

अश्रुपूर्ण भावभीनी श्रद्धांजलि, मेरे देश के शेरों के नाम,
धिक्कार है ऐसे,गीदड़ रूपी उन दुश्मनों के नाम,
नमन करती हूँ उन परिवारों को जिनके बेटे हुए बलिदान,
शक्ति, साहस उनको देना प्रभु,झेल सके दुःख का प्रहार |

जय हिंद !
स्वरचित *संगीता कुकरेती*



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दिनांक- 12/2/2019
शीर्षक-"लौ"
विधा- कविता
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साहस की लौ जलती रहे सदा,
रुख कैसा भी हो तेरा ,ऐ हवा !
मेरे देश की जलती रहे मशाल,
सुन ऐ! दुश्मन तेरी क्या औकत?


घर-घर से निकलें हैं ये जो चिराग़,
माँ भारती से करते हैं बेहद प्यार,
इनकी लौ को तु क्या बुझायेगा,
तु है क्या? सिर्फ एक पत्थरबाज |

रात के अंधेरे में देते हैं सैनिक पहरा,
सीमा मत लांघना, बुरा हाल करेंगे तेरा,
साहस की लौ,मजबूत है इनकी,
ऐ दुश्मन मत देना तु कोई धमकी |

सलामती चाहता है गर तु अपनी,
इंसान बन, हैवानियत छोड़ दे अपनी,
शेरों की माँद में न डाल अपना हाथ,
जान से धोना पड़ेगा ऐ धुर्त! तुझे हाथ |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*



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दिनांक- 5/2/19
विषय- "विज्ञान"
विधा- कविता
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क्रमबद्घ, सुव्यवस्थित ज्ञान
यही कहलाता है विज्ञान,
वैज्ञानिक दृष्टिकोण बनाता,
सच की तह तक हमें पहुँचाता |


युगों-युगों से चलता आया,
आधुनिक युग में बहुत छाया,
तकनीकी से जोड़कर इसने,
मानव जीवन आसान बनाया |

न्यूटन, एडिसन,बेल आये,
भौतिक विज्ञान के प्रयोग बताये,
बॉयल,चाल्स के प्रयोगों ने,
रसायन विज्ञान के गुण बताये |

मेण्डल, खुराना बड़े ही ज्ञानी,
जीवविज्ञान में इनका कोई न सानी,
प्राकृतिक अध्ययन में तत्पर रहे,
आनुवंशिकी के जनक ये कहलाये |

ऐसे ही विज्ञान ने दिखाये चमत्कार,
मिसाइल, सेटेलाईट, कम्प्यूटर आदि,
इन सबका किया निर्माण और बना,
विज्ञान एक चमत्कारी वरदान |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*



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दिनांक-19/01/19
विषय- "चित्र"
विधा- कविता
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बीते दिनों की वो यादें,
भुलाई नहीं जाती हैं,
सामने आये न आये,
चित्र जरूर खींच जाती हैं |

वो हँसी के चित्र होते हैं,
वो उदासी के चित्र होते हैं,
बस उन्हें ही देखकर थोडी सी,
बेजान शरीर में जान आ जाती है |

जिन्दगी के कुछ बेरंग चित्रों में,
रंग भरने को मेरा जी करता है,
पंख लगाकर उड़ने को जी करता है,
पग घुँघरू पहन थिरकने को जी करता है |

समय के साथ चित्र बदलते हैं,
पर कुछ धुँधले पड़े चित्रों को,
साफ करने को जी करता है क्योंकि,
हर एक चित्र अपनी कहानी कहता है |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*



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*****मन की तलाश*****
16/1/2019
😊😊😊😊😊😊😊😊

मन मेरा कस्तूरी मृग हो गया है, 
सारे सुख मेरे ही अंदर पर न जाने,
क्या तलाश रहा ये मन चंचल,
बेचैन कर रहा अंदर ही अंदर |

शिक्षा पूरी हो गई फिर भी न जाने,
ज्ञान की तलाश में भटक रहा है,
परिवार पूरा खुशहाल है फिर भी,
खुशी की तलाश में भटक रहा है |

समझ आ रहा है जीवन सार मुझे,
गुलाम बना रहा है ये मन मुझे,
इच्छाओं ने विश्राम इसे न दिया,
इसलिए बेचैन इसने मुझे किया |

इसको शांत करने का उपाय,
अब तलाश लिया है मैंने,
आँखें बंद कर गहन चिंतन किया,
मन की तलाश को खत्म किया मैंने|

स्वरचित *संगीता कुकरेती*



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दिनांक- 09/01/19
विषय- "अतिथि"
विधा- कविता
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घर आंगन में रौनक छायी,
अतिथि के आने की तिथि आई,
ननद-ननदोई का होगा आगमन,
घर में होगी खूब चहल-पहल |


किसी ने दरवाजे की घंटी बजाई,
सासू माँ ने जल्दी दौड़ लगाई,
दरवाजा खोल के बिखेरी मुस्कान,
आ गये जीे हमारे घर मेहमान |

हम बहुओं ने कमर कस ली,
मेहमान नवाजी की तैयारी कर ली,
देखो हमसे कोई चूक न हो जाये,
अतिथि को कोई बात बुरी न लग जाये |

कब दिन हुआ, कब हो गई रात,
पता न चलता जब खूब होती बात,
बच्चों की तो जैसे लॉटरी लग गई ,
खेल-कूद की आजादी मिल गई |

हमें हमारे अतिथि खूब हैं भाते,
इन्हीं से हैं हमारे रिश्ते और नाते,
दिल से करते हम इनका सत्कार,
यूँ ही आते रहें ये बार-बार |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*



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दिनांक- 28/12/18
शीर्षक- "दिल"
विधा- कविता
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जीव रूपी काया पर,
ईश ने सबके दिल लगाया,
हर धड़कन पर जिंदगी लिखी,
और फिर उसकी किस्मत लिखी |

सभी प्राणियों ने अनुसरण किया,
पर मानव ने बहुत बड़ा धोखा किया,
उसने अपनी फ़ितरत ऐसी बदली,
मासूम दिल की कभी भी न सुनी |

अपने ही लोगों से की गद्दारी,
बेगानों की गुलामी स्वीकारी,
काश इनके सीने में भी दिल होते,
आज देश के सितारे बदले होते |

हैवानियत की तो क्या सुनाऊँ कहानी,
बच्चियों तक के बन बैठे शिकारी,
काश की इनके सीने में दिल होते,
सबके बच्चे आज सुरक्षित होते |

भ्रष्टाचार सबसे बड़ी बिमारी,
राजनीति में कर रहे सब मनमानी,
काश की इनके सीने में दिल होते,
देश के युवक दर-दर की ठोकर न सहते |

सीमा पार बैठे जो आतंकवादी,
अंधाधुंध कर रहे देश पर गोलाबारी,
काश की इनके सीने में दिल होते,
इंसान के दर्द को शायद समझते |

इसमें दोषी दोनों हैं नर, नारी,
नहीं समझ पा रहे अपनी जिम्मेदारी,
दिल में नहीं किसी के ईमानदारी,
बेईमानी का पलड़ा हो गया भारी |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*



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दिनांक- 27/12/18
शीर्षक- "धरती"
विधा-कविता 
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धरती को कहते हम माता,
हर कोई इसकी संतान कहलाता,
पर दिल पर हाथ रख कर सोचो,
क्या माँ को हमारा सुख मिल पाता |


धरती ने हमको जीवन दिया
अन्न, हवा दी और जल दिया,
रहने का ठिकाना दिया,
हमसे उसने क्या लिया?

