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ब्लॉग संख्या :-240
संस्कार तो मात्र शब्द बनकर रह गया,
आज का मानव तो बस दिखावे में बह गया,
बच्चों में संस्कार अब मुश्किल से मिलते हैं,
पुराने लोगों का बस मजाक बनाते दिखते हैं|
दादी नानी की कहानी अब पुरानी हो गई,
दुनियां तो बस "मोबाइल दिवानी" हो गई,
उगलियां तो बस मोबाइल में सैट हो गई,
बाकी रिश्ते-नातों की तो जैसे डैथ हो गई |
भारतीय संस्कृति तो अब धूमिल हो गई,
पश्चमि सभ्यता की आकृति बड़ी हो गई,
संस्कार विहीन बच्चों की मनमानी हो रही,
अधूरे ज्ञान से उनकी कैसी बर्बादी हो रही |
संस्कार को सब औषधि समान लीजिए,
दवाई कड़वी है पर सेवन जरूर कीजिए,
बच्चों को महत्व इसका समझाया कीजिए,
फिर जीवन में खुशहाली का आनंद लीजिए |
स्वरचित*संगीता कुकरेती*
आज का मानव तो बस दिखावे में बह गया,
बच्चों में संस्कार अब मुश्किल से मिलते हैं,
पुराने लोगों का बस मजाक बनाते दिखते हैं|
दादी नानी की कहानी अब पुरानी हो गई,
दुनियां तो बस "मोबाइल दिवानी" हो गई,
उगलियां तो बस मोबाइल में सैट हो गई,
बाकी रिश्ते-नातों की तो जैसे डैथ हो गई |
भारतीय संस्कृति तो अब धूमिल हो गई,
पश्चमि सभ्यता की आकृति बड़ी हो गई,
संस्कार विहीन बच्चों की मनमानी हो रही,
अधूरे ज्ञान से उनकी कैसी बर्बादी हो रही |
संस्कार को सब औषधि समान लीजिए,
दवाई कड़वी है पर सेवन जरूर कीजिए,
बच्चों को महत्व इसका समझाया कीजिए,
फिर जीवन में खुशहाली का आनंद लीजिए |
स्वरचित*संगीता कुकरेती*
संस्कार
मेरा शीर्षक
उत्तराखंड की व्यथा
उत्तराखंड की प्यारी कथा,
बन गयी इसकी ह्रदय व्यथा,
कहाँ गयी वो बात निराली
कहाँ गयी वो पहाड़ी प्रथा ll
सूने हो गए है घर बार,
बिछड़ गए है परिवार,
रोजी रोटी के चक्कर में,
बुढ़ापा झेल रहा है मार l
हर पल हर दिन राह निहारे,
बच्चो की किलकारी कहाँ रे,
विदेशी हो गए अपने सारे,
आजा तुझ को पहाड़ पुकारे ll
पंत सुमित्रा की ये धरती,
अपने ही बच्चो को तरसती,
गौरा देवी का आंदोलन,
आज फिर से तुम्हे पुकारे ll
नदी नाले अब सुख रहे है,
नर ओ नारी को तरस रहे है,
जंगल सारे काट दिए अब,
बाघ, गोणि को तरस रहे है ll
बूढ़े हो गये है अब पहाड़,.
नहीं रही बाघों की दहाड़,
निर्जन है अब गलियाँ सारी,
खेतो का हुआ दाह संस्कार ll
क्या मिला तुझे उत्तराखंड,
बिखर गया तू खंड खंड,
नहीं रहा कोई चाहने वाला,
देवोभूमि पर भी.....
हो रहे अब तो अत्या चार ll
होश में आओ मेरे भाई,
जन्मभूमि में माँ समाई,
शत्रु जब इसपे घात करेंगे,
तब क्या पाओगे मेरे भाई ll
पहाड़ अंतस तड़प रहा है,
माँ को जलते देख रहा है,
सब मिलकर करे लड़ाई
आव्हान करे सबका" उत्साही"
कुसुम पंत उत्साही
स्वरचित
मेरा शीर्षक
उत्तराखंड की व्यथा
उत्तराखंड की प्यारी कथा,
बन गयी इसकी ह्रदय व्यथा,
कहाँ गयी वो बात निराली
कहाँ गयी वो पहाड़ी प्रथा ll
सूने हो गए है घर बार,
बिछड़ गए है परिवार,
रोजी रोटी के चक्कर में,
बुढ़ापा झेल रहा है मार l
हर पल हर दिन राह निहारे,
बच्चो की किलकारी कहाँ रे,
विदेशी हो गए अपने सारे,
आजा तुझ को पहाड़ पुकारे ll
पंत सुमित्रा की ये धरती,
अपने ही बच्चो को तरसती,
गौरा देवी का आंदोलन,
आज फिर से तुम्हे पुकारे ll
नदी नाले अब सुख रहे है,
नर ओ नारी को तरस रहे है,
जंगल सारे काट दिए अब,
बाघ, गोणि को तरस रहे है ll
बूढ़े हो गये है अब पहाड़,.
