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ब्लॉग संख्या :-234
जीवन होता है जीने के लिए,
कर्तव्य पथ पर चलकर जीयें,
निडर,निर्भय होकर चले,
सच का दामन थामें हुए |
बड़े-बुजुर्गों का आदर करें,
गुरू की शिक्षा का मान रखें,
गरीब,असाहयों की मदद करें,
राष्ट्र का हमेशा सम्मान करें |
माता-पिता ने जन्म दिया,
पाल-पोष कर बड़ा किया,
अब हम उनकी सोवा करें,
ये कर्तव्य हमारा है |
भारत-भूमि में जन्में हम,
भारतीयता की पहचान मिली,
माँ भारती की रक्षा करें हम,
ये कर्तव्य हमारा है |
सरहद पर मर-मिटे जो सैनिक,
मातृ-भूमि की शान में,
उनके बलिदान का सम्मान करें,
ये कर्तव्य हमारा है|
जंगल हमारी राष्ट्र-संपदा,
दूर करें हैं ये आपदा,
इनको कटने से बचाना होगा,
ये कर्तव्य हमारा है |
पतित, पावनि है माँ गंगा,
जीवन प्रदायिनी नहीं कोई शंका,
निर्मल इसका जल रहे,
ये कर्तव्य हमारा है |
नियमों का सदा पालन करें,
दूसरों को भी सीख दें,
समाज की मर्यादा बनायें रखें,
ये कर्तव्य हमारा है |
स्वरचित*संगीता कुकरेती*
कर्तव्य पथ पर चलकर जीयें,
निडर,निर्भय होकर चले,
सच का दामन थामें हुए |
बड़े-बुजुर्गों का आदर करें,
गुरू की शिक्षा का मान रखें,
गरीब,असाहयों की मदद करें,
राष्ट्र का हमेशा सम्मान करें |
माता-पिता ने जन्म दिया,
पाल-पोष कर बड़ा किया,
अब हम उनकी सोवा करें,
ये कर्तव्य हमारा है |
भारत-भूमि में जन्में हम,
भारतीयता की पहचान मिली,
माँ भारती की रक्षा करें हम,
ये कर्तव्य हमारा है |
सरहद पर मर-मिटे जो सैनिक,
मातृ-भूमि की शान में,
उनके बलिदान का सम्मान करें,
ये कर्तव्य हमारा है|
जंगल हमारी राष्ट्र-संपदा,
दूर करें हैं ये आपदा,
इनको कटने से बचाना होगा,
ये कर्तव्य हमारा है |
पतित, पावनि है माँ गंगा,
जीवन प्रदायिनी नहीं कोई शंका,
निर्मल इसका जल रहे,
ये कर्तव्य हमारा है |
नियमों का सदा पालन करें,
दूसरों को भी सीख दें,
समाज की मर्यादा बनायें रखें,
ये कर्तव्य हमारा है |
स्वरचित*संगीता कुकरेती*
भारत के वीर सपूतो।
मत सो अब हें जागो।
आन बान की बात हैं।
शान मान के खातिर।
भारत वसुधा पुकार हें।
कल की लाज है राखो।
सोओगै सोते रह जाओगे।
जागो तंद्रा अब त्यागो।
कर्तव्य परायण रहा है।
वसुंधरा इतिहास सदा।
फिर क्यो ऐसे कायर हो।
अपने होते वीरान यहां।
अपने पिटते है यहां ।
कब तक दयाभाव रहेगा।
जब तक सब खो जाओगे।
आज अभी लो हमसब निर्णय।
कर्तव्य पथ पर डट जाना है।
भारत वर्ष के मान के लिए।
अब वीरगति को पाना है।
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
राजेन्द्र कुमार#अमरा
मत सो अब हें जागो।
आन बान की बात हैं।
शान मान के खातिर।
भारत वसुधा पुकार हें।
कल की लाज है राखो।
सोओगै सोते रह जाओगे।
जागो तंद्रा अब त्यागो।
कर्तव्य परायण रहा है।
वसुंधरा इतिहास सदा।
फिर क्यो ऐसे कायर हो।
अपने होते वीरान यहां।
अपने पिटते है यहां ।
कब तक दयाभाव रहेगा।
जब तक सब खो जाओगे।
आज अभी लो हमसब निर्णय।
कर्तव्य पथ पर डट जाना है।
भारत वर्ष के मान के लिए।
अब वीरगति को पाना है।
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
राजेन्द्र कुमार#अमरा
सूरज चाँद सितारे सब अपना फ़र्ज निभाते हैं
