सुधा शर्मा




*भारत के सपूत *

भारत माँ की चरण धूलि,
चंदन माथे धरता हूँ ।
सपूत हूँ नाम वतन के ,
जीवन अर्पण करता हूँ ।

बहे शोणित यूँ रगों में,
दहकते अंगारों सा
सिंधु प्रलय सा उठती
लहरें,
उर में ललकारों का

सिंहनाद हूँकारें भरकर,
शत्रुओं से नित लड़ता हूँ।

माँ की कोख निहाल होती
माटी का कर्ज चुकाता हूँ
अस्मिता की रक्षा खातिर
साँसें अर्पण कर जाताहूँ

मातृभूमि के परवाने बन,

ज्वाल चिता पर जलता हूँ

इस माटी की गंध में लिपटे
जाने कितने- कितने नाम
राणा, शिवा, सावरकर जैसे
है वतन के ये अभिमान
राज गुरू चंद्रशेखर बन
हँसकर फांसी चढ़ता हूँ

बेड़ियों में जकड़ी माता
जब- जब अश्रु बहाती है
सिसक उठती हैं सदियाँ
बूँद -बूँद कीमत चुकाती है

बन राम ,कृष्ण अवतरित होता
पीड़ा जगत की हरता हूँ

युगों- युगों से चलती आई
भारत की अमर कहानी
जब -जब संकट आया भू पर
बेटों ने दी ,सदा कुर्बानी
जन गण मन साँसों में
भर कर
वतन को नमन करता हूँ।

स्वरचित
सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़
14-2-2020

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मेरी रचना प्रस्तुति

कैसा परिवेश है,भटका अब देश है।
भूले संस्कार सब,बदला अब वेश है
चली हवा है कैसी--
देख हृद डोलता है ।

अरे !पैसा बोलता है---
पैसा बोलताहै।

जीवन बाजार है
शिक्षा ब्यापार है
इसके ही नींव पर
जग कारोबार है

इसके बिन सब सूना
उदासी घोलता है
अरे पैसा-----

खन खन खन आवाज
दे सुख की सौगात
लेते खरीद यहाँ
कोई घर की लाज

खामोश चीखें लहू ---
उबल कर खौलता है
अरे पैसा ---

मंदिर से मस्जिद तक
राजनीति दरबार
कहाँ मिले न्याय अब
है कानून लाचार

रुपयों की थैली से--
गरीबी तोलता है।
अरे पैसा--

सब बेमानी बाते
अर्थ बिन ब्यर्थ नाते
संकट में दूर होते
कोई साथ न आते

रुपया हो हाथ में --
गूंगा मुँह खोलता है
अरे पैसा---

पैसा है माई बाप
मिटे सकल संताप
पैसा सुख का मूल
पैसा ही पुण्य पाप

डूबा मद मोह में
आचरण घोलता है
अरे पैसा---
स्वरचित
सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़

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दिन- रविवार
दिनांक- 8-9-2019
विधा -मुक्त

विषय-किताबें

जिंदगी !

एक ऐसी किताब-
जो कभी भी,
पूरी पढ़ी नहीं जाती ।

हाशिये पर लिखे
सुख और दुख संग
उमर के हस्ताक्षरित
सारे पन्ने फड़फड़ाते।

आमंत्रित करती
साँसों की रेखाएं
गुजरते वक्त के साथ
अक्षर -अक्षर करने
अध्ययन।

असंभव है!
इस किताब को बाँचना
क्योंकि।
गवाही देता वक्त
छोड़ देता है साथ।

अधूरी अपठित,
रह जाती है किताब।
कौन पढ़ पाया इसे?
सभी के हाथ होती है
अबूझ पहेली बन
किताब।।

हाँ कुछ गिने चुने
प्रज्ञा प्रवर लोग
करते हैं प्रयास
पढ़ने और पढ़ाने की
पर,

हो जातें हैं,
शब्द धूमिल -
बदल जाते हैं अर्थ!
किताबें
अनेक रूप धर
खो देते हैं
अपना वास्तविक
स्वरूप ।।

सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़

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8-9-2019
*हाइकु *

शिक्षक करे 
ज्ञान का पल्लवन --
बीजारोपण 

मिटाये तम 
शिक्षक दे उजास--
सुर्यप्रकाश

गढ़े आकार
दिशा बोध मस्तिष्क--
वह कुम्हार 

नींव गढ़ता 
जीवन का सोपान --
गुरू महान 

देव से बड़ा 
हर पथ है खड़ा --
राष्ट्रनिर्माता 

नवनिहाल
बनाते हैं विशाल--
स्वप्न शिखर

विद्या का दान 
है महा पुण्य कर्म-- 
दधिची बनें 

शिक्षक हंस
सदगुणों से ज्ञान
मोती चुगाते

ज्ञान भंडार 
अनुपम क्षमता--
प्रश्न -उत्तर 

गुरू प्राँगण 
शील संयम तप--
साधना पथ

गुरू सारथी 
सुख दुख के पथ 
जीवन रथ

शिक्षक महा 
ज्ञान कला विज्ञान--
अनुसंधान 

सप्तम सुर
विराजते हैं कंठ--
वीणावादिनी 

सर्व शिक्षक
बहती है निर्झरा 

भृकुटी मध्य

जय माँ ओम --
श्री सरसत्यै नमः
विराजो कंठ

स्वरचित व मौलिक 
सुधा शर्मा 
राजिम छत्तीसगढ़ 
5-9-2018
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*ओ अमर गंगे*
लहर -लहर लहराती लहरिया 
लेकर ललित- लहरों की लड़ियाँ 
चिर -चिरतम है पावन सलिला 
तन -मन विमल करती निर्मला 

पग -पायलें कटिबंध कंकणिया 
यौवन बंध चीर- चीर चुनरिया 
भाग रही वह सरपट बावरिया 
सिंधु- सजन मिलने को सजनिया 

पर्वत- कानन उछलती हिरणिया
कुलाँचे भरती डगर- डगरिया 
सरसाती नित- सम्यक सलिला 
जोश- जवानी भरी उमरिया

छम-छम नर्तन करती पत्तियाँ
चंचल चारू चपला सी उर्मियाँ 
झरझर- झरती लहरें- झरझरी 
नदी -राग सुनाती निर्झरा 

भँवरजाल बनातीआकुल बहियाँ 
जलतरंग बजाती मधुर ध्वनियाँ
कहीं मचलती कहीं थिरकती 
करतीं हैं कभी रौद्र गर्जनिया 

अंतर कुंड में बाँधे बेड़ियाँ
लपेटती- मुक्त करती उर्मियाँ 
करे पति को को दुलार कर 
वह जीवन मृत्यु अठखेलियाँ

भाव भरती वारुणी वत्सला 
छलकी भर- भर नेह गगरिया 
अतुल वेग से गमन करती 
ओ गंगे !!नूतन पथ सर्जनिया।

स्वरचित व मौलिक 
सुधा शर्मा 
6-9-2018

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भाषा है अभिव्यक्ति 
अतुलनीय शक्ति 
है अनुराग भक्ति।

भाषा है साध्य अराध्य 
है साधना साधक
अराध्य अराधक। 

भाषा पूजन अर्चन 
शब्दों का अर्पण
है सर्व भाव व्यंजन।

इनसान को देती श्रेष्ठता 
जानवरों से अलग 
भाषा करती विलग। 

भाषा अविरल प्रवाह 
अंतर्भावों की चाह
सम्यक उन्नति की राह।

भाषा सबको जोड़ती
अंतर्संबंधों को मोड़ती 
चिर मौन तोड़ती। 

भाषा होती है निर्झरणी
इनसान के वजूद को 
सदा रेखांकित करती।

भाषा संवाद की नींव
मानवता की बलसींव
समेटे शक्ति अतीव।

भाषा रूप रस अलंकार है
अहमियत का हथियार है
मानवता की पुकार है।

भाषा ममता करुणा है
भाव प्रेरक उद्घोषणा है
पोषित संस्कारों की पोषणा है।

भाषा गीत ग़ज़ल राग है
साहित्य अनुपम भाग है
अंतर्भावों का अनुराग है।

अतीत भविष्य वर्तमान है
भाषा बिन सब गुमनाम है
जीवन साज ,संस्कृति का ताज है

भाषा शब्दों की संवाहक है
मौन की परिचायक है
विश्व विजेता नायक है।
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स्वरचित व मौलिक 
*सुधा शर्मा* 
राजिम (छत्तीसगढ़)
9-9-2018

