लेखक परिचय
सत्य प्रकाश सिंह
आत्मज स्वर्गीय मोती लाल सिंह
भार्या श्रीमती डॉ अंजना सिंह ईश्वर शरण बालिका इंटर कॉलेज प्रयागराज।
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
सत्य प्रकाश सिंह
आत्मज स्वर्गीय मोती लाल सिंह
भार्या श्रीमती डॉ अंजना सिंह ईश्वर शरण बालिका इंटर कॉलेज प्रयागराज।
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
गृह जनपद मिर्जापुर उत्तर प्रदेश
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दिनांक-01/01/2020
विषय-नव/संकल्प
व्योम का मै प्रेम लिखूं
या लिखूं मै दर्द भू का
शून्य मेरे सामने खड़ा
या हर्ष का संकल्प लिखूं।।
सिसकते चांद प्यासे रवि का
नाद वीणा का अर्ज लिखूं
मन पुलकित तन व्याकुल
स्पर्श का विकल्प लिखूं।।
संघर्षों की ज्वाला में जलकर
इच्छाओं का विकल्प लिखूं
अंगारों का प्रबल प्रहार सहकर
अधर्म का प्रश्न ज्वलंत लिखूं।।
आंधीयारों का जश्न लिखूं
या तड़प उजाले की लिखूं
व्यथित धरा है तीब्र तपन से
किसका मैं उदगार लिखूं।।
संकल्पों का इतिहास लिखूं
या लिखूं मैं स्वर्ग का प्यास
कलम तड़पती उद्गारो से
अभ्यासो का परिहास लिखूं।।
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
विषय-नव/संकल्प
व्योम का मै प्रेम लिखूं
या लिखूं मै दर्द भू का
शून्य मेरे सामने खड़ा
या हर्ष का संकल्प लिखूं।।
सिसकते चांद प्यासे रवि का
नाद वीणा का अर्ज लिखूं
मन पुलकित तन व्याकुल
स्पर्श का विकल्प लिखूं।।
संघर्षों की ज्वाला में जलकर
इच्छाओं का विकल्प लिखूं
अंगारों का प्रबल प्रहार सहकर
अधर्म का प्रश्न ज्वलंत लिखूं।।
आंधीयारों का जश्न लिखूं
या तड़प उजाले की लिखूं
व्यथित धरा है तीब्र तपन से
किसका मैं उदगार लिखूं।।
संकल्पों का इतिहास लिखूं
या लिखूं मैं स्वर्ग का प्यास
कलम तड़पती उद्गारो से
अभ्यासो का परिहास लिखूं।।
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
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दिनांक-31/12/2019
विषय-रात/रजनी/विभावरी
सारे आनंद पीकर मैं मौन हूं
रजनी के अंगों पर...........?
यह कैसी अनजानी रात आई.............
व्यथित हृदय मंद मंद अकुलाई...............
एक अजीब सा खालीपन
स्याह अंधेरा था एकाकीपन
उथला- पुथला सा था मेरा मन
ढूंढता एहसासों का सन्नाटा पन
दोनों रहते थे संग संग
एक तो था खालीपन
एक तो था एकाकीपन
यह कैसा परिचय रजनी के अंगों से
एक अपरिचित शख्स से
प्रखर हो रहे मेरे शब्द
उमड़े जज्बातों के अश्क से
यह प्रतिबिंब है, या एक छलवा
प्रश्न अनेको मन में उठते
रजनी है कैसा ए तेरा जलवा
रजनी का एक सन्नाटा जीवन में आया.....................
हृदय की जर्जर तारों से खेलें
मन की अनसुनी चाहत से वो
भावनाओं के कोरे धागों को छेड़ें
शून्य संज्ञा हीन मन के भावों को
असंतृप्त अकुलाहट को झंझोरे
फिर भी हारे मन की चाह को
असंख्य बार कोमल धागों में पिरोरे
एक एकांत जीवन में आयी...?
एक प्रतीक्षा को मैं आलिंगन लगाया
सुन ए मेरे अशांत मन
चिर प्रतीक्षित के मीत
कोई कहता है प्रतीक्षा तो
स्वयं में है एक प्रीत
युगों से मेरे मन प्रतीक्षारत
तुम अब प्रतीक्षा के युग ले लो
जगा हूं मैं मलयलीन अलको से
नींद के पलकों को मुझको दे दो
तंद्रा भंग हुई अब मेरी
व्यस्त लम्हों की मजार पे
कशिश भरी रह गई दिल में
गुमनाम रंजिशो के द्वार पे
स्वरचित....
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज
विषय-रात/रजनी/विभावरी
सारे आनंद पीकर मैं मौन हूं
रजनी के अंगों पर...........?
यह कैसी अनजानी रात आई.............
व्यथित हृदय मंद मंद अकुलाई...............
एक अजीब सा खालीपन
स्याह अंधेरा था एकाकीपन
उथला- पुथला सा था मेरा मन
ढूंढता एहसासों का सन्नाटा पन
दोनों रहते थे संग संग
एक तो था खालीपन
एक तो था एकाकीपन
यह कैसा परिचय रजनी के अंगों से
एक अपरिचित शख्स से
प्रखर हो रहे मेरे शब्द
उमड़े जज्बातों के अश्क से
यह प्रतिबिंब है, या एक छलवा
प्रश्न अनेको मन में उठते
रजनी है कैसा ए तेरा जलवा
रजनी का एक सन्नाटा जीवन में आया.....................
हृदय की जर्जर तारों से खेलें
मन की अनसुनी चाहत से वो
भावनाओं के कोरे धागों को छेड़ें
शून्य संज्ञा हीन मन के भावों को
असंतृप्त अकुलाहट को झंझोरे
फिर भी हारे मन की चाह को
असंख्य बार कोमल धागों में पिरोरे
एक एकांत जीवन में आयी...?
एक प्रतीक्षा को मैं आलिंगन लगाया
सुन ए मेरे अशांत मन
चिर प्रतीक्षित के मीत
कोई कहता है प्रतीक्षा तो
स्वयं में है एक प्रीत
युगों से मेरे मन प्रतीक्षारत
तुम अब प्रतीक्षा के युग ले लो
जगा हूं मैं मलयलीन अलको से
नींद के पलकों को मुझको दे दो
तंद्रा भंग हुई अब मेरी
व्यस्त लम्हों की मजार पे
कशिश भरी रह गई दिल में
गुमनाम रंजिशो के द्वार पे
स्वरचित....
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज
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दिनांक-30/12/3019
विषय-बीता साल
जो बीत गई सो बीत गई
तकदीर से शिकवा कौन करें।
पतझड़ की जो साल बीत गई
उड़ते पत्तों का पीछा कौन करें।।
कर्मभूमि सुरभित करके
दिग- दिगंत में छा जाये।
बीते साल के घोर तिमिर को
नभ, जल, थल, से दूर भगाएं।।
कुछ ऐसा कर नश्वर काया
नाम जग मे अमर हो जाए।
है महान व्यक्ति वही जो
बीते साल को भूल जाए।।
वह क्या जाने दर्द भला
क्या भूख और क्या प्यास।
बीता साल में हर एक पल
जीवन का हास और परिहास।।
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
विषय-बीता साल
जो बीत गई सो बीत गई
तकदीर से शिकवा कौन करें।
पतझड़ की जो साल बीत गई
उड़ते पत्तों का पीछा कौन करें।।
कर्मभूमि सुरभित करके
दिग- दिगंत में छा जाये।
बीते साल के घोर तिमिर को
नभ, जल, थल, से दूर भगाएं।।
कुछ ऐसा कर नश्वर काया
नाम जग मे अमर हो जाए।
है महान व्यक्ति वही जो
बीते साल को भूल जाए।।
वह क्या जाने दर्द भला
क्या भूख और क्या प्यास।
बीता साल में हर एक पल
जीवन का हास और परिहास।।
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
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दिनांक-28/12/2019
विषय- नश्वर
भौतिक मन एक व्यर्थ है
यह असंतृप्त मन निर्वस्त्र है
न मन में एक हार है
न मन में एक जीत है
जिंदगी के जाम में
घमंड से ना प्रीति है
शौर्य के शान में
बलिदानों की एक जीत है।
अधरों की मुस्कानों में
स्वरों की एक गीत है।
निःशब्द शरीर व्यर्थ है
न जीत है ,न हर्ष है
अंतरनाद का उत्कर्ष है।
अमूर्त सपनों का संघर्ष है
झुका नहीं हूँ निराश में
डिगा नहीं हूँ हताश में
विराट देह एक द्वंद है।
चिर जगत निर्द्धंद्व..........