नहीं रही बाघों की दहाड़,
निर्जन है अब गलियाँ सारी,
खेतो का हुआ दाह संस्कार ll
क्या मिला तुझे उत्तराखंड,
बिखर गया तू खंड खंड,
नहीं रहा कोई चाहने वाला,
देवोभूमि पर भी.....
हो रहे अब तो अत्या चार ll
होश में आओ मेरे भाई,
जन्मभूमि में माँ समाई,
शत्रु जब इसपे घात करेंगे,
तब क्या पाओगे मेरे भाई ll
पहाड़ अंतस तड़प रहा है,
माँ को जलते देख रहा है,
सब मिलकर करे लड़ाई
आव्हान करे सबका" उत्साही"
कुसुम पंत उत्साही
स्वरचित
🍁
हार-जीत अरू सुख व दुख का,
संगम बहुत पुराना है।
जीवन के उन्ययन के पथ पे,
इनका आना-जाना है॥
🍁
संस्कार मे पले-बढे जो,
मार्ग वही पहचाना है।
हर विपत्ति मे अडिग खडा वो,
धैर्य उसी ने जाना है॥
🍁
संस्कार पर टिका हुआ है,
राष्ट्र, धर्म , परिवार सभी।
शेर की रचना आपके आगे,
संस्कार को जान सभी॥
🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
हार-जीत अरू सुख व दुख का,
संगम बहुत पुराना है।
जीवन के उन्ययन के पथ पे,
इनका आना-जाना है॥
🍁
संस्कार मे पले-बढे जो,
मार्ग वही पहचाना है।
हर विपत्ति मे अडिग खडा वो,
धैर्य उसी ने जाना है॥
🍁
संस्कार पर टिका हुआ है,
राष्ट्र, धर्म , परिवार सभी।
शेर की रचना आपके आगे,
संस्कार को जान सभी॥
🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
-------------------
वक्त की धारा में
धूमिल होते संस्कार
नहीं दिखाई देता कहीं
पहले जैसा प्यार और सम्मान
रिश्तों में भी मचा रहता
आपसी द्वंद
सब इसी कोशिश में लगे
कि हम नहीं किसी से कम
अब तो आया इंग्लिश का ज़माना
हिंदी बन गई पुराना फसाना
हाय,हैलो करके होता है
अब बड़ों का सम्मान
कौन चरणस्पर्श कर
रीढ़ की हड्डी को करे परेशान
भूल गए इस संस्कार को
बड़ों के आदर-सत्कार को
आशीर्वाद में उनसे
मिलने वाले प्यार को
अपनी सभ्यता संस्कृति का
घोंट कर गला
कौनसा संस्कार अपने
बच्चों को दोगे तुम भला
ऊपरी चकाचौंध तो कुछ
दिन रंग दिखाती है
अगर संस्कार अच्छे हैं
खूबसूरती दिन पर दिन
निखरती जाती है
इसलिए हमेशा करो बड़ों
का सम्मान क्योंकि
उनसे मिलता है हमें उत्तम ज्ञान
***अनुराधा चौहान*** मेरी स्वरचित रचना
वक्त की धारा में
धूमिल होते संस्कार
नहीं दिखाई देता कहीं
पहले जैसा प्यार और सम्मान
रिश्तों में भी मचा रहता
आपसी द्वंद
सब इसी कोशिश में लगे
कि हम नहीं किसी से कम
अब तो आया इंग्लिश का ज़माना
हिंदी बन गई पुराना फसाना
हाय,हैलो करके होता है
अब बड़ों का सम्मान
कौन चरणस्पर्श कर
रीढ़ की हड्डी को करे परेशान
भूल गए इस संस्कार को
बड़ों के आदर-सत्कार को
आशीर्वाद में उनसे
मिलने वाले प्यार को
अपनी सभ्यता संस्कृति का
घोंट कर गला
कौनसा संस्कार अपने
बच्चों को दोगे तुम भला
ऊपरी चकाचौंध तो कुछ
दिन रंग दिखाती है
अगर संस्कार अच्छे हैं
खूबसूरती दिन पर दिन
निखरती जाती है
इसलिए हमेशा करो बड़ों
का सम्मान क्योंकि
उनसे मिलता है हमें उत्तम ज्ञान
***अनुराधा चौहान*** मेरी स्वरचित रचना
संस्कारों के समावेश से
