शालिनी अग्रवाल
पत्नी -श्री अमित सिंघल
आयु 43 वर्ष
शिक्षा- स्नातकोत्तर उपाधि अंग्रेजी बीटीसी , बी.एड.
साहित्यिक अभिरुचि- दोहे ,छंद ,मुक्तक एवं गीत रचनाएं, ग़ज़ल लिखना।
व्यवसाय- शिक्षिका
पता- तहसील चांदपुर
जिला बिजनौर उत्तर प्रदेश
नगर की सेवा भारती संस्था द्वारा सम्मान, फेसबुक साहित्यिक मंच काव्योदय, भावों के मोती, उड़ान, छंद सुरसरि, नवसृजन विहान, नवोदित साहित्यकार मंच द्वारा समय-समय पर आयोजित प्रतियोगिताओं में सर्वश्रेष्ठ रचनाकार का पुरस्कार।
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विषय- तुलसी
विधा- दोहा
25/12/2019
तुलसी दल से युक्त हो, भोजन बने प्रसाद।
आयुर्वेदिक गुण भरे, लगता सुंदर स्वाद।।
श्रीहरि थे करते शयन, तुलसी तारणहार।
प्रभु जाग्रत अब हो गए, बरसे कृपा अपार।।
विश्व पूजिता जा रहीं, मंगल की बौछार।
चुनरी लाल चढ़ाइए, करिए शुभ शृंगार।।
निभा रही नारी सुखद, दीप जलाकर धर्म।।
मांँ तुलसी की अर्चना, वृहत मांगलिक कर्म।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@ शीर्षक- कोशिश
विधा- ग़ज़ल
हाथ अपना छुड़ाने की कोशिश न कर,
कुदरती नेमतों पे तू बंदिश न कर।
देखता है बहुत उलझनें तू बशर,
दूर होंगे वहम ज़ख्म ताबिश न कर।
जिंदगी को सनम यूँ करो न ख़ला,
दूर तू मुझसे हो ये सिफारिश न कर।
वासता है तुझे मुश्किलें भूल जा,
पेशतर वक्त से आज ख्वाहिश न कर।
मुंतज़िर हूंँ तेरी रहबरी की सनम,
दर्द अपने छुपा यूँ नुमाइश न कर।
हौसला- ए-क़ता गर तेरे साथ है,
मुर्शिदों पे सवालों की बारिश न कर।
मिट गई तीरगी खत्म हैं उलझनें,
सामने अब किसी के गुज़ारिश न कर।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
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भावों के मोती
4/11/2019
शीर्षक- आभा
क्यों मेरा वाग्दान किया
गुण छत्तीस मिल जाएं।
क्यों ऐसा बखान किया।
क्या मैं कोई वस्तु थी।
मेरा कन्यादान किया।
दूर भेजकर.. अपने से
क्या सिद्ध प्रमाण किया
मेरे पथ के शूल चुनें थे
मन ही मन मान किया।
क्यों मेरा वाग्दान किया
अपने गृह की #आभा का
क्यों दीप-दान.... किया
नीति का संज्ञान किया,
संस्कारों का भान किया
बेटी बिदा कर बाबुल ने,
रीति का सम्मान किया।
परम्पराओं की छाया में
मेरा कन्यादान किया।।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
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2/11/2019
शीर्षक-नज़र
विधा-गीत
चटक रही मन में चिंगारी,
सूखी जाती है हरियाली।
किसकी काली नज़र लगी है,
हुई बड़ी, दुर्लभ खुशहाली।
धरणी रोती अंबर रोता,
रुदन करे उपवन का माली।
स्वार्थ में अंधी है मानवता,
बजती सबके हाथों ताली।
मुखिया घर का भुगत रहा है,
न्यारा चूल्हा , न्यारी थाली।
मात-तात भी बांट लिए हैं,
दिन में दिखती रजनी काली।
कच्चे चिट्ठे खोल रहे हैं,
खड़ी दीवारें टूटी जाली।
पछुवा आकर चली गई है,
उड़ते पत्ते सूखी डाली।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
