नीलम शर्मा#नीलू


🌹भावों के मोती🌹

प्
रथम प्रयास🙏🙏😊

माधवमालती छंद मुक्तक आधारित

2122 2122 2122 2122
प्रेम में दो नैन को राधा कहो कैसे लुभाया ।
श्याम ने कैसे तुम्हारी चाह को राधा भुलाया ।
जो व्यथा को झेलती हो नीर से धोये सकारे ।
श्याम भी देखो तुम्हारी प्रीति में संसार हारे ।

है यहाँ राधा बुलाती छोड़ साँसें प्राण त्यागे ।
दो दृगों में छवि तिहारी ढूंढने को नयन भागे ।
देख लो राधा तिहारी चरण रज को अब निहारे ।
हो चुकी हूँ मृणमृदा सी साँस अब मोहन पुकारे ।

स्वरचित🌹

नीलम शर्मा # नीलू

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विषय:-हंसी मौसम

हंसी मौसम जो छाया है,
लगा है तूफान आया है,
फिजा कुछ शबनमी सी हैं,
लगा आफताब आया है ।

चहकती मन कली ऐसे,
बनी हो पंक्षी वो जैसे ,
उडकर बादलों के पास,
पी ने घर बसाया हो ।

लगे हो लाख पहरे हों,
समंदर भी जो गहरे हो,
उड़ा ले जा रहा है वो ,
बड़ा ही बाबरा मन वो।

स्वरचित
नीलम शर्मा #नीलू

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भावों के मोती🌹
विषय:-छल बल
विधा:-तुकांत कविता
16/12/2019

🌹💐🌹💐🌹💐🌹
छलबल का देखो असर आया मनुष्य के काम ।
रिश्ते नाते त्याग कर वह भागा चारों धाम ।

पाप अधर्म जब सर चढा मनुष्य हुआ बलवान ।
हित अहित को भूलकर बन बैठा भगवान।

सेवा भाव दिखता नहीं करता मन का काम ।
निंदनीय हर काम से अपने करता काम ।

लाज शर्म दिखती नहीं भूल बैठा पहचान ।
खूनखराबा कर रहा बन गया पाषाण ।

स्वरचित
नीलम शर्मा # नीलू
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अनुष्ठुप अष्टाक्षर वृत
वार्णिक छंद
8 वर्ण प्रति चरण
क्रमशः - नगण सगण लघु गुरु

111112 12
सुन पवन साथ में।बह चल प्रभात में ।
प्रिय उर बहा चली।सजन घर मैं चली।

नव कुसुम हैं खड़े, मन खिल रहे बड़े ।
कुहुक मन की कली, दहक मन में फली ।

मद नयन डोलते ।कुछ सपन बोलते ।
तन फिर तु ही खिला।जब हृदय ही मिला ।

लरज कर मैं खड़ी । मिलन मन में पड़ी
दुख घुल रहे बड़े । दृग बह रहे पड़े ।

स्वरचित 

नीलम शर्मा # नीलू
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शुभ संध्या मित्रो 🙏🙏
💐🍂💐🍂💐🍂💐🍂💐
विषय:-धनवं
तरी, धन,कुवेर,यम

विधा:-तुकांत कविता ।

बाती हूँ मैं सहमी सहमी ,
अंधकार की राह में जन्मी ।
तम को हूँ पीने को तत्पर।
बदलूँ खुद को दिये में दिनभर।

अज्ञानता का तम फैला है,
ज्ञान प्रकाश का तेल जला है
सूरज को दूँ मै फिर टक्कर,
ऐसा प्रकाश पुंज बन जाऊँ ।

बनना चाहूँ दिया मैं ऐसा,
ज्ञान प्रकाश पुंज जो जैसा।
स्वप्निल तारे नील गगन में,
बिखरूँ ऐसे घर आँगन में ।

मैं दीप हूँ माटी देश की,
मैहनत के मै हूँ परिवेश की।
मुझे जो लाये घर में अपने,
उनके सजते हैं हर सपने ।