सदाचारित जीवन होता
जैसा जीवन कर्म करेंगे
वैसा ही तो फल मिलता
मातपिता और गुरुजन मिलकर
पल्लवित सद संस्कार करते हैं
पुष्पित फलित होकर जीवन में
मन मानस सुधा रस को भरते हैं
जीवन सौंदर्य संस्कार से
जन जीवन ऊपर उठता है
कर्मशील ही सद कर्मो से
नित दुनियां आगे बढ़ता है
सोलह संस्कारों के बल पर
विश्व गुरु जग में कहलाया
सुधा ज्ञानामृत रस लेकर
प्रिय जगति सीख सिखाया
संस्कार साधन साधक के
संस्कार नव जीवन करदे
संस्कार नित दिशा बोध दे
जीवन में सुमङ्गल भर दे।।
स्व0 रचित
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
सदाचारित जीवन होता
जैसा जीवन कर्म करेंगे
वैसा ही तो फल मिलता
मातपिता और गुरुजन मिलकर
पल्लवित सद संस्कार करते हैं
पुष्पित फलित होकर जीवन में
मन मानस सुधा रस को भरते हैं
जीवन सौंदर्य संस्कार से
जन जीवन ऊपर उठता है
कर्मशील ही सद कर्मो से
नित दुनियां आगे बढ़ता है
सोलह संस्कारों के बल पर
विश्व गुरु जग में कहलाया
सुधा ज्ञानामृत रस लेकर
प्रिय जगति सीख सिखाया
संस्कार साधन साधक के
संस्कार नव जीवन करदे
संस्कार नित दिशा बोध दे
जीवन में सुमङ्गल भर दे।।
स्व0 रचित
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
सुसंस्कारों से सज्जित गर
अपना जीवन हो जाऐ।
जगमग सचमुच मनमंन्दिर
सुरभित मन पावन हो जाऐ।
सुसंस्कृति संस्कार दें बच्चों को,
इनका जीवन बन जाऐ।
सुंदरतम हो परिवार हमारा,
समृद्ध देश भी बन जाऐ।
प्रथम गुरू मातपिता बच्चों के
संस्कार घर से मिलते हैं।
फिर गुरूदेवजी से इनको,
सदज्ञान सन्मार्ग मिलते हैं।
सत्संस्कार परवरिश हो अच्छी,
सन्मति सुख सब मिलते हैं।
भक्तिभाव ये भजनानंदी,
हमें सत्संगति से मिलते हैं।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
अपना जीवन हो जाऐ।
जगमग सचमुच मनमंन्दिर
सुरभित मन पावन हो जाऐ।
सुसंस्कृति संस्कार दें बच्चों को,
इनका जीवन बन जाऐ।
सुंदरतम हो परिवार हमारा,
समृद्ध देश भी बन जाऐ।
प्रथम गुरू मातपिता बच्चों के
संस्कार घर से मिलते हैं।
फिर गुरूदेवजी से इनको,
सदज्ञान सन्मार्ग मिलते हैं।
सत्संस्कार परवरिश हो अच्छी,
सन्मति सुख सब मिलते हैं।
भक्तिभाव ये भजनानंदी,
हमें सत्संगति से मिलते हैं।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
कलयुगी पूत
कुछ ऐसे होते
माने रिश्तों के पैसे होते
कुछ सच मे होते
श्रवण कुमार
पर कुछ ऐसे भी हैं
रिश्तों को ढोते
पुत्रत्व,महज एक भार
बूढ़ा बाप,तड़पता
रुग्ण-शैय्या पर,
वसीयत टटोलते
सकल परिवार
दवा-दारू को कर
दरकिनार
मानो,मौत का इंतज़ार
निकला प्राण
गम में संतान
देख,बिलखती सांसू
बहाई बहुए भी
कुछ घड़ियाली आँसू
बजने लगे ढ़ोल
शायद,छुप जाए पोल
प्रदर्शित खूब प्रेम-प्यार
बड़प्पन का प्रचार
नया वसन
नया कफन
आज सुसज्जित
मृत पुरातन तन
पुष्प बिखेरते पथ पर
ले चले सब रथ पर
अर्थी-जुलूस शानदार
जीवन जैसे भी गुजरे?
पर भव्य अंतिम संस्कार!
