Monday, December 24

"परिवार"24दिसम्बर 2018

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*सुखी परिवार*

जीवन जीने का आधार, 
खुशहाली का है जो द्वार,
जहाँ मिलता बहुत प्यारा, 
ये ही होता है सुखी परिवार |

बड़े -बुजुर्गों का आशीर्वाद, 
माता-पिता का होता साथ, 
बच्चों से आती है बहार, 
ये ही होता है सुखी परिवार |

जहाँ मनाने को हों खूब त्यौहार, 
और बनते हों खूब पकवान, 
अच्छा रहता सबका व्यवहार, 
ये ही होता है सुखी परिवार |

दादा-दादी के हों संस्कार, 
माता-पिता का होता सम्मान, 
छोटे करें अपनी गलती स्वीकार, 
ये ही होता है सुखी परिवार |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*

भूल गये सुख की परिभाषा
छायी है चहुँ ओर निराशा ।।
निराकरण न देय दिखायी 
परिवार में ही बदली है भाषा ।।

मानव की यह बड़ी है भूल 
परिवार ही हर सुख का मूल ।।
परिवार समाज की इकाई है
झगड़े पकड़े वहीं पर तूल ।।

क्या होगा समाज का हाल 
परिवार ही जब हैं बेहाल ।।
नही दिखें संयुक्त परिवार 
संस्कार से सब हैं कंगाल ।।

खा़नाबदोश सा जीवन अब
कुछ न करेंगे धर्म मजहब ।।
व्यर्थ ''शिवम" दौलत शोहरत
परिवार को जानोगे कब ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"

विधा :-पद्य (कविता)
मैं!काअहम
टूट कर जब
हम में परिवर्तित 
होता है ।
बस तभी 
समझो परिवार
सृजन का 
कर लेता है 
विस्तार यहां ।
परिवार ,कुटुंब 
समाज बना 
जिसने हर पल
विस्तार किया ।
परिवार समाज की
पहली.सीढ़ी है
जिस पर चल 
हम आगे बढ़ते ।
जीवन की प्रथम
पाठशाला जिसमें
रिश्तों को हम गढ़ते
अक्षर भाषा का
ज्ञान सभी परिवार 
में ही तोमिलता है ।
संस्कार देता हमको
आचरण की शिक्षा
संग में देता है ।
स्वरचित :-उषासक्सेना

* विधा - बंधन मुक्त कविता 
*********************************
आदर्श परिवार 
•••••••••••••••••
स्नेह गंगा बहे कल - कल ,
वह सचमुच आदर्श परिवार !
विश्वास ना टूटे मरते दम ,
वह हे जीवन का आधार !
टीम भावना जिन्दा रहे ,
वह हे ,अपना असली संसार !
एक दूजे का हाथ बटाये ,
वह जन जन को स्वीकार !
सबके हित संकल्प करे ,
खुलता समृद्धि का द्वार ! 
* प्रहलाद मराठा 
*****************************
रचना मौलिक स्वम रचित सर्व अधिकार सुरक्षित ....!!

परिवार ही है हृदय हमारा, चाँद तारों सा लगता है प्यारा, 

यह प्रेम सुधा बरसाने वाला, सदा मन को संबल देने वाला, 

होता फूलों का उपवन प्यारा, रिश्तों को महकाने वाला, 

संदेश प्यार का देने वाला, समता की मदिरा का प्याला, 

एकता का यही है रखवाला, है भावों का गुलदस्ता न्यारा, 

बदल गया दृष्टिकोण हमारा,बिखर गई परिवार की माला, 

कोई सुख-दुख नहीं बाँटने वाला,अवसादों ने हमको घेरा, 

हुये मतलबी हम कुछ ज्यादा,स्वार्थ बना उद्देश्य हमारा, 

बना हुआ है बचपन बूढ़ा, रहते बृध्दाश्रम में दादी दादा, 

समय बहुत ब्यर्थ में गँवाया, करलो याद घर की परिभाषा, 

यहाँ बनी रहे सबकी मर्यादा, करो काम सब मिलकर ऐसा |

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,


CM Sharma II 
विधा :: ग़ज़ल - कभी मुड़ के देखो ज़रा जिंदगी को... 

कभी मुड़ के देखो ज़रा जिंदगी को...
कहाँ छोड़ आये हैं हर इक ख़ुशी को...

