Friday, December 28

"दिल "28दिसम्बर 2018

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             ब्लॉग संख्या :-251


दिल की आवाज

पहुंच जाती गर आवाज उन तक 
तो वो हमें याद तो जरूर करते।
मेरा होने की जिद्द तो ना सही 
मुझसे मिलने की फरियाद तो करते।।

शायद 'रीति' की दीवार से टकराकर
वर्णों में बिखर गई होगी मेरी आवाज।
या फिर किसी नई आवाज का जन्म,
आवाज मेरी लगी होगी बीच कतार।।

कोई दूसरी वजह भी ही सकती है 
मैं अभी से ये भ्रम क्यों पालूं ?
हा, थोड़ा इंतजार ऒर करता हूँ
खुद को उसका गुनहगार न बनालूं।।

वजह चाहे जो भी हो, विश्वास है
भूलना होता तो वो हमें हां, न करते।
यकीनन बेखबर है दिली आवाज से
वरना वो हमे इश्क बेपनाह न करते।।

पहुंच जाती गर आवाज उन तक 
तो वो हमें याद तो जरूर करते।
मेरा होने की जिद्द तो ना सही 
मुझसे मिलने की फरियाद तो करते।।

स्वरचित
सुखचैन मेहरा

जीव रूपी काया पर, 
ईश ने सबके दिल लगाया, 
हर धड़कन पर जिंदगी लिखी, 
और फिर उसकी किस्मत लिखी |

सभी प्राणियों ने अनुसरण किया, 
पर मानव ने बहुत बड़ा धोखा किया, 
उसने अपनी फ़ितरत ऐसी बदली, 
मासूम दिल की कभी भी न सुनी |

अपने ही लोगों से की गद्दारी, 
बेगानों की गुलामी स्वीकारी,
काश इनके सीने में भी दिल होते, 
आज देश के सितारे बदले होते |

हैवानियत की तो क्या सुनाऊँ कहानी, 
बच्चियों तक के बन बैठे शिकारी,
काश की इनके सीने में दिल होते, 
सबके बच्चे आज सुरक्षित होते |

भ्रष्टाचार सबसे बड़ी बिमारी, 
राजनीति में कर रहे सब मनमानी,
काश की इनके सीने में दिल होते, 
देश के युवक दर-दर की ठोकर न सहते |

सीमा पार बैठे जो आतंकवादी, 
अंधाधुंध कर रहे देश पर गोलाबारी, 
काश की इनके सीने में दिल होते, 
इंसान के दर्द को शायद समझते |

इसमें दोषी दोनों हैं नर, नारी,
नहीं समझ पा रहे अपनी जिम्मेदारी, 
दिल में नहीं किसी के ईमानदारी, 
बेईमानी का पलड़ा हो गया भारी |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*

अपने आप से जब कुछ सवाल करता है ।
हकीकत में दिल का बडा मलाल करता है।


डुबा के लिखता हूँ हर्फ को दर्द जख्मों में। 
लोग कहते हैं कि शायर कमाल करता है। 

जब कहा मैंने के आओ जरा मिल के चलें। 
कह रहे रहनुमा के तु क्यों बवाल करता है। 

मिला के आग को पानी मे जब बरसता है। 
बन के बादल मेरा साहिब धमाल करता है। 

हैरान हूँ खिला के फूल सेहरा मे दरिया में। 
किस तरह से वो रौशन जमाल करता है।

विपिन सोहल

हाइकु
1
गुलाब दिल
तन मन में खिला 
श्वास से जुदा।
-/-/-
2
मन के चोर
दिल की सलाखों में
प्रेम की बेड़ी।
-/-/-/
3
दिल घायल
मासूम तेरी हँसी
कातिल छुरी।
-/-/-?-/
4
प्रेम संचार
दिल से जुड़े तार
मन की बात।
-/-/-/
5
इश्क नौलखा
सांसो का हार बना
दिल पे सजा।
-/-/-
6/चाँद की रात
दिल मदहोश सा
प्रीत के साथ।
-/-/- 
7
लम्हें संजोय
दिल की एलबम
याद पिरोए।।
-/-/-
8
शोख,चंचल
अदा दीवानगी सी
घायल दिल।
-/-/-
9
दिल चँदा सा
उमंग तारों भरी
झलक रही।
-/-/-
10
दिल को थाम
मदमस्त लहर
बह न जाए
-/-/-
11
प्रेम संचार
दिल से जुड़े तार
मन की बात
#
12
दिल मंदिर
प्रेम भावों की शाला
विश्वास माला।
-//-
13
मोहन बंसी
मन मोहिनी काया
अधरों तले।
-/-/-
14
मन मोहिनी
दाबेली स्वाद लगी
जिह्वा सजी।
-/-/-
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित,मौलिक

