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ब्लॉग संख्या :-252
हर हलक़ों में गदर सौदेबाज़ी का ऐलान
हो चाहे राजनीति या दिल की दास्तान ।।
हर चुनावी दौरों पर दिखने लगतीं
खरीद फरोख्त की खुलती दुकान ।।
सरेआम बाजारों में बिक जाती हैं
अब ऊँची पगडी़ और ऊँची शान ।।
सच्चे प्यार भी अब कहाँ दिखते
दिल में दब कर रह गई मुस्कान ।।
पद प्रतिष्ठा धन दौलत के आगे
सिसकते दिखे दिल के अरमान ।।
सौदेबाज़ी का अब आया जमाना
परिवार समाज सब हलाकान ।।
माँ बाप वृद्धाश्रम जायें अब
बिन दौलत के कहाँ सम्मान ।।
दिमाग तो बनिया होता है
दिल का न रहा नामोनिशान ।।
गिर गये ''शिवम" मानव मूल्य
इंसान न रह गया अब इंसान ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
हो चाहे राजनीति या दिल की दास्तान ।।
हर चुनावी दौरों पर दिखने लगतीं
खरीद फरोख्त की खुलती दुकान ।।
सरेआम बाजारों में बिक जाती हैं
अब ऊँची पगडी़ और ऊँची शान ।।
सच्चे प्यार भी अब कहाँ दिखते
दिल में दब कर रह गई मुस्कान ।।
पद प्रतिष्ठा धन दौलत के आगे
सिसकते दिखे दिल के अरमान ।।
सौदेबाज़ी का अब आया जमाना
परिवार समाज सब हलाकान ।।
माँ बाप वृद्धाश्रम जायें अब
बिन दौलत के कहाँ सम्मान ।।
दिमाग तो बनिया होता है
दिल का न रहा नामोनिशान ।।
गिर गये ''शिवम" मानव मूल्य
इंसान न रह गया अब इंसान ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
ये दुनिया ही सौदेबाजों का शहर है
यहाँ लूटना तो दुनिया आम चलन है
रह जाता है फरेब बस सहने को
काम निकालती पुख्ता हर नजर है
आबाद रहते हैं लोग बही यहाँ पर
जिनकी चालों मे कुछ असर है
जीने दो मासूम लोगों को जालसाजो
रहने दो कुछ काम , तुम से गुजारिश है
कर्मो का हर फैसला यहाँ होता ता है
लाख छिपा लो दामन भुगतना पडता है
पर वो देखता रहता है जब पानी सर से बहता
तब वह फैसला अपना करता है
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
यहाँ लूटना तो दुनिया आम चलन है
रह जाता है फरेब बस सहने को
काम निकालती पुख्ता हर नजर है
आबाद रहते हैं लोग बही यहाँ पर
जिनकी चालों मे कुछ असर है
जीने दो मासूम लोगों को जालसाजो
रहने दो कुछ काम , तुम से गुजारिश है
कर्मो का हर फैसला यहाँ होता ता है
लाख छिपा लो दामन भुगतना पडता है
पर वो देखता रहता है जब पानी सर से बहता
तब वह फैसला अपना करता है
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
आजकल चांद भी दहकने लगा है,
चांदनी तन को चुभने लगी है।
नहीं सितारों में चमक पहले जैसी,
रात भी अब दिल को खलने लगी है।
मौसम की तरह बदलने लगे सब,
तन्हाई जीवन में छाने लगी है।
खोया है जीवन का सारा सुकूं अब,
आंधियां जबसे चलने लगी हैं।
हमसफर की बदलने लगी फितरतें अब,
साथ चलने की कीमत लगने लगी है।
हर बात में होती सौदेबाजी यहां अब,
दुकानें घर घर खुलने लगी हैं।
बिकने लगे आज जीवन के रिश्ते,
खुशियां भी आज रोने लगी हैं।
दिखावे के बाजार सजते यहां अब,
आंसुओं की कीमत घटने लगी है।
घुटने लगा दम आबो-हवा में,
जिंदगी की रूमानियत खोने लगी है ।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
जब बरसा तो बरसा वो ऐसे।
कोई बरसों से रुका हो जैसे।
क्यू मुहब्बत से डरने लगे सब।
सौदा घाटे का वफा हो जैसे।
कुछ संजीदा लगने लगे वो।
दरख्त फल के झुका हो जैसे।
अब वो महफिल में अकेले हैं।
सारी दुनिया से खफा हो जैसे।
जो देखूं तो नजरे नहीं हटती।
तेरी आँखों में नशा हो जैसे।
लिखता हूँ हर्फ तो लगता है।
तेरी चाहत के निशां हो जैसे।
विपिन सोहल
कोई बरसों से रुका हो जैसे।
क्यू मुहब्बत से डरने लगे सब।
सौदा घाटे का वफा हो जैसे।
कुछ संजीदा लगने लगे वो।
दरख्त फल के झुका हो जैसे।
अब वो महफिल में अकेले हैं।
सारी दुनिया से खफा हो जैसे।
जो देखूं तो नजरे नहीं हटती।
तेरी आँखों में नशा हो जैसे।
लिखता हूँ हर्फ तो लगता है।
तेरी चाहत के निशां हो जैसे।
विपिन सोहल
* विधा - बंधन मुक्त द्विपदिका
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राष्ट्र जागा है अब ,तुम्हारी चुहलबाज़ी नहीं चलेगी ,!
