Friday, December 7

"सादगी "5 दिसम्बर 2018

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माँ कितनी सादगी है तेरी छवि में,
बस यूँ खड़ी तुझे निहारती रहूँ मैं,
अंग में श्वेत साड़ी,सिर पर मुकुट,
हाथों में वीणा,श्वेत कमल में तु विराजे |

माँ हमें भी ऐसा वरदान देना,
बुद्धि,विवेक का पहने हम गहना,
सादगी जीवन में हम भी अपनायें,
मार्ग उचित हो तभी कदम आगे बढायें |

दया भाव मन में हमारे जगाना,
वीणा की एेसी धुन तुम बजाना,
सात सुरों का भेद हमकों भी बताना,
हाथ हमारे अच्छाई के लिए ही उठाना |
🌺🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌺

स्वरचित *संगीता कुकरेती*




सादगी तन - मन का श्रृँगार ।
प्रकृति का सुन्दर ये उपहार ।।
खुशियाँ देता मन मन्दिर को ,
कहलाता मन का अलंकार ।।
सादगी जीवन का आधार ।
लाता मन में स्वच्छ विचार ।।
मद - घमंड से दूर रखे यह ,
रक्खे सबसे मधुर व्यवहार ।।
सादगी दे हमको आनन्द ।
सुखानुभूति दे मधु मकरंद ।।
भेद भाव अरु सभी क्लेश से 
हो जाता मुक्त फिरे स्वछन्द ।।
आदेश कुमार पंकज 







मोहताज 
होती नहीं 
सादगी 
तारीफों की 

सादगी 
एक मिसाल है
कर्मठ
इन्सान की

सादा जीवन 
जी कर 
इन्सान पहुँचता है
बुलंदियों पर
कलाम, शास्त्री 
जैसे इन्सान है
एक मिसाल भी

बिना दिखावे के
इन्सान दिखता है
खूबसूरत
चेहरे को सजाना
तो 
एक फरेब है
एक धोखा है
असलियत जब
आती है सामने
दोमुहे इन्सान की 
तब खुलती पोल है

सादगी है 
बहू का
श्रृंगार 
सादगी है
संस्कारों की
पहचान

सादगी से 
जीना सीखो 
इन्सान 
जीवन-पथ होगा
आसान

लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

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मुद्दतें हो गई वो पल आ न सका।
तुम मुझे और मै तुम्हें पा न सका।


दौरे दस्तूर नुमाया बनावट का है। 
सजा न सका कुछ मै बना न सका।

कहने को मुहब्बत थी हमनें भी की।
तुम जता न सके मै निभा न सका।

तुम समन्दर बहा कर विदा हो गए।
चुप रहा अश्क दो मै बहा न सका ।

जख्म सब भर गए पर निशां खूब है। 
था अजब हादसा मै भुला न सका। 

आज हंसता है मुझपे यूं सारा जहाँ।
बैठ दरिया किनारे मै नहा न सका।

तेरी सादगी की तुझपे लानत सोहल।
लूट के दौर भी कुछ कमा न सका।

विपिन सोहल





सादगी रूप
बेदाग आचरण
मन मोहिनी

मन करूणा
सादगी की मूरत
माँ की ममता

पग सादगी
हृदय मे निवास
शर्म की राह

रूप निखरा
सादगी है गहना
तेज ललाट

छूटी सादगी
बदला व्यवहार
अपने भूले

स्वरचित-रेखा रविदत्त



सादगी है जीवन का गहना
हुआ महान जिसने भी पहना
सादा जीवन उच्च विचार
था लाल बहादुर का कहना

पहनो रंग हरा या भगवा
जाओ मंदिर या मस्जिद 
सादगी का कोई धर्म नहीं
करती मानवता सज्जित

लोभ मोह पाखंड सब
करता नष्ट सब जीवन
ग़र सादगी हो जीवन में
खिल जाए हर उपवन

स्वरचित :- मुकेश राठौड़





साद गी और सद् विचार
कर देते जीवन उद्धार
कितने ही उलझन के वार

सब मिट जाते मन दरार
साद गी और सद् विचार
दे देते है खुशियाॅ अपार
सबमें देते प्रेम दुलार
किसी पर ना अत्याचार
साद गी और सद विचार