दिल की किताब चेहरे पर झलकती 
सुख़नवर की कलम वही तो लिखती ।।
इबारत ही है जो लिखते सुख़नवर 
किताब भी शायद वो नसीब से मिलती ।।

वो आँखें वो नज़ाकत वो शरारत
लिखा दे जो हूबहू दिल की इबारत ।।
ऐसा दिल ऐसा सुख़नवर जब टकरायें
सचमुच 'शिवम' शायरी बज़्म सजती ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"

दोयुग्म का यह मिलन।
बहुसंवेदनशील होता है।
पुरूष प्रकृति पूर्ण भाव।

आधार जीवनयान होता है।
हम खुब रहे अटके भटके।
दिल योग देव से बनते है।
हस्त थामते उस प्रकृति का।
जो जन्मांतर से मिलते है।
योग वियोग की यह घड़िया।
समय बेला सुनियोजित है।
ऋण धन आदान प्रदान।
यह कर्मो की ही गहनता है।
🔴🔴🔴🔴🔴🔴🔴🔴
स्वरचितः
राजेन्द्र कुमार अमरा

विधा .. लघु कविता 
********************
🍁

तुम्हे समर्पित ये दिल मेरा,
चाहो तो इसे सम्हालो ।
ना चाहो तो तोड इसे तुम,
निःशब्द बना ही डालो॥
🍁

भाव भरे है प्रेम बहुत है,
झलक रहा है तुमपे।
समझ सको जो इन भावों को,
प्रेम लुटा दो मुझपे॥
🍁

ना चाहो तो कह देना तुम,
आँखो की भाषा समझे ।
कभी नही कुछ कहेगे तुमसे,
हम भी दिल से बोले ॥
🍁

दिल की बातें दिल वाले,
आँखो से करते रहते ।
शेर के दिल ने तो आँखो मे,
आसू ही भर रखे ॥
🍁

कहला हूँ तुम मत लिखवाओ,
आँखे, दिल और आसू पे।
भाव झलकते रहते है फिर,
यादों मे यायावर से॥
🍁

स्वरचित .... Sher Singh Sarraf

तर्ज- मुहब्बत की झूठी कहानी पे रोए

भले हो उजाला भले हो अँधेरा

जहां साथ तेरा वहीं हो बसेरा।

सभी राज दिल के अभी जान लें हम
बँधी डोर तुमसे यही मान लें हम
करो आज वादा न तुम छोड़ दोगे
लगाकर कभी दिल न तुम तोड़ दोगे
जनम तक रहे संग तेरा व मेरा
जहां साथ तेरा वहीं हो बसेरा।

लिखे गीत मैंने सुनो आज तुम भी
हमारे मिलन के बुनो ख्वाब तुम भी
अलग एक गाथा हमारी तुम्हारी
तुम्हीं आज पूजा तुम्हीं हो ख़ुमारी

अभी जिंदगी में हुआ है सवेरा
जहां साथ तेरा वहीं हो बसेरा।

बनी हीर रांझा हमारी कहानी
लिखेंगे नया छोड़ बातें पुरानी
सभी अप्सरा को जमीं पर उतारे
हमारे मिलन की गवाही सितारे

हमेशा बने तू प्रिये साज मेरा
जहां साथ तेरा वहीं हो बसेरा
भले हो उजाला भले हो अँधेरा
जहां साथ तेरा वहीं हो बसेरा


चारों तरफ की चहलकदमी ,
ठिठुरती सर्दी की रातें ,
रातभर चलती हवाओं की आहट ,
और ठंड से काँपते पक्षियों की आवाज ,
इतना सबकुछ होते हुए भी ,
अब तू ही बता दे यार ,
मेरे दिल में इतना सन्नाटा क्यूँ है ।।

वो मूसलाधार बारिश ,
डरावनी बिजलियाँ ,
गड़गड़ाहट करते काले बादल ,
और वो पानी के टप-टप की आवाज ,
इतना सबकुछ होते हुए भी ,
अब तू ही बता दे यार ,
मेरे दिल में इतना सन्नाटा क्यूँ है ।।