अाज इंसान हो गया मतलबी,
कर रहा माँ धरती को दूषित,
पर वो शायद ये भूल गया कि,
इससे तो उसकी बर्बादी निश्चित |

मैला कर रहे धरती का आँचल,
धन के पीछे सब हो रहे पागल,
काट दिये जंगल के जंगल फिर,
सोच रहे क्यों हो रहा अमंगल |

मानव का इतिहास यहाँ है,
वीरों की गथाएं सुनी यहाँ है,
धरा को मिलना चाहिए सम्मान,
तभी कहलायेंगें हम सच्ची संतान|

मानव तुम्हें जागरूक होना होगा,
हरियाली है धरती माँ का गहना,
मत करो तुम इसको खराब वरना,
धरती माता का लगेगा श्रॉप |

क्यों घोल रहे जहर तुम जल में,
कूड़ा-करकट फैला रहे यूँ थल में,
हवा में जहरीली गैंसे हैं शामिल,
कितनी कर रहें तुम मनमानी |

हे मानव! भूल अपनी स्वीकारो,
धरती का अस्तित्व बचा लो,
जीवन मिलता सिर्फ यहाँ,
और फिर जाओगे सब कहाँ |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*

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दिनांक- 26/12/18
शीर्षक- "किवाड़"
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दिल रूपी किवाड़ को,
ऐसे ही न खोला कीजिए,
सुना है आजकल इंसान,
हर दिन रंग बदलता है,
कब किस रंग में दाखिल हो,
गिरगिट समान हो गया वो |


आपो हवा मैं भी अब कहाँ,
वो बात रह गई जनाब! जब,
किसी के आने की आहट से,
खुद ही खुल जाते थे किवाड़,
तूफ़ान-ऐ- बेवफाई फैल गई है,
ईमानदारी की कद़र न रह गई है|

स्वरचित *संगीता कुकरेती*





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दिनांक-24/12/18
शीर्षक- "परिवार"👨‍👩‍👦‍👦
विधा- कविता
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*सुखी परिवार*


जीवन जीने का आधार,
खुशहाली का है जो द्वार,
जहाँ मिलता बहुत प्यारा,
ये ही होता है सुखी परिवार |

बड़े -बुजुर्गों का आशीर्वाद,
माता-पिता का होता साथ,
बच्चों से आती है बहार,
ये ही होता है सुखी परिवार |

जहाँ मनाने को हों खूब त्यौहार,
और बनते हों खूब पकवान,
अच्छा रहता सबका व्यवहार,
ये ही होता है सुखी परिवार |

दादा-दादी के हों संस्कार,
माता-पिता का होता सम्मान,
छोटे करें अपनी गलती स्वीकार,
ये ही होता है सुखी परिवार |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*





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दिनांक- 22/12/18
शीर्षक-"संसार"
विधा- कविता
**************
ये मेरा घर-संसार ,
मेरे बच्चों से है आबाद,
इनकी शरारतें मुझको प्यारी,
मेरी बगिया की हैं ये फुलवारी |

सास-ससुर की है छत्रछाया,
इससे बड़ी नहीं कोई माया,
देवर-देवरानी का है साथ,
ऐसा है मेरा घर-संसार |

पति मेरे बहुत ही प्यारे,
सबकी आँखों के वो तारे,
हैं वो बड़े ही जिम्मेदार ,
ऐसा है मेरा घर-संसार |

मेरी तो दुनियां यही है,
ज्यादा की अपेक्षा नही है,
खुशियाँ यूँही रहें बरकरार,
बना रहे मेरा घर-संसार |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*



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दिनांक- 20/12/18
विषय - "भूख"
विधा- कविता
**************
भूख जब तिलमिलाती है,
कयामत सी आ जाती है,
भूख की ये तिलमिलाहट,
अच्छे,अच्छों को रूला जाती है |


भूख की तड़पन क्या होती है,
गरीब की आँखों में दिख जाती है,
फिर क्या कचरा,क्या जूठन,गंदगी
कुछ भी नजर कहाँ आती है |

अमीरी जिनका गहना है,
उनका तो क्या कहना है,
करोड़ो,अरबों की शादी करते,
फिर भी ज्यादा नहीं चल पाती है |

अन्न की कितनी बर्बादी होती,
उनको समझ नहीं आती है,
किसी भूखे को भोजन करा दें तो,
जैसे जान उनकी निकल जाती है|

जिनके पेट भरे होते हैं,
अच्छी नींद में वो सोते है,
बचपन अपना जो बेचते हैं,
बच्चे वही भूखे होते हैं |

पेट की भूख मिटाने की ख़ातिर,
दर-दर वो भटकते रहते हैं,
कभी चौराहे पर कभी सड़कों पर,
कभी कचरे के ढ़ेर में मिलते हैं |

किसान की भी होती ये मजबूरी,
अन्न दाता होकर भी दो वक्त की,
रोटी भी उसे नहीं मिलती पूरी,
उसके नसीब में भी भूख ही होती|

स्वरचित *संगीता कुकरेती*



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दिनांक-27/11/18
शीर्षक-" उपहार"
विधा-कविता (स्तुति)
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प्रभु तुम हो जगत के पालनहार,
है तुमको मेरा बारम्बार प्रणाम,
कितने मिले तुमसे उपहार,
जीवन कर दिया मेरा खुशहाल |


माँ की ममता मुझको मिली,
पिता के साये में पली बड़ी,
भाई-बहन का मिला मुझे प्यार,
कितने सुन्दर दिये तूने उपहार |

सुन्दर काया मुझको दी,
फिर डाल दिये उसमें प्राण,
सरस्वती माँ का मिला आशीर्वाद,
प्रभु तुम्हारा,आत्मीय आभार |

तुम्हारी कृपा से ही प्रभु,
मिला मुझको सुन्दर घर-संसार,
जीवन -साथी का मिला प्यार,
गोदी के लाल दिये तूने उपहार |

सोच रही हूँ मैं अब प्रभु,
क्या दूँ तुमको मैं भी उपहार,
श्रद्धा-सुमन मैं लायी हूँ,
भेंट मेरी प्रभु!कर लो स्वीकार |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*



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दिनांक-(23/11/18)
शीर्षक-"नसीब"
विधा-कविता
**************
नसीब लिखने वाले ने ,
हमारा नसीब लिख दिया,
जो हमारे हिस्से का होगा,
वो कैसे भी मिल जायेगा |


खुद से कुछ अच्छा कर ले,
वरना अपाहिज बन जायेगा,
दुआओं से बिगड़ा हुआ तेरा,
नसीब कुछ तो सुधर जायेगा |