हर कदम अब तुम्हारी लप्फासेबाज़ी नहीं चलेगी !!
लोकतंत्र की हत्या करने वालो सुनलो तुम अब !
देश के विश्वासों की सौदेबाज़ी नहीं चलेगी !!
अपने साहस को भूल गए तुम ओ ...कर्णधारो !
अब सचमुच यह देख लो हारीबाज़ी नहीं चलेगी !!
करना है तो जन जन की सुविधाएं को मूर्त रूप दो !
नित नयी अब तुम्हारी ड्रामेबाज़ी नहीं चलेगी !!
सत्य मेव जयते को क्यों भूले अपने स्वार्थो पे तुम !
आरोपों की बेबुनियादी यह रंगबाज़ी नहीं चलेगी !!
देश तुम्हारे पिताजी की जागीर नहीं है, हमारा ही है !
मिलकर लूटते कण-कण यह घपलेबाज़ी नहीं चलेगी !!
* प्रहलाद मराठा
* चित्तौडग़ढ़ ( राजस्थान )
* रचना मौलिक ,स्वयं रचित सर्व अधिकार सुरक्षित
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राष्ट्र जागा है अब ,तुम्हारी चुहलबाज़ी नहीं चलेगी ,!
हर कदम अब तुम्हारी लप्फासेबाज़ी नहीं चलेगी !!
लोकतंत्र की हत्या करने वालो सुनलो तुम अब !
देश के विश्वासों की सौदेबाज़ी नहीं चलेगी !!
अपने साहस को भूल गए तुम ओ ...कर्णधारो !
अब सचमुच यह देख लो हारीबाज़ी नहीं चलेगी !!
करना है तो जन जन की सुविधाएं को मूर्त रूप दो !
नित नयी अब तुम्हारी ड्रामेबाज़ी नहीं चलेगी !!
सत्य मेव जयते को क्यों भूले अपने स्वार्थो पे तुम !
आरोपों की बेबुनियादी यह रंगबाज़ी नहीं चलेगी !!
देश तुम्हारे पिताजी की जागीर नहीं है, हमारा ही है !
मिलकर लूटते कण-कण यह घपलेबाज़ी नहीं चलेगी !!
* प्रहलाद मराठा
* चित्तौडग़ढ़ ( राजस्थान )
* रचना मौलिक ,स्वयं रचित सर्व अधिकार सुरक्षित
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हर जगह है सौदेबाजी।
गर्म है इसका बाजार।
बिना सौदे के कुछ नहीं मिलता।
चाहे हो कोई व्यापार।
लोगों ने तो राजनीति को भी।
बना लिया सौदे का बाजार।
जिधर दीखता है अच्छा सौदा।
उसी तरफ से करते हैं प्यार।।
वोट लेने के लिये।
करते हैं गरीबों से सौदा।
वोट लेने के बाद।
फिर शुरू करते हैं अपना धन्धा।
पैसा बटोरते रहते।
राजनीति में लोग।
फ़िक्र नहीं जनता की।
अपना उल्लू सीधा करते लोग।
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
गर्म है इसका बाजार।
बिना सौदे के कुछ नहीं मिलता।
चाहे हो कोई व्यापार।
लोगों ने तो राजनीति को भी।
बना लिया सौदे का बाजार।
जिधर दीखता है अच्छा सौदा।
उसी तरफ से करते हैं प्यार।।
वोट लेने के लिये।
करते हैं गरीबों से सौदा।
वोट लेने के बाद।
फिर शुरू करते हैं अपना धन्धा।
पैसा बटोरते रहते।
राजनीति में लोग।
फ़िक्र नहीं जनता की।
अपना उल्लू सीधा करते लोग।
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
हो रही सौदेबाजी अब
बचा कहां ईमान जगत में।
बिक गया आदमी अब,