कभी न थकें कभी न रूकें राह हमें दिखाते हैं ।।
हमें प्रेरणा देते हैं यह रहबर भी कहलाते हैं
देख के इनकी तन्मयता इन्हे सर झुकाते हैं ।।
फ़र्ज से कभी न जी चुराना फ़र्ज शान बढ़ाते हैं
आत्म सुख इससे मिले, हो इससे दूर अकुलाते हैं ।।
फ़र्जों की फे़हरिस्त सभी के, भाग नही पाते हैं
सुकून भी जाता है जो फर्ज से पिण्ड छुड़ाते हैं ।।
अपने फ़र्ज पहचान जो काम में ध्यान लगाते हैं
सफल'शिवम' वो जल्दी होते लौक परलौक बनाते हैं ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
कभी न थकें कभी न रूकें राह हमें दिखाते हैं ।।
हमें प्रेरणा देते हैं यह रहबर भी कहलाते हैं
देख के इनकी तन्मयता इन्हे सर झुकाते हैं ।।
फ़र्ज से कभी न जी चुराना फ़र्ज शान बढ़ाते हैं
आत्म सुख इससे मिले, हो इससे दूर अकुलाते हैं ।।
फ़र्जों की फे़हरिस्त सभी के, भाग नही पाते हैं
सुकून भी जाता है जो फर्ज से पिण्ड छुड़ाते हैं ।।
अपने फ़र्ज पहचान जो काम में ध्यान लगाते हैं
सफल'शिवम' वो जल्दी होते लौक परलौक बनाते हैं ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
कर्त्तव्य
**********
नेकियों में घर बसाना ही मेरा कर्त्तव्य है।
चाहतें मौज़ूँ बनाना ही मेरा कर्त्तव्य है।
रंजिशें कुहना मिटाकर के दिलों को जोड़ना,
लोग पिछड़ों को उठाना ही मेरा कर्त्तव्य है।।
फ़र्जं
********
मैं सारे फ़र्ज़ निभा दूँगा तुम आकर मेरे साथ रहो।
जीवन गुलज़ार बना दूँगा तुम आकर मेरे साथ रहो।
जो राहों में सुस्ताने को अश्जार नहीं मिल पाते हैं,
सायों के ढेर लगा दूँगा तुम आकर मेरे साथ रहो।।)
स्वरचित-मैं(स्वयं
**********
नेकियों में घर बसाना ही मेरा कर्त्तव्य है।
चाहतें मौज़ूँ बनाना ही मेरा कर्त्तव्य है।
रंजिशें कुहना मिटाकर के दिलों को जोड़ना,
लोग पिछड़ों को उठाना ही मेरा कर्त्तव्य है।।
फ़र्जं
********
मैं सारे फ़र्ज़ निभा दूँगा तुम आकर मेरे साथ रहो।
जीवन गुलज़ार बना दूँगा तुम आकर मेरे साथ रहो।
जो राहों में सुस्ताने को अश्जार नहीं मिल पाते हैं,
सायों के ढेर लगा दूँगा तुम आकर मेरे साथ रहो।।)
स्वरचित-मैं(स्वयं
(1)
कर्तव्य पथ
सच्चाई का दामन
निर्भय चल
(2)
फर्ज़ निभाते
सीमा पर जवान
दें बलिदान
(3)
युवा कर्तव्य
हो स्वर्णिम भारत
नेक कदम
(4)
फर्ज़ निभाओ
बेटियों को पढ़ाओ
माँ-बाप गर्व
(5)
पेड़ लगाओ
बचें पर्यावरण
फर्ज़ निभाओ
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
कर्तव्य पथ
सच्चाई का दामन
निर्भय चल
(2)
फर्ज़ निभाते
सीमा पर जवान
दें बलिदान
(3)
युवा कर्तव्य
हो स्वर्णिम भारत
नेक कदम
(4)
फर्ज़ निभाओ
बेटियों को पढ़ाओ
माँ-बाप गर्व
(5)
पेड़ लगाओ
बचें पर्यावरण
फर्ज़ निभाओ
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
कहांँ अंधेरों से दोस्ती की है।
जला के खुद को रोशनी की है।
नाहक हुए हो तुम यूं ही खफा।
मैंने तुमसे कब दिल्लगी की है।
जां से खेलना और क्या होगा।
मौत से हासिल जिन्दगी की है।
अब हो अनजाम चाहे कुछ भी।
बेफिक्र हौ के खिदमती की है।
नेकनामी कहॉ होती मयस्सर।
मैने फर्ज की जो बन्दगी की है।
स्वरचित विपिन सोहल
जला के खुद को रोशनी की है।
नाहक हुए हो तुम यूं ही खफा।
मैंने तुमसे कब दिल्लगी की है।