चाहने से कोई चीज यूँ हीं,
कहाँ अपनी हो जाती है,
जब वक्त साथ होता है ,
तब तकदीर रूठ जाती है |

माथे पर जो लिखा नसीब,
उसका हिसाब क्यों लेता है,
मेहनत थोड़ी तु भी कर बंदें,
हाथों में तेरे किस्मत की रेखा है |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*



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विधा- कविता
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आया छठ पूजा का त्यौहार,
जीवन में खुशियाँ आई हजार,
सूर्य देव की सवारी आ गई,
सात घोड़ों के रथ पर सवार |


छठ माता की पूजा करके,
लेंगे सब उनका आशीर्वाद,
जीवन खुशियों से भर दो मैया,
तुमको बारम्बार करते प्रणाम |

सूर्य देव को करेंगे अर्चन,
वही करते जीवन का अर्जन,
धरती में फैलाते प्रकाश ,
है उनको शत्-शत् प्रणाम |

नदी किनारे लगी भीड़ अपार,
सूर्य की लाली का है इंतजार,
थाल में सजे हैं भोग बेशुमार,
सफल करना छठ माँ ये उपवास |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*

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दिनांक- (27/10/18)
विषय- "करवा चौथ"
(सुहाग/सुहागिन)
विधा-कविता


ऐ चाँद आज बादलों में न छुप जाना,
पिया से पहले तुम दिखाई दे जाना,
आज किया है मैंने सोलह सिंगार,तेरी,
चाँदनी में करूँगी पिया का दीदार |

मेंहदी लगा ली आज हाथों में मैंने,
पहन लिए फिर से सब गहनें ,
हाथ में करवा संग सजा थाल,
संग में शामिल कईं सुहागिन बहनें |

छलनी से होगा आज तेरा दीदार,
पिया का मिलेगा खूब सारा प्यार,
उनकी लम्बी उम्र का वर तु देना,
वहीं हैं मेरे जीवन का असली गहना |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*



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********कुमकुम*******
थाल सजा कुमकुम, रोली का
अक्षत, पुष्पों का बना हार
आज माँ का एक सपूत चला
बचाने माँ भारती की आन |
कुमकुम रोली का टीका माथे
माँ अपने लाल के सजाती
विजयी होने का आशीष देती
प्यार करती और दुलार देती |
ये कुमकुम का टीका प्रतीक है
स्त्री के सुहाग की निशानी
देवी माँ की अटूट भक्ति की
वीरों के सम्मान व विजयी होने की |


स्वरचित *संगीता कुकरेती*


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21/09/18)
ये यादें बहुत सताती हैं,
बचपन की खूब याद दिलाती हैं,
माँ-पापा की मैं वो शहजादी थी,
घर में रौनक भी खूब मुझसे थी |
कुछ यादें बहुत याद आती हैं,
वो माँ का आँचल, लोरी सुनाना,
पापा के संग खूब बतियाना,
भाई-बहनों संग की नोंक-झोंक |
वो गुड्डा-गुड्डी का ब्याह रचाना,
कागज की कश्ती को तैराना,
घर-घर, पिट्ठू-फोड खेलना,
खेल-खेल में झूठ बोलना |
कैसे ये समय बीत गया,
कब मैं इतनी बडी हो गयी,
शादी का ढोल मेरा भी बज गया,
गुड्डा-गुड्डी का खेल सच हो गया |
कभी खुली आँखों में तो कभी..
बंद आँखों में सजती हैं अब यादें,
कुछ खट्टी कुछ मीठी हैं ये यादें,
धीरे-धीरे धुँधली हो रहीं हैं ये यादें |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*

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"सागर"
(7/08/18)

सागर के तीर बैठी हूँ मै,
एकटक लहरों को देखती हूँ ,
इनकी ये उथलपुथल देख,
दिल की धडकन हो गई तेज,
नहीं होता आँखों को यकीन,
सुनामी की लहरों का कहर,
कैसे बरसाता होगा जहर,
आपदाओं को देता निमंत्रण,
नहीं रहता फिर कहीं नियंत्रण!


स्वरचित "संगीता कुकरेती"


















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ये यादें बहुत सताती हैं,
बचपन की खूब याद दिलाती हैं,
माँ-पापा की मैं वो शहजादी थी, 
घर में रौनक भी खूब मुझसे थी |
कुछ यादें बहुत याद आती हैं, 
वो माँ का आँचल, लोरी सुनाना,
पापा के संग खूब बतियाना, 
भाई-बहनों संग की नोंक-झोंक |
वो गुड्डा-गुड्डी का ब्याह रचाना, 
कागज की कश्ती को तैराना,
घर-घर, पिट्ठू-फोड खेलना,
खेल-खेल में झूठ बोलना |
कैसे ये समय बीत गया, 
कब मैं इतनी बडी हो गयी, 
शादी का ढोल मेरा भी बज गया,
गुड्डा-गुड्डी का खेल सच हो गया |
कभी खुली आँखों में तो कभी.. 
बंद आँखों में सजती हैं अब यादें, 
कुछ खट्टी कुछ मीठी हैं ये यादें, 
धीरे-धीरे धुँधली हो रहीं हैं ये यादें |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*

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सुखद थी जिन्दगी जब मैं 
कल्पनाओं में डूबी रहती थी, 
हर बात सकारात्मक लगती थी, 
मन में उत्सुकता भरी रहती थी |

अपनी ये धरती हरी-भरी दिखती थी, 
भाईचारे की खुशबू महकती थी, 
सब में सम्पन्नता दिखती थी, 
बेटियाँ भी सुरक्षित होती थी |

मैं कल्पना के समंदर में, 
बेपनाह गोते लगा रही थी ,
एक दिन वास्तविकता से, 
मेरी मुलाकात हो गई... 

मेरे सपनों की जैसे मौत हो गई, 
धरती यूँ बंजर सी दिखने लगी, 
हवाओं में गन्दगी शामिल मिली, 
भाईचारा गायब हो गया था |

मैं ये मंजर देख न सकी, 
मन को विचलित होने से, 
कहाँ मैं रोक सकी? 
बस कल्पना में ही थी मैं सुखी |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*
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*****वृक्ष की पुकार*****
मैं वृक्ष बहुत आघात हो गया हूँ, 
मानव तेरी कुल्हाड़ी से परेशान हूँ, 
क्यों तु बार-बार प्रहार करता है, 
क्या तुझे बिल्कुल डर नहीं लगता है |

पर्यावरण के हम वृक्ष गहने हैं, 
यूँ सीने में हमारे आरी मत चला, 
हम नहीं तो तेरा भी क्या होता भला?
क्यों बन बैठा तु इतना मनचला |

हम तुझको क्या कुछ नहीं देते, 
फल,सब्जी,प्राणदायक हवा, 
बारिश में भी सहायक हैं हम,
बाढ़ की रोकथाम खूब करें हम |

पंछियों के घरोंदें हैं हम,
ईंधन के स्रोत भी हैं हम, 
पथिक को छाया देते हैं हम,
औषधि में भी नहीं हम कम |