मंदिर, मस्जिद ,गुरुद्वारा,
या चर्च में तम गहराया ।
सम भावना लौ लहरायी,
द्वेष भावना मैं पी आयी ।

स्वरचित
नीलम शर्मा # नीलू

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विषय:-अनंत
विधा:-स्
वतंत्र लेखन

जिन्दगी से फिर मुलाकात हुई
फिर वो ही बात हुई.........
अनंत अपेक्षा और उम्मीदें जो जन्म लेती हैं एक पल में चूर
पर मन ? मन कहाँ मानता है ?
वो तो आकार लेता रहता है ।
और आँखों को सजा झेलनी पडती है।
एक औरत समझौते ही तो करती है अपनों से अपेक्षा करके फिर चाहे दम ही क्यों न घुटे।
लाज ,शर्म और सहनशीलता की मूरत जो ठहरी,
फरेब और दोगली जिन्दगी जीते हैं न सभी ?
समाज में साफ सुथरी छवि और और मन में अनंत उथल पुथल करते विचार, और और कहीं कहीं उनको आकार भी मिल जाता है
न न न ये तो पुरूष के लिए सम्भव है न .......

हाँ अगर कोइ स्त्री अगर ऐसा करती है तो वो चरित्रहीन की संज्ञा में आ जाती है।
क्यों कि उसके लिए दायरे सीमित हैं

वह हँसती भी है तो पुरूष उसमें सम्भावना तलाश करने लगता है
और स्त्रियों की नजरों में वो निहायती स्वतंत्र बेवाक नजर आती है ।
अफसोस ये पुरुषों की और समाज की बनाई दायरों की दुनिया ।

काश समझ पाती ये दुनिया कि पुरूष से स्पर्श नहीं सबल चाहिए होता है जो ये कहे कि मैं हूँ।...

तुम्हारे हर कदम के साथ, वो सम्मान उसकी नजरों में इतना चाहती हैं कि कोइ इल्जाम अगर दे तो उसकी नजर नहीं बदले
प्यार जैसा है वैसे ही बना रहे।
कभी वो अकेली होकर भी अकेलापन महसूस न करे ।

स्वरचित

नीलम शर्मा # नीलू

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शुभ साँझ
🌹💐🌹💐🌹💐🌹
विषय:-शान्ति

दो घड़ी सुकून का अब नहीं मिला
ऐ जिन्दगी हमें नहीं तुझसे अब गिला
जो रूठी हैं राहे वो गमो से हैं चूर
हमनें भी उनमें खुशियों का अंकुर खिला दिया ।

लोग ढूँढते हैं शान्ति के पल जो नहीं मिले
कर्तव्यों के खोज में जो अनबरत चले
लगने लगेंगे फूल भी झूमेगी डाल डाल
महकने लगेगी राह भी कर्मो के फूल से

स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू

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विषय:-स्पर्श
विधा:-हरिगीतिका

🌹🍂🌹🍂🌹🍂🌹🍂🌹

हरिगीतिका २२१२ २२१२ २, २१२२ २१२

श्री राम चंद्र कृपालु राजन्,धर्म की पहचान हैं।
पट्पीत धारण धनुष धारी,देश का अभिमान हैं ।

वो कर्म योगी मर्म साधक,त्याग पद को बढ़ चले ।
जब मिल गई पितु आज्ञा तब,छोड़ सुख वन में रहे ।

कोमल कली सुख में पली थी, जानकी माता बढ़ी ।
त्यागा महल फल फूल खाये, कुटि बना वन में खड़ी ।

स्पर्श कर रज भूमि मात सिर ले, वो अवध से चल पड़ी ।
चौदह वरष वन में कटेंगे, सुख नहीं दुख की घड़ी ।

स्वरचित

नीलम शर्मा#नीलू

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विषय:-बनारस
विधा:-छंद मुक्तक कविता