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
समाज को बदलना है,
तो शुरूआत घर से होगी।
संतान को बदलना है,
तो शुरूआत खुद से होगी।
बोलने से कोई नहीं कुछ सीखता है,
दण्ड से कोई नहीं कुछ सीखता है।
आचरण जैसा तुम्हारा स्वयं होगा,
बीज संतति में भी वैसा पडेगा।
दोष देना संतति को व्यर्थ है,
संस्कारित करने में ही अर्थ है।
देख लो आईना है सच दिखाता,
संतति का आचरण बन आईना जाता।
छोटा शिशु भी देखा देखी सीखता सब,
गढता जाता कुंभ सम उसका व्यक्तित्व।
संस्कारित आचरण यदि स्वयं का होगा,
देख शिशु स्वयं ही संस्कारवान बनेगा।
नारी का आदर यदि घर-घर में होगा,
तो कोई भी बालक न बेहूदगी करेगा।
अत्याचार जब घर में वह देखता है,
अत्याचारी बन वह भी निखरता है।
सद्गुणों की उसको तब पहचान होगी,
घर में जब सद्गुणों की शान होगी।
संस्कार आचरण में यदि खुद
के होंगे,
घर के बच्चे स्वतःही संस्कारित होंगे।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
तो शुरूआत घर से होगी।
संतान को बदलना है,
तो शुरूआत खुद से होगी।
बोलने से कोई नहीं कुछ सीखता है,
दण्ड से कोई नहीं कुछ सीखता है।
आचरण जैसा तुम्हारा स्वयं होगा,
बीज संतति में भी वैसा पडेगा।
दोष देना संतति को व्यर्थ है,
संस्कारित करने में ही अर्थ है।
देख लो आईना है सच दिखाता,
संतति का आचरण बन आईना जाता।
छोटा शिशु भी देखा देखी सीखता सब,
गढता जाता कुंभ सम उसका व्यक्तित्व।
संस्कारित आचरण यदि स्वयं का होगा,
देख शिशु स्वयं ही संस्कारवान बनेगा।
नारी का आदर यदि घर-घर में होगा,
तो कोई भी बालक न बेहूदगी करेगा।
अत्याचार जब घर में वह देखता है,
अत्याचारी बन वह भी निखरता है।
सद्गुणों की उसको तब पहचान होगी,
घर में जब सद्गुणों की शान होगी।
संस्कार आचरण में यदि खुद
के होंगे,
घर के बच्चे स्वतःही संस्कारित होंगे।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
"संस्कार"
संस्कारों से झुकी नारी को
समझो ना पाँव की जूतियाँ
संस्कारों की दुहाई देकर
ना पहनाओ बेड़ियाँ
संस्कारों की मर्यादा को
समझे बेटा हो या बेटियाँ
हम अभिभावकों की ही
है यह जिम्मेदारियाँ
बेटी की शिक्षा में
बाधा न बने संस्कार
आसमान में उड़ने की
है उसे भी अधिकार
बच्चे आज जैसे भी हैं बने
हमने जैसे संस्कार हैं भरे
बोया हमने नीम तो
आम कैसे फले।
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
संस्कारों से झुकी नारी को
समझो ना पाँव की जूतियाँ
संस्कारों की दुहाई देकर
ना पहनाओ बेड़ियाँ
संस्कारों की मर्यादा को
समझे बेटा हो या बेटियाँ
हम अभिभावकों की ही
है यह जिम्मेदारियाँ
बेटी की शिक्षा में
बाधा न बने संस्कार
आसमान में उड़ने की
है उसे भी अधिकार
बच्चे आज जैसे भी हैं बने
हमने जैसे संस्कार हैं भरे
बोया हमने नीम तो
आम कैसे फले।
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
सतत सनातन धर्म और शास्त्रों के अनुसार
जन्म से लेकर मृत्यु तक हैं सोलह संस्कार
पहला गर्भाधान है जीवन का आधार
जीवन अंकुर लेता है जिसमें एक आकार
दूसरा उसके बाद है पुंसवन संस्कार
स्वस्थ और गुणवान हो बालक बली अपार
उपयोगी है तीसरा सीमन्तोन्नयन संस्कार
जिससे बालक सीखता है आचार विचार
चौथा जन्मोपरांत है जातकर्म संस्कार
दोष रहित संतान हो
आता उसके बाद है नामकरण संस्कार
बालक को उसी नाम से जानता है संसार
संस्कार फिर छठा है निष्क्रमण संस्कार
पंचभूत निर्मित ये तन
अन्नप्राशन संस्कार है संस्कार सप्तम
चखता स्वाद है अन्न का बालक सर्वप्रथम
अष्टम चूडाकर्म है संस्कार अद्भुत
बुद्धि होती तेज है सर होता मजबूत
कर्णवेध संस्कार है उपयोगी अथाह