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
विषय- नश्वर
भौतिक मन एक व्यर्थ है
यह असंतृप्त मन निर्वस्त्र है
न मन में एक हार है
न मन में एक जीत है
जिंदगी के जाम में
घमंड से ना प्रीति है
शौर्य के शान में
बलिदानों की एक जीत है।
अधरों की मुस्कानों में
स्वरों की एक गीत है।
निःशब्द शरीर व्यर्थ है
न जीत है ,न हर्ष है
अंतरनाद का उत्कर्ष है।
अमूर्त सपनों का संघर्ष है
झुका नहीं हूँ निराश में
डिगा नहीं हूँ हताश में
विराट देह एक द्वंद है।
चिर जगत निर्द्धंद्व..........
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
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नेतृत्व
अब मेरे नेतृत्व मुझसे प्रश्न करते हैं
जो कभी थे कचरे के कनस्तर
वो अब मुझ पर तंज कसते हैं
आंखें हैं नम , खादी मे है उमंग
मेरे अधर हंस के कहते हैं
वो मुझ पर वार तो नहीं करते
बल्कि असह्य व्यंग कसते हैं
वाणी उनके भुजंग डसते हैं
उनकी काया छिन्न भिन्न होती हैं
फिर भी हम लाल रुधिर के संग रहते हैं।
फिर भी वो हमारे अंतर्मन में रहते हैं
स्वरचित
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
अब मेरे नेतृत्व मुझसे प्रश्न करते हैं
जो कभी थे कचरे के कनस्तर
वो अब मुझ पर तंज कसते हैं
आंखें हैं नम , खादी मे है उमंग
मेरे अधर हंस के कहते हैं
वो मुझ पर वार तो नहीं करते
बल्कि असह्य व्यंग कसते हैं
वाणी उनके भुजंग डसते हैं
उनकी काया छिन्न भिन्न होती हैं
फिर भी हम लाल रुधिर के संग रहते हैं।
फिर भी वो हमारे अंतर्मन में रहते हैं
स्वरचित
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
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दिनांक-26/12/2019
विषय-हसीं मौसम
दमक उठी धरा हँसी मौसम के आने से...
खिल गई पंखुड़ियां पुरा मौसम के जाने से....।.
फैल रही है नई ताजगी
नए मौसम के आने से।
बहने लगी मस्त बयारे
नील गगन के तराने से।
हिल रही हैं आम्र की डालियां
मंद हवा के झोंकों से।
प्यारी सी मुस्कान है लेने लगी
नव विहान कलियों के स्रोतों से।
मोती जैसा चमक रहा
उसके अग्रभाग का प्यारा प्याला।
फिर जग में फैल रहा
दांडिम रंग का लाल उजाला।
शून्य गगन में कोलाहल कर
आगे बढ़ता खग दल।
प्रभाकर के स्वागत को
सहसा महक उठा है कमल दल।
ये मदमस्त नजारा लगता है
सूर्योदय के अरुणोदय का।
तब धरा से नाता जुड़ता
स्वर्णिम सतरंगी डोरो का।
खेलने लगी प्रभाकर की किरणें
जल की चंचल लहरों से।
धरती सजने लगी
इंद्रधनुष के सतरंगी रंगों से।
इसे देखकर चमक उठे
हंसो के दल प्यारे।
सतरंगी सूर्य स्यंदन चमक रहे
नदियों के किनारे।
एक नन्ही कली भी बाट देख रही
दिनकर के उजाले की...
मन उद्वेलित होता मधुरस
प्रभाकिरन के आने से
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज
विषय-हसीं मौसम
दमक उठी धरा हँसी मौसम के आने से...
खिल गई पंखुड़ियां पुरा मौसम के जाने से....।.
फैल रही है नई ताजगी
नए मौसम के आने से।
बहने लगी मस्त बयारे
नील गगन के तराने से।
हिल रही हैं आम्र की डालियां
मंद हवा के झोंकों से।
प्यारी सी मुस्कान है लेने लगी
नव विहान कलियों के स्रोतों से।
मोती जैसा चमक रहा
उसके अग्रभाग का प्यारा प्याला।
फिर जग में फैल रहा
दांडिम रंग का लाल उजाला।
शून्य गगन में कोलाहल कर
आगे बढ़ता खग दल।
प्रभाकर के स्वागत को
सहसा महक उठा है कमल दल।
ये मदमस्त नजारा लगता है
सूर्योदय के अरुणोदय का।
तब धरा से नाता जुड़ता
स्वर्णिम सतरंगी डोरो का।
खेलने लगी प्रभाकर की किरणें
जल की चंचल लहरों से।
धरती सजने लगी
इंद्रधनुष के सतरंगी रंगों से।
इसे देखकर चमक उठे
हंसो के दल प्यारे।
सतरंगी सूर्य स्यंदन चमक रहे
नदियों के किनारे।
एक नन्ही कली भी बाट देख रही
दिनकर के उजाले की...
मन उद्वेलित होता मधुरस
प्रभाकिरन के आने से
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज
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दिनांक-25/12/2019
विषय-तुलसी
मैं तुलसी तासीरे की
औषधि की जो धारे हैं
चोट में टपके जो लहू
आयुर्वेद के हम अंगारे हैं।
हर नजरों में देखो हमको
मैंने कुछ लम्हे हर
आँगन मे गुजारे हैं.......
चली आओ तुलसी तुम
विषय-तुलसी
मैं तुलसी तासीरे की
औषधि की जो धारे हैं
चोट में टपके जो लहू
आयुर्वेद के हम अंगारे हैं।
हर नजरों में देखो हमको
मैंने कुछ लम्हे हर
आँगन मे गुजारे हैं.......
चली आओ तुलसी तुम
चोट का निमंत्रण हो।
चाय की प्याली का
अधर आमंत्रण हो
हर आंगन की तुम
तुम पूज्य .......