नहीं रहा इंसान सुमत में।
टूट रहे सब रिश्ते नाते,
नहीं करते भक्ति इवादत।
हर तरफ ही सौदेबाजी,
यही है हमारी हकीकत।
सौदागर मिलें हर कदम पर
बिक रहीं अच्छाईयां।
परेशां पहले से थे सभी हम,
सिर्फ मिल रही लच्छाईयां।
मात्र महल बातों के दिखें अब,
कहां प्रवृत्ति भलमानसी।
प्रमाद चहुंओर पसरा हुआ है,
अब आदमी है आलसी।
जो चाहें हम खरीदें यहां पर
इस भौतिक संसार में।
सत्य तक भी बिक रहा अब,
इस लौकिक बाजार में।
प्रेमानुरागी मिलते नहीं अब
प्रेमानुभूति होती नहीं।
प्रेमप्रीति दिखती नहीं तब,
सुखानुभूति होती नहीं।
दहेज लोभी बन गये हम
रोज सौदेबाजी हो रही।
बिक रहे दूल्हे रोजाना,
यहां दगाबाजी हो रही।
स्वरचितःःः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
बचा कहां ईमान जगत में।
बिक गया आदमी अब,
नहीं रहा इंसान सुमत में।
टूट रहे सब रिश्ते नाते,
नहीं करते भक्ति इवादत।
हर तरफ ही सौदेबाजी,
यही है हमारी हकीकत।
सौदागर मिलें हर कदम पर
बिक रहीं अच्छाईयां।
परेशां पहले से थे सभी हम,
सिर्फ मिल रही लच्छाईयां।
मात्र महल बातों के दिखें अब,
कहां प्रवृत्ति भलमानसी।
प्रमाद चहुंओर पसरा हुआ है,
अब आदमी है आलसी।
जो चाहें हम खरीदें यहां पर
इस भौतिक संसार में।
सत्य तक भी बिक रहा अब,
इस लौकिक बाजार में।
प्रेमानुरागी मिलते नहीं अब
प्रेमानुभूति होती नहीं।
प्रेमप्रीति दिखती नहीं तब,
सुखानुभूति होती नहीं।
दहेज लोभी बन गये हम
रोज सौदेबाजी हो रही।
बिक रहे दूल्हे रोजाना,
यहां दगाबाजी हो रही।
स्वरचितःःः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
मैं तुम्हे चाहूँ तो,
तुम भी मुझे चाहो...
ये इश्क़ नही है,
है सौदेबाजी.....
मैं तन मन जीवन,
सब दे दूंगा....
सब चाँद सितारे,
तोड़ चलूँगा....
मत समझो सच
इन बातों को,
ये बात नही है
है जुमलेबाजी...
ये इश्क़ नही है,
है सौदेबाजी....
है कौन जिसे,
अपना कह लोगे...
है सच क्या जो,
सपना कह लोगे...
थोड़े से हालात,
जो रूठे....
फिर अपनों के,
हाथ हैं छूटे....
अपना पराया
कुछ न होता...
सब है रिश्तों की
घपलेबाजी..
इश्क़ नही है,
है सौदेबाजी.....
..स्वरचित राकेश पाण्डेय...
तुम भी मुझे चाहो...
ये इश्क़ नही है,
है सौदेबाजी.....
मैं तन मन जीवन,
सब दे दूंगा....
सब चाँद सितारे,
तोड़ चलूँगा....
मत समझो सच
इन बातों को,
ये बात नही है
है जुमलेबाजी...
ये इश्क़ नही है,
है सौदेबाजी....
है कौन जिसे,
अपना कह लोगे...
है सच क्या जो,
सपना कह लोगे...
थोड़े से हालात,
जो रूठे....
फिर अपनों के,
हाथ हैं छूटे....
अपना पराया
कुछ न होता...
सब है रिश्तों की
घपलेबाजी..
इश्क़ नही है,
है सौदेबाजी.....
..स्वरचित राकेश पाण्डेय...