वो आग उगलता सूरज ,
बदन को जलाते लू के थपेड़े ,
टीलों से उड़ती हुई रेत ,
और प्यास से तड़पते जानवरों की आवाज ,
इतना सबकुछ होते हुए भी ,
अब तू ही बता दे यार ,
मेरे दिल में इतना सन्नाटा क्यूँ है ।।

वो बसंत का मौसम ,
फूलों से खेलती तितलियाँ ,
हवाओं संग लेते हिलोरे ,
और पेड़ों से गिरते पत्तों की आवाज ,
इतना सबकुछ होते हुए भी ,
अब तू ही बता दे यार ,
मेरे दिल में इतना सन्नाटा क्यूँ है ।।

वो ढलते हुए साल का मंजर ,
नए साल के स्वागत का आलम ,
वो डीजे पर ठुमकती कमर ,
और धुँ-धुँ करते पटाखों की आवाज ,
इतना सबकुछ होते हुए भी ,
अब तू ही बता दे यार ,
मेरे दिल में इतना सन्नाटा क्यूँ है ।।

तेरे दूर जाते कदम ,
धक-धक करती दिल की धड़कन ,
वाट्सअप के मैसेज की बीप ,
और मोबाइल की रिंगटोन की आवाज ,
इतना सबकुछ होते हुए भी ,
अब तू ही बता दे यार ,
मेरे दिल में इतना सन्नाटा क्यूँ है ।।

दिनभर आती हिचकियाँ ,
तन्हाईं में कदमों की आहट ,
तेरे इंतजार में घड़ी टक-टक , 
और "जसवंत" के टपकते आँसू की आवाज ,
इतना सबकुछ होते हुए भी ,
अब तू ही बता दे यार ,
मेरे दिल में इतना सन्नाटा क्यूँ है ।।

कवि जसवंत लाल खटीक
तन तो है माटी का पुतला, दिल धड़कन इसकी बन जाता है, 

एहसासों का बड़ा पिटारा यह , जग में दिल ही तो लाता है |

होती जितनी भी सुदंरता यहाँ , मालिक उसका दिल ही तो होता है , 

सब दुख दर्दो को सह जाता है , कभी आवाज नहीं यह करता है |

गहरा सागर सा दिल होता है , यह मसीहा रिश्तों का कहलाता है ,

एक तौहफा यह दिल होता है ,हमको जिसे भेंट विधाता करता है |

घर की गाड़ी का यही पहिया, दुनियाँ में सामंजस्य यही तो तो करता है ,

कोमल सुकमार उदार बडा़ होता ,दिल मतवाला कहलाता है |

यहाँ दिल वालों की दुनियाँ में , बस दबदबा इसी का रहता है ,

आधार सृष्टि बन गया यही , इसने ही इश्क का परचम लहराया है |

दुख दर्द समझ पायें हम सबका, दिल तो हमसे यही कहता है, 

मकसद इसका न समझ सका जो , वह हृदय हीन कहलाता है |

यहाँ काम सभी के आया जो , वह दुनियाँ में दिलवाला कहलाता है |

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,


दिल पागल सा पंछी बनकर
दूर गगन में करता विचरण
सुख दुःख में इठखेली करता
करता वह् नित जग संचरण
दिल चञ्चल है,दिल बावरा
दिल पल भर भी नही ठहरता
दिल एकांकी कभी न रहता
दिल से दिल का दिल बहलाता
दिल रमता है कभी सुखों में
दिल रोता है कभी दुःखों में
दिल तो स्वयं घुलनशील है
दिल स्मरण करता पुरखों में
दिल कभी सपनों में खोता
दिल कभी गाताऔर हँसता
दिल की बातें दिल ही जाने
दिल कभी भू स्नेह बरसाता
दिल चञ्चल दिल चपल होता
ठौर ठौर वह् चलता फिरता
कभी अटकता कभी भटकता
दिल रहता नित रीता रीता
अपनों पर ही दिल लग जाता
दुःख सहकर भी उसे निभाता
अपने जब पराये बनते तब
दिल फिर छू मंतर हो उड़ जाता
दिल तो सबके सदा स्वतंत्र 
जख्म लगे बनता परतंत्र 
दिल दिल्लगी मस्ती करता
दिल जन का बने जनतंत्र।।
स्व0 रचित
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

