Friday, December 14

"समझौता "14दिसम्बर 2018

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ब्लॉग संख्या :-237


समझौता जब से किया मैंने अपने गम से
जाने क्यों लगने लगे गम मेरे कुछ कम से ।।

समझौता में सुख सच्चा कहता हूँ ये तुमसे
बच जाते हम अपने सारे झूठे अहम से ।।

तालमेल ही जीवन मिलाओ कदम कदम से
दाता की ही मंशा , हैं सबके साथ सितम से ।।

पूर्णतः न किया कहीं कहता हूँ ये कसम से
समझौता हर एक किये, हो तुमसे या हमसे ।।

समझौता को समझो इसमें छुपे मरम से
अभी पते की कहूँ फिर न कहना 'शिवम' से।।

सूरज चाँद भी किये हुये हैं आते सदा क्रम से
मौसम भी न बेतरतीव पूछो चाहे मौसम से ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 14/12/2018


🍁
समझौते की बात नही है, 
प्यार तो केवल तुम से है।
जीवन मे बस तुम ही तुम हो, 
और ना दूजा तुम सा है॥

🍁

तुम को मन मंदिर ये अर्पित, 
तुम इस मन के स्वामी हो।
तुम बिन ना ये दुनिया मेरी, 
ना ये जीवन बाकी है॥

🍁

समझौता मै क्यो कर लूँ , 
क्या ईश्वर मुझसे रूठा है।
शेर की कविता तुम्हे समर्पित , 
मन मे कोई ना दूजा है॥

🍁

स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
चलो प्रिय!आज समझौता कर लेते हैं,
तुम मेरे हिस्से की खुशियां ले लो और,
तुम्हारे हिस्से के गमों को बांट लेते हैं,
चलो प्रिय आज समझौता कर लेते हैं|

वक्त की रफ्तार के संग हो लेते हैं,

बुरा वक्त था जो उसे भुला देते हैं,
खुशियों के पैमाने को बढ़ा देते हैं,
चलो प्रिय आज समझौता कर लेते है|

जिन्दगी में तालमेल बैठा लेते हैं,

उलझी बातों को सुलझा लेते हैं,
समझौते की बांहें फैला लेते हैं,
चलो प्रिय आज समझौता कर लेते हैं|

समझौते जीवन के आधार होते हैं,

टूटी जिन्दगियों को फिर से पिरोते हैं,
मन में आशाओं के बीज बोते हैं,
चलो प्रिय!आज समझौता कर लेते हैं|

स्वरचित *संगीता कुकरेती*



समझौता कदापि न करें ,
नकारात्मक विचारों के साथ ।
जीवन की राह में 
बढ़ाएं कदम ,
सदा उत्तम विचारों के साथ ।।
करना पड़ता है 
समझौता हमें ,
कभी-कभी
अपने दुखों से भी ।
पर उसके बाद
आता है ,
ख़ुशियों का उजाला भी ।।
सो हमारा यह जीवन ,
सदविचारों के अनुरूप होना चाहिए ।
भले ही अनेकों 
दुःख आएँ जीवन में ,
हमारा व्यक्तित्व 
सशक्त होना चाहिए ।।




समझौता कानून नहीं है
समझौता मन की मर्जी है
स्नेहसिक्त,समर्पण ,अर्पण
की यह तो पावन अर्जी है
जग सामजंस्य है समझौता
प्रकति का शाश्वत समझौता
जल,थल,वायु,गगन,धरा का
सूर्य चन्द्र हिमगिरि समझौता
मात पिता ममता समझौता
भाई बहिन है नेह समझौता
पर हित डग पर बढ़ते जाओ
घर स्वर्गीम करता समझौता
मातृभूमि हित अमर शहादत
का होता जीवन समझौता
परोपकार,अमर प्रेम का
दिल से होता है समझौता
समझौता गम से करते हैं
स्वांत सुखाय नहीं समझौता
सर्वे भवन्तु सुखिनः जग हो
विश्वकुटुम्बकम है समझौता
समझौता दिल का विवेक है
कर्मवीर जग फल चखते हैं
निश्चित नित संघर्ष श्रम बल
अमर नाम जग हित करते हैं
समझौता स्व आत्मसमर्पण 
परहित स्नेह सुधा गागर है
भक्ति मार्ग से किया समझौता
निकट सदा नटवर नागर है।।
स्व0 रचित
गोविन्द प्रसाद गौतम