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हर बरस 
भाषा अस्मिता जगे--
साल गिरह

शब्दों में खिला 
मान सम्मान मिला--
है कंठ हार

अंग्रेजी दौर
नित पल सहती--
प्रतियोगिता 

हिंदी दिवस
भाषण समारोह--
करें चिरौरी

भूलिए मत 
अपनी है संस्कृति --
हिंदी बोलिए 

करें सम्मान 
समस्त भाषाओं का-- 
हिंदी महान 

अभिव्यक्ति हो
आन बान शान है--
हिन्दी हमारी
स्वरचित व मौलिक 
सुधा शर्मा 
राजिम छत्तीसगढ़

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यादों के समंदर में तैरती मन की नाव
दरिया का पानी है और पीपल की छांव 

उड़ते भावों के बगुले 
नेह की गगरिया भरे 
अतल में डूबता मन 
स्मृतियों के फूल झरे

लहरें उछल- उछल कर डगमगाती नाव 
दरिया का पानी है और पीपल की छांव 

घुलती सांसों में अमरईया की गंध 
मन महुआ हुआ 
और मंगिनी मतंग

नयनों में निखर उठा 
सुवासित गाँव 
दरिया का पानी है और पीपल की छांव। 

स्मृतियों के मंदानिल झकोरे 
बाँध-बाँध रहे भावों के डोरे
वातायन खोल- खोल 
मन विहंग उड़ चले

सूरज सिंदूरी हुआ 
उतारने को पाँव
दरिया का पानी है 
और पीपल की छांव 

स्वरचित 
सुधा शर्मा 
राजिम (छत्तीसगढ़)

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* - दोस्ती* 
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दोस्ती : दो व्यक्तियों के मध्य अबंधित बंधन,
जिसकी संपूर्ण पृष्ठभूमि 
आपसी सद्भाव और सहभागिता पर निर्भर होती है।

दोस्ती : आस्था और विश्वास का प्रतीक !
धैर्य-निष्ठा और गर्दिश के क्षणों में नेह और रिश्ते की मज़बूती को सायास परिभाषित करता हमसफर।

दोस्ती : अमीरी- ग़रीबी की दूरियाँ मिटाता मज़बूत पुल, 
जहाँ एक कृष्ण और एक सुदामा सहज बँधे होते हैं निर्मल नेह की डोर से।

दोस्ती : वचननिष्ठ स्वंय को मिटा देने का जज़्बा 
एक दूसरे के लिए त्याग और समर्पण का
जिसके आलोक से कर्ण-दुर्योधन आलोकित होते हैं। 

दोस्ती : मार-पीट, कुट्टी मीठी, लुका-छिपी झगड़े और फिर त्वरित गलबँहियाँ डाले 
सखा का सुखद साथ।

दोस्ती : जीवन समर में विश्वास का दीपक 
अंधकार दूर कर, सही मार्ग प्रशस्त कर
अग्रणी होने का धर्म निभाता है 
वही पार्थ कहलाता है !

दोस्ती : स्वाद नहीं देखता 
ग़रीबी के सूखे चने भी
दोस्ती में पंचमेवा बन जाते हैं 
उस कलेवे का स्वाद अवर्णणीय होता है ! 

दोस्ती : हर वक्त मस्तिष्क में छाया ऐसा जज़्बा 
बचपन से जवानी, बुढ़ापे तक अविस्मरणीय क्षणों को नहीं भूलने वाला स्मृति पात्र ! 
जीवन का सर्वोत्तम मृदुल मनोहर रिश्ता !!