सौदेबाज़ी हर जगह होती,
बिन कुछ किये मिले न मोती |
एक सांस जब बाहर होती,
तभी दूसरी सांस अंदर होती |
सौदेबाज़ी नहीं है बुरी बस,
नियत होनी चाहिए खरी |
फ़ायदा, नुकसान दो अभिन्न अंग,
सौदेबाज़ी में रहते हमेशा संग |
चाँद-सूरज की भी होती सौदेबाज़ी,
दिन में उजाला, रात में चांदनी होती |
प्रकृति संग मानव की सौदेबाज़ी,
पेड़ लगाकर, सांसे वो हमें देती |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
बिन कुछ किये मिले न मोती |
एक सांस जब बाहर होती,
तभी दूसरी सांस अंदर होती |
सौदेबाज़ी नहीं है बुरी बस,
नियत होनी चाहिए खरी |
फ़ायदा, नुकसान दो अभिन्न अंग,
सौदेबाज़ी में रहते हमेशा संग |
चाँद-सूरज की भी होती सौदेबाज़ी,
दिन में उजाला, रात में चांदनी होती |
प्रकृति संग मानव की सौदेबाज़ी,
पेड़ लगाकर, सांसे वो हमें देती |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
विधा:- सायली छंद
क्यों
करते हो
भगवान के साथ
मोल भाव
सौदेबाजी..........1
सौदेबाजी
कमाल है
प्यार-वफ़ा-ईमान
नहीं दिखते
रिश्ते..............2
लेखन
इधर उधर
अभिव्यक्ति को बिखरा
कर रहा
सौदेबाजी............3
स्वरचित:
दिनाँक:- 29-12-2018
डॉ.स्वर्ण सिंह रघुवंशी,गुना(म…प्र.)
क्यों
करते हो
भगवान के साथ
मोल भाव
सौदेबाजी..........1
सौदेबाजी
कमाल है
प्यार-वफ़ा-ईमान
नहीं दिखते
रिश्ते..............2
लेखन
इधर उधर
अभिव्यक्ति को बिखरा
कर रहा
सौदेबाजी............3
स्वरचित:
दिनाँक:- 29-12-2018
डॉ.स्वर्ण सिंह रघुवंशी,गुना(म…प्र.)
🍁
सौदेबाजी कर लेते है,
हम दोनो मिल आपस मे।
तुम अपना दिल दे दो मुझको,
बदले मे मेरा रख लो॥
🍁
फिर देखेगे किसकी धडकन,
किससे क्या कहती है।
किसके लिए तडपती है और,
हमसे क्या कहती है॥
🍁
तुम मेरे मन को पढ लेना,
मै तुमको जानूँगा।
पुनः बदल लेगे हम दिल को,
कहना सब मानूँगा॥
🍁
क्यो करती हो शंक तुम मुझपर,
दिल मेरा पढ लेना।
शेर के दिल मे क्या बातें है,
दिल से ही सुन लेना॥
🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
सौदेबाजी कर लेते है,
हम दोनो मिल आपस मे।
तुम अपना दिल दे दो मुझको,
बदले मे मेरा रख लो॥
🍁
फिर देखेगे किसकी धडकन,
किससे क्या कहती है।
किसके लिए तडपती है और,
हमसे क्या कहती है॥
🍁
तुम मेरे मन को पढ लेना,
मै तुमको जानूँगा।
पुनः बदल लेगे हम दिल को,
कहना सब मानूँगा॥
🍁
क्यो करती हो शंक तुम मुझपर,
दिल मेरा पढ लेना।
शेर के दिल मे क्या बातें है,
दिल से ही सुन लेना॥
🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
सौदेबाज़ी
आया फिर देश में ये आम चुनाव
छुटभैये निकले लेकर पुरानी नाव
बरसों तक चखे बिरियानी पुलाव
मौका आया देख बदले अब भाव
झूठ-पुट सम्पुट,रूठ,गुटबाजी होगी
फिर से सत्ता की सौदेबाज़ी होगी
पादरी,पंडित संग में मुल्ला काजी
धर्म-मूल को भूल करते सौदेबाज़ी
प्रेम-पतंग काट,उचाट विष-वमन
स्वार्थ-साधना में उजारेंगे चमन
खुदा से जुदा,मेहमाननवाजी होगी
फिर से सत्ता की सौदेबाज़ी होगी
मधु ऋतु है, ये पराग चखते भौरें
होगी पतझड़,फूलेगी कहाँ फिर बौरें
खूब भ्रमण के,तो कहीं दिल के दौरे
रेत-ऊसर में भी सरपट पुष्पक दौड़े
बड़ी बातों की खूब लफ्फाजी होगी
फिर से सत्ता की सौदेबाज़ी होगी
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
आया फिर देश में ये आम चुनाव
छुटभैये निकले लेकर पुरानी नाव
बरसों तक चखे बिरियानी पुलाव
मौका आया देख बदले अब भाव
झूठ-पुट सम्पुट,रूठ,गुटबाजी होगी
फिर से सत्ता की सौदेबाज़ी होगी
पादरी,पंडित संग में मुल्ला काजी
धर्म-मूल को भूल करते सौदेबाज़ी
प्रेम-पतंग काट,उचाट विष-वमन
स्वार्थ-साधना में उजारेंगे चमन
खुदा से जुदा,मेहमाननवाजी होगी
फिर से सत्ता की सौदेबाज़ी होगी
मधु ऋतु है, ये पराग चखते भौरें
होगी पतझड़,फूलेगी कहाँ फिर बौरें
खूब भ्रमण के,तो कहीं दिल के दौरे
रेत-ऊसर में भी सरपट पुष्पक दौड़े
बड़ी बातों की खूब लफ्फाजी होगी
फिर से सत्ता की सौदेबाज़ी होगी
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
तुम जब से गए हो....