३१ दिसम्बर की रात, 
खुशीयों की लाई है सौगात। 
अलविदा कहने को
ऐ बीतते हुए साल, 
है स्वागत तेरा
ऐ नया साल। 
पर इस चकाचौंध में
है मेरा दिल उदास, 
कवित्री हूँ, शायद इसलिए
हो रहा फिर उस दर्द का एहसास। 
बस बदले जाएँगे कलेण्डर
और नही बदलेगा कुछ यहाँ, 
होगी फिर वही दरिंदगी, 
वही भुखमरी, वही महँगाई यहाँ। 
आखिर कितने कलेण्डर बदलोगे? 
कभी खुद को भी बदलो, 
जो बीत गये दर्द के पल
उसे न फिर खोलो। 
नये साल में आओ
कुछ नये वादे करें, 
अन्याय के खिलाफ खड़े हो
न्याय के लिए लड़ें। 
रह न पाएँ 
कोई भूखा
बस एक मुट्ठी अन्न
दान करें, 
फटेहाल जीवन में
कुछ अपनत्व का रंग भरें। 
अपने ही घर में
बन रहे पड़ोसी
उस दीवार को ध्वस्त करें, 
बुजुर्गों का सम्मान
और बच्चों से प्यार करें। 

स्वरचित: - मुन्नी कामत।

इस दिल की धडकनों में,

बसें सिर्फ श्याम सुंन्दर।
देखूँ सदा इसकी ही मूरत,
तू सलोना सूरत मनोहर।

संस्कृति संस्कार भूलूं कभी ना
चरित्र का ध्यान रखूँ सदा मैं।
आदर्श मेरे रहें श्री राम प्यारे,
हृदय धवलता रखूँ जुदा मै।

मेरी यादों में नहीं कोई दूजा,
निहारता रहूँ तुझे घनश्याम।
जिधर देखूं तूही तू हो कन्हाई,
तूही कन्हैया तूही राधेश्याम।

दिलों में दुर्गंध आऐ कभी न
यह सुवासित रहे प्रभु प्यारे।
मर्यादाऐं सबकी रखूँ सदा मैं,
दूषित हृदय नहीं हों हमारे।

परोपकार परमेश करता रहूँ।
प्रेमप्रीत परमात्मा बांटता रहूँ।
निस्वार्थी होकर जीवन जिऊँ,
दिल में सभी को बसाता रहूँ।

स्वरचितःःः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.

*****दिल*****

तदबीर से तकदीर की लकीरें पोंछ डाली है ,
वाह री किस्मत तू ही मेरी जन्नत का माली है। 

हाथ की इन लकिरों में आबे हयात की सूरत,
ऐ सनम*दिल*में तेरी सीरत ही हमने पाली है। 

ख्वाबों खयालों मे ही डूबे रहे यूं शामों सहर,
गम की खामोश डगर नींड बियाबां सी खाली है। 

प्यार की खुश्क जमीं अश्कों के बाँधों से सींची, 
सौंधी खुशबू खुमारी फर्श से अर्श तक उछाली है ।

है यकीं मुझको मेरे वादा ऐ वफा नूर ऐ जमाली, 
दिल की सरगम हमने सुरमयि रागिनी में ढाली है। 

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
🌺 स्वरचित:-रागिनी नरेंद्र शास्त्री 🌺

बनाया है आशियाना दिल में
छोटा ही सही जगह बहुत है दिल में


हसरतें जितनी थीं इस दिल में
हो गई सब दफन आज दिल में

बदनीयती से दूर रहता हूँ
खुदा का खौफ है दिल में

होंठो पे हंसी आंखों में अश्क़
कुछ तो छिपाए हो दिल में

देख कर मेरे यार को बेनकाब
इक तूफान सा उठता है चाँद के दिल में

शख्सियत कुछ ऐसी थी उसकी
आंखों के रास्ते उतर आया दिल में

 हल्के फुल्के
टुकड़ा टुकड़ा दिल


ओ मोहतरमा सुनो
दिल टूट चुका है
इसका कुछ गम नहीं
दिल टूटने के फायदे भी
तो कुछ कम नहीं
लेकर एक-एक
टुकड़ा दिल
घूमेंगे, हर गली,महफ़िल
हर एक टुकड़े से जुड़ा
फिर,
एक अदद दिल होगा
माना, वह कातिल होगा
पर,बेअसर
टुकड़ा,अब और कहाँ तब्दील होगा
ओ मनोरमा सुनो
वो चोट पुरजोर
चटका दिल बिन शोर
चोटिल होकर 
बना कठोर
कहना कुछ और फाजिल होगा
ठीक ही तो है
जहाँ अठन्नी चवन्नियों से
चाँदी की चंद गिन्नियों से
बिकता दिलदार है
साबुत दिल फिर
किसके काबिल होगा?
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित

गमों में डूबे रहने वालों,दिल तोड़ना सीख लो।
उल्फत भरी यादों के सहारे,जीना सीख लो।।

मत पूछो क्या मिलता है,दिल के टूटने पर।
ढेर सारी आहें कुछ आंसू,यारी के छूटने पर।।

फिर भी हम बे-वस हैं इतने,कि उन्हें याद करते हैं।
आंसुओं को पी कर ,टूटे दिल की दवा करते हैं।।

नस्तर चुभो के सीने में,क्यूं मन जला रहे।
हमने दिया था दिल तुम्हे,वो दिल दिखा रहे।।

स्वरचित: 28-12-2018
डॉ.स्वर्ण सिंह रघुवंशी,गुना(म.प्र.)


महक़ प्यार की तुम लुटाया करो।
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बहारों से मन को लुभाया करो
यक़ीनन खुशी को लुटाया करो।

भुला के तू दिल के गमों को पी लो
न हमसे यूँ नजरें चुराया करो।

खड़े राह में हैं सितमगर कई
सितमगर के आगे न आया करो।

बहारों के आने से पहले प्रिये 
नया गीत इक गुनगुनाया करो।

सनम तुम हो रुस्तम बड़े ही छुपे
मुझे यूँ न प्यारे सताया करो।

झुकी अपनी पलकें उठाया करो
हमें देखकर मुस्कुराया करो।

हर इक प्यार की बात कहकर हमें
लगी यूँ न दिल की बुझाया करो।

नजरिया बदल के दिखाओ सही
तभी चाँद - सा चमचमाया करो।

सजाना है गर ख्वाब तुमको यहाँ
महक़ प्यार की तुम लुटाया करो।

-- रेणु रंजन 
( स्वरचित )

नजरों से नजरें मिलाकर किया तुमने हमें घायल 
अपनी मदहोश अदाओं का हमें बना दिया कायल 
मेरी वफ़ा का बहुत खूब फर्ज निभाया तुमने 

दिल हमारा लेकर बीच राह में तड़पता हुआ हमें छोड़ दिया .

अजीब सी वीरानी थी तुम्हारे दिल की गली में 
देखते रहे हम हैरत और परेशां होकर 
बेचैन होकर नाम तुम्हारा लेते रहे 
दिल भी टूटकर हमारा चकनाचूर हो गया किसी को टूटने की आवाज भी नहीं आई .

दिल की बात हैं सबसे अलग और निराली 
सूरत से नहीं अल्फाज से मोहब्बत करती हैं 
सूरत का क्या वो तो वक्त की आँधी में बदल जाता हैं
पर दिल के अल्फाज तो हमेशा दिल में उतरकर हर दिल में अपना आशियाँ बना लेते हैं.

हमारे दिल की गहराई में मत डूब जाना 
मासूम सा दिल हैं हमारा कभी खिलवाड़ ना करना 
तुम पर बेइंतहा ऐतबार हैं हमें 
दिल हमारा तोड़ ना देना .
स्वरचित:- रीता बिष्ट


मैं यूं ही हंस रहा था...

फिर सच में हंसी आ गयी.....
हंसा मैं बहुत ज़ोर ज़ोर से....
जैसे मुद्दतों बाद कुछ पाया हो....
हंसी तो थम गयी पर... 
आंसू यूं बह उठे कि....
जैसे कभी बहे ना हों....

कमाल है...
दिमाग भी...
दिल से कितनी जल्दी...
हार मान गया.....

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II 


क्यों बढ़ रही दिलों में दूरियां,
क्या हो गई ऐसी मजबूरियां।
क्यों दिलों की बात कोई सुनता नहीं,
क्यों स्वार्थ बन रहा कमजोरियां!!

भावनाओं को यूं दिल में दफन न करो,
दिल की आवाज यूं अनसुनी न करो।
यूं अकेले सफर कट सकता नहीं,
अकेले रहने का यूं दिखावा न करो।

दिल मुरझा गया तो कैसे जी पाओगे,
जिंदगी का बोझ यूं न हो पाओगे।
दिल से दिल के तार गर जुड़ जाएंगे,
जिंदगी का तब ही लुत्फ उठा पाओगे।

दिल को बंधनों में बांध कर क्या पाओगे
खुद ही जिंदगी से रूसवा हो जाओगे।
दिल की मासूमियत को यूं मरने न दो,
दिल जिंदा रहा तो ही खिलखिलाओगे।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित

लेकर हौसला पत्थर ,
साहस घर बनाता हूँ 
कंटीली राह पे चलने का, 
मैं अपना मन बनाता हूँ l