विषय समझौता
रचयिता पूनम गोयल


समझौता कदापि न करें ,
नकारात्मक विचारों के साथ ।
जीवन की राह में 
बढ़ाएं कदम ,
सदा उत्तम विचारों के साथ ।।
करना पड़ता है 
समझौता हमें ,
कभी-कभी
अपने दुखों से भी ।
पर उसके बाद
आता है ,
ख़ुशियों का उजाला भी ।।
सो हमारा यह जीवन ,
सदविचारों के अनुरूप होना चाहिए ।
भले ही अनेकों 
दुःख आएँ जीवन में ,
हमारा व्यक्तित्व 
सशक्त होना चाहिए ।।






जीवन एक समझौता है
कुछ खोना और कुछ पाना है
कभी खुशियों का मेला
कभी गमों का दरिया है

जीवन एक समझौता है
कभी तपती धूप तो
कभी मिलती छाया है
इन राहों में हमें चलना है

जीवन एक समझौता है
कुछ पल को हँसना
कुछ पल को रोना है
हर एक पल को जीना है

जीवन एक समझौता है
मिलते फूल यहाँ तो
काँटे भी हजार हैं
यही तो संसार है
जीवन एक समझौता है

स्वरचित पूर्णिमा साह  





 समझौता नहीं कर कर पाऊँ 

कभी अपने ही सिद्धांतों से।
जिद्दीपन या कुछ और बात है,
नहीं पीछे हटता सिद्धांतों से।

जो भी मन मैने ठान लिया है।

जिसको अपना मान लिया है।
प्रयास निभाने का करता हूँ मैं,
कुछ सिद्धांतों से ज्ञान लिया है।

दृढ संकल्पित रहूँ सिद्धांतों पर,

अखिलेश्वर से विनती करता हूँ।
नहीं डिगूँ कभी चरित्र से अपने,
सदैव यही प्रभुसे विनती करता हूँ।

परमार्थ पुरूषार्थ भले ना कर पाऊँ।

परोपकार भला सेवा ना कर पाऊँ।
जानबूझ दुख न पहुँचाऊं किसी को,
पर मान बडप्पन कभी ना कर पाऊँ।

स्वरचितः ः

इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय












































   



हर हाल में भी कुछ लोग मुस्कुरा लेते हैं, 
हर दर्द को अपने सीने से लगा लेते हैं,

दिल और दिमाग में सामंजस्य बिठा 

"समझौतों"से जिंदगी यूँ आसाँ बना लेते हैं l


समझौता करना कोई कमजोरी नहीं है।
यहां शान से जीना कोई बरजोरी नहीं है।
स्वाभिमान बेचकर ये जिंदगी क्या जीना,
साफगोई से बात रखना मुंहजोरी नहीं है।

समझौता कभी स्वाभिमान से नहीं करूँ।

समझौता कभी मै अभिमान से क्यों करूँ।
जिंन्दगी देना लेना सब परमेश के हाथों में,
जो आऐ जाऐ मौत से समझौता क्यों करूँ।

नहीं चाहता कभी किसी से तकरार हो मेरी।

यही चाहता सभी से सदा प्रीत प्यार हो मेरी।
हुई तकरार भूलवश समझौता मै तुरत करूँ,
यही चाहता भाईयो सभी से मनुहार हो मेरी।

लडाई झगडों से कभी कोई मोटा नहीं होता।

समझौता करने से कभी कोई छोटानहीं होता।
जिंदगी है चार दिन की हम मिलजुलकर रहें,
कंचन तो कंचन रहेगा कभी खोटा नहीं होता।

स्वरचितः ः

इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय 

                           
  