होता नस,मस्तिष्क में सुचारू रक्त प्रवाह
उपनयन संस्कार की महिमा अति विशेष
तीन सूत्र में बसते हैं ब्रह्मा विष्णु महेश
अति विशेष संस्कार है वेदारम्भ संस्कार
ये जीवन में खोलता सभी ज्ञान के द्वार
ज्ञानार्जन कर गुरु से ले शिक्षा भंडार
निज घर आने के लिए समवर्तन संस्कार
सृष्टि सृजन कुल परंपरा करने को निर्वाह
जगत में अति महत्वपूर्ण है विवाह संस्कार
सब कर्तव्य से मुक्त हो पालन कर परिवार
षट - दर्शन से मुक्त करे वानप्रस्थ संस्कार
बन वैरागी विश्व को समझे निज परिवार
जग कल्याण की प्रेरणा दे सन्यास संस्कार
सब कर्मों का कर वहन चले स्वर्ग के द्वार
अंत्येष्टि संस्कार मनुष्य का है अंतिम संस्कार
जीवन की आहुति में है अंतिम ये होम
सांसारिक इस यात्रा का यही सत्य अनुलोम।
"पिनाकी"
धनबाद (झारखण्ड)
#स्वरचित
जन्म से लेकर मृत्यु तक हैं सोलह संस्कार
पहला गर्भाधान है जीवन का आधार
जीवन अंकुर लेता है जिसमें एक आकार
दूसरा उसके बाद है पुंसवन संस्कार
स्वस्थ और गुणवान हो बालक बली अपार
उपयोगी है तीसरा सीमन्तोन्नयन संस्कार
जिससे बालक सीखता है आचार विचार
चौथा जन्मोपरांत है जातकर्म संस्कार
दोष रहित संतान हो
आता उसके बाद है नामकरण संस्कार
बालक को उसी नाम से जानता है संसार
संस्कार फिर छठा है निष्क्रमण संस्कार
पंचभूत निर्मित ये तन
अन्नप्राशन संस्कार है संस्कार सप्तम
चखता स्वाद है अन्न का बालक सर्वप्रथम
अष्टम चूडाकर्म है संस्कार अद्भुत
बुद्धि होती तेज है सर होता मजबूत
कर्णवेध संस्कार है उपयोगी अथाह
होता नस,मस्तिष्क में सुचारू रक्त प्रवाह
उपनयन संस्कार की महिमा अति विशेष
तीन सूत्र में बसते हैं ब्रह्मा विष्णु महेश
अति विशेष संस्कार है वेदारम्भ संस्कार
ये जीवन में खोलता सभी ज्ञान के द्वार
ज्ञानार्जन कर गुरु से ले शिक्षा भंडार
निज घर आने के लिए समवर्तन संस्कार
सृष्टि सृजन कुल परंपरा करने को निर्वाह
जगत में अति महत्वपूर्ण है विवाह संस्कार
सब कर्तव्य से मुक्त हो पालन कर परिवार
षट - दर्शन से मुक्त करे वानप्रस्थ संस्कार
बन वैरागी विश्व को समझे निज परिवार
जग कल्याण की प्रेरणा दे सन्यास संस्कार
सब कर्मों का कर वहन चले स्वर्ग के द्वार
अंत्येष्टि संस्कार मनुष्य का है अंतिम संस्कार
जीवन की आहुति में है अंतिम ये होम
सांसारिक इस यात्रा का यही सत्य अनुलोम।
"पिनाकी"
धनबाद (झारखण्ड)
#स्वरचित
विधा=हाइकु
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
(1)संस्कार ऐसे
मुर्दा भी नहीं चले
बिना रू.पैसे
(2)आस्था का दीप
फैलाता है प्रकाश
संस्कार भक्ति
(3)कैसे है आप
संस्कार का आईना
खोलता राज
(4)बुजुर्ग बांटे
संस्कार भरे सिक्के
अपने बच्चों
(5) संस्कार माला
बच्चों को पहनाए
नाम कमाएं
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
🌷 स्वरचित 🌷
मुकेश भद्रावले
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
(1)संस्कार ऐसे
मुर्दा भी नहीं चले
बिना रू.पैसे
(2)आस्था का दीप
फैलाता है प्रकाश
संस्कार भक्ति
(3)कैसे है आप
संस्कार का आईना
खोलता राज
(4)बुजुर्ग बांटे
संस्कार भरे सिक्के
अपने बच्चों
(5) संस्कार माला
बच्चों को पहनाए
नाम कमाएं
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
🌷 स्वरचित 🌷
मुकेश भद्रावले
वक्त की रेत में बह गये आज संस्कार कहीं
पहले जैसी संस्कारों की बातें अब नहीं हैं मन में .
अब हर कोई संस्कार की बातें भूल रहा हैं
नई सदी के हिंडोले में संस्कार रहित होकर झूल रहा हैं .
ना ह्रदय में मान सम्मान हैं अपनों के लिये ना मर्यादा
देखो मेरा हिन्दुस्तान कहाँ और किस दिशा में चल रहा हैं .