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह
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दिनांक-24/12/2019
विषय-प्रचंड
वीरों का वसंत - होता है प्रचंड
हौसला था जिनके दिलों में
जोश जिनकी रगो में था।
सर झुका है उनके सदके
फर्ज जिनके दर पे था।
रक्त धमनियों में उबल रहा
जज्बा जिनके सर पे था।
खड़े थे बारूदो के विध्वंस पे
रूतबा उनका कम न था।
धधक रही थी सीने में ज्वाला
प्रलय उनका प्रचंड था।
अंगार बना था हार उनका
रोष उनका अनंत था।
खंडहर थे दर्द के रास्ते
साहस उनका भुजंग था।
कसक भरी थी अधरों में
लहजा उनका नम ही था
मुद्दतों से मौत ने तरसाया
मृत्यु की आरजू कम न था।
शत्रु दृश्य हो या अदृश्य हो
मौत एहसास का,उनका अंतरंग था।
नफरतों का जुल्म था
शूलो का संग अनंत था।
खड़ी थी बारुदो की आभा
फिर भी प्रदीप्त मन ज्वलंत था।।
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
विषय-प्रचंड
वीरों का वसंत - होता है प्रचंड
हौसला था जिनके दिलों में
जोश जिनकी रगो में था।
सर झुका है उनके सदके
फर्ज जिनके दर पे था।
रक्त धमनियों में उबल रहा
जज्बा जिनके सर पे था।
खड़े थे बारूदो के विध्वंस पे
रूतबा उनका कम न था।
धधक रही थी सीने में ज्वाला
प्रलय उनका प्रचंड था।
अंगार बना था हार उनका
रोष उनका अनंत था।
खंडहर थे दर्द के रास्ते
साहस उनका भुजंग था।
कसक भरी थी अधरों में
लहजा उनका नम ही था
मुद्दतों से मौत ने तरसाया
मृत्यु की आरजू कम न था।
शत्रु दृश्य हो या अदृश्य हो
मौत एहसास का,उनका अंतरंग था।
नफरतों का जुल्म था
शूलो का संग अनंत था।
खड़ी थी बारुदो की आभा
फिर भी प्रदीप्त मन ज्वलंत था।।
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
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दिनांक15/10/2019
विषय-अनंत
अंतर्मन के प्रत्यूर से कहता.....
शून्य की गौरव गाथा प्रचंड
अनंत ही है पूर्ण उदर अंश
अनंत तारे , अनंत नक्षत्र
अनंत गगन, अनंत दीप्ति
अनंत मौन का आभास अंत
अनंत को जाने मस्त मलंग
अनंत है एक ज्वलंत प्रसंग
अनंत जीवन मरण का द्वंद
दर्द की अधीरता में अनंत
मुस्कानों की प्रतीक्षा में अनंत
प्रश्न जटिल है प्रत्यूषर से........
अंधेरों का एकाकीपन अनंत
क्यों उथला पुथला है मेरा मन
अनंत मर्म माया है आदि अंत
यह विवेकानंद का विजय स्तंभ
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
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दिनांक17/09/2019
विषय-धुँआ
मौन ओढ़े सभी है, हो रही है तैयारी
राख के नीचे दबी है, जरूर एक चिंगारी
शून्य की गौरव गाथा प्रचंड
अनंत ही है पूर्ण उदर अंश
अनंत तारे , अनंत नक्षत्र
अनंत गगन, अनंत दीप्ति
अनंत मौन का आभास अंत
अनंत को जाने मस्त मलंग
अनंत है एक ज्वलंत प्रसंग
अनंत जीवन मरण का द्वंद
दर्द की अधीरता में अनंत
मुस्कानों की प्रतीक्षा में अनंत
प्रश्न जटिल है प्रत्यूषर से........
अंधेरों का एकाकीपन अनंत
क्यों उथला पुथला है मेरा मन
अनंत मर्म माया है आदि अंत
यह विवेकानंद का विजय स्तंभ
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
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दिनांक17/09/2019
विषय-धुँआ
मौन ओढ़े सभी है, हो रही है तैयारी
राख के नीचे दबी है, जरूर एक चिंगारी
हुकूमते ही नक्सल बनाती है...........
हुकुमते ही चंबल बनाती हैं............
विश्वग्राम के जन्नत
भारत के कुल ग्राम को देखो
यहीं धुआं मैं खोज रहा था
बारूदी गंधो की खुशबू
ठहरो -ठहरो भर लूं इन नथनों में
बारूदी छर्रो की खुशबू
छत्तीसगढ़ का बच्चा-बच्चा
क्यों बिछाता सुरंगों का बिछौना
नक्सलवाद के गोद में पलता
माओवाद का पकड़ लेता नचौना
गतिमान विकास की पहुंच से दूर पड़ा
कुल ग्राम का यह पालना.................
स्वरचित....
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
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दिनांक-12/09/2029
विषय-शहनाई
मिलन की कसक गूंज उठी
हुकुमते ही चंबल बनाती हैं............
विश्वग्राम के जन्नत
भारत के कुल ग्राम को देखो
यहीं धुआं मैं खोज रहा था
बारूदी गंधो की खुशबू
ठहरो -ठहरो भर लूं इन नथनों में
बारूदी छर्रो की खुशबू
छत्तीसगढ़ का बच्चा-बच्चा
क्यों बिछाता सुरंगों का बिछौना
नक्सलवाद के गोद में पलता
माओवाद का पकड़ लेता नचौना
गतिमान विकास की पहुंच से दूर पड़ा
कुल ग्राम का यह पालना.................
स्वरचित....
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
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दिनांक-12/09/2029
विषय-शहनाई
मिलन की कसक गूंज उठी
झनक उठी की झाझर की शहनाई।
मेरा मस्तक सहलाकर
मुझसे बोली प्रचंड पुरवाई।।
पास ही कहीं बज रही है
प्रणय के झाझर की शहनाई।।
सुनकर के प्रणय की शहनाई
मेरी आंखें लड़ियां से भर आई।।
अंबर बीच ठहर चंद्रमा
लगा मुझे समझाने।
उसी क्षण टूटा नभ से एक तारा
तब मेरी तबीयत घबराई।।
मैं कली अकेली बगिया की
देख माली को मैं मुस्काई।
मंदिम मंदिम व्यथित रागिनी
आगोश के उन्मादों ने मुझे ललचाई
टूटे तार हृदय वीणा के
अश्रु की अविरल धार बह आई।।
खलबली मची है एकांत निशा में
कैद है आज मेरी तन्हाई।
चंद बूंदे मोतियों की छलक उठती
मेरे नैनो को देखो इनमें है अँगड़ाई।
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
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नमन-माँ वीणापाणि को
दिनांक-08/07/2019
विषय - दुर्भाग्य
मेरा मस्तक सहलाकर
मुझसे बोली प्रचंड पुरवाई।।
पास ही कहीं बज रही है
प्रणय के झाझर की शहनाई।।
सुनकर के प्रणय की शहनाई
मेरी आंखें लड़ियां से भर आई।।
अंबर बीच ठहर चंद्रमा
लगा मुझे समझाने।
उसी क्षण टूटा नभ से एक तारा
तब मेरी तबीयत घबराई।।
मैं कली अकेली बगिया की
देख माली को मैं मुस्काई।
मंदिम मंदिम व्यथित रागिनी
आगोश के उन्मादों ने मुझे ललचाई
टूटे तार हृदय वीणा के
अश्रु की अविरल धार बह आई।।
खलबली मची है एकांत निशा में
कैद है आज मेरी तन्हाई।
चंद बूंदे मोतियों की छलक उठती
मेरे नैनो को देखो इनमें है अँगड़ाई।
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
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नमन-माँ वीणापाणि को
दिनांक-08/07/2019
विषय - दुर्भाग्य
दुर्भाग्य का नायक....
यह कैसी अनजानी आहट आई.............
व्यथित हृदय मंद मंद अकुलाई...............
एक अजीब सा खालीपन
स्याह अंधेरा था एकाकीपन
उथला- पुथला सा था मेरा मन
ढूंढता एहसासों का सन्नाटा पन
दोनों रहते थे संग संग
एक तो था खालीपन एक तो था एकाकीपन
यह कैसा परिचय......... दुर्भाग्य के
एक अपरिचित शख्स से
प्रखर हो रहे मेरे शब्द
उमड़े जज्बातों के अश्क से
यह प्रतिबिंब है, या एक छलवा
प्रश्न अनेको मन में उठते
है कैसा ए तेरा जलवा
एक सन्नाटा जीवन में आया.......... दुर्भाग्य का...