जां से खेलना और क्या होगा।
मौत से हासिल जिन्दगी की है।
अब हो अनजाम चाहे कुछ भी।
बेफिक्र हौ के खिदमती की है।
नेकनामी कहॉ होती मयस्सर।
मैने फर्ज की जो बन्दगी की है।
स्वरचित विपिन सोहल
कर्तव्य हमारा क्या होता , कुछ पता नहीं सब भूल गया,
अधिकार ही बस याद रहा, हमें फर्ज निभाना भूल गया,
आजाद हैं हम बस यही पता, निर्माण राष्ट्र का भूल गया,
दंगा, रैली,अनशन ही किया , विकास देश का भूल गया,
फर्ज पिता का निभा लिया,बेटे का ही कर्तव्य भूल गया,
हम उंगलियां उठाया किये सदा,आइना देखना भूल गया ,
मौकापरस्ती का है आलम, सहयोग भाव ही भूल गया,
हुआ हाल बुरा बेटियों का, संरक्षण उनका हमें भूल गया,
हो देश प्रेम और मानवता, कर्तव्य पथ पर बढते जाना,
संघर्षों से नहीं घबराना, हमको फर्ज निभाते ही रहना,
विकास देश का जब होगा, जीवन में तब आनंद होगा ,
जब सुखी समृद्ध हर घर होगा, नाम राष्ट्र का तब होगा |
अधिकार ही बस याद रहा, हमें फर्ज निभाना भूल गया,
आजाद हैं हम बस यही पता, निर्माण राष्ट्र का भूल गया,
दंगा, रैली,अनशन ही किया , विकास देश का भूल गया,
फर्ज पिता का निभा लिया,बेटे का ही कर्तव्य भूल गया,
हम उंगलियां उठाया किये सदा,आइना देखना भूल गया ,
मौकापरस्ती का है आलम, सहयोग भाव ही भूल गया,
हुआ हाल बुरा बेटियों का, संरक्षण उनका हमें भूल गया,
हो देश प्रेम और मानवता, कर्तव्य पथ पर बढते जाना,
संघर्षों से नहीं घबराना, हमको फर्ज निभाते ही रहना,
विकास देश का जब होगा, जीवन में तब आनंद होगा ,
जब सुखी समृद्ध हर घर होगा, नाम राष्ट्र का तब होगा |
कर्तव्य..
मुझे झुकने नहीं देता,
रुकने नहीं देता।
चाहूँ मरना पर मरने नहीं देता।
कर्तव्य,
मुझे हारने नहीं देता,
मुझे निराश नहीं होने देता।
कर्तव्य,
मुझे सोने नहीं देता,
मुझे गिरने नहीं देता,
जबसे चलने लगा इस पथ पर,
हार नहीं मानी..
रार नहीं ठानी..
कर्तव्य..
देश सेवा का बखूबी निभाया मैंने..
कई मर्तबा दुश्मन को हराया मैंने..
ऊंची से ऊंची चोटी पर भी,
तिरंगा फहराया मैनें....
अपना फर्ज निभाया मैनें...
पर चंद गद्दार..
जो बैठे देश में,
उन्होंने उंगली मेरे शौर्य पर..
पर अपने अदम्य साहस से मैनें..
जुबां बंद कराई उनकी...
मैं सैनिक हूँ
रक्षा मेरा कर्तव्य,
हर पल फर्ज निभाया मैनें....
देकर प्राण भी अपने,
देश का मान बचाया मैनें..
देश का मान बचाया मैनें..।
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
मुझे झुकने नहीं देता,
रुकने नहीं देता।
चाहूँ मरना पर मरने नहीं देता।
कर्तव्य,
मुझे हारने नहीं देता,
मुझे निराश नहीं होने देता।
कर्तव्य,
मुझे सोने नहीं देता,
मुझे गिरने नहीं देता,
जबसे चलने लगा इस पथ पर,
हार नहीं मानी..
रार नहीं ठानी..
कर्तव्य..
देश सेवा का बखूबी निभाया मैंने..
कई मर्तबा दुश्मन को हराया मैंने..
ऊंची से ऊंची चोटी पर भी,
तिरंगा फहराया मैनें....
अपना फर्ज निभाया मैनें...
पर चंद गद्दार..
जो बैठे देश में,
उन्होंने उंगली मेरे शौर्य पर..
पर अपने अदम्य साहस से मैनें..
जुबां बंद कराई उनकी...
मैं सैनिक हूँ
रक्षा मेरा कर्तव्य,
हर पल फर्ज निभाया मैनें....
देकर प्राण भी अपने,
देश का मान बचाया मैनें..