संस्कार की बातें अब लगती हैं किताबी
बस संस्कार विहीन होकर हर किसी को चाँद को छूने की हैं बेताबी .
सत्य संस्कार जप तप की बातें केवल अब करते हैं लोग सिर्फ जज्बाती
देखो नवीन हिन्दुस्तान में कैसे संस्कार विहीन आंधी आई .
स्वरचित:- रीता बिष्ट
पहले जैसी संस्कारों की बातें अब नहीं हैं मन में .
अब हर कोई संस्कार की बातें भूल रहा हैं
नई सदी के हिंडोले में संस्कार रहित होकर झूल रहा हैं .
ना ह्रदय में मान सम्मान हैं अपनों के लिये ना मर्यादा
देखो मेरा हिन्दुस्तान कहाँ और किस दिशा में चल रहा हैं .
संस्कार की बातें अब लगती हैं किताबी
बस संस्कार विहीन होकर हर किसी को चाँद को छूने की हैं बेताबी .
सत्य संस्कार जप तप की बातें केवल अब करते हैं लोग सिर्फ जज्बाती
देखो नवीन हिन्दुस्तान में कैसे संस्कार विहीन आंधी आई .
स्वरचित:- रीता बिष्ट
हमारे संस्कार ही तो होते हम सबके जीवन की नीव,
सदा रहती टिकी इसी पर तो है मानव मन की भीत ।
भले बुरे हों चाहे जैसे अवचेतन में जो संस्कार हैं रहते,
हम सब उन संकेतों के द्वारा ही जीवन को जीते रहते ।
बालमन में पदचाप बडों की अंर्तमन पर जो पड़ती रहती,
जानेअनजाने वही जीवन पथ को संचालित करती रहती
संस्कारों को रोपित करने की बनी प्रथा बड़ी ही पुरानी,
बात नहीं कुछ बन पाती इससे है सबकी जानी पहचानी।
रहती अवमानना हमारे मन में हमेशा ही जिसके लिए ,
धारण करवा देने से पैदा होगा नहीं सम्मान उसके लिए ।
उत्सव संस्कारों का हर घर में हमेशा ही होता ही रहता,
अनुसरण कहाँ कहाँ होता है बतला ये कोई नहीं सकता।
जो वृक्ष लगाये हैं हमनें फल उनके हम ही तो खायेंगे,
जिन राहों पर हम चलते रहेंगे पीछे बच्चे भी तो आयेंगे ।
हम बच्चों को कोसा करते दोषारोपण तो करते ही रहते,
किया आज तक क्या हमनें कभी हम नहीं सोचा करते ।
निज भाषा निज राष्ट्रप्रेम सामाजिक समानता जो चाहते,
हमें भाईचारा अपनाना होगा सुविचार जो हम बच्चों में चाहते ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
सदा रहती टिकी इसी पर तो है मानव मन की भीत ।
भले बुरे हों चाहे जैसे अवचेतन में जो संस्कार हैं रहते,
हम सब उन संकेतों के द्वारा ही जीवन को जीते रहते ।
बालमन में पदचाप बडों की अंर्तमन पर जो पड़ती रहती,
जानेअनजाने वही जीवन पथ को संचालित करती रहती
संस्कारों को रोपित करने की बनी प्रथा बड़ी ही पुरानी,
बात नहीं कुछ बन पाती इससे है सबकी जानी पहचानी।
रहती अवमानना हमारे मन में हमेशा ही जिसके लिए ,
धारण करवा देने से पैदा होगा नहीं सम्मान उसके लिए ।
उत्सव संस्कारों का हर घर में हमेशा ही होता ही रहता,
अनुसरण कहाँ कहाँ होता है बतला ये कोई नहीं सकता।
जो वृक्ष लगाये हैं हमनें फल उनके हम ही तो खायेंगे,
जिन राहों पर हम चलते रहेंगे पीछे बच्चे भी तो आयेंगे ।
हम बच्चों को कोसा करते दोषारोपण तो करते ही रहते,
किया आज तक क्या हमनें कभी हम नहीं सोचा करते ।
निज भाषा निज राष्ट्रप्रेम सामाजिक समानता जो चाहते,
हमें भाईचारा अपनाना होगा सुविचार जो हम बच्चों में चाहते ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
"सँस्कार"
(1)
झुकता सर
"सँस्कार" पूजा जाता
घर मन्दिर
(2)
"सँस्कार" बोले
शब्द चढ़े जिह्वा पे
मन को खोले
(3)
पीढ़ियों चले
"सँस्कार"बने बीज