समय पर महत्व हमारा समझ ले, 
जीवन में ये संकल्प कर ले, 
पर्यावरण को स्वच्छ रखेगें, 
वृक्षारोपण खूब करेंगें |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*
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"सात वचन"
अठरहा साल पहले, एक बंधन में बंधी थी, मैं वचनबद्ध हुई थी प्रियतम संग खुशियाें की सुन्दर घडी थी, सात फेरें जब लिये प्रियतम संग उनको ही बतलाती हूँ,अग्नि को साक्षी मान, पहला वचन मैं कहती हूँ, 
दान, धर्म, तीरथ, हर पुण्य में, 
साथ मुझे रखोगें तुम,है मंजूर अगर तुम्हें तो बाएं अंग आ जाती हूँ|
दूजे वचन में माँग रही हूँ, 
अपने माता-पिता संग, मेरे माता-पिता को भी सम्मान दोगे,स्वीकार करो अगर तुम, तीसरा फेरा लेती हूँ|
तीजे वचन में,अपने कुल का पालन-पोषण, गाय धर्म करोगे संग, विनती स्वीकारो प्रियतम,चौथा फेरा लेती हूँ,
चौथे वचन मे, आय-व्यय का ब्योरा
सांझा मेरे संग करोगे तुम, है मंजूर गर तुम्हें, तो पाँचवा फेरा तुम संग लेती हूँ
इस वचन में, घर के किसी भी कार्य में सलाह मेरी भी लोगे तुम,है मंजूर गर तुम्हें तो, छठवाँ वचन भी कहती हूँ, 
जीवन अपना सौंप रही तुम्हें, मान मेरा रखोगे तुम,स्वीकृति दो जीवन साथी, 
अब अन्तिम सातवाँ फेरा तुम संग लेती हूँ, सातवाँ वचन दे दो ये मुझको
पर नारी का ख्याल कभी भी मन में मत लाना जी, स्वीकार करो ये वचन मेरे, बाएं अंग तुम्हारे आ जाती हूँ|
जीवन साथी ये सातों वचन हम दोनों मिलकर निभायेगें, हाथ थामकर इक-दूजे का नई दुनियां बसाएगें |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*
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हिन्दी हैं तो है हिन्दुस्तान, 
इस पर हमें है अभिमान, 
इससे हमारी है पहचान ,
यही तो है हमारी शान |
संस्कृत, हिन्दी बहने है,
भारत माँ के सुन्दर गहने हैं,
भारत माँ जब करे श्रृगांर,
हिन्दी की बिन्दी बढाये मान |
इस भाषा में मिठास बहुत है, 
कवियों ने रचा इतिहास इसी से, 
संस्कृति की है ये अमूल्य खान,
मेरा दिल,मेरी जान इसपे कुर्बान |

*अप्रकाशित एंव स्वरचित*
*संगीता कुकरेती*

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परम्परा एक अटूट सिलसिला है, 
सदियों से जो चला आ रहा है, 
पूर्वजों से मिली विरासत ये है, 
पीढी दर पीढी हम संजोते है |

जैसे गुरू-शिष्य परम्परा, 
जो सभी धर्मों में है एक समान, 
महिमा इसकी सबसे निराली, 
गुरू बिना नही है ज्ञान |

परम्पराओं का है वैज्ञानिक महत्व, 
कुछ मैं भी करूँ विस्तार, 
सूर्य हैं अरोग्य देवता विशेष है इनका प्रकाश 
सुबह इनको करे नमस्कार |

सूर्य ग्रहण में बाहर न निकलना, 
परम्परा पर ये भी सवार, 
तब हानिकारक किरणें निकले,
पहुँचाती हम सबको नुकसान |

पीपल, बरगद, तुलसी, चंदन 
परम्पराओं में देवी-देवता समान, 
पूजा कर मन को संतोष पहुँचाये, 
पीडा में हैं औषधि समान |

चारों धाम यात्रा की परम्परा, 
कराये पूरे भूगोल का ज्ञान, 
अच्छा सा व्यायाम हो जाये, 
पर्यावरण का बोध कराये |

तीज-त्योहार जो हम मनायें
उसका भी महत्व बतायें, 
रक्षा-बन्धन भाई-बहन,प्रेम को बढाये
करवा चौथ दांपत्य जीवन में मधुरता लाये|

विदेशी भी जब भारत आयें, 
परम्पराओं से प्रभावित हो जाये, 
परम्पराओं में खूब रम जायें, 
मन की शान्ति और सुकून पाये |

माता-पिता, गुरू चरण स्पर्श, 
मनुष्य की चार चीजें बढाये,
आयु, विद्या, यश और बल, 
संसार में जीना सिखायें |

आज परम्पराओं को बोझ समझ, 
रीति-रिवाज सब भूले जा रहे, 
इनमें छिपे वैज्ञानिक महत्वों को, 
पढ-लिखकर भी नहीं समझ पा रहे |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*

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चंद सांसे बख्शी जो खुदा ने, 
जी लो इसमें सब जी भर के, 
भरोसा नहीं इन सांसों का, 
कब ये अचानक फुर्र हो जायें |
क्या कुछ तेरा क्या कुछ मेरा,
मत पालो ये है बेकार झमेला, 
मौत भी ज्यादा क्या ले जायेगी, 
चंद सांसे ,वो ही तो लेकर जायेगी|
जब तक ये सांसे चलती है ,
जग में सब अपना सा लगे, 
जब सांसे थम जाये तब, 
सब कुछ सपना जैसा लगे |
जब तक सांसे चलती हैं ,
तब तक शरीर भी साथ है, 
जब सांसों से टूटे रिश्ता फिर, 
ये बस मिट्टी और राख है |
हर एक सांस का हिसाब वहाँ है, 
अच्छे कर्म कर कुछ पुण्य कमायें,
पूँजी यही अन्त में साथ जायेगी, 
इन सांसों का मूल्य चुकायें |
स्वरचित *संगीता कुकरेती *

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प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती, 
वो तो हर किसी में है होती! 
बस एक जज्बा होना चाहिए, 
वो किसी की गुलाम नहीं होती |
जैसे जवाहरात के ढेर में हीरा, 
सबसे ज्यादा चमके, ठीक वैसे 
ही प्रतिभावान की प्रतिभा, 
सबसे अलग दमके |
संघर्ष से निखरती है प्रतिभा, 
तेंदुलकर,वीरू,धोनी आदि ने, 
अपनी प्रतिभा के बल पर ही, 
मुकाम हासिल किया, 
गुलजार साहब की प्रतिभा ने, 
शायरी व गजलों में खूब नाम किया |
कल्पना, बछेन्द्री, सुनिता आदि की, 
प्रतिभा का क्या बखान करूँ, 
अपने अजब कारनामों से इन्होनें 
देश को गौरवान्वित किया |
एसे बहुत से महानुभाव हैं, 
जो खूब प्रतिभावान रहे, 
अपनी प्रतिभा के दम पर, 
हासिल जिन्होंने मुकाम किया |
हौंसले अपने बुलंद रखो, 
अपनी प्रतिभा को पहचानो, 
चोरों के डर के कारण, 
घर छोड़ कर मत भागों |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*

राह/रास्ते"
(3/08/17)शुक्रवार
( वो बूढी आँखें )
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ज़िन्दगी का सफर तय करने निकले
हमदम का हाथ, हाथों में यूँ पकड़े, 
ज़िन्दगी की राह लग रही थी आसान
पूरे होते नजर आ रहे थे अरमान! 