काशी बनी मोक्षदायिनी
आते यहाँ सब लोग हैं।
नित पाप कर्मों से सने हैं
गंगा में धोते लोग हैं।
पितरों की तृप्ति का है मार्ग
काशी बना अब है धाम।
चौरासी घाटों मे सजा काशी
का ये अजब है धाम ।
अस्सी घाट पर बिराज कर
तुलसीदास जी ने रची ।
रामचरितमानस का तब किया
निर्माण ।
प्रयाग घाट बिराजे ज्योतिषी
विद्वान।
भाग्य पढकर सुनाते हैं ।
आये जो यात्री मेहमान।
शिव के स्वागत में बना
दशाश्वमेध का ओजस्वी घाट
इस घाट का खुद ब्रह्मा
ने किया निर्माण ।
मणिकर्णिका घाट की महिमा
है विशाल
अंतिम संस्कार पाये जो यहाँ
जन्म मृत्यु के
चक्र से मुक्त हो पर आत्मा
यही है यहाँ का प्रावधान ।
.
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
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विषय:-संगत/सत्संग
विधा:-
हाइकु

संगत थाली
परोसा आचरण
जीव संचार

जन जीवन
संगत का असर
दिखा तत्पर ।

संगत पाल
जीवन का कमाल
जन सम्भाल ।

संगत शैली
बड़ी अलबेली है
बनी पहेली ।

संगत मिले
संरक्षण ही पले
जीवन चले ।

सतसंग में
व्यभिचारी मानव
कुसंग दूर ।

मिले संगत
तब खिले रंगत
बनें सज्जन ।

सज्जन प्राणी
सतसंग बखान
बढ़ाता मान

स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
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विषय:-पलक
विधा:-तुकांत कविता

पलकों के दायरे में कहाँ ख्वाब सिमटते हैं।
कभी उठते हैं बेहिसाव कहीं जमीन पर गिरे हैं

सजधज के चली दुल्हन के भी ख्वाब सुनहरे हैं
ये विधवा की कराहों से कभी
बचते मिले हैं

कहीं दो जून की रोटी भी मयस्सर
नहीं होती
यहाँ रोटियों को फेंकते भी कुछ
इन्सान दिखे हैं।

प्रेयसी ने पलकों मे जो ख्वाब कभी सजाएँ थे
उन्हें. तोड़ते हुए भी उनके यहाँ भगवान चले हैं

जीवन की तूलिका को दुख सुख ने सजाया है
पलकों में बंद आँखों ने अनगिनत
ख्वाब गढ़े हैं।

हाँ "नीलू" ये जीवन तो है बस
एक मोती।
पलकों में छिपा कर अब उसे निखारते चले हैं ।

स्वरचित

नीलम शर्मा #नीलू
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मधुमालती छंद
विषय:-रस
2212 2212

रस छंद का ,सम्मान हो।
नव गीत में, पहचान हो
हो भाव में, रचना नयी।
रस से भरी,भाषा यही ।

रस धार में ,भाषा बहे।
हर भाव में ,बातें कहे।
सजती रहे, श्रंगार में
हिन्दी तभी,रचना रचे ।

रस से भरी, बातें नहीं।
प्रिय प्रीत तुम,भूले कहीं।
हाँ आस में,बीता यही ।
तुम आ मिलो,चाहत वही।

स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू

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विषय:-धुआं
विधा:-नज्म
🌹💐🌹💐🌹💐🌹

स्वाहा होती ख्वाहिशों का अंजाम देखिए।
कहीं दरबदर मोहब्बत तो कहीं आबाद देखिये ।

जिस्म में जली हैं साँस कुछ इस कदर।
आज उस साँस से उठता धुआं ना साद देखिये ।

पल पल घट रही है उम्र की घड़ी
कहीं ।
घट रही उम्र का बर्बाद न तमाशा देखिये ।

पलट कर कभी न मिली फुरसत जिसे कभी ।
हर घड़ी उसी से बफा निभाते देखिये ।

रस्म अदायगी निभाते वो कैसे
मोहब्बत में ।
जला हर को खत की निशानी
को बहाते देखिए ।।

स्वरचित

नीलम शर्मा#नीलू

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मुक्तक

विषय-मैं
मैं और मेरे अहसास अक्सर ये बातें करते हैं
रात के घने साए में जो टीस बनकर उभरे हैं
वो दे जाते हैं खामोशियों को लब्ज नित नये
जो गज़ल बन कर अक्सर एहसासों में बहते हैं