चले थे जहां से वो परिवार अपना...
गये रह वो पीछे ले आये खुदी को...

है मौसम वही कश्तियाँ भी वही हैं...
कहाँ से मगर लाएं बारिश भीगी को...

रहे पास जब सब मिले न कभी, अब... 
जिसे याद करते दुआ दें उसी को...

गया जो निकल कब है लौटा कभी वो...
बिछड़ने से पहले न समझे किसी को...

न ‘चन्दर’रहा न ज़माना रहा वो…
युँ रो-रो के शिकवे करें ज़िन्दगी को....

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा (बब्बू) II
क्या हुआ हूं, और मैं क्या होना चाहता हूं। 
फिर से बच्चा बन के मै खिलौना चाहता हूं। 


घर के आगंन मे थी बिखरी हंसी की रोशनी। 
उन खुशी की लडियों को पिरोना चाहता हूं। 

माँ की गोदी से कोई शै, मुझे प्यारी नहीं थी। 
खोई उस जन्नत को फिर से पाना चाहता हूं। 

जिसने चलना सिखाया, चल के मिलने जाऊँ। 
बाबा के कंधे चढ ऊंचा सबसे होना चाहता हूं। 

कितनी यादें बह के आई आसुंओ के साथ मे। 
भाई-बहन संग एक थाली में खाना चाहता हूं। 

रूठ कर बिछडे मेरे अपने, बड़े सब क्यों हुए। 
टूट कर बिखरे ये मोती सब संजोना चाहता हूँ। 

लिख रहा हूँ जाने कैसे हाले दिल मत पूछिये। 
रोके रुके न अश्क, दामन भिगोना चाहता हूं। 

फिर से बच्चा बन के मै खिलौना चाहता हूं। 
फिर से बच्चा बन के मै खिलौना चाहता हूं। 

विपिन सोहल

स्वयं पेड़ एक परिवार है
दादा दादी सख्त जड़ें हैं
स्नेह सम्मान संग संजोय
निकट अपने संग खड़े हैं
मातपिता शाखाएं बनकर
शिशु किसलय आश्रय देते
कली सुमन संजोते दिल से
वे विपदा हँस हँस कर सहते
प्राणवायु देते हैं हर पल
मिल खुशियां बांटे जन को
सामजंस्य बना रखते नित
वे रखते स्वर्गीम तनमन को
लालन पालन देखरेख है
परिवार स्वयं शिक्षा केन्द्र है
एक दूजे का अवलम्बन ही
घर में बसता स्वंय जिनेन्द्र है
नन्दन कानन श्री परिवार है
हँसी खुशी ममता सहयोग है
बने परस्पर नित नया सहारा
स्वचालित परिवार संयोग है
राम कृष्ण परिवार में आये
मर्यादा पुरूषोत्तम कहलाये
परिवारों को सुर मुनि तरसे
धन्य भाग्य हम खुशियां पाएं
गाँव नगर शहर परिवार है
जिससे ही प्रिय राष्ट्र बना है
संस्कारो की निर्मल जननी
परिवारों का वितान तना है।।
स्व0 रचित
गोविंन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा= हाइकु 
===========
(1)सुखदुःख में 
सदैव रहे साथ
है परिवार 

(2)रहते साथ
संसार परिवार 
विभिन्न जात

(3)है परिवार 
छोटे बड़े सदस्य 
रहते साथ 

(4)दुष्ट प्रवृत्ति 
परिवार विच्छेद 
करती आज

(5)माला में मोती 
जैसा हो परिवार 
यही है चाह

(6)स्नेह की बाती
परिवार का दीप 
बुझा ना पाती 

🌹स्वरचित🌹 
मुकेश भद्रावले 
हरदा मध्यप्रदेश 

परिवार
1
सम्बन्धों की ज्यामिति
परिवार-एक वृत्त
केंद्र में बुजुर्ग-एक धुरी
त्रिज्यायें संतति
चाप-से चुलबुले
खुशियों की परिधि
2
कौन अपना
कौन पराया
जुड़े जहाँ
नेह के तार
वही परिवार
3
छोटा परिवार
सुख का आधार
की अवधारणा-
मन को
कुछ यूँ भरमाया
बूढ़े माँ-बाप को
वृद्धाश्रम भिजवाया
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित

परिवार नाम है,
भावनाओं का,
प्यार,समर्पण,
त्याग, विश्वास,
सम्मान, अपनेपन का।
परिवार जहां..
खिलते सपने,
मुस्कराते अपने,
निभाते अपना दायित्व,
मोतियों की माला सम,
रहते सब एक डोर में बंधे।
इनसे रहित परिवार..!
बस समूह,
ढोता भावनाओं की लाशें!
जेल की चहारदीवारी में,
बंद कैदियों के सदृश,
थोथे स्वार्थों के लिए लड़ते!
संकीर्ण मानसिकता,
से घिरे असभ्य लोग!!
मेरा-तेरा अपना-पराया करते,
भूलकर जीवन जीना,
जीवन के लिए लड़ते!
ये लोग परिवार को,
बनाते अखाड़ा!!
रोज करते महाभारत,
खुद ही बन वकील-जज!!
एक-दूसरे पर थोपते,
अनचाहे आरोप!
इनके मन की सड़ांध!
में मर जाती जीवन की गंध।
भेंट चढ़ते रिश्ते!!
मां-बाप को नोचते-खसोटते!!
परिवार को बनाते पाकिस्तान!!
आतंक का होता वातावरण..
जहां हंसी का चंद्र!!
आतंक के बादलों में छिपा जाता,
सुख का सूर्य !!
सदा के लिए अस्त हो जाता।!

अभिलाषा चौहान
स्वरचित
रिश्तों के बीच रहती,
वो प्यार अब कहां,
जो दर्द बांट ले,

वो परिवार अब कहां,

हर हाथ में है खंजर,
किसे अपना अब कहें हम,
बेचैनियों में बेबस,
दुख कितना अब सहें हम,

जिन्दा थे जिसपे अबतक.....
वो आधार अब कहाँ है...

रिश्तों के बीच रहती,
वो प्यार अब कहां,
जो दर्द बांट ले,
वो परिवार अब कहां....

बरगद के बाद मेरा,
एक पेड़ और खड़ा है,
है दूध का रिश्ता,
मेरा भाई वो बड़ा है,

अपनों में थोड़ा घाटा,
उसे स्वीकार अब कहाँ है....

रिश्तों के बीच रहती,
वो प्यार अब कहां,
जो दर्द बांट ले,
वो परिवार अब कहां....

जिसमे गुजारे बचपन,
जीवन के हँसते गाते,
इसी घर की देन हैं,
जीवन के सारे नाते,

सबकुछ हुआ है खण्डहर,,,
घर-वार अब कहां है....

रिश्तों के बीच रहती,
वो प्यार अब कहां,
जो दर्द बांट ले,
वो परिवार अब कहां...

स्कूल के दिनों का,
एक दोस्त था सलोना,
बांटे थे जिससे सुख-दुख,
संग खेल और खिलौना,,

सपनें सजाते आंखों में,
संसार अब कहाँ है,
वो दोस्त अब कहाँ है,
वो यार अब कहाँ है....

रिश्तों के बीच रहती,
वो प्यार अब कहां,
जो दर्द बांट ले,
वो परिवार अब कहां...

कितना अजीज था मुझको,
वो हमनवां हमारा,
था जिंदगी का मक़सद,
मेरे जीने का सहारा,
कहते थे साथ तेरे,
ये जिंदगी कटेगी,
तेरी आंखों में ही मेरी,
हर ख्वाब अब पलेगी,,...

रहे वादे पर जो क़ायम,
वो तलबगार अब कहाँ है....

रिश्तों के बीच रहती,
वो प्यार अब कहां,
जो दर्द बांट ले,
वो परिवार अब कहां....

....राकेश,स्वरचित

विधा ~ कविता 
सुख दुख की घड़ियों को भी साथ झेलते जाता 
एकता जिसकी है अखण्ड वो परिवार कहलाता 

मुखिया दिनभर दाना-पानी की खोज में रहते 
हो कितने भी कष्ट उसे किसी से कुछ नहीं कहते 
परिवार का पेट भरने को वो हर दायित्व उठाता 
एकता जिसकी है अखण्ड वो परिवार कहलाता 

एक है माँ जिसको काम से फुर्सत कभी न होती
जीवन माला बच्चों की प्रतिदिन माँ ही पिरोती
माँ का हर क्षण सबकी सेवा में ही गुजर जाता 
एकता जिसकी है अखण्ड वो परिवार कहलाता 