ज़िन्दगी का सफर आगे गतिमान था,
बच्चो से घर सुन्दर बाग़बान था, 
रौनक खूब लगती थी घर पर, 
दिल को बहुत सुकून मिलता था! 

पंख लग गये थे बच्चों में अब, 
नई राह तय करने लगे थे सब, 
कमाने की चाह में बस गये विदेशों में
हम दोनों बूढे राह में रह गये अकेले !

राह तकती हैं बूढी आँखें हर रोज, 
बच्चें आयेंगे कब, किस रोज, 
याद करके पिछला वो समय, 
खींच रहें हम अपनी जीवन की डोर! 

स्वरचित "संगीता कुकरेती"
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(8/09/18)
सागर की लहरों में जब ,

सूरज की किरणें पड जाती, 
ऐसा प्रतीत होता है जैसे, 
सागर को भी हँसी आती |

लाखों प्रकार के जीवों का, 
ये खुद घर बन जाता,
गहरा इतना है कि इसमें, 
बहुत कुछ समां जाता |

छोटी-छोटी नदियाँ पानी लेकर, 
दूर-दूर कहीं निकल जाती, 
सागर की स्थिरता तो देखों,
वो उसी जगह टिक जाता, 

खूब परीक्षण होते इसमें, 
कभी-कभी अघात हो जाता, 
क्रोधित जब ये होता है, 
सुनामी भी बडी ले आता |

गुण उदारता का दिखाता,
तो पत्थर को भी तैराता,
श्री राम जी के कहने पर, 
सेतु इसमें बन जाता |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*

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"मेरा बस्ता"
( 2/08/18)


मम्मी-पापा बस्ता मुझको ला दो ना, 
स्कूल में दाखिला मेरा करा दो ना ,
मैं भी स्कूल पढने रोज जाऊँगी,
अच्छे सबक खूब सीख पाऊँगी! 

मम्मी सुबह जल्दी मुझे जगाना, 
मेरा बस्ता है मुझे तब लगाना, 
किताबे होंगी उसमें दो-चार, 
टिफिन,थरमस कर देना तैयार! 

स्वरचित "संगीता कुकरेती "


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"शिव"
                (30/07/18)

       शिव हैं भोलेनाथ,
       वो ही हैं त्रिलोकीनाथ,
       पहने बाघम्बर  छाल,
      सिर पर चंदा का ताज!

               कैलाश मे उनका ठिकाना,
               गोदी में गणपति विराजे,
               बाम में है गौरा का साथ,
               सुन्दर लगे ये परिवार !!


स्वरचित "संगीता कुकरेती"


होंसलें अगर हों बुलंद तो, 
आसमां को छू ही लेंगे हम, 
दिल में गर हो सच्ची लगन, 
दायित्व अपना निभा लेंगे हम!! 
मानव रूपी इस जीवन में,
दायित्व का है बड़ा स्थान,
हर रिश्ते की हैं जिम्मेदारी,
निभाकर करो वफादारी!!
एक दायित्व भारतीय होने का, 
अच्छे नागरिक बन समाज में, 
मानवता को प्रधान बनाये हम, 
और सच्चा फर्ज निभायें हम!!

"संगीता कुकरेती"
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@*मीरा की भक्ति*
तोड के दुनिया के सारे बंधन, 
कान्हा में शामिल हो जाऊँगी, 
वीणा की तान बजाते हुए मैं, 
कान्हा की जोगनिया बन जाऊँगी |

न चाहूँ ये राज ठाट मैं, 
न गहने से मुझको प्यार, 
इनका बंधन न भाये मुझको, 
कान्हा के बंधन में बंध जाऊँगी |

तेरी महिमा मैं गाती जाऊँ, 
दरश दिखा दो बस एक बार,
तेरी भक्ति की ख़ातिर कान्हा, 
विष का प्याला पी जाऊँगी |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
पिता है तो बच्चों में खुशी है, 
माँ का सम्मान और ताकत है, 
पिता एक मजबूत छत समान है, 
जिस छत्रछाया में हम सुरछित हैं!

पूरा जीवन मेहनत वो करते, 
उफ तक मुँह से कभी न करते, 
मुसीबतों से हमें वो बचाते, 
चट्टान बन आगे डट जाते!! 

हमारी खुशी में खुश हो जाते, 
अपना गम कभी न जताते, 
साहस हमें हर पल दे जाते, 
ज़िन्दगी जीना हमें वो सिखाते!! 

" स्वरचित संगीता कुकरेती "

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

ये जो जीवन है, 
रंग का सैलाब है, 
मिठास का इसमें रंग, 
खटास का इसमें रंग! 
प्यार का इसमें रंग, 
नफरत का भी रंग, 
किसके हिस्से क्या अाये, 
ये उसकी किस्मत का रंग! 
एक रंग जो सबमें समान, 
वो है सबके लहु का रंग,
ईश्वर ने जब नहीं किया भेद, 
फिर क्यों नहीं हम सब एक! 

"स्वरचित संगीता कुकरेती "


@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
" प्रेम"
तु सावन, मै तीज, 
प्रेम हमारा अजीज, 
मिलकर बोयें हम, 
प्यार के कुछ बीज, 
खाद हो नि:स्वार्थ की, 
धूप मिले सदभाव की, 
बरसा हो प्रेम की, 
फसल हो आपसी मेल की! 

स्वरचित 
"संगीता कुकरेती "


@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
घर में जन्मी,एक नन्ही परी,
महक गयी हर गली-गली,
कितनी सुन्दर, कितनी कोमल, 

लगती कितनी भली-भली, 
फूलों की खुशबू है उसमें, 
घर की बगिया महक गई, 
चहक रही तुतलाती सी वो, 
रोम-रोम मेरा खिला गई, 
घर में जन्मी ,एक नन्ही परी, 
महक गयी हर गली-गली!

महक उठें सब आंगन द्वारे।
खिल उठें प्रभु हृदय हमारे।
नहीं चाहिए हमें और कुछ,
प्रफुल्लित हों संसारी सारे।

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
प्रकृति की शोभा कितनी निराली है, चारों ओर देखो कितनी हरियाली है,

ये पहाड, सरोवर, बहते झरने, 
नित्य सिंगार करते हैं इसका, 

हरियाली की सुन्दर चादर पहने, 
जैसे बैठी नयी नवेली दुल्हन सजे, 

सावन के इस भीगे मौसम मे, 
तीज में लगा ली प्रकृति ने हरीतिमा! 