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नगर की सेवा भारती संस्था द्वारा सम्मान, फेसबुक साहित्यिक मंच काव्योदय, भावों के मोती, उड़ान, छंद सुरसरि, नवसृजन विहान, नवोदित साहित्यकार मंच द्वारा समय-समय पर आयोजित प्रतियोगिताओं में सर्वश्रेष्ठ रचनाकार का पुरस्कार।
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विषय- तुलसी
विधा- दोहा
25/12/2019
तुलसी दल से युक्त हो, भोजन बने प्रसाद।
आयुर्वेदिक गुण भरे, लगता सुंदर स्वाद।।
श्रीहरि थे करते शयन, तुलसी तारणहार।
प्रभु जाग्रत अब हो गए, बरसे कृपा अपार।।
विश्व पूजिता जा रहीं, मंगल की बौछार।
चुनरी लाल चढ़ाइए, करिए शुभ शृंगार।।
निभा रही नारी सुखद, दीप जलाकर धर्म।।
मांँ तुलसी की अर्चना, वृहत मांगलिक कर्म।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@ शीर्षक- कोशिश
विधा- ग़ज़ल
हाथ अपना छुड़ाने की कोशिश न कर,
कुदरती नेमतों पे तू बंदिश न कर।
देखता है बहुत उलझनें तू बशर,
दूर होंगे वहम ज़ख्म ताबिश न कर।
जिंदगी को सनम यूँ करो न ख़ला,
दूर तू मुझसे हो ये सिफारिश न कर।
वासता है तुझे मुश्किलें भूल जा,
पेशतर वक्त से आज ख्वाहिश न कर।
मुंतज़िर हूंँ तेरी रहबरी की सनम,
दर्द अपने छुपा यूँ नुमाइश न कर।
हौसला- ए-क़ता गर तेरे साथ है,
मुर्शिदों पे सवालों की बारिश न कर।
मिट गई तीरगी खत्म हैं उलझनें,
सामने अब किसी के गुज़ारिश न कर।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
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भावों के मोती
4/11/2019
शीर्षक- आभा
क्यों मेरा वाग्दान किया
गुण छत्तीस मिल जाएं।
क्यों ऐसा बखान किया।
क्या मैं कोई वस्तु थी।
मेरा कन्यादान किया।
दूर भेजकर.. अपने से
क्या सिद्ध प्रमाण किया
मेरे पथ के शूल चुनें थे
मन ही मन मान किया।
क्यों मेरा वाग्दान किया
अपने गृह की #आभा का
क्यों दीप-दान.... किया
नीति का संज्ञान किया,
संस्कारों का भान किया
बेटी बिदा कर बाबुल ने,
रीति का सम्मान किया।
परम्पराओं की छाया में
मेरा कन्यादान किया।।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
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2/11/2019
शीर्षक-नज़र
विधा-गीत
चटक रही मन में चिंगारी,
सूखी जाती है हरियाली।
किसकी काली नज़र लगी है,
हुई बड़ी, दुर्लभ खुशहाली।
धरणी रोती अंबर रोता,
रुदन करे उपवन का माली।
स्वार्थ में अंधी है मानवता,
बजती सबके हाथों ताली।
मुखिया घर का भुगत रहा है,
न्यारा चूल्हा , न्यारी थाली।
मात-तात भी बांट लिए हैं,
दिन में दिखती रजनी काली।
कच्चे चिट्ठे खोल रहे हैं,
खड़ी दीवारें टूटी जाली।
पछुवा आकर चली गई है,
उड़ते पत्ते सूखी डाली।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
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27/10/2019
विषय- दीप/दीपावली
विधा- दोहा
रामलला लौटे सदन,पूरण होवें काज।
मावस का गहरा तमस, हार गया है आज।।
अंधकार मन से मिटे, रहे अलौकिक आग।
दीप पर्व की है प्रथा, घर- घर जले चिराग।।
धर्म निभा अपना सदा, जाग पहरुए जाग।
दीवाली मनती रहे, घर- घर जले चिराग।।