2)
रंजिशें ही सही कुछ तो निभाया तुमने मुझसे
मैं खुद को भूलकर नया आकाश सजा बैठी
दूर गगन में अब गिनते हैं तारे बैठे हम बेचारे
लगजायें पंख वादों को जो किये तुमने मुझसे
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू

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मन पराग हिचकोले लिऐ हजार
जब तेरी याद आई रोएं बार बार

जिस्म से रुह निकली हजार बार
तडप न मिटी फिर भी एक बार

लाखों गुनाह कर लिए बार बार
जिनके लिए ख्वाब सजाएंबेहिसाब

काटी उम्र मुफलिसी की खराब
मुस्कराने के पल न मिले जनाब

वादों के हिसाब रख न सके माहताब 
ख़िली चाँदनी तन जलाने लगी नायाब

स्वरचित
दिनांक-1/4/2019
दिन-सोमवार

नीलम शर्मा#नीलू

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छंद मुक्त कविता
विषय-
उपकार
🌻🌷🌻
हर अदा लगती मुझे उसकी कुछ खास है
माँ जगत जननी है जो करती सभी पर उपकार है
🌷🌻🌷
प्यार से नित हाथ रखती करते सब सत्कार हैं
दुष्ट के दुष्कर्मों का करती तू संहार है
🌷🌻🌷
पापियों का बनकर तू रखती नित आकार है
दूर से तू देखती सबके कर्मो के प्रकार है
🌷🌻🌷
दुर्गा, काली ,लक्ष्मी, चण्डी तेरेत्र कितने नाम हैं
हर दिल में तू है बसती वो तेरा एक धाम है
🌷🌻🌷
भक्त जोडें हाथ तेरे करती तू उपकार है
लगा गले जब तू है. लेती होता सुख संचार है
🌷🌻🌷
रख हाथ मेरे सर पर तू माँ खडे सभी दरबार हैं
लाज मेरी रख ले तू माँ " नीलू"की पुकार है
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भावों के अंगार पर दहकन पिया तेरे प्यार की
दे रही एहसास मुझको तुम हो कहीं मेरे पास ही

साथ मेरे जीवन के पथ पर रखना कदम हर बार ही
हो डगर खामोश लेकिन तुम चहकना अनायास ही

जब तुम थक जाओगे सफर मे थाम लूँगी बाँह ही
तब खुले केशों से मिलेगी ठंडी हवा और छाँव ही

मंद झोकें जब चलेंगे बीती याद सुलगेंगी बडी
तब न रहूंगी साथ तेरे मन की डोरी हिलेगी बडी

यादों के झूले झूलना इन्सान की प्रकृति है यही
रुठना और फिर मनाना जीवन में उमंग भरते यही

स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
4/4/2019

दिन-गुरुवार

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विषय -मौका/अवसर🍂🍁🍂🍁🍂🍁🍂
विधा-छंद मुक्त कविता
🍁🍀🍁मौका 🍁🍀🍁 
बनी दुनिया जोकर लगी जब
हंसाने 
कहाँ किसने देखा उसकी आँखों
का पानी
मौका मिला जिसे भी वो भूल
गया मैहरबानी
ये तेरी और मेरी सबकी है कहानी
दुनिया एक रंग मंच है 
सबकी अलग कहानी
हर किरदार एक कठपुतली
ये बात मैंने जानी
कोइ हँस रहा, किसी आँख
का सूख गया पानी
कोइ नचा रहा , कोइ भूल
गया जवानी
कोइ दे गया रवानी, कोइ
दे गया निशानी
ठहर जुस्तजू पर निकली
मौजे बयानी
तंग दिल थे निकले चापलूस
और सयानी
बातों की जो हैं खाते नेताओं
की मैहरबानी
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू

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विषय-युवाविधा-छंद मुक्त कविता
🍁🌱🍁🌱🍁🌱🍁🌱🍁
🌹🌺युवा🌺🌹