देश का मान बचाया मैनें..।
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
1
अधिकारों की बात होती है
अनाचारों की बात होती है
पर
कर्त्तव्य-बोध गौण है
यक्ष-प्रश्न?
जन-मानस मौन है
2
जिस मातृवक्ष से चिपक
किलक दिखलाया
जीवन पाया
शैशव रहा मचलता है
आज वही
पुत्र का फ़र्ज निभा रहा है
दूध का कर्ज यूँ चुका रहा है
भौतिकता के वशीभूत
कर्त्तव्यविमूढ
उसी वक्ष को
तानों से छलता है
मातृवक्ष में ममत्व
अब भी फलता है
कर्त्तव्य, कब-कब
कैसे रूप बदलता है?
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
अधिकारों की बात होती है
अनाचारों की बात होती है
पर
कर्त्तव्य-बोध गौण है
यक्ष-प्रश्न?
जन-मानस मौन है
2
जिस मातृवक्ष से चिपक
किलक दिखलाया
जीवन पाया
शैशव रहा मचलता है
आज वही
पुत्र का फ़र्ज निभा रहा है
दूध का कर्ज यूँ चुका रहा है
भौतिकता के वशीभूत
कर्त्तव्यविमूढ
उसी वक्ष को
तानों से छलता है
मातृवक्ष में ममत्व
अब भी फलता है
कर्त्तव्य, कब-कब
कैसे रूप बदलता है?
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
त्याग कर निज स्वार्थ को
कर्तव्य पथ पर जो चला
देश के हित में सदा ही
बलिदान उसका ही हुआ ।
स्वरचित :-उषासक्सेना
कर्तव्य पथ पर जो चला
देश के हित में सदा ही
बलिदान उसका ही हुआ ।
स्वरचित :-उषासक्सेना
कर्त्तव्य कर्म का ज्ञान नहीं,
निज मनुज-धर्म का भान नहीं।
वो भार लिए है जीवन का,
जिसे मंजिल की पहचान नहीं।
जीवन से जुड़े कर्त्तव्य सभी,
जिसने पूरे कभी किए ही नहीं।
जिसने स्व से ऊपर उठकर,
पर के लिए कभी सोचा ही नहीं।
जिसने करूणा के जल से ,
घाव किसी का धोया ही नहीं।
वो पाषाण-हृदय क्या जानेगा,
कर्त्तव्य-कर्म की महिमा कभी।
जो अपने सुख के लिए ही जिए,
दूसरों को जिसने दुख ही दिए।
वह मानव क्या कहलाएगा!
दानव से किए जिसने कर्म सभी।
कर्त्तव्य यही बस मानव का,
धर्म-जाति से ऊपर उठे।
परमार्थ और सदाचरण से
मानवता का परिष्कार करें।
प्रेम,अहिंसा,शांति का
संसार में वह प्रसार करे।
निज कर्तव्यों का पालन कर,
जग-जीवन का उद्धार करे।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
निज मनुज-धर्म का भान नहीं।
वो भार लिए है जीवन का,
जिसे मंजिल की पहचान नहीं।
जीवन से जुड़े कर्त्तव्य सभी,
जिसने पूरे कभी किए ही नहीं।
जिसने स्व से ऊपर उठकर,
पर के लिए कभी सोचा ही नहीं।
जिसने करूणा के जल से ,
घाव किसी का धोया ही नहीं।
वो पाषाण-हृदय क्या जानेगा,
कर्त्तव्य-कर्म की महिमा कभी।
जो अपने सुख के लिए ही जिए,
दूसरों को जिसने दुख ही दिए।
वह मानव क्या कहलाएगा!