हृदय की जर्जर तारों से खेलें
मन की अनसुनी चाहत से वो
भावनाओं के कोरे धागों को छेड़ें
शून्य संज्ञा हीन मन के भावों को
असंतृप्त अकुलाहट को झंझोरे
फिर भी हारे मन की चाह को
असंख्य बार कोमल धागों में पिरोरे
एक एकांत जीवन में आया............ दुर्भाग्य का..।।
एक प्रतीक्षा को मैं आलिंगन लगाया
सुन ए मेरे अशांत मन
चिर प्रतीक्षित के मीत
कोई कहता है प्रतीक्षा तो
स्वयं में है एक प्रीत
युगों से मेरे मन प्रतीक्षारत
तुम अब प्रतीक्षा के युग ले लो
जगा हूं मैं मलयलीन अलको से
नींद के पलकों को मुझको दे दो
तंद्रा भंग हुई अब मेरी
व्यस्त लम्हों की मजार पे
कशिश भरी रह गई दिल में
गुमनाम रंजिशो के द्वार पे
स्वरचित....
सर्वाधिकार सुरक्षित
@#$
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
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दिनांक-05/06/2019
【 हो संतुलित पर्यावरण अपना】
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@ यह कैसी अनजानी आहट आई.............
व्यथित हृदय मंद मंद अकुलाई...............
एक अजीब सा खालीपन
स्याह अंधेरा था एकाकीपन
उथला- पुथला सा था मेरा मन
ढूंढता एहसासों का सन्नाटा पन
दोनों रहते थे संग संग
एक तो था खालीपन एक तो था एकाकीपन
यह कैसा परिचय......... दुर्भाग्य के
एक अपरिचित शख्स से
प्रखर हो रहे मेरे शब्द
उमड़े जज्बातों के अश्क से
यह प्रतिबिंब है, या एक छलवा
प्रश्न अनेको मन में उठते
है कैसा ए तेरा जलवा
एक सन्नाटा जीवन में आया.......... दुर्भाग्य का...
हृदय की जर्जर तारों से खेलें
मन की अनसुनी चाहत से वो
भावनाओं के कोरे धागों को छेड़ें
शून्य संज्ञा हीन मन के भावों को
असंतृप्त अकुलाहट को झंझोरे
फिर भी हारे मन की चाह को
असंख्य बार कोमल धागों में पिरोरे
एक एकांत जीवन में आया............ दुर्भाग्य का..।।
एक प्रतीक्षा को मैं आलिंगन लगाया
सुन ए मेरे अशांत मन
चिर प्रतीक्षित के मीत
कोई कहता है प्रतीक्षा तो
स्वयं में है एक प्रीत
युगों से मेरे मन प्रतीक्षारत
तुम अब प्रतीक्षा के युग ले लो
जगा हूं मैं मलयलीन अलको से
नींद के पलकों को मुझको दे दो
तंद्रा भंग हुई अब मेरी
व्यस्त लम्हों की मजार पे
कशिश भरी रह गई दिल में
गुमनाम रंजिशो के द्वार पे
स्वरचित....
सर्वाधिकार सुरक्षित
@#$
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
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दिनांक-05/06/2019
【 हो संतुलित पर्यावरण अपना】
हो संतुलित अपनी ये धरा
हरियाली से हो जीवन भरा
रक्षित हो जीव जंतु नभ थल के
प्रकृति पाताल गगन तारण तल के
क्यों पेड़ काट रहे हो...?
हम अपने पैरों को प्रतिदिन
क्यों मिटा रहे सौंदर्य स्वप्न को
वसुधा के अंगों को गिन- गिन
क्यों रणभूमि में बदल रहे
आश्रय दाई सब अभयारण्य चुन- चुन
नदियों की सांसे रुकी- रुकी
सागर प्यासे खडे हुए
प्रकृति है मौन विवश खड़ी थकी-थकी
क्यों बनूं दुःशासन के अनुयाई?
करते धरती का चीर हरण
हां लुप्तप्रायः हो गए बहुत से
देवदार ,साखू के घट- परण
है माघ पसीने में लथपथ
अपनी अवनी कहती सत्य पथ
अब गगन में विचरते खग गिरते
गुम हो गए हो कहां वो आँशिया के शरण
आओ करें हम प्राण प्रतिष्ठा
करें अब तन मन से धरा का वरण
गगन की धूमिल हुई क्यों चमक....?
गगनचुंबी तारों की धूमिल हुई चमक
चिमनियों के विषैले धुएं की भभक
चहल-पहल अब वो कहां खो गई
पूछो अब अंधे कुएँ की कसक
ओजोन क्षत्र भी क्षीण हुआ
हो रहे बहुत बड़े बड़े छेद
तपता सीना तपती माथा
हिम पिघला कहता अपनी गाथा
स्वरचित....
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
दिनांक-11/03/2019
निर्विवाद मेघ गर्जन करते आगाज......
.
चहूँ और प्रकृति करती आह्लालाद
गर्जन से मेघ होते आज आजाद
प्राची का अरुणिमा मस्त बिहान
इंद्रदेव आते सवार होकर विमान
रुनझुन -रुनझुन वायु के मंद स्वर
नीर-नीर से होती धरा तरुवर
बदली की रिमझिम फुहार
कोयल गाए मेघ मल्हार
तितली का सतरंगी आंचल
सलिल तृप्ति करता बादल
भंवरों के मीठे अनुस्वार!
अंजलि में भर लूं तेरा प्यार
त्यागूँ मन के विरह बिराग
किरणों की लडियो का माला पहनू मैं
पल -पल गाउँ जीवन के अतुल्य राग
छिपा है कहीं वेदन का अवसाद
मैं गाऊँ मल्हार राग आज
हरियाली से हो जीवन भरा
रक्षित हो जीव जंतु नभ थल के
प्रकृति पाताल गगन तारण तल के
क्यों पेड़ काट रहे हो...?
हम अपने पैरों को प्रतिदिन
क्यों मिटा रहे सौंदर्य स्वप्न को
वसुधा के अंगों को गिन- गिन
क्यों रणभूमि में बदल रहे
आश्रय दाई सब अभयारण्य चुन- चुन
नदियों की सांसे रुकी- रुकी
सागर प्यासे खडे हुए
प्रकृति है मौन विवश खड़ी थकी-थकी
क्यों बनूं दुःशासन के अनुयाई?
करते धरती का चीर हरण
हां लुप्तप्रायः हो गए बहुत से
देवदार ,साखू के घट- परण
है माघ पसीने में लथपथ
अपनी अवनी कहती सत्य पथ
अब गगन में विचरते खग गिरते
गुम हो गए हो कहां वो आँशिया के शरण
आओ करें हम प्राण प्रतिष्ठा
करें अब तन मन से धरा का वरण
गगन की धूमिल हुई क्यों चमक....?
गगनचुंबी तारों की धूमिल हुई चमक
चिमनियों के विषैले धुएं की भभक
चहल-पहल अब वो कहां खो गई
पूछो अब अंधे कुएँ की कसक
ओजोन क्षत्र भी क्षीण हुआ
हो रहे बहुत बड़े बड़े छेद
तपता सीना तपती माथा
हिम पिघला कहता अपनी गाथा
स्वरचित....
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
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दिनांक-11/03/2019
निर्विवाद मेघ गर्जन करते आगाज......
.