चाइनीज सामान से, अटे पड़े बाजार।
फिर भी चाक चला रहे, धन्य हैं कुम्भकार।।
चाक सदा चलता रहे, बनते रहें चिराग।
कर्मकार हों सब मुदित, बुझा पेट की आग।।
पर्व रोशनी का सुखद, समझ जरा इंसान।
तिमिर दूर होता सकल, बढ़े धरा की शान।।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
विषय- दीप/दीपावली
विधा- दोहा
रामलला लौटे सदन,पूरण होवें काज।
मावस का गहरा तमस, हार गया है आज।।
अंधकार मन से मिटे, रहे अलौकिक आग।
दीप पर्व की है प्रथा, घर- घर जले चिराग।।
धर्म निभा अपना सदा, जाग पहरुए जाग।
दीवाली मनती रहे, घर- घर जले चिराग।।
चाइनीज सामान से, अटे पड़े बाजार।
फिर भी चाक चला रहे, धन्य हैं कुम्भकार।।
चाक सदा चलता रहे, बनते रहें चिराग।
कर्मकार हों सब मुदित, बुझा पेट की आग।।
पर्व रोशनी का सुखद, समझ जरा इंसान।
तिमिर दूर होता सकल, बढ़े धरा की शान।।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
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24/10/2019
शीर्षक-समीर
विधा- चौपई छंद
मात्रा भार-15
अंत- गुरु लघु
चलती शीतल मंद समीर।
हरती सबके मन की पीर।
हिम का आलय पहरेदार,
धरणी मन में धरती धीर।
वैदेही के उर में राम,
भरा रहे आंखों में नीर।
मर्यादा के पालनहार,
जय रघुनंदन जय रघुवीर।
शालिनी अग्रवाल
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शीर्षक-समीर
विधा- चौपई छंद
मात्रा भार-15
अंत- गुरु लघु
चलती शीतल मंद समीर।
हरती सबके मन की पीर।
हिम का आलय पहरेदार,
धरणी मन में धरती धीर।
वैदेही के उर में राम,
भरा रहे आंखों में नीर।
मर्यादा के पालनहार,
जय रघुनंदन जय रघुवीर।
शालिनी अग्रवाल
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20/10/2019
विषय- स्वतंत्र लेखन
( गीत रचना)
212 212 212
तौलते लोग हैं प्यार को।
छोड़ बैठे हैं घर-द्वार को।
हाल कैसा हुआ आज है।
आधुनिकता करे राज है
दिल तरसते हैं त्योहार को।
तौलते लोग......(1)
भाव खोए हैं मनुहार के।
मोल चढ़ते हैं बाजार के।
भूलते आज आभार को।
तौलते लोग......(2)
प्रीत की रीत जानी नहीं।
आंँख में आज पानी नहीं।
जानते मात्र अधिकार को।
तौलते लोग......(3)
धार गंगा की पावन रखो।
सद्विचारों का सावन रखो।
भूल मत मात- उपकार को।
तौलते लोग......(4)
शालिनी अग्रवाल
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विषय- स्वतंत्र लेखन
( गीत रचना)
212 212 212
तौलते लोग हैं प्यार को।
छोड़ बैठे हैं घर-द्वार को।
हाल कैसा हुआ आज है।
आधुनिकता करे राज है
दिल तरसते हैं त्योहार को।
तौलते लोग......(1)
भाव खोए हैं मनुहार के।
मोल चढ़ते हैं बाजार के।
भूलते आज आभार को।
तौलते लोग......(2)
प्रीत की रीत जानी नहीं।
आंँख में आज पानी नहीं।
जानते मात्र अधिकार को।
तौलते लोग......(3)
धार गंगा की पावन रखो।
सद्विचारों का सावन रखो।
भूल मत मात- उपकार को।
तौलते लोग......(4)
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
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भावों के मोती
12/10/2019
शीर्षक- सिलसिला
विधा- ग़ज़ल