"संगीता कुकरेती "


@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
ईश्वर बँट गया है आज, 
हिन्दू करे अराधना उसकी, 
मुस्लिम करे इबादत उसकी, 
बाँट दिया धर्मानुसार, 
फिर भी करे सबका उद्धार. 

कौन हो तुम, कैसे पहचानूँ, 
भिन्न -भिन्न हैं रूप तुम्हारे, 
कण-कण में हो तुम समाये, 
सबपे कृपा तुम करते हो,
कहीं नजर नहीं आते हो.

तेरी महिमा तू ही जाने, 
माया रूपी इस संसार मे, 
तूने लिए कई अवतार 
हरी-भरी धरती है बनाई, 
नील गगन भी बनाया अपार. 

तुमने दी है हमें ये काया, 
संसार में है तुम्हारी माया, 
नित्त करते हो चमत्कार ,
फिर भी, ईश्वर बँट गया है आज !!

"संगीता कुकरेती "


@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

संतोष ही जीवन है, 
धैर्य उसका दर्पण है, 
धैर्य कडवा होता है ,
फल मीठा देता है,
जो हैं धैर्यवान, 
होते हैं बलवान, 
श्री राम का धैर्य, 
वनवास कटाये,
पांडवो का धैर्य 
महाभारत जीताये !!


स्वरचित "संगीता कुकरेती"
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छोटा हुआ तो क्या हुआ, 
इरादे हैं मेरे बहुत बुलंद, 
भारत माँ की शान को,
पहले करता हूँ नमन! 
खाकी वर्दी पहनुँगा मैं, 
चलूँगा सीना तान कर,
नन्हा सिपाही बनकर मैं, 
बढाऊँगा भारत का मान मैं! 
आतंकवाद को मिटा दूँगा, 
दुश्मन को झुका दूँगा,
तिरंगें के सम्मान में, 
जान अपनी लगा दूँगा!! 

स्वरचित "संगीता कुकरेती"

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जो दे गये अपना बलिदान, 
ऐ मेरे वतन के लोगों तुम,
कर लो जरा उनको याद, 
उनकी ये कुर्बानी हमको, 
सदा रखनी है याद! 

सुभाष, बिस्मिल और भगत सिंह
ये थे भारत के वो जाँबाज, 
फिरंगियों की गुलामी से ,
कर गये हमको आजाद
है मेरा कोटी-कोटी प्रणाम!

आज भी आतंकवाद बन गया, 
एक जहरीला अभिशाप, 
इससे देश को बचाने के लिए, 
जवान दे रहे रोज बलिदान, 
तिरंगे का रख रहें हैं मान! 

ऐसा कब तक चलेगा, 
सरकार उठाये ठोस कदम, 
बच जायेंगे माँ के लाल, 
दीपक हर घर में जलेगा,
भारत माँ को मिले सम्मान! 

स्वरचित "संगीता कुकरेती"


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तीन रंग का प्यारा झंडा, 
ऊँचा सदा रहेगा, 
इस झंडे में तीन रंग है, 
सबसे ऊपर केसरिया है, 
जो प्रतीक है त्याग और बलिदान का, 
दूसरा रंग सफेद है, 
जो शांति और अमन फैलाये,
हरा रंग है तीसरा, 
जो हरियाली संग खुशियाँ लाये, 
चौथा रंग भी बहुत महत्वपूर्ण, 
जो बीच में नीला चक्र बनाये, 
चौबीस तिलियों का ये घेरा, 
सम्राट अशोक के चौबीस नियमों, 
का अनुसरण कराये, 
जो जीवन के सफर में, 
सुख-दु:ख में समाये!
🇮🇳जय हिंद 🇮🇳जय भारत 🇮🇳

स्वरचित "संगीता कुकरेती"
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ख्वाहिशों का अथाह समन्दर, 
है मेरे इस दिल के अन्दर, 
कुछ ख्वाहिशे सीमित है, 
कुछ ख्वाहिशे बेलगाम हैं
कुछ मूल्यवान ख्वाहिशे हैं, 
और कुछ तो बेदाम हैं, 
कुछ ख्वाहिशे दबाना चाहूँ,
कुछ छलक के बहार आ जायें, 
ख्वाहिशों का ये सफर चलता रहेगा,
 जब तक माटी के पुतले मे जान है!

स्वरचित -संगीता कुकरेती


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15अगस्त आजादी की तस्वीर है, 
नाज करे भारत माँ ऐसी किसकी तकदीर है ......
नहीं मिली यूहीं ये आजादी,
इस दिन को पाने की खातिर,
दिया कितनो ने बलिदान है, 
लाखों मर गये, फाँसी चढ गये,
छोडा नहीं स्वाभिमान है ,
जय हिंद देश जय भारत माता, 
मिलकर गायें सब ये गीत रे, 
नाज करेगी भारत माता, 
बन जायेगी तकदीर रे !
जय हिंद 🇮🇳🇮🇳🇮🇳

"संगीता कुकरेती"

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आज तो ईश्वर भी उत्सव मना रहा है 
क्योंकि धरती का एक फरिश्ता जो, 
चमकता था धरती पर कोहिनूर जैसा,
आज उसकी सभा की रौनक बडा रहा

अपनी रचनाओं में तो आज भी हैं वो, 
लौट कर आऊँगा कह गये है वो, 
विश्वास उनका था अटल, 
तभी अटल नाम से विख्यात थे वो, 

मौत उनको क्या मारेगी, 
एक एक दिन टाल रहे थे वो, 
दिल में तिरंगा लहराने की चाह,
आजादी दिवस को मना गये थे वो! 

अलविदा कैसे करें आपको अटल जी, 
दिल में है गम और आँखें है पूरी भीगी
है अटल विश्वास कि फिर लौटोगे आप
मिलेगा देशवासियों को आपका साथ! 
स्वरचित -संगीता कुकरेती

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ईमानदारी से कमाई एक रोटी, 
लगती है अमृत समान,
बेईमानी से कमाई रोटियाँ,
बन जाती हैं विष समान !

जब ये अमृत मिले रक्त में, 
बना दे हमको ईमानदार, 
और जब ये विष मिले रक्त में, 
बना दे हमको बेईमान! 

चंद दिनों की है जिन्दगानी,
ईमानदारी संग जीलो जी भर, 
बेईमानी क्या देगी किसी को, 
मन का डर और लोगों की धिक्कार! 

स्वरचित -"संगीता कुकरेती"


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ये किसने सरगम छेड दी, 
वीणा की तान छेड दी,
तरंगित हो रहा है मन, 
गीतों की लहर छेड दी! 

मेरे मन मे उमडा एक गीत, 
सांसों में खुशबू महक गयी, 
चिडिया जैसी मैं चहक गयी, 
आज मिलेंगे मेरे मनमीत! 

आनंदित हो रहा है मन, 
पुलकित हो रहा अंग-अंग, 
गीत सुनाऊँ आज किसे मैं, 
बस में नहीं आज मेरा मन! 

गीत प्यार के गाऊँगी मैं,
खुशियाँ खूब मनाऊँगी मैं, 
श्री हरि तुम्हारे चरणों में,
मन से जोत जलाऊँगी !