दर्द की गली सोया, 
विश्वास को जगाता हूँ 
बाँटकर कर्म बीजों को,
प्रेम को धर्म बनाता हूँ l

सितारे देख कर मैं भी 
अरमाँ को सजाता हूँ
फटी झोली भले मेरी, 
मैं आशा चादर बनाता हूँl

गले लगा के फूलों को ,
काँटे भी उठाता हूँ
पत्थर तोड़ के रस्ता, 
अपना खुद बनाता हूँl

सब भूल के नफ़रतें,
दिल को समझाता हूँ
जब दिल से पास वो आये,
उन्हें दिल का बनाता हूँl

स्वरचित 
ऋतुराज दवे
*लूटपाट , हत्या, डकैती, अत्याचार
बेईमानी, भ्रष्टाचार का भीषण व्यापार
*श्रमजीवी, ईमानदार ख़ूब पिस रहे
बेईमानों की तिजोरी से उनके नाख़ून घिस रहे
*ग़रीबी में ग़रीब आजन्म झाँकता, फाँकता
दोयम दर्जे को अमीर फिर भी नही ताँकता
* झूठ, फ़रेब, धोखाधड़ी, बेईमानी मात्र यही रह गई निशानी !!!
* आचार -विचार के बदलते रंग- ढंग
मूल्यों की आचार- संहिता हो गई भंग
* कभी जाति कभी धर्म के नाम को गरमाया जाता
देखो ! मनुष्यता को यहाँ कैसे छला जाता ...!
* परिवारों का विखंडन बदस्तूर जारी...
समझौतों की क्यों नही आती कभी बारी !!!
* घर के वृद्ध तीर्थधाम जाते बिसराए
बोझ जान उनको वृद्धआश्रम छोड़ आए !!!!

*आधुनिकता के नाम पर उच्छृंखल होते
मानवीय मूल्यों की दुहाई दे फिर रोते
*नारी सौंदर्य को नुमाईशी बना दिया
मिस यूनिवर्स का बख़ूबी लेबल लगा दिया
* मनुष्य की बुद्धि ने तो कमाल कर दिया
प्रकृति का भी खिलवाड़ कर बवाल मचा दिया
* पेड़- पौधों की बानगी जीवों का ध्यान तज़ दिया
कहीं विकास कहीं शहरीकरण का नाम दे दिया
* हृदय की धमनियों में प्रदूषण ज़हर फैल रहां
आज नित नए नए रोगों से सामना हो रहा
* दुआ कम और दवा ज़्यादा ले रहें
स्वार्थों की वैशाख़ी से परमार्थ कुचल रहे 
* ऐसा प्रतिदिन घटित हो रहा हमारे आसपास
व्यथित चोटिल दिल अब रहने लगा उदास ।

स्वरचित
संतोष कुमारी
सत्य अंहिसा की बात करो अब हिंसा को छोड़ो तुम
मारा मारी बहुत हो गई अब खून खराबा छोड़ो तुम

सत्य अहिंसा परमोधर्मः गांधी जी सिखलाते थे
सत्य अहिंसा की खातिर वो यात्नायें भी सह जाते थे

पावं उखाड़ दिए गोरों के सत्य अहिंसा के बल पर
एक अनोखी जंग लड़ी सत्य अहिंसा के पथ पर

आपदाओं में अब हमको आकुल होना नहीं है
बिपत्तियों में अब हमको व्याकुल होना नहीं है

बिकराल मुसीबत पड़ जाये पर विजय सत्य की होती
झूठ के पावं नहीं होते साँच को आँच नहीं होती

ढाई अक्षर प्रेम के पढ़ लो जीवन सरल बना लो तुम
कोई उलझन नहीं रहेगी जो दिल में प्यार जगा लो तुम

लोभ मोह के बन्धन तोड़ो पुण्य के कुछ तो काम करो
धूल जमीं है पापों की दिल का शीशा साफ करो

प्यार ही प्यार धरा पर हो ऐसी मेरी चाहत है
नफरत मिटे धरा से अब बस इतनी सी हसरत है 

अखिल बदायूंनी


सुनो कभी 
दिल का स्पंदन 
जिंदगी का सूचक 
कभी धीमा 
कभी तीव्र 
हर धड़कन का 
आभास भिन्न 
अहसास भिन्न 
ख़ुशी या गम 
ज्यादा मिले या कम 
सबको संजोता है 
ये दिल ...!
स्वरचित : डी के निवातिया