बह्र- 212 212 212 2
आपकी चाहतों का असर हो,
आपका साथ अब हर डगर हो।
सिलसिला प्यार का हम चलाएं,
बावफा आपकी गर नज़र हो।
आपकी सादगी भा गई है,
आपकी बंदगी हर पहर हो।
दिल गलीचा बनाकर बिछाया,
अब बता दो बशर के किधर हो।
आपकी नींद हम सो रहे हैं,
आप यूँ अब हमारी नजर हो।
कायदा पढ़ रहे इश्क का हम,
आरज़ू से सनम बाख़बर हो।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
12/10/2019
शीर्षक- सिलसिला
विधा- ग़ज़ल
बह्र- 212 212 212 2
आपकी चाहतों का असर हो,
आपका साथ अब हर डगर हो।
सिलसिला प्यार का हम चलाएं,
बावफा आपकी गर नज़र हो।
आपकी सादगी भा गई है,
आपकी बंदगी हर पहर हो।
दिल गलीचा बनाकर बिछाया,
अब बता दो बशर के किधर हो।
आपकी नींद हम सो रहे हैं,
आप यूँ अब हमारी नजर हो।
कायदा पढ़ रहे इश्क का हम,
आरज़ू से सनम बाख़बर हो।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
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11/10/2019
शीर्षक-सरस
छंद भद्रिका-(र,न,र)
कामना सरस पावनी,
वाष्प संग मनभावनी।
बूंद- बूंद जब मानिनी,
श्रावणी मधुर यामिनी।।
उर्वशी सुखद मेदिनी,
सार से गठित स्वामिनी।
दृश्यता मधुर धारिणी,
धूल हीन गज गामिनी।।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
शीर्षक-सरस
छंद भद्रिका-(र,न,र)
कामना सरस पावनी,
वाष्प संग मनभावनी।
बूंद- बूंद जब मानिनी,
श्रावणी मधुर यामिनी।।
उर्वशी सुखद मेदिनी,
सार से गठित स्वामिनी।
दृश्यता मधुर धारिणी,
धूल हीन गज गामिनी।।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
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9/10/2019
शीर्षक- अभियान
विधा- विजात छंद (14 मात्राएं)
1222 1222
नया संधान भारत का।
नया अभियान भारत का।।
सफलता की नयी सीढ़ी।
चकित होती गयी पीढ़ी।
कसौटी है खरी पाई।
सुहानी है घड़ी आई।।
ग्रहों का ज्ञान पा जाएं।
नयी बस्ती बसा जाएं।।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
शीर्षक- अभियान
विधा- विजात छंद (14 मात्राएं)
1222 1222
नया संधान भारत का।
नया अभियान भारत का।।
सफलता की नयी सीढ़ी।
चकित होती गयी पीढ़ी।
कसौटी है खरी पाई।
सुहानी है घड़ी आई।।
ग्रहों का ज्ञान पा जाएं।
नयी बस्ती बसा जाएं।।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
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नमन मंच भावों के मोती
6/10/2019
विषय- स्वतंत्र लेखन
विधा- दोहा छंद
माता रानी आ गईं, सुंदर इनका रूप।
चरण वंदना कीजिए, जीवन बने अनूप।।
वस्त्र श्वेत धारण करें, मैया पालनहार।
उनकी अनुकंपा मिले, भरे रहें भंडार।।
मात भवानी आ गईं ,पहने रक्तिम वस्त्र।
असुर हुए भयभीत हैं, देख हाथ में अस्त्र।।
मैया पीहर आ गईं, करें सभी सत्कार।
शोक असुर दल में हुआ, रोग- दोष परिहार।।
लालटेन की रोशनी, गाँवों की चौपाल।
जग की पालनहार के, सजे हुए पंडाल।।
शांत महागौरी रहें, जग की पालनहार।
भक्त अभय पाते रहें, तर जातें भवपार।।
पुण्य लाभ देती रहें, जग की पालनहार।