खून में फले
(4)
"सँस्कार"पूँजी
मन तिजोरी भरी
असली धनी
(5)
टूटा संवाद
"सँस्कार" बने आज
हास्य के पात्र
(6)
ऐब का नशा
"सँस्कार"से लुढ़के
घर दुर्दशा
(7)
दुःखी दरख्त
"सँस्कारों "की फसल
खा गया वक़्त
(8)
वक़्त न साथ
"सँस्कारों "का रोपण
चुनौती आज
स्वरचित
ऋतुराज दवे
(1)
झुकता सर
"सँस्कार" पूजा जाता
घर मन्दिर
(2)
"सँस्कार" बोले
शब्द चढ़े जिह्वा पे
मन को खोले
(3)
पीढ़ियों चले
"सँस्कार"बने बीज
खून में फले
(4)
"सँस्कार"पूँजी
मन तिजोरी भरी
असली धनी
(5)
टूटा संवाद
"सँस्कार" बने आज
हास्य के पात्र
(6)
ऐब का नशा
"सँस्कार"से लुढ़के
घर दुर्दशा
(7)
दुःखी दरख्त
"सँस्कारों "की फसल
खा गया वक़्त
(8)
वक़्त न साथ
"सँस्कारों "का रोपण
चुनौती आज
स्वरचित
ऋतुराज दवे
संस्कारों का खजाना
होते हैं
माता पिता और
दादा दादी नाना नानी
संस्कार होते हैं
अनमोल
जबकि खर्च होता नहीं
कुछ भी
संस्कार पहचान है
एक सुसंस्कृत परिवार के,
सुसंस्कृत बच्चो के
वर्षों तक याद रहते है
सुसंस्कृत संबंध
बडो की इज्जत
संयमित बोल ही हैं संस्कार
जब हम
अच्छी भाषा में
बात करेंगे
बच्चों से
बस संस्कार
उन्हें मिलते जाऐंगे
मूल मंत्र है संस्कार का
संस्कारकार बनें
संस्कारवान बनाऐ
स्वलिखित
"शीर्ष क-संस्कार"
संस्मरण
अभी हाल ही में मै अपने रिश्तेदार के यहाँ गई थी,वहां छोटी सी पार्टी थी।जब मैं खाना खा रही थी,तभी एक बारह बर्ष का लड़का जो उनका दूर का रिश्तेदार था,मुझे पानी देने आया ;
वह दायें हाथ से जग पकड़ा था, और बायें हाथ से दाहिने हाथ की कलाई, गरज ये की वह पानी बाटँने के लिए पूरी तन्मयता से लगा हुआ था।
उसके दोनों हाथों का इस्तेमाल कर पानी देने का संस्कार मुझे भीतर तक छू गया थोड़ी देर पहले तक उस लड़के के तरफ मैं खाश ध्यान नही दे रही थी; परन्तु उसका संस्कार मुझे प्रभावित कर गया।
मैं यह सोचने पर मजबूर हो गई की काश,यह संस्कार मैं अपने बच्चों को दे पाती;वह संस्कार मैंने भी अपने बचपन में अपने माँ-बाप से सीखी थी की किसी को भी पानी पूरी निष्ठा व सम्मान पूर्वक पिलानी चाहिए।धन्य है वो माता -पिता जो आधुनिकता के इस दौड़ में भी अपने बच्चों को अपनी पुरानी संस्करों से अवगत कराना नही भूलते।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
संस्मरण
अभी हाल ही में मै अपने रिश्तेदार के यहाँ गई थी,वहां छोटी सी पार्टी थी।जब मैं खाना खा रही थी,तभी एक बारह बर्ष का लड़का जो उनका दूर का रिश्तेदार था,मुझे पानी देने आया ;
वह दायें हाथ से जग पकड़ा था, और बायें हाथ से दाहिने हाथ की कलाई, गरज ये की वह पानी बाटँने के लिए पूरी तन्मयता से लगा हुआ था।
उसके दोनों हाथों का इस्तेमाल कर पानी देने का संस्कार मुझे भीतर तक छू गया थोड़ी देर पहले तक उस लड़के के तरफ मैं खाश ध्यान नही दे रही थी; परन्तु उसका संस्कार मुझे प्रभावित कर गया।
मैं यह सोचने पर मजबूर हो गई की काश,यह संस्कार मैं अपने बच्चों को दे पाती;वह संस्कार मैंने भी अपने बचपन में अपने माँ-बाप से सीखी थी की किसी को भी पानी पूरी निष्ठा व सम्मान पूर्वक पिलानी चाहिए।धन्य है वो माता -पिता जो आधुनिकता के इस दौड़ में भी अपने बच्चों को अपनी पुरानी संस्करों से अवगत कराना नही भूलते।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