दोस्ती : मधुरिम नशा
जो कभी ना उतरे किसी के साथ का
हाथों में हाथ का, मचलते जज़्बात का दिन और रात का 
संपूर्ण विश्वास का !!
हर उम्र का नायाब तोहफ़ा !!
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*सुधा शर्मा* 
राजिम (छत्तीसगढ़)
30.09.2018



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वसंत ऋतु आई

चल रही मदमस्त पुरवाई 

आई आली, वसंत ऋतु आई।

महक उठी महुआ मतवारी 

बौरा गए आम्र की डारी
ओढ़कर वसुधा नवल चुनरिया 
ले उठी पोर पोर अंगड़ाई

आई आली वसंत ऋतु आई


नव कोपल हैं पल्लवित किसलय

झूम उठे ज्यों हो मदिरामय 
तन मन रेशमी चुभन जगाती
महक महक उठी पुरवाई 

आई आली वसंत ऋतु आई


नूतन उल्लास उमंगों का पलना 

ले आया फागुन अंगना अंगना
मादक गंध ले उठी अल्हड़ता
नवयौवन की तरुणाई 

आई आली वसंत ऋतु आई 


स्वरचित 

सुधा शर्मा 
राजिम (छत्तीसगढ़)

6-10-2018


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टूटे ना ये पाश प्रिये* 

ये शुभ दिन हो चिर- चिर
तक बस यही अभिलाष प्रिये।
पावन सरस अनुरागी मन का 
सदा रहो सुहाग प्रिये।

इस अकिंचन वसुधा की साँसों का 
सदा रहो आकाश प्रिये ।
मधुप तुम, मधुरस तुम ही
तुम ही हो मधुमास प्रिये।

तुमसे ही मुस्कान मेरी 
जीवन की हर आस प्रिये। 
तुमसे ही महका घर आँगन 
मेरा हृदयाकाश प्रिये।

नीर -क्षीर अपना जीवन 
सुरभित ज्यूं मलयज- सुमन 
छूटे चाहे जग के बंधन 
टूटे ना ये पाश प्रिये ।

सुख- दुख में चले संग- संग हम 
ले हाथों में हाथ प्रिये।
जीवन के संघर्षों में हम
रचें नवल इतिहास प्रिये।

जलती रहे नेह की बाती 
प्रतिपल साँस साँस प्रिये।
गाते रहें मधु-मिलन गीत हम 
जीवन का अंदाज प्रिये। 
स्वरचित 
सुधा शर्मा 
राजिम (छत्तीसगढ़)

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जय जय शीतला महारानी। 
जयति जय आदि शक्ति भवानी।।


हे जगजननी मंगल करनी।
जग तारिणी संताप हरणी।।

आशिष दे सबको महतारी ।
चरण शरण सर्वदा सुखारी।।

अवनि अंबर हैं पद तुम्हारे।
चाँद सूरज हैं नयन सुखारे।।

माता सृष्टि की धूप छैया। 
जगमग जीव की ज्योति मैया।।

मात हर रूप समष्टि साक्षी।
हो नित मुदित अभय वर दात्री।।

अभिन्न रूप भिन्न नाम धरे।
असुर निकंदनी भव भय हरे।।

मात जगजननी जगदम्बिका।
जग कर्म तारण संहारिका।।

जो चरणों में ध्यान लगावै। 
मिटे संताप शुभ फल पावै ।।

ममता घट अखंड वरदानी।
शिव प्रिया माँ गौरी शिवानी।।

क्रोध रूप विकरारी माता।
तुम ही चंडी काली माता।।

शान्ति रूप शीतला माता।
वर मुद्रा सुख शान्ति प्रदाता।।

नमन नमन हे माता रानी। 
रखूं चरणों में जिन्दगानी।।

बस इतनी है आस हमारी। 
विनती सुन लो माता प्यारी ।।

सहज सरल जीवन पथ देना। 
डोलूं कहीं तो थाम लेना

स्वरचित 
सुधा शर्मा राजिम छत्तीसगढ़ 
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