लेकर फौलाद दिल मे आज जागा देश 
का युवा है
देख रही है दुनिया जिसको आज सम्मान 
सेबडे बहादुर वीरों का देश बना 
अब समूचा है
आन न इसकी जाने पाये युवाओं
को ही सम्भालना
देश पर जो मर मिट जाऐ अपने
ऐसा देश है ढालना
देश मिट्टी बनी चंदन है माथे इसे
लगा लेना
जिम्मेदारी अब है तेरी तू ही माँ
बहनों का गहना
आन,बान और शान है देश का युवा
ही महान है
कर जाये जान भी हाजिर ऐसे बलिदानो
की शान है
गढता रहता देश का युवा नित नये 
आयाम है
देश तरक्की करे हमारा यही इसका
पैगाम है

स्वरचित
नीलम शर्मा # नीलू
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

दिल के हाथों न सताये होते जुवा तक अगर आये होते
देख लेते हाल-ए-दिल सनम चाक गिरेबान दिखाये होते

किनारों पर भी डूबती हैं कस्तियाँ अगर जानते हम भी
तो दिल के सिक्के को यूँ उछाल न हम दिखाये होते

न नहाते अश्कों मे रात भर हम यूँ ही लेकर गम सारे
सुबह होते ही हंसी को चहरे पर जबरन न दिखाये होते

रह न जाये गुमान हमें कोइ मोहब्बत में बाकी अब
भूल से ही बहलाने का खयाल उनको दिखाये होते

विरह की तडप क्या होती है दिल जानता है वो भी
आँख करती बगावत अगर दिल ने छाले दिखाये होते

💕स्वरचित💕
नीलम शर्मा #नीलू

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दर्द,-ए-दिल कुचल कर चल दिए,,,,,,,,
देखिए जनाब पैतरे बदल कर
चल दिये
कभी देख मुस्कराती थी आँखें
उनको
आज मुस्कराती आँखों में आँसू
देके चल दिये
चयन चाहतों का था तो दे दिया
दिल उन्हें
कहाँ ,कब दिल दुखाया इरादों
ने मेरे
चुप चाप दिल के कूँचे से सर झुका
के चल दिये
गुमान था इरादों पर बडा आफताब
है वो
आया मौसम होली का,रंग उडा के 
चल दिये
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू

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विषय-अंकुर
🌺🌹🌺🌹🌺🌹🌺🌹🌺
अंकुर प्यार का बोया तो खिली धरा
भोर जागी तितलियों ने भरा
पराग
कलियों ने ली अँगडाई हो
गया बचपन जवां
रात भी धोने लगी अपने
गेसू जवां
तिमिर से मिल गले रश्मियां भी
खिली वहाँ
दूर छटने लगी आलस की कमसिन
गर्मियां
फाग भी भरने लगा रंगों को बाँहों
में यहाँ
रगों की छटा छाने लगी गालो पर
छाया गुलाल

🌺स्वरचित,🌺

नीलम शर्मा#नीलू
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विधा-छंद मुक्त कविता(व्यंग्य)

विषय-रोग/ बिमारी



🌹🌺 फेसबुक बिमारी🌺🌹



🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀

देखो रे फेसबुकिया कितने अफलातून है😂
बस अपनी मस्ती में ही रहते चूर हैं😂😁😁

चाहे हो टेडी नाक ना हो इनके सर पर बाल
सबसे नाइस पि कहलबाते हाये रे फेसबुकिया

नैट खत्म हो जब इनका ये बेचैन हो जाते😂
सारे काम छोड़कर ये रिचार्ज कराने जाते 😁

भाग भाग कर काम ये करते फोन में झाँका करते
अगर लाइक कमेंट मिले ना इनको ये उदास होते

हाये रे फेसबुकिया फ्रैंड रिक्वेस्ट हैं भेजा करते 😂
फेसबुक का पटल छोड़ इनबॉक्स में कूदा करते 😅

बिगड़ जाए फोन जो इनका गुस्सा औरों से करते 😂
लेके वाइक और गाडी दुकान पर कूदा करते 😎😎