चहूँ और प्रकृति करती आह्लालाद
गर्जन से मेघ होते आज आजाद
प्राची का अरुणिमा मस्त बिहान
इंद्रदेव आते सवार होकर विमान
रुनझुन -रुनझुन वायु के मंद स्वर
नीर-नीर से होती धरा तरुवर
बदली की रिमझिम फुहार
कोयल गाए मेघ मल्हार
तितली का सतरंगी आंचल
सलिल तृप्ति करता बादल
भंवरों के मीठे अनुस्वार!
अंजलि में भर लूं तेरा प्यार
त्यागूँ मन के विरह बिराग
किरणों की लडियो का माला पहनू मैं
पल -पल गाउँ जीवन के अतुल्य राग
छिपा है कहीं वेदन का अवसाद
मैं गाऊँ मल्हार राग आज
स्वरचित....
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
दिनांक 05/02/2019
कागज..........
मन के कोरे कागज पे
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
दिनांक 05/02/2019
कागज..........
मन के कोरे कागज पे
चली लेखनी विचारों की।
मन से ही क्यों पूछ रहे हो
कौन गली है हम बंजारों की।
मन ने छोड़ा जब साथ हमारा
तुमने थामा जब हाथ हमारा
अब चाह नहीं है उपहारों की।
तुम बिन अब अच्छा लगता नहीं
खाली तस्वीर दीवारों की।
मौन एक कथा है बस........
या एक व्यथा है बस..........
द्रवित हृदय के उद्गारो की।
कभी अपने मन से पूछो ?
रहते हो दौलत की इमारत में
खुद को समझो खुद से
आत्मा की अदालत में।
एक ज्वाला है तन में
एक ज्वाला है मन में
एक ज्वाला है वतन में
एक ज्वाला है जहन में
कैसे हो ज्वाला का दहन
एक भड़की है आग
इस व्याग्र मन में
क्यू एकांत चाहे मेरा मन
मन की चाहत ,मन की भाषा
समझ ना पाए अब तक कोई
गजब है एक ऐसी जिज्ञासा
स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित@#$
सत्य प्रकाश सिंह
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
दिनांक -13/8/2018
स्वेत आवारा बादल ......
मन से ही क्यों पूछ रहे हो
कौन गली है हम बंजारों की।
मन ने छोड़ा जब साथ हमारा
तुमने थामा जब हाथ हमारा
अब चाह नहीं है उपहारों की।
तुम बिन अब अच्छा लगता नहीं
खाली तस्वीर दीवारों की।
मौन एक कथा है बस........
या एक व्यथा है बस..........
द्रवित हृदय के उद्गारो की।
कभी अपने मन से पूछो ?
रहते हो दौलत की इमारत में
खुद को समझो खुद से
आत्मा की अदालत में।
एक ज्वाला है तन में
एक ज्वाला है मन में
एक ज्वाला है वतन में
एक ज्वाला है जहन में
कैसे हो ज्वाला का दहन
एक भड़की है आग
इस व्याग्र मन में
क्यू एकांत चाहे मेरा मन
मन की चाहत ,मन की भाषा
समझ ना पाए अब तक कोई
गजब है एक ऐसी जिज्ञासा
स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित@#$
सत्य प्रकाश सिंह
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दिनांक -13/8/2018
स्वेत आवारा बादल ......
पावस की सांझ रंगीली........
धन गर्जन से भर दो बन
तर कर दो पपीहे का मन
यह पावस की सांझ रंगीली
काली घटाओं की रात नशीली
आज घेरे हैं मेरे बादल साथी
भीग रहा है भूवि का आंगन
उठो -उठो रे आया सावन
यह है पपीहे की रटन
दम तोड़ रही है
शबरी की घुटन
सारस की जोड़ी सरोवर में
मधुर मिलन करते तरुवर में
उपवन -उपवन कांति कामिनी
गगन गुंजाये मेघ दामिनी
पवन चलाए बाण बूंद के
सहती धरती आंख मूंद के
बेलो से अठखेली करते
प्रेम पराग ठिठोली करते
मोर मुकुट को पहने वन को जाते
सतरंग चुनर ओढ़े पपीहा गीत गाते
अरे पागल बादल बरसो....
आद्र सुख के कर क्रंदन में
प्यासी धरा के स्यंदन में
तरुण तरुवो के नंदन में
चंदन बन के गुंजन मे
वर्षा के प्रिय स्वर उर,
में बुनते सम्मोहन
प्रणय कीट विहग करते,
धवल चांदनी के गगन मे
मेघो के कोमल मन
,श्यामल तरुवो के मनमोहन
मन में भू अलग लालसा लिए
, खिलखिलाये गोपन
इंद्रधनुष के झूले में खिल जाते
, प्यासे पपीहे का चितवन
स्वरचित...
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
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विषय- बादल
नमन -भावो के मोती
मेघ से स्वर्णिम आशा....
धन गर्जन से भर दो बन
तर कर दो पपीहे का मन
यह पावस की सांझ रंगीली
काली घटाओं की रात नशीली
आज घेरे हैं मेरे बादल साथी
भीग रहा है भूवि का आंगन
उठो -उठो रे आया सावन
यह है पपीहे की रटन
दम तोड़ रही है
शबरी की घुटन
सारस की जोड़ी सरोवर में
मधुर मिलन करते तरुवर में
उपवन -उपवन कांति कामिनी
गगन गुंजाये मेघ दामिनी
पवन चलाए बाण बूंद के
सहती धरती आंख मूंद के
बेलो से अठखेली करते
प्रेम पराग ठिठोली करते
मोर मुकुट को पहने वन को जाते
सतरंग चुनर ओढ़े पपीहा गीत गाते
अरे पागल बादल बरसो....
आद्र सुख के कर क्रंदन में
प्यासी धरा के स्यंदन में
तरुण तरुवो के नंदन में
चंदन बन के गुंजन मे
वर्षा के प्रिय स्वर उर,
में बुनते सम्मोहन
प्रणय कीट विहग करते,
धवल चांदनी के गगन मे
मेघो के कोमल मन
,श्यामल तरुवो के मनमोहन
मन में भू अलग लालसा लिए
, खिलखिलाये गोपन
इंद्रधनुष के झूले में खिल जाते
, प्यासे पपीहे का चितवन
स्वरचित...
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
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विषय- बादल
नमन -भावो के मोती
मेघ से स्वर्णिम आशा....
धरा आकर कह रही है....
मेघ से अपने पिया का
गूढ़ चुंबन पाऊं आज
देह तृप्ति हो रसधार से
सावन की सुधि आई आज
मेघ गंभीर अकुलाई आज
मिल गया मुझे आज
असिंचित अंबर का प्यास
गंध व्याकुल कर गई
मेरी मूर्छित श्वास को
स्पर्श छुवन भड़क गई
उस सुनहली आग को
बूंद प्यासी स्वयं थी
पी रही थी रूप को
झिलमिलाती स्वप्न दूर
नीर तृप्ति कर रही थी भू को.....
स्वरचित..
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज इलाहाबाद
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विषय- सौंदर्य
दिनांक-06/11/18
मेघ से अपने पिया का
गूढ़ चुंबन पाऊं आज
देह तृप्ति हो रसधार से
सावन की सुधि आई आज
मेघ गंभीर अकुलाई आज
मिल गया मुझे आज
असिंचित अंबर का प्यास
गंध व्याकुल कर गई
मेरी मूर्छित श्वास को
स्पर्श छुवन भड़क गई
उस सुनहली आग को
बूंद प्यासी स्वयं थी
पी रही थी रूप को
झिलमिलाती स्वप्न दूर
नीर तृप्ति कर रही थी भू को.....
स्वरचित..