समझौता ही है सच्चा साथी, जीवन को सुगम बनाता है , 

सामने जब भी मुश्किल होती, हल समझौता ही करता है , 


जब दिल दिमाग में ठन जाती,समन्वय यही तो करता है, 


रिश्तों पै धुँध जब छा जाती,काम समझौता ही आता है, 


सामने मौत जब आ जाती, समझौता ही जीवन देता है, 


परवाह नहीं है मौसम की,डटा सीमा पर फौजी रहता है, 


बस समझौता घड़ी घड़ी, वो कदम कदम पर करता है , 


समझौता जब करती नारी, तब जीवन यापन हो पाता है, 


अस्मिता बचाने को अपनी,उसे क्या क्या सहना पड़ता है


जब भूख मिटाने को अपनी, समझौता करना पड़ता है, 


हालत क्या होती है उसकी, भूखा ही बतला सकता है, 


पिता शादी करता जब बेटी की,पत्थर का होना पड़ता है, 


विदाई जिगर के टुकड़े की,एक दिल से समझौता होता है 


अपनों की भलाई जहाँ होती, समझौता अच्छा लगता है, 


जहाँ चर्चा हो शांति की,वहाँ समझौता सर्वश्रेष्ठ होता है, 


जब बात आये सिध्दांतों की, समझौता काम न आता है, 


परहित के लिए भी कभी-कभी,अच्छा समझौता होता है |



स्वरचित, मीना शर्मा, 



समझौता हर दीवार को तोड़ता है
रिश्तों के हर दरख्त को जोड़ता है
दर्द तो तब होता है जब अपना कोई
स्वार्थ की खातिर विश्वास तोड़ता है

समझौता कर लिया जज्बातों से

लाख गलत है वो अपने इरादों से
फिर भी दे दिया दगा अपनो को
हाथ मिला लिया अब झूठे वादों से 


स्वरचित :- मुकेश राठौड़ 

समझौता करने वालों की कभी हार नही होती
लाख सहे सितम कभी परवाह नही होती
समझौता से कभी जीत का अंहकार नही होता
तो कभी समझौता करने से अंह को चोट नही पहूचँता।

समझौता जागृत करती है संतोष की भावना
कि समझौता मैंने किया है किसी और ने नही
यह मेरी खुद्दारी है,किसी की गद्दारी नही।

स्वरचित -आरती -श्रीवास्तव। 


अरे समझौता करना
सीखना हो तो हम से सीखो
कदम पर कदम पर 
समझौता किया है हमने
जहाँ समझौता तोड़ा 
वही दुर्गति हुई है हमारी 
सुबह से शाम तक
बरतन माझंने से 
कपडे धोने तक
बेड टी बना कर
बीवी के पास ले जाने तक
खाना बनाने से 
खाना खिलाने तक
मन्नू और झोला उठा कर
बाजार जाने तक

हाँ में हाँ मिलाने का

आफिस से सीधे घर आने का
सासु जी को खुश रखने का
सालियो को पानी पूरी खिलाने का

बस समझौते पर ही 

जी रहा हूँ यारों 
जब से घोड़े के 
साथ सजा हूँ 
वरमाला डाली है 
सातवां फैरा पूरा किया है

अपने को मिश्री की 

ढली सी कहने वाली से
नाजो नखरे और
कमसीन सी दिखने वाली ने
ब्याह किया है उसने मुझसे 
हाँ बाबा हाँ 
आपने सही पहचाना 
बीवी है वो मारी
जो समझौते के नाम पर 
नचा रही है मुझ को

स्वलिखित 

लेखक संतोष श्रीवास्तव 





बनते रिश्ते
चादर समझौता
ढ़के बुराई

जिद है ताला
समझौता है चाबी
सुखी गृहस्थी

प्रेम के रिश्ते
समझौते की ड़ोर
रचे संसार

करें आदर
विचार समझौता
बुजुर्ग ढ़ाल

स्वरचित-रेखा रविदत्त
14/12/18
शुक्रवार


लड़खड़ाते मेरे कदम को
समझौता ही संभाला है
धूप-छांव इस राह पर
संयम रखना सिखाया है। 

कटुता भरे वाणी को
समझौता ही मधुरता लाता है
टूटते रिश्ते को
यही बांधे रखता है। 

समझौता करके ही
हर दूरियाँ मिट जाती है
आएँ कितनी भी मुश्किलें
हमें मंजिल तक पहुँचाती है।। 

स्वरचित: - मुन्नी कामत।


समझौता
समझौता-
एक प्रयास
दो ध्रुवों के
एकीकरण का
तलाश-
उलझे हुये 
समीकरण का
मान्य हल,
प्रमेय प्राक्कल्पना
दो पंथ विलय की
एक संकल्पना
किंचित तज कर
विजय का अन्वेषण
कभी विवशता
कभी प्रसन्नता
कभी दोहन
कभी सफल आरोहण
कभी क्षुब्ध अंतर्मन
पर प्रकट नहीं रुदन
तथापि,
समझौता-सर्वरोगहर औषधि
हरता बाधारूपी व्याधि
समझ सहित एक उलझन
पर,
समझौता से-
सरल पथगामी जीवन
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
घु कविता(मुक्तक)