भाई बहन के प्रेम से ही सजता है घर सारा
ईंटों में भी जान डालता इनका मस्त नजारा 
प्रेम और सद्भावना की राह हमें दिखलाता 
एकता जिसकी है अखण्ड वो परिवार कहलाता 

बुजुर्गों का सम्मान करते छोटे बच्चे जहाँ पे
मायने होते हैं रिश्तों नातों के सच्चे जहाँ पे
मिल कर हर शख्स जहाँ त्यौहार सभी मनाता
एकता जिसकी है अखण्ड वो परिवार कहलाता 

आयुष कश्यप 

फारबिसगंज


परिवार समाज की एक इकाई,

इससे समाज निर्माण होता है।
स्वा सुधार फिर परिवार तभी तो
स्वस्थ समाज निर्माण होता है।

हो प्रेमप्रीत प्रेमभाव प्रेमबंधन 
त्यागी हों प्रेमानुरागी आपस में।
नहीं हो मन मलीनता हृदय में,
हो स्नेहासिक्त अनुगामी अंतस में।

प्रेमालय परिवार बने घर अपना।
मनमंन्दिर हर परिवार का सपना।
हो पवित्र मनमानस परिवारी जन,
तभी सुखद हर परिवारी सुखना।

बहुत बडी जिम्मेदारी मुखिया की,
है हंसी खेल नहीं परिवार चलाना।
बुनने पडते हमें ताने बाने इसको,
है मुश्किल जी सामंजस्य बिठाना।

स्वरचित ः
इंजी.शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.

हाइकु
1
खुशी हजार
संयुक्त परिवार
प्यार आधार
2
एक मुखिया
परिवार पहिया
सुखी संसार
3
प्रेम अभाव
बिखरे परिवार
स्वार्थ खातिर
4
वृद्ध लाचार
एकल परिवार
एकाकी मन
5
राष्ट्र निर्माण
परिवार ईकाई
मिल बनाई
6
रक्षा संस्कार 
समाज धरोहर
ये परिवार
7
सुख व दु:ख
झेलते परिवार
सभी के साथ
8
मान करते
सदस्य परिवार
एक दूजे का
9
"भावो के मोती"
हमारा परिवार
प्यार अपार

स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
जो रहते परिवार से दूर
वही समझते इसका मूल्य
हर पल सताये परिवार की बातें
खुशी हो या गम की राते

परिवार है जीवन आधार
इसके बिना जीना बेकार
है सोने की सेज अगर
चैन न आये परिवार वगैर

परिवार देते हमें संस्कार
वही आते जीवन में काम
बच्चे तो होते कच्ची मीट्टी
परिवार दे उन्हें सुंदर आकृति

परिवार मे रखे सदा यह ध्यान
हो सबका समान अधिकार
परिवार जो हमारी प्रथम पाठशाला
इसको बनाये रखें हम संस्कारशाला

बुजुर्ग है शिक्षक हमारे
बच्चे है शिष्य हमारे
इसमें न होते कोई इम्तहान
पर इसमे सीखे पाठ आते है
जीवन मे काम

परिवार मे रहे सौहार्द हमेशा
खुशियाँ बरसे तब दिन रात
करें हम हमेशा ऐसा काम
परिवार की कीर्ति बढ़े दिन रात

विधा  क्षणिका

परिवार 
खुशी का खजाना
परिवार दे चिंता मुक्ति
परिवार
से दूरी 
खुला दुखों का पिटारा

परिवार समर्पण सिखाये
परिवार सम्मान दिलाये
परिवार बिना जीवन नीरस
परिवार ही प्यार दिलाये।
(अशोक राय वत्स)स्वरचित
जयपुर
सुखी परिवार में 
बसा है घर संसार 
दादा दादी का हो आशीर्वाद 
माता पिता का हो प्यार
बच्चों पर हो ईश कृपा

जितनी हो चादर
उतने फैलाऐ पैर सभी

सुबह शाम हो प्रार्थना रोज
सब साथ बैठ कर भोजन करें रोज

करें ईश्वर का आभार नित्य
ऐसे परिवार में बसते देव नित्य

स्वलिखित 
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
हाइकु 
1
ये परिवार 
सबका राजदार 
ख़ुशी अपार 
2
जीव आधार 
सबका परिवार 
देता खुशियां
3
ख़ुशी अपार 
सुख दुःख है साथ 
परिवार में 
कुसुम पंत उत्साही 
स्वरचित 
देहरादून

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