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज इलाहाबाद
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विषय- सौंदर्य
दिनांक-06/11/18
तुम हो कुसुमित पुष्प प्रिये
मैं हूं तेरा निश्चल अनुरागी
हृदय द्वार पर खिल जाओ तुम
बना रहूंगा अविरल सहभागी
पायल की हर झुनझुन पर तेरे
प्राण न्योछावर है सारा
मलयलिन अलको पर ओढे़
नभ के चादर का हर तारा
नयनों के शीतल झरने में
गजगामिनी सी पलकें भारी
बांध लिया आगोशो के ओसों में
मेघो का मँडराना है जारी
कंगन की हर खनखन पर तेरे
रचूँ छंद मैं जग का सारा
जब -जब महके के आंचल तेरा
जगमग -जगमग चमके
नभ मंडल का हर तारा
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
जलते हुए चिराग से पूछा, तू कौन है ?
प्रत्युत्तर में बुझ गया, शेष रहा बस मौन है।।
गुल हुआ किसके हस्ती का चिराग।
मैं हूं तेरा निश्चल अनुरागी
हृदय द्वार पर खिल जाओ तुम
बना रहूंगा अविरल सहभागी
पायल की हर झुनझुन पर तेरे
प्राण न्योछावर है सारा
मलयलिन अलको पर ओढे़
नभ के चादर का हर तारा
नयनों के शीतल झरने में
गजगामिनी सी पलकें भारी
बांध लिया आगोशो के ओसों में
मेघो का मँडराना है जारी
कंगन की हर खनखन पर तेरे
रचूँ छंद मैं जग का सारा
जब -जब महके के आंचल तेरा
जगमग -जगमग चमके
नभ मंडल का हर तारा
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
जलते हुए चिराग से पूछा, तू कौन है ?
प्रत्युत्तर में बुझ गया, शेष रहा बस मौन है।।
गुल हुआ किसके हस्ती का चिराग।
किसके घर जला घृत का चिराग।।
क्यों गिरता पंखुड़ियों से पराग।
क्यों जलती दिवाली की आग।।
कुबेर के घर ही दिवाली सजती।
निर्धन के घर लक्ष्मी न ठहरती।।
नफरत के तम फिर भी न छँटते
अमीरों की दहलीजे सजती
गरीबों की चौखट खाली
कैसे खिल सकती है
खुशहाली की फुलवारी
कैसे मिल सकती है
वैभव की हरियाली
दीपक भी जा बैठे आज
बहु मंजिली इमारत पर
वहीं झिलमिलाती उनकी रोशनीयां
बिखर जायेगा एक दिन टूट कर
शीश महल का ख्वाब।।
किरणे तब चूभने लगेंगी
शीश महल को मिलेगा दर्द एक नायाब।।
कैसी अजब विडंबना
दीपक निकला इतना क्रूर।।
तिमिर जैसा घाव दिवाली का
बन गया इतना नासूर।।
अधियारों के सामने
दिया खोलें पुर्नविजय के द्वार।।
दीया ही जगमग करें
हर दहलीजो का करे श्रृंगार।।
आज सजेगी दीयों की बारात।
तिमिर भूलेगा अपनी औकात।
सप्तरंग की लड़ियां सजेगी।
धूम-धड़ाके की होगी रात।
हर देहरी पर दीप जले।
अंधकार से युद्ध चले।
हारे अधियारे की घोर कालिमा।
जीते उजियारे की स्वर्ण लालिमा।
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह
केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज इलाहाबाद
क्यों गिरता पंखुड़ियों से पराग।
क्यों जलती दिवाली की आग।।
कुबेर के घर ही दिवाली सजती।
निर्धन के घर लक्ष्मी न ठहरती।।
नफरत के तम फिर भी न छँटते
अमीरों की दहलीजे सजती
गरीबों की चौखट खाली
कैसे खिल सकती है
खुशहाली की फुलवारी
कैसे मिल सकती है
वैभव की हरियाली
दीपक भी जा बैठे आज
बहु मंजिली इमारत पर
वहीं झिलमिलाती उनकी रोशनीयां
बिखर जायेगा एक दिन टूट कर
शीश महल का ख्वाब।।
किरणे तब चूभने लगेंगी
शीश महल को मिलेगा दर्द एक नायाब।।
कैसी अजब विडंबना
दीपक निकला इतना क्रूर।।
तिमिर जैसा घाव दिवाली का
बन गया इतना नासूर।।
अधियारों के सामने
दिया खोलें पुर्नविजय के द्वार।।
दीया ही जगमग करें
हर दहलीजो का करे श्रृंगार।।
आज सजेगी दीयों की बारात।
तिमिर भूलेगा अपनी औकात।
सप्तरंग की लड़ियां सजेगी।
धूम-धड़ाके की होगी रात।
हर देहरी पर दीप जले।
अंधकार से युद्ध चले।
हारे अधियारे की घोर कालिमा।
जीते उजियारे की स्वर्ण लालिमा।
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह
केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज इलाहाबाद
दिनांक-19/12/2019
विषय- क्षमा
क्षमा की मस्तीली फुहार
मधुरिम में संगीत सुनाती
मेघों की ढोल ताप पर
वसुंधरा मंद मंद मुस्काती
रागिनियां मस्त बयारे गाती...
कोई पंछी ना तड़पे....क्षमा करे
उनकी फूटी किस्मत पर
मुक्त गगन में विचरण करते
अवनी ,अंबर के प्रांगण पर
इस कच्चे रेशम के डोर को
जकड़ के रखना हर पोर को
पल में अवनी ,पल में अंबर
पल में सागर, पल में अथाह गागर
समेटे धागों में स्नेह अपार
क्षमा करें हर ................ को
क्या दे दूं मैं एक उपहार..क्षमा का
क्षमा के झूठे इकरार का
या दू द्रोपदी के करार का
या ध्रुपद नरेश का करार
जिसकी अस्मत को लूटे
नीच दुःशासन के दरबार
यह प्रीत क्षमा का बंधन है
नहीं है अधरों का करुण क्रंदन
विषय- क्षमा
क्षमा की मस्तीली फुहार
मधुरिम में संगीत सुनाती
मेघों की ढोल ताप पर
वसुंधरा मंद मंद मुस्काती
रागिनियां मस्त बयारे गाती...
कोई पंछी ना तड़पे....क्षमा करे
उनकी फूटी किस्मत पर
मुक्त गगन में विचरण करते
अवनी ,अंबर के प्रांगण पर
इस कच्चे रेशम के डोर को
जकड़ के रखना हर पोर को
पल में अवनी ,पल में अंबर
पल में सागर, पल में अथाह गागर
समेटे धागों में स्नेह अपार
क्षमा करें हर ................ को
क्या दे दूं मैं एक उपहार..क्षमा का
क्षमा के झूठे इकरार का
या दू द्रोपदी के करार का
या ध्रुपद नरेश का करार
जिसकी अस्मत को लूटे
नीच दुःशासन के दरबार
यह प्रीत क्षमा का बंधन है
नहीं है अधरों का करुण क्रंदन
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नमन -भावों के मोती
माँ शारदे को प्रणाम
दिनांक-30/05/2019
कलम से आज लिख दूं अंगार..
बागी एक सितारा हूँ।
किसी के आहो का आवारा हूँ।
कलम क्यों उगलती आज आग।
अक्षर से ही बनते चिंगारी।
हरदम जलते नभ में शोले
बादल बनते बिजली के क्यारी।
क्यों ही जलती सदैव
अतुल्य भारत की हर नारी।
जिसके नयनों में दीपक जलते
करुण क्रंदन पे विश्व हँसते।
सांसो से झरता स्वप्न पराग।
मन में भरा एक उश्चवास।
हँस के उठते पल में आद्र नयन।
छा जाता जीवन में एक बसंत।
लुट जाता संचित अनुराग।
यह नहीं है जीवन ऋतुराज।
है यह एक घोर अवसाद........?