समस्याओं से हार गया मन,
समझौतों से थक गया तन।
कौन जाने आगे क्या होगा,
वर्तमान हालातों से डर गया जन।

ठंढी ठंढी हवा चली है,
गोरी का मन बहुत सही है।
समझौता करने के कारण,
मेरा मन भी अब भारी है।
(अशोक राय वत्स) स्वरचित
जयपुर


समय सदा ना एक -सा कभी रहता
अभी वर्तमान पल भर में अतीत कहलाता
जीवन सरिता के दो छोर
एक इस ओर दूज़ा उस ओर
निज प्रवाह से उनका करती स्पर्श
उतार-चढ़ाव परिप्रेक्ष्य में करती विमर्श
जीवन एक चुनौती कहलाती
पक्ष- विपक्ष इसकी नियति बन जाती
कभी कंगूरा बन शान बढ़ाती
कभी नीव की ईंट बन जाती
कभी पुष्प बनकर खिल जाती
कभी कंटक बनकर पीर दे जाती
कभी बनाती उजला संसार
कभी छा जाता गहन अंधकार
कभी पल में कुछ पा लेते
कभी पल में कुछ खो देते
पाने खोने का समन्वय समझौता 
सुख में मुस्कुराना 
दुख में मुरझाना 
सुख दुःख का समन्वय समझौता
अमीरी में जी भर इतराना
ग़रीबी से ख़ूब बौखलाना
अमीरी ग़रीबी का समन्वय समझौता
संयोग पक्ष सदा मन को हर्षाता
वियोग पक्ष में आँसू बहाता
संयोग वियोग का समन्वय समझौता
नाम शौहरत से नई पहचान बनाना 
अनाम रहकर कहीं नाम गुम जाना
नाम अनाम का समन्वय समझौता
वफ़ा मिले तो मिलती राहत
जफ़ा से हो जाते आहत
वफ़ा जफ़ा का समन्वय समझौता
कुछ रिश्तों से ख़ुद जुड़ जाना
कभी कुछ रिश्तों से नाता तोड़ देना
बनते बिगड़ते रिश्तों का समन्वय समझौता
मेहनत करें हो जाते फलित
क़िस्मत कभी कर देती विफलित
मेहनत क़िस्मत का समन्वय समझौता
समझौतों में है ऐसी प्रीत
यथासमय को जीने की रीत ।
स्वरचित
संतोष कुमारी

समझौता 
परिस्थितियों से
करना है ठीक
जिंदगी चलती है
समझौतों से
लेकिन
मन मारकर
किया गया समझौता
रोक देता खुशियां
हम यंत्रवत
जीते हैं जिंदगी
अंदर ही अंदर
सुलगते जैसे कोई
हो गीली लकड़ी
याकि धुएं में जैसे
घुट रहा हो दम
समझौता तभी हो
जब उससे मिले सुकून
नकि अन्याय,अधर्म
अत्याचार से करके
समझौता हम मार दें
अपनी अंतरात्मा को
या बोझ बना लें जिंदगी को
ढोते रहें ताउम्र 
अपनी ही ख्वाहिशों का जनाजा।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित

विधा - लघुकथा

शांति कुछ देर बाहर धूप सेकने खटिया लगाकर बैठ गयी।
आस -पास की कुछ औरतें भी वही धूप में उसके पास आकर बैठ गई।
तभी अंदर से शांति के बेटे -बहू की लड़ने की आवाज़ आयी।
पड़ोस की कमला कहने लगी "अम्मा ये तुम्हारे बहू -बेटे इतना लड़ते क्यों है?
रोज़ ही तुम्हारे घर से लड़ने की आवाज़ आती है।
दोनों पढे -लिखे है,पैसों की कोई कमी नही ।दोनों कमाते है।फिर भी काहे गंवारों की तरह लड़ते रहते है।
"तुम काहे नहीं समझाती दोनों को। 
शांति चुप साधे बैठी रही।
तभी वहाँ बैठी और महिलाएं भी
यही बात बार -बार दोहराने लगी
"सच अम्मा, कारण पता कर ,तुम समझौता कराओ दोनों का ।
अच्छा नही लगता।"
शांति तुरंत खटिया से उठी और घर के अंदर गई।
कुछ देर बाद वो हाथ में एक थैला लेकर बाहर निकली।
महिलाएं अभी भी वहीं बैठी थी।
"अरे अम्मा ये थैला लेकर कहाँ चल दी ।
अम्मा धीरे से बोली,"बेटे बहू में समझौता करवाने"
और फिर अम्मा उस घर कभी नहीं लौटी...