स्वरचित -*संगीता कुकरेती*


@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@ जब नभ में सूरज चमके, 
चंदा की चाँदनी यूँ बिखरे, 
तारों की झिलमिलाहट दिखे, 
तब मन मेरा ये कहे.......... 
क्या खूब सृजन है !!!! 

जब हरियाली की दुशाला ओडे, 
धरती खूब दम-दम दमके,
आँखों को बडी ठंडक मिले, 
तब मन मेरा ये कहे........., 
क्या खूब सृजन है !!!! 

जब सागर की लहरे उठें,
नहरों में पानी कल-कल करे, 
पेड़ों की ठंडी हवायें चले, 
तब मन मेरा ये कहे......., 
क्या खूब सृजन है !!!! 

धन्य है तु सृजनकर्ता, 
प्रकृति का ऐसा श्रृंगार किया, 
कोटि -कोटि तुझे है नमन, 
कृपा तेरी यूँ ही बनी रहे!!!! 

स्वरचित -*संगीता कुकरेती*


@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@ जिन्दगी के क्रिकेट मैच में 
सिक्का इस तरह जमा लो, 
"तेन्दुलकर" की तरह यहाँ, 
शतक पे शतक बना लो, 
कर लो बुलंद तुम हौसला, 
जिगर अपना मजबूत बना लो !

क्रिकेट की उस गेंद का जरा, 
हौंसला तो देखो तुम प्यारे,
बल्ले पर जोरों की चोट खाकर,
उडान कुछ ऐसी भरती है कि, 
सीधे आसमान को छू लेती है, 
और हौंसला कायम रखती है! 

क्रिकेट रूपी इस जीवन के ,
तुम भी मजबूत कप्तान बन जाओ, 
आत्मविश्वास रूपी बल्ले को ऐसा घुमाओ,
हौंसला अपना बुलंद करके, 
रिकॉर्ड पर रिकॉर्ड बनाओ, 
दुनियां में अपना नाम कर जाओ !

स्वरचित -*संगीता कुकरेती*



@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@ चलो आज मिलकर एक नया मजहब बनाये...... 
इंसानियत का शहद उसमें मिलायें,
जाति धर्म के झगड़े से ऊपर उसे उठाये.. 
चलो आज मिलकर एक नया मजहब बनायें....... 
गीता, कुरान, बाईबिल, गुरू ग्रन्थ साहिब, 
इन सब पवित्र ग्रन्थों की गरिमा बताये.... 
इंसानियत का धर्म सबसे ऊपर है इनमें.. 
बस इसी को अपनाकर एकता दिखायें...
और सच्चे हिन्दुस्तानी कहलाये 
चलो आज मिलकर एक नया मजहब बनायें.. !
स्वरचित *संगीता कुकरेती*


@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@ "सच्चा शिक्षक "

जो मन के तम को हटाये, 
विद्या का दीपक जलाये, 
मार्ग -दर्शक बन जाये, 
वही सच्चा शिक्षक कहलाये |

अनुशासन का महत्व बताये, 
वाणी में संयम बनवाये, 
सत्य से परिचय करवायें, 
वही सच्चा शिक्षक कहलाये |

मानवता का पाठ पढाये,
भेद -भाव से दूर ले जाये, 
राष्ट्र के प्रति प्रेम जगाये,
वही सच्चा शिक्षक कहलाये |

त्रुटियों में सुधार करवाये, 
उत्साहवर्धन जो कराये, 
नैतिकता को बतलाये,
वही सच्चा शिक्षक कहलाये |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*


@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@ *मीरा की भक्ति*
तोड के दुनिया के सारे बंधन, 
कान्हा में शामिल हो जाऊँगी, 
वीणा की तान बजाते हुए मैं, 
कान्हा की जोगनिया बन जाऊँगी |

न चाहूँ ये राज ठाट मैं, 
न गहने से मुझको प्यार, 
इनका बंधन न भाये मुझको, 
कान्हा के बंधन में बंध जाऊँगी |

तेरी महिमा मैं गाती जाऊँ, 
दरश दिखा दो बस एक बार,
तेरी भक्ति की ख़ातिर कान्हा, 
विष का प्याला पी जाऊँगी |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
8/09/18)
सागर की लहरों में जब ,

सूरज की किरणें पड जाती, 
ऐसा प्रतीत होता है जैसे, 
सागर को भी हँसी आती |

लाखों प्रकार के जीवों का, 
ये खुद घर बन जाता,
गहरा इतना है कि इसमें, 
बहुत कुछ समां जाता |

छोटी-छोटी नदियाँ पानी लेकर, 
दूर-दूर कहीं निकल जाती, 
सागर की स्थिरता तो देखों,
वो उसी जगह टिक जाता, 

खूब परीक्षण होते इसमें, 
कभी-कभी अघात हो जाता, 
क्रोधित जब ये होता है, 
सुनामी भी बडी ले आता |

गुण उदारता का दिखाता,
तो पत्थर को भी तैराता,
श्री राम जी के कहने पर, 
सेतु इसमें बन जाता |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती, 
वो तो हर किसी में है होती! 
बस एक जज्बा होना चाहिए, 
वो किसी की गुलाम नहीं होती |
जैसे जवाहरात के ढेर में हीरा, 
सबसे ज्यादा चमके, ठीक वैसे 
ही प्रतिभावान की प्रतिभा, 
सबसे अलग दमके |
संघर्ष से निखरती है प्रतिभा, 
तेंदुलकर,वीरू,धोनी आदि ने, 
अपनी प्रतिभा के बल पर ही, 
मुकाम हासिल किया, 
गुलजार साहब की प्रतिभा ने, 
शायरी व गजलों में खूब नाम किया |
कल्पना, बछेन्द्री, सुनिता आदि की, 
प्रतिभा का क्या बखान करूँ, 
अपने अजब कारनामों से इन्होनें 
देश को गौरवान्वित किया |
एसे बहुत से महानुभाव हैं, 
जो खूब प्रतिभावान रहे, 
अपनी प्रतिभा के दम पर, 
हासिल जिन्होंने मुकाम किया |
हौंसले अपने बुलंद रखो, 
अपनी प्रतिभा को पहचानो, 
चोरों के डर के कारण, 
घर छोड़ कर मत भागों |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
चंद सांसे बख्शी जो खुदा ने, 
जी लो इसमें सब जी भर के, 
भरोसा नहीं इन सांसों का, 
कब ये अचानक फुर्र हो जायें |
क्या कुछ तेरा क्या कुछ मेरा,
मत पालो ये है बेकार झमेला, 
मौत भी ज्यादा क्या ले जायेगी, 
चंद सांसे ,वो ही तो लेकर जायेगी|
जब तक ये सांसे चलती है ,
जग में सब अपना सा लगे, 
जब सांसे थम जाये तब, 
सब कुछ सपना जैसा लगे |
जब तक सांसे चलती हैं ,
तब तक शरीर भी साथ है, 
जब सांसों से टूटे रिश्ता फिर, 
ये बस मिट्टी और राख है |
हर एक सांस का हिसाब वहाँ है, 
अच्छे कर्म कर कुछ पुण्य कमायें,
पूँजी यही अन्त में साथ जायेगी, 
इन सांसों का मूल्य चुकायें |
स्वरचित *संगीता कुकरेती *