मैं भी इसी दुनिया में रहती कितनी भोली बनती 😃😂
इधर उधर की करती रहती देख देख मैं हँसती😄😄

🌺स्वरचित🌺

नीलम शर्मा#नीलू
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

🍁🌿नींद🌿🍁
नींद मे भी ख्वाब बनके छाए हो
ख्वाब बन आँखों में तुम समाए हो
किताब बन गया इश्क पढ लेना
हर हर्फ की दासता मे तुम समाए हो

नींद जब आए तो उसे आने देना
जगी आँखों में अक्स बन समाए हो
होगा आँखों पर पहरा बंद पलकों का
बडी फुरसत से आँखों मै तुम समाए हो

चाँद भी उतरे गा जमीन पर साथ चाँदनी के
ऐसा आशियाना दिल-ए-जमीन पर बनाए हो
रात ने लगाएं पैबंद बना काफिले खुशियों के
दुनिया से छुपाकर घरोंदा दिल मे बनाए हो

🌷स्वरचित🌷
नीलम शर्मा,#नीलू
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

 नमन🙏🙏भावों के मोती
विषय-शिव/सृष्टि
विधा-छंद मुक्त कविता
🌹🌹हर हर महादेव🌹🌹

बगडबंब बंमबंम लहरी शिव 
हे अर्धनारीश्वर तू दुनिया का प्रहरी

तू कालेश्वर, तू महादेव तू आदि अंत
तूने लपेट नागो की माला , तू दुनिया का प्रहरी
बगडबंब बगडबंब बंमबंम लहरी शिव

तू भूतादिक, तू रोद्र रूप तू भूतेश्वर शिव
लटों मे सम्भाले गंगा की धार
बगडबंब ,बगडबंब बंमबंम लहरी शिव

तू भूतों को पछाड , तू शक्ति के साथ
तूने धारण किया है चंद्रमा को सिर
बगडबंब, बगडबंब बंमबंम लहरी शिव

हाथों में डमरू बाजे हे नाथ , तू देवों का देव
भस्म लपेट कर खेला ह़ोली ,देख तुझे दुनिया बोली
बगडबंब, बगडबंब बंमबंम लहरी शिव

🌷🌷स्वरचित🌷🌷
नीलम शर्मा#नीलू

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

🌻विज्ञान🌻

,🌺🌺🌺
तारामंडल
विज्ञान का खेल हैं
वैज्ञानिक का

🌺🌺🌺
ज्ञान विज्ञान
सूक्ष्म संज्ञान पढा
जीव,विध्यार्थी

🌺🌺🌺
विज्ञान जान
पढते सब ध्यान
भागा अज्ञान

🌺🌺🌺
देता विज्ञान
पाता अपार ज्ञान
जगत सारा

🌺🌺🌺
बना महान
विज्ञान से भारत
चमका तारा

स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
ये धरती है सपूतों की खिले यहाँ संग्राम
भगतसिंह नहरू दिखे ,ऐसा देश महान

मिलता इनसे आत्मबल और बनी पहचान
ये है धरती भारत माँ दिखे यहां भगवान

चंद्रशेखर, आजाद यहाँ ,यहाँ सुभाष और राम
ये पावन धरा है जिसे दुनिया करें सलाम

राम , रहीम , कृष्णा यहाँ ये केवट का धाम
सुनो कहानी वीरों की लो इनसे अभिमान

राज पाट को त्याग कर चले प्रभु श्री राम
लाज रखी एक पिता की छोडा वैभव , धाम

लाज है तेरे हाथ अब कर न तू अब विश्राम
अब तो बढाले आत्मबल, लेकर मन को बांध

नारी को सम्मान दे कदमों मे काँटे नहीं
सबल बनेगी राह देश की वो बने एक शान


@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@विधा-दोहे
कण कण मैं भगवान बसे, बसे सभी जग धाम ।
कोइ कहे मधुकर तुझे, कोइ पुकारे
श्याम ।।

कण कण मे कान्हा दिखे, दिखे मुझे
घन श्याम।
दर्शन को आँखें दुखी, जिव्हा थके न
विराम ।।