स्वरचित
गीता लकवाल
गुना मध्यप्रदेश


आज का शब्द - समझौता 

तुझसे बावसता वो सारे मरहले अपने नाम कर लूँ
ऐ उमर-ए-रवां ! ठहर,आज तुझसे समझौता कर लूँ ।

मुख़्तसर सी ज़िंदगी में जो इतनी मोहलत मिले जाए
चंद घड़ियाँ निशात की ,मैं भी अपने नाम कर लूँ।

बशर कहाँ कभी निज़ात पा सका है अपने माज़ी से 
तल्ख़ यादों को क्यूँ न दिलोदिमाग़ से रिहा कर लूँ।

हर क़दम उठे मंज़िल की ज़ानिब ये जरुरी तो नहीं
अनजान राहों से भी आज ख़ुद को आशना कर लूँ ।

ऐ ! बादे-सबा आहिस्ता गुज़रना मेरी दहलीज़ से 
पलकों की चिलमन में ख़्वाबों का बसेरा कर लूँ ।

ये दिल का सफ़ीना और ये ख़्वाहिशों का सैलाब 
याइलाही ! बता कैसे खुद को तूफ़ाँ के हवाले कर लूँ ।

स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित (c)भारगवी रविन्द्र 

बावसता -संबंधित ; मरहलें-समस्या ; उमर ए रवां - वकत की रवानी 

मुख़्तसर - छोटी सी ; निशात - ख़ुशी के ; बशर -इंसान ;निज़ात -मुक्ति 

माज़ी -अतीत ; तल्ख़ -कड़वी ; ज़ानिब -की ओर ; आशना - परिचित 

चिलमन -परदा ; सफ़ीना - कश्ती ; सैलाब - बाढ़


जब भी ये 
बहुमूल्य रिश्ते
खो देते 
है अहमियत,
अस्तित्व का पोषक,
भविष्य की आशाओं
का उद्गम 
बन जाते है
समझौते
जो किये जाते है
कभी विवशता में
हताशा में,बहक कर
तो कभी प्रतिकूल परिस्थितियों में,
बन जाते है
पीर अवसान
हृदय होता है जब 
किंकर्तव्यविमूढ़
प्रश्नों के हल खोजने में
त्वरित विकल्प
बन सुलझाता है
जीवन की गुत्थियाँ
अक्सर 
समझौता।

स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'


समझौते का दंश 
क्यों सह रहा भारत वंश 
भारत का विभाजन 
आखिर क्या था प्रयोजन ।
समझौता बना गरल 
बार-बार पीना 
नहीं है सरल ।
बड़े सद्भाव से हुआ प्रयास 
अटारी लाहौर बीच 
दौड़ी समझौता एक्सप्रेस ।
लेकर प्रेम शांति का संदेश 
आगे आगे रेल 
पीछे दौड़ते घोड़े 
फिर भी नापाक इरादों ने 
नफरत के बम थे फोड़े ।
जिन्हे समझौते की कद्र नहीं 
भाई को देते चोट 
इन्हे होता दर्द नहीं ।
समझौते की ओट में 
करते पीठ पीछे प्रहार 
बस बहुत हुआ 
खत्म करो अब 
ये छल कपट की 
अंतहीन तकरार ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह 
भिलाई (दुर्ग )


 विधा - दोहा
विषय - समझौता


समझौते मिल कर करो ,दिल से लियो निभाय
हार जीत इसमें नहीं,नेह निभाओ जाय

समझौते परिवार में, कदम कदम पर होय
मान सभी दे कर चलें ,दुख काहू को होय

सरहद बने न देश में ,सखा सभी बन जाय
सारी भूमि एक है , सन्धि करें सुख पाय

सामाजिक सम्बन्ध सब , समझौतों की नींव
मर्यादा पालन करें , सुख पावें सब जीव

सरिता गर्ग
(स्व रचित)

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