मैया के दर्शन सुखद, लगती जय- जयकार।।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
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शीर्षक- स्वेद
26/9/2019
#माहिया_छंद-
जोगन दर-दर भटकी
बिछिया अटक रहे
लो लचक गई मटकी 1
ये नार नवेली है
नीर नहीं घर में
जग एक पहेली है 2
पौ है फटने वाली
क्यों तालाब पटे
है जनमत को गाली 3
पनघट जाती नारी
नीर नहीं दिखता
है सूखी फुलवारी 4
सूखी धरती फटती
स्वेद दिखे मस्तक
क्यों दुल्हन है खटती 5
लेकर चलती मटकी
नारी सारी में
लट इक-इक है लटकी 6
लट युवती सुलझाती
शूल चुभे चाहें
गगरी भरने जाती 7
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
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विषय- स्वतंत्र लेखन
विधा- कलाधर छंद
दिनांक- 22/9/ 2019
रोम -रोम राम- राम देश है निहाल आज,
नेक भाव से सुजान गेह भी बनाइए।
एक धर्म एक मर्म एक चर्म एक कर्म,
बैर भाव भूल आप साथ- साथ आइए।
एक देश एक वेष एक गीत एक गान,
विश्व मंच जान ले सुहास गान गाइए।
काल है कराल त्याग भीत द्वंद सर्व आज,
अंध कूप अंध डोर आज ही भुलाइए।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
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विषय- दुकान/हाट
विधा- गद्य लेखन
21/9/2019
घर के बुजुर्गों से सुना करता था कि जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे और अच्छे कर्मों का प्रतिफल अवश्य मिलता है ।
इन संस्कारों को अपने भीतर समाहित किए स्नातक तक की शिक्षा अर्जित की। सुना करता था कि अच्छे दिन आएंगे पर कभी देखे नहीं थे। आगे की शिक्षा के लिए धन अभाव के कारण एक छोटी सी दुकान डाली।
दुकान से बस इतनी आमदनी हो जाती थी कि घर का खर्चा चलता रहे। लेकिन आकस्मिक खर्च आ जाने पर नानी याद आ जाती थी।
किंतु किसी की बढ़ती आमदनी को देखकर न कभी ईर्ष्या की भावना का अनुभव हुआ न कभी मन में यह ग्लानि हुई कि हमारा काम छोटा है।
एक समय तो ऐसा आया कि हर मौसम और पर्व पर सीजनल काम का ठेला तक लगाना पड़ा। धनिक रिश्तेदार उलाहना देते थे कि इस ने हमारी नाक कटा दी।
लेकिन मैंने कभी अपने पांव चादर से बाहर नहीं निकलने दिए। उतने ही पैर फैलाए जितनी चादर थी।
हमेशा उन लोगों को देखता था जो मुझसे भी बुरी परिस्थितियों में जीवन यापन कर रहे थे।
छोटे-छोटे फड़ लगाने वालों से थोड़े बहुत रुपयों का कुछ सामान जरूर खरीदता था ताकि उनका भी गुजारा हो सके। और वे किसी के आगे हाथ फैलाने के लिए मजबूर न हो।
आमदनी कम थी तो धीरे-धीरे रिश्तेदारों और दोस्तों ने भी कन्नी काटनी शुरू कर दी थी।
हर 7 या 8 वर्ष बाद काम बदलने की नौबत भी आ जाती थी।
लेकिन कहते हैं ना कि उपकार का प्रतिफल उपकार ही मिलता है। मैंने बहुत कम पूंजी लगाकर प्लास्टिक का सामान दुकान पर रख लिया।
छोटी दुकान देख कर ग्राहकों ने चढ़ने पर संकोच किया, लेकिन मैंने देखा कि बाजार - हाट के दिन एक फकीर ने मेरी दुकान के आगे आकर बैठना शुरु कर दिया।
उस फकीर को पैसे देने के बहाने जो लोग रुकते, वह एक नजर दुकान पर भी डालते।