स्वरचित एस डी शर्मा





पुर जोश हस्रत है तेरी इक सादगी के साथ।

यह अर्ज़ की है प्यार की मौजूदगी के साथ।
इतने संजोए ख़्वाब कि मा'ज़ूर हो गया,
पल-पल पुकार है तेरी शाइस्तगी के साथ।।
पुरजोश=उत्साह पूर्ण,मा'ज़ूर=विवश
शाइस्तगी=शिष्टता
स्वरचित-आप का साथी(मैं)




जो पाना सम्मान तो,रखो शुद्ध आचार।

नफ़रत सारी छोड़कर,करो सभी से प्यार।।
********************************

बुरे कर्म मत कीजिए, देती जनता श्राप।
पुण्य अगर पाना तुम्हें,रखिए नेक विचार।।
*****************"**************

सोच रखो निर्मल सदा,करिए नेकी काज।
जीवन में फिर देखना,चढ़ता बहुत निखार।।
*********************************

मन से लालच त्याग दो,त्यागो मैं का भाव।
समझो फिर सबका यहाँ,हो जाएं उद्धार।।
*******************************

सुख-सुविधा पूरी रहें, धन-दौलत भरपूर।
नहीं जरा-सी #सादगी,जीवन को धिक्कार।
*******************************

जीवन के दिन चार है,रहो सभी खुशहाल।
करो प्रेम सबसे यहाँ,करो नहीं तकरार।।
******************************

जाने अनजाने कभी, तुमसे मेरे 'राम'।
गलती हो जाएं अगर,करिए सदा सुधार।। 
******************************

स्वरचित
रामप्रसाद मीना'लिल्हारे'




सूरत हसीन बेमिसाल सादगी उसमें

आँखों के रास्ते से दिल में उतर गई।

न होश रहा मुझको न खुद की खबर रही
उसकी निगाह जाने क्या जादू सा कर गई।

चेहरा जो तेरी ज़ुल्फ़ से बेपर्दा हुआ है
चमका है चाँद चाँदनी हरसू बिखर गई।

वीरान बियाबान सी थी ज़िंदगी मेरी
तुम आए ज़िंदगी में ज़िंदगी सँवर गई।

वादा किया था साथ न छोड़ूंगी ऊम्र भर
बदला जो वक्त वादे से अपने मुकर गई।
"पिनाकी"




सादगी सुंदरता है
व्यक्तित्व की
शीतलता है मन की

मासूमियत है चेहरे की 
चमक है दृढ़ता और विश्वास की
सादगी गौरव है 
भारतीय संस्कृति का
आसमानों से टपकता 
नूर है सादगी
माटी की सौंधी 
सुगन्ध है सादगी
चन्द्रमा की धवल
चाँदनी है सादगी
सादगी में कोई दुराव नहीं
बनावट से दूर
मिटा देती मन की तपन
आकर्षण का केंद्र
मनोहारी छटा
छू लेती मन को
सादगी में स्पष्टता है
सरलता है
त्रुटि हीनता है
आत्मा के खूबसूरत 
लिबास का रंग है 
सादगी

सरिता गर्ग






1.

भरी देह में सादगी,हृदये उच्च विचार।
देर सबेर इन सबका होता है सत्कार ।।
2.
रूप रंग औ वस्त्र को,
सबकुछ समझें लोग।
धन के पीछे भागते,ते नहिँ आदर योग ।।
3.
टिके सादगी पर रहे ,धीर बहादुर लाल ।
किए सादगी से सदा ,
अद्भुत बड़े कमाल।।
4.
न्यून खर्च है सादगी,घटे जेब का बोझ।
आवश्यक जब पूर्ति हो,
बढ़े देह का ओज ।।

*****स्वरचित*********
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'



सादगी जीवन का रूप सलोना 

सादगी को समझो ना कोई खिलौना 

सादगी में जीवन जीना 
नहीं कोई हंसी खिलौना

दृढ़ता में रहना सादगी का गहना
गलत बातों को कभी न करना

सादगी से उनका विरोध है करना
कष्टों को चाहे पड़े ही सहना

सादगी से गौतम बुद्ध हुए महान
सादगी से गांधी बने देश की शान

राजेंद्र बाबू की सादगी महान 
शास्त्री जी का सब करें गुणगान

सादगी में होती निराली चमक 
दुनिया में सबसे प्रभावी धमक

मनीष कुमार श्रीवास्तव




आज समय नहीं है, अपनो के लिए अपनों को

गैर फिर भी वक्त निकाल लेते है, सही नहीं है।

तरकीबें पूछते है गैरों से वो, हमें लुभाने की
पर हमें इशारा भी नही कर पाते, सही नही है।