मेरी आंखें दीप की तरह...
जलती हैं....
अश्क टप टप...
दामन पर गिरते हैं....
तन भी मन के साथ...
जलने लगता है....
फिर बाढ़ आती है...
बहा ले जाती है सब...
विभीषिका से मैं...
बिखर जाता हूँ....
इश्क़ किया तुमसे....
सौदेबाजी नहीं की...
दिल के बदले...
दिल नहीं माँगा...
वैसे भी इश्क़ में...
माँगा कहाँ जाता है...
मिल जाता है....
जिसका जो नसीब !
जोड़ता हूँ फिर अपने को....
पल पल तिनका तिनका....
फिर एक बवंडर आता है....
तेरी यादों का...
उड़ा ले जाता है मुझे....
तिनका तिनका....
मैं फिर ...
बिखर जाता हूँ...
बिखरने और जुड़ने का...
रिश्ता...
मैं बरसों से...
यूं ही शिद्दत से...
निभाता आ रहा हूँ...
हाँ, इश्क़ किया मैंने...
तिजारत नहीं...
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
मेरी आंखें दीप की तरह...
जलती हैं....
अश्क टप टप...
दामन पर गिरते हैं....
तन भी मन के साथ...
जलने लगता है....
फिर बाढ़ आती है...
बहा ले जाती है सब...
विभीषिका से मैं...
बिखर जाता हूँ....
इश्क़ किया तुमसे....
सौदेबाजी नहीं की...
दिल के बदले...
दिल नहीं माँगा...
वैसे भी इश्क़ में...
माँगा कहाँ जाता है...
मिल जाता है....
जिसका जो नसीब !
जोड़ता हूँ फिर अपने को....
पल पल तिनका तिनका....
फिर एक बवंडर आता है....
तेरी यादों का...
उड़ा ले जाता है मुझे....
तिनका तिनका....
मैं फिर ...
बिखर जाता हूँ...
बिखरने और जुड़ने का...
रिश्ता...
मैं बरसों से...
यूं ही शिद्दत से...
निभाता आ रहा हूँ...
हाँ, इश्क़ किया मैंने...
तिजारत नहीं...
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
मातृभूमि की है यह पुकार
सौदेबाजी ना करने की गुहार
इस देश की भूमि को
शहीदों ने लहू से सिंचा हैं
उनके लहू को तुम सुनों
होने ना देना बेकार कभी
हाथ में लिए जान की बाजी
सीमा पर डटे हैं प्रहरी
जो करोगे उनसे सौदेबाजी
होगी तेरी ही बर्बादी
हमको मिली है आजादी
वीरों ने दी है अपनी कुर्बानी
मत करना उनसे गद्दारी
कि कुर्बानी से ही सौदेबाजी
तिरंगा है हम सबका अभिमान
कभी ना इसको झुकने देना
रक्षा इसकी है तेरा ईमान
सबसे बड़ा धर्म है देश का मान
करे सौदा अगर कोई बेईमान
करना वहीं तुम काम तमाम
कभी ना करना उनको माफ
फिर करना स्व अभिमान
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
सौदेबाजी ना करने की गुहार
इस देश की भूमि को
शहीदों ने लहू से सिंचा हैं
उनके लहू को तुम सुनों
होने ना देना बेकार कभी
हाथ में लिए जान की बाजी
सीमा पर डटे हैं प्रहरी
जो करोगे उनसे सौदेबाजी
होगी तेरी ही बर्बादी
हमको मिली है आजादी
वीरों ने दी है अपनी कुर्बानी
मत करना उनसे गद्दारी
कि कुर्बानी से ही सौदेबाजी
तिरंगा है हम सबका अभिमान
कभी ना इसको झुकने देना
रक्षा इसकी है तेरा ईमान
सबसे बड़ा धर्म है देश का मान
करे सौदा अगर कोई बेईमान
करना वहीं तुम काम तमाम
कभी ना करना उनको माफ
फिर करना स्व अभिमान