दानव से किए जिसने कर्म सभी।
कर्त्तव्य यही बस मानव का,
धर्म-जाति से ऊपर उठे।
परमार्थ और सदाचरण से
मानवता का परिष्कार करें।
प्रेम,अहिंसा,शांति का
संसार में वह प्रसार करे।
निज कर्तव्यों का पालन कर,
जग-जीवन का उद्धार करे।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
सदा चलूँ कर्तव्य पथ पर अपने,
मै यही आशीष प्रभु से पाऊँ।
सत्कर्मों से चलूँ सदगति पर तो,
मै निश्चित गीत सुहावने गाऊँ।
केवल प्रवचन करता रहूँ मै,
नहीं अपना फर्ज निभाऊं ।
कैसे कह सकता गैरों से जब,
नहीं अपना दायित्व निभाऊँ।
प्रथम चलूँ डगर पर अपनी,
कहीं मै स्व कर्तव्य निभाने।
करूँ प्रशस्त मार्ग मै सुंदर,
दूजों को दायित्व निभाने।
गौरवमयी इतिहास बनाऐंगे,
परोपकार पथ पर चलकर।
हम हितअहित समझें कुछ,
प्रेरित होंगे कर्तव्य निभाकर।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मै यही आशीष प्रभु से पाऊँ।
सत्कर्मों से चलूँ सदगति पर तो,
मै निश्चित गीत सुहावने गाऊँ।
केवल प्रवचन करता रहूँ मै,
नहीं अपना फर्ज निभाऊं ।
कैसे कह सकता गैरों से जब,
नहीं अपना दायित्व निभाऊँ।
प्रथम चलूँ डगर पर अपनी,
कहीं मै स्व कर्तव्य निभाने।
करूँ प्रशस्त मार्ग मै सुंदर,
दूजों को दायित्व निभाने।
गौरवमयी इतिहास बनाऐंगे,
परोपकार पथ पर चलकर।
हम हितअहित समझें कुछ,
प्रेरित होंगे कर्तव्य निभाकर।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
माता पिता का होता कर्ज,
पूरी जिंदगी निभाना है फर्ज,
जीवन सफल हो जाता है,
क्युकी बुढ़ापा होता है एक मर्ज ll
बच्चा जन्म लेता है जब,
माँ कष्ट कितना सह जाती हैl
बच्चे जब परेशान करे तो,
कह कुछ भी ना पाती है ll
पिता की ठंडी छावं छुवन की
होश नहीं होती उसको तन की
क्या कोई रह सकता नभ बिना
सोचे सदा संतान धन की ll
कुसुम पंत
पूरी जिंदगी निभाना है फर्ज,
जीवन सफल हो जाता है,
क्युकी बुढ़ापा होता है एक मर्ज ll
बच्चा जन्म लेता है जब,
माँ कष्ट कितना सह जाती हैl
बच्चे जब परेशान करे तो,
कह कुछ भी ना पाती है ll
पिता की ठंडी छावं छुवन की
होश नहीं होती उसको तन की
क्या कोई रह सकता नभ बिना
सोचे सदा संतान धन की ll
कुसुम पंत
धीरे चल ऐ जिन्दगी
कुछ कर्ज चुकाने हैं,
इंसान हूँ,
इनसानियत के कुछ
फर्ज निभाने हैं....!!
थरथराते हाथ
डबडबाई आँखें
मेरा इन्तजार करती है
मेरे कन्धों पर सवारी करने को
वह दिन-रात दुआ करती हैं
उस माँ के इस
अरमान को भी पूरा करने हैं
बेटे का कर्त्तव्य निभाने हैं......!
धीरे चल ऐ जिन्दगी
कुछ कर्ज चुकाने हैं....!!
वक्त की है कमी
इसी सोच में डूबा रहा
नहीं दौड़ पाया
वक्त के संग
खुद के उलझनों में खोया रहा
नहीं जान पाया
अपनों को
अभी कितने रिश्ते
अधूरे है, कितने रिश्ते निभाने हैं...
धीरे चल ऐ जिन्दगी
कुछ कर्ज चुकाने हैं.....!!
जिस घर में
रह रहा हूँ
नहीं उसे भी जान पाया
कितनी खिड़कियाँ बंद है
कितने जगह अनछुए हैं
कोना-कोना समझना है
हर कमरे में अभी जाना है
देकर किराया उसका
ऋण उतारना है,
विलीन होने से पहले
इस माटी का कर्ज चुकाने हैं....
धीरे चल ऐ जिन्दगी
कुछ कर्ज चुकाने हैं.....!!
स्वरचित: - मुन्नी कामत।
कुछ कर्ज चुकाने हैं,
इंसान हूँ,
इनसानियत के कुछ
फर्ज निभाने हैं....!!
थरथराते हाथ
डबडबाई आँखें
मेरा इन्तजार करती है
मेरे कन्धों पर सवारी करने को
वह दिन-रात दुआ करती हैं
उस माँ के इस
अरमान को भी पूरा करने हैं
बेटे का कर्त्तव्य निभाने हैं......!
धीरे चल ऐ जिन्दगी
कुछ कर्ज चुकाने हैं....!!
वक्त की है कमी
इसी सोच में डूबा रहा
नहीं दौड़ पाया
वक्त के संग
खुद के उलझनों में खोया रहा
नहीं जान पाया
अपनों को
अभी कितने रिश्ते
अधूरे है, कितने रिश्ते निभाने हैं...
धीरे चल ऐ जिन्दगी
कुछ कर्ज चुकाने हैं.....!!
जिस घर में
रह रहा हूँ
नहीं उसे भी जान पाया
कितनी खिड़कियाँ बंद है
कितने जगह अनछुए हैं
कोना-कोना समझना है
हर कमरे में अभी जाना है
देकर किराया उसका
ऋण उतारना है,
विलीन होने से पहले
इस माटी का कर्ज चुकाने हैं....