हम तो उनकी सादगी पर मरते है मेरे दोस्त
वो चेहरा देखकर प्यार करते है, सही नहीं है।

उनको कोई फर्क ही ना पड़े हम बिलखते रहे
पल-पल याद में भी हम ही तडफें, सही नही है।

कुछ मजबूरियां होंगी उनकी चलो मान लिया
पर पूरे दिन में पल भी बात न हो, सही नही है।

स्वरचित
सुखचैन मेहरा




है

स्निग्ध
सादगी
आती शांति
खिलती कांति
चरित्राभूषण
व्यक्तित्व आकर्षण



मत करो शृंगार शुचिते,

है शुचित मृदु प्राण तेरे,
वंद्य उर के बोल सारे,
और फिर क्या चाहिए री!
सादगी तेरी लुभाती।

कर लिए शृंगार सोलह,
कामिनी सा रूप धरकर।
बाण तीखा फिर चलाए,
तीक्ष्ण पीडा दे हृदय पर।
भामिनी हो वंद्य ऐसी-
प्रीत जो अनथक निभाती।

सादगी है भव्य गहना,
भाव का जिसमें नगीना।
प्रीत का लो आभरण री,
सच! वही तो दिव्य मीना।
प्रीत कर लो प्राण से प्रिय!-
जो लगे मृदु चित्तराती।
सादगी तेरी लुभाती।

नैन सचमुच वे सजीले,
नित्य हो मधुमास जिसमें।
होंठ हों वे ही रसीले,
थिरकते परिहास जिसमें ।
है वही वाणी मधुरतम-
कर्ण सबके जो सुहाती।
सादगी तेरी लुभाती।

खींच लेते बैन मधुरिम,
हास भरते प्राणपन में।
हो मधुर मुस्कान जैसे,
मुग्ध निश्चल बालमन में।
सादगी उच्च भावना है-
मान सबको ही दिलाती।
सादगी तेरी लुभाती।

मत करो शृंगार शुचिते,
है शुचित मृदु प्राण तेरे,
वंद्य उर के बोल सारे,
और फिर क्या चाहिए री!
सादगी तेरी लुभाती।

सरस्वती कुमारी,




रंग ढंग की परिभाषा का ही नाम है सादगी

आचार-विचार की पैमाईश का मानक रूप है सादगी
व्यक्तित्व को सजाता हुआ एक शृंगार है सादगी
दिखावे भरी दुनिया से महफ़ूज़ कराती है सादगी
जीवन के सुंदर यथार्थ बोध की परिचारिका है सादगी
‘सादा जीवन:उच्च विचार ‘से सदैव ओत प्रोत होती सादगी 
‘गुदड़ी के लाल,बापू महान ‘की पहचान बनी थी सादगी 
‘मिसाइल मैन’के व्यक्तित्व की अमिट छाप कहलाई सादगी
परिवर्तन के निहितार्थ अब हाय! मटमैली होने लगी सादगी
समय के चक्रव्यूह में घिरी बदहवाश दिखने लगी सादगी
आधुनिक परिवेश में पश्चिमी सभ्यता का समीकरण
नए रूप में हो रहा है आज मानव का मानवीकरण
चमचमाती चकाचौंध और संग दिखावे के रंग
सिर पर चढ़कर बोलते ,सादगी अब हो रही भंग !!!!
स्वरचित
संतोष कुमारी



सादा जीवन उच्च विचार,

सुख और संतोष की खान,
सादगी में ही सच्चा आनंद,
कृत्रिमता में भारी उलझन |

लोभ-लालच, मिथ्याचार,
शत्रुता के हैं आधार,
भौतिकता और भोगवाद,
जीवन में हैं विष की धार |

इच्छा,वासनाओं का अन्त नहीं,
दु:ख का मूल कारण हैं यही,
सादगी को अपनालो आज,
सुधर जायेंगें सारे काज |

आज सब हैं सुख-सुविधायें,
फिर भी मन है बड़ा अशांत,
तनाव,निराशा रहती हरपल,
बढ़ रहा अपराध,भ्रष्टाचार |

पहचानो जीवन की सच्चाई,
सादगी है शुद्ध मिठाई,
इसका सेवन सब करो,
जीवन में मिठास भरो |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*


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