क्षणिका

दिल की खुशी
दिल में रहे
मिले 
दु:ख तो 
रोए दिल

दिल कोमल है
दिल पागल है 
आघात लगे
दिल
फरियादी है

दिल से सोचें
दिल में रहें
यही है प्यार
जो टुटे
दिल तो
करे चितकार 

प्यार दिल में
अहसास दिल से
घृणा मिले
दिल दुत्कारे
आहत दिल
(अशोक राय वत्स)
स्वरचित जयपुर


दिल को कोई पागल कहे
कोई कहे मरीज
दिल की बाते ,दिल ही जाने
और जाने न कोई।

बाणी ऐसे न बोलिए
दिल पर करे प्रहार
पत्थर दिल न बनिए
बस लुटाईये प्यार

दोस्ती करें दिल से
रखे इसका ध्यान
क्षमा, दया, प्यार, दुआ
सब है इसके पास।

इन सबको अपनाकर
बस बन जाये धनवान
दिल को बच्चा मानिए
पर दिल तो है समझदार

दिल से दुआ कीजिए
दिल पर करें न चोट
टूटे दिल के साथ जीना
होता है स्टंट

दिल से पुकारे प्रभु को
दौड़े आयेंगे पास
प्रभु को कुछ न चाहिए
बस चाहिए दिल के भाव

शब्द - दिल 
*************
१) निकटता भी कर देती है दूर कभी-कभी
न चाहकर भी हो जाते हैं मज़बूर कभी -कभी।
एहसास भी जिनका दिल को होने नहीं पाता
ऐसे भी हो जाते हैं क़सूर कभी - कभी ।

२) मिलना -बिछुड़ना जीवन की कहानी है 
आँखों में आँसू , रिश्तों की निशानी है।
मिले सबसे यूँ कि दिलों में दूरियाँ नहो 
दुनिया बड़ी सही,पर जानी पहचानी है।

३) ये मज़हब की दीवार न होती काश ! इंसानों के दरम्याँ
न माशरे से शिकायत होती,न होती रिश्तों में तल्खियाँ।
मुहब्बतों के चिराग़ों से रौशन होती काश! ये दरोदीवार 
फिर न होते गुमनामी के अँधेरे , न दिलों में तारीक़ियाँ ।

स्वरचित (c)भार्गवी रविन्द्र
माशरा - समाज , तल्खियाँ -कटुता , तारीक़ियाँ -अंधेरा

अजीब दास्ताँ है
तेरी दिल
जब तक
धडकता रहे
तब तक 
अह्सास 
जिन्दगी का
बंद धडकनें 
अंत इन्सान का

आंखे हुई चार तो
बेकाबू हुआ दिल
प्यार हुआ क़ुबूल तो
बहक गया दिल
वरना टूटा ऐसा कि
दुनियां हो गयी बेगानी 

माँ के दिल की 
ममता की
नहीं कोई सीमा
समुन्दर से भी
विशाल है 
उसका दिल

दिल तेरी और 
क्या कहूँ दास्ताँ 
अपने अपनों के 
करीब हो तो
सुखद अहसास 
दिलाता है 
ये दिल

स्वलिखित 
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल


झलक दे- दे कर छुप जाते हो, 
मेरे चाँद तुम कहाँ। 
तुम बिन हुआ है सूना 
मेरे दिल का आसमां ।

जाने गगन में कितने 
तारे हैं झिलमिमलाते।
तुम बिन हुआ अंधेरा 
मेरे सपनों का जहां।
झलक----

तुम कहीं जो मिल जाओ 
तो ये नजर उतार लूँ ।
कदमों में वार दूं मैं 
अपना दोनो जहां ।
झलक--------

तुम बिन जीना तो 
मुमकिन ही नहीं 
तुम नहीं तो मैं कहाँ।
जिंदगी है कहाँ 

स्वरचित 

सुधा शर्मा
राजिम (छत्तीसगढ़)
28-12-2018

विधा - छंद मुक्त
विषय- दिल


बैठी थी बेखबर
सपनों में खोई
कुछ जागी सी
कुछ सोई सोई
आंखें खुली थीं
पर होश बाकी न था
खुला था
दिल का दरवाजा
जबरन घुस आया था
न जाने कैसे
मौका पाकर
वह अजनबी
और मैं थी बेखबर
होश आया तब
जमा चुका था कब्जा
दिल की जमीन पर जब
वो आया 
कैसे और कब
नही जान पाई