धीरे चल ऐ जिन्दगी
कुछ कर्ज चुकाने हैं.....!!
स्वरचित: - मुन्नी कामत।
विषय:-"कर्तव्य "
(1)
कहाँ है सत्य?
स्वार्थ बसे नगरी
भूले "कर्तव्य"
(2)
देश की सेवा
जन्मभूमि मंदिर
"कर्तव्य"पूजा
(3)
"कर्तव्य" इत्र
महकता व्यक्तित्व
श्रम के हाथों
(4)
स्व अन्वेषण?
"कर्तव्य" चढ़ा सूली
दोषारोपण
(5)
स्वदेश बड़ा
भावना से पहले
कर्तव्य पढ़ा
स्वरचित
ऋतुराज दवे
(1)
कहाँ है सत्य?
स्वार्थ बसे नगरी
भूले "कर्तव्य"
(2)
देश की सेवा
जन्मभूमि मंदिर
"कर्तव्य"पूजा
(3)
"कर्तव्य" इत्र
महकता व्यक्तित्व
श्रम के हाथों
(4)
स्व अन्वेषण?
"कर्तव्य" चढ़ा सूली
दोषारोपण
(5)
स्वदेश बड़ा
भावना से पहले
कर्तव्य पढ़ा
स्वरचित
ऋतुराज दवे
कर्तव्य पथ पर बढते रहो,
हे वीर तुम चलते रहो।
चाहे जितनी हों बाधाएं,
रणबीर तूम बढते रहो।
वसुधा है तुम्हें पुकार रही,
आओ आकर के पीर हरो।
सीमा पर जाकर डट जाओ,
शत्रु दल का दमन करो ।
आओ यह फर्ज निभा जाओ,
तुम कर्ज अपना चुका जाओ।
जाने फिर वक्त मिले न मिले,
सब कार्य अभी निपटा जाओ।
हे वीर तुम आगे बढो,
रणधीर तुम आगे बढो।
उठो उठ कर हुंकार भरो,
रिपु दल के उपर कूच करो।
उठो आकर के कष्ट हरो,
भारत से तम को नष्ट करो।
फैला दो हर खुशियाँ हर कोने में,
हर जन के मन में हर्ष भरो।
(अशोक राय वत्स) स्वरचित
हे वीर तुम चलते रहो।
चाहे जितनी हों बाधाएं,
रणबीर तूम बढते रहो।
वसुधा है तुम्हें पुकार रही,
आओ आकर के पीर हरो।
सीमा पर जाकर डट जाओ,
शत्रु दल का दमन करो ।
आओ यह फर्ज निभा जाओ,
तुम कर्ज अपना चुका जाओ।
जाने फिर वक्त मिले न मिले,
सब कार्य अभी निपटा जाओ।
हे वीर तुम आगे बढो,
रणधीर तुम आगे बढो।
उठो उठ कर हुंकार भरो,
रिपु दल के उपर कूच करो।
उठो आकर के कष्ट हरो,
भारत से तम को नष्ट करो।
फैला दो हर खुशियाँ हर कोने में,
हर जन के मन में हर्ष भरो।
(अशोक राय वत्स) स्वरचित
माँ- बाप की सेवा कर , कुछ अपना फर्ज निभाना है
ज्यादा न सही थोड़ा सा सही कुछ अपना कर्ज चुकाना है
आज्ञा गुरु की हम मानें, कुछ शिक्षा भी उनसे ले लें
रज गुरु चरणों की ले कर , हमें उनको शीश नवाना है
दुखियों की सेवा करके ही , हमें अपना जन्म बिताना है
दीनों के दुख हमको हरके , परमार्थ धर्म निभाना है
भारत माँ की रक्षा हेतु ,दुश्मन से लोहा लेना है
जीवन अर्पण करना हमको ,कुछ अपना फर्ज निभाना है
प्रभु चरणों में वंदन करके कुछ लग समाज की सेवा में
खुशियाँ बाँटे इस जगती में, हमको कर्तव्य निभाना है
सरिता गर्ग
ज्यादा न सही थोड़ा सा सही कुछ अपना कर्ज चुकाना है
आज्ञा गुरु की हम मानें, कुछ शिक्षा भी उनसे ले लें
रज गुरु चरणों की ले कर , हमें उनको शीश नवाना है
दुखियों की सेवा करके ही , हमें अपना जन्म बिताना है
दीनों के दुख हमको हरके , परमार्थ धर्म निभाना है
भारत माँ की रक्षा हेतु ,दुश्मन से लोहा लेना है
जीवन अर्पण करना हमको ,कुछ अपना फर्ज निभाना है
प्रभु चरणों में वंदन करके कुछ लग समाज की सेवा में
खुशियाँ बाँटे इस जगती में, हमको कर्तव्य निभाना है
सरिता गर्ग
----------------------------
भारत प्यारा देश हमारा
इसको सोने सा सजाना होगा
हिल मिल कर हम साथ चलें