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह
केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
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अंतर्मन की निश्चलता...का आगाज
किसके सम्मोहन में पागल धरती
मदहोश आकाश है।।
जीवन संघर्षों के पृष्ठभूमि में
आज ओशो का संन्यास है।।
अंतर्द्वंद के निश्चलता में
चंचल मन एक मधुमास है।।
भूख की धूप सलोनी हो
मधुर -मधुर मकरंद आगाज है।।
आंखों में है सुर्ख शोले
तड़प लेखनी का सहवास है।।
कागज का दर्द किससे कहै
स्याही भी आज उदास है।।
ब्रह्म का दर्शन कब मिले
वेदांत शंकर का अंतर्नाद है।।
ध्यान के धुन को मन में बसाये
जमीन की जन्नत बर्बाद है।।
स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित@#1
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
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सत्य प्रकाश सिंह कैसे विद्यापीठ इंटर कॉलेज.
नमन -भावो के मोती
20/05/2019
बेकरार........।
क्यों लौ लड़खड़ा रही है
ये इस मजार की।
जरूर ये कब्र है
किसी बेकरार की।।
सिसकता चांद ,प्यासा कवि
उम्र भर की एक उदासी
रह गई बरकरार।।
एक कशिश दबी रह गई दिल में
गुमनाम रंजिश के द्वार।।
किससे शिकवा मैं करूं
किस पे करूं एतबार।।
जो चराग बुझ गये बेताबी में
कब तक करूं मैं इंतजार।।
स्वरचित
सर्वाधिक सुरक्षित
सती प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कालेज प्रयागराज
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
चित्र लेखन
दिनांक-12/05/2019
जंगलों में बसी निरक्षर आदिवासी माँ-
विस्थापन की त्रासदी
तन के भूगोल इतिहास के गलियारों में
सांद्र मादकता को लिए जिनके पास भूख है।
भूख में दूर-दूर तक पसरी उबड़ -खाबड़ धरती है ।
सपने हैं.....
सपनों का पीछा करते हुये....
आंखों से मेघा बरसे
प्यार पालकी की को तरसे
गोद तुम्हारा सिंहासन
राजा बन कर उस पर बैठे।
ममता के स्पर्शो को छुये
राम राज्य के लुटेरे।
एक अंधेरा बड़ा घना है
कालीमा रात के डर से।
एक ललक है तूफान की
एक फलक है म्यान की
ढूंढ रही हू मै स्वर्णिम ऊषा की लाली
आंचल मेरा श्रम की है मृदुल थाली।।
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
दिनांक-02/06/2019
अधिकारों के आधार पर
स्वतंत्रता की बदली कब बरसेगी..........
हृदय फूल की पंखुड़ियों पर
कर्तव्य बिंदु बनकर कब छलकेगी।
मूक हृदय के स्पंदन में
अस्तित्वों की ज्वाला कब धधकेगी।
युगो-युगो की सुप्त वेदना
अधरों की लहरों पर कब थिरकेगी।
अनुभूति व्यक्त हुई स्नेहिल
गीली आंखों से ,आंसू कब ढलकेगी।
सारे स्नेहिल सत्य हुए यदि
उल्का बनकर टूट- टूट कर कब चमकेगी।।
आशाओं का धवल श्रृंगार बनकर
निर्मोही पाषाणी छाती पर
गंगा बनकर कब निकलेगी।
पीकर सब आनंद मौन हूँ
रजनी के अंगों पर..............
स्वरचित
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयाग राज
अधिकारों के आधार पर
स्वतंत्रता की बदली कब बरसेगी..........
हृदय फूल की पंखुड़ियों पर
कर्तव्य बिंदु बनकर कब छलकेगी।
मूक हृदय के स्पंदन में
अस्तित्वों की ज्वाला कब धधकेगी।
युगो-युगो की सुप्त वेदना
अधरों की लहरों पर कब थिरकेगी।
अनुभूति व्यक्त हुई स्नेहिल
गीली आंखों से ,आंसू कब ढलकेगी।
सारे स्नेहिल सत्य हुए यदि
उल्का बनकर टूट- टूट कर कब चमकेगी।।
आशाओं का धवल श्रृंगार बनकर
निर्मोही पाषाणी छाती पर
गंगा बनकर कब निकलेगी।
पीकर सब आनंद मौन हूँ
रजनी के अंगों पर..............
स्वरचित
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयाग राज
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सुगंध सुमनो की
मुरझाए पराग
फूल उपेक्षित क्यों फूला
महक जाती उर में आग
दोनों ओर प्रेम पलता
पतित पतंगा भी जलता
शीश हिलाकर दीपक कहता
है कितनी विह्वलता
हाय कितना करुण साथ
पथ में विछ जाते पराग
यह अनुराग भरा उन्माद
घुल जाती होठों से विषाद
लुट जाता संचित विराग
कैसा है यह तेरा साथ..।
स्वरचित सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
विषय- परिवर्तन
टूटी कड़िया ,आंसू लड़ियां
मांग रही हैं परिवर्तन।।
भूखी रातें ,नंगे तन
मांगे रहे है परिवर्तन।।
सत्ता करे तांडव नर्तन........
कब्र शहीदों की मांगे परिवर्तन
कफन में लपेटे उनके तन।।
नारी मांगे परिवर्तन
सत्ता करें करुण क्रंदन।।
राम रहीम की धरती मांगे परिवर्तन
ये काबा ये काशी है उत्थान पतन।।
नारी रोये व्याकुल मन, नयनों से गिरे अंजन
नंगे तन के जादूगर नोचें तन
देखो उस बेवा के माथे की शिकन।।
समाज के सूदखोर करें अनंत धन गर्जन।।
कांप उठी सागर की लहरें
संस्कृति मांगे परिवर्तन।।
गली दलितों की मांगे परिवर्तन
भूख के एहसास को ओढ़े
नंगे तन, मौन मन।।
स्वर मांगे परिवर्तन
धुआं उठे आग जले
कब होगा परिवर्तन.....
सर्प उठावे सहस्त्र फन
कुचल ना पावे में मौन मन
कब होगा इनका नियमन
कब होगा परिवर्तन.....
आओ अब करें कीर्ति कुसुम का हम चयन.
कब होगा परिवर्तन...
प्रवह मान जीवन निवर्तन..
मौलिक रचना
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
टूटी कड़िया ,आंसू लड़ियां
मांग रही हैं परिवर्तन।।
भूखी रातें ,नंगे तन
मांगे रहे है परिवर्तन।।
सत्ता करे तांडव नर्तन........
कब्र शहीदों की मांगे परिवर्तन
कफन में लपेटे उनके तन।।
नारी मांगे परिवर्तन
सत्ता करें करुण क्रंदन।।
राम रहीम की धरती मांगे परिवर्तन
ये काबा ये काशी है उत्थान पतन।।
नारी रोये व्याकुल मन, नयनों से गिरे अंजन
नंगे तन के जादूगर नोचें तन
देखो उस बेवा के माथे की शिकन।।
समाज के सूदखोर करें अनंत धन गर्जन।।
कांप उठी सागर की लहरें
संस्कृति मांगे परिवर्तन।।
गली दलितों की मांगे परिवर्तन
भूख के एहसास को ओढ़े
नंगे तन, मौन मन।।
स्वर मांगे परिवर्तन
धुआं उठे आग जले
कब होगा परिवर्तन.....
सर्प उठावे सहस्त्र फन
कुचल ना पावे में मौन मन
कब होगा इनका नियमन
कब होगा परिवर्तन.....
आओ अब करें कीर्ति कुसुम का हम चयन.