विधा:हाइकु
संस्कार होते
जीवन का गहना
जिंदगी खुश
संस्कार हीन
हो जाते हैं बर्बाद
समाज क्षीण
अच्छे संस्कार
करें नव सृजन
सुखी समाज
संस्कार रत्न
करता है विकास
राष्ट्र निर्माण
सद संस्कार
परिवार की रीढ़
घर संसार
मनीष कुमार श्रीवास्तव
स्वरचित
संस्कार होते
जीवन का गहना
जिंदगी खुश
संस्कार हीन
हो जाते हैं बर्बाद
समाज क्षीण
अच्छे संस्कार
करें नव सृजन
सुखी समाज
संस्कार रत्न
करता है विकास
राष्ट्र निर्माण
सद संस्कार
परिवार की रीढ़
घर संसार
मनीष कुमार श्रीवास्तव
स्वरचित
संस्कार है शुद्धिकरण
आत्मा का
हृदय का
तन का और मन का
सिखाता है सन्मार्ग पर चलना
भले बुरे की पहचान कराता है
सिखाता है
परिवार ,समाज और
राष्ट्र के साथ चलना
संस्कार होता है
जन्म से
अंत्येष्टि तक
आजीवन सिखाये जाते हैं
संस्कार
निभाई जाती हैं
परम्परायें
संस्कारों के रूप में
प्रातः नमन
चरणस्पर्श
देते संस्कार बालक को
आज्ञापालन
बड़ो और गुरु का सम्मान
समय समय पर यज्ञ
बनाते हैं गुणवान मनुष्य को
सीखिए और सिखाइये
पालन करिए
हमारी संस्कृति
सभ्यता
और संस्कारों का
सरिता गर्ग
(स्व रचित)
आत्मा का
हृदय का
तन का और मन का
सिखाता है सन्मार्ग पर चलना
भले बुरे की पहचान कराता है
सिखाता है
परिवार ,समाज और
राष्ट्र के साथ चलना
संस्कार होता है
जन्म से
अंत्येष्टि तक
आजीवन सिखाये जाते हैं
संस्कार
निभाई जाती हैं
परम्परायें
संस्कारों के रूप में
प्रातः नमन
चरणस्पर्श
देते संस्कार बालक को
आज्ञापालन
बड़ो और गुरु का सम्मान
समय समय पर यज्ञ
बनाते हैं गुणवान मनुष्य को
सीखिए और सिखाइये
पालन करिए
हमारी संस्कृति
सभ्यता
और संस्कारों का
सरिता गर्ग
(स्व रचित)
विषय: संस्कार
विधा: लघु कविता
न जाने कहा गए संस्कार
आज माँ है बेटों पर भार।
न जाने कहाँ गए संस्कार।।
गरीबों पर अमीरों की फटकार।
न जाने कहाँ गए संस्कार।।
छोटे बड़ों पर कर रहे है वार।
न जाने कहाँ गए संस्कार।।
बेटी का जन्म है, दोनों में दरार।
न जाने कहाँ गए संस्कार।।
जहाँ बुजुर्गों का नही है सत्कार।
न जाने। कहा गए संस्कार।।
है रब अर्ज करूं मैं किस दरबार।
ताकि लौट आये फिर संस्कार।।
स्वरचित
सुखचैन मेहरा
विधा: लघु कविता
न जाने कहा गए संस्कार
आज माँ है बेटों पर भार।
न जाने कहाँ गए संस्कार।।
गरीबों पर अमीरों की फटकार।
न जाने कहाँ गए संस्कार।।
छोटे बड़ों पर कर रहे है वार।
न जाने कहाँ गए संस्कार।।
बेटी का जन्म है, दोनों में दरार।
न जाने कहाँ गए संस्कार।।
जहाँ बुजुर्गों का नही है सत्कार।
न जाने। कहा गए संस्कार।।
है रब अर्ज करूं मैं किस दरबार।
ताकि लौट आये फिर संस्कार।।
स्वरचित
सुखचैन मेहरा
१
आई जवानी
संस्कारों की चादर
बचाती लाज
२
संस्कारी पुत्र
बनकर श्रवण
दिखाते धाम
३
संस्कारी बहू
बाँधती परिवार
बने मिशाल
४
संस्कार परे
खुराफाती दिमाग
नष्ट जीवन
५
अच्छे संस्कार
महकाए संसार
बनके फूल
स्वरचित-रेखा रविदत्त
17/12/18
सोमवार
आई जवानी
संस्कारों की चादर
बचाती लाज
२
संस्कारी पुत्र
बनकर श्रवण
दिखाते धाम
३
संस्कारी बहू
बाँधती परिवार
बने मिशाल
४
संस्कार परे
खुराफाती दिमाग
नष्ट जीवन
५
अच्छे संस्कार
महकाए संसार
बनके फूल
स्वरचित-रेखा रविदत्त
17/12/18
सोमवार
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