हमें नया सबेरा लाना होगा
मानव कल्याण का बीड़ा
अब हमको उठाना होगा
बेईमानी भ्रष्टाचार हटाकर
ज्ञान का प्रकाश जलाना होगा
हिल मिल कर हम साथ चलें
हमें नया सबेरा लाना होगा
विश्वगुरु के पद पर
फिर भारत को पहुंचाना होगा
मरती सभ्यता संस्कारों को
फिर अस्तित्व में लाना होगा
हिल मिल कर हम साथ चलें
हमें नया सबेरा लाना होगा
उच्च धर्म हो मानवता का
सबको पाठ पढाना होगा
भटक गए हैं जो कर्त्तव्य पथ से
उनको राह दिखाना होगा
हिल मिल कर हम साथ चलें
हमें नया सबेरा लाना होगा
मन में दृढ़ता कर्म समर्पित
हृदय अगर उत्साही हो
दुखियों का संताप हरें हम
यह बीड़ा उठाना होगा
हिल मिल कर हम साथ चलें
हमें नया सबेरा लाना होगा
पंचशील के संदेशों को
जीवन में अपनाना होगा
ज़ख्मी पड़ी इस चिड़िया (भारत) को
फिर सोने की चिड़िया बनाना होगा
हिल मिल कर हम साथ चलें
हमें नया सबेरा लाना होगा
हो आजाद बहन बेटियों
मुक्त हो अपने उत्पीड़न से
नारी का सम्मान करें सब
हमें ऐसा जहां बनाना है
मिल कर कदम उठाना है
हिल मिल कर हम साथ चले
हमें नया सबेरा लाना है
***अनुराधा चौहान***मेरी स्वरचित रचना ✍
भारत प्यारा देश हमारा
इसको सोने सा सजाना होगा
हिल मिल कर हम साथ चलें
हमें नया सबेरा लाना होगा
मानव कल्याण का बीड़ा
अब हमको उठाना होगा
बेईमानी भ्रष्टाचार हटाकर
ज्ञान का प्रकाश जलाना होगा
हिल मिल कर हम साथ चलें
हमें नया सबेरा लाना होगा
विश्वगुरु के पद पर
फिर भारत को पहुंचाना होगा
मरती सभ्यता संस्कारों को
फिर अस्तित्व में लाना होगा
हिल मिल कर हम साथ चलें
हमें नया सबेरा लाना होगा
उच्च धर्म हो मानवता का
सबको पाठ पढाना होगा
भटक गए हैं जो कर्त्तव्य पथ से
उनको राह दिखाना होगा
हिल मिल कर हम साथ चलें
हमें नया सबेरा लाना होगा
मन में दृढ़ता कर्म समर्पित
हृदय अगर उत्साही हो
दुखियों का संताप हरें हम
यह बीड़ा उठाना होगा
हिल मिल कर हम साथ चलें
हमें नया सबेरा लाना होगा
पंचशील के संदेशों को
जीवन में अपनाना होगा
ज़ख्मी पड़ी इस चिड़िया (भारत) को
फिर सोने की चिड़िया बनाना होगा
हिल मिल कर हम साथ चलें
हमें नया सबेरा लाना होगा
हो आजाद बहन बेटियों
मुक्त हो अपने उत्पीड़न से
नारी का सम्मान करें सब
हमें ऐसा जहां बनाना है
मिल कर कदम उठाना है
हिल मिल कर हम साथ चले
हमें नया सबेरा लाना है
***अनुराधा चौहान***मेरी स्वरचित रचना ✍
जननी जन्म भूमि गरियसी
गुरु मातपिता सेवा करना
कर्तव्य मार्ग डटे जो जग में
ऐसे मानव का क्या कहना
दया ममता स्नेह सुधा रस
जन जन पर करते हैं अर्पण
परहित कर्तव्य पथ चलकर
करते निज को आत्म समर्पण
कर्तव्य जीवन सृंगार है
कर्तव्य मानव चरित्र है
कर्तव्य व्यवहार निज है
कर्तव्य ही राम चरित है
पथ कर्तव्य सरल नहीं है
उबड़ खाबड़ पत्थर कंकर
परहित जो जीता है जग में
वह् कहलाता भोला शंकर
सर्वे भवन्तु सुखिनः होता
धरा अहिंसा परमोधर्म है
दीन दुःखी जग सेवा करना
उसका पावन मनो कर्म है
प्रकृति सबको सबक सिखाती
सूर्य चन्द्र भू आलोकित करते
हिमगिरि नित पावन सरिता बह
शस्य श्यामल आवरण भर देते
स्व0 रचित
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