कब होगा परिवर्तन...
प्रवह मान जीवन निवर्तन..
मौलिक रचना
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
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दिनांक-२६/०६/२०१९
विषय- इंद्रधनुष
मोती जैसा चमक रहा है
इंद्रधनुष के अग्रभाग का प्यारा प्याला।
फिर जग में फैल रहा
दांडिम रंग का लाल उजाला।
शून्य गगन में कोलाहल कर
आगे बढ़ता खग दल।।
इंद्रधनुष के स्वागत को
सहसा महक उठता कमल दल।।
ये मदमस्त नजारा लगता है
सूर्योदय के अरुणोदय का।।
तब धरा से नाता जुड़ता
स्वर्णिम सतरंगी डोरो का।।
खेलने लगी इंद्रधनुष की किरणें
जल की चंचल लहरों से।।
धरती सजने लगी
इंद्रधनुष के सतरंगी रंगों से।।
इसे देखकर चमक उठे
हंसो के दल प्यारे।।
सतरंगी सूर्य स्यंदन चमक रहे
नदियों के किनारे।।
एक नन्ही कली भी बाट देख रही
इंद्रधनुष के उजाले की।।
मन उद्वेलित होता मधुरस
प्रभाकिरन के आने से।।
स्वरचित...
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज
विषय- इंद्रधनुष
मोती जैसा चमक रहा है
इंद्रधनुष के अग्रभाग का प्यारा प्याला।
फिर जग में फैल रहा
दांडिम रंग का लाल उजाला।
शून्य गगन में कोलाहल कर
आगे बढ़ता खग दल।।
इंद्रधनुष के स्वागत को
सहसा महक उठता कमल दल।।
ये मदमस्त नजारा लगता है
सूर्योदय के अरुणोदय का।।
तब धरा से नाता जुड़ता
स्वर्णिम सतरंगी डोरो का।।
खेलने लगी इंद्रधनुष की किरणें
जल की चंचल लहरों से।।
धरती सजने लगी
इंद्रधनुष के सतरंगी रंगों से।।
इसे देखकर चमक उठे
हंसो के दल प्यारे।।
सतरंगी सूर्य स्यंदन चमक रहे
नदियों के किनारे।।
एक नन्ही कली भी बाट देख रही
इंद्रधनुष के उजाले की।।
मन उद्वेलित होता मधुरस
प्रभाकिरन के आने से।।
स्वरचित...
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज
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दिनांक-२८/०६/२०१९विषय- जनतंत्र
जनतंत्र के पक्ष में...
जनतंत्र का पावन कुंभ लगे
पांच साल में एक बार।।
जनतंत्र को बना दे जन्नत
त्याज करे कुत्सुत विचार।।
संसद के देवालय में एक दीप जला ले
पूजे हम संसद के देवों को
स्वर्णिम रश्मियों से देश सजा ले।।
आओ करे विराट जनतंत्र का श्रृंगार।
जनता के जनतंत्र का असिंचित प्यार।।
जनतंत्र का पावन मंदिर, देवों का उपहार।
पाँच साल में पावन पर्व आये सिर्फ एक बार।।
जनतंत्र के विपक्ष में...
प्रलय मची है चहुँओर हाहाकार
लोहे के पेड़ भी हरे होंगे
नेता कहते बारंबार बारंबार
आकाश से गिरे उल्का अंगार
सत्य ,अहिंसा मौन खड़ा है
घनघोर हैं संकट के द्वार।।
कुछ के लाभ के लिए
बहुतों का पागलपन ...लिये
अभिजन वर्ग का ही हो उद्धार।
गरीब के सपनों का संहार।।
मंत्री जी पढ़े मूल मंत्र
तनिक भी ना सुधरे जनतंत्र
श्वानों को मिलते दूध
अभागे बच्चे अकुलाते भूख
मालिक देते ब्याज व सूद
पापी महलों का अहंकार देखो
जनतंत्र के मूल्य का प्यार देखो
जनतंत्र के ललाट चंदन को
कैसे मैं नमन करू।
हे भारत देश तेरा गरल फिर भी मैं वमन करूं।।
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
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दिनांक-२२/०६/२०१९
विषय-सबूत
ए कबूतर जरा संँभल के चल
देखता अब तुझे शिकारी है
उस किस्मत को दाद देता हूं
जुल्फ जिसने तेरी सँवारी है ।।
सब बताता है नूर चेहरे का
रात तुमने कहां गुजारी है।।
हिज्र में बह गए अश्क सब
अब तक वह नदी तो खारी है।।
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
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नमन -भावों के मोती
दिनांक-२०/०६/२०१९
विषय- दर्पण
तमाम उम्र मैं गुनाह करता रहा
धूल तो मेरे चेहरे पर थी
मैं आईने को साफ करता रहा।
खुदा का बंदा हूं मैं.....
तमाम उम्र नेक काम करता रहा
उम्र बीत गई , मैं खुदा से डरता रहा
मैं आईने को साफ करता रहा....
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
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नमन-मंच को
दिनांक-१८/०६/२०१९
पदक का आगाज........
पड़ी है मन के भीतर
एक सुषुप्त आवाज़।
आतुर है सच को जानने
कैसा है यह मौन आभास।
चाहत है मन के अंदर
जीत जाऊं पदक मैं एक आज।
इस आस की मिट्टी लेकर मैं
मैं आशा के दिये बनाता।
देश के लिए जीतता मैं पदक......
कब सजेगी पदकों की बारात ?
घर-घर दीप जलेगा
देश को रहेगा हम पे नाज।
स्वरचित
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नमन-भावो के मोती
दिनांक-१७/०६/२०१९
विषय-नीयत
जिसकी इतनी क्रूर नियत हो।
भूख की अंतिम दुर्गत हो।।
स्थापन अनिश्चित/ विस्थापन सुनिश्चित
पवित्रता में/ प्रदूषण
रक्षण के घर मे/ रावण का भक्षण
एक हाथ/ जो हाथ नहीं है / हाथ होने का आभास
खामोशी भरी दीवार /जहां चाहा कील गाड़ दिया
ठंडा है /चूल्हा
अनुपस्थित है/ धुआँ
खामोश है/ बर्तन
कैसे हो परिवार/ का जतन
भड़की है /भूखी आग
जब शुष्क है/ सुखी आँत
कैसे बीते/ सुनी रात
गीला आटा /खोखली जाँत
फिर भी धरित्री के धैर्य को/ धारण
किए हैं....??????
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
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नमन-मंच को
दिनांक-११/०६/२०१९
विषय-घर
घर हो एक अपना
अपना यही हो सपना।।
घर प्रांगण के अँगना
उमंग उत्सव से सजते नयना।।
अपना यही हो सपना......
नन्हे मुन्ने की किलकारी हो गूँजना
रश्मियों से द्वार सजे ,मेरे घर अंगना।।
अपना यही वो सपना........
खुशियों का अंबार हो
तम का कभी ना प्रहार हो
प्रतिपल एक दीप जले
मेरे घर अंगना.....
नेह के दीपक ,प्रेम के बाती
से सजा ले घर अपना....
अपना यही हो ,बस एक सपना
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
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नमन मंच को....
मंगल दीप जले अंबर में
स्वर्णिम रश्मियों से द्वार सजा ले।।
प्रेम के दीपक नेह के बाती
शीश महल का ख्वाब सजा ले।।
भोर के दुल्हन का दर्शन कर
नृत्य नयन से घर बना ले।।
सन्नाटो की यादों में
उज्जवल मोतियों का घर सजा ले।
चांद की चांदनी को छोड़कर
सूरज जैसा घर बना ले....
स्वरचित सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
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