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
निकल कर भी नहीं निकलता दम
ठगे से रहते सब देख कर हम
स्थिति हो जाती बडी़ विषम
सौदेबाजी़ ही दिखती हर कदम।
हर बात में है सौदेबाजी़
बडा़ सौदेबाज़ बडी़ बाजी़
बिना सौदे के कुछ नहीं होता
सौदे में तो सब भाई राजी़।
काम के पहले सौदा ज़रुरी
बिना इसके है लम्बी दूरी
कुशल सौदागर यदि हो जाओ
नहीं रहेगी कोई मज़बूरी।
ठगे से रहते सब देख कर हम
स्थिति हो जाती बडी़ विषम
सौदेबाजी़ ही दिखती हर कदम।
हर बात में है सौदेबाजी़
बडा़ सौदेबाज़ बडी़ बाजी़
बिना सौदे के कुछ नहीं होता
सौदे में तो सब भाई राजी़।
काम के पहले सौदा ज़रुरी
बिना इसके है लम्बी दूरी
कुशल सौदागर यदि हो जाओ
नहीं रहेगी कोई मज़बूरी।
देखो जिसको लगाहुआ है
सौदेबाजी के खेल में।
कोई खरीद रहा ईमान
कोई बेच रहा है जमीर
क्या यही लोकतंत्र है?
क्या राजा क्या रंक देखिये
लगे सभी इस खेल में।
संसद हो या हों गलियाँ बदनाम
सभी जगह बस खेल एक है
मर गया है ईमान।।
घर से लेकर संसद तक में
बिक रहा है इन्सान।
हाय कहाँ गया ईमान।।
कोई सौदा करे वोट का
कोई करे इज्जत नीलाम।
हाय कहाँ गया ईमान।।
कोई लूटे आबरू बहन की,
कोई सौदागर है इस तन का।
हाय कहाँ गया ईमान।
देखो जिसको सौदागर है
करता हरदम है सौदेबाजी
हाय कहाँ गया ईमान।।
(अशोक राय वत्स)
स्वरचित जयपुर
सौदेबाजी के खेल में।
कोई खरीद रहा ईमान
कोई बेच रहा है जमीर
क्या यही लोकतंत्र है?
क्या राजा क्या रंक देखिये
लगे सभी इस खेल में।
संसद हो या हों गलियाँ बदनाम
सभी जगह बस खेल एक है
मर गया है ईमान।।
घर से लेकर संसद तक में
बिक रहा है इन्सान।
हाय कहाँ गया ईमान।।
कोई सौदा करे वोट का
कोई करे इज्जत नीलाम।
हाय कहाँ गया ईमान।।
कोई लूटे आबरू बहन की,
कोई सौदागर है इस तन का।
हाय कहाँ गया ईमान।
देखो जिसको सौदागर है
करता हरदम है सौदेबाजी
हाय कहाँ गया ईमान।।
(अशोक राय वत्स)
स्वरचित जयपुर
दिल की सौदेबाज़ी
आज उन्होंने मेरे दिल की सौदेबाजी की।
कहा, दौलत के बदले ये दिल तेरा हुआ।।
गरीबी का हवाला दिया, पैसे देखे नही है।
दौलत के बदले ही उनका दिल मेरा हुआ।।
मानता हूं कि आज की जरूरत है दौलत।
पर, दौलत की रात का कब सवेरा हुआ।।
मेरा दिल कोई बिकने का समान नही है।
जो दौलत के सौदे मात्र से तेरा हुआ।।
प्रेम की दौलत कमा कर देखो कभी तुम।
भूल जाओगी दौलत जब 'चैन' तेरा हुआ।।
स्वरचित
सुखचैन मेहरा ('चैन')
आज उन्होंने मेरे दिल की सौदेबाजी की।
कहा, दौलत के बदले ये दिल तेरा हुआ।।
गरीबी का हवाला दिया, पैसे देखे नही है।
दौलत के बदले ही उनका दिल मेरा हुआ।।
मानता हूं कि आज की जरूरत है दौलत।
पर, दौलत की रात का कब सवेरा हुआ।।
मेरा दिल कोई बिकने का समान नही है।
जो दौलत के सौदे मात्र से तेरा हुआ।।
प्रेम की दौलत कमा कर देखो कभी तुम।
भूल जाओगी दौलत जब 'चैन' तेरा हुआ।।
स्वरचित
सुखचैन मेहरा ('चैन')
आना है तो आओ प्रिये