वाजिब दाम देखकर उन्होंने सामान खरीदना शुरू कर दिया और मेरी बिक्री धीरे-धीरे बढ़ने लगी।
1 वर्ष की अवधि में ही मेरे काम का इतना अधिक विस्तार हो गया कि मैंने एजेंसी तक ले डाली।
मैंने गौर किया कि अब उस फकीर ने मेरी दुकान के आगे बैठना बंद कर दिया है और कहीं और अपना ठिकाना बना लिया।इंसानियत के नाते मैं दिन में दो से तीन बार केवल उसे ठंडा पानी पिलाता था और कुछ नहीं।
मुझे लगता है कि इंसानियत जिंदा है, जिंदा थी और जिंदा रहेगी।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
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नमन मंच भावों के मोती
12/9/2019
विषय- शहनाई
कर्तव्यों व अधिकारों की बेमानी छिड़ी लड़ाई है,
देश,काल और परिवारों के अस्तित्वों पर बन आई है।
कर्तव्यों के बोधों पर अधिकारों ने की चढ़ाई है,
अधिकारों के चाबुक से कर्तव्यों की पौध मुरझाई है।
मेरे देश के गणतंत्र की सब व्यवस्थाएं चरमराई हैं,
मानो तो ये सहगामी हैं, पूरक हैं, भाई-भाई हैं।
अपनी-अपनी ढपली है, अपने रागों की #शहनाई है,
सात दशक की आजादी की क्या यही कीमत लगाई है।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
6/10/2019
विषय- स्वतंत्र लेखन
विधा- दोहा छंद
माता रानी आ गईं, सुंदर इनका रूप।
चरण वंदना कीजिए, जीवन बने अनूप।।
वस्त्र श्वेत धारण करें, मैया पालनहार।
उनकी अनुकंपा मिले, भरे रहें भंडार।।
मात भवानी आ गईं ,पहने रक्तिम वस्त्र।
असुर हुए भयभीत हैं, देख हाथ में अस्त्र।।
मैया पीहर आ गईं, करें सभी सत्कार।
शोक असुर दल में हुआ, रोग- दोष परिहार।।
लालटेन की रोशनी, गाँवों की चौपाल।
जग की पालनहार के, सजे हुए पंडाल।।
शांत महागौरी रहें, जग की पालनहार।
भक्त अभय पाते रहें, तर जातें भवपार।।
पुण्य लाभ देती रहें, जग की पालनहार।
मैया के दर्शन सुखद, लगती जय- जयकार।।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
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शीर्षक- स्वेद
26/9/2019
#माहिया_छंद-
जोगन दर-दर भटकी
बिछिया अटक रहे
लो लचक गई मटकी 1
ये नार नवेली है
नीर नहीं घर में
जग एक पहेली है 2
पौ है फटने वाली
क्यों तालाब पटे
है जनमत को गाली 3
पनघट जाती नारी
नीर नहीं दिखता
है सूखी फुलवारी 4
सूखी धरती फटती
स्वेद दिखे मस्तक
क्यों दुल्हन है खटती 5
लेकर चलती मटकी
नारी सारी में
लट इक-इक है लटकी 6
लट युवती सुलझाती
शूल चुभे चाहें
गगरी भरने जाती 7
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
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विषय- स्वतंत्र लेखन
विधा- कलाधर छंद
दिनांक- 22/9/ 2019
रोम -रोम राम- राम देश है निहाल आज,
नेक भाव से सुजान गेह भी बनाइए।
एक धर्म एक मर्म एक चर्म एक कर्म,
बैर भाव भूल आप साथ- साथ आइए।
एक देश एक वेष एक गीत एक गान,
विश्व मंच जान ले सुहास गान गाइए।
काल है कराल त्याग भीत द्वंद सर्व आज,
अंध कूप अंध डोर आज ही भुलाइए।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
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विषय- दुकान/हाट