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

परम्परा एक अटूट सिलसिला है, 
सदियों से जो चला आ रहा है, 
पूर्वजों से मिली विरासत ये है, 
पीढी दर पीढी हम संजोते है |

जैसे गुरू-शिष्य परम्परा, 
जो सभी धर्मों में है एक समान, 
महिमा इसकी सबसे निराली, 
गुरू बिना नही है ज्ञान |

परम्पराओं का है वैज्ञानिक महत्व, 
कुछ मैं भी करूँ विस्तार, 
सूर्य हैं अरोग्य देवता विशेष है इनका प्रकाश 
सुबह इनको करे नमस्कार |

सूर्य ग्रहण में बाहर न निकलना, 
परम्परा पर ये भी सवार, 
तब हानिकारक किरणें निकले,
पहुँचाती हम सबको नुकसान |

पीपल, बरगद, तुलसी, चंदन 
परम्पराओं में देवी-देवता समान, 
पूजा कर मन को संतोष पहुँचाये, 
पीडा में हैं औषधि समान |

चारों धाम यात्रा की परम्परा, 
कराये पूरे भूगोल का ज्ञान, 
अच्छा सा व्यायाम हो जाये, 
पर्यावरण का बोध कराये |

तीज-त्योहार जो हम मनायें
उसका भी महत्व बतायें, 
रक्षा-बन्धन भाई-बहन,प्रेम को बढाये
करवा चौथ दांपत्य जीवन में मधुरता लाये|

विदेशी भी जब भारत आयें, 
परम्पराओं से प्रभावित हो जाये, 
परम्पराओं में खूब रम जायें, 
मन की शान्ति और सुकून पाये |

माता-पिता, गुरू चरण स्पर्श, 
मनुष्य की चार चीजें बढाये,
आयु, विद्या, यश और बल, 
संसार में जीना सिखायें |

आज परम्पराओं को बोझ समझ, 
रीति-रिवाज सब भूले जा रहे, 
इनमें छिपे वैज्ञानिक महत्वों को, 
पढ-लिखकर भी नहीं समझ पा रहे |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
हिन्दी हैं तो है हिन्दुस्तान, 
इस पर हमें है अभिमान, 
इससे हमारी है पहचान ,
यही तो है हमारी शान |
संस्कृत, हिन्दी बहने है,
भारत माँ के सुन्दर गहने हैं,
भारत माँ जब करे श्रृगांर,
हिन्दी की बिन्दी बढाये मान |
इस भाषा में मिठास बहुत है, 
कवियों ने रचा इतिहास इसी से, 
संस्कृति की है ये अमूल्य खान,
मेरा दिल,मेरी जान इसपे कुर्बान |

*अप्रकाशित एंव स्वरचित*
*संगीता कुकरेती*
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"सात वचन"
अठरहा साल पहले, एक बंधन में बंधी थी, मैं वचनबद्ध हुई थी प्रियतम संग खुशियाें की सुन्दर घडी थी, सात फेरें जब लिये प्रियतम संग उनको ही बतलाती हूँ,अग्नि को साक्षी मान, पहला वचन मैं कहती हूँ, 
दान, धर्म, तीरथ, हर पुण्य में, 
साथ मुझे रखोगें तुम,है मंजूर अगर तुम्हें तो बाएं अंग आ जाती हूँ|
दूजे वचन में माँग रही हूँ, 
अपने माता-पिता संग, मेरे माता-पिता को भी सम्मान दोगे,स्वीकार करो अगर तुम, तीसरा फेरा लेती हूँ|
तीजे वचन में,अपने कुल का पालन-पोषण, गाय धर्म करोगे संग, विनती स्वीकारो प्रियतम,चौथा फेरा लेती हूँ,
चौथे वचन मे, आय-व्यय का ब्योरा
सांझा मेरे संग करोगे तुम, है मंजूर गर तुम्हें, तो पाँचवा फेरा तुम संग लेती हूँ
इस वचन में, घर के किसी भी कार्य में सलाह मेरी भी लोगे तुम,है मंजूर गर तुम्हें तो, छठवाँ वचन भी कहती हूँ, 
जीवन अपना सौंप रही तुम्हें, मान मेरा रखोगे तुम,स्वीकृति दो जीवन साथी, 
अब अन्तिम सातवाँ फेरा तुम संग लेती हूँ, सातवाँ वचन दे दो ये मुझको
पर नारी का ख्याल कभी भी मन में मत लाना जी, स्वीकार करो ये वचन मेरे, बाएं अंग तुम्हारे आ जाती हूँ|
जीवन साथी ये सातों वचन हम दोनों मिलकर निभायेगें, हाथ थामकर इक-दूजे का नई दुनियां बसाएगें |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*


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*****वृक्ष की पुकार*****
मैं वृक्ष बहुत आघात हो गया हूँ, 
मानव तेरी कुल्हाड़ी से परेशान हूँ, 
क्यों तु बार-बार प्रहार करता है, 
क्या तुझे बिल्कुल डर नहीं लगता है |

पर्यावरण के हम वृक्ष गहने हैं, 
यूँ सीने में हमारे आरी मत चला, 
हम नहीं तो तेरा भी क्या होता भला?
क्यों बन बैठा तु इतना मनचला |

हम तुझको क्या कुछ नहीं देते, 
फल,सब्जी,प्राणदायक हवा, 
बारिश में भी सहायक हैं हम,
बाढ़ की रोकथाम खूब करें हम |

पंछियों के घरोंदें हैं हम,
ईंधन के स्रोत भी हैं हम, 
पथिक को छाया देते हैं हम,
औषधि में भी नहीं हम कम |

समय पर महत्व हमारा समझ ले, 
जीवन में ये संकल्प कर ले, 
पर्यावरण को स्वच्छ रखेगें, 
वृक्षारोपण खूब करेंगें |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*



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सुखद थी जिन्दगी जब मैं 
कल्पनाओं में डूबी रहती थी, 
हर बात सकारात्मक लगती थी, 
मन में उत्सुकता भरी रहती थी |

अपनी ये धरती हरी-भरी दिखती थी, 
भाईचारे की खुशबू महकती थी, 
सब में सम्पन्नता दिखती थी, 
बेटियाँ भी सुरक्षित होती थी |

मैं कल्पना के समंदर में, 
बेपनाह गोते लगा रही थी ,
एक दिन वास्तविकता से, 
मेरी मुलाकात हो गई... 

मेरे सपनों की जैसे मौत हो गई, 
धरती यूँ बंजर सी दिखने लगी, 
हवाओं में गन्दगी शामिल मिली, 
भाईचारा गायब हो गया था |

मैं ये मंजर देख न सकी, 
मन को विचलित होने से, 
कहाँ मैं रोक सकी? 
बस कल्पना में ही थी मैं सुखी |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*
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