नही चलेगी सौदेबाजी
सौदेबाजी गर रिश्ते में आये
टूट जाती है रिश्तेदारी
होगा क्या अंतर प्रिये
मेरे और तुम्हारे मे
सौदेबाज़ी तो गैरों से होती
अपनो से नही होती सौदेबाजी
एक सौदा मैंने अब ईश से की है
लेकर मेरा हर अवगुण
दे दिये मुझे दिल का सुकून
माँ -बाप की सेवा कर के
जीत ले हम दुनिया की बाजी
यह अच्छी है सौदेबाजी
स्नेह के बदले स्नेह लुटाना
यह अच्छी है सौदेबाजी
यही है उचित सौदेबाज़ी।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
नही चलेगी सौदेबाजी
सौदेबाजी गर रिश्ते में आये
टूट जाती है रिश्तेदारी
होगा क्या अंतर प्रिये
मेरे और तुम्हारे मे
सौदेबाज़ी तो गैरों से होती
अपनो से नही होती सौदेबाजी
एक सौदा मैंने अब ईश से की है
लेकर मेरा हर अवगुण
दे दिये मुझे दिल का सुकून
माँ -बाप की सेवा कर के
जीत ले हम दुनिया की बाजी
यह अच्छी है सौदेबाजी
स्नेह के बदले स्नेह लुटाना
यह अच्छी है सौदेबाजी
यही है उचित सौदेबाज़ी।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
क्षणिका (1)
दिलों का सौदा
कुछ ऐसा रहा..
दर्द बंट गए दोनों के
मुस्कानों का....
मुनाफा रहा l
(2)
शोषण उठा
गरिमाएँ गिरी
तन के सौदे में
आत्मायें बिकी
(3)
खायें कहीं
बजायें कहीं
ऐसे धोखेबाज़
मातृभूमि को बेच दें
छुपे हैं सौदेबाज़
(4)
पर्यावरण दोहन
घाटे का सौदा
हाथ में आँसू
जेब असुरक्षा
स्वरचित
ऋतुराज दवे
यहाँ बन गई है सौदेबाजी किरकिरी आँख की,
हमेशा हम सबकी आँखों में गडती रहती |
कोई चाहे लाख छुपाऐ यह छुप नहीं सकती ,
सबके जीवन में आँसू बनकर बहती रहती |
हो मैदान या पहाड़ हो चाहे हो फिर कोई घाटी,
दिखती रहती है हमें नेताओं के रूप में सौदेबाजी |
मंदिर मस्जिद गुरूद्वारा चाहे बात करें गिरजाघर की,
सदा झांकती रहती है दरवाजों से सौदेबाजी |
हो मुंडन कनछेदन जन्म दिन चाहे कोई शादी,
ढोलक की थापों पर नाचती रहती है सौदेबाजी |
शिक्षा का मंदिर हो या बात करें किसी दफ्तर की,
कैसे कैसे रंग दिखाती रहती है हमको ये सौदेबाजी |
कोई बात नहीं आज की है ये तो बात है सदियों की,
सतयुग तो बच न सका बात करें क्या कलियुग की |
जब सिध्दांत नहीं कोई होता और आत्मा मर जाती,
वर्चस्व कायम करने के लिए ही सौदेबाजी की जाती |
काबिल आँसू बहाता है यहाँ मौज नकारे की होती,
दोषी तो सामने रहते हैं पर सजा नहीं उनको होती |
अन्याय रहेगा जब तक जिंदा होती रहेगी सौदेबाजी,
है बात हमारे हाथों में चाहें तो बदल जायेगी परिपाटी |
हमेशा हम सबकी आँखों में गडती रहती |
कोई चाहे लाख छुपाऐ यह छुप नहीं सकती ,
सबके जीवन में आँसू बनकर बहती रहती |
हो मैदान या पहाड़ हो चाहे हो फिर कोई घाटी,
दिखती रहती है हमें नेताओं के रूप में सौदेबाजी |
मंदिर मस्जिद गुरूद्वारा चाहे बात करें गिरजाघर की,
सदा झांकती रहती है दरवाजों से सौदेबाजी |
हो मुंडन कनछेदन जन्म दिन चाहे कोई शादी,
ढोलक की थापों पर नाचती रहती है सौदेबाजी |