गुरु मातपिता सेवा करना
कर्तव्य मार्ग डटे जो जग में
ऐसे मानव का क्या कहना
दया ममता स्नेह सुधा रस
जन जन पर करते हैं अर्पण
परहित कर्तव्य पथ चलकर
करते निज को आत्म समर्पण
कर्तव्य जीवन सृंगार है
कर्तव्य मानव चरित्र है
कर्तव्य व्यवहार निज है
कर्तव्य ही राम चरित है
पथ कर्तव्य सरल नहीं है
उबड़ खाबड़ पत्थर कंकर
परहित जो जीता है जग में
वह् कहलाता भोला शंकर
सर्वे भवन्तु सुखिनः होता
धरा अहिंसा परमोधर्म है
दीन दुःखी जग सेवा करना
उसका पावन मनो कर्म है
प्रकृति सबको सबक सिखाती
सूर्य चन्द्र भू आलोकित करते
हिमगिरि नित पावन सरिता बह
शस्य श्यामल आवरण भर देते
स्व0 रचित
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
लघु कविता
हूँ मैं गृहिणी ,पिया की संगिनी
सुबह से शाम
करती हर काम
आये ना कभी
कोई व्यवधान
मन्द मन्द मुस्काते
बहु का फर्ज अदा करती
हूँ मैं गृहिणी, पिया की संगिनी
ममता का बीजारोपण कर
एक माली की तरह
अपने परिवार को
कर्मों से सिंचती
अपनी मृदुल वाणी से
माँ का फर्ज अदा करती
हूँ मैं गृहिणी, पिया की संगिनी
घर आँगन में खिले
हर फूल की
रखवाली करती
अपने पवित्र
आचरण से
माँ स्वरुपा सासु माँ का
फर्ज अदा करती
हूँ मैं गृहिणी, पिया की संगिनी
धार्मिकता का लावण्य लिए
बगिया में खिले
नन्ही-नन्हीं कलियों
को देख देख
प्रभु का गुणगान करती
गरिमा प्रतिष्ठा के साथ
एक दादी का फर्ज अदा करती
हूँ मैं गृहिणी, पिया की संगिनी
मान सम्मान मर्यादा और
संस्कारों का श्रृंगार किए
भारतीय नारी का फर्ज अदा करती
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
हूँ मैं गृहिणी ,पिया की संगिनी
सुबह से शाम
करती हर काम
आये ना कभी
कोई व्यवधान
मन्द मन्द मुस्काते
बहु का फर्ज अदा करती
हूँ मैं गृहिणी, पिया की संगिनी
ममता का बीजारोपण कर
एक माली की तरह
अपने परिवार को
कर्मों से सिंचती
अपनी मृदुल वाणी से
माँ का फर्ज अदा करती
हूँ मैं गृहिणी, पिया की संगिनी
घर आँगन में खिले
हर फूल की
रखवाली करती
अपने पवित्र
आचरण से
माँ स्वरुपा सासु माँ का
फर्ज अदा करती
हूँ मैं गृहिणी, पिया की संगिनी
धार्मिकता का लावण्य लिए
बगिया में खिले
नन्ही-नन्हीं कलियों
को देख देख
प्रभु का गुणगान करती
गरिमा प्रतिष्ठा के साथ
एक दादी का फर्ज अदा करती
हूँ मैं गृहिणी, पिया की संगिनी
मान सम्मान मर्यादा और
संस्कारों का श्रृंगार किए
भारतीय नारी का फर्ज अदा करती
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
निज कर्तव्य भूल गये हम,
सरकारों की बातें करते
अपना फर्ज निभाते नहीं क्यों
हम अधिकारों की बातें करते।
नहीं जानें क्या राष्ट्र धर्म हम,
या जानबूझ अनजान बने हैं।
अपने देश का खा पीकर भी,
क्यों दुर्जन हम बेईमान बने हैं।
दुश्मन देशों से मिलकर हम,
तारीफें उन सबकी करते हैं।
डूब मरें चुल्लू भर पानी में जो
तारीफें दुश्मन की करते हैं।
शीश चढाते बलिवेदी पर जो,
वही सचमुच कर्तव्य निभाते।
हंसते प्राण न्योछावर करते,
सच वही उत्तरदायित्व निभाते।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
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