शनैः शनैः
मुंदती पलकों पर
उतर आई थी
सुकून की शाम
और खिल चुके थे
दिल की जमीं पर
महकते फूल

सरिता गर्ग
(स्व रचित)

धक धक धड़का
देश के लिए
💖
तेरे या मेरे
है प्यार भरा दिल
किसके पास
💖
मुझसे खफा
दिल भी है बेवफा
रूठा ना करो
💖
नादान दिल
रुठना व मनाना
मासूम बड़ा
💖
दिल का चोर
खतरो का है खेल
खाली है हाथ
💖
आया लुटेरा
दिल का दरवाजा
कर लो बंद
💖
सुबह शाम
दिल मानता नहीं
करो ना याद
💖
साँकरी बड़ी
राह नहीं है सीधी
दिल की गली

स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल

हाइकु 
1
दिल पे घात 
दिमाग का है साथ 
छूटे विश्वास 
2
ह्रदय रोता 
अपनों को खोजता 
हँसे दिमाग 
3
पिया का दिल 
समझना मुश्किल 
छवि धूमिल 
4
दिल का द्वार 
भीतर से खुलता 
बाहर बंद 
5
धड़के दिल 
रोये है प्रियतमा 
आकर मिल 
कुसुम पंत उत्साही 
स्वरचित 
देहरादून
दिल
---------

दिल ही तो है
जब जी चाहा जोड़ लिया
जब मन आया तोड़ दिया।

दिल ही तो है
जिसे चाहा उसे रखा
जिसे मन किया निकाल फेंका।

दिल ही तो है
जब जी चाहा जोर से धड़का
जब मन किया धड़कन भूल गया।

दिल ही तो है...
जब चाहा अपना बना लिया
जब मन किया पराया कर दिया

दिल ही तो है
जब चाहा प्यार की बरसात कर दी
जब मन किया तरसा दिया ।

दिल ही तो है
जब चाहा सारा जहाँ समेट लिया
जब मन किया ठुकरा दिया।

दिल ही तो है।
जब जी चाहा मोम सा पिघला
जब मन किया पत्थर बन गया।

दिल ही तो है
आखिर दिल ही तो है।
स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'
दिल बहुत नाजुक होता है,
इस पर कभी प्रहार नहीं करना।
किसी को अपना बना सकें अच्छा
वरना कभी हृदयाघात नहीं करना।
दिल तो दिल है
किसी पर मोहित हो जाऐ
किसी को अपने दिल से
जानबूझकर दुखी न करना।
दीनहीन का दिल न दुखाना
परोपकार भी दिल से करना
वरन बेकार जाऐगा सब
पुण्य प्रताप हमारा।
करें काम अगर कुछ भी प्यारे,
तो अपने दिल से ही करना।

स्वरचितःःः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय

तेरे दर्श की मैं प्यासी,
राह मैं साजन तेरी निहारूँ,
भर बाहों में तुझको,
तुझ पर प्रेम अपना मैं वारूँ,
कर जतन कुछ ऐसा साजन,
हो जाए दूर दिल की उदासी,
डूबकर तेरे ख्यालों में,
प्रेम की ऐसी मूरत तराशी,
मन उपवन ऐसा खिला,
बन परिंदे उड़ी उमंग,
सिहर गया बदन ऐसे,
जैसे हो कोई जल-तरंग,
नैनों की भाषा से,
दिल के जज्बात बताऊँ,
बे दर्द जमाने से,
अपना ये प्यार छुपाऊँ,
एक प्यारा सा सपना मेरा,
पाऊँ तुझको जीवन साथी,
करें रोशन आँगन अपना,
बनकर दीया और बाती।

स्वरचित-रेखा रविदत्त
28/12/18
नैना तुम्हारे 
उजागर करते
दिल का राज 

खुशी से चार्ज 
दिल जब उदास 
करिए आप 

सोलवा साल 
झांक रहा यौवन
दिल के द्वार 

दिल से दुआ 
माता पिता की मिली 
हुआ आबाद 

ख्वाब में खोया 
दिल भी खूब रोया
पाकर धोखा 

मुकेश भद्रावले 
हरदा मध्यप्रदेश 

सबका दिल,
प्रभु का निवास है,
ढूंढ के देखो।।१।।

दिल की बात,
कोरे कागज पर,
रंगने कीही,

मेरी आदत रही,
रंगता रहता हूं।।

दिल की पीड़ा,
कागज पे लिखता,
अकेला,रात,

सँसार जब सोता,
दर्द दिल जागता।।
देवेन्द्र नारायण दास बसना।

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