कण कण मे भगवन बसे, ढूढें कस्तूरी मन ।
हिरणी बन कर भटक रहा,हरे तू मन का तम ।।

जन जन की यही पुकार,कण कण में घनश्याम ।
आँखें खुले मिले श्याम ,आऊँ वृंदावन धाम ।।

स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@



1)
लाख की बात
कलम साथ रहे
भावनाओं मे
बहा मन उद्गार
अडिग रहे जन

2)
मनो भाव है
कलम से हमेशा
उत्थान रहे
भटके न जनता
विकास करें जन

स्वरचित



नीलम शर्मा#नीलू

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
भाव प्रवाह
मन स्फूर्ति सदा
गूँजती धरा

२)
सत्कर्म बना
ले आकर प्रवाह
सद्गुणों सदा

३)
नदी प्रवाह
कल कल सी ध्वनि
तन निर्मल

४)
श्वेत आँचल
प्रवाह नदी जल
शीतल धार

स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू


@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
क्षणिका🌺

1)
तलाश न कर
निर्मुल अपेक्षाएं ,
चक्षुओं को खोल
आकार लेती उम्मीद,
जो बढ गई दिन रात ।

2)
तलाश एक आकाश
उडजा वहाँ स्वछंद,
उनमुक्त हवाओं मे,
जो तेरा अपना हो
आकाश , उडाले
उम्मीद जो डूब
गई मन के 
रसातल में

स्वरचित

नीलम शर्मा#नीलू
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@


मेरा भ्रम है या तारो की टोली
ले सजना मैं अब तेरे साथ होली
साँसो के उच्छवास पर मैं डोली
तेरे लब की दहकन मे भिगोली
वो हुस्न, वो नखरों मे डोली
निकली तेरे साथ ,कयामत होली
वो गुजरा जमाना ,वो प्यारी सी बोली
करु याद उनको तो आँखें भिगोली
आओ सजन एक बार मैं बोली
ले चलो जीवन पथ पर मैं संग होली
जाए न अब बवालों की झोली
हुजूर लाजमी हो तो देखो इधर भी

🌺स्वरचित🌺

नीलम शर्मा#नीलू

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

अतिथि तुम देवों की खान
बच्चे हों या बडे समान

आते तुम बिन तिथि महान
जाते तुम खा के रस पान

आते तुमसे मेवा मिष्ठान
गाते हम तुम्हारे गुणगान

सोते तुम चादर को तान
घर के सोते ठिठुरेहै जान

बिन मौसम बिन तिथि न जान
झंट टपक जाते तुम महान

राशन पानी खतम न जान
तुम तो उडाएं मीठे पकवान

स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू


@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
"मोह"
रे कान्हा तेरा मोह न छूटे
बंधन जग से चाहे टूटे
निस दिन देखूँ राह मैं तेरी
तू मेरे मन आँखों से न छूटे

2)
लाज के मारे मैं शरमाई
कर के घूँघट मैं इतराई
मोह तेरा मुझसे न छूटे
साँझ परे अँखियाँ मटकाई

3)
मैं कान्हा दर्शन की प्यासी
मोह मे बंध तुझ संग मैं भागी
मेरी दशा मछली के जैसी
लाज तू रख कृष्ण मुरारी

4)
मोह तेरा बाँधे है मुझको
रिक्त हृदय बस गया तू तो
तनिक शरम तुझको नहीं आती
निस दिन बंशी सुनाई दे मुझको

स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू



ये दुनिया ही सौदेबाजों का शहर है
यहाँ लूटना तो दुनिया आम चलन है
रह जाता है फरेब बस सहने को
काम निकालती पुख्ता हर नजर है

आबाद रहते हैं लोग बही यहाँ पर
जिनकी चालों मे कुछ असर है
जीने दो मासूम लोगों को जालसाजो
रहने दो कुछ काम , तुम से गुजारिश है

कर्मो का हर फैसला यहाँ होता ता है
लाख छिपा लो दामन भुगतना पडता है 
पर वो देखता रहता है जब पानी सर से बहता 
तब वह फैसला अपना करता है
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू

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"अंदाज"05मई2020

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