शिक्षा का मंदिर हो या बात करें किसी दफ्तर की,
कैसे कैसे रंग दिखाती रहती है हमको ये सौदेबाजी |
कोई बात नहीं आज की है ये तो बात है सदियों की,
सतयुग तो बच न सका बात करें क्या कलियुग की |
जब सिध्दांत नहीं कोई होता और आत्मा मर जाती,
वर्चस्व कायम करने के लिए ही सौदेबाजी की जाती |
काबिल आँसू बहाता है यहाँ मौज नकारे की होती,
दोषी तो सामने रहते हैं पर सजा नहीं उनको होती |
अन्याय रहेगा जब तक जिंदा होती रहेगी सौदेबाजी,
है बात हमारे हाथों में चाहें तो बदल जायेगी परिपाटी |
जग के महा बाजार में
हर पल हो रही सौदेबाजी
आदमी बना सौदागर
निशी दिवस कर रहा सौदा
सपनों का
अरमानो का
रिश्तोंका
और
आत्म सम्मान भी
बिकने लगे
संघर्षशील मानव
अपना अभीष्ट पाने
लगा हुआ है
अनवरत सौदेबाजी में ।
पर,
वह भूल बैठा
एक कटू सत्य
कि
सबसे बड़ा
एक सौदागर है
जो देख रहा
जीवन व्यापार
खामोशी से
और
जाने कब
कर लेता है
अनजाने अनुबंध
में सौदा साँसों का
और बेमोल
बिक जाती है साँसे
खरीद लेता वह
मृत्यु के बदले
जाने कब से हो
रही ये सौदेबाजी
कौन रोक पाया
अनवरत जारी है--'
स्वरचित
सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़
क्यों करते है हम वक्त से सौदेबाजी
इसी कारण हमे करनी पड़ती है मुश्किलों की मेहमाननवाजी
मत जिओ इस कदर की तुम अभी फ़ना हो जाओ
जिने को अभी बहुत जीवन पड़ा है पाजी
एक बार समय निकल गया हाथ से तो कुछ न होगा
जो काम है वो कर लो आज ही
प्यार से जीना सीखो इस संसार में
मत करो तुम किसी से दग़ाबाज़ी
स्वरचित : जनार्धन भारद्वाज
श्री गंगानगर ( राजस्थान )
दिलों से दिलों तक
बनती धोखेबाजी
कि जिंदगी के लिए
हर लम्हा
कोशिश है नयी शुरुआत की
हर सुबह
लाती है किरण
रोशनी की थाती।।
हर झोंके संग हवा सुनाती
प्राणों की सरगम
सृष्टि सुहानी नजारों की साथी
धूप की सौगात
सबके लिए सुहाती
बूंदों की सरगम सबके लिए बजती
क्षिति जल पावक गगन समीरा
नहीं पंचतत्वों में ठकुरसुहाती
या सौदेबाजी
तो क्यों इंसान बनते सौदागर
करते सौभाग्य की सौदेबाजी।।
बनती धोखेबाजी
कि जिंदगी के लिए
हर लम्हा
कोशिश है नयी शुरुआत की
हर सुबह
लाती है किरण
रोशनी की थाती।।
हर झोंके संग हवा सुनाती
प्राणों की सरगम
सृष्टि सुहानी नजारों की साथी
धूप की सौगात
सबके लिए सुहाती
बूंदों की सरगम सबके लिए बजती
क्षिति जल पावक गगन समीरा
नहीं पंचतत्वों में ठकुरसुहाती
या सौदेबाजी
तो क्यों इंसान बनते सौदागर
करते सौभाग्य की सौदेबाजी।।
विध-वर्णपिरामिड़
विषय- सौदेबाजी
१
है
रीत
दहेज
सौदेबाजी
सबकी राजी
नजर अंदाजी
हारी जीवन बाजी
२
ये
दिल
कंगाल
प्रेम ढ़ाल
बेजान ताल
होता बुरा हाल
सौदेबाजी का जाल
स्वरचित-रेखा रविदत्त
29/12/18
शनिवार
विषय- सौदेबाजी
१
है
रीत
दहेज
सौदेबाजी
सबकी राजी
नजर अंदाजी
हारी जीवन बाजी
२
ये
दिल
कंगाल
प्रेम ढ़ाल
बेजान ताल
होता बुरा हाल
सौदेबाजी का जाल
स्वरचित-रेखा रविदत्त
29/12/18
शनिवार