विधा- गद्य लेखन
21/9/2019
घर के बुजुर्गों से सुना करता था कि जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे और अच्छे कर्मों का प्रतिफल अवश्य मिलता है ।
इन संस्कारों को अपने भीतर समाहित किए स्नातक तक की शिक्षा अर्जित की। सुना करता था कि अच्छे दिन आएंगे पर कभी देखे नहीं थे। आगे की शिक्षा के लिए धन अभाव के कारण एक छोटी सी दुकान डाली।
दुकान से बस इतनी आमदनी हो जाती थी कि घर का खर्चा चलता रहे। लेकिन आकस्मिक खर्च आ जाने पर नानी याद आ जाती थी।
किंतु किसी की बढ़ती आमदनी को देखकर न कभी ईर्ष्या की भावना का अनुभव हुआ न कभी मन में यह ग्लानि हुई कि हमारा काम छोटा है।
एक समय तो ऐसा आया कि हर मौसम और पर्व पर सीजनल काम का ठेला तक लगाना पड़ा। धनिक रिश्तेदार उलाहना देते थे कि इस ने हमारी नाक कटा दी।
लेकिन मैंने कभी अपने पांव चादर से बाहर नहीं निकलने दिए। उतने ही पैर फैलाए जितनी चादर थी।
हमेशा उन लोगों को देखता था जो मुझसे भी बुरी परिस्थितियों में जीवन यापन कर रहे थे।
छोटे-छोटे फड़ लगाने वालों से थोड़े बहुत रुपयों का कुछ सामान जरूर खरीदता था ताकि उनका भी गुजारा हो सके। और वे किसी के आगे हाथ फैलाने के लिए मजबूर न हो।
आमदनी कम थी तो धीरे-धीरे रिश्तेदारों और दोस्तों ने भी कन्नी काटनी शुरू कर दी थी।
हर 7 या 8 वर्ष बाद काम बदलने की नौबत भी आ जाती थी।
लेकिन कहते हैं ना कि उपकार का प्रतिफल उपकार ही मिलता है। मैंने बहुत कम पूंजी लगाकर प्लास्टिक का सामान दुकान पर रख लिया।
छोटी दुकान देख कर ग्राहकों ने चढ़ने पर संकोच किया, लेकिन मैंने देखा कि बाजार - हाट के दिन एक फकीर ने मेरी दुकान के आगे आकर बैठना शुरु कर दिया।
उस फकीर को पैसे देने के बहाने जो लोग रुकते, वह एक नजर दुकान पर भी डालते।
वाजिब दाम देखकर उन्होंने सामान खरीदना शुरू कर दिया और मेरी बिक्री धीरे-धीरे बढ़ने लगी।
1 वर्ष की अवधि में ही मेरे काम का इतना अधिक विस्तार हो गया कि मैंने एजेंसी तक ले डाली।
मैंने गौर किया कि अब उस फकीर ने मेरी दुकान के आगे बैठना बंद कर दिया है और कहीं और अपना ठिकाना बना लिया।इंसानियत के नाते मैं दिन में दो से तीन बार केवल उसे ठंडा पानी पिलाता था और कुछ नहीं।
मुझे लगता है कि इंसानियत जिंदा है, जिंदा थी और जिंदा रहेगी।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
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नमन मंच भावों के मोती
12/9/2019
विषय- शहनाई
कर्तव्यों व अधिकारों की बेमानी छिड़ी लड़ाई है,
देश,काल और परिवारों के अस्तित्वों पर बन आई है।
कर्तव्यों के बोधों पर अधिकारों ने की चढ़ाई है,
अधिकारों के चाबुक से कर्तव्यों की पौध मुरझाई है।
मेरे देश के गणतंत्र की सब व्यवस्थाएं चरमराई हैं,
मानो तो ये सहगामी हैं, पूरक हैं, भाई-भाई हैं।
अपनी-अपनी ढपली है, अपने रागों की #शहनाई है,
सात दशक की आजादी की क्या यही कीमत लगाई है।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
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